MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 21 तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय NCERT प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्नलिखित संरचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए –
- मस्तिष्क
- नेत्र
- कर्ण।
उत्तर:
(i) मस्तिष्क (Brain):
मस्तिष्क की संरचना (Structure of Brain)-मस्तिष्क को मुख्य तीन भागों में विभाजित किया गया है
(A) अग्रमस्तिष्क (Fore Brain):
यह प्रमस्तिष्क (Cerebrum) एवं हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) का बना होता है –
1. प्रमस्तिष्क (Cerebrum):
यह सम्पूर्ण मस्तिष्क का 2 / 3 भाग होता है और दो गोलार्डों का बना होता है। इसकी सतह पर सल्सी (Sulci) एवं गायरी (Gyri) पाए जाते हैं। दोनों सेरीब्रल गोलार्डों को जोड़ने वाली पट्टी को कॉर्पस कैलोसम कहते हैं। सेरिब्रल गोलार्द्ध चार पिण्डों में विभाजित होता है। सेरिब्रल के बाह्य स्तर को सेरीब्रम कॉर्टेक्स कहते हैं। जिस जीवधारी में सेरिब्रम जितना बड़ा होगा वह उतना ही अधिक बुद्धिमान होगा। मस्तिष्क गोलार्द्ध पर दो पिण्ड पाये जाते हैं, जिन्हें घ्राण पिण्ड कहते हैं।
2. हाइपोथैलेमस (Hypothalamus):
(B) मध्य मस्तिष्क (Mid Brain) – यह भाग सेरीब्रम को सेरीबेलम से जोड़ता है इसमें सेरीब्रल वृन्त पाया जाता है।
(C) पश्च मस्तिष्क (Hind Brain) – यह सेरीबेलम, पोन्स वैरोलाई एवं मेड्यूला आब्लांगेटा से मिलकर बना होता है
- सेरीबेलम (Cerebellum) – मस्तिष्क का पिछला भाग है। इसका भार 5 औंस होता है। इसमें किसी प्रकार की गुहा नहीं पाई जाती है।
- पोन्स वैरोलाई (Pons varolli) – यह तंत्रिका तन्तुओं से बनी पुल के समान संरचना है जो सेरिबेलम के किनारों को जोड़ती है।
- मेड्यूला आब्लांगेटा-यह मस्तिष्क का पिछला भाग है इसमें गुहा पाई जाती है। यह सेरिबेलम के नीचे स्थित होता है।
(ii) नेत्र (Eye):
मानव आँख:
मानव नेत्र एक द्रव से भरी गोलाकार रचना है, जो ऊपर-नीचे पलकों से ढकी रहती है। आँख, जिसे नेत्रगोलक कहते हैं, तीन स्तरों की बनी होती है-
1. दृढ़ पटल (Sclerotic):
यह सबसे बाहरी परत है, जिसका सामने का 1/3 भाग पारदर्शक होता है, इसे कॉर्निया कहते हैं।
2. रक्तक पटल (Choroid):
यह दृढ़ पटल के अन्दर की स्तर है, जो कॉर्निया के पीछे दृढ़ पटल से अलग होकर आइरिस का निर्माण करती है, जिसके मध्य में एक छोटा-सा छिद्र पाया जाता है, जिसे तारा या प्यूपिल कहते हैं। तारे के पीछे एक लेंस सधा रहता है, यही दिखाई देने वाली वस्तु की तस्वीर बनाता है।
3. दृष्टि पटल (Retina):
यह आँख कीb कोरोइड सबसे अन्दर की स्तर है। जब प्रकाश की किरणें दृढ़ पटल लेंस से होकर आती हैं तो दिखाई देने वाली वस्तु पीत बिन्द सिलियरी मांसपेशियाँ जलीय ध्रुव का उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है।
चूँकि कॉचाभ द्रव – कॉर्निया रेटिना संवेदी कोशिकाओं की बनी होती है, जिससे अन्ध बिन्दु पुतली आइरिस इस प्रकार प्रतिबिम्ब बनने पर यह उद्दीप्त हो जाती है और इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहँचा नेत्र लेंस देती है, जिससे मस्तिष्क इस प्रतिबिम्ब के माध्यम से सामने वाली वस्तु को देखता है। दृष्टि पटल दो स्तरों की बनी होती है –
(i) रंगा स्तर:
यह घनाकार कोशिकाओं की बनी एक कोशिका मोटी बाहरी स्तर होती है। इसकी कोशिकाओं में मिलैनिन नामक वर्णक पाया जाता है।
(ii) संवेदी स्तर-यह संवेदी कोशिकाओं की बनी भीतरी स्तर होती है, जो तीन उप-स्तरों की बनी होती है
- शलाका एवं शंकु स्तर – यह स्तर रंगा युक्त शलाका एवं शंकु कोशिकाओं की बनी होती है। ये प्रकाश एवं अंधकार उद्दीपन को ग्रहण करती हैं।
- द्विध्रुवीय स्तर – यह द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी स्तर होती है।
- गुच्छकीय स्तर – यह भी द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी होती है, जिनके ऐक्सॉन मिलकर दृष्टि तन्त्रिका का निर्माण करते हैं।
(iii) कर्ण (Ears):
मनुष्य के कर्ण अत्यधिक विकसित प्रकार के होते हैं एवं यह निम्नलिखित तीन भागों से मिलकर बना होता है।
- बाह्य कर्ण
- मध्य कर्ण
- अन्तः कर्ण।
1. बाह्य कर्ण (External ear):
यह सिर के पार्श्व में पंखा के समान रचना है जो ध्वनि तरंगों को ग्रहण करती है और एक नली द्वारा मध्य कर्ण से जुड़ी होती है इस नली को कहते हैं। इसके अन्त में टिम्पैनिक झिल्ली स्थित होती है।
2. मध्य कर्ण (Middle ear):
इसमें टिम्पैनिक गुहा नामक एक गुहा पाई जाती है। यह गुहा यूस्टेकियन नलिका द्वारा ग्रसनी में खुलती है। टिम्पैनिक गुहा अन्तः कर्ण से दो छोटे-छोटे छिद्रों –
- फेनेस्ट्रा ओवेलिस
- फेनेस्ट्रा रोटेण्डम से जुड़ी रहती है।
फेनेस्ट्रा ओवेलिस एवं टिम्पेनिक गुहा के बीच तीन प्रकार की अस्थियाँ पाई जाती हैं –
- मैलियस (Malleus) – हथौड़े के समान
- इन्कस (Incus) – निहाई के समान
- स्टेप्स (Stapes) – रकाब के समान। ये अस्थियाँ टिम्पैनिक गुहा में लिगामेन्ट द्वारा लटकी रहती हैं एवं ध्वनि तरंगों का संवहन करती हैं।
3. आन्तरिक कर्ण (Internal ear):
अन्तः कर्ण को मेम्ब्रेनस लेबरिन्थ (Membranous Labyrinth) भी कहते हैं। मेम्ब्रेनस लेबरिन्थ के चारों ओर पेरीलिम्फ (Perilymph) पाया जाता है। लेबिरिन्थ के अन्दर एण्डोलिम्फ (Endolymph) पाया जाता है। इसी एण्डोलिम्फ में आटोलिथ (Otolith) पाए जाते हैं। आन्तरिक कर्ण में यूट्रीकुलस एवं सैकुलस (Utriculus and Sacculus) पाए जाते हैं।
यूट्रीकुलस में तीन अर्धवृत्ताकार नलिकाएँ पाई जाती हैं। सैकुलस का पिछला भाग कुण्डलित होकर एक नलिकाकार संरचना बनाता है, जिसे कॉक्लिया (Cochilea) कहते हैं।कॉक्लिया नलिका के बाहर की गुहा को स्केला वेस्टीबुलाई (Scala vestibuli) कहते हैं।
सबसे नीचे की गुहा को स्केला टिम्पैनी (Scala tympani) और इन दोनों के मध्य की गुहा को स्केलामीडिया कहते हैं। यूट्रीकुलस, सैकुलस एवं अर्द्ध वृत्ताकार नलिका में एण्डोलिम्फ पाया जाता है। कॉक्लियर नलिका में एक संवेदी उभार पाया जाता है, जिसे कॉरटाई का अंग (Organ of Corti) कहते हैं। इसमें उपस्थित संवेदी रोम (Sensory hairs) श्रवण संवेदना उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित की तुलना कीजिए –
- केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र और परिधीय तंत्रिका तंत्र।
- स्थिर विभव और सक्रिय विभव।
- कोराइड और रेटिना।
उत्तर:
(1) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र और परिधीय तंत्रिका तंत्र में अंतर –
(i) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central Nervous System, CNS):
इसके अन्तर्गत मस्तिष्क (Brain) एवं मेरुरज्जु (Spinal Cord) आते हैं। इनकी उत्पत्ति भ्रूण के बहिचर्म (Ectoderm) से बनने वाली तन्त्रिकीय नाल (Neural tube) से होती है। तन्त्रिका तंत्र के इस भाग में संवेदनाओं के संसाधन (Processing of information) का कार्य होता है।.
(ii) परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral Nervous System, PNS):
इसके अन्तर्गत सभी तंत्रिकाएँ (Nerves) तथा तंत्रिका परिपथ (Nerve pathways) आते हैं । यह केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु) को शरीर के विभिन्न भागों में स्थित संवेदांगों (Sensory Organ or Receptors) को अपवाहकों (Effectors) से जोड़कर शरीर में एक सूचना संचार प्रणाली (Communication System) स्थापित करता है।
(2) स्थिर विभव और सक्रिय विभव में अन्तर –
(i) स्थिर विभव (Resting Potential):
विश्राम अवस्था में प्लाज्मा झिल्ली में विद्युत् विभव के अन्तर को प्लाज्मा झिल्ली का स्थिर विभव कहा जाता है। प्लाज्मा झिल्ली में -70mV का विभव उत्पन्न होता है, जिसे स्थिर कला विभव कहा जाता है।
(ii) सक्रिय विभव (Active Potential):
जब भी एक्सॉन के किसी भी भाग में उद्दीपन (Stimulation) मिलता है, तब एक्सोलिमा या बाह्य प्लाज्मा झिल्ली का निध्रुवण (Depolarization) हो जाता है और उस स्थान पर विभवान्तर घटकर 30mv रह जाता है, इसे क्रियात्मक कला विभव (Action Membrane Potential) कहते हैं।
(3) कोराइड और रेटिना (Choroid and Retina):
(ii) नेत्र (Eye):
मानव आँख:
मानव नेत्र एक द्रव से भरी गोलाकार रचना है, जो ऊपर-नीचे पलकों से ढकी रहती है। आँख, जिसे नेत्रगोलक कहते हैं, तीन स्तरों की बनी होती है-
1. दृढ़ पटल (Sclerotic):
यह सबसे बाहरी परत है, जिसका सामने का 1/3 भाग पारदर्शक होता है, इसे कॉर्निया कहते हैं।
2. रक्तक पटल (Choroid):
यह दृढ़ पटल के अन्दर की स्तर है, जो कॉर्निया के पीछे दृढ़ पटल से अलग होकर आइरिस का निर्माण करती है, जिसके मध्य में एक छोटा-सा छिद्र पाया जाता है, जिसे तारा या प्यूपिल कहते हैं। तारे के पीछे एक लेंस सधा रहता है, यही दिखाई देने वाली वस्तु की तस्वीर बनाता है।
3. दृष्टि पटल (Retina):
यह आँख कीb कोरोइड सबसे अन्दर की स्तर है। जब प्रकाश की किरणें दृढ़ पटल लेंस से होकर आती हैं तो दिखाई देने वाली वस्तु पीत बिन्द सिलियरी मांसपेशियाँ जलीय ध्रुव का उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है।
चूँकि कॉचाभ द्रव – कॉर्निया रेटिना संवेदी कोशिकाओं की बनी होती है, जिससे अन्ध बिन्दु पुतली आइरिस इस प्रकार प्रतिबिम्ब बनने पर यह उद्दीप्त हो जाती है और इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहँचा नेत्र लेंस देती है, जिससे मस्तिष्क इस प्रतिबिम्ब के माध्यम से सामने वाली वस्तु को देखता है। दृष्टि पटल दो स्तरों की बनी होती है –
(i) रंगा स्तर:
यह घनाकार कोशिकाओं की बनी एक कोशिका मोटी बाहरी स्तर होती है। इसकी कोशिकाओं में मिलैनिन नामक वर्णक पाया जाता है।
(ii) संवेदी स्तर-यह संवेदी कोशिकाओं की बनी भीतरी स्तर होती है, जो तीन उप-स्तरों की बनी होती है
- शलाका एवं शंकु स्तर – यह स्तर रंगा युक्त शलाका एवं शंकु कोशिकाओं की बनी होती है। ये प्रकाश एवं अंधकार उद्दीपन को ग्रहण करती हैं।
- द्विध्रुवीय स्तर – यह द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी स्तर होती है।
