MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 15 पादप वृद्धि एवं परिवर्धन
पादप वृद्धि एवं परिवर्धन NCERT प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
वृद्धि, विभेदन, परिवर्धन, निर्विभेदन, पुनर्विभेदन, सीमित वृद्धि, विभज्योतक तथा वृद्धि दर की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
(1) वृद्धि (Growth):
किसी कोशिका, अंग या सम्पूर्ण जीव के आकार या आयतन में होने वाला स्थायी तथा अनुत्क्रमणीय परिवर्तन जिसमें उसका शुष्क भार बढ़ जाता है, वृद्धि कहलाता है।
(2) विभेदन (Differentiation):
कोशिकाएँ कुछ विशिष्ट कार्यों को सम्पन्न करने हेतु अपनी संरचना में कई प्रकार के बदलाव कर दूसरी कोशिकाओं से अलग दिखाई देती है, इस घटना को विभेदन कहते हैं।
(3) परिवर्धन (Development):
पौधे के जीवन-चक्र में आने वाले सभी परिवर्तनों को सम्मिलित रूप से परिवर्धन कहा जाता है।
(4) निर्विभेदन (Dedifferentiation):
जीवित विभेदित कोशिकाएँ कुछ विशेष परिस्थितियों में विभाजन की क्षमता पुनः प्राप्त कर लेती हैं, इस घटना को निर्विभेदन कहते हैं।
(5) पुनर्विभेदन (Redifferentiation):
निर्विभेदित कोशिकाओं द्वारा बनी कोशिकाएँ पुनः विभाजन क्षमता खो देती हैं, जिससे ये विशिष्ट कार्यों को संपन्न कर सकें । इस घटना को पुनर्विभेदन कहते हैं।
(6) विभज्योतक (Meristem):
पादपों में वृद्धि कुछ निश्चित स्थानों से ही होती है जिसे विभज्योतक (Meristem) कहते हैं।
(7) वृद्धि दर (Growth rate):
एक निश्चित समय में किसी अंग या पादप विशेष के आकार (आयतन) या भार में होने वाली वृद्धि उसकी वृद्धि दर कहलाती है।
(8) सीमित वृद्धि:
पौधों की पत्तियाँ, फल एवं पुष्प एक निश्चित आकार ग्रहण करने के पश्चात् वृद्धि करना बंद कर देते हैं, इसे ही सीमित वृद्धि कहते हैं । इस अवस्था के आने पर इन अंगों में कोशिका विभाजन की प्रक्रिया बंद हो जाती है। अत: वृद्धि आगे नहीं होती।
प्रश्न 2.
पुष्यीय पौधों के जीवन में किसी एक प्राचलिक (Parameter) से वृद्धि को वर्णित नहीं किया जा सकता है, क्यों?
उत्तर:
कोशिकीय स्तर पर वृद्धि मुख्यत: जीवद्रव्य मात्रा में वृद्धि का परिणाम है। चूँकि जीवद्रव्य की वृद्धि को सीधे मापना कठिन है, अत: कुछ दूसरी मात्रकों को मापा जाता है, इसलिए वृद्धि को विभिन्न मापदंडों द्वारा मापा जाता है। कुछेक मापदंड हैं-ताजी भार वृद्धि, शुष्क भार, लंबाई क्षेत्रफल, आयतन तथा कोशिकाओं की संख्या आदि। मक्के की मूल शिखाग्र विभज्योतक (Root tip meristem) में प्रति घण्टे 17,500 या अधिक नई कोशिकाएँ पैदा होती हैं, जबकि एक तरबूज में कोशिकाओं की आकार में वृद्धि 3.50,000 गुना तक हो जाती है।
पहले वाले वृद्धि को कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि के रूप में व्यक्त किया जाता है जबकि बाद वाले वृद्धि को कोशिका के आकार में बढ़ोतरी के रूप में एक पराग नलिका की वृद्धि, लंबाई में बढ़त का एक अच्छा मापदंड है, जबकि पृष्ठाधार पत्ती की वृद्धि को उसके पृष्ठीय क्षेत्रफल की बढ़त के रूप में पाया जा सकता है। अतः स्पष्ट है पुष्पीय पौधों की वृद्धि को एक प्राचलिक (Parameter) से वर्णित नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
संक्षिप्त वर्णन कीजिए:
- अंकगणितीय वृद्धि
- ज्यामितीय वृद्धि
- सिग्मॉयड वृद्धि दर
- संपूर्ण एवं सापेक्ष वृद्धि दर।
उत्तर:
(1) अंकगणितीय वृद्धि:
समसूत्री कोशिका विभाजन के बाद के अंकगणितीय वृद्धि में केवल एक पुत्री कोशिका लगातार विभाजित होती रहती है जबकि दूसरी विभेदित एवं परिपक्व होती रहती है। अंकगणितीय वृद्धि एक सरलतम अभिव्यक्ति है जिसे हम निश्चित दर पर दीर्धीकृत होते मूल में देख सकते हैं।
(2) ज्यामितीय वृद्धि:
ज्यामितीय वृद्धि में समसूत्री कोशिका विभाजन से प्राप्त दोनों संतति कोशिकाएँ विभाजन करती हैं। सीमित पोषण आपूर्ति के कारण वृद्धि धीमी होकर एक स्थिर अवस्था प्राप्त कर लेती है।
(3) सिग्मॉयड वृद्धि दर:
अगर वृद्धि दर का समय के साथ ग्राफ खींचा जाये तो अंग्रेजी भाषा के ‘s’ आकार का वक्र (Curve) प्राप्त होता है जिसे ‘s’ नुमा वक्र या सिग्मॉयड वक्र अथवा समग्र काल वक्र कहते हैं।
(4) संपूर्ण एवं सापेक्ष वृद्धि दर:
इकाई समय में पूर्ण वृद्धि का मापन एवं तुलना करना संपूर्ण वृद्धि दर (Absolute growth rate) कहलाता है, जबकि किसी दिये गये तरीके से प्रति इकाई समय में वृद्धि दर को प्रदर्शित करने की विधि को सापेक्ष वृद्धि दर (Relative growth rate) कहा जाता है।
प्रश्न 4.
