MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 18 शरीर द्रव तथा परिसंचरण
शरीर द्रव तथा परिसंचरण निष्कासन NCERT प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
रक्त के संगठित पदार्थों के अवयवों का वर्णन कीजिए तथा प्रत्येक अवयव के एक प्रमुख कार्य के बारे में लिखिए।
उत्तर:
रक्त के प्रमुख संगठित अवयवों के नाम हैं –
- लाल रुधिर कणिकाएँ (R.B.Cs. or Erythrocytes)
- श्वेत रुधिर कणिकाएँ (W.B.Cs. or Leucocytes) एवं
- प्लेटलेट्स (Platelets), ये सभी अवयव रक्त के 45% भागों का निर्माण करते हैं।
प्रमुख कार्य:
1. लाल रुधिर कणिकाएँ (R.B.Cs. or Erythrocytes) – ये कणिकाएँ, शरीर के अन्दर गैसीय विनिमय (O2) तथा CO2) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
2. श्वेत रुधिर कणिकाएँ (W.B.Cs. or Leucocytes) – श्वेत रुधिर कणिकाएँ विभिन्न प्रकार के संक्रमण (Infections) से शरीर को बचाने का कार्य करते हैं।
3. प्लेटलेट्स (Platelets) – प्लेटलेट्स या थ्रॉम्बोसाइट्स, रक्त का थक्का जमाने (Clotting of Bloods) की क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्लेटलेट्स की संख्या में कमी होने पर थक्का जमने की क्रिया धीमी पड़ जाती है, जिसके कारण शरीर के कटे हुए हिस्से से रक्त का बहाव अनवरत जारी रहता है।
प्रश्न 2.
प्लाज्मा प्रोटीन का क्या महत्व है ?
उत्तर:
प्लाज्मा प्रोटीन को मुख्यत: तीन वर्गों में विभाजित किया गया है –
- सीरम ऐल्ब्यूमिन
- सीरम ग्लोब्यूलिन
- फाइब्रिनोजेन।
प्लाज्मा प्रोटीन के महत्व:
- शरीर प्रतिरोधकता-ग्लोबिन प्रोटीन एण्टिबॉडी के समान कार्य करती है।
- रुधिर हानि को रोकना-फाइब्रिनोजेन, जिसका संश्लेषण यकृत में होता है, रूधिर का थक्का जमाने में सहायक है।
- रुधिर को तरल बनाए रखना-एल्ब्यूमिन, ग्लोब्यूलिन में जल-धारण करने की क्षमता अधिक होती है, जिसके कारण रुधिर द्रव रूप में बना रहता है।
यह परिवहन में सहायक है।
- यह रुधिर का pH नियंत्रित करती है।
- यह शरीर में समान तापक्रम बनाए रखता है।
- यह ऊष्मा का संवहन करता है।
प्रश्न 3.
स्तंभ-I का स्तंभ-II से मिलान कीजिए –
उत्तर:
- (c) संक्रमण प्रतिरोधन
- (e) गैस परिवहन (अभिगमन)
- (b) सर्व अदाता
- (a) रक्त जमाव (स्कंदन)
- (d) हृदय संकुचन
प्रश्न 4.
रक्त को एक संयोजी ऊतक क्यों मानते हैं ?
उत्तर:
लगभग एक ही परिमाण तथा आकार की कोशिकाओं का समूह जो उत्पत्ति, विकास, रचना तथा कार्य के विचार से एक समान हो, ऊतक कहलाता है। संरचना तथा कार्य की दृष्टि से रुधिर संयोजी ऊतकों के ही समान होता है। इसमें संयोजी ऊतकों के ही समान एक आधात्री होती है जिसमें रुधिर कोशिकाएँ बिखरी होती हैं, लेकिन यह आधात्री संयोजी ऊतकों के विपरीत तरल रूप में होती है। कार्य की दृष्टि से भी शरीर के सभी अंगों में सम्बन्ध स्थापित करता है। रुधिर की संयोजी ऊतकों से इसी कार्यात्मक तथा रचनात्मक समानता के कारण इसे ‘तरल संयोजी’ ऊतक कहते हैं।
प्रश्न 5.
रुधिर एवं लसीका में अन्तर बताइए।
उत्तर:
रुधिर एवं लसीका में अन्तर –
रुधिर (Blood):
- R.B.Cs. पाये जाते हैं।
- W.B.Cs. कम, न्यूट्रोफिल्स अधिक संख्या में जाते हैं।
- विलेय प्रोटीन अधिक मात्रा में एवं अविलेय प्रोटीन कम मात्रा में पाई जाती हैं।
- O2 एवं पोषक पदार्थ अधिक मात्रा में पाये जाते हैं
- उत्सर्जी पदार्थ एवं CO2 की मात्रा कम होती है।
- यह लाल रंग का द्रव है।
लसीका (Lymph):
- R.B.Cs. नहीं पाये जाते हैं।
- W.B.Cs. अधिक, लिम्फोसाइट अधिक मात्रा में पाये पाये जाते हैं।
- विलेय प्रोटीन कम एवं अविलेय प्रोटीन अधिक मात्रा में पाई जाती है।
- O2 एवं पोषक पदार्थ कम मात्रा में पाये जाते हैं।
- उत्सर्जी पदार्थ एवं CO2 की मात्रा अधिक पाई जाती है।
- यह रंगहीन द्रव है।
प्रश्न 6.
दोहरे परिसंचरण तन्त्र से क्या समझते हैं ? इससे क्या लाभ हैं ?
उत्तर:
वह परिसंचरण जिसमें रक्त हृदय से दो बार होकर बहता है, वह दोहरा परिसंचरण तन्त्र कहलाता है। पहले शरीर का O2 विहीन रुधिर महाशिराओं द्वारा हृदय में लाया जाता है। वहाँ से यह फेफड़े में जाता है, वहाँ O2 युक्त रक्त पुनः हृदय में आता है, तब इसे सम्पूर्ण शरीर में वितरित किया जाता है। लाभ-इस परिसंचरण तन्त्र में O2 युक्त तथा O2 विहीन रुधिर अलग-अलग रहता है।
प्रश्न 7.
भेद स्पष्ट कीजिए –
- रक्त एवं लसीका
- खुला व बंद रक्त परिसंचरण तंत्र
- प्रकुंचन तथा अनुशिथिलन (4)P तरंग तथा T तरंग।
उत्तर:
- रक्त एवं लसीका-उपर्युक्त प्र.क्र. 5 का उत्तर देखिए।
- खुला रक्त परिसंचरण तंत्र एवं बन्द रक्त परिसंचरण तंत्र में अंतर –
खुला रक्त परिसंचरण तंत्र (Open blood vascular system):
- रुधिर प्रवाह रुधिर वाहिनियों में नहीं होता है।
- देहगुहा रुधिर से भरी रहती है, जिसे हीमोसील कहते हैं।
- हीमोसील में उपस्थित द्रव को हीमोलिम्फ कहते हैं।
- रुधिर दबाव के साथ प्रवाहित नहीं होता है।
- उदाहरण-ऑर्थोपोड्स, घोंघा।
बन्द रक्त परिसंचरण तंत्र (Closed blood vascular system)
- रुधिर प्रवाह बन्द नलियों या रुधिर वाहिनियों में होता है।
- देहगुहा रुधिर से भरी नहीं रहती है।
- देहगुहा में लसीका द्रव पाया जाता है।
- रुधिर दबाव के साथ प्रवाहित होता है।
- केंचुआ एवं सभी कशेरुक जन्तु।
(3) प्रकुंचन तथा अनुशिथिलन में अंतर –
(i) प्रकुंचन (Systole):
हृदचक्र में नियमित रूप से हृदय की धमनी एवं शिराओं में फैलती एवं सिकुड़ती रहती है। हृदय के सिकुड़ने की क्रिया को प्रकुंचन (Systole) कहते हैं। इस क्रिया में हृदय के अन्दर रक्त उच्च दाब के साथ बाहर की ओर ढकेल दिये जाते हैं।
(ii) अनुशिथिलन (Diastole):
इस क्रिया में हृदय का सिकुड़न समाप्त होकर आरामावस्था में पहुँच जाता है अथवा शिथिल हो जाता हैं । इससे हृदय का आयतन बढ़ जाता है तथा रक्त वाहिनियों का रुधिर शरीर से हृदय में भर जाता है।
(4) P तरंग तथा T तरंग में अंतर –
(i) P तरंग (P-wave):
यह एक छोटी आरोही तरंग है, जो S.A नोड से संपूर्ण अलिन्द (Auricle) में आवेग के विस्तार अर्थात् अलिंद के निध्रुवण (Depolarization) को इंगित करती है।
(ii) T तरंग (T-wave):
T तरंग निलयी संकुचन की अंतिम प्रावस्था तथा इसके क्रमिक अनुशिथिलन की सूचक होती है।
प्रश्न 8.
