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MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Durva Chapter 3 महर्षिः दयानन्दः (गद्यम्) (सङ्कलितम्)
MP Board Class 10th Sanskrit Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए-)।
(क) दयानन्दस्य जन्म कस्मिन् प्रदेशे अभवत्? (दयानन्द का जन्म किस प्रदेश में हुआ?)
उत्तर:
गुर्जरप्रदेशे (गुर्जर प्रदेश में)
(ख) दयानन्दः कस्मात् बहुविधानि शास्त्राणि अशिक्षत? (दयानन्द ने किससे अनेक शास्त्र सीखे?)
उत्तर:
स्वामिविरजानन्दात् (स्वामी विरजानन्द से)
(ग) महर्षिः कस्य स्थापनां कृतवान्? (महर्षि ने किसकी स्थापना की?)
उत्तर:
आर्यसमाजस्य (आर्य समाज की)
(घ) दयानन्दः कयोः उन्नत्यै भारतीयसंस्कृतेः प्रचारमकरोत? (दयानन्द ने किनकी उन्नति के लिए भारतीय संस्कृति का प्रचार किया?)
उत्तर:
देशसमाजयोः (देश और समाज की)
(ङ) दयानन्दस्य चरितं केषां कृते अनुकरणीयमस्ति? (दयानन्द का चरित्र किनके लिए अनुकरणीय है?)
उत्तर:
भारतीयानाम् (भारतीयों के)
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत- (एक वाक्य में उत्तर लिखिए-)
(क) दयानन्दस्य जन्मनाम किम् आसीत्? (दयानन्द का असली (जन्म का) नाम क्या था?
उत्तर:
दयानन्दस्य जन्मनाम मूलशङ्करः आसीत्। (दयानन्द का असली (जन्म का) नाम मूलशङ्कर था।)
(ख) संन्यासग्रहणानन्तरं महर्षिः केन नाम्ना प्रसिद्ध? (संन्यास लेने के बाद महर्षि किस नाम से प्रसिद्ध हुए?)
उत्तर:
संन्यासग्रहणानन्तरं महर्षिः ‘दयानन्दसरस्वती’ इति नाम्ना प्रसिद्धः। (संन्यास लेने के बाद महर्षि दयानन्द सरस्वती’ नाम से प्रसिद्ध हुए।)
(ग) महर्षिः केषाम् उद्धाराय सदैव प्रायतत्? (महर्षि किनके उद्धार के लिए सदैव प्रयास करते रहे?)
उत्तर:
महर्षिः विधवाडऽबलानां दलितवर्गानां गवां च उद्धाराय सदैव प्रायतत्। (महर्षि विधवाओं, अबलाओं, दलितवर्गों और गायों के उद्धार के लिए सदा प्रयास करते रहे।)
(घ) दयानन्दः केषां प्रचारमकरोत्? (दयानन्द ने किनका प्रचार किया?)
उत्तर:
दयानन्दः चिरोपेक्षितवेदानां प्रचारमकरोत्। (दयानन्द ने बहुत समय से उपेक्षित वेदों का प्रचार किया।)
(ङ) दयानन्दः कस्य मूर्तिरासीत्? (दयानन्द किसके प्रतीक थे?)
उत्तर:
दयानन्दः सत्यस्य धैर्यस्य ब्रह्मचर्यस्य च मूर्तिरासीत्। (दयानन्द सत्य, धैर्य और ब्राह्मचर्य के प्रतीक थे।)
प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
(क) दयानन्दः किमर्थं स्वगृहमत्यजत्? (दयानन्द ने अपना घर क्यों छोड़ा?)
उत्तर:
दयानन्दः अमरः भवितुम् स्वगृहमत्यजत्।। (दयानन्द ने अमर बनने के लिए अपना घर छोड़ दिया था।)
(ख) विद्यासमाप्तौ गुरुः दयानन्दं किम् आदिष्टवान्? (विद्या समाप्ति पर गुरु ने दयानन्द को क्या आदेश दिया?)
उत्तर:
विद्यासमाप्तौ गुरुः दयानन्दम् अदिष्टवान्-“वत्स! अस्माकम् अयम् देशः अविद्यान्धकारे पतितः वर्तते तद् गच्छ अविद्यान्धकारम् अपनय। आर्षशास्त्राणि उद्धर वैदिकज्योति च पुनः प्रकाशय।
(विद्यासमाप्ति पर गुरु ने दयानन्द को आदेश दिया-पुत्र! हमारा यह देश अज्ञानता रूपी अंधकार में डूबा हुआ है, जाओ और उस अज्ञानता रूपी अंधकार को दूर करो। ऋषियों द्वारा रचित शास्त्रों से उद्धृत वैदिक ज्योति को फिर प्रकाशित करो।)
(ग) दयानन्देन के ग्रन्थाः विरचिताः?
