MP Board Class 7th General Hindi निबन्ध लेखन

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विज्ञान के चमत्कार

प्रस्तावना-अनेक वर्षों से विज्ञान निरंतर उन्नति कर रहा है। विज्ञान का इतिहास अत्यंत प्राचीन है। रामायण काल में भी पुष्पक विमान, अग्नि बाण, ब्रह्मास्त्र आदि ऐसे साधन थे; जिनके मुकाबले अभी भी विज्ञान पीछे है। वैसे 19वीं एवं 20वीं सदी में विज्ञान में नवीन आविष्कार हुए और आज हम विज्ञान से इतने संबद्ध हो चुके हैं कि इसके बिना हमारा जीवन ही अधूरा रह जाएगा।

आधुनिक युग का विज्ञान-आधुनिक युग के विज्ञान को देखा जाए, तो इसे हम आविष्कारों के युग की संज्ञा दे सकते हैं। सुई से हवाई जहाज़ तक के निर्माण में हमें विज्ञान की स्पष्ट झलक दिखाई देती है। विज्ञान ने मानव में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है। भाप, बिजली एवं अणु शक्ति को वश में करने वाला मानव आज वैभव की चरम सीमा पर आरूढ़ है। तेज़ गति से चलने वाले वाहन, समुद्री जहाज़ एवं आकाश में वायुवेग से चलने वाले हवाई जहाज़, चंद्रलोक की यात्रा करने वाला रॉकेट आदि कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने प्रकृति पर मानव की विजय का उज्जवल दृष्टांत प्रस्तुत किया है।

संचार साधनों में वृद्धि-विज्ञान ने हमारे जीवन में तार, टेलीफोन, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा और ग्रामोफोन आदि ने हमारे जीवन में अनेक सुविधाएँ प्रदान की हैं। इन सुविधाओं की कल्पना हमारे पूर्वजों के लिए कठिन थी।

विज्ञान वरदान के रूप में-हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। इसी प्रकार विज्ञान के भी दो पहलू हैं। यदि हम विज्ञान के लाभकारी परिणामों पर दृष्टिपात करें, तो हम पायेंगे कि यह हमारे लिए ईश्वरीय वरदान है। प्रारंभ में मनुष्यों का अधिकांश समय उदर पूर्ति हेतु ही व्यतीत हो जाता था, परंतु आज के वैज्ञानिक युग में व्यक्ति के पास इतने अधिक काम और समय की कमी रहती है कि वह अपना काम बिना विज्ञान की सहायता के कर भी नहीं सकता। बड़ी-बड़ी मशीनों की सहायता से दिन भर का काम घंटों में निपटा लिया जाता है। मशीनीकरण से कीमती समय की बचत हो जाती है तथा कम समय में अधिक उत्पादन कर हम अपना एवं अपने देश का आर्थिक विकास संभव बनाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि विज्ञान मनुष्य को ईश्वरीय वरदान के रूप में प्राप्त है। इसमें किंचित् मात्रा भी संदेह भी नहीं कि विज्ञान हमारे जीवन का एक अमूल्य अंश है।

विज्ञान अभिशाप के रूप में-जिस प्रकार घोड़े की लगाम पकड़ कर हम घोड़े को सही मार्ग पर चलने को विवश करते हैं, उसी प्रकार विज्ञान भी हमारे हाथ की कठपुतली है। इसका उपयोग यदि निर्माण कार्यों में किया जाए, तो हमारे लिए वरदान है। वहीं यदि इसका प्रयोग अनुचित साधन के रूप में किया जाए, तो यह सर्वनाश का प्रबल प्रतीक बन सकती है, जैसे हिरोशिमा व नागासाकी का भयंकर विस्फोट विज्ञान के अभिशाप का एक सशक्त उदाहरण है।

प्रथम एवं द्वितीय विश्व-युद्ध के मध्य जन-धन का जितना विनाश विज्ञान के द्वारा हुआ, उतना विकास हम जीवनपर्यंत नहीं कर सकते। 40 साल बाद भी वहाँ इसका कुपरिणाम दिखाई दे जाता है। छोटा-सा उदाहरण बिजली को ही लें। वही बिजली बल्ब में जलकर घर के अंधकार को दूर करती है, तो असावधानीवश बिजली के करेंट द्वारा व्यक्ति मृत्यु के मुख में जाकर कुल के दीपक को बुझा कर विज्ञान के दुष्परिणामों को उजागर करता है।

उपसंहार-विज्ञान हमारे लिए वरदान भी है, और अभिशाप भी। हमें चाहिए कि विज्ञान का उपयोग विध्वंसात्मक रूप से न करके रचनात्मक रूप से करें। मानव विज्ञान का स्वामी है अतः उस पर अंकुश लगाए रहें, ताकि विज्ञान द्वारा होने वाले सर्वनाश से बचा जा सके। अंत में मैं यही कहना चाहूँगा कि मनुष्य विज्ञान का उपयोग विध्वंसात्मक रूप से न कर सृजनात्मक रूप से करे, जिससे आसानी से इक्कीसवीं शताब्दी में पदार्पण करें।