- गुच्छकीय स्तर – यह भी द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी होती है, जिनके ऐक्सॉन मिलकर दृष्टि तन्त्रिका का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए
- तंत्रिका तंतु की झिल्ली का ध्रुवीकरण
- तंत्रिका तंतु की झिल्ली का विध्रुवीकरण
- तंत्रिका तंतु के समांतर आवेगों का संचरण
- रासायनिक सिनैप्स द्वारा तंत्रिका आवेगों का संचरण।
अथवा
तंत्रिकीय आवेग क्या है ? इनका संचरण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
बाह्य तथा आंतरिक परिवर्तनों या उद्दीपनों (Stimuli) का अनुभव संवेदी अंगों द्वारा किया जाता है। इन अंगों की कोशिकाएँ, जो कि संवेदी प्रकृति की होती है, उद्दीपनों को ग्रहण करके उत्तेजित हो जाती हैं और इस उद्दीपन को तन्त्रिका तन्तु में पहुँचा देती हैं, इसी तंत्रिका (Resting form) तन्तु के उद्दीपन को तंत्रिकीय आवेग या प्रेरणा संवेग (Impulse) कहते हैं।
तंत्रिका तन्तु संवेदी (Resting region) अंगों को तंत्रिका तंत्र से जोड़ते हैं और इन आवेगों को विद्युत्-रासायनिक प्रेरणा या तरंगों (Electro chemical impulse or waves) के रूप में तंत्रिका तंत्र को पहुँचा देते हैं। युग्मानुबन्ध (Synapsis) पर आवेगों का संचरण कुछ रासायनिक क्रियाओं और पदार्थों द्वारा नियन्त्रित होता है।
तंत्रिकीय आवेगों का संचरण:
तंत्रिका तन्तुओं में उत्तेजना या आवेग का संचरण जैव विद्युत्-रासायनिक क्रिया के कारण होती है, जिसे क्रिया विभव (Action potential) कहते हैं। Depolarization तंत्रिकीय ऊतकों में आवेगों का संचरण कुछ उपापचयी क्रियाओं द्वारा नियन्त्रित होता है।
तंत्रिका कोशिकाओं के चारों तरफ अन्तराली द्रव (Interstitial fluid) नामक द्रव भरा होता है, जिसमें सोडियम (Na’) तथा पोटैशियम (K’) आयन घुले रहते हैं। सामान्य या विश्रामावस्था में तंत्रिका कोशिका का ऐक्सॉन पोटैशियम आयन के लिए Na’ आयन की अपेक्षा 30 गुना अधिक
पारगम्य होता है, जिसके परिणामस्वरूप Na’ झिल्ली के बाहर अधिक और अंदर कम सान्द्रता में पाया जाता है। बाह्य सतह पर सोडियम आयन की उपस्थिति के कारण यह धनात्मक आवेश युक्त होती है, जबकि आन्तरिक सतह कार्बनिक मूलकों के कारण ऋणात्मक होती है। इस अवस्था में झिल्ली –
(i) ध्रुवीय अवस्था (Polarized) में कही जाती है और इस समय इसका सुप्त विभव 70 mg होता है। जब तक तंत्रिका तन्तु विश्रामावस्था में रहता है दो आयनों की संख्या सन्तुलित रहती है, लेकिन जैसे V ही कोई उद्दीपन आवेग के रूप में ग्रहण किया जाता है, वैसे ही उद्दीपन के स्थान का आयनिक सन्तुलन बिगड़ जाता है, इस अवस्था को स्थानीय उत्तेजनशील अवस्था (Local excitatory state) कहते हैं । इस अवस्था में झिल्ली में
(ii) निधुवण (Depolarization) हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप उत्तेजित आवेग की एक लहर तंत्रिका तन्तु पर क्रम से फैलती जाती है, तंत्रिका तन्तु की इस अवस्था को सक्रिय अवस्था कहते हैं। तंत्रिका तन्तु की सक्रिय अवस्था में पोटैशियम आयन विसरित होकर ऐक्सॉन से बाहर तथा सोडियम आयन अंदर आ जाता है। इस विसरण में सोडियम आयनों के अंदर आने की संख्या पोटैशियम आयनों के बाहर जाने के अनुपात में ज्यादा होती है।
इस घटना के कारण ऐक्सॉन की झिल्ली की सतहों पर आयनों की प्रकृति बदल जाती है। दूसरे शब्दों में, बाहरी सतह पर ऋण तथा आन्तरिक सतह पर धन आयन आ जाते हैं। ये विद्युत्-रासायनिक ऐक्सॉन के द्वारा युग्मानुबन्ध (Synapse) पर पहुँच जाते हैं और वहाँ से इसे पार कर दूसरे न्यूरॉन के डेण्ड्राइट में पहुँच जाते हैं।
इसके बाद पुनर्स्थापन अवस्था (Recovery phase) आती है, जिसमें फिर से ऐक्सॉन की बाहरी सतह पर धन आयन सोडियम आयन के झिल्ली से बाहर आने के कारण स्थापित हो जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के लिए कुछ समय की आवश्यकता पड़ती है, जिसमें तंत्रिका फिर से उत्तेजना को ग्रहण नहीं कर सकती, इस समय को रिफ्रैक्टरी काल (Refractory period) कहते हैं, जो 1/1000 सेकण्ड के बराबर होता है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित का नामांकित चित्र बनाइए –
(1) न्यूरॉन
(2) मस्तिष्क
(3) नेत्र
(4) कर्ण।
उत्तर:
(1) न्यूरॉन
टीप:
(2) मस्तिष्क (Brain):
मस्तिष्क की संरचना (Structure of Brain)-मस्तिष्क को मुख्य तीन भागों में विभाजित किया गया है
(A) अग्रमस्तिष्क (Fore Brain):
यह प्रमस्तिष्क (Cerebrum) एवं हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) का बना होता है –
1. प्रमस्तिष्क (Cerebrum):
यह सम्पूर्ण मस्तिष्क का 2 / 3 भाग होता है और दो गोलार्डों का बना होता है। इसकी सतह पर सल्सी (Sulci) एवं गायरी (Gyri) पाए जाते हैं। दोनों सेरीब्रल गोलार्डों को जोड़ने वाली पट्टी को कॉर्पस कैलोसम कहते हैं। सेरिब्रल गोलार्द्ध चार पिण्डों में विभाजित होता है। सेरिब्रल के बाह्य स्तर को सेरीब्रम कॉर्टेक्स कहते हैं। जिस जीवधारी में सेरिब्रम जितना बड़ा होगा वह उतना ही अधिक बुद्धिमान होगा। मस्तिष्क गोलार्द्ध पर दो पिण्ड पाये जाते हैं, जिन्हें घ्राण पिण्ड कहते हैं।
2. हाइपोथैलेमस (Hypothalamus):
(B) मध्य मस्तिष्क (Mid Brain) – यह भाग सेरीब्रम को सेरीबेलम से जोड़ता है इसमें सेरीब्रल वृन्त पाया जाता है।
(C) पश्च मस्तिष्क (Hind Brain) – यह सेरीबेलम, पोन्स वैरोलाई एवं मेड्यूला आब्लांगेटा से मिलकर बना होता है
- सेरीबेलम (Cerebellum) – मस्तिष्क का पिछला भाग है। इसका भार 5 औंस होता है। इसमें किसी प्रकार की गुहा नहीं पाई जाती है।
- पोन्स वैरोलाई (Pons varolli) – यह तंत्रिका तन्तुओं से बनी पुल के समान संरचना है जो सेरिबेलम के किनारों को जोड़ती है।
- मेड्यूला आब्लांगेटा-यह मस्तिष्क का पिछला भाग है इसमें गुहा पाई जाती है। यह सेरिबेलम के नीचे स्थित होता है।
(3) नेत्र (Eye):
मानव आँख:
मानव नेत्र एक द्रव से भरी गोलाकार रचना है, जो ऊपर-नीचे पलकों से ढकी रहती है। आँख, जिसे नेत्रगोलक कहते हैं, तीन स्तरों की बनी होती है-
1. दृढ़ पटल (Sclerotic):
यह सबसे बाहरी परत है, जिसका सामने का 1/3 भाग पारदर्शक होता है, इसे कॉर्निया कहते हैं।
2. रक्तक पटल (Choroid):
यह दृढ़ पटल के अन्दर की स्तर है, जो कॉर्निया के पीछे दृढ़ पटल से अलग होकर आइरिस का निर्माण करती है, जिसके मध्य में एक छोटा-सा छिद्र पाया जाता है, जिसे तारा या प्यूपिल कहते हैं। तारे के पीछे एक लेंस सधा रहता है, यही दिखाई देने वाली वस्तु की तस्वीर बनाता है।
3. दृष्टि पटल (Retina):
यह आँख कीb कोरोइड सबसे अन्दर की स्तर है। जब प्रकाश की किरणें दृढ़ पटल लेंस से होकर आती हैं तो दिखाई देने वाली वस्तु पीत बिन्द सिलियरी मांसपेशियाँ जलीय ध्रुव का उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है।
चूँकि कॉचाभ द्रव – कॉर्निया रेटिना संवेदी कोशिकाओं की बनी होती है, जिससे अन्ध बिन्दु पुतली आइरिस इस प्रकार प्रतिबिम्ब बनने पर यह उद्दीप्त हो जाती है और इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहँचा नेत्र लेंस देती है, जिससे मस्तिष्क इस प्रतिबिम्ब के माध्यम से सामने वाली वस्तु को देखता है। दृष्टि पटल दो स्तरों की बनी होती है –
(i) रंगा स्तर:
यह घनाकार कोशिकाओं की बनी एक कोशिका मोटी बाहरी स्तर होती है। इसकी कोशिकाओं में मिलैनिन नामक वर्णक पाया जाता है।
(ii) संवेदी स्तर-यह संवेदी कोशिकाओं की बनी भीतरी स्तर होती है, जो तीन उप-स्तरों की बनी होती है
- शलाका एवं शंकु स्तर – यह स्तर रंगा युक्त शलाका एवं शंकु कोशिकाओं की बनी होती है। ये प्रकाश एवं अंधकार उद्दीपन को ग्रहण करती हैं।
- द्विध्रुवीय स्तर – यह द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी स्तर होती है।
- गुच्छकीय स्तर – यह भी द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी होती है, जिनके ऐक्सॉन मिलकर दृष्टि तन्त्रिका का निर्माण करते हैं।
(4) कर्ण (Ears):
मनुष्य के कर्ण अत्यधिक विकसित प्रकार के होते हैं एवं यह निम्नलिखित तीन भागों से मिलकर बना होता है।
- बाह्य कर्ण
- मध्य कर्ण
- अन्तः कर्ण।
1. बाह्य कर्ण (External ear):
यह सिर के पार्श्व में पंखा के समान रचना है जो ध्वनि तरंगों को ग्रहण करती है और एक नली द्वारा मध्य कर्ण से जुड़ी होती है इस नली को कहते हैं। इसके अन्त में टिम्पैनिक झिल्ली स्थित होती है।
2. मध्य कर्ण (Middle ear):
इसमें टिम्पैनिक गुहा नामक एक गुहा पाई जाती है। यह गुहा यूस्टेकियन नलिका द्वारा ग्रसनी में खुलती है। टिम्पैनिक गुहा अन्तः कर्ण से दो छोटे-छोटे छिद्रों –
- फेनेस्ट्रा ओवेलिस
- फेनेस्ट्रा रोटेण्डम से जुड़ी रहती है।
फेनेस्ट्रा ओवेलिस एवं टिम्पेनिक गुहा के बीच तीन प्रकार की अस्थियाँ पाई जाती हैं –
- मैलियस (Malleus) – हथौड़े के समान
- इन्कस (Incus) – निहाई के समान
- स्टेप्स (Stapes) – रकाब के समान। ये अस्थियाँ टिम्पैनिक गुहा में लिगामेन्ट द्वारा लटकी रहती हैं एवं ध्वनि तरंगों का संवहन करती हैं।
3. आन्तरिक कर्ण (Internal ear):
अन्तः कर्ण को मेम्ब्रेनस लेबरिन्थ (Membranous Labyrinth) भी कहते हैं। मेम्ब्रेनस लेबरिन्थ के चारों ओर पेरीलिम्फ (Perilymph) पाया जाता है। लेबिरिन्थ के अन्दर एण्डोलिम्फ (Endolymph) पाया जाता है। इसी एण्डोलिम्फ में आटोलिथ (Otolith) पाए जाते हैं। आन्तरिक कर्ण में यूट्रीकुलस एवं सैकुलस (Utriculus and Sacculus) पाए जाते हैं।
यूट्रीकुलस में तीन अर्धवृत्ताकार नलिकाएँ पाई जाती हैं। सैकुलस का पिछला भाग कुण्डलित होकर एक नलिकाकार संरचना बनाता है, जिसे कॉक्लिया (Cochilea) कहते हैं।कॉक्लिया नलिका के बाहर की गुहा को स्केला वेस्टीबुलाई (Scala vestibuli) कहते हैं।
सबसे नीचे की गुहा को स्केला टिम्पैनी (Scala tympani) और इन दोनों के मध्य की गुहा को स्केलामीडिया कहते हैं। यूट्रीकुलस, सैकुलस एवं अर्द्ध वृत्ताकार नलिका में एण्डोलिम्फ पाया जाता है। कॉक्लियर नलिका में एक संवेदी उभार पाया जाता है, जिसे कॉरटाई का अंग (Organ of Corti) कहते हैं। इसमें उपस्थित संवेदी रोम (Sensory hairs) श्रवण संवेदना उत्पन्न करते हैं।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –
- तंत्रिकीय समन्वयन
- अग्रमस्तिष्क
- मध्यमस्तिष्क
- पश्चमस्तिष्क
- रेटिना
- कर्ण अस्थिकाएँ
- कॉक्लिय
- ऑर्गन ऑफ कॉर्टाई व सिनेप्स।
उत्तर:
(1) तंत्रिकीय समन्वयन:
तंत्रिकीय नियन्त्रण एवं समन्वय एक विशिष्ट नियन्त्रण एवं समन्वयन की क्रिया है, जो केवल जन्तुओं में पायी जाती है और शरीर में स्थित एक विशिष्ट तन्त्र द्वारा संचालित होती है जिसे तन्त्रिका तन्त्र (Nervous system) कहते हैं।
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय के घटक (Components of Nervous Control and Coordination)-तंत्रिकीय नियंत्रण और समन्वय का कार्य मुख्यत: मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु के द्वारा किया जाता है। तंत्रिका तंत्र के शेष भाग इस कार्य में सहायता करते हैं। तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय में निम्नलिखित रचनाएँ या घटक भाग लेते हैं –
(1) संवेदांग (Sense organs):
हमारे शरीर की वे रचनाएँ जो बाहरी अथवा आन्तरिक परिवर्तनों (उद्दीपनों या Stimuli) का अनुभव कराती हैं, ज्ञानेन्द्रियाँ या संवेदांग या ग्राही अंग (Receptors) कहलाती हैं। इस प्रकार ये रचनाएँ उद्दीपनों को ग्रहण करती हैं। त्वचा, आँख, कान, जिह्वा तथा नासावेश्म संवेदांगों के उदाहरण हैं।
(2) संचार तंत्र (Transmitting system):
शरीर में पायी जाने वाली तंत्रिकाएँ इस श्रेणी में आती हैं, जो उद्दीपनों को संवेदी अंगों से मस्तिष्क या मेरुरज्जु तक लाती हैं तथा यहाँ से इनके निर्देशों को कार्यान्वयक अंगों तक ले जाती हैं। पहली प्रकार की तंत्रिकाएँ संवेदी (Sensory) तथा दूसरी प्रकार की तंत्रिकाएँ प्रेरक (Motor) तंत्रिकाएँ कहलाती हैं।
(3) कार्यान्वयक अंग (Effectors):
शरीर की वे रचनाएँ जो मस्तिष्क तथा मेरुरज्ज से प्राप्त निर्देशों को कार्य रूप देती हैं, कार्यान्वयक अंग कहलाती हैं। शरीर की पेशियाँ तथा ग्रन्थियाँ इसके उदाहरण हैं।
(2) अग्रमस्तिष्क:
(A) अग्रमस्तिष्क (Fore Brain):
यह प्रमस्तिष्क (Cerebrum) एवं हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) का बना होता है –
1. प्रमस्तिष्क (Cerebrum):
यह सम्पूर्ण मस्तिष्क का 2 / 3 भाग होता है और दो गोलार्डों का बना होता है। इसकी सतह पर सल्सी (Sulci) एवं गायरी (Gyri) पाए जाते हैं। दोनों सेरीब्रल गोलार्डों को जोड़ने वाली पट्टी को कॉर्पस कैलोसम कहते हैं। सेरिब्रल गोलार्द्ध चार पिण्डों में विभाजित होता है। सेरिब्रल के बाह्य स्तर को सेरीब्रम कॉर्टेक्स कहते हैं। जिस जीवधारी में सेरिब्रम जितना बड़ा होगा वह उतना ही अधिक बुद्धिमान होगा। मस्तिष्क गोलार्द्ध पर दो पिण्ड पाये जाते हैं, जिन्हें घ्राण पिण्ड कहते हैं।
2. हाइपोथैलेमस (Hypothalamus):
(3) मध्यमस्तिष्क:
यह भाग सेरीब्रम को सेरीबेलम से जोड़ता है इसमें सेरीब्रल वृन्त पाया जाता है।
(4) पश्चमस्तिष्क:
यह सेरीबेलम, पोन्स वैरोलाई एवं मेड्यूला आब्लांगेटा से मिलकर बना होता है –
- सेरीबेलम (Cerebellum) – मस्तिष्क का पिछला भाग है। इसका भार 5 औंस होता है। इसमें किसी प्रकार की गुहा नहीं पाई जाती है।
- पोन्स वैरोलाई (Pons varolli) – यह तंत्रिका तन्तुओं से बनी पुल के समान संरचना है जो सेरिबेलम के किनारों को जोड़ती है।
- मेड्यूला आब्लांगेटा-यह मस्तिष्क का पिछला भाग है इसमें गुहा पाई जाती है। यह सेरिबेलम के नीचे स्थित होता है।
(5) रेटिना – उपर्युक्त (NCERT) प्रश्न क्र. 1(ii) का उत्तर देखिये।
नेत्र (Eye):
मानव आँख:
मानव नेत्र एक द्रव से भरी गोलाकार रचना है, जो ऊपर-नीचे पलकों से ढकी रहती है। आँख, जिसे नेत्रगोलक कहते हैं, तीन स्तरों की बनी होती है-
1. दृढ़ पटल (Sclerotic):
यह सबसे बाहरी परत है, जिसका सामने का 1/3 भाग पारदर्शक होता है, इसे कॉर्निया कहते हैं।
2. रक्तक पटल (Choroid):
यह दृढ़ पटल के अन्दर की स्तर है, जो कॉर्निया के पीछे दृढ़ पटल से अलग होकर आइरिस का निर्माण करती है, जिसके मध्य में एक छोटा-सा छिद्र पाया जाता है, जिसे तारा या प्यूपिल कहते हैं। तारे के पीछे एक लेंस सधा रहता है, यही दिखाई देने वाली वस्तु की तस्वीर बनाता है।
3. दृष्टि पटल (Retina):
यह आँख कीb कोरोइड सबसे अन्दर की स्तर है। जब प्रकाश की किरणें दृढ़ पटल लेंस से होकर आती हैं तो दिखाई देने वाली वस्तु पीत बिन्द सिलियरी मांसपेशियाँ जलीय ध्रुव का उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है।
चूँकि कॉचाभ द्रव – कॉर्निया रेटिना संवेदी कोशिकाओं की बनी होती है, जिससे अन्ध बिन्दु पुतली आइरिस इस प्रकार प्रतिबिम्ब बनने पर यह उद्दीप्त हो जाती है और इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहँचा नेत्र लेंस देती है, जिससे मस्तिष्क इस प्रतिबिम्ब के माध्यम से सामने वाली वस्तु को देखता है। दृष्टि पटल दो स्तरों की बनी होती है –
(i) रंगा स्तर:
यह घनाकार कोशिकाओं की बनी एक कोशिका मोटी बाहरी स्तर होती है। इसकी कोशिकाओं में मिलैनिन नामक वर्णक पाया जाता है।
(ii) संवेदी स्तर-यह संवेदी कोशिकाओं की बनी भीतरी स्तर होती है, जो तीन उप-स्तरों की बनी होती है
- शलाका एवं शंकु स्तर – यह स्तर रंगा युक्त शलाका एवं शंकु कोशिकाओं की बनी होती है। ये प्रकाश एवं अंधकार उद्दीपन को ग्रहण करती हैं।
- द्विध्रुवीय स्तर – यह द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी स्तर होती है।
- गुच्छकीय स्तर – यह भी द्विध्रुवीय तन्त्रिका कोशिकाओं की बनी होती है, जिनके ऐक्सॉन मिलकर दृष्टि तन्त्रिका का निर्माण करते हैं।
(6) कर्ण अस्थिकाएँ:
कर्ण (Ears):
मनुष्य के कर्ण अत्यधिक विकसित प्रकार के होते हैं एवं यह निम्नलिखित तीन भागों से मिलकर बना होता है।
- बाह्य कर्ण
- मध्य कर्ण
- अन्तः कर्ण।
1. बाह्य कर्ण (External ear):
यह सिर के पार्श्व में पंखा के समान रचना है जो ध्वनि तरंगों को ग्रहण करती है और एक नली द्वारा मध्य कर्ण से जुड़ी होती है इस नली को कहते हैं। इसके अन्त में टिम्पैनिक झिल्ली स्थित होती है।
2. मध्य कर्ण (Middle ear):
इसमें टिम्पैनिक गुहा नामक एक गुहा पाई जाती है। यह गुहा यूस्टेकियन नलिका द्वारा ग्रसनी में खुलती है। टिम्पैनिक गुहा अन्तः कर्ण से दो छोटे-छोटे छिद्रों –
- फेनेस्ट्रा ओवेलिस
- फेनेस्ट्रा रोटेण्डम से जुड़ी रहती है।
फेनेस्ट्रा ओवेलिस एवं टिम्पेनिक गुहा के बीच तीन प्रकार की अस्थियाँ पाई जाती हैं –
- मैलियस (Malleus) – हथौड़े के समान
- इन्कस (Incus) – निहाई के समान
- स्टेप्स (Stapes) – रकाब के समान। ये अस्थियाँ टिम्पैनिक गुहा में लिगामेन्ट द्वारा लटकी रहती हैं एवं ध्वनि तरंगों का संवहन करती हैं।
3. आन्तरिक कर्ण (Internal ear):
अन्तः कर्ण को मेम्ब्रेनस लेबरिन्थ (Membranous Labyrinth) भी कहते हैं। मेम्ब्रेनस लेबरिन्थ के चारों ओर पेरीलिम्फ (Perilymph) पाया जाता है। लेबिरिन्थ के अन्दर एण्डोलिम्फ (Endolymph) पाया जाता है। इसी एण्डोलिम्फ में आटोलिथ (Otolith) पाए जाते हैं। आन्तरिक कर्ण में यूट्रीकुलस एवं सैकुलस (Utriculus and Sacculus) पाए जाते हैं।
यूट्रीकुलस में तीन अर्धवृत्ताकार नलिकाएँ पाई जाती हैं। सैकुलस का पिछला भाग कुण्डलित होकर एक नलिकाकार संरचना बनाता है, जिसे कॉक्लिया (Cochilea) कहते हैं।कॉक्लिया नलिका के बाहर की गुहा को स्केला वेस्टीबुलाई (Scala vestibuli) कहते हैं।
सबसे नीचे की गुहा को स्केला टिम्पैनी (Scala tympani) और इन दोनों के मध्य की गुहा को स्केलामीडिया कहते हैं। यूट्रीकुलस, सैकुलस एवं अर्द्ध वृत्ताकार नलिका में एण्डोलिम्फ पाया जाता है। कॉक्लियर नलिका में एक संवेदी उभार पाया जाता है, जिसे कॉरटाई का अंग (Organ of Corti) कहते हैं। इसमें उपस्थित संवेदी रोम (Sensory hairs) श्रवण संवेदना उत्पन्न करते हैं।
(7) कॉक्लिया:
सिनेप्स:
एक तंत्रिका कोशिका के साइटॉन (Cyton) के डेन्ड्राइट्स एवं दूसरी तंत्रिका कोशिका के ऐक्सॉन एक विशिष्ट संधि द्वारा जुड़े होते हैं, जिन्हें युग्मानुबन्ध कहते हैं।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी दीजिए –
- सिनैप्टिक संचरण की क्रियाविधि
- देखने की प्रक्रिया
- श्रवण की प्रक्रिया।
उत्तर:
(1) सिनैप्टिक संचरण की क्रियाविधि:
युग्मानुबन्ध में आवेग का संचरण (Conduction of Impulse in Synapse):
युग्मानुबन्ध अर्थात् दो न्यूरॉन्स के जोड़ पर आवेग का संचरण विद्युत्-रासायनिक तरंगों के रूप में न होकर, हॉर्मोन के द्वारा होता है। अतः यह एक हॉर्मोनल संचरण प्रक्रिया (Hormonal conduction process) है।
युग्मानुबन्ध बनाने वाले तंत्रिका तन्तु आपस में चिपके न होकर थोड़ा दूर – दूर स्थित होते हैं और इनके सिरे पर युग्मानुबन्ध घुण्डियाँ (Synaptic knobs) पायी जाती हैं, जिनके नीचे विशेष प्रकार की युग्मानुबन्ध थैलियाँ (Synaptic vesicles) स्थित होती हैं, जिसमें ऐसीटाइलकोलीन (Acetylcholines) नामक रासायनिक पदार्थ भरा रहता है, जो कि रासायनिक संचारी (Chemical transmitter) के समान आवेग को युग्मानुबन्ध पर पहुँचा देता है, इसीलिए इसे तंत्रिका संचारी (Neurohumor) भी कहते हैं।
जिस समय प्रेरणा ऐक्सॉन से होकर युग्मानुबन्ध घुण्डियों में पहुँचती हैं, Ca+ ऊतक द्रव्य से घुण्डियों में पहुँचते हैं, जिसके प्रभाव से ऐसीटाइलकोलीन मुक्त होकर पश्च युग्मानुबन्ध न्यूरॉन की कला की पारगम्यता को प्रभावित कर देता है। फलत: फिर से विद्युत् – तरंगें पैदा हो जाती हैं, इसमें मात्र कुछ मिली सेकण्ड का समय लगता है।
जल्द ए-3 – ही ऐसीटाइलकोलीनेस्टेरेज (AcetyIcholinesterase) प्रकीण्व ऊतक में बनता है, जो ऐसीटाइलकोलीन को चित्र-युग्मानुबन्ध में आवेग के संचरण की कार्यिकी (चित्रात्मक) कोलीन और ऐसीटेट में विघटित कर देता है, इसी कारण प्रेरणा का संचारण केवल एक दिशा में होकर रह जाता है।
ऐसीटाइलकोलीन के ही समान कुछ अन्य तंत्रिकीय संचारी पदार्थ तंत्रिका तंत्र में पाये जाते हैं जैसे-सीरोटोनिन (Serotonin), सिम्पैथिन (Sympathin), डोपामीन (Dopamine), तथा नॉरएपिनेफ्रिन (Nor-epinephrine) या नॉर-ऐडीनेलीन, ये युग्मानुबन्ध में प्रेरणाओं का संचारण करते हैं।
