MP Board Class 12th Chemistry Solutions Chapter 9 उपसहसंयोजन यौगिक
उपसहसंयोजन यौगिक NCERT पाठ्यनिहित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
निम्न समन्वयन यौगिकों के सूत्र लिखिए –
(i) टेट्राएमीन डाइएक्वा कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ii) पोटैशियम टेट्रासायनो निकिलेट (II)
(iii) ट्रिस (एथेन-1,2-डाइएमीन), क्रोमियम (III) क्लोराइड
(iv) एमीनब्रोमीडोक्लोरीडोनाइट्रीटो-N-प्लेटिनेट(II)
(v) डाइक्लोरिडो बिस (एथेन-1,2-डाइएमीन) प्लैटिनम
(iv) नाइट्रेट (vi) आयरन (III) हेक्सा सायनो फेरेट (II)।
उत्तर
(i) [Co(NH3)4(H2O)2]Cl3
(ii) K2[Ni(CN)4]
(iii) [Cr(en)3]Cl3
(iv) [Pt(NH3)BrCl NO2] –
(v) [PtCl2(en)2](NO3)2
(vi) Fe4[Fe(CN)6]3.
प्रश्न 2.
निम्न समन्वयन यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए –
(i) [CO(NH3) Cl3
(ii) [Co(NH3)5Cl]Cl2
(iii) K3[Fe(CN)6]
(iv) K3[Fe(C2O4)3]
(v) K2[PdCl4]
(vi) [Pt(NH3)2Cl(NH2CH3)]Cl.
उत्तर
(i) हेक्साएमीन कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ii) पेण्टाएमीनक्लोरीडो कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(iii) पोटैशियम हेक्सा सायनोफेरेट (III)
(iv) पोटैशियम ट्राइऑक्सेलेटो फेरेट (III)
(v) पोटैशियम टेट्राक्लोरीडो पेलेडेट (II)
(vi) डाइएमीनक्लोरीडो (मेथेनामीन)प्लैटिनम (II) क्लोराइड।।
प्रश्न 3.
निम्न संकुलों में किस प्रकार की समावयवता पायी जाती है, दर्शाइये एवं इन समावयवियों की संरचना बनाइये –
(i) K[Cr(H2O)2(C2O4)2]
(ii) [Co(en)3]Cl3
(iii) [Co(NH3)5(NO2)](NO3)2
(iv) Pt(NH3)(H3O)Cl2
उत्तर
(i) K[Cr(H2O)2(C2O4)2] ज्यामितीय समावयवता दर्शाते हैं।
(ii) [Co(en)3]Cl3 प्रकाशीय समावयवता दर्शाते हैं।
(iii) [Co(NH3)5(NO2)](NO3)2] आयनन समावयवता दर्शाते हैं –
[CO(NH3) 5NO2](NO3)2 एवं [CO(NH3)5NO3] (NO2)(NO3). ये लिंकेज समावयवता भी दर्शाते हैं। [CO(NH3)5NO2] (NO3)2 एवं [CO(NH3)5 (ONO)] NO3.
(iv) [Pt(NH3)(H2O)Cl2] ज्यामितीय समावयवता दर्शाते हैं
प्रश्न 4.
[CO(NH3)5Cl]SO4 एवं [CO(NH3)5SO4]Cl आयनन समावयवी हैं, प्रमाण दीजिए।
उत्तर
आयनन समावयवियों को जब जल में घोला जाता है, तो विभिन्न आयनों का परीक्षण किया जा सकता है।
AgCl का सफेद अवक्षेप दर्शाता है कि समावयवी में Cl– आयन है, जो समन्वयन मण्डल के बाहर स्थित है।
BaSO4 का सफेद अवक्षेप दर्शाता है कि समावयवी में SO42- आयन है, जो समन्वयन मण्डल के बाहर स्थित है।
प्रश्न 5.
संयोजकता बंध सिद्धांत के आधार पर व्याख्या कीजिए कि [Ni(CN4)2-आयन की वर्गसमतलीय संरचना होती है एवं प्रतिचुम्बकीय है तथा [Ni(CN4)2- आयन चतुष्फलकीय ज्यामितीय वाली अनुचुम्बकीय है।
उत्तर
[Ni(CN4)2- संकुल में Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar]3d8 है। इसमें dsp2 संकरण होता है, चूँकि CN– प्रबल क्षेत्र लिगैण्ड है, जिससे इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होता है। कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं होता है, इसलिए यह प्रति-चुम्बकीय प्रकृति का है।
[NiCl4]2- संकुल में Ni की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास [Ar]3d8 है। इसमें sp3 संकरण होता है। चूंकि CI दुर्बल क्षेत्र लिगैण्ड है, इसलिए इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता है।
संकरण संकुल आयन में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित हैं, अतः यह अनुचुम्बकीय प्रकृति का है।
प्रश्न 6.
[NiCl4]2- अनुचुम्बकीय है जबकि [Ni(CO)4] प्रतिचुम्बकीय है, जबकि दोनों चतुष्फलकीय हैं, क्यों?
उत्तर
[NiCl4]2- में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है, अतः यह अनुचुम्बकीय है। (विस्तृत रूप में उपर्युक्त प्रश्न क्र. 5 का उत्तर देखिए) जैसे- CN– , CO प्रबल क्षेत्र लिगैण्ड है, समान रूप से CO के कारण इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होता है। कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन शेष नहीं होते हैं, अतः यह प्रतिचुम्बकीय है।।
प्रश्न 7.
[Fe(H2O)6]3+ प्रबल अनुचुम्बकीय है,जबकि [Fe (CN)6]3- दुर्बल अनुचुम्बकीय है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर
दोनों संकुलों में Fe की +3 ऑक्सीकरण अवस्था है, जिसका विन्यास d5 है। CN– प्रबल क्षेत्र लिगैण्ड है, इसकी उपस्थिति से 3d इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होता है, केवल एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन शेष रहता है। अतः संकरण d2sp3 के कारण अन्तर कक्षक संकुल बनते हैं। H2O दुर्बल क्षेत्र लिगैण्ड है। इसकी उपस्थिति से 3d इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता। संकरण sp3d2 से बाह्य कक्षक संकुल बनते हैं, जिसमें पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं, अत: यह प्रबल अनु-चुम्बकीय है।
प्रश्न 8.
[COL(NH3)]3+ आंतरिक कक्षक संकुल है, जबकि [Ni(NH3)2+ बाह्य कक्षक संकुल है, व्याख्या कीजिए।
उत्तर
[CO(NH3)]3+ में Co, +3 ऑक्सीकरण अवस्था में 3d6 विन्यास होता है । NH3 की उपस्थिति से 3d इलेक्ट्रॉनों का युग्मन होकर दो d कक्षक खाली रहते हैं । अतः d2sp3 संकरण होकर अन्तर कक्षक संकुल बनाते हैं।
[Ni(NH3)6]2+ में Ni, +2 ऑक्सीकरण अवस्था में 3d6 विन्यास होता है। NH3 की उपस्थिति से 3d इलेक्ट्रॉनों का युग्मन नहीं होता। अतः sp3d2 संकरण होकर बाह्य कक्षक संकुल बनाते हैं।
प्रश्न 9.
वर्गसमतलीय [Pt(CN)4]2- आयन में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या बताइये।
उत्तर
प्लैटिनम परमाणु का आद्य अवस्था में इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 5d96s1 होता है। संकुल में Pt की ऑक्सीकरण अवस्था +2 है एवं इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 5d8 है। इसकी ज्यामितीय वर्ग समतलीय है, एक 5d कक्षक रिक्त है एवं शेष अन्य चार कक्षकों में इलेक्ट्रॉन युग्मन में रहते हैं। इस प्रकार dsp2 संकरण होकर प्रतिचुम्बकीय है।
प्रश्न 10.
हेक्साएक्वा मैंगनीज (II) आयन में पाँच अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं, जबकि हेक्सासायनो आयन में केवल एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होता है। क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत का उपयोग करते हुए व्याख्या कीजिए।
उत्तर
Mn, +2 ऑक्सीकरण अवस्था में 3d5 इलेक्ट्रॉनिक विन्यास में है। H2O दुर्बल लिगैण्ड है। H2O अणुओं की उपस्थिति में, इलेक्ट्रॉनों का वितरण t32ge2g में होता है, सभी इलेक्ट्रॉन अयुग्मित हैं।
CN– प्रबल लिगैण्ड है। इसकी उपस्थिति में, इलेक्ट्रॉनों का वितरण t52ge0g है, जिसमें एक अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित है। ..
प्रश्न 11.
[Cu(NH3)4]4+ आयन का सम्पूर्ण संकुल वियोजन साम्य स्थिरांक की गणना कीजिए। इस संकुल के लिए β4 = 2.1 × 1013 दिया गया है।
हल
सम्पूर्ण संकुल वियोजन साम्य स्थिरांक, संपूर्ण स्थायित्व स्थिरांक का व्युत्क्रमानुपाती होता है।
NCERT पाठ्य-पुस्तक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
वर्नर के पदों के क्रम में समन्वयन यौगिकों में बंधन को समझाइए।
उत्तर
वर्नर का उप-सहसंयोजकता सिद्धान्त (Werner’s Co-ordination Theory)—अल्फ्रेड वर्नर ने उप-सहसंयोजकता का प्रतिपादन 1893 ई. में किया। इस सिद्धान्त के अभिगृहीत (Postulates) निम्नलिखित हैं –
(1) धातुओं की दो प्रकार की संयोजकताएँ होती हैं(a) प्राथमिक संयोजकता (Primary or Principal or Ionic Valency) (-)
(b) द्वितीयक संयोजकता (Secondary or Auxiliary or Non-ionic Valency) (….)
प्राथमिक संयोजकता आयनित हो सकती है और इसे ठोस (पूर्ण) रेखा से प्रदर्शित करते हैं, जबकि द्वितीयक संयोजकता आयनित नहीं हो सकती, इसे बिन्दुकित या टूटी रेखा से प्रदर्शित करते हैं।
(2) प्रत्येक धातु परमाणु अपनी प्राथमिक और द्वितीयक दोनों संयोजकताओं को संतृप्त या सन्तुष्ट करना चाहतें हैं।
प्राथमिक संयोजकता सर्वदा ऋणायन से सन्तुष्ट (सन्तृप्त) होती है, जबकि द्वितीयक संयोजकता ऋणायन से या उदासीन अणुओं से (कभी-कभी धनायन से भी) सन्तुष्ट होती है। ऋणायन बहुधा प्राथमिक और द्वितीयक दोनों संयोजकताएँ सन्तुष्ट करता है।
(3) प्रत्येक धातु आयन की द्वितीयक संयोजकताएँ (उप-सहसंयोजी संख्या) निश्चित होती हैं।
जैसे-Pt (IV), Fe (II), Fe (II) तथा Cr (III) की उप-सहसंयोजन संख्या 6 है तथा Pt (II), Cu (II) और Pd (II) की उप-सहसंयोजन (उप-सहसंयोजकता) संख्या 4 है।
(4) द्वितीयक संयोजकताएँ त्रिविम में निश्चित दिशाओं में स्थित होती हैं अर्थात् इनकी निश्चित ज्यामितीय व्यवस्था होती है।
जैसे – निकिल की द्वितीयक संयोजकता 4 होती है और यह चतुष्फलकीय (Tetrahedrally) रूप से व्यवस्थित होती है।
वर्नर की विधि में प्राथमिक संयोजकता को पूर्ण रेखा (Complete line) से तथा द्वितीयक संयोजकता को टूटी रेखाओं (Dotted lines) से दर्शाते हुए उक्त यौगिकों को निम्नांकित विधि से चित्रित किया गया –
प्रश्न 2.
