MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 व्याख्यान (भाषण, स्वामी विवेकानंद)
व्याख्यान अभ्यास
बोध प्रश्न
व्याख्यान अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत में जन्म लेने पर विवेकानन्द जी को क्यों अभिमान है?
उत्तर:
भारत में जन्म लेने पर विवेकानन्द जी को इसलिए अभिमान है क्योंकि इस देश में सभी धर्मों एवं देशों को सम्मान दिया जाता है।
प्रश्न 2.
स्वामीजी ने शिकागो विश्व धर्म सम्मेलन में व्याख्यान के प्रारम्भ में किन शब्दों से श्रोताओं को सम्बोधित किया?
उत्तर:
अमेरिकावासी बहनों तथा भाइयो।
प्रश्न 3.
शुद्धता, पवित्रता और दयाशीलता के विषय में स्वामीजी ने क्या कहा है?
उत्तर:
शुद्धता, पवित्रता और दयाशीलता के विषय में स्वामी जी ने कहा है कि ये बातें किसी सम्प्रदाय विशेष की एकाधिकार प्राप्त सम्पत्ति नहीं है।
प्रश्न 4.
पृथ्वी हिंसा से क्यों भरती जा रही है? कोई दो कारण दीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी हिंसा से इसलिए भरती जा रही है कि बहुत समय तक इस पृथ्वी पर साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और धर्मान्धता ने अपना शासन जमा लिया है। इसके दो प्रमुख कारण हैं-साम्प्रदायिकता और धर्मान्धता।
प्रश्न 5.
स्वामी जी के अनुसार भारत के लोग दूसरे धर्मों को किस रूप में स्वीकार करते हैं।
उत्तर:
स्वामी जी के अनुसार भारत के लोग दूसरे धर्मों को उसी रूप में स्वीकार करते हैं जिस प्रकार समुद्र विभिन्न दिशाओं से आने वाली नदियों को अपने में समा लेता है।
प्रश्न 6.
स्वामी जी के अनुसार शीघ्र ही प्रत्येक धर्म की पताका पर क्या लिखा मिलेगा?
उत्तर:
स्वामी जी के अनुसार शीघ्र ही प्रत्येक धर्म की पताका परं लिखा मिलेगा-“सहायता करो, लड़ो मत।”
व्याख्यान लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विभिन्न धर्मों के सम्बन्ध में स्वामी जी ने क्या विचार दिए हैं? लिखिए।
उत्तर:
विभिन्न धर्मों के सम्बन्ध में स्वामी जी ने कहा है कि जैसे विभिन्न नदियाँ भिन्न-भिन्न स्रोतों से निकलकर समुद्र में मिल जाती हैं उसी प्रकार सभी धर्म परमात्मा में आकर मिल जाते हैं, एक हो जाते हैं।
प्रश्न 2.
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और धर्मान्धता ने मानवता को क्या हानि पहुँचाई है?
उत्तर:
साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और धर्मान्धता ने मानवता को कलंकित किया है। इन्होंने पृथ्वी पर हिंसा को जन्म दिया है तथा ये मानवता को रक्त से नहलाती रही हैं। इन्होंने सभ्यता को गर्त में डाल दिया है।
प्रश्न 3.
लेखक ने बीज के माध्यम से धर्म की किस विशेषता की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
लेखक ने बीज के माध्यम से धर्म की अच्छाई, सद्गुणों को प्रचार-प्रसार करने, सुख-समृद्धि आने आदि विशेषताओं की ओर संकेत किया है। साथ ही धर्म, दूसरे धर्मों की अच्छी बातें ग्रहण करे और अपनी विशेषताओं को बनाये रखे।
प्रश्न 4.
स्वामी जी किस पर अपने हृदय के अंतस्तल से दया प्रदर्शित करते हैं?
उत्तर:
स्वामी जी उस व्यक्ति पर अपने हृदय के अंतस्तल से दया प्रदर्शित करना चाहते हैं जो व्यक्ति ऐसा स्वप्न देखता हो कि सारे धर्म तो नष्ट हो जाएँगे केवल मेरा ही धर्म जीवित रहेगा।
व्याख्यान दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मानव समाज की उन्नति में कौन-कौन से तत्व बाधक रहे हैं? इन बाधक तत्वों ने कौन-कौन सी हानियाँ पहुँचाई हैं?
