MP Board Class 12th General Hindi व्याकरण समास-विग्रह
जब परस्पर संबंध रखने वाले शब्दों को मिलाकर उनके बीच आई विभक्ति आदि का लोप करके उनसे एक पद बना दिया जाता है, तो इस प्रक्रिया को समास कहते हैं। जिन शब्दों के मूल से समास बना है उनमें से पहले शब्द को पूर्व पद और दूसरे शब्द को उत्तर पद कहते हैं। जैसे–पालन–पोषण में ‘पालन’ पूर्व पद है और ‘पोषण’ उत्तर पद है। और ‘पालन–पोषण’ समस्त पद है।
समास में कभी पहला पद प्रधान होता है, कभी दूसरा पद और कभी कोई अन्य पद प्रधान होता है जिसका नाम प्रस्तुत सामासिक शब्द में नहीं होता और प्रस्तुत सामासिक शब्द तीसरे पद का विशेषण अथवा पर्याय होता है।
कुछ समासों में विशेषण विशेष्य के आधार पर और कुछ में संख्यावाचक शब्दों के आधार पर और कहीं अव्यय की प्रधानता के आधार पर तो कुछ समासों में विभक्ति चिह्नों की विलुप्तता के आधार पर तो कुछ समासों में विभक्ति चिहों की विलुप्तता के आधार पर इस बात का निर्णय किया जाता है कि इसमें कौन–सा समास है।
विग्रह–समस्त पद को पुनः तोड़ने अर्थात् उसके खंडों को पृथक् करके पुनः विभक्ति आदि सहित दर्शाने की प्रक्रिया का नाम विग्रह है।
जैसे–
गंगाजल शब्द का विग्रह होगा गंगा का जल।
इस तरह तत्पुरुष समास के छः भेद होते हैं।
1. अव्ययीभाव समास
इन शब्दों को पढ़िए–
इन सामाजिक शब्दों में प्रथम पद अव्यय और प्रधान या उत्तर पद संज्ञा, विशेषण या क्रिया है।
जिन सामासिक शब्दों में प्रथम पद प्रधान और अव्यय होता है, उत्तर पद संज्ञा, विशेषण या क्रिया–विशेषण होता है वहाँ अव्ययीभाव समास होता है।
2. तत्पुरुष समास
इन शब्दों को पढ़िए–
“शरणागत, तुलसीकृत, सत्याग्रह, ऋणमुक्त, सेनापति, पर्वतारोहण।
उपर्युक्त सामासिक शब्दों में ‘को’, ‘द्वाय’, के लिए, से, का, के, की, ‘पर’ संयोजक शब्द बीच में छिपे हुए हैं जो कारक की विभक्तियाँ हैं। दोनों शब्दों के बीच में कर्ता तथा संबोधन कारकों की विभक्तियों को छोड़कर अन्य कारकों की विभक्तियों का लोप होता है।
जिन सामासिक शब्दों के बीच में कर्म है. लेकर अधिकरण कारक की विभल्लियों का लोप होता है तथा उत्तर पद प्रधान होता है, वे तत्पुरुष समास कहलाते है
(i) कर्म तत्पुरुष समास–
उदाहरण–यशप्राप्त, आशातीत, जेबकतरा, परिलोकगमन।
जिस समस्त पद में कर्म कारक की विभक्ति (को) का लोप होता है उसे कर्म तत्पुरुष कहते हैं।
(ii) करण तत्पुरुष–इन उदाहरणों को देखिए
शब्द – विग्रह
शोकातुर – शोक से आतुर।
मुँहमाँगा – मुँह से माँगा।
जिस समस्त पद में करण कारक (से) की विभक्ति का लोप होता है उसे करण तत्पुरुष कहते हैं।
(ii) सम्प्रदान तत्पुरुष
उदाहरण–
शब्द – विग्रह
विद्यालय – विद्या के लिए घर।
गौशाला – गौ के लिए शाला।
डाक व्यय – डाक के लिए व्यय।
जिसं समस्त पद में सम्प्रदान कारक (के लिए) की विभक्ति का लोप होता है, उसे सम्प्रदान तत्पुरुष कहते हैं।
(iv) अपादान तत्पुरुष
उदाहरण–
शब्द – विग्रह
शक्तिविहीन – शक्ति से विहीन।
पथभ्रष्ट – पथ से भ्रष्ट।
जन्मांध – जन्म से अंधा।
धर्मविमुख – धर्म से विमुख।
जिस सामासिक शब्द में अपादान कारक (से) की विभक्ति का लोप होता है, उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
नोट–तृतीया विभक्ति करण कारक और पंचमी विभक्ति अपादान कारक की विभक्तियों के चिह्न ‘से’ में एकरूपता होते हुए भी अर्थ में भिन्नता है। करण कारक का ‘से’ का प्रयोग संबंध जोड़ने के अर्थ में प्रयुक्त होता है और अपादान का ‘से’ संबंध–विच्छेद के अर्थ में प्रयुक्त होता है।
(v) संबंध तत्पुरुष समास–
उदाहरण–
शब्द – विग्रह
रामकहानी – राम की कहानी।
प्रेमसागर – प्रेम का सागर।
राजपुत्र – राजा का पुत्र।
पवनपुत्र – पवन का पुत्र।
