MP Board Class 12th Biology Solutions Chapter 15 जैव-विविधता एवं संरक्षण
जैव-विविधता एवं संरक्षण NCERT प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
जैव विविधता के तीन आवश्यक घटकों (Component) के नाम बताइए।
उत्तर
जैव विविधता (Bio diversity) के तीन आवश्यक घटक निम्नलिखित हैं
- आनुवंशिक विविधता (Genetic diversity)
- जातीय विविधता (Species diversity)
- पारिस्थितिकीय विविधता (Ecological diversity)।
प्रश्न 2.
पारिस्थितिकीविद् किस प्रकार विश्व की कुल जातियों का आंकलन करते हैं ?
उत्तर
वैश्विक विविधता के निर्धारण के लिए UNEP (United Nations Environmental Programme) के अन्तर्गत चलाई गई एक योजना के अनुसार पृथ्वी पर जीवों की 13-14 मिलियन जाति का अनुमान लगाया गया है। लेकिन इनमें से केवल 1.75 मिलियन जीव-जातियों का ही वर्णन किया गया है। यह कुल जीवधारियों का केवल 15% ही है।
ज्ञात जातियों में से लगभग 61% (10,2,500) कीटों की जातियाँ है। स्तनधारियों की जातियाँ सापेक्षिक रूप से बहुत कम (4650 जातियाँ) है। इनमें भी शैवाल एवं जीवाणुओं की संख्या कम है। अनेक वर्गिकीविज्ञों का विश्वास है कि अभी भी असंख्य जीव जातियों की खोज नहीं हुई है। विषाणुओं, जीवाणुओं, प्रोटिस्टा के बारे में अभी भी ज्ञान अधूरा है। उपलब्ध रिकॉर्ड से ज्ञात होता है कि विषाणुओं की 1,550, जीवाणुओं की 40, 000 जातियाँ ज्ञात हैं।
प्रश्न 3.
उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों में सबसे अधिक स्तर की जाति-समृद्धि क्यों मिलती है ? इसकी तीन · परिकल्पनाएँ दीजिए।
उत्तर
उष्ण कटिबन्ध क्षेत्रों में सबसे अधिक स्तर की जाति समृद्धि पायी जाती है, इसको समझाने के लिए पारिस्थितिक तथा जैव विकास विदों ने अनेक परिकल्पनाएँ प्रस्तुत की हैं जिनमें से प्रमुख निम्नानुसार हैं
- जाति उद्भवन (Speciation) समयानुसार होता है। शीतोष्ण क्षेत्र में प्राचीन काल से ही बार-बार हिमनद (Glaciation) होता रहता है, जबकि उष्ण कटिबन्ध क्षेत्र लाखों वर्षों से बाधा से मुक्त रहता है। इसी कारण जाति विकास तथा विविधता के लिए लंबा समय मिलता है।
- उष्ण कटिबन्धीय पर्यावरण शीतोष्ण पर्यावरण (Temperate environment) से भिन्न तथा कम मौसमी परिवर्तन को दर्शाता है। यह स्थिर पर्यावरण निकेत (Niches) विशिष्ट करण को प्रोत्साहित करता रहता है जिसके कारण अधिकाधिक जाति विविधता उत्पन्न हुई ।
- उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में अधिक सौर ऊर्जा उपलब्ध है जिससे उत्पादन अधिक होता है जिससे परोक्ष रूप से अधिक जैव विविधता उत्पन्न हुई है।
प्रश्न 4.
जातीय क्षेत्र संबंध में समाश्रयण (रिग्रेशन) की ढलान का क्या महत्व है ?
उत्तर
जर्मनी के महान् प्रकृतिविद् व भूगोलशास्त्री अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने दक्षिणी अमेरिका के जंगलों के गहन अन्वेषण के समय दर्शाया कि कुछ सीमा तक किसी क्षेत्र की जातीय समृद्धि अन्वेषण क्षेत्र की सीमा बढ़ाने के साथ बढ़ती है। वास्तव में जाति समृद्धि और वर्गकों (अनावृत्तबीजी पादप, पक्षी, चमगादड़, अलवणजलीय मछलियाँ) की व्यापक किस्मों के क्षेत्र के बीच संबंध आयताकार अतिपरवलय (रेक्टंगुलर हाइपरबोल) होता है (चित्र)। लघुगणक पैमाने पर यह संबंध एक सीधी रेखा दर्शाता है जो कि निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित है |
log S = log C+Z log A
जहाँ पर S = जातीय समृद्धि, A = क्षेत्र, Z = रेखीय ढाल (समाश्रयण गुणांक रिग्रेशन कोएफिशिएट), S = Y अंत: खंड (इंटरसेप्ट)
पारिस्थितिक वैज्ञानिकों ने बताया कि Z का मान 0.1, से 0-2 परास में होता है भले ही वर्गिकी समूह अथवा क्षेत्र (जैसे कि ब्रिटेन के पादप, कैलिफोर्निया के पक्षी या न्यूयार्क के मोलस्क) कुछ भी हो। समाश्रयण रेखा (रिग्रेसन लाइन) की ढलान आश्चर्यजनक रूप से एक जैसी होती हैं। लेकिन यदि हम किसी बड़े समूह, जैसे संपूर्ण महाद्वीप के जातीय क्षेत्र संबंध का विश्लेषण करते हैं तब ज्ञात होता है कि समाश्रयण रेखा की ढलान पैमाने पर संबंध रेखीय हो जाते हैं तीव्र रूप से तिरछी खड़ी है (Z का मान की परास 0.6 से 1.2 है)।
उदाहरणार्थ – विभिन्न महाद्वीपों के उष्ण कटिबंध वनों के फलाहारी पक्षी तथा स्तनधारियों की रेखा की ढलान 1.15 है।
प्रश्न 5.
किसी भौगोलिक क्षेत्र में जाति क्षति के मुख्य कारण क्या हैं ?
