MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 18 भारत में खाद्यान्न सुरक्षा

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 18 भारत में खाद्यान्न सुरक्षा

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
खरीफ की फसल है (2009, 13)
(i) गेहूँ
(ii) चना
(iii) धान
(iv) जौ।
उत्तर:
(iii) धान

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प्रश्न 2.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अंग है
(i) जूते की दुकान
(ii) सोने-चाँदी की दुकान
(iii) राशन की दुकान
(iv) किराने की दुकान।।
उत्तर:
(iii) राशन की दुकान

प्रश्न 3.
लक्ष्य आधारित सार्वजनिक वितरण प्रणाली का सम्बन्ध है
(i) महिलाओं से
(ii) पुरुषों से
(iii) निर्धनता की रेखा के नीचे रहने वालों से
(iv) उपरोक्त में से किसी से नहीं।
उत्तर:
(iii) निर्धनता की रेखा के नीचे रहने वालों से

प्रश्न 4.
अन्त्योदय अन्न योजना के अन्तर्गत कितना खाद्यान्न दिया जाता है? (2014)
(i) 5 किलोग्राम
(ii) 10 किलोग्राम
(iii) 15 किलोग्राम
(iv) 25 किलोग्राम।
उत्तर:
(iv) 25 किलोग्राम।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मोटे अनाज के नाम लिखिए।
उत्तर:
मोटे अनाज में निम्नलिखित खाद्यान्न सम्मिलित किये जाते हैं- ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी तथा जौ आदि।

प्रश्न 2.
भारत को किन वर्षों में अकाल का सामना करना पड़ा था ?
उत्तर:
भारत को निम्नलिखित अकालों का सामना करना पड़ा था जिसमें लाखों लोग भूख से मारे गये थे-

  1. सन् 1835 का उड़ीसा अकाल
  2. सन् 1877 का पंजाब और मध्य प्रदेश का अकाल
  3. सन् 1943 का बंगाल का अकाल।

प्रश्न 3.
रोजगार आश्वासन योजना क्या है?
उत्तर:
रोजगार आश्वासन योजना के अन्तर्गत 18 से 60 वर्ष के अकुशल व्यक्तियों को 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जा सके जिससे लोग आय प्राप्त करके नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्न खरीद सके।

प्रश्न 4.
समर्थन मूल्य किसे कहते हैं?
उत्तर:
समर्थन मूल्य की घोषणा सरकार द्वारा की जाती है। इसके अन्तर्गत सरकार कृषि उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है। जब खाद्यान्नों का बाजार भाव सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से नीचे चला जाता है, तो सरकार स्वयं घोषित समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न खरीदने लगती है।

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प्रश्न 5.
खाद्य सुरक्षा हेतु संचालित किन्हीं दो योजनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
खाद्यान्न सुरक्षा द्वारा संचालित प्रमुख दो योजनाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. अन्त्योदय अन्न योजना
  2. काम के बदले अनाज योजना।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
खाद्यान्न-सुरक्षा के मुख्य घटक कौन-कौन से हैं? लिखिए। (2009)
उत्तर:
सामान्यतः खाद्यान्न सुरक्षा के अन्तर्गत समस्त जनसंख्या को खाद्यान्नों की न्यूनतम मात्रा उपलब्ध कराना माना जाता है। खाद्यान्न सुरक्षा के निम्नलिखित घटक हैं –

  1. देश की समस्त जनसंख्या को भोजन की उपलब्धता।
  2. उपलब्ध खाद्यान्न को खरीदने के लिए पर्याप्त धन।
  3. खाद्यान्न उस मूल्य पर उपलब्ध हो जिस पर सभी उसे खरीद सकें।
  4. खाद्यान्न हर समय उपलब्ध होना चाहिए।
  5. उपलब्ध खाद्यान्न की किस्म अच्छी होनी चाहिए।

एक विकासशील अर्थव्यवस्था में निरन्तर परिवर्तन होते रहते हैं। निरन्तर होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप इसकी निम्नलिखित अवस्थाएँ (घटक) भी हो सकती हैं। –

  1. पर्याप्त मात्रा में अनाज की उपलब्धता।
  2. पर्याप्त मात्रा में अनाज और दालों की उपलब्धता।
  3. अनाज और दालों के साथ दूध और दूध से बनी वस्तुओं की उपलब्धता।
  4. अनाज, दालें, दूध एवं दूध से बनी वस्तुएँ, सब्जियाँ, फल आदि की उपलब्धता।

प्रश्न 2.
बफर-स्टॉक क्या है? समझाइए। (2008, 09, 11)
उत्तर:
यदि देश में खाद्यान्न का उत्पादन कम होता है तो ऐसी संकटकालीन स्थिति का सामना करने के लिए तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्न वितरित करने के लिए सरकार द्वारा बनाया खाद्यान्न भण्डार ‘बफर-स्टॉक’ कहलाता है। बफर स्टॉक भारतीय खाद्य निगम (E.C.I.) के माध्यम से सरकार द्वारा अधिप्राप्त अनाज गेहूँ और चावल का भण्डार है। भारतीय खाद्य निगम अधिक उत्पादन वाले राज्यों में किसानों से गेहूँ और चावल खरीदता है। किसानों को उनकी फसल के लिए पहले से घोषित मूल्य दे दिया जाता है। इस मूल्य को ‘न्यूनतम समर्थित मूल्य’ कहते हैं। क्रय किया हुआ खाद्यान्न खाद्य भण्डार में रखा जाता है। इसे संकटकाल में अनाज की समस्या से निपटने के लिए प्रयोग किया जाता है। गत वर्षों से देश में उपलब्ध ‘बफर-स्टॉक’ निर्धारित न्यूनतम मात्रा से अधिक रहा है। जनवरी 2012 में न्यूनतम निर्धारित सीमा 25 मिलियन टन थी। जबकि भारत का वास्तविक स्टॉक 55-3 था जो भारत की मजबूत खाद्य-सुरक्षा को स्पष्ट करता है।

प्रश्न 3.
नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है? समझाइए।
अथवा
नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली की विशेषताएँ लिखिए। (2017)
उत्तर:
जनवरी 1992 से पूर्व में चल रही सार्वजनिक वितरण प्रणाली में संशोधन करके देश के दुर्गम, जनजातीय, पिछड़े, सूखाग्रस्त एवं पर्वतीय क्षेत्रों में ग्रामवासियों को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू की गयी। इसकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –

  1. सूखा प्रवृत्त क्षेत्रों, रेगिस्तानी क्षेत्रों, पर्वतीय क्षेत्रों तथा शहरी गन्दी बस्तियों में निवास करने वाले लोगों को प्राथमिकता प्रदान की गयी है।
  2. इस प्रणाली में अपेक्षाकृत कम कीमत और अधिक मात्रा में खाद्यान्न उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा जाता है।
  3. इस प्रणाली में छः प्रमुख आवश्यक वस्तओं (गेहूँ, चावल, चीनी, आयातित खाद्य तेल, मिट्टी का तेल एवं कोयला) के अतिरिक्त चाय, साबुन, दाल, आयोडीन नमक जैसी वस्तुओं को शामिल किया गया है।
  4. इस योजना में शामिल विकास खण्डों में रोजगार आश्वासन योजना प्रारम्भ की गई, इसके अतिरिक्त 18 से 60 वर्ष के अकुशल बेरोजगार व्यक्तियों को 100 दिन का रोजगार प्रदान किया जाएगा। जिससे लोग आय प्राप्त करने नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से अन्न खरीद सकें।

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प्रश्न 4.
लक्ष्य आधारित सार्वजनिक वितरण प्रणाली को समझाइए।
उत्तर:
लक्ष्य आधारित सार्वजनिक वितरण प्रणाली 1 जून, 1997 से लागू की गयी। इस प्रणाली में गरीबी रेखा के नीचे (BPL) तथा गरीबी रेखा से ऊपर (APL) के लोगों के लिए गेहूँ तथा चावल के भिन्न-भिन्न निर्गम मूल्य निर्धारित किये गये हैं।
केन्द्रीय निर्गम मूल्य
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 18 भारत में खाद्यान्न सुरक्षा - 1

लक्ष्य निर्धारित वितरण प्रणाली (TDPS) में निर्धन लोगों को विशेष राशन कार्ड जारी करके विशेष रूप से कम कीमत पर खाद्यान्न उपलब्ध कराया जाता है। यह विश्व की सबसे बड़ी खाद्य परियोजना है।

लक्ष्य आधारित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TDPS) को गरीबों के प्रति और अति संकेन्द्रित और लक्षित करने के लिए दिसम्बर 2000 में अन्त्योदय अन्न योजना प्रारम्भ की गई। इस योजना में प्रतिमाह प्रत्येक परिवार को गेहूँ 2 रुपये प्रति किग्रा. व चावल 3 रुपये प्रति किग्रा. के निम्न मूल्य पर 25 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध कराने का प्रावधान है। अन्त्योदय परिवारों के लिए खाद्यान्नों का अनुमानित वार्षिक आबण्टन 30 लाख टन है, जिसमें 2.315 करोड़ रुपये की सब्सिडी शामिल है।

प्रश्न 5.
खाद्य-सुरक्षा में सहकारिता की क्या भूमिका है? समझाइए। (2008, 09)
अथवा
खाद्य सुरक्षा और सहकारिता का क्या सम्बन्ध है? (2010)
उत्तर:
सहकारिता ऐसे व्यक्तियों का ऐच्छिक संगठन है जो समानता, स्व सहायता तथा प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के आधार पर सामूहिक हित के कार्य करता है। भारत में खाद्य-सुरक्षा उपलब्ध कराने में सहकारिता की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह कार्य उपभोक्ता सहकारी समितियों द्वारा निर्धन लोगों के लिए खाद्यान्न बिक्री हेतु राशन की दुकान खोलकर किया जाता है। भारत में उपभोक्ता सहकारिता के राष्ट्रीय, राज्य, जिलों व ग्राम स्तर पर भिन्न-भिन्न व्यवस्थाएँ हैं। 30 राज्य सहकारी उपभोक्ता संगठन इस परिसंघ के साथ जुड़े हैं। केन्द्रीय या थोक स्तर पर 794 उपभोक्ता सहकारी स्टोर हैं। प्रारम्भिक स्तर पर 24,078 प्राथमिक स्टोर हैं।

ग्रामीण इलाकों में लगभग 44,418 ग्राम स्तरीय प्राथमिक कृषि की ऋण समितियाँ अपने सामान्य व्यापार के साथ-साथ आवश्यक वस्तुओं के वितरण में संलग्न है। उपभोक्ता सहकारी समितियों द्वारा शहरी और उपनगरीय क्षेत्रों में लगभग 37,226 खुदरा बिक्री केन्द्रों का संचालन किया जा रहा है ताकि उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। सरकार द्वारा 2000 में ‘सर्वप्रिय’ योजना का प्रारम्भ किया है। इस योजना में आम जनता को बुनियादी आवश्यकताओं की वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर उपलब्ध कराने का प्रावधान है।

प्रश्न 6.
खरीफ और रबी फसलों में क्या अन्तर है ? लिखिए। (2008, 09, 14)
उत्तर:
खरीफ और रबी की फसल में अन्तर

खरीफ रबी
1. यह फसल मानसून ऋतु के आगमन के साथ ही शुरू होती है। 1. यह फसल मानसून ऋतु के बाद शरद ऋतु के साथ शुरू होती है।
2. इसकी प्रमुख फसलें चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, पटसन और मूंगफली आदि हैं। 2. इसकी मुख्य फसलें गेहूँ, जौ, चना, सरसों और अलसी जैसे तेल निकालने के बीज आदि हैं।
3. इन फसलों के पकने में कम समय लगता है। 3. इन फसलों के पकने में अपेक्षाकृत अधिक समय
लगता है।
4. इन फसलों का प्रति हेक्टेअर उत्पादन कम होता है। 4. इन फसलों का प्रति हेक्टेअर उत्पादन अधिक होता है।
5. ये फसलें सितम्बर-अक्टूबर में काटी जाती हैं। 5. ये फसलें मार्च-अप्रैल में काटी जाती हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के मुख्य खाद्यान्न कौन से हैं ? विवरण दीजिए। (2008, 14, 18)
अथवा
भारत की प्रमुख खाद्य फसलों को लिखिए। (2015)
उत्तर:
भारत की खाद्यान्न फसलें भारत में खाद्यान्न पैदावार अलग-अलग समय पर अलग-अलग होती है। अतः समय के अनुसार इन खाद्यान्न फसलों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है
I.खरीफ की फसलें :
ये फसलें जुलाई में बोई तथा अक्टूबर में काटी जाती हैं। इसके अन्तर्गत मुख्य फसलें चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, पटसन और मूंगफली आदि हैं।

II. रबी की फसलें :
ये फसलें अक्टूबर में बोई जाती हैं तथा मार्च के अन्त या अप्रैल में काटी जाती हैं। इसके अन्तर्गत गेहूँ, जौ, चना, सरसों और अलसी आदि हैं। भारत के प्रमुख खाद्यान्नों (अनाज) का विवरण निम्न प्रकार है –
(1) चावल :
यह खरीफ की फसल है। यह भारतवासियों का प्रिय भोजन है। भारत में कुल खाद्य-फसलों को बोये गये क्षेत्रफल के 25 प्रतिशत भाग पर चावल बोया जाता है। चीन के बाद चावल के उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। संसार के कुल उत्पादन का 11.4 प्रतिशत चावल भारत में होता है।

भारत में चावल का उत्पादन आन्ध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान व असम राज्यों में होता है। भारत में चावल के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि रासायनिक उर्वरकों और उन्नत बीजों के प्रयोग के कारण हो रही है। इस समय देश चावल के उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ इसका निर्यात भी कर रहा है।

(2) गेहूँ :
चावल के पश्चात् गेहूँ भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न है। गेहूँ रबी की फसल है। विश्व में भारत गेहूँ उत्पादन की दृष्टि से चीन व संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर व क्षेत्रफल की दृष्टि से पाँचवें स्थान पर है। भारत में मुख्यतः दो प्रकार का गेहूँ उगाया जाता है।

  • वल्गेयर गेहूँ :
    यह चमकीला, मोटा और सफेद होता है। इसे साधारणतः रोटी का गेहूँ कहते हैं।
  • मैकरानी गेहूँ :
    यह लाल छोटे दाने वाला और कठोर होता है। देश में गेहूँ उत्पादक प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात हैं। भारत गेहूँ के उत्पादन में आत्मनिर्भर है। यद्यपि चालू वर्ष में संचित स्टॉक में कमी के कारण भारत को गेहूँ का आयात करना पड़ा।

(3) ज्वार :
यह दक्षिण भारत में किसानों का मुख्य भोजन है। उत्तरी भारत में यह पशुओं को खिलायी जाती है। ज्वार से अरारोट बनाया जाता है जिसके अनेक आर्थिक उपयोग होते हैं। उत्तर भारत में यह खरीफ की फसल है, लेकिन दक्षिण में यह खरीफ एवं रबी दोनों की फसल है। भारत के कुल ज्वार उत्पादन का लगभग 87 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में होता है।

(4) बाजरा :
विश्व में बाजरा उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है। राजस्थान, मध्य प्रदेश व गुजरात में इसका प्रयोग खाद्यान्न के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। यह उत्तर भारत में खरीफ की फसल है। दक्षिण भारत में यह रबी और खरीफ दोनों की फसल है। देश के कुल उत्पादन का 96 प्रतिशत भाग राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश व पंजाब में उत्पादित किया जाता है।

(5) मक्का :
मक्का मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों की उपज है। इसका उपयोग पशुओं के चारे और खाने के लिए किया जाता है। मानव भी मक्के के विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ उपयोग करता है। इससे स्टार्च और ग्लूकोज तैयार किया जाता है। यह हमारे देश के लगभग सभी राज्यों में उत्पादित किया जाता है, लेकिन प्रमुख रूप से यह उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात व कर्नाटक में उत्पादित किया जाता है।

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प्रश्न 2.
खाद्य-सुरक्षा क्या है एवं खाद्य-सुरक्षा क्यों आवश्यक है? समझाइए। (2009)
अथवा
खाद्य-सुरक्षा के आन्तरिक कारणों का वर्णन कीजिए। (2013)
अथवा
खाद्य-सुरक्षा क्यों आवश्यक है? खाद्य-सुरक्षा में सहकारिता की क्या भूमिका है ?(2008,09)
अथवा
खाद्य सुरक्षा क्यों आवश्यक है? समझाइए। (2017)
उत्तर:
खाद्य-सुरक्षा से आशय-खाद्यान्न-सुरक्षा का सम्बन्ध मानव की भोजन सम्बन्धी आवश्यकताओं से है। सरल शब्दों में खाद्यान्न सुरक्षा का आशय है सभी लोगों को पौष्टिक भोजन की उपलब्धता। साथ ही यह भी आवश्यक है कि व्यक्ति के पास भोजन-व्यवस्था करने के लिए क्रय-शक्ति (पैसा) हो तथा खाद्यान्न उचित मूल्य पर उपलब्ध रहे। विश्व विकास रिपोर्ट 1986 के अनुसार, “खाद्यान्न-सुरक्षा सभी व्यक्तियों के लिए सही समय पर सक्रिय और स्वस्थ जीवन के लिए पर्याप्त भोजन की उपलब्धता है।” खाद्य एवं कृषि संस्थान के अनुसार, “खाद्यान्न-सुरक्षा सभी व्यक्तियों को सही समय पर उनके लिए आवश्यक बुनियादी भोजन के लिए भौतिक एवं आर्थिक दोनों रूप में उपलब्धि का आश्वासन है।”

खाद्य-सुरक्षा की आवश्यकता :
भारत की वर्तमान स्थिति में खाद्यान्न-सुरक्षा का महत्त्व बहुत अधिक हो गया है। एक ओर तो हमारी जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है, और दूसरी ओर अर्थव्यवस्था विकासशील है। अत: खाद्यान्नों की बढ़ती हुई माँगों की पूर्ति के लिए खाद्यान्न-सुरक्षा आवश्यक हो गई है। इसके कारणों को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं –

I. आन्तरिक कारण-इसमें वे सभी कारण आते हैं जो देश के भीतर की परिस्थितियों से सम्बन्धित हैं।

  • जीवन का आधार :
    भारत एक विशाल जनसंख्या वाला राष्ट्र है, साथ ही जन्म-दर भी ऊँची है। यहाँ प्रति वर्ष लगभग डेढ़ करोड़ व्यक्ति बढ़ जाते हैं; जबकि खाद्यान्नों के उत्पादन में उच्चावचन होते रहते हैं। इस कारण खाद्यान्न-सुरक्षा अत्यन्त आवश्यक है।
  • कम उत्पादकता :
    भारत में खाद्यान्न उत्पादकता प्रति हैक्टेअर तथा प्रति श्रमिक दोनों ही दृष्टि से कम है। इस दृष्टि से भी खाद्यान्न-सुरक्षा आवश्यक है।
  • प्राकृतिक संकट :
    समय-समय पर प्राकृतिक संकट; जैसे-सूखा, बाढ़, अत्यधिक वर्षा एवं फसलों के शत्रु कीड़े-मकोड़े आदि भी फसलों को हानि पहुँचाकर खाद्य संकट में वृद्धि करते हैं। राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक शोध परिषद् के अनुमानों के अनुसार इन कीड़े-मकोड़ों, चूहों एवं अन्य पशु-पक्षियों द्वारा कुल खाद्यान्नों के उत्पादन का 15 प्रतिशत भाग नष्ट कर दिया जाता है। प्राकृतिक संकटों का सामना करने के लिए खाद्यान्न-सुरक्षा अत्यन्त आवश्यक है।
  • बढ़ती महँगाई :
    खाद्यान्न की कीमतों में वृद्धि हो रही है, जिसके फलस्वरूप भुखमरी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस समस्या का सामना करने के लिए खाद्य-सुरक्षा आवश्यक हो जाती है।
  • राष्ट्र की प्रगति में आवश्यक :
    खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त किये बिना कोई भी राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकता। इस हेतु खाद्यान्न-सुरक्षा आवश्यक होती है।

II. बाह्य कारण :
बाह्य कारणों के अन्तर्गत वे कारण शामिल किये जाते हैं जो दूसरे राष्ट्र के सम्बन्धों से जुड़े होते हैं। प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं –

  • विदेशों पर निर्भरता :
    देश में जब खाद्यान्नों की पर्याप्त पूर्ति नहीं हो पाती है, तब इस प्रकार की स्थिति में हमें विदेशों पर निर्भर होना पड़ता है। फिर खाद्यान्न महँगे हों या सस्ते या उनकी गुणवत्ता अच्छी हो या न हो हमें खाद्यान्न आयात करना पड़ता है व विदेशों पर निर्भरता बढ़ जाती है।
  • विदेशी मुद्रा कोष में कमी :
    जब हम विदेशों से खाद्यान्न वस्तुएँ मँगाते हैं तो अनावश्यक रूप से हमारी विदेशी मुद्रा खर्च हो जाती है। खाद्यान्न की पूर्ति हम स्वयं ही कर सकते हैं परन्तु खाद्य-सुरक्षा के अभाव में नहीं कर पाते। परिणाम यह होता है कि बहुत अनिवार्य वस्तुएँ खरीदने हेतु हमारे पास विदेशी मुद्रा नहीं बच पाती है।
  • विदेशी दबाव :
    जो राष्ट्र खाद्यान्नों की पूर्ति करते हैं वे प्रभावशाली हो जाते हैं और फिर अपनी नीतियों को दबाव द्वारा मनवाने का प्रयास करते हैं। ऐसे राष्ट्र खाद्यान्न का आयात करने वाले राष्ट्रों पर हावी हो जाते हैं, और आयातक देश विदेश नीति निर्धारण करने में स्वतन्त्र नहीं रह पाते। कई बार खाद्यान्न संकटों के दौरान भारत ने यह अनुभव किया कि राष्ट्र के नागरिकों को भुखमरी से बचाने, विकास करने, स्वाभिमान, सम्मान और सम्प्रभुता की रक्षा के लिए खाद्य-सुरक्षा अनिवार्य है।

प्रश्न 3.
सरकार गरीबों को किस प्रकार खाद्य-सुरक्षा प्रदान करती है? समझाइए। (2009, 12, 13, 15, 18)
उत्तर:
सरकार गरीबों को निम्न प्रकार खाद्य-सुरक्षा प्रदान करती है –
(1) सार्वजनिक वितरण प्रणाली :
सार्वजनिक वितरण प्रणाली सार्वजनिक रूप से उपभोक्ताओं को निर्धारित कीमतों पर उचित मात्रा में उपभोक्ता वस्तुएँ वितरित करने से सम्बन्धित है। मुख्य रूप से यह व्यवस्था कमजोर वर्ग के सदस्यों के लिए उपयोग में लायी गयी है। उपभोक्ताओं को आवश्यक उपभोग वस्तुएँ उचित कीमत पर उपलब्ध कराना एवं वितरण व्यवस्था को सुचारु रूप प्रदान करना इस प्रणाली का मुख्य लक्ष्य है।

(2) नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली :
जनवरी 1992 से पूर्व में चल रही सार्वजनिक वितरण प्रणाली में संशोधन करके देश के दुर्गम, जनजातीय, पिछड़े, सूखाग्रस्त एवं पर्वतीय क्षेत्रों में ग्रामवासियों को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नवीनीकृत सार्वजनिक वितरण प्रणाली लागू की गयी।

(3) लक्ष्य आधारित सार्वजनिक वितरण प्रणाली :
लक्ष्य आधारित सार्वजनिक वितरण प्रणाली 1 जून, 1997 से लागू की गयी। इस प्रणाली में गरीबी रेखा के नीचे (BPL) तथा गरीबी रेखा से ऊपर (APL) के लोगों के लिए गेहूँ तथा चावल के भिन्न-भिन्न निर्गम मूल्य निर्धारित किये गये हैं।

इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा समन्वित राज्य विकास कार्यक्रम, पाठशाला में अध्ययनरत छात्रों के लिए मध्यान्ह भोजन योजना, खाद्यान्न अन्त्योदय अन्न योजना तथा काम के बदले अनाज आदि योजनाओं के माध्यम से खाद्य-सुरक्षा उपलब्ध कराई जा रही है।

प्रश्न 4.
खाद्यान्न वृद्धि के लिए सरकार ने कौन-कौन से प्रयास किये हैं? (2008, 09, 12, 16)
अथवा
न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या है? (2008)
[संकेत : ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ शीर्षक देखें।]
उत्तर:
खाद्य-सुरक्षा के लिए सरकारी प्रयास
भारत में प्राकृतिक संकट या किसी अन्य कारण से उत्पन्न होने वाले खाद्यान्न संकट के समय एवं सामान्य परिस्थितियों में निर्धनों तथा अन्य लोगों को खाद्यान्न उचित कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए खाद्य-सुरक्षा प्रणाली का विकास किया गया है। इस व्यवस्था के महत्त्वपूर्ण अंग निम्न प्रकार हैं –

(1) खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाना :
खाद्यान्न सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि देश में पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न का उत्पादन हो। इस कार्य में हरित क्रान्ति का योगदान महत्त्वपूर्ण है। इसके अन्तर्गत कृषि का यन्त्रीकरण, अच्छे बीजों का प्रयोग, उर्वरकों का प्रयोग, कीटनाशकों के प्रयोग तथा सिंचाई सुविधाओं का प्रयास किया गया। साथ ही चकबन्दी और मध्यस्थों के उन्मूलन कार्यक्रम के परिणामस्वरूप आज भारत खाद्यान्नों के क्षेत्र में आत्म-निर्भर बन गया है। भारत में खाद्यान्नों के उत्पादन की प्रगति को निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट किया गया है –

भारत में खाद्यान्नों का उत्पादन (करोड़ टन में)1
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 18 भारत में खाद्यान्न सुरक्षा - 2
स्त्रोत-आर्थिक समीक्षा 2017-18 Vol-2, P.A-35 *अनुमानित

(2) न्यूनतम समर्थन मूल्य :
कृषि उत्पादों के मूल्यों में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं। फसल के समय उत्पादन के कारण आपूर्ति अधिक हो जाती है, जिससे मूल्यों में काफी कमी आ जाती है। इस समय निर्धारित सीमा से कम मूल्य होने पर उत्पादकों को अपने उत्पादों की लागत प्राप्त करना कठिन हो जाता है। इसलिए सरकार कृषि उपजों हेतु न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है, जिसके अन्तर्गत जब खाद्यान्नों का बाजार भाव सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्य से नीचे चला जाता है, तो सरकार स्वयं घोषित समर्थन मूल्य पर खाद्यान्न खरीदने लगती है। इससे किसानों को लाभकारी मूल्य मिलने के साथ सार्वजनिक खाद्य भण्डारण बनाने का दोहरा उद्देश्य पूरा होता है। गत् वर्षों में सरकार द्वारा घोषित समर्थन मूल्यों को निम्न तालिका में दर्शाया गया है।

गेहूँ और धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य (रुपये प्रति क्वि.)
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 18 भारत में खाद्यान्न सुरक्षा - 3
स्रोत-आर्थिक समीक्षा 2017-18; A82, Vol-2.

(3) बफर स्टॉक :
कृषि मूल्यों में उच्चावचनों को रोकने के उद्देश्य से सरकार द्वारा भारतीय खाद्य निगम की स्थापना की गई थी। यह निगम सरकार की ओर से खाद्यान्नों का स्टॉक करता है। इस प्रयोजन हेतु यह निगम खाद्यान्न की सरकारी खरीद करता है तथा उनका भण्डारण करता है इसी को बफर स्टॉक कहते हैं। यह स्टॉक राशन की दुकानों के माध्यम से उपभोक्ताओं को वितरित कर दिया जाता है। इससे आपदा काल में अनाज की कमी की समस्या हल करने में मदद मिलती है। गत वर्षों में देश में उपलब्ध बफर-स्टॉक की स्थिति को निम्न तालिका में स्पष्ट किया गया है।
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 18 भारत में खाद्यान्न सुरक्षा - 4
स्रोत-आर्थिक समीक्षा 2011-12; पृष्ठ 197.

बफर स्टॉक की तालिका से स्पष्ट होता है कि गत वर्षों में भारत में स्टॉक निर्धारित न्यूनतम मात्रा से अधिक ही रहा है। जो मजबूत खाद्य-सुरक्षा का प्रतीक है।

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प्रश्न 5.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है व इसके मुख्य अंग कौन-कौन से हैं? (2008, 16)
उत्तर:
सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आशय-सार्वजनिक वितरण प्रणाली से आशय उस प्रणाली से है, जिसके अन्तर्गत सार्वजनिक रूप से उपभोक्ताओं विशेषकर कमजोर वर्ग के उपभोक्ताओं को निर्धारित कीमतों पर उचित मात्रा में विभिन्न वस्तुओं (गेहूँ, चावल, चीनी, आयातित खाद्य तेल, कोयला, मिट्टी का तेल आदि) का विक्रय राशन की दुकान व सहकारी उपभोक्ता भण्डारों के माध्यम से कराया जाता है। इन विक्रेताओं के लिए लाभ की दर निश्चित रहती है तथा इन्हें निश्चित कीमत पर निश्चिम मात्रा में वस्तुएँ राशन कार्ड धारकों को बेचनी होती हैं। राशन कार्ड तीन-तीन प्रकार के होते हैं-बी. पी. एल. कार्ड, ए. पी. एल. कार्ड एवं अन्त्योदय कार्ड।

बी. पी. एल. कार्ड गरीबी रेखा के नीचे के लोगों के लिए ए. पी. एल. कार्ड गरीबी रेखा से ऊपर वाले लोगों के लिए तथा अन्त्योदय कार्ड गरीब में भी गरीब लोगों के लिए होता है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंग :
भारत के सन्दर्भ में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के प्रमुख अंग निम्न हैं –

  • राशन या उचित मूल्य की दुकानें :
    सार्वजनिक वितरण प्रणाली में खाद्यान्नों तथा अन्य आवश्यकताओं की वस्तुओं को उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गयी है। इन दुकानों पर से आवश्यकता की वस्तुओं; जैसे-गेहूँ, चावल, चीनी, मैदा, खाद्य तेल, मिट्टी का तेल एवं अन्य वस्तुएँ; जैसे-कॉफी, चाय, साबुन, दाल, माचिस आदि को वितरित किया जाता है।
  • सहकारी उपभोक्ता भण्डारण :
    सहकारी उपभोक्ता भण्डार भी सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंग हैं। इन भण्डारों के माध्यम से उपभोक्ताओं के लिए आवश्यक वस्तुओं के साथ-साथ नियन्त्रित वस्तुओं की भी बिक्री की जाती है। कुछ बड़े-बड़े उद्योगों ने भी अपने श्रमिकों को उचित मूल्य पर वस्तु उपलब्ध कराने के लिए सहकारी उपभोक्ता भण्डार खोले हैं।
  • सुपर बाजार-कुछ बड़े :
    बड़े नगरों में सुपर बाजारों की स्थापना की गई है। यहाँ आवश्यकताओं की वस्तुओं को उपभोक्ताओं के लिए उचित मूल्य पर उपलब्ध कराया जाता है।

प्रश्न 6.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का संचालन किस प्रकार किया जाता है? वर्णन कीजिए। (2009)
उत्तर :
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का संचालन केन्द्र तथा राज्य सरकारें मिलकर करती हैं। केन्द्र द्वारा राज्यों को खाद्यान्न एवं अन्य वस्तुओं का आवंटन किया जाता है एवं इन वस्तुओं का विक्रय मूल्य भी निर्धारित किया जाता है। राज्य को केन्द्र द्वारा निर्धारित मूल्य में परिवहन व्यय आदि सम्मिलित करने का अधिकार है। इस प्रणाली के अन्तर्गत प्राप्त वस्तुओं का परिवहन, संग्रहण, वितरण व निरीक्षण राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। राज्य सरकारें चाहें तो अन्य वस्तुएँ भी जिन्हें वे खरीद सकती हैं; सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सम्मिलित कर सकती हैं।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए खाद्यान्न उपलब्ध कराने का काम मुख्य रूप से भारतीय खाद्य निगम (FCI) द्वारा किया जाता है। 1965 में स्थापित भारतीय खाद्य निगम खाद्यान्नों व अन्य खाद्य सामग्री की खरीददारी, भण्डारण व संग्रहण, स्थानान्तरण, वितरण तथा बिक्री का कार्य करता है। निगम एक ओर तो यह निश्चित करता है कि किसानों को उनके उत्पादन की उचित कीमत मिले (जो सरकार द्वारा निर्धारित वसूली/ समर्थन कीमत से कम न हो) तथा दूसरी ओर यह निश्चित करता है कि उपभोक्ताओं को भण्डार से एक-सी कीमतों पर खाद्यान्न उपलब्ध हो। निगम को यह भी उत्तरदायित्व सौंपा गया है कि वह सरकार की ओर से खाद्यान्नों के बफर स्टॉक बना कर रखे।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चावल उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
(2009)
(i) प्रथम
(ii) द्वितीय
(iii) तृतीय
(iv) चतुर्थ।
उत्तर:
(ii) द्वितीय

प्रश्न 2.
विश्व के कुल चावल उत्पादन का लगभग कितना प्रतिशत चावल भारत में होता है?
(i) 21.5 प्रतिशत
(ii) 31.4 प्रतिशत
(iii) 11.4 प्रतिशत
(iv) 7.5 प्रतिशत।
उत्तर:
(iii) 11.4 प्रतिशत

प्रश्न 3.
गेहूँ उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
(i) पहला
(ii) दूसरा
(iii) तीसरा
(iv) चौथा।
उत्तर:
(iii) तीसरा

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प्रश्न 4.
विश्व में बाजरा उत्पादन में भारत का कौन-सा स्थान है?
(i) पहला
(ii) दूसरा
(iii) तीसरा
(iv) चौथा।
उत्तर:
(i) पहला

प्रश्न 5.
न्यूनतम समर्थन मूल्य नीति सरकार द्वारा कब अपनायी गयी?
(i) 1960
(ii) 1963
(iii) 1962
(iv) 1965
उत्तर:
(iv) 1965

प्रश्न 6.
गरीबों में भी गरीब लोगों के लिये किस प्रकार के राशन कार्ड की व्यवस्था है?
(i) बी. पी. एल. कार्ड,
(ii) अन्त्योदय कार्ड
(iii) ए. पी. एल. कार्ड
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) अन्त्योदय कार्ड

