MP Board Class 8th Social Science Solutions Chapter 7 परिवर्तनकारी बाह्य शक्तिया

MP Board Class 8th Social Science Solutions Chapter 7 परिवर्तनकारी बाह्य शक्तियाँ

MP Board Class 8th Social Science Chapter 7 अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के सही विकल्प चुनकर लिखिए –
(1) किस प्रक्रिया द्वारा चट्टानों के टूटे पदार्थ अपने मूल स्थान पर संग्रहीत होते हैं ?
(क) अपरदन
(ख) परिवहन
(ग) अपक्षय
(घ) निक्षेपण।
उत्तर:
(ग) अपक्षय

(2) निम्न में से किस क्षेत्र में पवन अपने कार्य सम्पन्न करती है ?
(क) मरुस्थलीय क्षेत्र में
(ख) पर्वतीय क्षेत्र में
(ग) समुद्रतटीय क्षेत्र में
(घ) मैदानी क्षेत्र में।
उत्तर:
(क) मरुस्थलीय क्षेत्र में

(3) मृदा को उपजाऊ बनाने में कौन-सा तत्व महत्व पूर्ण है ?
(क) मूल चट्टानी पदार्थ
(ख) ह्यूमस
(ग) जलवायु
(घ) मनुष्य
उत्तर:
(ख) ह्यूमस

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
(1) जब कोई चट्टान बिना किसी रासायनिक परिवर्तन के टुकड़ों में टूट जाती है, उसे ……….. अपक्षय कहते
(2) असमतल धरातल के समतल होने की क्रिया को ………….. कहते हैं।
(3) हिमानी जो कंकड़, पत्थर, रेत आदि जमा करती है उसे …………… कहते हैं।
(4) नदी के निक्षेपण से ……………. झील का निर्माण होता
(5) भारत में उड़ीसा (ओडिशा) के तट पर लैगून झील का उत्तम उदाहरण ………… नामक झील है।
उत्तर:

  1. भौतिक
  2. तल सन्तुलन
  3. हिमोढ़
  4. गोखुर
  5. चिल्का

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MP Board Class 8th Social Science Chapter 7 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 3.
(1) नदी के तीन कार्य कौन-कौनसे हैं ?
उत्तर:
अपरदन
परिवहन और
निक्षेपण नदी के तीन कार्य हैं।

(2) नदी की तीन अवस्थाएँ कौन-कौनसी हैं ?
उत्तर:
नदी की तीन अवस्थाएँ-युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था होती हैं।

(3) ज्वारनदमुख (एश्चुअरी) किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जहाँ नदी के अधिकांश मुहाने का भू-भाग नीचा होता है, ऐसी स्थलाकृति को ज्वारनदमुख या एश्चुअरी कहते हैं।

(4) गीजर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
भूगर्भिक गर्मी से जिन गर्म जलस्रोतों का जल बड़े वेग से गुब्बारे की भाँति बाहर फूट पड़ता है उनको ‘गीजर’ कहते हैं।

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(5) यारदांग कौन बनाता है ?
उत्तर:
पवन अपरदन से यारदांग की आकृति बनती है।

(6) लैगून किसे कहते हैं ?
उत्तर:
खारे जल की भरी हुई समुद्रतटीय झील को लैगून कहते हैं।

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MP Board Class 8th Social Science Chapter 7 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 4.
(1) मृदा निर्माण के प्रमुख कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
चट्टानों के अपक्षय और अपरदन क्रिया द्वारा मृदा का निर्माण होता है। मृदा निर्माण में सहायक कारकों में मुख्य हैं-मूल चट्टानें, धरातलीय बनावट, जलवायु, समय एवं वनस्पति व जीव-जन्तु।

(2) अपक्षय किसे कहते हैं ? अपक्षय के विभिन्न प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
अपक्षय एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें खुली चट्टानों का विघटन और ‘अपघटन’ अपने मूल स्थान पर ही होता है। अपक्षय तीन प्रकार से होता है

  • भौतिक अपक्षय
  • रासायनिक अपक्षय और
  • जैविक अपक्षय।

(3) निम्नीकरण और अधिवृद्धि में अन्तर बताइए।
उत्तर:
अपरदन की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों को घिसकर, खुरचकर या काट कर उनको अपने मूल स्थान से हटा दिया जाता है, इसमें ऊँचे स्थान धीरे-धीरे नीचे होते जाते हैं। इस प्रक्रिया को निम्नीकरण कहते हैं और निचले क्षेत्रों या गड्ढों में अपरदित पदार्थों के जमा होते रहने को निक्षेपण कहते हैं। अपरदित पदार्थ गड्ढों में जैसे-जैसे भरता जाता है। उसकी ऊँचाई बढ़ती जाती है। इस प्रक्रिया को अधिवृद्धि कहते हैं।