प्राकृतिक पादप वृद्धि नियामकों के पाँच मुख्य समूहों के बारे में लिखें। इनके आविष्कार, कार्यिकी प्रभाव तथा कृषि/बागवानी में इनका प्रयोग के बारे में लिखिए।
उत्तर:
प्राकृतिक पादप वृद्धि के पाँच मुख्य समूह निम्नलिखित है –
- ऑक्सिन,
- जिबरेलिन्स
- साइटोकाइनिन
- एथिलीन
- एब्सिसिक एसिड।
1. ऑक्सिन:
ऑक्सिन की खोज एफ. डब्ल्यू वेण्ट (1928) ने किया। कार्यिकी प्रभाव तथा कृषि/बागवानी:
- यह पौधे को लम्बाई में बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।
- यह जड़ों के विकास को प्रेरित करता है।
- यह बीजरहित फल निर्माण को प्रेरित करता है।
- यह फलों के गिरने तथा पतझड़ को रोकता है तथा पुष्पन को प्रेरित करता है। आजकल ऑक्जिन का उपयोग खरपतवारों को नष्ट करने के लिए किया जाता है।
2. जिबरेलिन्स:
जिबरेलिन्स की खोज इवीति कुरोसावा (1926) ने किया। कार्यिकी प्रभाव तथा कृषि/बागवानी –
- इसके द्वारा पौधे की लम्बाई में वृद्धि होती है। इससे आनुवंशिक रूप से छोटे पौधे भी थोड़े बढ़ जाते हैं।
- यह पुष्पन को जल्दी प्रेरित करता है।
- इसके द्वारा बिना निषेचन के फल प्राप्त किया जा सकता है।
- इसके प्रयोग से प्रसुप्ति काल को कम किया जा सकता है, जिससे जल्दी अंकुरण हो जाता है। इसके उपयोग से पत्तियाँ लम्बी व चौड़ी होती हैं।
3. साइटोकाइनिन:
साइटोकाइनिन की खोज जेब्रलोस्की एवं स्कूग (1954) ने किया। कार्यिकी प्रभाव तथा कृषि / बागवानी –
(1) कोशिका विभाजन (Cell division):
अनेक उच्चवर्गीय तथा निम्नवर्गीय पौधों में सभी वृद्धिकारी हॉर्मोनों में साइटोकाइनिन ही कोशिका विभाजन के वास्तविक कारक पाये गये हैं। उच्चवर्गीय पौधों के अलग किये गये विभज्योतकी भागों में वृद्धि के लिए एक साइटोकाइनिन तथा एक ऑक्जिन का होना आवश्यक है। ये कोशिका विभेदन (Cellelongation) करते हैं।
(2) इनके द्वारा ऊतक संवर्धन (Tissue culture) में अवयव रचना का कार्य किया जाता है।
(3) साइटोकाइनिन बीजों तथा पौधों के कुछ अन्य भागों की प्रसुप्तता को भंग करने में अत्यन्त प्रभावी होते हैं।
(4) ये RNA संश्लेषण को नियन्त्रित करने में सूक्ष्म भूमिका निभाते हैं।
4. एथिलीन-एथिलीन की खोज बर्ग (1962) ने किया। कार्यिकी प्रभाव तथा कृषि/बागवानी –
- यह हॉर्मोन तनों के अग्र भागों में बनकर तथा फलों में विसरित होकर उनके पकने में सहायता करता है।
- यह पौधे की लम्बाई में वृद्धि को रोकता है, किन्तु तनों के फूलने में सहायता करता है।
- यह ऑक्जिन के समान पुष्पन को कम करता है, लेकिन अनानास में पुष्पन को बढ़ाता है।
- यह पौधों में नर पुष्पों की संख्या में कमी तथा मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि करता है।
- यह पत्तियों, फलों व पुष्पों के विलगन को तीव्र करता है।
- यह मूल रोमों के निर्माण तथा बीजों के अंकुरण को प्रेरित करता है।
5. एब्सिसिक एसिड-एब्सिसिक एसिड की खोज कार्न एवं एडिकोट (1961-65) ने किया। कार्यिकी प्रभाव तथा कृषि / बागवानी –
ऐब्सिसिक अम्ल एक प्रमुख पादप हॉर्मोन है जिसका पौधों के लिए निम्नलिखित महत्व है, अतः इन महत्वपूर्ण गुणों के कारण इन्हें तनाव हॉर्मोन भी कहते हैं –
- यह पौधों की वृद्धि को रोकता है।
- यह पत्तियों में जीर्णता पैदा करके पतझड़ को प्रेरित करता है।
- यह जिबरेलिन के प्रभाव को रोकता है इस कारण इसे जिबरेलिन विरोधी भी कहते हैं।
- यह बीजों के अंकुरण को रोकता है, जिससे इन्हें अधिक दिनों तक संरक्षित किया जा सकता है।
प्रश्न 5.
दीप्तिकालिता तथा बसंतीकरण क्या है ? इनके महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) दीप्तिकालिता (Photoperiodism):
गारनर तथा एलार्ड ने सन् 1920 में दीप्तिकाल (Photoperiod) नामक शब्द का प्रयोग एक पौधे के दिन की अनुकूल लम्बाई के लिए किया। आधुनिक परिभाषा के अनुसार, “पौधों की दिन और रात्रि की आपेक्षिक लम्बाई के अनुसार अनुक्रिया को दीप्तिकालिता कहते हैं।” पौधों में पुष्प बनने की क्रिया इसका सर्वप्रसिद्ध उदाहरण है। यह अनुक्रिया, प्रकाशी-उत्क्रमणीय वर्णक फाइटोक्रोम द्वारा नियन्त्रित की जाती है। दिवालय या ताल (Cireadian or Rhythm) दीप्तिकालिता के आधारभूत साधन माने गये हैं।
दीप्तिकालिता का आर्थिक महत्व-दीप्तिकालिता की बागवानी तथा कृषि में बहुत अधिक महत्व है। प्रकाश की अवधि को नियंत्रित करके किसी पौधे में कभी भी पुष्पन कराया जा सकता है। इस तरह वर्ष में केवल एक बार फलने वाले पौधे से दो बार फल प्राप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार कृत्रिम रूप से प्रकाश की अवधि को नियन्त्रित करके बिना मौसम के भी फल प्राप्त किये जा सकते हैं।
(2) बसन्तीकरण (Vernalization):
सोवियत रूस के वैज्ञानिक लाइसेंको ने देखा कि यदि शीतकालीन पादपों के बीजों को कृत्रिम रूप से 0°C से 5°C ताप पर कुछ दिनों के लिए रख दिया जाए और इन्हें बसन्त के दिनों में बोया जाए तो ये उसी साल फल देने लगते हैं अर्थात् इनमें बसन्ती पादप के समान गुण प्राप्त हो जाते हैं।
इस घटना को बसन्तीकरण (Vernalization) कहते हैं अर्थात् पुष्पीकरण को प्रभावित करने के लिए बीजों या पौधों को ठण्डे स्थानों में रखने की क्रिया को बसन्तीकरण कहते हैं। यदि बसन्तीकृत बीजों या पादपों को उच्च ताप पर रखा जाय तो बसन्तीकरण का प्रभाव समाप्त हो जाता है। इस क्रिया को डिवर्नेलाइजेशन कहते हैं।
इस क्रिया-विधि के विषय में ऐसा माना जाता है कि शीत उद्दीपन को शीर्षस्थ विभज्योतक (Apical .meristem) ग्रहण करता है और वर्नेलिन (Vermalin) हॉर्मोन, जो सम्भवतः जिबरेलिन प्रकार का होता है, के द्वारा वृद्धि प्रदेश को स्थानान्तरित कर दिया जाता है। बसन्तीकरण विधि की सहायता से रूस के साइबेरिया क्षेत्र में जहाँ सालभर में 10 माह भूमि बर्फ से ढकी रहती है केवल दो माह में गेहूं की फसल तैयार कर ली जाती है।
बसन्तीकरण का आर्थिक महत्व:
- इस विधि के द्वारा शीत पादपों को बसन्त पादपों में बदला जा सकता है।
- फसलों को प्राकृतिक कुप्रभावों से बचाया जा सकता है।
- पौधों में शीघ्रता से पुष्पन कराया जा सकता है।
- इस क्रिया के द्वारा फसल को शीघ्रता से उत्पन्न किया जा सकता है।
प्रश्न 6.