उत्तर
वन्य जातियों के या जाति क्षति के लिए जिम्मेदार कारण निम्नलिखित हैं
(1) मानव सभ्यता के विकास के साथ मानव आवश्यकताएँ बढ़ती गयी हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्य ने लगभग आधे से अधिक जंगलों को नष्ट कर दिया है। भारतवर्ष में 18% से भी कम स्थान में आज वन रह गये हैं। इस कारण जलवायु परिवर्तित हो गयी है, जिसके कारण वन्य जीव विलुप्त हो रहे हैं, क्योंकि इनका प्राकृतिक आवास नष्ट एवं परिवर्तित हो गया है ।
(2) वन्य जीवों की संख्या उनके शिकार के कारण भी कम हो रही है, क्योंकि मनुष्य मनोरंजन तथा विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जीवों का शिकार करता है, जैसेकस्तूरी मृग को कस्तूरी के लिए, हिरन, सांभर, तेंदुआ, शेर, चीता, खरगोश को खाल के लिए तथा हाथी को दाँत के लिए।
(3) वन्य जीवों के संरक्षण के लिए सरकार की तरफ से किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध न होना भी वन्य जीव विलुप्तीकरण का एक प्रमुख कारण है।
(4) प्रदूषण (जैसे-शोर इत्यादि) भी वन्य जीवों को प्रभावित करता है, जिसके कारण ये आज विलुप्त हो रहे हैं।
(5) वनों की कटाई, उद्योगों की स्थापना तथा विभिन्न रसायनों व प्रदूषकों के उपयोग इत्यादि के कारण वातावरण में परिवर्तन आया है, जिससे कई जीव विलुप्त हो गये हैं या हो रहे हैं ।
(6) मनुष्य सुरक्षात्मक कारणों से भी कुछ वन्य जीवों को मार देता है, जिसके कारण ये विलुप्त हो रहे हैं। जैसे-चीता, शेर इत्यादि से मनुष्य डरता है । इस कारण इन्हें मार देता है।
(7) कुछ जन्तुओं तथा उनके उत्पादों जैसे-हाथी दाँत, चमड़ा, सींग, मोती आदि की यूरोपीय देशों में बहुत अधिक माँग है और ये वहाँ पर उच्च दामों में बिकते हैं। भारत तथा दूसरे विकासशील राष्ट्रों में अवैध शिकार हो रहा है जो एक प्रमुख कारण है।
प्रश्न 6.
पारितंत्र के कार्यों के लिये जैव-विविधता कैसे उपयोगी है ?
उत्तर
जैव विविधता की पारितंत्र के कार्यों के लिए उपयोगिता (Utility of Biodiversity for ecosystem functioning)-समृद्ध जैव-विविधता अच्छे पारितंत्र के लिए आवश्यक है। प्रकृति द्वारा प्रदान की गई जैव विविधता को अनेक पारितंत्र सेवाओं में मुख्य भूमिका है। तीव्र गति से नष्ट हो रहा अमेजन वन पृथ्वी के वायुमण्डल को लगभग 20% ऑक्सीजन, प्रकाश संश्लेषण द्वारा प्रदान करता है। अन्य उपयोग हैं परागण क्रिया जिसके बिना पौधे फल तथा बीज नहीं दे सकते जो परागणकर्ता, जैसे-मधुमक्खी, पक्षी, चमगादड़ आदि द्वारा सम्पन्न होते हैं।
पादप एवं जंतुओं को हजारों खाने योग्य प्रजातियाँ ज्ञात हैं, फिर भी विश्व में 85% खाद्य उत्पादन 20 पादप जातियों से ही प्राप्त होता है। जैव विविधता उन्नत प्रजातियों के विकास के लिये प्रजनन पदार्थ ‘भी उपलब्ध कराती है। अनेक पदार्थों में उपचारात्मक गुण होते हैं जिन्हें अनेक पौधों और जंतुओं से प्राप्त किया जाता है। राष्ट्रीय उद्यानों तथा अभयारण्य में घूमना आनन्ददायक तथा रोमांचक होता है। सभी जीवधारी खाद्य शृंखलाओं में व्यवस्थित होते हैं। ये सभी अपने जैविक पर्यावरण से संबंधित होकर पारिस्थितिक संतुलन बनाते हैं। प्रकृति में अनेक चक्र लगातार चलते रहते हैं जिनमें जीवधारी एवं अजैविक वातवरण अपनी अपनी भूमिका पूर्णतः निभाते हैं।
प्रश्न 7.
पवित्र उपवन क्या है ? उनकी संरक्षण में क्या भूमिका है ?
उत्तर
पवित्र उपवन (Sacred groves)- भारत में सांस्कृतिक व धार्मिक परम्परा का इतिहास जो प्रकृति की रक्षा करने पर जोर देता है। बहुत-सी संस्कृतियों में वनों के लिए अलग भू-भाग छोड़े जाते थे और उनमें सभी पौधों तथा वन्य जीवों की पूजा की जाती थी। पवित्र उपवन पूजा स्थलों के चारों ओर पाया जाने वाला वनखण्ड है। ये जातीय समुदायों/राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा स्थापित किये गये हैं। ये उपवन भारत के कई राज्यों, मेघालय, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल आदि में है।
जातीय समुदाय द्वारा निर्मित मंदिर के आस-पास देवदार के वृक्ष लगाये गये हैं, जैसे-कुमाऊं क्षेत्र । इसी प्रकार राजस्थान में विश्नोई समुदाय के लोगों ने प्रोस्पिस व ब्लैक बक को धार्मिक रूप से बचाया है। पवित्र उपवन में किसी भी पौधे को तोड़ने की अनुमति नहीं होती है। अतः इनमें सभी स्थानिक (Endemic) प्रजातियाँ भली प्रकार से वृद्धि करती हैं और संरक्षित रहती हैं।
प्रश्न 8.
पारितंत्र सेवा के अन्तर्गत बाढ़ व भू-अपरदन (Soil Erosion) नियंत्रण आते हैं। यह किस प्रकार पारितंत्र के जीवीय घटकों (बायोटिक कम्पोनेंट) द्वारा पूर्ण होते हैं ?
