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MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 1 विनय के पद (तुलसीदास)
विनय के पद पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
विनय के पद लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
तुलसीदास ने किसे त्यागने योग्य माना है?
उत्तर-
तुलसीदास ने उसे त्यागने योग्य माना है, जिसे श्रीराम और सीता प्रिय नहीं हैं।
प्रश्न 2.
तुलसीदास का राम से कैसा नाता है? उत्तर-तुलसीदास का राम से अनन्य भक्ति का नाता है। प्रश्न 3. तुलसीदास रघुपति के चरण-कमलों में क्यों बसना चाहते हैं?
उत्तर-
तुलसीदास रघुपति के चरण-कमलों में बसना चाहते हैं। यह इसलिए कि वे इंद्रियों के वश में न होकर अपने इष्टदेव श्रीराम की भक्ति कर सकें।
प्रश्न 4.
अपने परिजनों का स्त्याग किस-किसने किया?
उत्तर-
अपने परिजनों का त्याग प्रह्लाद, विभीषन, भरत, राजा बलि और गोपियों ने किया।
विनय के पद दीर्घ-उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
तुलसीदास जी ने परमहित किसे माना है?
उत्तर-
तुलसीदास ने जिसके कारण श्रीराम के चरणों में स्नेह-प्रीति हो उसे ही अपना परमहित माना है।
प्रश्न 2.
कवि को अपनी इंद्रियों पर हँसी क्यों आती है? .
उत्तर-
कवि को अपनी इंद्रियों पर हँसी आती है। यह इसलिए कि जब तक वह इंद्रियों के वश में था, तब तक उन्होंने उसे मनमाना नाच नचाकर उसकी बड़ी हँसी उड़ाई, परंतु अब स्वतंत्र होने पर यानी मन-इंद्रियों को जीत लेने पर उनसे वह अपनी हँसी नहीं करा रहा है। अब तो उन पर ही वह हँस रहा है।
प्रश्न 3.
“पायो नाम चारु चिंतामनि” से कवि का क्या आशय है?
उत्तर-
“पायो नाम चारु चिंतामनि से” कवि का आशय है-श्रीराम नाम के स्मरण करते रहने से वह अब किसी प्रकार के सांसारिक मोह-बंधन में नहीं बँधेगा।
प्रश्न 4.
भाव-भौंदर्य लिखिए
(क) अंजन कहा आँखि जेहि फूटै।
(ख) रामकृपा भव-निसा सिरानी।
(ग) अब लौं नसानी, अब न नसैहौं।
उत्तर-
(क) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौंदर्य आकर्षक है। अपेक्षित वस्तु के स्थान अनुचित और अनपेक्षित वस्तु के द्वारा हानि होने की निश्चयता को सहज ढंग से व्यक्त किया गया है। यह प्रदर्शन बड़ा ही रोचक और सटीक है।
(ख) राम की कृपा का महत्त्वांकन करने के लिए कवि ने उसे असाधारण रूप में प्रस्तुत किया है। ‘भव-निसा’ में प्रस्तुत रूपक की योजना भक्ति-भावों को जगाती-बढ़ाती हुई आकर्षक है।
(ग) “बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेव।” सूक्ति का सार्थक-प्रयोग है। इससे निराशा को त्यागकर आशावान बनने की सुंदर भावना उत्पन्न होती है।
विनय के पद भाषा अनुशीलन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखिएजाके, छाँड़िए, जदपि, नेह, ऐतो, मतो, हमारो परबस।
उत्तर-
शब्द – मानक रूप
जाके – जिसे
छाँड़िए – त्याग, त्याज्य
जदपि – यद्यपि
नेह – स्नेह
ऐतो – यही
मतो – मत
हमारो – हमारा।
परबस – परवश।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिएबंधु, नेह, उर, मधुकर, कंचन, कर।
उत्तर-
पर्यायवाची शब्द-
बंधु – भ्राता, भाई, सहोदर
नेह – स्नेह, प्रेम
उर – हृदय, अंतर
मधुकर – भौंरा, भ्रमर
कंचन – स्वर्ण, सोना
कर – हाथ, हस्त।
प्रश्न 3.