(2) देखने की प्रक्रिया-नेत्र की कार्यविधि एवं समंजन क्षमता:
सबसे पहले आँख से संबंधित पेशियाँ आँख को देखी जाने वाली वस्तु की दिशा में लाती हैं। मनुष्य की आँख का आइरिस कैमरे के डायफ्राम का कार्य करता है और तारे को छोटा – बड़ा करके प्रकाश की उचित मात्रा को ही नेत्रगोलक में जाने देता है।
नेत्र गोलक का लेन्स कैमरे के लेन्स के समान कार्य करता है जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु से आकर एक्वियस ह्यूमर, तारा विट्रियस ह्यूमर से होते हुए रेटिना पर पड़ती हैं, तो सामने की वस्तु का एक उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है जिससे रेटिना की संवेदी कोशिकाएँ उद्दीप्त हो जाती हैं तथा इस उद्दीपन को दृष्टि तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पहुँचा देती हैं, जो इस प्रतिबिम्ब को सीधा करके देखता है।
मनुष्य तथा अन्य स्तनी आँख के लेंस को सिलियरी काय में उपस्थित पेशियों और निलम्बन तन्तुओं के द्वारा छोटा-बड़ा कर सकते हैं। लेन्स के इसी गुण के कारण स्तनी जन्तु नजदीक तथा दूर की वस्तुओं को साफसाफ आसानी से देख सकते हैं। जब स्तनियों को दूर की वस्तु को देखना होता है तब सिलियरी काय की पेशियाँ शिथिलन अवस्था में आ जाती हैं, फलतः निलम्बन तन्तु खिंच जाते हैं, फलतः लेंस भी खिंचकर चपटा हो जाता है और इसकी फोकस दूरी (Focal length) बढ़ जाती है और आँख दूर की वस्तुओं को आसानी से देख लेती है।
नजदीक की वस्तुओं को देखते समय सिलियरी काय की पेशियाँ संकुचित होती हैं, जिसमें निलम्बन तन्तु ढीले पड़ जाते हैं। फलतः लेंस अधिक उत्तल हो जाता है और इसकी फोकस दूरी घट जाती है जिससे इस अवस्था में भी आँख वस्तुओं को आसानी से देख लेती है। जन्तुओं द्वारा आँख के लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन लाकर दूर तथा नजदीक की वस्तुओं को देखने की क्षमता को समंजन क्षमता (Accommodation power) तथा इस क्रिया को समायोजन या समंजन (Accommodation) कहते हैं। मनुष्य के आँख की समंजन क्षमता बहुत अधिक होती है।
(3) श्रवण की प्रक्रिया-श्रवण या सुनना (Hearing):
सुनने का कार्य मुख्य रूप से अन्तः कर्ण के कॉक्लिया द्वारा किया जाता है। ध्वनि की तरंगें जो चारों तरफ की वायु में पैदा होती हैं बाह्य ऑडिटरी मीटस से होकर टिम्पैनिक झिल्ली से टकराकर इसे कम्पित कर देती हैं। यह कम्पन मैलियस, इन्कस तथा स्टेप्स अस्थियों द्वारा फेनेस्ट्रा ओवेलिस की झिल्ली को पहुँचा दिया जाता है। जहाँ से यह कम्पन स्केला वेस्टीबुलाई में भरे पेरिलिम्फ द्रव में पहुँचता है।
इसी प्रकार कुछ कम्पन फेनेस्ट्रा रोटेण्डा द्वारा स्केला टिम्पैनाई के पेरिलिम्फ में पहुँचते हैं। इन दोनों नलियों के द्रव में होने वाले कम्पनों के कारण रीजनर्स तथा बेसीलर्स झिल्लियों के साथ स्केला मीडिया का इण्डोलिम्फ भी कम्पित होने लगता है, जिसके कारण कॉरटाई अंग की संवेदी कोशिकाओं के रोम बार-बार टैक्टोरियल झिल्ली को छूने लगते हैं, जिससे ध्वनि का एक आवेग बनता है, जो कॉरटाई अंग की संवेदी तंत्रिकाओं की शाखाओं द्वारा श्रवण तंत्रिका को पहुंचा दिया जाता है, जो इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहुँचा देती है और जन्तुओं को आवाज का अनुभव होता है।
प्रश्न 7.
- आप किस प्रकार किसी वस्तु के रंग का पता लगाते हैं ?
- हमारे शरीर का कौन-सा भाग शरीर का संतुलन बनाने में मदद करता है ?
- नेत्र किस प्रकार रेटिना पर पड़ने वाले प्रकाश का नियमन करते हैं ?
उत्तर:
(1) रेटिना में दो प्रकार की प्रकाशग्राही कोशिकाएँ:
शलाका (Rod) एवं शंकु (Cone) होती हैं। दिन की रोशनी (Day light) में देखना और रंगों का ज्ञान शंकु (Cone) कोशिकाओं के कार्य हैं। मानव नेत्र में तीन प्रकार के शंकु होते हैं, जिनमें कुछ विशेष प्रकार के प्रकाश वर्णक (Photo-pigments) होते हैं, जो कि लाल, हरे और नीले प्रकाश को पहचानने में सक्षम होते हैं।
विभिन्न प्रकार के शंकुओं और उनके प्रकाश वर्णकों के मेल से अलग-अलग रंगों के प्रति संवेदना उत्पन्न होती है। जब इन शंकुओं को समान मात्रा में उत्तेजित किया जाता है, तो सफेद रंग के प्रति संवेदना उत्पन्न होती है।
(2) सन्तुलन (Balancing):
शरीर को सन्तुलित रखने का कार्य ऐम्पुला, सैक्कुलस तथा यूट्रिकुलस में उपस्थित श्रवण कूटों (Acoustic ridges) द्वारा किया जाता है। सामान्य अवस्था में श्रवण कूट की संवेदी कोशिकाओं के संवेदी रोम एण्डोलिम्फ में तैरते रहते हैं, लेकिन जब शरीर का सन्तुलन बिगड़ जाता है या वह एक ओर झुक जाता है, तब एण्डोलिम्फ में उपस्थित CaCO3 के कण या आटोलिथ (आटोकोनिया) गुरुत्वाकर्षण के कारण संवेदी रोमों पर एक दबाव डालते हैं, जिसकी संवेदना तंत्रिका शाखाओं द्वारा श्रवण तंत्रिका के द्वारा मस्तिष्क को पहुँचा दी जाती है। तब मस्तिष्क पैर, हाथ आदि संबंधित अंगों को सन्तुलन बनाये रखने का निर्देश देता है, फलतः शरीर सन्तुलित कर लिया जाता है और आटोकोनिया पुनः अपनी पुरानी स्थिति में लौट आते हैं।
(3) देखने की प्रक्रिया-नेत्र की कार्यविधि एवं समंजन क्षमता:
सबसे पहले आँख से संबंधित पेशियाँ आँख को देखी जाने वाली वस्तु की दिशा में लाती हैं। मनुष्य की आँख का आइरिस कैमरे के डायफ्राम का कार्य करता है और तारे को छोटा – बड़ा करके प्रकाश की उचित मात्रा को ही नेत्रगोलक में जाने देता है।
नेत्र गोलक का लेन्स कैमरे के लेन्स के समान कार्य करता है जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु से आकर एक्वियस ह्यूमर, तारा विट्रियस ह्यूमर से होते हुए रेटिना पर पड़ती हैं, तो सामने की वस्तु का एक उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है जिससे रेटिना की संवेदी कोशिकाएँ उद्दीप्त हो जाती हैं तथा इस उद्दीपन को दृष्टि तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पहुँचा देती हैं, जो इस प्रतिबिम्ब को सीधा करके देखता है।
मनुष्य तथा अन्य स्तनी आँख के लेंस को सिलियरी काय में उपस्थित पेशियों और निलम्बन तन्तुओं के द्वारा छोटा-बड़ा कर सकते हैं। लेन्स के इसी गुण के कारण स्तनी जन्तु नजदीक तथा दूर की वस्तुओं को साफसाफ आसानी से देख सकते हैं। जब स्तनियों को दूर की वस्तु को देखना होता है तब सिलियरी काय की पेशियाँ शिथिलन अवस्था में आ जाती हैं, फलतः निलम्बन तन्तु खिंच जाते हैं, फलतः लेंस भी खिंचकर चपटा हो जाता है और इसकी फोकस दूरी (Focal length) बढ़ जाती है और आँख दूर की वस्तुओं को आसानी से देख लेती है।
नजदीक की वस्तुओं को देखते समय सिलियरी काय की पेशियाँ संकुचित होती हैं, जिसमें निलम्बन तन्तु ढीले पड़ जाते हैं। फलतः लेंस अधिक उत्तल हो जाता है और इसकी फोकस दूरी घट जाती है जिससे इस अवस्था में भी आँख वस्तुओं को आसानी से देख लेती है। जन्तुओं द्वारा आँख के लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन लाकर दूर तथा नजदीक की वस्तुओं को देखने की क्षमता को समंजन क्षमता (Accommodation power) तथा इस क्रिया को समायोजन या समंजन (Accommodation) कहते हैं। मनुष्य के आँख की समंजन क्षमता बहुत अधिक होती है।
प्रश्न 8.
(1) सक्रिय विभव उत्पन्न करने में Na+ की भूमिका का वर्णन कीजिए।
(2) सिनेप्स पर न्यूरोट्रांसमीटर मुक्त करने में Ca+ की भूमिका का वर्णन कीजिए।
(3) रेटिना पर प्रकाश द्वारा आवेग उत्पन्न करने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
(4) अंतःकर्ण में ध्वनि द्वारा तंत्रिका आवेग उत्पन्न होने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) सक्रिय विभव उत्पन्न करने में Na+ की भूमिका का वर्णन कीजिए।
बाह्य तथा आंतरिक परिवर्तनों या उद्दीपनों (Stimuli) का अनुभव संवेदी अंगों द्वारा किया जाता है। इन अंगों की कोशिकाएँ, जो कि संवेदी प्रकृति की होती है, उद्दीपनों को ग्रहण करके उत्तेजित हो जाती हैं और इस उद्दीपन को तन्त्रिका तन्तु में पहुँचा देती हैं, इसी तंत्रिका (Resting form) तन्तु के उद्दीपन को तंत्रिकीय आवेग या प्रेरणा संवेग (Impulse) कहते हैं।
तंत्रिका तन्तु संवेदी (Resting region) अंगों को तंत्रिका तंत्र से जोड़ते हैं और इन आवेगों को विद्युत्-रासायनिक प्रेरणा या तरंगों (Electro chemical impulse or waves) के रूप में तंत्रिका तंत्र को पहुँचा देते हैं। युग्मानुबन्ध (Synapsis) पर आवेगों का संचरण कुछ रासायनिक क्रियाओं और पदार्थों द्वारा नियन्त्रित होता है।
तंत्रिकीय आवेगों का संचरण:
तंत्रिका तन्तुओं में उत्तेजना या आवेग का संचरण जैव विद्युत्-रासायनिक क्रिया के कारण होती है, जिसे क्रिया विभव (Action potential) कहते हैं। Depolarization तंत्रिकीय ऊतकों में आवेगों का संचरण कुछ उपापचयी क्रियाओं द्वारा नियन्त्रित होता है।
तंत्रिका कोशिकाओं के चारों तरफ अन्तराली द्रव (Interstitial fluid) नामक द्रव भरा होता है, जिसमें सोडियम (Na’) तथा पोटैशियम (K’) आयन घुले रहते हैं। सामान्य या विश्रामावस्था में तंत्रिका कोशिका का ऐक्सॉन पोटैशियम आयन के लिए Na’ आयन की अपेक्षा 30 गुना अधिक पारगम्य होता है, जिसके परिणामस्वरूप Na’ झिल्ली के बाहर अधिक और अंदर कम सान्द्रता में पाया जाता है।
बाह्य सतह पर सोडियम आयन की उपस्थिति के कारण यह धनात्मक आवेश युक्त होती है, जबकि आन्तरिक सतह कार्बनिक मूलकों के कारण ऋणात्मक होती है। इस अवस्था में झिल्ली –
(i) ध्रुवीय अवस्था (Polarized) में कही जाती है और इस समय इसका सुप्त विभव 70 mg होता है। जब तक तंत्रिका तन्तु विश्रामावस्था में रहता है दो आयनों की संख्या सन्तुलित रहती है, लेकिन जैसे V ही कोई उद्दीपन आवेग के रूप में ग्रहण किया जाता है, वैसे ही उद्दीपन के स्थान का आयनिक सन्तुलन बिगड़ जाता है, इस अवस्था को स्थानीय उत्तेजनशील अवस्था (Local excitatory state) कहते हैं । इस अवस्था में झिल्ली में
