MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 5 मिठाईवाला

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 5 मिठाईवाला (कहानी, भगवती प्रसाद वाजपेयी)

मिठाईवाला पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

मिठाईवाला लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
खिलौने वाले की आवाज कैसी थी?
उत्तर:
खिलौने वाले की आवाज मादक और मधुर थी।

प्रश्न 2.
खिलौने वाले की आवाज सुनकर बच्चों पर उसका क्या प्रभाव पड़ता?
उत्तर:
खिलौने वाले की आवाज सुनकर बच्चों में हलचल मच जाती थी। वे इठलाते हुए खिलौने वाले को घेर लेते थे।

प्रश्न 3.
मुरलीवाले का व्यक्तित्व कैसा था?
उत्तर:
मुरलीवाले का व्यक्तित्व बड़ा सरल और रोचक था।

प्रश्न 4.
मुरलीवाले की आवाज सुनकर रोहिणी को किसका स्मरण हुआ?
उत्तर:
मुरलीवाले की आवाज सुनकर रोहिणी को खिलौनेवाले का स्मरण हुआ।

प्रश्न 5.
खिलौनेवाला प्रत्येक बार किस-किस तरह से आवाज लगाकर बच्चों को बुलाता था?
उत्तर:
खिलौनेवाला प्रत्येक वार बच्चों को बहलानेवाला, खिलौनेवाला मधुर और मादक आवाज लगाकर बच्चों को बुलाता था।

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प्रश्न 6.
खिलौनेवाले, मुरलीवाले और मिठाईवाले में क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
खिलौनेवाले, मुरलीवाले और मिठाईवाले में अपनापन और भाईचारा का सम्वन्ध था।

प्रश्न 7.
कहानी विधा के मूल तत्त्वों में से किसी एक तत्त्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
कहानी विधा के मूल तत्त्व 6 हैं-

  1. कथानक या कथावस्तु,
  2. पात्र और चरित्र-चित्रण
  3. देशकाल या वातावरण
  4. कथोपकथन या संवाद
  5. भाषा-शैली, और
  6. उद्देश्य।

उद्देश्य :
कहानी विधा का अन्तिम तत्त्व है-उद्देश्य । कहानी के सभी तत्त्व अर्थात् . कथावस्तु, पात्र, संवाद, वातावरण और भाषा-शैली सभी की सार्थकता की कसौटी उद्देश्य ही है। कहानी का उद्देश्य उपदेशात्मक तो होता है, लेकिन यह प्रत्यक्ष न होकर अप्रत्यक्ष अर्थात् कलात्मक ढंग से ही होता है। यहाँ यह ध्यान देना होगा कि सभी कहानियों के उद्देश्य अलग-अलग ढंग से दिखाई देते हैं। कुछ कहानियों के उद्देश्य स्पष्ट होते . हैं, तो कुछ के अस्पष्ट। नई कहानियों के उद्देश्य में परम्परा के प्रति विद्रोह वर्तमान से निराशा, कुण्ठा, घुटन, पराजय आदि प्रवृत्तियां कलात्मक ढंग से प्रस्तुत होती हैं।

मिठाईवाला दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मुरलीवाले के भाव सुनकर विजय वाबू ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर:
मुरलीवाले के भाव सुनकर विजयबाबू ने अच्छी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने मुरलीवाले से कहा, “तुम लोगों को झूठ बोलने की आदत ही होती है। देते होगे सभी को दो-दो पैसे में, पर एहसान का बोझा मेरे ही ऊपर लाद रहे हो।”

प्रश्न 2.
मुरलीवाले के अनुसार ग्राहकों के क्या दस्तूर हैं?
उत्तर:
मुरलीवाले के अनुसार ग्राहकों के दस्तूर हैं कि दुकानदार चाहे हानि ही उठाकर चीज क्यों न बेचे, पर ग्राहक यही समझते हैं-दुकानदार मुझे लूट रहा है। इस तरह ग्राहक दुकानदार का बिल्कुल विश्वास नहीं करता है।

प्रश्न 3.
“तुम्हारी माँ के पास पैसे नहीं हैं, अच्छा, तुम भी यह लो।” इस कथन से मुरलीवाले को किस स्वभावगत विशेषता का पता चलता है?
उत्तर:
“तुम्हारी माँ के पास पैसे नहीं हैं, अच्छा, तुम भी यह लो।” उपर्युक्त कथन से मुरलीवाले के आत्मीय और वात्सल्य स्वभाव की विशेषता का पता चलता है। इसके साथ ही यह कि वह बच्चों की खुशी में अपने बच्चों की खुशी का अनुभव करता था।

