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MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 15 यशोधरा की व्यथा (कविता, मैथिलीशरण गुप्त)
यशोधरा की व्यथा पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न
यशोधरा की व्यथा लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
यशोधरा ने ‘वसंत’ किसको कहा है?
उत्तर:
यशोधरा ने बसंत राजकुमार सिद्धार्थ को कहा है।
प्रश्न 2.
धरती किसके ताप से जल रही है?
उत्तर:
धरती राजकुमार सिद्धार्थ की तप साधना के तप से जल रही है।
प्रश्न 3.
गौतम बुद्ध के त्याग से वृक्षों पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
गौतम बुद्ध के त्याग से प्रभावित होकर वृक्षों ने भी अपने पत्ते त्याग दिए।
प्रश्न 4.
यशोधरा की विनय क्या है?
उत्तर:
यशोधरा की विनय यह है कि उसके पति के श्रम का फल सब भोगे।
यशोधरा की व्यथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कविता में गौतम बुद्ध के कौन-कौन से गुण बताए गए हैं? (M.P. 2009)
उत्तर:
गौतम बुद्ध में तपस्वी, त्यागी, दयालु, विश्व मंगलकारी और उदारता के गुण बताए गए हैं।
प्रश्न 2.
यशोधरा की निजी व्यथा लोक-व्यथा क्यों बन गई है?
उत्तर:
यशोधरा की निजी व्यथा लोक-व्यथा इसलिए बन गई क्योंकि उसके पति विश्व-कल्याण की भावना से ही उसे छोड़कर गए थे।
प्रश्न 3.
कविता में वर्णित षड्ऋतुओं में से किसी एक ऋतु का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
षड्ऋतुओं में से एक ग्रीष्मऋतु है। इस ऋतु में धूल भरी आँधियाँ चलती हैं। भीषण गर्मी के कारण प्यास से गला सूखां जाता है। शरीर से पसीना बहता रहता है। गर्मी की तीव्रता से दृष्टि झुलसी जाती है, जिसके कारण आँखों के सामने अँधेरा छा जाता है। पृथ्वी गर्मी से निरंतर जलती रहती है।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों का अर्थ लिखिए –
- तप मेरे मोहन का उद्धव धूल उड़ाता आया।
- अरी! वृष्टि ऐसी ही उनकी, दया-दृष्टि रोती थी।
- मेरी बाँह गही स्वामी ने, मैंने उनकी छाँह गही।
- उनके श्रम के फल सब भोगें, यशोधरा की विनय यही।
उत्तर:
- ग्रीष्म ऋतु में यह जो धूल उड़ रही है, यह ग्रीष्म ऋतु में उड़ने वाली धूल नहीं है, अपितु यशोधरा के पति सिद्धार्थ तप की तपस्या के परिणामस्वरूप धूल सूख गई है और वही वायु में मिलकर यहाँ आ रही है।
- ऐ वृष्टि! जिस प्रकार तूं निरंतर वरस रही है, उसी प्रकार मेरे प्रियतम की दया-दृष्टि हुआ करती थी।
- मेरे स्वामी ने अमर संबंधों के लिए मेरी बाँह पकड़ी थी, मेरा वरण किया था और मैंने उनकी शरण ली थी।
- मेरे प्रियतम के श्रम का फल सारा विश्व भोगे, यही यशोधरा की कामना है, यही उसकी उदारता है।
यशोधरा की व्यथा भाव-विस्तार/पल्लवन
प्रश्न 1.
आशा से आकाश थमा है।
उत्तर:
आशा के आधार पर ही आधारहीन आकाश थमा हुआ है। यदि जीवन में आशा न हो, तो जीवन व्यर्थ हो जाता है। यदि जीवन में आशा है, तभी तक जीवन निरंतर चलता रहता है। आशा है, तो जीवन में सफलता प्राप्त की जा सकती है। निराशाभरा जीवन व्यक्ति को निष्क्रिय बना देता है। आशा से भरा व्यक्ति पुरुपार्थ करके जीवन में उन्नति (प्रगति) करता है।
प्रश्न 2.
विश्व-वेदना की चमक उन्हें होती थी।
उत्तर:
गौतम बुद्ध संसार के दुख से दुखी होते थे। विश्व को दुखों से मुक्ति के लिए ही उन्होंने गृह-त्याग किया और तपस्या की। उनके हृदय में भी विश्व-मंगल की भावना को लेकर टीस उठती थी। गौतम बुद्ध ने मानव को दुखों से मुक्ति दिलाने का मार्ग खोजा, ज्ञान प्राप्त किया और स्वयं को इस कार्य में समर्पित कर दिया।
यशोधरा की व्यथा भाषा-अनुशीलन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह कर उनके नाम लिखिए –
वाधा-व्यथा, विश्व-वेदना, दिनमुख, नवरस, अग्नि-कुंड, दूध-दही।
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम और तद्भव शब्दों को छाँटिए –
पत्ता, वाष्प, सूखा, शत, साँस, प्रिय।
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए –
मही, विश्व, सलिल, हेम, स्वामी, पेड़।
उत्तर:
- मही – पृथ्वी, जमीन, धरती।
- विश्व – संसार, दुनिया, जगत।
- सलिल – जल, पानी, अंबु।
- हेम – सोना, स्वर्ण, कनक।
- स्वामी – मालिक, सरदार, नेता।
- पेड़ – वृक्ष, तरु, विटप।
प्रश्न 4.
‘योग’ शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है –
- उद्धव योग मार्ग का संदेश लेकर आए।
- मुझे विभूति रमाने का भी योग नहीं मिल सका।
इसी प्रकार के पाँच शब्द खोजकर उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
- कमल – आपका नाम कमल है।
कमल कीचड़ में खिलते हैं। - अर्थ – आजकल देश अर्थ अभाव से गुजर रहा है।
स्वतन्त्रता का अर्थ है आज़ादी। - आम – आम आम फलों का राजा है।
यह आम रास्ता नहीं है। - कल – कल वर्षा अवश्य होगी।
इस क्षेत्र में अनेक कल कारखाने हैं। - अचल – हिमालय अचल भारत की उत्तर दिशा में है।
यह मेरी अचल सम्पत्ति है।
यशोधरा की व्यथा योग्यता-विस्तार
प्रश्न 1.
लोक कल्याण के लिए बुद्ध की तरह वैभव त्यागने वाले महापुरुषों के जीवनवृत्त संकलित कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
प्रश्न 2.
समाज में आदर्श प्रस्तुत करने वाली भारतीय नारियों की जीवनियों का संग्रह कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।
यशोधरा की व्यथा परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –
प्रश्न 1.
राजकुमार सिद्धार्थ यशोधरा के थे ………..।
(क) भाई
(ख) पति
(ग) सगे-संबंधी
(घ) पिता
उत्तर:
(ख) पति।
प्रश्न 2.