(ii) निधुवण (Depolarization) हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप उत्तेजित आवेग की एक लहर तंत्रिका तन्तु पर क्रम से फैलती जाती है, तंत्रिका तन्तु की इस अवस्था को सक्रिय अवस्था कहते हैं। तंत्रिका तन्तु की सक्रिय अवस्था में पोटैशियम आयन विसरित होकर ऐक्सॉन से बाहर तथा सोडियम आयन अंदर आ जाता है। इस विसरण में सोडियम आयनों के अंदर आने की संख्या पोटैशियम आयनों के बाहर जाने के अनुपात में ज्यादा होती है।
इस घटना के कारण ऐक्सॉन की झिल्ली की सतहों पर आयनों की प्रकृति बदल जाती है। दूसरे शब्दों में, बाहरी सतह पर ऋण तथा आन्तरिक सतह पर धन आयन आ जाते हैं। ये विद्युत्-रासायनिक ऐक्सॉन के द्वारा युग्मानुबन्ध (Synapse) पर पहुँच जाते हैं और वहाँ से इसे पार कर दूसरे न्यूरॉन के डेण्ड्राइट में पहुँच जाते हैं।
इसके बाद पुनर्स्थापन अवस्था (Recovery phase) आती है, जिसमें फिर से ऐक्सॉन की बाहरी सतह पर धन आयन सोडियम आयन के झिल्ली से बाहर आने के कारण स्थापित हो जाते हैं। इस पूरी प्रक्रिया के लिए कुछ समय की आवश्यकता पड़ती है, जिसमें तंत्रिका फिर से उत्तेजना को ग्रहण नहीं कर सकती, इस समय को रिफ्रैक्टरी काल (Refractory period) कहते हैं, जो 1/1000 सेकण्ड के बराबर होता है।
(2) सिनेप्स पर न्यूरोट्रांसमीटर मुक्त करने में Ca+ की भूमिका का वर्णन कीजिए।
(1) सिनैप्टिक संचरण की क्रियाविधि:
युग्मानुबन्ध में आवेग का संचरण (Conduction of Impulse in Synapse):
युग्मानुबन्ध अर्थात् दो न्यूरॉन्स के जोड़ पर आवेग का संचरण विद्युत्-रासायनिक तरंगों के रूप में न होकर, हॉर्मोन के द्वारा होता है। अतः यह एक हॉर्मोनल संचरण प्रक्रिया (Hormonal conduction process) है।
युग्मानुबन्ध बनाने वाले तंत्रिका तन्तु आपस में चिपके न होकर थोड़ा दूर – दूर स्थित होते हैं और इनके सिरे पर युग्मानुबन्ध घुण्डियाँ (Synaptic knobs) पायी जाती हैं, जिनके नीचे विशेष प्रकार की युग्मानुबन्ध थैलियाँ (Synaptic vesicles) स्थित होती हैं, जिसमें ऐसीटाइलकोलीन (Acetylcholines) नामक रासायनिक पदार्थ भरा रहता है, जो कि रासायनिक संचारी (Chemical transmitter) के समान आवेग को युग्मानुबन्ध पर पहुँचा देता है, इसीलिए इसे तंत्रिका संचारी (Neurohumor) भी कहते हैं।
जिस समय प्रेरणा ऐक्सॉन से होकर युग्मानुबन्ध घुण्डियों में पहुँचती हैं, Ca+ ऊतक द्रव्य से घुण्डियों में पहुँचते हैं, जिसके प्रभाव से ऐसीटाइलकोलीन मुक्त होकर पश्च युग्मानुबन्ध न्यूरॉन की कला की पारगम्यता को प्रभावित कर देता है। फलत: फिर से विद्युत् – तरंगें पैदा हो जाती हैं, इसमें मात्र कुछ मिली सेकण्ड का समय लगता है।
जल्द ए-3 – ही ऐसीटाइलकोलीनेस्टेरेज (AcetyIcholinesterase) प्रकीण्व ऊतक में बनता है, जो ऐसीटाइलकोलीन को चित्र-युग्मानुबन्ध में आवेग के संचरण की कार्यिकी (चित्रात्मक) कोलीन और ऐसीटेट में विघटित कर देता है, इसी कारण प्रेरणा का संचारण केवल एक दिशा में होकर रह जाता है।
ऐसीटाइलकोलीन के ही समान कुछ अन्य तंत्रिकीय संचारी पदार्थ तंत्रिका तंत्र में पाये जाते हैं जैसे-सीरोटोनिन (Serotonin), सिम्पैथिन (Sympathin), डोपामीन (Dopamine), तथा नॉरएपिनेफ्रिन (Nor-epinephrine) या नॉर-ऐडीनेलीन, ये युग्मानुबन्ध में प्रेरणाओं का संचारण करते हैं।
(3) रेटिना पर प्रकाश द्वारा आवेग उत्पन्न करने की क्रियाविधि का वर्णन कीजिए।
सबसे पहले आँख से संबंधित पेशियाँ आँख को देखी जाने वाली वस्तु की दिशा में लाती हैं। मनुष्य की आँख का आइरिस कैमरे के डायफ्राम का कार्य करता है और तारे को छोटा – बड़ा करके प्रकाश की उचित मात्रा को ही नेत्रगोलक में जाने देता है।
नेत्र गोलक का लेन्स कैमरे के लेन्स के समान कार्य करता है जब प्रकाश की किरणें किसी वस्तु से आकर एक्वियस ह्यूमर, तारा विट्रियस ह्यूमर से होते हुए रेटिना पर पड़ती हैं, तो सामने की वस्तु का एक उल्टा प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है जिससे रेटिना की संवेदी कोशिकाएँ उद्दीप्त हो जाती हैं तथा इस उद्दीपन को दृष्टि तन्त्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क को पहुँचा देती हैं, जो इस प्रतिबिम्ब को सीधा करके देखता है।
मनुष्य तथा अन्य स्तनी आँख के लेंस को सिलियरी काय में उपस्थित पेशियों और निलम्बन तन्तुओं के द्वारा छोटा-बड़ा कर सकते हैं। लेन्स के इसी गुण के कारण स्तनी जन्तु नजदीक तथा दूर की वस्तुओं को साफसाफ आसानी से देख सकते हैं। जब स्तनियों को दूर की वस्तु को देखना होता है तब सिलियरी काय की पेशियाँ शिथिलन अवस्था में आ जाती हैं, फलतः निलम्बन तन्तु खिंच जाते हैं, फलतः लेंस भी खिंचकर चपटा हो जाता है और इसकी फोकस दूरी (Focal length) बढ़ जाती है और आँख दूर की वस्तुओं को आसानी से देख लेती है।
नजदीक की वस्तुओं को देखते समय सिलियरी काय की पेशियाँ संकुचित होती हैं, जिसमें निलम्बन तन्तु ढीले पड़ जाते हैं। फलतः लेंस अधिक उत्तल हो जाता है और इसकी फोकस दूरी घट जाती है जिससे इस अवस्था में भी आँख वस्तुओं को आसानी से देख लेती है। जन्तुओं द्वारा आँख के लेंस की फोकस दूरी में परिवर्तन लाकर दूर तथा नजदीक की वस्तुओं को देखने की क्षमता को समंजन क्षमता (Accommodation power) तथा इस क्रिया को समायोजन या समंजन (Accommodation) कहते हैं। मनुष्य के आँख की समंजन क्षमता बहुत अधिक होती है।
(4) श्रवण की प्रक्रिया-श्रवण या सुनना (Hearing):
सुनने का कार्य मुख्य रूप से अन्तः कर्ण के कॉक्लिया द्वारा किया जाता है। ध्वनि की तरंगें जो चारों तरफ की वायु में पैदा होती हैं बाह्य ऑडिटरी मीटस से होकर टिम्पैनिक झिल्ली से टकराकर इसे कम्पित कर देती हैं। यह कम्पन मैलियस, इन्कस तथा स्टेप्स अस्थियों द्वारा फेनेस्ट्रा ओवेलिस की झिल्ली को पहुँचा दिया जाता है। जहाँ से यह कम्पन स्केला वेस्टीबुलाई में भरे पेरिलिम्फ द्रव में पहुँचता है।
इसी प्रकार कुछ कम्पन फेनेस्ट्रा रोटेण्डा द्वारा स्केला टिम्पैनाई के पेरिलिम्फ में पहुँचते हैं। इन दोनों नलियों के द्रव में होने वाले कम्पनों के कारण रीजनर्स तथा बेसीलर्स झिल्लियों के साथ स्केला मीडिया का इण्डोलिम्फ भी कम्पित होने लगता है, जिसके कारण कॉरटाई अंग की संवेदी कोशिकाओं के रोम बार-बार टैक्टोरियल झिल्ली को छूने लगते हैं, जिससे ध्वनि का एक आवेग बनता है, जो कॉरटाई अंग की संवेदी तंत्रिकाओं की शाखाओं द्वारा श्रवण तंत्रिका को पहुंचा दिया जाता है, जो इस उद्दीपन को मस्तिष्क में पहुँचा देती है और जन्तुओं को आवाज का अनुभव होता है।
प्रश्न 9.
निम्न के बीच अंतर बताइए –
(1) आच्छादित और अनाच्छादित तंत्रिकाक्ष
(2) दुम्राक्ष्य और तंत्रिकाक्ष
(3) शलाका और शंकु
(4) थैलेमस और हाइपोथैलेमस
(5) प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क।
उत्तर:
(1) आच्छादित और अनाच्छादित तंत्रिकाक्ष –
आच्छादित तंत्रिकाक्ष(Myelinated axon):
- आच्छादित तंत्रिका तंतु श्वान कोशिका एवं मायलिन आवरण (Myelin sheath) के द्वारा तंत्रिका तन्तु (Axon) को चारों ओर से ढंके रहते हैं।
- अनाच्छादित तंत्रिकाक्ष सामान्यतः स्वायत: (Axon) स्पाइनल एवं कपालीय तंत्रिकाओं (Cranial Nerves) में पाया जाता है।
अनाच्छादित तंत्रिकाक्ष (Non-myelinated axon):
- अनाच्छादित तंत्रिकाक्ष श्वान कोशिकाओं द्वारा बँके रहते हैं, लेकिन इनमें मायलिन आवरण (Myelin sheath) का अभाव होता है।
- मायलिन के आवरण मुक्त तंत्रिकाक्ष या तंत्रिका तंतु, (Auto nomous) एवं सोमेटिक (Somatic) तंत्रिका तन्तुओं में पाये जाते हैं।
(2) दुम्राक्ष्य और तंत्रिकाक्ष में अंतर –
दुम्राक्ष्य (Dendrites):
ये छोटी-छोटी तंत्रिका तन्तुएँ है, जो तेजी से शाखित होकर कोशिका प्रवर्ध के रूप में कोशिका काय से बाहर निकल जाती है। इनमें छोटे-छोटे निसलस के कण (Nissl’s granules) पाये जाते हैं। ये कोशिका काय (Cell body) में आवेगों (Impules) को स्थानान्तरित करने का कार्य करता है।
तंत्रिकाक्ष (Axon):
तंत्रिकाक्ष (Axon) एक लम्बी शाखित तन्तु है, जो कि बल्बनुमा संरचना (सिनैप्टिक नॉब) के रूप में बदल जाती है। इसमें एक सिनैप्टिक ग्रंथि (Synap tic Vesicle) पायी जाती है, जिसके अंदर एक रासायनिक पदार्थ जिसे न्यूरोट्रांसमीटर (Neuro transmitters) कहते हैं, भरा रहता है। एक्सॉन, तंत्रिकीय आवेगों को कोशिका काय (Cell body or Cyton) से सिनैप्स (Synapse) की ओर स्थानान्तरित करता है।
शलाका एवं शंकु में अंतर –
शलाका (Rod):
- यह भूरे रंग वर्णक रोडोप्सिन का बना होता है। यह विटामिन A द्वारा बनता है।
- कम प्रकाश में गहरा भूरा एवं सफेद रंग का ज्ञान होता है।
- इनकी संख्या में या वर्णक की कमी होने पर रतौंधी (Night blindness) रोग होता है।
शंकु (Cone):
- यह तीन भिन्न-भिन्न वर्णक से मिलकर बना होता है एवं प्रकाश की उपस्थिति में रंगों का विभेदन होता है।
- तेज रोशनी में लाल, हरा एवं नीले रंग का ज्ञान होता है।
- यदि शंकु नहीं पाये जाते हैं तो उस स्थिति में वर्णान्धता रोग (Colour blindness) होता है।
(4) थैलेमस और हाइपोथैलेमस में अंतर –
थैलेमस (Thalamus):
- प्रमस्तिष्क या सेरीब्रम एक संरचना के द्वारा चारों ओर से लिपटा रहता है जिसे थैलेमस (Thalamus) कहते हैं।
- शरीर के सभी हिस्से से प्राप्त संवेदनाएँ सिनेप्स के रूप में थैलेमस पर पहुँचती हैं।
- यह भावनाओं (Emotion) एवं यादों (Memory) का नियंत्रण करता है।
हाइपोथैलेमस (Hypothalamus):
- यह थैलेमस के आधार (Base) में पाया जाता है।
- इनमें तंत्रिका स्रावी कोशिकाएँ पायी जाती हैं जिसके द्वारा हाइपोथैलेमस हॉर्मोन का स्रावण होता है।
- हाइपोथैलेमस द्वारा शरीर के तापमान, खाने-पीने की चीजों का नियंत्रण होता है।
(5) प्रमस्तिष्क और अनुमस्तिष्क में अंतर –
प्रमस्तिष्क या सेरीब्रम (Cerebrum):
- यह अग्र मस्तिष्क का भाग है।
- यह दो अर्द्ध गोलार्डों में बँटा रहता है, जिसे सेरीब्रल
- यह बुद्धि व स्मृति ज्ञान का केन्द्र है।
अनुमस्तिष्क या सेरीबेलम (Cerebellum):
- यह पश्च मस्तिष्क में स्थित होता है।
- यह पीछे की ओर सँकरी पट्टी के रूप में पाया हेमीस्फीयर कहते हैं। जाता है व मेड्यूला आब्लांगेटा बनाता है।
- यह अनैच्छिक क्रिया एवं शरीर सन्तुलन से संबंधित है।
प्रश्न 10.