FeSO4 विलयन को 1:1 मोलर अनुपात में (NH4)2SO4 विलयन में मिलाने पर Fe2+ आयन का परीक्षण देता है, किन्तु CuSO4 विलयन को 1 : 4 मोलर अनुपात में जलीय अमोनिया में मिलाने पर Cu2+ आयन का परीक्षण नहीं देता है, क्यों ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
FeSO4 विलयन को 1 : 1 मोलर अनुपात में (NH4)2SO4 विलयन में मिलाने पर द्विक लवण, FeSO4(NH4)2SO4.6H2O (मोहर लवण) बनाते हैं, जो विलयन में आयनी-कृत होकर Fe2+ आयन देता है, जो Fe2+ आयन का परीक्षण देता है।
CuSO4 विलयन को 1 : 4 मोलर अनुपात में जलीय अमोनिया में मिलाने पर संकुल यौगिक देते हैं।
CuSO4 + 4NH3 → [Cu(NH3)4]SO4
जटिल आयन [Cu(NH3)4]2+ आयनीकृत नहीं होता है तथा Cu2+ आयन नहीं देता है, अतः यह Cu2+ आयनों का परीक्षण नहीं देता।
प्रश्न 3.
निम्न में से प्रत्येक के दो उदाहरण देकर समझाइए –
समन्वयन मण्डल, लिगैण्ड, समन्वयन संख्या, समन्वयन पॉलिहाइड्रॉन, होमोलेप्टिक एवंहेटरोलेप्टिक।
उत्तर-उप-सहसंयोजन मण्डल या समन्वय मण्डल-केन्द्रीय धातु परमाणु अथवा आयन से किसी एक निश्चित संख्या में आबन्धित आयन अथवा अणु मिलकर एक उप-सहसंयोजन सत्ता का निर्माण करते है;
जैसे – [COCl3(NH3)3], [Ni(CO) [Pt Cl2(NH3)2], [Fe(CN)6]4- आदि।
लिगैण्ड-उप-सहसंयोजन सत्ता में केन्द्रीय परमाणु / आयन से परिबद्ध आयन अथवा अणु लिगैण्ड कहलाते हैं। ये सामान्य आयन हो सकते है या छोटे अणु हो सकते है। जैसे-H2O या NH3 उदाहरण [CO(CN)6]3- में CO+3 में केन्द्रीय धातु आयन CN– लिगैण्ड।
उप-सहसंयोजन संख्या-एक संकुलन धातु आयन की उप-सहसंयोजन संख्या (CN) उससे आबन्धित लिगैण्डों के उन दाता परमाणुओं की संख्या के बराबर होती है जो सीधे धातु आयन से जुड़े हों। .
उदाहरण-संकुल आयनों [PtCl6]2- तथा [Ni(NH3)4]+2 में Pt तथा Ni3 पर संयोजकता 6 तथा 4 है।
समन्वय बहुफलक-केन्द्रीय परमाणु / आयन से सीधे जुड़े लिगैण्ड परमाणु की दिक् स्थान व्यवस्था को समन्वय बहुफलक कहते है। इनमें अष्टफलकीय व समतलीय तथा चतुष्फलकीय मुख्य है।
जैसे – [CO(NH3)6]3+अष्टफलकीय, [Ni(CO)4] चतुष्फलकीय तथा [PtCl4] वर्ग समतलीय है।
होमोलेप्टिक तथा हेट्रोलेप्टिक संकुल-संकुल जिनमें धातु परमाणु केवल एक प्रकार के दाता समूह से जुड़ा रहता है, उदाहरण [Co(NH3)6]3+ होमोलेप्टिक संकुल कहलाते हैं।
वे संकुल जिनमें धातु परमाणु एक से अधिक प्रकार के दाता समूहों से जुड़ा रहता है। जैसे [CO(NH3)4Cl2]+ हेट्रोलेप्टिक संकुल कहलाते हैं।
प्रश्न 4.
एकदन्तुर, द्विदन्तुर एवं उभयदन्ती (बहुदन्तुर) लिगैण्डों का क्या अर्थ है ? प्रत्येक के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर
एकदन्तुर लिगैण्ड-जब एक लिगैण्ड, धातु आयन से एक दाता परमाणु द्वारा परिबद्ध होता है जैसे-Cl–, H2O या NH3 तो लिगैण्ड एकदन्तुर कहलाता है।
द्विदन्तुर लिगैण्ड-जब लिगैण्ड दो दाता परमाणुओं द्वारा परिबद्ध होता है, ऐसा लिगैण्ड द्विदन्तुर कहलाता है। जैसे-H2NCH2CH2NH2 या C2O4-2
बहुदन्तुर लिगैण्ड-जब लिगैण्ड एक से अधिक परमाणु इलेक्ट्रॉन त्यागकर उपसहसंयोजी आबन्ध बनाये तो यह लिगैण्ड बहुदन्तुर कहलाता है। जैसे- E.D.T.A. आदि।
प्रश्न 5.
निम्न समन्वयन मण्डलों में धातुओं की ऑक्सीकरण संख्याओं को दर्शाइए –
(i) [CO(H2O)(CN)(en)2]2+
(ii) [COBr2(en)2]+
(iiii) [PtCl4]2-
(iv) K3[Fe(CN)6]
(v) [Cr(NH3)3Cl3].
उत्तर
(i) x + (-1) = +2, x = +3
(ii) x +4 (-1) =-2, x = +2
(iii)x + 3 (-1) = 0, x = +3
(iv)x + 2 (-1) = +1,x = +3
(v) x + 6 (-1)= -3, x = +3.
प्रश्न 6.
IUPAC नियमों का उपयोग करते हुए निम्न के सूत्र लिखिए –
(i) देट्राहाइड्रोक्सो जिंकेट (II)
(ii) पोटैशियमटेट्राक्लोरीडो पेलेडेट (II)
(iii) डाइएमीन डाइक्लोरीडो प्लैटिनम (II)
(iv) पोटैशियम टेट्रासायनो निकिलेट (II)
(v) पेण्टाएमीन नाइट्रिटो-0-कोबाल्ट (III)
(vi) हेक्साएमीन कोबाल्ट (III) सल्फेट
(vii) पोटैशियम ट्राई (ऑक्सेलेटो) क्रोमेट (III)
(viii) हेक्साएमीन प्लैटिनम (IV)
(ix) टेट्राब्रोमीडो क्यूप्रेट (II)
(x) पेण्टाएमीन नाइट्रीटो -N- कोबाल्ट (III)।
उत्तर
(i) [Zn(OH)4]2-
(ii) K2[PdCl4]
(iii) [Pt(NH3)2Cl2]
(iv) K2[Ni(CN)4]
(v) [CO(NH3)5(ONO)]2+
(vi) [CO(NH3)6]2 (SO4)3
(vii) K3[Cr(C2CO4)3]
(viii) [Pt(NH3)6]4+
(ix) [Cu(Br)4] 2-
(x) [CO(NH3)5(NO2)]2+
प्रश्न 7.
IUPAC नियमों का उपयोग करते हुए निम्न के सही नाम लिखिए –
(i) [CO(NH3)4]Cl3
(ii) [Pt(NH3)2CH(NH2CH3)]Cl
(iii) [Ti(H2O)6]3+
(iv) [CO(NH3)4Cl(NO2)]Cl
(v) [Mn(H2O)6]2+
(vi) [NiCl4]2-
(vii) [Ni(NH3)6]Cl2
(viii) [CO(en)3]3+
(ix) [Ni(CO)4].
उत्तर-
(i) हेक्साएमीनोकोबाल्ट (III) क्लोराइड
(ii) डाइएमीन क्लोरीडो (मेथिल एमीन) प्लैटिनम (II) क्लोराइड
(iii) हेक्साएक्वा टाइटेनियम (III) आयन।
(iv) टेट्राएमीनक्लोरीडोनाइट्रिटो-N-कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(v) हेक्साएक्वा मैंगनीज (II) आयन
(vi) टेट्राक्लोरीडोनिकलेट (III) आयन
(vii) हेक्साएमीन निकिल (II) क्लोराइड
(viii) ट्रिस (एथेन-1, 2-डाइएमीन) कोबाल्ट (III) आयन
(ix) टेट्राकार्बोनिल निकिल (0).
प्रश्न 8.
समन्वयन यौगिकों में संभावित विभिन्न प्रकार की समावयवता को प्रत्येक के उदाहरण देकर सूची बनाइए।
उत्तर
समन्वयन यौगिकों में समावयवता- जिन यौगिकों के रासायनिक सूत्र समान होते हैं परन्तु संरचना या अंतरिक्ष में विन्यास अलग होता है वे समावयवी (Isomers) कहलाते हैं। उपसहसंयोजी यौगिकों में विभिन्न प्रकार के बन्ध व आकृतियाँ (Shapes) सम्भव हैं, अतः विभिन्न प्रकार के समावयवी पाये जाते हैं।
संकुल या समन्वयन यौगिकों में भी दो प्रकार की समावयवता संभव है –
1. संरचनात्मक समावयवता (Structural isomerism),
2. त्रिविम समावयवता (Stereo isomerism)।
1.संरचनात्मक समावयवता (Structural Isomerism)
केन्द्रीय धातु परमाणु के चारों ओर लिगैण्ड की जमावट (Arrangement) की भिन्नता के कारण उत्पन्न समावयवता को संरचनात्मक समावयवता कहते हैं। अब हम उनके प्रकारों पर विचार करेंगे।
(i) आयनन समावयवता-अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न में ल. उ. प्र. क्र. 28 देखें।
(ii) बन्धन समावयवता-अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न में ल. उ. प्र. क्र. 20 देखें।
(iii) हाइड्रेट समावयवता-अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न में ल. उ. प्र. क्र. 28 देखें।
(iv) उपसहसंयोजी समावयवता-यह समावयवता उन यौगिकों में पायी जाती हैं, जिनमें धनायन तथा ऋणायन दोनों ही संकुल आयन हो। धनायन संकुल के लिगैण्ड तथा ऋणायन संकुल के लिगैण्ड, अपने केन्द्रीय धातु परमाणु के साथ परस्पर परिवर्तन से समावयवी प्राप्त होते हैं।
2. त्रिविम समावयवता (Stereo Isomerism) . ऐसे दो यौगिक जिनके अणुसूत्र एकसमान हो, उपस्थित सभी समूह समान हो, उनके बंधों का प्रकार भी समान हो, केवल समूहों (लिगैण्ड) का केन्द्रीय धातु आयन के चारों ओर अभिविन्यास अलग-अलग हो, त्रिविम समावयवी कहलाते हैं, क्योंकि ऐसे समावयवियों का अंतरिक्ष (Space) से संबंध होता है।
अभिविन्यास अलग होने से उनमें ज्यामितीय समावयवता भी हो सकती है अथवा अणु समग्र रूप से असममित (Dissymmetric) भी हो सकता है, जिससे प्रकाशकीय समावयवता संभव हो जाती है, अतः त्रिविम समावयवता दो प्रकार की होती है –
(A) ज्यामितीय समावयवता, (B) प्रकाशकीय समावयवता। –
(i) ज्यामितीय समावयवता-अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न में लघु उ. प्र. क्र. 8 देखें।
(ii) प्रकाशकीय समावयवता-अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न में दीर्घ उ. प्र. क्र. 5 देखें।
प्रश्न 9.