उत्तर
वृक्ष तथा पौधे बाढ़ व भू-अपरदन को नियंत्रण करने में सहायक सिद्ध होते हैं । वृक्ष तथा पौधे भूअपरदन को विभिन्न तरीकों के द्वारा रोक सकते हैं
- पौधे तथा वृक्षों की जड़ें मृदा या भूमि को मजबूती से जकड़े रहती है जिससे जल तथा वायु प्रवाह में अवरोध उत्पन्न होते हैं।
- वृक्ष वायु गति की तीव्रता को कम करने में सहायक होते हैं। जिससे अपरदन की दर कम हो जाती है।
- वृक्ष मृदा को छाया उपलब्ध कराते हैं। जिससे ग्रीष्म के दौरान मृदा के शुष्क होने से बचाव होता है।
- वृक्षों की गिरी हुई पत्तियाँ वर्षा की बूंदों की तीव्रता से होने वाली मृदा को हानि से बचाव करती है।
- वृक्षारोपण बाढ़ नियंत्रण में प्रमुख भूमिका निभाता है।
- वृक्ष मरुस्थलों में वायवीय अपरदन (Wind erosion) को रोकने में उपयोगी होते हैं।
प्रश्न 9.
पादपों की जाति विविधता ( 22 प्रतिशत), जंतुओं ( 72 प्रतिशत) की अपेक्षा बहुत कम है। क्या कारण है कि जन्तुओं में अधिक विविधता मिलती है ?
उत्तर
किसी भी पारितंत्र में जंतुओं में पौधों की तुलना में अधिक जैव विविधता पायी जाती है, इसके निम्नलिखित कारण हैं
- जंतुओं में अनुकूलन की क्षमता पौधों की अपेक्षा बहुत अधिक होती है। जंतुओं में तंत्रिका तंत्र तथा अन्त:स्रावी तंत्र पाये जाने के कारण वे स्वयं को वातावरण के प्रति अनुकूलित कर लेते हैं।
- प्राणियों में प्रचलन का गुण पाया जाता है जिसके कारण वे विपरीत परिस्थितियाँ होने पर स्थान परिवर्तन कर लेते हैं और स्वयं को बचाये रखते हैं। जबकि पौधे स्थिर होने के कारण वे विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के लिये विवश रहते हैं।
जैव-विविधता एवं संरक्षण अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
जैव-विविधता एवं संरक्षण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. सही विकल्प चुनिए
प्रश्न 1.
हमारे देश में वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम कब पारित किया गया था
(a) 1883
(b) 1972
(c) 1973
(d)1982
उत्तर
(b) 1972
प्रश्न 2.
इण्डियन बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ (IBWL) की स्थापना कब हुई थी
(a) 1952
(b) 1981
(c) 1971
(d) 1972.
उत्तर
(a) 1952
प्रश्न 3.
NBPGR कहाँ स्थित है
(a) दिल्ली
(b) कोलकाता
(c) लखनऊ
(d) मुम्बई।
उत्तर
(a) दिल्ली
प्रश्न 4.
हमारे देश में बायोस्फियर रिजर्व की संख्या है
(a)73
(b) 7
(c)416
(d) 23
उत्तर
(b) 7
प्रश्न 5.
कौन-सा राष्ट्रीय उद्यान सफेद शेर से सम्बन्धित है
(a) कांकेर
(b) सतपुड़ा
(c) बाँधवगढ़
(d) कान्हा
उत्तर
(c) बाँधवगढ़
प्रश्न 6.
म. प्र. का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है
(a) शिवपुरी
(b) बाँधवगढ़
(c) कान्हा
(d) कांकेर।
उत्तर
(c) कान्हा
प्रश्न 7.
पादप जीवाश्म राष्ट्रीय उद्यान कहाँ पर स्थित है
(a) शिवपुरी
(b) मण्डला
(c) कान्हा
(d) कांकेर।
उत्तर
(b) मण्डला
प्रश्न 8.
म. प्र. का राष्ट्रीय उद्यान जिसे बायोस्फियर रिजर्व के रूप में चिह्नित किया गया है, वह है
(a) कान्हा
(b) शिवपुरी
(c) बाँधवगढ़
(d) सतपुड़ा।
उत्तर
(a) कान्हा
प्रश्न 9.
बांदीपुर (कर्नाटक) का राष्ट्रीय उद्यान किसके संरक्षण से संबंधित है
(a) मोर
(b) हिरण
(c) शेर
(d) हाथी।
उत्तर
(d) हाथी।
प्रश्न 10.
भारत से विलुप्त हुआ जन्तु है
(a) हिप्पोपोटामस
(b) स्नो लेपर्ड
(c) चीता
(d) भेड़िया।
उत्तर
(c) चीता
प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-सी संरक्षण की स्व-स्थाने (In-situ) विधि है- .
(a) वानस्पतिक उद्यान
(b) राष्ट्रीय उद्यान
(c) ऊतक संवर्धन
(d) क्रायो-परिरक्षण।
उत्तर
(b) राष्ट्रीय उद्यान
प्रश्न 12.
वन्य जीव अभयारण्य में निम्न में से क्या नहीं होता है
(a) फ्लोरा का संरक्षण
(b) फोना का संरक्षण
(c) मृदा एवं फ्लोरा का उपयोग
(d) शिकार का निषेध।
उत्तर
(c) मृदा एवं फ्लोरा का उपयोग
प्रश्न 13.
भारत में अधिकतर क्षेत्र वनों से आच्छादित है
(a) उड़ीसा
(b) अरूणाचल-प्रदेश
(c) मध्यप्रदेश
(d) केरल।
उत्तर
(b) अरूणाचल-प्रदेश
प्रश्न 14.
वनों का विनाश
(a) प्राकृतिक स्रोतों का विनाश
(b) पर्यावरण का प्रदूषण
(c) आनुवंशिक विकृति
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर
(b) पर्यावरण का प्रदूषण
प्रश्न 15.
वन्य अनुसंधान केन्द्र स्थित है
(a) शिमला
(b) चेन्नई
(c) देहरादून
(d) कलकत्ता।
उत्तर
(c) देहरादून
प्रश्न 16.
विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है
(a)4 मई
(b)5 जून
(c) 15 मार्च
(d) 15 अप्रैल।
उत्तर
(b) 5 जून
प्रश्न 17.
कान्हा राष्ट्रीय उद्यान किस राज्य में स्थित है
(a) उत्तर प्रदेश
(b) राजस्थान
(c) गुजरात
(d) मध्यप्रदेश।
उत्तर
(d) मध्यप्रदेश।
प्रश्न 18.
वे जातियाँ लगातार विलुप्त होती जा रही हैं
(a) दीर्घ जीवी जीव
(b) खतरनाक जीव
(c) साधारण जीव
(d) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर
(c) साधारण जीव
प्रश्न 19.
काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान स्थित है
(a) पश्चिम बंगाल
(b) केरल
(c) असम
(d) गुजरात।
उत्तर
(c) असम
प्रश्न 20.
बान्धवगढ़ नेशनल पार्क किस जिले में है
(a) सतना
(b) शिवपुरी
(c) मंडला
(d) उमरिया।
उत्तर
(d) उमरिया।
2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. FR… …………… में स्थित है।
2. काजीरंगा अभयारण्य …………… के संरक्षण से संबंधित है।
3. रेड डाटा बुक …………… के संरक्षण से संबंधित है।
4. …………… भारतवर्ष का प्रथम बायोस्फियर रिजर्व है।
5. भारत में पक्षियों की …………… प्रजातियाँ पायी जाती हैं।
6. ………….ऊर्जा का अक्षय साधन है।
7. मध्यप्रदेश में …………… के संरक्षण हेतु नेशनल पार्क बनाए गए हैं।
8. वन अपरोपण का मुख्य कारण …………. है।
9. भारतीय शेर व चीता का नाम …………….पशु में आता है।
10. बंजर व खाली (परती) भूमि पर वनों को विकसित करना ………….. कहलाता है।
11. विश्व पर्यावरण दिवस …………… को मनाया जाता है।
उत्तर
- देहरादून
- गेंडा
- विलुप्त प्रायः प्रजाति
- नीलगिरी
- 1200
- सूर्य
- विलुप्तप्राय जातियों
- बढ़ती जनसंख्या
- दुर्लभ
- वनीकरण
- 5 जून।
3. सही जोड़ी बनाइए
I. ‘A’ – ‘B’
1. MAB – (a). जन्तु उत्पाद
2. वन संरक्षण अधिनियम – (b) कान्हा
3. पादप जीवाश्म उद्यान – (c) सन् 1973
4. टाइगर प्रोजेक्ट – (d) सन् 1980
5. लाख – (e) मण्डला।
उत्तर
1.(c), 2.(d), 3.(e), 4. (b), 5. (a).
II. ‘A’ – ‘B’
1. संकटमयी जातियाँ – (a) R
2. भेद्य जातियाँ – (b) T
3. दुर्लभ जातियाँ – (c) E
4. आशंकित जातियाँ – (d) V
5. विलुप्त जातियाँ – (e) EVR
उत्तर
1. (e), 2.(d), 3. (a), 4. (b), 5.(c)
III. ‘A’ – ‘B’
1. उत्प्रेरक परिवर्तक – (a) कणकीय पदार्थ
2 स्थिर वैद्युत् अपक्षेपित्र – (b) कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड (इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसिपिटेटर)
3. कर्ण सफ (इयर मफ्स) – (c) उच्च शोर स्तर
4. लैण्ड: फेल – (d) ठोस अपशिष्ट।
उत्तर
1. (b), 2. (a), 3. (c), 4. (d).
4. एक शब्द में उत्तर दीजिए
1. विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया जाता है ?
2. म.प्र. में प्रोजेक्ट टाइगर कहाँ स्थापित है ?
3. सिंह भारत में कहाँ पाये जाते हैं ?
4. जंगली गधा कहाँ पाया जाता है ?
5. सोनचिड़िया भारत में कहाँ पायी जाती है ?
6. घाना पक्षी अभयारण्य यह किस राज्य में स्थित है ?
7. भारत के राष्ट्रीय पशु एवं राष्ट्रीय पक्षी का नाम बताइए।
8. चिपको आन्दोलन किस व्यक्ति से संबंधित है।
9. IUCN का मुख्यालय कहाँ है ?
10. भारत का पहला राष्ट्रीय उद्यान कौन-सा है ?
11. जैव विविधता का अन्य नाम लिखिए।
12. विश्व के किस भाग में न्यूनतम जैव विविधता पायी जाती है ?
13. जैव मण्डल की जैविक विविधता का मूलभूत आधार क्या है ?
14. किन्हीं दो प्रान्तों में पूजे जाने वाले पौधों के नाम लिखिए।
15. विश्व में सर्वाधिक जैव विविधता कहाँ होती है ?
16. IUCN का पूर्ण शब्द विस्तार लिखिए।
17. प्रकृति संतुलन में महत्वपूर्ण योगदान कौन करते हैं ?
18. वन्य जीव संरक्षण का अध्ययन विज्ञान की किस शाखा के अंतर्गत किया जाता है ?
19. सामाजिक वानिकी कार्यक्रम कब प्रारम्भ हुआ?