प्रश्न 4.
मिठाईवाला दादी को अपनी मिठाइयों की क्या-क्या विशेषताएँ बताता हैं?
उत्तर:
मिठाईवाला दादी को अपनी मिठाइयों की निम्नलिखित विशेषताएँ बताता है-“ये नए तरह की मिठाइयाँ हैं-रंग-बिरंगी, कुछ-कुछ खट्टी, कुछ-कुछ मीठी, जायकेदार, बड़ी देर तक मुँह में टिकती हैं। जल्दी नहीं घुलतीं। बच्चे इन्हें बड़े चाव से चूसते हैं। इन गुणों के सिवा ये खाँसी भी दूर करती हैं। कितनी दूँ? चपटी, गोल, पहलदार गोलियाँ हैं। पैसे की सोलह देता हूँ।”

प्रश्न 5.
कहानी के आधार पर मिठाईवाले की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कहानी के आधार पर मिठाईवाले की चारित्रिक विशेषतएँ निम्नलिखित हैं-मिठाईवाला प्रतिष्ठित और धनी व्यक्ति था। उसके भी बच्चे और भरा-पूरा परिवार था। पर वह सब दुर्भाग्य से नष्ट हो गया था। अब वह अपने बच्चों को खिलौने आदि बेचते हए ढूँढ़ता फिरता था। इसलिए उसके स्वर में स्नेह और माधुर्य होता था। वह मुरली बजा-बजाकर, गाना सुना-सुनाकर मुरली बेचता था। इसलिए जब वह नगर में मुरलियाँ बेचने के लिए आया तो नगर-भर में उसके आने का समाचार फैल गया।

प्रश्न 6.
अन्य दुकानदारों और मिठाईवाले में क्या अन्तर है?
उत्तर:
अन्य दुकानदारों और मिठाईवाले में बहुत बड़ा अन्तर है। अन्य दुकानदारों की अपेक्षा मिठाईवाले का बच्चों के प्रति बहुत अधिक प्यार और लगाव था। वह सौदा सस्ता बेचता है। इसके साथ ही वह भला’ और ईमानदार आदमी है। समय का मारा-मारा फिरने पर भी उसमें सरसता और विनम्रता है।

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प्रश्न 7.
मिठाईवाले ने रोहिणी से पैसे क्यों नहीं लिये?
उत्तर:
मिठाईवाले ने रोहिणी से पैसे नहीं लिये; क्योंकि उसके पास पैसे की कमी नहीं थी। दूसरी बात यह कि उसे रोहिणी के बच्चों में अपने खोए हुए बच्चों की एक झलक मिल गई, जिनकी खोज में वह वर्षों से निकला है।

प्रश्न 8.
कहानी के विकास-क्रम का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:

हिन्दी कहानी के विकास क्रम को छः भागों में इस प्रकार बाँटा जा सकता है-

  1. पहला उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक)
  2. दूसरा उत्थान काल (सन् 1911 से 1919 तक)
  3. तीसरा उत्थान काल (सन् 1920 से 1935 तक)
  4. चौथा उत्थान काल (सन् 1936 से 1949 तक)
  5. पाँचवाँ उत्थान काल (सन् 1950 से 1960 तक)
  6. छठवाँ उत्थान काल (सन् 1960 से अब तक)।

1. पहला उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक) :
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’। यह काल हिन्दी कहानी का आरम्भिक काल कहा जाता है। इसके बाद चन्द्रधर शर्मा की ‘इन्दुमती’, बंग महिला की ‘दुलाईवाली’, रामचन्द्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’ आदि कहानियाँ हिन्दी की आरम्भिक कहानियाँ मानी जाती हैं।

2. दूसरा उत्थान काल (सन् 1911 से 1919 तक) :
इस काल में जयशंकर प्रसाद महाकथाकार के रूप में उभड़कर आए। सन् 1911 में उनकी ‘ग्राम’ कहानी ‘इन्दु’ नामक.मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनकी ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘इन्द्रजाल’ आदि कहानी-संग्रह प्रकाशितः हुए। उनके अतिरिक्त विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, ज्वालादत्त शर्मा, चतुरसेन शास्त्री, जे.पी. श्रीवास्तव, राधिकारमण प्रसाद सिंह आदि उल्लेखनीय कथाकार इसी काल की देन हैं।