कशेरुकी के हृदयों में विकासीय परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कशेरुकी के हृदयों में विकासीय परिवर्तन –
(1) मछलियों का हृदय (Fish heart):
मछलियों का हृदय दो कोष्ठों, एक आलिन्द (Auricle) एवं एक निलय (Ventricle) का बना होता है। इन दोनों कोष्ठों में ऑक्सीजनरहित रुधिर आता है तथा यहाँ से यह रुधिर ऑक्सीजनीकरण (Oxygenation) के लिये गलफड़ों (Gills) में पम्प किया जाता है। अतः मछलियों के हृदय को बैँकियल (Branchial) या वीनस हृदय (Venous heart) कहते हैं। गलफड़ों में रुधिर का ऑक्सीजनीकरण होने के पश्चात् पृष्ठ महाधमनी के द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है।
(2) उभयचरों का हृदय (Amphibian heart):
उभयचरों का हृदय तीन कोष्ठों, दो आलिन्द तथा एक निलय का बना होता है। शरीर के विभिन्न भागों का रुधिर शिरापात्र में एकत्रित होकर दाहिने आलिन्द में जाता है। यहाँ से यह निलय से होते हुए फेफड़ों में ऑक्सीजन युक्त होने के लिए जाता है, वहाँ से यह लौटकर पुनः हृदय के बायें आलिन्द में होते हुए निलय में आता है।
इस प्रकार निलय में ऑक्सीजन युक्त तथा ऑक्सीजन विहीन दोनों रुधिर एक साथ आते हैं। इस प्रकार मेढक के आलिन्द में तो ऑक्सीजन युक्त और ऑक्सीजन विहीन रुधिर अलग – अलग रहते हैं लेकिन निलय में मिश्रित हो जाते हैं। यह मिश्रित रुधिर ही कैरोटिड (Carotid) तथा सिस्टेमिक (Systemic) चापों द्वारा शरीर के विभिन्न भागों को वितरित कर दिया जाता है।
(3) सरीसृपों का हृदय (Reptilian heart):
कम विकसित सरीसृपों का हृदय तीन कोष्ठों लेकिन विकसित सरीसृपों का चार कोष्ठों, 2 आलिन्द तथा 2 निलय का बना होता है। सरीसृपों में शरीर के विविध भागों से एकत्रित ऑक्सीजन विहीन रुधिर दाहिने आलिन्द में तथा फेफड़ों से आया ऑक्सीजन युक्त रुधिर बायें आलिन्द में आता है।
आलिन्दों के संकुचित होने पर आलिन्दों का रुधिर निलय में चला जाता है लेकिन निलय में दो कोष्ठ होने के कारण वहाँ पर भी यह नहीं मिलता है। निलय संकुचन के बाद दाहिने भाग का रुधिर फेफड़ों में ऑक्सीजन युक्त होने के लिए चला जाता है जबकि बायें निलय का ऑक्सीजन युक्त रुधिर धमनियों द्वारा शरीर के विविध भागों में वितरित हो जाता है।
(4) पक्षियों एवं स्तनियों का हृदय (Avian and mammalian heart):
(i) पक्षियों का हृदय स्पष्ट रूप से चार कोष्ठों का बना होता है। शरीर के विभिन्न भागों से एकत्रित ऑक्सीजन विहीन रुधिर दाहिने आलिन्द से, दाहिने निलय, दाहिने निलय से पल्मोनरी महाधमनी (Pulmonary aorta) द्वारा ऑक्सीजन युक्त होने के लिए फेफड़ों में चला जाता है, जो लौटकर पुन: बायें आलिन्द में आता है और वहाँ से बायें निलय में होते हुए कैरोटिको सिस्टेमिक आर्च (Carotico systemic arch) द्वारा शरीर के विभिन्न भागों में चला जाता है। इस प्रकार पक्षियों के हृदय के दाहिने भाग में ऑक्सीजन विहीन तथा बायें भाग में ऑक्सीजन युक्त रुधिर रहता है।
(ii) स्तनी वर्ग के जन्तु प्रकृति के सबसे विकस्ति तथा जटिल शरीर वाले जीव हैं। इनके सभी तन्त्र भी विकसित तथा जटिल होते हैं। इनका परिसंचरण तन्त्र बन्द तथा दोहरा (Closed and double) होता है। मनुष्य का हृदय भी अन्य विकसित कशेरुकियों के समान चार कोष्ठों का बना होता है।
प्रश्न 9.
मानव हृदय को पेशीजनक (मायोजेनिक) क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
ऐसे हृदय जिनका स्पन्दनिक संकुचन या तो रूपान्तरित पेशियों के द्वारा प्रेरित किया जाता है अथवा तंत्रिकाओं के द्वारा नियंत्रित मायोजेनिक पेशियों के द्वारा प्रेरित किया जाता है। मायोजेनिक पेशियाँ ऐसी विशिष्ट ऊतक होती हैं, जो कि एक पेस मेकर की भाँति कार्य करती हैं। इन्हें निकालने के कुछ समय पश्चात् ही हृदय का स्पन्दन रुक जाता है। ऐसा हृदय मनुष्य, मोलस्क एवं कशेरुकियों में पाया जाता है।
प्रश्न 10.
शिरा आलिंद पर्व (कोटरालिंद गाँठ SAN) को हृदय का गति प्रेरक (पेसमेकर) क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
साइनो ऑरिकुलर नोड हृदय के दाहिने आलिन्द के ऊपरी भाग में स्थित होता है। इससे ही हृदय के स्पन्दन की क्रिया का प्रारम्भ होता है, इसी कारण इसे हृदय का पेसमेकर या गति निर्धारक कहते हैं। कभीकभी जब साइनो ऑरिकुलर नोड ठीक से कार्य नहीं करता या कार्य करना बन्द कर देता है, तब हृदय की गति अनियमित, धीमी या बन्द हो जाती है।
पहली दो स्थितियों में हृदय रुधिर को पूरे शरीर में ठीक से आवश्यकतानुसार पम्प नहीं कर पाता। ऐसी परिस्थिति में एक कृत्रिम पेसमेकर लगाया जाता है, जो प्राकृतिक साइनो ऑरिकुलर नोड के समान ही कार्य करता है और हृदय की गति को सामान्य कर देता है।
प्रश्न 11.
आलिंद निलय गाँठ (AVN) तथा आलिंद निलय बंडल (AVB) का हृदय के कार्य में क्या महत्व है।
उत्तर:
आलिंद निलय गाँठ (AVN):
A.V. नोड-S.A. नोड के ही समान पेशियों तथा तन्त्रिकीय ऊतकों का बना एक ऊतक समूह दोनों आलिन्दों के बीच के पट के आधार पर पाया जाता है, जिसे A.V. नोड कहते हैं। यह S.A. नोड के आवेगों से प्रेरित होकर तन्त्रिकीय शाखाओं जिन्हें हिज बण्डल कहते हैं, के द्वारा निलयों के संकुचन तथा शिथिलन को नियन्त्रित करता है।
आलिंद निलय बंडल (AVB):
हिज (His, 1893) ने सर्वप्रथम मानव हृदय मेंA.V. नोड (A.V. Node) की खोज की। इसे बाद में ‘हिज के समूह’ (Bundle of His) के नाम से जाना गया। यह एक विशेष प्रकार के पेशी तन्तु का बना होता है, जो कि औतिकी की दृष्टि में हृदय पेशी की तुलना में भिन्न होता है । यह दाँये आलिन्द से निलय में प्रेरणा संवाह के लिए संयोजक का कार्य करता है। उद्दीपन A.V. नोड द्वारा निलय में उपस्थित सेप्टम में पहुँचती है, जो कि हिज के समूह (Bundle of His) द्वारा दोनों निलय में उपस्थित पुर्किन्जे तन्तु में पहुँचती है।
प्रश्न 12.
हृद चक्र तथा हृद निकास को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
1. हृद चक्र (Cardiac cycle):
हृदय में एक स्पंदन या धड़कन की समाप्ति से लेकर अगले स्पंदन की समाप्ति तक हृदय में होने वाले परिवर्तनों को हृदचक्र (Cardiac Cycle) कहते हैं।
2. हृद निकास (Cardiac output):
रक्त की वह मात्रा, जो निलयों द्वारा प्रति मिनट निर्गत या निकास की जाती है, हृद निकास कहलाती है।
प्रश्न 13.