प्रश्न 7.
भारतीय खाद्य निगम (E.C.I.) की स्थापना कब हुई थी?
(i) 1955
(ii) 1965
(iii) 1967
(iv) 1968
उत्तर:
(ii) 1965

प्रश्न 8.
खाद्यान्न अन्त्योदय अन्य योजना का शुभारम्भ कब किया गया था?
(i) 25 दिसम्बर, 2000
(ii) 25 दिसम्बर, 1995
(iii) 25 दिसम्बर, 2005
(iv) 25 दिसम्बर, 1993।
उत्तर:
(i) 25 दिसम्बर, 2000

रिक्त स्थान पूर्ति

  1. समय के अनुसार खाद्यान्न फसलों को ………… तथा ………… भागों में बाँटा गया है। (2008)
  2. चावल के उत्पादन में भारत का विश्व में …………. स्थान है। (2009)
  3. ज्वार उत्तर भारत में ……….. की फसल है।
  4. खाद्यान्न उचित कीमत पर उपलब्ध कराने के लिए ……….. का विकास किया गया है।
  5. गरीबों में भी गरीब लोगों के लिए ………… कार्ड।

उत्तर:

  1. रबी तथा खरीफ
  2. दूसरा
  3. खरीफ
  4. खाद्य सुरक्षा प्रणाली
  5. अन्त्योदय।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
गेहूँ उत्पादन की दृष्टि से भारत विश्व में तीसरे स्थान पर है। (2008, 09)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 2.
विश्व के कुल चावल उत्पादन का 10% से कम चावल भारत में होता है। (2008)
उत्तर:
असत्य

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प्रश्न 3.
विश्व में बाजरा उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
सरकार ने जुलाई 2003 में ‘सर्वप्रिय’ नाम की एक योजना प्रारम्भ की। (2011)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 5.
खरीफ की फसल गेहूँ है।
उत्तर:
असत्य

सही जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 18 भारत में खाद्यान्न सुरक्षा - 5
उत्तर:

  1. → (ग)
  2. → (क)
  3. → (घ)
  4. → (ख)
  5. → (ङ)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली का अंग है।
उत्तर:
उचित मूल्य की दुकान

प्रश्न 2.
खाद्यान्न वितरित करने के लिए सरकार द्वारा बनाया गया भण्डार कहलाता हैं।
उत्तर:
बफर स्टॉक

प्रश्न 3.
अक्टूबर में बोकर मार्च-अप्रैल के अन्त में काटी जाने वाली फसल है। (2015)
उत्तर:
रबी

प्रश्न 4.
वह भुगतान जो सरकार द्वारा किसी उत्पादक को बाजार कीमत की अनुपूर्ति के लिए किया जाता है।
उत्तर:
अनुदान (सब्सिडी)

प्रश्न 5.
रोजगार आश्वासन योजना में कितने दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जाता है?
उत्तर:
100 दिन।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव जीवन की प्रमुख आवश्यकताएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
मानव जीवन की तीन प्रमुख आवश्यकताएँ रोटी, कपड़ा और मकान हैं।

प्रश्न 2.
खाद्यान्न सुरक्षा से क्या आशय है?
उत्तर:
विश्व विकास रिपोर्ट 1986 के अनुसार, “खाद्यान्न सुरक्षा सभी व्यक्तियों के लिये सही समय पर सक्रिय और स्वस्थ जीवन के लिये पर्याप्त भोजन की उपलब्धता है।”

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प्रश्न 3.
वर्तमान में खाद्यान्न सुरक्षा का महत्त्व अधिक क्यों है?
उत्तर:
वर्तमान में एक ओर तो हमारी अर्थव्यवस्था विकासशील है दूसरी ओर जनसंख्या तीव्रता से बढ़ रही है। अतः खाद्यान्नों की बढ़ती हुई माँग की पूर्ति के लिये खाद्यान्न सुरक्षा बहुत आवश्यक है।

प्रश्न 4.
भारत ने किस वर्ष भयंकर सुखे का सामना किया था व किस देश से गेहूँ आयात किया था?
उत्तर:
भारत ने सन् 1965-66 और 1966-67 में मानसून की विफलता के कारण भयंकर सूखे का सामना किया था तथा अमेरिका से गेहूँ आयात किया था।

प्रश्न 5.
खरीफ की फसलों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
खरीफ की फसलें जुलाई में बोई तथा अक्टूबर में काटी जाती है। इसके अन्तर्गत चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि खाद्यान्न फसलें आती हैं।

प्रश्न 6.
रबी की फसल से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
रबी की फसल अक्टूबर में बोई जाती है तथा मार्च के अन्त में या अप्रैल में काट ली जाती है। इसके अन्तर्गत गेहूँ, जौ, चना आदि खाद्यान्न फसलें शामिल की जाती है।

प्रश्न 7.
भारत में प्रमुख चावल उत्पादक राज्य कौन से हैं?
उत्तर:
भारत में प्रमुख चावल उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ तथा असम हैं।

प्रश्न 8.
भारत के प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत के प्रमुख गेहूँ उत्पादक राज्य निम्न हैं-उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, उत्तराखण्ड व गुजरात।

प्रश्न 9.
लक्ष्य आधारित सार्वजनिक वितरण प्रणाली कब प्रारम्भ की गयी?
उत्तर:
गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को खाद्यान्न की न्यूनतम मात्रा सुनिश्चित रूप से उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 1997 में यह प्रणाली प्रारम्भ की गई।

प्रश्न 10.
राशन कार्ड कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
राशन कार्ड तीन प्रकार के होते हैं-

  1. बी. पी. एल. कार्ड
  2. ए. पी. एल. कार्ड
  3. अन्त्योदय कार्ड।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मोटे अनाज के अन्तर्गत किस अनाज को सम्मिलित किया जाता है? ये अनाज कहाँ-कहाँ पैदा होते हैं? (2011)
उत्तर:
पाठान्त अभ्यास के अन्तर्गत दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1 में ज्वार, बाजरा तथा मक्का शीर्षक देखें।

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प्रश्न 2.
सरकार द्वारा जुलाई 2000 में प्रारम्भ की गई ‘सर्वप्रिय’ योजना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
आम जनता को बुनियादी आवश्यकताओं की वस्तुएँ सस्ते मूल्य पर उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने 21 जुलाई, 2000 को यह योजना शुरू की। इसके अन्तर्गत राशन की दुकानों से खाद्यान्नों के अतिरिक्त 11 अन्य वस्तुएँ आम जनता को उपलब्ध करायी जा रही हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 18 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की खाद्यान्न फसलों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है? वर्णन कीजिए। (2010)
उत्तर:
भारत की खाद्यान्न फसलें भारत में खाद्यान्न पैदावार अलग-अलग समय पर अलग-अलग होती है। अतः समय के अनुसार इन खाद्यान्न फसलों को निम्नलिखित भागों में बाँटा जा सकता है
I.खरीफ की फसलें :
ये फसलें जुलाई में बोई तथा अक्टूबर में काटी जाती हैं। इसके अन्तर्गत मुख्य फसलें चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, पटसन और मूंगफली आदि हैं।

II. रबी की फसलें :
ये फसलें अक्टूबर में बोई जाती हैं तथा मार्च के अन्त या अप्रैल में काटी जाती हैं। इसके अन्तर्गत गेहूँ, जौ, चना, सरसों और अलसी आदि हैं। भारत के प्रमुख खाद्यान्नों (अनाज) का विवरण निम्न प्रकार है –
(1) चावल :
यह खरीफ की फसल है। यह भारतवासियों का प्रिय भोजन है। भारत में कुल खाद्य-फसलों को बोये गये क्षेत्रफल के 25 प्रतिशत भाग पर चावल बोया जाता है। चीन के बाद चावल के उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। संसार के कुल उत्पादन का 11.4 प्रतिशत चावल भारत में होता है।

भारत में चावल का उत्पादन आन्ध्र प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान व असम राज्यों में होता है। भारत में चावल के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि रासायनिक उर्वरकों और उन्नत बीजों के प्रयोग के कारण हो रही है। इस समय देश चावल के उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के साथ-साथ इसका निर्यात भी कर रहा है।

(2) गेहूँ :
चावल के पश्चात् गेहूँ भारत का सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न है। गेहूँ रबी की फसल है। विश्व में भारत गेहूँ उत्पादन की दृष्टि से चीन व संयुक्त राज्य अमेरिका के बाद तीसरे स्थान पर व क्षेत्रफल की दृष्टि से पाँचवें स्थान पर है। भारत में मुख्यतः दो प्रकार का गेहूँ उगाया जाता है।

  • वल्गेयर गेहूँ :
    यह चमकीला, मोटा और सफेद होता है। इसे साधारणतः रोटी का गेहूँ कहते हैं।
  • मैकरानी गेहूँ :
    यह लाल छोटे दाने वाला और कठोर होता है। देश में गेहूँ उत्पादक प्रमुख राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान तथा गुजरात हैं। भारत गेहूँ के उत्पादन में आत्मनिर्भर है। यद्यपि चालू वर्ष में संचित स्टॉक में कमी के कारण भारत को गेहूँ का आयात करना पड़ा।

(3) ज्वार :
यह दक्षिण भारत में किसानों का मुख्य भोजन है। उत्तरी भारत में यह पशुओं को खिलायी जाती है। ज्वार से अरारोट बनाया जाता है जिसके अनेक आर्थिक उपयोग होते हैं। उत्तर भारत में यह खरीफ की फसल है, लेकिन दक्षिण में यह खरीफ एवं रबी दोनों की फसल है। भारत के कुल ज्वार उत्पादन का लगभग 87 प्रतिशत भाग मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आन्ध्र प्रदेश में होता है।

(4) बाजरा :
विश्व में बाजरा उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है। राजस्थान, मध्य प्रदेश व गुजरात में इसका प्रयोग खाद्यान्न के रूप में किया जाता है। इसका उपयोग पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है। यह उत्तर भारत में खरीफ की फसल है। दक्षिण भारत में यह रबी और खरीफ दोनों की फसल है। देश के कुल उत्पादन का 96 प्रतिशत भाग राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश व पंजाब में उत्पादित किया जाता है।

(5) मक्का :
मक्का मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों की उपज है। इसका उपयोग पशुओं के चारे और खाने के लिए किया जाता है। मानव भी मक्के के विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ उपयोग करता है। इससे स्टार्च और ग्लूकोज तैयार किया जाता है। यह हमारे देश के लगभग सभी राज्यों में उत्पादित किया जाता है, लेकिन प्रमुख रूप से यह उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात व कर्नाटक में उत्पादित किया जाता है।

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MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

MP Board Class 9th Science Chapter 13 पाठ के अन्तर्गत के प्रश्नोत्तर

प्रश्न श्रृंखला-1 # पृष्ठ संख्या 200

प्रश्न 1.
अच्छे स्वास्थ्य की दो आवश्यक स्थितियाँ बताइए।
उत्तर:
अच्छे स्वास्थ्य की आवश्यक स्थितियाँ:

  1. अपनी रुचि वाले कार्य करने में मन लगना।
  2. विभिन्न सामाजिक एवं सामुदायिक कार्यों में रुचि लेना।

प्रश्न 2.
रोगमुक्ति की कोई दो आवश्यक स्थितियाँ बताइए।
उत्तर:
रोगमुक्ति की आवश्यक स्थितियाँ:

  1. ठीक प्रकार से भूख लगना।
  2. विभिन्न अंगों के क्रियाकलाप ठीक से चलना।

प्रश्न 3.
क्या उपर्युक्त प्रश्नों के उत्तर एक जैसे हैं अथवा भिन्न? क्यों?
उत्तर:
नहीं, दोनों भिन्न-भिन्न हैं। क्योंकि नीरोग (रोगमुक्त) होना व्यक्तिगत एवं शारीरिक होता है। नीरोग होते हुए भी व्यक्ति मानसिक एवं सामाजिक रूप से अस्वस्थ हो सकता है।

प्रश्न श्रृंखला-2 # पृष्ठ संख्या 203

प्रश्न 1.
ऐसे तीन कारण लिखिए जिससे आप सोचते हैं कि आप बीमार हैं तथा चिकित्सक के पास जाना चाहते हैं। यदि इनमें से एक भी लक्षण हो तो क्या आप फिर भी चिकित्सक के पास जाना चाहेंगे ? क्यों अथवा क्यों नहीं ?
उत्तर:
बीमार होने के कारण जिससे हम सोचते हैं कि हम बीमार हैं और चिकित्सक के पास जाना चाहिए –

  1. लम्बे समय तक खाँसी-जुकाम का बना रहना।
  2. तीव्र सिरदर्द या शारीरिक दर्द होना।
  3. भूख नहीं लगना।

किसी एक लक्षण के होने पर भी हमको चिकित्सक के पास जाना चाहिए क्योंकि वह लक्षण किसी बड़ी बीमारी के कारण भी हो सकता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किसके लम्बे समय तक रहने के कारण आप समझते हैं कि आपके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा? तथा क्यों?
1. यदि आप पीलिया रोग से ग्रस्त हैं।
2. यदि आपके शरीर पर जूं (lice) हैं।
3. यदि आप मुँहासों से ग्रस्त हैं।
उत्तर:
यदि हम पीलिया रोग से ग्रस्त हैं तो इसके लम्बे समय तक रहने से हमारे स्वास्थ्य पर बहुत भयानक प्रभाव पड़ेगा। मृत्यु भी सम्भव है।

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प्रश्न श्रृंखला-3 # पृष्ठ संख्या 210

प्रश्न 1.
जब आप बीमार होते हैं तो आपको सुपाच्य तथा पोषणयुक्त भोजन करने का परामर्श क्यों दिया जाता है?
उत्तर:
जब हम बीमार होते हैं तो हमको सुपाच्य तथा पोषणयुक्त भोजन करने का परामर्श दिया जाता है जिससे हमारी शारीरिक शक्ति बढ़े तथा रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा तन्त्र सुदृढ़ हो।

प्रश्न 2.
संक्रामक रोग फैलने की विभिन्न विधियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
संक्रामक रोग फैलने की विभिन्न विधियाँ:

  1. वायु द्वारा
  2. पानी द्वारा
  3. लैंगिक क्रियाओं द्वारा
  4. अन्य रोगवाहकों द्वारा।

प्रश्न 3.
संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए आपके विद्यालय में कौन-कौन सी सावधानियाँ आवश्यक हैं? (2019)
उत्तर:
संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए विद्यालय में आवश्यक सावधानियाँ –

  1. संक्रमित छात्र एवं छात्राओं को विद्यालय आने से रोकना चाहिए।
  2. विद्यालय के अन्दर एवं आसपास स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए।
  3. विद्यालय परिसर में जलभराव एवं अपशिष्ट पदार्थों को एकत्रित होने से रोकना चाहिए।
  4. सम्पूर्ण विद्यालय में रोगाणुनाशक रसायनों का छिड़काव कराना चाहिए।
  5. स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना चाहिए तथा उसे ढककर रखना चाहिए।
  6. छात्र/छात्राओं का उपयुक्त टीकाकरण कराया जाना चाहिए।

प्रश्न 4.
प्रतिरक्षीकरण क्या है? (2019)
उत्तर:
प्रतिरक्षीकरण:
“विभिन्न संक्रामक रोगों के लिए उपलब्ध टीका लगवाकर (टीकाकरण द्वारा) प्रतिरक्षा तन्त्र को विकसित करना प्रतिरक्षीकरण कहलाता है।”

प्रश्न 5.
आपके पास में स्थित स्वास्थ्य केन्द्र में टीकाकरण के कौन-से कार्यक्रम उपलब्ध हैं? आपके क्षेत्र में कौन-कौन सी स्वास्थ्य सम्बन्धी मुख्य समस्याएँ हैं?
उत्तर:
(निर्देश-इस प्रश्न का उत्तर छात्र/छात्राएँ स्वयं लिखें)।

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MP Board Class 9th Science Chapter 13 पाठान्त अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पिछले एक वर्ष में आप कितनी बार बीमार हुए? बीमारी क्या थी?
(a) इन बीमारियों को हटाने के लिए आप अपनी दिनचर्या में क्या परिवर्तन करेंगे?
(b) इन बीमारियों से बचने के लिए आप अपने पास-पड़ोस में क्या परिवर्तन करना चाहेंगे?
उत्तर:
(निर्देश-इस प्रश्न का उत्तर छात्र/छात्राएँ स्वयं लिखें।)

प्रश्न 2.
डॉक्टर/नर्स/स्वास्थ्य कर्मचारी अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा रोगियों के सम्पर्क में अधिक रहते हैं। पता करो कि वे अपने आप को बीमार होने से कैसे बचाते हैं?
उत्तर:
डॉक्टर/नर्स/स्वास्थ्य कर्मचारी अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा रोगियों के सम्पर्क में अधिक समय तक रहते हैं लेकिन वे संक्रमण से बचने के लिए विभिन्न सावधानियाँ रखते हैं –

  1. मुँह एवं नाक को ढककर रखते हैं जिससे साँस द्वारा रोगाणु प्रवेश न कर सकें।
  2. हाथों में दस्ताने पहनते हैं जिससे मरीज को छूने पर रोगाणु त्वचा के सम्पर्क में न आयें।
  3. स्वच्छ धुले हुए कपड़े, एप्रिन आदि पहनते हैं।
  4. एण्टीसेप्टिक लोशन या साबुन से हाथ साफ करते हैं।

प्रश्न 3.
अपने पास-पड़ोस में एक सर्वेक्षण कीजिए तथा पता लगाइए कि सामान्यतः कौन-सी तीन बीमारियाँ होती हैं? इन बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए अपने स्थानीय प्रशासन को तीन सुझाव दीजिए।
उत्तर:
(निर्देश-इस प्रश्न का उत्तर छात्र/छात्राएँ स्वयं लिखें।)

प्रश्न 4.
एक बच्चा अपनी बीमारी के विषय में नहीं बता पा रहा है। हम कैसे पता करेंगे कि –
1. बच्चा बीमार है।
2. उसे कौन-सी बीमारी है?
उत्तर:

  1. बच्चा रोता रहता है, वह खाना नहीं खाता है तथा असहज या सुस्त रहता है तो हम समझते हैं कि वह बीमार है।
  2. बच्चे को कौन-सी बीमारी है? यह पता करने के लिए हम चिकित्सक से परामर्श करेंगे तथा उसकी मेडीकल जाँच करायेंगे।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में किन परिस्थितियों में कोई व्यक्ति पुनः बीमार हो सकता है? क्यों?
1. जब वह मलेरिया से ठीक हो रहा है।
2. वह मलेरिया से ठीक हो चुका है और वह चेचक के रोगी की सेवा कर रहा है।
3. मलेरिया से ठीक होने के बाद चार दिन उपवास करता है और चेचक के रोगी की सेवा करता है।
उत्तर:
1. जब व्यक्ति मलेरिया से ठीक हो रहा है तो वह शारीरिक रूप से कुछ कमजोर होगा और यदि वह अपने उपचार में लापरवाही करेगा तथा उचित आहार नहीं लेगा तो उसके पुनः बीमार होने की सम्भावना रहती है।

2. मलेरिया से ठीक हुआ व्यक्ति चेचक रोगी की सेवा करेगा और आवश्यक सावधानियाँ नहीं रखेगा तो वह चेचक से संक्रमित हो सकता है तथा पुनः बीमार हो सकता है।

3. मलेरिया से ठीक होने के बाद चार दिन तक उपवास करने से उस व्यक्ति का प्रतिरक्षा तन्त्र अत्यन्त कमजोर हो जायेगा अतः उस व्यक्ति की चेचक से संक्रमित होने की सम्भावना और अधिक हो जायेगी और वह व्यक्ति पुनः बीमार हो सकता है।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किन परिस्थितियों में आप बीमार हो सकते हैं? क्यों?
1. जब आपकी परीक्षा का समय है।
2. जब आप बस तथा रेलगाड़ी में दो दिन तक यात्रा कर चुके हैं।
3. जब आपका मित्र खसरे से पीड़ित है।
उत्तर:

  1. अगर आपकी परीक्षा की तैयारी नहीं है तो आप परीक्षा के भय से ग्रसित हो सकते हैं।
  2. बस या रेलगाड़ी में दो दिन तक यात्रा करने पर केवल थकान हो सकती है।
  3. जब आपका मित्र खसरे से पीड़ित है और आप असावधानीपूर्वक उसके सम्पर्क में आते हैं तो आप खसरे से संक्रमित होकर बीमार हो सकते हैं।

MP Board Class 9th Science Chapter 13 परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

MP Board Class 9th Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा विषाणु रोग नहीं है ?
(a) डेंगू
(b) एड्स
(c) टायफॉइड
(d) इन्फ्लु एन्जा
उत्तर:
(c) टायफॉइड

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा जीवाणु रोग नहीं है?
(a) हैजा
(b) तपेदिक
(c) एंथ्रेक्स
(d) इन्फ्लु एन्जा
उत्तर:
(d) इन्फ्लु एन्जा

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा रोग मच्छरों से संचारित नहीं होता है? (2019)
(a) मस्तिष्क ज्वर
(b) मलेरिया
(c) टायफॉइड
(d) डेंगू
उत्तर:
(c) टायफॉइड

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा रोग जीवाणु जनित नहीं होता है?
(a) टायफॉइड
(b) एंथ्रेक्स
(c) क्षयरोग (तपेदिक)
(d) मलेरिया
उत्तर:
(d) मलेरिया

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सा रोग प्रोटोजोआ प्राणियों द्वारा होता है?
(a) मलेरिया
(b) इन्फ्लुएन्जा
(c) एड्स
(d) हैजा
उत्तर:
(a) मलेरिया

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सा व्यक्ति के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है?
(a) खाँसी-जुकाम
(b) चिकन पॉक्स (छोटी माता)
(c) तम्बाकू चबाना
(d) तनाव
उत्तर:
(c) तम्बाकू चबाना

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन-सा संक्रमित व्यक्ति आपके सम्पर्क में आने पर आपको बीमार कर सकता है?
(a) उच्च रक्तदाब
(b) आनुवंशिक उपसामान्यता
(c) छींक
(d) रुधिर कैंसर
उत्तर:
(c) छींक

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प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से किसके द्वारा एड्स नहीं फैल सकता?
(a) लैंगिक संसर्ग
(b) गले मिलना
(c) स्तनपान
(d) रक्ताधान
उत्तर:
(b) गले मिलना

प्रश्न 9.
प्रतिविषाणुक औषधियाँ बनाना प्रतिजीवाणुक दवाइयों के बनाने की अपेक्षा अधिक कठिन है क्योंकि –
(a) विषाणु (वाइरस) परपोषी की मशीनरी का उपयोग करते हैं।
(b) विषाणु (वाइरस) सजीव और निर्जीव की सीमारेखा पर है।
(c) विषाणु (वाइरस) में अपनी जैवरासायनिक प्रणाली बहुत कम है।
(d) विषाणु (वाइरस) के चारों ओर प्रोटीन से बना कवच होता है।
उत्तर:
(c) विषाणु (वाइरस) में अपनी जैवरासायनिक प्रणाली बहुत कम है।

प्रश्न 10.
निम्न में से कौन-सा रोगजनक कालाजार का कारण होता है?
(a) ऐस्केरिस
(b) ट्रिपैनोसोमा
(c) लीशमैनिया
(d) बैक्टीरिया
उत्तर:
(c) लीशमैनिया

प्रश्न 11.
यदि आप छोटे से भीड़भाड़ वाले तथा कम हवादार घर में रह रहे हैं तो आपको निम्नलिखित में से कौन-से रोग होने की सम्भावना हो सकती है?
(a) कैंसर
(b) एड्स
(c) वायु वाहित रोग
(d) हैजा
उत्तर:
(c) वायु वाहित रोग

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन-सी बीमारी मच्छर द्वारा नहीं फैलती है?
(a) डेंगू
(b) मलेरिया
(c) मस्तिष्क ज्वर (ऐन्सेफेलाइटिस)
(d) न्यूमोनिया
उत्तर:
(d) न्यूमोनिया

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से कौन-सा व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए प्रमुख नहीं है?
(a) एक स्वच्छ स्थान पर रहना
(b) अच्छी आर्थिक स्थिति
(c) सामाजिक समानता तथा मेलजोल की भावना
(d) एक बड़े और सुसज्जित भवन में रखना
उत्तर:
(b) अच्छी आर्थिक स्थिति

प्रश्न 14.
हमें अपने वातावरण में मच्छरों के प्रजनन को रोकना चाहिए क्योंकि –
(a) बहुत तीव्रगति से गुणन करते हैं और प्रदूषण फैलाते हैं।
(b) बहुत-सी बीमारियों के रोगवाहक हैं।
(c) काटते हैं और त्वचा की बीमारियों का कारण बनते हैं।
(d) विशेष कीट नहीं है।
उत्तर:
(b) बहुत-सी बीमारियों के रोगवाहक हैं।

प्रश्न 15.
आप अपने शहर में पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के बारे में जागरूक हैं? इसके लिए बच्चों का टीकाकरण किया जाता है क्योंकि –
(a) टीकाकरण, पोलियो फैलाने वाले सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देता है।
(b) पोलियो फैलाने वाले जीवों का प्रवेश रोक देता है।
(c) यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को उत्पन्न करता है।
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(c) यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को उत्पन्न करता है।

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प्रश्न 16.
विषाणुओं से हेपेटाइटिस रोग होता है। यह रोग निम्नलिखित में से किसी एक द्वारा संचरित होता है –
(a) वायु
(b) जल
(c) भोजन
(d) व्यक्तिगत सम्पर्क
उत्तर:
(b) जल

प्रश्न 17.
वेक्टर (संवाहक) की सही परिभाषा कौन-सी है?
(a) वह सूक्ष्मजीव जो संक्रामक कारकों को एक रोगग्रस्त व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति तक ले जाता है।
(b) सूक्ष्मजीव जो बहुत-से रोगों को फैलाता है।
(c) संक्रमित व्यक्ति।
(d) रोगग्रस्त पादप।
उत्तर:
(a) वह सूक्ष्मजीव जो संक्रामक कारकों को एक रोगग्रस्त व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति तक ले जाता है।

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. न्यूमोनिया …………….. रोग का एक उदाहरण है।
2. त्वचा के अनेक रोग ……………. के द्वारा फैलते हैं।
3. प्रतिजैविक आमतौर पर जैव-रासायनिक पथ को, जो ………… की वृद्धि के लिए आवश्यक है, अवरुद्ध कर देता है।
4. वे सजीव जीव जो संक्रामक कारक हों एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक ले जाते हैं, उन्हें ………… कहते हैं।
5. …………….. रोग बहुत दिन तक लगातार बने रहते हैं और शरीर पर इनका …………….. बना रहता हैं।
6. ……………. रोग कुछ दिन तक रहता है तथा शरीर पर कोई दीर्घकालिक प्रभाव नहीं छोड़ता।
7. …………….. शब्द शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक कार्य सुचारु और सुखद प्रकार से पूरा करने को परिभाषित करता है।
8. हैजा एक ……………. रोग है। (2019)
9. रक्त में हीमोग्लोबिन की कमी से …………….. होता है। (2019)
उत्तर:

  1. संचरणीय
  2. कवक
  3. जीवाणु
  4. वेक्टर
  5. दीर्घकालिक, प्रभाव
  6. तीव्र (प्रचण्ड)
  7. स्वास्थ्य
  8. संचरित (संक्रामक)
  9. एनीमिया।

सही जोड़ी बनाना
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं image 1
उत्तर:

  1. → (iii)
  2. → (iv)
  3. → (v)
  4. → (i)
  5. → (ii).

सत्य/असत्य कथन

1. उच्च रक्तचाप (दाब), अधिक वजन व व्यायाम के न करने के कारण होता है।
2. आनुवंशिक अपसामान्यताओं के कारण कैंसर होता है।
3. अम्लीय भोजन खाने के कारण पेप्टिक व्रण (अल्सर) होता है।
4. एक्ने स्टेफाइलोकोकाई के कारण नहीं होता है।
5. स्वस्थ शरीर एक ऐसी स्थिति है जिसमें शरीर के अन्दर किसी प्रकार की कोई संरचनात्मक एवं . कार्यात्मक अनियमितता न हो।
6. कॉलेरा एक संक्रामक रोग (बीमारी) है।
उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य
  6. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
HIV का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
Human Immuno Deficiency Virus.

प्रश्न 2.
AIDS का पूरा नाम लिखिए। (2019)
उत्तर:
Acquired Immuno Deficiency Syndrome.

प्रश्न 3.
एक संक्रामक रोग का नाम बताइए। (2018)
उत्तर:
हैजा।

प्रश्न 4.
प्रदूषित जल के कारण होने वाले किसी रोग का नाम लिखिए।
उत्तर:
पीलिया।

प्रश्न 5.
T.B. के रोगाणु का नाम लिखिए।
उत्तर:
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस।

प्रश्न 6.
उस विषाणु का नाम लिखिए जिसके कारण AIDS फैलता है।
उत्तर:
माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस।

प्रश्न 7.
टीकाकरण की खोज किसने की? (2018)
उत्तर:
एडवर्ड जेनर।

प्रश्न 8.
हेपेटाइटिस में हमारे शरीर का कौन-सा अंग प्रभावित होता है? (2019)
उत्तर:
यकृत।

प्रश्न 9.
टी.बी. रोग के उपचार के लिए किसका टीका लगाया जाता है? (2019)
उत्तर:
बी. सी. जी.।

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MP Board Class 9th Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संक्रामक या संचरणीय रोग किसे कहते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
संक्रामक या संचरणीय रोग:
“जो रोग वायु, जल, भोजन या कीटों के माध्यम द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलते हैं, संक्रामक या संचरणीय रोग कहलाते हैं।”
उदाहरण:
हैजा, टी. बी., फ्लू आदि।

प्रश्न 2.
असंक्रामक या असंचरणीय रोग किसे कहते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
असंक्रामक या असंचरणीय रोग:
जो रोग संक्रमित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति में नहीं फैलते, वे असंक्रामक या असंचरणीय रोग कहलाते हैं।
उदाहरण:
रक्त दाब (चाप), हृदय रोग, कैंसर आदि।

प्रश्न 3.
AIDS रोग क्या होता है?
उत्तर:
AIDS:
“एक ऐसा रोग जो AIDS के वायरस HIV द्वारा फैलाया जाता है तथा जिससे शरीर का प्रतिरक्षण संस्थान निष्क्रिय हो जाता है, एड्स (AIDS) कहलाता है।”

प्रश्न 4.
AIDS कैसे फैलता है?
उत्तर:
AIDS फैलने का कारण:
जब AIDS के वायरस HIV शरीर में किसी प्रकार प्रवेश कर जाते हैं तो वे तेजी से प्रतिरक्षण संस्थान को निष्क्रिय कर देते हैं। यह रोग असुरक्षित यौन सम्बन्धों एवं संक्रमित सुई के प्रयोग के कारण होता है।

प्रश्न 5.
बच्चों को टीका लगवाना क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
बच्चों को टीका लगवाने की आवश्यकता:
बच्चों के अन्दर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए टीका लगवाना आवश्यक है जिससे वे नीरोग एवं स्वस्थ रह सकें।

प्रश्न 6.
टायफॉइड एवं संक्रामक रोग किसके कारण होते हैं?
उत्तर:

  1. टायफॉइड साल्मोनेला टाइफी के कारण होते हैं।
  2. संक्रामक रोग सूक्ष्मजीवों के कारण होते हैं।

प्रश्न 7.
हेपेटाइटिस क्या है?
उत्तर:
हेपेटाइटिस:
“पीलिया के समान वायरस से फैलने वाला यकृत रोग हेपेटाइटिस कहलाता है।

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प्रश्न 8.
प्रोटोजोआ प्राणियों के कारण होने वाले दो रोगों के नाम लिखिए। उनके कारक जीवों के नाम बताइए।
उत्तर:
रोग का नाम      कारक का नाम
1.  मलेरिया          प्लाज्मोडियम
2.  कालाजार       लीशमैनिया

प्रश्न 9.
पेक्टिक व्रण किस जीवाणु के द्वारा होता है? प्रथम बार इस रोगजनक को किसने खोजा था?
उत्तर:

  1. जीवाणु का नाम: हेलिकोबैक्टर पाइलोरी।
  2. खोजकर्ता का नाम: मार्शल तथा वॉरेन।

प्रश्न 10.
प्रतिजैविक क्या है? कोई दो उदाहरण दीजिए। (2019)
उत्तर:
प्रतिजैविक:
“जीवाणुओं को नष्ट करने वाला वह रासायनिक पदार्थ जो सूक्ष्मजीवी से स्रावित होता है तथा रोगजनक को नष्ट कर देता है, प्रतिजैविक कहलाता है।
उदाहरण:

  1. पैनिसिलीन
  2. स्ट्रैप्टोमाइसिन।

प्रश्न 11.
टीका (वैक्सीन) की पहली बार खोज किसने की थी ? ऐसे दो रोगों के नाम लिखिए जिनका उपचार टीकाकरण से किया जा सके।
उत्तर:
टीका (वैक्सीन) के खोजकर्ता का नाम – एडवर्ड जेनर।
टीकाकरण से उपचारित रोगों के नाम –

  1. चेचक
  2. पोलियो।

प्रश्न 12.
सूक्ष्मजीवी के उन दो वर्णों के नाम लिखिए जिनसे प्रतिजैविक प्राप्त किये जा सकें।
उत्तर:
एण्टीजैविक के स्रोत सूक्ष्मजीवी:

  1. जीवाणु
  2. कवक।

प्रश्न 13.
वेक्टरों से फैलने वाले तीन रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वेक्टरों से फैलने वाले रोग:

  1. मलेरिया
  2. डेंगू
  3. कालाजार।

प्रश्न 14.
प्रतिरक्षा तन्त्र हमारे स्वास्थ्य के लिए क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
हमारे शरीर का प्रतिरक्षा तन्त्र एक प्रकार की सुरक्षा प्रणाली है जो रोगजनक सूक्ष्मजीवों के साथ लड़ता है। इसकी कोशिकाएँ संक्रामक सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने के लिए विशेषित होती हैं तथा इस तरह हमारे शरीर को स्वस्थ रखती हैं।

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प्रश्न 15.
एक ही वातावरण (आस-पास) में रहने वाले कुछ बच्चे अन्य बच्चों की अपेक्षा बहुधा बीमार रहते हैं, क्यों?
उत्तर:
दुर्बल प्रतिरक्षा तन्त्र के कारण कुछ बच्चे अन्य बच्चों की अपेक्षा बहुधा बीमार रहते हैं और यह सन्तुलित आहार और समुचित पोषण के अभाव के कारण होता है।

प्रश्न 16.
विषाणु रोगों के लिए प्रतिजैविक प्रभावी क्यों नहीं होते?
उत्तर:
प्रतिजैविक आमतौर पर जैव-संश्लेषित पथ को अवरुद्ध कर देते हैं तथा वे सूक्ष्मजीवों (जीवाणुओं) का पथ अवरुद्ध कर देते हैं यद्यपि विषाणुओं के पास अपने बहुत कम जैव-रासायनिक तन्त्र होते हैं। अतः ये प्रतिजैविक से अप्रभावित रहते हैं।

MP Board Class 9th Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए –
(a) तीव्र रोग
(b) दीर्घकालिक रोग
(c) संक्रामक रोग
(d) असंक्रामक रोग।
उत्तर:
(a) तीव्र रोग:

  1. विषाणु ज्वर
  2. फ्लू

(b) दीर्घकालिक रोग:

  1. फीलपाँव,
  2. तपेदिक (टी. बी.)

