MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 7 सरजू भैया
सरजू भैया अभ्यास प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए
प्रश्न 1.
सरजू भैया के व्यक्तित्व का संक्षिप्त परिचय लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तावना-सरजू भैया की गिनती गाँव के सबसे लम्बे और दुबले आदमियों में हो सकती है। उनका रंग साँवला है। बगुले की सी लम्बी-लम्बी टाँगों जैसी लम्बी बाहें। कमर में धोती पहनते हैं, कंधे पर अंगोछा डाले रहते हैं। जब वे खड़े होते हैं तब, आप उनकी पसलियों की हड्डियाँ गिन लीजिए। नाक खड़ी सी और लम्बी। सघन भर्दै। उनकी आँखें बड़ी-बड़ी हैं जो कोटर में धंसी सी लगती हैं। गाल पिचके से हैं। अंग-अंग की शिराएँ उभरी हुई हैं। कभी-कभी मालूम होता है मानो ये नसें नहीं, उनके शरीर को किसी ने पतली डोरों से जकड़ रखा है।
सरजू की सूरत :
उनको देखने से तो उनकी तस्वीर निस्संदेह किसी भुखमरे, मनहूस आदमी की मालूम होती है। परन्तु ऐसा है भी कि नहीं? सरजू भैया लेखक के गाँव के चन्द जिन्दादिल लोगों में से हैं। बड़े मिलनसार, मजाकिया और हँसोड़ हैं।
दिल खोलकर हँसना :
वे जब दिल खोलकर हँसते हैं, तो शरीर भर में जो सबसे छोटी चीजें उन्हें मिली हैं, वे उनके पंक्तिबद्ध छोटे-छोटे दाँत हैं। तब वे बेतहाशा चमक पड़ते हैं। अंग-अंग हिलने-डुलने लगते हैं, जैसे मानो हर अंग हँस रहा हो। सरजू भैया के पास इतनी सम्पत्ति है कि वह खुद या अपने परिवार का ही पेट नहीं भर सकते वरन् आगत-अतिथि की सेवा पूजा भी मजे से कर सकते हैं। तो फिर यह हड्डियों का ढाँचा क्यों? के जवाब में एक पुरानी कहावत पेश करूँगा-काजी दुबले क्यों-शहर के अंदेशे से।
उपसंहार :
अब सरजू भैया की जो हालत है, वह स्वयं अपने कारण नहीं, दूसरों के चलते है। पराये उपकार के चलते उन्होंने सिर्फ अपना यह शरीर सुखा लिया है, बल्कि अपनी सम्पत्ति की भी कुछ कम हानि नहीं की है।
प्रश्न 2.
सरजू भैया क्या व्यवसाय करते थे? वे अपने व्यवसाय में सफल क्यों नहीं हो सके?
उत्तर:
सरजू भैया के पास खेतीबाड़ी थी, रुपये और गल्ले का अच्छा लेन-देन था। परिवार बड़ा नहीं था और न खर्चीला। लेकिन सरजू के पिता के मरते ही सरजू भैया ने लेन-देन चौपट किया। बाढ़ ने खेती बर्बाद कर दी और भूकम्प ने मकान का सत्यानाश कर दिया। उनका लेन-देन बहुत अच्छा था। खेती को भी सम्हाला जा सकता था। घर भी खड़ा किया जा सकता था। किन्तु सरजू भैया लेन-देन का काम नहीं सम्हाल सकते थे। इसके भी कुछ कारण थे; जिससे सरजू भैया ने इन कामों में रुचि नहीं दिखाई।
