In this article, we will share MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Chapter 1 लोकहितं मम करणीयम् Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books.
MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 1 लोकहितं मम करणीयम्
MP Board Class 8th Sanskrit Chapter 1 अभ्यासः
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो-)
(क) मनसा किं करणीयम्? (मन से क्या करना चाहिए?)
उत्तर:
स्मरणीयम्। (स्मरण करना चाहिए।)
(ख) वचसा किं करणीयम्? (वाणी से क्या करना चाहिए?)
उत्तर:
वदनीयम्। (बोलना चाहिए।)
(ग) कस्मिन् न रमणीयम्? (किसमें नहीं रहना चाहिए?)
उत्तर:
भोगभवने। (सुख देने वाले घर में।)
(घ) किंन गणनीयम्? (क्या नहीं ध्यान रखना चाहिए?)
उत्तर:
दुःखम्। (दुःख को।)
(ङ) किंन मननीयम्? (क्या नहीं सोचना चाहिए?)
उत्तर:
निजसौख्यम्। (अपने सुख को।)
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) कुत्र त्वरणीयम्? (कहाँ शीघ्रता करनी चाहिए?)
उत्तर:
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम्। (कार्य के क्षेत्र में शीघ्रता करनी चाहिए।)
(ख) कस्मिन् तरणीयम्? (किसमें तैरना चाहिए?)
उत्तर:
दुःखसागरे तरणीयम्। (दुःख रूपी सागर में तैरना चाहिए।)
(ग) कुत्र चरणीयम्? (कहाँ चढ़ना चाहिए?)
उत्तर:
कष्टपर्वते चरणीयम्। (कष्टरूपी पर्वत पर चढ़ना चाहिए।)
(घ) विपत्ति-विपिने किं करणीयम्? (संकट रूपी वन में क्या करना चाहिए?)
उत्तर:
विपत्ति-विपिने भ्रमणीयम्। (संकट रूपी वन में घूमना चाहिए।)
(ङ) मम किं करणीयम्? (मुझे क्या करना चाहिए?)
उत्तर:
मम लोकहितं करणीयम्। (मुझे संसार का कल्याण करना चाहिए।)
प्रश्न 3.
उचितं योजयत (उचित को जोड़ो-)
उत्तर:
(क) → (ii)
(ख) → (i)
(ग) → (iv)
(घ) → (v)
(ङ) → (iii)
प्रश्न 4.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं’न’ इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ (हाँ) तथा अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ (नहीं) लिखो-)
(क) कष्टपर्वते चरणीयम्।
(ख) दु:खसागरे न तरणीयम्।
(ग) न जातु दुःखं गणनीयम्।
(घ) विपत्ति-विपिने न भ्रमणीयम्।
(ङ) अहर्निशं जागरणीयम्।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) आम्
(घ) न
(ङ) आम्।
प्रश्न 5.
उचितपदेन रिक्तस्थानं पूरयत(उचित शब्द द्वारा रिक्त स्थानों को भरो-)
(क) बन्धुजना ये स्थिता ……………..। (सागरे/गह्वरे)
(ख) लोकहितं ……………। (वदनीयम्।करणीयम्)
(ग) भोगभवने …………… । (रमणीयम्/न रमणीयम्)
(घ) कार्यक्षेत्रे ……………। (तरणीयम्/त्वरणीयम्)
(ङ) कष्टपर्वते …………….। (करणीयम्/चरणीयम्)
उत्तर:
(क) गह्वरे
(ख) करणीयम्
(ग) न रमणीयम्
(घ) त्वरणीयम्
(ङ) चरणीयम्।
प्रश्न 6.
नामोल्लेखपूर्वक समासविग्रहं कुरुत(नाम का उल्लेख करते हुए समास विग्रह करो-)
(क) लोकहितम्
(ख) भोगभवने
(ग) कार्यक्षेत्रे
(घ) दुःख-सागरे
(ङ) कष्टपर्वते।
उत्तर:
प्रश्न 7.