‘यशोधरा की व्यथा’ कविता में कवि ने प्राचीन परंपरा का आश्रय लिया है ………..।
(क) षड्ऋतु वर्णन का
(ख) बारहमासा वर्णन का
(ग) ऋतु वर्णन का
(घ) सौन्दर्य वर्णन का
उत्तर:
(क) षड्ऋतु वर्णन का।
प्रश्न 3.
यशोधरा के विरह और सिद्धार्थ की तप साधना का तप ही है –
(क) ग्रीष्म की लू
(ख) ग्रीष्म की तपन
(ग) ग्रीष्म जलती किरणें
(घ) ग्रीष्म की प्यास
उत्तर:
(ख) ग्रीष्म की तपन।
प्रश्न 4.
कौन-सी ऋतु सिद्धार्थ की शांति और शोभा वृद्धि करते हुए यशोधरा की विरह बढ़ाती है?
(क) बसंत ऋतु
(ख) शिशिर ऋतु
(ग) शरद् ऋतु
(घ) हेमंत ऋतु
उत्तर:
(ग) शरद् ऋतु।
प्रश्न 5.
सिद्धार्थ के त्याग को देखकर किसने अपना क्या त्यागा? (M.P. 2012)
(क) पेड़ों ने पत्ते
(ख) बादलों ने वर्षा
(ग) पक्षियों ने उड़ना
(घ) चंद्रमा ने चाँदनी
उत्तर:
(क) पेड़ों ने पत्ते।
प्रश्न 6.
‘मेरी बाधा-व्यथा सही’ के द्वारा गुप्तजी ने प्रकट किया है –
(क) यशोधरा की आपबीती
(ख) अपनी आपबीती
(ग) यशोधरा की विरह-वेदना
(घ) यशोधरा की तप-साधना
उत्तर:
(ग) यशोधरा की विरह-वेदना।
II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पस्कीजिए –
- ‘यशोधरा की व्यथा’ में यशोधरा की ………. वेदना है। (अशान्त/विरह)
- ‘मैं ऊष्मा-सी यहाँ रही’ ………. अलंकार का उदाहरण है। (उपमा/रूपक)
- वर्षा मानो सिद्धार्थ की ………. प्रतीक है। (शान्ति/करुणा)
- जागी किसकी वाष्प राशि, जो सूने में ………. थी। (रोती/सोती)
- यशोधरा ने अपनी व्यथा अपनी ………. से कही है। (दासी/सखी)
उत्तर:
- विरह
- उपमा
- करुणा
- सोती
- सखी।
III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –
- यशोधरा की व्यथा में षड्ऋतुओं के चित्र हैं।
- शरद ऋतु सिद्धार्थ की करुणा है।
- यशोधरा का विरह अडिग है।
- यशोधरा की व्यथा संयोग शृंगार रस में है।
- यशोधरा का विरह ग्रीष्म की तपन है।
उत्तर:
- सत्य
- असत्य
- सत्य
- असत्य
- सत्य।
IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए – (M.P. 2009)
प्रश्न 1.
उत्तर:
(i) (ङ)
(ii) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।
V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –
प्रश्न 1.
यशोधरा ने किसको वसंत और ऊष्मा कहा है?
उत्तर:
यशोधरा ने वसंत सिद्धार्थ को और स्वयं को ऊष्मा को है।
प्रश्न 2.
यशोधरा के अनुसार यह धरती किसके ताप और तप से जल रही है?
उत्तर:
यशोधरा के अनुसार यह धरती उसके स्वामी सिद्धार्थ के तप और उसके विरहजनित ताप से जल रही है।
प्रश्न 3.
शरदातप किसके विकास का सूचक है?
उत्तर:
शरदातप सिद्धार्थ की तपस्या के विकास का सूचक है।
प्रश्न 4.
यशोधरा कौन थी? (M.P.2009)
उत्तर:
यशोधरा सिद्धार्थ की धर्मपत्नी थी।
प्रश्न 5.
मैथिलीशरण गुप्त किस प्रकार के कवि हैं?
उत्तर:
मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय विचारधारा के कवि हैं।
यशोधरा की व्यथा लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
यशोधरा कौन थी? (M.P. 2009)
उत्तर:
यशोधरा राजकुमार सिद्धार्थ की पत्नी थी। प्रश्न 2. यशोधरा को किस बात का दुख है?
उत्तर:
यशोधरा को इस बात का दुख है कि उसे अपनी शरीर पर भस्म लगाने का भी अवसर नहीं मिला।
प्रश्न 3.
वर्षा सिद्धार्थ की किस भावना की परिचायक है?
उत्तर:
वर्षा सिद्धार्थ की करुण भावना की परिचायक है।
प्रश्न 4.
यशोधरा ने खट्टे दिन किसे कहा है?
उत्तर:
यशोधरा ने खट्टे दिन अपने जीवन के बुरे दिनों को कहा है।
प्रश्न 5.
सिद्धार्थ की शांति-कांति की ज्योत्स्ना कैसी है?
उत्तर:
सिद्धार्थ की शांति-कांति की ज्योत्स्ना हरेक पल जलती है।
प्रश्न 6.
शरद् ऋतु का सिद्धार्थ-यशोधरा पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर:
शरद् ऋतु की शांति और शोभा को प्रदर्शित करते हुए यशोधरा के विरह को बढ़ा रही है।
प्रश्न 7.
ऋतुओं का यशोधरा के विरह पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
उत्तर:
ऋतुओं का यशोधरा के विरह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है। वे उसको विचलित नहीं कर पा रही हैं। वे तो उसके विरह से पीड़ित होकर अपनी भाव-दशाओं को बदल रही हैं।
यशोधरा की व्यथा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कवि ने इस कविता में किसकी व्यथा को व्यक्त किया है?
उत्तर:
कवि ने इस कविता तें यशोधरा की व्यथा को व्यक्त किया है। उनके पति राजकुमार सिद्धार्थ अपनी पत्नी को अर्ध रात्रि में सोता हुआ छोड़कर साधना करने के लिए राजमहल छोड़कर चले गए थे। वियोगिनी यशोधरा की विरह-वेदना को ही कवि ने प्रस्तुत किया है।
प्रश्न 2.
यशोधरा ने यह क्यों कहा कि “हाय! विभूति रमाने का भी मैंने योग न पाया।” (M.P. 2012)
उत्तर:
राजकुमार सिद्धार्थ उसे सोता हुआ छोड़कर तपस्या करने चले गए। यशोधरा चाहते हुए भी साधना हेतु शरीर पर भस्म मलकर संन्यासिनी नहीं बन सकती थी; क्योंकि उसे अपने पुत्र राहुल का पालन-पोषण करना था। इसीलिए उसने यह कहा कि “हाय! विभूत रमाने का भी मैंने योग न पाया।”
प्रश्न 3.
यशोधरा किसको अपने प्रियतम के विकास की सूचक मानती है?
उत्तर:
यशोधरा पृथ्वी तल पर शरद् ऋतु की खिली हुई धूप को अपने प्रियतम (राजकुमार सिद्धार्थ) के विकास की सूचक मानती है।
प्रश्न 4.
ग्रीष्म ऋतु में यशोधरा की क्या स्थिति हो गई?