3. तीसरा उत्थान काल (सन् 1920 से 1935 तक) :
इस काल को महत्त्व कथा साहित्य की दृष्टि से बहुत ही अधिक है। यह इसलिए कि इसी काल में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द का आगमन हुआ। उन्होंने अपनी कहानियों में भारतीय समाज की ऐसी सच्ची तस्वीर खींची जो किसी काल के किसी भी कथाकार के द्वारा सम्भव नहीं हुआ। ‘ईदगाह’, ‘पंच-परमेश्वर’, बूढ़ी काकी’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘मन्त्र’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘दो बैलों की कथा’ आदि उनकी बहुत प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। इस काल के अन्य महत्त्वपूर्ण कथाकारों में सुदर्शन, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, शिवपूजन सहाय, सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, रामकृष्ण दास, वृन्दावन लाल वर्मा, भगवती प्रसाद बाजपेयी आदि हैं।

4. चौथा उत्थान काल (सन् 1936 से 1949 तक) :
कहानी कला की दृष्टि से इस काल का महत्त्व इस दृष्टि से है कि इस काल की कहानियों ने विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं को जन्म दिया। मनोवैज्ञानिक और प्रगतिवादी कथाकार इस काल में अधिक हुए। मनोवैज्ञानिक कथाकारों में इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय, जैनेन्द्र कुमार, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार, पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र आदि हुए।

प्रगतिवादी कथाकारों में यशपाल, राहुल सांकृत्यायन; रांगेय राघव, अमृत लाल नागर, राजेन्द्र यादव आदि उल्लेखनीय हैं। विचार प्रधान कथाकारों में धर्मवीर भारती, कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महिला कथाकारों में सुभद्राकुमारी चौहान, शिवरानी देवी, मन्नू भण्डारी, शिवानी आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।

5. पाँचवाँ उत्थान काल (सन् 1950 से 1960 तक) :
इस काल की कहानी को कई उपनाम मिले, जैसे-‘नई कहानी’, ‘आज की कहानी’, ‘अकहानी’ आदि। इस काल की कहानियों में वर्तमान युग-बोध, सामाजिक विभिन्नता, वैयक्तिकता, अहमन्यता : आदि की अभिव्यंजना ही मुख्य रूप से सामने आई। इस काल के कमलेश्वर, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, अमरकान्त, निर्मल वर्मा, मार्कण्डेय, शिव प्रसाद सिंह, भीष्म साहनी. मोहन राकेश, कृष्णा सोबती, रघुवीर सहाय, शैलेश मटियानी, हरिशंकर पारसाई, लक्ष्मीनारायण लाल, राजेन्द्र अवस्थी आदि कथाकारों के नाम बहुत प्रसिद्ध हैं।

6. छठवाँ उत्थान काल (सन् 1960 से अव तक) :
इस काल को साठोत्तरी हिन्दी कहानी के नाम से जाना जाता है। इस काल के कहानीकार पूर्वापेक्षा नवी चंतना और शिल्प के साथ रचना-प्रक्रिया में जुटे हुए दिखाई देते हैं। इस काल की कहानी की यात्रा विभिन्न प्रकार के आन्दोलनों से जुड़ी हुई है, जैसे-नयी कहानी (कमलेश्वर, अमरकान्त, मार्कण्डेय, फणीश्वर नाथ ‘रेणु’, राजेन्द्र यादव, मन्नू भण्डारी, मोहन राकेश, शिव प्रसाद सिंह, निर्मल वर्मा, उषा प्रियंवदा आदि), अकहानी (रमेश बख्शी, गंगा प्रसाद ‘विमल, जगदीश चतुर्वेदी, प्रयाग शुक्ल, दूधनाथ सिंह, ज्ञानरंजन आदि), सचेतन कहानी (महीप सिंह, योगेश गुप्त, मनहर चौहान, रामकुमार ‘भ्रमर’ आदि), समानान्तर कहानी (कामतानाथ, से.रा. यात्री, जितेन्द्र भाटिया, इब्राहिम शरीक, हिमांशु जोशी आदि), सक्रिय कहानी (रमेश बत्रा, चित्रा मुद्गल, राकेश वत्स, धीरेन्द्र अस्थाना आदि)।

