MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 4 सुभाषितानि

MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Durva Chapter 4 सुभाषितानि (पद्यम्) (सङ्कलितम्)

MP Board Class 10th Sanskrit Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

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Sanskrit Shlok Class 10 MP Board प्रश्न 1.
एकान उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए)।
(क) गङ्गा किं हन्ति? (गङ्गा क्या नष्ट करती है?)
उत्तर:
पापम् (पाप को)

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(ख) केतकीगन्धम् आघ्राय के स्वयम् आयान्ति? (केवड़े की गन्ध को सूंघकर कौन स्वयं आ जाते हैं?)
उत्तर:
षट्पदाः (भौरे)

(ग) सर्वोत्तमं भूषणं किम् अस्ति? (सबसे उत्तम आभूषण क्या है?)
उत्तर:
वाग्भूषणम् (वाणी)

(घ) प्रीतिरसायनं किम् अस्ति? (प्रेमरूपी रस का आश्रय क्या है?)
उत्तर:
मित्रम् (मित्र)

(ङ) सर्वस्य के परीक्ष्यन्ते? (सबकी क्या परीक्षा की जाती है?)
उत्तर:
स्वभावः (स्वभाव)

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MP Board Class 10 Sanskrit Chapter 4 प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत-(एक वाक्य में उत्तर लिखिए-)
(क) केषां कृते महोदधिः अपारो नास्ति? किसके लिए महान् समुद्र अगम्य नहीं है?)
उत्तर:
व्यवसायद्वितीयानां कृते पहोदधिः अपारो नास्ति। (उद्यमशील लोगों के लिए महान् समुद्र अगम्य नहीं है।)

(ख) अर्थेः समायुक्तोऽपि कः परिभवपदं याति? (धन से युक्त होते हुए भी कौन पराजयता को प्राप्त होता है?)
उत्तर:
अर्थैः समायुक्तोऽपि कृपणः परिभवपदं याति। (धन से युक्त होते हुए भी कंजूस व्यक्ति पराजय को प्राप्त होते हैं।)

(ग) सन्तः कानि घ्नन्ति? (सज्जन क्या नष्ट करते हैं?)
उत्तर:
सन्तः पापं, तापं दैन्यं च ध्नन्ति। (सज्जन लोग पाप, ताप और दीनता का नाश करते हैं।)

(घ) कान् अतीत्य कः मूर्ध्नि वर्तते? (किसको छोड़कर क्या सर्वोच्च है?)
उत्तर:
सर्वान् गुणान् अतीत्य स्वभावः मूर्ध्नि वर्तते। (सब गुणों को छोड़कर स्वभाव सर्वोच्च है।)

(ङ)
कीदृशो वह्रि स्वयम् उपशाम्योते? (कैसी अग्नि स्वयं शान्त हो जाती है?)
उत्तर:
अतृणे पतितः वह्निः स्वयम् उपशाम्यति। (तिनके से रहित गिरी हुई अग्नि स्वयं शान्त हो जाती है।)

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MP Board Class 10th Sanskrit Chapter 4 प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए)
(क) दानेन कानि-कानि भवन्ति? (दान से क्या-क्या होता है?)
उत्तर:
दानेन भूतानि वशीभवन्ति, वैराणि नाशं यान्ति, परः अपि बन्धुत्वम् उपैति, सर्वव्यसनानि च हन्ति। (दान से प्राणी वश में होते हैं, शत्रुभाव नष्ट हो जाता है, पराये भी अपने हो जाते हैं और सब बुरी आदतों का नाश होता है।)

(ख) पुरुष के न विभूषयन्ति? (पुरुष को क्या शोभा नहीं देते?)
उत्तर:
पुरुषः केयूराः न, चन्द्रोज्ज्वलाः हाराः न, स्नानं न, विलेपन न, कुसुमं न, अलङ्कताः मूर्धजा न विभूषयन्ति।

(पुरुष न बाजूबन्द, न चन्द्रमा जैसे उचल हार, न स्नान, न चन्दन आदि के लेप, न फूल और न सुसज्जित केशां से सुशोभित होता है।)

