MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 2 वापसी

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MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 2 वापसी (कहानी, उषा प्रियंवदा)

वापसी अभ्यास

वापसी अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गजाधर बाबू किस नौकरी से रिटायर हुए थे? (2015)
उत्तर:
गजाधर बाबू रेलवे की नौकरी से रिटायर हुए थे।

प्रश्न 2.
परिवार वालों ने गजाधर बाबू के रहने की व्यवस्था कहाँ की थी?
उत्तर:
पहले दिन बैठक में कुर्सियों को दीवार से सटाकर बीच में गजाधर बाबू के लिए, पतली-सी चारपाई डाल दी गई थी। तत्पश्चात् पत्नी की कोठरी (भण्डारघर) में उनकी चारपाई डाल दी गई थी।

प्रश्न 3.
गजाधर बाबू ने अपनी नौकरी में कितने वर्ष अकेले व्यतीत किए थे?
उत्तर:
गजाधर बाबू ने अपनी नौकरी में अपने परिवार की बेहतरी तथा बच्चों की उच्च शिक्षा की आस में परिवार से दूर रेलवे क्वार्टर में अकेले पैंतीस वर्षों की लम्बी अवधि व्यतीत कर दी।

प्रश्न 4.
गजाधर बाबू के लिए मधुर संगीत क्या था?
उत्तर:
पटरी पर रेल के पहियों की खट-खट गजाधर बाबू के लिए किसी उच्च कोटि के मधुर संगीत की तरह ही था।

प्रश्न 5.
गजाधर बाबू के स्वभाव की दो विशेषताएँ बतलाइए। (2014)
उत्तर:
गजाधर बाबू के स्वभाव की दो विशेषताएँ थीं-

  1. वे स्नेही व्यक्ति थे तथा स्नेह की आकांक्षा रखते थे।
  2. वे परिवार के सदस्यों के साथ मनोविनोद करना चाहते थे।

प्रश्न 6.
गजाधर बाबू के कुल कितने बच्चे थे? सभी के नाम लिखिए। (2016)
उत्तर:
गजाधर बाबू के कुल चार बच्चे थे-बड़ा बेटा अमर,छोटा बेटा नरेन्द्र,बड़ी बेटी। कान्ति तथा छोटी बेटी बसन्ती।

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वापसी लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संसार की दृष्टि में गजाधर बाबू का जीवन किस प्रकार सफल कहा जा सकता था?
उत्तर:
संसार की दृष्टि में गजाधर बाबू का जीवन सफल कहा जा सकता है क्योंकि सफलतापूर्वक पैंतीस वर्ष तक रेलवे की नौकरी करने के पश्चात् सम्मानपूर्वक सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने शहर में एक मकान बनवा लिया था। बड़े लड़के अमर और लड़की कान्ति की शादियाँ कर दी थीं। दो बच्चे ऊँची कक्षाओं में पढ़ रहे थे।

प्रश्न 2.
घर जाने की खुशी होने के बाद भी गजाधर बाबू का मन क्यों दुःखी था? (2017)
उत्तर:
घर जाकर पत्नी, बाल-बच्चों के साथ रहने की कल्पना से गजाधर बाबू का मन बहुत खुश था, परन्तु पैंतीस वर्ष तक रेलवे के क्वार्टर में रहते हुए वहाँ के परिचित स्नेह-आदरमय, सहज संसार से सदैव के लिए नाता टूटने तथा सामान हट जाने से क्वार्टर की कुरूपता को देखकर उनका मन एक विचित्र विषाद (दुःख) का अनुभव कर रहा था।

प्रश्न 3.
अमर को अपने पिताजी से क्या शिकायत थी?
उत्तर:
अमर को अपने पिताजी से बहुत शिकायतें थीं। उसका कहना था कि गजाधर बाबू हमेशा बैठक में ही पड़े रहते हैं,कोई आने-जाने वाला हो, तो कहीं बिठाने की जगह नहीं। अमर को अब भी वह छोटा-सा समझते हैं और मौके-बेमौके टोक देते हैं। बहू को काम करना पड़ता था। अमर को हर चीज में पिताजी का हस्तक्षेप पसन्द नहीं था। कहता था, बूढ़े आदमी हैं चुपचाप पड़े रहें।