पाठ में सनेह, निसि आदि जैसे तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है। इसी प्रकार के अन्य तद्भव शब्दों को छाँटकर लिखिए।
उत्तर-
तद्भव शब्द-जदपि, महतारी, नेह, आँखि, प्रान, निसा, कर, परबस।
विनय के पद योग्यता-विस्तार
प्रश्न 1.
महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों की सूची बनाइए।
प्रश्न 2. श्रीराम, लक्ष्मण और सीता का वनगमन का काल्पनिक चित्र वनाइए। प्रहलाद, विभीषण, भरत, बलि एवं ब्रज की गोपियों से संबंधित प्रसंग शिक्षक से जानिए।
उत्तर-
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
विनय के पद परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
तुलसीदास ने अपने परम स्नेही जनों को करोड़ों शत्रु के समान क्यों कहा है? .
उत्तर-
तुलसीदास ने अपने परम स्नेही जनों को करोड़ों शत्रु के समान कहा है। यह इसलिए कि उनका उनके इष्टदेव श्रीराम और सीता के प्रति बिल्कुल भक्ति-भावना नहीं है।
प्रश्न 2.
किन-किन अपने परिजनों का किस-किसने परित्याग किया और क्या प्राप्त किया?
उत्तर-
प्रह्लाद ने अपने पिता हिरण्यकश्यपु, विभीषण ने अपने भाई रावण, भरत ने अपनी माँ कैकेयी, राजा बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य और ब्रज की गोपियों ने अपने-अपने पतियों का परित्याग किया। इससे वे सभी मंगल और आनंद के विधायक बने।
प्रश्न 3.
तुलसीदास के अनुसार परमहितैषी, पूज्य और प्राणों से भी बढ़कर प्रिय कौन है और क्यों?
उत्तर-
तुलसीदास के अनुसार राम के प्रति स्नेह और भक्ति भाव रखने वाला ही परम हितैषी, पूज्य और प्राणों से भी बढ़कर है। यह इसलिए कि राम के प्रति भक्ति भावना न रखने वाला उनका परम स्नेही होकर भी करोड़ों शुभ के समान है।
प्रश्न 4.
अब तक कवि की आयु किसमें नष्ट हो गयी?
उत्तर-
अब तक कवि की आयु व्यर्थ में ही नष्ट हो गयी।
प्रश्न 5.
कवि और क्या नहीं नष्ट होने देगा और क्यों?
उत्तर-
कवि और अपनी आयु नष्ट नहीं होने देगा। इसलिए कि उसे अपने इष्टदेव श्रीराम की कृपा प्राप्त हो गयी है। उससे वह संसार की माया रूपी रात से जग गया है।
प्रश्न 6.
कवि किसे क्या बनाकर क्या करना चाहता है?
उत्तर-
कवि अपने इष्टदेव श्रीराम के पवित्र श्यामसुंदर स्वरूप की कसौटी बनाकर अपने चित्त रूपी सोने को कसना चाहता है।
प्रश्न 7.
कवि का क्या प्रण है?
उत्तर-
कवि का यह प्रण है कि वह अपने मन रूपी भौरे को श्रीराम के चरणों को छोड़कर और किसी दूसरी जगह नहीं जाने देगा।
2. निम्नलिखित कथनों के लिए दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प का चयन कीजिए।
1. तुलसीदास प्रवर्तक कवि हैं।
(क) ज्ञानमार्गी के,
(ख) सगुण भक्ति-काव्यधारा के
(ग) निर्गुण शाखा के,
(घ) प्रेममार्गी शाखा के।
उत्तर-
(ख) सगुण भक्ति-काव्यधारा के
2. ‘सो छाँड़िए कोटि बैरी सम’ में अलंकार है।
(क) अनुप्रास
(ख) रूपक
(ग) उपमा
(घ) उत्प्रेक्षा।
उत्तर-
(ग) उपमा
3. तुलसीदास भक्त थे। .