एब्सिसिक एसिड को तनाव हॉर्मोन कहते हैं, क्यों?
उत्तर:
ऐब्सिसिक अम्ल एक प्रमुख पादप हॉर्मोन है जिसका पौधों के लिए निम्नलिखित महत्व है, अतः इन महत्वपूर्ण गुणों के कारण इन्हें तनाव हॉर्मोन भी कहते हैं –
- यह पौधों की वृद्धि को रोकता है।
- यह पत्तियों में जीर्णता पैदा करके पतझड़ को प्रेरित करता है।
- यह जिबरेलिन के प्रभाव को रोकता है इस कारण इसे जिबरेलिन विरोधी भी कहते हैं।
- यह बीजों के अंकुरण को रोकता है, जिससे इन्हें अधिक दिनों तक संरक्षित किया जा सकता है।
प्रश्न 7.
उच्च पादपों में वृद्धि एवं विभेदन खुला होता है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
उच्च पादपों में वृद्धि दर को तीन प्रमुख चरणों लेग, लॉग तथा जरा अवस्था में बाँटा गया है। जब कोशिकाएँ अपनी विभाजन क्षमता खो देती हैं तो यह विभेदन की ओर बढ़ जाती है। विभेदन संरचनाएँ प्रदान करता है जो उत्पाद की क्रियात्मकता के साथ जुड़ी रहती है। कोशिकाएँ, ऊतकों तथा संबंधी अंगों के लिए विभेदन के लिए सामान्य नियम एक समान होते हैं। एक विभेदित कोशिका पुनर्विभेदित हो सकती है। पादपों में विभेदन चूँकि खुला होता है, अतः परिवर्धन लचीला हो सकता है। दूसरे शब्दों में परिवर्धन (Development) वृद्धि और विभेदन (Differentiation) का योग है।
प्रश्न 8.
अल्प प्रदीप्तिकालिक पौधे और दीर्घ प्रदीप्तिकालिक पौधे किसी एक स्थान पर साथसाथ फूलते हैं। विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) अल्प प्रदीप्तिकालिक पौधे (Short-day plants):
इन पौधों में पुष्पन की क्रिया सिर्फ लम्बाई में सम्पादित होती है, जो कि प्रत्येक 24 घण्टे के चक्र में एक विशेष क्रान्तिक लम्बाई (Critical length) की अपेक्षा छोटे होते हैं। दूसरे अर्थों में ये पौधे एक दीर्घ रात्रिकालिक (Long night) प्रेरण के प्रति संवेदनशील होते हैं। उदाहरण-कॉस्मॉस, सोयाबीन, गुलदाऊदी (Chrysanthemum), तम्बाकू, यूफोर्बिया, पल्चेरिमा आदि। इन पौधों में यदि दिन की लम्बाई, क्रान्तिक लम्बाई से अधिक हुई तो इन पौधों में पुष्प नहीं लगेंगे।
(2) दीर्घ प्रदीप्तिकालिक पौधे (Long-day plants):
ये पौधे ऐसे दीप्तिकाल की अनुक्रियावश पुष्पित होते हैं, जो कि प्रत्येक 24 घण्टे के चक्र में एक विशेष क्रान्तिक लम्बाई की अपेक्षा लम्बे होते हैं अर्थात् ये पौधे एक अल्प रात्रिकालिक (Short night) प्रेरण संवेदनशील होते हैं। पौधों की भिन्न जातियों (Species) के लिए दिन की क्रान्तिक लम्बाई का मान अलग-अलग हो सकता है। उदाहरण – पालक, मूली, चुकन्दर आदि। उपर्युक्त पौधों में प्रकाशकाल की लम्बाई से क्रान्तिक लम्बाई कम होने पर इनमें पुष्प नहीं लगते अर्थात् इनमें केवल पत्तियों की वृद्धि होती रहेगी।
प्रश्न 9.
अगर आपको ऐसा करने को कहा जाए तो एक पादप वृद्धि नियामक का नाम दीजिए –
- किसी टहनी में जड़ पैदा करने हेतु।
- फल को जल्दी पकाने हेतु।
- पत्तियों की जरावस्था को रोकने हेतु।
- कक्षस्थ कलिकाओं में वृद्धि कराने हेतु।
- एक रोजेट पौधे में वोल्ट’ हेतु।
- पत्तियों के रन्ध्र को तुरंत बंद करने हेतु।
उत्तर:
- ऑक्जिन
- एथिलीन
- जिबरेलिन
- साइटोकाइनिन
- जिबरेलिन
- एब्सिसिक अम्ल।
प्रश्न 10.
क्या एक पर्णरहित पादप दीप्तिकालिता के चक्र से अनुक्रिया कर सकता है ? यदि हाँ या नहीं तो क्यों?
उत्तर:
हाँ, क्योकि कुछ पौधों में पुष्पन सिर्फ प्रकाश या अंधकार की अवधि पर ही निर्भर नहीं करती, बल्कि उसकी सापेक्षिक अवधि पर निर्भर करता है। इस घटना को दीप्तिकालिता कहते हैं। तने की शीर्षस्थ कलिका (Apical bud) पुष्पन के पहले शीर्षस्थ कलिका में बदलती है, लेकिन स्वतः प्रकाशकाल (Photoperiodism) को महसूस नहीं कर पाती है। प्रकाश अंधकार काल का अनुभव पत्तियाँ करती हैं । हॉर्मोनल तत्व (फ्लोरिजेन) पुष्पन के लिए जिम्मेदार है। फ्लोरिजेन, पुष्पन के लिए पत्ती से तने की कलिकाओं में तभी जाती है जब पौधे आवश्यक प्रेरित दीप्तिकाल से अनावृत होते हैं।
प्रश्न 11.