(ग) बुधजनसकाशात् मे किमभवत्? (विद्वानो की सङ्गति से मेरा क्या हुआ?)
उत्तर:
बुधजनसकाशात् मे मदः ज्वर इव व्यपगतः।
(विद्वानों की सङ्गति में मेरा अभिमान ज्वर के समान दूर हो गया।)

Subhasitani Sloka Class 10 प्रश्न 4.
रिक्तस्थानानि पूरयत
(दिए हुए शब्दों से रिक्त स्थान भरिए-.)
(क) दानेन …………… वशी भवन्ति। (भूतानि/प्रेताः)
(ख) द्युतिं सैंही …………… किं धृतकनकमालोऽपि लभते। (श्वा/अश्वाः )
(ग) केतकीगन्धमानाय स्वयमायान्ति ……………। (आपदाः/षट्पदाः)
(घ) क्षमाशस्त्रं करे यस्य …………… किं करिष्यति। (सज्जनः/दुर्जनः)
(ङ) अतीत्य हि गुणान्सर्वान् …………… मूर्ध्नि वर्तते। (स्वभावो/दुर्भावो)
उत्तर:
(क) भूतानि
(ख) श्वा
(ग) पट्पदाः
(घ) दुर्जनः
(ङ) स्वभावो

Class 10th Sanskrit Shlok प्रश्न 5.
यथायोग्यं योजयत-(उचित क्रम से मिलाइए-)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 4 सुभाषितानि img 1
उत्तर:
(क) 2
(ख) 1
(ग) 4
(घ) 5
(ङ) 3

Sanskrit Shlok Class 10th प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं ‘न’ इति लिखत- (शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम’ तथा अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ लिखिए-)
(क) अलङ्कताः मूर्धजाः पुरुषं विभूषयन्ति।
(ख) संस्कृता वाणी पुरुष समलङ्करोति।
(ग) तृणे पतितो वह्निः स्वयमेवोपशाम्यति।
(घ) दानेन परोऽपि बन्धुत्वमुपैति।
(ङ) धृतकनकमालो श्वा सैंहीं द्युतिं लभते।
उत्तर:
(क) न
(ख) आम्
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) न।

10th Class Sanskrit Chapter 4 Question Answer प्रश्न 7.
अधोलिखितक्रियापदानां लकारं पुरुषं वचनं च लिखत-(नीचे लिखे क्रियापदों के लकार, पुरुष और वचन लिखिए।)
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 4 सुभाषितानि img 2
उत्तर:
MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Chapter 4 सुभाषितानि img 3

Subhashitani Class 10 प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं पर्यायशब्दं लिखत-(उदाहरण के अनुसार पर्यायवाची शब्द लिखिए)
यथा- गङ्गा – देवनदी
(क) सन्तः
(ख) शिखरः
(ग) वीरः
(घ) षट्पदाः
(ङ) नयनयोः
उत्तर:
(क) सन्तः – सज्जनाः
(ख) शिखरः – तुंगः
(ग) वीरः – शूरः
(घ) षट्पदाः – भ्रमराः
(ङ) नयनयोः – नेत्रयोः

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Class 10th Sanskrit Chapter 4 प्रश्न 9.
रेखात्तिपदान्याधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(खांकित्त पदों के आधार पर प्रश्न बनाइए।)
(क) ते सर्वत्र मिलन्ति। (वे सब जगह मिलते हैं।)
उत्तर:
के सर्वत्र मिलन्ति? (कौन सब जगह मिलते हैं?)

(ख) दानेन वैराण्यपि नाशं यान्ति। (दान से शत्रुभाव नष्ट होता है।
उत्तर”
केन वैराण्यपि नाशं यान्ति? (किससे शत्रुभाव नष्ट होता है?)

(ग) कृपणः परिभवपदं याति। (कंजूस पराजयता को प्राप्त होता है।)
उत्तर:
कः परिभवपदं याति? (कौन पराजयता, को प्राप्त होता है ?)