हृदय ध्वनियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जब रुधिर हृदय में आता है तथा वहाँ से शरीर के विभिन्न भागों में भेजा जाता है, तो हृदयी चक्र के दौरान धड़कन होती है। इस क्रिया में कुछ ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं, जिन्हें हृदयक ध्वनि कहते हैं। उदाहरणDub एवं Lubb ध्वनि। लब ध्वनि द्विवलन कपाट (Bicuspid valve) तथा त्रिवलन कपाट (Tricuspid valve) के बन्द होने के कारण पैदा होती है। यह निलय संकुचन के आरम्भ को प्रदर्शित करती है। डब ध्वनि अर्द्ध-चन्द्राकर कपाटों के बन्द होने के कारण पैदा होती है और निलय शिथिलन के आरम्भ को व्यक्त करती है।
प्रश्न 14.
एक मानक ई. सी.जी. को दर्शाइए तथा उसके विभिन्न खण्डों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (E.C.G.):
हृदय स्पंदन में तंत्रिका एवं पेशियों द्वारा उत्पादित वैद्युत संकेतों को बताता है तथा लिपिबद्ध करता है। इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम हृदय के आवेगों को एक कागज के ऊपर ग्राफ के रूप में व्यक्त करता है, जो कि इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ कहलाता है। प्राय: E.C.G. में एक P – तरंग (लहर), एक QRS सम्मिश्रण तथा एक T-तरंग होता है।
QRS में तीन अलग-अलग तरंग Q, R एवं S होता है। P – तरंग छोटा तथा ऊपर की ओर जाने वाला तरंग होता है, जो कि आलिंद (Auricle) के निध्रुवीकरण (Depolarization) को या साइनस नोड से आरंभ होकर सारे आलिंद में फैल रहे आवेग को दर्शाता है। दूसरा तरंग QRS, P तरंग के बाद आता है। QRS, लघु अधोमुखी निक्षेप Q – के रूप में आरंभ होता है। उसके बाद यह ऊपर की ओर जाने वाली बड़ी त्रिकोणी तरंग R बन जाती है।
अंत में अधोमुखी तरंग S होती है। इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ में P स्थिति शिरा आलिंद नोड में आवेग P की उत्पत्ति P- Q के बीच का स्थान आलिंदों के संकुचन, Q से QS R का उत्थान शिरा आलिंद नोड के आवेग, R-5 के बीच का स्थान हिज बण्डलों में आवेग के संचरण और S एवं T के बीच का स्थान निलय के संकुचन को व्यक्त करता है एवं T लहर निलय के शिथिलन के प्रारंभ को प्रदर्शित करती है।
शरीर द्रव तथा परिसंचरण निष्कासन अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
शरीर द्रव तथा परिसंचरण निष्कासन वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –
1. लसीका को परिभाषित कर सकते हैं –
(a) W.B.Cs. के साथ रुधिर
(b) बिना R.B.Cs. के रुधिर
(c) बिना प्लेटलेट के रुधिर
(d) प्लाज्मा के साथ रुधिर।
उत्तर:
(a) W.B.Cs. के साथ रुधिर
2. बाइकस्पिड कपाट कहाँ पाया जाता है –
(a) दायें आलिन्द व पल्मोनरी धमनी में
(b) पश्च महाशिरा के आलिन्द में
(c) बायें आलिन्द व बायें निलय में
(d) दायें आलिन्द व दायें निलय में।
उत्तर:
(c) बायें आलिन्द व बायें निलय में
3. फेफड़ों से बाहर जाने वाले रुधिर में फेफड़ों के अन्दर वाले रुधिर से किसकी मात्रा अधिक होती है –
(a) CO2
(b) H2
(c) O2
(d) HO
उत्तर:
(c)O2
4. एक सामान्य व्यक्ति का रुधिर दाब होता है –
(a) 120/80 mmHg
(b) 18/100 mmHg
(c) 80/120 mmHg
(d) 100/80 mm Hg.
उत्तर:
(a) 120/80 mmHg
5. जन्तु शरीर में रुधिर बैंक क्या है –
(a) तिल्ली
(b) फेफड़ा
(c) हृदय
(d) यकृत।
उत्तर:
(a) तिल्ली
6. किसमें पेशीय भित्ति नहीं होती –
(a) केशिका
(b) धमनी
(c) शिरा
(d) धमनिका।
उत्तर:
(a) केशिका
7. स्तनियों में शिरा की तुलना में एक धमनी –
(a) की दीवार पतली होती है
(b) शरीर की सतह के निकट होती है
(c) किसी अंग से रक्त ले जाती है
(d) में भीतर कपाट नहीं होते।
उत्तर:
(d) में भीतर कपाट नहीं होते।
8. धमनी में –
(a) दीवार महीन, रक्त दाब कम
(b) दीवार मोटी, रक्त दाब उच्च
(c) दीवार महीन, रक्त दाब उच्च
(d) दीवार मोटी, रक्त दाब कम।
उत्तर:
(b) दीवार मोटी, रक्त दाब उच्च
9. नाड़ी दर मापी जाती है –
(a) शिरा
(b) धमनी
(c) तन्त्रिका
(d) केशिका।
उत्तर:
(b) धमनी
10. कपाट की आवश्यकता शिराओं में होती है धमनियों में नहीं क्योंकि
(a) शिराओं में अशुद्ध रक्त बहता है
(b) शिराएँ रक्त को हृदय से दूर ले जाती हैं
(c) शिराओं की दीवार अधिक पेशीय होती है
(d) शिराएँ रक्त को हृदय की ओर ले जाती हैं।
उत्तर:
(c) शिराओं की दीवार अधिक पेशीय होती है
11. शिरा किस लक्षण में धमनी से अन्तर प्रदर्शित करती है –
(a) पतली गुहा
(b) रंगायुक्त दीवार
(c) अधिक पेशीय दीवार
(d) कपाट की उपस्थिति।
उत्तर:
(d) कपाट की उपस्थिति।
12. उच्च रक्त दाब वाले व्यक्तियों को रक्त दाब की वृद्धि को रोकने के लिए –
(a) अधिक सोना चाहिए
(b) उत्तेजना एवं भावुकता से बचना चाहिए
(c) अधिक समय तक खड़ा नहीं रहना चाहिए
(d) शरीर का भार बढ़ाना चाहिए।
उत्तर:
(b) उत्तेजना एवं भावुकता से बचना चाहिए
13. कौन-सा विटामिन रक्त का थक्का जमाने में मदद करता है –
(a) विटामिन ‘E’
(b) विटामिन ‘K’
(c) विटामिन ‘C’
(d) विटामिन ‘D’
उत्तर:
(b) विटामिन ‘K’
14. स्तनियों में लसीका गाँठों का प्रमुख कार्य है –
(a)R.B.Cs. विनाश
(b) हॉर्मोन्स का स्राव
(c)W.B.Cs. निर्माण
(d) विषाणुओं एवं रोगाणुओं का विनाश।
उत्तर:
(b) हॉर्मोन्स का स्राव
15. रक्त में रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट करने वाली कोशिकाएँ हैं –
(a) प्लेटलेट्स
(b) लाल रुधिराणु
(c) श्वेत रुधिराणु
(d) त्वचीय कोशिकाएँ।
उत्तर:
(c) श्वेत रुधिराणु
16. किस वाहिनी में सबसे कम यूरिया होता है –
(a) फुफ्फुसीय शिरा में
(b) यकृत निवाहिका शिरा में
(c) यकृत शिरा में
(d) वृक्क शिराओं में।
उत्तर:
(d) वृक्क शिराओं में।
17. यूस्टेकियन कपाट कहाँ पाया जाता है –
(a) मध्य कर्ण एवं ग्रसनी के सन्धि स्थान पर
(b) मध्य कर्ण
(c) हृदय के बाँयें निलय में
(d) हृदय के दाहिने आलिन्द में।
उत्तर:
(d) हृदय के दाहिने आलिन्द में।
18. रुधिर दाब व हृदय स्पन्दन की दर का नियन्त्रण किस हॉर्मोन द्वारा होता है –
(a) थायरॉक्सिन
(b) एड्रीनेलिन
(c) गैस्ट्रीन
(d) सिक्रेटीन।
उत्तर:
(b) एड्रीनेलिन
19. साइनो ऑरिकुलर नोड कहाँ पाया जाता है –
(a) मस्तिष्क में
(b) यकृत में
