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MP Board Class 8th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 6 स्वामी विवेकानन्दः
MP Board Class 8th Sanskrit Chapter 6 अभ्यासः
Class 8 Sanskrit Chapter 6 Mp Board प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत(एक शब्द में उत्तर लिखो-)
(क) स्वामी विवेकानन्दस्य बाल्यकालस्य नाम किम् आसीत्? (स्वामी विवेकानन्द के बचपन का नाम क्या था?)
उत्तर:
नरेन्द्रनाथः। (नरेन्द्रनाथ)
(ख) स्वामी विवेकानन्दस्य मातुः नाम किम् आसीत्? (स्वामी विवेकानन्द की माता का नाम क्या था?)
उत्तर:
भुवनेश्वरी देवी। (भुवनेश्वरी देवी)
(ग) नरेन्द्रनाथस्य पितुः नाम किम् आसीत्? (नरेन्द्रनाथ के पिता का नाम क्या था?)
उत्तर:
विश्वनाथदत्तः। (विश्वनाथदत्त)
(घ) नरेन्द्रनाथस्य जन्म कस्मिन् नगरे अभवत्? (नरेन्द्रनाथ का जन्म किस नगर में हुआ?)
उत्तर:
कोलकातानगरे। (कोलकाता नगर में)
(ङ) नरेन्द्रनाथस्य गुरोः नाम किम् अस्ति? (नरेन्द्रनाथ के गुरु का नाम क्या है?)
उत्तर:
रामकृष्णपरमहंसः। (रामकृष्णपरमहंस)
MP Board Class 8 Sanskrit Chapter 6 प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत(एक वाक्य में उत्तर लिखो-)
(क) नरेन्द्रनाथस्य जन्म कदा अभवत्? (नरेन्द्रनाथ का जन्म कब हुआ?)
उत्तर:
नरेन्द्रनाथस्य जन्म जनवरी मासस्य द्वादशे दिनांके १८६३ खिस्ताब्दे (१२ जनरवरी, १८६३)अभवत्। (नरेन्द्रनाथ का जन्म जनवरी महीने की बारह तारीख को 1863 ईस्वी (12 जनवरी, 1863) में हुआ।)
(ख) शिकागोनगरे विश्वधर्मसम्मेलने भारतस्य प्रतिनिधिः कः अभवत्? (शिकागो नगर में विश्वधर्म सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि कौन हुए?)
उत्तर:
शिकागोनगरे विश्वधर्मसम्मेलने भारतस्य प्रतिनिधिः स्वामी विवेकानन्दः अभवत्। (शिकागो नगर में विश्वधर्म सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि स्वामी विवेकानन्द हुए।)
(ग) स्वामी विवेकानन्दः कदा ब्रह्मलीनोऽभवत्? (स्वामी विवेकानन्द कब ब्रह्मलीन हुए?)
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्दः जुलाई मासस्य चतुर्थे दिनांके १८०२ खिस्ताब्दे (४ जुलाई, १९०२) ब्रह्मलीनोऽभवत्। (स्वामी विवेकानन्द जुलाई महीने की चार तारीख 1902 ईस्वी (4 जुलाई, 1902) में ब्रह्मलीन हुए।)
(घ) रवीन्द्रनाथटैगोर किम् कथनम् अस्ति? (रवीन्द्रनाथ टैगोर का क्या कहना है?)
उत्तर:
रवीन्द्रनाथटैगोरस्य कथनम् अस्ति यत् कोऽपि भारतीयसंस्कृतिं ज्ञातुमिच्छति तर्हि प्रथमः तेन स्वामी विवेकानन्दविषये पठितव्यः। (रवीन्द्रनाथ टैगोर का कहना है कि कोई भी भारतीय संस्कृति को जानना चाहता है तो पहले उसे स्वामी विवेकानन्द के विषय में पढ़ना चाहिए।)
(ङ) यूनाम् प्रेरकः पथप्रदर्शकश्च कः? (युवाओं के प्रेरक और पथ-प्रदर्शक कौन हैं?)