इनके अतिरिक्त इस काल के ऐसे भी कथाकार हैं, जो उपर्युक्त आन्दोलनों से अलग होकर कथा-प्रक्रिया में समर्पित रहे हैं, जैसे-रामदरश मिश्र, विवेकी राय, मृणाल पाण्डेय, मृदुला गर्ग, निरूपमा सेवती, शैलेश मटियानी, ज्ञान प्रकाश विवेक, सूर्यबाला, मेहरून्निसा परवेज, मंगलेश डबराल आदि।

आज की कहानी शहरी-सभ्यता, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की नई अवधारणा, आपसी . सम्बन्धों के बिखराव, भय और असुरक्षा की भावना, चारित्रिक ह्रास, यौन कुण्ठा, घिनौनी मानसिकता, अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष, औद्योगिकीकरण के दुष्प्रभाव से दम तोड़ती मानवता आदि को चित्रित करने में सक्रिय दिखाई दे रही हैं। इसकी भाषा-शैली दोनों ही तराशती हुई और नए-नए तेवरों को प्रस्तुत करने की क्षमता प्रशंसनीय है।

मिठाईवाला भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्तियों की व्याख्या कीजिए-
(क) “मिलता भला क्या है। यही खाने भर को मिल जाता है, कभी नहीं भी मिलता है। पर हाँ, सन्तोष, धीरज और कभी-कभी असीम सुख जरूर मिलता है और यही मैं चाहता भी हूँ”।
शब्दार्थ :
असीम-अपार, जिसकी कोई सीमा न हो।
उत्तर:
प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा भगवती प्रसाद वाजपेयी द्वारा लिखित कहानी ‘मिठाईवाला’ से है। इसमें लेखक ने उस समय का उल्लेख किया है, जब रोहिणी ने मिठाईवाले से पूछा कि उसे इस व्यवसाय से भला क्या मिलता होगा? इसे सुनकर मिठाईवाले ने रोहिणी को बतलाया कि

व्याख्या :
उसे इस व्यवसाय में कुछ अधिक लाभ नहीं मिलता है। उसे जो कुछ मिलता है, उससे वह अपना पेट भर लेता है। जब कभी उसे कुछ लाभ नहीं होता है, तब वह चुपचाप रह जाता है। उस समय उसे सन्तोष, धीरज और असीम सुख-शान्ति का अवश्य अनुभव होता है। इसे वह बहुत बड़ा लाभ समझता है।

विशेष :

  1. यह अंश प्रेरक है।
  2. ‘सन्तोषः परं सुखम्’ सूक्ति का प्रयोग है।
  3. भाषा-शैली सरल है।

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मिठाईवाला भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निर्देशानुसार वाक्यों को परिवर्तित कीजिए-
(क) मुरलीवाला पहले खिलौने वेचा करता था (प्रश्नवाचक वाक्य)
(ख) मुझे खिलौने चाहिए। (आदेशात्मक वाक्य)
(ग) तुमको माँ ने मिठाई खरीदने के पैसे दिए हैं। (नकारात्मक वाक्य)
(घ) वह फिर इधर आएगा (अनिश्चयवाचक वाक्य)
उत्तर:
(क) मुरलीवाला पहले क्या बेचा करता था?
(ख) मुझे खिलौने दो।
(ग) तमको माँ ने मिठाई खरीदने के पैसे नहीं दिए हैं।
(घ) शायद वह फिर इधर आएगा।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए-
विजय, निश्चय, पराक्रम, स्मरण, विश्वास, हर्ष, सन्तोष।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्द अनेकार्थी हैं शब्दों के दो-दो अर्थ लिखकर वाक्यों में प्रयोग. कीजिए
अर्थ, कल, पृष्ट, वर, हरि, अन्तर।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 5 मिठाईवाला img-2

प्रश्न 4.
नीचे लिखे भिन्नार्थक समोच्चारित शब्दों की जोड़ी उदाहरण अनुसार बनाइए तथा उनके अर्थ लिखिए-
उदाहरण पथ = राह = पथ्य = रोगी को दिया जाने वाला आहार
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 5 मिठाईवाला img-3
उत्तर:
अंश = भाग = अंस = कन्धा
ग्रह = नक्षत्र = गृह = घर
मातृ = माता = मात्र = केवल
चर्म = चमड़ा = चरम = अन्तिम