पराधीन – पर के अधीन।
अर्थात्
जिस सामासिक शब्द में संबंध कारक की विभक्तियों (का, के, की) का लोप . होता है उसे संबंध तत्पुरुष समास कहते हैं।
(vi) अधिकरण तत्पुरुष
उदाहरण–
शब्द – विग्रह
शरणागत – शरण में आया।
घुड़सवार – घोड़े पर सवार।
लोकप्रिय – लोक में प्रिय।
अर्थात्
जिस सामासिक शब्द में अधिकरण (में, पे, पर) कारक की विभक्तियों का लोप होता है उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
3. कर्मधारय समास
महात्मा, शुभागमन, कृष्णसर्प, नीलगाय ।
महात्मा – महान है जो आत्मा।
शुभागमन – जिसका आगमन शुभ है।
कृष्णसर्प – सर्प जो काला है।
नीलगाय – गाय जो नीली है।
उपयुक्त सामासिक शब्दों में पहला पद विशेषण है दूसरा पद विशेष्य अर्थात् दूसरे पद की विशेषता पहला पद बता रहा है।
इन शब्दों को पढ़िए–
शब्द – विग्रह
कनकलता – कनक के समान लता।
कमलनयन – कमल के समान नयन।
घनश्याम – घन के समान श्याम।
चंद्रमुख – चंद्र के समान मुख।
मृगलोचन – मृग के समान नेत्र।
इन शब्दों में पहले पद की तुलना दूसरे पद से की है। अर्थात् पहला पद उपमान और दूसरा पद उपमेय है।
जब सामासिक शब्द में विशेषण विशेष्य का भाव हो या उपमेय उपमान का भाव हो तब कर्मधारय समास होता है।
इस आधार पर कर्मधारय समास भी दो प्रकार के होते हैं
1. विशेषण विशेष्य कर्मधारय–जैसे– नीलकंठ, महाजन, श्वेताम्बर, अधपका।
2. उपमेयोपमान कर्मधारय–जैसे–करकमल, प्राणप्रिय, पाणिपल्लव, हंसगाभिनी।
4. दिगु समास –
इन शब्दों को पढ़िए
पंचतंत्र, शताब्दी, सप्ताह, त्रिभुवन, त्रिलोक, नवरत्न, दशानन, नवनिधि, चतुर्भुज, . दुराहा। इनका विग्रह इस प्रकार होगा– .
शब्द – विग्रह
पंचतंत्र – पाँच तंत्रों का समूह या समाहार।
शताब्दी – सो वर्षों का समाहार या समूह।
सप्ताह – सात दिनों का समूह।
त्रिभुवन – तीन भवनों का समूह।
त्रिलोक – तीन लोकों का समूह।
नवरत्न – नौ रत्नों का समूह।
दशानन – दस मुखों का समूह।
नवनिधि – नौ निधियों का समूह।
इस प्रकार के शब्दों में पहले पद में संख्यावाचक शब्द का प्रयोग हुआ है।
जिस समास में प्रथम पद संख्यावाचक विशेषण हो और समस्त पद के द्वारा समुदाय का बोध हो, उसे द्विगु समास कहते हैं।
5. द्वन्द्व समास–इन शब्दों को पढ़िए–
सीता–राम – सीता और राम।
धर्मा–धर्म – धर्म या अधर्म।
दोनों पद प्रधान होते हैं। सामासिक शब्द में मध्य में स्थित योजक शब्द और अथवा, वा का लोप हो जाता है उसे द्वन्द्व समास कहते हैं।’
इन समासों को पढ़िए माता–पिता, गंगा–यमुना, भाई–बहिन, नर–नारी, रात–दिन, हानि–लाभ
समास विग्रह
शब्द – विग्रह
माता–पिता – माता और पिता।
गंगा–यमुना – गंगा और यमुना।
भाई–बहिन – भाई और बहिन।
रात–दिन – रात और दिन।
उपर्युक्त शब्दों में दोनों पद प्रधान हैं, सामासिक शब्द के बीच में योजक शब्द ‘और’ लुप्त हो गया है। कुछ शब्द इस प्रकार हैं
शब्द – विग्रह
भला–बुरा – भला या बुरा।
छोटा–बड़ा – छोटा या बड़ा।
थोड़ा–बहुत – थोड़ा या बहुत।
लेन–देन – लेन या देन।
इन शब्दों में ‘या’ अथवा ‘व’ योजक शब्दों का लोप रहता है। उपर्युक्त शब्द परस्पर विरोधीभाव के बोधक होते हैं।
इन शब्दों को पढ़िए–
दाल–रोटी – दाल और रोटी।
कहा–सुनी – कहना और सुनना।
रुपया–पैसा – रुपया और पैसा।
खाना–पीना – खाना और पीना।
इन शब्दों में प्रयुक्त पदों के अर्थ के अतिरिक्त उसी प्रकार का अर्थ साथ वाले पद से सूचित होता है। उपर्युक्त उदाहरणों में हमने तीन तरह की स्थितियाँ देखीं।
पहले उदाहरणों में दोनों पद प्रधान हैं, ‘और’ योजक शब्द का लोप हुआ है। इसे इतरेतर द्वन्द्व कहते हैं।
दूसरे उदाहरणों में दोनों पद प्रधान होते हुए परस्पर विरोधी भाव के बोधक हैं, ‘और’ योजक शब्द से जुड़े हैं। इसे वैकल्पिक द्वन्द्व कहते हैं। .