प्रश्न 4.
बसन्ती गजाधर बाबू के किस कथन से रूठ गई थी?
उत्तर:
कपड़े बदलकर शाम को जब बसन्ती पड़ोस में शीला के घर जा रही थी, तब गजाधर बाबू ने उससे कड़े स्वर में कहा कि कोई जरूरत नहीं है, अन्दर जाकर पढ़ो। इस कथन से बसन्ती रूठ गई थी।

प्रश्न 5.
गजाधर बाबू ने भोजन बनाने की जिम्मेदारी किसे सौंपी और क्यों?
उत्तर:
गजाधर बाबू ने सुबह का खाना बनाने की जिम्मेदारी बहू को तथा शाम का खाना बनाने की जिम्मेदारी बसन्ती को सौंपी। क्योंकि उनकी पत्नी बूढी हो चली थी तथा उसके शरीर में अब वह शक्ति नहीं बची थी कि वह अकेले पूरे घर का काम कर सके। साथ ही,गजाधर वाबू को लड़की का बाहर जाना पसन्द नहीं था, इसलिए वह उसे कार्य में व्यस्त रखना चाहते थे।

वापसी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गजाधर बाबू का अस्तित्व उनके परिवार का हिस्सा क्यों नहीं बन पाया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गजाधर बाबू निम्न मध्यमवर्गीय समाज के नौकरी-पेशा पात्र हैं जिन्होंने घर-परिवार से दूर अकेले रहकर पैंतीस वर्ष इस प्रतीक्षा में व्यतीत कर दिये कि सेवानिवृत्ति के पश्चात् वह अपने परिवार के साथ रहेंगे और उसी आशा तथा सुखद कल्पना के साथ वह अपने घर को लौटते हैं। परिवार में आने पर उनका कोई गर्मजोशी से स्वागत नहीं होता बल्कि उनको एक बन्धन के रूप में माना जाने लगता है। वे घर को अपने अनुसार चलाना चाहते हैं, सबके मध्य बैठकर पैंतीस वर्षों के एकान्त जीवन को विस्मृत करना चाहते हैं। लेकिन सबके मध्य वह और भी एकाकी हो जाते हैं। पत्नी अचार-दाल-चीनी में व्यस्त है,बच्चे अपने-अपने व्यक्तिगत आनन्द में व्यस्त हैं,उनके रहने का स्थान भण्डारघर की चारपाई है। पत्नी शिकायत करती है पर उसमें सहानुभूति नहीं होती। बड़ा बेटा उनके आने पर अपनी गृहस्थी अलग बसाने की माँग करने लगता है। उनकी अनुपस्थिति में उनका परिवार अपनी तरह से जीने का आदी हो चुका है, अब गजाधर बाबू का हस्तक्षेप उन सबको पसन्द नहीं। यहाँ तक कि पुत्री भी पिता से सहमत नहीं। उस परिवार के लिए अब गजाधर बाबू केवल आर्थिक आधार भर हैं।

इन सब घटनाओं के कारण ही गजाधर बाबू का अस्तित्व उनके परिवार का हिस्सा न बन सका, जो आधुनिक युग का समाज को सटीक उपादान है।