निम्न समन्वयन मण्डलों में कितने संभावित ज्यामितीय समावयवी होंगे –
(i) [Cr(C2O4)3]3-तथा
(ii) [Co(NH3)3Cl3].
उत्तर
(i) शून्य
(ii) दो (fac एवं mer)।
प्रश्न 10.
निम्न की प्रकाशिक समावयवियों की संरचना बनाइए
(i) [Cr(C2O4)3]3-
(ii) [PtCl2(en)2]2+.
(iii) [Cr(NH3)2Cl2(en)]+.
उत्तर
(i)
(ii)
(iii)
प्रश्न 11.
निम्न की सभी समावयवियों (ज्यामितीय एवं प्रकाशीय) की संरचना बनाइए –
(i) [COCl2(en)2]+
(ii) [CO(NH3)Cl(en)2]2+
(iii) [CO(NH3)2Cl2(en)]+
उत्तर-
(i)
(ii)
(iii)
प्रश्न 12.
[Pt(NH3)(Br) (Cl)(py)] के सभी ज्यामितीय समाव-यवियों को लिखिए एवं इनमें से कितने प्रकाशीय समावयवी रखते हैं ?
उत्तर
तीन समावयवी
इस प्रकार के समावयवी प्रकाशीय समावयवता नहीं दर्शाते। वर्ग समतलीय संकुलों में प्रकाशीय समावयवता केवल असममित कीलेट लिगेण्ड रखने वालों में पायी जाती है।
प्रश्न 13.
जलीय कॉपर सल्फेट विलयन (नीले रंग का) देता है –
(i) जलीय पोटैशियम फ्लुओराइड के साथ हरा अवक्षेप, एवं
(ii) जलीय पोटैशियम क्लोराइड के साथ चमकीला हरा विलयन देता है। इन प्रयोगों के परिणामों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
जलीय कॉपर सल्फेट [Cu(H2O)4]SO4 के रूप में रहता है, इसका नीला रंग [Cu(H2O)4]2+ आयनों के कारण होता है।
(a) जब KF मिलाते हैं, तब दुर्बल जल (H2O) लिगेण्ड F लिगैण्ड द्वारा प्रतिस्थापित होकर [CuF4]2- आयन बनाता है, जो हरा अवक्षेप देता है।
[Cu(H2O)4]SO4 + 4F → [CuF4]2- + 4H2O
(b) जब KCI मिलाते हैं, तब दुर्बल जल (H2O) लिगैण्ड Cl– आयनों द्वारा प्रतिस्थापित होकर [CuCl4]2- बनाता है, जो चमकदार हरे रंग का होता है। … [Cu(H2O)]SO4 + 4KCl– → [CuCl4]2- + 4H2O.
प्रश्न 14.
जब जलीय KCN को जलीय कॉपर सल्फेट विलयन में आधिक्य में मिलाया जाता है, तो बनने वाला समन्वयन मण्डल क्या होगा? जब इस विलयन में H2S(g) प्रवाहित करते हैं, तो बनने वाले कॉपर सल्फाइड का अवक्षेप क्यों प्राप्त नहीं होता ?
उत्तर
यदि आधिक्य में जलीय KCN को जलीय CuSO4 विलयन में मिलाएँ, तो पोटैशियम टेट्रासायनोक्यूप्रेट (II) बनता है।
[Cu(H2O)4]2+ + 4CN– → [Cu(CN)4]2-+ 4H2O.
यदि H2S(g) को उपरोक्त विलयन में प्रवाहित करते हैं, कॉपर सल्फाइड का कोई अवक्षेप प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि CN– आयन प्रबल लिगैण्ड हैं, इसलिए संकुल [Cu(CN)4]2- अत्यधिक स्थायी है। इस प्रकार, Cu2+ आयन उपलब्ध न होने के कारण CuS का अवक्षेप नहीं बनता।
प्रश्न 15.
संयोजकता बन्ध सिद्धांत के आधार पर निम्न समन्वयन मण्डलों में बंधों की प्रकृति की व्याख्या कीजिए –
(i) [Fe(CN)6]4-
(ii) [FeF6]3-
(iii) [CO(C2O4)3] 3-
(iv) [COF6]3-
उत्तर
(i) [Fe(CN)6]4- – d2sp3, अष्टफलकीय, प्रतिचुम्बकीय (NCERT पाठ्य-पुस्तक देखिए)।
(ii) [FeF6]3- – sp3d2 अष्टफलकीय, अनुचुम्बकीय (NCERT पाठ्य-पुस्तक देखिए) CoF के समान।
(iii) [CO(C2O4)3] 3- – d2sp3, अष्टफलकीय, अनुचुम्बकीय ([Fe(CN)614 के समान)।
(iv) [COF6]3- – sp3d2 अष्टफलकीय, अनुचुम्बकीय (NCERT पाठ्य-पुस्तक देखिए)।
प्रश्न 16.
अष्टफलकीय क्रिस्टल क्षेत्र की d-कक्षकों के विपाटन को चित्र बनाकर दर्शाइए।
उत्तर
CFSE की गणना निम्न प्रकार से कर सकते हैं –
CFSE = [-0-4x + 0.6y]Δ0
जहाँ, Δ0 = अष्टफलकीय संकुल में CFSE
x = t2g कक्षकों में इलेक्ट्रॉनों की संख्या
y = eg कक्षकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या
प्रश्न 17.
स्पेक्ट्रोकेमिकल श्रेणी क्या है ? दुर्बल क्षेत्र लिगैण्ड एवं प्रबल क्षेत्र लिगैण्ड में अन्तर को समझाइए।
उत्तर
स्पेक्ट्रोकेमिकल श्रेणी–लिगण्डों को उसके क्षेत्र शक्ति के बढ़ते क्रम में व्यवस्थित करने अर्थात् क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा (CFSE) के बढ़ते मानों को स्पेक्ट्रोकेमिकल श्रेणी कहते हैं।
दुर्बल क्षेत्र लिगैण्ड एवं प्रबल क्षेत्र लिगैण्ड में अन्तर ऐसे लिगैण्ड जिनका CFSE (Δ0) का मान कम होता है, उन्हें दुर्बल क्षेत्र लिगैण्ड कहते हैं, जबकि जिन लिगैण्डों का उच्च CFSE मान होता है, उन्हें प्रबल क्षेत्र लिगैण्ड कहते हैं।
प्रश्न 18.
क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा क्या है ? समन्वयन मण्डल में वास्तविक d- कक्षकों के विन्यास को Δ0 का परिमाण कैसे निर्धारित करेगी।
उत्तर
जब लिगेण्ड संक्रमण धातु आयन के पास आते हैं, तब d-कक्षक दो सेटों में, कम ऊर्जा एवं उच्च ऊर्जा में विभक्त हो जाते हैं । कक्षकों के दो सेटों के बीच की ऊर्जा अन्तर को क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा (CFSE) कहते हैं, जैसे-अष्टफलकीय क्षेत्र के लिए Δ0 ।
उदाहरण के लिए, d तंत्र का निम्न विन्यास । पर निर्भर है।
(i) यदि Δ0 < P (युग्मन ऊर्जा), चौथा e– eg कक्षक में से एक में प्रवेश कर t32g e1g विन्यास देता है।
(ii) यदि Δ0 > P, चौथा e– t2g कक्षक में से एक में युग्मन होकर tA2g e0gविन्यास देता है।
प्रश्न 19.
[Cr(NH3 )6)]3+ अनुचुम्बकीय है, जबकि [Ni(CN)4]2- प्रतिचुम्बकीय है, क्यों ? समझाइए।
उत्तर
[Cr(NH3 )6)]3+ अनुचुम्बकीय है जबकि [Ni(CN)4]2+ प्रतिचुम्बकीय है।
छ: NH3 लिगैण्ड इलेक्ट्रॉन युग्म त्यागकर d2sp3 संकरण कक्षक का निर्माण करते है क्योंकि 3d उपकक्षक में तीन अयुग्मित इलेक्ट्रॉन है। अतः [Cr(NH3)6]3+ आयन अनुचुम्बकीय है।
Ni= 28
CN– आयन प्रबल लिगैण्ड है।
इसलिए यह इलेक्ट्रॉन धकेलकर 3d उपकक्षक को इलेक्ट्रॉन रिक्त करता है, जो संकरण में भाग लेते हैं। एक 4s, दो 4p व एक 4d उपकक्षक मिलकर dsp2 संकरण कक्षक का निर्माण करते हैं।
उप-सहसंयोजन यौगिक में कोई इलेक्ट्रॉन अयुग्मित नहीं है। अतः यह प्रतिचुम्बकीय है।
प्रश्न 20.
[Ni(H2O)6]2+का विलयन हरा है, जबकि [Ni(CN)4]2+ रंगहीन है, समझाइए।
उत्तर
H2O दुर्बल लिगैण्ड है, [Ni(H2O)6]2+ बाह्य कक्षक संकुल है। संकुल में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं, यहाँ did संक्रमण संभव है। यह लाल प्रकाश को अवशोषित करता है एवं पूरक हरा प्रकाश उत्सर्जित होता है।
CN– प्रबल लिगैण्ड है, अयुग्मित इलेक्ट्रॉन युग्मित हो जाते हैं। केन्द्रीय परमाणु dsp2 संकरण दर्शाते हैं, वर्ग समतलीय संकुल बनते हैं। कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन उपस्थित नहीं होते हैं, जिससे d-d संक्रमण संभव नहीं है, जिसके फलस्वरूप संकुल रंगहीन है।
प्रश्न 21.
[Fe(CN)6]4- एवं [Fe(H2O6)]2+ तनु विलयनों में विभिन्न रंग के होते हैं, क्यों ?
उत्तर-
दोनों संकुलों में, Fe, +2 अवस्था में 3d6 विन्यास में है एवं इसमें चार अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं। लिगैण्ड H2O एवं CN– दोनों की भिन्न क्रिस्टल क्षेत्र विपाटन ऊर्जा (Δ0) होती है, ये दृश्य प्रकाश (VIBGYOR) के विभिन्न अवयवों का अवशोषण d-d संक्रमण के लिए होता है जिससे विवर्तित रंग भिन्न होते
प्रश्न 22.
धातु कार्बोनिलों में बंधों की प्रकृति की व्याख्या कीजिए।
उत्तर
धातु कार्बोनिलों में पाए जाने वाले धात्विक कार्बन में s एवं p दोनों प्रकार के लक्षण विद्यमान होते हैं। धातु के रिक्त कक्षक में कार्बोनिल कार्बन पर एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म के दान द्वारा M-C σ-बंध का निर्माण होता है। इसी प्रकार M-C π-बंध का निर्माण पूर्ण पूरित d-कक्षक वाले धातु के इलेक्ट्रॉन युग्म के कार्बन मोनोक्साइडे रिक्त प्रतिबंधीय π कक्षक में दान द्वारा होता है। इसे कार्बोनिल समूह की बैक बॉण्डिंग भी कहते हैं।
प्रश्न 23.