उत्तर:
ग्रीष्म ऋतु में यशोधरा की स्थिति बड़ी भयानक और दुखद हो गई। उसका जीवन नीरस और शुष्क हो गया। उसका कंठ सूख गया। उसे पसीना छूटने लगा, “मृगतृष्णा की माया ने उसे घेर लिया। उसकी दृष्टि झुलस गयी, उसकी आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा। उसे अपने प्रियतम की छाया भी नहीं दिखाई दे रही थी।”
प्रश्न 5.
विश्व-वेदना की चमक किसे और क्यों होती थी?
उत्तर:
विश्व-वेदना की चमक सिद्धार्थ को होती थी क्योंकि वे संसार के दुख से दुखी थे। उनके हृदय में विश्व-वेदना की कसक होती थी। इसके लिए ही उन्होंने गृह-त्याग किया। फिर घोर तपस्या की। ज्ञान प्राप्त करके सदुपदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने विश्व-वेदना को समाप्त करने के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया।
यशोधरा की व्यथा कवि-परिचय
प्रश्न 1.
मैथिलीशरण गुप्त का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
मैथिलीशरण गुप्त का जन्म सन् 1886 ई० में उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के अन्तर्गत चिरगाँव में हुआ। वे वैश्य परिवार से थे। इनके पिता सेठ रामचरणजी भगवान राम के परमभक्त थे। गाँव में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद इनको अंग्रेजी पढ़ने के लिए मेक्डॉनल स्कूल भेजा गया, पर वहाँ उनका मन नहीं लगा। वे पढ़ाई बीच में छोड़कर गाँव चले आए।
फिर उन्होंने घर पर ही हिंदी, संस्कृत और बांग्ला साहित्य का अध्ययन किया। मुंशी अजमेरी के सहयोग से इनमें काव्य के संस्कार उत्पन्न हुए। देश की स्वतंत्रता के बाद ये राज्य सभा के सदस्य बने। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि प्रदान की और आगरा विश्वविद्यालय ने इन्हें डी. लिट. की उपाधि से सम्मानित किया। गुप्तजी की आरम्भिक रचनाएँ ‘वैश्योपकारक’ में प्रकाशित हुईं इसके बाद में पण्डित महावीर प्रसाद द्विवेदी की ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित होने लगीं। द्विवेदीजी के आदेश, उपदेश और प्रोत्साहन से इनकी कविताओं में निखार आया। इन्होंने साहित्य . जगत् को अनेक रचनाएँ दीं। 1964 में इनका देहांत हो गया।
साहित्यिक विशेषताएँ:
गुप्तजी राष्ट्रकवि थे। उनकी रचनाओं में सर्वत्र राष्ट्रीय भावनाओं का प्रतिनिधित्व हुआ है। मात्मा गाँधी के नेतृत्व में देश ने स्वाधीनता का संघर्ष किया। उसकी काव्यमय व्यंजना गुप्तजी के काव्य में देखी जा सकती है। गाँधी जी के राजनीतिक एवं सामाजिक विचारों को गुप्तजी ने उसी प्रकार अभिव्यंजित किया जैसे प्रेमचन्द ने अपने उपन्यासों में किया है।
देश की जनता स्वतन्त्रता के लिए छटपटा रही थी और सत्याग्रही अपना सब कुछ न्योछावर कर रहे थे, उस समय गुप्तजी ने ‘भारत भारती’ लिखी। इस रचना के बाद भी गुप्तजी ने गाँधी जी के सत्याग्रह और अहिंसा की नीति, खादी और रचनात्मक कार्यक्रम, हिन्दू-मुसलमानों की साम्प्रदायिक एकता के समर्थन में काव्य स्वनाएँ कीं। अछूतोद्धार, और स्त्री-शिक्षा आदि के आंदोलनों का समर्थन भी गुप्तजी ने अपनी रचनाओं में किया। इसीलिए उन्हें राष्ट्रकवि कहा गया।
रचनाएँ:
गुप्तजी की प्रथम रचना 1909 में प्रकाशित हुई ‘रंग में भंग’। आपने मौलिक एवं अनूदित दोनों प्रकार की ही रचनाएँ कीं।
काव्य-संग्रह:
‘पद्य प्रबंध’, ‘मंगल घट’, ‘स्वदेश संगीत’ (प्रारंभिक रचनाएँ), ‘जयद्रथ वध’ (1910), ‘पंचवटी (1925), ‘झंकार’ (1929), ‘साकेत’ (1931), ‘यशोधरा’ .. (1932), ‘द्वापर’ (1936), ‘जयभारत’ (1952), ‘विष्णुप्रिया’ (1957) आदि।
नाटक:
तिलोत्तमा, चंद्रहास और अनघ।
अनूदित काव्य:
प्लासी का युद्ध, मेघनाथ-वध और ऋतु संहार। अन्य रचनाओं में चंद्रहास, विष्णुप्रिया, वृत्र-संहार, नहुष आदि प्रमुख हैं।
भाषा-शैली:
गुप्तजी ने अपने काव्य-का सृजन ब्रजभाषा में शुरू किया था। उस समय ब्रजभाषा एवं अवधी काव्य की प्रतिलित भाषा थी। धीरे-धीरे वे खड़ी बोली में काव्य-रचना करने लगे। इसके लिए गुप्तजी सदैव पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी के ऋणी हैं। वे सरल एवं सुबोध भाषा के समर्थक रहे। उनके काव्य में यथास्थान अलंकारों का प्रयोग है। शृंगार, करुण, वीर और वात्सल्य उनके प्रिय रस हैं। उनका श्रृंगार रस अत्यंत मर्यादित हैं, उन्होंने विभिन्न छंदों का प्रयोग किया है। तुकांत, अतुकांत और गीति छंदों पर उनका अच्छा अधिकार था।
कहीं-कहीं वे इतने क्लिष्ट एवं दुर्बोध शब्दों का वे प्रयोग भी कर गए हैं, जिन्हें संस्कृत जानने वाले भी कठिनाई से ही समझ पाते हैं। कहीं-कहीं प्रांतीय बोलियों के शब्दों के प्रयोग से भी परहेज नहीं करते। इससे कभी-कभी रचना अपरिष्कृत-सी भी लगती है। कहीं-कहीं तत्सम एवं तद्भव शब्द उनकी काव्य भाषा में न केवल खटकते हैं, बल्कि भाषा को विकृत भी कर देते हैं। इसके बावजूद उनकी भाषा अर्थ अभिव्यक्ति में पूर्णतः समर्थ है। साहित्य में स्थान-राष्ट्रीय कवि गुप्त का हिंदी कवियों में अत्यधिक चर्चित और सम्मानपूर्ण स्थान है। हिंदी काव्य के क्षेत्र में आपका योगदान अविस्मरणीय रहेगा।
यशोधरा की व्यथा पाठ का सारांश
प्रश्न 1.