मिठाईवाला योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
आप अपने परिवेश के जिस दुकानदार से प्रभावित हों उसकी विशेषताएँ अपने सहपाठियों के साथ बाँटिए? तथा उस पर कुछ पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
कहानी का नाटकीय रूपान्तरण करके शाला के किसी कार्यक्रम में अभिनय कीजिए?
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
व्यवसायी अपने वचत का पैसा बैंकों में रखते हैं, क्या आपने कभी बैंक में जाकर जमा पर्ची आहरण या चालान भरकर राशि जमा की या निकाली है। यहाँ दी हुई जमा पर्ची का प्रारूप भरकर देखें व बैंक जाकर जमा-आहरण की अधिक जानकारी प्राप्त करिए तथा अन्य बैंक आवेदन पत्रों को एकत्रित कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

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मिठाईवाला परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

मिठाईवाला लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मिठाईवाला’ मधुर ढंग से क्यों गाता था?
उत्तर:
मिठाईवाला मधुर ढंग से गाकर सुनने वालों को अपनी ओर आकर्षित करना चाहता था। इसीलिए वह मधुर ढंग से गाता था।

प्रश्न 2.
खिलौनों का बच्चों पर क्या प्रभाव पड़ता था?
उत्तर:
खिलौनों को देखते ही बच्चों का उत्साह बढ़ जाता था। वे पुलकित हो उठते थे और पैसे लाकर खिलौनों का मोल-भाव करने लगते थे।

प्रश्न 3.
मुरलीवाले की कितनी उम्र थी?
उत्तर:
मुरलीवाला ज्यादा बड़ा नहीं था। वह तीस-चालीस वर्ष का था।

प्रश्न 4.
‘मिठाईवाला’ किस-किस रूप में उस गली में आया था।
उत्तर:
मिठाईवाला उस गली में सबसे पहले तो खिलौनेवाले के रूप में आया था। उसके बाद वह मुरलीवाले के रूप में आया। अन्त में वह मिठाईवाला बनकर उस गली में आया था।

मिठाईवाला दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
नगर-भर में मुरलीवाले के आने का समाचार क्यों फैल गया?
उत्तर:
मुरलीवाला प्रतिष्ठित और धनी व्यक्ति था। उसके भी बच्चे और भरा-पूरा परिवार था। पर वह सब दुर्भाग्य से नष्ट हो गया था। अब वह अपने बच्चों को खिलौने आदि बेचते हुए ढूँढ़ता फिरता था। इसलिए उसके स्वर में स्नेह और माधुर्य होता था। वह मुरली बजा-बजाकर, गाना सुना-सुनाकर मुरली बेचता था। इसलिए जब वह नगर में मुरलियाँ बेचने के लिए आया तो नगर-भर में उसके आने का समाचार फैल गया।

प्रश्न 2.
रोहिणी को मिठाईवाले का स्वर सुनकर खिलौनेवाले और मुरलीवाले का स्मरण क्यों हो आया?
उत्तर:
मिठाईवाला पहले भी कई बार उस गली में आया था जहाँ रोहिणी रहती थी। पहले वह खिलौने लेकर आया था। इसके बाद वह मुरलियाँ लेकर आया था। उसकी आवाज में मिठास होती थी। वह बच्चों के साथ घुल-मिल जाता था और उन्हें तरह-तरह की चीजें सस्ते दामों में बेचकर प्रसन्न होता था।

मिठाईवाले की आवाज में माधुर्य था। अतः जब उसने मिठाईवाले की मृदुल आवाज सुनी तो उसे खिलौनेवाले और मुरलीवाले का स्मरण हो आया।

प्रश्न 3.
रोहिणी को मिठाईवाले के सम्बन्ध में जानने की उत्सुकता क्यों थी?
उत्तर:
गली में अपनी चीजें बेचने के लिए कई फेरीवाले आते थे। पर उनकी आवाज में ऐसा कोई आकर्षण नहीं होता था। मिठाईवाले की आवाज में मिठास थी। इससे पहले वह खिलौने बेचने के लिए उस गली में आया था। एक बार वह मुरलियाँ बेचने के लिए भी यहीं आया था। वह बच्चों के साथ बड़े प्यार से बातें करता था और सौदा भी सस्ता बेचता था। वह भला आदमी जान पड़ता था और लगता था कि वह दुर्भाग्य से इस तरह मारा-मारा फिर रहा है। इसलिए मिठाईवाले के बारे में जानने के लिए वह उत्सुक हो उठी थी।

