MP Board Class 10th Sanskrit व्याकरण सन्धि-प्रकरण
दो या दो से अधिक वर्गों का मेल सन्धि है। दो या बहुत-से वर्णों को मिलाने से जो परिवर्तन होता है उसे सन्धि कहते हैं,
जैसे-
विद्या + अलायः = विद्यालयः। सन्धि के भेद-सन्धि के तीन भेद होते हैं
(I) स्वरः (अच्) सन्धि
(II) व्यञ्जन (हल्) सन्धि,
(III) विसर्ग सन्धि।
(I) स्वर (अच्) सन्धि
स्वर का स्वर से मेल होने पर जब स्वर में परिवर्तन होता है, उसे स्वर सन्धि कहते हैं।
स्वर सन्धि के भेद-
१. दीर्घ सन्धि (सूत्र-अकः सवर्णे दीर्घः)
जब हृस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ स्वरों का मेल सवर्णों से अर्थात् क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ के साथ होता है तो दोनों वर्गों के स्थान पर दीर्घ (आ, ई, ऊ, ऋ) स्वर हो जाता है।
२. गुण सन्धि (सूत्र-आद्गुणः)
जब अ/आ आगे इ/ई आये तो दोनों मिलकर ए, उ/ऊ आये तो दोनों मिलकर ओ, ऋ/ऋ आये तो दोनों मिलकर अर् तथा लु आये तो अल् हो जाता है।
३. वृद्धि-सन्धि (सूत्र-वृद्धिरेचि)
जब अ या आ के आगे ए या ऐ आये तो दोनों मिलकर ‘ऐ’ हो जाता है और ओ या औ आये तो दोनों मिलकर ‘औ’ हो जाता है।
४. यण् सन्धि (सूत्र-इकोयणचि)
जब ह्रस्व या दीर्घ इ, उ, ऋ,ल के आगे कोई असमान स्वर आ जाता है तो इ-ई को य्, उ-ऊ को व्, ऋ-ऋ को र् और लु को ल हो जाता है।
५. अयादि सन्धि (सूत्र-एचोऽयवायाव:) 1 जब ए, ऐ, ओ, औ के आगे कोई भी स्वर आता है, तो ‘ए’ को ‘अय्’, ‘ऐ’ को ‘आय’, ‘ओ’ को ‘अव्’ और ‘औ’ को ‘आव्’ हो जाता है।
६. पूर्वरूप सन्धि (सूत्र-एङः पदान्तादति)
जब पद के अन्त में ‘ए’ अथवा ‘ओ’ आये और उसके आगे ह्रस्व ‘अ’ आये तो वह ‘अ’ अपने पूर्व आये स्वर (ए या ओ) का ही रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार ‘अ’ का लोप हो जाता है और उसके स्थान पर अवग्रह (ऽ) हो जाता है।
- वने + अस्मिन् = वनेऽस्मिन्
- रामो + अपि रामोऽपि
- हरे + अव = हरेऽव
- विष्णो + अव = विष्णोऽव
(II) व्यञ्जन (हल) सन्धिः
जो वर्ण स्वर की सहायता से उच्चारित किया जाता है वह व्यञ्जन वर्ण होता है। स्वर के बिना व्यञ्जन वर्ण का उच्चारण कठिन होता है। दो व्यञ्जन वर्ण या व्यञ्जन और स्वर के बीच में जो सन्धि होती है वह व्यञ्जन सन्धि होती है। व्यञ्जन सन्धि के अनेक भेद होते हैं, उनमें से प्रमुख निम्न हैं-
१. श्चुत्व सन्धि (सूत्र-स्तोः श्चुनाश्चुः)
‘स्’ अथवा ‘त’ वर्ग ( त् थ् द् ध् न्) के पहले या बाद में ‘श’ अथवा ‘च’ वर्ग (च् छ् ज् झ् ञ्) के वर्ण आते हैं तो ‘स्’ को ‘श्’ तथा ‘त’ वर्ग (त् थ् द् ध् न्) को क्रमशः ‘च’ वर्ग (च छ् ज् झ् ञ्) हो जाता है।
- (स् को श्) → हरिस् + शेते = हरिश्शेते
- (त् को च्) → सत् + चरित्रम् = सच्चरित्रम्
- (स् को श्) → दुस् + चरित्रः = दुश्चरित्रः
- (त् को च्) → उत् + चारणम् = उच्चारणम्
२. ष्टुत्व सन्धि (सूत्र-ष्टुना ष्टुः)
‘स्’ अथवा ‘त’ वर्ग (त् थ् द् ध् न्) के पहले या बाद में ‘ष्’ अथवा ‘ट’ वर्ग (ट् ठ् ड् ढ् ण) के वर्ण आते हैं तो ‘स्’ को ‘ष्’ तथा ‘त’ वर्ग (त् थ् द् ध् न्) को क्रमशः ‘ट’ वर्ग (ट् ठ्। ड् ढ् ण्) हो जाता है।
- (स् को ष्) → रामस् + षष्ठः = रामष्षष्ठः
- (स् को ) → रामस् + टीकते = रामष्टीकते
- (द् को ड्) → उद् + डयनम् = उड्डयनम्