‘यशोधरा की व्यथा’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘यशोधरा की व्यथा’ कविता के कवि मैथिलीशरण गुप्त हैं। यह कविता कवि द्वारा रचित ‘यशोधरा’ नामक महाकाव्य से ली गई है। राजकुमार सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा को सोता हुआ छोड़कर आधी रात को अपनी साधना सम्पन्न करने के लिए राजमहल छोड़कर चले गए थे। यशोधरा महल में अपने पुत्र राहुल के साथ रह गई थी। वियोगिनी यशोधरा इस कविता में अपनी विरह वेदना को प्रकट कर रही है। यशोधरा अपनी सखी को सम्बोधित कर रही है। इसमें कवि ने प्राचीन षड्ऋतु वर्णन परम्परा का निर्वाह किया है।
एक के बाद एक ऋतुएँ आती हैं और विरहिणी यशोधरा के विरह को बढ़ाती हैं। यशोधरा का विरह और सिद्धार्थ की तप साधना का ताप ही ग्रीष्म की तपन है, वर्षा मानो करुणा की प्रतीक है। शरद ऋतु सिद्धार्थ की शांति और शोभा को प्रदर्शित करती हुई यशोधरा के विरह में वृद्धि करती है। शिशिर की ठण्डी साँसें प्रिय का शीतल स्पर्श है। इसी प्रकार कवि ने हेमन्त और बसंत ऋतु में भी यशोधरा के विरह-भाव को स्पष्ट किया है। ऋतुएँ ही विरहिणी यशोधरा के विरह को विचलित नहीं करती हैं अपितु वे भी यशोधरा के विरह से पीड़ित होकर अपनी भाव दशा को बदल रही है। कविता में सभी ऋतुओं का मानवीकरणी किया गया है।
यशोधरा की व्यथासंदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
प्रश्न 1.
सखि! बसंत से कहाँ गए थे,
मैं ऊष्मा-सी यहाँ रही।
मैंने ही क्या सहा, सभी ने।
मेरी बाधा व्यथा सही॥
तप मेरे मोहन का उद्धव धूल उड़ाता आया,
हाय! विभूति रमाने का भी मैंने योग न पाया।
सूखा कण्ठ, पसीना छूटा मृग-तृष्णा की माया,
झुलसी दृष्टि, अँधेरा दीखा, टूट गई वह छाया।
मेरा ताप और तप उनका,
जलती है यह जठर मही॥ (Page 69) (M.P. 2012)
शब्दार्थ:
- सखि – सहेली।
- ऊष्मा – गर्मी।
- व्यथा – पीड़ा-दुख।
- तप – तपस्या।
- मोहन – श्रीकृष्ण।
- उद्धव – कृष्ण का मित्र।
- विभूति – राख, भस्म।
- योग – सुअवसर, सुयोग।
- कण्ठ – गला।
- मृगतृष्णा – छलावा, भ्रम।
- जठर – उदर।
- मही – पृथ्वी।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘यशोधरा की व्यथा’ से उद्धृत है। इस काव्यांश में विरह व्यथित यथोधरा अपनी सखि से पूछ रही है कि उसके मोहन अर्थात् राजकुमार सिद्धार्थ उसे अकेली छोड़कर कहाँ गए।
व्याख्या:
यशोधरा अपनी सखी से पूछ रही है कि हे सखि! बसंत वे समान सुन्दर, लुभावने और सुख देने वाले मेरे प्रियतम राजकुमार सिद्धार्थ कहाँ चले गए और मैं ग्रीष्म ऋतु-सी यहाँ रह गई, अर्थात् सिद्धार्थ के मुझे छोड़कर चले जाने से मेरा जीवन उसीप्रकार नीरस और शुष्क हो गया है, जिस प्रकार बसंत के चले जाने के बाद ग्रीष्म ऋतु में चारों ओर शुष्कता और नीरसता छा जाती है। प्रियतम की अनुपस्थिति में मुझे जिस प्रकार की विरह व्यथा को सहन करना पड़ रहा है, उसी प्रकार की पीड़ा सभी सह रहे हैं। आगे यशोधरा अपने को गोपी-रूप में और सिद्धार्थ को कृष्ण-रूप में मानकर कह रही है कि ऐ उद्धव! यह जो तुम देख रहे हो, यह ग्रीष्म ऋतु में उठने वाली धूलि के झोंके नहीं हैं।
मेरे मोहन की तपस्या से तो सारा संसार जल उठा है और उसी जलन के परिणामस्वरूप धूल सूख गई है तथा वह वायु में मिलकर यहाँ आ रही है। यशोधरा अपनी हार्दिक वेदना को व्यक्त करती हुई कहती है कि कहाँ तो एक ओर मेरे प्रियतम तपस्या कर रहे हैं और कहाँ दूसरी ओर मैं हूँ, जिसे तपस्या – तो क्या, शरीर पर भस्म लगाने का अवसर भी नहीं मिला है। कहने का भाव यह कि मेरे लिए यह भी सम्भव नहीं है कि मैं अपने प्रियतम की भाँति अपने शरीर पर भस्म रमाकर योगिनी भी बन जाऊँ, क्योंकि मुझे तो राहुल का पालन-पोषण करना है।
इस ग्रीष्म ऋतु में मेरा गला सूखा जा रहा है, शरीर से पसीना निरंतर बह रहा है और चारों ओर मृग मरीचिका दिखाई दे रही है। गर्मी की तीव्रता से दृष्टि झुलस-सी गई है, जिसके कारण आँखों के सामने अँधेरा-सा दिखाई देता है और आँखों के समक्ष अँधेरा छा जाने से प्रियतम की अथवा अपनी छाया भी नहीं दिखाई दे रही है। यशोधरा कहती है कि यह जो कठोर पृथ्वी निरंतर जल रही है, इसके जलन का कारण ग्रीष्म ऋतु नहीं है, अपितु मेरे विरह से उत्पन्न ताप और मेरे प्रियतम का तप है।
विशेष:
- ग्रीष्म ऋतु में यशोधरा की विरह व्यथा में सूर्य की तपन वृद्धि कर रही है।
- यशोधरा की विरह का ताप और सिद्धार्थ की तप साधना का ताप ही ग्रीष्म की तपन है।
- बसंत-से, ऊष्मा-सी में उपमा अलंकार है।
- यशोधरा को इस बात का दुख है कि उसे अपने प्रियतम की भाँति भस्म रमने का भी अवसर प्राप्त नहीं हुआ।
- मृग-तृष्णा की माया में रूपक अलंकार है।
- भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
- मानवीकरण का सौन्दर्य विद्यमान है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्त संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
यशोधरा को अपना जीवन ऊष्मा-सा क्यों लगता है?
उत्तर:
यशोधरा के स्वामी सिद्धार्थ उसे छोड़कर चले गए हैं। उनके यूँ चले जाने से उसका जीवन नीरस एवं शुष्क हो गया है। उसे विरह-व्यथा सहनी पड़ रही थी, इसलिए यशोधरा को अपना जीवन ऊष्मा-सा लग रहा है।
प्रश्न (ii)
यहाँ ‘मोहन’ किसे कहा गया है? उनके तप का संसार पर क्या असर हुआ है?