मिठाईवाला लेखक-परिचय

प्रश्न.
भगवती प्रसाद वाजपेयी के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय :
भगवती प्रसाद वाजपेयी का जन्म सन् 1899 ई. में कानपुर जिले के एक गाँव मंगलापुर में हुआ था। बचपन में ही उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। इस कारण वे पढ़ नहीं पाए। उन्होंने केवल आठवीं कक्षा तक ही नियमित शिक्षा प्राप्त की थी। अपनी आजीविका चलाने के लिए उन्होंने पशु चराना, खेती करना, छापेखाने में प्रूफरीडिंग आदि अनेक कार्य किए।

रचनाएँ :
वाजपेयीजी ने अनेक उपन्यास और कहानियाँ लिखी हैं। ‘प्रेम पथ’, ‘त्यागमयी’, मनुष्य और देवता’, ‘विश्वास का बल’ उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। उनके प्रमुख कथा-संग्रह हैं-मधुपर्क, हिलोर, दीप-मालिका, मेरे सपने, बाती और लौ तथा उपहार।

साहित्यक विशेषताएँ :
वाजपेयीजी प्रेमचन्द के बाद के युग के प्रमुख साहित्यकारों में से हैं। उन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक, कविता आदि अनेक विधाओं में साहित्य की रचना की है। उन्होंने सामाजिक और मनोवैज्ञानिक विषयों पर अनेक कहानियाँ लिखी हैं। उन्होंने इन कहानियों में मध्यम वर्ग के पात्रों को स्थान दिया है। उनकी भाषा सहज, प्रवाहपूर्ण और सरल है।

बालोपयोगी साहित्य और संपादन के क्षेत्र में भी उनका योगदान काफी महत्त्वपूर्ण रहा है। उन्होंने ‘उर्मि’ और ‘आरती’ नाम की पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया था।

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मिठाईवाला पाठ का सारांश

प्रश्न.
‘मिठाईवाला’ पाठ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
इस कहानी में लेखक ने एक ऐसे धनी और प्रतिष्ठित व्यक्ति की मानसिक दशा का वर्णन किया है जिसके बच्चों की मृत्यु हो गई थी। वह अपने बच्चों के खो जाने के दुख को मिठाई, मुरली आदि बेचकर भुलाने का प्रयत्न करता है। बच्चे उससे चीजें खरीदकर खुश होते हैं। उनकी खुशी में वह अपने बच्चों की खुशी का अनुभव करता है।

वह खिलौने लेकर गलियों में जाता और मधुर स्वर में बोलता-‘खिलौनेवाला, बच्चों को बहलाने वाला। बच्चे उसकी स्नेह से युक्त मधुर आवाज को सुनते ही उसके पास आ जाते। वह वहीं कहीं बैठकर खिलौनों की पेटी खोल देता। बच्चे खिलौने देखकर खुश हो जाते। वह बच्चों को देखता, उनकी नन्हीं-नन्हीं उँगलियों और हथेलियों से पैसे लेकर उन्हें खिलौने दे देता। बच्चे खिलौने लेकर उछलने-कूदने लगते।

राय विजय बहादुर के दो बच्चों-चुन्नू और मुन्नू ने भी उससे खिलौने लिये। उनकी माँ रोहिणी को वे खिलौने बहुत सस्ते लगे। बच्चे खिलौनों से घर में उछल-कूद मचाने लगे।

छ: महीने के बाद वह मुरलियाँ लेकर बेचने आया। वह मुरली बजाकर, गाना सुनाकर मुरली बेचता था। वह भी दो-दो पैसे में। प्रतिदिन नगर की प्रत्येक गली में उसका मीठा-मीठा स्वर सुनाई पड़ता था। कई लोग उस मुरलीवाले की चर्चा करते थे। रोहिणी ने भी उस मुरलीवाले का स्वर सुना। उसे तुरन्त खिलौनेवाले का स्मरण हो आया।

मुरलीवाले की आवाज सुनकर बच्चों का झुण्ड इकट्ठा हो गया। उन्हें देख मुरलीवाला प्रसन्न हो उठा। उसने सभी बच्चों को प्रेमपूर्वक मुरलियाँ दीं। विजय बाबू ने भी अपने बच्चों के लिए दो मुरलियाँ लीं।

अपने मकान में बैठी हई रोहिणी मुरलीवाले की बातें सुनती रही। उसने महसूस किया कि बच्चों के साथ इस प्रकार प्यार से बातें करने वाला फेरीवाला पहले कभी नहीं आया।