(c) संक्रामक रोग:

  1. चेचक
  2. हैजा।

(d) असंक्रामक रोग:

  1. मधुमेह
  2. घेघा (गोइटर)

प्रश्न 2.
निम्नलिखित रोगों से कौन-से अंग प्रभावित होते हैं?
(a) हेपेटाइटिस से प्रभावित अंग
(b) दौरा या अर्द्ध चेतनावस्था से प्रभावित अंग
(c) न्यूमोनिया से प्रभावित अंग
(d) कवक से प्रभावित अंग।
उत्तर:
(a) हेपेटाइटिस से प्रभावित अंग: यकृत
(b) दौरा (अर्द्ध चेतनावस्था) से प्रभावित अंग: मस्तिष्क
(c) न्यूमोनिया से प्रभावित अंग: फुफ्फुस (फेफड़े)
(d) कवक से प्रभावित अंग: त्वचा

प्रश्न 3.
निम्नलिखित रोगों को संक्रामक तथा असंक्रामक में वर्गीकृत कीजिए –
(a) एड्स
(b) तपेदिक
(c) हैजा
(d) उच्च रक्तचाप
(e) हृदय रोग
(f) न्यूमोनिया
(g) कैंसर।
उत्तर:
संक्रामक रोग:
(a) एड्स
(b) तपेदिक
(c) हैजा
(f) न्यूमोनिया।

असंक्रामक रोग:
(d) उच्च रक्त चाप
(e) हृदय रोग
(g) कैंसर।

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प्रश्न 4.
रोग से क्या तात्पर्य है? आपने कितने प्रकार के रोगों का अध्ययन किया है ? उनके उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
रोग:
“जब शरीर क क या एक से अधिक तन्त्रों के क्रियान्वयन या दिखने में शरीर में बदतर परिवर्तन आने लगे तो इस अवस्था को रोग कहते हैं।”
हमने निम्न चार प्रकार के रोगों का अध्ययन किया है –

  1. तीव्र रोग: उदाहरण-इन्फ्लु एन्जा।
  2. दीर्घकालिक: उदाहरण-तपेदिक (टी. बी.)
  3. संक्रामक: उदाहरण-न्यूमोनिया
  4. असंक्रामक: उदाहरण-कैंसर।

प्रश्न 5.
रोग लक्षण से आप क्या समझते हैं? दो उदाहरण देकर व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
रोग लक्षण:
“जब शरीर के एक या एक से अधिक तन्त्रों के क्रियान्वयन या दिखने में शरीर में बदतर परिवर्तन आने लगे तो यहाँ रोग के निश्चित अपसामान्य लक्षण हैं। मनुष्य में ये दिखाई देने वाले परिवर्तन लक्षण कहलाते हैं। लक्षण किसी विशेष रोग के सूचक हैं।”
उदाहरण:

  1. त्वचा पर विक्षत चिकन पॉक्स के लक्षण हैं।
  2. कफ फुफ्फुस संक्रमण का लक्षण है।

प्रश्न 6.
“रोग की रोकथाम उसके उपचार से बेहतर है।” इस कथन की सार्थकता दिखाने के लिए आप कौन-सी सावधानियाँ बरतेंगे?
उत्तर:
रोग की रोकथाम उसके उपचार से बेहतर है। रोग की रोकथाम के लिए हमें निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिए –

  1. वातावरण को स्वच्छ बनाए रखना।
  2. रोग तथा उसके कारक के बारे में जागरूकता बनाए रखना।
  3. सन्तुलित आहार का सेवन करना।
  4. स्वास्थ्य की नियमित जाँच कराते रहना।

प्रश्न 7.
“किसी संक्रामक सूक्ष्मजीव से संक्रमित होने या उसके प्रभाव में आने का अर्थ अनिवार्य रूप से किसी रोग से ग्रस्त होना नहीं है।” इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हमारे शरीर में प्रबल प्रतिरक्षा तन्त्र होते हुए आमतौर पर ये सूक्ष्मजीवों से लड़ते रहते हैं। हमारी कोशिकाएँ रोगजनक सूक्ष्मजीवों को नष्ट करने के लिए विशेषित होती हैं। जब कोई संक्रामक सूक्ष्मजीव हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो ये कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं और यदि ये रोगजनक को दूर करने में सफल हो जाती हैं तब हम निरोग रहते हैं। अत: यदि हम संक्रामक सूक्ष्मजीव से मुक्त भी हो गए तो भी यह जरूरी नहीं कि हम रोगग्रस्त हैं।

प्रश्न 8.
किसी व्यक्ति के लिए वे कौन-सी चार बातें हैं जो उसे स्वस्थ बनाए रखने के लिए आवश्यक होती हैं?
उत्तर:
एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए आवश्यक है कि –

  1. उसके आस-पास का पर्यावरण स्वच्छ हो जिससे वह वायु वाहित एवं जल वाहित रोगों से बच सके।
  2. व्यक्तिगत स्वच्छता का सदैव ध्यान रखे। इससे संक्रामक रोगों से रक्षा होती है।
  3. पर्याप्त और समुचित पोषक तत्वों तथा सन्तुलित आहार का सेवन करे। इससे शरीर का प्रतिरक्षा तन्त्र सुदृढ़ होता है।
  4. विभिन्न रोगों के लिए प्रतिरक्षीकरण (टीकाकरण) करवाये, जिससे रोगों से बचा जा सके।

प्रश्न 9.
एड्स को एक सिण्ड्रोम क्यों कहा गया है, रोग नहीं?
उत्तर:
एड्स (AIDS) का कारक HIV वायरस किसी भी विधि, जैसे लैंगिक असुरक्षित यौन सम्बन्ध, रक्ताधान या संक्रमित सुई के प्रयोग द्वारा हमारे शरीर में प्रवेश करता है तो पूरे शरीर में फैली लसिका ग्रन्थियों तक पहुँच जाता है। विषाणु शरीर के प्रतिरक्षातन्त्र को नष्ट कर देता है और इस कारण अधिकांश मामूली संक्रमण से भी नहीं लड़ा जा सकता।

हल्की खाँसी, जुकाम न्यूमोनिया का रूप धारण कर लेता है। आन्त्र का हल्का संक्रमण रुधिर हानि के साथ भयंकर पेचिश बन सकता है। अत: एड्स के कोई विशेष रोग लक्षण नहीं हैं बल्कि यह जटिल रोग लक्षणों का परिणाम है। अतः इसे रोग नहीं, सिण्ड्रोम कहा जाता है।

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प्रश्न 10.
संक्रामक एवं असंक्रामक रोगों में अन्तर स्पष्ट कीजिए। (2019)
उत्तर:
संक्रामक एवं असंक्रामक रोगों में अन्तर:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं image 2

MP Board Class 9th Science Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक शर्ते लिखिए तथा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक शर्ते:
1. पोषण:
सन्तुलित आहार अच्छे स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है।

2. स्वास्थ्यकारी आदतें एवं जीवन शैली:
अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वास्थ्यकारी आदतें एवं अच्छी जीवन । शैली भी अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। जैसे –

  • शारीरिक स्वच्छता का ध्यान रखना, नित्य स्नान करना, ब्रुश करना, स्वच्छ कपड़े पहनना, खाने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोना।
  • भोजन, जल एवं अन्य खाद्य पदार्थों को ढककर रखना, रसोई के बर्तनों को साफ रखना।
  • प्रदूषण रहित वातावरण बनाए रखना।
  • घर, नालियाँ एवं आस-पास सफाई रखना तथा कूड़ा-करकट एकत्रित न होने देना।
  • धूम्रपान, तम्बाकू, शराब एवं अन्य मादक पदार्थों का सेवन न करना आदि।

3. व्यायाम एवं विश्राम:
अच्छे स्वास्थ्य के लिये नियमित व्यायाम अत्यन्त आवश्यक है। माँसपेशियों की थकान मिटाने के लिए यथासमय विश्राम की भी आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
कारण सहित व्याख्या कीजिए –
1. स्वस्थ शरीर को बनाए रखने के लिए सन्तुलित आहार करना आवश्यक होता है।
2. किसी प्राणी का स्वास्थ्य उसके आसपास के पर्यावरण की अवस्थाओं पर आश्रित होता है।
3. हमारा स्वास्थ्य हमारे आसपास के पर्यावरण की अवस्थाओं पर आश्रित होता है।
4. सामाजिक मेलजोल की भावना तथा अच्छी आर्थिक स्थिति अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
उत्तर:

1. भोजन शरीर की वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है। सन्तुलित आहार शरीर को उचित मात्रा में आवश्यक सामग्री यथा प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, खनिज लवण तथा विटामिन प्रदान करता है। प्रोटीन शरीर की वृद्धि एवं विकास तथा टूट-फूट की मरम्मत के लिए आवश्यक है। कार्बोहाइड्रेट्स एवं वसा शरीर को आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है। खनिज लवण एवं विटामिन शरीर को स्वस्थ एवं निरोग रखने में सहायक हैं तथा विभिन्न जैव-रासायनिक क्रियाओं के लिए उत्तरदायी हैं।

2. स्वास्थ्य वह अवस्था है जिसके अन्तर्गत शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक कार्य समुचित क्षमता द्वारा उचित प्रकार से किया जा सके तथा ये स्थितियाँ हमारे आस-पास के पर्यावरण पर निर्भर करती हैं। यदि क्षेत्र का वातावरण दूषित है तो हम संक्रमित या बीमार हो सकते हैं।

3. हमारा स्वास्थ्य हमारे आस-पास के पर्यावरण की अवस्थाओं पर आश्रित होता है ऐसा इसलिए कि अनेक जल वाहित बीमारियों के रोगजनक तथा रोगवाहक कीट (वेक्टर) रुके हुए जल में पनपते हैं और मनुष्यों में बीमारियाँ फैलाते हैं।

4. मनुष्य जिस समुदाय में, गाँव या शहर में रहता है वहाँ के सामाजिक और भौतिक पर्यावरण को निर्धारित करता है तथा दोनों में साम्य रखना होता है। जन-स्वच्छता व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। अच्छे जीवन-यापन के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है। स्वस्थ शरीर बनाए रखने के लिए हमें अच्छे भोजन की आवश्यकता होती है और इसके लिए हमें अधिक धन कमाना चाहिए। रोगों के उपचार के लिए भी अच्छी आर्थिक स्थिति होनी चाहिए।

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प्रश्न 3.
संक्रामक रोग फैलने की कोई पाँच विधियाँ लिखिए। (2018)
उत्तर:
संक्रामक रोग फैलने की विधियाँ:

  1. संक्रमित व्यक्ति के रक्त का स्वस्थ मनुष्य में आधान करना।
  2. संक्रमित, सुई, ब्लेड, रेजर एवं अन्य उपकरणों का उपयोग करना।
  3. संक्रमित व्यक्ति के अधिक सम्पर्क में रहना और उसके कक्ष की सफाई का ध्यान न रखना।
  4. रोगी के मलमूत्र, थूक एवं गंदगी के द्वारा।
  5. प्रदूषित वायु, जल एवं खाद्य पदार्थों का सेवन करना।
  6. मक्खी, मच्छर आदि वाहकों के द्वारा।

प्रश्न 4.
सामान्य बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए कोई पाँच सुझाव दीजिए। (2018)
उत्तर:
सामान्य बीमारियों को फैलने से रोकने के सुझाव:

  1. स्वच्छता: अपने शरीर, घर एवं आस-पास की स्वच्छता को बनाए रखना।
  2. जल एवं अन्य खाद्य पदार्थों को उचित तरीके से ढककर रखना एवं रसोई की स्वच्छता को बनाए रखना।
  3. मक्खी, मच्छरों आदि से बचाव के उपाय अपनाना।
  4. उचित एवं समयानुकूल टीकाकरण कराना।
  5. जल एवं वायु प्रदूषण को नियन्त्रित करना।
  6. धूम्रपान, तम्बाकू सेवन एवं मदिरापान आदि से बचना।

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 14 नागरिकों के संवैधानिक अधिकार एवं कर्त्तव्य

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 14 नागरिकों के संवैधानिक अधिकार एवं कर्त्तव्य

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
44वें संशोधन के द्वारा किस मौलिक अधिकार को मूल अधिकारों की सूची से हटा दिया गया है?
(i) सम्पत्ति का अधिकार
(ii) स्वतन्त्रता का अधिकार
(iii) समानता का अधिकार,
(iv) संस्कृति एवं शिक्षा का अधिकार।
उत्तर:
(i) सम्पत्ति का अधिकार

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प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सा कार्य बाल श्रम की श्रेणी में आता है?
(i) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से होटलों में, निर्माण कार्य में या खदानों में कार्य कराना
(ii) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का घूमना और शिक्षा प्राप्त करना
(iii) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के खेल के कार्य
(iv) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का शारीरिक व्यायाम करना।
उत्तर:
(i) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों से होटलों में, निर्माण कार्य में या खदानों में कार्य कराना

प्रश्न 3.
इनमें से कौन-सा अधिकार स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार से सम्बन्धित नहीं है?
(i) भाषण की स्वतन्त्रता
(ii) उपाधियों का अन्त
(iii) निवास की स्वतन्त्रता
(iv) भ्रमण की स्वतन्त्रता।
उत्तर:
(ii) उपाधियों का अन्त

प्रश्न 4.
किस लेख द्वारा उच्चतम या उच्च न्यायालय किसी भी अभिलेख को अपने अधीनस्थ न्यायालय से अपने पास मँगा सकता है?
(i) बन्दी प्रत्यक्षीकरण
(ii) उत्प्रेषण
(iii) अधिकार पृच्छा
(iv) परमादेश।
उत्तर:
(ii) उत्प्रेषण

प्रश्न 5.
6 से 14 वर्ष तक की आयु के सभी बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार किस मौलिक अधिकार के अन्तर्गत आता है?
(i) समानता का अधिकर
(ii) संस्कृति व शिक्षा का अधिकार
(iii) स्वतन्त्रता का अधिकार
(iv) संवैधानिक उपचारों का अधिकार।
उत्तर:
(ii) संस्कृति व शिक्षा का अधिकार

प्रश्न 6.
मौलिक अधिकारों का संरक्षण निम्नलिखित में से कौन करता है? (2009)
(i) संसद
(ii) विधान सभाएँ
(iii) सर्वोच्च न्यायालय
(iv) भारत सरकार।
उत्तर:
(iii) सर्वोच्च न्यायालय

प्रश्न 7.
सूचना समय पर न मिलने पर सबसे पहले अपील की जाती है
(i) विभाग प्रमुख
(ii) लोक सूचना अधिकारी
(iii) सूचना आयोग
(iv) मुख्यमंत्री।
उत्तर:
(iii) सूचना आयोग

प्रश्न 8.
राज्य के नीति निदेशक तत्व निम्न में से क्या हैं?
(i) कानून द्वारा बन्धनकारी है
(ii) न्याय योग्य हैं
(iii) राज्य के लिए रचनात्मक निर्देश है
(iv) न्यायपालिका के आदेश हैं।
उत्तर:
(iii) राज्य के लिए रचनात्मक निर्देश है

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रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. मौलिक अधिकारों के पीछे …………. की शक्ति होती है।
  2. सूचना का अधिकार बढ़ते ………… को रोकने का सशक्त अस्त्र है। (2017)
  3. संविधान के अनुच्छेद …….. के द्वारा प्रत्येक नागरिक को विधि के समक्ष समानता और संरक्षण प्राप्त है।
  4. संविधान में अस्पृश्यता …………. अपराध है।
  5. संविधान के 44वें संविधान द्वारा …………. के मौलिक अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया मया है।

उत्तर:

  1. कानून
  2. भ्रष्टाचार
  3. 14
  4. दण्डनीय
  5. सम्पत्ति के अधिकार।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कानून के समक्ष समानता का क्या अर्थ है?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 14 के अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता और संरक्षण का अधिकार प्राप्त है। संविधान की दृष्टि में कानून सर्वोपरि है। कानून से ऊपर कोई व्यक्ति नहीं है। एक-सा अपराध करने वाले समान दण्ड के भागीदार होंगे।

प्रश्न 2.
मौलिक अधिकार के प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
हमें संविधान द्वारा 6 मौलिक अधिकार प्राप्त हैं –

  1. समानता का अधिकार
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार
  4. धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार
  5. संस्कृति एवं शिक्षा सम्बन्धी अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों के अधिकार।

प्रश्न 3.
संवैधानिक में अस्पृश्यता का अन्त करने के लिए क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा नागरिकों में सामाजिक समानता लाने के लिए अस्पृश्यता के आचरण का निषेध किया गया है। नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 द्वारा राज्य अथवा नागरिकों द्वारा अस्पृश्यता का व्यवहार अपराध माना जाएगा, जिसके लिए दण्ड की व्यवस्था की गयी है।

प्रश्न 4.
सूचना का अधिकार किसे प्राप्त है?
उत्तर:
देश के प्रत्येक नागरिक को सूचना का अधिकार प्राप्त है।

प्रश्न 5.
सूचना के अधिकार किन सिद्धान्तों पर आधारित हैं?
उत्तर:
यह प्रमुख रूप से तीन सिद्धान्तों पर आधारित हैं-

  1. जवाबदेही का सिद्धान्त.
  2. सहभागिता का सिद्धान्त तथा
  3. पारदर्शिता का सिद्धान्त।

प्रश्न 6.
नीति निदेशक तत्व किसके लिए निर्देश हैं?
उत्तर:
नीति निदेशक तत्व संविधान निर्माताओं द्वारा केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों की नीतियों के निर्धारण के लिए दिये गये दिशा निर्देश हैं।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य के नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए। (2008, 09, 10, 18)
उत्तर:
नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों में अन्तर-नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों में महत्त्वपूर्ण अन्तर निम्नलिखित हैं –

  1. मूल अधिकारों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त है। इसके विपरीत राज्य के नीति-निदेशक तत्वों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त नहीं है।
  2. “मौलिक अधिकार राज्य के लिए कुछ निषेध आज्ञाएँ हैं। इनके द्वारा राज्य को यह आदेश दिया जाता है कि राज्य को क्या नहीं करना चाहिए? इसके विपरीत नीति के निदेशक सिद्धान्तों के द्वारा राज्य को ये निर्देश दिये जाते हैं कि उसे क्या करना चाहिए।”
  3. मौलिक अधिकार नागरिकों की वैधानिक माँग है, किन्तु नीति निदेशक सिद्धान्त नागरिकों की वैधानिक माँग नहीं है।
  4.  नीति-निदेशक सिद्धान्त एक प्रकार के आश्वासन है, जिनका पालन करने में सरकार किसी भी स्थिति में असमर्थ हो सकती है। इसके विपरीत मौलिक अधिकारों की उपेक्षा कोई भी सरकार नहीं कर सकती।
  5. मौलिक अधिकारों को कुछ परिस्थितियों में मर्यादित, सीमित, निलम्बित या स्थगित किया जा सकता है, परन्तु नीति-निदेशक तत्वों के साथ ऐसी बात नहीं है।
  6. 1976 तक नीति-निदेशक तत्वों की स्थिति मूल अधिकारों से गौण थी, लेकिन 42वें संविधान के संशोधन द्वारा यह स्थिति बदल गयी है। अब नीति-निदेशक तत्वों को मूल अधिकारों से उच्च स्थान प्राप्त है। इस संशोधन में यह व्यवस्था है कि यदि संसद के किसी कानून से नीति-निदेशक तत्व का पालन होता है, लेकिन उससे मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है तो कानून को न्यायालय अवैध घोषित नहीं कर सकता है।
  7. मौलिक अधिकारों का विषय व्यक्ति (Individual) है, जबकि नीति-निदेशक तत्वों का विषय राज्य (State) है।

प्रश्न 2.
मौलिक अधिकारों को न्यायिक संरक्षण किस प्रकार प्राप्त है? समझाइए।
अथवा
संवैधानिक उपचारों के अधिकार से आपका क्या तात्पर्य है? (2010)
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार-संविधान द्वारा नागरिकों को जो मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं, उनकी सुरक्षा की व्यवस्था की गई है। यदि केन्द्र सरकार, राज्य सरकार या किसी अन्य द्वारा नागरिकों के उपर्युक्त मूल अधिकारों में बाधा पहुँचाई जाती है तो नागरिक उच्च या उच्चतम न्यायालय से अपने अधिकारों की सुरक्षा की माँग कर सकते हैं। मूल अधिकारों की रक्षा के लिए ये न्यायालय निम्न प्रकार के आदेश जारी करते हैं –

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण आदेश
  2. परमादेश
  3. प्रतिशोध लेख
  4. उत्प्रेषण लेख
  5. अधिकार पृच्छा।

आपातकाल में नागरिकों के कुछ अधिकारों तथा संवैधानिक उपचारों के अधिकार को निलम्बित किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
“मौलिक अधिकार और मौलिक कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।” उक्त कथन को समझाइए।
उत्तर:
मौलिक अधिकार और मौलिक कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम अधिकारों की प्राप्ति कर्तव्यों की पूर्ति के बिना नहीं कर सकते हैं। यदि नागरिक अपने मौलिक कर्त्तव्यों को पूरा करेंगे तो उन्हें अपने मौलिक अधिकारों की प्राप्ति सरलता से हो जाएगी। अगर देश के नागरिक मौलिक कर्त्तव्यों का पालन नहीं करते हैं तो देश में अव्यवस्था होगी और अशान्ति का वातावरण उत्पन्न होगा। मौलिक कर्त्तव्यों की पूर्ति स्वस्थ सामाजिक वातावरण का निर्माण करती है। हमारे देश के संविधान में मौलिक अधिकार और मौलिक कर्तव्यों के मध्य कोई कानूनी सम्बन्ध निश्चित नहीं किया गया है। इनकी अवहेलना करने पर किसी भी प्रकार के दण्ड की व्यवस्था नहीं की गयी है। परन्तु हमारा राष्ट्र के प्रति यह दायित्व बनता है कि हम उचित प्रकार से इन कर्त्तव्यों का पालन करें। मौलिक कर्त्तव्य देश की सांस्कृतिक विरासत, राष्ट्रीय सम्पत्ति, व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रगति, देश की सुरक्षा व्यवस्था आदि को सुदृढ़ बनाने, पर्यावरण संरक्षित रखने, राष्ट्रीय आदर्शों का आदर करने की प्रेरणाएँ हैं।

प्रश्न 4.
किस प्रकार की सूचना देने के लिए सरकार बाध्य नहीं है? कोई चार छूट बताइए।
उत्तर:
कुछ सूचनाएँ या जानिकारियाँ ऐसी भी होती हैं, जो आम जनता तक नहीं पहुँचाई जा सकती हैं। उनके स्पष्ट किये जाने से देश की संप्रभुता, अखंडता, सुरक्षा और आर्थिक तथा वैज्ञानिक हित को हानि पहुँचती है। अतः कुछ सूचनाओं को न देने की छूट दी गई है। निम्नलिखित सूचना देने के लिए सरकार बाध्य नहीं है –

  1. जिस सूचना में भारत की संप्रभुता, अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हित और विदेश से सम्बन्ध की अवमानना होती हो।
  2. जिसको प्रकट करने के लिए किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकरण द्वारा मना किया गया है, जिससे न्यायालय की अवमानना होती हो।
  3. सूचना, जिसके प्रकट करने से किसी व्यक्ति के जीवन या शारीरिक सुरक्षा को भय हो।
  4. मन्त्रिमंडल के कागज-पत्र इसमें सम्मिलित हैं-मंत्रिपरिषद् सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श के अभिलेख।

प्रश्न 5.
अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देने हेतु नीति निदेशक तत्वों में क्या निर्देश हैं? लिखिए।
उत्तर:
भारत के संविधान में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करके सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करना, नीति निदेशक तत्वों का प्रमुख कार्य है। नीति निदेशक तत्व भारत में सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति को साकार करने का सपना है। अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा देने के लिए नीति निदेशक तत्वों में निम्नलिखित निर्देश दिये गये हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा बनाये रखने का प्रयास करना।
  2. राज्यों के मध्य न्याय संगत एवं सम्मानपूर्वक सम्बन्धों की स्थापना करने का प्रयास करना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून एवं संधियों का आदर करना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को मध्यस्थता द्वारा शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने का प्रयास करना।

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प्रश्न 6.
स्वतन्त्रता के अधिकार से हमें कौन-कौन सी स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हुई हैं? (2009)
अथवा
स्वतन्त्रता के अधिकारों के अन्तर्गत नागरिकों को कौन-सी स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं? (2012, 15, 17)
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-10 द्वारा नागरिकों को स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है। इससे उन्हें विचारों की अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। यह उसके शारीरिक, मानसिक तथा नैतिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक है। इनके अभाव में व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं कर सकता है। स्वतन्त्रता के अधिकार में हमें निम्नलिखित स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं –

  1. भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता।
  2. अस्त्र-शस्त्र के बिना शान्तिपूर्ण ढंग से एकत्रित होने की स्वतन्त्रता।
  3. समुदाय या संघ बनाने की स्वतन्त्रता।
  4. पूरे भारत में कहीं भी भ्रमण करने की स्वतन्त्रता।
  5. भारत के किसी भी कोने में निवास करने की स्वतन्त्रता।
  6. अपनी इच्छा के अनुकूल रोजगार या व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकारों से आशय व उसके महत्त्व को स्पष्ट कीजिए। (2008, 09, 14, 16)
उत्तर:
मौलिक अधिकार का अर्थ-मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं, जिन्हें देश के सर्वोच्च कानून में स्थान दिया गया है तथा जिनकी पवित्रता तथा उलंघनीयता को विधायिका तथा कार्यपालिका स्वीकार करते हैं, अर्थात् जिसका उल्लंघन कार्यपालिका तथा विधायिका भी नहीं कर सकती। यदि वे कोई ऐसा कार्य करें, जिनसे संविधान का उल्लंघन होता है तो न्यायपालिका उनके ऐसे कार्यों को असंवैधानिक घोषित कर सकती है। –

मौलिक अधिकारों का महत्त्व
(1) व्यक्ति के विकास में सहायक :
मौलिक अधिकार उन परिस्थितियों को उपलब्ध कराते हैं, जिनके आधार पर व्यक्ति अपनी मानसिक, शारीरिक, नैतिक, सामाजिक, धार्मिक आदि क्षेत्रों में उन्नति कर सकता है। मूल अधिकार व्यक्ति को उन क्षेत्रों में सुरक्षा और स्वतन्त्रता भी प्रदान करते हैं। इस प्रकार मौलिक अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हैं। :

(2) प्रजातन्त्र की सफलता के आधार :
हमारे देश में प्रजातन्त्रीय शासन-प्रणाली को अपनाया गया है। ‘स्वतन्त्रता’ और ‘समानता’ प्रजातन्त्र के मूल आधार हैं। बिना इसके प्रजातन्त्र की सफलता की आशा नहीं की जा सकती। भारतीय संविधान में ‘स्वतन्त्रता’ और ‘समानता’ दोनों को अधिकार के रूप में प्रस्तुत किया गया है। प्रत्येक नागरिक को शासन की आलोचना करने का अधिकार है। निर्वाचन में खड़े होने, प्रचार करने, मत देने आदि के सभी को समान अधिकार हैं। इस प्रकार मूल अधिकार सफल लोकतन्त्र के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करते हैं।

(3) एक दल की तानाशाही पर रोक :
प्रजातन्त्र में ‘बहुमत की तानाशाही’ का सदैव भय बना रहता है। अतः मूल अधिकार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करते हैं। इस प्रकार मौलिक अधिकार किसी एक दल की तानाशाही पर अंकुश लगाने में सहायक हैं।

(4) न्यायप्रालिका की सर्वोच्चता :
मौलिक अधिकारों को न्यायपालिका का संरक्षण प्राप्त है इसलिए कार्यपालिका और व्यवस्थापिका नागरिकों के मौलिक अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं।

(5) देश की सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों के अनुरूप :
मौलिक अधिकार हमारे देश की सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक आदि परिस्थितियों के अनुरूप हैं। इसलिए जीविकोपार्जन का अधिकार, शिक्षा पाने का अधिकार आदि उनमें सम्मिलित किये गये हैं।

(6) अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग के उत्थान में सहायक :
मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्ग के हितों की रक्षा करते हैं।

(7) व्यक्ति और राज्य के मध्य सामंजस्य :
श्री एम. बी. पायली के अनुसार, “मूल अधिकार एक ही समय पर शासकीय शक्ति से व्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं एवं शासकीय शक्ति द्वारा व्यक्ति स्वातन्त्र्य को सीमित करते हैं। इस प्रकार मौलिक अधिकार व्यक्ति और राज्य के मध्य सामंजस्य स्थापित करता है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के अधिकारों के अन्तर्गत नागरिकों को कौन-सी स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं? (2009, 13)
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-10 द्वारा नागरिकों को स्वतन्त्रता का अधिकार दिया गया है। इस अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्नलिखित स्वतन्त्रताएँ प्राप्त हैं –
(1) विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता :
भारत में प्रत्येक नागरिक को अपने विचारों की अभिव्यक्ति करने तथा भाषण देने की स्वतन्त्रता प्रदान की गई है। परन्तु साथ ही इस अधिकार पर कुछ प्रतिबन्ध भी लगाये गये हैं, ताकि कोई नागरिक उनका दुरुपयोग न कर सके।

(2) अस्त्र-शस्त्र रहित शान्तिपूर्ण ढंग से सभा तथा सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता :
प्रत्येक भारतीय नागरिक को बिना अस्त्र-शस्त्र के शान्तिपूर्ण ढंग से सम्मेलन करने की स्वतन्त्रता है। परन्तु देश की एकता और उसकी प्रभुता के हित में राज्य इन पर प्रतिबन्ध भी लगा सकता है।

(3) समुदाय और संघ निर्माण की स्वतन्त्रता :
भारतीय नागरिकों को अपनी सांस्कृतिक व बौद्धिक . आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संस्थाएँ तथा संघ निर्माण करने का अधिकार है।

(4) भ्रमण की स्वतन्त्रता :
भारत के सभी नागरिक बिना किसी प्रतिबन्ध या अधिकार-पत्र के भारत की सीमाओं के अन्दर कहीं भी भ्रमण कर सकते हैं।

(5) व्यवसाय की स्वतन्त्रता :
संविधान प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छानुसार व्यवसाय चुनने तथा उसे करने की स्वतन्त्रता प्रदान करता है। परन्तु वृत्ति, उपजीविका व्यापार करने की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। कारण यह है कि राज्य को स्वयं या किसी निगम के द्वारा किसी व्यापार, उद्योग या सेवा का स्वामित्व ग्रहण करने का पूरा अधिकार है। इन उद्योगों से सरकार जनता को पृथक् रख सकती है। इसके अतिरिक्त किसी व्यवसाय को ग्रहण करने के लिए व्यावसायिक योग्यता की भी शर्त लगा सकती है, जैसे-वकालत पेशा ग्रहण करने के लिए एल. एल. बी. की परीक्षा एवं प्रशिक्षण होना अनिवार्य है।

(6) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता :
बिना कारण बताये गिरफ्तारी एवं नजरबन्दी के विरुद्ध व्यवस्था के अन्तर्गत यदि किसी भी व्यक्ति को बन्दी बनाया जाता है तो उसे मजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना चौबीस घण्टे से अधिक समय तक बन्दी बनाकर नहीं रखा जा सकता है। साथ ही अभियुक्त को वकील आदि से परामर्श करने एवं पैरवी आदि कराने की भी पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त है। जिन लोगों को नजरबन्द किया जाता है उन्हें भी साधारण अवस्था में तीन महीने से अधिक समय के लिए नजरबन्द नहीं किया जा सकता है। परन्तु ‘नजरबन्दी परामर्शदात्री समिति’ जब अधिक समय के लिए नजरबन्दी की सलाह देती है तो यह अवधि बढ़ाई जा सकती है। फिर भी संसद को अधिकार रहता है कि वह निर्णय ले कि किसी व्यक्ति को अधिक से अधिक कितने समय तक नजरबन्द रखा जा सकता है।

(7) आवास की स्वतन्त्रता :
भारत के प्रत्येक नागरिक को किसी भी स्थान पर स्थायी तथा अस्थायी निवास करने की स्वतन्त्रता है। पश्चिमी बंगाल का निवासी उत्तर प्रदेश में निवास कर सकता है और उत्तर प्रदेश का निवासी पश्चिमी बंगाल में। स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकारों पर कुछ प्रतिबन्ध भी लगाये गये हैं। नागरिक जनता को भड़काने वाले भाषण नहीं दे सकते। इसी प्रकार अनैतिक तथा अपराधी समुदायों के गठन की स्वतन्त्रता नहीं है। साम्प्रदायिकता फैलाने वाले समुदाय भी नहीं बनाये जा सकते। “आन्तरिक सुरक्षा अधिनियम” (MISA) द्वारा व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर भी अंकुश लगाया जा सकता है। परन्तु यह प्रतिबन्ध विशेष परिस्थितियों में ही लगाया जाता है; सामान्य परिस्थितियों में नहीं।

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प्रश्न 3.
संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अन्तर्गत कौन से प्रमुख लेख (रिट् न्यायालय जारी करते हैं?
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-32 से 35 तक मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए संविधान में प्रबन्ध किये गये हैं। इन अधिकारों के अन्तर्गत न्यायालय निम्नलिखित पाँच प्रकार के लेख (रिट) जारी करते हैं