(घ) मे मदः ज्वर इव व्यपगतः। (मेरा घमण्ड ज्वर के समान दूर हो गया।)
उत्तर:
कस्य मदः ज्वर इव व्यपगतः? (किसका घमण्ड ज्वर के समान दूर हो गया?)

(ङ) केयूराः पुरुषं न विभूषयन्ति। (बाजूबन्द पुरुष को शोभा नहीं देते।)
उत्तर:
केयूराः कं न विभूषयन्ति? (बाजूबन्द किसको शोभा नहीं देते?)

Subhashitani Class 10th प्रश्न 10.
श्लोकपूर्ति कुरुत। (श्लोक पूरा कीजिए।)
उत्तर:
(क) गङ्गा पापं शशी तापं दैन्यं कल्पतरुस्तथा।
पापं तापं च दैन्यं च घ्नन्ति सन्तोमहाशयाः॥

(ख) नात्युच्चशिखरो मेरु नातिनीचं रसातलम्।
व्यवसायद्वितीयानां नाप्यपारो महोदधिः॥

(ग) गुणाः कुर्वन्ति दूतत्वं दूरेऽपि वसतां सताम् ।
केतकी गन्धमाघ्राय स्वयमायान्ति षट्पदाः॥

(घ) क्षमाशस्त्रं करे यस्य दुर्जनः किं करिष्यति।
अतृणे पतितो वह्निः स्वयमेवोपशाम्यति॥

(ङ) सर्वस्य हि परीक्ष्यन्ते स्वभावाः नेतरेः गुणाः।
अतीत्य हि गुणान्सर्वान् स्वभावो मूर्धिन वर्तते॥

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योग्यताविस्तार –

पाठे समागतान् श्लोकान् कण्ठस्थं कुरुत।
(पाठ में आए हुए लोकों को कण्ठस्थ करो।)

पाठ्यपुस्तकेतराणि सुभाषितानि पठत।।
(पाठ्यपुस्तक से अलग सुभाषित श्लोक पढ़ो।)

पाठ्यपुस्तकेतरान् दशसुभाषितश्लोकान् लिखत।
(पाठ्यपुस्तक से अलग दस सुभाषित श्लोक लिखो।)

सुभाषितानि पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में ऐसे श्लोकों का संग्रह है, जिनसे मनुष्य को जीवन में अच्छे कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। इनमें सज्जन व दान की, परिश्रमी व वीर पुरुषों की, गुण की, वाणी की, क्षमा की प्रशंसा, मित्र का स्वरूप, स्वभाव की महिमा तथा अल्पज्ञानी के स्वभाव की चर्चा की गई है।

सुभाषितानि पाठ का अनुवाद

1. गङ्गा पापं शशी तापं दैन्यं कल्पतरुस्तया।
पापं तापं च दैन्यं च ध्नन्ति सन्तोमहाशयाः॥1॥

अन्वय :
गङ्गा पापं, शशी तापं कल्पतरुः च दैन्यं (घ्नन्ति) तथा सन्तो महाशयाः पापं तापं दैन्य च (त्रीणि अपि) घ्नन्ति।

शब्दार्था:
शशी-चन्द्रमा-Moon; दैन्यम्-दीनता/गरीबी-humbleness, poverty, indigence, घ्नन्ति-नाश करते हैं-destroy, uproot.

अनुवाद :
गंगा पाप का, चन्द्रमा ताप (गर्मी) का और कल्पवृक्ष गरीबी का नाश करते हैं। वैसे ही महान (संत) लोग पाप, ताप व दीनता तीनों का ही नाश करते हैं।

English :
The saints uproot sin, heat and poverty. They have the qualities of the ganges, the moon and the kalpa tree.

2. दानेन भूतानि वशीभवन्ति दानेन वैराण्यपि यान्ति नाशम्।
परोऽपि बन्धुत्वमुपैति दानैर्दानं हि सर्वव्यसनानि हन्ति॥2॥

अन्वय :
दानेन भूतानि वशीभवन्ति, दानेन वैराणि अपि नाशं यान्ति, दानैः परः अपि बन्धुत्वम् उपैति, हि दानं सर्वव्यसनानि हन्ति ।।

शब्दार्था :
भूतानि-प्राण-animate creatures, वैराणि-शत्रुभाव-enmity; उपैति-बन जाता है-turns into, becomes.