उत्तर:
मानव समाज की उन्नति में साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और धर्मान्धता बाधक रहे हैं। इन तत्वों ने पृथ्वी को सदैव हिंसा से भरा है तथा इनके कारण ही मानवता बार-बार रक्त से नहाती रही है। इन्होंने ही सभ्यता को विनष्ट किया है और इन्हीं ने देशों को निराशा के गर्त में डाले रखा है।
प्रश्न 2.
भारत ने संसार को कौन-सी दो बातों की शिक्षा दी है? विस्तार से लिखिए।
उत्तर:
भारत ने संसार को सहिष्णुता एवं सार्वभौमिक स्वीकृति नामक दो शिक्षाएँ दी हैं। भारतवासी केवल सब धर्मों के प्रति सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते हैं अपितु वे सभी धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं।
प्रश्न 3.
निम्नांकित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(अ) शुद्धता, पवित्रता ………….. जन्म दिया है।
उत्तर:
लेखक कहता है कि शिकागो (अमेरिका) में आयोजित इस सर्वधर्म सभा की सबसे महान् उपलब्धि यह रही है कि उसने इस विचार को सही सिद्ध कर दिया है कि शुद्धता पवित्रता और दयाशीलता किसी एक सम्प्रदाय विशेष की एकाधिकार प्राप्त पूँजी नहीं है अपितु इसने सभी धर्मों से सद्विचारों को पाला-पोषा है, उसने श्रेष्ठ चरित्रवान स्त्री-पुरुष की सृष्टि की है।
(ब) यदि यहाँ कोई ………….. असम्भव है।
उत्तर:
लेखक कहता है कि यदि कोई मनुष्य या जाति यह विश्वास करती है कि समाज में एकता तभी आ सकती है जब हम अपने धर्म को तो विजय दिला दें और दूसरे धर्मों को नष्ट करवा डालें तो उनकी यह सोच नितान्त मूर्खतापूर्ण और असम्भव है।
(स) बीज भूमि में …………….. वृक्ष हो जाता है।
उत्तर:
लेखक कहता है कि जब हम बीज को भूमि में बो देते हैं और यथासमय उसे हम मिट्टी, वायु और जल से संयुक्त कर देते हैं तो वह बीज उचित समय पर अपनी वृद्धि के नियम के अन्तर्गत ही एक विशाल एवं हरा-भरा वृक्ष बन जाता है। वह बीज न तो मिट्टी बनता है और न ही वह जल या वायु बनता है। वह तो जल, वायु और मिट्टी को अपने में पचाकर तथा पृथ्वी को फोड़कर अपने नये रूप अर्थात् वृक्ष रूप में प्रकट हो जाता है।
व्याख्यान भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों के अर्थ स्पष्ट करते हुए अपने वाक्यों में प्रयोग लिखिए
धूल में मिलना, दावा करना, गर्त में मिला देना।
उत्तर:
(i) धूल में मिलना-पूरी तरह नष्ट हो जाना।
वाक्य प्रयोग-जो धर्म दूसरे धर्मों के प्रति घृणा फैलाता है वह स्वत: धूल में मिल जाता है।
(ii) दावा करना-अपना प्रभुत्व दिखाना।
वाक्य प्रयोग-दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णु रहकर ही हम अपने धर्म की श्रेष्ठता का दावा कर सकते हैं।
(iii) गर्त में मिला देना-मिट्टी में मिला देना।
वाक्य प्रयोग-हम श्रेष्ठ गुणों के बल पर ही अत्याचारियों को गर्त में मिला पायेंगे।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखो
नदी, समुद्र, वायु, वृक्ष, मिट्टी, जल।
उत्तर:
नदी – सरिता, तटिनी।
समुद्र – वारिधि, जलधि।
वायु – मरुत, पवन।
वृक्ष – पादप, विटप।
मिट्टी – मृत्तिका, धूल।
जल – नीर, तोय।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिएविजय, विनाश, जल, प्रातः, उन्नत।।
उत्तर:
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों की वर्तनी सुधारकर लिखिए।
उत्तर:
वीभत्स = बीभत्स; आवृत्ति = आवृत्ति; अवणनियि = अवर्णनीय; सौहार्द्र = सौहार्द्र।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों में प्रयुक्त प्रत्यय को लिखिए
सहिष्णुता, ज्ञापित, बचपन, आन्तरिक, मूर्तिमान।
उत्तर:
सहिष्णुता में ‘ता’; ज्ञापित में ‘इत’ बचपन में ‘पन’; आन्तरिक में ‘इक’: मूर्तिमान में ‘मान’।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित उपसर्ग जोड़कर दो-दो वाक्य बनाइए
अ, सम्, सु, अनु, वि, अभि।
उत्तर:
अ – असत्य, अधर्म।
सम् – सम्मान, सम्यक।
सु – सुपुत्र, सुपात्र। अनु
अनु – अनुमति, अनुयायी।
वि – विज्ञान, विशेष।
अभि – अभ्यास, अभिसिक्त।
व्याख्यान संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णता में ही विश्वास नहीं करते, वरन् समस्त धर्मों को सच्चा मानकर स्वीकार करते हैं। मुझे एक ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है, जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों को और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है।
कठिन शब्दार्थ :
सहिष्णुता = सहनशीलता; अभिमान = गर्व; उत्पीड़ितों = सताये हुए लोगों को; शरणार्थियों = जिनको अपने मूल निवास स्थान से उजाड़कर दूसरी जगह रहने को मजबूर कर दिया हो।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्य खण्ड ‘स्वामी विवेकानन्द’ के ‘व्याख्यान’ शीर्षक से लिया गया है।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक भारत देश तथा यहाँ के धर्म की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए कहता है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि हम भारतवासी केवल दूसरे धर्मों के प्रति सहनशीलता में ही विश्वास नहीं करते हैं बल्कि उन धर्मों को सच्चे रूप में स्वीकार भी करते हैं। आगे लेखक भारत देश की उस महान् संस्कृति के विषय में बताते हुए कहता है कि मुझे एक ऐसे देश अर्थात् भारत में जन्म लेने का गौरव है, जहाँ संसार भर के दुखियों एवं शरणार्थियों को शरण दी जाती रही है।
विशेष :
- इसमें भारत की सहिष्णुता की भावना की प्रशंसा की गयी है।
- भाषा सरल एवं संस्कृतनिष्ठ है।
(2) साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और उनकी वीभत्स वंशधर धर्मान्धता इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत समय तक राज्य कर चुकी है तथा इस पृथ्वी को हिंसा से भरती रही है, उसको बारम्बार मानवता के स्तर से नहलाती रही है, सभ्यता को विध्वंस करती और पूरे-पूरे देशों को निराशा के गर्त में डालती रही है। यदि यह वीभत्स दानवी न होती, तो मानव समाज आज की अवस्था से कहीं अधिक उन्नत हो गया होता।
कठिन शब्दार्थ :
साम्प्रदायिकता = भिन्न-भिन्न धर्म के मानने वालों में आपसी शत्रुता; हठधर्मिता = अपनी बात चाहे वह गलत हो या सही मनवाने के लिए दबाव बनाना; वीभत्स = घृणापूर्ण, भयानक; धर्मान्धता = अपने धर्म के प्रति विशेष लगाव; मानवता = मनुष्यता; विध्वंस्त = नष्ट; गर्त = गड्ढे; दानवी = राक्षसी प्रवृत्ति; उन्नत = ऊँचा, तरक्की किया हुआ।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक यह बताना चाहता है कि धर्मान्धता ने इस देश का बड़ा नुकसान किया है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि इस सुन्दर पृथ्वी पर बहुत काल तक साम्प्रदायिकता, हठधर्मिता और धर्मान्धता ने राज्य किया है तथा अपने दुष्कर्मों से इस पृथ्वी पर हिंसा का नंगा नाच करवाती रही है। उसने इस पृथ्वी को अनेक बार मानवीय रक्त की होली से भर दिया है। यह दुष्प्रवृत्ति सभ्यता को विनष्ट कर सम्पूर्ण देशों को निराशा के गड्डे में ढकेलती रही है। यदि यह राक्षसी दुष्प्रवृत्ति इस पृथ्वी पर न होती तो मानव समाज आज बहुत उन्नति कर गया होता।
विशेष :
- धर्मान्धता तथा साम्प्रदायिकता आदि राक्षसी प्रवृत्ति हैं इन्होंने संसार के राष्ट्रों का बड़ा अहित किया है। अतः हमें इनसे बचना चाहिए।
- भाषा संस्कृतनिष्ठ है।