(1) बन्दी प्रत्यक्षीकरण आदेश :
यह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण आदेश है। इस आदेश द्वारा बन्दी व्यक्तियों को तुरन्त ही न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत करने तथा बन्दी बनाये जाने के कारण बताने का आदेश दिया जाता है। न्यायालय के विचार में यदि किसी व्यक्ति को अवैध रूप से बन्दी बनाया गया है, तो वह उसे मुक्त करने का आदेश देता है।

(2) परमादेश :
इस आदेश को उस समय जारी किया जाता है जब किसी संस्था या पदाधिकारी अपने कर्तव्यों का उचित ढंग से पालन नहीं करते जिसके परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन होता है। न्यायालय इस आदेश द्वारा संस्था या पदाधिकारी को अपने कर्तव्य पालन का आदेश दे सकता है।

(3) प्रतिषेध :
इसके द्वारा उच्च या सर्वोच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों को किसी कार्य को न करने का आदेश दे सकता है। जो विषय किसी न्यायालय के अधिकार क्षेत्र के बाहर के होते हैं, उनकी सुनवाई उस न्यायालय में न हो, उस उद्देश्य से ये लेख जारी किये जाते हैं।

(4) उत्प्रेषण :
इसके द्वारा कोई न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय को आदेश देकर सभी प्रकार के अभिलेख (रिकॉर्ड) अपने पास मँगवा सकता है।

(5) अधिकार पृच्छा :
जब किसी व्यक्ति को कानून की दृष्टि से कोई कार्य करने का अधिकार नहीं है और वह व्यक्ति उस कार्य को करता है, तब यह लेख जारी किया जाता है। उदाहरणार्थ-यदि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त किया जाता है, जिसके लिए वह कानून की दृष्टि में योग्य नहीं है, तो न्यायालय उस लेख द्वारा उसकी नियुक्ति पर तब तक के लिये रोक लगा सकता है जब तक कि उसका निर्णय न हो जाए। ये सभी लेख मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति या संस्था के विरुद्ध जारी किये जाते हैं।

प्रश्न 4.
सूचना के अधिकार के कोई दो सैद्धान्तिक आधारों का वर्णन कीजिए, साथ ही लिखिए कि यदि सूचना समय पर न मिले तो क्या करना चाहिए?
उत्तर:
सूचना के अधिकार का सैद्धान्तिक आधार यह अधिकार एक महत्त्वपूर्ण अधिकार है, क्योंकि यह प्रमुख रूप से तीन सिद्धान्तों पर आधारित है।
(1) जवाबदेही का सिद्धान्त :
हमारे शासन का स्वरूप लोकतान्त्रिक है। इससे सरकारें लोकहित के लिए उत्तरदायी ढंग से कार्य करती हैं। मात्र किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष द्वारा लाभ के लिए कार्य नहीं किया जाना चाहिए। अतः सरकार तथा इससे सम्बन्धित समस्त संगठनों एवं लोक प्राधिकरणों को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है। जनता को इनके कार्यों की जानकारी देना आवश्यक है।

(2) सहभागिता का सिद्धान्त :
एक प्रजातान्त्रिक व्यवस्था में सरकारों द्वारा अधिकांश कार्य जनता के लिए और जनता के सहयोग से किया जाता है। योजना निर्माण की प्रक्रिया में लोगों की भागीदारी होना आवश्यक है, जिससे लोगों द्वारा समय रहते जनता के हित में योजनाओं में वांछित परिवर्तन एवं संशोधन किया जा सके।

(3) पारदर्शिता का सिद्धान्त :
तीसरा आधार है-पारदर्शिता का सिद्धान्त। सार्वजनिक धन एवं समय के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार, गबन आदि को रोकने के लिए सरकारी काम-काज में पारदर्शिता होना आवश्यक है। इससे भ्रष्ट लोगों पर अंकुश लगाया जा सकता है और ईमानदार लोग निर्भय एवं निष्पक्ष होकर कार्य कर सकेंगे।

लोक सूचना अधिकारी द्वारा सूचना आधी, पूर्णतः सही न दिये जाने पर आवेदक 30 दिनों के भीतर प्रथम अपीलीय अधिकारी को अपील कर सकता है। अपीलीय अधिकारी को, अपील प्राप्त होने के सामान्यतः 30 दिन एवं अधिकतम 45 दिन के भीतर कार्यवाही अपेक्षित है। साथ ही इस कार्यवाही की सूचना आवेदक को भी दी जानी चाहिए, जिस पर 30 दिनों के भीतर कार्यवाही कर आवेदक को सूचित किया जाता है। यदि प्रथम अपीलीय अधिकारी 30 दिन के भीतर की गई प्रथम अपील पर कार्यवाही की सूचना आवेदक को नहीं देता है तो आवेदक 90 दिनों के अन्दर द्वितीय अपील राज्य सूचना आयोग में कर सकता है या सूचना आयोग को पूर्ण विवरण सहित शिकायत कर सकता है।

प्रश्न 5.
सूचना के अधिकार का महत्व स्पष्ट करते हुए सूचना आयोग के गठन के बारे में लिखिए।
अथवा
सूचना के अधिकार का महत्त्व वर्णित कीजिए। (2017)
उत्तर:
सूचना के अधिकार का महत्त्व सूचना के अधिकार का महत्त्व निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट है –
(1) मौलिक अधिकारों को प्रभावशाली बनाना :
मौलिक अधिकारों में सूचना का अधिकार भी निहित है। यह भाषण एवं अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार की रक्षा करता है। सूचना एवं जानकारी के अभाव में किसी भी व्यक्ति को सार्थक ढंग से अपनी राय अभिव्यक्त करना सम्भव नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संविधान A-21 के अन्तर्गत प्रदत्त जीवन के अधिकार से भी जोड़ा है। जानने के अधिकार के बिना जीने का अधिकार अधूरा रह जाता है।

(2) शासन को पारदर्शी बनाना :
इस अधिनियम का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है शासन में पारदर्शिता लाना। जनता के प्रतिनिधि अपने अधिकारों का उपयोग उचित ढंग से कर रहे हैं या नहीं, पैसों का उपयोग सही ढंग से हो रहा है या नहीं, इन तथ्यों की जानकारी जनता को होनी चाहिए। इससे सार्वजनिक धन के माध्यम से जन-कल्याण का उद्देश्य प्राप्त किया जा सकता है। सूचना के अधिकार से पारदर्शिता होगी और सार्वजनिक धन को सावधानी से प्रयोग करने का दबाव बनेगा।

(3) शासन में जनता की सहभागिता बढ़ाना :
भारतीय संविधान सहभागी लोकतन्त्र के सिद्धान्त पर आधारित है। इसके लिए जनता द्वारा चुनाव के माध्यम से अपने प्रतिनिधि का चयन किया जाता है, परन्तु पिछले काफी समय से नागरिकों की निष्क्रियता एक प्रमुख कारण रहा है। अतः शासन व्यवस्था में जनता की सहभागिता बढ़ाने में यह अधिकार एक प्रभावी अस्त्र है।

(4) भ्रष्टाचार पर नियन्त्रण :
सूचना का अधिकार बढ़ते हुए भ्रष्टाचार को रोकने का एक सशक्त अस्त्र है। पारदर्शिता एवं जवाबदेही के सिद्धान्त पर आधारित होने के कारण भ्रष्ट आचरण करने वाला व्यक्ति तुरन्त पहचान लिया जाएगा एवं उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जा सकेगी। इसी भय के कारण उत्तरदायी लोग अनुचित कार्यों से दूर होंगे और सुशासन की परिकल्पना को भी साकार किया जा सकता है।

(5) योजनाओं को सफल बनाना :
योजनाओं को सफल बनाने में भी सूचना के अधिकार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। शासकीय योजनाओं की सफलता मुख्य रूप से दो बातों पर निर्भर करती है-एक योजना का क्रियान्वयन सही ढंग से निर्धारित समयावधि में पूर्ण हो जाए एवं दूसरा योजना का लाभ वास्तविक लाभार्थी तक पहुँचाया जा सके। इन दोनों ही उद्देश्यों की पूर्ति में सूचना का अधिकार एक कारगर अस्त्र है।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सूचना का अधिकार एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण अधिकार है।

सूचना आयोग का गठन :
सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत राष्ट्रीय स्तर पर केन्द्रीय सूचना आयोग तथा प्रदेश स्तर पर राज्य सूचना आयोग गठन का प्रावधान है। राज्य सूचना आयोग में एक मुख्य सूचना आयुक्त के अतिरिक्त अधिक-से-अधिक.9 राज्य सहायक सूचना आयुक्त नियुक्त करने का प्रावधान है। राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है, जिसके अध्यक्ष मुख्यमन्त्री होते हैं। इस समिति में विधानसभा में विपक्ष के नेता और मुख्यमन्त्री द्वारा नामित एक मंत्री भी होते हैं। मुख्य सूचना आयुक्त व राज्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।

प्रश्न 6.
मौलिक कर्त्तव्य किसे कहते हैं? संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों का वर्णन कीजिए। (2008, 13, 15)
अथवा
संविधान में वर्णित मौलिक कर्तव्यों का वर्णन कीजिए। (2018)
उत्तर:
साधारण शब्दों में किसी काम को करने के दायित्व को कर्त्तव्य कहते हैं। मौलिक कर्त्तव्य ऐसे बुनियादी कर्तव्यों को कहते हैं जो व्यक्ति को अपनी उन्नति व विकास के लिए तथा समाज व देश की प्रगति के लिए अवश्य ही करने चाहिए।

जब भारत के संविधान का निर्माण हुआ था तब उसमें सिर्फ मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया था। इसमें कर्त्तव्यों की कोई व्याख्या नहीं की गई थी, जबकि अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए अनुच्छेद-51 (क) में निम्नलिखित मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख किया गया है –

  1. संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं और राष्ट्रगान का आदर करें।
  2. स्वतन्त्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें। .
  3. भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखण्डता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण बनाये रखें।
  4. देश की रक्षा करें और आह्वान किये जाने पर राष्ट्र की सेवा करें।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और सम्मान, भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभावों से दूर हो। ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध हैं।
  6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परम्परा का महत्त्व समझें और उसका परिरक्षण करें।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणिमात्र के प्रति दयाभाव रखें।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें।
  9. सार्वजनिक सम्पत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत् प्रयास करें, जिससे राष्ट्र निरन्तर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नयी ऊँचाइयों को छू सके।
  11. यदि माता-पिता या संरक्षक हैं, तो छ: वर्ष और चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने बालक या प्रतिपाल्य को यथास्थिति शिक्षा के अवसर प्रदान करें।

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प्रश्न 7.
नीति निदेशक तत्वों के प्रकार स्पष्ट करते हुए उनका वर्णन करें। (2016)
अथवा
गाँधीजी के विचारों के अनुकूल निदेशक तत्व कौन-से हैं? (2009)
अथवा
नीति निदेशक तत्वों के उद्देश्य स्पष्ट करते हुए उनका वर्णन कीजिए। (2009)
अथवा
राज्य के नीति निदेशक तत्वों के प्रकार का वर्णन कीजिए। (2008)
उत्तर:
नीति निदेशक तत्व भारत में सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति को साकार करने का सपना है। इनको निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है –

  1. कल्याणकारी व्यवस्था।
  2. गाँधीजी के विचारों के अनुकूल निदेशक तत्व।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा।

1. कल्याणकारी व्यवस्था :

  • देश के संसाधनों का प्रयोग लोक कल्याण के लिए किया जाए।
  • महिला और पुरुषों को समान जीविका के साधन उपलब्ध कराना।
  • धन और उत्पादन के साधन मात्र कुछ व्यक्तियों के हाथों में केन्द्रित न हो, उनका उपयोग व्यापक जनहित के लिए हो।
  • महिलाओं और पुरुषों को समान कार्य के लिए समान वेतन दिया जाए।
  • बच्चे और नवयुवकों की आर्थिक एवं नैतिक पतन से रक्षा हो।
  • सभी को रोजगार और शिक्षा प्राप्त हो, बेरोजगारी व असमर्थता में राज्य द्वारा सहायता मिले।
  • सभी व्यक्तियों को गरिमामयी जीवन स्तर, पर्याप्त अवकाश एवं सामाजिक व सांस्कृतिक सुविधाएँ प्राप्त हों। सभी के भोजन एवं स्वास्थ्य के स्तर में सुधार हो।
  • बच्चों के लिए अनिवार्य निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध हो।’

2. गाँधीजी के विचारों के अनुकूल निदेशक तत्व –

  • कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना।
  • ग्राम पंचायतों का गठन करना और उन्हें स्वशासन की इकाई बनाना।
  • पिछड़ी एवं अनुसूचित जाति तथा जनजातियों की शिक्षा एवं आर्थिक हितों का सवंर्धन करना तथा उन्हें शोषण से बचाने हेतु प्रयास करना।
  • नशीली वस्तुओं के प्रयोग पर पाबन्दी लगाना।
  • कृषि और पशुपालन को वैज्ञानिक ढंग से करवाने का प्रबन्ध करना।
  • पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु प्रयास करना व वन्य जीवों की रक्षा करना।
  • दुधारू व बोझ ढोने वाले पशुओं की रक्षा व उनकी नस्ल को सुधारने के उपाय करना।
  • सारे देश में दीवानी और फौजदारी कानून बनाना।
  • राष्ट्रीय व ऐतिहासिक महत्त्व के स्थानों की सुरक्षा करना।
  • लोक सेवा में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका को पृथक् करने का प्रयास करना।

3. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बढ़ावा-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देना।
  2. राज्यों के मध्य न्यायसंगत एवं सम्मानपूर्ण सम्बन्धों की स्थापना करने का प्रयास करना।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय कानून एवं सन्धियों का आदर करना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय झगड़ों को मध्यस्थता द्वारा शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने का प्रयास करना।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान कितने भागों में विभाजित है?
(i) 22 भागों
(ii) 20 भागों
(iii) 11 भागों
(iv) 25 भागों।
उत्तर:
(i) 22 भागों

प्रश्न 2.
इसमें से कौन सा मौलिक अधिकार नहीं है?
(i) काम करने एवं आराम करने का अधिकार
(ii) स्वतन्त्रता का अधिकार
(iii) समानता का अधिकार
(iv) शोषण के विरुद्ध अधिकार।
उत्तर:
(i) काम करने एवं आराम करने का अधिकार

प्रश्न 3.
संविधान ने नागरिक को कितने मूलाधिकार प्रदान किये हैं?
(i) 10
(ii) 8
(iii) 6
(iv) 71
उत्तर:
(iii) 6

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प्रश्न 4.
संविधान के अनुच्छेद 22 में व्यक्ति को कौन सा अधिकार प्रदान किया गया है?
(i) जीवन व व्यक्तिगत स्वतन्त्रता
(ii) गिरफ्तारी निवारण सम्बन्धी अधिकार
(iii) शोषण के विरुद्ध अधिकार
(iv) निवास व भ्रमण का अधिकार।
उत्तर:
(ii) गिरफ्तारी निवारण सम्बन्धी अधिकार

प्रश्न 5.
संवैधानिक उपचारों हेतु न्यायालय द्वारा कितने प्रकार के लेख (रिट) जारी किये गये हैं?
(i) चार प्रकार के
(ii) तीन प्रकार के
(iii) छ: प्रकार के
(iv) पाँच प्रकार के।
उत्तर:
(iv) पाँच प्रकार के।

रिक्त स्थान की पूर्ति

  1. भारतीय संविधान कुल ……. भागों में विभाजित है। (2010)
  2. संविधान में अस्पृश्यता का किसी भी रूप में व्यवहार ………… है।
  3. मौलिक अधिकारों का संरक्षण ………… करता है। (2008,09)
  4. हमें भारतीय संविधान द्वारा ………… मौलिक अधिकार प्राप्त हैं। (2011, 13)
  5. सूचना का अधिकार देश के प्रत्येक …………. को प्राप्त है। (2013)
  6. मौलिक अधिकार …………. के लिए हैं। (2014)

उत्तर:

  1. 22
  2. दण्डनीय अपराध
  3. सर्वोच्च न्यायालय
  4. 6
  5. नागरिक
  6. नागरिकों।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
संविधान ने नागरिकों को 8 मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं। (2009)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 2.
संविधान के अनुच्छेद 19 द्वारा नागरिकों को विधि के समक्ष समानता और संरक्षण प्राप्त है। (2014)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3.
20 वर्ष की आयु तक विद्यालय शिक्षा को मुफ्त व अनिवार्य बनाना है। (2012)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 4.
राज्य के नीति-निदेशक तत्व राज्य के लिए रचनात्मक निर्देश हैं। (2009)
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 5.
मौलिक कर्तव्यों का पालन प्रत्येक राज्य के प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है। (2009)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 6.
मूल अधिकारों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त है। (2015)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 7.
भारत के संविधान में अस्पृश्यता का किसी भी रूप में व्यवहार दण्डनीय अपराध है। (2016)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8.
संस्कृति और शिक्षा का अधिकार मौलिक अधिकार है। (2016)
उत्तर:
सत्य

सही जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 14 नागरिकों के संवैधानिक अधिकार एवं कर्त्तव्य - 1
उत्तर:

  1. →(ङ)
  2. →(घ)
  3. →(ख)
  4. → (क)
  5. → (ग)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकारों का संरक्षण कौन करता है? (2008)
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय

प्रश्न 2.
14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों से श्रम कहलाता है। (2012, 15)
उत्तर:
बाल अपराध

प्रश्न 3.
देश का सर्वोच्च कानून जिसमें किसी देश की राजनीति और समाज को चलाने वाले मौलिक कानून हों। (2011)
उत्तर:
संविधान

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प्रश्न 4.
भाषण की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता। (2012)
उत्तर:
स्वतन्त्रता का अधिकार

प्रश्न 5.
देश की सर्वोच्च विधायी संस्था द्वारा उस देश के संविधान में किया जाने वाला बदलाव।। (2010)
उत्तर:
संविधान संशोधन।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मौलिक अधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
वह अधिकार जो व्यक्ति के सर्वांगीण विकास एवं गरिमा के लिए आवश्यक हैं, जिन्हें देश के संविधान में अंकित किया गया है और सर्वोच्च न्यायालय जिनकी सुरक्षा करता है, मौलिक अधिकार कहलाते हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय संविधान कितने भागों में विभाजित है?
उत्तर:
भारतीय संविधान कुल 22 भागों में विभाजित है। इसके तीसरे भाग में मूल अधिकार हैं, चौथे भाग में नीति निदेशक तत्व हैं और बाद में जोड़े गये भाग चार (क) में मूल कर्त्तव्य हैं। ये सब एक ही व्यवस्था के अंग हैं।

प्रश्न 3.
बालश्रम (14 वर्ष के कम आयु वाले बच्चों से श्रम) के सम्बन्ध में कौन-सा कानून बनाया गया है?
उत्तर:
बालश्रम के सम्बन्ध में अनुच्छेद-23 एवं 24 में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को कारखानों एवं अन्य खतरनाक स्थानों पर नियुक्ति आदि पर रोक लगायी गयी है। इस सम्बन्ध में ‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ कानून बनाया गया है।

प्रश्न 4.
संवैधानिक उपचारों हेतु न्यायालय ने कितने प्रकार के लेख (रिट) जारी किये हैं ?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों हेतु न्यायालय ने पाँच प्रकार की रिट जारी की हैं। जो निम्न हैं –

  1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण
  2. प्रतिषेध
  3. परमादेश
  4. उत्प्रेषण
  5. अधिकार पृच्छा।

प्रश्न 5.
हमें कर्त्तव्य का पालन क्यों करना चाहिए?
उत्तर:
भारतीय नागरिक होने के नाते हमारा कर्तव्य है कि हम संविधान का पालन करें, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गीत का सम्मान करें अर्थात् देश की एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए हमें कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“संविधान में अस्पृश्यता का किसी भी रूप में व्यवहार दण्डनीय अपराध है।” स्पष्ट कीजिए। (2008)
अथवा
भारतीय संविधान में अस्पृश्यता का अन्त करने के लिए क्या व्यवस्था की गई है ? (2011)
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-17 द्वारा नागरिकों में सामाजिक समानता लाने के लिए अस्पृश्यता अर्थात् छुआछूत के व्यवहार का निषेध किया गया है। नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 द्वारा राज्य अथवा नागरिकों द्वारा किसी भी रूप में अस्पृश्यता का व्यवहार अपराध माना जाएगा। जो नागरिक छुआछूत को मानेगा तथा इसे बढ़ावा देगा, वह दण्ड का भागी होगा। इस अधिकार के द्वारा अछूतों के साथ किये गये अन्याय का निराकरण होता है। संविधान में यह भी स्पष्ट लिखा हुआ है कि राज्य, जाति, वंश, धर्म, लिंग तथा जन्म-स्थान के नाम पर कोई भेदभाव नहीं करेगा। अतः किसी भी व्यक्ति को दुकानों, सार्वजनिक जलपान-गृहों, कुओं, तालाबों, नदी के घाटों, सड़कों, पार्कों तथा ऐसे सार्वजनिक प्रयोग के स्थानों में नहीं रोका जा सकता है जिनको बनाये रखने का व्यय या तो पूर्णतः या आंशिक रूप से राज्य के द्वारा होता है। किसी को भी जाति या अन्य किसी आधार पर अपमानित नहीं किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
समानता के अधिकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समानता का अधिकार अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह लोकतन्त्र की आधारशिला है। इस अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को निम्न प्रकार की समानताएँ प्रदान की गई हैं –

  1. कानून के समक्ष सभी नागरिक समान हैं।
  2. धर्म, वंश, जाति, लिंग या जन्म-स्थान के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ राज्य किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा।
  3. राज्य के अधीन नौकरियों और पदों के सम्बन्ध में नियुक्ति के समान अवसर प्राप्त होंगे।
  4. अस्पृश्यता के आधार पर किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा।
  5. सेना तथा शिक्षा सम्बन्धी उपाधियों को छोड़कर अन्य सभी प्रकार की उपाधियों का अन्त।

प्रश्न 3.
जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के संरक्षण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के संरक्षण के सन्दर्भ में अनुच्छेद-21 के अनुसार किसी भी नागरिक को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त, उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है। प्रत्येक नागरिक को अपने जीवन और प्राणों की रक्षा के साथ समाज में मानवीय प्रतिष्ठा के साथ जीवित रहने का अधिकार है। इसके अन्तर्गत सम्मानजनक आजीविका के अवसर और बंधुआ मजदूरी से भी मुक्ति शामिल है। परन्तु नागरिक संविधान द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त स्वतन्त्रता का उपभोग नहीं कर सकता है।

प्रश्न 4.
गिरफ्तारी निवारण सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संविधान के अनुच्छेद-22 के अन्तर्गत देश के नागरिक को गिरफ्तारी निवारण सम्बन्धी कुछ अधिकार प्रदान किये गये हैं, जो निम्नलिखित हैं –

  1. देश के किसी भी नागरिक को उसके अपराध के विषय में बताए बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
  2. प्रत्येक आरोपी को अपने बचाव के लिए वकील से सलाह-मशविरा करने से वंचित नहीं किया जा सकता है।
  3. न्यायालय की आज्ञा के बिना किसी भी आरोपी को 24 घण्टों से ज्यादा समय तक बन्दी बनाकर नहीं रखा जा सकता है अर्थात् 24 घण्टे के भीतर आरोपी को निकटतम न्यायालय के सामने प्रस्तुत करना आवश्यक है।

प्रश्न 5.
‘शोषण के विरुद्ध अधिकार’ से नागरिकों को कौन-कौन से अधिकार प्राप्त हुए हैं?
अथवा
नागरिकों को शोषण के विरुद्ध क्या अधिकार प्राप्त हैं? (2009)
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकारों का वर्णन अनुच्छेद-23 एवं 24 में है। इन अधिकारों के द्वारा श्रमिकों, अल्पसंख्यकों तथा स्त्रियों को अन्याय व शोषण से मुक्ति दिलाने की चेष्टा की गयी है। ये निम्नलिखित हैं –

  1. बेगार व बलपूर्वक श्रम कराने का अन्त-संविधान की धारा-23 के अनुसार मनुष्यों से बेगार या बलपूर्वक कराया गया श्रम, कानून के विरुद्ध माना जाएगा।
  2. मनुष्य के क्रय-विक्रय का अन्त-संविधान के द्वारा मानव के क्रय-विक्रय को अवैध घोषित कर दिया गया है।
  3. अल्प आयु के बालकों से श्रम लेने पर रोक-14 वर्ष तक की आयु के बालकों को किसी कारखाने या खान में काम पर नहीं रखा जाएगा।
  4. स्त्रियों की सुरक्षा-संविधान में स्त्रियों को भी पुरुषों के समान अवसर देने की व्यवस्था की गयी है। स्त्रियों से किसी प्रकार का कठोर कार्य नहीं लिया जाएगा।

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प्रश्न 6.
धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार को स्पष्ट कीजिए। (2009)
उत्तर:
अनुच्छेद-25 से 28 के अन्तर्गत इस अधिकार की व्याख्या की गई है। भारत को धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया है जिसका अर्थ है कि राज्य किसी भी धर्म से सम्बन्धित नहीं रहेगा और न ही किसी धर्म विशेष का पोषण करेगा। भारतीय नागरिकों को धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की गयी है, जिसके अन्तर्गत –

  1. नागरिक अपनी इच्छानुसार किसी भी धर्म को अपना सकते हैं।
  2. प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का शान्तिपूर्वक प्रचार करने का अधिकार है।
  3. नागरिक धार्मिक संस्थाओं की व्यवस्था कर सकते हैं।
  4. अपनी धार्मिक संस्थाओं का प्रबन्ध करने तथा इनके सम्बन्ध में सम्पत्ति प्राप्त करने और व्यय करने की स्वतन्त्रता प्रत्येक नागरिक को है।
  5. राज्य द्वारा संचालित तथा सहायता प्राप्त विद्यालयों में किसी भी प्रकार की धार्मिक शिक्षा प्रदान नहीं की जाएगी।

प्रश्न 7.
संस्कृति तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
संविधान की 29वीं एवं 30वीं धाराओं में नागरिकों के संस्कृति व शिक्षा सम्बन्धी अधिकारों का उल्लेख किया गया है, जो निम्नलिखित हैं –

  1. भाषा, लिपि व संस्कृति की सुरक्षा-प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भाषा, लिपि एवं विशिष्ट संस्कृति की रक्षा व प्रचार-प्रसार करने का अधिकार है।
  2. सहायता अनुदान में निष्पक्षता-सरकार समस्त विद्यालयों को चाहे वे अल्पसंख्यकों के हों या बहुसंख्यकों के, सभी को समान अनुदान देगी।
  3. शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश की समानता-जाति, भाषा व धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक को सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में प्रवेश से नहीं रोका जा सकता।
  4. शिक्षण संस्थाओं की स्थापना का अधिकार-संविधान के अनुच्छेद-30 के अनुसार समस्त अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्थाओं को स्थापित करने का अधिकार है।

प्रश्न 8.
राज्य के नीति निदेशक तत्वों से क्या तात्पर्य है? इनके क्या उद्देश्य हैं?
उत्तर:
भारत के संविधान में कल्याणकारी राज्य की स्थापना कर सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय प्रदान करने के लिए नीति निदेशक सिद्धान्तों को शामिल किया गया है। नीति निदेशक तत्व संविधान निर्माताओं द्वारा केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों को नीतियों के निर्धारण के लिए दिए गए दिशा निर्देश हैं। ये निर्देश शासन प्रशासन के समस्त अधिकारियों के लिए मार्गदर्शक सिद्धान्त भी हैं। यह अपेक्षा की जाती है कि इनके अनुसार ही सभी कार्य सम्पन्न हों, परन्तु ऐसा न होने पर नागरिक इसकी अपील न्यायालय में नहीं कर सकता है। जबकि मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में ऐसा नहीं है। नीति निदेशक तत्व राज्य के कर्त्तव्य हैं। ये भारतीय संविधान की विशेषता है।

नीति निदेशक तत्वों के उद्देश्य :
नीति निदेशक तत्व भारत में सामाजिक और आर्थिक क्रान्ति को साकार करने का सपना है। इनका उद्देश्य आम आदमी की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना और समाज के ढाँचे को परिवर्तित कर भारतीय जनता को सही अर्थों में समान एवं स्वतन्त्र बनाना है। इन तत्वों का उद्देश्य भारत को :

  1. कल्याणकारी राज्य में बदलना
  2. गाँधीजी के विचारों के अनुकूल बनाना तथा
  3. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के पोषक राज्य के रूप में विकसित करना है।

प्रश्न 9.
सूचना के अधिकार से सम्बन्धित सूचनाएँ हम किन स्रोतों से प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर:
सूचनाएँ दो प्रकार से प्राप्त की जा सकती हैं –

  1. प्रकाशित सूचनाओं द्वारा :
    विभाग और शासकीय निकाय समय-समय पर स्वयं से सम्बन्धित जानकारियाँ प्रकाशित करते हैं, अतः सूचनाएँ उनसे मिल जाती हैं।
  2. आवेदन-पत्र प्रस्तुत करके :
    इस प्रकार सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदक को सादे कागज पर अपना नाम, पता दर्शाते हुए विभाग, शासकीय निकाय के सक्षम प्राधिकारी के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करना होता है। आवश्यक दस्तावेजों की छाया प्रतियाँ भी माँगी जा सकती हैं। इस हेतु कुछ शुल्क का प्रावधान भी है।

प्रश्न 10.
सूचना के अधिकार के अन्तर्गत हम सरकारी कार्यालय से जानकारी कैसे प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर:
सूचना के अधिकार के तहत किसी भी सरकारी कार्यालय से जानकारी निम्नलिखित रूपों में प्राप्त की जा सकती है –

  1. दस्तावेज की फोटोकॉपी
  2. दस्तावेज एवं आँकड़ों की सी. डी. फ्लॉपी, वीडियो कैसेट की प्रति
  3. प्रकाशन जो सम्बन्धित विभाग द्वारा प्रकाशित किए गए हों
  4. दस्तावेजों का अवलोकन अर्थात् दस्तावेजों को उन्हीं के कार्यालय में पढ़ा जा सकता है।

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प्रश्न 11.
सूचना के अधिकार के तहत सूचना नहीं देने वाले अधिकारियों को किन स्थितियों में और क्या दण्ड दिया जा सकता है?
उत्तर:
सूचना न देने पर दण्ड-सूचना नहीं देने वाले अधिकारियों को निम्नलिखित स्थितियों में सजा दी जा सकती है –

  1. लोक सूचना अधिकारी या सहायक लोक सूचना अधिकारी द्वारा आवेदन लेने से मना करना।
  2. निर्धारित समय में जानकारी नहीं देना।
  3. जानबूझ कर गलत, अधूरी व गुमराह करने वाली जानकारी देना।
  4. माँगी गई सूचना को नष्ट करना।

उपर्युक्त स्थितियों में सूचना आयोग ऐसे लोक सूचना अधिकारियों पर 250 रुपये प्रतिदिन से लेकर अधिकतम 25,000 रुपए तक अर्थदण्ड आरोपित करने का आदेश दे सकता है। इसी प्रकार, लोक सूचना अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने हेतु विभाग प्रमुख को आयोग अनुशंसा भी कर सकता है।

प्रश्न 12.
राज्य सूचना आयोग के कार्य व अधिकार कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
राज्य सूचना आयोग के कार्य व अधिकार राज्य सूचना आयोग के निम्नलिखित कार्य व अधिकार है –

  1. राज्य सूचना आयोग का कार्य सूचना के अधिकार को लागू करवाना है। आयोग लोगों से सूचना प्राप्त करने में आने वाली कठिनाइयों को दूर करता है और इससे सम्बन्धित शिकायतों/अपीलों की सुनवाई करता है।
  2. आयोग सूचना के अधिकार से सम्बन्धित किसी भी प्रकरण की जाँच के आदेश दे सकता है।
  3. आयोग के पास सिविल कोर्ट से सम्बन्धित समस्त अधिकार हैं। इसके अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति को सम्मन जारी करना, सुनवाई के दौरान उसकी हाजिरी (उपस्थिति) सुनिश्चित करना तथा साक्ष्य प्रस्तुत करने के आदेश देने जैसे अधिकार प्रमुख हैं।

प्रश्न 13.
सूचना के अधिकार के अन्तर्गत हम किस प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं?
उत्तर:
सूचना के अधिकार के अन्तर्गत हम निम्न प्रकार की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं –

  1. सरकार व सरकार के किसी भी विभाग से सम्बन्धित सूचना।
  2. सरकारी ठेकों का भुगतान, अनुमानित खर्च, निर्माण कार्यों के माप आदि की फोटो प्रतियाँ।।
  3. सड़क, नाली व भवन निर्माण में प्रयुक्त सामग्री के नमूने।
  4. निर्माणाधीन या पूर्ण विकास कार्यों का अवलोकन।
  5. सरकारी दस्तावेजों, जैसे-ड्राइंग, रिकॉर्ड पुस्तिका व रजिस्टरों आदि का अवलोकन।’
  6. यदि कोई शिकायत की गई है या कोई आवेदन दिया गया है तो उस पर प्रगति की जानकारी।
  7. सरकारी परियोजनाओं की जानकारी जिनका क्रियान्वयन कोई भी सरकारी विभाग या स्वयंसेवी संस्था कर रही हो।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 14 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान ने नागरिकों को कौन-कौन से मौलिक अधिकार प्रदान किये हैं? वर्णन कीजिए।
अथवा
संविधान में कितने मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है? ‘समानता के अधिकार’ की व्याख्या कीजिए। (2009)
अथवा
मौलिक अधिकार किसे कहते हैं ? भारतीय संविधान द्वारा हमें कितने मौलिक अधिकार प्राप्त हैं? (2011, 12)
उत्तर:
1948 में संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा मानव अधिकारों का घोषणा-पत्र जारी किया गया था। भारतीय संविधान में नागरिकों को जो मौलिक अधिकार प्रदान किये गये हैं, वे इसी घोषणा-पत्र पर आधारित हैं। ये अधिकार अग्रवत् हैं –