प्रश्न 2.
“वह जीवन अब उन्हें एक खोई निधि-सा प्रतीत हुआ।” इस कथन को पाठ के आधार पर समझाइए।
उत्तर:
परिवार से दूर रेलवे क्वार्टर में पैंतीस वर्ष व्यतीत करने के बाद गजाधर बाबू घर लौटते हैं तथा सोचते हैं कि अब परिवार के साथ रहकर वह सुखी व सन्तोषी जीवन बितायेंगे। पर उन्होंने पाया कि परिवार में उनका अस्तित्व मात्र धनोपार्जन तक ही सीमित है, तो उन्हें अपनी रेलवे की नौकरी के साथ बिताया समय याद आया-वह बड़ा-सा खुला हुआ क्वार्टर, निश्चिन्त जीवन, गाड़ियों के आने पर स्टेशन की चहल-पहल, रेल के पहियों की खट-खट आवाज, सेठ रामजीमल के मिल के लोग……। नौकरी का वह समय उन्हें खोई हुई निधि के समान लगा। दूसरी ओर जब वह नौकरी पर थे,तो घर की सुखद कल्पनाएँ थीं। पत्नी का कोमल स्पर्श,उसकी मनमोहक मुस्कान, बच्चों के मनोविनोद आदि को पाने की कल्पनाएँ, उन्हें धनवान बना देती थीं। घर लौटने पर उन्हें इन सबके स्थान पर उपेक्षा ही मिली। घर में उनके लिए कोई स्थान नहीं था। सब उनसे बचना चाहते थे। दोनों ही स्थितियों में उन्हें अपना जीवन किसी खोई हुई निधि के समान लगा। उन्हें लगा कि वह जिन्दगी के द्वारा ठगे गये हैं। जो कुछ भी उन्होंने चाहा, वह उन्हें नहीं मिला।

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प्रश्न 3.
गजाधर बाबू के घर जाने से पहले उनके घर की क्या स्थिति थी?
उत्तर:
गजाधर बाबू के घर जाने से पहले उनका बड़ा बेटा अमर घर का मालिक बनकर रहता था। बहू को कोई रोकने-टोकने वाला नहीं था। अमर के दोस्तों का प्राय: यहीं अड्डा जमा रहता था, अन्दर से चाय-नाश्ता तैयार होकर आता रहता था। बसन्ती को भी वही अच्छा लगता था। पड़ोस में शीला के घर देर-देर तक रहना बसन्ती की आदत थी। बहू कुछ काम-काज करती नहीं थी। सास सारे दिन काम में लगी रहती थी। छोटा बेटा नरेन्द्र अपने ही ढंग से जीवन जी रहा था। बाजार का सारा काम नौकर करता था। उनके घर का रहन-सहन और खर्च हैसियत से कहीं ज्यादा था। घर की सम्पूर्ण स्थिति में धन देने के अतिरिक्त गजाधर बाबू का कोई स्थान नहीं था।

प्रश्न 4.
‘वापसी’ कहानी के शीर्षक के औचित्य पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
लेखिका उषा प्रियंवदा ने प्रस्तुत कहानी का शीर्षक ‘वापसी’ सटीक ही रखा है। इसके दो आधार हैं पहला आधार है-गजाधर बाबू 35 वर्ष रेलवे क्वार्टर में अकेले रहकर अनेक आत्मीय आशाओं को लेकर वापस घर आते हैं,जो केवल मृग मारीचिकाएँ ही सिद्ध होती हैं। यहाँ वापसी एक व्यंग्य व दुःखान्त घटना बन जाती है। इस वापसी के सुख में दुःख था।

दूसरा आधार है-परिवार में रहने पर भी गजाधर बाबू अपरिचित व मेहमान के अस्थायी रूप में रहते हैं। उनका जीवन भार बन जाता है। यहाँ तक कि उनकी पत्नी भी उनकी उपेक्षा करती है, आत्मीयता का पूर्ण अभाव दिखाती है। उस समय सेठ रामजीमल की नौकरी के लिए चीनी मिल में लौट जाना भी वापसी’ है। यह वापसी जीवन की सच्चाई तथा बुढ़ापे की यथार्थता को प्रकट करती है। इस वापसी के दुःख में सुख था। उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि कहानी का शीर्षक ‘वापसी’ उचित ही है।