तीसरे उदाहरणों में प्रयुक्त पदों के अर्थ के अतिरिक्त उसी प्रकार का अर्थ द्वितीय पद से सूचित होता है। इसे समाहार द्वन्द्व कहते हैं।
6. बहुब्रीहि समास
इन शब्दों को पढ़िए
1. गिरिधर – गिरि को धारण करने वाला अर्थात् ‘कृष्ण’।
2. चतुर्भुज – चार भुजाएँ हैं जिसकी अर्थात् ‘विष्णु’ ।
3. गजानन – गज के समान आनन (मुख) है जिसका अर्थात् ‘गणेश’।
4. नीलकंठ – नीला है कंठ, जिसका अर्थात् ‘शिव’ ।
5. पीताम्बर – पीले वस्त्रों वाला ‘कृष्ण’ । उपर्युक्त सामासिक शब्दों में दोनों पद प्रधान नहीं हैं। दोनों पद तीसरे अर्थ की ओर संकेत करते हैं।
जैसे–
अर्थात् – कृष्ण।
अर्थात् – विष्णु।
जिन सामासिक शब्दों में दोनों पद किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं उन्हें बहुब्रीहि समास कहते हैं।
बहुब्रीहि और कर्मधारय समास में अन्तर–
कर्मधारय समास में दूसरा पद प्रधान होता है और पहला पद विशेष्य के विशेषण का कार्य करता है।
उदाहरण के लिए–
नीलकंठ का विशेषण है नीला–कर्मधारय। नीलकंठ–नीला है कंठ जिसका अर्थात ‘शिव–बहुब्रीहि समास बहुब्रीहि समास में दोनों पद मिलकर तीसरे पद की विशेषता बताते हैं।
बहुब्रीहि और द्विगु में अंतर–जहाँ पहला पद दूसरे पद की विशेषता संख्या में बताता है। वहाँ द्विगु समास होता है। जहाँ संख्यावाची पहला पद और दूसरा पद मिलकर तीसरे पद की विशेषता बताते हैं वहाँ बहुब्रीहि समास होता है।
जैसे–
चतुर्भुज – चार भुजाओं का समूह – द्विगु समास।
चतुर्भुज – चार भुजाएँ हैं जिसकी अर्थात् ‘विष्णु’– बहुब्रीहि समास
समास को पहचानने के कुछ संकेत–
- अव्ययी भाव समास – प्रथम पद प्रधान और अव्यय होता है।
- तत्पुरुष समास – दोनों पदों के बीच में कारक की विभक्तियों का लोप होता है और उत्तम पद प्रधान होता है।
- कर्मधारय समास प्रथम पद विशेषण और दूसरा विशेष्य होता है। या उपमेय उपमान का भाव होता है।
- द्विगु समास – प्रथम पद संख्यावाचक।
- द्वन्द्व समास – दोनों पद प्रधान होते हैं और समुच्चय बोधक शब्द से जुड़े होते हैं।
- बहुब्रीहि समास – दोनों पद को छोड़कर अन्य पद प्रधान होता है।
1. अव्ययी भाव समास
संधि और समास में अन्तर
सन्धि और समास में मख्य रूप से अन्तर यह है कि सन्धि दो वर्णों (अ. आ. इ, क, च आदि) में होती हैं, जबकि समास दो या दो से अधिक शब्दों में होता है। सन्धि में शब्दों को तोड़ने की क्रिया को ‘विच्छेद’ कहते हैं और समास में सामासिक पद को तोड़ने की क्रिया को ‘विग्रह’ कहते हैं। ..
2. तत्पुरुष समास
तत्पुरुष के भेद
(i) कर्म तत्पुरुष
(ii) करण तत्पुरुष
(iii) सम्प्रदान तत्पुरुष
(iv) अपादान तसुरुष
(v) संबंध तत्पुरुष
(vi) अधिकरण तत्पुरुष
एकाधिक शब्दों का लोप-
3. कर्मधारय समास
उपमेयोपमान कर्मधारय समस्त
4. द्विगु समास
5. द्वन्द्व समास
6. बहुब्रीहि समास