  • समानता का अधिकार :
    इस अधिकार के द्वारा प्रत्येक नागरिक को कानून के समक्ष समानता है तथा भेदभाव, अस्पृश्यता और उपाधियों का अन्त कर दिया गया है। सरकारी नौकरियों में बिना धर्म, जाति, लिंग आदि का भेदभाव किये समानता है।
  • स्वतन्त्रता का अधिकार :
    स्वतन्त्रता के अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को भाषण देने तथा विचार प्रकट करने, शान्तिपूर्ण सभा करने, संघ बनाने, देश में किसी भी स्थान पर घूमने-फिरने की, देश के किसी भी भाग में व्यवसाय की तथा देश में कहीं भी रहने की स्वतन्त्रता आदि प्राप्त है।
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार :
    प्रत्येक नागरिक को शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने का अधिकार है। इस अधिकार के अनुसार मानव के क्रय-विक्रय, किसी से बेगार लेने तथा 14 वर्ष से कम आयु वाले बच्चों को कारखानों, खानों या किसी खतरनाक धन्धे में लगाने पर रोक लगा दी गयी है।
  • धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार :
    भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है, अतः प्रत्येक नागरिक को किसी भी धर्म का अनुसरण करने का अधिकार है। प्रत्येक धर्म के अनुयायियों को अपनी धार्मिक संस्थाएँ स्थापित करने तथा उनका प्रबन्ध करने का अधिकार है।
  • सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अधिकार :
    इस अधिकार के अन्तर्गत भारत के नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि तथा संस्कृति को सुरक्षित रखने तथा उसका विकास करने का अधिकार है।
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार :
    इस अधिकार के अनुसार प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार दिया गया है कि यदि उपरिवर्णित पाँच अधिकारों में से किसी भी अधिकार पर आक्षेप किया जाए या उससे छीना जाए, चाहे वह सरकार की ओर से ही क्यों न हो, तो वह सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय से न्याय की माँग कर सकता है।

प्रश्न 2.
सूचना के अधिकार से क्या समझते हैं? सूचना अधिकार अधिनियम सम्बन्धी विशेष तथ्यों को स्पष्ट कीजिए। (2014)
उत्तर:
सूचना का अधिकार-भारतीय संसद में मई 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के द्वारा देश के लोगों को किसी भी सरकारी कार्यालय से जानकारी प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है। देश में विगत् कई वर्षों से विकास में लोगों की भागीदारी बढ़ाने के कई प्रयास किए जाते रहे हैं। पंचायत राज की स्थापना और सार्वजनिक सेवाओं की निगरानी में स्थानीय समुदाय की भागीदारी इसका प्रमुख आयाम है। सार्वजनिक सेवाओं, सुविधाओं और योजनाओं, नियम-कायदों के बारे में जानकारी न होने से लोग विकास के कार्यों में भलीभाँति भागीदारी नहीं कर पाते हैं। लेकिन अब सूचना के अधिकार द्वारा विकास योजनाओं और सार्वजनिक कार्यों में पारदर्शिता लाई जा सकती है। शासन में निर्णय लेने की प्रक्रिया में पक्षपात की सम्भावना एवं भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

सूचना अधिकार अधिनियम सम्बन्धी तथ्य :
इस अधिनियम के विशेष तथ्य निम्नलिखित हैं –
(1) सूचना के अधिकार किसे प्राप्त हैं :
सूचना का अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है। कोई भी नागरिक लोक निकाय से उससे सम्बन्धित जानकारी प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त सभी लोक निकाय अपने दैनिक कार्य-कलापों के सम्बन्ध में आवश्यक सूचनाओं को सूचना-पट पर लोगों की जानकारी के लिए प्रदर्शित करते हैं।

(2) लोक निकाय से आशय :
ऐसे समस्त प्राधिकरण अथवा संस्थाएँ जिनकी स्थापना संसद या विधान मण्डल द्वारा पारित किये गये कानून (अधिनियम) के अन्तर्गत की गई हो, वे लोक निकाय की श्रेणी में सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त वे परिषद् भी इसमें सम्मिलित की गई हैं जो स्वशासी या गैर-सरकारी हैं, किन्तु जिन्हें या तो सरकारी अनुदान मिलता है या जिनका नियन्त्रण केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा किया जाता है। इस प्रकार, लोक निकाय से आशय सरकारी, संवैधानिक संस्थाएँ एवं विभागों से है।

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
निम्न में से किसे मताधिकार प्रदान किया जा सकता है?
(i) अवयस्क पुरुष तथा महिलाओं को
(i) केवल पुरुषों को,
(iii) वयस्क पुरुष तथा महिलाओं को
(iv) केवल महिलाओं को।
उत्तर:
(iii) वयस्क पुरुष तथा महिलाओं को

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प्रश्न 2.
किसे वोट देने का अधिकार नहीं है? (2016, 18)
(i) पागल या मानसिक विकलांगों को
(ii) नाबालिगों को
(iii) न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित
(iv) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(iv) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारत में निम्नलिखित में से किसके बाद चुनाव प्रक्रिया शुरू मानी जाती है?
(i) प्रत्याशी के नामांकन पत्र जमा करने के बाद
(ii) चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद
(iii) प्रचार कार्य प्रारम्भ होने के बाद
(iv) चुनाव सभा होने से।
उत्तर:
(ii) चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. हमारे देश के सभी स्त्री-पुरुष जिनकी उम्र …………. वर्ष है, वोट डालने के अधिकारी हैं। (2018)
  2. कई दल मिलकर जब सरकार बनाते हैं, तब वह …………. सरकार कहलाती है। (2017)
  3. राजनीतिक दलों को मान्यता देने के लिए ………… आयोग बनाया गया है।
  4. देश के प्रत्येक वयस्क महिला-पुरुष को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार ……….. मताधिकार कहलाता है।

उत्तर:

  1. 18 वर्ष
  2. साझा
  3. निर्वाचन
  4. सार्वभौमिक वयस्क।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक दल किसे कहते हैं ? लिखिए।
उत्तर:
राजनीतिक दल उन नागरिकों के संगठित समूह का नाम है जो एक ही राजनीतिक सिद्धान्तों को मानते और एक राजनीतिक इकाई के रूप में काम करते और सरकार पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हैं।

प्रश्न 2.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त को कौन नियुक्त करता है? (2008, 15, 17)
उत्तर:
निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

प्रश्न 3.
भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय नई दिल्ली में है।

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प्रश्न 4.
साझा सरकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी एक दल का बहुमत न आने पर जब कई दल मिलकर सरकार बनाते हैं, तब वह सरकार साझा सरकार कहलाती है। इसे गठबन्धन सरकार भी कहते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक दलों की विशेषताएँ बताइए। (2014)
अथवा
राजनीतिक दल किसे कहते हैं? उसकी चार विशेषताएँ बताइए। (2008)
उत्तर:
राजनीतिक दल उन नागरिकों के संगठित समूह का नाम है जो एक ही राजनीतिक सिद्धान्तों को मानते और एक राजनीतिक इकाई के रूप में काम करते और सरकार पर अपना अधिकार जमाने का प्रयत्न करते हैं।

राजनीतिक दलों की विशेषताएँ –

  1. अपने विचारों के समर्थन में निरन्तर जनमत बनाना।
  2. एक विधान द्वारा संगठित और संचालित होना।
  3. निर्वाचन आयोग में पंजीकृत होना।
  4. पहचान हेतु एक चुनाव चिह्न होना।
  5. प्रमुख उद्देश्य निर्वाचन में विजय प्राप्त कर सत्ता प्राप्त करना।
  6. शासक दल पर निगाह रखते हुए जनविरोधी नीतियों के विरुद्ध जनमत तैयार करना।

प्रश्न 2.
मध्यावधि निर्वाचन किसे कहते हैं? (2016)
उत्तर:
मध्यावधि निर्वाचन-यदि लोकसभा अथवा राज्य विधानसभा को उसके कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग कर दिया जाता है तो होने वाले चुनाव मध्यावधि चुनाव कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
निर्वाचन आयोग के कार्य लिखिए। (2008, 09, 10, 14, 16, 18)
अथवा
चुनाव आयोग के कार्यों को लिखिए। (2012)
उत्तर:
निर्वाचन आयोग के कार्य-निर्वाचन आयोग या चुनाव आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं –

  • चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन :
    चुनाव आयोग का महत्त्वपूर्ण कार्य चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित करना है। प्रत्येक 10 वर्ष बाद जनगणना के आधार पर चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित की जाती हैं।
  • मतदाता सूची तैयार करना :
    चुनाव आयोग चुनाव से पूर्व चुनाव क्षेत्र के आधार पर मतदाता सूची तैयार करवाता है, जिसके लिए यथासम्भव उन सभी वयस्क नागरिकों को मतदाता सूची में अंकित करने का प्रयास किया जाता है जो मतदाता बनने की योग्यता रखते हैं।
  • चुनाव-चिह्न देना :
    निर्वाचन आयोग ही सभी राजनीतिक दलों को उनके चुनाव चिह्न प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाव प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाये गये चुनाव-चिह्नों पर स्वीकृति देता है। जो प्रत्याशी किसी राजनीतिक दल की टिकट से नहीं बल्कि स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़ते हैं, तो उनके चुनाव-चिह्न निर्वाचन आयोग द्वारा ही निश्चित किये जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता देना :
    राजनीतिक दलों को मान्यता निर्वाचन आयोग ही देता है। प्रत्येक चुनाव के बाद मतों के निश्चित प्रतिशत के आधार पर राष्ट्रीय दलों व क्षेत्रीय दलों को मान्यता देने का कार्य निर्वाचन आयोग करता है।
  • निष्पक्ष चुनाव करवाना :
    निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र चुनाव कराना चुनाव आयोग का एक प्रमुख कार्य है। चुनाव का समय, तिथि, मोहर लगाना, मतपत्रों पर चिह्न, गणना, परिणाम घोषित करना आदि के निर्देश आयोग ही देता है।

प्रश्न 4.
निर्वाचक नामावली क्या है? इसका उपयोग बताइए। (2009)
उत्तर:
चुनाव आयोग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य निर्वाचक नामावली तैयार कराना है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत प्रत्येक निर्वाचन से पूर्व वह मतदान केन्द्र के अनुसार मत देने के योग्य नागरिकों की सूची तैयार करवाता है। इसे निर्वाचन नामावली कहते हैं। नवीन सूची में 18 वर्ष के नागरिकों के नाम जोड़े जाते हैं और मृत्यु या अन्य कारण से अन्यत्र स्थानों पर चले गये नागरिकों के नाम हटाये जाते हैं। निर्वाचक नामावली को मतदाता सूची के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 5.
विपक्षी दल की भूमिका का वर्णन कीजिए। (2008, 09, 13)
अथवा
भारतीय राजनीति में विपक्षी दलों की भूमिका बताइए। (2008)
उत्तर:
विपक्षी दल की भूमिका-लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक संचालन और सत्तारूढ़ पार्टी पर अंकुश रखने के लिए विपक्षी दल का अत्यधिक महत्त्व है। हमारे देश में प्रजातन्त्र है और उसमें सरकार के प्रत्येक कार्य, उसकी प्रत्येक नीति की समालोचना किया जाना अनिवार्य है। यह कार्य विपक्षी दल ही कर सकते हैं। सरकार को तानाशाह बनने से रोकना और नागरिकों के अधिकारों का हनन न होने देना, यह सभी कार्य विपक्ष करता है विपक्ष की उपस्थिति से सरकार जनता के प्रति अधिक सजगता से अपने दायित्वों का निर्वहन करती है। विधायिका में कोई भी कानून पारित होने से पूर्व उस पर विचार-विमर्श और चर्चा होती है।

विपक्ष के सहयोग से कानून के दोषों को दूर किया जा सकता है। विधान मण्डल और संसद की बैठकों के समय विपक्ष की भूमिका और बढ़ जाती है। विपक्ष सदन में प्रश्न पूछकर, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव या स्थगन प्रस्ताव लाकर सरकार पर दबाव बनाता है। इस प्रकार विपक्ष जनता के सामने अपनी योग्यता को स्थापित करता है, विपक्ष सरकार की त्रुटियों को जनता के सामने लाता है, सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना करके सरकार को भूल सुधार के लिए बाध्य किया जाता है। विपक्ष द्वारा अपने दायित्व का सही प्रकार से पालन करने से सरकार प्रभावित होती है।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मताधिकार किसे कहते हैं? मताधिकार के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मताधिकार कहलाता है। यह अधिकार महत्त्वपूर्ण राजनीतिक अधिकार है।

मताधिकार के सिद्धान्त
प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि मताधिकार का आधार क्या हो? क्या यह अधिकार राज्य के सभी नागरिकों को दिया जाए या कुछ चुने हुए व्यक्तियों को? इस सन्दर्भ में मताधिकार के प्रमुख सिद्धान्त अग्र प्रकार हैं –

  • जनजातीय सिद्धान्त :
    इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य के प्रत्येक नागरिक को मताधिकार प्राप्त होना चाहिए। क्योंकि यह कोई विशेष अधिकार या सुविधा नहीं है वरन् यह प्रत्येक नागरिक के जीवन को प्रभावित करने वाला स्वाभाविक एवं महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। यह अवधारणा प्राचीन यूनान, रोम तथा अन्य छोटे राष्ट्रों की सभाओं में प्रचलित था, जहाँ हाथ उठाकर मतदान किया जाता था। आधुनिक युग में मताधिकार के लिए नागरिकता की अनिवार्यता सम्भवतः इसी का प्रारूप है।
  • नैतिक सिद्धान्त :
    यह सिद्धान्त इस अवधारणा पर आधारित है कि मानव के व्यक्तित्व के विकास के लिए यह अनिवार्य है कि उसे मताधिकार के माध्यम से यह निश्चित करने का अधिकार हो कि उनका शासन कौन करे। मताधिकार व्यक्ति में संवेदनशीलता को जन्म देता है तथा उसे सरकारी नीतियों तथा कार्यक्रमों के प्रति सजग बनाता है।
  • वैधानिक अधिकार :
    मताधिकार एक प्राकृतिक अधिकार नहीं वरन् राजनीतिक अधिकार है। यह निर्धारण करना राज्य का कार्य है कि किसे मताधिकार मिलना चाहिए। प्रत्येक शासन अपनी परिस्थितियों और सामाजिक स्थिति के आधार पर इसका निर्धारण करता है।
  • प्राकृतिक सिद्धान्त :
    17वीं तथा 18वीं शताब्दी में यह सिद्धान्त विशेष लोकप्रिय हुआ। इस सिद्धान्त के अनुसार सरकार मानव निर्मित संयन्त्र है। इसका आधार जनता की सहमति है। अर्थात् शासक को चुनने का अधिकार जनता का प्राकृतिक अधिकार है।
  • सर्वव्यापी वयस्क मताधिकार का सिद्धान्त :
    यह सिद्धान्त लोकतान्त्रिक राज्यों में सर्वाधिक प्रचलित सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य के प्रत्येक वयस्क नागरिक को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार होता है। 17वीं तथा 18वीं शताब्दी में प्राकृतिक अधिकारों और जनसम्प्रभुता के वातावरण में सर्वव्यापक मताधिकार की माँग ने जोर पकड़ा। इसमें वयस्कता का अधिकार सम्मिलित किया गया।
  • भारीकृत मताधिकार का सिद्धान्त :
    इस सिद्धान्त के अनुसार मतों को गिना नहीं जाता है वरन् उनका भार दिया जाता है। भार का आशय यहाँ महत्त्व से है अर्थात् सरकार के चयन में किसी प्रकार की विशिष्टता जैसे शिक्षा, धन या सम्पत्ति से विभूषित व्यक्ति के मत का भार एक आम आदमी से अधिक होना चाहिए।
  • बहुल मताधिकार का सिद्धान्त :
    मताधिकार के इस सिद्धान्त की मूल अवधारणा में यह आग्रह है कि व्यक्तियों के मतों की संख्या कुछ आधारों पर कम या अधिक होनी चाहिए। आधुनिक लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं में ‘एक व्यक्ति एक मत’ का सिद्धान्त सर्व स्वीकृत है, परन्तु विगत वर्षों में बहुल मताधिकार की व्यवस्था भी अनेक राज्यों में प्रचलित रही है।

प्रश्न 2.
निर्वाचन से क्या आशय है? निर्वाचन आयोग के कार्यों को लिखिए।
उत्तर:
निर्वाचन एक महत्वपूर्ण कार्य है। यह एक निर्धारित विधि से होता है। देश में होने वाले सामान्य निर्वाचन, मध्यावधि निर्वाचन या उपचुनाव या निर्वाचन, सभी में समान प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया के प्रमुख बिन्दु हैं-

  1. मतदाता सूची तैयार करना
  2. चुनाव की घोषणा
  3. निर्वाचन हेतु नामांकन
  4. चुनाव चिह्न
  5. चुनाव अभियान
  6. मतदान
  7. मतगणना।

निर्वाचन आयोग के कार्य :
निर्वाचन आयोग के कार्य-निर्वाचन आयोग या चुनाव आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं’

  • चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन :
    चुनाव आयोग का महत्त्वपूर्ण कार्य चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित करना है। प्रत्येक 10 वर्ष बाद जनगणना के आधार पर चुनाव क्षेत्रों की सीमाएँ निश्चित की जाती हैं।
  • मतदाता सूची तैयार करना :
    चुनाव आयोग चुनाव से पूर्व चुनाव क्षेत्र के आधार पर मतदाता सूची तैयार करवाता है, जिसके लिए यथासम्भव उन सभी वयस्क नागरिकों को मतदाता सूची में अंकित करने का प्रयास किया जाता है जो मतदाता बनने की योग्यता रखते हैं।
  • चुनाव-चिह्न देना :
    निर्वाचन आयोग ही सभी राजनीतिक दलों को उनके चुनाव चिह्न प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाव प्रदान करता है या उनके द्वारा सुझाये गये चुनाव-चिह्नों पर स्वीकृति देता है। जो प्रत्याशी किसी राजनीतिक दल की टिकट से नहीं बल्कि स्वतन्त्र रूप से चुनाव लड़ते हैं, तो उनके चुनाव-चिह्न निर्वाचन आयोग द्वारा ही निश्चित किये जाते हैं।
  • राजनीतिक दलों को मान्यता देना :
    राजनीतिक दलों को मान्यता निर्वाचन आयोग ही देता है। प्रत्येक चुनाव के बाद मतों के निश्चित प्रतिशत के आधार पर राष्ट्रीय दलों व क्षेत्रीय दलों को मान्यता देने का कार्य निर्वाचन आयोग करता है।
  • निष्पक्ष चुनाव करवाना :
    निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र चुनाव कराना चुनाव आयोग का एक प्रमुख कार्य है। चुनाव का समय, तिथि, मोहर लगाना, मतपत्रों पर चिह्न, गणना, परिणाम घोषित करना आदि के निर्देश आयोग ही देता है।

प्रश्न 3.
राजनीतिक दलों की संख्या के आधार पर राजनीतिक दलों के प्रकार लिखिए।(2013)
उत्तर:
दलीय व्यवस्था के प्रकार-किसी राष्ट्र में राजनीतिक दलों की संख्या के आधार पर दल व्यवस्था को तीन वर्गों में बाँटा जाता है –

  • एकल दल (एक दलीय) प्रणाली :
    एक दलीय पद्धति या व्यवस्था उसे कहते हैं जिसमें केवल एक राजनीतिक दल होता है और वही समस्त राजनीतिक गतिविधियों का संचालन करता है, जैसे-जनवादी चीन में एक दलीय प्रणाली है, वहाँ केवल साम्यवादी दल को ही मान्यता है। अन्य राजनैतिक विचार रखने वालों पर पाबन्दी है।
  • द्वि-दलीय प्रणाली :
    इस प्रणाली में केवल दो दल या दो प्रमुख दल होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में द्वि-दलीय प्रणाली प्रचलित है। इस राष्ट्र के दो प्रमुख दल हैं-डेमोक्रेटिक दल तथा रिपब्लिकन दल। इस प्रकार संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन की शासन व्यवस्था में द्वि-दलीय प्रणाली प्रचलित है।
  • बहुदलीय प्रणाली :
    बहुदलीय प्रणाली में अनेक राजनीतिक दल होते हैं, किन्तु सभी दलों की स्थिति समान नहीं होती। हमारे देश में बहुदलीय राजनीतिक प्रणाली है। निर्वाचन में किसी एक दल का बहुमत में आना आवश्यक नहीं है।

जब किसी एक दल का बहुमत नहीं आता है, तो देश या प्रान्त में साझा सरकार बनाई जाती है। साझा या गठबन्धन सरकार में दो या अधिक दल शामिल होते हैं।

बहुदलीय प्रणाली का सबसे बड़ा दोष दल-बदल है। चुनावों के समय अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ आती हैं। इस प्रणाली में राजनीतिक दलों की नीतियों में स्पष्ट अन्तर करना कठिन हो जाता है। बहुदलीय प्रणाली में व्यक्तिनिष्ठ दलों की संख्या बढ़ जाती है। आये दिन उनका विघटन और पतन होता रहता है।

प्रश्न 4.
दल व्यवस्था क्या है? उसका महत्त्व बताइए।
अथवा
राजनैतिक दल व्यवस्था क्या है? उसका महत्त्व बताइए। (2009)
उत्तर:
संसदीय लोकतन्त्र के लिए विभिन्न राजनीतिक दल आवश्यक हैं। राजनीतिक दल नागरिकों के संगठित समूह हैं, जो एक-सी विचारधारा रखते हैं। ये अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। राजनीतिक दल एक शक्ति के रूप में कार्य करते हैं और सदैव शक्ति प्राप्त करने और उसे बनाये रखने का प्रयास करते रहते हैं।

दलीय व्यवस्था का महत्त्व :
दलीय व्यवस्था लोकतान्त्रिक शासन को सम्भव बनाती है। आधुनिक युग में शासन कार्य राजनीतिक दलों के सहयोग से होता है। यह शासन के नीति निर्धारण में सहयोग करते हैं और इनके सहयोग से नीतियों में परिवर्तन आसान होता है। दल-व्यवस्था के प्रभाव से सरकार जनोन्मुखी होती है व लोकहित में कार्य करती है। राजनैतिक दल शासन के निरंकुशता पर नियन्त्रण करते हैं। इनके माध्यम से जनता की आशाएँ और अपेक्षाएँ सरकार तक पहुँचती हैं। यह जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण देते हैं। इनके . . माध्यम से जनता को शासन में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है। राजनीतिक दल नागरिक स्वतन्त्रताओं के रक्षक होते हैं। इनके द्वारा राष्ट्र की एकता स्थापित होती है। लॉर्ड ब्राइस का मत है कि, “दल राष्ट्र के मस्तिष्क को उसी प्रकार क्रियाशील रखते हैं, जैसे कि लहरों की हलचल से समुद्र की खाड़ी का जल स्वच्छ रहता है।”

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प्रश्न 5.
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया व भारतीय चुनाव प्रणाली के प्रमुख दोषों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया को लिखिए। (2008, 09)
अथवा
भारतीय चुनाव प्रणाली के कोई चार दोष लिखिए। (2017, 18)
उत्तर:
भारतीय निर्वाचन प्रक्रिया-निर्वाचन एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। यह एक निर्धारित विधि से होता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
(1) मतदाता सूची तैयारी करना :
निर्वाचन का यह पहला चरण है। जिला निर्वाचन कार्यालय द्वारा निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार प्रत्येक निर्वाचन से पूर्व मतदाता सूची को तैयार करता है। कोई भी भारतीय नागरिक जिसकी आयु 18 वर्ष है इसमें अपना नाम सम्मिलित करवा सकता है। मतदाता पहचान पत्र भी जिला निर्वाचन कार्यालय द्वारा बनवाये जाते हैं। मतदाता पहचान पत्र के अभाव में नागरिक को अपनी पहचान के लिए अन्य कागजात लाने होते हैं।

(2) चुनाव की घोषणा :
प्रत्येक निर्वाचन प्रक्रिया का प्रारम्भ अधिसूचना जारी होने से होता है। लोकसभा के सामान्य अथवा मध्यावधि या उपचुनाव की अधिसूचना राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। विधान सभाओं के लिए अधिसूचना राज्यपाल द्वारा की जाती है। अधिसूचना का प्रकाशन चुनाव आयोग से विचार-विमर्श के बाद राजपत्र में किया जाता है।

अधिसूचना जारी होने के पश्चात् निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित किया जाता है। इसके साथ ही राजनीतिक दलों के लिए आचार संहिता लागू हो जाती है।

(3) नामांकन पत्र :
चुनाव सूचना जारी होने के बाद चुनाव आयोग चुनावों की तिथि घोषित करता है जिसके अन्तर्गत एक निश्चित तिथि एक प्रत्याशी अपना नामांकन पत्र भरते हैं। नामांकन पत्र मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित व अनुमोदित होना चाहिए तथा प्रत्याशी का नाम मतदाता सूची में अवश्य होना चाहिए। नामांकन पत्र के साथ प्रत्याशी एक निश्चित धनराशि जमानत के रूप में जमा करवाता है। नामांकन पत्र भरे जाने की तिथि के बाद एक निश्चित तिथि में सभी नामांकन पत्रों की जाँच की जाती है और जिन प्रत्याशियों के नामांकन पत्र सही पाये जाते हैं उन्हें प्रत्याशी घोषित कर दिया जाता है। इसके पश्चात् एक निश्चित तिथि तक प्रत्याशी अपना नाम वापस ले सकते हैं।

(4) चुनाव-चिह्न-चुनाव :
चिह्न ऐसे चिह्नों को कहते हैं जिन्हें कोई राजनीतिक दल या उम्मीदवार चुनाव के समय अपने चिह्न के रूप में प्रयोग करता है। चिह्न की पहचान से ही मतदाता अपना मत सही उम्मीदवार को दे सकता है।

(5) चुनाव अभियान :
चुनाव अभियान समस्त चुनावी प्रक्रिया का सबसे निर्णायक भाग है। वैसे ही आज के विज्ञापन के युग में चुनाव प्रचार का अत्यधिक महत्त्व है। चुनाव प्रचार के लिए चुनाव घोषणा-पत्र के साथ-साथ आम सभाएँ भी आयोजित की जाती हैं। चुनाव प्रचार की दृष्टि से आकर्षक नारे गढ़े व प्रचारित किये जाते हैं। नारे छपे पोस्टर जगह-जगह दीवारों पर चिपकाये जाते हैं। परम्परागत तरीकों से रिक्शा व लाउडस्पीकर का भी चुनाव प्रचार में भरपूर प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक दल को दूरदर्शन व आकाशवाणी द्वारा अपना प्रचार-प्रसार करने का एक निश्चित समय दिया जाता है।

(6) मतदान-निश्चित तिथि पर मतदाता चुनाव बूथ पर जाकर मत डालते हैं। मतदान के लिए सार्वजनिक छुट्टी रहती है व एक निश्चित समय तक ही मतदाता अपना वोट डाल सकते हैं। मतदान अधिकारी व विभिन्न प्रत्याशियों के प्रतिनिधियों द्वारा यह पहचान किये जाने के पश्चात् कि मतदाता सही है, कोई धोखा नहीं है, उस मतदाता को मतपत्र दे दिया जाता है जो बूथ में जाकर गुप्त रूप से अपना मत डालता है। मत-पत्र दिये जाने के पूर्व चुनाव अधिकारी एक अमिट स्याही का निशान मतदाता की उँगली पर लगाता है, ताकि वह मतदाता दुबारा गलत ढंग से मत न डाल सके।

(7) मतगणना व परिणाम :
मतदान पूरा हो जाने के बाद चुनाव अधिकारी प्रत्याशियों के प्रतिनिधियों के सामने मतपेटियों को सीलबन्द कर देते हैं। प्रत्येक मतदान केन्द्र से मतपेटियाँ एक स्थान पर एकत्र कर ली जाती हैं जहाँ एक निश्चित तिथि पर प्रत्याशी व उनके प्रतिनिधियों के समक्ष मतपेटियों को खोला जाता है। उनके ही सामने मतों की गिनती चुनाव कर्मचारी करते हैं। सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है।

भारतीय चुनाव प्रणाली के दोष :
भारतीय चुनाव प्रणाली के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं –
(1) मतदान में पूर्ण भागीदारी का अभाव :
सार्वभौम वयस्क मताधिकार प्रणाली का उद्देश्य सभी नागरिकों को शासन में अप्रत्यक्ष भागीदार बनाना है। बड़े क्षेत्रों में लोकसभा तथा राज्य विधानसभा चुनावों में एक बड़ी संख्या में मतदाता अपना वोट डालने नहीं जाते हैं। इस कारण मतदाताओं के बहुमत से निर्वाचित उम्मीदवार जनता का प्रतिनिधि नहीं होता है। अतः यह अपेक्षित है कि, सभी नागरिकों को मतदान में भाग लेना चाहिए।

(2) बाहुबल का प्रभाव :
कई बार कुछ प्रत्याशी हर तरीके से चुनाव में विजय हासिल करना चाहते हैं और वे चुनाव में अपराधियों की सहायता भी लेते हैं। हिंसा और शक्ति का प्रयोग कर लोगों को डरा-धमका कर वोट देने से रोकना, मतदान केन्द्र पर कब्जा करना, अवैध मत डलवाने का प्रयास करते हैं।

(3) सरकारी साधनों का दुरुपयोग :
चुनाव होने से पहले कुछ शासक दल. जनता को आकर्षित करने वाले वायदे करने लगते हैं, शासकीय कर्मचारियों/अधिकारियों की अपने हितों के अनुकूल पदस्थापना करते हैं तथा शासकीय धन और वाहनों व अन्य साधनों का दुरुपयोग करते हैं। इससे चुनावों की निष्पक्षता प्रभावित होती है।

(4) फर्जी मतदान :
यह भी हमारी चुनाव प्रणाली की बड़ी समस्या है। कुछ व्यक्ति दूसरे के नाम पर वोट डालने चले जाते हैं। एक से अधिक स्थान पर मतदाता सूची में नाम लिखना, नाम न होते हुए भी वोट देने जाना आदि फर्जी मतदान है।

(5) चुनाव में धन का प्रयोग :
चुनाव में बढ़ता खर्च एक बड़ी समस्या है। प्रत्येक चुनाव में व्यय की सीमा निर्धारित है, परन्तु चुनाव में भाग लेने वाले अनेक प्रत्याशी बहुत अधिक धन व्यय करते हैं। धन व बल के अभाव में कई बार कुछ अच्छे और ईमानदार व्यक्ति चुनाव लड़ने में असमर्थ होते हैं। चुनाव में धन का दुरुपयोग व्यक्ति की अनैतिक भूमिका को दर्शाता है, जो चुनाव व्यवस्था में सुधार की दृष्टि से गम्भीर समस्या है।

(6) निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या :
निर्दलीय उम्मीदवारों की संख्या कभी-कभी बहुत अधिक होती है इससे चुनाव प्रबन्ध में कठिनाई आती है। अधिक प्रत्याशियों के कारण मतदाता भी भ्रमित होता है।

(7) अन्य दोष :
वोट देने के लिए नागरिकों का मतदाता सूची में नाम होना आवश्यक है। प्रायः यह देखने में आता है कि अनेक लोगों के नाम मतदाता सूची से छूट जाते हैं। दूसरी ओर जिनकी मृत्यु हो गयी है या वे दूसरे स्थान पर चले गये हैं, तब भी उनके नाम मतदाता सूची में होते हैं। एक मतदान केन्द्र पर मतदाताओं की संख्या अधिक होने से भी कठिनाई आती है। एक प्रत्याशी कई बार दो या अधिक जगह पर चुनाव में खड़ा हो जाता है। दोनों स्थानों पर जीत होने की स्थिति में उसको एक स्थान को त्यागपत्र देना पड़ता है। जिसके कारण पुनः उपचुनाव होते हैं। इसमें शासकीय और प्रत्याशी के धन का अपव्यय होता है। ये सभी हमारी चुनाव प्रणाली के दोष हैं।

प्रश्न 6.
राजनीतिक दलों के कार्य और महत्त्व बताइए।
अथवा
राजनीतिक दलों के कार्य बताइए। (2008, 12)
अथवा
‘राजनीतिक दलों के कोई चार महत्त्व लिखिए। (2017)
उत्तर:
राजनीतिक दलों के कार्य-राजनीतिक दल अनेक कार्य करते हैं। इनमें प्रमुख कार्य निम्नलिखित :

  • जनमत तैयार करना :
    राजनीतिक दल देश की समस्याओं को स्पष्ट रूप से जनता के सामने रखकर जनमत तैयार करते हैं। वे पत्र-पत्रिकाओं तथा सभाओं में इन समस्याओं को सरल ढंग से जनता के सामने रखते हैं और फिर इस लोकमत को तथा जनता की कठिनाइयों को संसद में रखते हैं।
  • मध्यस्थता :
    राजनीतिक दल जनता और सरकार के बीच मध्यस्थता का कार्य करते हैं। सरकार की नीतियों एवं कार्यक्रमों को जनता के सामने तथा जनता की इच्छाओं को सरकार के सामने रखते हैं।
  • आलोचना :
    प्रजातन्त्रीय शासन में बहुमत प्राप्त दल अपनी सरकार बनाता है और अल्पमत दल विरोधी दल का कार्य करता है। विरोधी दलों की आलोचना के भय से सत्तारूढ़ दल गलत कार्य व नीतियाँ नहीं अपनाता।
  • राजनीतिक शिक्षा :
    राजनीतिक दल साधारण नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा देने का कार्य भी करते हैं। चुनाव के दिनों में राजनीतिक दल प्रेस, रेडियो, टी. वी. व सभाओं के माध्यम से अपनी नीतियों व जनता के अधिकारों का वर्णन करते हैं। इससे नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती हैं।
  • शासन पर अधिकार करना :
    राजनीतिक दलों का अन्तिम उद्देश्य शासन पर अधिकार करना होता है। वे प्रचार साधनों के द्वारा जनमत को अपने पक्ष में करते हैं और सत्ता पर अधिकार करने का प्रयास करते हैं।

राजनीतिक दलों का महत्त्व :
राजनैतिक दल आधुनिक लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली की देन है। आधुनिक राजनैतिक जीवन में इनका निम्नलिखित महत्त्व है –