निम्न संकुलों में केन्द्रीय धातु आयन की ऑक्सीकरण अवस्था, d-कक्षकों का भरना एवं समन्वयन संख्या दीजिए
(i) K3[CO(C2O4)3]
(ii) cis-[Cr(en)2Cl2]Cl
(iii) (NH4)2[CoF4]
(iv) [Mn(H2O)6]SO4
उत्तर
प्रश्न 24.
निम्न संकुलों के IUPAC नाम लिखिए एवं ऑक्सीकरण अवस्था, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास एवं समन्वयन संख्या दर्शाइये। संकुल की त्रिविम रसायन एवं चुम्बकीय आघूर्ण दीजिए
(i) K[Cr(H2O)2(C2O4)2].3H2O
(ii) [CO(NH3)5Cl]Cl2
(iii) CrCl3(py)3
(iv) Cs[FeCl4]
(v) K4[Mn(CN)6].
उत्तर
(i) पोटैशियम डाइएक्वा डाइऑक्सेलेटो क्रोमेट (III) हाइड्रेट
(ii) पेण्टाएमीनक्लोरीडो कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(iii) ट्राईक्लोरीडोट्राईपिरीडीन क्रोमियम (III)
(iv) सीजियम टेट्राक्लोरीडो फेरेट (III)
(v) पोटैशियम हेक्सासायनोमैंगनेट (II)।
प्रश्न 25.
विलयन में समन्वयन यौगिक के स्थायित्व का क्या अर्थ है ? संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले कारकों को लिखिए। .
उत्तर
संकुलों में स्थायित्व दो प्रकार से प्रतिपादित किया जा सकता है
1. ऊष्मागतिकीय स्थायित्व (Thermodynamic stability)–इस प्रकार के स्थायित्व से धातु-लिगैण्ड बंधन ऊर्जा, स्थायित्व स्थिरांक आदि के बारे में विचार किया जाता है।
2. गतिक स्थायित्व (Kinetic stability)—यह स्थायित्व संकुल निर्माण की दर से संबंधित है। वास्तव में हमें यह विचार करना होता है कि संकुल निर्माण में साम्यावस्था कितनी जल्दी अथवा कितनी देर से आती है। इस दृष्टि से संकुलों को दो भागों में बाँटा गया है-पहला अक्रिय (Inert) तथा दूसरा सक्रिय (Labile) जिस संकुल में एक लिगैण्ड का दूसरे लिगैण्ड से विस्थापन शीघ्रता से होता है उसे सक्रिय (Labile) संकुल कहते हैं तथा इसमें विस्थापन बहुत धीरे होता है उसे अक्रिय (Inert) संकुल कहते हैं।
कोई भी संकुल धातु परमाणु अथवा धातु आयन तथा लिगैण्ड के बीच उपसहसंयोजकता स्थापित होने से बनता है। सामान्यत: यह समन्वयन प्रबल होता है क्योंकि धातु आयन को अपने निकटतम अगले अक्रिय तत्व का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रॉन-युग्मों की आवश्यकता होती है, जो उसे लिगैण्ड द्वारा दी जाती है।
फिर भी संकुल के जलीय विलयन में संकुल के वियोजन को नकारा नहीं जा सकता। वस्तुतः संकुल तथा उसके वियोजित स्पीशीज के बीच एक साम्यावस्था होती है।
यह साम्यावस्था जितनी अधिक बायीं ओर झुकी होगी, संकुल उतना ही स्थायी होगा।
जहाँ, साम्य स्थिरांक K को वियोजन स्थिरांक या अस्थिरता स्थिरांक कहते हैं जो समीकरण (ii) से प्राप्त होता है। K का मान कम होने पर संकुल का स्थायित्व अधिक होता है, आदि।
संकुलों के स्थायित्व को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक –
(1) धातु आयन की प्रकृति-(i) धातु आयन का आवेश व आकार-उच्च आवेश एवं छोटे आकार वाले धातु आयन स्थायी संकुल बनाते हैं।
(ii) धातु आयन की विद्युत्-ऋणात्मकता-उच्च विद्युत्-ऋणात्मकता वाले केन्द्रीय आयन अधिक स्थायी संकुल बनाते हैं।
(2) लिगैण्ड की प्रकृति –
(i) लिगैण्ड का आकार छोटा एवं आवेश उच्च होने पर संकुल अधिक स्थायी बनता है।
(ii) लिंगैण्ड की क्षारकता जितनी अधिक होती है, संकुल का स्थायित्व उतना ही अधिक होता है।
(iii) कीलेट संकुल, सामान्य संकुलों से अधिक स्थायी होते हैं।
(3) माध्यम या विलायक की प्रकृति-ऐसे विलायक जिनका परावैद्युतांक स्थिरांक और द्विध्रुव-आघूर्ण कम होता है, उसमें धातु व लिगैण्ड की अभिक्रिया कराने पर संकुलों का स्थायित्व बढ़ता है।
प्रश्न 26.
कीलेट प्रभाव का क्या अर्थ है ? एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
द्विदंतुर, त्रिदंतुर आदि लिगैण्ड धातु आयन के साथ कीलेट बनाकर संकुल को स्थायित्व प्रदान करते हैं। कीलेट के कारण स्थायित्व पर पड़ने वाले इस प्रभाव को कीलेट प्रभाव कहते हैं । जैसे-[Ni(NH3)]2+ तथा [Ni(en)3]2+ कीलेट प्रभाव के कारण अधिक स्थायी संकुल है।
प्रश्न 27.
समन्वयन यौगिकों का निम्न के प्रकरणों में उदाहरण देकर योगदान समझाइए
(i) जैविक तंत्र
(ii) वैश्लेषिक रसायन
(iii) दवा रसायनों एवं
(iv) धातुओं के निष्कर्षण | धातुकर्म।
उत्तर-
(i) जैविक तंत्र में-पौधों के विकास में कई धातुओं का महत्वपूर्ण स्थान है। उनकी कमी से पौधों की वृद्धि स्वस्थ रूप से नहीं होती। जैसे-आयरन की कमी से पत्तियाँ पीली पड़ने लगती हैं किन्तु आयरन का ऑक्साइड जो मिट्टी में होता है, अविलेय होने के कारण पौधों द्वारा ग्रहण नहीं किया जा सकता। इसके लिए Fe-EDTA संकुल को मिट्टी में मिलाया जाता है। यह विलेय होने के कारण पौधों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
(ii) वैश्लेषिक रसायन में –
(a) गुणात्मक विश्लेषण में -अकार्बनिक क्षारीय मूलकों के परीक्षण में, मूलकों के पृथक्करण में, आयनों का संकुल बनाया जाता है।
प्रथम समूह में यदि Ag+ तथा Hg22+ आयन दोनों उपस्थित हों, तो उन्हें पृथक् करने के लिए NH4OH का विलयन मिलाया जाता है जिससे Ag+ आयन NH3 के साथ विलेयशील संकुल बना लेता है अब इसे छानकर अलग कर दिया जाता है।
द्वितीय समूह में यदि Cu2+ तथा Cd2+ दोनों उपस्थित हों तो HCl माध्यम में H2S गैस प्रवाहित करने पर दोनों आयन CuS तथा CdS
के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं। यदि हम केवल Cd2+ को Cds के रूप में अवक्षेपित कराना चाहें तो इसमें KCN विलयन मिलाया जाता है। ऐसा करने पर Cu2+ आयन स्थायी विलेयशील . संकुल बना लेता है जिससे यह H2S द्वारा Cus के रूप में अवक्षेपित नहीं हो पाता।
(b) परिमाणात्मक विश्लेषण में-धातु आयनों का संकुल बनाकर दिये गये अज्ञात नमूने में धातु की प्रतिशत मात्रा ज्ञात कर सकते हैं।
जैसे-निकिल का भारात्मक निर्धारण करने के लिए Ni2+ आयनों को डाइमेथिलग्लाइऑक्जाइड के साथ संकुल बनाकर अवक्षेपित कर लिया जाता है।
कठोर जल में Ca2+ तथा Mg2+ आयनों का आयतनात्मक आकलन करने के लिए इन आयनों का EDTA के साथ विलेयशील संकुल बना लिया जाता है तथा आयतनमिति से आकलन किया जाता है।
(iii) दवा रसायनों में-प्लेटिनम के संकुल cis- प्लैटिन cis[PtCl2(NH3)2s] का उपयोग एण्टीकार्सिनोजेन के रूप में किया जाता है।
Ca-EDTA संकुल का उपयोग लेड प्वॉइजनिंग (Lead poisoning) में किया जाता है। Pb-EDTA के रूप में बना संकुल पेशाब द्वारा बाहर निकल जाता है।
(iv) धातुओं के निष्कर्षण / धातुकर्म में -रजत को रजत के अयस्क से तथा स्वर्ण को स्वर्ण के अयस्क से निष्कर्षित करने के लिये इन धातुओं का संकुल निर्मित किया जाता है –
प्रश्न 28.
संकुल [CO(NH3)6 Cl2.O] विलयन में कितने आयन देते हैं –
(i) 6.
(ii)4
(iii)3
(iv) 2.
उत्तर
(iii)
प्रश्न 29.
निम्न आयनों में से किसी एक के चुम्बकीय आघूर्ण का मान अधिकतम है –
(i) [Cr(H2O)6]3+
(ii) [Fe(H2O)6]2+ .
(iii) [Zn(H2O)6]2+ .
उत्तर
(ii) [Fe(H2O)6]2+ का चुम्बकीय आघूर्ण उच्च है, क्योंकि Fe2+ आयन में अधिकतम 4 अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं।
प्रश्न 30.
K[CO(CO)4 में कोबाल्ट की ऑक्सीकरण संख्या है –
(i) +1
(ii) +3
(iii)-1
(iv)-3.
उत्तर
(iii) K[CO(CO)4]
1 +x+4 (0) = 0
x = -1.
प्रश्न 31.
निम्न में से सर्वाधिक स्थायी संकुल है –
(i) [Fe(H2O)6]3+
(ii) [Fe(NH3)6]3+
(iii) [Fe(C2O4)3]3-
(iv) [FeCl6]3-
उत्तर-
(iii) [Fe(C2O4)3]3- सर्वाधिक स्थायी संकुल है चूँकि यह कीलेट लिगैण्ड संकुल है।
प्रश्न 32.
निम्नलिखित में से दृश्यक्षेत्र में अवशोषण के तरंगदैर्घ्य का सही क्रम क्या होगा[Ni(NO2)] , [Ni(NHz)*, [Ni(H,0)]t.
उत्तर
सभी तीनों संकुलों में केन्द्रीय धातु आयन समान हैं, इस प्रकार, स्पेक्ट्रोकेमिकल श्रेणी में लिगैण्ड की क्षेत्र प्रबलता का बढ़ता क्रम है –
H2O < NH3 < NO2–
अतः उत्तेजित होने के लिए अवशोषित ऊर्जा का क्रम होगा
[Ni(H2O)6] 2+ < [Ni(NH3)6] 2+ < [Ni(NO2)6]4-
∴ \(E=\frac{h c}{\lambda}\) , इस प्रकार, अवशोषित तरंगदैर्घ्य विपरीत क्रम में होगा।
उपसहसंयोजन यौगिक अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
उपसहसंयोजन यौगिक वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. सही विकल्प चुनकर लिखिए-
प्रश्न 1.
जीसे लवण (Zeise’s salt) का सही सूत्र है –
(a) K+[PtCl3(C2H4)– ]
(b) K+[PtCl3-n2(C2H4)–] Cl–
(c) K+[PtCl3-n2-C2H4–]
(d) K+[PtClz-n2-(C2H4)– ].