क्या हो सकता है यदि –
- जी ए5 (GA3) को धान के नवोद्भिदों पर दिया जाए।
- विभाजित कोशिका विभेदन करना बंद कर दे।
- एक सड़ा फल कच्चे फलों के साथ मिला दिया जाए।
- अगर आप संवर्धन माध्यम में साइटोकाइनिन डालना भूल जाएँ।
उत्तर:
- धान की लम्बाई में वृद्धि होगी।
- ऐसी कोशिकाएँ, जो विभाजन की क्षमता खो देती हैं, वे पादप शरीर की रचना करती हैं।
- कच्चे फलों के साथ एक सड़ा फल मिला देने से सभी कच्चे फल भी सड़ जायेंगे।
- संवर्धन माध्यम में साइटोकाइनिन न डालने पर नई पत्तियों में हरित लवक, पार्श्व प्ररोह वृद्धि तथा अपस्थानिक प्ररोह की पत्तियों में जरावस्था शीघ्र आ जाती है।
पादप वृद्धि एवं परिवर्धन अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
पादप वृद्धि एवं परिवर्धन वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –
प्रश्न 1.
अग्रस्थ प्रभाविता का कारण है –
(a) पार्श्व कलिका में जिबरेलिक अम्ल
(b) पत्तियों के अग्र भाग में साइटोकाइनिन
(c) प्ररोहान में ऑक्जिन
(d) पार्श्व कलिका में एब्सिसिक अम्ल।
उत्तर:
(c) प्ररोहान में ऑक्जिन
प्रश्न 2.
एब्सिसिक अम्ल के उपचार से होता है
(a) पत्तियों का विस्तार
(b) तने का दीर्धीकरण
(c) रन्ध्रों का बन्द होना
(d) जड़ों की लम्बाई में वृद्धि होना।
उत्तर:
(c) रन्ध्रों का बन्द होना
प्रश्न3.
कोशिका विभाजन से संबंधित हॉर्मोन है –
(a)G – A
(b) IAA
(c) NAA
(d) साइटोकाइनिन।
उत्तर:
(d) साइटोकाइनिन।
प्रश्न 4.
किसके उपचार से पौधों के बौनेपन पर नियंत्रण पाया जा सकता है –
(a) जिबरेलिन
(b) साइटोकाइनिन
(c) एन्टी जिबरेलिन
(d) ऑक्जिन।
उत्तर:
(a) जिबरेलिन
प्रश्न 5.
केले को कृत्रिम रूप से पकाने के लिये किसका उपयोग किया जाता है –
(a) साइटोकाइनिन
(b) एथिलीन
(c) ऑक्जिन
(d) कॉउमेरिन।
उत्तर:
(b) एथिलीन
प्रश्न 6.
छोटे दिन वाले पौधों में पुष्पन क्रिया को किसके द्वारा प्रेरित किया जाता है –
(a) लम्बी रात्रि द्वारा
(b) 12 घंटे से कम अवधि वाले प्रकाश काल से
(c) 12 घंटे से कम प्रकाश अवधि वाले प्रकाश काल तथा सतत् लम्बी रात्रि द्वारा
(d) छोटे प्रकाश काल तथा प्रकाश द्वारा हस्तक्षेपित लम्बी रात्रि।
उत्तर:
(c) 12 घंटे से कम प्रकाश अवधि वाले प्रकाश काल तथा सतत् लम्बी रात्रि द्वारा
प्रश्न 7.
उच्चवर्गीय पौधों में अग्रस्थ प्रभाविता का कारण है –
(a) हॉर्मोन्स
(b) एन्जाइम
(c) कार्बोहाइड्रेट्स
(d) दीप्तिकालिता।
उत्तर:
(a) हॉर्मोन्स
प्रश्न 8.
शीर्षस्थ कलिका को काटने पर पार्श्व कलिकाओं के सक्रिय होने का प्रमुख कारण है –
(a) उनमें साइटोकाइनिन की मात्रा का बढ़ना
(b) उनमें ऑक्जिन का निर्माण होना
(c) उनको अधिक प्रकाश प्राप्त होना
(d) उनको अधिक मात्रा में खाद्य पदार्थ का प्राप्त होना।
उत्तर:
(b) उनमें ऑक्जिन का निर्माण होना
प्रश्न 9.
कौन-सा हॉर्मोन रिचमण्ड-लैंग प्रभाव प्रदर्शित करता है –
(a) ऑक्जिन
(b) जिबरेलिन्स
(c) काइनेटिन
(d) शर्करा।
उत्तर:
(c) काइनेटिन
प्रश्न 10.
जिबरेलिन प्रेरित करता है –
(a) पुष्पन
(b) कोशिका विभाजन
(c) वयता
(d) बीजों के अंकुरण के समय जल-अपघटनी एन्जाइम का निर्माण।
उत्तर:
(d) बीजों के अंकुरण के समय जल-अपघटनी एन्जाइम का निर्माण।
प्रश्न 11.
पादपों में तीन प्रमुख वृद्धि प्रेरक हॉर्मोन्स हैं –
(a) ऑक्जिन, जिबरेलिन्स तथा एथिलीन
(b) जिबरेलिन्स, साइटोकाइनिन तथा एब्सिसिक अम्ल
(c) एथिलीन, एब्सिसिक अम्ल तथा साइटोकाइनिन
(d) ऑक्जिन, जिबरेलिन्स तथा साइटोकाइनिन।
उत्तर:
(d) ऑक्जिन, जिबरेलिन्स तथा साइटोकाइनिन।
प्रश्न 12.
साइटोकाइनिन प्रेरित करता है –
(a) कोशिका विभाजन
(b) कोशिका वृद्धि
(c) स्तंभ दीर्घन
(d) अनिषेचन।
उत्तर:
(a) कोशिका विभाजन
प्रश्न 2.
एक शब्द में उत्तर दीजिए –
- पौधों की वृद्धि किन ऊतकों के कारण होती है ?
- पादप वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं के नाम बताइए।
- 2-4, D का पूरा नाम बताइए।
- IAA का पूरा नाम बताइए।
- एक ऐसे हॉर्मोन का नाम बताइए, जो गैसीय अवस्था में पाया जाता है।
- वृद्धि मापने के उपकरण का नाम लिखिए।
- फाइटोक्रोम कहाँ पाया जाता है ?