उत्तर:
यहाँ ‘मोहन’ सिद्धार्थ को कहा गया है। उनके तप के प्रभाव से सारा संसार जल उठा है और धूल सूखकर हवा के साथ उड़ रही है।
प्रश्न (iii)
यशोधरा पर ग्रीष्म ऋतु का क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
ग्रीष्म ऋतु के प्रभाव से यशोधरा का गला सूखता जा रहा है। शरीर पसीने में तर हो रहा है। गर्मी के कारण आँखों के सामने अँधेरा छाया हुआ है। उसे चारों ओर मृग-मारीचिका दिखाई दे रही है।
काव्यांश पर आधारित सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य-भाव यह है कि सिद्धार्थ वसंत के समान सुंदर, सुखद और मनोहर थे। उनके चले जाने से यशोधरा का जीवन ग्रीष्म ऋतु की भाँति शुष्क हो गया है। उसे विरह-व्यथा सहनी पड़ रही है। गर्मी में उड़ती धूत उसे सिद्धार्थ के तप का प्रभाव लग रही है। वह सिद्धार्थ के समान योगिनी भी नहीं बन सकती है क्योंकि उस पर पुत्र के पालन-पोषण का दायित्व है।
प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
काव्यांश में यशोधरा की विरह व्यथा का मर्मस्पर्शी वर्णन है। यशोधरा को दुख है कि वह भस्म रमाकर योगिनी न बन की। ‘बसंत-से’, ‘ऊष्मा-सी में ऊष्मा अलंकार, ‘मृगतृष्णा की माया’ में रूपक अलंकार तथा मानवीकरण का सौंदर्य है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। काव्यांश में वियोग शृंगार रस व्याप्त है।
प्रश्न 2.
जागी किसकी वाष्प राशि, जो सूने में सोती थी,
किसकी स्मृति के बीज उगे ये, सृष्टि जिन्हें बोती थी।
अरी! वृष्टि ऐसी ही उनकी, दया-दृष्टि रोती थी,
विश्व-वेदना की ऐसी ही चमक उन्हें होती थी।
किसके भरे हृदय की धारा,
शतधा होकर आज वही॥2॥ (Page 70)
शब्दार्थ:
- वाष्प – भाप।
- स्मृति – याद।
- सृष्टि – विश्व।
- वृष्टि – वर्षा।
- दया – दृष्टि-दया, करुणारूपी दृष्टि।
- विश्व-वेदना – संसार का दुख।
- शतधा – सैकड़ों।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘यशोधरा की व्यथा’ से लिया गया है। यशोधरा अपनी विरह-व्यथा को व्यक्त कर रही है।
व्याख्या:
यशोधरा अपनी सखि को संबोधित करती हुई कहती है कि अपने प्रियतम की अनुपस्थिति में मैं जिस तरह की पीड़ा को सहन कर रही हूँ, उसी प्रकार की पीड़ा सभी सहन कर रहे हैं। यशोधरा कहती है कि वह कौन व्यक्ति है, जिसके नेत्रों से वह अश्रु-वृष्टि जग उठी है, जो सूने में सो रही थी। उसके कथन का भाव यह है कि मेरा जीवन प्रियतम से मिलने के समय इतना सुखमय था कि मैंने कभी यह कल्पना भी नहीं की थी कि कभी विरह के कारण मेरे नेत्रों में भी आँसू आ सकते हैं; किन्तु यह विधि की विडम्बना ही है कि आज मेरे नेत्रों में निरंतर अश्रु-प्रवाह चलता रहता है।
यशोधरा के मस्तिष्क में अपने मिलन की सुखद घड़ियों की स्मृति जगती है और वह कहती है कि वह कौन व्यक्ति है जिसकी स्मृति के वे बीज आज उग आये हैं जिनका वपन सृष्टि लगातार कर रही थी। उसके कथन का आशय यह है कि आज मेरे मानस-पटल पर प्रियतम से मिलन के सुखद चित्र अंकित हो रहे हैं। ये स्मृति-चित्र बहुत पहले से ही बनते चले आ रहे हैं। यशोधरा के नेत्रों से अश्रुओं की जो वर्षा हो रही है उसे संबोधित करती हुई वह कहती है कि ऐ वृष्टि! जिस प्रकार तू निरंतर आँखों से झर रही है, उसी प्रकार तो मेरे प्रियतम की दया-दृष्टि हुआ करती थी।
जिस प्रकार आज मेरे मन में विरह की टीस उठ रही है, उसी प्रकार की टीस मेरे प्रियतम के मन में भी विश्वमंगल की भावना को लेकर हुआ करती थी। वह प्रश्न करती है कि वंह कौन व्यक्ति है, जिसके भरे-पूरे हृदय की धारा सैकड़ों खण्डों में विभक्त होकर बह रही है। यशोधरा के कथन का तात्पर्य यह है कि एक ओर तो प्रियतम के प्रेम से आप्लावित मेरा हृदय खंड-खंड हो गया है और दूसरी ओर मेरे प्रियतम का करुणापूर्ण हृदय विश्व कल्याण की भावना से द्रवित हो उठा है।
विशेष:
- वर्षा ऋतु सिद्धार्थ की करुणा की परिचायक है। वर्षा ऋतु यशोधरा के हृदय में सिद्धार्थ की स्मृति उत्पन्न कर रही है। अपने प्रियतम की याद उसके हृदय में विरह की पीड़ा में वृद्धि कर रही है।
- दया-दृष्टि में रूपक और अनुप्रास अलंकार है।
- विश्व-वेदना में अनुप्रास है।
- मानवीकरण अलंकार का सौन्दर्य विद्यमान है।
- भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। ।
- छंदबद्धता और तुकांत का सुन्दर मेल है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
वाष्पराशि के जागने का क्या आशय है?
उत्तर:
यशोधरा के साथ जब तक सिद्धार्थ थे तब तक उसकी आँखों में सोए पड़े थे, किंतु अब वही आँसू आँखों से निरंतर बहते रहते हैं। ऐसा लगता है कि वाष्पराशि अर्थात् आँसू जाग गए हैं।
प्रश्न (ii)
सिद्धार्थ के मन में किस बात के प्रति दुख था?
उत्तर:
सिद्धार्थ के मन में जनकल्याण और विश्वमंगल की भावना की प्रबल आकांक्षा थी। इसे पूरा करने के लिए उनका मन दुखी था।
प्रश्न (iii)
विरहाकुल यशोधरा वर्षा को देखकर क्या सोचती है?