(क) श्रीकृष्ण के
(ख) शिव के
(ग) विष्णु के
(घ) श्रीराम के।
उत्तर-
(ख) शिव के
4. तुलसीदास के पदों में रस प्रधान है-
(क) भक्ति रस
(ख) वीर रस
(ग) श्रृंगार रस
(घ) शांत रस।
उत्तर-
(क) भक्ति रस
5. रामनाम है ……………………………।
(क) सोना
(ख) कसौटी
(ग) चिंतामणि
(घ) पवित्र रूप।
उत्तर-
(ग) चिंतामणि
3. रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों में से चुनकर कीजिए।
1. विनय के पद के कवि हैं …………………………..।
(क) कबीर दास
(ख) रहीम दास
(ग) सूरदास
(घ) तुलसीदास।
उत्तर-
(घ) तुलसीदास।
2. करोड़ों बैरी के समान हैं ……………………………।
(क) राम के विरोधी
(ख) रावण के विरोधी
(ग) राम-सीता के विरोधी
(घ) सीता के विरोधी।
उत्तर-
(ग) राम-सीता के विरोधी
3. तुलसी की कविता में …………………………… मिलता है
(क) भक्ति भावना
(ख) ओजपूर्ण भावना
(ग) माधुर्य भावना
(ग) सौंदर्य भावना।
उत्तर-
(क) भक्ति भावना
4. कसौटी पर ………….. कसा जाता है।
(क) चाँदी
(ख) सोना
(ग) चित्त
(ग) पेंच।
उत्तर-
(ख) सोना
5. तुलसीदास का मन ……………………………
(क) चिंतामणि
(ख) कसौटी
(ग) भौंरा
(घ) माया।
उत्तर-
(ग) भौंरा
4. सही जोड़ी का मिलान कीजिए-
अशोक के फूल – महादेवी वर्मा
उत्साह – ‘दिनकर’
कुरुक्षेत्र – हजारीप्रसाद द्विवेदी
अतीत के चलचित्र – रामचंद्र शुक्ल
उत्तर-
अशोक के फूल – हजारीप्रसाद द्विवेदी
उत्साह – रामचंद्र शुक्ल
कुरुक्षेत्र – ‘दिनकर’
अतीत के चलचित्र – महादेवी वर्मा
5. दिए गए सत्य/असत्य लिखिए-
1. विनय के पद हैं-कवितावली से
2. तुलसीदास के गुरु थे-नरहरिदास
3. कवि तुलसी ने पहले लिखा था-‘विनय-पत्रिका’
4. तुलसीदास की भाषा थी-अवधी-ब्रज
5. तुलसीदास के पदों में अलंकार प्रधान है-अनुप्रास और उपमा
उत्तर-
1. असत्य,
2. सत्य,
3. असत्य,
4. सत्य,
5. सत्य।
6. एक या दो शब्द में उत्तर दीजिए-
1. राम की कृपा से कौन-सी रात बीत जाती है?
2. तुलसीदास अपने मन को किसके चरणों में लगाना चाहते हैं?
3. राष्ट्र के विकास का आधार कौन-सी भाषा है?
4. महाराणा प्रताप का युद्ध किससे हुआ था?
5. अलंकार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
1. माया-रात्रि,
2. श्रीराम के,
3. राष्ट्रभाषा,
4. मुगलों से,
5. दो प्रकार के।
विनय के पद लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
कौन त्याज्य है?
उत्तर-
भगवत्प्राप्ति में जो बाधक बने वह त्याज्य है।
प्रश्न 2.
अंजन कब व्यर्थ होता है?
उत्तर-
अंजन तब व्यर्थ होता है-जब वह रोशनी देने के बजाय रोशनी ही समाप्त .. कर देता है।
प्रश्न 3.
श्रीरामचंद्र के शरीर और कसौटी में क्या समानता है?