उत्तर
(d) K+[PtClz-n2-(C2H4)– ].
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन ओलिफिनिक कार्ब-धात्विक नहीं हैं –
(a) C4H4Fe(CO)3
(b) (C2H4PtCl3)2
(c) Be(CH2)2
(d) K[C2H4PtCl3]3H2O.
उत्तर
(c) Be(CH2)2
प्रश्न 3.
K3[Al(C2O4)3] का IUPAC NAME HI
(a) पोटैशियम एल्युमिनो ऑक्जेलेट
(b) पोटैशियम ट्राइऑक्जेलेटो ऐल्युमिनेट (III)
(c) पोटैशियम ऐल्युमिनियम (III) आक्जेलेट
(d) पोटैशियम ट्राइऑक्जेलेटो ऐल्युमिनेट (IV)।
उत्तर
(b) पोटैशियम ट्राइऑक्जेलेटो ऐल्युमिनेट (III)
प्रश्न 4.
निम्नलिखित के बनने के कारण AgCL जलीय अमोनिया में विलेय है –
(a) [Ag(NH3)4]2+
(b) [Ag(NH4)2]+
(c) [Ag(NH3)4]+
(d) [Ag(NH3)32]+
उत्तर
(d) [Ag(NH3)32]+
प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन जलीय विलयन में सिल्वर नाइट्रेट के साथ सफेद अवक्षेप देगा –
(a) [Cs(NH3) Cl](NO2)2
(b) [Pt(NH3)2Cl2]
(c) [Pt(CN)Cl2]
(d) [Pt(NH3)]Cl2.
उत्तर
(d) [Pt(NH3)]Cl2.
प्रश्न 6.
Fe4[Fe(CN)6]3 का सही नामकरण है –
(a) फेरेसो फेरिक सायनाइड
(b) फेरिक फेरस हेक्सा सायनेट
(c) आयरन (III) हेक्सा सायनो फेरेट (II)
(d) हेक्सा सायनो फेरेट (III-II)।
उत्तर
(c) आयरन (III) हेक्सा सायनो फेरेट (II)
प्रश्न 7.
[Pt(NH3),Cl2–] ज्यामितीय समावयवियों की संख्या होगी –
(a) दो
(b) एक
(c) तीन
(d) चार।
उत्तर
(a) दो
प्रश्न 8.
को-ऑर्डिनेशन यौगिकों में किसी धातु का को-ऑर्डिनेशन नम्बर है
(a) प्राथमिक संयोजकता के समान
(b) प्राथमिक एवं द्वितीयक संयोजकता का योग
(c) द्वितीयक संयोजकता के समान
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर
(c) द्वितीयक संयोजकता के समान
प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन-से संकुल में धातु की ऑक्सीकरण अवस्था शून्य है –
(a) [Pt(NH3)2Cl2]
(b) [Cr(CO)6]
(c) [Cr(NH3)3Cl3]
(d) [Cr(CN)2Cl2].
उत्तर
(b) [Cr(CO)6]
प्रश्न 10.
निम्नलिखित में कौन-सा कार्ब-धात्विक यौगिक नहीं है –
(a) एथिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड
(b) टेट्राऐथिल लेड
(c) सोडियम एथॉक्साइड
(d) टेट्रामेथिल ऐल्युमिनियम।
उत्तर
(c) सोडियम एथॉक्साइड
प्रश्न 11.
संकुल [Fe(CN)6]3- , [Fe(CN)6]3- तथा [Fe(Cl)4]–T में Fe की उपसहसंयोजन संख्या . क्रमशः होगी –
(a) 2, 2, 3
(b) 6, 6, 4
(c) 6, 3,3
(d) 6, 4, 6.
उत्तर
(b) 6, 6, 4
प्रश्न 12.
dsp संकरण का उदाहरण है
(a) [Fe(CN)6]3-
(b) [Ni(CN)4]2-
(c) [Zn(NH3)4]2+
(d) [FeF6]3-.
उत्तर
(b) [Ni(CN)4]2-
प्रश्न 13.
निम्न में से किस संकुल का एंटी कैंसर एजेन्ट के रूप में उपयोग किया जाता है –
(a) trans[Co(NH3)3Cl3]
(b) cis[Pt(NH3)2Cl2]
(c) cis-K2[PtCl2Br2]
(d) Na2CO3.
उत्तर
(b) cis[Pt(NH3)2Cl2]
प्रश्न 14.
NH3.[PtCl4]2- PCl5 एवं BCl3 में केन्द्रीय परमाणुओं के संकरण का सही क्रम है –
(a) dsp2, dsp3, sp2 और sp3
(b) sp3, sp3, sp3d और sp2
(c) dsp2, sp2, sp3 और dsp3
(d) dsp2, sp3, sp2 और dsp3.
उत्तर
(b) sp3, sp3, sp3d और sp2
प्रश्न 15.
[Fe(CO)5] संकुल में Fe की ऑक्सीकरण अवस्था है –
(a)-1
(b) +2
(c) +4
(d) शून्य।
उत्तर
(d) शून्य।
प्रश्न 16.
ग्रिगनार्ड अभिकर्मक है –
(a) कार्ब-धात्विक यौगिक
(b) संकुल यौगिक
(c) द्विक लवण
(d) उदासीन यौगिक।
उत्तर
(a) कार्ब-धात्विक यौगिक
प्रश्न 17.
संकुल लवणों की संरचना का प्रतिपादन किया –
(a) बर्जीलियस ने
(b) वर्नर ने
(c) राउल्ट ने
(d) फैराडे ने।
उत्तर
(b) वर्नर ने
प्रश्न 18.
मोहर लवण है –
(a) द्विक लवण
(b) संकुल लवण
(c) उदासीन लवण
(d) अभिकर्मक।
उत्तर
(a) द्विक लवण
प्रश्न 19.
सोडियम नाइट्रोप्रुसाइड का सूत्र है –
(a) Na4[Fe(CN)5NOS]
(b) Na2[Fe(CN)5NO]
(c) NaFe[Fe(CN)6]
(d) Na2[Fe(CN)5NO2].
उत्तर
(b) Na2[Fe(CN)5NO]
प्रश्न 20.
निम्न में से कौन-सा यौगिक भिन्न है –
(a) पोटैशियम फेरोसायनाइड
(b) फेरस अमोनियम सल्फेट
(c) पोटैशियम फेरीसायनाइड
(d) ट्रेटाऐमीन कॉपर (II) सल्फेट ।
उत्तर
(b) फेरस अमोनियम सल्फेट
2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
- cis[Pt(NH3),Cl2] संकुल का …………. एजेन्ट के रूप में उपयोग किया जाता है।
- हीमोग्लोबिन आयरन का ………… यौगिक है।
- ज्यामितीय समावयवता …………. तथा ………….. संकुलों दोनों में पायी जाती है।
- डाइएथिल जिंक एक ……….. यौगिक है।
- [Ni(CO)4] संकुल में Ni की ऑक्सीकरण अवस्था ………….. है।
- K4[Fe(CN)6] का सही IUPAC नाम ………………… है।
- [CO(EDTA)] में कोबाल्ट की ऑक्सीकरण संख्या ….
- cis-डाइब्रोमो क्लोरो ट्राइएक्वोक्रोमियम का संरचना सूत्र ……………….. है।
- प्रस्फुटनरोधी कार्ब-धात्विक यौगिक का सूत्र ……
- [COF6]3- एक ………………. चक्रण संकुल है।
- EDTA ………………. लिगैण्ड है।
- षट्दन्तुर लिगैण्ट का उदाहरण ………………. है।
उत्तर
- एन्टी-कैंसर
- संकर
- चतुष्फलकीय, अष्टफलकीय
- कार्ब-धात्विक
- शून्य
- पोटैशियमहेक्सा – सायनोफेरेट (II)
- +3
- [Cr(H2O)3ClBr2]
- (C2H5)4Pb
- उच्च
- षट्दन्तुर
- E.D.T.A.
3. एक शब्द/वाक्य में उत्तर दीजिए
- [Co(NH3)5Br]SO4 तथा [CO(NH3)5SO4]Br में किस प्रकार की समावयवता पाया जाती है ?
- उस कार्ब-धात्विक यौगिक का नाम लिखिए, जिसका उपयोग पेट्रोल में अपस्फुटनरोधी यौगिक के
रूप में किया जाता है। - कैल्सियम के E.D.T. A. के साथ बने संकुलों का उपयोग किस धातु के विषैलेपन को दूर करने में
किया जाता है ? - डाई बेंजीन क्रोमियम की संरचना कैसी होती है ?
- Ni(CO)4 में किस प्रकार का संकरण होता है ?
- [Cr(H2O)5 SCN]2+ और [Cr(H2O)5NCS)2+ में कौन-सी समावयवता को प्रदर्शित करती है ?
उत्तर
- आयनन समावयवता,
- टेट्राएथिल लेड,
- लेड,
- सैंडविच,
- sp3
- बन्ध समावयवता।
4. उचित संबंध जोडिए –
उत्तर
1. (h), 2. (g), 3. (1), 4. (e), 5. (b), 6. (d), 7. (a), 8. (c), 9. (i).
उपसहसंयोजन यौगिक लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
द्विक-लवण एवं संकुल-लवण को समझाइए। प्रत्येक का एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
द्विक-लवण (Double Salt)—ये योगशील यौगिक होते हैं जो जलीय विलयन बनाने पर अपने संघटक आयनों में टूट जाते हैं । द्विक लवण के सभी संघटक आयन अपनी स्वतन्त्र पहचान रखते हैं तथा आयनीकरण होने पर अपने परीक्षण देते हैं ।
जैसे-फेरस अमोनियम सल्फेट – FeSO4. (NH4)2SO4.H2O.
पोटाश एलम-K2SO4.Al2(SO4)3.24H2O.
संकर-लवण या संकुल यौगिक (Complex compound)—इन यौगिकों में लिगैण्ड किसी धातु परमाणु या आयन से उप-सहसंयोजी बन्ध द्वारा जुड़े रहते हैं। धातु व लिगैण्ड मिलकर संकुल आयन बनाते हैं। जलीय विलयन में संकुल आयन अकेला आयन, जैसा व्यवहार करता है तथा संकुल आयन में लिगैण्ड के रूप में जुड़े आयन अपनी पहचान खो देते हैं, जैसे—K,[Fe(CN)6].
प्रश्न 2.
ऐम्बीडेन्टेट लिगैण्ड को उदाहरण सहित समझाकर लिखिए।
उत्तर
संकुलों, जिसमें एकदन्ती लिगैण्ड एक से अधिक परमाणु केन्द्रीय धातु आयन को इलेक्ट्रॉन प्रदान कर उससे उप-सहसंयोजक बंध बनाते हैं, ऐम्बीडेन्टेट लिगैण्ड कहलाते हैं।
उदाहरण – NO2– आयन लिगैण्ड केन्द्रीय धातु आयन से या तो N या O द्वारा उप-सहसंयोजित हो सकता है।
प्रश्न 3.