आठ मास के वाद रोहिणी को फिर नीचे की गली में आवाज सुनाई दी-बच्चों को बहलाने वाला, मिठाईवाला। रोहिणी झट से नीचे उतर आई। उसने दादी से मिठाई वाले को बुलाने के लिए कहा। मिठाई वाला शीघ्र ही वहाँ आ गया। उसने कहा कि उसके पास कई तरह की मिठाइयाँ हैं। वे जल्दी नहीं घुलतीं। बच्चे इन्हें चाव से खाते हैं। इनसे खाँसी भी दूर होती है।

रोहिणी ने चार पैसे की मिठाइयाँ मिठाईवाले से लीं।

रोहिणी ने दादी से कहा कि वह मिठाईवाले से पूछे कि वह कहाँ रहता है और क्या पहले भी वह कभी इधर आया था।

रोहिणी को उसने बताया कि इस व्यवसाय से उसे खाने-भर को मिल जाता है। इससे उसे सन्तोष, धैर्य और असीम संख मिलता है। उसने रोहिणी को उसकी जिज्ञासा शान्त करने के लिए बताया कि उसका मकान, व्यवसाय, नौकर-चाकर, सभी कुछ था। सुन्दर स्त्री थी और बच्चे थे। सभी प्रकार की सुख-सुविधा उसे प्राप्त थी। पर दुर्भाग्य से सभी कुछ नष्ट हो गया था। वह उन बच्चों की खोज में निकला था जिनके कारण उसके आँगन में कोलाहल मचा रहता था। उनके न रहने से वह बहुत दुखी था। अपने दुख को भुलाने के लिए ही वह तरह-तरह की चीजें बच्चों के लिए लाया करता था। बच्चों को हँसता-खेलता देख उसे सन्तोष होता था क्योंकि उसे उन बच्चों में अपने बच्चों की झलक मिल जाती थी।

मिठाईवाला संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

1. मैं भी अपने नगर का प्रतिष्ठित आदमी था। मकान, व्यवसाय, घोड़े-गाड़ी, नौकर-चाकर, सभी कुछ था। बाहर सम्पत्ति का वैभव था, भीतर सांसारिक सुख का आनन्द । स्त्री सुन्दर थी, मेरी प्राण थी। बच्चे ऐसे सुन्दर थे जैसे सोने के सजीव खिलौने। उनकी अठखेलियों के मारे घर में कोलाहल मचा रहता था। समय की गति। विधाता की लीला। अब कोई नहीं है। बहन, प्राण निकाले नहीं निकले। इसलिए अपने उन: बच्चों की खोज में निकला हूँ।

शब्दार्थ :
प्रतिष्ठित-सम्मानित। वैभव-सम्पन्नता।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी समान्य भाग-1’ में संकलित तथा भगवती प्रसाद वाजपेयी द्वारा लिखित कहानी ‘मिठाईवाला’ से उद्धृत है। इसमें मिठाईवाला रोहिणी की जिज्ञासा के उत्तर में क्या कहता है-इस पर प्रकाश डाला गया है।

व्याख्या :
रोहिणी से मिठाईवाला कह रहा है-मैं साधारण व्यक्ति नहीं हूँ। मेरा नगर में बहुत सम्मान था। मेरे पास मकान था। मेरा अपना काम-धन्धा था। मेरे पास सुख-सुविधा की सारी सामग्री थी। नौकर-चाकर थे। सम्पत्ति की कमी नहीं थी। हर प्रकार का सांसारिक सुख मुझे प्राप्त था। घर में भी किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। मेरी सुन्दर, प्रिय पत्नी थी। सुन्दर और सलोने नटखट बच्चे थे। उनसे घर में सारा दिन चहल-पहल रहती थी।

पर समय बहुत बलवान है। उसकी चाल कोई नहीं समझ सकता। विधाता के खेल निराले होते हैं। दुर्भाग्य से अब मेरा कोई नहीं है। पत्नी, बच्चे सभी का निधन हो गया। पर मेरे प्राण नहीं निकले। मैं अपने बच्चों की खोज में लगा हुआ हूँ।

विशेष :