- उस हॉर्मोन का नाम लिखिए जिसका उपयोग फलों को पकाने के लिए किया जाता है।
- ऐसे हॉर्मोन का नाम लिखिये जो पौधों की वृद्धि को रोक देता है।
- ऐसे हॉर्मोन का नाम बताइये जो पौधों की पुष्पन क्रिया को प्रेरित करता है।
उत्तर:
- प्रविभाजी ऊतकों
- कोशिका विभाजन, कोशिका विस्तार एवं परिपक्वन अवस्था
- 2,4-डाइफिनॉक्सी एसीटिक एसिड
- इन्डोल एसीटिक एसिड
- एथिलीन
- ऑक्जेनोमीटर
- पौधों की कोशिका झिल्ली में
- एथलीन गैसीय हॉर्मोन
- एब्सिसिक अम्ल
- वर्नेलिन, फ्लोरिजेन।
प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
- मानव मूत्र से प्राप्त प्रथम ऑक्जिन …………….. है।
- …………… फलों को पकाने के लिये उपयोगी होता है।
- …………….. पुष्पन क्रिया के लिये उत्तरदायी हॉर्मोन है।
- आनुवंशिक रूप से बौने पौधों की लम्बाई बढ़ाने के लिये. …………… हॉर्मोन का उपयोग किया जाता
- …………… हॉर्मोन विलगन एवं जीर्णन को बढ़ाता है।
- कोशिका विभाजन को बढ़ाने वाला हॉर्मोन …………….. है।
- मातृ पौधे के ऊपर बीजों का अंकुरण होना …………… कहलाता है।
- धान का बेकेनी रोग …………….. नामक कवक के कारण होता है।
- समय के साथ प्रति इकाई के दौरान बढ़ी हुई वृद्धि को …………….. कहा जाता है।
- ……………. वृद्धि में समसूत्री विभाजन के बाद केवल एक पुत्री कोशिका लगातार विभाजित होती रहती है।
उत्तर:
- IAA
- एथिलीन
- फ्लोरीजेन
- जिबरेलिन
- एब्सिसिक अम्ल
- साइटोकाइनिन
- विवीपैरी
- जिबरेला फ्यूजीकुरोई
- वृद्धि दर
- अंकगणितीय।
प्रश्न 4.
उचित संबंध जोडिए –
उत्तर:
- (e) पुष्पन
- (d) ABA
- (c) साइटोकाइनिन
- (b) प्रोटीन
- (a) IAA
उत्तर:
- (b) एब्सिसिक अम्ल
- (c) जिबरेलिन
- (d) साइटोकाइनिन
- (a) ऑक्जिन
- (e) लाल किरणें।
पादप वृद्धि एवं परिवर्धन अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वृद्धि को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
वृद्धि वह क्रिया है, जिसके परिणामस्वरूप किसी जीव या उसके विभिन्न अंगों के भार, आयतन, आकार एवं रूप इत्यादि में स्थायी व अनुत्क्रमणीय परिवर्तन होता है।
प्रश्न 2.
पादप वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं के नाम बताइये।
उत्तर:
पादप वृद्धि में निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ होती हैं –
- कोशिका विभाजन की अवस्था
- कोशिका विस्तार की अवस्था
- परिपक्वन अवस्था।
प्रश्न 3.
पादप हॉर्मोन्स क्या हैं?
उत्तर:
पादप हॉर्मोन्स ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं, जो पौधे के एक भाग में उत्पन्न होते हैं तथा वहाँ से स्थानान्तरित होकर विभिन्न शारीरिक क्रियाओं में भाग लेते हैं।
प्रश्न 4.
फ्लोरीजेन क्या है ?
उत्तर:
यह एक काल्पनिक पुष्पन हॉर्मोन है, जो पत्तियों में उत्पन्न होता है तथा वहाँ से स्थानान्तरित होकर पुष्पन क्रिया को प्रेरित करता है।
पादप वृद्धि एवं परिवर्धन लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वृद्धि नियामक पदार्थ से आप क्या समझते हैं ? किन्हीं तीन वृद्धि नियामक पदार्थों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वे रासायनिक पदार्थ, जो जीवों की वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करते हैं, वृद्धि नियामक पदार्थ कहलाते हैं। वास्तव में ये विशिष्ट प्रकार के कार्बनिक रसायन होते हैं, जिन्हें हॉर्मोन (Hormone) कहते हैं। पादपों में यह उनके शीर्षों पर तथा जन्तुओं में अन्तःस्रावी ग्रन्थियों में बनते हैं। ये संवहन तन्त्र द्वारा जीव के शरीर के अन्दर फैलकर अपना नियन्त्रण एवं समन्वय का कार्य करते हैं। इनका कम अथवा अधिक मात्रा में बनना हानिकारक होता है। पौधों में पाये जाने वाले तीन प्रमुख नियामक पदार्थों के नाम निम्नानुसार हैं
- ऑक्जिन
- जिबरेलिन
- साइटोकाइनिन।
प्रश्न 2.
साइटोकाइनिन हॉर्मोन के चार कार्य लिखिए।
उत्तर:
(1) कोशिका विभाजन (Cell division)-अनेक उच्चवर्गीय तथा निम्नवर्गीय पौधों में सभी वृद्धिकारी हॉर्मोनों में साइटोकाइनिन ही कोशिका विभाजन के वास्तविक कारक पाये गये हैं। उच्चवर्गीय पौधों के अलग किये गये विभज्योतको भागों में वृद्धि के लिए एक साइटोकाइनिन तथा एक ऑक्जिन का होना आवश्यक है। ये कोशिका विभेदन (Cellelongation) करते हैं।
(2) इनके द्वारा ऊतक संवर्धन (Tissue culture) में अवयव रचना का कार्य किया जाता है।
(3) साइटोकाइनिन बीजों तथा पौधों के कुछ अन्य भागों की प्रसुप्तता को भंग करने में अत्यन्त प्रभावी होते हैं।
(4) ये RNA संश्लेषण को नियन्त्रित करने में सूक्ष्म भूमिका निभातेहैं।
प्रश्न 3.
दीप्तिकालिता की क्रिया-विधि एवं उसका आर्थिक महत्व लिखिए।
उत्तर:
वैज्ञानिकों के अनुसार दीप्तिकालिता उद्दीपन पत्तियों द्वारा ग्रहण किया जाता है और फाइटोक्रोम नामक वर्णक प्रकाश की विभिन्न किरणों को अवशोषित करते हैं। पत्तियों से यह उद्दीपन फ्लोरिजेन हॉर्मोन के रूप में वृद्धि बिन्दु की ओर स्थानान्तरित होता है जहाँ यह पुष्पन की क्रिया को प्रेरित करता है, जबकि कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार जिबरेलिन दीप्तिकालिता प्रभावित पुष्पन को प्रेरित करता है। प्रकाश की अवधि के अलावा उसकी तीव्रता, प्रकार एवं दिशा भी वृद्धि की क्रिया को प्रभावित करते हैं।
जब प्रकाश की तीव्रता कम होती है, तब पर्व छोटे तथा पत्तियों के फलक चौड़े होते हैं। प्रकाश की सामान्य तीव्रता में पौधों में सामान्य वृद्धि होती है, लेकिन उच्च तीव्रता में कम वृद्धि होती है। हॉर्मोन्स के प्रभाव के कारण प्ररोह प्रकाश की दिशा में तथा जड़ प्रकाश की विपरीत दिशा में बढ़ती है। आर्थिक महत्व-दीप्तिकालिता द्वारा प्रकाश की अवधि को नियन्त्रित करके पौधे में कभी भी पुष्पन कराकर वर्ष में कई बार फल प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 4.