(c) प्लीहा में
(d) हृदय में।
उत्तर:
(d) हृदय में।
20. मनुष्य के रक्त चाप को किस धमनी द्वारा मापते हैं –
(a) बँकियल धमनी
(b) रेडियल धमनी
(c) सियाटिक धमनी
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) बँकियल धमनी
21. वयस्क मनुष्य की प्लीहा हटा देने पर –
(a) लाल रुधिर कणिकाओं का निर्माण कम हो जायेगा
(b) प्रतिरक्षी निर्माण कम हो जायेगा
(c) मृत लाल रुधिर कणिकाओं का निस्पन्दन नहीं होगा
(d) श्वेत रुधिर कणिकाओं का निर्माण हो जायेगा।
उत्तर:
(c) मृत लाल रुधिर कणिकाओं का निस्पन्दन नहीं होगा
22. मनुष्य के हृदय में A.V. नोड होता है –
(a) पेसमेकर में
(b) पेसमेकर से संबंधित नहीं
(c) पुरकिंजे तन्तु में
(d) हिंज के समूह में।
उत्तर:
(d) हिंज के समूह में।
23. रुधिर प्लेटलेट्स स्रोत होते हैं –
(a) फाइब्रिनोजेन का
(b) कैल्सियम का
(c) थ्रॉम्बोप्लास्टिन का
(d) हीमोग्लोबिन का।
उत्तर:
(c) थ्रॉम्बोप्लास्टिन का
24. मायोकार्डियल संक्रमण में कौन-सी धमनी प्रभावित होती है –
(a) बाँयी अग्रधमनी
(b) दाँयी वलय कोरोनरी धमनी
(c) दाँयी कोरोनरी धमनी
(d) बाँयी वलय कोरोनरी धमनी।
उत्तर:
(c) दाँयी कोरोनरी धमनी
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये –
- एम्फीबियन जीवों के हृदय में ………….. कक्ष होते हैं।
- स्पंजों में ………….. संवहन तंत्र पाया जाता है।
- न्यूरोजेनिक हृदय ………….. में पाया जाता है।
- फेफड़ों से ऑक्सीकृत रक्त हृदय के बाएँ आलिन्द में ……….. द्वारा पहुँचता है।
- रुधिर निर्माण की प्रक्रिया को ………….. कहते हैं।
- पेरीकार्डियम ………….. स्तरीय होता है।
- ………….. एक लिम्फेटिक अंग है।
- स्तनियों में …………. हृदय पाया जाता है।
- ………….. रुधिरोत्पादक ऊतक है।
- मानव के R.B.Cs. में ………….. नहीं होता।
उत्तर:
- 3
- जल
- मेढक
- पल्मोनरी शिरा
- हीमोपोएसिस
- दो
- प्लीहा
- मायोजेनिक
- अस्थि मज्जा
- केन्द्रक।
प्रश्न 3.
उचित संबंध जोड़िए –
उत्तर:
- (c) A.V. बण्डल
- (d) पेसमेकर
- (b) सिस्टेमैटिक सर्कुलेशन
- (e) अर्द्धवलयाकार कपाट
- (a) A.V. कपाट
उत्तर:
- (e) चार कक्ष
- (d) तीन कक्ष
- (a) तंत्रिका तन्तु
- (b) प्लीहा
- (c) बायाँ आलिन्द एवं बायाँ निलय
शरीर द्रव तथा परिसंचरण निष्कासन अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
एककोशिकीय जीवों में किस प्रकार का परिवहन पाया जाता है ?
उत्तर:
एककोशिकीय जीवों में प्लाज्मा झिल्ली द्वारा पदार्थों का आदान – प्रदान होता है, जो कि सीधे बाह्य वातावरण के सम्पर्क में रहती है इस कारण इसमें परिवहन तंत्र का अभाव होता है। इसमें सामान्य विसरण द्वारा गैसीय विनिमय एवं भोज्य पदार्थों का आवागमन होता है।
प्रश्न 2.
हृदय अवरोध (Heart block) क्या है ?
उत्तर:
जब हिज बण्डल ठीक से कार्य नहीं करते तब आलिंद नोड का हृदय धड़कन आवेग निलय तक नहीं पहुँच पाता जिसके कारण निलय में गति नहीं होती और परिसंचरण रुक जाता है, इस पूरी अवस्था को ही हृदय अवरोध कहते हैं।
प्रश्न 3.
कार्बामीनोहीमोग्लोबिन क्या है ?
उत्तर:
हीमोग्लोबिन, ऊतकों में CO2 से संयुक्त होकर एक यौगिक बनाता है, जिसे कार्बामीनोहीमोग्लोबिन कहते हैं। यह शिराओं के रुधिर को नीला रंग प्रदान करता है।
Hb + CO2 → HbCO2
प्रश्न 4.
थॉम्बोसाइट्स क्या हैं ? ये मनुष्य के शरीर में कहाँ पैदा होते हैं ?
उत्तर:
ये मनुष्य के रुधिर में पायी जाने वाली अनियमित आकार की कणिकाएँ हैं, जो रुधिर के थक्का बनने में सहायक होती हैं। ये अस्थि मज्जा में कोशिकाओं के टूट-फूट से बनती हैं।
प्रश्न 5.
श्वसनीय गैसों का आंशिक दाब किस प्रकार ऑक्सीजन के रुधिर केशिकाओं से ऊतकों में विसरित होने को नियन्त्रित करता है ?
उत्तर:
ऊतकों में श्वसन गैसों (ऑक्सीजन) का आंशिक दाब लगभग 40 mm (अर्थात् कम) होता है। इस कारण O2 हीमोग्लोबिन से अलग होकर ऊतकों में चली जाती है और CO2 रुधिर में मिल जाती है, क्योंकि इसका आंशिक दाब लगभग 46 mm होता है।
प्रश्न 6.
नाड़ी (Pulse) क्या है ? मनुष्य की सामान्य नाड़ी दर कितनी होती है ?
उत्तर:
हृदय की प्रत्येक धड़कन (एक प्रकुंचन तथा एक शिथिलन) के समय धमनी के रुधिर में एक दाब लहर पैदा होती है, जिसे नाड़ी (Pulse) कहते हैं। एक स्वस्थ युवक की नाड़ी एक मिनट में 72 बार लहर दाब पैदा करती है। बच्चों में यह दर 120 तथा वृद्धों में 60 होती है।
प्रश्न 7.
हृदय की स्पन्दन गति का नियमन किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
हृदय की स्पन्दन गति का नियमन तीन विधियों के द्वारा होता है –
- तंत्रिकीय नियमन – इस प्रकार का नियंत्रण मेड्यूला ऑब्लांगेटा में उपस्थित कार्डियक केन्द्र द्वारा होता है।
- हॉर्मोनल नियमन – थायरॉक्सिन एवं ऐड्रीनेलिन हॉर्मोन स्वतन्त्र रूप से हृदय की धड़कन को नियंत्रित करते हैं।
- रासायनिक नियमन – ऐसा नियंत्रण रुधिर में उपस्थित ऐसीटिल कोलीन नामक रासायनिक पदार्थ के द्वारा होता है।
प्रश्न 8.
धमनियों की दीवार, शिराओं की अपेक्षा मोटी होती है, क्यों?
उत्तर:
हृदय में होने वाले क्रमिक स्पंदनों के कारण रुधिर रुक-रुक कर अधिक दाब के साथ धमनियों में बहता रहता है। इसी कारण धमनियों की दीवार, शिरा की अपेक्षा मोटी होती है।
प्रश्न 9.
पेरिकार्डियल द्रव के दो कार्य लिखिये।
उत्तर:
- पेरिकार्डियल द्रव हृदय को बाहरी धक्कों से बचाता है।
- यह द्रव हृदय को सूखने व रगड़ से बचाता है।
प्रश्न 10.
रुधिर वाहिकाओं में बहते रुधिर में थक्का नहीं बनता, क्यों?
उत्तर:
रुधिर में प्रतिजामन पाया जाता है। संयोजी ऊतक की मास्ट कोशिकाएँ हिपेरीन नामक एक संयुक्त पॉलीसैकेराइड मुक्त करती हैं जो रुधिर को रुधिर वाहिकाओं में जमने से रोकता है।
प्रश्न 11.
हीमोसील क्या है, यह किसमें पाया जाता है ?
उत्तर:
ऑर्थोपोडा एवं मोलस्का वर्ग के जन्तुओं में रुधिर बंद नलिकाओं में न बहकर पूरी देहगुहा में स्वतंत्र रूप से बहता है इस प्रकार की देहगुहा को, जिसमें रुधिर भरी रहती है, रुधिर गुहा या हीमोसील कहते हैं।
शरीर द्रव तथा परिसंचरण निष्कासन लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निलय शिथिलन के समय रक्त आलिन्द से निलय में क्यों आ जाता है ?