अनुवाद :
दान के द्वारा सभी प्राणी वश में किए जाते हैं, दान के द्वारा शत्रुभाव का भी नाश किया जाता है, दान के द्वारा पराये भी अपने बन जाते हैं, क्योंकि दान सब बुरी आदतों को हर लेता है।

English :
Generosity controls human beings (creatures), removes enmity, befriends enemies and uproots vices.

3. नात्युच्चशिखरो मेरुनातिनीचं रसातलम् ।
व्यवसायद्वितीयानां नाप्यपारो महोदधिः॥3॥

अन्वय :
व्यवसायद्वितीयानां कृते मेरुः शिखरो अत्युच्चः न, रसातलम् अतिनीचं न, महोदधिः अपि अपारो न।

शब्दार्था :
व्यवसायद्वितीयानाम्-उद्यमशील लोगों के लिए-for the adventurous people; अत्युच्चः-अत्यन्त ऊँचा-lofty, very high, रसातलम्-पृथ्वी के नीचे का रसातल नामक छठा लोक-nether region, अपारः-अगम्य-inaccessible.

अनुवाद :
उद्यमशील (परिश्रमी) लोगों के लिए मेरू शिखर अत्यन्त ऊंचा नहीं है, रसातल (पृथ्वी के नीचे का लोक) बहुत नीचा नहीं है, बहुत बड़ा समुद्र भी अगम्य (न पार करने योग्य) नहीं है। अर्थात् परिश्रमी व्यक्तियों के लिए कोई भी कार्य असम्भव नहीं है।)

English :
Adventurous people have access to all the places under the earth, on the earth and above the earth.

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4. विनाप्यर्थैर्वीरः स्पृशति बहुमानोन्नतिपदं,
समायुक्तोप्यर्थैः परिभवपदं याति कृपणः।
स्वभावादुद्भूतां गुणसमुदयावाप्तिविषयां,
युतिं सैंही श्वा किं धृतकनकमालोऽपि लभते॥4॥

अन्वय P\वीरः अर्थेः विना अपि बहुमानोन्नतिपदं स्पृशति, कृपणः अर्थः समायुक्तः अपि परिभवपदं याति, गुणसमुदयावाप्तिविषयां स्वभावाद् उद्भूतां सैंही द्युतिं धृतकनकमालो श्वा अपि किं लभते?

शब्दार्था :
अथैः विना-धन से रहित-devoidof riches (money), बहुमानोन्नतिपदम्अत्यन्त सम्मान एवं उन्नति के स्थान.को-Position of respect and progress, परिभवपदम्-पराजयता को-defeat, गुणसमुदयावाप्तिविषयाम्-गुणों के समुदाय को प्राप्त कराने वाली को-whichcauses theattainmentofheapofvirtues, सैंही द्युतिम्-सिंह की कान्ति को-The grace of the lion, धृतकनकमालः-स्वर्णमाला को धारण करने वाला-Wearing golden necklace, श्वा-कुत्ता-a dog.

अनुवाद :
वीर पुरुष धन के बिना भी अत्यधिक सम्मान एवं उन्नति के स्थान को छू लेता है, कंजूस व्यक्ति, धन से युक्त होते भी पराजयंता को प्राप्त होता है। स्वभाव से गुणों के समुदाय को प्राप्त कराने वाली सिंह की कान्ति को स्वर्णमाला को धारण करने वाला कुत्ता भी क्या प्राप्त कर सकता है?

English :
Money is no criterion for greatness. A dog with ornaments can not match a lion in grace.