एथिलीन क्या है ? इसके प्रमुख कार्य लिखिए।
अथवा
गैसीय हॉर्मोन के पौधों पर किन्हीं तीन प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एथिलीन (Ethylene):
एथिलीन (H2C = CH2)को सन्1960 तक पादप हॉर्मोन नहीं माना जाता था, लेकिन बर्ग (Burg) ने सन् 1962 में इसे पादप हॉर्मोन प्रमाणित किया। यह एकमात्र ऐसा हॉर्मोन है जो गैसीय अवस्था में पाया जाता है। इसे श्वसन क्लैमेक्टेरिक (Respiratory climacteric) भी कहते हैं। फलों के पकते समय इसकी सान्द्रता बढ़ जाती है।
कार्य:
- यह हॉर्मोन तनों के अग्र भागों में बनकर तथा फलों में विसरित होकर उनके पकने में सहायता करता है।
- यह पौधे की लम्बाई में वृद्धि को रोकता है, किन्तु तनों के फूलने में सहायता करता है।
- यह ऑक्जिन के समान पुष्पन को कम करता है, लेकिन अनानास में पुष्पन को बढ़ाता है।
- यह पौधों में नर पुष्पों की संख्या में कमी तथा मादा पुष्पों की संख्या में वृद्धि करता है।
- यह पत्तियों, फलों व पुष्पों के विलगन को तीव्र करता है।
- यह मूल रोमों के निर्माण तथा बीजों के अंकुरण को प्रेरित करता है।
प्रश्न 5.
शीर्ष प्रमुखता पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
शीर्ष प्रमुखता (Apical dominance):
अधिकांश पादपों में जब तक शीर्षस्थ कलिका वृद्धि करती रहती है, तब तक पार्श्व कलिकाएँ वृद्धि नहीं करतीं, अर्थात् शीर्षस्थ कलिका पार्श्व कलिकाओं के विकास को रोक देती है। शीर्ष या अग्रिम कलिका के इस प्रभाव को अग्रिम प्रभाविता कहते हैं। पौधों की शाखाओं के शीर्षस्थ भाग में ही हॉर्मोन बनते हैं तथा फ्लोएम द्वारा पौधों के विविध भागों में पहुँचकर अग्रिम प्रभाविता को नियन्त्रित करते हैं। ऑक्जिन शीर्षस्थ प्रभाविता का नियन्त्रण करता है तथा पार्श्व कलिकाओं के विकास को रोकता है। इसके विपरीत साइटोकाइनिन पार्श्व कलिकाओं के विकास को प्रेरित करता है।
प्रश्न 6.
फाइटोक्रोम क्या है ? पौधों में इसका क्या महत्व है ?
उत्तर:
फाइटोक्रोम-पौधों की पत्तियों में पाया जाने वाला एक नीला प्रोटीनीय वर्णक है, जो लाल प्रकाश की किरणों को अवशोषित करता है। यह आपस में परिवर्तनीय दो रूपों में पाया जाता है। इसका पहला रूप Pr (Phytochrome red), लाल किरणों, जिनकी तरंगदैर्ध्य 660 µm होती है, को अवशोषित करता है। दूसरा रूप Pfr सुदूर लाल (Far red) प्रकाश किरणें, जिनकी तरंगदैर्घ्य 740 µm होती है, को अवशोषित करता है। Pfr पुष्पन का उद्दीपन तथा Pfr पुष्पन का संदमन करता है।
फाइटोक्रोम पुष्पन तथा बीजों की सुप्तावस्था समाप्त करने में मुख्य भूमिका निभाता है । पुष्पन की क्रिया को फाइटोक्रोम सबसे अधिक प्रभावित करता है, क्योंकि लाल तरंगदैर्घ्य की किरणें पुष्पन को उत्तेजित करती हैं। अल्प दीप्तिकालिक पौधों में दिन में यह पत्तियों का Pfr प्रकाश अवशोषित करता है और रात में यह Pr में परिवर्तित हो जाता है, जो पुष्पन के लिए आवश्यक हॉर्मोन फ्लोरिजेन के निर्माण को प्रेरित कर देता है। फ्लोरिजेन बनने के बाद उन स्थानों पर स्थानान्तरित होता है जहाँ पुष्पों का निर्माण होना होता है –
अल्प दीप्तिकालिक पादपों में रात में अन्धकार मिलने से बना हुआ Pr फिर से Pfr में परिवर्तित हो जाता है, जो पुष्पन को संदमित कर देता है। ऐसा देखा गया है कि कुछ बीज लाल प्रकाश में अंकुरित होते हैं, लेकिन जब सुदूर लाल प्रकाश होता है तो अंकुरित नहीं होते। ऐसा बन्दगोभी की कुछ जातियों में देखा गया है। अर्थात् सुदूर लाल प्रकाश बीजों की सुप्तावस्था को बढ़ाता है। यह परिवर्तन भी फाइटोक्रोम के कारण ही होता है।
पादप वृद्धि एवं परिवर्धन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
वृद्धि (Growth) क्या है ? वृद्धि की विभिन्न अवस्थाओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
“वृद्धि वह क्रिया है, जिसके परिणामस्वरूप किसी जीव या उसके विभिन्न अंगों के भार, आयतन, आकार एवं रूप इत्यादि का स्थायी व अनुत्क्रमणीय (Permanent and Irreversible) बढ़ाव या परिवर्तन होता है।” वृद्धि की अवस्थाएँ या क्रियाएँ (Stages or Actions of Growth)-यह स्पष्ट है कि जीवों में वृद्धि जीवद्रव्य के अधिक निर्माण की अवस्था में निम्नलिखित क्रियाओं के द्वारा होती है
(1) कोशिका विभाजन (Cell Division):
कोशिकाओं का संख्या में बढ़ना वृद्धि का मूलमन्त्र है। युग्मनज निर्माण के बाद यह तुरन्त कोशिका विभाजन के द्वारा विभाजित होकर कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने लगता है।
(2) कोशिका विस्तार (Cell Elongation):
इस अवस्था में विभाजन के द्वारा बनी कोशिकाएँ आकार में बढ़ती हैं और परिपक्वता की ओर अग्रसर होती हैं तथा इनसे बड़ी रिक्तिकाएँ बनने लगती हैं।
(3) कोशिका भिन्नन और अंग निर्माण (Cell Differentiation and Organ Formation):
इस अवस्था में कोशिकाओं का रूपान्तरण होता है। कोशिकाओं की संख्या व आकार में वृद्धि के बाद भिन्नन और अंग निर्माण की क्रिया प्रारम्भ होती है, जिसके कारण पादपों में विभिन्न अंगों का निर्माण होता है।
प्रश्न 2.