उत्तर:
निलय शिथिलन के समय फैल जाता है, जिसके कारण इसकी गुहा का आयतन बढ़ जाता है। फलतः इसके अंदर का दाब धमनियों की तुलना में कम हो जाता है, जिससे धमनियों का रुधिर निलय गुहा में आने के प्रयास में इनके अर्द्ध-चन्द्राकर कपाट को बन्द कर देता है।
इन कपाटों के बन्द होने के बावजूद भी निलय शिथिलन अवस्था में ही रहते हैं, जिसके कारण इसकी गुहा का दाब कम ही बना रहता है, तब इस दाब को संतुलित करने के लिए आलिन्द-निलय कपाट खुल जाते हैं और रुधिर आलिन्दों से निलय में आने लगता है और गुहा को भर देता है।
अब इसके बाद निलय संकुचित होता है, जिससे इसकी गुहा का रुधिर पुनः धमनियों में चला जाता है। संकुचन के बाद निलय पुनः शिथिलन में आने लगता है। निलय संकुचन तथा शिथिलन का क्रम इस प्रकार एक के बाद एक चलते रहता है।
प्रश्न 2.
रुधिर दाब से आप क्या समझते हैं ? सिस्टोलिक एवं डायस्टोलिक रुधिर दाब को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शरीर में परिवहन करते हुए रुधिर के द्वारा रुधिर वाहिकाओं पर डाले गये दाब को रुधिर दाब (Blood pressure) कहते हैं। इसे दो रूपों में व्यक्त करते हैं सिस्टोलिक दाब-निलय के तीव्र गति से संकुचन के कारण धमनियों में बहते रुधिर का दाब अधिकतम हो जाता है, रुधिर वाहिनियों के इसी अधिकतम रुधिर दाब को सिस्टोलिक रुधिर दाब कहते हैं।
वयस्क व्यक्ति का सिस्टोलिक रुधिर दाब 120 mm. Hg होता है। डायस्टोलिक दाब-जब निलय में शिथिलन होता है, तब रुधिर वाहिनियों का दाब न्यूनतम होता है, रुधिर वाहिनियों के इस न्यूनतम दाब को डायस्टोलिक रुधिर दाब कहते हैं। वयस्क व्यक्ति का डायस्टोलिक दाब 80 mm. Hg होता है।
प्रश्न 3.
धमनी और शिरा में अंतर लिखिए।
उत्तर:
धमनी और शिरा में अंतर –
धमनी (Artery):
- इनके द्वारा रुधिर हृदय से शरीर के अंगों में प्रवाहित होता है।
- इनमें ऑक्सीजनित रुधिर होता है। (केवल फुफ्फुसीय शिरा को छोड़कर)
- इनकी दीवार लचीली और मोटी होती है।
- धमनियाँ गहरे लाल रंग की दिखाई देती हैं, क्योंकि इसमें ऑक्सीजनित रुधिर बहता है।
शिरा (Vein):
- इनके द्वारा रुधिर शरीर के अंगों से हृदय में लाया जाता है।
- इनमें ऑक्सीजन रहित रुधिर बहता है। (केवल फुफ्फुसीय धमनी को छोड़कर)
- इनकी दीवार पतली होती है।
- शिराएँ नीले रंग की होती हैं। यह रंग रक्त में उपस्थित CO2 के कारण होता है।
प्रश्न 4.
खुला तथा बन्द परिसंचरण तंत्र को समझाइए। बन्द परिसंचरण तंत्र के दो लाभ लिखिए।
अथवा
बन्द परिवहन तंत्र का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
बन्द परिसंचरण तंत्र-वह परिसंचरण तंत्र है, जिसमें परिसंचरण करने वाला द्रव चारों ओर से बन्द लचीली रक्त वाहिनियों में बहता है। इस तंत्र में द्रव खुले रूप में अन्तराकोशिकीय अवकाशों में नहीं बहता। जैसे-केंचुआ एवं मनुष्य। खुला परिसंचरण तंत्र-वह परिसंचरण तंत्र है, जिसमें परिसंचरणीय द्रव रक्त वाहिनियों में न बहकर खुले रूप में अन्तराकोशिकीय अवकाशों तथा देह गुहा में बहता है और ऊतकों को परोक्ष रूप से भिगोते रहता है। जैसे – कॉकरोच।
बन्द परिसंचरण तंत्र के लाभ:
- यह परिसंचरण वर्णकयुक्त होता है, जिससे ऑक्सीजन का परिवहन ज्यादा प्रभावी ढंग से होता है।
- यह उत्सर्जी पदार्थों को ज्यादा तीव्रता से बाहर निकालने में सहायता करता है।
- इसकी वाहिनियों में उपस्थित कपाट उल्टे परिवहन को रोकते हैं।
प्रश्न 5.
मानव हृदय में द्विवलनी, त्रिवलनी एवं अर्द्धचन्द्राकार कपाट कहाँ स्थित होते हैं ? इनके कार्य लिखिए।
उत्तर:
द्विवलनी कपाट:
मानव हृदय में द्विवलनी कपाट बायें आलिंद व निलय के मध्य होता है। यह अशुद्ध रुधिर को निलय से आलिंद में जाने से रोकता है। त्रिवलनी कपाट-मानव ह्दय में त्रिवलनी कपाट दाहिने आलिंद व निलय के मध्य होता है। यह रुधिर को निलय से आलिंद में जाने से रोकता हैं। अर्द्ध-चन्द्राकार कपाट-जिस समय से दोनों महाधमनियाँ निकलती हैं वहाँ पर 3-3 की संख्या में होती हैं। ये रुधिर को महाधमनियों से निलयों में जाने से रोकते हैं।
प्रश्न 6.
साइनो ऑरिकुलर (S.A.) नोड तथा ऑरिकुलो वेण्ट्रिकुलर (A.V.) नोड की तुलना चार बिन्दुओं में कीजिए।
उत्तर:
S.A. नोड तथा A.V. नोड की तुलना –
साइनो ऑरिकुलर (S.A.) नोड:
- यह दाँये आलिन्द में स्थित होता है।
- यह हृदय की पूर्णगति का नियन्त्रण करता है।
- इसके उद्दीपन से दोनों आलिन्द संकुचित होते हैं।
- इससे अतिरिक्त शाखाएँ सम्बन्धित नहीं होती।
ऑरिकुलो वेण्ट्रिकुलर (A.V.) नोड:
- यह आलिन्द एवं निलय के सम्पर्क वाले स्थान पर स्थित होता है।
- यह गति नियन्त्रण में आंशिक रूप से मदद करता है।
- इसके उद्दीपन से निलय संकुचित होता है।
- इससे दो अतिरिक्त शाखाएँ संबंधित होती हैं।
प्रश्न 7.
मिट्रल कपाट एवं अर्द्ध-चन्द्राकार कपाट में अंतर स्पष्ट कीजिए
उत्तर:
मिटूल कपाट एवं अर्द्ध-चन्द्राकार कपाट में अंतर –
मिट्रल कपाट (Mitral valve):
- बायाँ आलिन्द निलय छिद्र में मिट्रल कपाट या बाइकस्पिड कपाट पाये जाते हैं।
- मिट्रल कपाट आलिन्द से निलय में रुधिर प्रवाह बनाए रखते हैं परन्तु रुधिर को निलय से आलिन्द में नहीं जाने देते।
अर्द्ध-चन्द्राकारकपाट (Semilunar valve):
- आलिन्द एवं बायाँ निलय के प्रारम्भिक बिन्दु पर अर्द्ध-चन्द्राकार कपाट या ट्राइकस्पिड कपाट पाये जाते हैं।
- अर्द्ध-चन्द्राकार कपाट रुधिर बहाव को दिशात्मक बनाए रखते हैं।
शरीर द्रव तथा परिसंचरण निष्कासन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित के कारण स्पष्ट कीजिए –
- डॉक्टर द्वारा इन्जेक्शन शिराओं में लगाये जाते हैं।
- शिराओं की दीवार में कपाट पाये जाते हैं, जबकि धमनी की दीवार में नहीं। क्यों?