लिगैण्ड से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर
लिगैण्ड (Ligand)—कोई भी परमाणु, आयन या अणु जो कि केन्द्रीय आयन को इलेक्ट्रॉन युग्म देकर उप-सहसंयोजी बन्ध बनाने में समर्थ होता है, संलग्नी या लिगैण्ड कहलाता है। उदाहरण-K4[Fe(CN)6] में CN लिगैण्ड है।
लिगैण्ड में वह विशिष्ट परमाणु जो वस्तुतः इलेक्ट्रॉन-युग्म देता है, दाता परमाणु (Donor atom) कहलाता है । किसी लिगैण्ड में एक से अधिक दाता परमाणु हों तो जुड़ने वाले परमाणुओं की संख्या एक, दो, तीन आदि के आधार पर उन्हें क्रमशः एकदन्तुर (Monodentate), द्विदन्तुर (Bidentate), त्रिदन्तुर (Tridentate), बहुदन्तुर (Polydentate) आदि कहा जाता है । इस प्रकार के कुछ लिगैण्ड अग्र दिये गये हैं –
(लिगैण्ड में तारांकित परमाणु दाता परमाणु है।)
प्रश्न 4.
संकुल आयन क्या है ?
उत्तर
संकुल या जटिल आयन (Complex ion)—संकुल आयन वह आवेशित मूलक है, जो एक सरल धातु आयन और दो या अधिक उदासीन अणुओं या लिगैण्ड के उप-सहसंयोजक बन्ध द्वारा संयोजन से बना होता है। जैसे [Fe(CN)6]4- आयन । इसे बड़े कोष्ठक में लिखा जाता है। यह कोष्ठक उप-सहसंयोजी मण्डल (Co-ordination Sphere) कहलाता है।
प्रश्न 5.
द्विदन्तुर तथा षट्दन्तुर लिगैण्ड के एक-एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर
द्विदन्तुर लिगैण्डए –
प्रश्न 6.
उप-सहसंयोजन संख्या क्या है ? दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर
केन्द्रीय धातु या धातु आयन से उप-सहसंयोजक बन्ध द्वारा सीधे ही जुड़े हुए लिगैण्डों की संख्या को केन्द्रीय धातु आयन की उप-सहसंयोजन संख्या कहते हैं।
उदाहरण-[CO(NH3)6]3+ में CO3+ की उप-सहसंयोजन संख्या 6 है।
[Ag(CN)2]– में Ag की उप-सहसंयोजन संख्या 2 है।
प्रश्न 7.
कार्ब-धात्विक यौगिक किसे कहते हैं ? कार्बधात्विक यौगिकों के कोई दो उपयोग लिखिए।
उत्तर
ऐसे यौगिक जिनमें कार्बनिक समूह का कार्बन परमाणु धातु परमाणु से आबन्धित होता है, कार्बधात्विक यौगिक कहलाते हैं।
कार्ब-धात्विक यौगिकों के उपयोग –
(i) टेट्राएथिल लेड (TE.L.) का उपयोग अपस्फुटनरोधी यौगिक के रूप में किया जाता है।।
(ii) जिग्लर-नाटा उत्प्रेरक का उपयोग एथिलीन व अन्य ऐल्कीन की बहुलीकरण क्रियाओं में किया जाता है।
(iii) एथिल मरक्यूरिक क्लोराइड (C2H5HgCl) का उपयोग कृषि में कीटनाशी के रूप में किया जाता है।
(iv) विल्किन्सन उत्प्रेरक का उपयोग कुछ ऐल्कीनों के हाइड्रोजनीकरण में किया जाता है।
प्रश्न 8.
ज्यामितीय समावयवता को एक उदाहरण देते हुए समझाइए।
उत्तर
ज्यामितीय समावयवता-इसे सिस-ट्रांस समावयवता भी कहते हैं। जब केन्द्रीय धातु आयन के चारों ओर दो समान लिगैण्ड एक-दूसरे के निकटवर्ती अर्थात् 90° पर होते हैं, तो उसे सिस-समावयवी एवं जब विकर्णवत् विपरीत अर्थात् 180° पर रहते हैं तो उन्हें ट्रांस-समावयवी कहते हैं।
इस प्रकार की समावयवता प्राय: वर्गसमतलीय [CN = 4] तथा अष्टफलकीय [CN = 6] संकुल यौगिकों में पायी जाती हैं।
प्रश्न 9.
K4[Fe(CN)6] संकुल यौगिक का उदाहरण देते हुए वर्नर के सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर-
(i) जब इसे जल में विलेय किया जाता है तो यह अपने अवयवी आयनों K+, Fe2+, CN– में विभक्त नहीं होता बल्कि K+ एवं एक संकुल आयन [Fe(CN)6]4- देता है।
(ii) संकुल यौगिक का नाम-पोटैशियम हेक्सासायनोफेरेट (II)
(iii) K4[Fe(CN)6] का जलीय विलयन में आयनन –
K4[Fe(CN)6] ⇌ 4K+ + [FeII(CN)6]4-
वर्नर सिद्धान्त के अनुसार इस संकुल में केन्द्रीय धातु परमाणु Fe है, जिसकी ऑक्सीकरण संख्या 2 (प्राथमिक संयोजकता) तथा उप-सहसंयोजन संख्या (द्वितीयक संयोजकता) 6 है।
प्रश्न 10.
संयोजकता बन्ध सिद्धांत के आधार पर [Ni(CN)4]2- की रचना को समझाइए। .
उत्तर
[Ni(CN)4]2- की संरचना – [Ni(CN)4]2- आयन में Ni2+ आयन के रूप में है जिसका बाह्य इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 3d8 है। [Ni(CN)4]2- आयन में Ni2+ की उप-सहसंयोजन संख्या 4 है तथा प्रायोगिक मापनों से ज्ञात है कि आयन प्रतिचुम्बकीय होता है। यह तभी सम्भव है जब Ni2- आयन में कोई अयुग्मित इलेक्ट्रॉन न हो अर्थात् 3dz2 अपना इलेक्ट्रॉन \(3 d_{x^{2}-y^{2}}\) को देकर युग्मित कर दे।
अब 3dz2, 4s, 4p, और 4py कक्षक संकरित होकर NC चार नवीन dsp2 संकरित कक्षक बनाते हैं, जो वर्ग समतलीय रूप से व्यवस्थित होते हैं जो चार CN– आयनों के 4 एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म को ग्रहण करते हैं तथा σ – बन्ध बनाते हैं । अब इसमें एक भी अयुग्मित इलेक्ट्रॉन नहीं है । अत: [Ni(CN)4]2- प्रतिचुम्बकीय होता है।
प्रश्न 11.
प्रभावी परमाणु संख्या (EAN) क्या है ? एक उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर
उप-सहसंयोजक यौगिक के केन्द्रीय धातु परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉनों की संख्या तथा बन्ध के बनने से प्राप्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या के योग को प्रभावी परमाणु संख्या (EAN) कहते हैं। प्रभावी परमाणु संख्या = परमाणु संख्या – आयन बनने में लुप्त इलेक्ट्रॉन + लिगैण्ड द्वारा प्रदत्त इलेक्ट्रॉन युग्मों की संख्या
K4[Fe(CN)6] में Fe के लिए EAN = 26 – 2 + 12 = 36.
प्रश्न 12.
(1) निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए –
(अ) [HgI4]2-
(ब) [Ag(CN)2]–,
(स) [Fe(C5H5)2],
(द) K [Ag (CN)2].
(2) जीसे सॉल्ट एवं फेरोसीन क्या है ? संरचना सहित समझाइए।
उत्तर
(1) यौगिकों के IUPAC नाम –
(अ) टेट्राआयोडोमरक्यूरेट (II) आयन
(ब) डाइसाइनोअर्जेण्टेट (I) आयन ।
(स) बिस (साइक्लोपेण्टाडाइनिल) आयरन (II)
चित्र-जीसे लवण (द) पोटैशियम डाइसाइनोअर्जेण्टेट (I)
(2) (i) जीसे लवण (Zeise’s Salt) K[PtCl3(η2 – C2H4)] –
इस यौगिक की खोज डेनमार्क के भेषजज्ञ (Danish Pharmacist) जायसे (Zeise) ने सन् 1830 में की थी। यह संक्रमण धातुओं के प्रथम प्राप्त यौगिकों में से एक है। इसमें एथिलीन अणु का तल (Plane) तथा C =C अक्ष केन्द्रीय परमाणु के प्रत्याशित बन्ध-दिशा के लम्बवत् होता है।
यह नारंगी-पीले रंग का यौगिक होता है, इसकी खोज सन् 1951 ई. में कीली और पाउसन (Kealy and Pauson) तथा मिलर एवं उनके सहयोगियों (Miller and Co-worker) ने की। इसकी सैंडविच संरचना (Sandwitch structure) होती है, जिसमें दो साइक्लोपेण्टाडाइनिल रिंग (Cyclopentadienyl rings) के बीच आयरन परमाणु होता है।
प्रश्न 13.
कीलेट (Chelate) किसे कहते हैं ? उदाहरण व महत्व लिखिए।
उत्तर
धातु या धातु आयन के साथ संयोजन कर जब कोई बहुदन्तुर लिगैण्ड चक्रीय संरचना वाला अणु बना लेता है, तो यह यौगिक कीलेट कहलाता है।
जैसे-निकिल डाइमेथिल ग्लाइऑक्जीम
महत्व – (i) आन्तरिक संक्रमण तत्वों के पृथक्करण में
(ii) कठोर जल के मृदुकरण में
(iii) गुणात्मक विश्लेषण में, कुछ धातु आयनों की पहचान में।
प्रश्न 14.
प्राथमिक तथा द्वितीयक संयोजकताओं में क्या अन्तर है ? उदाहरण दीजिए।
उत्तर
प्राथमिक संयोजकता आयनित हो सकती है, जबकि द्वितीयक संयोजकता आयनित नहीं हो सकती। प्राथमिक संयोजकता को ठोस (पूर्ण) रेखा ” से तथा द्वितीयक संयोजकता को बिन्दुकित या टूटी रेखा से प्रदर्शित करते हैं।
उदाहरण – [Co(NH3)6]Cl3 में प्राथमिक संयोजकता 3 तथा द्वितीयक
संयोजकता 6 है।
Co = केन्द्रीय धातु, NH3, Cl3 = लिगैण्ड।
प्रश्न 15.
धातुओं के निष्कर्षण में उप-सहसंयोजक यौगिकों का क्या महत्व है ?
उत्तर
धातुकर्म में-धातुकर्म में गोल्ड, सिल्वर जैसे धातुओं का निष्कर्षण भी संकुलों के माध्यम से ही किया जाता है। धातुओं के अयस्कों की तनु सायनाइड विलयन के साथ क्रिया कराने पर विलेयशील सायनाइड संकुल बनते हैं । जिनकी क्रिया जिंक जैसे अधिक धन-विद्युती धातुओं के साथ कराने पर ये धातुएँ मुक्त होकर अवक्षेपित हो जाती हैं।
प्रश्न 16.
निम्नलिखित संकुल यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए –
(a) [Cu(NH3)4]SO4
(b) [Cr(H2O)6]Cl3
(c)[Ni(CO)4]
(d) K2[HgI4].
उत्तर
(a) ट्रेटाएमीनकॉपर (II) सल्फेट
(b) हेक्साएक्वाक्रोमियम (III) क्लोराइड
(c) ट्रेटाकार्बोनिलनिकिल (0)
(d) पोटैशियम ट्रेटाआयोडोमरक्यूरेट (II)।
प्रश्न 17.
द्विक-लवण और संकुल-लवण में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
द्विक-लवण और संकुल-लवण में अन्तर –
प्रश्न 18.