20. अभयारण्य का आधुनिक नाम लिखिए।
उत्तर
- 5 जून
- कान्हा शरणस्थल
- गिर-वन (गुजरात)
- कच्छ के रन में
- राजस्थान में
- राजस्थान में
- टाइगर, मोर
- सुन्दरलाल बहुगुणा
- मॉर्गेस में
- जिम कार्बेट
- जैविक विविधता
- ध्रुवों पर न्यूनतम जैव विविधता पायी जाती है
- जीन
- (i) राजस्थान में कदम्ब
(ii) उड़ीसा में आम, - ब्राजील में
- International Union for Conservation of Nature and Natural Resources
- वन्य जीव
- वानिकी
- 1976
- शरण-स्थल।
जैव-विविधता एवं संरक्षण लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जैविक विविधता के संरक्षण को समझाइये।
उत्तर
कोई जीव कभी-भी अकेला नहीं रहता, बल्कि सभी जीव समूहों में दूसरे जीवों के साथ रहने का प्रयास करते हैं। इसी कारण किसी स्थान विशेष में विविध प्रकार के जीव पाये जाते हैं । जैविक विविधता का सबसे बड़ा कारण यह है कि सभी जीव भोजन, आवास या पर्यावरण तथा दूसरी उपयोगी वस्तुओं के लिए एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं। चूँकि सभी एक-दूसरे पर निर्भर हैं इस कारण जैविक विविधता को बनाये रखना आवश्यक है। जैविक विविधता को बनाये रखने वाले उपायों को ही जैविक विविधता का संरक्षण कहते हैं।
प्रश्न 2.
सामुदायिक वानिकी के चार उद्देश्य लिखिए।
उत्तर
सामुदायिक वानिकी सन् 1976 में शुरू की गई एक परियोजना है, जिसके द्वारा वनों का विकास तथा संरक्षण किया जाता है। यह परियोजना भारत सरकार द्वारा चलायी जा रही है। इसके प्रमुख उद्देश्य निम्न हैं|
- वनों में उपयोगी वृक्षों को रोपना।
- व्यक्तिगत क्षेत्रों में सहकारी सहयोग से वनों का विकास।
- प्रदूषण से उत्पन्न खतरों को कृत्रिम वनों के विकास द्वारा दूर करना।
- विलुप्त हो रही वन्य जातियों को विशेष संरक्षण प्रदान करना।
प्रश्न 3.
वनों का महत्व लिखिए।
उत्तर
वन हमारे लिए बहुत अधिक महत्व रखते हैं। इनके महत्व निम्नलिखित हैं
- ये वातावरण को सन्तुलित रखते हैं।
- ये वर्षा को नियन्त्रित करते हैं।
- ये भूमि कटाव तथा बाढ़ पर नियन्त्रण रखते हैं।
- ये प्रदूषण को नियन्त्रित करते हैं ।
- वनों से हमें कई पादप उत्पाद एवं औषधियाँ प्राप्त होती हैं ।
- इनसे कई जन्तु उत्पाद लाख, रेशम, मोम आदि प्राप्त होते हैं ।
- वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए जीन कोष का
प्रश्न 5.
वन्य प्राणियों के नष्ट होने के कोई पाँच कारण लिखिए।
अथवा
वन्य जीवों के विलुप्तीकरण के पाँच कारणों को लिखिए।
उत्तर
वन्य प्राणियों के नष्ट होने के पाँच कारण निम्न हैं-
- वन्य प्राणियों के आवासों का प्रतिकूल परिवर्तन-वन कटने के कारण वन्य प्राणियों का आवास परिवर्तित हो गया है।
- शिकार-पैसा कमाने तथा मनोरंजन के लिए वन्य प्राणियों का अन्धाधुन्ध शिकार किया गया है जिसके कारण ये नष्ट हो रहे हैं।
- वैधानिक नियमों की कमी-हमारे देश में शक्तिशाली वैधानिक नियम न होने के कारण वन्य प्राणी नष्ट हुए हैं।
- प्राकृतिक विपदाएँ-प्राकृतिक सम्पदा के अनियन्त्रित दोहन से आयी विपदाओं के कारण भी वन्य प्राणी घटे हैं।
- प्रदूषण-वन्य प्राणियों के आवासों में प्रदूषण के कारण भी वन्य प्राणी नष्ट हुए हैं।
प्रश्न 6.
वन्य प्राणियों के संरक्षण की आवश्यकता किन कारणों से है ? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर
वन्य प्राणियों के संरक्षण की आवश्यकता-वन्य प्राणी हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं। नीचे कुछ ऐसे लाभ या कारण दिये गये हैं जिसके कारण इनका संरक्षण आवश्यक है
- प्राकृतिक सन्तुलन-ये प्राकृतिक सन्तुलन स्थापित करते हैं।
- आर्थिक महत्व-इनसे कई आर्थिक महत्व के उत्पाद जैसे-दाँत, त्वचा, सींग आदि प्राप्त होते हैं, जिनसे अनेक उपयोगी वस्तुएँ बनाई जाती हैं।
- वैज्ञानिक शोधकार्य-इनका उपयोग वैज्ञानिक शोध कार्यों में किया जाता है।
- मनोरंजन-वन्य प्राणियों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने से आनन्द की प्राप्ति होती है।
- धार्मिक तथा सांस्कृतिक मूल्य-इनके साथ हमारी धार्मिक भावनाएँ तथा सांस्कृतिक भावनाएँ भी जुड़ी हैं।
जैव-विविधता एवं संरक्षण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