प्रश्न 5.
गजाधर बाबू ने पत्नी के स्वभाव में क्या-क्या परिवर्तन देखे?
उत्तर;
पहले पत्नी दो-दो बजे तक आग जलाये बैठी रहती और गजाधर बाबू के आते ही रसोई की ओर दौड़ती और गरम खाना बनाकर देती। सेवानिवृत्ति के पश्चात् वह पूजाघर से देर से निकलती है और रसोई में जाकर बड़बड़ाने लगती है। उधर गजाधर बाबू चाय की प्रतीक्षा करते रहते हैं। प्रेमपूर्ण वार्तालाप के बदले अब वह हर समय शिकायतें करती, जिनमें आत्मीयता व सहानुभूति का पूर्ण अभाव होता। पत्नी का कोमल स्पर्श,सुन्दरता,मनोविनोद आदि कटाक्ष वाणी में बदल गये थे। जिस नारी का सर्वस्व पति था, वह आज केवल भोजन की थाली सामने रखकर सारे कर्तव्यों से छुट्टी पा जाती है। पति, पत्नी के जीवन का केन्द्र नहीं है। उसकी दुनिया घी-चीनी-अचार के डिब्बे हैं। गजाधर बाबू के बोलने पर वह उन्हें न बोलने के लिए टोक देती है। पति के बजाय बच्चों की त्रुटि पर भी बच्चों का पक्ष लेकर पति की उपेक्षा व अपमान करती है। बात-बात पर झुंझला उठती है। पति के साथ नौकरी पर जाने के लिए मना कर देती है। पत्नी के इन परिवर्तनों को देखकर गजाधर बाबू हताश हो उठते हैं तथा चीनी मिल में नौकरी करने चले जाते हैं।

प्रश्न 6.
“अरे नरेन्द्र बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे। उसमें चलने तक की जगह नहीं है।” इस पंक्ति के माध्यम से लेखिका क्या कहना चाहती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
घर में अपने अस्तित्व के नकारे जाने के दुःख से दुःखी होकर गजाधर बाबू पुराने शहर की एक चीनी मिल में नौकरी करने चले जाते हैं। उनके साथ ही उनका सामान भी चला जाता है। उनके अस्तित्व का बोध कराने वाली चारपाई घर पर ही रह जाती है। उस चारपाई को देखकर उनकी पत्नी उसे भी हटाने का आदेश देती है, क्योंकि उनके अस्तित्व का अनुभव होने पर उन सबको घर में विघटन,क्लेश, अव्यवस्था, असम्मान की भावना पनपने लगती है। पत्नी पूर्णरूपेण गृहस्थी को समर्पित हो गई है। गृहस्थी के अतिरिक्त उसे कुछ अच्छा नहीं लगता है। लेखिका के इन शब्दों द्वारा मनोविज्ञान के सूक्ष्म तन्तुओं का ज्ञान होता है। मनुष्य ऐसी परिवर्तन की स्थिति को बिल्कुल स्वीकार नहीं करता, जिसके कारण उसकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में बाधा पड़ती हो। गजाधर बाबू उस परिवार के लिए मात्र आर्थिक आधार हैं,परिवार के प्रति उनका कोई संवेदनात्मक रिश्ता नहीं है।

प्रश्न 7.
गजाधर बाबू दोबारा चीनी मिल की नौकरी पर क्यों गये? (2015)
उत्तर:
गजाधर बाबू ने घर वापसी पर पहले ही दिन देखा कि जिस अकेलेपन को वह परिवार के साथ दूर करने की सोचकर आये थे, उसी परिवार ने उन्हें अकेला छोड़ दिया। पत्नी भी पति को चाय नाश्ता न देकर अपनी शिकायतें करने लगती है। गजाधर बाबू बेटी को शाम के समय पड़ोस में जाने के लिए मना करते हैं और शाम का खाना बनाने की जिम्मेदारी देते हैं, बहू को सास के साथ काम में हाथ बँटाने की कहते हैं। आय कम होने के कारण खर्चा कम करने के उद्देश्य से नौकर का हिसाब कर देते हैं। इन बातों से पुत्री,बहु व पुत्र नाराज हो जाते हैं, उन्हें यूँ पिताजी की दखलअन्दाजी बिल्कुल पसन्द नहीं आती। जिस घर को उन्होंने एक-एक पैसा जोड़कर बनवाया, उसी घर में गजाधर बाबू के रहने के लिए जगह नहीं है। भण्डारघर बने पत्नी के कमरे में उनकी चारपाई डाल दी गयी। पत्नी शिकायत करती है पर आत्मीयता से सुझाव नहीं माँगती है। बच्चे पिता को हुण्डी समझते हैं। बड़ा बेटा अलग होने की माँग करने लगता है। इन सब घटनाओं से गजाधर बाबू यह अनुभव करते हैं कि वह मात्र धनोपार्जन का साधन हैं, उस परिवार में उनका कोई अस्तित्व नहीं है तथा वह उस परिवार का अंग नहीं बन सकते। मुख्य रूप से पत्नी की उपेक्षा ने उन्हें चीनी मिल की नौकरी पर जाने को बाध्य कर दिया।