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धार्मिक त्योहार : दीपावली

प्रस्तावना-भारतीय त्योहारों में दशहरा, दीपावली, रक्षाबंधन, होली, विजयादशमी आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें दीपावली अपने ढंग का एक अनोखा त्योहार है। इस दिन लोग अपनी प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए दीपकों द्वारा सारे संसार को प्रकाशित करते हैं। इसीलिए इस त्योहार का नाम दीपावली पड़ा।

ऐतिहासिक महत्त्व-इस त्योहार के साथ अनेक ऐतिहासिक एवं धार्मिक गाथायें जुड़ी हुई हैं। ऐसी जनश्रुति है कि भगवान् श्रीराम, रावण पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् इसी दिन अयोध्या वापस आए थे। अयोध्यावासियों ने उनका दीपों द्वारा स्वागत किया था। कुछ पौराणिक गाथाओं के अनुसार भगवान विष्णु ने इसी दिन नरकासुर का वध कर खुशियाँ मनाई थीं। दीपावली के मनाने का सामाजिक कारण भी है। वैदिककाल में जब फसल काटकर धान्य घर पर आ जाता था, तो किसान इसे बड़े प्रेम से अपने इष्ट देव को अर्पित करता था, यज्ञ होते थे तथा रात्रि में दीपों के प्रकाश से सारा वातावरण प्रकाशमय हो जाता था। वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसका महत्त्व है। बरसात में गंदे पानी के कारण हानिकर कीड़े उत्पन्न हो जाते हैं। दीपों को जलाकर उन्हें भस्म कर दिया जाता है।

पूर्व तैयारी-दीपावली से कई दिन पूर्व तैयारी आरंभ हो जाती है। लोग अपने घरों की लिपाई-पुताई करवाते हैं एवं घरों को रंगीन चित्रों द्वारा सजाते हैं। पुताई से मच्छर, मक्खी एवं अन्य हानिकारक जीव नष्ट हो जाते हैं और कई तरह की बीमारियाँ होने से लोग बचे रहते हैं। कच्चे मकानों की मरम्मत भी इसी समय की जाती है तथा सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है।

पंच दिवसीय कार्यक्रम-यह त्योहार पाँच दिनों का होता है। इस त्योहार का आरंभ कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से होता है। यह दिन धन तेरस के नाम से मनाया जाता है। लोग नये बर्तन एवं वस्त्र आदि का क्रय करते हैं। दूसरे दिन नरक चतुर्दशी का आयोजन होता है। तीसरे दिन दीपावली का मुख्य आयोजन होता है। लोग शाम के समय लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती आदि का पूजन कर दीपकों द्वारा घरों को प्रकाशित करते हैं। चौथे दिन गोवर्धन पूजा एवं पाँचवें दिन भाई दूज या यम द्वितीया के साथ इस त्योहार का समापन होता है।

दीपावली का पूजन-कार्तिक मास की अमावस्या को व्यापारी अपने बहीखातों का पूजन करते हैं तथा इष्ट मित्रों सहित लक्ष्मी जी का पूजन कर प्रसाद वितरण करते हैं। लक्ष्मी पूजन के उपरांत रात्रि में चारों ओर दीपकों का प्रकाश जगमगा उठता है। नगरों में दियों के स्थान पर मोमबत्तियों एवं बिजली की झालरों द्वारा प्रकाश किया जाता है। आतिशबाजी एवं पटाखों की ध्वनि से सारा आकाश गूंज उठता है। बालक-बालिकाएँ उमंग के साथ नया वस्त्र धारण कर प्रसाद वितरण एवं मिठाइयों का वितरण करते हैं। कुछ लोग रात में जुआ भी खेलते हैं, परंतु यह बुरी बात है। जुआ का दुष्परिणाम हम महाभारत में स्पष्ट रूप से देख चुके हैं, अतः इस आयोजन से हमें बचना चाहिए। बच्चों को खील, मिठाई, आतिशबाजी आदि की प्रसन्नता प्रदान करते हैं। इस दिन चारों ओर एक अनोखी छटा रहती है। चलह-पहल एवं प्रकाश से सारा वातावरण आनान्दित रहता है।

लाभ-हानि-इस त्योहार से जहाँ हमें लाभ होते हैं, वहीं नुकसान भी होते हैं। आतिशबाजी में जलकर लोग प्राण तक गंवा बैठते हैं, एवं जुए में कई घर बरबाद हो जाते हैं।

उपसंहार-यह हमारा धार्मिक त्योहार है। इसे उचित रूप से मनाया जाना चाहिए। इस दिन हमें शुभ मार्ग पर चलने की शपथ लेनी चाहिए। बुरे मार्ग पर चलने से अपने को बचाना चाहिए। आतिशबाजी आदि पर अधिक पैसा व्यय नहीं करना चाहिए।