- कर्ण का कौन-सा भाग ध्वनि की पिच का निर्धारण करता है ?
- मानव मस्तिष्क का सर्वाधिक विकसित भाग कौन-सा है ?
- केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र का कौन-सा भाग मास्टर क्लॉक की तरह कार्य करता है ?
उत्तर:
- आंतरिक कर्ण (Internal Ear)
- सेरीब्रम (Cerebrum)
- मस्तिष्क (Brain)।
प्रश्न 11.
कशेरुकी के नेत्र का वह भाग जहाँ से दृक तंत्रिका रेटिना से बाहर निकलती है, कहलाता है –
(a) फोबिया
(b) आइरिस
(c) अंध बिंदु
(d) ऑप्टिक काएज्मा (चाक्षुष काएज्मा)।
उत्तर:
(c) अंध बिंदु
प्रश्न 12.
निम्न में भेद स्पष्ट कीजिए –
(1) संवेदी तंत्रिका और प्रेरक तंत्रिका
(2) आच्छादित एवं अनाच्छादित तंत्रिका तन्तु में आवेग संचरण
(3) एक्विअस ह्यूमर ( नेत्रोद) एवं विट्रिस ह्यूमर (काचाभ दव)
(4) पीत बिंदु एवं अंध बिंदु
(5) कपालीय तंत्रिकाएँ एवं मेरु तंत्रिकाएँ।
उत्तर:
(1) संवेदी तंत्रिका और प्रेरक तंत्रिका में अंतर –
संवेदी तंत्रिका(Afferent Neurons):
ऐसे तंत्रिका तन्तु को जो संवेदना को शरीर के परिधीय ऊतकों एवं अंगों से ग्रहण करके मस्तिष्क तक पहुँचाते हैं या केन्द्रीय तंत्र तक पहुँचाते हैं, अभिवाही न्यूरॉन्स कहते हैं।
प्रेरक तंत्रिका (Efferent Neurons):
ऐसे तन्तु को जो संवेदना को केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र या मस्तिष्क से ग्रहण करके परिधीय ऊतकों या अंगों तक पहुँचाते हैं, अपवाही न्यूरॉन्स कहते हैं।
(2) आच्छादित एवं अनाच्छादित तंत्रिका तन्तु में आवेग का संचरण –
आच्छादित तंत्रिका तन्तु में आवेग का संचरण (Impulse conduction in Myelinated sheath):
अनाच्छादित तंत्रिका की तुलना में इसमें 20 गुना अधिक तेजी से आवेग संचरण होता है। बड़े व्यास के तंत्रिका तन्तुओं में आवेग 120 मीटर प्रति सेकण्ड की गति से आगे बढ़ता है।
विध्रुवण (Depolarization) सिर्फ नोड पर होता है।
अनाच्छादित तंत्रिका तन्तु में आवेग का संचरण (Impulse conduction in Non-myelinated sheath)
इसमें आयन परिवर्तन तथा विध्रुवण तंतु की झिल्ली पर पूरी लंबाई में होता है। इनमें तंत्रिकीय आवेग का संचरण धीमा होता है।
(3) एक्विअस ह्यूमर ( नेत्रोद) एवं विट्रियस ह्यूमर (काँचाभ द्रव) में अंतर –
नेत्रोद(Aqueous humor):
- कार्निया और लेंस के बीच की जगह को नेत्रोद (Aqueous humor) कहते हैं।
- इनमें पतला जलीय द्रव पाया जाता है।
काँचाभ द्रव (Vitreous humor):
लेंस और रेटिना के बीच की जगह को कॉचाभ द्रव (Vitereous humor) कहा जाता है।
- इनमें पतला पारदर्शी जेलनुमा द्रव पाया जाता है।
- यह नेत्र गोलक को सहारा देता है।
(4) पीत बिन्दु एवं अन्ध बिन्दु में अंतर –
पीत बिन्दु (Yellow spot):
- रेटिना का वह भाग जहाँ पर प्रतिबिम्ब सबसे स्पष्ट बनता है, उसे पीत बिन्दु (Yellow spot) कहते हैं।
- पीत बिन्दु पर शंकु एवं शलाका पाये जाते हैं।
अन्ध बिन्दु (Blind spot):
- रेटिना का वह भाग जहाँ पर किसी प्रकार का प्रतिबिम्ब नहीं बनता है, उसे अन्ध बिन्दु (Blind Spot) कहते हैं।
- अन्ध बिन्दु पर शंकु एवं शलाका नहीं पाये जाते हैं।
(5) कपालीय तंत्रिकाएँ एवं मेरु तंत्रिकाएँ में अंतर –
कपालीय तंत्रिकाएँ (Cranial nerves):
- कपालीय तंत्रिकाएँ मस्तिष्क से उत्पन्न होकर सिर एवं शरीर के ऊपरी अंगों में चली जाती हैं।
- शरीर में 12 जोड़ी कपालीय तंत्रिकाएँ पायी जाती हैं।
- कपाल तंत्रिकाओं में मुख्यतः संवेदी तंत्रिकाएँ (Sensory nerves) होती हैं। कुछ में संवेदी तथा प्रेरक (Motor) दोनों प्रकार की तंत्रिकाएँ पायी जाती हैं।
मेरु तंत्रिकाएँ (Spinal nerves):
- मेरु तंत्रिकाएँ, मेरुरज्जु (Spinal cord) से उत्पन्न होकर शरीर के सिर के नीचे के अंगों में संभरित होती हैं।
- मेरुरज्जु से 31 जोड़ी मेरु तंत्रिकाएँ निकलती हैं।
- प्रत्येक मेरु तंत्रिका से दोनों प्रकार संवेदी तथा प्रेरक की तंत्रिकाएँ पायी जाती हैं।
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –
1. अनुमस्तिष्क का प्रमुख कार्य है –
(a) सन्तुलन
(b) देखना
(c) सुनना
(d) स्मृति।
उत्तर:
(a) सन्तुलन
2. तीसरा वेण्ट्रिकिल उपस्थित होता है –
(a) हृदय में
(b) मस्तिष्क में
(c) वृक्क में:
(d) यकृत में।
उत्तर:
(b) मस्तिष्क में
3. डायफ्राम से सम्बन्धित तन्त्रिका है –
(a) वेगस
(b) फ्रीनिक
(c) ट्राजेमाइनल
(d) ट्रॉक्लियर।
उत्तर:
(b) फ्रीनिक
4. सबसे बड़ी कपाल तन्त्रिका है –
(a) वेगस
(b) घ्राण तन्त्रिका
(c) हाइपोग्लासल
(d) जीह्वा ग्रसनी।
उत्तर:
(a) वेगस
5. कान का पर्दा कहा जाता है –
(a) टिम्पैनिक झिल्ली
(b) टेन्सर टिम्पैनाई
(c) स्केला टिम्पैनाई
(d) स्केला वेस्टीबुली।
उत्तर:
(a) टिम्पैनिक झिल्ली
6. लेक्राइमल ग्रन्थियों का कार्य है –
(a) श्लेष्मा का स्रावण
(b) अश्रु का स्रावण
(c) तेल का स्रावण
(d) वसा का स्रावण।
उत्तर:
(b) अश्रु का स्रावण
7. यदि हृदय को जाने वाली परानुकम्पी तन्त्रिका काट दी जाये तो हृदय धड़कन
(a) बढ़ जायेगी
(b) घट जायेगी
(c) सामान्य रहेगी
(d) बन्द हो जायेगी।
उत्तर:
(a) बढ़ जायेगी
8. स्तनी मस्तिष्क का कौन-सा भाग पेशीय समन्वय को नियमित करता है –
(a) प्रमस्तिष्क
(b) अनुमस्तिष्क
(c) महासंयोजन पिण्ड
(d) मेड्यूला।
उत्तर:
9. पार्श्व वे वेण्ट्रिकिल्स पाये जाते हैं –
(a) हृदय में
(b) मस्तिष्क में
(c) अवटु ग्रन्थि में
(d) मस्तिष्क और हृदय में।
उत्तर:
(b) मस्तिष्क में
10. तन्त्रिकीय आवेग का रासायनिक संचरण एक तन्त्रिका कोशिका से दूसरी में या तन्त्रिका कोशिका से पेशी को होता है –
(a) ऐसीटिल कोलीन द्वारा
(b) कोलीसिस्टोकाइनिन द्वारा
(c) कोलेस्ट्रॉल द्वारा
(d) A.T.P. द्वारा।
उत्तर:
(b) कोलीसिस्टोकाइनिन द्वारा
11. सन्तुलन बनाये रखने की संवेदना का कार्य कान का कौन-सा भाग करता है –
(a) कॉरटाई के अंग की संवेदी कोशिकाएँ
(b) एम्पुला के संवेदी कूट
(c) कॉक्लिया की संवेदी झिल्ली
(d) कॉक्लिया की वेसिलर झिल्ली।
उत्तर:
(a) कॉरटाई के अंग की संवेदी कोशिकाएँ
12. तंत्रिका आवेग किसकी गति के साथ आरंभ होता है –
(a) K+
(b) Mg+
(c) Ca+
(d) Na+
उत्तर:
(b) Mg+
13. मायलीन शीथ ढंके रहती है –
(a) पेशी तन्तु को
(b) तंत्रिका तन्तु को
(c) कोलेजन तन्तु को
(d) टेण्डन को।
उत्तर:
(d) टेण्डन को।
14. निम्न में से न्यूरॉन का कौन सा भाग वसीय आवरण द्वारा ढंका रहता है –
(a) एक्सॉन
(b) सायटॉन
(c) डेन्ड्राइट
(d) रैनवियर के नोड।
उत्तर:
(a) एक्सॉन
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये –
- दो न्यूरॉनों के मध्य उपस्थित जंक्शन को …………… कहते हैं।
- एसीटिलकोलीन एक …………… है।
- मनुष्य में ………….. जोड़ी स्पाइनल तंत्रिकायें एवं ………….. जोड़ी क्रेनियल तंत्रिकायें पाई जाती हैं।
- दृक तंत्रिका …………. से उत्पन्न होती हैं।
- आँखों के शंकु केवल …………… प्रकाश के प्रति संवेदी होते हैं।
- स्पाइनल कार्ड से निकलने वाली सभी तंत्रिकायें ………….. तंत्रिकायें होती हैं।
- आन्तरिक कर्ण अस्थीय …………… एवं …………… का बना होता है।
- रात्रिचर-जीवों के आँखों में केवल …………… पाये जाते हैं।
- कार्पस कैलोसम ……………….. में होता है।
- स्पाइनल संवेदी तन्तुओं के कोशिकाकाय ……………….. में होते हैं।
उत्तर:
- सिनैप्सिस
- न्यूरोट्रांसमीटर
- 31,12
- अंध बिन्दु
- चमकीले
- मिश्रित
- अस्थीय लेबिरिन्थ झिल्लीनुमा लेबिरिन्थ
- शलाका
- मानव मस्तिष्क
- स्पाइनल गुच्छकों।
प्रश्न 3.
उचित संबंध जोड़िए –
उत्तर:
- (c) मस्तिष्क
- (d) कॉक्लिया
- (e) चिंतन
- (b) प्रतिवर्ती क्रिया
- (a) श्वसन केन्द्र
उत्तर:
- (c) सन्तुलन
- (a) रंग
- (e) गंध
- (b) आन्तरिक कर्ण
- (d) ड्यूरामेटर
प्रश्न 4.
एक शब्द में उत्तर दीजिए –
- रेटिना के उस भाग का नाम बताइए जिसमें केवल कोन्स पाये जाते हैं।
- सामान्य प्रतिवर्ती क्रिया का एक उदाहरण दीजिए।
- तन्त्रिका कोशिका के बड़े प्रवर्थों को क्या कहते हैं?
- आँख में पाये जाने वाले काँचाभों के नाम बताइए।
- उन ऊतकों के नाम बताइए जो पिन्ना को आधार प्रदान करते हैं।
- जीभ को घुमाने वाली तन्त्रिका का नाम लिखिए।
- शंकु और शलाका के दृष्टि रंगक के नाम दीजिए।
- त्वचा में पाये जाने वाले वर्णक का नाम लिखिये।
- हाथी का काला रंग किस स्थान का अनुकूलन है ?
- मस्तिष्क में चौथा वेण्ट्रीकल कहाँ स्थित होता है ?
- न्यूरॉन किससे बनते हैं ?
- सिनैप्स किसके बीच बनता है ?
- कौन सी तन्त्रिका विशुद्ध चालक होती है ?
- मस्तिष्क के उस भाग का नाम लिखिए जो हृदय स्पंदन का नियन्त्रण करता है।
- कॉक्लिया कहाँ पाया जाता है ?
उत्तर:
- पीत बिन्दु के केन्द्रीय खात में
- सुई चुभाने पर पैरों को हटाना
- एक्सॉन
- एक्वयस एवं विट्रियस
- लचीली उपास्थि या ऐच्छिक पेशी
- हाइपोग्लासल तंत्रिका
- रोडोप्सिन एवं आयोडोप्सिन
- मिलैनिन
- गर्म स्थान का
- मेड्युला में
- एक्टोडर्म
- दो तंत्रिका तन्तुओं के बीच
- ऑक्यूलोमोटर
- मेड्युला आब्लाँगेटा
- कान में।
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जीभ को घुमाने वाली तन्त्रिका का नाम, प्रकृति, उद्भव तथा वितरण क्षेत्र लिखिए।
उत्तर:
हाइपोग्लॉसल तन्त्रिका (Hypoglossal nerve) जीभ एवं गर्दन को घुमाने वाली तन्त्रिका का नाम हाइपोग्लॉसल तन्त्रिका है। यह प्रेरक प्रकृति की होती है और मस्तिष्क के मेड्यूला से निकलती है एवं जिह्वा की पेशियों को जाती है।
प्रश्न 2.