प्रश्न 8.
‘वापसी’ कहानी का उद्देश्य लिखिए। (2010)
उत्तर:
उषा प्रियंवदा की ‘वापसी’ कहानी पारिवारिक सम्बन्धों की संवेदनहीनता पर आधारित है। इसका उद्देश्य पारिवारिक विसंगतियों तथा बिखराव को अंकित करना है। रेलवे में नौकरी करने वाले गजाधर बाबू घर से दूर अकेले सरकारी स्वार्टर में रहते हैं। पत्नी, एक बेटी, दो पुत्र तथा पुत्र-वधू घर के प्राणी हैं जो शहर के मकान में रहते हैं। नौकरी से सेवा-निवृत्त हो जब वे घर लौटते हैं तो पारिवारिक आत्मीयता की बड़ी उम्मीदें उनके मन में हैं, परन्तु घर आने पर वे सब भ्रम सिद्ध होती हैं। वे घर को अपने ढंग से चलाना चाहते हैं, किन्तु उन्हें हर स्तर पर उपेक्षा ही मिलती है। बेटे,बेटी, पुत्र-वधू के साथ पत्नी भी उनके प्रति उदासीन ही है। वे जो सोचकर आए थे उसके विपरीत भाव परिवार में उन्हें मिलता है। उन्हें अपनी उपस्थिति परिवार में विक्षोभ पैदा करने वाली लगने लगती है। फलस्वरूप वे सेठ रामजीमल की मिल में पुन: नौकरी करने वहीं चले जाते हैं जहाँ से वे सेवा-निवृत्त हुए थे।

कहानी आज की संवेदनहीनता की गिरावट को प्रस्तुत करने में सफल रही है। निरन्तर असहिष्णु बनती जा रही युवा पीढ़ी के स्वच्छंद व्यवहार का दुष्परिणाम पुरानी पीढ़ी झेलती है। व्यक्तिवादी प्रवृत्तियों के बढ़ते क्रम में यह कहानी पारिवारिक संवेदनाओं की वापसी का प्रयास भी है।

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वापसी भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
नीचे दिए गए गद्यांश में उचित विराम चिह्न लगाइए-
नारद ने पूछा उस पर आयकर तो बकाया नहीं था हो सकता है उन लोगों ने रोक लिया हो चित्रगुप्त ने कहा आय होती तो कर होता भुखमरा था नारद बोले मामला बड़ा दिलचस्प है अच्छा मुझे उसका नाम पता तो बताओ मैं पृथ्वी पर जाता हूँ।
उत्तर:
नारद ने पूछा, “उस पर आयकर तो बकाया नहीं था?” हो सकता है, उन लोगों ने रोक लिया हो। चित्रगुप्त ने कहा, “आय होती तो कर होता, भुखमरा था।” नारद बोले, “मामला बड़ा दिलचस्प है। अच्छा मुझे उसका नाम पता तो बताओ। मैं पृथ्वी पर जाता हूँ।”

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्द छाँटकर लिखिए-
बॉक्स, विषाद, वर्ष, दुहरी, रात्रि, खिन्नता, स्निग्ध, आखिरी, प्रकृति, आकांक्षी, धप्प,उन्मुक्त, छोर, टोन।
उत्तर:
तत्सम – विषाद, वर्ष, रात्रि, स्निग्ध, प्रकृति, आकांक्षी, उन्मुक्त।
तद्भव – दुहरी, खिन्नता। देशज-धप्प, छोर।
विदेशी – बॉक्स, आखिरी, टोन।

प्रश्न 3.
दिए गए मुहावरों और कहावतों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
ऊँट के मुँह में जीरा, मुँह लटकाना, मुँह बनाना, अपने मुँह मियाँ मिट्ठ बनना।
उत्तर:
(i) शब्द-ऊँट के मुँह में जीरा।
वाक्य प्रयोग :
राजा दस-बारह रोटियाँ खाता है, उसे दो रोटियाँ देना तो ऊँट के मुँह में जीरा देने के समान है।