5. गुणाः कुर्वन्ति दूतत्वं दूरेऽपि वसतां सताम्।
केतकीगन्धमाघ्राय स्वयमायान्ति षट्पदाः॥5॥

अन्वय :
दूरे अपि वसतां सतां गुणाः दूतत्वं कुर्वन्ति, षट्पदाः केतकीगन्धम् आघ्राय स्वयम् आयान्ति। – शब्दार्थाः-दूतत्वम्-दूत के कार्य-duty of messenger, सताम्-सज्जनों के-of the noble persons, षट्पदाः-भौरे-Black bee केतकीगन्धम्-केवड़े के गन्ध को-smell of ‘ketaki’, आघ्राय-सूंघकर-smelling.

अनुवाद :
दूर रहते हुए भी सज्जनों के गुण दूत के कार्य करते हैं, भौरे केवड़े की गन्ध को सूंघकर स्वयं ही आ जाते हैं।

English :
Virtues reveal themselves from a distance. The smell of flowers attracts black bees.

6. केयूरा न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्वलाः.
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कता मूर्धजाः।
वाण्येका समलङ्करोति पुरुष या संस्कृता धार्यते,
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्।।6।।

अन्वय :
पुरुषं केयूराः न, चन्द्रोज्ज्वलाः हाराः न, स्नानं न, विलेपनं न, कुसुमं न, अलङ्कताः मूर्धजाः न विभूषयन्ति, एका वाणी (एव) पुरुषं समलङ्करोति या संस्कृता धार्यते, भूषणानि खलु सततं क्षीयन्ते, वाग्भूषणं भूषणम् (अस्ति)।

शब्दार्था:
विलेपनम्-चन्दनादि सुगन्धित पदार्थों के लेप-bemearing with fragrant pastes, मूर्धजाः-केश-hair, समलङ्करोति-सुशोभित करती है-adorn, संस्कृतासंस्कारमयी-cultured, polished, क्षीयन्ते-नष्ट हो जाते हैं-decay.

अनुवाद :
मनुष्य न बाजूबन्द से, न चन्द्रमा के समान उज्ज्वल हार से, न स्नान से, न चन्दनादि सुगन्धित पदार्थों के लेप से, न फूलों से, न सुसज्जित केश से सुशोभित होता है। एक वाणी ही मनुष्य को सुशोभित करती है, जो संस्कारित रूप से धारण की जाती है। आभूषण तो निरन्तर नष्ट हो जाते हैं, वाणी रूपी आभूषण ही सच्चा आभूषण है।

English :
Ornaments and pastes fail to adorn a person. Cultured speech beautifies one’s personality. Speech is the real ornament which never loses its lustre (fades).

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7. क्षमाशस्त्रं करे यस्य दुर्जनः कि करिष्यति।
अतणे पतितोः वद्धिः स्वयमेवोपशाम्यति॥7॥

अन्वय :
यस्य करे क्षमाशस्त्रं (विद्यते), (तस्य) दुर्जनः किं करिष्यति? (यथा) अतृणे पतितः वह्निः स्वयम् एव उपशाम्यति।

शब्दार्था :
अतृणे-तृण (घास) से रहित-withoutstraw (grass), उपशाम्यति-उपशमित हो जाता है-extinguishes..

अनुवाद :
जिसके हाथ में क्षमा रूपी शस्त्र होता है, उसका दुष्ट व्यक्ति क्या कर सकता है? जैसे तिनके से रहित गिरी हुई अग्नि स्वयं ही शान्त हो जाती है।

English :
An enemy cannot harm a forgiving person. The fire lying on bare ground gets extinguished.

8. मित्रं प्रीतिरसायनं नयनयोरानन्दनं चेतसः
पात्रं यत्सुखदुःखयोः सह भवेन्मित्रेण तद् दुर्लभम्।
ये चान्ये सुहृदः समृद्धिसमये द्रव्याभिलाषाकुला
स्ते सर्वत्र मिलन्ति तत्त्वनिकषग्रावा तु तेषां विपत्॥8॥