उत्तर:
यूनाम् प्रेरकः पथप्रदर्शकश्च स्वामी विवेकानन्दः। (युवाओं के प्रेरक और पथ-प्रदर्शक स्वामी विवेकानन्द हैं।)
Class 8th Sanskrit Chapter 6 Mp Board प्रश्न 3.
उचितं योजयत(उचित को जोड़ो-)
उत्तर:
(क) → (ii)
(ख) → (v)
(ग) → (i)
(घ) → (iii)
(ङ) → (iv)
Sanskrit Chapter 6 Class 8 Mp Board प्रश्न 4.
शुद्धवाक्यानां समक्षम आम्’ अशुद्ध वाक्यानां समक्षं’न’ इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ (हाँ) तथा अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ (नहीं) लिखो-)
(क) पौरुषं कुरु।
(ख) आत्मभावस्य विकासः एव कर्म।
(ग) जीवनस्यार्थः उन्नतिः नास्ति।
(घ) स्वार्थभावः एव मृत्युः।
(ङ) परोपकारः अपवित्रम् कार्यमस्ति।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) आम्
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) न।
MP Board Class 8th Sanskrit Chapter 6 प्रश्न 5.
उचितपदेन रिक्तस्थानं पूरयत(उचित शब्द द्वारा रिक्त स्थान भरो-)
(क) प्रतिग्रहणस्य कामना …………..। (कुरु/मा कुरु)
(ख) चारित्र्यबलं…………..। (वारयत/धारयत)
(ग) नरेन्द्रनाथस्य पिता ………….. आसीत्। (भाषक:/अभिभाषक:)
(घ) अनात्मभावस्य विकासः एव …………. । (कर्म/अकर्म)
(ङ) स्वामीविवेकानन्दस्य जन्म ………….. अभवत्। (कोलकातानगरे/मुम्बईनगरे)
उत्तर:
(क) मा कुरु
(ख) धारयत
(ग) अभिभाषकः
(घ) अकर्म
(ङ) कोलकातानगरे।
Class 8 Sanskrit Chapter 6 प्रश्न 6.
नामोल्लेखपूर्वकं सन्धि विच्छेदं कुरुत(नाम का उल्लेख करते हुए सन्धि-विच्छेद करो-)
(क) दीक्षानन्तरम्
(ख) प्रसिद्धोऽभवत्
(ग) एवाकर्म
(घ) तस्यावधारणा
(ङ) अनेनैव
(च) कार्यमस्ति।
उत्तर:
Sanskrit Class 8 Chapter 6 Mp Board प्रश्न 7.
नामोल्लेखपूर्वकं समासविग्रहं कुरुत(नाम का उल्लेख करते हुए समास-विग्रह करो-)
(क) लोकसेवकः
(ख) परोपकारः
(ग) परिव्राजकदीक्षाम्
(घ) जीवनगतिः
(ङ) ईश्वर प्राप्तिः।
उत्तर:
Class 8 Mp Board Sanskrit Chapter 6 प्रश्न 8.
मूलशब्दं, लिङ्ग, विभक्तिं, वचनं च लिखत(मूल शब्द, लिंग, विभक्ति और वचन लिखो-)
(क) ज्ञानम्
(ख) कार्यम्
(ग) अनेन
(घ) ईश्वरः
(ङ) दीनः
(च) क्रीडासु
(छ) एतेषाम्
(ज) सः।
उत्तर:
MP Board Sanskrit Class 8 Chapter 6 प्रश्न 9.
अव्ययानां वाक्य प्रयोगं कुरुत(अव्ययों का वाक्यों में प्रयोग करो-)
(क) च
(ख) एवम्
(ग) मा
(घ) तदा
(ङ) यदि।
उत्तर:
MP Board Class 8 Sanskrit Solutions Chapter 6 प्रश्न 10.