(दयानन्द के द्वारा कौन से ग्रन्थ रचे गए?)
उत्तर:
दयानन्देन ऋग्वेदादिभाष्य भूमिका-सत्यार्थप्रकाश-संस्कारविधि प्रभृतिग्रन्थाः विरचिताः।
(दयानन्द ने ऋग्वेद आदि की भाष्य भूमिका-सत्यार्थ प्रकाश-संस्कारविधि आदि अनेक ग्रन्थों को रचा।)
प्रश्न 4.
प्रदत्तशब्दैः रिक्तस्थानानि पूयरत- (दिए गए शब्दों से रिक्त स्थान भरिए-)
(अविद्यान्धकारात्, संन्यासमगृणात्, यशः, दुःखानि, वेदान्)
(क) महर्षिः पूर्णानन्दसरस्वतीसकाशात् ……………….।
(ख) दयानन्दः मानवान् ………………. उद्धर्तुं कार्यक्षेत्रे समागतः।
(ग) जनाः ………………. प्रत्यागच्छेयुः इति महर्षेः सन्देशः।
(घ) दयानन्दः ………………. सोढ्वापि कर्त्तव्यविमुखः न जातः।
(ङ) महर्षिः ………………. शरीरेण अमरः अस्ति।
उत्तर:
(क) संन्यासमगृह्णात्
(ख) अविद्यान्धकारात्
(ग) वेदान
(घ) दुःखानि
(ङ) यशः।
प्रश्न 5.
यथायोग्यं योजयत-(उचित क्रम से जोड़िए-)
उत्तर:
(क) 3
(ख) 4
(ग) 5
(घ) 1
(ङ) 2
प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ और अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ लिखिए-)
(क) कथमहम् अमरो भवेयम् इति महर्षिः चिन्तयामास।
(ख) त्र्यशीत्युत्तराऽष्टादशशततमे ईशवीये वर्षे महर्षिः न दिवंगतः।
(ग) महर्षेः ख्यातिः सर्वत्र व्याप्ता अस्ति।
(घ) दयानन्दः सामाजिककुप्रथानां निवारणं कृतवान्।
(ङ) महर्षिसदृशाः महात्मानः वन्द्याः न भवन्ति।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) आम्
(घ) आम्
(ङ) न।
प्रश्न 7.
उदाहरणानुसारं शब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत (उदाहरण के अनुसार शब्दों के मूलशब्द, विभक्ति व वचन लिखिए-)
(क) महर्षेः
(ख) नर्मदातीरे
(ग) गवाम्
(घ) सर्वेषाम्
(ङ) सत्यस्य
(च) महात्मानः
(छ) जनेषु
उत्तर:
प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं क्रियापदानां धातुं लकारं वचनं च लिखत
(उदाहरण के अनुसार क्रियापदों के धातु, लकार और वचन लिखिए-)
उत्तर:
प्रश्न 9.
उदाहरणानुसारं धातुं प्रत्ययं च पृथक् कुरुत-
(उदाहरण के अनुसार धातु और प्रत्यय अलग कीजिए-)
उत्तर:
प्रश्न 10.
उदाहरणानुसारं सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धिनाम लिखत
(उदाहरण के अनुसार सन्धिविच्छेद करके सन्धि का नाम लिखिए।)
उत्तर:
योग्यताविस्तार –
स्वामिदयानन्दसदृशानां महापुरुषाणां नामानि अन्विष्य लिखत।
(स्वामी दयानन्द जैसे महापुरुषों के नाम ढूँढकर लिखिए।)
महर्षेः दयानन्दस्य आदर्शविषये पञ्चवाक्यानि लिखत।।
(महर्षि दयानन्द के आदर्श विषय पर पाँच वाक्य लिखिए।)
महर्षिः दयानन्दः पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ में भारत के महापुरुष ‘महर्षि दयानन्द’ के जीवन का वर्णन किया गया है। वे संसार में ‘दयानन्द सरस्वती के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्होंने व्याकरण, वेदान्त आदि अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया था। इन्होंने योग की शिक्षा भी ली। इन्होंने आर्य समाज की स्थापना की तथा समाज में फैली कुप्रथाओं को दूर करने के भरसक प्रयत्न किए। इन्होंने ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ की रचना की।
महर्षिः दयानन्दः पाठ का अनुवाद
1. महर्षेः दयानन्दस्य जन्म गुर्जरप्रदेशे ब्राह्मणपरिवारे फरवरीमासे द्वादशे दिनाङ्के चतुर्विशत्युत्तराऽष्टादशशततमे 12/02/1824 ईशवीये वर्षे अभवत्। अस्य जन्मनाम मूलशङ्करः आसीत्। यदा एषः षोडशवर्षीयः जातः तदा अस्य भगिनी स्वर्गं गता। वर्षत्रयानन्तरं चास्य पितृव्योऽपि दिवं गतः। गृहे अन्येषु जनेषु विलपत्सु अयं संसारस्य अनित्यतां विचारयन् “कथमहम् अमरो भवेयम्” इति चिन्तयामास। एकस्मिन्दिने मूलशङ्करः सहसैव स्वगृहमत्यजत्।
शब्दार्था :
षोडश-सोलह-Sixteen; भगिनी-बहन-Sister; पितृव्यः-चाचा-Uncle, विलपत्सु-विलाप -Wailing, bewailing, mourning.