  1. सारा कथन स्पष्ट रूप में है।
  2. भाव सरल और सीधे हैं।
  3. भावात्मक तथा वर्णानात्मक शैली है।
  4. यह अंश मार्मिक और हृदयस्पर्शी है।
  5. वर्णनात्मक शैली हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) मिठाईवाले ने रोहिणी को क्या बतलाया?
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
उत्तर:
(i) मिठाईवाले ने रोहिणी को यह बतलाया कि वह अपने नगर का बहुत ही सम्पन्न और सम्मानित आदमी था। यही नहीं, उसका परिवार भरा-पूरा था। दुर्भाग्यवश वह सब कुछ बिखर गया। उसी की खोज में वह इधर-उधर भटक रहा है।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय मिठाईवाले का रोहिणी से आपबीती जिन्दगी के बारे में उल्लेख करना है।

गद्य पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
(ii) प्रस्तुत गद्यांश में समय के किस पहलू पर प्रकाश डाला गया है?
उत्तर:
(i) प्रस्तुत गद्यांश का मुख भाव है-मनुष्य के जीवन की विडम्बना को दर्शाना।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश में समय की अस्थिरता पर प्रकाश डाला गया है। विधाता की लीला बड़ी विचित्र होती है, वह कब और कैसे समय की गति को मोड़ दे, इसे कोई भी नहीं जान पाता है। इस तथ्य को भी प्रस्तुत गद्यांश में प्रकाशित करने का प्रयास किया गया है।

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2. वे सब अन्त में होंगे तो यही कहीं। आखिर, कहीं-न-कहीं जन्मे ही होंगे। उस तरह रहता तो घुल-घुल कर मरता। इस तरह सुख-सन्तोष के साथ मरूंगा। इस तरह के जीवन में कभी-कभी अपने उन बच्चों की एक झलक-सी मिल जाती है। ऐसा जान पड़ता है, जैसे वे इन्हीं में उछल-उछलकर हँस-खेल रहे हैं। पैसों की कमी थोड़े ही है, आपकी दुआ से पैसे तो काफी हैं। जो नहीं है, इस तरह उसी को पा जाता हूँ।

शब्दार्थ :
दुआ-आशीर्वाद।

प्रसंग :
पूर्ववत्!

व्याख्या :
मिठाईवाले ने रोहिणी से अपने विश्वास को व्यक्त करते हुए कहा कि यों तो उसका परिवार उससे बिछुड़ गया है, लेकिन उसे पूरी उम्मीद है कि वह यहीं कहीं आस-पास ही उसे अवश्य मिल जाएगा। अगर वह अपने परिवार के साथ रहता, उसके साथ वह अपने हर दुःख और अभाव को बाँटकर चैन से अपनी जिन्दगी बिता लेता। उसे यही सुख-सन्तोष होता। अब भी यही सुख-सन्तोष उसे है कि वह अपने परिवार की खोज करते हुए उसे पाने की पूरी उम्मीद लगाए हुए है। इससे वे अपने खोए हुए बच्चों की एक झलक देख लेता है। रह-रहकर उसे ऐसा लगता है, मानो वह इन बच्चों की ही तरह पूरी तरह खुश हैं और इन्हीं की तरह बेफिक्र होकर खेल-कूद रहे हैं। यह सच है कि उसे पैसे-रुपए की कोई कमी नहीं है, उसे ईश्वर की कृपा से बहुत धन प्राप्त है जो उसके पास नहीं है, उसे भी वह अपने बच्चों की तलाश करते हुए पा ही लेता है।

विशेष :

  1. मिठाईवाले की सच्ची भावना प्रकट हुई है।
  2. सम्पूर्ण उल्लेख स्वाभाविक है।
  3. भापा सरल है।
  4. ‘घुल-घुलकर मारन’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) ‘वे सब अन्त में होंगे तो यही कहीं’ प्रस्तुत कथन किसका और किसके प्रति है।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
(i) ‘वे सब अन्त में होंगे तो यहीं कहीं’ प्रस्तुत कथन मिठाईवाले रोहिणी के प्रति है।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि मिठाईवाले को पूरा विश्वास था कि उसकी खोज सफल होगी। इससे वह अपने अपार दुःख को पार कर रहा है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) मिठाईवाले के किन भावों को व्यक्त किया गया है?
(ii) मिठाईवाला दुखी होकर भी क्यों सुख का अनुभव करता है?
उत्तर:
(i) मिठाईवाले के आशा और विश्वास के साथ आत्मीयता के भावों को व्यक्त किया गया है।
(ii) मिठाईवाला दुःखी होकर सुख का अनुभव करता है। यह इसलिए कि अपने बिछड़े हुए परिवार को याद करके दुःखी है, लेकिन उसके मिलने की उसे पूरी आशा है। इससे वह सुख का अनुभव करता है।

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