(3) यदि यहाँ कोई यह आशा कर रहा है कि यह एकता किसी एक धर्म की विजय और बाकी सब धर्मों के विनाश से सिद्ध होगी, तो उससे मेरा कहना है कि भाई तुम्हारी यह आशा असम्भव है।
कठिन शब्दार्थ :
विनाश = नाश; असम्भव = कभी भी पूरी न होने वाली।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक यह कहना चाहता है कि सब धर्मों को साथ लेकर ही हम जीवन क्षेत्र में विजय प्राप्त कर सकते हैं। नफरत या घृणा द्वारा नहीं।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि यदि कोई मनुष्य या जाति यह विश्वास करती है कि समाज में एकता तभी आ सकती है जब हम अपने धर्म को तो विजय दिला दें और दूसरे धर्मों को नष्ट करवा डालें तो उनकी यह सोच नितान्त मूर्खतापूर्ण और असम्भव है।
विशेष :
- सभी धर्मों को साथ लेकर चलने से ही समाज में एकता स्थापित हो सकती है।
- भाषा सरल एवं भावानुकूल है।
(4) बीज भूमि में बो दिया गया और मिट्टी, वायु तथा जल उसके चारों ओर रख दिये गए, तो क्या वह बीज मिट्टी हो जाता है? अथवा वायु या जल बन जाता है? नहीं, वह तो वृक्ष ही होता है। वह अपनी वृद्धि के नियम से ही बढ़ता है। वायु, जल और मिट्टी को अपने में पचाकर उनको उद्भिज पदार्थ में परिवर्तित करके एक वृक्ष हो जाता है।
कठिन शब्दार्थ :
वृद्धि = बढ़ते रहना; उद्भिज = जमीन फोड़कर बाहर निकलना; परिवर्तित = बदल करके।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक का मत है कि जिस प्रकार पृथ्वी में बीज बोने पर उससे हरा-भरा वृक्ष ही निकलता है, उसी प्रकार सद्विचारों के प्रचार से समाज में अच्छे गुणों का ही विकास होता है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि जब हम बीज को भूमि में बो देते हैं और यथासमय उसे हम मिट्टी, वायु और जल से संयुक्त कर देते हैं तो वह बीज उचित समय पर अपनी वृद्धि के नियम के अन्तर्गत ही एक विशाल एवं हरा-भरा वृक्ष बन जाता है। वह बीज न तो मिट्टी बनता है और न ही वह जल या वायु बनता है। वह तो जल, वायु और मिट्टी को अपने में पचाकर तथा पृथ्वी को फोड़कर अपने नये रूप अर्थात् वृक्ष रूप में प्रकट हो जाता है।
विशेष :
- लेखक मानता है कि जिस प्रकार जमीन में बोया गया बीज उचित समय पर जल, मिट्टी एवं वायु के संयोग से वृक्ष रूप धारण कर लेता है उसी प्रकार सद्विचार धर्म को सशक्त बनाते हैं।
- भाषा सरल एवं प्रवाहपूर्ण है।
(5) इस धर्म महासभा ने जगत् के समक्ष यदि कुछ प्रदर्शित किया है, तो यह है “उसने सिद्ध कर दिया है कि शुद्धता, पवित्रता और दयाशीलता किसी सम्प्रदाय विशेष की एकान्तिक सम्पत्ति नहीं है, एवं प्रत्येक धर्म ने श्रेष्ठ एवं अतिशय उन्नत चरित्र स्त्री-पुरुषों को जन्म दिया है।”
कठिन शब्दार्थ :
समक्ष = सामने प्रदर्शित = दर्शाया है; एकान्तिक = एकाधिकार वाली; अतिशय = बहुत अधिक; उन्नत चरित्र = उच्च एवं महान् चरित्र वाले।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इसं गद्यांश में लेखक ने शिकागो (अमेरिका) में आयोजित धर्म सभा की उपलब्धि के विषय में बताते हुए कहा है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि शिकागो (अमेरिका) में आयोजित इस सर्वधर्म सभा की सबसे महान् उपलब्धि यह रही है कि उसने इस विचार को सही सिद्ध कर दिया है कि शुद्धता पवित्रता और दयाशीलता किसी एक सम्प्रदाय विशेष की एकाधिकार प्राप्त पूँजी नहीं है अपितु इसने सभी धर्मों से सद्विचारों को पाला-पोषा है, उसने श्रेष्ठ चरित्रवान स्त्री-पुरुष की सृष्टि की है।
विशेष :
- शिकागो में आयोजित सर्वधर्म सभा ने संसार के सभी धर्मों में आपसी समझ को बढ़ाया है, इससे निश्चय ही सुसभ्यता का संसार में विकास होगा।
- भाषा सरल एवं प्रवाहपूर्ण है।