अनुवाद ;
महर्षि दयानन्द का जन्म गुर्जर प्रदेश में ब्राह्मण परिवार में फरवरी मास में 12 तारीख को सन् 1824 ई. में हुआ था। उसका जन्म का नाम मूलशङ्कर था। जब यह सोलह वर्ष के हुए तब इनकी बहन का स्वर्गवास हो गया। तीन वर्ष के अन्दर इनके चाचा की भी मृत्यु हो गई। घर में अन्य लोगों के विलाप से इन्होंने संसार की अनित्यता के विषय में विचार करते हुए सोचा- “मैं किस प्रकार अमर बनूँ”। एक दिन मूलशङ्कर अचानक ही अपना घर छोड़कर चले गए।
English :
Maharishi Dayanand-born in Brahmin family on 12th February, 1824-birth name Mool Shankar-Lost sister and uncle at the age of 16 and 19-Awakened to world’s transitory nature-left home in quest of immortality.
2. ततोऽसौ देशाद्देशान्तरं विचरन व्याकरणवेदान्तादीन्यनेकशास्त्राणि विशेषतः योगपद्धतिं च अशिक्षत। विचरणकालेऽयं नर्मदातीरे स्वामिपूर्णानन्दसरस्वतीसकाशात् संन्यासमगृह्णात्। तदा एषः ‘दयानन्दसरस्वतीति’ नाम्ना प्रसिद्धः जातः। अनन्तरं मथुरां गत्वा प्रज्ञाचक्षुषः स्वामिनः विरजानन्दात् बहुविधानि शास्त्राणि अशिक्षत। विद्यासमाप्तौ गुरुस्तमादिशत्-वत्स! देशोऽयमस्माकमविद्यान्धकारे पतितो वर्तते तद गच्छ अविद्यान्धकारम् अपनय। आर्षशास्त्राणि उदर वैदिकज्योतिः च पुनः प्रकाशय।
शब्दार्था :
प्रज्ञाचक्षुष-ज्ञान नेत्र वाले-knowledge vision; अपनय-दूर करो–remove.
अनुवाद :
तब उन्होंने एक देश से दूसरे देश में घूमते हुए व्याकरण, वेदान्त आदि अनेक शास्त्रों विशेषकर योग-प्रक्रिया को सीखा। घूमते समय इन्होंने नर्मदा के किनारे स्वामी पूर्णानन्द सरस्वती के पास संन्यास लिया। तब से यह ‘दयानन्द सरस्वती’ नाम से प्रसिद्ध हुए। बाद में मथुरा जाकर ज्ञाननेत्र वाले स्वामी विरजानन्द से बहुत से शास्त्र सीखे। विद्या की समाप्ति पर गुरु ने उसे आदेश दिया-हे वत्स! हमारा यह देश अज्ञानता रूप अन्धकार में गिरा हुआ है, तो जाओ, अज्ञानता रूपी अन्धकार को दूर करो। ऋषियों द्वारा रचित शास्त्रों से निकली वैदिक ज्योति को फिर से प्रकाशित करो।
English :
Learnt various scriptures and yogic practices during wanderings-Got sanyasa from Swami Poornananda Saraswati–came to be known as Dyanand Saraswati–Learnt various scriptures at Mathura from Swami Virajanand-directed to remove darkness of illiteracy and enlighten the vedic light.