उत्तर-
श्रीरामचंद्र के शरीर और कसौटी में यही समानता है कि दोनों ही श्याम वर्ण के हैं।
विनय के पद कवि-परिचय
जीवन-परिचय-तुलसीदास का जन्म सन् 1532 ई. में बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता का नाम हुलसी था। मूल नक्षत्र में जन्म लेने के कारण उनको अशुभ माना गया। इसलिए उनके माता-पिता ने उन्हें त्याग दिया। नरहरिदास ने उन्हें शिक्षा दी।
विवाह एवं वैराग्य-उनका विवाह रत्नावली नाम की कन्या से हुआ। कहा जाता है कि एक बार रत्नावली अपनी मायके चली गई। तुलसीदास उसका वियोग सहन न कर सके और नदी को पार कर उसके मायके जा पहुँचे। तब रत्नावली ने उन्हें जो उपदेश दिया उससे उन्हें वैराग्य हो गया और उनका मन रामभक्ति की ओर मुड़ गया। उन्होंने अपना जीवन, काशी, अयोध्या और चित्रकूट में व्यतीत किया। उनका निधन सन् 1623 में काशी के असी घाट पर हुआ था।
रचनाएँ-तुलसीदास ने अनेक ग्रंथ लिखे हैं। उनमें प्रमुख रचनाएँ हैं-श्रीरामचरित मानस, विनयपत्रिका, कवितावली, दोहावली, गीतावली, रामलला नहछू आदि। इन सभी रचनाओं में रामचरितमानस बहुत महत्त्वपूर्ण है। इसकी गणना संसार के प्रसिद्ध ग्रंथों में की जाती है। इसमें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के शक्ति, शील और सौंदर्य का चित्रण है। तुलसीदास ने इस ग्रंथ में ‘राम-राज्य’ का चित्र प्रस्तुत किया है।
भाव-पक्ष-तुलसीदास भक्त-कवि हैं। उनकी भक्ति-भावना भगवान राम के प्रति है। वे भगवान राम के प्रति संपूर्ण रूप से समर्पित और आश्रित हैं। उनके प्रभु बड़े दयालु हैं। इसलिए उनसे वे स्वयं को बिलकुल दीन और हर प्रकार से असहाय कहकर अपनी शरण में लेने के लिए बार-बार विनती करते हैं। उनकी यह विनती बहुत ही मार्मिक, आकर्षक और प्रेरक रूप में है। अपने इष्ट देव श्री राम के प्रति उनकी भावना दास्य-भक्ति की है। इसमें ओज, प्रवाह और सरसता तो है ही, इसके साथ-ही-साथ इसमें अनूठापन और लचीलापन के साथ स्वाभाविकता और लोकप्रियता जैसी अद्भुत विशेषताएँ भी हैं।
कला-पक्ष-अवधी और ब्रजभाषा-दोनों भाषाओं पर तुलसीदास का समान अधिकार था। उन्होंने ‘रामचरितमानस’ अवधी भाषा में लिखा था। गीतावली, कवितावली और विनयपत्रिका, ब्रजभाषा में लिखी गई थीं। उनकी रचनाओं में दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया आदि छंदों का प्रयोग हुआ है। उनके काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
साहित्य में स्थान-तुलसीदास का रामभक्त कवियों में सर्वोच्च स्थान है। उनकी रचना ‘रामचरितमानस’ संसार का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। उसका अनुवाद संसार की लगभग सभी भाषाओं में हुआ है। इस प्रकार वे युगीन कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनकी प्रशंसा में किसी ने ठीक ही कहा है
‘सुर ससि, तुलसी रवि, उड्गन केसवदास।
अब के कवि खद्योत सम, जहँ-तहँ करत-प्रकास॥
विनय के पद कविता का सार
प्रस्तुत विनय के पद में कविवर तुलसीदास ने अपने इष्टदेव श्री राम और सीता के प्रति अनन्य भक्ति-भावना प्रस्तुत की है। उनका यह स्पष्ट रूप से कहना है कि जिन्हें राम और सीता प्रिय न हों, उन्हें छोड़ देना चाहिए। इसका प्रमाण देते हुए उनका कहना है कि प्रहलाद ने अपने पिता, विभीषण ने अपने भाई रावण, बलि ने अपने गुरु और ब्रज की गोपियों ने अपने-अपने पतियों का परित्याग किया था। इसलिए राम के चरणों के प्रति जिसके स्नेह भाव हैं, उसका हर प्रकार से कल्याण-ही-कल्याण है।