  • लोकमत के निर्माण में सहायक :
    राजनीतिक दल जनता को सार्वजनिक समस्याओं से परिचित कराते हैं तथा उनकी अच्छाइयों और बुराइयों की जानकारी देते हैं। इनसे जनता सार्वजनिक समस्याओं पर अपना मत बनाती है और इस प्रकार लोकमत का निर्माण होता है।
  • जनता में जागृति उत्पन्न करने में सहायक :
    राजनीतिक दलों के माध्यम से जनता को देश की आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक समस्याओं का ज्ञान होता है।
  • संसदीय सरकार के लिए अनिवार्य :
    संसदीय शासन-व्यवस्था में सरकार का निर्माण दलों के आधार पर होता है। संसद के निम्न सदन में जिस दल का बहुमत होता है, वह सरकार बनाता है।
  • लोकतन्त्र के लिए अनिवार्य :
    लोकतन्त्रात्मक प्रशासन में राजनीतिक दल अनिवार्य होता है। उनके बिना निर्वाचन की व्यवस्था करना कठिन है। दलों से ही सरकार बनती है और वही उस पर नियन्त्रण रखते हैं। उनके माध्यम से सरकार व जनता के बीच सम्पर्क स्थापित होता है और जनता की कठिनाइयों से सरकार अवगत होती है।
  • मतदान में सहायक :
    राजनीतिक दलों के सहयोग से नागरिकों को निर्वाचन के समय यह निर्णय लेने में कठिनाई नहीं होती कि उन्हें अपना मत किस उम्मीदवार को देना है। वह जिस दल के कार्यक्रम व नीति को पसन्द करता है, उसी उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर देता है।
  • सरकार की निरंकुशता पर रोक :
    प्रजातन्त्र में बहुमत प्राप्त दलों की सरकार बनती है, इसलिए उसके निरंकुश बन जाने की सम्भावना रहती है। विरोधी दल उसकी स्वेच्छाचारिता पर रोक लगाकर उस पर नियन्त्रण रखते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मतदज समाप्त होने के कितने घण्टे पूर्व चुनाव प्रचार बन्द कर दिया जाता है?
(i) 24 घण्टे
(ii) 36 घण्ट
(iii) 48 घण्टे
(iv) 72 घण्टे।
उत्तर:
(iii) 48 घण्टे

प्रश्न 2.
निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है?
(2009)
(i) 3 वर्ष
(ii) 4 वर्ष
(iii) 5 वर्ष
(iv) 6 वर्ष।
उत्तर:
(iv) 6 वर्ष।

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रिक्त स्थान पूर्ति

  1. नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार ……….. कहलाता है। (2008, 09, 14, 15)
  2. भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय …………. में है। (2010)
  3. नागरिकों द्वारा अपने देश के प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया ………… कहलाती है।
  4. जन-जन की शासन में सहभागिता ही लोकतन्त्र की …………है।
  5. निर्वाचन आयुक्तों की नियक्ति …………. करता है। (2008)

उत्तर:

  1. मताधिकार
  2. नई दिल्ली
  3. निर्वाचन
  4. प्राण शक्ति
  5. राष्ट्रपति।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमन्त्री करता है। (2008, 09)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 2.
निर्वाचन आयोग में 750 से अधिक दल पंजीकृत हैं। (2008)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 3.
आम चुनाव की तिथियाँ चुनाव आयोग निर्धारित करता है। (2009)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
बहुमत प्राप्त न करने वाले दल विपक्षी दल कहलाते हैं। (2013)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5.
भारत के निर्वाचन आयोग का कार्यालय मुम्बई में है। (2009)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 6.
प्रत्येक व्यक्ति के मत को समान महत्त्व मिलता है। (2014)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 7.
हमारे देश में वे सभी स्त्री-पुरुष जिनकी उम्र 18 वर्ष है वोट डालने के अधिकारी है। (2016)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 8.
राजनीतिक दलों को मान्यता देने के लिए चुनाव आयोग बनाया गया है। (2018)
उत्तर:
सत्य

सही जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 13 निर्वाचन - 1

उत्तर:

  1. → (ङ)
  2. → (ग)
  3. → (ख)
  4. → (क)
  5. → (घ)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
बहुमत प्राप्त न करने वाले राजनैतिक दल? (2011)
उत्तर:
विपक्षी दल

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प्रश्न 2.
निर्वाचन आयुक्तों का कार्यकाल कितने वर्ष का होता है? (2009)
उत्तर:
6 वर्ष

प्रश्न 3.
नागरिकों द्वारा अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया कहलाती हैं। (2009)
अथवा
लोकतांत्रिक देशों में जनता द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया को कहते हैं। (2016)
उत्तर:
निर्वाचन

प्रश्न 4.
हमारे देश में वोट डालने की निम्नतम आयु कितनी है?
उत्तर:
18 वर्ष

प्रश्न 5.
अपने निर्धारित समय पर होने वाला निर्वाचन। (2009)
उत्तर:
सामान्य निर्वाचन अथवा आम चुनाव

प्रश्न 6.
चुनाव के समय पार्टियों और उम्मीदवारों द्वारा माने जाने वाले कायदे-कानून और दिशा-निर्देश (2010)
उत्तर:
आचार संहिता

प्रश्न 7.
नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार क्या कहलाता है? (2013)
उत्तर:
मताधिकार।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्वाचन से क्या आशय है? लिखिए।
उत्तर:
लोकतान्त्रिक राष्ट्रों में जनता द्वारा एक निश्चित अवधि के लिए प्रतिनिधि चुनने की प्रक्रिया को निर्वाचन कहा जाता है।

प्रश्न 2.
मताधिकार किसे कहते हैं?
उत्तर:
नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार, मताधिकार कहलाता है।

प्रश्न 3.
किन व्यक्तियों को मताधिकार से वंचित रखा जाता है?
उत्तर:
मानसिक रूप से विकलांग या पागल या ऐसे व्यक्ति जो न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित हैं या ऐसे व्यक्ति जो भारत देश के नागरिक नहीं हैं, मत देने के अधिकारी नहीं होते।

प्रश्न 4.
भारत के राजनीतिक दल कितने भागों में विभक्त हैं? उनके नाम लिखिए।
अथवा
भारत के सर्वाधिक सदस्य संख्या वाले चार राजनीतिक दलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत के राजनीतिक दल दो भागों में विभक्त हैं। इनमें कुछ राष्ट्रीय दल और शेष क्षेत्रीय दल हैं।
भारत के सर्वाधिक सदस्य संख्या वाले राजनीतिक दल हैं –

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  2. भारतीय जनता पार्टी
  3. समाजवादी पार्टी तथा
  4. भारतीय साम्यवादी दल।

प्रश्न 5.
‘आम चुनाव’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आम चुनाव का आशय-हमारे देश में लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर किये जाते हैं। इन चुनावों को आम चुनाव कहते हैं।

प्रश्न 6.
आम चुनाव की अधिघोषणा किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर:
लोकसभा व राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति तथा विधानसभाओं के लिए राज्यपाल मतदाताओं को चुनाव के बारे में सूचना देते हैं। इस अधिसूचना का प्रकाशन चुनाव आयोग से विचार-विमर्श करने के बाद सरकारी गजट में होता है।

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प्रश्न 7.
‘नामांकन-पत्र’ से क्या आशय है? समझाइए।
उत्तर:
चुनाव से पहले उम्मीदवारों द्वारा नामांकन पत्र दाखिल किये जाते हैं। कोई भी व्यक्ति जिसका नाम मतदाताओं की सूची में है और जो निश्चित योग्यताएँ रखता हो, चुनाव में खड़ा हो सकता है।

प्रश्न 8.
चुनाव में राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न क्यों आबंटित किये जाते हैं?
उत्तर:
चुनावों में अनेक राजनीतिक दल तथा निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव लड़ते हैं। उनकी पहचान के लिए तथा मतदान की सुविधा के लिए प्रत्येक प्रत्याशी तथा राजनीतिक दल को चुनाव आयोग चिह्न देता है।

प्रश्न 9.
निर्वाचन आयोग में कितने सदस्य होते हैं?
उत्तर:
निर्वाचन आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो चुनाव आयुक्त होते हैं। इन दोनों चुनाव आयुक्तों को भी मुख्य चुनाव आयुक्त के समान अधिकार प्राप्त हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निर्वाचन से आप क्या समझते हैं? हमारे देश में इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
अथवा
हमारे देश में कौन-सी शासन प्रणाली है? इस प्रणाली में निर्वाचन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
निर्वाचन से आशय एवं आवश्यकता-भारत में संसदीय शासन प्रणाली है। इस शासन प्रणाली में देश के निर्वाचित प्रतिनिधियों से सरकार बनाई जाती है। निर्वाचन के द्वारा नागरिकों की शासन में भागीदारी होती है। नागरिकों द्वारा अपने प्रतिनिधि निर्वाचित करने की प्रक्रिया निर्वाचन कहलाती है। निर्वाचन के द्वारा एक निश्चित समय के लिए जन-प्रतिनिधियों का चयन किया जाता है। हमारे राष्ट्र के नागरिक निर्वाचन में भाग लेकर अपने राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करते हैं। भारत एक विशाल और बहुभाषी राष्ट्र है। हमारे यहाँ सभी नागरिकों को समान रूप से प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेने का अधिकार है। मताधिकार की यह प्रणाली सार्वजनिक वयस्क मताधिकार प्रणाली कहलाती है। भारत में मतदान की गोपनीय प्रणाली को अपनाया गया है। भारत में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव सम्पन्न कराने के लिए, निर्वाचन आयोग का गठन किया गया है।

प्रश्न 2.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से क्या आशय है? (2009, 15)
उत्तर:
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार-नागरिकों का प्रतिनिधि चुनने का अधिकार मताधिकार कहलाता है। यह अधिकार महत्त्वपूर्ण राजनीतिक अधिकार है। भारत के प्रत्येक वयस्क महिला व पुरुष को बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहलाता है। इस प्रणाली में एक निर्धारित आयु पूरा करने के उपरान्त देश के सभी पात्र नागरिकों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो जाता है। हमारे देश में वे सभी स्त्री-पुरुष जिनकी आयु 18 वर्ष है, वोट डालने के अधिकारी हैं।

प्रश्न 3.
मताधिकार की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मताधिकार की विशेषताएँ :
मताधिकार की प्रमुख विशेषताएँ निम्न प्रकार हैं –

  1. देश के सभी नागरिकों की शासन में हिस्सेदारी होती है।
  2. प्रत्येक नागरिक के मत को समान महत्त्व मिलता है।
  3. जन प्रतिनिधियों का शान्तिपूर्वक परिवर्तन सम्भव है।
  4. नागरिकों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।
  5. नागरिकों में आत्म-सम्मान की भावना उत्पन्न होती है।
  6. यह प्रणाली समानता के सिद्धान्त के अनुकूल है।

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं? लिखिए। (2011)
उत्तर:
राष्ट्रीय राजनीतिक दल वे हैं जिनका प्रभाव सम्पूर्ण देश में होता है। इसका आशय यह नहीं है कि उनकी लोकप्रियता सभी राज्यों में एक जैसी है। उनका प्रभाव और इनकी शक्ति विभिन्न राज्यों में अलग-अलग है। किसी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय दल की मान्यता प्राप्त होने के लिए निम्न शर्त में से कोई एक का होना अनिवार्य है-जो दल एक या एक से अधिक राज्यों में लोकसभा या विधानसभा के चुनावों में डाले गये मतों का कम से कम 6 प्रतिशत मत प्राप्त करे अथवा यदि कोई दल लोकसभा के सदस्यों का कम से कम 2 प्रतिशत स्थान प्राप्त करे और यह स्थान न्यूनतम तीन राज्यों में होना चाहिए।

प्रश्न 5.
राजनीतिक दल के चार कार्य लिखिए।
उत्तर:

  1. ये देश के हित में अनुकूल जनमत बनाते हैं।
  2. निर्वाचन में विजय प्राप्त करना और सरकार बनानो इनका प्रमुख कार्य है।
  3. ये सरकार और जनता के मध्य सेतु का कार्य करते हैं।
  4. शासक दल की निरंकुशता पर नियन्त्रण लगाने का प्रयास करते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 13 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सर्वव्यापी वयस्क मताधिकार सिद्धान्त के गुण-दोष बताइए।
‘उत्तर:
गुण :

  1. चूँकि प्रजातन्त्र का आशय प्रत्येक व्यक्ति की शासन में सहभागिता है, तो यह वांछनीय है कि मताधिकार सर्वव्यापक हो। जन-जन की शासन में सहभागिता ही प्रजातन्त्र की प्राणशक्ति है।
  2. जिसका सम्बन्ध सबसे हो, ऐसे व्यक्ति को अपना प्रतिनिधि बनाने में सबका हाथ होना चाहिए।
  3. मताधिकार समानता के सिद्धान्त के अनुरूप है, जो प्रजातन्त्र का मूलरूप है।
  4. जब तक मताधिकार सर्वव्यापी नहीं होगा तब तक यह आशा नहीं की जा सकती कि शासन का उद्देश्य सार्वजनिक हितों की प्राप्ति है।

दोष :

  1. यह कहा जाता है कि जनता के बड़े भाग को मताधिकार प्राप्त नहीं होना चाहिए क्योंकि इससे राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है।
  2. मैकाले व हेनरीसेन जैसे विचारकों का कथन है कि इसमें निरक्षर और नासमझ लोगों को भी मताधिकार प्राप्त हो जाता है।

MP Board Class 9th Social Science Solutions

MP Board Class 7th Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1.4

MP Board Class 7th Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1.4

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से प्रत्येक का मान ज्ञात कीजिए
(a) (-30) ÷ 10
(b) 50 ÷ (-5)
(c) (-36) ÷ (-9)
(d) (-49) ÷ 49
(e) 13 ÷ [(-2)+1]
(f) 0 ÷ (-12)
(g) (-31) ÷ [(-30) + (-1)]
(h) [(-36) ÷ 12] ÷ 3 (i) [(-6)+5] ÷ [(-2) +1]
हल:
MP Board Class 7th Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1. 4

प्रश्न 2.
a, b और c के निम्नलिखित मानों में से प्रत्येक के लिए a ÷ (b + c) ≠ (a ÷ b) + (a ÷ c) को सत्यापित कीजिए :
(a) a = 12, b = -4, c = 2.
(b) a = -10, b = 1, c = 1.
हल:
(a) यहाँ a = 12, b = – 4, c = 2
L.H.S = a ÷ (b + c) = 12 ÷ [(-4) + 2]
= 12 ÷ (-2)= – 6
R.H.S. = a ÷ b + a ÷ c = 12 + (-4) + 12 ÷ 2
= (-3) + 6 = 3
∵ -6 ≠ 3
अतएव, a ÷ (b + c) ≠ (a ÷ b) + (a ÷ c)

(b) यहाँ a = -10, b = 1, c = 1
L.H.S. = a ÷ (b + c) = (- 10) ÷ (1 + 1)
= – 10 ÷ 2 = -5
R.H.S. = (a ÷ b) + (a ÷ c)
= [(-10) ÷ 1] + [(-10) ÷ 1]
= (-10) + (-10) = (-20)
∵ -5 ≠ – 20
∴ L.H.S. ≠ R.H.S.
अतएव, a ÷ (b + c) ≠ (a ÷ b) + (a ÷ c)

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प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
हल:
(a) 369 ÷ 1 = 369 [∵ a ÷ 1 = a]
(b) (-75) ÷ 75 = -1 [∵ (-a) ÷ a = – 1]
(c) (-206) ÷ (-206) = 1 [∵ (-a) ÷ (-a) = 1]
(d) – 87 ÷ (-1)= 87 [∵ (-a) ÷(-1) = a]
(e) (-87) ÷ 1 =-87 [∵ (-a) ÷ 1 = -a]
(f) (-48) ÷ 48 = – 1
(g) 20 ÷ (-10) = – 2
(h) (-12) ÷ 4 = -3

प्रश्न 4.
पाँच ऐसे पूर्णांक युग्म (a, b) लिखिए ताकि a ÷ b = – 3 हो। ऐसा एक युग्म (6, – 2) है। क्योंकि 6 ÷ (-2) = – 3 है।
हल:
(i) ∵ [(-3) ÷ 1] = -3 ÷ 1 = -3
a ÷ b = – 3 से तुलना करने पर, a = -3, b = 1
अतः अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (-3, 1)

(ii) ∵ 9 ÷ (-3) = -3
a ÷ b = – 3 से तुलना करने पर, a = 9, b = – 3
अतः अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (9, -3)

(iii) ∵ (-15) ÷ 5 = – 3
a ÷ b = -3 से तुलना करने पर, a = – 15, b = 5
अत: अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (-15, 5)

(iv) ∵ 12 ÷ (-4) = -3
a ÷ b = – 3 से तुलना करने पर, a = 12, b = -4
अतः अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (12, -4)

(v) ∵ (-21) ÷ 7 = -3
a ÷ b = – 3 से तुलना करने पर, a = – 21, b = 7
अत: अभीष्ट पूर्णांक युग्म = (-21, 7)

प्रश्न 5.
दोपहर 12 बजे तापमान शून्य से 10°C ऊपर था। यदि यह आधी रात तक 2°C प्रति घण्टे की दर से कम होता है, तो किस समय तापमान शून्य से 8°C नीचे होगा? आधी रात को तापमान क्या होगा?
हल:
दोपहर 12 बजे तापमान = 10°C
तापमान कम होने की दर = -2°C प्रति घण्टा
दोपहर 12 बजे से आधी रात तक का समय = 12
घण्टे 12 घण्टे में तापमान में परिवर्तन = 12 x (-2) °C
= – 24°C
अतः आधी रात को तापमान = + 10°C + (-24°C)
= -14°C
अब 10°C और -8°C के मध्य तापमान का अन्तर = 10°C – (-8°C) = 18°C
∴ तापमान 0°C से 8°C नीचे तक जाने में लगा समय
= कुल कमी/1 घण्टे में तापमान में अन्तर = 18/2 = 9 घण्टे
उत्तर अतः 18°C तापमान में अन्तर दोपहर 12 बजे से 9 घण्टे में होगा।
अतः दोपहर 12 बजे के बाद 9 घण्टे = रात्रि 9 बजे
अतएव, 9 बजे रात्रि को तापमान शून्य से 8°C नीचे होगा।

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प्रश्न 6.
एक कक्षा टेस्ट में प्रत्येक सही उत्तर के लिए (+ 3) अंक दिए जाते हैं और प्रत्येक गलत उत्तर के लिए (-2) अंक दिए जाते हैं। और किसी प्रश्न को हल करने का प्रयत्न नहीं करने पर कोई अंक नहीं दिया जाता है।
(i) राधिका ने 20 अंक प्राप्त किए। यदि उसके 12 उत्तर सही पाए जाते हैं, तो उसने कितने प्रश्नों का उत्तर गलत दिया है ?
(ii) मोहिनी टेस्ट में (-5) अंक प्राप्त करती है, जबकि उसके 7 उत्तर सही पाए जाते हैं। उसने कितने प्रश्नों का उत्तर गलत दिया है ?
हल:
प्रत्येक सही उत्तर के लिए अंक = +3
प्रत्येक गलत उत्तर के लिए अंक = – 2
(i) राधिका द्वारा प्राप्त कुल अंक = 20
सही उत्तर के लिए प्राप्त अंक = 12 x 3 = 36
∴ गलत उत्तर के लिए प्राप्त अंक = 20 – 36 = – 16
∴ गलत उत्तरों की संख्या = (-16) ÷ (-2)
अतः राधिका ने 8 प्रश्नों के उत्तर गलत दिए।

(ii) मोहिनी द्वारा प्राप्त अंक = -5
7 सही उत्तरों के लिए प्राप्त अंक = 7 x 3 = 21
∴ गलत उत्तरों के लिए प्राप्त अंक =-5-21 = -26
∴ गलत उत्तरों की संख्या = (-26) (-2) = 13
अतः मोहिनी ने 13 प्रश्नों का उत्तर गलत दिया है।

प्रश्न 7.
एक उत्थापक किसी खान कूपक में 6 m प्रति मिनट की दर से नीचे जाता है। यदि नीचे जाना भूमि तल से 10 मीटर ऊपर से शुरू होता है, तो – 350 m पहुँचने में कितना समय लगेगा?
हल:
उत्थापक की वर्तमान स्थिति भूमि तल से 10 मीटर ऊपर है।
MP Board Class 7th Maths Solutions Chapter 1 पूर्णांक Ex 1. 4
अतः उत्थापक को नीचे पहुँचने में 60 मिनट (या एक घण्टा) लगेंगे।

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 17 भारत में उद्योगों की स्थिति

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 17 भारत में उद्योगों की स्थिति

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
लघु औद्योगिक इकाइयों की अधिकतम विनियोग सीमा है
(i) 1 करोड़ रुपये
(ii) 5 करोड़ रुपये
(iii) 3 करोड़ रुपये
(iv) 7 करोड़ रुपये।
उत्तर:
(ii) 5 करोड़ रुपये

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प्रश्न 2.
विश्व में कुल जूट उत्पादन का भारत में पैदा होता है
(i) 25 प्रतिशत
(ii) 10 प्रतिशत
(iii) 50 प्रतिशत
(iv) 35 प्रतिशत।
उत्तर:
(iii) 50 प्रतिशत

प्रश्न 3.
इनमें से किसका सम्बन्ध सूचना प्रौद्योगिकी से है?
(i) मोटर कार
(ii) सुन्दर कपड़े
(iii) कम्प्यू टर
(iv) सोना चाँदी।
उत्तर:
(iii) कम्प्यू टर

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में काँच निर्मित वस्तुओं का निर्यात किन देशों में किया जाता है?
उत्तर:
भारत में निर्मित काँच से बनी वस्तुओं का निर्यात पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान, कुवैत, ईरान, इराक, सऊदी अरब, म्यांमार व मलेशिया आदि देशों में किया जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में असली रेशम उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?
उत्तर:

  1. कश्मीर घाटी
  2. पूर्वी कर्नाटक व तमिलनाडु के पठारी व पहाड़ी क्षेत्र
  3. पश्चिमी बंगाल का हुगली क्षेत्र
  4. असम का पर्वतीय भू-भाग।

प्रश्न 3.
भारत में उत्पादित लाख के.प्रमुख ग्राहक देश कौन से हैं?
उत्तर:
भारत की लाख के प्रमुख ग्राहक चीन, अमेरिका, रूस और ब्रिटेन हैं। इसके अलावा जर्मनी, ब्राजील, इटली, फ्रांस तथा जापान हैं।

प्रश्न 4.
कृषि आधारित उद्योग कौन से हैं? (2008, 13)
उत्तर:
वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग, कागज उद्योग, पटसन उद्योग, वनस्पति उद्योग कृषि पर आधारित उद्योग हैं।

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प्रश्न 5.
देश में स्थापित सीमेण्ट कारखानों की उत्पादन क्षमता कितनी है?
उत्तर:
वर्तमान में देश में 190 बड़े सीमेण्ट कारखाने हैं जिनकी उत्पादन क्षमता 324.5 मिलियन टन है। इसके अलावा देश में 360 लघु सीमेण्ट कारखाने हैं जिनकी उत्पादन क्षमता 11.10 मिलियन टन है।

प्रश्न 6.
भारत में रेशम उत्पादन की दृष्टि से कौन से राज्य महत्त्वपूर्ण हैं?
उत्तर:
भारत में असली रेशम उत्पादन के चार प्रमुख क्षेत्र हैं-

  1. कश्मीर घाटी
  2. पूर्वी कर्नाटक व तमिलनाडु के पठारी व पहाड़ी क्षेत्र
  3. पश्चिमी बंगाल का हुगली क्षेत्र
  4. असम का पर्वतीय भू-भाग।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में विभिन्न उद्योगों को किन-किन आधारों पर वर्गीकृत किया गया है? समझाइए।
उत्तर:
उद्योगों को हम उनके स्वामित्व, उपयोगिता, आकार, माल की प्रकृति एवं कच्चे माल की उपलब्धता के आधार पर विभिन्न भागों में बाँट सकते हैं। जैसा कि नीचे दिये गये चार्ट से स्पष्ट है –
उद्योगों का वर्गीकरण
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 17 भारत में उद्योगों की स्थिति - 1
प्रश्न 2.
भारत के प्रमुख कुटीर उद्योगों की स्थिति का विवरण दीजिए। (2009, 14)
उत्तर:
भारत के प्रमुख कुटीर उद्योग
रेशम उद्योग :
रेशम एक कृषि आधारित उद्योग है और भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए यह एक उपयुक्त उद्योग है। यह गाँव एवं श्रम आधारित उद्योग है, जो न्यूनतम निवेश पर अधिकतम लाभ की वापसी देता है। विश्व में भारत दूसरा बड़ा रेशम उत्पादक है और विश्व के कुल कच्चे रेशम उत्पादन का 18 प्रतिशत पूरा करता है। इस उद्योग में 78.50 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है, जिसमें अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। इस उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए सन् 1949 में केन्द्रीय रेशम बोर्ड की स्थापना की गई।

लाख उद्योग :
भारत लाख का प्रमुख उत्पादक राष्ट्र है। सन् 1950 से पहले केवल भारत में ही लाख साफ की जाती थी, परन्तु अब थाईलैण्ड में भी यह काम होता है। इसका भारत के लाख उद्योग पर प्रभाव पड़ा है। पहले विश्व की 85 प्रतिशत लाख भारत में तैयार होती थी, जो वर्तमान में घटकर 50 प्रतिशत रह गई है। भारत में लाख का सबसे अधिक उत्पादन छोटा नागपुर पठार में होता है। यहाँ देश का 50 प्रतिशत उत्पादन होता है। इसके अतिरिक्त छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, गुजरात व उत्तर प्रदेश का मिर्जापुर जिला लाख के प्रमुख उत्पादक केन्द्र हैं। इस उद्योग से लगभग 10,000 लोगों को रोजगार प्राप्त है।

काँच उद्योग :
कुटीर उद्योग के रूप में यह उद्योग प्रमुख रूप से फिरोजाबाद व बेलगाँव में केन्द्रित हैं। फिरोजाबाद में काँच के 225 से भी अधिक छोटे-बड़े कारखाने हैं काँच की विभिन्न प्रकार की चूड़ियाँ बनाई जाती हैं। एटा, शिकोहाबाद, फतेहाबाद व हाथरस में भी यह उद्योग कुटीर उद्योग के रूप में संचालित हैं।

प्रश्न 3.
भारत में चर्म उद्योग में किन वस्तुओं का निर्माण होता है?
उत्तर:
यह एक पारम्परिक उद्योग है। चमड़े से कई प्रकार की वस्तुएँ; जैसे-कोट, जर्सी, पर्स, बटुए, थैले, खेल का सामान, खिलौने, कनटोपं, बेल्ट, दस्ताने, जूते व चप्पल आदि बनाये जाते हैं। देश में चमड़े की वस्तुओं का सर्वाधिक उत्पादन तमिलनाडु, कोलकाता, कानपुर, मुम्बई, औरंगाबाद, कोल्हापुर, देवास, जालंधर और आगरा में होता है। चमड़े की वस्तुओं के उत्पादन का 75 प्रतिशत भाग लघु और कुटीर उद्योगों द्वारा उत्पादित किया जाता है।

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प्रश्न 4.
भारत में कागज उद्योग की स्थिति समझाइए।
उत्तर:
कागज उद्योग-भारत में कुटीर उद्योग के अन्तर्गत कागज-निर्माण का इतिहास पुराना है। भारत में आधुनिक ढंग की पहली कागज मिल बालीगंज (कोलकाता) में 1870 में स्थापित की गयी। देश में पहला अखबारी कागज उद्योग मध्य प्रदेश के नेपानगर में 1947 में स्थापित किया गया था। कागज बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में लकड़ी की लुग्दी, घास, बाँस, कपड़े व चिथड़े, जूट आदि का प्रयोग होता है। भारत के कागज उद्योग को विश्व के 20 बड़े कागज उद्योगों में से गिना जाता है। यहाँ 16,000 करोड़ रुपये का उत्पादन होता है, प्रत्यक्ष रूप से 3 लाख और परोक्ष रूप से 10 लाख लोगों को रोजगार मिलता है। भारत में प्रति व्यक्ति कागज की खपत सिर्फ 7-2 किलोग्राम है जोकि विश्व औसत (50 किग्रा) से बहुत कम है।

भारत में कागज के प्रमुख उत्पादक राज्य आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा केरल हैं।

प्रश्न 5.
भारत में काँच उद्योग पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
काँच उद्योग-काँच उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है, किन्तु भारत में विकसित काँच उद्योग की शुरूआत द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् ही सम्भव हो सकी। वर्तमान में इस उद्योग में आधुनिक एवं नवीनतम तकनीकों से काँच का उत्पादन किया जा रहा है। देश में इस समय काँच के 56 बड़े कारखानों में से 15 ऐसे आधुनिक कारखाने हैं, जो उत्तम किस्म के काँच के सामान का निर्माण पूर्णतः मशीनों द्वारा करते हैं।

आधुनिक उद्योग के रूप में यह उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिमी बंगाल, पंजाब, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु व ओडिशा में केन्द्रित हैं। देश में काँच बनाने के सबसे अधिक कारखाने पश्चिम बंगाल में हैं। कुटीर उद्योग के रूप में यह उद्योग प्रमुख रूप से फिरोजाबाद व बेलगाँव में केन्द्रित है।

प्रश्न 6.
सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग भारत का सबसे तेज बढ़ता हुआ उद्योग है। समझाइए। (2008, 09, 13, 14)
उत्तर:
सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग :
सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग से आशय उस उद्योग से है, जिसमें कम्प्यूटर और उसके सहायक उपकरणों की सहायता से ज्ञान का प्रसार किया जाता है। इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर, संचार, प्रौद्योगिकी और सम्बन्धित सॉफ्टवेयर को शामिल किया जाता है। इसके अन्तर्गत उस सम्पूर्ण व्यवस्था को शामिल किया जाता है, जिसके द्वारा संचार माध्यम और उपकरणों की सहायता से सूचना पहुँचाई जाती है। यह ज्ञान आधारित उद्योग है। वर्ष 2000-01 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 33,138 करोड़ रुपये था जो 2008-09 में बढ़कर 2,35,300 करोड़ रुपये पहुँच गया। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग का योगदान वर्ष 1999-2000 में 1.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2013 में 8 प्रतिशत हो गया है। इससे ज्ञात होता है कि यह उद्योग भारत का सबसे तेज गति से बढ़ता हुआ उद्योग है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में वृहद् उद्योगों की स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वृहद् उद्योग
सूती वस्त्र उद्योग :
भारत में सूती वस्त्रों की अत्यन्त पुरानी परम्परा है। देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल सन् 1818 में कोलकाता में स्थापित की गई थी। देश की सूती कपड़ा मिलें मुख्य रूप से महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात में हैं। यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा एवं व्यापक उद्योग है। देश के औद्योगिक उत्पादन में इसका योगदान 14 प्रतिशत है, जबकि देश के कुल निर्यात आय में इसका हिस्सा 19 प्रतिशत है। आयात में इसका हिस्सा 3 प्रतिशत है। यह उद्योग लगभग 9 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रहा है। इस उद्योग में लगभग 5,000 करोड़ रुपये की पूँजी लगी है। सरकार ने कपड़ा आदेश (विकास एवं विनिमय)1993 के माध्यम से कपड़ा उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया।

लोहा तथा इस्पात उद्योग :
लोहा-इस्पात उद्योग देश का एक आधारभूत उद्योग है। विनियोग की दृष्टि से यह संगठित क्षेत्र के सबसे महत्त्वपूर्ण एवं विशालतम उद्योगों में से एक है।

भारत में यह उद्योग अति प्राचीन है लेकिन आधुनिक तरीके से लोहे का उत्पादन 1875 में आरम्भ हुआ, जब बंगाल आयरन वर्क्स कम्पनी ने कुल्टी (पश्चिम बंगाल) में अपने संयन्त्र की स्थापना की। परन्तु बड़े पैमाने पर उत्पादन 1907 में जमशेदपुर में टाटा आयरन इण्डस्ट्रीज कम्पनी (टिस्को) की स्थापना के साथ आरम्भ हुआ। भारत में कुल 10 कारखाने हैं जिसमें से 9 सार्वजनिक क्षेत्र में एवं केवल एक निजी क्षेत्र (टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर, पश्चिमी बंगाल) में है। सार्वजनिक क्षेत्र के कारखाने भिलाई, दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो, विशाखापट्टनम् एवं सलेम में है।

इस समय देश में 196 लघु इस्पात संयन्त्र हैं। इनमें से 179 इकाइयाँ चालू हैं तथा शेष बन्द हैं। वर्तमान में इस उद्योग में 90,000 करोड़ रुपये की पूँजी लगी है तथा इसमें 5 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त है।

जूट उद्योग :
वर्ष 1859 में कलकत्ता के निकट पहली जूट मिल स्थापित हुई थी। इस उद्योग में करीब – 4 लाख श्रमिकों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है। भारत की 90% जूट मिलें पश्चिम बंगाल में कोलकाता के समीप हुगली नदी के किनारे स्थित हैं। इस राज्य की जलवायु तथा उपजाऊ भूमि जूट-उत्पादन के अनुकूल है। देश में 83 पटसन मिलें हैं जिनमें से 6 कपड़ा मन्त्रालय के अधीन सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम राष्ट्रीय पटसन उत्पाद निगम की हैं। पटसन उत्पादनों का वार्षिक निर्यात 1400-1500 करोड़ रुपये के बीच है। घरेलू खपत और निर्यात का अनुपात 80 : 20 हैं।

चीनी उद्योग :
चीनी उद्योग के विकास का प्रारम्भ 1903 से होता है और 1931 में भारत में चीनी बनाने के 29 कारखाने स्थापित हो गये थे 1950-51 में इनकी संख्या बढ़कर 139 हो गयी थी 1995 में भारत में 435 कारखाने थे जिनकी स्थापना मुख्यतः गन्ना उत्पादक क्षेत्रों या उसके समीपवर्ती क्षेत्रों में ही की गयी थी। चूंकि गन्ना शीघ्र ही सूख जाता है, इसलिए इसको शीघ्रता से कारखानों तक पहुंचाने एक अनिवार्यता होती है।