‘स्वामी विवेकानन्दः’ इति विषयमवलम्ब्य संस्कृते दशवाक्यानि लिखत
(‘स्वामी विवेकानन्द’ इस विषय के आधार पर संस्कृति में दस वाक्य लिखो-)
उत्तर:
- स्वामी विवेकानन्दस्य बाल्यकालस्य नाम ‘नरेन्द्रनाथः’ आसीत्।
- स्वामी विवेकानन्दस्य जन्म कोलकातानगरे अभवत्।
- स्वामी विवेकानन्दस्य पिता ‘विश्वनाथदत्तः’ आसीत्।
- स्वामी विवेकानन्दस्य माता ‘भुवनेश्वरी देवी’ आसीत्।
- स्वामी विवेकानन्दस्य गुरुः ‘रामकृष्णपरमहंसः’ आसीत्।
- स्वामी विवेकानन्दस्य शिष्या ‘भगिनी निवेदिता’ आसीत्।
- स्वामी विवेकानन्दः यूनां कृते पथप्रदर्शकः आसीत्।
- स्वामी विवेकानन्दः संस्कृतानुरागी आसीत्।
- नरेन्द्रनाथः ‘स्वामी विवेकानन्दः’ इति नाम्ना प्रसिद्धोऽभवत्।
- स्वामी विवेकानन्दस्य बहवः शिष्याः अभवन्।
स्वामी विवेकानन्दः हिन्दी अनुवाद
‘बहुजनहिताय, बहुजन सुखाय’ इत्यमका रोलानस्थ स्वामी विवेकानन्दस्य बाल्यकालस्य नार नरेन्द्रनाथ:’ आसीत्। तस्य जन्म जनवरीमासस्य द्वादशे दिनांक १८६३ ख्रिस्ताब्दे (१२ जनवरी, १८६३) कोलकातानगरे अभवत्। तस्य मातुः नाम ‘भुवनेश्वरी देवी’ आसीत्। तस्य पिता विश्वनाथदत्तः लब्धप्रतिष्ठः, अभिभाषकः आसीत्। नरेन्द्रनाथः बाल्यकालादेव संस्कृतानुरागी, कुशाग्रबुद्धि, मल्लविद्यादिसु क्रीडासु पारङ्गतः धार्मिकश्चासीत्।
अनुवाद :
‘बहुत लोगों के हित के लिए, बहुत लोगों के सुख के लिए’ इस कार्य में लगे हुए स्वामी विवेकानन्द का बचपन का नाम ‘नरेन्द्रनाथ’ था। उनका जन्म जनवरी महीने की बारह तारीख को 1863 ईस्वी में (12 जनवरी, 1863) कोलकाता (कलकत्ता) नगर में हुआ। उनकी माता का नाम ‘भुवनेश्वरी देवी’ था। उनके पिता विश्वनाथदत्त ख्याति प्राप्त वकील थे। नरेन्द्रनाथ बचपन से ही संस्कृत के प्रेमी, तीव्र, बुद्धि वाले, मल्ल (कुश्ती) विद्या आदि खेलों में पारंगत और धार्मिक थे।
तस्मिन् काले रामकृष्ण परमहंसः अद्वितीयाध्यात्मिक-ज्ञानपुञ्जस्य स्रोतः आसीत्। तस्य प्रभावेण प्रभावितः नरेन्द्रनाथः तेनैव परिव्राजकदीक्षा प्राप्नोत्। दीक्षानन्तरं सः स्वामी विवेकानन्दः इति नाम्ना प्रसिद्धोऽभवत्। ततः सः स्वकीयज्ञानदीप्त्या सदुपेदेशः जनान् अध्यात्मपरायणमकरोत्। तस्वावधारणा आसीत् यत् प्रम्णा, सत्येन, पराक्रमेण च कार्याणि सिद्धयन्ति। तत्कुरु पौरुषम्। आत्मभावस्य विकासः एव कर्म। अनात्मभावस्य विकासः एवाकर्म। दौर्बल्येन किमपि न भवति। अतः सबलो भव।
अनुवाद :