कविवर तुलसीदास ने ‘नब जागे, तभी सबेरा’ की भावना जगाते हुए दूसरे पद में यह कहना चाहा है कि अब उनके इष्टदेव राम की उन पर कृपा हुई है। फलस्वरूप संसार की माया-मोह रूपी रात समाप्त हो गयी है। अब उन्हें राम-नाम की सुन्दर चिंतामणि प्राप्त हुई। उसे कसौटी बनाकर अब अपने हृदय रूपी सोने को करूंगा। इस प्रकार अब मैं अपने मन रूपी भौरे को प्रण करके श्री राम के चरण कमलों में. ही लगा दूंगा।
विनय के पद संदर्भ और प्रसंग सहित व्याख्या
1. जाके प्रिय न राम बैदेहि।
सो छाँड़िए कोटि बैरी सम, जदपि परम सनेही॥
तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषण बंधु भरत महतारी।
बलि गुरु तज्यौ, कंत ब्रज-बनितन, भए मुद-मंगलकारी॥
नाते नेह राम के मनियत सुहृद सुसेव्य जहाँ लौं।
अंजन कहा आँखि जेहि फूटै बहुतक कहौं कहाँ लाँ।
तुलसी सो सब भाँति परमहित पूज्य प्रान ते प्यारो।
जासो होय सनेह राम पद, ऐतो मतो हमारे ॥1॥
शब्दार्थ-कोटि-करोड़। कंत-पति। मनिपत-माने जाते हैं।
संदर्भ-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी सामान्य’ में संकलित कविवर तुलसीदास विरचित ‘विनय के पद’ से है।
प्रसंग-इसमें तुलसीदास ने अपने इष्टदेव श्रीराम के प्रति अपार भक्ति-भावना को प्रस्तुत करते हुए कहा है कि
व्याख्या-जिसे श्रीराम सीता प्रिय नहीं हैं, वह कोटिक शत्रुओं के समान त्याज्य हैं, भले ही वह अपना परम स्नेही-संबंधी ही क्यों न हो। समझने के लिए ढेरों दृष्टांत हैं-प्रहलाद ने अपने पिता को त्याग दिया, विभीषण ने भाई को, भरत ने माँ को, राजा बलि ने गुरु शुक्राचार्य को और ब्रजांगनाओं ने अपने पतियों को। (भगवत्प्राप्ति में जो भी बाधक बने, त्याज्य है। परंतु ये सब-के-सब लोग आनंद और मंगल के विधायक बने। जितने सुदृढ़ और सेवायोग्य जन हैं, वे सब राम जी के ही नेह-नाते से मान्य हैं। अब और अधिक कहाँ तक कहें? वह अंजन किस काम का कि जिसके लगाने से आँखें ही फूट जाएँ? गोस्वामी जी कहते हैं कि जिसके कारण से श्रीराम के चरणों में स्नेह प्रीति हो, वही सब प्रकार से अपना परम हितैषी, पूजनीय और प्राणों से भी अधिक प्रिय है। हमारा यही सुनिश्चित मत है।
विशेष-
(1) कहते हैं कि मीराबाई ने पत्र लिखकर गोस्वामी जी से परामर्श माँगा था कि प्रभु-प्रेम के सम्मुख क्या परिवारीजन की उपेक्षा कर दें? उसी पत्र का उत्तर उपर्युक्त पंक्तियों में है।
(2) अलंकार-उपमा-बैरी सम। व्यतिरेक-प्रान तै प्यारी।
विनय के पद सौंदर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर
(क) शिल्प-सौंदर्य
प्रश्न 1.
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि-तुलसीदास
(ख) कविता-विनय के पद
प्रश्न 2.
उपर्युक्त पद के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
उपर्युक्त पद में कविवर तुलसीदास ने शिल्प-सौंदर्य के अलग-अलग विधानों को लिया है। पूरा पद गीतात्मक शैली में है। ब्रजभाषा की शब्दावली है। उपमालंकार. से पूरा पद चमत्कृत और अलंकृत है। भक्ति रस में पगा हुआ यह सरस भावों से पुष्ट है। बिंब और प्रतीक लाक्षणिक रूप में है। योजना-विधान देखते ही बनता है।
(ख) भाव-सौंदर्य
प्रश्न 1.