महापुरुषों की जीवनी : महात्मा गांधी

प्रस्तावना-महात्मा गांधी हमारे देश के महान् नेताओं में अपना प्रमुख स्थान रखते हैं। सारा राष्ट्र उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ और ‘बापू’ के नाम से जानता है। आपका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। आपने अहिंसा और सत्याग्रह के बल पर भारत को स्वतंत्र कराने का बीड़ा उठाया था। विश्व इतिहास में आपका नाम सदैव सम्मान के साथ लिया जाता रहेगा।

जन्म-महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1869 में गुजरात के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था। आप के. पिता का नाम करमचंद था और वे राजकोट के राजा के दीवान थे। आपकी माता का नाम पुतलीबाई था। आपकी माता धार्मिक एवं सती साध्वी महिला थीं। उनकी शिक्षाओं का प्रभाव महात्मा गाँधी पर आजीवन रहा।

शिक्षा-दीक्षा-महात्मा गाँधी की प्रारंभिक शिक्षा पोरबंदर में हुई। मैट्रिक तक का अध्ययन आपने स्थानीय विद्यालयों में ही किया। तेरह वर्ष की अवस्था में आपका विवाह सुयोग्य कस्तूरबा के साथ हुआ। तदनंतर आप कानूनी शिक्षा प्राप्त करने के लिए विलायत गए। वहाँ से बैरिस्टरी की परीक्षा पास कर आप स्वदेश वापस आ गए। आपने अपना वकालत का पेशा बंबई नगर में आरंभ किया। कुछ विशेष मुकद्दमों के मामले में आपको पैरवी करने के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। दक्षिण अफ्रीका में हो रहे भारतीयों पर अत्याचार को देखकर गाँधी जी का मन परिवर्तित हो गया और वे वकालत का धंधा छोड़कर राष्ट्रीय सेवा में संलग्न हो गए।

आंदोलनों का आरंभ-सन 1915 में जब महात्मा गाँधी आफ्रीका से भारत आए, तो यहाँ अंग्रेजों का दमन-चक्र अपनी चरम स्थिति पर था। रोलट एक्ट जैसा काला कानून भारत में संरक्षण पा रहा था। सन् 1919 में घटित जलियांवाला बांग हत्याकाण्ड से सारा देश क्षुब्ध था। इन सारी परिस्थितियों का अवलोकन कर महात्मा गाँधी के हृदय में शांत किंतु क्रांतिकारी परिवर्तन आया। उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली तथा इतिहास में एक नए युग का आरंभ हुआ।

गांधी युग का आरंभ-सन् 1920 में महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन आरंभ किया। भारतीय जनता ने इनका अपूर्व सहयोग दिया और लाखों लोग विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार में कूद पड़े। अंग्रेज़ों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। लोगों ने सरकारी कार्यालयों की होली जलाई। शासकीय संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्र इस आंदोलन में कूद पड़े। परिणामस्वरूप भारतीय स्वतंत्रता के प्रति एक नए वातावरण का निर्माण हुआ।

सन् 1928 में ‘साइमन कमीशन’ भारत आया। गाँधी जी ने इस कमीशन का भी बहिष्कार किया। इस आंदोलन में भी उन्हें जनता का पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ। उन्होंने इस बीच देश को उचित नेतृत्व प्रदान किया।

सन् 1930 में महात्मा गाँधी ने नमक-कर के विरोध में नामक आंदोलन का संचालन किया। उनके साथ असंख्य भारतीय दाण्डी पहुँचे और वहाँ नमक बनाकर कानून को तोड़ा।

भारत छोड़ो आंदोलन का श्री गणेश-द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के साथ ही 1942 में गाँधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन का श्री गणेश कर दिया। महात्मा गांधी के अनुसार यह उनकी अन्तिम लड़ाई थी। इस आन्दोलन में गाँधी जी तथा अनेक भारतीय गाँधी नेता और असंख्य आंदोलनकारी देश की विभिन्न जेलों में गिरफ्तार हुए। अंत में अंग्रेजों को इस आंदोलन के सम्मुख झुकना पड़ा एवं 15 अगस्त, 1947 को भारत पूर्ण रूप से आजाद हो गया।

अंतिम यात्रा-बापू के पूजा करने हेतु जाते समय नाथूराम गोडसे नामक एक युवक ने 30 जनवरी, 1948 को उन्हें गोली मार दी, जिसके कारण बापू ‘हे राम!’ कहकर चिर निद्रा में लीन हो गए। भारत में सर्वत्र शोक की लहर व्याप्त हो गयी। एक युग का सूर्य क्षण भर में अस्त हो गया। बापू मरकर भी अपने यशस्वी शरीर से अमर हो गए।

उपसंहार-बापू का नाम भारतीयों में तब तक आदर के साथ लिया जाता रहेगा, जब तक एक-एक भारतवासी के हृदय में देश-प्रेम है। उनका नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। हम बापू के कार्यों का स्मरण कर धन्य हो जाते है।