(ii) शब्द-मुँह लटकाना।
वाक्य प्रयोग :
जिद्द पूरी न होने पर सुरेश कमरे के कोने में मुँह लटकाकर बैठ गया।

(iii) शब्द-मुँह बनाना।
वाक्य प्रयोग :
बंदर हाथ आये आईने में खुद की शक्ल देखकर बार-बार मुँह बना रहा था।

(iv) शब्द-अपने मुँह मियाँ मिट्ठ बनना।
वाक्य प्रयोग :
अपने मुँह मियाँ मिट्ट बनने वाले व्यक्ति का सम्मान धीरे-धीरे कम होता जाता है।

प्रश्न 4.
शरीर के निम्नलिखित अंगों पर बनने वाले कोई दो मुहावरे लिखिए
आँख, नाक, कान, हाथ, पैर।
उत्तर:

  1. आँख-आँखों में धूल झोंकना, आँखों में खटकना।
  2. नाक-नाक में दम करना, नाक में नकेल कसना।
  3. कान-कान काटना,कान पर जूं तक न रेंगना।
  4. हाथ-हाथ-पैर फूलना, हाथ-पर-हाथ रखकर बैठना।
  5. पैर-पैर उखड़ जाना,पैर फैलाना

प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों के विपरीत अर्थ लिखकर वाक्य पूरा करें

  1. विश्व में जन्म एवं ………… अवश्यंभावी है।
  2. इस संसार में ……….. और दानव दोनों ही तरह के लोग हैं।
  3. रावण से राम की शत्रुता थी तो सुग्रीव से ………..।
  4. उसने रात और ………. एक कर दिए।

उत्तर:

  1. मरण
  2. मानव
  3. मित्रता
  4. दिन।

प्रश्न 6.
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का प्रचार-प्रसार किस प्रकार हो रहा है?
उत्तर:
हिन्दी बहुत तेजी से अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर प्रतिष्ठित होती जा रही है। विदेशों के लगभग 90 विश्वविद्यालयों में हिन्दी का अध्ययन-अध्यापन कार्य हो रहा है। विश्व में सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में चीनी, अंग्रेजी के पश्चात् हिन्दी का ही स्थान आता है।

अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी का प्रचार-प्रसार अनेक प्रकार से किया जा रहा है-

  1. इसे संयुक्त राष्ट्र संघ की मान्य भाषाओं में सम्मिलित करने के प्रयास हो रहे हैं।
  2. विश्व में विविध स्थानों पर विश्व हिन्दी सम्मेलनों का आयोजन इसकी प्रतिष्ठा और स्वीकार्यता को और बढ़ा रहा है।
  3. प्रवासी भारतीयों द्वारा भी साहित्य सृजन कर हिन्दी को समृद्ध बनाया जा रहा है।

प्रश्न 7.
राष्ट्रभाषा की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
राष्ट्र भाषा की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  1. राष्ट्रभाषा समस्त राष्ट्र की भाषा होती है।
  2. राष्ट्रभाषा का रूप व्यापक होता है।
  3. राष्ट्रभाषा का व्यवहार पूर्ण राष्ट्र में होता है।
  4. राष्ट्र भाषा सम्पूर्ण देश की संस्कृति एवं आदर्शों को अभिव्यक्त करती है।
  5. राष्ट्रभाषा देशवासियों की आकांक्षाओं को भी अभिव्यक्त करती है।
  6. राष्ट्रभाषा देश के विभिन्न भागों के निवासियों के मध्य सम्पर्क स्थापित करती है।
  7. राष्ट्र भाषा अन्य भाषाओं एवं विभाषाओं की प्रगति में सहायक बनती है।

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वापसी पाठ का सारांश

वर्तमान जीवन की विसंगतियों और विशृंखलाओं का चित्रण करने में सिद्धहस्त लेखिका ‘उषा प्रियंवदा’ ने प्रस्तुत कहानी ‘वापसी’ में एक निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के बिखराव का मार्मिक चित्र प्रस्तुत किया है। ‘वापसी’ लेखिका की सुप्रसिद्ध रचना है।