- (त् को ट्) → नष् + तः = नष्टः
- (न् को ण्) → चक्रिन् + ढौकसे = चक्रिण्ढौकसे
३. जश्त्व सन्धि
(अ) पदान्त (सूत्र-झलां जशोऽन्ते)- पद (शब्द) के अन्त में झल् वर्णों (वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ वर्णों) के स्थान पर अपने वर्ग का तृतीय वर्ण (जश्-ज, ब्, ग्, ड्, द्) हो जाता है।
- [ प्रथम वर्ण (त्) को तृतीय (द्) वर्ण ] वाक् + ईशः = वागीशः
- [ प्रथम वर्ण (च्) को तृतीय (ज्) वर्ण ] अच् + अन्तः = अजन्तः
- [ प्रथम वर्ण (त्) को तृतीय (द्) वर्ण] चित् + आनन्द = चिदानन्दः
- [ प्रथम वर्ण (ट्) को तृतीय (ड्) वर्ण ] षट् + एव = षडेव
(ब) अपदान्त (सूत्र-झलां जश् झशि)- अपदान्त वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ वर्णों के आगे यदि कोई तृतीय
या चतुर्थ वर्ण आये तो पूर्व आये वर्ण के स्थान पर अपने वर्ग का। तृतीय वर्ण हो जाता है।
- [चतुर्थ वर्ण (ध्) को तृतीय वर्ण (द्)] वृध् + धः = वृद्धः।
- [चतुर्थ वर्ण (घ्) को तृतीय वर्ण (ग्) ] दुध् + धम् = दुग्धम्
- [चतुर्थ वर्ण (भ्) को तृतीय वर्ण (ब्) ] आरभ् + धम् = आरब्धम्।
- [चतुर्थ वर्ण (ध्) को तृतीय वर्ण (द्)] समृध् + धः = समृद्धः।
४. लत्व या परसवर्ण सन्धि (सूत्र-तोलि) ‘त’ वर्ग (त् थ् द् ध् न्) के बाद ‘ल’ आने पर ‘त’ वर्ग के स्थान पर (ल) हो जाता है।।
- (त् को ल्) तत् + लयः = तल्लयः।
- (त् को ल्) उत् + लासः = उल्लासः
- (त् को ल्) तत् + लीनः = तल्लीनः
- (न् को ल) विद्वान् + लिखति = विद्वाँल्लिखित
५. छत्व सन्धि (सूत्र-शश्छोऽटि)-
यदि शब्द के अन्त में ‘त’ वर्ग के बाद ‘श्’ हो और ‘श्’। के बाद कोई स्वर अथवा य, र व् ह हो तो ‘श्’ के स्थान पर। विकल्प से ‘छ्’ हो जाता है। ‘त’ वर्ग का ‘च’ वर्ग (श्चुत्व सन्धि के अनुसार हो जाता है।
- तत् + शिवः = तच्छिवः।
- सत् + शीलः = सच्छीलः
- तत् + शिला = तच्छिला
- श्रीमत् + शंकरः = श्रीमच्छंकरः
६. अनुस्वार सन्धि (सूत्र-मोऽनुस्वारः)
शब्द के अंत में स्थित ‘म्’ के बाद कोई व्यंजन आए, तो ‘म्’ के स्थान पर अनुस्वार् (-) हो जाता है किन्तु अन्त में स्वर होता है तब यह नियम नहीं लगता।
- (म् को अनुस्वार) धर्मम् + चर = धर्मं चर
- (म् को अनुस्वार) हरिम् + वन्दे = हरिं वन्दे
- (म् को अनुस्वार) कृष्णम् + वन्दे = कृष्णं वन्दे
- (म् को अनुस्वार) , सत्यम् + वद = सत्यं वद
७. अनुनासिक सन्धि
(सूत्र-यरोऽनुनासिकेऽनुनासिको वा)-पद के अन्त में स्पर्श व्यञ्जन (किसी वर्ग का कोई वर्ण) के बाद किसी वर्ग का पंचम वर्ग आने पर पहले वाले वर्ण के स्थान पर उसी वर्ग का पंचम वर्ण विकल्प से हो जाता है।
- (क् को ङ्) दिक् + नागः = दिङ्नागः
- (त् को न्) एतत् + मुरारिः = एतन्मुरारिः
- (ट् को ण्) षट् + मुखः = षण्मखः
(III) विसर्ग सन्धि विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन का मेल होने पर जो परिवर्तन होता है, उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं।
नियम १. यदि विसर्ग के पश्चात् ‘च’ अथवा ‘छ’ हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘श्’ हो जाता है।
जैसे-
- रामः + चलति = रामश्चलति (विसर्ग को श्)
- निः + छलः = निश्छलः (विसर्ग को श्)
नियम २. यदि विसर्ग के पश्चात् ‘न्’ अथवा ‘थ्’ हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ हो जाता है।