उस समय रामकृष्ण परमहंस अद्वितीय आध्यात्मिक ज्ञान पुंज के स्रोत थे। उनके प्रभाव से प्रभावित नरेन्द्रनाथ ने उनसे ही संन्यास की दीक्षा प्राप्त की। दीक्षा के बाद वह ‘स्वामी विवेकानन्द’ के नाम से प्रसिद्ध हुए। उसके बाद उन्होंने अपनी ज्ञान की ज्योति द्वारा सद् उपदेशों से लोगों को अध्यात्म की ओर अभिमुख किया। उनकी अवधारणा (निश्चय) थी कि प्रेम, सत्य और पराक्रम से कार्य पूरे होते हैं। उसका प्रयत्न करो। आत्म भाव का विकास ही कर्म है। अनात्म भाव का विकास ही अकर्म है। दुर्बलता से कुछ भी नहीं होता। इसलिए बलवान होओ।
जीवनस्यार्थः उन्नतिरस्ति। उन्नतेः तात्पर्य हृदयस्यौदार्यमास्ति। परोपकारः एव जीवनगतिः। स्वार्थभावः एव मृत्युः। प्रेमभावः एव जीवनम्। द्वेषभाव एवं मृत्युः। प्रेमभावः एव भक्तिः ज्ञानं मुक्तिश्चास्ति। प्रेम बिना नेदं यदिदमुपासते।
अनुवाद :
जीवन का अर्थ उन्नति है। उन्नति का तात्पर्य हृदय का औदार्य (उदारता का गुण) है। परोपकार ही जीवन की गति (चाल) है। स्वार्थभाव ही मृत्यु है। प्रेमभाव ही जीवन है। द्वेषभाव ही मृत्यु है। प्रेमभाव ही भक्ति, ज्ञान और मुक्ति है। प्रेम के बिना वह नहीं है जिसकी उपासना करते हैं।
सर्वथा दरिद्रनारायणो सेवितव्यः। यतोहि बुभुक्षितः, दीनः, उपेक्षितः, विकलाङ्गजनः, दुर्बलः एव साक्षादीश्वरः। अतः एतेषामुपासना एव ईश्वरस्याराधना अस्ति।
अनुवाद :
हमेशा दरिद्रनारायण (गरीब) की सेवा करनी चाहिए। क्योंकि भूखा, दीन, उपेक्षित, विकलांग, दुर्बल व्यक्ति ही साक्षात् ईश्वर हैं। इसलिए ऐसों की उपासना ही ईश्वर की आराधना है।
चारित्र्यबलं धारयत। अनेनैव सर्वत्र विजयो भविष्यति। दाता भव। प्रतिग्रहणस्य कामनां मा कुरु। वसन्तवल्लोकहितं चरत। परोपकारः परमपवित्रं कार्यमस्ति। परोपकारेण चित्तं शुद्धयति। अनेनैव ईश्वरप्राप्तिः सम्भवा।
अनुवाद :
चरित्र की शक्ति को धारण करो। इससे ही सब। जगह विजय होगी। दाता होओ। प्रतिग्रहण (दान के बदले ग्रहण) की कामना मत करो। बसन्त के समान संसार का कल्याण करो। परोपकार परम पवित्र कार्य है। परोपकार से मन शुद्ध होता है। इससे ही ईश्वर की प्राप्ति सम्भव है।
सः वेदान्तप्रचाराय स्वीकायाखिलं जीवनं समर्पयामास। तेन हिन्दुधर्मः संस्कृतिश्च प्रसारिते। सः न केवलं परिव्राजकः अपतुि परोपकारी, दाता, लोकसेवकः महान् देशभक्तश्चासीत्। शिकागोनगरे विश्वधर्मसम्मेलने सः भारतस्य प्रतिनिधिः अभवत्। देशविदेशेषु तस्य बहवः शिष्याः अभवन्। आङ्ग्लदेशीय “कुमारी नोबल” या अनन्तर ‘भगिनी निवेदिता’ इति नाम्ना प्रसिद्धा, तस्य प्रिया शिष्या अभवत्। सः यूनां कृते विशिष्टप्रेरकः पथप्रदर्शकश्चासीत्। भारतीयस्वतन्त्रतासंग्रामेऽपि तस्य ऊर्जस्वलानि भाषणानि स्वाधीनतासैनिकानां कृते प्रेरणास्पदानि। ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’ इत्युपनिषदः ध्येयवाक्यं सः जीवनेऽधारयत्।
अनुवाद :