संश्लेषित वृद्धि हॉर्मोन किसे कहते हैं ? इनका कृषि के क्षेत्र में क्या महत्व है ?
उत्तर:
संश्लेषित वृद्धि हॉर्मोन या वृद्धि नियन्त्रक-चूँकि हॉर्मोन जीवों की वृद्धि एवं विकासात्मक क्रियाओं का नियन्त्रण करते हैं, इस कारण इन्हें वृद्धि नियन्त्रक भी कहते हैं। आजकल प्राकृतिक वृद्धि नियन्त्रकों के समान रसायन तैयार किये जाते हैं, जो प्राकृतिक हॉर्मोन के समान ही कार्य करते हैं ऐसे रसायनों को संश्लेषित वृद्धि नियन्त्रक कहते हैं। इनका कृषि के क्षेत्र में बहुत अधिक महत्व है, जिसे हम निम्नलिखित महत्वपूर्ण उदाहरणों से समझ सकते हैं –
(1) मॉर्पेक्टिन (Morpactins):
ये कृत्रिम संश्लेषित हॉर्मोन, Fluorine-Carboxylic acids के व्युत्पन्न होते हैं । ये बीजांकुरों, तनों एवं पर्ण फलकों की लम्बाई में वृद्धि को रोककर पार्श्व कलिकाओं की वृद्धि को प्रेरित कर पौधे को झाड़ीनुमा बनाते हैं, जिससे कई पादपों जैसे-संतरा का उत्पादन बढ़ता है। ये अनिषेकफलन को भी प्रेरित करते हैं।
(2) मैलिक हाइड्रेजाइड (Malic Hydrazide = MH):
यह भी एक संश्लेषित हॉर्मोन है, जो घास, झाड़ी तथा वृक्षों में वृद्धि को रोकता है। यह आलू एवं प्याज के अंकुरण को रोककर उनको अधिक समय तक रखने के अनुकूल बनाता है।
(3) साइकोसेल (Cycocel):
इसे CCC (2-Chloroethyl-trimethyl ammonium chloride) – भी कहते हैं। यह भी एक संश्लेषित हॉर्मोन है, जो GA के उत्पादन को रोककर पत्तियों में विलगन को प्रेरित करके खरपतवारों को नष्ट करता है।
(4) संश्लेषित ऑक्जिन (I.B.A. और N.A.A.) का छिड़काव अपरिपक्व फलों के विलगन को रोकता है। इनके प्रयोग से पत्तियों के विलगन को भी रोका जा सकता है।
(5) इसी प्रकार संश्लेषित ऑक्जिन, अल्फानेफ्थेलीन ऐसीटिक ऐसिड का आलू के गोदामों में छिड़काव करने से इनकी कलिकाएँ सुप्तावस्था में बनी रहती हैं, जिससे इन्हें बहुत अधिक दिनों तक संरक्षित रखा जा सकता है।
(6) संश्लेषित ऑक्जिन, 2 – 4 डाइक्लोरोफीनॉक्सी ऐसीटिक ऐसिड का उपयोग खरपतवार नियन्त्रण में किया जाता है।
(7) आजकल इथेफोन (2 – Chloroethyl phosphoric acid) का प्रयोग भारत सहित अधिकांश देशों में औद्योगिक स्तर पर फलों (आम, अंगूर, केला आदि) को पकाने के लिए किया जा रहा है। इस प्रकार से पके फल रंग, रूप एवं सुगन्ध में प्राकृतिक फलों जैसे ही लगते हैं। वास्तव में इथेफोन से एथिलीन गैस निकलती है जिसके कारण यह फलों को पका देता है। आजकल लगभग सभी पादप हॉर्मोनों के विकल्प रसायनों का कृत्रिम रूप से संश्लेषण कर लिया गया है, जिनका उपयोग पादप उत्पादन तथा उसकी गुणवत्ता को बढ़ाने में किया जा रहा है।
प्रश्न 3.
पुष्पन हॉर्मोन्स क्या हैं ? पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के पुष्पन हॉर्मोन्स का विवरण दीजिये।
उत्तर:
पुष्यन हॉर्मोन्स (Flowering Hormones):
इस श्रेणी में मुख्यतः दो हॉर्मोन वर्नेलीन एवं फ्लोरिजेन आते हैं। पुष्पन हॉर्मोन वे हॉर्मोन हैं, जो क्रमशः ताप एवं प्रकाश के प्रभाव से पादपों में पुष्पन की क्रिया को प्रेरित करते हैं। जैसा कि आप जानते हैं कि पुष्पन की क्रिया को प्रेरित या आरम्भ करने में तापमान की दशाओं एवं प्रकाश के कालान्तरों का विशेष कार्य होता है, जिसके कारण पादपों में पुष्पन हॉर्मोन उत्पन्न होते हैं, जो उपापचयी क्रियाओं में ऐसे परिवर्तन करते हैं कि पुष्प के अंगों का निर्माण होने लगता है।
(1) वर्नेलिन (Vernaline):
वर्नेलिन बसन्तीकरण की क्रिया का नियन्त्रण करता है। शीत का प्रभाव जो बसन्तीकरण करता है शिखान कलिका द्वारा ग्रहण किया जाता है। मेल्कर्स (Melchers, 1937) ने देखा कि बसन्तीकरण के प्रभाव से कोई हॉर्मोन बनता है। इन्होंने इसका नाम वर्नेलिन (Vernalin) रखा Hess (1975) ने यह सम्भावना व्यक्त की यह हॉर्मोन जिबरेलिन प्रकार का होता है, क्योंकि जिबरेलिन की क्रिया से शीतलन की आवश्यकता नहीं पड़ती और वह इस क्रिया की जगह पुष्पन को प्रेरित करता है। इस हॉर्मोन का संश्लेषण बसन्तीकरण क्रिया द्वारा अंकुरित बीजों की शिखाग्र कलिका में उचित मात्रा में होता है।
(2) फ्लोरिजेन (Florigen):
फ्लोरिजेन प्रकाश की क्रिया के माध्यम से पुष्पन को नियन्त्रित करने वाला हॉर्मोन है। हरी पत्तियों की कोशिकाओं की प्लाज्मा झिल्ली में एक वर्णक फाइटोक्रोम पाया जाता है। जो प्रकाश, (दिन) और अन्धकार (रात) के अन्तरालों से उद्दीप्त होकर उपापचयी क्रियाओं के कारण पौधों की पत्तियों एवं पुष्प कलिकाओं को फ्लोरिजेन हॉर्मोन के स्रावण से प्रेरित करता है।
यह हॉर्मोन पुष्प के अंगों के विभेदन को प्रेरित करता है। ऐसा माना जाता है कि यह जिबरेलिन एवं ऐन्थेसिन (Anthesin) नामक दो हॉर्मोन्स का सम्मिश्रण है। जिबरेलिन से प्ररोह की वृद्धि और ऐन्थेसिन से पुष्प निर्माण कार्य नियन्त्रित होता है। जिबरेलिन के छिड़काव से दीर्घकाली पादपों में पुष्पन छोटे दिन की दशाओं में भी हो जाता है।
प्रश्न 4.
वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारकों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
वृद्धि को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Growth)-पादप वृद्धि किसी एक कारक से नियन्त्रित न होकर कई कारकों से नियन्त्रित होती है, जिन्हें दो वर्गों में बाँटते हैं –
(A) बाह्य कारक (External Factors):
इस वर्ग में वृद्धि को प्रभावित करने वाले उन कारकों को रखा गया है, जो पादप शरीर से बाहर के होते हैं, ये निम्नलिखित हैं –
- जल (Water) – जल पादप शरीर की प्रत्येक क्रिया से जुड़ा होता है और जीवद्रव्य का आवश्यक अवयव है। इसके बिना जीवद्रव्य निष्क्रिय हो जाता है और उसकी जैविक क्रियाएँ समाप्त हो जाती हैं, जल वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है।
- ऑक्सीजन (O2) – श्वसन क्रिया के लिए यह आवश्यक है और श्वसन द्वारा उत्पन्न ऊर्जा के द्वारा ही वृद्धि होती है।
- भोज्य पदार्थ (Food Material) – भोज्य पदार्थ पादपों को ऊर्जा तथा शक्ति देते हैं, जो वृद्धि के लिए आवश्यक है।
(4) प्रकाश (Light)
अधिकांश पौधों में प्रकाश की उपस्थिति में भोजन का निर्माण किया जाता है। इसके अलावा दूसरी उपयोग की क्रियाओं के लिए भी प्रकाश की आवश्यकता पड़ती है, इस कारण वृद्धि के लिए इसकी नितान्त आवश्यकता होती है। प्रकाश की अनुपस्थिति में पौधों की गति एकाएक बढ़ जाती है लेकिन पौधे पीले तथा कमजोर हो जाते हैं। वृद्धि करने वाले पादपों के अंगों पर प्रकाश के प्रभाव को दीप्तिकालिता (Photoperiodism) कहते हैं।
प्रकाश की अवधि के अलावा उसकी तीव्रता (Intensity), प्रकार (Quality) एवं दिशा भी वृद्धि की क्रिया को प्रभावित करते हैं। जब प्रकाश की तीव्रता कम होती है, तब पर्व (Internode) छोटे तथा पत्तियों के फलक चौड़े होते हैं। प्रकाश की सामान्य तीव्रता में पौधों में सामान्य वृद्धि होती है, लेकिन उच्च तीव्रता में कम वृद्धि होती है। इसी कारण तीव्र प्रकाश में उगने वाले पौधों के प्ररोह छोटे तथा पत्तियाँ संख्या में कम व छोटी होती
(5) तापक्रम (Temperature):
जीवद्रव्य की क्रियाशीलता 20 – 35°C पर सबसे अधिक होती है। इसी कारण पौधों की वृद्धि भी इसी तापक्रम पर सबसे अधिक होती है, लेकिन ठण्डे तथा गर्म क्षेत्रों में यह तापक्रम कम या अधिक हो सकता है। तापक्रम के आधार पर पौधे तीन प्रकार के हो सकते हैं -शीतकालीन जाति (Winter Plants), बसन्ती जाति (Spring plants) और शीत निष्क्रिय जाति (Temperature neutral plants)।
शीतकालीन पादप जाड़ों में बोये जाते हैं और पुष्पन करके बसन्त तक बीज बना देते हैं। बसन्ती पादप बसन्त ऋतु में बोये जाते हैं और उसी वर्ष ग्रीष्म के अन्त तक फसल तैयार हो जाती है, लेकिन यदि शीतकालीन जाति को बसन्त ऋतु में बोया जाये तो उसमें उस वर्ष फल न लगकर वर्षभर बाद फल लगते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि शीतकालीन जाति को फल पैदा करने के लिए कम ताप की आवश्यकता होती है।
(B) आन्तरिक कारक (Internal Factors):
इस वर्ग में वृद्धि को प्रभावित करने वाले उन कारकों को रखा गया है, जो पादप शरीर के अन्दर स्थित होते हैं। पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियंत्रित करने के लिए कुछ विशिष्ट रासायनिक पदार्थ बनते हैं, जिन्हें पादप हॉर्मोन्स (Plant hormones) या वृद्धिकारक (Growth substances) या वृद्धि नियन्त्रक (Growth regulators) कहते हैं।
ये हॉर्मोन्स मुख्यतःशीर्षस्थ कलिकाओं (Apical buds), शीर्षस्थ मेरिस्टेम (Apical meristem) तथा बाल पत्तियों (Young leaves) में बनते हैं – और फ्लोएम द्वारा पौधों के सम्पूर्ण भागों में संचरित होकर, वृद्धि तथा विकास को नियन्त्रित करते हैं। प्रत्येक हॉर्मोन एक विशेष प्रकार की वृद्धि सम्बन्धी घटना को नियन्त्रित करता है, जो कि पादपों में समयानुसार होती रहती है।
इन हॉर्मोनों का विभिन्न अंगों की वृद्धि पर विभिन्न प्रभाव पड़ता है। पादप हॉर्मोन को निम्न प्रकार से परिभाषित कर सकते हैं “पादप हॉर्मोन्स वे जटिल कार्बनिक पदार्थ हैं, जो पेड़-पौधों में निश्चित स्थानों पर बनते हैं तथा संवहन ऊतकों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में संचरित होकर उनकी वृद्धि तथा विकास सम्बन्धी क्रियाओं को नियन्त्रित करते हैं।”
ऑक्जिन नामक हॉर्मोन सबसे पहले खोजा गया था। इसके बाद जिबरेलिन, काइनिन, साइटोकाइनिन, फ्लोरिजेन, वर्नेलिन, इथिलीन, ऐब्सिसिक अम्ल नामक हॉर्मोनों को खोजा गया। हॉर्मोनों के अलावा पौधों में कुछ वृद्धिरोधक पदार्थ जैसे – काउमेरिन, फिनोलिक यौगिक, स्कोपोलिटिन आदि भी बनते हैं, जो पादप वृद्धि को अवरुद्ध करते हैं।