- शिराएँ नीली दिखाई देती हैं, जबकि धमनी लाल।
उत्तर:
(1) डॉक्टर द्वारा इन्जेक्शन शिराओं में लगाये जाते हैं-शिराओं द्वारा रुधिर हृदय में लाया जाता है, जिससे इन्जेक्शन लगाने पर दवा पूरे रुधिर (हृदय) में मिल जाती है एवं धमनियों द्वारा वितरण पूरे शरीर में हो जाता है। शिरा शरीर सतह पर स्थित होती है, जबकि धमनी गहराई में स्थित होती है। यदि धमनी में इन्जेक्शन लगाया जाए तो दवा का प्रभाव केवल उस धमनी क्षेत्र तक ही सीमित रहता है।
(2) शिराओं की दीवार में कपाट पाये जाते हैं, जबकि धमनियों की दीवार में नहीं-शिराओं में रुधिर कम दाब एवं समान गति से प्रवाहित होता है। यदि इसमें कपाट न हो तो रुधिर के विपरीत दिशा में प्रवाहित होने की सम्भावना अधिक होती है । इसे रोकने के लिए शिराओं की दीवार में कपाट पाये जाते हैं। धमनी में रुधिर अधिक दाब एवं झटके के साथ प्रवाहित होता है, जिससे रुधिर के विपरीत दिशा में प्रवाह की सम्भावना कम होती
(3) शिराएँ नीली दिखाई देती हैं, जबकि धमनी लाल-धमनियों में ऑक्सीजनित रुधिर प्रवाहित होता है, जिसका रंग लाल होता है इसलिए धमनी लाल रंग की दिखाई देती है। शिराओं में अनॉक्सीकृत रुधिर प्रवाहित होता है, जिसका रंग नीला होता है। इसलिये शिराओं का रंग नीला दिखाई देता है।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित कथनों के कारण स्पष्ट कीजिये –
- दाँये निलय की तुलना में बाँये निलय की दीवार अधिक मोटी होती है।
- आलिन्द की तुलना में बाँये निलय की दीवार अधिक मोटी होती है।
- लसीका, प्लाज्मा की तुलना में कम प्रोटीनयुक्त होती है।
- बन्द परिवहन तंत्र, खुले परिवहन तंत्र की तुलना में श्रेष्ठ हैं।
- सिस्टोल के समय निलय एक बन्द कक्ष होता है।
उत्तर:
(1) दाँये निलय की तुलना में बाँये निलय की दीवार अधिक मोटी होती है-दाँये निलय में अशुद्ध रुधिर पाया जाता है। पल्मोनरी धमनी में रुधिर प्रवाह के लिए दाँये निलय में कम दाब की आवश्यकता होती है कम दाब सहन करने में दायें निलय की दीवार सक्षम होती है। (शेष के लिए (2) भी देखें)
(2) आलिन्द की तुलना में बाँये निलय की दीवार अधिक मोटी होती है-बाँये निलय में रुधिर दाब अधिक होता है, जो कि पूरे शरीर में रुधिर प्रवाह को बनाए रखता है। इस रुधिर दाब को सहन करने के लिए बाँये निलय की दीवार अधिक मोटी होती है।
(3) लसीका, प्लाज्मा की तुलना में कम प्रोटीनयुक्त होती है-लसीका में उपस्थित केशिका भित्ति (Capillary wall) अपारगम्य (Impermeable) होती है। इस कारण लसीका में प्लाज्मा की तुलना में प्रोटीन की मात्रा कम पाई जाती है।
(4) बन्द परिवहन तंत्र, खुले परिवहन तंत्र की तुलना में श्रेष्ठ है-खुले परिवहन तंत्र में रुधिर बन्द नलियों में नहीं प्रवाहित होता है। रुधिर हीमोसील में पाया जाता है एवं सीधे अंगों के सम्पर्क में आता है। खुले परिवहन में रुधिर दाब अल्प होता है। जैसे-तिलचट्टा, घोंघा। बन्द परिवहन में रुधिर धमनी, केशिका, शिरा एवं हृदय से घिरा रहता है।
बंद परिवहन उच्च श्रेणी के जन्तुओं में पाया जाता है। इस परिवहन में रुधिर बन्द नलियों के द्वारा तेजी से प्रवाहित होता है एवं अल्प समय में यह फिर से हृदय में वापस आ जाता है। इस प्रकार शरीर के ऊतकों में पदार्थों का शीघ्रता से आदान-प्रदान होता है। इस प्रकार खुले परिवहन तंत्र में इस प्रकार का नियन्त्रण नहीं होता है। इस कारण बन्द परिवहन खुले परिवहन की तुलना में श्रेष्ठ है।
(5) सिस्टोल के समय निलय एक बन्द कक्ष होता है-निलय सिस्टोल के समय निलय में दाब आलिन्द की तुलना में अधिक होता है इस कारण रुधिर आलिन्द से निलय में आता है। एट्रियो वेण्ट्रिकुलर कपाट बन्द हो जाने से रुधिर का प्रवाह विपरीत दिशा में नहीं हो पाता है। निलय दाब, पल्मोनरी धमनी दाब की तुलना में कम होने के कारण अर्द्ध-चन्द्राकार कपाट (Semilunar valve) बन्द हो जाते हैं। इस प्रकार निलय बन्द कक्ष के रूप में संकुचित होता है।
प्रश्न 3.
रक्तदान कौन तथा किसे कर सकता है ? रक्तदान करते समय क्या सावधानी बरतनी चाहिये?
उत्तर:
रक्तदान मुख्यतः रक्त समूह पर निर्भर होता है अत:
- A रक्त समूह के व्यक्ति का रुधिर A एवं AB वर्ग के व्यक्ति को दिया जा सकता है।
- B वर्ग का व्यक्ति B एवं AB रक्त समूह वाले व्यक्ति को रक्त दे सकता है।
- AB वर्ग का व्यक्ति केवल AB रक्त समूह वाले व्यक्ति को ही रक्त दे सकता है।
- O वर्ग का व्यक्ति सार्वत्रिक दाता है, परन्तु यह केवल O रक्त समूह का रक्त ही ले सकता है।
इसी प्रकार AB रक्त समूह वाले व्यक्ति को सभी रक्त समूह वाले व्यक्ति का रक्त दिया जा सकता है। अतः इसे सार्वत्रिक प्राप्यक कहते हैं।
रक्तदान में सावधानियाँ (Precautions for blood donation):
- रक्त दान के समय सर्वप्रथम दाता एवं ग्राह्य व्यक्ति के रक्त समूह की भली-भाँति जाँच करवा लेना चाहिए ताकि ऐग्लूटिनेशन की समस्या न आये।
- आजकल कई प्रकार के घातक रोग रक्त के माध्यम से फैलते हैं । अत: दाता व्यक्ति के रुधिर का HIV परीक्षण एवं हिपेटाइटिस विषाणु का परीक्षण अनिवार्य रूप से करने के पश्चात् ही रुधिर दान एवं आधान करना चाहिए।
- एक व्यक्ति को एक बार में अधिकतम 500 ml रुधिर ही दान करना चाहिए।
- वर्ष में दो बार से अधिक रक्तदान नहीं करना चाहिए।
- रक्तदाता पूर्णरूप से स्वस्थ होना चाहिए।
- समस्त उपकरण पूर्णरूप से निजीकृत होना चाहिए।
प्रश्न 4.
मनुष्य के हृदय रोगों का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
मनुष्य के हृदय में होने वाले प्रमुख रोग निम्नलिखित हैं –
(1) निलयी तन्तुकता (Ventricular fibrillation):
इस रोग में निलय का प्रत्येक भाग अलग-अलग संकुचित होता है।
(2) कपाटीय रोग (Valvular disease):
वह रोग है, जिसमें कपाटों की खराबी के कारण हृदय में रुधिर उल्टा बहने लगता है। इस रोग को ऑपरेशन द्वारा ठीक किया जा सकता है।
(3) एन्जाइना (Angina):
यह वह रोग है, जिसमें थक्का बनने या कोरोनरी धमनी के संकुचन के कारण हृदय की भित्ति को ठीक से रुधिर प्राप्त नहीं होता और सीने तथा कन्धे में तेज दर्द होता है।
(4) मायोकार्डियल इनफ्रैक्शन (Myocardial infraction):
जब कोरोनरी धमनी में अवरोध के कारण हृदय पेशियों को पर्याप्त रुधिर प्राप्त नहीं होता तब ये क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और अपना कार्य पूरी क्षमता से नहीं कर पाती, इस अवस्था को मायोकार्डियल इनफ्रैक्शन या हृदय आघात कहते हैं।
(5) रिामैटिक हृदय रोग (Rheumatic heart disease);
इस रोग में जीवाणु (Streptococcus viridans) के संक्रमण के कारण हृदय के कपाट ठीक से कार्य नहीं कर पाते।
(6) पेरिकार्डियोटिस (Pericardiotis):
इसमें जीवाणु संक्रमण के कारण हृदयावरण में सूजन आ जाती है और हृदय का आकार बड़ा दिखाई देने लगता है तथा इसे दबाव में काम करना पड़ता है।
प्रश्न 5.