अन्वय :
मित्रं प्रीतिरसायनं, नयनयोः चेतसः (च) आनन्दनं, यत् मित्रेण सह सुखदुःखयोः पात्रं भवति तदुर्लभम्, ये च अन्ये सुहृदः समृद्धिसमये द्रव्याभिलाषाकुलाः (भवन्ति) ते सर्वत्र मिलन्ति, तेषां (कृते) विपत् तु तत्त्वनिकषग्रावा (इव भवति)।

शब्दार्था :
प्रीतिरसायनम्-प्रेमरूपी रस का आश्रय-uf the heart, चेतसः-चिन्न का-of the heart, आनन्दनम्-आनन्दित करने वाला-which delights, अन्ये-दूसरे-others; द्रव्याभिलाषाकुलाः-धन प्राप्ति की कामना करने वाले-those who crave for attainment of wealth; तत्त्वनिकषग्रावा-तत्त्व रूपी कसौटी का पत्थर-touchstone.

अनुवाद :
प्रेमरूपी रस का आश्रय मित्र नेत्रों व मन को आनन्दित करने वाला होता है। जो मित्र के साथ सुख-दुख का भागी होता है, वह (मित्र) मुश्किल से मिलता है और जो, दूसरे, मित्र की खुशहाली के समय पर धन प्राप्ति की कामना करने वाले होते हैं, वे सब जगह मिलते हैं, उनके लिए विपत्ति तो तत्त्व रूपी कसौटी का पत्थर समान है।

English :
A loving friend delights one’s eyes and heart. Shares weal and woe of a friend. He is rare. A false friend sticks during prosperity but leaves in adversity.

9. सर्वस्य हि परीक्ष्यन्ते स्वभावा नेतरे गुणाः।
अतीत्य हि गुणान्सर्वान्स्वभावो मूर्ध्नि वर्तते॥9॥

अन्वय:
सर्वस्य स्वभाषाः हि परीक्ष्यन्ते, इतरे गुणाः न, हि सर्वान् गुणान् अतीत्य स्वभावो मनि वर्तते।

शब्दार्था :
परीक्ष्यन्ते-परीक्षा की जाती है-is tested, अतीत्य-छोड़कर-surpassing, leaving behind, मूर्जि-मस्तक पर (सर्वोच्च)-on the head, above all.

अनुवाद :
सबके स्वभाव की ही परीक्षा की जाती है, दूसरे गुणों की नहीं, क्योंकि सब गुणों को छोड़कर स्वभाव सर्वोच्च है।

English :
Nature is above other virtues. It is tested everywhere leaving aside other qualities.

10. यदा किञ्चिज्ज्ञोऽहं गज इय मदान्धः समभवं,
तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिप्तं मम मनः।
यदा किञ्चित् किञ्चिद् बुधजनसकाशादवगतं
तदा मूखोऽस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः॥10॥

अन्वय :
यदा अहं किञ्चिद् ज्ञः (आसम्) तदा (अह) गज इव मदान्धः समभवम्, सर्वज्ञः अस्मि इति मम मनः अवलिप्तम् अभवत्। यदा किञ्चित् किञ्चिद् बुधजनसकाशात् अवगतं तदा मूर्खः अस्मि इति मे मदः ज्वर इव व्यपगतः।

शब्दार्था :
किञ्चिज्ज्ञः-थोड़ा जानने वाला-having lesser knowledge, मदान्धः-घमण्ड में चूर-vain, full of pride, अवलिप्तम्-अभिमानी-proud, बुधलनराकाशात्-विद्वानों की सङ्गति से-Incompanyof the wise,अवगतम्-जाना-knew, व्यपगतः-दूर हो गया-removed, abated.

अनुवाद :
जब मैं थोड़ा जानने वाला होता, तब मैं हाथी के समान घमण्ड में चूर हो जाता, मैं सब जानता हूँ, ऐसा मेरा मन अभिमानी हुआ। जब थोड़ा-थोड़ा विद्वानों की सङ्गति से जाना, तब ‘मैं मूर्ख हूँ’ ऐसा मेरा अभिमान (घमण्ड) बुखार के समान दूर हो गया।

English :
Aman with lesser knowledge is proud like an elephantthinks himself knowledgeable-Pride shattered when came in association with learned persons.

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