3. दयानन्दोऽपि गुरोराज्ञां शिरसि कृत्वा पादौ प्रणम्य आशिषं च गृहीत्वा एतद्देशवासिनः मानवान् अविद्यान्धकाराद् उद्धर्तु कार्यक्षेत्रे समागतः। गुरोराज्ञां पालयन् देशसमाजयोः उन्नत्यै निरन्तर भारतीयसंस्कृतेः प्रचारमकरोत्। पाखण्डोन्मूलनाय वैदिकधर्मस्य च पुनःसंस्थापनाय अयं सम्पूर्णदेशे बभ्राम। सामाजिककुप्रथानां निवारणाय एषः आर्यसमाजस्य स्थापनां कृतवान्। महर्षिः विधवाऽबलानां दलितवर्गाणां गवां च उद्धाराय सदैव प्रायतत। स्वातन्त्र्यभावनाऽपि प्रथममनेनैव महर्षिणास्माकं हृदयेषु जागरिता । नानाविधानि दुःखानि सोढ्वापि नायं कर्त्तव्यविमुखो जातः। येनास्य महापुरुषस्य ख्यातिः सर्वत्र व्याप्ता।
शब्दार्था :
पाखण्डः-दिखावा-hypocrisy; उन्मूलनाय-दूर करने के लिए-to eradicate; प्रायतत-प्रयत्नशील रहे-Made efforts; सोढ्वापि-सहकर भी-Even after bearing; बभ्राम-घूमे-Wandered; व्याप्ता-फैल गई-Spread.
अनुवाद :
दयानन्द भी गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य कर पाँव छूकर और आशीर्वाद लेकर इस देश के निवासी लोगों को अज्ञानता रूपी अन्धकार से उबारने के कार्य क्षेत्र में आ गए। गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए देश व समाज की उन्नति के लिए लगातार भारतीय संस्कृति का प्रचार किया। दिखातों को दूर करने और वैदिक धर्म की फिर से स्थापना के लिए यह पूरे देश में घूमे। सामाजिक कुप्रथाओं को हटाने के लिए इन्होंने आर्यसमाज की स्थापना की। महर्षि ने विधवाओं, अबलाओं, दलित वर्गों और गायों के उद्धार के लिए सदैव प्रयास किए। स्वतंत्रता की भावना भी सबसे पहले इन महर्षि ने ही हमारे मन में जगाई। अनेक प्रकार के दुख सहकर भी यह कर्तव्य विमुख नहीं हुए। जिससे इन महापुरुष की ख्याति सब जगह फैल गई।
English :
Entered the field of removing the darkness of ignorance-preached Indian culture for the upliftment of the nation and the society-deadset on removing hypocrisy and re-establishing vedic religion-Founded ‘Arya Samai’ to remove evil social practicesawakened the sense of freedom in human hearts-Afflictions failed to disincline him towards duty.
5. अयं महापुरुषः चिरोपेक्षितवेदानां प्रचारमकरोत्। एतस्य विशिष्टः सन्देशः आसीत् यत्-जनाः वेदान् प्रत्यागच्छेयुः। ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका- सत्यार्थप्रकाशसंस्कारविधिप्रभृतिग्रन्थाः एतेन विरचिताः। अक्टूबरमासे त्रिंशत् दिनाङ्के त्र्यशीत्युत्तराऽष्टादशशततमे (30/10/1883) ईशवीये वर्षे एषः भौतिकं शरीरं विहाय यशःशरीरेणामरोऽभवत्।।
महर्षि: दयानन्दः सत्यस्य धैर्यस्य ब्रह्मचर्यस्य च मूर्तिरासीत्। एतस्य चरितं सदैव भारतीयानां कृते अनुकरणीयमस्ति। एतादृशाः महात्मानः सर्वदा वन्द्या अविस्मरणीयाश्च भवन्ति।
शब्दार्था :
चिरोपेक्षितवेदानाम्-बहुत समय से उपेक्षित वेदों का-of long neglected vedas; विहाय-छोड़कर-leaving aside; वन्धा-वन्दनीय-adorable, venerable.
अनुवाद :
यह महापुरुष बहुत समय से उपेक्षित वेदों का प्रचार करते रहे। इनका प्रमुख सन्देश था-“लोग वेदों की ओर वापस आएँ (जावे)। ऋग्वेद आदि भाष्यभूमिका-सत्यार्थ प्रकाश-संस्कारविधि आदि अनेक ग्रन्थ इनके द्वारा रचे गए। अक्टूबर मास में 30 तारीख को सन् 1883 ई. में इस भौतिक शरीर को छोड़कर यश रूपी शरीर के द्वारा वे अमर हो गए।
महर्षि दयानन्द सत्य, धैर्य, व ब्रह्मचर्य के प्रतीक थे। इनका चरित्र सदैव भारतीयों के लिए अनुकरण करने योग्य है। ऐसे महात्मा हमेशा वन्दनीय और अविस्मरणीय होते हैं।
English :
Preached long neglected vedas-‘Back to Vedas’ was his sermon. Composed texts like commentary on Rigveda, Satyartha Prakash and Sanskar Vidhi-Died on 30th October 1883-Personification of truth, forbearance and celibacy.