उत्तर:
विरहाकुल यशोधरा वर्षा को सिद्धार्थ की करुणा का परिणाम सोचती है। वह सोचती है कि उसके प्रिय का करुणापूर्ण हृदय विश्वकल्याण की भावना से पिघल उठा है।
काव्यांश पर आधारित शिल्प-सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
काव्यांश में वियोगिनी यशोधरा की विरह व्यथा का मर्म स्पर्शी चित्रण किया गया है। इसके लिए षड्ऋतु वर्णन का सहारा लिया गया है। इस अंश में वर्षा ऋतु अपने विभिन्न उद्दीपनों के माध्यम से यशोधरा की विरह व्यथा और बढ़ा देती हैं। यह ऋतु उसके हृदय में सिद्धार्थ की यादें धधका देती है, जिससे उसकी व्यथा और बढ़ गई है।
प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
विरह वियोगिनी यशोधरा वर्षा को सिद्धार्थ की करुणा का परिचायक मानती है। उसकी विरह बढ़ती जा रही है। ‘दया-दृष्टि’ में रूपक, विश्व-वेदना में अनुप्रास अलंकार है। मानवीकरण अलंकार का सौंदर्य है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। काव्यांश में वियोग श्रृंगार रस व्याप्त है।
प्रश्न 3.
उनकी शांति-कांति की ज्योत्स्ना, जगती है पल-पल में,
शरदातप उनके विकास का, सूचक है थल-थल में।
नाच उठी आशा प्रति दल पर, किरणों की झल-झल में,
खुला सलिल का हृदय-कमल खिल हंसो की कल-कल में
पर मेरे मध्याह्न बता क्यों,
तेरी मूर्छा बनी रही॥3॥ (Page 70)
शब्दार्थ:
- कांति – चमक।
- ज्योत्स्ना – चंद्रिका।
- शरदातप – शरद्कालीन धूप।
- थल – स्थल।
- दल – पत्र, पत्ता।
- सलिल – पानी।
- हृदय-कमल – हृदय रूपी कमल।
- मध्याह – दोपहर का समय।
- मूर्छा – बेहोशी।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘यशोधरा की व्यथा’ से लिया गया है। यशोधरा शरद् ऋतु के द्वारा अपनी विरह व्यथा को व्यक्त कर रही है। शरद ऋतु सिद्धार्थ की शांति और शोभा को प्रदर्शित करते हुए यशोधरा की पीड़ा को बढ़ा रही है।
व्याख्या:
पृथ्वी पर शरद् की जो शुभ्र चन्द्रिका छायी हुई है, उसे देखकर यशोधरा कहती है कि वस्तुतः यह चन्द्र की ज्योत्स्ना नहीं है अपितु मेरे प्रियतम की शांति एवं आभा का ही प्रकाश है जो विश्व में चारों ओर विकीर्ण हो रहा है। पृथ्वी तल पर शरद् की जो धूप छायी हुई है उसे यशोधरा अपने प्रियतम के विकास की सूचक मानती है। प्रातःकाल में पत्तों के ऊपर पड़ी हुई ओस पर किरणों की झिलमिलाहट को देखकर यशोधरा कहती है कि यह तो वस्तुतः मेरे प्रियतम की आशा ही है, जो ओस-बिन्दुओं पर पड़ी हुई किरणों के बहाने नृत्य कर रही है।
शरद् ऋतु में सरोवर का जल स्वच्छ हो गया है और उसमें कमल विकसित हो गए हैं। विकसित कमलों को देखकर ऐसा लग रहा है, जैसे मानो सरोवर का हृदय विकसित हो गया है और हंसों का समुदाय उसके आस-पास अपनी मधुर ध्वनि कर रहा है। शरद् में सरोवर का यह और आकर्षक दृश्य यशोधरा के लिए एक नूतन अर्थ का द्योतक है और वह यह कि यह सरोवर, जो सिद्धार्थ के महाभिनिष्क्रमण के समय चेष्टारहित हो गयाथा, उनके आगमन की सूचना पाकर आनन्दविभोर हो उठा है। किन्तु इतना सब कुछ होने पर भी यशोधरा के आनन्द की घड़ी अभी तक नहीं आई है। उसके जीवन की दुपहरी अब भी पहले के ही तरह बनी हुई है। वह लगातार जल रही है। जिस प्रकार दोपहर के समय पेड़-पौधे मुझ जाते हैं उसी प्रकार उसका शरीर मुझाया हुआ है।
विशेष:
- शरद ऋतु सिद्धार्थ के शांति और शोभा को प्रदर्शित करती हुई यशोधरा की विरह-व्यथा को बढ़ाती है।
- पल-पल, थल-थल, झल-झल, कल-कल में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
- शांति-कांति में पद-मैत्री है।
- ‘हृदय-कमल’ में रूपक अलंकार है।
- ज्योत्स्ना जगती, मेरे मध्याह्न, किरणों की में अनुप्रास अलंकार है।
- मानवीकरण अलंकार है।
- भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
- छंदबद्ध रचना में तुकांतता है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
चाँदनी देखकर यशोधरा क्या सोचती है?
उत्तर:
पृथ्वी पर शरदकालीन चाँदनी बिखरी हुई है, जिसे देखकर यशोधरा सोचती है कि यह चाँद की चाँदनी नहीं, बल्कि उसके प्रिय की शांति एवं आभा की चमक है जो चारों ओर बिखर गई है।
प्रश्न (ii)
शरद ऋतु में सरोवर का सौंदर्य किस प्रकार बढ़ गया है?
उत्तर:
शरद ऋतु में सरोवर का जल स्वच्छ हो गया है। उसमें कमल खिल गए हैं। खिले कमलों से ऐसा लगता है, मानो सरोवर का हृदय विकसित हो गया है। स्वच्छ जल में हंस मधुर ध्वनि करते हुए तैर रहे हैं।
प्रश्न (iii)
यशोधरा शरद के सुहावने समय को ‘मध्याह्न’ क्यों कह रही है?
उत्तर:
शरद का समय विरहिणी यशोधरा के लिए सुखद नहीं है। उसका शरीर अब भी उसी प्रकार मुर्शाया हुआ है, जैसे दोपहरी में पौधे मुरझा जाते हैं, इसीलिए इस सुहावने समय को उसने मध्याह्न कहा है।
काव्यांश पर आधारित शिल्प-सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश में विरहाकुल यशोधरा की दशा का मार्मिक चित्रण हुआ है। षड्ऋतु वर्णन के माध्यम से यह वर्णन प्रभावी बन गया है। शरद ऋतु में चारों ओर बिखरी चाँदनी और सरोवर में खिले कमल सौंदर्य बढ़ा रहे हैं पर यशोधरा का तन-मन दोपहरी में मुरझाए पौधों जैसा है। वह विरहाग्नि में जल रही है।
प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शरद ऋतु में फैली शोभा एवं शांति से यशोधरा की विरह व्यथा बढ़ रही है। ‘हृदय कमल’ में रूपक, ‘ज्योत्स्ना जगती’ तथा ‘मेरे मध्याह्न’ में अनुप्रास अलंकार, ‘पल-पल’, ‘थल-थल’ आदि में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार, काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है। तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग है। अंतिम पंक्तियों में वियोग शृंगार रस घनीभूत है।
प्रश्न 4.