(4) वी (V) आकार की घाटी का निर्माण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
नर्दी के अपरदन कार्य का लक्ष्य अपने आधार तल तक पहुँचना होता है। इस झील या समुद्र के तल को जिसमें वह गिरती है नदी अपरदन का आधार तल’ कहते हैं। नदी अपन घाटी को गहरा और किनारों को चौड़ा करती है, जिससे वी (V) आकार की घाटी का निर्माण होता है।

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(5) हिमोढ़ किसे कहते हैं ? उनके प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जब हिमानी पिघलती है अथवा पिघलकर पीछे हटती है, तब वह अपने साथ लाये पदार्थों को घाटी के विभिन्न

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भागों में जमा कर देती है। इस प्रकार के निक्षेपित पदार्थों को “हिमोढ़’ कहते हैं। घाटी में स्थिति के आधार पर हिमोढ़ चार प्रकार के होते हैं –

  • अन्तस्थ, हिमोढ़
  • पाश्विक हिमोढ़
  • मध्यस्थ हिमोढ़ तथा
  • तलस्थ हिमोढ़

(6) भूमिगत जल स्तर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
धरातल पर बरसने वाले वर्षा जल का कुछ जल – रिसकर भूमि में चला जाता है। भूमिगत जल का वह तल जिसके नीचे चट्टानें जल से पूरी तरह भरी होती हैं वह भूमिगत ‘जल स्तर’ कहलाता है।

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MP Board Class 8th Social Science Chapter 7 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 5.
(1) तल सन्तुलन की प्रक्रिया को समझाइए।
उत्तर:
परिवर्तनकारी बाह्य शक्तियाँ धरातल को समतल करने के लिए निरन्तर क्रियाशील रहते हुए अपरदन, परिवहन E और निक्षेपण का कार्य करती हैं। इसे ही ‘तल सन्तुलन’ कहते हैं। (नदियाँ, हिमानियाँ, पवन, भूमिगत जल और समुद्री लहरें तल सन्तुलन के प्रमुख कारक हैं।) तल सन्तुलन के कार्यों को दो भागों में बाँट सकते हैं –

  • निम्नीकरण, और
  • उच्चयन (अधिवृद्धिकरण)

अपरदन की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों को घिसकर, खुरचकर या काटकर उनको अपने मूल स्थान से हटा दिया जाता है, इससे ऊँचे स्थान धीरे-धीरे नीचे होते हैं। इस प्रक्रिया को निम्नीकरण कहते हैं। निचले क्षेत्रों या गड्ढों में अपरदित पदार्थों के जमा होते रहने को निक्षेपण कहते हैं। अपरदित पदार्थ गड्ढों में जैसे-जैसे भरता जाता है उसकी ऊँचाई बढ़ती जाती है। इस प्रक्रिया को उच्चयन (अधिवृद्धीकरण) कहते हैं।

(2) मृदा अपरदन किसे कहते हैं ? मृदा अपरदन के कारण तथा संरक्षण के तीन उपाय लिखिए।
उत्तर:
मृदा अपरदन – प्राकृतिक शक्तियों या मानवीय क्रियाओं द्वारा मृदा के आवरण को हटाने या नष्ट करने को मृदा अपरदन कहते हैं।

मृदा अपरदन के कारण:
पशुओं द्वारा अत्यधिक चराई एवं मानव द्वारा वनों की अन्धाधुन्ध कटाई के कारण भूमि से वनस्पति का आवरण हट जाता है और तेज वर्षा व तेज पवन द्वारा मृदा की ऊपरी परत के मृदा कण (जो कि मानव व जीव-जन्तुओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं) बह एवं उड़ जाते हैं। इसके अतिरिक्त अत्यधिक उर्वरकों व कीटनाशकों का प्रयोग एवं अनियन्त्रित सिंचाई के कारण भी मृदा का अपरदन होता है। अतः मृदा अपरदन के मुख्य कारण मानव, जीव-जन्तु एवं प्राकृतिक शक्तियाँ हैं।

मृदा संरक्षण:
मृदा संरक्षण के तीन प्रमुख उपाय इस प्रकार हैं –

  • वनों का संरक्षण-वृक्षों की जड़ें मृदा पदार्थों को बाँधे रखती हैं। वृक्षों की सड़ी-गली पत्तियाँ मृदा को उपजाऊ बनाती हैं। इसलिए वनों का संरक्षण आवश्यक है।
  • वृक्षारोपण – नदी घाटियों, बंजर भूमियों तथा पर्वतीय ढालों पर वृक्ष लगाना मृदा संरक्षण का महत्वपूर्ण उपाय है। इसके द्वारा मरुस्थलों के विस्तार को रोका जा सकता है।
  • भूमि उद्धार – जल द्वारा बनी उबड़-खाबड़ भूमियों को समतल बनाकर मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