“लेन-देन, जिसे नग्न शब्दों में सूदखोरी कहिए, चाहता है, आदमी अपने आदमीपन को खो दे, वह जोंक, खटमल नहीं, चीलर बन जाए। काली जोंक और लाल खटमल का स्वतंत्र अस्तित्व है। हम उनका खून चूसना महसूस करते हैं; हम उनमें अपना खून प्रत्यक्ष पाते हैं और देखते हैं। लेकिन चीलर? गंदे कपड़े में, उन्हीं सा काला कुचैला रंग लिए वह चीलर चुपचाप पड़ा रहता है और हमारे खून को इस तरह धीरे-धीरे चूसता है और तुरन्त उसे अपने रंग में बदल देता है कि उसका चूसना हम जल्द अनुभव नहीं कर सकते और अनुभव करते भी हैं, तो जरा सी सुगबुगी या ज्यादा से ज्यादा चुनमुनी मात्र और अनुभव करके भी उसे पकड़ पाने के लिए तो कोई खुर्दबीन चाहिए।”
इस तरह सूद पर दिए धन का सूद प्राप्त करने के लिए सरजू भैया चीलर नहीं बन सकते थे। उनके इस लम्बे शरीर में जो हृदय मिला है, वह शरीर के ही परिमाण में है अर्थात वे बड़े दिलदार हैं। जो भी दुखिया आया, अपनी विपदा बताई; उसे देवता सा दे दिया और वसूलने के समय जब वह आँखों में आँसू लाकर गिड़गिड़ाया, तो देवता की ही तरह पसीज गए। सूद कौन? कुछ दिन में मूलधन भी शून्य में परिवर्तित हो गया।
बाढ़ और भूकम्प ने उनके खेत और घर को बर्बाद किया जरूर, लेनिक सरजू भैया, लेखक का यकीन है, आज फटेहाली से बहुत कुछ बचे रहते, यदि लेन-देन के बाद भी इन दोनों की तरफ भी पूरा ध्यान दिए होते। यह नहीं कि वह जी चुराने वाले या आलसी और बोदा (कमजोर) गृहस्थ हैं। नहीं, ठीक इसके खिलाफ-चतुर, फुर्तीला और कामकाजी आदमी है। लेकिन करें तो क्या? उन्हें दूसरे के काम से ही कहाँ फुर्सत मिलती है।
यदि किसी का बच्चा बीमार होता है, तो वैद्य बुलाने जायेगा सरजू भैया। बाजार से किसी को सौदा खरीदना है, तो कौन जाएगा-सिवाय सरजू भैया के। किसी भी छोटे से लेकर बड़े काम तक करवाने की जिम्मेदारी है तो सरजू भैया की। इस तरह सरजू भैया ने अपनी खेती को चौपट किया हुआ है। अच्छा भोजन न मिलने से इनकी कमर झुक गई है। चाहे दिन का कोई समय हो, या रात्रि का आधा भाग, फिर भी वहाँ के लोग अपने काम के लिए बुलाएँगे सरजू भैया को। सरजू भैया का दरवाजा हर किसी के लिए चौबीसों घण्टे खुला रहता है। सरजू भैया नर-रल हैं। उनकी भलमनसाहत को कोई भी नहीं ध्यान देता है। सभी उसे सीधा समझकर ठगने की कोशिश करते हैं। इस तरह बहुत से कारण थे जिनकी वजह से वे व्यवसाय में सफल नहीं हुए।
प्रश्न 3.
सूदखोर किस तरह दूसरों का शोषण करते हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
सूदखोर दूसरों का खूब शोषण करते हैं। उनमें आदमीपन तो रहता ही नहीं। सूदखोर तो जोंक, खटमल नहीं, चीलर बन जाता है। काली जोंक और लाल खटमल अपना स्वतंत्र अस्तित्व बना लेते हैं, क्योंकि जब उनके द्वारा हमारा खून चूसा जाता है, तो हम उनके अन्दर अपना ही रक्त चूसा हुआ पाते हैं। लेकिन चीलर? गन्दे कपड़े में, उन्हीं सा काला कुचैला रंग लिए वह चीलर चुपचाप पड़ा रहता है और हमारे ही रक्त को धीरे-धीरे चूसता रहता है। तुरन्त ही उस चूसे गए खून को अपने रंग में मिला लेता है और अपने रंग में बदल देता है। चीलर के द्वारा चूसा जाना बहुत जल्दी अनुभव नहीं कर पाते। इसी तरह सूदखोर पैसा कमाता है और शोषण करता है।
प्रश्न 4.