हेमपुंज हेमंत काल के, इस आतप पर बारूँ।
प्रिय स्पर्श की पुलकावलि मैं, कैसे आज बिसारूँ।
किंत शिशिर ये ठंडी साँसें, हाय कहाँ तक धारूँ,
तन गारूँ मन मारूँ पर क्या, मैं जीवन भी हारूँ।
मेरी बाँहें गही स्वामी ने,
मैं ने उनकी छाँह गही॥4॥ (Page 70)
शब्दार्थ:
- हेमपंज – सोने का ढेर या भण्डार।
- आतप – धूप।
- स्पर्श – छूना। पुलकावलिरोमांच।
- विसारूँ – भूलना।
- धारूँ – धारण करूँ।
- गारूँ – निचोड़ना, क्षीण करना।
- छाँह – छोह छाया।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘यशोधरा की व्यथा’ से लिया गया है। यशोधरा अपनी विरह-व्यथा अपनी सखि से कह रही है।
व्याख्या:
ऋतुएँ परिवर्तनशील हैं। यशोधरा अपने प्रियतम के गुणों की छाया उनके विकास में देखकर उनका स्मरण कर व्यथा का विस्तार देखती है। यशोधरा गौतम को याद करती हुई अपनी सखी से कहती है कि ऐ सखि! मैं हेमन्त ऋतु की धूप पर सोने का ढेर तक निछावर करने को प्रस्तुत हूँ। आज मुझे प्रियस्पर्श के कारण हुए रोमांच का भी जो अनुभव हो रहा है, उसे कैसे भूल सकती हूँ। किन्तु अब तो शिशिर भी आ पहुँचा है।
उसके साथ भयानक शीतलता भी आयी है। ऐ सखि! बता तो सही कि मैं ठंडी साँसों को कहाँ तक सहन कर सकती हूँ। मेरा शरीर निरंतर क्षीण होता जा रहा है। मैं बार-बार अपने मन को मार रही हूँ; किन्तु इसका यह अर्थ. तो नहीं कि मैं जीवन से भी हार मान बैठू। अमर संबंधों की स्थापना के लिए प्रियतम ने मेरा वरण किया था और मैंने उनकी शरण ली थी।
विशेष:
- कवि ने हेमंत और शिशिर ऋतु में यशोधरा की विरह व्यथा को प्रकट किया है।
- हेमपुंज हेमंत, मन मारूँ में अनुपास अलंकार है।
- तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
- मानवीकरण अलंकार है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
यशोधरा हेमज न्योछावर करना चाहती है, क्यों?
उत्तर:
यशोधरा हेमंत ऋतु की कोमल धूप पर सोने का ढेर (हेमपुंज) न्योछावर करना चाहती है, क्योंकि यह धूप उसे रोमांचित कर रही है।
प्रश्न (ii)
शिशिर ऋतु का यशोधरा पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
शिशिर ऋतु में ठंड वहुत बढ़ गई है। वह भयानक हो गई है। यशोधरा का कमजोर शरीर इसे सहने में असमर्थ हो रहा है। उसका शरीर निरंतर क्षीण होता जा रहा है।
प्रश्न (iii)
हेमंत की धूप यशोधरा को किन यादों को ताजा करा रही है?
उत्तर:
हेमंत की धूप यशोधरा को रोमांचित कर रही है। इससे उसे प्रिय के स्पर्श के कारण होने वाले रोमांच की यादें ताजा हो रही हैं।
काव्यांश पर आधारित शिल्प-सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश में यशोधरा की विरह व्यथा का वर्णन किया गया है। एक ओर हेमंत की धूप उसे रोमांचित कर प्रिय की याद में दग्ध कर रही है तो शिशिर द्वारा उसके शरीर को और कमजोर करने का चित्रण है। विरह उसके शरीर को कथित एवं क्षीण कर रहा है।
प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश में हेमंत और शिशिर द्वारा यशोधरा की विरह बढ़ाने का मर्मस्पर्शी वर्णन है। ‘हेम-पुंज हेमंत’, ‘मन मारूँ’ में अनुप्रास तथा काव्यांश में मानवीकरण अलंकार है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। काव्यांश में वियोग शृंगार रस घनीभूत है।
प्रश्न 5.
पेड़ों ने पत्ते तक उनका, त्याग देखकर त्यागे।
मेरा धुंधलापन कुहरा बन, छाया सबके आगे।
उनके तप के अग्नि-कुंड-से घर-घर में है जागे,
मेरे कम्प हाय! फिर भी तुम नहीं कहीं से भागे।
पानी जमा परंतु न मेरे,
खट्टे दिन का दूध-दही॥5॥ (Page 70)
शब्दार्थ:
- खट्टे दिन – बुरे दिन।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘यशोधरा की व्यथा’ से लिया गया है। इस काव्यांश में यशोधरा अपनी विरह-व्यथा व्यक्त कर रही है।
व्याख्या:
पतझड़ का आगमन हुआ। वनस्थली में सभी ओर पतझड़-ही-पतझड़ देखकर यशोधरा कहती है कि मेरे प्रियतम के अपूर्व त्याग को देखकर वृक्षों ने अपने पत्तों तक का त्याग कर दिया है किन्तु दूसरी ओर मेरी निराशा कुहरे का रूप धारण करके सबके सामने छा गई है। संध्या के समय बृहस्थ अपने घर के आँगन में अँगीठी जलाते हैं और उसके चारों ओर बैठकर अपना शरीर सेंकते हैं।
इसे देखकर यशोधरा कहती है कि मेरे प्रियतम की तपस्या की पंचाग्नि से प्रभावित होकर ही इन गृहस्थों ने अपने-अपने घरों में अंगीठियाँ जलायी हैं। इस प्रकार इन लोगों का तो शीत से उत्पन्न कंपन दूर हो गया; किन्तु मेरा कंपन अभी भी बना हुआ है। अंत में शेष प्रकृति को सफल होते देखकर यशोधरा कहती है कि जल तो जगकर चट्टान बन गया; किन्तु मेरे बुरे दिन अब भी दूर नहीं हुए; अर्थात् मेरी मनोकामनाएँ अभी तक पूर्ण नहीं हुईं।
विशेष:
- यशोधरा ने पतझड़ के द्वारा अपनी विरह व्यथा को व्यक्त किया है।
- दूध-दही में अनुप्रास अलंकार है।
- भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
- घर-घर में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
- छंदबद्ध रचना में तुकांतता है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु, संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
पेड़ों के गिरते पत्ते देख यशोधरा क्या सोचती है?
उत्तर:
पतझड़ में पेड़ों के गिरते पत्ते देख यशोधरा सोचती है कि उसके प्रिय सिद्धार्थ का त्याग देखकर वन प्रांत के सभी वृक्षों ने अपने पत्तों का त्याग कर दिया
प्रश्न (ii)
यशोधरा की निराशा किस रूप में फैली है?