‘जाके प्रिय न राम वैदेही।
सो छाँडिए कोटि बैरी सम, जदपि परम सनेही।
उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर बताइए कि कोटि वैरी सम क्यों और कौन हो जाता है?
उत्तर-
‘जाके प्रिय न राम बैदेही।
सो छाँड़िए कोटि बैरी सम, जदपि परम सनेही ॥
उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर सनेही लोग करोड़ों बैरी के समान हो जाते हैं, क्योंकि उन्हें राम-बैदेही प्रिय नहीं हैं।
प्रश्न 2.
भगवत्प्राप्ति में कौन-कौन वाधक बने?
उत्तर-
भगवत्प्राप्ति में प्रहलाद के पिता हिरण्यकशियपु, विभीषण के भाई रावण, भरत की माँ कैकेयी, राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य और ब्रज की गोपियों के पति बाधक बने।
विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘जाके प्रिय न राम-बैदेही’ पद का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘जाके प्रिय न राम-बैदेही’ पद में कविवर तुलसीदास ने अपने इष्टदेव श्रीराम के प्रति अपनी सच्ची भक्ति भावना प्रकट की है। इसे उन्होंने डंके की चोट पर व्यक्त किया है। इसके लिए उन्होंने अपने परम स्नेही जनों का भी परित्याग करने में कोई झिझक नहीं दिखाई है। इसकी पुष्टि में वे कई प्रकार के प्रमाण और विचार प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार वे राम के प्रति स्नेह रखने वालों को अपने प्राणों से भी प्रिय मानते हैं। यह उनका निश्चय और अटल मत है।
2. अबलौं नसानी, अब ने नसैहौं।
राम-कृपा भव-निसा सिरानी, जागे फिरि न डसैहौं।
पायेउँ नाम चारु चिंतामनि, उर कर तें न खसैहौं।
स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी, चित कंचनहिं कसैहौं।
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन, निज बस है न हँसैहौं।
मन मधुकर पनकै तुलसी रघुपति-पद-कमल बसैहौं।
शब्दार्थ-अबलौ-अब तक। भव-निसा-संसार रूपी रात्रि। सिरानी-बीत चुकी है। नसानी करनी बिगड़ गई है। भव-संसार। डसैहौं बिछौना बिछाऊँगा। चारु=सुंदर। उर कर हृदय और हाथ से। बसैहौं गिराऊँगा। सुचि-पवित्र। रुचिर=सुंदर। मधुकर भौंरा। बसैहौं बसाऊँगा।
संदर्भ-पूर्ववत्।
प्रसंग-इसमें कविवर तुलसीदास ने अपने इष्टदेव श्रीराम की कृपा और उनके प्रति अपनी अनन्य भक्ति-भावना को समर्पित करते हुए कहा है कि
व्याख्या-अब तक (की आयु तो व्यर्थ ही) नष्ट हो गयी, परंतु अब (अर्थ) नष्ट नहीं होने दूंगा। श्रीराम की कृपा से संसार रूपी रात्रि बीत गयी हैं, (मैं संसार की माया-रात्रि से जग गया हूँ) अब जागने पर फिर (माया-का) बिछौना नहीं बिछाऊँगा (अब फिर माया के फंदे में नहीं फराँगा) मुझे रामनाम रूपी सुंदर चिंतामणि मिल गयी है। उसे हृदयरूपी हाथ-से कभी नहीं गिरने दूंगा। अथवा हृदय से रामनाम का स्मरण करता रहूँगा और हाथ से रामनाम की माला जपा करूँगा। श्रीरघुनाथ जी का जो पवित्र श्यामसुंदर रूप है उसकी कसौटी बनाकर अपने चित्त रूपी सोने को कलूंगा। अर्थात् यह देलूँगा कि श्रीराम के ध्यान में मेरा मन सदा-सर्वदा लगता है कि नहीं। जब तक मैं इंद्रियों के वश में था, तब तक उन्होंने (मुझे मनमाना नाच नचाकर) मेरी बड़ी हँसी उड़ाई, परंतु अब स्वतंत्र होने पर यानी मन-इंद्रियों को जीत लेने पर उनसे अपनी हँसी नहीं कराऊँगा। अब तो अपने मन रूपी भ्रमर को प्रण करके श्रीराम जी के चरण कमलों में लगा दूँगा। अर्थात् श्रीराम जी के चरणों को छोड़कर दूसरी जगह मन को जाने ही नहीं दूंगा।