“सादगी, सरल स्वभाव और सहज भोलापन ग्रामीणों की विशेषता है।” सरजू भैया पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (2014)
उत्तर:
सरजू भैया लेखक के गाँव के रहने वाले हैं। उनमें सरलता है, सादगी है और सहज भोलापन है। यही सरजू भैया भारतीय ग्रामीणों की इन विशेषताओं को अपने अन्दर सँजोए हुए हैं। वे सदैव दूसरों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं। उनका हृदय विशाल है, उनके विचार भी विस्तृत और उदार हैं। ग्रामीणों की किसी भी आवश्यकता के काम को पूरा करने के लिए चौबीस घण्टे उनका द्वार खुला रहता है।
सरजू भैया यद्यपि शरीर से कमजोर दीखते हैं लेकिन उनमें आत्मिक साहस भरा पड़ा है। बीमार के लिए वैद्य लाकर, किसी की सहायता के लिए बाजार से उसकी आवश्यकता की वस्तुओं को लाकर, बाहर से आई खबर को प्रत्येक घर में पहुँचाकर, किसी के भी काम के लिए उन पर समय ही समय था। लोग उनके सीधेपन का फायदा उठाते और उन्हें ठगने की कोशिश भी करते।
ग्रामीण व्यक्ति सूदखोरों के चंगुल में बहुत जल्दी फंस जाते हैं। सरजू भैया के आधार पर स्पष्ट होता है कि सादगी, सरल स्वभाव और सहज भोलापन ग्रामीणों की विशेषता है।”
प्रश्न 5.
“दूसरों की सहायता करना, सरजू भैया का स्वभाव था” इस सन्दर्भ में बताइए कि सरजू भैया किस प्रकार दूसरों की,सहायता करते थे?
उत्तर:
सरजू भैया का स्वभाव था दूसरों की सहायता करने का। वे चौबीसों घण्टे अपने गाँव के सभी लोगों की सहायता में लगे रहते थे। वे अपने किसी भी काम को देखते नहीं थे। यदि उन्होंने अपना काम किया होता, अपनी खेतीबाड़ी, अनाज व पैसे के लेन-देन को थोड़ा भी समय निकालकर देखा होता तो अवश्य ही उनकी आर्थिक दशा ठीक रही होती। कृषि कार्य के लिए थोड़ा बहुत समय दिया होता तो धान्य आदि की कमी नहीं होती। उनका घर भी नष्ट नहीं होता। लेकिन वे अपने स्वभाव और आदत से लाचार थे कि वे अपने किसी भी काम को नहीं देखते थे। दूसरे लोगों (अपने गाँववासियों) की सहायता में तत्परता से लगे रहते। लोग उन्हें उनके सीधेपन और सहायता की भावना वाला होने से, मूर्ख समझते थे।
लेखक के अनुसार, वे गाँव के किसी भी बीमार व्यक्ति के उपचार के लिए वैद्य को लेकर आते थे। किसी को किसी चीज की आवश्यकता है, सौदा खरीद कर लाना है, तो सरजू भैया बाजार जाता और उनके लिए उस इच्छित वस्तु को लाकर देता। गाँव के किसी रिश्तेदार की बीमारी आदि की सूचना देने और लेने यदि किसी को भेजा जाना है, तो वह है सरजू भैया। इन सभी बातों के पीछे है सरजू भैया का तेजगति से चलना और दूसरे लोगों की सहायता करने की प्रवृत्ति।
गाँव का कोई सज्जन किसी की जमीन, मकान आदि को यदि खरीदता है, तो उसकी शिनाख्त सरजू भैया ही करता है। गाँव में किसी के यहाँ विवाह हो रहा है, यज्ञ आदि का आयोजन है तो समझिए इस सब की जिम्मेदारी सरजू भैया की होती है। बहुत ही अस्त-व्यस्त दिखते रहते हैं। गाँव में किसी के यहाँ कोई मृत्यु होती है, तो भी समय कोई भी हो, इसके लिए भी आवश्यक सामग्री, जैसे कफन आदि खरीदकर लाने का उत्तरदायित्व सरजू भैया का ही रहता है।
इस प्रकार गाँव के लोगों का सारा उत्तरदायित्व अपने सिर पर लेकर सरजू भैया उनकी सहायता करते थे।
प्रश्न 6.