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विद्यार्थी जीवन और अनुशासन

प्रस्तावना-अनुशासन देश का आधार स्तंभ है और विद्यार्थी के लिए इसकी अत्यंत आवश्यकता होती है। अनुशासन शब्द अनु और शासन शब्दों से मिलकर बना है। अनु का अर्थ पीछे चलना एवं शासन से तात्पर्य आज्ञा पालन अर्थात् किसी आदेश के अनुसार चलना ही अनुशासन है। जब तक बालक घर की चारदीवारी में रहता है, तब तक वह माँ-बाप के अनुशासन में रहता है।

अनुशासन का महत्त्व-बालक जो कुछ अपनी छात्रावस्था में गुण ग्रहण करता है और क्षमता प्राप्त करता है, वह उसकी सम्पत्ति बन जाती है। इस सम्पत्ति का लाभ वह जीवन पर्यंत उठाता रहता है। विद्यार्थी का जीवन समाज एवं देश की अमूल्य निधि होता है। समाज एवं देश की उन्नति मात्र विद्यार्थियों पर ही निर्भर है। यही आगे चलकर देश के कर्णधार बनते हैं।

अनुशासन को हम सफलता के मार्ग का सोपान मान सकते हैं। अनुशासन जीवन को उन्नत बनाने का मूल मंत्र है। अनुशासन से बालकों को अपने माता-पिता, गुरु एवं बड़े, लोगों का स्नेह प्राप्त होता है। स्नेह बालक के जीवन के भावी विकास में सहायक सिद्ध होता है। यह स्नेह जिस बालक को जितना प्राप्त होता है, उसका उतना ही चारित्रिक विकास संभव होता है। अनुशासन से बालक के विकास के स्मस्त मार्ग खुल जाते हैं। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का तात्पर्य है-‘विद्यार्थी का अपने से बड़ों की आज्ञा का पालन’। बालक को बड़ों की आज्ञा के विपरीत कोई काम नहीं करता चाहिए। क्योंकि माता-पिता, गुरु एवं परिजन ही उसके वास्तविक शुभचिंतक होते हैं; ये उसे कभी बुरे मार्ग पर जाने की सलाह नहीं देंगे। विद्यार्थी के अनुशासन का तात्पर्य यह भी है कि उसे समय से उठना, समय से सोना, खेलना, पढ़ना, पाठशाला जाना, गृह-कार्य करना, घर के काम आना आदि समयबद्ध तरीके से करना चाहिए। अर्थात् जीवन में उसे समय की कीमत का ध्यान करना चाहिए।

जो विद्यार्थी अपने अध्यापकों की आज्ञा का पालन कर समय से पढ़ते-लिखते और खेलते हैं, वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त कर उत्तीर्ण होते हैं और उनका भविष्य सुखद एवं उज्जवल बनता है।

अनुशासन के प्रकार-अनुशासन को हम दो वर्गों में विभक्त कर सकते हैं। प्रथम आंतरिक अनुशासन एवं द्वितीय बाह्य अनुशासन। आन्तरिक अनुशासन में विद्यार्थी अपने शरीर, मन एवं बुद्धि पर पूर्ण नियन्त्रण रखता है, जबकि बाह्य अनुशासन भय या लोभ वश किया जाता है। आत्म-अनुशासित व्यक्ति ही अपने जीवन में महान् बन सकता है। दुनिया में जितने भी महान् व्यक्तित्व हुए हैं, आत्म-अनुशासित ही थे। जबकि बाह्य अनुशासन बालकों को डरपोक एवं रिश्वतखोर बनाता है। यह हमारे जीवन के लिए हानिकर हो सकता है।

अनुशासनहीनता के दुष्परिवास-आजकल के विद्यार्थियों में अनुशासन का अभाव है। वे अपने माता-पिता एवं गुरुओं की आज्ञा का कम ही पालन करते हैं। स्कूल, कॉलेजों में हड़ताल, आंदोलन, परीक्षा में नकल आदि की गंदी प्रवृत्तियाँ उनमें पनपने लगती हैं। ये उनके लिए घातक है। विद्यार्थियों को इन बुराइयों से बचना चाहिए, क्योंकि इनसे उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। जिससे समाज में बेकारी एवं अव्यवस्था फैल जाती है।

उपसंहार-विद्यार्थी के जीवन के पूर्ण विकास के लिए अनुशासन का विशेष महत्त्व है। अनुशासित व्यक्ति कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी अपना मानसिक संतुलन बनाए रखता है। सभी लोग अनुशासन प्रिय व्यक्ति पर विश्वास करते हैं। दायित्व का कार्य करने में ऐसे व्यक्ति पूर्ण सक्षम होते हैं। अनुशासन से हमारा जीवन सुंदर बनता है। सुंदर जीवन सभी सुखों का आधार होता है तथा सुखी जीवन स्वस्थ मानसिकता का निर्माण करता है। अतः विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का विशेष महत्त्व है।