विशेष-
रस-भक्ति रस, शांत रस। भाषा-अवधी भाषा। भाव-प्रस्तुत पद में कवि का आत्मनिवेदन वर्णित हुआ है। अलंकार-उपमा, रूपक, अनुप्रास।
टिप्पणी-(1) ‘अबलौ नसानी………नसैहौं।’-इसी भाव की व्यंजना एक अन्य स्थल पर इस प्रकार हुई है-
‘बीती ताहि बिसारि दै, आगे की सुधि लेइ।’
(2) ‘स्याम रूप………..कसौटी’-कसौटी एक पत्थर का नाम है। इसका रंग काला शालिग्राम शिला के समान होता है। इसी पर सोना कसा जाता है। श्रीरामचंद्र जी का भी शरीर श्याम वर्ण का है। इसीलिए यह उपाय सब प्रकार के सुंदर और श्रेष्ठ है।
सौंदर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर
(क) शिल्प-सौंदर्य
प्रश्न 1.
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर-
(क) कवि-तुलसीदास
(ख) कविता-विनय के पद।
प्रश्न 2.
उपर्युक्त पद के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
उपर्युक्त पद में कविवर तुलसीदास ने शिल्प-सौंदर्य को आकर्षक बनाने का प्रयास किया है। इसके लिए उन्होंने दास्य-भक्ति की भावना पर बल दिया है। इस पद का शिल्प-विधान ब्रजभाषा की शब्दावली से परिपुष्ट है। इसे कवि ने राम की कृपा के विविध-स्वरूपों को अनुप्रास और रूपक अलंकारों से मंडित-सज्जित करने का प्रयास किया है। पूरा पद शांत रस से ओत-प्रोत है। भावों की आकर्षक व्यंजना अधिक प्रभावित करने में समर्थ है। गीताशैली के कारण यह पद सचमुच बहुत अनूठा और रोचक है।
(ख) भाव-सौदर्य
प्रश्न 1.
‘अबलौ नसानी, अबलौ न नसैहौं’ से कवि का कौन-सा भाव स्पष्ट हो रहा है?
उत्तर-
‘अबलौ नसानी’, अबलौ न नसैहों’ से कवि का अपने इष्टदेव श्रीराम के . प्रति अपने भवभाव को भूल-भुलाकर दृढ़तापूर्वक अनन्य भक्ति भाव स्पष्ट हो रहा है।
प्रश्न 2.
‘स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी’ का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी’ का भाव-सौंदर्य सरस और हृदयस्पर्शी है। श्रीराम का रूप-सौंदर्य श्यामवर्ण का है। वह अत्यंत पवित्र और दोषरहित है। उसमें आकर्षण और प्रभाव भरा हुआ है। अतएव वह अत्यंत रोचक और हृदयस्पर्शी है। ठीक इसी प्रकार के समान चिंतामणि कसौटी है, जो अत्यंत दुर्लभ और दुःसाध्य है। इस प्रकार ‘स्यामरूप सुचि रुचिर कसौटी’ का भाव-सौंदर्य सराहनीय है।
विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त पद के माध्यम से कविवर तुलसीदास ने यह भाव स्पष्ट करना चाहा है कि उनके अनन्य इष्टदेव श्रीराम की कृपा से माया-मोह रूपी रात बीत गयी है। फलस्वरूप अब वे अपने इष्टदेव श्रीराम की शरण को कभी नहीं छोड़ेंगे। उन्हें जो अपने इष्टदेव श्रीराम की कृपा से उनके नामरूपी चिंतामणि नामक कसौटी प्राप्त हुई है, उस पर वे अपने चित्तरूपी सोने को कसेंगी। इस प्रकार कवि ने अपने जीवन की सार्थकता का प्रतिपादन अपने इष्टदेव श्रीराम के प्रति किए गए समर्पण भाव को ही माना है।