सरजू भैया को सूदखोर ने किस प्रकार ठग लिया था? संक्षिप्त में लिखिए। (2011)
उत्तर:
सरजू भैया अपने सीधेपन से ठगे गए। वे एक दिन एक सूदखोर के चंगुल में इस तरह फंस गए कि लेखक ने सरजू भैया के पास जो रुपये थे; उन्हें अपने काम में लगा लिए। कुछ दिन बाद उन्हें धन की जरूरत पड़ी होगी। संकोचवश लेखक से धन माँग नहीं सके। वे अपनी आवश्यकता की अधिकता के कारण एक सूदखोर के पास चले गए। यह सूदखोर कोई अन्य नहीं था, यह वही था जो पहले इनसे कर्ज लिया करता था। यह सूदखोर तरह-तरह के काम करता रहता है, उनके कारण यह अब धन्ना सेठ बन गया है। उसने इन्हें (सरजू भैया को) धन दे दिया। लेकिन जैसे ही वे चलने लगे तो उसने (धन्ना सेठ बने सूदखोर) कहा, “आपके पास से रुपये जायेंगे कहाँ? लेकिन कोई सबूत तो चाहिए ही।” सरजू भैया ने कहा “क्या सबूत? मैं तैयार हूँ।” उस समय तक सरजू भैया रुपये बाँध चुके थे। उन्हें खोलकर लौटाया नहीं जा सकता था। और न सरजू भैया उसकी (सूदखोर की) माँग को नामंजूर कर सकते थे। सूदखोर ने कहा- नहीं, नहीं, कुछ नहीं-कागज पर सिर्फ निशान बना दीजिए। आपसे बाजाब्ता है नोट क्या कराया जाए?”
सरजू भैया ने बमभोला की तरह कजरौटे से अंगूठा बोर कर कागज पर चिपढ़ा दिया और चले आए, मानो किसी आधुनिक एंटोनियो ने किसी कलजुगी शाइलॉक के हाथ में अपने को गिरवी कर दिया। अब वह कहने लगा कि रुपये जल्दी लौटा दो, अन्यथा नालिश कर दूंगा और नालिश कितने की करेगा, कौन ठिकाना।” यह तो सरजू भैया की बेचारगी बोल रही थी। लेखक उनके मुख की ओर आश्चर्य से देख रहा था। लेखक ने कहा-“आपने ऐसी गलती क्यों कर दी” लेकिन इसके अलावा, उनके पास इसका जबाव क्या दे सकते थे। बस यह कि “क्या करूँ रुपये बाँध चुका था।” इस प्रकार सूरज भैया को सूदखोर ने ठग लिया था।
सरजू भैया अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी का सरजू भैया से क्या सम्बन्ध था?
उत्तर:
लेखक का सरजू भैया से कोई खून का रिश्ता न था। वास्तव में सरजू भैया का सगा छोटा भाई जाता रहा। लेखक ने उन्हें अपना बड़ा भाई मान लिया और स्वयं उनके छोटे भाई बन गये।
प्रश्न 2.
सरजू भैया का खेत और घर कैसे बर्बाद हो गये?