निम्नलिखित उप-सहसंयोजी यौगिकों के रासायनिक सूत्र लिखिए –
(a) ट्राइनाइट्राइटों ट्राइऐमीन कोबाल्ट (III)
(b) ट्रिस (एथिलीनडाइऐमीन) क्रोमियम (III) क्लोराइड
(c) पेण्टा कार्बोनिल आयरन (0)
(d) टेट्रा क्लोरो प्लेटिनेट (II) आयन।
उत्तर-
(a) [CO(NH3)3(ONO)3]
(b) [Cr(en)3]Cl3
(c) [Fe(CO)5]
(d) [Pt Cl4]-2
प्रश्न 19.
निम्नलिखित के IUPAC नाम लिखिए –
(i) K4Ni(CN)4]
(ii) H2[CuCl4]
(iii) [Ag(NH3)2]Cl
(iv) [Ni(CO)4].
उत्तर
(i) पोटैशियम टेट्रासायनोनिकलेट (0) आयन
(ii) हाइड्रोजन टेट्राक्लोरोक्यूप्रेट (II) आयन
(iii) डाइ एमीन सिल्वर (I) क्लोराइड
(iv) टेट्राकार्बोनिल निकिल (0) आयन।
प्रश्न 20.
उप-सहसंयोजी यौगिक में बंधन समावयवता व आयनीकरण समावयवता को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
बन्धन समावयवता-जब केन्द्रीय धातु आयन से एक ही लिगैण्ड भिन्न परमाणु द्वारा जुड़ता है तो प्राप्त संरचना भिन्न होती है, जो एक-दूसरे के समावयवी होते हैं । इस घटना को बन्ध समावयवता कहते हैं। इस प्रकार के लिगैण्ड को ऐम्बीडेण्टेड लिगैण्ड कहते हैं, जैसे –
संरचना-I में Ni2+ से थायोसायनेट सल्फर द्वारा और संरचना-II में नाइट्रोजन परमाणु द्वारा जुड़ा है।
आयनीकरण समावयवता – ऐसे यौगिक जिनका मूलानुपाती सूत्र एक ही होता है किन्तु जो विलयन में आयनन के पश्चात् भिन्न-भिन्न आयन देते हैं, आयनन समावयवी कहलाते हैं तथा यह समावयवता आयनन समावयवता कहलाती है। यह उप-सहसंयोजी मण्डल के अन्दर तथा बाहर के लिगैण्ड के विनिमय के कारण उत्पन्न होती है।
उदा.- [Co(NH3)5 Br]SO4 यह SO2-4 आयन देता है
[Co(NH3)5 SO4] Br यह Br– आयन देता है।
प्रश्न 21.
(i)
का IUPAC नाम बताइए।
(ii) यौगिक [Cr(NH3)4(ONO)Cl]NO3 में लिगैण्ड तथा उप-सहसंयोजन संख्या लिखिए। (iii) कार्बोनेटो पेन्टाऐमीनकोबाल्ट (III) क्लोराइड का रासायनिक सूत्र लिखिए।
उत्तर
(i)”μ – ऐमीडो, μ – हाइड्रॉक्सी बिस [टेट्रा ऐमीन कोबाल्ट (III) आयन]
(ii) लिगैण्ड (a) NH3, (b) ONO, (c) Cl अर्थात् लिगैण्ड की कुल संख्या 3 एवं उप-सहसंयोजन संख्या = 6 है।
(iii) [Co(NH3)5CO3]Cl.
प्रश्न 22.
निम्नलिखित उप-सहसंयोजी यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए –
(i) NH4(Cr(NH3)2(NCS)4]
(ii) K2(PtCl6)
(iii) (CoCl(en)2NH3)++
(iv) K[Pt (NH3)Cl5]
(v) [Fe(CO)5].
उत्तर
(i) अमोनियम टेट्राआइसोथायोसायनेटो डाइऐमीनक्रोमेट (III) आयन
(ii) पोटैशियम हेक्साक्लोरोप्लेटिनेट (IV) आयन
(iii) क्लोरोबिस (एथिलीन डाइऐमीन), ऐमीन कोबाल्ट (III) आयन
(iv) पोटैशियम पेन्टाक्लोरोऐमीनप्लेटिनेट (IV) आयन
(v) पेन्टाकार्बोनिल आयरन।
प्रश्न 23.
निम्नलिखित यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए –
(i) Li(AlH4)
(ii) [Cr(NH3)6 (NH3]NO3)3
(iii) [Cr(H2O)6]Cl3
(iv) K3[Fe(CN)6].
उत्तर
(i) लीथियम टेट्राहाइड्रिडोऐल्यूमिनेट (III)
(ii) हेक्साएमीन क्रोमियम (III) नाइट्रेट
(iii) हेक्साऐक्वाक्रोमियम (III) क्लोराइड
(iv) पोटैशियम हेक्सासायनोफेरेट (III)।
प्रश्न 24.
उप-सहसंयोजी यौगिकों द्वारा प्रदर्शित प्रकाशिक समावयवता को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
प्रकाशिक समावयवता-इस प्रकार की समावयवता ऐसे दो समान यौगिकों में पायी जाती है, जो एक-दूसरे के दर्पण प्रतिबिम्ब होते हैं, जिन्हें एक-दूसरे पर अध्यारोपित नहीं किया जा सकता, ऐसी समावयवता असममिति के कारण उत्पन्न होती है।
प्रश्न 25.
कार्ब-धात्विक यौगिकों के चार महत्वपूर्ण अनुप्रयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर
कार्ब-धात्विक यौगिकों के महत्त्वपूर्ण अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं –
(1) औषधि में मरक्यूरोक्रोम, मर्करीहाइड्रिन, टिंचर पूतिरोधी (Antiseptic) औषधियों में प्रयुक्त मरकरी के कार्ब-धात्विक यौगिक हैं।
(2) कृषि में अनेक कार्ब-मरकरी यौगिक जैसे-एथिल मरकरी क्लोराइड या फॉस्फेट से बीज अभिकृत किये जाते हैं।
(3) अपस्फोटरोधी (Antiknock) ट्रेटाएथिल लेड एक महत्त्वपूर्ण अपस्फोटरोधी है।
(4) उत्प्रेरक-संक्रमण धातुओं के विलेयशील कार्ब-धात्विक संकर समांग उत्प्रेरक का कार्य करते हैं। जैसे—विल्किन्सन उत्प्रेरक (Ph,P), RhCl का उपयोग द्वि-बन्धों के हाइड्रोजनीकरण में किया जाता है।
(5) उद्योगों में कार्ब-लीथियम तथा कार्ब-ऐल्युमिनियम यौगिक उत्प्रेरक के रूप में प्रयुक्त होते हैं। कार्बधात्विक यौगिकों के उत्प्रेरक के रूप में प्रयोग द्वारा अनेक रंजक (Dyes) तथा रसायनों का निर्माण सम्भव है।
(6) रासायनिक संश्लेषण में ग्रिगनार्ड अभिकर्मक एवं अन्य लीथियम यौगिक कार्बनिक संश्लेषण में बहुउपयोगी हैं।
प्रश्न 26.
निम्नलिखित के IUPAC पद्धति में नाम लिखिए
(i) [Cr(H2O)6]Cl3
(ii) [Ag (NH3)2]Cl,
(iii) H2[CuCl4],
(iv) [CO(NH3)6]Cl3,
(v) K2[PtCl6],
(vi) [Pt Cl4(NH3)2].
उत्तर
(i) हेक्साऐक्वाक्रोमियम (III) क्लोराइड
(ii) डाइएमीन सिल्वर (I) क्लोराइड
(iii) हाइड्रोजन टेट्राक्लोरोक्यूप्रेट (II)
(iv) हेक्साएमीन कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(v) पोटैशियम हेक्साक्लोरोप्लैटिनम (IV)
(vi) डाइएमीनटेट्रा-क्लोरोप्लैटिनम (IV)।
प्रश्न 27.
निम्न उपसहसंयोजी यौगिकों के IUPAC नाम लिखिए –
(i) K[Ag(CN)2],
(ii) K4[Fe(CN)6],
(ii) [Ag(NH3)2]Cl,
(iv) [Cr(NH3)6]Cl3.
उत्तर
(i) पोटैशियम डाइसायनोअर्जेन्टेट (I)
(ii) पोटैशियम हेक्सासायनोफेरेट (II)
(iii) डाइएमीनसिल्वर (I) क्लोराइड
(iv) हेक्साएमीनक्रोमियम (III) क्लोराइड।
प्रश्न 28.
उप-सहसंयोजी यौगिकों में आयनन समावयवता और हाइड्रेट समावयवता को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर
आयनन समावयवता – समावयवियों का स्टॉकियोमीट्री संघटन एक ही होता है, परन्तु विलयन . में उनसे प्राप्त होने वाले आयन भिन्न प्रकार के होते हैं, ऐसे समावयवी आयनन समावयवी कहलाते हैं।
उदाहरणार्थ – [Co(NH3)5Br]SO4 (गहरा बैंगनी)-यह विलयन में SO42- आयन देता है, जबकि [CO(NH3 )5SO4]Br (लाल)-यह विलयन में Br– आयन देता है। ये दोनों आयनन समावयवी हैं।
हाइड्रेट समावयवता-जब किसी संकुल के उप-सहसंयोजक मण्डलं के भीतर और बाहर जल के अणुओं की संख्या में भिन्नता होती है, तब हाइड्रेट समावयवता उत्पन्न होती है।
उदाहरणार् थ- CrCl6.6H2O के तीन हाइड्रेट समावयवी निम्नलिखित हैं –
(i) [Cr(H2O)6]Cl3-बैंगनी,
(ii) [Cr(H2O)5 Cl]Cl2.H2O—हरा,
(iii) [Cr(H2O)4Cl2]Cl.2H2O—गहरा हरा।
प्रश्न 29.
निम्नलिखित उप-सहसंयोजी यौगिकों के रासायनिक सूत्र लिखिए –
(a) हेक्साऐमीन कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(b) टेट्राऐमीन कॉपर (II) सल्फेट
(c) टेट्राऐमीन प्लैटिनम (II) क्लोराइड
(d) पोटैशियम हेक्सासायनो फैरेट (II)।
उत्तर
(a) [Co(NH3)6]Cl3
(b) [Cu(NH3)4]SO4
(c)[Pt(NH3)4]Cl2
(d) K4[FeII(CN)6].
प्रश्न 30.
निम्नलिखित उप-सहसंयोजी यौगिकों के रासायनिक सूत्र लिखिए –
(a) क्लोरो पेंटाऐमीन कोबाल्ट (II) क्लोराइड
(b) पोटैशियम डाइसायनो अर्जेण्टेट (I)
(c) हेक्साएक्वा क्रोमियम (III) क्लोराइड
(d) टेट्रासायनो निकिलेट (I)।
उत्तर
(a) [Co(NH3)5Cl]Cl2
(b) K[Ag(CN)2]
(c) [Cr(H2O)6]Cl3
(d) [Ni(CN)4]2-
प्रश्न 31.
निम्नलिखित उप-सहसंयोजी यौगिकों के रासायनिक सूत्र लिखिए –
(a) हेक्सा ऐमीन प्लैटिनम (IV) क्लोराइड
(b) पोटैशियम हेक्सासायनो फेरेट (III)
(c) डाइक्लोरो डाइएमीनो प्लैटिनम (II)
(d) सोडियम पेन्टासायनो नाइट्रोसिल फेरेट (III)।
उत्तर
(a) [Pt(NH3)6]Cl4
(b) K3[FeIII(CN)6]
(c) [Pt(NH3)2Cl2]
(d) Na2[Fe(CN)5NO].