संकटग्रस्त प्रजातियाँ क्या हैं ? इनके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिये।
उत्तर
पौधों की लगभग 20,000 से 25,000 प्रजातियाँ विनाश के कगार पर हैं (एक अनुमान)। इनका संरक्षण आवश्यक है। ऐसी जातियों के पौधे व जीव जन्तु को ही संकटापन्न या लुप्तप्राय जातियाँ कहते हैं । इनका वर्णन रेड डाटा बुक में किया गया है। द इण्डियन प्लाण्ट्स रेड डाटा बुक में संकटापन्न जातियों को निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत किया गया है
(1) विलुप्त (Extinct)—ऐसे पौधे जो कि पूर्व में किसी स्थान विशेष में पाये जाते थे, लेकिन वर्तमान में वे अपने प्राकृतिक स्थानों से लुप्त हो गये हैं, उन्हें ही विलुप्त प्रजातियाँ कहते हैं। ऐसे पौधे जब उनके प्राकृतिक आवास स्थानों पर उपलब्ध नहीं होते तब इन्हें विलुप्त प्रजाति माना जाता है, अत: इनका संरक्षण असम्भव होता है।
(2) लुप्तप्राय (Endangered)-ऐसी पादप प्रजातियाँ जो कि लुप्त होने की स्थिति में हों एवं यदि वही पारिस्थितिक परिस्थितियाँ बनी रहें तब उन्हें विलुप्त होने से नहीं बचाया जा सकता है, अर्थात् जिन प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा बना रहता है उन्हें लुप्तप्राय (Indangered) प्रजाति कहते हैं। ऐसी प्रजातियों की संख्या धीरेधीरे इतनी कम हो जाती है कि उनमें प्रजनन की सम्भावनाएँ लगभग समाप्त हो जाती हैं जिसके कारण धीरे-धीरे ये विलुप्त होने लगती हैं।
(3) वल्नेरेबिल या चपेट में (Vulnerable)—ऐसी पादप प्रजातियाँ जो कि कुछ ही समय में लुप्तप्राय स्थिति में पहुँचने वाली हों उन्हें ही वल्नरेबिल प्रजातियाँ कहते हैं। यदि इन्हें लगातार उन्हीं पारिस्थितिक स्थितियों का सामना करना पड़ता है तब ये प्रजातियाँ भी लुप्त होने लगती हैं।
(4) दुर्लभ (Rare)–ऐसी पादप प्रजातियाँ जो कि संसार में कहीं-कहीं पर और बहुत कम संख्या में उपलब्ध हों उन्हें ही दुर्लभ प्रजातियाँ कहते हैं । ऐसी प्रजातियाँ प्रारम्भ से ही लुप्तप्राय या वल्नेरेबिल नहीं होती, लेकिन धीरे-धीरे लुप्तप्राय स्थिति में आ जाती हैं और अन्त में समाप्त हो जाती हैं।
(5) अपर्याप्त जानकारी (Insufficient knowledge)—ऐसी पादप प्रजातियाँ जिनके सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता है कि वे किस समूह (1 से 4) के अन्तर्गत आती हैं, ऐसी प्रजातियों के बारे में हमें सही जानकारी नहीं मिल पाती, लेकिन धीरे-धीरे ये लुप्तप्राय स्थिति में आ जाती हैं।
(6) खतरे से बाहर (Out of danger)—ऐसी समस्त पादप प्रजातियाँ जो कि उपर्युक्त श्रेणियों (1 से 5) के अन्तर्गत पहुँच चुकी होती हैं, लेकिन उनके संरक्षण के पश्चात् पूर्व के वास स्थान पर स्थापित हो जाती हैं उन्हें इस समूह में रखा गया है।
प्रश्न 2.
राष्ट्रीय उद्यान क्या है ? भारतवर्ष के किन्हीं 5 राष्ट्रीय उद्यानों का वर्णन कीजिये।
उत्तर
वह क्षेत्र जो भारत सरकार द्वारा वन्य जीवन के विकास के लिये घोषित किया गया हो, राष्ट्रीय उद्यान कहलाता है। ऐसे क्षेत्रों में वनों के काटने, पशु चारागाह या पशुचारण, खेती इत्यादि की अनुमति नहीं दी जाती। हमारे देश में कुल 66 राष्ट्रीय उद्यान हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 33,988.14 वर्ग किलोमीटर है।
हमारे देश के कुछ प्रमुख राष्ट्रीय उद्यान निम्नलिखित हैं
- शिवपुरी पार्क (Shivpuri Park)—यह मध्य प्रदेश में ग्वालियर के पास शिवपुरी में एक झील के किनारे स्थित है। इसमें चीतल, साँभर, बाघ प्रमुख रूप से पाये जाते हैं।
- गुण्डी डीयर पार्क (Gundy Deer Park)—यह काले चीतल तथा ऐल्विनों हिरणों के लिए स्थापित किया गया है। यह चेन्नई के पास तमिलनाडु में स्थित है।
- जिम कार्बेट पार्क (Jim Corbett Park)—यह उत्तराखण्ड में नैनीताल के पास बनाया गया है। यहाँ शेरों को संरक्षित किया गया है।
- बेतला राष्ट्रीय उद्यान (Betla National Park)—यहाँ बाघों व हाथियों का संरक्षण किया गया है। बिहार राज्य के पलामू जिले में है।
- डचिगम राष्ट्रीय उद्यान (Dachigam National Park)—चीता, काले भालू, कस्तूरी मृग, एण्टिलोप, हिमालय टहर, जंगली बकरी तथा कश्मीरी बारहसिंगों का संरक्षण कश्मीर में किया गया है।
प्रश्न 3.