स्वतंत्रता दिवस : 15 अगस्त

प्रस्तावना-15 अगस्त, 1947 का दिन हम भारतवासियों के लिए एक अविस्मरणीय दिन रहेगा। इस दिन को इतिहास कभी भुला नहीं सकता। सदियों की गुलामी के बाद आज ही के दिन हम भारवासी आजाद हुए थे। सब ने शांति एवं सुख का अनुभव किया था। इस दिन का प्रभाव कुछ अद्भुत यादें संजोए हुए आया था। लोग जब सोए तो परतंत्र थे; परंतु जब प्रातः उनकी आँख खुली, तो वे पूर्ण स्वतंत्र नागरिक थे। यह हमारे लिए एक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय त्योहार है।

अनेक बलिदान-भारत सदियों तक अंग्रेजों का गुलाम रहा। आजादी प्राप्ति के लिए अनेक लोगों को अपनी कुर्बानी देनी पडी। अनेक वीरों की गाथाएँ इस आजादी के साथ जड़ी हुई हैं। देश की आजादी के लिए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने हमें नारा दिया ‘स्वाधीनता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और इसे लेकर ही रहेंगे, इस हेतु उन्होंने महाराष्ट्र में गणेशोत्सव एवं शिवाजी उत्सव का आयोजन किया, जिसकी आड़ में लोगों में स्वतंत्रता में चिनगारी फॅकी। लाला लाजपत राय ने लाठियों के वार सहकार भी अपना आंदोलन बंद न किया। उनका कहना था कि “मेरी पीठ पर पड़ा एक-एक लाठी का प्रहार अंग्रेजों के कफन में कील का काम करेगा।” वास्तव में हुआ भी ऐसा ही। नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने क्रांतिकारी नारा दिया ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’ उनका कहना था कि बिना आत्म-बलिदान के आजादी प्राप्त करना असंभव है।

स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गाँधी का योगदान-महात्मा गाँधी का राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक विशेष महत्त्व था। वे अहिंसा एवं सत्याग्रह पर विश्वास करते रहे। वे सन् 1928 से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कूदे और अंत तक अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आंदोलन करते रहे। इन्होंने अहिंसा को अपना सबसे बड़ा अस्त्र बनाया। इन्होंने देश के लोगों को अहिंसा के बल पर आज़ादी प्राप्ति हेतु प्रेरित किया। महात्मा गाँधी के सत्य, अहिंसा एवं त्याग सम्मुख अंग्रेजों को नत मस्तक होना पड़ा। फलस्वरूप 15 अगस्त, 1947 को देश आजाद हुआ। नेहरू परिवार का योगदान भी आजादी के लिए अविस्मरणीय रहेगा। पं. मोतीलाल नेहरू, पं. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गाँधी आदि ने आज़ादी पाने के लिए अनेक प्रयत्न किए। इन्हें कई बार जेल यात्राएं भी करनी पड़ीं एवं न जाने कितनी यातनाओं का सामना करना पड़ा। पं. जवाहरलाल नेहरू ने सन 1929 में लाहौर में रावी नदी के तट पर भारत को पूर्ण स्वतंत्र कराने की पहली ऐतिहासिक घोषणा की। इन्होंने निरंतर अठारह वर्ष तक अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया। अंततः अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा और हम आजाद हुए।

विविध आयोजन-यह उत्सव भारत के प्रत्येक ग्राम, नगर एवं शहर में बड़े धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। शालाओं में आज के दिन विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज फहराकर राष्ट्रगीत गाया जाता है एवं सारा वातावरण उल्लासमय रहता है। विदेशों में रहने वाले भारतीय भी अपना राष्ट्रीय पर्व सोल्लास मानते हैं। दिल्ली के लाल किले एवं अन्य प्रमुख स्थलों पर तिरंगा झंडा लहराया जाता है एवं विभिन्न शालाओं में प्रभात फेरियों का आयोजन किया जाता है।

उपसंहार-15 अगस्त के दिन हम सभी को यह संकल्प लेना चाहिए कि देश की अखंडता, एकता और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए हर भारतवासी समान रूप से समर्थ है। यह त्योहार हमें देश-भक्ति की प्रेरणा देता है। तथा अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सफलता की प्रेरणा प्रदान करता है। यह हमारे लिए एक महान् राष्ट्रीय पर्व है।

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किसी खेल का वर्णन
(मेरी शाला का हॉकी मैच)