प्रश्न 32.
निम्न के I.U.P.A.C पद्धति में नाम लिखिए –
(a) [Pt(NH3)2Cl2]
(b) K3[Fe(CN)6]
(c) [CO(NH3)6]Cl3
(d) Pt[(NH3)6]Cl4
(e) CuCl42-.
उत्तर
(a) डाइक्लोरो डाइऐमीन प्लैटिनम (II)
(b) पोटैशियम हेक्सासायनो फेरेट (III)
(c) हेक्साऐमीन कोबाल्ट (III) क्लोराइड
(d) हेक्साऐमीन प्लैटिनम (IV) क्लोराइड
(e) ट्रेटाक्लोरो क्यूप्रेट (II)।
प्रश्न 33.
निम्नलिखित के I.U.P.A.C.पद्धति में नाम लिखिए –
(a) K4[Fe(CN)6]
(b) [Cr(NH3)6(NO2)3]
(c) [Ni(CN)3]Cl3
(d) K2[Pt(Cl)6]
(e) Ni (CO)4.
उत्तर
(a) पोटैशियम हेक्सासायनो फेरेट (II), (b) ट्राइनाइट्रो हेक्साऐमीन क्रोमियम (III), (c) ट्राइसायनो निकिल (III) क्लोराइड, (d) पोटैशियम हेक्साक्लोराइड प्लैटिनम, (e) टेट्राकार्बोनिल निकिल (0)।
प्रश्न 34.
Ni(CO)4 एवं [NiCl4]2- दोनों में sp3 संकरण होता है फिर भी Ni(CO)4 प्रतिचुम्बकीय है जबकि [NiCl4]2- अनुचुम्बकीय, क्यों ?
उत्तर
Ni(CO)4 में CO प्रबल लिगैण्ड होने के कारण d- ऑर्बिटल में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन हो जाता है जबकि [NiCl4]2- में Cl– दुर्बल लिगैण्ड है जिसके कारण 3d ऑर्बिटल में इलेक्ट्रॉनों का युग्मन संभव नहीं है। अतः (NiCl4)2- में 3d- ऑर्बिटल में दो इलेक्ट्रॉन अयुग्मित रहते हैं इसलिए दोनों संकुल में sp3 संकरण होने पर भी Ni(CO)4 प्रतिचुम्बकीय और [NiCI4]– अनुचुम्बकीय है।
प्रश्न 35.
[Co(NH3)5Br]SO4 एवं [Co(NH3)5SO4]Br में कैसे विभेद करेंगे? .
उत्तर
ये दोनों संकुल आयनन समावयवी हैं। पहला BaCl2 के साथ सफेद अवक्षेप (BaSO4) देगा, दूसरा BaCl2 से कोई अवक्षेप नहीं देगा। इसी प्रकार दूसरा संकुल [Co(NH3)5SO4]Br, AgNO3 के साथ पीला अवक्षेप देगा जबकि पहला कोई अवक्षेप नहीं देगा।
उपसहसंयोजन यौगिक दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित उप-सहसंयोजी यौगिकों के केन्द्रीय धातु आयन की ऑक्सीकरण संख्या ज्ञात कीजिए।
(a) [Pt(NH3)Cl3] –
(b) [Zn(H2O)3OH]+
(c) Na4[Ni(CN)4]
(d) K2[Zn(OH)4]
उत्तर
(a) [Pt(NH3)Cl3] –
1(x) + 3(0) + 3(-1) = -1
x + 0 – 3= -1
x = +2.
(b) [Zn(H2O)3OH]+
1(x) + 3(0) + 1(-1) = +1
x + 0 – 1 = +1
x= +2.
(c) Na4[Ni(CN)4]
4(+1) + 1(x)+ 4(-1)= 0
4 + x – 4 = 0
x = 0
30.
(d) K2[Zn(OH)4]
2(+1) + 1(x) + 4(-1) = 0
2 + x – 4 = 0
x = +2.
प्रश्न 2.
निम्नलिखित के बनाने की एक-एक विधि दीजिए
(a) टेट्राब्यूटिल टिन, (b) टेट्राएथिल लेड, (c) n-ब्यूटिल लीथियम, (d) फैरोसीन, (e) निकिल टेट्राकार्बोनिल, (f) जीसे लवण।
उत्तर
बनाने की विधियाँ –
(a) टेट्राब्यूटिल टिन –
b) टेट्राएथिल लेड –
(c) n-ब्यूटिल लीथियम –
(d) फैरोसीन—साइक्लोपेण्टाडाइनिल मैग्नीशियम ब्रोमाइड और FeCl2 की अभिक्रिया से फैरोसीन बनता है।
(e) निकिल ट्रेटाकार्बोनिल—सूक्ष्म विभाजित Ni पर 353 K ताप पर CO गैस प्रवाहित करने पर बनता है ।
(f) जीसे लवण –
प्रश्न 3.
संयोजकता बन्ध सिद्धान्त के आधार पर [Ni(CO) की रचना समझाइए।
उत्तर-
[Ni(CO) की संरचना निकिल टेट्राकार्बोनिल में निकिल परमाणु की ऑक्सीकरण अवस्था शून्य (0) होती है I Ni का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 4s23d8 या 3d10 होता है । sp3d संकरण के फलस्वरूप चार चतुष्फलकीय रूप में sp3 कक्षक बनते हैं जो रिक्त होते हैं । इनसे चार CO अणु जुड़ जाते है, फलस्वरूप चतुष्फलकीय निकिल टेट्राकार्बोनिल अणु बनता है।
प्रश्न 4.
संयोजकता बंध सिद्धान्त के आधार पर [Zn(NH3)4]2+ की रचना को समझाइए।
उत्तर
[Zn(NH3)4]2+ की संरचना –
Zn (30) : 1s2, 2s2p6, 3s2p6d10, 4s2p0
Zn++ (28) : KL 3s2p6
उपर्युक्त विन्यास से स्पष्ट है कि 3d- कक्षकों में 10 इलेक्ट्रॉन होने से ये पूर्णतया सन्तृप्त होते हैं और ये संकरण में भाग नहीं लेंगे ।4s और 4p- कक्षकों में sp3 संकरण होता है, जिससे 4 संकर ऑर्बिटल बनते हैं जो कि चतुष्फलक के चार कोनों की ओर उन्मुख होते हैं । चार NH3 अणुओं के एकाकी इलेक्ट्रॉन युग्म sp-सिग्मा कक्षक Zn2+ के चार sp3 संकरित कक्षकों से अतिव्यापन करके चार σ-बन्ध बनाते हैं।
प्रश्न 5.
चतुष्फलकीय तथा अष्टफलकीय उप-सहसंयोजक यौगिकों द्वारा प्रदर्शित प्रकाशिक समावयवता को एक-एक उदाहरण देकर समझाइए ।
उत्तर
प्रकाशिक समावयवता—इस प्रकार की समावयवता ऐसे दो समान यौगिकों में पायी जाती है, जो एक-दूसरे के दर्पण प्रतिबिम्ब होते हैं, जिन्हें एक-दूसरे पर अध्यारोपित नहीं किया जा सकता, ऐसी समावयवता असममिति के कारण उत्पन्न होती है ।
वे यौगिक जो समतल ध्रुवित प्रकाश को दायीं ओर घुमाते हैं, दक्षिण ध्रुवण घूर्णक या d-समावयवी तथा जो बायीं ओर घुमाते हैं उन्हें वाम ध्रुवण घूर्णक या l-समावयवी कहते हैं । इस प्रकार की समावयवता सामान्यतः चतुष्फलकीय संकुलों [CN = 4] तथा अष्टफलकीय संकुलों [CN = 6] द्वारा प्रदर्शित होती हैं ।
प्रश्न 6.
धातुओं के निष्कर्षण तथा धातु आयनों के आकलन में संकुल यौगिकों के अनुप्रयोग लिखिए।
उत्तर
धातुओं के निष्कर्षण तथा धातु आयनों के आकलन में संकुल यौगिकों के अनुप्रयोग –
1. धातु निष्कर्षण में सिल्वर और गोल्ड का उनके अयस्कों से निष्कर्षण करने के लिए सोडियम सायनाइड विलयन से अभिकृत करते हैं, इसमें संकुल बनता है –
(i) सिल्वर ग्लान्स अयस्क NaCN विलयन में विलेय होकर Na[Ag(CN)2] जटिल यौगिक बनाता है जिसमें Zn चूर्ण डालकर Ag को अवक्षेपित कर लेते हैं।
Ag2S + 4NaCN → 2Na[Ag(CN)2] + Na2S.
2Na[Ag(CN)2] +Zn → Na2[Zn(CN)4] + 2Ag↓
Au मुक्त अवस्था में मिलता है। अयस्क चूर्ण को NaCN या KCN विलयन में लेकर 12 से 24 घण्टे रखे रहने पर Au विलेय जटिल यौगिक बनाता है।
4Au+ 8KCN + 2H2O +O2 (वायु से)- 4K[Au(CN)4] + 4KOH
प्राप्त विलयन में Zn छीलन डालने पर Au का अवक्षेपण हो जाता है।
2K[Au(CN)2] + Zn → K2[Zn(CN)4] + 2Au
2. धातु आयनों के आकलन में-धातु आयनों के गुणात्मक विश्लेषण और मात्रात्मक आकलन में संकुल यौगिकों के अनुप्रयोग हैं, जैसे-Ni2+ की पहचान और आकलन डाइमेथिल ग्लाइऑक्जिम (D.M.G.) के साथ लाल रंग का संकुल बनाकर किया जाता है।
प्रश्न 7.
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त को समझाइए।
उत्तर
यह सिद्धान्त बेथे एवं वान ब्लेक द्वारा प्रतिपादित किया गया। इसके अनुसार, केन्द्रीय धातु आयन एवं इनके लिगैण्ड के बीच बन्धन विशुद्ध वैद्युत् आकर्षण से उत्पन्न होता है। यदि लिगैण्ड ऋणायन है, तो धनायन की तरफ का आकर्षणं उसी प्रकार का होता है जिस प्रकार किन्हीं विपरीत आवेशित कणों के बीच आकर्षण पाया जाता है। यदि लिगैण्ड उदासीन अणु है, तो इस द्विध्रुव का ऋणायन सिरा केन्द्रीय धनात्मक आयन की ओर आकर्षित होता है। अतः इनके बीच बन्धन आयन-आयन आकर्षण या आयन द्विध्रुव आकर्षण के कारण होता है।
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त में धातु आयन की ओर निर्देशित लिगैण्ड के कारण d-कक्षकों का विभिन्न ऊर्जा स्तरों में विपाटन हो जाता है। विपाटन की मात्रा (जो कि धातु आयन तथा लिगैण्ड की प्रकृति पर निर्भर होता है) के आधार पर संकुल की संरचना व गुणों की व्याख्या होती है। संक्रमण धातु संकुलों में रंग, दृश्य प्रकाश के अवशोषण के कारण होता है जिसके कारण इलेक्ट्रॉन एक d- कक्षक से दूसरे d- कक्षक में उत्तेजित (d-d संक्रमण) होते हैं।
इस प्रकार यह सिद्धान्त सरल है तथा संकुलों के अधिकांश गुणों की सफलतापूर्वक व्याख्या इसकी सहायता से की जा सकती है।