भारत में वन्य जीवन की विलुप्ति के कारणों की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
उत्तर
आदिकाल से ही जन्तुओं की विभिन्न जातियाँ प्राकृतिक कारणों से विलुप्त होती जा रही हैं, जैसे-एमोनाइट्स (Ammonites), दैत्याकार सिफैलोपॉड्स (Cephalopodes), ब्रैकियोपॉड्स (Brachiopods) तथा डाइनोसॉर्स (Dinosaurs) मानव के आगमन के पूर्व ही मध्यजीवी कल्प (Mesozoic era) के समाप्त होतेहोते विलुप्त हो गये। बढ़ती मानव जनसंख्या ने वन्य जीवन एवं उनके प्राकृतिक आवासों का दोहन किया है। साथ ही बढ़ते शहरीकरण, औद्योगीकरण एवं प्रदूषण के परिणामस्वरूप जन्तुओं के लुप्त होने की गति बढ़ती जा रही है। 17वीं, 18वीं एवं 19वीं सदी में जन्तुओं की क्रमशः 7, 11 एवं 27 जातियाँ विलुप्त हुई जबकि बीसवीं सदी में जन्तुओं की 67 जातियाँ विलुप्त हुईं। मानव द्वारा वन्य जीवन के विनाश के विभिन्न कारण निम्नलिखित दो श्रेणियों में आते हैं
(1) प्रत्यक्ष विनाश (Direct destruction)—सुरक्षा, क्रीड़ा, मनोरंजन, मांस, गौरव, उपहार आदि के लिए मानव द्वारा वन्य जन्तुओं के शिकार को हमेशा से प्रोत्साहित किया गया है। शेर, बाघ, तेंदुआ, भेड़िया, आदि महत्वपूर्ण वन्य जन्तुओं का शिकार राजा-महाराजाओं द्वारा किया जाता रहा है। सुरक्षा की दृष्टि से अथवा पशुधन को सुरक्षित रखने के लिए भी इनका वध किया जाता है ।
सौन्दर्य प्रसाधनों, सुगन्ध द्रव्यों, साज-सज्जा आदि के लिए भी इनका शिकार किया गया। ढेलों को प्रसाधनों एवं साबुन उद्योगों में प्रयुक्त होने वाले वसा के लिए हजारों की संख्या में प्रतिवर्ष मारा जाता है। इसी प्रकार हाथी दाँत के लिए हाथियों का, कामोत्तेजक औषधियों (Aphrodisiac) के संश्लेषण में प्रयुक्त सींग के लिए गेंडे (Rhinoceros) का, कस्तूरी के लिए कस्तूरी मृगों (Musk deers) का, फर या समूर के लिए हिमालयी हिमचीते (Himalayan snow-leopard) आदि का वध होता चला आ रहा है जिसके कारण आज यह संकटग्रस्त अवस्था में पहुँच गये हैं।
(2) अप्रत्यक्ष विनाश (Indirect destruction)-वन्य जीवन के अप्रत्यक्ष रूप से विनाश के भी अनेक कारण हैं। इनमें सर्वाधिक प्रमुख कारण है–मनुष्य की निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए होने वाले भूमि अधिग्रहण । जैसे-जैसे मानव जनसंख्या में वृद्धि होती गयी, आवास, कृषि, ईंधन एवं औद्योगीकरण आदि की आवश्यकताओं में भी वृद्धि होती गयी।
परिणामस्वरूप वकेन्मूलन (Deforestation), आवासों का विनाश, मरुस्थलों का प्रसार आदि से मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करता चला गया, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव वन्य जीव-जन्तुओं पर पड़ा और उनकी संख्या में लगातार कमी आती चली गई। कीटनाशकों के प्रयोग एवं पर्यावरणीय प्रदूषण ने भी जीवों का विनाश किया है।
प्रश्न 4.
वन संरक्षण के राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
वन संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास अंग्रेजी शासन के समय ही प्रारम्भ हो गया था। सन् 1856 में लॉर्ड डलहौजी ने बर्मा के वनों के संरक्षण के लिए एक नीति बनायी थी, जो बाद में पूरे देश में लागू की गयी। सन् 1894 में भारत सरकार ने वनों के संरक्षण के लिए एक राष्ट्रीय स्तर पर नीति बनायी। इस नीति में निम्नलिखित बातों पर अधिक ध्यान दिया गया
- वन प्रबन्धन
- वन भूमि का उचित उपयोग
- सुरक्षित वनों की नीति
- वन उत्पादों की बढ़ोतरी।
इस नीति के तहत् वनों तथा जन्तुओं के संरक्षण के लिए भारत सरकार ने राष्ट्रीय अभ्यारण्य एवं प्राणी उद्यानों की स्थापना की है।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी वनों के संरक्षण के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ की एफ. ए. ओ. संस्था कार्य कर रही है। यह संस्था वनों के संरक्षण के लिए आर्थिक मदद भी करती है। इस संस्था के द्वारा समय-समय पर सेमिनार तथा वर्क शॉप आयोजित किये जाते हैं। इसी संस्था के द्वारा बस्तर क्षेत्र का सर्वेक्षण कराया गया है और वहाँ पर देवदार ( पाइन) एवं बाँस लगाने की योजना बनायी गयी है । सन् 1952 में भारत सरकार ने इसी संस्था के निर्देश पर “India’s New National Forest Policy” नामक एक राष्ट्रीय वन नीति बनायी है। इस नीति में निम्नलिखित बातों पर विशेष ध्यान दिया गया है
- पहाड़ी क्षेत्रों में वृक्षों को कटने से बचाना ।
- नष्ट हुए वनों के पूरक वनों को विकसित करना।
- अपरदन रोकने के लिए वृक्षों को लगाना ।
- चारागाहों का विकास करना जिससे वनों पर कम भार पड़े।
- औद्योगिक दृष्टि से उपयोगी वनों को लगाना।
- वनों से होने वाली सरकारी आय को बढ़ाना।
आजकल वनों के संरक्षण के लिए सामाजिक संस्थाओं के साथ आम जनता भी बहुत जागरूक हो गयी है और इसने कई आन्दोलन प्रारम्भ कर दिये हैं। पं. सुन्दर लाल बहुगुणा द्वारा उत्तर प्रदेश के टेहरी गढ़वाल क्षेत्र में चलाया जाने वाला चिपको आन्दोलन दिशा में एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।
प्रश्न 5.