उन्होंने वेदान्त प्रचार के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। उनके द्वारा हिन्दू धर्म और संस्कृति का प्रसार किया गया। वह न केवल संन्यासी, अपितु परोपकारी, दाता, लोक सेवक और महान देशभक्त थे। शिकागो नगर में विश्वधर्म सम्मेलन में वह भारत के प्रतिनिधि हुए। देश-विदेशों में उनके बहुत से शिष्य हुए। इंग्लैण्ड देश की “कुमारी नोबल” जो बाद में बहन निवेदिता’ के नाम से प्रसिद्ध हुई, उनकी प्रिय शिष्या हुई। वह युवाओं के लिये विशेष प्रेरक और मार्ग-प्रदर्शक थे। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में भी उनके तेजस्वी भाषण स्वाधीनता के सैनिकों के लिए प्रेरणादायक थे। ‘उठो, जागो और श्रेष्ठ (मनुष्यों) को पाकर (उनसे) ज्ञान प्राप्त करो।’ इस उपनिषद् के ध्येय वाक्य को उन्होंने जीवन में धारण किया।
अहर्निशं ब्रह्मकर्मसाधनां साध्यमानः एव जुलाई मासस्य चतुर्थे दिनांके १९०२ ख्रिस्ताब्दे(४ जुलाई,१९०२) सः ब्रह्मलीनो जातः। सः न केवलं भारते अपितु, विदेशेष्वपि प्रसिद्धः। तेन भारतस्य प्राचीनगौरवं विदेशेषु स्थापितम्। रवीन्द्रनाथटैगोरः कथयति यत् यदि कोऽपि भारतीयसंस्कृतिं ज्ञातुमिच्छति तहिं प्रथमः तेन स्वामी विवेकानन्दविषये पठितव्यः।
अनुवाद :
दिन-रात ब्रह्म कर्म साधना को करते हुए जुलाई महीने की चार तारीख 1902 ईसवी (4 जुलाई, 1902) में वह ब्रह्म में लीन हो गये। वह न केवल भारत में अपितु विदेशों में भी प्रसिद्ध थे। उनके द्वारा भारत का प्राचीन गौरव विदेशों में स्थापित किया गया। रवीन्द्रनाथ टैगोर कहते हैं कि यदि कोई भी भारतीय संस्कृति को जानना चाहता है तो पहले उसे स्वामी विवेकानन्द के विषय में पढ़ना चाहिए।
स्वामी विवेकानन्दः शब्दार्थाः
लब्धप्रतिष्ठः = ख्याति प्राप्त। अभिभाषक = वकील। कुशाग्रबुद्धिः = तीव्र बुद्धि। मल्लविद्यादिषु = कुश्ती आदि विद्याओं में। परिव्राजकदीक्षाम् = संन्यास की दीक्षा को। स्वकीयज्ञानदीप्त्या=अपनेज्ञान के प्रकाशसे।अध्यात्मपरायणम् = अध्यात्म की ओर अभिमुख। प्राप्य वशन्निबोधत = श्रेयस्कर लक्ष्य को प्राप्त कर शान्त हो। बुभुक्षिताः = भूखे। औदार्यम् = उदारता का गुण। प्रतिग्रहणस्य = दान के बदले ग्रहण करने की/का। ऊर्जस्वलानि = तेजस्वी। ब्रह्मलीनः = ब्रह्म में लीन । वसन्तवल्लोकहितं = वसन्त के समान लोक कल्याणकारी।
स्वामी विवेकानन्दः व्याकरणम्
(क) धार्मिकश्चासीत् = धार्मिकः + च + आसीत्।
(ख) अध्यात्मपरायणमकरोत् = अध्यात्मपरायणम् + अकरोत्।
(ग) हृदयस्यौदार्यमस्ति = हृदयस्य + औदार्यम् + अस्ति।
(घ) मुक्तिश्चास्ति = मुक्तिः + च + अस्ति।
(ङ) यदिदमुपासते = यत् + इदम् + उपासते।
(च) वसन्तवल्लोकहितम् = वसन्तवत् + लोकहितम्।