खेल विद्यार्थियों के लिए स्फूर्तिदायक टॉनिक का कार्य करते हैं। अतः स्कूलों में विभिन्न प्रकार के खेलों का आयोजन होता रहता है। इनमें प्रमुख हैं-हॉकी, फुटबॉल वालीबॉल, कबड्डी, खो-खो, क्रिकेट आदि। मेरे विद्यालय में एक हॉकी टीम भी है। एक दिन मेरे स्कूल एवं आदर्श बुनियादी शाला में हॉकी मैच खेलने का निर्णय लिया गया। दोनों ही टीमें अपने-अपने क्षेत्र में एक से बढ़कर एक थीं। यह फाइनल मैच था अतः सभी खेल प्रेमियों की दृष्टि इसी खेल पर अड़ी थी। आखिर वह शुभ घड़ी आ ही गयी, जब दोनों टीमें आमने-सामने आकर अपने कौशल का प्रदर्शन करने के लिए तैयार थीं। .. मैच का आयोजन स्टेडियम ग्राउंड में किया गया। लोग पहले से ही आकर वहाँ काफी संख्या में बैठ चुके थे। हमारे स्कूल के छात्र भी जुलूस के रूप में स्टेडियम ग्राउंड पहुंचे। हम लोगों में उत्साह का अपार सागर हिलोरें ले रहा था।

दोनों टीमें आमने-सामने आयीं। निश्चित समय पर खेल आरंभ हुआ। सीटी बजते ही टीम के बालकों में उत्साह का संचार हो गया। शालेय छात्रों ने भी हाथ हिलाकर अपने-अपने दल वालों का हौसला बुलंद किया। खेल आरंभ हुआ। खिलाड़ी गेंद के पीछे-पीछे भागने लगे और दर्शकों की आँखें साथ-ही-साथ दौड़ने लगीं। खिलाड़ियों का प्रदर्शन काफी उत्तम था। इनकी कार्य कुशलता पर लोगों के मुँह से स्वतः ही ‘वाह-वाह’ की ध्वनि निकल जाती थी। तालियों की गड़गड़ाहट से सारा आकाश बीच-बीच में निनादित हो जाया करता था। खेल बड़े उत्तम तरीके से चल रहा था। दोनों टीमें अपने लिए अवसर खोज रही थीं। परंतु यह काम इतना आसान न था। खेल का लगभग आधा समय समाप्त हो गया परंतु किसी भी टीम को अभी तक कोई सफलता प्राप्त न हो सकी। निर्णायक महोदय ने सीटी बजाई और दोनों टीमों ने खेल बंद कर दिया। आराम करने के लिए अवकाश हो गया। प्राचार्य महोदय ने खिलाड़ियों को फल आदि खिलाकर आवश्यक नियमों से उन्हें अवगत कराया।

अवकाश का समय समाप्त हुआ। पुनः निर्णायक की सीटी सुनाई दी और खिलाड़ी दूने उत्साह में भर कर मैदान की ओर लपके। इस बार खिलाड़ियों ने आक्रामक रुख अपनाया। – ऐसा लगता था जैसे खिलाड़ी गेंद के साथ उड़े जा रहे हों। दर्शकों का उत्साह भी दुगुना हो रहा था। बच्चे बीच-बीच में शोरगल भी मचा रहे थे, परंतु इससे खेल में कोई व्यावधान नहीं पड़ रहा था।

खेल समाप्त होने में कुछ ही देर थी, परंतु अभी किसी भी टीम को कोई सफलता प्राप्त न हो सकी थी। हमारी शाला के विद्यार्थियों ने आक्रामक रुख अपनाया और उन्हें एक पेनाल्टी कॉर्नर मिला। बस क्या था, टीम के कप्तान ने रेखा पर गेंद रख कर इस प्रकार कुशल प्रहार किया कि गेंद गोल पोस्ट के भीतर हो गयी। सारा स्टेडियम तालियों की गड़गड़ाहट एवं बच्चों के शोरगुल से गूंज उठा। प्रतिद्वंद्वी टीम के हौसले पस्त हो गए। इसी बीच एक और पेनाल्टी कॉर्नर मिला और अगले ही हिट में गेंद पुनः गोल पोस्ट में प्रविष्ट हो गयी। पुनः तालियों की गड़गड़ाहट से सारा आकाश गूंज उठा। अगले ही क्षण सीटी बज उठी और निर्णायक ने हमारे विद्यालय को 2 गोल से विजयी घोषित किया। प्राचार्य जी ने पुरस्कार वितरण किया और अगले दिन की छुटी भी घोषित की। हम सभी प्रसन्नतापूर्वक अपने घर आ गए।

उपसंहार-खेलों का नियम ही एक पक्ष को जय तथा दूसरे को पराजय है। हमें जय या पराजय को उतना महत्त्वपूर्ण नहीं मानना चाहिए जितना महत्त्वपूर्ण कौशल को माना जाता
है। हमें पराजय के पश्चात् भी अपने मार्ग से विचलित नहीं __ होना चाहिए, सफलता अवश्य ही हमारे कदमों तले आ गिरेगी,
इसमें संदेह उन्हीं है।