उत्तर:
बाढ़ और भूकम्प ने सरजू भैया के खेत और घर बर्बाद कर दिये थे।
सरजू भैया पाठ का सारांश
प्रस्तावना-पात्र-परिचय :
सरजू भैया लेखक के पड़ोसी हैं। सरजू भैया अपनी माँ का बड़ा बेटा है। लेखक इकलौते ठहरे। परन्तु सरजू भैया का छोटा भाई नहीं रहा, अतः लेखक उन्हें अपना बड़ा भाई मानता है और स्वयं को उनका छोटा भाई।।
शारीरिक बनावट :
सरजू भैया गाँव भर में सबसे लम्बे और दुबले व्यक्ति हैं। उनका रंग साँवला है। बगुले की टाँगों जैसी लम्बी बाँहें, उनकी पसलियों को एक-एक करके गिना जा सकता है। नाक लम्बी और खड़ी हुई। घनी भवॆ, बड़ी-बड़ी आँखें, परन्तु कोटरों में फंसी हुई। गाल पिचके हुए। अंग-अंग की शिराएँ उभरी हुई। वे नसें ऐसी लगती हैं, मानो उनके शरीर को पतली डोरों से जकड़ रखा है।
पहनावा :
सरजू भैया धोती पहनते हैं। कंधे पर अंगोछा डाले रहते हैं। खड़े होने पर ऐसा प्रतीत होता था कि लकड़ियों पर कपड़ों को टाँग दिया गया है।
स्वभाव :
ऊपर से देखने में उनकी तस्वीर निःसन्देह ही किसी मनहूस भुखमरे व्यक्ति की जैसी लगती है। परन्तु सरजू भैया गाँवभर में जिन्दा-दिल आदमी है, वे मिलनसार, मजाकिया और हँसोड़ हैं। अतिथि का सत्कार करने वाले व्यक्ति हैं।
आर्थिक दशा :
सरजू भैया ने परोपकार करते रहने से शरीर सुखा लिया और अपनी सम्पत्ति भी इसी कारण बरबाद कर डाली। इनके पिता गाँव के अच्छे किसान गिने जाते थे। अच्छा, सुन्दर मकान था, अच्छी खासी बैठक थी। लेकिन सरजू भैया की तो यह राम मढैया है। पिता का कारोबार खेती और लेन-देन का कामकाज़। उनके मरने के बाद सरजू ने लेन-देन चौपट कर दिया। बाढ़ ने खेती और भूकम्प ने मकान आदि सब कुछ नष्ट कर दिया। सरजू चाहते तो सब कुछ ठीक हो सकता था। लेकिन सरजू ………।
सरजू के लिए सूदखोरी का काम आदमीपन को खो देने वाला था। यह काम काली जौक, लाल खटमल और चीलर बने लोगों का है।
सरजू भैया चीलर नहीं बन सकते। उनका हृदय बड़ा है। उसने विपदा में सब लोगों को पैसा देकर सहायता की। सूद की बात दूर, किसी ने इन्हें मूल तक नहीं लौटाया। सरजू भैया आज फटेहाली से गुजर रहे हैं। इसका कारण उनका आलसी होना या काम से जी चुराना नहीं है, वरन् वह तो फुर्तीले और कामकाजी व्यक्ति हैं उन्हें अपने कामों के लिए दूसरों के काम से फुरसत कहाँ?
परोपकार की भावना :
सरजू भैया एकदम परोपकारी हैं। गाँव के किसी भी व्यक्ति का कोई भी काम हो-किसी तरह का कार्य हो सकता है, लेकिन सरजू भैया सभी गाँववासियों की सहायता के लिए तैयार रहते हैं। अपना चाहे कोई भी काम क्यों न पड़ा रहे, लेकिन दूसरों की सहायता में सरजू भैया सबसे आगे। परोपकार और सेवा के लिए तो उनके घर का दरवाजा हर समय खुला रहता था। यही गुण सरजू भैया को दूसरे आदमियों से अलग करता है। इसलिए वे सबके द्वारा वंदनीय और पूजनीय हैं। उनका सीधापन देखकर लोग उन्हें ठगते हैं। लोग उन्हें झंझटों में डालकर मजा लेते हैं।
सरजू भैया का तड़पना :
एक दिन सरजू भैया बहुत भयभीत और तड़पते आये। गाँव का एक चालाक और बेईमान आदमी सरजू भैया पर नालिश करने जा रहा है। यदि समय पर उसे पैसे दे दिए जाएँ, तो वह नालिश नहीं करेगा। दूसरे यदि वह रुपये नहीं देता है तो नालिश कर देगा। लेखक ने उसे धन दिया और इन्हें सूदखोर से मुक्त कराया। ऐसी घटनाएँ पनपती रहती हैं। लेखक भी रात भर सो नहीं सका, यह सोचते हुए कि लोग बड़े कृतघ्न होते हैं। सरजू भैया रूपी किसी आधुनिक एन्टोनियों ने किसी कलयुगी शाइलॉक के हाथ में स्वयं अपनी जिन्दगी को गिरबी रख दिया हो, ऐसी दशा हो रही थी।
उपसंहार :
सरजू भैया जैसे अनगिनत लोग होते हैं जो दूसरों की खातिर स्वयं को परेशानी में डाल लेते हैं।