निवाहिका तंत्र किसे कहते हैं ? मनुष्य के यकृत निवाहिका तंत्र का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
उन शिराओं को जो रुधिर को सीधे हृदय में न लाकर किसी अन्य अंग में केशिकाओं का जाल बनाती हैं, निवाहिका शिराएँ कहलाती हैं। इन शिराओं से बने तंत्र को निवाहिका तंत्र (Portal system) कहते है।
मनुष्य का यकृतीय निवाहिका तंत्र (Hepatic Postcaval portal system of man):
मनुष्य के यकृतीय निवाहिका तंत्र की शिराएँ आहारनाल की विविध भागों से रुधिर एकत्रित कर सीधे हृदय में न जाकर यकृत में रुधिर ले जाती हैं। यकृत में आया यह रुधिर एक जोड़ी रुधिर शिराओं के माध्यम से पश्च शिरा में जाता है, जो इसे हृदय में पहुँचा देती है।
चूँकि आहारनाल से रुधिर लाने वाली शिराएँ यकृत में आकर समाप्त होती हैं। इस कारण इस निवाहिका तन्त्र को यकृतीय निवाहिका तन्त्र कहते हैं तथा इन शिराओं को यकृत निवाहिका शिराएँ कहते हैं। इस तन्त्र में निम्नलिखित शिराएँ सम्मिलित होती हैं –
- लिनियोगैस्ट्रिक शिरा (Lineogastric vein) – यह शिरा आमाशय की दीवार तथा प्लीहा से रुधिर लाती हैं।
- ड्यूओडिनल शिरा (Duodenal vein) – यह ड्यूओडिनम से रुधिर लाती है।
- अग्र आन्त्र योजनी शिरा (Anterior mesenteric vein) – यह शिरा छोटी आँत, सीकम तथा कोलन से रुधिर एकत्रित करती है।
- पश्च आन्त्र योजनी शिरा (Posterior mesenteric vein) – यह शिरा मलाशय एवं गुदा से रुधिर लाती है।
प्रश्न 6.
दोहरा परिवहन से क्या समझते हो? मनुष्य में दोहरा परिवहन का आरेख चित्र सहित वर्णन कीजिए।
अथवा
मनुष्य में किस प्रकार का परिसंचरण तंत्र होता है ? धमनी व शिरा में कोई चार अंतर लिखिये।
उत्तर:
दोहरा परिवहन (Double circulation):
ऐसा परिवहन जिसके एक चक्र में रुधिर हृदय से दो बार प्रवाहित होता है, उसे दोहरा परिवहन कहते हैं। पहले शरीर का ऑक्सीजनविहीन रुधिर महाशिराओं द्वारा हृदय में लाया जाता है, वहाँ से यह फेफड़ों में जाता है, वहाँ से ऑक्सीजनयुक्त रक्त एक बार पुनः हृदय में आता है तब इसे सम्पूर्ण शरीर में वितरित किया जाता है। स्तनधारियों के हृदय में दोहरा परिवहन पाया जाता है। दोहरे परिवहन में दो प्रकार के परिवहन पाये जाते हैं –
- सिस्टेक परिवहन
- पल्मोनरी परिवहन।
(a) मिसिस्टेमिक परिवहन (Systemic circulation) – यह परिवहन शरीर के संपूर्ण अंगों से संबंधित है।
(b) पल्मोनरी परिवहन (Pulmonary circulation) – इस प्रकार का परिवहन केवल फेफड़ों (Lungs) से संबंधित है।
स्तनधारियों में शुद्ध एवं अशुद्ध रुधिर आपस में नहीं मिल पाता, क्योंकि निलय दो कक्षों में विभाजित रहता है। उभयचर एवं सरीसृप में निलय के एक कक्षीय होने के कारण शुद्ध एवं अशुद्ध रुधिर आपस में मिल जाता है। अग्र एवं पश्च महाशिरा द्वारा लाया गया रुधिर दाँये आलिन्द में पहुँचता है। दाँये आलिन्द का रुधिर पल्मोनरी धमनी द्वारा फेफड़ों तक पहुँचता है।
पल्मोनरी शिरा द्वारा रुधिर बाँये आलिन्द (शुद्ध) में आता है। बाँयें आलिन्द से रुधिर निलय में पहुँचता है। निलय से रुधिर धमनियों द्वारा सम्पूर्ण शरीर में पहुँचाया जाता है। स्तनधारियों में शुद्ध रुधिर बाँये आलिन्द एवं बाँये निलय तथा अशुद्ध रुधिर दाँये आलिन्द एवं दाँये निलय में पाया जाता है।
दोहरे परिवहन को संक्षिप्त रूप में निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है –
बाँया आलिन्द → बाँया निलय → कैरोटिको सिस्टेमिक धमनी → अन्तरांग → ऊतक → शिराएँ → अग्र एवं पश्च महाशिरा→ दाँया आलिन्द → दाँया निलय → पल्मोनरी महाधमनी → धमनी → फेफड़ा → पल्मोनरी शिरा → बाँया आलिन्द, रुधिर केशिकाएँ ऊतक की प्रत्येक कोशिका तक नहीं जातीं इसलिए रुधिर केशिकाओं से कोशिकाओं तक विविध पदार्थों के आवागमन के लिए कोशिकाओं के अन्तरा कोशिकीय अवकाशों में एक विशिष्ट द्रव पाया जाता है, जिसे लसीका कहते हैं।
वास्तव में यह रुधिर केशिकाओं से छना हुआ रुधिर है जिसमें R.B.Cs. नहीं पायी जाती लेकिन W.B.Cs. पायी जाती है। लसीका भी हमारे शरीर में खुले तंत्र के रूप में बहता है।
टीप:
धमनी (Artery):
- इनके द्वारा रुधिर हृदय से शरीर के अंगों में प्रवाहित होता है।
- इनमें ऑक्सीजनित रुधिर होता है। (केवल फुफ्फुसीय शिरा को छोड़कर)
- इनकी दीवार लचीली और मोटी होती है।
- धमनियाँ गहरे लाल रंग की दिखाई देती हैं, क्योंकि इसमें ऑक्सीजनित रुधिर बहता है।
शिरा (Vein):
- इनके द्वारा रुधिर शरीर के अंगों से हृदय में लाया जाता है।
- इनमें ऑक्सीजन रहित रुधिर बहता है। (केवल फुफ्फुसीय धमनी को छोड़कर)
- इनकी दीवार पतली होती है।
- शिराएँ नीले रंग की होती हैं। यह रंग रक्त में उपस्थित CO2 के कारण होता है।
प्रश्न 7.