सीमेण्ट उद्योग :
भारत में संगठित रूप से समुद्री सीपियों से सीमेण्ट तैयार करने का प्रथम कारखाना सन् 1904 में मद्रास में स्थापित किया गया था, लेकिन वह असफल हो गया। इसके पश्चात् 1913 में टाटा एण्ड सन्स कम्पनी के निर्देशन में पोरबन्दर (गुजरात) में इण्डियन सीमेण्ट कम्पनी लिमिटेड की स्थापना की गयी जिसकी सफलता से प्रेरित होकर सन् 1914 तक देश में 5 सीमेण्ट कारखाने स्थापित किये गये, जिनका कुल उत्पादन 76 हजार टन वार्षिक था।

वर्तमान स्थिति-वर्तमान में 190 बड़े सीमेण्ट संयन्त्र हैं, जिनकी संस्थापित क्षमता करीब 324.5 मिलियन टन है। इसके अलावा देश में करीब 360 लघु सीमेण्ट संयन्त्र भी हैं जिनकी अनुमानित क्षमता 11-10 मिलियन टन है। वर्तमान समय में सीमेण्ट उद्योग में 800 करोड़ रुपये से भी अधिक पूँजी विनियोजित है तथा तीन लाख लोगों को रोजगार प्राप्त है। मार्च 1989 से सीमेण्ट उद्योग को मूल्य तथा विक्रय से नियन्त्रण मुक्त करने और उदार नीतियाँ अपनाये जाने के कारण इसमें उत्पादन वृद्धि के साथ-साथ तकनीक क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है।

सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग :
सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग से आशय उस उद्योग से है, जिसमें कम्प्यूटर और उसके सहायक उपकरणों की सहायता से ज्ञान का प्रसार किया जाता है। इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर, संचार, प्रौद्योगिकी और सम्बन्धित सॉफ्टवेयर को शामिल किया जाता है। इसके अन्तर्गत उस सम्पूर्ण व्यवस्था को शामिल किया जाता है, जिसके द्वारा संचार माध्यम और उपकरणों की सहायता से सूचना पहुँचाई जाती है। यह ज्ञान आधारित उद्योग है। वर्ष 2000-01 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 33,138 करोड़ रुपये था जो 2008-09 में बढ़कर 2,35,300 करोड़ रुपये पहुँच गया। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग का योगदान वर्ष 1999-2000 में 1.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2013 में 8 प्रतिशत हो गया है। इससे ज्ञात होता है कि यह उद्योग भारत का सबसे तेज गति से बढ़ता हुआ उद्योग है।

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प्रश्न 2.
लघु उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा क्या-क्या प्रयास किये गये हैं? लिखिए। (2008)
उत्तर:
लघु उद्योगों के विकास के लिए किये गये सरकारी प्रयास
(1) निगमों एवं मण्डलों की स्थापना केन्द्रीय सरकार ने विभिन्न निगमों एवं मण्डलों की स्थापना की है। इनसे कुटीर व लघु उद्योगों के विकास को बहुत प्रोत्साहन मिला है। इनमें –

  • अखिल भारतीय कुटीर उद्योग मण्डल, 1948
  • केन्द्रीय सिल्क बोर्ड 1950
  • अखिल भारतीय हस्तकला बोर्ड 1952
  • अखिल भारतीय हथकरघा बोर्ड, 1952
  • अखिल भारतीय खादी एवं ग्रामोद्योग बोर्ड, 1953
  • लघु उद्योग मण्डल, 1954
  • नारियल-जूट मण्डल, 1954
  • राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम, 1955, तथा
  • भारतीय दस्तकारी विकास निगम, 1958 आदि प्रमुख हैं। ये अखिल भारतीय संस्थाएँ अपने-अपने क्षेत्रों में उद्योगों के विकास हेतु राज्य सरकारों एवं उद्योग संगठनों के सहयोग से तकनीकी शिक्षा, विपणन सुविधाओं तथा वस्तुओं के प्रमापीकरण की व्यवस्था कर रही है।

(2) वित्तीय सहायता :
लघु कुटीर उद्योगों को पूँजी तथा अन्य आर्थिक सहायता प्रदान करने के क्षेत्र में भी सरकार ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सरकार द्वारा जिन साधनों से लघु एवं कुटीर उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान कराई गई है, वे निम्न हैं –

  • स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया द्वारा ऋण योजना चालू करना।
  • रिजर्व बैंक द्वारा गारण्टी की योजना चालू करना।
  • राज्य वित्त निगमों द्वारा ऋण प्रदान करना।
  • राष्ट्रीय लघु उद्योग निगम द्वारा किराया क्रय पद्धति के आधार पर यन्त्रों के खरीदने की सुविधाएँ प्रदान किया जाना।
  • सहकारी बैंकों और अनुसूचित बैंकों द्वारा ऋण की सहायता प्रदान करना।
  • राज्य सरकारों द्वारा आर्थिक सहायता प्रदान करना।

(3) व्यापक सहायता कार्यक्रम :
भारत सरकार ने छोटे उद्यमियों की सहायतार्थ हेतु एक व्यापक सहायता कार्यक्रम बनाया है। लघु उद्योग विकास संगठन (SIDO) के अन्तर्गत लघु उद्योग सेवा संस्थान, शाखा संस्थान एवं विस्तार केन्द्र हैं, जिनके द्वारा आर्थिक, तकनीकी व प्रबन्धकीय सेवाएँ उपलब्ध कराई जाती हैं। राज्यों के उद्योग निदेशालय भूमि या फैक्ट्री शेड आबंटित करते हैं तथा इनके लिए कच्चा माल तथा पूँजी उपलब्ध कराने में सहायता देते हैं।

(4) सरकार द्वारा क्रय में प्राथमिकता :
सरकार ने स्वयं भी लघु उद्योगों से अधिक मात्रा में वस्तुएँ क्रय करके उनके विकास में सहायता दी है। सरकार कुछ वस्तुओं का क्रय पूर्ण रूप से लघु उद्योगों से करती है।

(5) दुर्लभ कच्चे माल का आबंटन :
सरकार दुर्लभ देशी तथा विदेशी कच्चे माल के आबंटन में लघु उद्योगों के हितों का विशेष ध्यान रखती है और उन्हें प्राथमिकता देती है। 1991 की नई आयात नीति में सरकार द्वारा लघु इकाइयों को आयात लाइसेंस देने में अधिक उदारता बरती गई थी। अब इन्हें 5 लाख रुपये तक के आयात के लाइसेंस स्वतन्त्र विदेशी मुद्रा से प्राप्त हो सकेंगे।

(6) सम्मिलित उत्पादन कार्यक्रम :
सरकार ने बड़े तथा लघु एवं कुटीर उद्योगों के लिए एक सम्मिलित उत्पादन कार्यक्रम की योजना बनाई है। इस योजना के अनुसार लघु उद्योगों का उत्पादन क्षेत्र सीमित रखा गया है। बड़े उद्योगों की उत्पादन क्षमता में विस्तार पर रोक लगाने की व्यवस्था है। बड़े उद्योगों पर उत्पादन कर लगाया जाता है जबकि, लघु व कुटीर उद्योगों के उत्पादन को कर-मुक्त रखा गया है। बड़े उद्योगों से प्राप्त उत्पादन कर को लघु व कुटीर उद्योगों के विकास पर खर्च किया जाता है तथा अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण में आदान-प्रदान का समन्वय स्थापित किया जाता है।

(7) विपणन सम्बन्धी सुविधाएँ :
केन्द्र सरकार ने एक केन्द्रीय कुटीर उद्योग एम्पोरियम की स्थापना की है जो देश-विदेश में कुटीर उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं के विक्रय की व्यवस्था करता है। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, असम, जम्मू कश्मीर तथा तमिलनाडु आदि राज्यों में भी कुटीर उद्योग एम्पोरियम स्थापित किये गये हैं। औद्योगिक सहकारी संस्थाओं द्वारा निर्यात एवं थोक बाजार में इसकी विक्रय व्यवस्था करने के लिए सन् 1966 में औद्योगिक सहकारी संस्थाओं का महासंघ स्थापित किया गया था।

(8) तकनीकी सहायता :
लघु उद्योगों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए केन्द्रीय सरकार ने केन्द्रीय लघु उद्योग संगठन के अधीन एक औद्योगिक विस्तार सेवा प्रारम्भ की है। इस योजना के अन्तर्गत 28 लघु उद्योगशालाएँ, 31 प्रादेशिक सेवाशालाएँ और 37 प्रसार उत्पादन प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किये गये हैं। लघु उद्योगों को तकनीकी परामर्श देने के लिए विदेशी विशेषज्ञ बुलाये जाते हैं तथा फोर्ड फाउण्डेशन ऑफ इण्डिया की सहायता से भारतीय विशेषज्ञ प्रशिक्षण के लिए विदेश भेजे जाते हैं।

(9) औद्योगिक बस्तियों का निर्माण :
लघु उद्योगों के विकास हेतु देश के विभिन्न भागों में औद्योगिक बस्तियाँ स्थापित की गयी हैं। इसके लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा राज्य सरकारों को ऋण दिया जाता है। इनका प्रमुख उद्देश्य उद्योगों को शहरी क्षेत्रों से हटाकर उचित स्थान पर ले जाना है।

(10) जिला उद्योग केन्द्र :
इन केन्द्रों की स्थापना मई, 1978 में प्रारम्भ की गयी। इनकी स्थापना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण तथा अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में व्यापक रूप से फैले छोटे और अत्यन्त छोटे ग्रामीण और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए जिला स्तर पर एक केन्द्र स्थापना करना है। इसका एक अन्य उद्देश्य पूँजी निवेश के दौरान तथा पूँजी निवेश के पश्चात् जहाँ तक सम्भव हो सभी अनिवार्य सेवाएँ और सहयोग जिला स्तर पर भी उपलब्ध कराना है। इस कार्यक्रम में ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे कस्बों में ऐसे उद्योगों की स्थापना पर अधिक जोर दिया जाता है जिनसे इन इलाकों में रोजगार के ज्यादा अवसर उपलब्ध कराये जा सकें।

प्रश्न 3.
लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्त्व लिखिए। (2009)
अथवा
भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु उद्योगों का महत्त्व लिखिए। (2017)
उत्तर:
भारतीय अर्थव्यवस्था में कुटीर एवं लघु उद्योगों का महत्त्व :
महात्मा गाँधी के अनुसार, “भारत का कल्याण उसके कुटीर उद्योगों में निहित है।” भारतीय योजना आयोग के अनुसार, “लघु एवं कुटीर उद्योग हमारी अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण अंग हैं जिनकी कभी उपेक्षा नहीं की जा सकती।” भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट किया जा सकता है-

  • रोजगार का सृजन :
    इन उद्योगों का सबसे महत्त्वपूर्ण लाभ यह है कि इनसे रोजगार के अधिक अवसर विकसित होते हैं, क्योंकि इन उद्योगों में प्रायः श्रम प्रधान तकनीक का प्रयोग किया जाता है। इन उद्योगों में कम पूँजी लगाकर अधिक लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होते हैं।
  • कलात्मक वस्तुओं का निर्माण :
    कुटीर उद्योगों में अधिकांश कार्य हाथों द्वारा किया जाता है जो कलात्मक वस्तुओं को सम्भव बनाते हैं; जैसे-ऊनी, रेशमी वस्त्रों पर कढ़ाई, कालीन व गलीचों का निर्माण, हाथी दाँत का सामान आदि ऐसे कुटीर उद्योग हैं जिनसे काफी मात्रा में विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है। इस प्रकार का उत्पादन वृहत् उद्योगों में सम्भव नहीं है।
  • शीघ्र उत्पादक उद्योग :
    लघु एवं कुटीर उद्योग शीघ्र उत्पादक उद्योग होते हैं आशय यह है कि इन उद्योगों में विनियोग करने और उत्पादन आरम्भ होने में अधिक समयान्तर नहीं होता।
  • आयातों में कमी :
    लघु एवं कुटीर उद्योगों का विकास प्रायः श्रम प्रधान तकनीक के आधार पर किया जाता है। इस कारण इन उद्योगों के विकास के लिए आयातों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है और राष्ट्र के मूल्यवान विदेशी विनिमय-भण्डारों की बचत होती है।
  • उद्योगों का विकेन्द्रीकरण :
    इन उद्योगों से देश में उद्योगों के विकेन्द्रीकरण में सहायता मिलती है। बड़े उद्योग कुछ विशेष कारणों से एक ही स्थान पर केन्द्रित हो जाते हैं, लेकिन लघु एवं कुटीर उद्योगों को गाँवों और छोटे कस्बों में भी स्थापित किया जा सकता है।
  • कम पूँजी व अधिक श्रम की स्थिति में उपयुक्त :
    भारत में पूँजी का अभाव है जबकि श्रम शक्ति का बाहुल्य है। चूँकि कुटीर उद्योग में कम पूँजी से ही काम चल जाता है और अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध हो जाता है, इसलिए भारत में कुटीर उद्योगों का विकास किया जाए तो स्त्री-श्रम का भी उपयोग हो सकेगा तथा देश की सम्पत्ति में भी वृद्धि होगी।
  • कृषकों के खाली समय का सदुपयोग :
    देश में कृषि द्वारा केवल विशेष मौसम के लिए रोजगार मिल पाता है। वर्ष में 3-4 महीने तक कृषक लोग बेकार बैठे रहते हैं। यदि कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास हो जाए तो इससे न केवल कृषकों के खाली समय का सदुपयोग होगा वरन् उनकी आय में वृद्धि होगी।।
  • सरल कार्य-प्रणाली :
    कुटीर उद्योगों की स्थापना तथा कार्य-प्रणाली बहुत ही सरल होती है। इनके लिए उच्च कोटि के तकनीकी विशेषज्ञों, प्रबन्धकों, विशाल भवन, विशेष प्रशिक्षण तथा विस्तृत हिसाब-किताब की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  • बड़े पैमाने के उद्योगों के पूरक :
    लघु एवं कुटीर उद्योग बड़े पैमाने के उद्योगों को कच्ची सामग्री एवं अर्द्ध-निर्मित माल उपलब्ध कराते हैं। इस प्रकार इन उद्योगों का विकास बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास .. के लिए भी आवश्यक है।
  • निर्यात व्यापार में महत्त्व :
    विगत वर्षों में हथकरघा वस्त्र, हाथी दाँत की वस्तुएँ, ताँबे व पीतल की कलात्मक बर्तन, दरियाँ, कालीन तथा गलीचे, चमड़े के जूते, सिलाई की मशीनें, बिजली के पंखे, साइकिलें आदि कुटीर व लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित माल के निर्यात में काफी वृद्धि हुई है। वर्ष 2005-06 में इन उद्योगों का निर्यात में योगदान 1,50,242 करोड़ रुपये रहा है।
  • आर्थिक विकास में योगदान :
    लघु उद्यम क्षेत्र का देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। औद्योगिक उत्पादन में 39 प्रतिशत से अधिक और राष्ट्रीय निर्यात से 33 प्रतिशत से अधिक योगदान करके इस क्षेत्र ने राष्ट्र के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भागीदारी निभाई है। अनुमान है कि इस क्षेत्र में 3 करोड़ 10 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

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प्रश्न 4.
टिप्पणी लिखिए

  1. चमड़ा उद्योग
  2. लोहा इस्पात उद्योग(2009)
  3. सूती वस्त्र उद्योग, (2008, 09)
  4. सूचना एवं प्रौद्योगिकी।

उत्तर:
1. चमड़ा उद्योग :
यह एक पारम्परिक उद्योग है। चमड़े से कई प्रकार की वस्तुएँ; जैसे-कोट, जर्सी, पर्स, बटुए, थैले, खेल का सामान, खिलौने, कनटोपं, बेल्ट, दस्ताने, जूते व चप्पल आदि बनाये जाते हैं। देश में चमड़े की वस्तुओं का सर्वाधिक उत्पादन तमिलनाडु, कोलकाता, कानपुर, मुम्बई, औरंगाबाद, कोल्हापुर, देवास, जालंधर और आगरा में होता है। चमड़े की वस्तुओं के उत्पादन का 75 प्रतिशत भाग लघु और कुटीर उद्योगों द्वारा उत्पादित किया जाता है।

2. लोहा तथा इस्पात उद्योग एवं :
लोहा-इस्पात उद्योग देश का एक आधारभूत उद्योग है। विनियोग की दृष्टि से यह संगठित क्षेत्र के सबसे महत्त्वपूर्ण एवं विशालतम उद्योगों में से एक है।
भारत में यह उद्योग अति प्राचीन है लेकिन आधुनिक तरीके से लोहे का उत्पादन 1875 में आरम्भ हुआ, जब बंगाल आयरन वर्क्स कम्पनी ने कुल्टी (पश्चिम बंगाल) में अपने संयन्त्र की स्थापना की। परन्तु बड़े पैमाने पर उत्पादन 1907 में जमशेदपुर में टाटा आयरन इण्डस्ट्रीज कम्पनी (टिस्को) की स्थापना के साथ आरम्भ हुआ। भारत में कुल 10 कारखाने हैं जिसमें से 9 सार्वजनिक क्षेत्र में एवं केवल एक निजी क्षेत्र (टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी, जमशेदपुर, पश्चिमी बंगाल) में है। सार्वजनिक क्षेत्र के कारखाने भिलाई, दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो, विशाखापट्टनम् एवं सलेम में है।

इस समय देश में 196 लघु इस्पात संयन्त्र हैं। इनमें से 179 इकाइयाँ चालू हैं तथा शेष बन्द हैं। वर्तमान में इस उद्योग में 90,000 करोड़ रुपये की पूँजी लगी है तथा इसमें 5 लाख लोगों को रोजगार प्राप्त है।

3. सूती वस्त्र उद्योग :
भारत में सूती वस्त्रों की अत्यन्त पुरानी परम्परा है। देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल सन् 1818 में कोलकाता में स्थापित की गई थी। देश की सूती कपड़ा मिलें मुख्य रूप से महाराष्ट्र, तमिलनाडु और गुजरात में हैं। यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा एवं व्यापक उद्योग है। देश के औद्योगिक उत्पादन में इसका योगदान 14 प्रतिशत है, जबकि देश के कुल निर्यात आय में इसका हिस्सा 19 प्रतिशत है। आयात में इसका हिस्सा 3 प्रतिशत है। यह उद्योग लगभग 9 करोड़ लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रहा है। इस उद्योग में लगभग 5,000 करोड़ रुपये की पूँजी लगी है। सरकार ने कपड़ा आदेश (विकास एवं विनिमय)1993 के माध्यम से कपड़ा उद्योग को लाइसेन्स मुक्त कर दिया।

4. सूचना एवं प्रौद्योगिकी :
सूचना एवं प्रौद्योगिकी उद्योग से आशय उस उद्योग से है, जिसमें कम्प्यूटर और उसके सहायक उपकरणों की सहायता से ज्ञान का प्रसार किया जाता है। इसके अन्तर्गत कम्प्यूटर, संचार, प्रौद्योगिकी और सम्बन्धित सॉफ्टवेयर को शामिल किया जाता है। इसके अन्तर्गत उस सम्पूर्ण व्यवस्था को शामिल किया जाता है, जिसके द्वारा संचार माध्यम और उपकरणों की सहायता से सूचना पहुँचाई जाती है। यह ज्ञान आधारित उद्योग है। वर्ष 2000-01 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 33,138 करोड़ रुपये था जो 2008-09 में बढ़कर 2,35,300 करोड़ रुपये पहुँच गया। भारत में सकल घरेलू उत्पाद में उद्योग का योगदान वर्ष 1999-2000 में 1.2 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2013 में 8 प्रतिशत हो गया है। इससे ज्ञात होता है कि यह उद्योग भारत का सबसे तेज गति से बढ़ता हुआ उद्योग है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अति लघु उद्योग इकाइयों की अधिकतम विनियोग सीमा है
(i) 5 लाख रुपये
(ii) 15 लाख रुपये
(iii) 20 लाख रुपये
(iv) 25 लाख रुपये
उत्तर:
(iv) 25 लाख रुपये

प्रश्न 2.
वर्तमान में चीनी उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
(i) पहला
(ii) दूसरा
(iii) तीसरा
(iv) चौथा।
उत्तर:
(ii) दूसरा

प्रश्न 3.
विश्व में सीमेण्ट उत्पादन में भारत का कौन-सा स्थान है?
(i) तीसरा
(ii) चौथा
(iii) पाँचवाँ
(iv) छठा।
उत्तर:
(iii) पाँचवाँ

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रिक्त स्थान की पूर्ति

  1. कुटीर उद्योग सिर्फ …………. में चलाये जाते हैं।
  2. ………. उद्योग भारत का सबसे प्राचीन और प्रमुख उद्योग है।
  3. जूट के उत्पादन में भारत का विश्व में ………… स्थान है।
  4. भारत की लगभग …………. प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या कृषि पर निर्भर है।
  5. वर्तमान में लघु उद्योगों की वस्तुओं का देश के कुल निर्यात में ……… प्रतिशत हिस्सा है।

उत्तर:

  1. ग्रामों
  2. सूती वस्त्र
  3. पहला
  4. 58.4
  5. 35

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल सन् 1818 में कोलकाता में स्थापित की गई थी। (2014)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 2.
जिन औद्योगिक इकाइयों में 50 लाख रुपये तक की पूँजी लगी हो उन्हें अति उद्योग की श्रेणी में रखा जाता है।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3.
नेशनल न्यूज प्रिण्ट एण्ड पेपर मिल लिमिटेड नेपानगर (म. प्र.) में है।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
भारत में लाख का सबसे अधिक उत्पादन छोटा नागपुर पठार में होता है।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5.
अनुमान है कि विश्व के चमड़े की कुल आपूर्ति का 20 प्रतिशत चमड़ा भारत में तैयार होता है।
उत्तर:
असत्य

सही.जोड़ी मिलाइए
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 17 भारत में उद्योगों की स्थिति - 2
उत्तर:

  1. →(घ)
  2. →(ग)
  3. →(क)
  4. →(ङ)
  5. →(ख)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
लोहा इस्पात उद्योग को किस वर्ष में लाइसेंस मुक्त कर दिया?
उत्तर:
1991 में

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प्रश्न 2.
चीनी उत्पादन में किन दो राज्यों का महत्त्वपूर्ण स्थान है?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र

प्रश्न 3.
हथकरघा, खादी उद्योग तथा रेशम उद्योग को किस उद्योग की श्रेणी में रखा गया है?
उत्तर:
ग्राम उद्योग

प्रश्न 4.
देश में काँच बनाने के कारखाने किस राज्य में हैं?
उत्तर:
पश्चिम बंगाल

प्रश्न 5.
भारत में लाख का उत्पादन सबसे अधिक कहाँ होता है?
उत्तर:
छोटा नागपुर का पठार।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्योगों का क्या महत्त्व है?
उत्तर:
किसी देश के आर्थिक विकास में उद्योगों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। उद्योग देश के तीव्र आर्थिक विकास में सहायक होते हैं। उद्योगों के विकास के बिना कोई राष्ट्र समृद्ध नहीं हो सकता है।

प्रश्न 2.
वृहत् उद्योग किसे कहते हैं?
अथवा
बडे पैमाने के उद्योग से क्या आशय है?
उत्तर:
जिन उद्योगों में कारखाना अधिनियम लागू होता है अर्थात् जहाँ अधिक संख्या में श्रमिक कार्य करते हैं व अधिक मात्रा में पूँजी लगी होती है वे उद्योग वृहत् (या बड़े) उद्योग कहलाते हैं।

प्रश्न 3.
मध्यम उद्योगों से क्या आशय है?
उत्तर:
जिन औद्योगिक इकाइयों में प्लाण्ट एवं मशीनरी में पाँच से दस करोड़ रुपये तक की पूँजी लगी होती है, वे औद्योगिक इकाइयाँ मध्यम उद्योगों की श्रेणी में आती हैं। सेवा क्षेत्र वाली इकाइयों के लिए यह सीमा 5 करोड़ रुपये तक रखी गयी है। उदाहरणार्थ-चमड़ा उद्योग, रेशम उद्योग।

प्रश्न 4.
लघु उद्योग किसे कहते हैं?
उत्तर:
वर्तमान में वे सभी औद्योगिक इकाइयाँ लघु उद्योग के अन्तर्गत आती हैं जिनकी अचल सम्पत्ति, संयन्त्र एवं मशीनरी में सीमित तथा सरकार द्वारा स्वीकृत से अधिक पूँजी न लगी हो, साथ ही जिनमें कारखाना अधिनियम लागू नहीं होता।

प्रश्न 5.
कुटीर उद्योगों से क्या आशय है?
उत्तर:
कुटीर उद्योग से आशय ऐसे उद्योगों से है जो पूर्णतया या मुख्यतया परिवार के सदस्यों की सहायता से पूर्णकालिक या अंशकालिक व्यवसाय के रूप में चलाये जाते हैं। ये प्रायः ग्रामीण एवं अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में स्थापित होते हैं तथा अंशकालीन रोजगार प्रदान करते हैं।

प्रश्न 6.
ग्राम उद्योग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ये उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में स्थापित किये जाते हैं। ग्रामीण उद्योग दो श्रेणियों में विभाजित किये जा सकते हैं-एक वे हैं जो किसानों द्वारा सहायक धन्धे के रूप में चलाये जाते हैं; जैसे-मुर्गी पालन, करघों पर बुनाई, गाय-भैंस पालन, टोकरियाँ बनाना, रेशम के कीड़े पालना, मधुमक्खियाँ पालना आदि। दूसरे वे हैं जो ग्रामीण कौशल से सम्बन्धित होते हैं; जैसे-मिट्टी के बर्तन बनाना, चमड़े के जूते बनाना, हथकरघा पर कपड़े बुनना आदि।

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प्रश्न 7.
देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल कब और कहाँ स्थापित की गयी थी?
उत्तर:
देश की प्रथम सूती कपड़ा मिल 1818 में कोलकाता में स्थापित की गई थी।

प्रश्न 8.
सार्वजनिक क्षेत्र में स्थापित भारत के चार लौह-इस्पात केन्द्र कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:

  1. भिलाई (मध्य प्रदेश)
  2. दुर्गापुर (पश्चिम बंगाल)
  3. राउरकेला (उड़ीसा)
  4. बोकारो (बिहार)।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्योग से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्योगों से आशय-जब किसी एक जैसी वस्तु या सेवा का उत्पादन अनेक फर्मों के द्वारा किया जाता है तब ये सभी फर्म मिलकर उद्योग कहलाते हैं; जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग के अन्तर्गत दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो तथा टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी सभी शामिल हैं।

‘उद्योग’ की परिधि में वे समस्त उपक्रम आते हैं जिनमें नियोजकों एवं नियोजितों के सहयोग से मानवीय आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं की सन्तुष्टि के लिए एक व्यवस्थित गतिविधि के रूप में वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन का कार्य सम्पन्न किया जाता है।

प्रश्न 2.
भारत में चीनी उद्योग का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चीनी उद्योग-भारत विश्व में गन्ने का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। चीनी के उत्पादन में भी भारत का दूसरा स्थान है। 30 जून, 2016 तक देश में 719 चीनी कारखाने स्थापित हो चुके थे, जबकि वर्ष 1950-51 में इनकी संख्या मात्र 138 थी। स्थापित चीनी मिलों में 326 सहकारी क्षेत्र के अन्तर्गत हैं। चीनी उत्पादन जो 1950-51 में 11.3 लाख टन था, वर्ष 2016-17 में 225-21 लाख टन पहुँच गया। यह मौसमी उद्योग है, अत: इसके लिए सहकारी क्षेत्र उपयुक्त है। देश में चीनी उत्पादन में उत्तर प्रदेश एवं महाराष्ट्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 17 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्योग से क्या आशय है? देश के आर्थिक विकास में उद्योगों की भूमिका क्या है?
उत्तर:
उद्योगों से आशय :
उद्योगों से आशय-जब किसी एक जैसी वस्तु या सेवा का उत्पादन अनेक फर्मों के द्वारा किया जाता है तब ये सभी फर्म मिलकर उद्योग कहलाते हैं; जैसे-लोहा-इस्पात उद्योग के अन्तर्गत दुर्गापुर, राउरकेला, बोकारो तथा टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी सभी शामिल हैं।

‘उद्योग’ की परिधि में वे समस्त उपक्रम आते हैं जिनमें नियोजकों एवं नियोजितों के सहयोग से मानवीय आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं की सन्तुष्टि के लिए एक व्यवस्थित गतिविधि के रूप में वस्तुओं या सेवाओं के उत्पादन का कार्य सम्पन्न किया जाता है।

आर्थिक विकास में उद्योगों की भूमिका :
किसी देश के आर्थिक विकास में उद्योगों की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होती है। उद्योग देश के तीव्र आर्थिक विकास में सहायक होते हैं। बी.एच.येमे के अनुसार, “औद्योगीकरण व्यापक रूप में आर्थिक विकास तथा रहन-सहन की कुंजी माना जाता है। निर्माणी उद्योगों के रूप में, प्रचलित विचारधारा के अनुसार औद्योगीकरण को आर्थिक अस्थिरता एवं निर्धनता को दूर करने की संजीवनी माना गया है।” प्रो. बाइस ने कहा है, “विकास के किसी भी सुदृढ़ कार्यक्रम में औद्योगिक विकास को आवश्यक और अन्तिम रूप से एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है।” अर्थात् उद्योगों के विकास के बिना कोई देश समृद्ध नहीं हो सकता।

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MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि

MP Board Class 9th Science Chapter 12 पाठ के अन्तर्गत के प्रश्नोत्तर

प्रश्न श्रृंखला-1 # पृष्ठ संख्या 182

प्रश्न 1.
किसी माध्यम में ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ आपके कानों तक कैसे पहुँचता है?
उत्तर:
ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ माध्यम (वायु) के सम्पीडनों एवं विरलनों के द्वारा हमारे कानों तक पहुँचता है।

प्रश्न श्रृंखला-2 # पृष्ठ संख्या 182

प्रश्न 1.
आपके विद्यालय की घण्टी, ध्वनि कैसे उत्पन्न करती है?
उत्तर:
जब हम विद्यालय की घण्टी पर हथौड़े से चोट मारते हैं तो वह कम्पन करने लगता है जिससे विक्षोभ उत्पन्न होता है। इस प्रकार ध्वनि उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
ध्वनि तरंगों को यान्त्रिक तरंगें क्यों कहते हैं?
उत्तर:
ध्वनि तरंगों को यान्त्रिक तरंगें कहते हैं क्योंकि इसके संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
मान लीजिए आप अपने मित्र के साथ चन्द्रमा पर गए हुए हैं? क्या आप अपने मित्र द्वारा उत्पन्न ध्वनि को सुन पायेंगे?
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न श्रृंखला-3 # पृष्ठ संख्या 186

प्रश्न 1.
तरंग का कौन-सा गुण निम्नलिखित को निर्धारित करता है?
1. प्रबलता
2. तारत्व
उत्तर:

  1. आयाम
  2. आवृत्ति।

प्रश्न 2.
अनुमान लगाइए कि निम्न में से किस ध्वनि का तारत्व अधिक है?
(a) गिटार
(b) कार का हॉर्न।
उत्तर:
(a) गिटार का।

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प्रश्न श्रृंखला-4 # पृष्ठ संख्या 186

प्रश्न 1.
किसी ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य, आवृत्ति, आवर्तकाल तथा आयाम से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
तरंगदैर्घ्य:
“दो क्रमागत सम्पीडनों अथवा दो क्रमागत विरलनों के मध्य की दूरी तरंग की तरंगदैर्घ्य कहलाती है।” इसे लैम्डा (λ) से निरूपित करते हैं।

आवृत्ति:
“प्रति एकांक समय में पूर्ण किए गए दोलनों (अर्थात् गुजरने वाले संपीडनों तथा विरलनों) की संख्या को तरंग की आवृत्ति कहते हैं।” इसे न्यू (ν) से प्रदर्शित करते हैं।”

आवर्तकाल:
“दो क्रमागत संपीडनों या दो क्रमागत विरलनों को किसी निश्चित बिन्दु से गुजरने में लगे समय को तरंग का आवर्तकाल कहते हैं।” इसे T से प्रदर्शित करते हैं।

आयाम:
“किसी माध्यम में मूल स्थिति के दोनों ओर अधिकतम विक्षोभ को तरंग का आयाम कहते हैं।” इसे a से प्रदर्शित करते हैं।

प्रश्न 2.
किसी ध्वनि तरंग की तरंगदैर्घ्य तथा आवृत्ति उसके वेग से किस प्रकार सम्बन्धित है?
उत्तर:
ध्वनि तरंग का वेग (v) = तरंग की आवृत्ति (ν) x तरंगदैर्घ्य (λ)।

प्रश्न 3.
किसी दिए हुए माध्यम में एक ध्वनि तरंग की आवृत्ति 220 Hz तथा वेग 440 ms-1 है। इस तरंग की तरंगदैर्घ्य का परिकलन कीजिए।
हल:
∵ ज्ञात है:
आवृत्ति ν = 220
वेग v = 440 m s-1
ज्ञात करना है:
तरंगदैर्घ्य λ = ?
v = νλ
⇒ 440 = 220 λ
λ = \(\frac{440}{220}\) = 2 m
अतः अभीष्ट तरंगदैर्घ्य = 2 m.

प्रश्न 4.
किसी ध्वनि स्त्रोत से 450 m दूरी पर बैठा हुआ कोई मनुष्य 500 Hz की ध्वनि सुनता है। स्रोत से मनुष्य के पास तक पहुँचने वाले दो क्रमागत संपीडनों में कितना समय अन्तराल होगा?
उत्तर:
मान लीजिए दो क्रमागत संपीडनों के मध्य समय अन्तराल (आवर्तकाल) = T
ध्वनि की आवृत्ति ν = 500 (दिया है)
अब T = \(\frac{1}{ν}\) = \(\frac{1}{500}\) = 0.002 s
अत: अभीष्ट समय 0.002 s लगेगा।

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प्रश्न शृंखला-5 # पृष्ठ संख्या 187

प्रश्न 1.
ध्वनि की प्रबलता तथा तीव्रता में अन्तर बताइए।
उत्तर:
प्रबलता ध्वनि के लिए कानों की संवेदनशीलता की माप है, जबकि तीव्रता एकांक क्षेत्रफल से प्रति सेकण्ड गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा है। दो ध्वनियों की समान तीव्रता होते हुए भी उनकी प्रबलता अलग-अलग हो सकती है।

प्रश्न शृंखला-6 # पृष्ठ संख्या 188

प्रश्न 1.
वायु, जल या लोहे में से किस माध्यम में ध्वनि सबसे तेज चलती है?
उत्तर:
लोहे में।

प्रश्न श्रृंखला-7 # पृष्ठ संख्या 189

प्रश्न 1.
कोई प्रतिध्वनि 3 s पश्चात् सुनाई देती है। यदि ध्वनि की चाल 342 m s-1 हो तो स्रोत तथा परावर्तन पृष्ठ के बीच कितनी दूरी होगी?
हल:
ज्ञात है:
ध्वनि की चाल v = 342 m s-1
समय-अन्तराल t = 3 s
माना स्रोत एवं परावर्तक तल के बीच की ध्वनि = x m
तो ध्वनि द्वारा चली गई कुल दूरी s = 2x
तो 2x = चली दूरी (S) = वेग (v) x समय अन्तराल (t)
⇒ 2x = 342 x 3 = 1026
⇒ x = 1026/2 = 513 m
अत: अभीष्ट दूरी = 513 m.