(3) पवन अपरदन किस प्रकार होता है ? पवन अपरदन से निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पवन अपरदन का कार्य अपवाहन, सन्निघर्षण एवं अपघर्षण के रूप में सम्पन्न होता है। अपवाहन क्रिया में पवन चट्टान कणों को उड़ा ले जाता है। सन्निघर्षण क्रिया में पवन में उड़ते कण परस्पर टकराते हैं एवं विखण्डित हो जाते हैं। अपघर्षण क्रिया में रेत कणों युक्त पवन चट्टानों को रगड़रगड़ कर घिसता है। पवन अपरदन के फलस्वरूप छत्रक, बालू के टीले, यारदांग आदि आकृतियाँ बनती हैं।

छत्रक – रेत कणों से मुक्त पवन चट्टानों से टकराता है और अपघर्षण क्रिया के फलस्वरूप चट्टान के मध्य एवं नीचे का भाग घिस जाता है और चट्टान की आकृति एक छत्रक के समान हो जाती है। जहाँ पवन चारों दिशाओं में बहती है वहाँ इनका निर्माण होता है।

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बालू के टीले-बालू मिश्रित पवन के मार्ग में अवरोध आने पर बालू के ढेर टीलों के रूप में निर्मित होते हैं। ये अर्द्ध चन्द्राकार टीले होते हैं। इनका निर्माण एक ही दिशा में चलने वाली पवन से होता है।

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(4) हिमानी किसे कहते हैं ? हिमानी के प्रकार उदाहरण सहित लिखिए।
उत्तर:
खिसकती हुई हिम राशि को ‘हिमानी’ या हिमनदी’ कहते हैं। उत्पत्ति क्षेत्रों तथा स्थिति के आधार पर हिमानियाँ दो वर्गों में विभाजित की जा सकती हैं –

  • महाद्वीपीय हिमानियाँ – हिमाच्छादित बड़े क्षेत्रों को महाद्वीपीय हिमानी कहते हैं। ऐसी हिमानियाँ ग्रीनलैण्ड और अन्टार्कटिका में पाई जाती हैं।
  • घाटी हिमानी – ऊँचे पर्वतीय भागों में हिमराशि किसी घाटी में खिकसने लगती है तो ऐसी हिमानी को ‘घाटी हिमानी’ या ‘पर्वतीय
  • हिमानी’ कहते हैं। भारत की सबसे लम्बी हिमानी कराकोरम पर्वत श्रृंखला में सियाचीन हिमानी (ग्लेशियर) है।

(5) भूमिगत जल के कार्यों का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमिगत जल के अपरदन परिवहन एवं निक्षेपण प्रमुख कार्य हैं। भूमिगत जल अपना कार्य विशेष रूप से चूना

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प्रदेश में पूरा करता है। चूने का पत्थर एक ऐसी चट्टान है जो वर्षा जल में आसानी से घुल जाती है क्योंकि उसमें कार्बन डाइऑक्साइड मिली हुई होती है। जिन चट्टानों में यह धरातलीय जल भूमि में प्रवेश कर बहता है वहाँ चट्टानों में अपरदन कार्य पूरा होता है।

धरातल के ऊपर निर्मित आकृतियों में घोल रन्ध्र और विलय रन्ध्र प्रमुख हैं। धरातल के नीचे बनने वाली स्थलाकृतियाँ कन्दराएँ, स्टेलैक्टाइट (आकाशीय स्तम्भ) और स्टेलैग्माइट (पातालीय स्तम्भ) प्रमुख हैं। ये आकृतियाँ चूना मिश्रित जल के निरन्तर टपकने से बनती हैं। जल अंश के बह जाने पर चूना जमता जाता है और एक स्तम्भ का आकार ले लेता है।

(6) समुद्र की लहरें किस तरह अपरदन और निक्षेपण का कार्य करती हैं ? –
उत्तर:
समुद्र का जल कभी शान्त नहीं रहता। वह लहरों। धाराओं और ज्वारभाटा के रूप में सदैव गतिशील रहता है। लहरें अपरदन, परिवहन और निक्षेपण का कार्य करती हैं।

  • अपरदन – समुद्र की शक्तिशाली लहरें निरन्तर तटीय भागों पर स्थित कठोर चट्टानों पर प्रहार करती रहती हैं। अपरदन के इस कार्य में चट्टानों के छोटे-छोटे नुकीले टुकड़े तथा बालू के कण लहरों के साथ औजार का कार्य करते हैं। इनके कारण चट्टानों के अपरदन से समुद्री भृगु, समुद्री गुफाएँ आदि का निर्माण होता है।
  • निक्षेपण – समुद्र की लहरें अपेक्षाकृत सपाट और समतल तटों पर निक्षेपण का कार्य सम्पन्न करती हैं इसके परिणामस्वरूप तटों पर पुलिन (बीच, रोधिका व लैगून आदि) स्थलाकृतियों की रचना होती है।

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