भारत के प्रमुख वन्य प्राणियों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर
भारत के प्रमुख वन्य प्राणी-भारत की जलवायु में बहुत अधिक विविधता पायी जाती है। एक तरफ हिमालयी क्षेत्र का तापमान 0°C होता है, दूसरी तरफ राजस्थान का तापमान 49°C रहता है। जलवायु की विविधता के कारण भारत के वनों एवं प्राणियों में भी बहुत अधिक विविधता पायी जाती है। भारत के कुछ प्रमुख वन्य प्राणी निम्नानुसार हैं
(1) पशु-भारत के वनों में पाये जाने वाले प्रमुख पशु निम्नलिखित हैं
1. मृग या हिरण-हमारे देश में इनकी कई जातियाँ, जैसे-कस्तूरी मृग, बार्किग हिरण, सांभर, चीतल आदि पायी जाती हैं।
2. एण्टीलोप-ये मृग के ही समान होते हैं, जैसे-नीलगाय, बारहसिंघा, चौसिंघा, भारतीय गजेले (Gazelle) आदि।
3. हाथी-यह वर्तमान में पृथ्वी का सबसे बड़ा चौपाया है, जो अधिकतर केरल तथा उत्तर के तराई भागों में पाया जाता है।
4. गैण्डा-यह हिमालय क्षेत्र, बंगाल एवं असम के जंगलों में पाया जाता है। सींग के कारण इनका इतना शिकार हुआ है कि यह विलुप्त होने के कगार पर है।
5. जंगली गधा-संसार में यह और कहीं नहीं पाया जाता है । अब भारत में भी यह केवल कच्छ के रन क्षेत्र तक ही सीमित रह गया है।
6. मांसाहारी पशु-कुछ भारतीय वन्य मांसाहारी पशु निम्नलिखित हैं-
- भारतीय सिंह-अब गिर के वनों तक ही सीमित हैं।
- चीता-यह विलुप्त होने के कगार पर है।
- शेर-भारत का राष्ट्रीय पशु है, हमारे देश में वर्तमान में इनकी संख्या 3000 से ज्यादा है।
- तेंदुआ-ये चीते के समान, लेकिन छोटे होते हैं।
(2) पक्षी-हमारे देश के वनों में मोर, जंगली मुर्गा, कई प्रकार के बत्तखें, बगुले, कबूतर, तीतर, बटेर, गरुढ़, गिद्ध, सारस, उल्लू, बाज, दूधराज आदि पक्षी पाये जाते हैं।
(3) सरीसृप-हमारे देश के वनों में मगर, घड़ियाल, कछुए, छिपकलियाँ, सर्प आदि वन्य प्राणी सरीसृप वर्ग के पाये जाते हैं। इसके अलावा भी भारत के वनों में कई कशेरुकी तथा अकशेरुकी प्राणी पाये जाते हैं।
प्रश्न 6.
राष्ट्रीय वन नीति के अन्तर्गत किन प्रमुख बातों पर ध्यान दिया गया है?
उत्तर
राष्ट्रीय वन नीति के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रमुख बातों पर ध्यान दिया गया है
(1) वन प्रबन्ध-इसके अन्तर्गत सरकार ने उपयोगी वनों के रख-रखाव व प्रबन्ध की व्यवस्था की है।
(2) वन भूमि का उचित उपयोग-वन में पड़ी फालत भूमि के विवेकपूर्ण उपयोग करने हेत नीति का निर्धारण किया गया है।
(3) सुरक्षित वनों की नीति-सरकार ने कुछ वनों को सुरक्षित वन घोषित किया है। इसमें वृक्षों की कटाई पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगायी गयी है।
(4) बन उत्पाद की बढ़ोत्तरी-इसके अन्तर्गत वनों के विभिन्न उत्पादों को बढ़ाने हेतु प्रयास एवं नयी जानकारियों को खोजा गया है। उपर्युक्त बातों के अलावा इस नीति में निम्नलिखित बातों पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है
- पहाड़ी क्षेत्रों के वृक्षों को काटने से रोकना
- नष्ट किये वनों के स्थान पर पूरक वनों को रोपना
- भूमि अपरदन को रोकने के लिए वृक्षारोपण करना।
- वनों के बीच चारागाहों का विकास करना, जिससे पशुओं के द्वारा वनों को नष्ट होने से बचाया जा सके।
- औद्योगिक दृष्टि से उपयोगी वनों को लगाना ।
- वनों से होने वाली आय को बढ़ाने का प्रयास करना।
प्रश्न 7.
वन तथा वन्य प्राणी एवं उनके संरक्षण के अन्तर्सबन्धों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर
बन तथा वन्य प्राणी-मानव के आवासीय क्षेत्र से बाहर वृक्षों, झाड़ियो तथा घासों से आच्छादित क्षेत्र जिसमें वृक्ष प्रभावी रूप में हो वन कहलाता है, जबकि वह वन जिसमें किसी भी प्रकार का मानव हस्तक्षेप न हो जंगल कहलाता है। वनों में निवास करने वाले प्राणियों को वन्य प्राणी कहते हैं। भारत की जलवायु में विविधता के कारण यहाँ के वनों तथा वन्य प्राणियों में बहुत अधिक विविधता पायी जाती है।
भारतीय वन वन्य प्राणियों के मामले मे समृद्ध हैं। भारत में कुछ 500 प्रकार के स्तनी, 1200 प्रकार के पक्षियाँ, 220 प्रकार के सर्प, 150 प्रकार की छिपकलियाँ, 30 प्रकार के कहुए, 30 प्रकार के मगर तथा घड़ियाल पायी जाती हैं। इनमें से हिरण, ऐण्टिीलोप, जंगली भैंसा, बाइसन, हाथी, गेण्डा, जंगली गधा, सिंह, चीता, शेर, तेंदुआ आदि जातियों के पशु एवं मोर, जंगली मुर्गा, बत्तख, तीतर, बटेर, कबूतर, सारस, गिद्ध, सोनचिड़िया आदि प्रमख पक्षियों एवं मगर, घडियाल तथा सर्प प्रमुख रूप से पाये जाने वाले प्राणी हैं।
वन तथा वन्य प्राणी के संरक्षण के अंतर्सम्बन्ध-चूँकि वन्य प्राणी वनों में पाये जाने वाले जन्तु हैं। इस कारण वनों के बिना वन्य प्राणियों की कल्पना ही नहीं की जा सकती। अगर हमें वन्य प्राणियों को संरक्षित रखना है, तो उनके प्राकृतिक आवासों अर्थात् वनों को संरक्षित रखना अत्यन्त आवश्यक है। हमारे कई उपयोगी वन्य प्राणियों के विलुप्त होने का एकमात्र कारण यह है कि उनका प्राकृतिक आवास अर्थात् वन, दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है।
वनों में पाये जाने वाले वन्य प्राणी भी वनों को संरक्षित करते हैं, क्योंकि इनके भय से वन को हानि पहुँचाने वाले जीव वनों में प्रवेश नहीं करते। इस प्रकार वन तथा वन्य प्राणी एक-दूसरे से घनिष्ट रूप से जुड़े हैं था एक-दूसरे का प्राकृतिक रूप से संरक्षण एवं पोषण करते हैं। इस कारण दोनों के अस्तित्व को बनाये रखने के लिए दोनों का ही संरक्षित रहना आवश्यक है।