सिनाप्सिस में ऐसीटिलकोलीन न रहे तो क्या होगा?
उत्तर:
ऐसीटिलकोलीन ही सिनाप्सिस में उद्दीपनों को एक तंत्रिका कोशिका के ऐक्सॉन से दूसरी कोशिका के डेन्ड्राइट तक पहुँचाता है। अतः ऐसीटिलकोलीन के अभाव में तंत्रिकीय संवेदना या उद्दीपन एक तंत्रिका से दूसरी तंत्रिका कोशिका में नहीं जा पाएँगे, फलतः तंत्रिकीय आवेगों का संचरण रुक जायेगा।
प्रश्न 3.
सामान्य प्रतिवर्ती क्रिया का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सोते हुए व्यक्ति के हाथ में सुई चुभाने पर हाथ को वहाँ से हटा लेना एक सामान्य प्रतिवर्ती क्रिया का उदाहरण है।
प्रश्न 4. ऐक्सॉन्स (Axons) क्या हैं ?
उत्तर:
न्यूरॉन या तंत्रिका कोशिका के लम्बे प्रवर्धा (डेण्ड्राइट) को ऐक्सॉन कहते हैं। यह सूचनाओं का सम्वहन करता है।
प्रश्न 5.
आँख में पाये जाने वाली काँचाभों (Humors) के नाम तथा कार्य बताइए।
उत्तर:
आँख में दो प्रकार के काँचाभ पाये जाते हैं –
(i) एक्वियस काँचाभ (Aqueous humor):
यह एक द्रव है, जो आँख की कॉर्निया और लेंस के बीच स्थित एक्वियस कक्ष में भरा रहता है। यह लेन्स, आइरिस, कन्जक्टाइवा को सीधे प्रकाश एवं आघातों से बचाता है।
(ii) विट्रियस काँचाभ (Vitreous humor):
यह एक गाढ़ा जेली के समान द्रव है, जो लेंस तथा रेटिना के बीच स्थित विट्रियस कक्ष में भरा रहता है। यह नेत्र गोलक को चिपकने नहीं देता और उसे निश्चित आकार देता है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित के मुख्य कार्य बताइए –
- सेरीबेलम
- आइरिस
- यूस्टेकियन नलिका।
उत्तर:
- सेरीबेलम (Cerebellum) – यह कंकाली पेशियों में संकुचन एवं शिथिलन, ऐच्छिक गतियों का नियमन तथा शरीर में साम्यावस्था का नियन्त्रण करता है।
- आइरिस (Iris) – यह आँख के अंदर पहुंचने वाले प्रकाश की मात्रा का नियमन करता है।
- यूस्टेकियन नलिका (Eustachian tube) – यह टिम्पैनम (बाह्य कर्ण तथा मध्य कर्ण के बीच की झिल्ली) पर पड़ने वाले दबाव को नियन्त्रित करती है।
प्रश्न 7.
युग्मानुबन्ध क्या है ?
उत्तर:
युग्मानुबन्ध (Synapse):
एक तंत्रिका कोशिका के साइटॉन (Cyton) के डेन्ड्राइट्स एवं दूसरी तंत्रिका कोशिका के ऐक्सॉन एक विशिष्ट संधि द्वारा जुड़े होते हैं, जिन्हें युग्मानुबन्ध कहते हैं।
प्रश्न 8.
चार संवेदी अंगों के नाम एवं कार्य लिखिए।
उत्तर:
संवेदी अंग –
- त्वचा स्पर्श
- आँख देखना
- कर्ण सुनना
- नासिका गन्ध।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित तंत्रिकाओं की प्रकृति बताइए –
- ऑल्फैक्टरी
- वैगस
- ऑडिटरी
- मैण्डिबुलर।
उत्तर:
तंत्रिकाओं की प्रकृति –
- ऑल्फैक्टरी संवेदी
- वैगस चालक एवं संवेदी
- ऑडिटरी संवेदी
- मैण्डिबुलर चालक।
प्रश्न 10.
उल्लू दिन में अंधा होता है पर रात में इसे सब कुछ स्पष्ट दिखाई देता है। कारण बताइये।
उत्तर:
उल्लू दिन में भले प्रकार नहीं देख सकता, क्योंकि उसकी आँख की रेटिना में शंकु (Cone) का अभाव होता है। लेकिन वह रात्रि में बहुत स्पष्ट देख सकता है, क्योंकि रेटिना में शलाका (Rods) कोशिकाओं की संख्या बहुत अधिक होती है।
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मनुष्य में सेरीब्रम के कार्य लिखिए।
उत्तर:
सेरीब्रम के कार्य (Functions of cerebrum):
- इसका पैराइटल लोब, दर्द, स्पर्श तथा तापक्रम की प्रेरणा का केन्द्र है।
- इसका चालक क्षेत्र ऐच्छिक पेशियों की गति को नियन्त्रित करता है।
- इसका प्रमोटर क्षेत्र स्वायत्त तंत्रिका तंत्र द्वारा संचालित सभी क्रियाओं का नियन्त्रण करता है।
- इसका टेम्पोरल लोब स्वाद एवं गन्ध का अनुभव कराता है।
- दृष्टि क्षेत्र से प्रकाश एवं अंधकार का ज्ञान होता है।
- हाइपोथैलेमस तापक्रम, भूख, प्यास तथा मूत्र की मात्रा को नियन्त्रित करता है। यह पीयूष ग्रन्थि के अग्रपिण्ड के स्रावण पर नियन्त्रण रखता है।
प्रश्न 2.
मनुष्य की मस्तिष्क गुहिकाओं के नाम बताइए।
उत्तर:
मनुष्य के मस्तिष्क के अंदर एक खोखली गुहा पायी जाती है, जिसमें से प्रमस्तिष्क की गुहा को पार्श्व गुहा कहते हैं, जो प्रथम एवं द्वितीय गुहा को व्यक्त करती है। डायनसेफेलान की गुहा को तृतीय गुहा या डायोसील कहते हैं, जबकि मध्य मस्तिष्क की गुहा आइटर कहलाती है। पश्च मस्तिष्क की गुहा को चतुर्थ गुहा कहते हैं।
प्रश्न 3.
मनुष्य के कर्ण में स्थित सबसे छोटी अस्थि का नाम क्या है ? इस अस्थि को निकाल देने पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
मनुष्य के कर्ण में स्थित सबसे छोटी अस्थि स्टेप्स है, इसको निकाल देने से ध्वनि की तरंग आन्तरिक कर्ण तक नहीं पहुँच सकेगी क्योंकि स्टेप्स, जो कि फेनेस्ट्रा ओवेलिस से संबंधित होती है, कम्पन को वेस्टिबुलर गुहा में स्थित पेरिलिम्फ में पहुँचाने का कार्य करती है। इस कम्पन की तरंग कॉक्लियर नली से होती हुई सैकुला टेम्पैनी के पेरिलिम्फ में पहुँचकर फेनेस्ट्रा रोटण्डस तक पहुँचते-पहुँचते लगभग समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 4.
दूरदर्शिता तथा निकटदर्शिता दोष क्या हैं ?
उत्तर:
दूरदर्शिता दोष (Hypermetropia):
इस दृष्टि दोष में दूर की वस्तुएँ साफ लेकिन पास की वस्तुएँ धुंधली दिखाई देती हैं। यह नेत्र दोष लेंस के चपटा हो जाने, नेत्र गोलक के छोटा हो जाने अथवा कॉर्निया चपटा हो जाने के कारण होता है। इस दोष को दूर करने के लिए उत्तल लेंस के चश्मे का प्रयोग करते हैं।
निकटदर्शिता दोष (Myopia):
इस दृष्टि दोष में पास की वस्तुएँ साफ लेकिन दूर की धुंधली दिखाई देती हैं। यह दोष नेत्र गोलक के बढ़ जाने, लेंस तथा कॉर्निया की सतह के अधिक उत्तल हो जाने के कारण होता है। इस दोष से बचने के लिए अवतल लेंस के चश्मे का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 5.
मनुष्य के नेत्र की लम्ब काट का केवल नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
मनुष्य के नेत्र की लम्ब काट का नामांकित चित्र
प्रश्न 6.
ऐड्रीनेलिन एवं ऐसीटिलकोलीन क्या है ? इनके कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ऐड्रीनेलिन एवं ऐसीटिलकोलीन ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं, जो परानुकम्पी तंत्रिका तन्तु एवं अनुकम्पी तंत्रिका तन्तुओं द्वार! मुक्त होते हैं। ये दोनों रासायनिक पदार्थ एक-दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं। ऐसीटिलकोलीन सामान्यतः क्रियाओं का अवरोधक है जबकि ऐड्रीनलिन शरीर तंत्र में प्रेरणा उत्पन्न करता है।
प्रश्न 7.
मिश्रित दृष्टि (Mosaic vision) क्या है ?
उत्तर:
इस प्रकार की दृष्टि कॉकरोच एवं कीटों में पायी जाती है, क्योंकि इनमें मिश्रित आँख (Compound eye) पायी जाती है, जो साधारण आँख से भिन्न है । ओमेटियम द्वारा छोटे-छोटे बहुत से प्रतिबिम्ब बनते हैं। पूर्ण दृष्टि इन बहुत से प्रतिबिम्ब का संयुक्त रूप है, जिसे मिश्रित दृष्टि (Mosaic vision) कहते हैं।
प्रश्न 8.
तंत्रिका तंत्र से आप क्या समझते हो ? तंत्रिका तंत्र को कितने भागों में विभाजित किया गया है ?
उत्तर:
वह तन्त्र जो शरीर की विभिन्न क्रियाओं के नियन्त्रण एवं समन्वय का कार्य करता है, तंत्रिका तन्त्र कहलाता है। तंत्रिका तन्त्र निम्नलिखित तीन भागों का बना होता है –
- केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र (Central nervous system) – इसके अंतर्गत मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु आते हैं।
- परिधीय तंत्रिका तंत्र (Peripheral nervous system) – इसके अन्तर्गत मस्तिष्क से निकलने वाली क्रेनियल तंत्रिकाएँ एवं मेरुरज्जु से निकलने वाली स्पाइनल तंत्रिकाएँ आती हैं।
- स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (Autonomous nervous system) – इसके अंतर्गत अनुकम्पी (Sympathetic) एवं परानुकम्पी तंत्रिका तंत्र आते हैं।
प्रश्न 9.
कार्य के आधार पर तंत्रिकाओं को कितने भागों में विभाजित किया गया है ?
उत्तर:
कार्य के आधार पर तंत्रिकाओं को तीन भागों में विभाजित किया गया है
- संवेदी तंत्रिकाएँ (Sensory nerves) – ऊतकों या अंगों से संवेदनाओं को ग्रहण करके केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक पहुँचाती हैं।
- चालक तंत्रिकाएँ (Motor nerves) – केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से सूचनाओं को ग्रहण करके प्रभावी अंगों (Effector organs) तक पहुँचाती हैं।
- मिश्रित तंत्रिकाएँ (Mixed nerves) – इस प्रकार की तंत्रिकाएँ चालक या संवेदो दोनों प्रकार की होती हैं।
प्रश्न 10.
मानव नेत्र में शंकु, शलाका तथा पीत बिन्दु का एक-एक कार्य लिखिये।
उत्तर:
- शंकु का कार्य-शंकु कोशिकाएँ प्रकाश व अन्धकार का ज्ञान कराती हैं।
- शलाका का कार्य-शलाका कोशिकाएँ रंग उद्दीपन को ग्रहण कर रंग का बोध कराती हैं।
- पीत बिन्दु का कार्य-पीत बिन्दु स्पष्ट प्रतिबिम्ब बनाने का कार्य करता है। पीत बिन्दु में केवल कोन्स पाये जाते हैं।
प्रश्न 11.