बाल दिवस

हमारे विद्यालय में प्रतिवर्ष 14 नवंबर को बाल दिवस का आयोजन किया जाता है। बाल दिवस पूज्य चाचा नेहरू का जन्मदिवस है। चाचा नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। वे स्वतंत्रता संग्राम के महान् सेनानी थे। उन्होंने अपने देश की आजादी के लिए सर्वस्व न्योछावर कर दिया। अपने जीवन _ के अनेक अमूल्य वर्ष देश की सेवा में बिताए। अनेक वर्षों तक विदेशी शासकों ने उन्हें जेल में बंद रखा। उन्होंने साहस नहीं छोड़ा और देशवासियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देते रहे।

पं. नेहरू बच्चों के प्रिय नेता थे। बच्चे उन्हें प्यार से ‘चाचा’ कहकर संबोधित करते थे। उन्होंने देश में बच्चों के लिए शिक्षा सुविधाओं का विस्तार कराया। उनके अच्छे भविष्य के लिए अनेक योजनाएँ आरंभ की। वे कहा करते थे ‘कि आज के बच्चे ही कल के नागरिक बनेंगे। यदि आज उनकी अच्छी देखभाल की जाएगी तो आगे आने वाले समय में वे अच्छे डॉक्टर, इंजीनियर, सैनिक, विद्वान, लेखक और वैज्ञानिक बनेंगे।’ इसी कारण उन्होंने बाल कल्याण की अनेक योजनाएँ बनाईं। अनेक नगरों में बालघर और मनोरंजन केंद्र बनवाए। प्रतिवर्ष बाल दिवस पर डाक टिकटों का प्रचलन किया। बालकों के लिए अनेक प्रतियोगिताएँ आरंभ कराईं। वे देश-विदेश में जहाँ भी जाते बच्चे उन्हें घेर लेते थे। उनके जन्मदिवस को भारत में बाल-दिवस के रूप में मनाया जाता है।

हमारे विद्यालय में प्रतिवर्ष बाल-दिवस के अवसर पर बाल मेले का आयोजन किया जाता है। बच्चे अपनी छोटी-छोटी दुकानें लगाते हैं। विभिन्न प्रकार की विक्रय योग्य वस्तुएँ अपने हाथ से तैयार करते हैं। बच्चों के माता-पिता और मित्र उस अवसर पर खरीददारी करते हैं। सारे विद्यालय को अच्छी प्रकार सजाया जाता है। विद्यालय को झंडियों, चित्रों और रंगों की सहायता से आकर्षक रूप दिया जाता है। – बाल दिवस के अवसर पर खेल-कूद प्रतियोगिता और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है। बच्चे मंच पर आकर नाटक, गीत, कविता, नृत्य और फैंसी ड्रेस शो का प्रदर्शन करते हैं। सहगान, बाँसुरी वादन का कार्यक्रम दर्शकों का मन मोह लेता है। तत्पश्चात् सफल और अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्र-छात्राओं को पुरस्कार वितरण किए जाते हैं। बच्चों को मिठाई का भी वितरण किया जाता है। इस प्रकार दिवस विद्यालय का एक प्रमुख उत्सव बन जाता है।

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अगर मैं प्रधानमंत्री होता

किसी आजाद मुल्क का नागरिक अपनी योग्यताओं का विस्तार करके अपनी आकांक्षाओं को पूरा कर सकता है, वह कोई भी पद, स्थान या अवस्था को प्राप्त कर सकता है, उसको ऐसा होने का अधिकार उसका संविधान प्रदान करता है। भारत जैसे विशाल राष्ट्र में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के पद को प्राप्त करना यों तो आकाश कुसुम तोड़ने के समान है फिर भी ‘जहाँ चाह वहाँ राह’ के अनुसार यहाँ का अत्यंत सामान्य नागरिक भी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति बन सकता है। लालबहादुर शास्त्री और ज्ञानी जैलसिंह इसके प्रमाण हैं।

यहाँ प्रतिपाद्य विषय का उल्लेख प्रस्तुत है कि ‘अगर मैं प्रधानमंत्री होता’ तो क्या करता? में यह भली-भाँति जानता हूँ कि प्रधानमंत्री का पद अत्यंत विशिष्ट और महान् उत्तरदायित्वपूर्ण पद है। इसकी गरिमा और महानता को बनाए रखने में किसी एक सामान्य और भावुक व्यक्ति के लिए संभव नहीं है फिर मैं महत्त्वाकांक्षी हूँ और अगर मैं प्रधानमंत्री बन गया तो निश्चय समूचे राष्ट्र की काया पलट कर दूंगा। मैं क्या-क्या राष्ट्रोत्थान के लिए कदम उठाऊँगा, उसे मैं प्रस्तुत करना पहला कर्तव्य मानता हूँ जिससे मैं लगातार इस पद पर बना रहूँ।