स्तनियों के हृदय की रचना बताइए।
अथवा
हृदय की संरचना एवं कार्यविधि का वर्णन कीजिए।
अथवा
हृदय की खड़ी काट का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
हृदय की स्थिति (Position of Heart):
हृदय वक्षगुहा में बाँयी ओर दोनों फेफड़ों के मध्य में स्थित होता है। यह 12 सेमी लम्बा एवं 9 सेमी चौड़ा होता है। हृदय की बाह्य संरचना-हृदय पेरिकार्डियम गुहा में सुरक्षित रहता है। यह पेरिकार्डियम नामक दोहरी झिल्ली द्वारा घिरा रहता है। बाहरी झिल्ली को पेरिकार्डियम एवं भीतरी झिल्ली को ऐपिकार्डियम झिल्ली कहते हैं।
पेरिकार्डियम गुहा में पेरिकार्डियम द्रव पाया जाता है, जो कि हृदय को नम बनाये रखता है एवं बाहरी आघात व घर्षण से बचाता है। ऐम्फिबिया, रेप्टेलिया में हृदय तीन एवं पक्षी, मैमेलिया में हृदय चार कक्षों में विभाजित होता है। हृदय में 2 आलिन्द (Auricle) एवं 2 निलय (Ventricle) पाये जाते हैं।
हृदय की आन्तरिक संरचना:
हृदय पेशियों द्वारा हृदय का मध्य स्तर बना होता है, जिसे मायोकार्डियम (Myocardium) कहते हैं। दाँये एवं बाँये आलिन्दों को अलग करने वाली पट्टी को अन्तरा-आलिन्द पट्टी (Inter Auricular Septum) कहते हैं। अन्तरा आलिन्द पट्टी के पिछले भाग पर एक छोटा अण्डाकार गड्ढा होता है, जिसे फोसा-ओवेलिस (Fossa-ovalis) कहते हैं। पश्च महाशिरा के छिद्र से फोसा ओवेलिस तक एक झिल्लीनुमा संरचना पायी जाती है, जिसे यूस्टेकियन कपाट (Eustachian valve) कहते हैं। बाँयी अग्र महाशिरा के छिद्र पर थीबेसियन कपाट (Thebasian valve) पाया जाता है।
दोनों आलिन्दों को पृथक् करने वाली पट्टी को अन्तरा-निलय पट्टी (Intra-ventricular septum) कहते हैं। बाँये निलय की दीवार दाँये निलय की तुलना में काफी मोटी होती है। आलिन्द एवं निलय के बीच आलिन्द निलय छिद्र (Auriculo – ventricular aperture) पाया जाता है। दाँये आलिन्द निलय छिद्र में तीन वलय वाले ट्राइकस्पिड कपाट (Tricuspid valve) पाये जाते हैं।
बाँये आलिन्द निलय छिद्र में दो वलय वाले कपाट पाये जाते हैं, जिसे बाइकस्पिड कपाट (Bicuspid valve) कहते हैं। बाँये निलय से कैरोटिकोसिस्टेमिक चा (Carotico-systemic arch) एवं दाँये निलय से पल्मोनरी चाप निकलता है। इन चापों में अर्द्ध-चन्द्राकार कपाट (Semilunar valve) पाये जाते हैं। भ्रूण अवस्था में डक्टस आर्टिरिओसिस (Ductus Arteriosis) होती है, जो कि भ्रूणावस्था की समाप्ति के साथ खत्म हो जाती है।
प्रश्न 8.
हृदय की कार्यविधि का वर्णन कीजिये।
अथवा
मनुष्य के हृदय की क्रियाविधि समझाइए।
उत्तर:
हृदय की कार्यविधि-हृदय की पम्पिन्ग क्रिया उसकी पेशीयुक्त भित्तियों के संकुचन पर निर्भर करती है। आलिन्द तथा निलय का एकान्तरित संकुचन एवं शिथिलन का कार्य चलता रहता है।
(1) आलिंद संकुचन:
हृदय में संकुचन एवं शिथिलन का कार्य दाँये आलिन्द की भीतरी दीवार पर स्थित साइनोऑरिकुलर नोड (S.A. Node) द्वारा प्रारम्भ होता है। संकुचन क्रिया आलिन्द से प्रारम्भ होती है और सबसे पहले दोनों आलिन्द सिकुड़ते हैं एवं इनका रक्त अपने – अपने तरफ के ऑरिकुलो वेण्ट्रिकुलर छिद्र द्वारा दाँये और बाँये निलय में आ जाता है।
वास्तव में आलिन्द में रक्त भरते ही साइनोऑरिकुलर नोड से संकुचन तरंग उठती है। यह संकुचन तरंग सम्पूर्ण आलिन्द में फैल जाती है, इसी कारण दोनों आलिन्द एक साथ सिकुड़ते हैं। आलिन्द में संकुचन समाप्त होने के बाद ये फिर अपनी पहली जैसी स्थिति में आना प्रारम्भ करते हैं। जैसे-जैसे शिथिलन अधिक होता जाता है, इसमें शिराओं से रक्त आता जाता है।
निलय में रक्त भर जाने के बाद इसमें आलिन्द की अपेक्षा अधिक तेजी से संकुचन होता है, जिससे इनमें भरे रक्त पर भी दबाव पड़ता है। निलय का संकुचन इसके संकुचन केन्द्र आलिन्द-निलय नोड (A.V. Node) जो अन्तः आलिन्द पट के करीब दायें आलिन्द की दीवार पर पाया जाता है, से संकुचन तरंगें प्रारम्भ होती हैं और यहाँ से ये तरंगें दोनों निलय की दीवारों में फैल जाती हैं।
(2) निलय संकुचन:
इसके बाद दोनों निलय एक साथ संकुचित होते हैं। संकुचन के फलस्वरूप निलय में एकत्रित रुधिर पर दबाव पड़ता है, रक्त के दबाव से आलिन्द निलय छिद्रों पर पाये जाने वाले ट्राइकस्पिड और बाइकस्पिड वाल्व खिंचकर इन छिद्रों को बन्द कर देते हैं, जिससे रुधिर आलिन्द में वापस नहीं जा पाता। इस प्रकार दायें निलय का पूर्ण ऑक्सीजन विहीन रुधिर पल्मोनरी चाप के प्रवेश द्वार पर लगे हुए सेमील्यूनर वाल्व को धकेलता हुआ पल्मोनरी चाप में चला जाता है तथा बायें निलय का रुधिर कैरोटिड सिस्टेमिक ऐओर्टा में चला जाता है।
(3) निलय शिथिलन:
निलय के फैलने या प्रारम्भिक अवस्था में आने को निलय शिथिलन कहते हैं । निलय शिथिलन निलयों के फैलने के कारण धमनियों के अर्द्ध-चन्द्राकार कपाट बन्द हो जाते हैं और आलिन्द-निलय कपाट खुल जाते हैं तथा आलिन्दों का रुधिर निलयों में आ जाता है। इसके बाद पुनः आलिन्द संकुचन की क्रिया होती है । इस पूरी क्रिया का नियन्त्रण मस्तिष्क में स्थित कार्डियक केन्द्र होता है।
प्रश्न 9.
हृदय स्पन्दन की सामान्य गति का नियन्त्रण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
हृदय स्पन्दन की सामान्य गति का नियन्त्रण:
हृदय स्पन्दन की सामान्य गति का नियन्त्रण दाहिने आलिन्द के ऊपरी भाग में स्थित ऊतकों के एक समूह द्वारा होता है, जिसे शिरा आलिन्द नोड (S.A. Node) कहते हैं। हृदय गति पर नियन्त्रण करने के कारण ही इसे हृदय गति निर्धारक कहते हैं।
ठीक ऐसा ही एक नोड आलिन्द और निलय के पट पर स्थित होता है, जिसे आलिन्द निलय नोड (A.V. Node) कहते हैं। दोनों नोड पेशियों, तन्त्रिका तन्तुओं और तन्त्रिका कोशिकाओं के बने होते हैं। आलिन्द निलय नोड (A.V. Node) से दो शाखाएँ निकलकर दोनों निलयों को जाती हैं, जिन्हें हिज बण्डल या पुरकिन्जे तन्तु कहते हैं।
हृदय स्पन्दन का आवेग शिरा आलिन्द नोड (S.A. Node) से हमेशा विद्युत् चुम्बकीय तरंगों के रूप में निकलता रहता है। ये तरंगें जिन पेशियों से गुजरती हैं, वे संकुचित हो जाती हैं। जब ये तरंगें आलिन्द निलय नोड (A.V. Node) पर पहुँचती हैं तो यह उत्तेजित होकर इस आवेग को निलयों को पहुँचा देता है। इन तरंगों के कारण ही पहले आलिन्द संकुचित होता है, जिससे रुधिर आलिन्द से निलय में चला जाता है।
इसके बाद निलय संकुचित होता है। जब निलय संकुचित होता है, तब रुधिर धमनियों से होता हुआ शरीर के विविध भागों को चला जाता है। जब आलिन्द शिथिल रहता है तब निलय संकुचित लेकिन जब निलय शिथिल रहता है, तो आलिन्द संकुचित अवस्था में रहता है। यह क्रम हमेशा चलता रहता है। शिरा आलिन्द नोड (S.A. Node) का नियन्त्रण मेड्यूला ऑब्लांगेटा में स्थित एक नियन्त्रण केन्द्र से होता है, जिसे कार्डियक सेण्टर कहते हैं।
इस केन्द्र में दो भाग होते हैं, पहला भाग अर्थात् कार्डियो निरोधक भाग वैगस तन्त्रिका द्वारा अपने आवेगों को शिरा आलिन्द नोड (S.A. Node) को जबकि दूसरा भाग सिम्पैथिटिक तन्त्रिका द्वारा अपने आवेगों को शिरा आलिन्द नोड (S.A. Node) को भेजता रहता है। पहला भाग हृदय गति को धीमा तथा दूसरा तेज करता है। इसके अलावा थायरॉक्सिन, ऐड्रीनेलीन तथा ऐसीटिल कोलीन हॉर्मोन व कुछ रसायन भी हृदय स्पन्दन को प्रभावित करते हैं।