मेरुरज्जु की रचना (अनुप्रस्थ काट) को चित्रांकित कीजिए।
अथवा
मेरुरज्जु की संरचना एवं कार्य का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मेरुरज्जु खोखली बेलनाकार पृष्ठ (Dorsal) व प्रतिपृष्ठ (Ventral) सतह पर चपटी होती है। इन दोनों सतहों पर Dorsal fissure व Ventral fissure पाया जाता है। मध्य में केन्द्रीय नाल होती है। नाल के छत तथा फर्श को क्रमश: Dorsal व Ventral commissures कहते हैं। इसमें द्रव से भरी गुहा एपिड्यूरल गुहा होती है।
भीतरी स्तर Gray matter व बाहरी स्तर White matter कहलाता है। धूसर पदार्थ पृष्ठ व प्रतिपृष्ठ किनारों को क्रमश: Dorsal and ventral horns कहते हैं। यह मस्तिष्क का पिछला हिस्सा है जो पतली रस्सी के समान कशेरुक दंड के अंतिम सिरे तक फैला रहता है।
कार्य:
- प्रतिवर्ती क्रियाओं का नियंत्रण व समन्वय करती है।
- मस्तिष्क आने जाने वाले उद्दीपनों का संवहन करती है।
- तंत्रिकाओं व मस्तिष्क के मध्य संबंध बनाती है।
- अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण एवं समन्वय करती है।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट कीजिए –
- निकट इंष्टि एवं दूर दृष्टि
- एण्डोलिम्फ एवं पेरिलिम्फ।
उत्तर:
(i) निकट दृष्टि एवं दूर दृष्टि में अंतर –
निकट दृष्टि (Short sight):
- इसमें निकट की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं, जबकि दूर की वस्तुएँ नहीं दिखाई देती हैं।
- प्रतिबिम्ब रेटिना के पहले बनता है।
- अवतल लेन्स की सहायता से यह दोष दूर होता है।
दूर दृष्टि (Long sight):
- दूर की वस्तुएँ स्पष्ट दिखाई देती हैं एवं निकट की वस्तुएँ स्पष्ट नहीं दिखाई देती हैं।
- प्रतिबिम्ब रेटिना से दूर बनता है।
- उत्तल लेन्स की सहायता से यह दोष दूर होता है।
(ii) एण्डोलिम्फ एवं पेरिलिम्फ में अंतर –
एण्डोलिम्फ (Endolymph):
यह एक विशेष प्रकार का द्रव है जो अन्तः कर्ण में पाया जाता है, जब ध्वनि तरंगें गुजरती है, तब इसमें कम्पन उत्पन्न होता है तो ध्वनि। सुनाई देती है।
पेरिलिम्फ (Perilymph):
यह अन्त:कर्ण में उपस्थित विशेष प्रकार का द्रव जो अन्त:कर्ण के ऊतकों के चारों तरफ पाया हैं जाता है। यह अन्त:कर्ण की रक्षा करता है।
तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अनुकंपी एवं परानुकंपी तंत्रिकीय तंत्र के तीन-तीन कार्यों को लिखिए।
उत्तर:
अनुकंपी तंत्रिका तंत्र के कार्य:
- यह त्वचा में उपस्थित रुधिर वाहिनियों को संकीर्ण करता है, जिसके कारण पैलर (Pallor) होता है।
- इसके द्वारा इरेक्टर पिलाई पेशियों का संकुचन होता है और बाल खड़े हो जाते हैं।
- यह लार ग्रंथियों के स्राव को कम करता है।
- यह हृदय स्पंदन को तेज करता है।
- यह रक्त चाप को बढ़ाता है।
- यह स्वेद ग्रंथियों के स्राव को प्रारम्भ करता है।
- इसके कारण आँख की पुतली अधिक फैल जाती है।
- इसके द्वारा श्वसन दर तीव्र हो जाती है।
- यह आँत में क्रमाकुंचन गति (Peristalsis) को कम करता है।
- यह मूत्राशय की पेशियों का विमोचन करता है।
- यह मूत्राशय की स्फिक्टर पेशियों का संकुचन करता है।
- यह रुधिर में शर्करा के स्तर को बढ़ाता है।
- यह रुधिर में लाल रुधिर कणिकाओं की संख्या में वृद्धि करता है तथा रुधिर को शीघ्र जमाता है।
- इसके सामूहिक प्रभाव से भय, पीड़ा तथा क्रोध पर प्रभाव पड़ता है।
परानुकंपी तंत्रिका के कार्य:
- यह रुधिर वाहिनियों की गुहा को चौड़ा करता है, केवल कोरोनरी रुधिर वाहिनियों को छोड़कर।
- यह लार के स्राव में तथा अन्य पाचक रसों में वृद्धि करता है।
- यह नेत्र की पुतली का संकुचन करता है।
- आंत्रीय भित्ति में संकुचन एवं गति उत्पन्न करता है।
- ब्रौन्काई का संकीर्णन करता है।
- यह मूत्राशय की स्फिक्टर पेशियों का विमोचन करता है। यह मूत्राशय की दूसरी पेशियों को भी संकुचित करता है।
- बाह्य जनन अंगों की रुधिर वाहिनियों की गुहा को भी चौड़ा करता है।
- इस तंत्रिका तंत्र का प्रभाव सामूहिक रूप से आराम, सुख की स्थितियाँ उत्पन्न करना है।
प्रश्न 2.
मस्तिष्क में स्थित नियंत्रण केन्द्र की उपस्थिति बताइए –
- तापक्रम
- भूख
- श्वसन
- जल सन्तुलन
- दृष्टि
- श्रवण
- मासिक चक्र
- सीखना
- पीयूष हॉर्मोन
- साम्यावस्था एवं समन्वयन
- परिवहन
- सोना
- हृदय धड़कन।
उत्तर:
- तापक्रम – थैलेमस (Thalamus)
- भूख – हाइपोथैलेमस (Hypothalamus)
- श्व सन – मेड्यूला आब्लांगेटा (Medulla Oblongata)
- जल सन्तुलन – हाइपोथैलेमस (Hypothalamus)
- दृष्टि – सेरीब्रल कॉर्टेक्स (Cerebral Cortex)
- श्रवण – सेरीब्रल कॉर्टेक्स (Cerebral Cortex)
- मासिक चक्र – हाइपोथैलेमस (Hypothalamus)
- सीखना – सेरीब्रल कॉर्टेक्स (Cerebral Cortex)
- पीयूष हॉर्मोन – हाइपोथैलेमस (Hypothalamus)
- साम्यावस्था एवं समन्वयन – सेरीबेलम (Cerebellum)
- परिवहन – मेड्यूला आब्लांगेटा (Medulla Oblongata)
- सोना – सेरीब्रल कॉर्टेक्स (Cerebral Cortex)
- हृदय धड़कन – मेड्यूला आब्लांगेटा (Medulla Oblongata)।
प्रश्न 3.
मनुष्य के मस्तिष्क के विभिन्न भागों के कार्य लिखिए।
उत्तर:
मानव मस्तिष्क के विभिन्न भागों के नाम तथा कार्य निम्नानुसार हैं –
(1) अग्रमस्तिष्क –
- प्रमस्तिष्क
- डायनसेफेलॉन हाइपोथैलेमस।
(2) मध्य मस्तिष्क –
- सेरीब्रल पिण्डक
- कार्पोरा क्वाड्रीजेमिना।
(3) पश्च मस्तिष्क –
- सेरीबेलम
- पॉन्स (Pons)
- मेड्यूला आब्लांगेटा।
कार्य:
(1) प्रमस्तिष्क के कार्य:
- ये चेतना बुद्धि, विचार, स्मृति एवं इच्छा शक्ति के केन्द्र हैं।
- यह भावनाओं एवं वाणी पर भी नियन्त्रण रखता है।
- यह बोध का केन्द्र है।
- इसमें विभिन्न संवेदनाओं के लिये अलग-अलग केन्द्र होते हैं।
(2) डायनसेफेलॉन के कार्य –
- यह भावनाओं को प्रकट करने तथा सर्दी, गर्मी तथा पीड़ा का अभिज्ञान कराता है।
- यह कार्बोहाइड्रेट तथा वसा का उपापचय, शरीर के ताप, रुधिर दाब तथा जल संकुचन का नियमन करता है।
- इसमें भूख, प्यास, नींद, थकावट, क्रोध आदि के नियमन के लिये स्वायत्त तंत्रिका तंत्र के केन्द्र होते हैं।
(3) सेरिब्रल पिंडक के कार्य-ये प्रमस्तिष्क के चालक आवेगों को पादों की पेशियों तक पहुँचाने का कार्य करते हैं।
(4) कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमिना के कार्य-ये दृष्टि व घ्राण प्रतिवर्ती के केन्द्र हैं।
(5) सेरीबेलम के कार्य-यह कंकाल पेशियों के आकुंचन एवं समन्वय का नियमन करता है।
- यह प्रमस्तिष्क द्वारा प्रेरित ऐच्छिक गतियों का नियमन करता है।
- यह शरीर के सन्तुलन एवं साम्यावस्था का नियमन करता है।
(6) पॉन्स वैरोलाई के कार्य-शरीर के दोनों पार्यों की पेशियों की गतियों में समन्वय बनाता है।
(7) मेड्यूला आब्लांगेटा के कार्य –
- सभी अनैच्छिक क्रियाओं का नियन्त्रण होता है, जैसे-हृदय • स्पंदन, श्वास दर, आहारनाल की नलियों का संकुचन।
- मेड्यूला में निगलने, वमन करने, रलसने और छींकों की क्रियाओं के नियमन केन्द्र भी होते हैं।
प्रश्न 4.
प्रतिवर्ती क्रिया क्या है ? प्रतिवर्ती क्रियाओं के प्रकार, इसकी क्रियाविधि एवं महत्वों का वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रतिवर्ती चाप का सचित्र वर्णन कीजिये।
अथवा
प्रतिवर्ती क्रिया क्या है ? इसे प्रदर्शित करते हुए प्रतिवर्ती क्रिया का चित्र बनाइये।
उत्तर:
प्रतिवर्ती क्रियाएँ (Reflex actions):
वे अनैच्छिक क्रियाएँ, जो किसी उद्दीपन अथवा क्रिया की प्रतिक्रिया के रूप में होती है, प्रतिवर्ती क्रिया कहलाती हैं। इनका संचालन तथा नियन्त्रण मेरुरज्जु के द्वारा होता है । सुई चुभोने पर पैर को हटाना, मिठाई देखकर लार का आना इत्यादि प्रतिवर्ती क्रिया के उदाहरण हैं। प्रतिवर्ती क्रिया के प्रकार-प्रतिवर्ती क्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं –
- ऐच्छिक एवं
- अनैच्छिक।
ऐच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण मस्तिष्क एवं अनैच्छिक क्रियाओं का नियंत्रण मेरुरज्जु (Spinal Cord) के द्वारा होता है। प्रतिवर्ती क्रिया एक प्रकार की अनैच्छिक क्रिया है, जो हमारे शरीर में किसी क्रिया के विपरीत होती है। यह दो प्रकार की होती हैं –
(1) अनुबंधी प्रतिवर्ती क्रिया (Conditional reflex actions):
जब प्रतिवर्ती क्रियाएँ सीखने पर होती हैं, जैसे-पैवलोव का प्रयोग कुत्तों में भोजन देखकर लार का टपकना, साइकिल चलाना।
(2) आबन्धित प्रतिवर्ती क्रिया (Unconditional reflex action):
जब प्रतिवर्ती क्रियाएँ वंशानुगत या जन्म से होती हैं एवं किसी प्रकार के सीखने या अनुभव की आवश्यकता नहीं होती है।
प्रतिवर्ती क्रियाविधि (Mechanism of reflex action):
प्रतिवर्ती क्रिया का नियंत्रण मेरुरज्जु द्वारा होता है। इस क्रिया में संवेदी तंत्रिका या अभिवाही तंत्रिका द्वारा संवेदना मेरुरज्जु तक पहुँचती है। प्रेरणा या संवेदना संवेदी तन्तुओं से होकर पृष्ठ मूल (Dorsal root) एवं गुच्छिका (Ganglia) से होते हुए मेरुरज्जु में पहुँचती है। चालक तंत्रिका या अपवाही तंत्रिका अधर मूल (Ventral root) से निकलकर पेशियों में जाकर विभाजित हो जाती है।
इस प्रकार संवेदना मेरुरज्जु में पहुँचने के पश्चात् तुरन्त चालक तंत्रिकाओं द्वारा वापस कर दी जाती है, उसे प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex action) कहते हैं। प्रतिवर्ती क्रिया के पूर्ण पथ को प्रतिवर्ती चाप (Reflex arch) कहते हैं। प्रतिवर्ती क्रियाओं के मुख्य उदाहरण निम्नलिखित हैं –
- स्वादिष्ट भोजन देखकर मुख में लार आना।
- तीव्र प्रकाश में नेत्र पलकों का सिकुड़ना।
- घबराकर हृदय गति का तीव्र होना।
- डरकर रोंगटे खड़े हो जाना।
- काँटा चुभने पर घुटने को तेजी से उठा लेना।
प्रतिवर्ती क्रिया में संवेदना पृष्ठ मूल से होकर मेरुरज्जु में एवं मेरुरज्जु के अधर मूल से संवेदना प्रभावी अंगों में पहुँचती है। प्रतिवर्ती क्रिया एक महत्वपूर्ण क्रिया है, जो बाहरी आघातों एवं दुर्घटनाओं से शरीर की रक्षा करती है। शरीर के भीतर होने वाली क्रियाओं का नियंत्रण मेरुरज्जु द्वारा होता है।
प्रतिवर्ती चाप का महत्व (Importance of Reflex Arch):
- यह क्रिया मेरुरज्जु द्वारा नियंत्रित होने के कारण समय कम लगता है एवं भयंकर दुर्घटना से शरीर की रक्षा होती है।
- जीव शरीर की रक्षा अचानक होती रहती है।
- मस्तिष्क को अन्य क्रियाओं के लिए समय मिलता है, क्योंकि प्रतिवर्ती क्रिया का नियंत्रण मेरुरज्जु द्वारा होता है।
प्रश्न 5.
मानव में पाये जाने वाली क्रेनियल तंत्रिकाओं की संख्या, नाम, स्थान एवं कार्य बताइए।
उत्तर:
मानव मस्तिष्क से निकलने वाली तंत्रिकाओं को क्रेनियल तंत्रिकाएँ (Cranial nerves) कहते हैं। मनुष्य में 12 जोड़ी क्रेनियल तंत्रिकाएँ पायी जाती हैं, जिनके नाम, स्थान एवं कार्य निम्नानुसार हैं –