कहानी का मुख्य पात्र गजाधर बाबू रेलवे में नौकरी करता है। वह अपने परिवार से दूर रेलवे क्वार्टर में अकेले रहता है। बच्चों की उच्च शिक्षा के कारण परिवार शहर में रहता है,जहाँ उनका अपना मकान है। वह जीवन के पैंतीस वर्ष अकेले ही इस आशा में व्यतीत कर देते हैं कि सेवानिवृत्त होने पर उन्हें परिवार की संगति मिलेगी। इसके उलट, वह परिवार के मध्य स्वयं को उपेक्षित एवं अपमानित अनुभव करते हैं। परिवार में कोई उनका कहना नहीं मानता। बड़ा बेटा पिताजी के बीच में बोलने पर ताने देता है, तो बेटी बसन्ती टोकने पर रूठ जाती है। बहू घर का काम करना ही नहीं चाहती है।

पत्नी घर की शिकायतें तो करती है पर उन शिकायतों में आत्मीयता नहीं होती और न ही निवारण हेतु सलाह ही ली जाती है। बड़ा बेटा अमर अपनी पत्नी के साथ अलग गृहस्थी बसाना चाहता है। उनके आने से पूर्व सम्पूर्ण परिवार पर अमर की ही आज्ञा चलती थी। बैठक में पिता का बैठना उसे पसन्द नहीं है। इस स्थिति में गजाधरबाबू को अपना जीवन एक खोई निधि-सा प्रतीत होता है। वह अपने ही घर में स्वयं को एक परदेशी के समान महसूस करने लगते हैं।

इन्हीं परिस्थितियों के मध्य गजाधर बाबू को सेठ रामजीमल की चीनी की मिल में कार्य करने का प्रस्ताव मिलता है जिसे वह बिना सोचे-समझे स्वीकार कर जाने को तैयार हो जाते हैं। परिवार भी उनके जाने की तैयारी में लग जाता है और उन्हें विदा करके प्रसन्नता का अनुभव करता है।

वापसी कठिन शब्दार्थ

विषाद = दुःख! हौंसला = साहस। बिछोह = बिछुड़ना। रिटायर = अवकाश प्राप्त। सलज्ज = शर्म से। स्निग्ध = चिकना,प्रेमपूर्ण। उन्मुक्त = खुले। कुण्ठित – क्षुब्ध, दुःखी। पैसेन्जर = यात्रीगण। व्याघात = रुकावट। फुरसत = अवकाश। कुशन = गद्दियाँ। वाजिब = उचित। आहत = दुःखी। विस्मित = आश्चर्यचकित। लावण्यमयी = सौन्दर्यमयी। नितान्त = बिल्कुल। श्रीहीन = शोभारहित। मिजाज = नखरे। रोब = क्रोध। दायरा = क्षेत्र। निधि = सम्पत्ति। निमित्त = उद्देश्य। हैसियत = स्तर। सिटपिटाई = घबराई। हताश = निराश। हस्तक्षेप = दखल देना। अगहन = हिन्दी कैलेण्डर का नवाँ महीना। आग्रह = निवेदन। मनोविनोद = हँसी-मजाक। आकांक्षी = पूर्ण इच्छा रखने वाला। तत्परता = फुर्ती।

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वापसी संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) गजाधर बाबू ने आहत, विस्मित दृष्टि से पत्नी को देखा। उनसे अपनी हैसियत छिपी न थी। उनकी पत्नी तंगी का अनुभव कर उसका उल्लेख करती, यह स्वाभाविक था, लेकिन उनमें सहानुभूति का पूर्ण अभाव गजाधर बाबू को बहुत खटका उनसे यदि राय-बात की जाती कि प्रबंध कैसे हो, तो उन्हें चिन्ता कम, सन्तोष अधिक होता।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘वापसी’ नामक पाठ से उद्धृत’ है। इसकी लेखिका ‘उषा प्रियंवदा’ हैं।