रिक्तस्थानम् पूरयत (खाली जगह भरो-)
उत्तर:
(क) न जातु दुःखं गणनीयम्, न च निज सौख्यं मननीयम्।
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम्, लोकहितम् मम करणीयम्॥
(ख) दुःख सागरे तरणीयम्, कष्टपर्वते चरणीयम्।
विपत्ति-विपिने भ्रमणीयम्, लोकहितम्मम करणीयम्॥
प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं धातुं प्रत्ययं च पृथक्कुरुत(उदाहरण के अनुसार धातु और प्रत्यय अलग करो-)
प्रश्न 9.
“मम कर्त्तव्यम्” इति विषयमवलम्ब्य संस्कृते दशवाक्यानि लिखत।
(“मेरा कर्तव्य” इस विषय पर संस्कृत में दस वाक्य लिखो।)
उत्तर:
व्याकरण भाग में निबन्ध रचना देखें।
प्रश्न 10.
“लोकहितं मम करणीयम्” इत्यस्मिन् पाठे आगतानि अव्ययानि चित्वा लिखत।
(“लोकहितं मम करणीयम्” इस पाठ में आये हुए अव्ययों को चुनकर लिखो।)
उत्तर:
(क) सततम्
(ख) न
(ग) च
(घ) अहर्निशम्
(ङ) जातु
(च) दुःखम्
(छ) निज
(ज) तत्र।
लोकहितं मम करणीयम् हिन्दी अनुवाद
मनसा सततं स्मरणीयम्, वचसा सततं वदनीयम्।
लोकहितमम करणीयम्, लोकहितं मम करणीयम्॥१॥
अनुवाद :
मन से सदा (मुझे) स्मरण (सोचना) करना चाहिए, वाणी (मुँह) से सदा (मुझे) बोलना चाहिए (कि) संसार का कल्याण मुझे करना चाहिए, संसार का कल्याण मुझे करना चाहिए।
न भोगभवने रमणीयम, न च सखशयने शयनीयम।
अहर्निशं जागरणीयम्, लोकहितं मम करणीयम्॥२॥
अनुवाद :
(मुझे) न सुख देने वाले घर में रहना चाहिए और न सुख देने वाले बिस्तर पर सोना चाहिए। (मुझे) दिन-रात जागना चाहिए (और) संसार का कल्याण मुझे करना चाहिए।
न जातु दुःखंगणनीयम्, न च निज सौख्यम् मननीयम्।
कार्यक्षेत्रे त्वरणीयम्, लोकहितं मम करणीयम्॥३॥
अनुवाद :
(मुझे) कभी भी दुःख का ध्यान नहीं रखना चाहिए और न अपने सुख को सोचना चाहिए। (अपने) कार्य के क्षेत्र में शीघ्रता करनी चाहिए, (और) संसार का कल्याण मुझे करना चाहिए।
दुःखसागरे तरणीयम्, कष्टपर्वते चरणीयम्।
विपत्ति-विपिने भ्रमणीयम्, लोकहितंमम करणीयम्॥४॥
अनुवाद :
(मुझे) दुःख रूपी सागर में तैरना चाहिए, कष्ट रूपी पर्वत पर चढ़ना चाहिए, संकट रूपी वन में घूमना चाहिए (और) संसार का कल्याण मुझे करना चाहिए।
गहनारण्ये घनान्धकारे, बन्धुजना ये स्थिता गह्वरे।
तंत्र मया सञ्चरणीयम् लोकहितं मम करणीयम्॥५॥
अनुवाद :
जो भाई-बन्धु घने अन्धकार में, गहन वन में गुफाओं में रहते हैं, वहाँ मुझे जाना चाहिए (और) संसार का कल्याण मुझे करना चाहिए।
लोकहितं मम करणीयम् शब्दार्याः
करणीयम् = करना चाहिए। त्वरणीयम् = शीघ्रता करनी चाहिए। दुःखसागरे = दुःख रूपी सागर में। कष्टपर्वते = कष्ट रूपी पर्वत पर। गहनारण्ये = गहन वन में। गह्वरे = गुफा में।