उत्तर:
विरहाग्नि में जलती यशोधरा की विरह कम होने की जगह बढ़ती ही जा रही है। इससे उसकी निराशा भी बढ़ गई है। यह निराशा चारों ओर कोहरे के रूप में छा गयी है।
प्रश्न (iii)
‘खट्टे दिन’ किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
‘खट्टे दिन’ यशोधरा के विरहयुक्त समय को कहा गया है। उसके बुरे दिन अभी समाप्त नहीं हुए हैं। ऐसा इसलिए कहा गया है कि क्योंकि उसकी मनोकामना पूर्ण नहीं हुई है।
काव्यांश पर आधारित शिल्प-सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश में विभिन्न ऋतुओं के. माध्यम से यशोधरा की विरह-व्यथा का चित्रण किया गया है। पतझड़ में वनस्थली के वृक्षों के गिरते पत्तों को अपने प्रिय का अद्भुत त्याग समझती है। उसकी निराशा ही कोहरा बन चारों ओर छा गई है। अर्थात् उसकी विरह व्यथा कम नहीं हो रही है।
प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश में यशोधरा द्वारा पतझड़ और चारों ओर छाए कोहरे के माध्यम से विरह-व्यथा प्रकट की गई है। ‘दूध-दही’ में अनुप्रास अलंकार तथा घर-घर में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग है। काव्यांश में वियोग श्रृंगार रस व्याप्त है।
प्रश्न 6.
आशा से आकाश थमा है, स्वाँस-तन्तु कब टूटे।
दिन मुख दमके, पल्लव चमके, भव ने नव रस लूटे।
स्वामी के सद्भाव फैलकर, फूल-फूल में फूटे,
उन्हें खोजने को मानो, नूतन निर्झर छूटे।
उनके श्रम के फल सब भोगें,
यशोधरा-की विनय यही॥6॥ (Page 71)
शब्दार्थ:
- स्वाँस तंतु – साँसों के सूत्र।
- दिन मुख – सूर्य।
- पल्लव – पत्ते।
- भव – संसार।
- नव रस – नए रस।
- नूतन निर्झर – नए झरने।
- श्रम – परिश्रम।
- स्वामी – पति (गौतम बुद्ध)।
प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित कविता ‘यशोधरा की व्यथा’ से लिया गया है। ऋतु परिवर्तन के बाद भी यशोधरा की व्यथा का अन्त नहीं हुआ, फिर भी वह आशा का दामन थामे हुए है। उसे विश्वास है कि उसके पति एक दिन अवश्य आयेंगे।
व्याख्या:
यशोधरा कहती है कि यह आधारहीन आकाश आशा की भित्ति पर ही टिका हुआ है। यदि जीवन में आशा न हो तो जीवन का सूत्र कभी भी टूट सकता है। रात्रि के पश्चात् नियति के क्रमानुसार दिन का आगमन होता है। अंधकार के पश्चात् सारा संसार प्रकाश से जगमगा उठता है इसलिए यशोधरा भी अपने प्रिय-मिलन की आशा को लिए जी रही है। इस समय अपने प्रियतम के वियोग में उसका जीवन रात्रि के समान अंधकारमय हो रहा है; किन्तु उसे यह दृढ़ विश्वास है कि कल उसके जीवन का भी सवेरा होगा। उसके जीवन में प्रकाश आयेगा और नये-नये पत्ते भी पल्लवित होंगे।
आकाश को अपने विश्वास के ही कारण फल मिला है। वहाँ सूर्योदय हुआ, जिसके परिणामस्वरूप सारे संसार में नये आनन्द की लहर फैल गई और वनस्पतियों में अंकुर फूट पड़े। वातावरण में चारों ओर उल्लास-ही-उल्लास दृष्टिगोचर हुआ। प्रफुल्लित तथा सौन्दर्य से भरपूर पुष्पों में यशोधरा अपने स्वामी की कल्याणमयी भावनाओं का प्रतिबिंब देखती है। जिस प्रकार पुष्पों की सुगंध से समस्त उपवन महक उठा है, ठीक उसी प्रकार कल उसके पति का यश सारे संसार में फैलेगा। जब यशोधरा की दृष्टि बड़ी तेजी से बहती हुई निर्झरिणियों पर पड़ती है, तो उसे लगता है, मानो ये उसके पति के पाद-प्रक्षालनार्थ वेग से दौड़ी जा रही है।
कहने का भाव यह है कि उसे यह विश्वास है कि सिद्धि-प्राप्ति के उपरान्त मानव तो क्या, प्रकृति भी उसके प्रियतम के चरणों पर झुकेगी। सारा संसार उसके प्रियतम की पूजा करेगा और यशोधरा को उसके त्याग के प्रतिफल में अपने स्वामी का कल्याण प्राप्त होगा। यशोधरा यही विनय करती है कि उसके प्रियतम अपनी तपस्या के परिश्रम के परिणामस्वरूप जो फल लावें, उसका भोगी समस्त संसार बने।
विशेष:
- विरहिणी यशोधरा को भी प्रिय-मिलन की आशा है।
- उनके श्रम-फल सब भोगे में विश्व कल्याण की भावना झलकती है।
- फूल-फूल में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
- नूतन-निर्झर में अनुप्रास अलंकार है।
- उन्हें खोजने को मानो, नूतन निर्झर छूटे में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
- भाषा तत्सम शब्दावलीयुका खड़ी बोली है।
- छंदबद्ध रचना में तुकांतता है।
काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
आकाश और जीवन में क्या समानता है?
उत्तर:
आकाश और जीवन में यह समानता है कि जिस प्रकार आकाश आधाररहित होकर आशा की दीवार पर टिका है, उसी प्रकार जीवन की आशा पर टिका है। आशा के अभाव में जीवन कभी भी टूट सकता है।
प्रश्न (ii)
यशोधरा के जीवन का अवलंब क्या है?
उत्तर:
यशोधरा के जीवन का अवलंब प्रिय से मिलन की आशा है। उसे दृढ़ विश्वास है कि प्रिय के बिना उसका जो जीवन अंधकारमय हो गया है, उसका सवेरा अवश्य होगा, जिससे उसका जीवन भी आलोकित हो जाएगा।
प्रश्न (iii)
यशोधरा क्या विनय करती है?
उत्तर:
यशोधरा यह विनय करती है कि उसके प्रिय पति अपने पति के परिश्रम के उपरांत जो भी फल लाएँ, उसका उपयोग समस्त संसार करे।
काव्यांश पर आधारित शिल्प-सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर
प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
काव्यांश में विरहाकुल यशोधरा का जीवन के प्रति आशीभरे दृष्टिकोण का वर्णन है। ऋतु परिवर्तन के बाद भी वह कथित है, पर आशा की डोर थामे है। काव्यांश में उसके त्यागमयी दृष्टिकोण की झलक मिलती है जिसमें वह पति की तपस्या से प्राप्त फल से संसार के लाभान्वित होने की कामना करती है।
प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
यहाँ यशोधरा के आशावादी दृष्टिकोण एवं त्यागमयी भावना का वर्णन किया गया है, जिसमें विश्वकल्याण की झलक मिलती है। काव्यांश में अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश तथा उत्प्रेक्षा अलंकार है। भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है। काव्यांश में वियोग श्रृंगार रस की अनुभूति होती है।