जैसे-
- नमः + ते = नमस्ते (विसर्ग को स्)
- निः + तारः = निस्तारः (विसर्ग को स्)
नियम ३. यदि विसर्ग के पहले तथा बाद में ‘अ’ हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है एवं जो ‘अ’ वर्ण होता है उसका पूर्वरूप ‘5’ हो जाता है।
जैसे-
- सः + अपि = सोऽपि (विसर्ग को ओ तथा अ को 5)
- सः + अस्ति = सोऽस्ति (विसर्ग को ओ तथा अ को 5)
४. नियम ४. यदि विसर्ग के पहले ‘अ’ हो तथा बाद में अ’ को छोड़कर कोई भी स्वर हो, तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
जैसे-
- रामः + आगतः = राम आगतः (विसर्ग का लोप)
- सूर्यः + उदेति = सूर्य उदेति (विसर्ग का लोप)
नियम ५. यदि विसर्ग से पहले ‘अ’ हो और बाद में किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ या पंचम वर्ण हो, तो ‘अ’ और विसर्ग के। स्थान पर ‘ओ’ हो जाता है।
जैसे-
- वयः + वृद्धः = वयोवृद्धः (अ और विसर्ग को ओ)
- पुरः + हितः = पुरोहितः (अ और विसर्ग को ओ)
नियम ६. यदि विसर्ग से पहले ‘आ’ हो और विसर्ग के आगे किसी वर्ग का तृतीय, चतुर्थ, पंचम वर्ण अथवा य् र् ल् व् ह हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है।
जैसे-
- देवाः + गच्छन्ति = देवा गच्छन्ति (विसर्ग का लोप)
- नराः + हसन्ति = नरा हसन्ति (विसर्ग का लोप)
नियम ७. यदि अ-आ को छोड़कर अन्य किसी स्वर के आगे विसर्ग हो और विसर्ग के आगे कोई भी स्वर या वर्ग का तृतीय,। चतुर्थ, पंचम वर्ण अथवा य व र ल ह में से कोई भी अक्षर हो तोविसर्ग के स्थान पर ‘र’ हो जाता है। यदि ‘र’ के पश्चात् कोई स्वर होता है तो ‘र’ स्वर में मिल जाता है एवं व्यंजन होता है तो। ‘र’ का ऊर्ध्वगमन (रेफ) हो जाता है।
जैसे-
- भानुः + उदेति = भानुरुदेति (विसर्ग को र)
- निः + जनः = निर्जनः (विसर्ग को र्)
- दुः + आत्मा = दुरात्मा (विसर्ग को र्)
- गुरोः + आदेशः = गुरोरादेशः. (विसर्ग को र)
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय
प्रश्न १.
‘दीर्घ’ सन्धि है-
(अ) गणेश,
(ब) एकैकः
(स) विद्यालय,
(द) नायकः
उत्तर-
(स) विद्यालय,
प्रश्न २.
‘रमा + ईशः’ = ………………………………. होगा।
(अ) राजेश,
(ब) रामेशः
(स) रोमेशः,
(द) रमेशः
उत्तर-
(द) रमेशः
प्रश्न ३.
‘यण’ सन्धि का सूत्र है
(अ) अकः सवर्णे दीर्घः
(ब) इकोयणचि,
(स) आद्गुणः
(द) वृद्धिरेचि
उत्तर-
(ब) इकोयणचि,
प्रश्न ४.
‘उल्लासः’ का सन्धि-विच्छेद होगा
(अ) उल् + लासः,
(ब) उत् + लासः,
(स) उल्ला + सः,
(द) उ+ ल्लासः।।
उत्तर-
(ब) उत् + लासः,
प्रश्न ५.
‘नमस्ते’ का सन्धि-विच्छेद है
(अ) नम + ते,
(ब) नमः + ते,
(स) नम + स्ते,
(द) न + मस्ते।
उत्तर-
(ब) नमः + ते,
रिक्त स्थान पूर्ति
१. पुस्तक + आलय : = ……………………………….
२. गण + ईश : = ……………………………….
३. सदा + एव : = ……………………………….
४. सु + अस्ति = ……………………………….।
५. पवनः = ……………………………….
उत्तर-
१. पुस्तकालयः,
२. गणेशः,
३. सदैव,
४, स्वस्ति,
५. पो + अनः।
सत्य/असत्य
१. नमः + ते = नमस्ते
२. कपि + ईशः = कवीशः
३. आद्गुणः = दीर्घ सन्धि
४. एचोऽयवायावः = पूर्वरूप सन्धि
५. गिरि + ईशः = गिरीशः
उत्तर-
१. सत्य,
२. असत्य,
३. असत्य,
४. असत्य,
५. सत्य।
♦ जोड़ी मिलाइए
उत्तर-
१. → (iii)
२. → (iv)
३. → (i)
४. → (ii)