सबसे पहले शिक्षा-नीति में आमूल चूल परिवर्तन लाऊँगा। मुझे सुविज्ञात है कि हमारी कोई स्थायी शिक्षा-नीति नहीं है जिससे शिक्षा का स्तर दिनोंदिन गिरता जा रहा है, यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से हम शिक्षा के क्षेत्र में बहुत. पीछे हैं, बेरोजगारी की जो आज विभीषिका आज के शिक्षित युवकों को त्रस्त कर रही है, उनका मुख्य कारण हमारी बुनियादी शिक्षा की कमजोरी, प्राचीन काल की गुरु-शिष्य परंपरा की गुरुकुल परिपाटी की शुरुआत नये सिरे से करके धर्म और राजनीति के समन्वय से आधुनिक शिक्षा का सूत्रपात कराना चाहूँगा। राष्ट्र को बाह्य शक्तियों के आक्रमण का खतरा आज भी बना हुआ है। हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा अभी अपेक्षित रूप में नहीं है। इसके लिए अत्याधुनिक युद्ध के उपकरणों का आयात बढ़ाना होगा। मैं खुले आम न्यूक्लीयर विस्फोट का उपयोग सृजनात्मक कार्यों के लिए ही करना चाहूँगा। मैं किसी प्रकार ढुलमुल राजनीति का शिकार नहीं बनूँगा अगर कोई राष्ट्र हमारे राष्ट्र की ओर आँख उठाकर देखें तो मैं उसका मुँहतोड़ जवाब देने में संकोच नहीं करूंगा। मैं अपने वीर सैनिकों का उत्साहवर्द्धन करते हुए उनके जीवन को अत्यधिक संपन्न और खुशहाल बनाने के लिए उन्हें पूरी समुचित सुविधाएँ प्रदान कराऊँगा जिससे वे राष्ट्र की आन-मान पर न्योछावर होने में पीछे नहीं हटेंगे।

हमारे देश की खाद्य समस्या सर्वाधिक जटिल और दुखद समस्या है। कृषि प्रधान राष्ट्र होने के बावजूद यहाँ खाद्य संकट हमेशा मँडराया करता है। इसको ध्यान में रखते हुए मैं नवीनतम कृषि यंत्रों, उपकरणों और रासायनिक खादों और सिंचाई के विभिन्न साधनों के द्वारा कृषि-दशा की दयनीय स्थिति को सबल बनाऊँगा। देश की जो बंजर और बेकार भूमि है उसका पूर्ण उपयोग कृषि के लिए करवाते हुए कृषकों को एक-से-एक बढ़कर उन्नतिशील बीज उपलब्ध कराके उनकी अपेक्षित सहायता सुलभ कराऊँगा।

यदि मैं प्रधानमंत्री हँगा तो देश में फैलती हई राजनीतिक अस्थिरता पर कड़ा अंकुश लगाकर दलों के दलदल को रोक दूंगा। राष्ट्र को पतन की ओर ले जाने वाली राजनीतिक अस्थिरता के फलस्वरूप प्रतिदिन होने वाले आंदोलनों, काम-रोको और विरोध दिवस बंद को समाप्त करने के लिए पूरा प्रयास करूँगा। देश में गिरती हुई अर्थव्यवस्था के कारण मुद्रा प्रसार पर रोक लगाना अपना मैं प्रमुख कर्त्तव्य समझूगा। उत्पादन, उपभोग और विनियम की व्यवस्था को पूरी तरह से बदलकर देश को आर्थिक दृष्टि से अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व प्रदान कराऊँगा।

देश को विकलांग करने वाले तत्त्वों, जैसे-मुनाफाखोरी और भ्रष्टाचार ही नव अवगुणों की जड़ है। इसको जड़मूल से समाप्त करने के लिए अपराधी तत्त्वों को कड़ी-से-कड़ी सजा दिलाकर समस्त वातावरण को शिष्ट और स्वच्छ व्यवहारों से भरने की मेरी सबल कोशिश होगी। यहीं आज धर्म और जाति को लेकर तो साम्प्रदायिकता फैलाई जा रही है वह राष्ट्र को पराधीनता की ओर ढकेलने के ही अर्थ में हैं, इसलिए ऐसी राष्ट्र विरोधी शक्तियों को आज दंड की सजा देने के लिए मैं सबसे संसद के दोनों सदनों से अधिक-से-अधिक मतों से इस प्रस्ताव को पारित करा करके राष्ट्रपति से सिफारिश करके संविधान में परिवर्तन के बाद एक विशेष अधिनियम जारी कराऊंगा जिससे विदेशी हाथ अपना बटोर सकें।

संक्षेप में यही कहना चाहता हूँ कि यदि मैं प्रधानमंत्री हूँगा तो राष्ट्र और समाज के कल्याण और पूरे उत्थान के लिए मैं एड़ी-चोटी का प्रयास करके प्रधानमंत्रियों की परम्परा और इतिहास में अपना सबसे अधिक लोकापेक्षित नाम स्थापित करूँगा। भारत को सोने की चिड़िया बनाने वाला यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो कथनी और करनी को साकार कर देता।

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