प्रसंग :
गजाधर बाबू नौकरी से सेवानिवृत्त होकर परिवार के मध्य लौटने पर पत्नी से खर्चा कम करने की बात कहते हैं तो पत्नी शिकायत करती है कि कम खर्चे की जोड़-गाँठ करने के कारण न मन का पहना, न ओढ़ा। इस उत्तर पर गजाधरबाबू आश्चर्यचकित दुःख में डूब जाते हैं।

व्याख्या :
पत्नी कहती है कि जीवन-भर इस गृहस्थी को कम-से-कम खर्चे से चलाने की जोड़-तोड़ में कभी भी उसकी किसी भी इच्छा की पूर्ति न हो सकी। पत्नी के इस कथन से गजाधर बाबू को अत्यन्त दुःख भी हुआ और गहरा आश्चर्य भी,क्योंकि परिवार के सुख के कारण ही वे परिवार को शहर में छोड़कर स्वयं अकेले रेलवे क्वार्टर में इतने लम्बे समय तक रहे। पत्नी अपने अभावों का वर्णन पति के अतिरिक्त और किससे करती,इस बात को गजाधर बाबू ने स्वीकार किया परन्तु वे चाहते थे कि शिकायत में आत्मीयता व सलाह का स्वर भी होता। कहने का तात्पर्य है कि इन अभावों में कैसे उत्तम प्रबन्ध कर गृहस्थी को चलाया जाय,यदि इस बात पर अपनेपन के साथ चर्चा हुई होती तो उन्हें दुःख न होता,वरन् अपार संतोष का अनुभव हुआ होता।

विशेष :

  1. पति-पत्नी की शिकायतों का हृदयस्पर्शी चित्रण है।
  2. वाक्य रचना लघु तथा संस्कृत व उर्दू के शब्दों का प्रयोग है।
  3. भाषा सारगर्भित होते हुए भी बोधगम्य है।
  4. शैली में काव्यात्मकता है।

(2) यही थी क्या उनकी पत्नी, जिसके हाथों के कोमल स्पर्श, जिसकी मुस्कान की याद में उन्होंने सम्पूर्ण जीवन काट दिया था? उन्हें लगा कि वह लावण्यमयी युवती जीवन की राह में कहीं खो गई है; और उसकी जगह आज जो स्त्री है, वह उनके मन और प्राणों के लिए नितान्त अपरिचिता है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
गजाधर बाबू अपनी पत्नी को समझाते हैं कि जीवन का सुख धन में नहीं बल्कि परिवार के सुख और मन के सुख से है। इस छोटी-सी बात को पत्नी नहीं समझ पाई और आँख बन्द करके सो गई। सोती हुई पत्नी को देखकर गजाधर बाबू के मन में जो भाव उठते हैं, इन पंक्तियों में उनका भावपूर्ण वर्णन है।

व्याख्या :
गजाधर बाबू सोती हुई पत्नी को देखकर सोचते हैं कि जिस पत्नी के कोमल स्पर्श और मुस्कान तथा उसके साथ बिताये सुख के क्षणों की याद में उन्होंने रेलवे के सूने क्वार्टर में रहकर जीवन के पैंतीस वर्ष बिता दिये आज उसका वह सुखदायक स्पर्श व मनमोहक मुस्कान कहाँ चले गये। आज पत्नी की समस्त सुन्दरता मानो बीते कल की बात हो गई है। उनके सम्मुख सो रही स्त्री उनकी आत्मा के लिए बिल्कुल अनजान-सी नारी लग रही थी, जिससे उनके जीवन का मानो कभी कोई नाता ही न रहा हो। कभी सुन्दर लगने वाली उनकी पत्नी कैसी कुरूप, बेडौल और थुल-थुल लग रही थी। वह सूनी आँखों से पत्नी को देखते रहे और अन्त में स्वयं भी लेट गये।

विशेष :

  1. जीवन की विसंगतियों और विडम्बनाओं का मार्मिक चित्रण है।
  2. संस्कृत के शब्दों के प्रयोग के साथ भावों में सरलता है।
  3. भावों की अभिव्यक्ति में काव्य का सा आनन्द है।
  4. प्रश्नोत्तर लेखन शैली की झलक है।
  5. विराम चिह्नों के प्रयोग में किंचित् त्रुटियाँ भी हैं- “और” का एक साथ प्रयोग।

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