प्रश्न श्रृंखला-8 # पृष्ठ संख्या 190

प्रश्न 1.
कंसर्ट हॉल की छतें वक्राकार क्यों होती है?
उत्तर:
कंसर्ट हॉल की छतें वक्राकार बनाई जाती हैं जिससे कि परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल के सभी भागों में पहुँच जाय।

प्रश्न श्रृंखला-9 # पृष्ठ संख्या 191

प्रश्न 1.
सामान्य मनुष्य के कानों के लिए श्रव्यता परिसर (सीमा) क्या है?
उत्तर:
20 Hz से लेकर 20 हजार Hz तक।

प्रश्न 2.
निम्न से सम्बन्धित आवृत्तियों का परिसर क्या है?
1. अवश्रव्य ध्वनि
2. पराश्रव्य ध्वनि।
उत्तर:

  1. 20 Hz से कम
  2. 20 हजार Hz से अधिक।

प्रश्न श्रृंखला-10 # पृष्ठ संख्या 193

प्रश्न 1.
एक पनडुब्बी सोनार स्पन्द उत्सर्जित करती है, जो पानी के अन्दर एक खड़ी चट्टान से टकराकर 1.02 5 के पश्चात् वापस लौटता है। यदि खारे पानी में ध्वनि की चाल 1531 m s-1 हो, तो चट्टान की दूरी ज्ञात कीजिए।
हल:
ज्ञात है:
ध्वनि की चाल y = 1531 m s-1
एवं समय अन्तराल t = 1.02 s
माना चट्टान की दूरी = x m
तो चली गई कुल दूरी = 2x m
दूरी 2x = वेग (v) x समय अन्तराल (t)
⇒ 2x = 1531 x 1.02
⇒ \(x=\frac{1531 \times 1 \cdot 02}{2}\)
⇒ 780.81 m
अतः चट्टान की अभीष्ट दूरी = 780.81 m.

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MP Board Class 9th Science Chapter 12 पाठान्त अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
ध्वनि क्या है? यह कैसे उत्पन्न होती है?
उत्तर:
ध्वनि:
“ऊर्जा का एक रूप जो हमारे कानों में श्रवण का संवेदन उत्पन्न करती है, ध्वनि कहलाती है।” ध्वनि स्रोत के कम्पन करने से उत्पन्न होती है।

प्रश्न 2.
एक चित्र की सहायता से वर्णन कीजिए कि ध्वनि के स्रोत के निकट वायु में सम्पीडन एवं विरलन कैसे उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
जब कोई ध्वनि स्रोत कम्पन करता है तो वह अपने सामने की वायु को धक्का देकर सम्पीडित करती है और एक उच्च दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस क्षेत्र को सम्पीडन (C) कहते हैं। यह सम्पीडन कम्पमान वस्तु से आगे की ओर गति करता है। जब स्रोत पीछे की ओर कम्पन करता है तो एक निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है जिसे विरलन (R) कहते हैं। इस प्रकार स्रोत के निकट वायु में सम्पीडन एवं विरलन उत्पन्न होते हैं।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 1

प्रश्न 3.
किस प्रयोग से यह दर्शाया जा सकता है कि ध्वनि संचरण के लिए एक द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है?
उत्तर:
“ध्वनि संचरण के लिए द्रव्यात्मक माध्यम की आवश्यकता होती है” दर्शाने हेतु प्रयोग:
प्रयोग:
एक बेलजार लेकर चित्रानुसार उसका सम्पर्क निर्वात पम्प से कर देते हैं तथा कॉर्क की सहायता से उसमें एक विद्युत घण्टी लटका देते हैं।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 2
जब हम घण्टी का स्विच दबाते हैं तो घण्टे के बजने की स्पष्ट आवाज सुनाई देती है। अब पम्प द्वारा धीरे-धीरे वायु निकालते हैं तो देखते हैं कि स्विच दबाने पर आवाज धीमी होती जाती है और जब बेलजार में पूर्ण निर्वात हो जाता है तब घण्टी की आवाज सुनाई देना बन्द हो जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि ध्वनि के संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4.
ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुदैर्घ्य क्यों होती है?
उत्तर:
ध्वनि तरंगों का संचरण सम्पीडनों एवं विरलनों के माध्यम से होता है तथा संचरण माध्यम में दाब तथा घनत्व में परिवर्तन होता है और ये अनुदैर्घ्य तरंगों के अभिलक्षण (प्रगुण) हैं। इसलिए ध्वनि तरंगों की प्रकृति अनुदैर्घ्य होती है।

प्रश्न 5.
ध्वनि का कौन-सा अभिलक्षण किसी अन्य अंधेरे कमरे में बैठे आपके मित्र की आवाज पहचानने में आपकी सहायता करता है?
उत्तर:
ध्वनि की गुणता वह अभिलक्षण है जो मित्र की आवाज को पहचानने में हमारी मदद करता है।

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प्रश्न 6.
तड़ित की चमक तथा गर्जन साथ-साथ उत्पन्न होते हैं लेकिन चमक दिखाई देने के कुछ सेकण्ड पश्चात् गर्जन सुनाई देती है। ऐसा क्यों होता है?
उत्तर:
चमक (प्रकाश) का वेग गर्जन (ध्वनि) के वेग से पर्याप्त मात्रा में अधिक होता है। इसलिए चमक (प्रकाश) हम तक पहले पहुँच जाती है तथा गर्जन (ध्वनि) को पहुँचने में कुछ समय अधिक लग जाता है।

प्रश्न 7.
किसी व्यक्ति का औसत श्रव्य परिसर 20 Hz से 20 kHz है। इन दो आवृत्तियों के लिए ध्वनि तरंगों की तरंगदैर्घ्य ज्ञात कीजिए। वायु में ध्वनि का वेग 344 m s-1 लीजिए।
हल:
ज्ञात है:
निम्न परिसर की आवृत्ति ν(l) 20 Hz
उच्च परिसर की आवृत्ति νu = 20 kHz
ध्वनि का वेग v = 344 m s-1
हम जानते हैं कि
v = νλ
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 3
अतः अभीष्ट तरंगदैर्घ्य क्रमशः 17.2 m एवं 17.2 x 10-3m है।

प्रश्न 8.
दो बालक किसी ऐलुमिनियम पाइप के दो सिरों पर हैं। एक बालक पाइप के एक सिरे पर पत्थर से आघात करता है। दूसरे सिरे पर स्थित बालक तक वायु तथा ऐलुमिनियम से होकर जाने वाली ध्वनि तरंगों द्वारा लिए गए समय का अनुपात ज्ञात कीजिए।
हल:
ऐलुमिनियम में ध्वनि का वेग v(Al) = 6420 m s-1 एवं
वायु में ध्वनि का वेग v(a) = 346 m s-1
मान लीजिए कि ऐलुमिनियम के पाइप की लम्बाई x m है तथा ध्वनि द्वारा वायु एवं ऐलुमिनियम में लिया गया समय क्रमशः t(a) एवं t(Al) है तो
दूरी x = वेग x समय = v x t
v(a) x t(a) = v(Al) x t(Al)
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 4
अतः लिए गए समयों में अभीष्ट अनुपात 18.55 : 1 है।

प्रश्न 9.
किसी ध्वनि स्रोत की आवृत्ति 100 Hz है। एक मिनट में यह कितनी बार कम्पन करेगा?
हल:
कम्पनों की कुल संख्या = आवृत्ति x समय (सेकण्ड में)
= 100 x 60 = 6000 कम्पन
अतः अभीष्ट कम्पनों की संख्या = 6000.

प्रश्न 10.
क्या ध्वनि परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती है जिनका पालन प्रकाश की तरंगें करती हैं? इन नियमों को बताइए।
उत्तर:
हाँ, ध्वनि तरंगें भी परावर्तन के उन्हीं नियमों का पालन करती हैं जिनका पालन प्रकाश की तरंगें करती हैं।
परावर्तन के नियम:

  1. आपतन कोण = परावर्तन कोण
  2. आपाती किरण, परावर्तित किरण एवं अभिलम्ब तीनों एक ही तल में होते हैं।

प्रश्न 11.
ध्वनि का एक स्रोत किसी परावर्तक पृष्ठ के सामने रखने पर उसके द्वारा प्रदत्त ध्वनि तरंग की प्रति ध्वनि सुनाई देती है। यदि स्रोत तथा परावर्तक पृष्ठ की दूरी पर स्थिर रहे तो किस दिन प्रतिध्वनि अधिक शीघ्र सुनाई देगी –
1. जिस दिन ताप अधिक हो,
2. जिस दिन ताप कम हो।
उत्तर:
1. जिस दिन ताप अधिक हो।

प्रश्न 12.
ध्वनि तरंगों के परावर्तन के दो व्यावहारिक उपयोग लिखिए।
उत्तर:
ध्वनि तरंगों के परावर्तन के व्यावहारिक उपयोग –

  1. मेगाफोन, लाउडस्पीकर आदि द्वारा ध्वनि विस्तारण में।
  2. स्टेथोस्कोप द्वारा हृदय की धड़कनों को डॉक्टर के कानों तक पहुँचाने में।

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प्रश्न 13.
500 मीटर ऊँची किसी मीनार की चोटी से एक पत्थर मीनार के आधार पर स्थित एक पानी के तालाब में गिराया जाता है। पानी में उसके गिरने की ध्वनि चोटी पर कब सुनाई देगी? (g = 10 m s-1 तथा ध्वनि की चाल = 340 m s-1)
हल:
ज्ञात है:
मीनार की ऊँचाई h = 500 m
पत्थर का प्रारम्भिक वेग u = 0 m s-1
गुरुत्वीय त्वरण g = 10 m s-2
ध्वनि की चाल v = 340 m s-1
पत्थर को जल तक पहुँचने में लगा समय = t1 है तो पत्थर के मुक्त पतन में,
h = ut1 + 2gt12
500 = 0 (t1) + \(\frac{1}{2}\) x 10 x t12
⇒ t12 = 100 ⇒ t1 = \(\sqrt{100}\) = 10 s
माना ध्वनि को चोटी तक पहुँचने में लगा समय t2 है तो
दूरी = वेग x समय
500 = 340 x t2
⇒ t2 = 500/340 = 1.47 s
कुल समय t = t1 + t2 = 10 s + 1-47 s = 11.47 s
अत: अभीष्ट ध्वनि 11.47 5 बाद सुनाई देगी।

प्रश्न 14.
एक ध्वनि तरंग 339 m s-1 की चाल से चलती है। यदि इसकी तरंगदैर्घ्य 1.5 cm हो, तो तरंग की आवृत्ति कितनी होगी? क्या यह श्रव्य होगी?
हल:
ज्ञात है:
ध्वनि की चाल v = 339 m s-1
तरंगदैर्घ्य λ = 1.5 cm
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 5
अतः तरंग की अभीष्ट आवृत्ति = 22,600 Hz होगी तथा यह श्रव्य नहीं पराश्रव्य होगी।

प्रश्न 15.
अनुरणन क्या है ? इसे कैसे कम किया जा सकता है? (2018)
उत्तर:
अनुरणन:
“किसी बड़े हॉल की दीवारों से ध्वनि के बार-बार परावर्तन के कारण ध्वनि काफी समय तक बनी रहती है। इस प्रकार क्रमिक परावर्तनों के फलस्वरूप सुनी गयी ध्वनि अर्थात् ध्वनि, निर्बन्ध अनुरणन कहलाता है।”

अनुरणन को कम करने के उपाय:
इसे कम करने के लिए हॉल की दीवारों एवं छतों पर ध्वनि अवशोषक लगाये जाते हैं।

प्रश्न 16.
ध्वनि की प्रबलता से क्या अभिप्राय है? यह किन कारकों पर निर्भर करती है?
उत्तर:
ध्वनि की प्रबलता:
“अधिक ऊर्जा युक्त ध्वनि तरंगें अधिक दूरी तक जाती हैं। ध्वनि के इस गुण को ध्वनि की प्रबलता कहते हैं।” ध्वनि की प्रबलता इसके आयाम पर निर्भर करती है।

प्रश्न 17.
चमगादड़ अपना शिकार पकड़ने के लिए पराध्वनि का उपयोग कैसे करते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चमगादड़ द्वारा अन्धकार में अपना शिकार ढूँढ़ने की युक्ति:
चमगादड़ अन्धकार में अपना शिकार ढूँढ़ने के लिए सोनार युक्ति का उपयोग करते हैं। वे उड़ते समय पराध्वनि तरंगें उत्सर्जित करते हैं जो उच्च आवृत्ति के कारण अवरोधों एवं कीटों से परावर्तित होकर चमगादड़ के कानों तक पहुँचती हैं जिनका चमगादड़ संसूचन करते हैं। इन परावर्तित स्पन्दों की प्रकृति से चमगादड़ को पता चल जाता है कि उसका शिकार कहाँ है तथा किस प्रकार का है।

प्रश्न 18.
वस्तुओं को साफ करने के लिए पराध्वनि का उपयोग कैसे करते हैं?
उत्तर:
वस्तुओं को साफ करने के लिए पराध्वनि का उपयोग:
पराध्वनि प्रायः उन भागों को साफ करने में उपयोग में लाई जाती है जिन तक पहुँचना बहुत कठिन होता है। जिन वस्तुओं की सफाई करनी होती है उन्हें साफ करने वाले विलयन में रखकर उसमें पराध्वनि प्रेषित की जाती है। उच्च आवृत्ति के विक्षोभ के कारण चिकनाई, धूल कण एवं गन्दगी के कण अलग होकर विलयन में आ जाते हैं और इस प्रकार वस्तु पूर्णतया साफ हो जाती है। इस विधि का उपयोग प्रायः विषम आकार के पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक अवयव आदि को साफ करने में किया जाता है।

प्रश्न 19.
सोनार की कार्यविधि तथा उपयोगों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सोनार की कार्यविधि:
सोनार में एक प्रेषित्र एवं एक संसूचक लगा होता है। जहाज पर लगे प्रेषित्रों द्वारा नियमित समय अन्तरालों पर पराश्रव्य ध्वनि के शक्तिशाली स्पन्दों अर्थात् सिग्नलों को लक्ष्य तक भेजा जाता है। ये तरंगें जल में गति करती हैं तथा लक्ष्य से टकराने के बाद परावर्तित होकर संसूचक द्वारा ग्रहण कर ली जाती हैं। संसूचक पराध्वनि को विद्युत संकेतों में बदल देता है जिनकी व्याख्या कर ली जाती है। जल में ध्वनि की चाल तथा पराध्वनि के प्रेषण एवं अधिग्रहण के समय को ज्ञात करके लक्ष्य की दूरी की गणना कर ली जाती है।

सोनार के उपयोग:
सोनार के निम्नांकित प्रमुख उपयोग हैं –

  1. चमगादड़ द्वारा अन्धकार में अपना शिकार ढूँढ़ने में।
  2. चमगादड़ का रात्रि में उड़ते समय अवरोधों से टकराने से बचाव करने में।
  3. पॉरपॉइस मछलियों द्वारा अंधेरे में अपने भोजन की खोज करने में।
  4. समुद्र में डूबे हुए जहाज एवं पनडुब्बियों का पता लगाने में तथा समुद्र की गहराई ज्ञात करने में।
  5. समुद्र के अन्दर स्थित चट्टानों, घाटियाँ, हिम शैलों एवं अन्य अवरोधों की स्थिति पता करने में।

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प्रश्न 20.
एक पनडुब्बी पर लगी सोनार युक्ति, संकेत भेजती है और उनकी प्रतिध्वनि 5 s पश्चात् ग्रहण करती है। यदि पनडुब्बी से वस्तु की दूरी 3625 m हो तो ध्वनि की चाल की गणना कीजिए।
हल:
ज्ञात है:
पनडुब्बी से वस्तु की दूरी d=3625 m
प्रतिध्वनि में लगा समय t=5 s
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 6
अतः ध्वनि की अभीष्ट चाल = 1450 m s-1.

प्रश्न 21.
किसी धातु के ब्लॉक में दोषों का पता लगाने के लिए पराध्वनि का उपयोग कैसे किया जाता है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धातु के ब्लॉक में दोषों का पता लगाने में पराध्वनि का उपयोग-पराध्वनि तरंगों को धातु ब्लॉक से प्रेषित किया जाता है और प्रेषित तरंगों का पता लगाने के लिए संसूचकों का उपयोग किया जाता है। दोष होने पर पराध्वनि परावर्तित होकर दोष की उपस्थिति को दर्शाती है।

प्रश्न 22.
मनुष्य का कान किस प्रकार कार्य करता है? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
निर्देश:
परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर का दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 3 देखिए।

MP Board Class 9th Science Chapter 12 परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

MP Board Class 9th Science Chapter 12 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वर एक ऐसी ध्वनि है –
(a) जिसमें कई आवृत्तियाँ होती हैं
(b) जिसमें केवल दो आवृत्तियाँ होती हैं
(c) जिसमें एकल आवृत्ति होती है
(d) जिसको सुनना सदैव दुखद होता है
उत्तर:
(c) जिसमें एकल आवृत्ति होती है

प्रश्न 2.
यान्त्रिक पियानो की किसी कुंजी को पहले धीरे से और फिर जोर से दबाया गया। दूसरी बार उत्पन्न ध्वनि –
(a) पहली ध्वनि से प्रबल होगी लेकिन इसका तारत्व भिन्न नहीं होगा
(b) पहली ध्वनि से प्रबल होगी और इसका तारत्व भी अपेक्षाकृत उच्च होगा
(c) पहली ध्वनि से प्रबल होगी परन्तु इसका तारत्व अपेक्षाकृत निम्न होगा
(d) प्रबलता और तारत्व दोनों ही प्रभावित नहीं होंगे
उत्तर:
(a) पहली ध्वनि से प्रबल होगी लेकिन इसका तारत्व भिन्न नहीं होगा

प्रश्न 3.
सोनार (SONAR) में हम उपयोग करते हैं –
(a) पराश्रव्य तरंगें
(b) अवश्रव्य तरंगें
(c) रेडियो तरंगें
(d) श्रव्य तरंगें
उत्तर:
(a) पराश्रव्य तरंगें

प्रश्न 4.
ध्वनि वायु में गमन करती है यदि –
(a) माध्यम के कण एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन कर रहे हों
(b) वायुमण्डल में आर्द्रता न हो
(c) विक्षोभ गमन करे
(d) कण एवं विक्षोभ दोनों ही एक स्थान से दूसरे स्थान को गमन करें
उत्तर:
(c) विक्षोभ गमन करे

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प्रश्न 5.
किसी क्षीण ध्वनि को प्रबल ध्वनि में परिवर्तित करने के लिए किसमें वृद्धि करनी होगी?
(a) आवृत्ति
(b) आयाम
(c) वेग
(d) तरंगदैर्घ्य
उत्तर:
(b) आयाम

प्रश्न 6.
दर्शाए गए वक्र में आधी तरंगदैर्घ्य है –
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 7
(a) AB
(b) BD
(c) DE
(d)AE
उत्तर:
(b) BD

प्रश्न 7.
भूकम्प मुख्य प्रघाती तरंगों से पहले किस प्रकार की ध्वनि उत्पन्न करते हैं?
(a) पराश्रव्य तरंगें
(b) अवश्रव्य तरंगें
(c) श्रव्य ध्वनि
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(b) अवश्रव्य तरंगें

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से कौन अवश्रव्य ध्वनि सुन सकता है?
(a) कुत्ता
(b) चमगादड़
(c) राइनोसेरस (गैंडा)
(d) मनुष्य
उत्तर:
(c) राइनोसेरस (गैंडा)

प्रश्न 9.
किसी संगीत समारोह में वृंद वाद्य बजाने से पूर्व कोई सितार वादक तनाव को समायोजित करते हुए डोरी को उचित प्रकार से झंकृत करने का प्रयास करता है। ऐसा करके वह क्या समायोजित करता है?
(a) केवल ध्वनि की तीव्रता
(b) केवल ध्वनि का आयाम
(c) सितार की डोरी की आवृत्ति को अन्य वाद्य यन्त्रों की आवृत्ति के साथ
(d) ध्वनि की प्रबलता
उत्तर:
(c) सितार की डोरी की आवृत्ति को अन्य वाद्य यन्त्रों की आवृत्ति के साथ

प्रश्न 10.
v, ν एवं 2 में सम्बन्ध है –
(a) v = νλ
(b) ν = vλ
(c) λ = vλ
(d) v νλ = 1
उत्तर:
(a) v = νλ

प्रश्न 11.
चमगादड़ द्वारा उत्सर्जित तरंग होती है – (2018, 19)
(a) अवश्रव्य
(b) श्रव्य
(c) पराध्वनि
(d) प्रतिध्वनि
उत्तर:
(c) पराध्वनि

प्रश्न 12.
सोनार तकनीक में किस प्रकार की ध्वनि तरंगों को प्रयोग में लाया जाता है?
(a) श्रव्य
(b) अवश्रव्य
(c) पराश्रव्य
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) पराश्रव्य

प्रश्न 13.
पराश्रव्य तरंगों की आवृत्ति होती है –
(a) 20 Hz से कम
(b) 20 से 20,000 Hz के बीच
(c) 20,000 Hz से अधिक
(d) शून्य
उत्तर:
(c) 20,000 Hz से अधिक

प्रश्न 14.
ध्वनि तरंगें होती हैं – (2018, 19)
(a) चुम्बकीय तरंगें
(b) विद्युत तरंगें
(c) विद्युत चुम्बकीय तरंगें
(d) यान्त्रिक तरंगें
उत्तर:
(d) यान्त्रिक तरंगें

प्रश्न 15.
अधिकतम सहनीय ध्वनि है –
(a) 0 db
(b) 10 db
(c) 60 db
(d) 120 db
उत्तर:
(d) 120 db

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प्रश्न 16.
ध्वनि का वेग सबसे अधिक होता है – (2019)
(a) ठोस में
(b) द्रव में
(c) गैस में
(d) इन सभी में
उत्तर:
(a) ठोस में

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. ध्वनि तरंगें ……………. तरंगें होती हैं।
2. एक दोलन में लिया गया समय …………….. कहलाता है।
3. एक सेकण्ड में पूर्ण दोलनों की संख्या ……………. कहलाती है।
4. ……………. तरंगें श्रृंग एवं गर्त के द्वारा आगे बढ़ती हैं।
5. …………….. तरंगें सम्पीडन एवं विरलन के द्वारा आगे बढ़ती हैं।
6. प्रतिध्वनि, अवरोधक पृष्ठों से ध्वनि के …………… के कारण होती है।
7. ध्वनि मापन की …………… इकाई है। (2019)
8. श्रव्य तरंगों की परास …………….. होती है। (2019)
उत्तर:

  1. यान्त्रिक
  2. दोलन काल
  3. आवृत्ति
  4. अनुप्रस्थ
  5. अनुदैर्घ्य
  6. परावर्तन
  7. डेसीबल
  8. 20 Hz से 20,000 Hz.

सही जोड़ी बनाना
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 8
उत्तर:

  1. → (iii)
  2. → (vi)
  3. → (v)
  4. → (i)
  5. → (ii)
  6. → (iv).

सत्य/असत्य कथन

1. पराश्रव्य तरंगों को कुत्ते सुन लेते हैं।
2. चमगादड़ अवश्रव्य तरंगें उत्पन्न करती है तथा सुनती है।
3. यान्त्रिक तरंगों के संचरण के लिए माध्यम आवश्यक है।
4. वायु में अनुप्रस्थ एवं अनुदैर्घ्य दोनों प्रकार की तरंगें संचरित होती हैं।
5. किसी द्रव्यात्मक माध्यम में उत्पन्न विक्षोभ को तरंग कहते हैं।
6. अनुप्रस्थ व अनुदैर्घ्य तरंगों को प्रगामी तरंग कहते हैं।
उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. सत्य
  6. सत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
ध्वनि तरंगें किस प्रकार की तरंगें होती हैं?
उत्तर:
अनुदैर्घ्य यान्त्रिक तरंगें।

प्रश्न 2.
ठोस, द्रव एवं गैस किसमें ध्वनि वेग सर्वाधिक होता है?
उत्तर:
ठोस में।

प्रश्न 3.
आवर्तकाल (T) एवं आवृत्ति (ν) में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
Tν = 1.

प्रश्न 4.
तरंग वेग (v), आवृत्ति (ν) एवं तरंगदैर्घ्य (λ) में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
v = νλ.

प्रश्न 5.
तरंग वेग (v), आवर्तकाल (T) एवं तरंगदैर्घ्य (λ) में सम्बन्ध लिखिए।
उत्तर:
vT = 2.

प्रश्न 6.
प्रतिध्वनि के लिए ध्वनि उत्पादक एवं परावर्तक तल के बीच न्यूनतम कितनी दूरी होगी?
उत्तर:
17.2 m.

प्रश्न 7.
अवश्रव्य तरंगों को सुनने वाले जन्तु का नाम लिखिए।
उत्तर:
गेंडा।

प्रश्न 8.
पराश्रव्य (पराध्वनि) को सुनने वाले जन्तु का नाम लिखिए।
उत्तर:
चमगादड़ अथवा कुत्ता।

प्रश्न 9.
श्रव्य तरंगों की परास लिखिए।
उत्तर:
20 Hz से 20 हजार Hz।

प्रश्न 10.
अवश्रव्य तरंगों की परास लिखिए।
उत्तर:
20 Hz से कम।

प्रश्न 11.
पराश्रव्य तरंगों की परास लिखिए।
उत्तर:
20 हजार Hz से अधिक।

प्रश्न 12.
SONAR का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
Sound Navigation And Ranging.

प्रश्न 13.
SONAR में किस प्रकार की तरंगें प्रयोग की जाती हैं?
उत्तर:
पराश्रव्य (पराध्वनिक)।

प्रश्न 14.
कौन-सी तरंगें दाब तरंगें कहलाती हैं?
उत्तर:
ध्वनि तरंगें।

प्रश्न 15.
निर्वात में ध्वनि की चाल कितनी होती है?
उत्तर:
शून्य (0)।

प्रश्न 16.
यदि किसी झील की तली में कोई विस्फोट हो तो जल में किस प्रकार की प्रघात तरंगें उत्पन्न होंगी?
उत्तर:
अनुदैर्घ्य तरंगें।

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MP Board Class 9th Science Chapter 12 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यान्त्रिक तरंगें किन्हें कहते हैं?
उत्तर:
यान्त्रिक तरंगें:
“जो तरंगें किसी द्रव्यात्मक माध्यम में उसके कणों के दोलन करने के कारण उत्पन्न होती हैं, वे यान्त्रिक तरंगें कहलाती हैं।

प्रश्न 2.
अनुदैर्घ्य तरंगें किसे कहते हैं?
उत्तर:
अनुदैर्घ्य तरंगें:
“वे तरंगें जिनमें माध्यम के कणों के दोलन की दिशा एवं तरंगों के संचरण की दिशा एक ही होती है, अनुदैर्घ्य तरंगें कहलाती हैं।

प्रश्न 3.
अनुप्रस्थ तरंगें किसे कहते हैं?
उत्तर:
अनुप्रस्थ तरंगें:
“वे तरंगें जिनमें माध्यम के कणों के दोलन की दिशा तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् होती है, अनुप्रस्थ तरंगें कहलाती हैं।”

प्रश्न 4.
पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि क्या है?
उत्तर:
पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि:
“जिन ध्वनियों की आवृत्ति 20 हजार Hz से अधिक होती है, वे पराश्रव्य ध्वनि या पराध्वनि कहलाती हैं।”

प्रश्न 5.
अवश्रव्य ध्वनि क्या है?
उत्तर:
अवश्रव्य ध्वनि:
वह ध्वनि जिसकी आवृत्ति परिसर 20 Hz से कम होती है, अवश्रव्य ध्वनि कहलाती है।”

प्रश्न 6.
श्रव्य ध्वनि किसे कहते हैं?
उत्तर:
श्रव्य ध्वनि:
“वह ध्वनि जिसको सुनने के लिए हमारे कान संवेदनशील होते हैं तथा जिनकी आवृत्ति परिसर 20 Hz से 20 हजार Hz होती है, श्रव्य ध्वनि कहलाती है।”

प्रश्न 7.
ध्वनि के परावर्तन से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
ध्वनि का परावर्तन:
“जब कोई ध्वनि तरंग एक माध्यम में संचरण करते हुए किसी पृष्ठ से टकराकर उसी माध्यम में वापस लौट आती है तो इस घटना को ध्वनि का परावर्तन कहते हैं।”

प्रश्न 8.
प्रतिध्वनि किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रतिध्वनि:
“ध्वनि के परावर्तन के कारण ध्वनि के बार-बार सुनाई देने की घटना प्रतिध्वनि ‘कहलाती है।”

प्रश्न 9.
पराध्वनिक से क्या समझते हो?
उत्तर:
पराध्वनिक:
“जब कोई पिण्ड ध्वनि की चाल से अधिक चाल से चलता है तो उस पिण्ड को पराध्वनिक कहते हैं।”

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प्रश्न 10.
ध्वनि बूम से क्या तात्पर्य है? (2019)
उत्तर:
ध्वनि बूम:
“जब कोई पिण्ड पराध्वनिक चाल से चलता है तो प्रघाती तरंगें उत्पन्न होती हैं। इन तरंगों के कारण वायुदाब में अत्यधिक परिवर्तन के कारण एक प्रकार का विस्फोट या कड़क ध्वनि उत्पन्न होती है, जिसे ध्वनि बूम कहते हैं।”

प्रश्न 11.
ध्वनि बूम के क्या परिणाम हैं? (2019)
उत्तर:
ध्वनि बूम के परिणाम:
ध्वनि बूम के कारण आस-पास रखी काँच की वस्तुएँ एवं खिड़कियों के शीशे टूट जाते हैं।

प्रश्न 12.
सोनार (SONAR) क्या है?
उत्तर:
“एक ऐसी औद्योगिक युक्ति जिसमें ध्वनि की पराश्रव्य तरंगों का उपयोग करके जल में स्थित पिण्डों की दूरी, दिशा तथा स्थिति का पता लगाया जाता है, सोनार कहलाती है।”

प्रश्न 13.
ध्वनि को दाब तरंगें क्यों कहते हैं?
उत्तर:
ध्वनि के संचरण से माध्यम में दाब विभिन्नता उत्पन्न हो जाती है इसलिए ध्वनि को दाब तरंगें कहते हैं।

प्रश्न 14.
संलग्न ग्राफ चित्र में 1500 m s-1 वेग से गतिमान किसी विक्षोभ का विस्थापन-समय सम्बन्ध दर्शाया गया है। इस विक्षोभ की तरंगदैर्घ्य परिकलित कीजिए।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 9
हल:
ग्राफ से,
दिया है:
आवर्तकाल T = 2 x 10-6 s
ध्वनि का वेग v = 1500 m s-1
हम जानते हैं कि
तरंगदैर्घ्य (λ) = वेग (v) x आवर्तकाल (T)
= 1500 x 2 x 10-6 = 3 x 10-3 m
अतः अभीष्ट तरंगदैर्घ्य = 3 x 10-3 m.

प्रश्न 15.
संलग्न चित्र में दर्शाए गए दो ग्राफों (a) अथवा (b) में निरूपित मानव ध्वनियों में से कौन-सी ध्वनि पुरुष की हो सकती है? अपने उत्तर का कारण दीजिए।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 10
हल:
ग्राफ से प्रकट हो रहा है कि ग्राफ a का आवर्तकाल b से अधिक है। अत: a की आवृत्ति b से कम है। इसलिए ग्राफ a की ध्वनि पुरुष की है। क्योंकि पुरुष के स्वर का तारत्व (आवृत्ति) स्त्रियों के स्वर के तारत्व (आवृत्ति) से कम होता है।

प्रश्न 16.
हम भिनभिनाती मधुमक्खी की ध्वनि सुन लेते हैं, जबकि हमें लोलक के दोलन की ध्वनि सुनाई नहीं देती। क्यों?
उत्तर:
भिनभिनाती मधुमक्खियाँ अपने पंखों को फड़फड़ाकर जो ध्वनि उत्पन्न करती है वह श्रव्य ध्वनि की परिसर में होती हैं। इसलिए हम उसे सुन लेते हैं जबकि लोलक के दोलन की आवृत्ति अवश्रव्य ध्वनि की परिसर में आती है अर्थात् उसकी आवृत्ति 20 Hz से कम होती है इसलिए हमें सुनाई नहीं देती।

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प्रश्न 17.
किसी तड़ित झंझा द्वारा उत्पन्न ध्वनि तड़ित दिखाई देने के 10 s बाद सुनाई देती है। गर्जन मेघ की सन्निकट दूरी परिकलित कीजिए। दिया है-ध्वनि की चाल = 340 m s-1
हल:
ज्ञात है:
ध्वनि की चाल v =340 m s-1
समय अन्तराल t = 10 s
गर्जन मेघ की दूरी
S = ध्वनि की चाल v x समय t
= दूरी S = 340 m s-1 x 10 s
= 3400 m = 3.4 km
अत: गर्जन मेघ की सन्निकट अभीष्ट दूरी = 3400 m अर्थात् 3.4 km.

प्रश्न 18.
संलग्न चित्र में कान द्वारा घड़ी की टिक-टिक की प्रबलतम ध्वनि सुनने के लिए कोण r ज्ञात कीजिए।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 11
हल:
परावर्तन के नियम से
कोण r = कोण i
⇒ ∠r = 90° – 50° (चित्रानुसार)
= 40°
अतः r का अभीष्ट मान = 40°.

प्रश्न 19.
अच्छे सम्मेलन कक्षों अथवा कंसर्ट हॉलों की छत तथा मंच के पीछे की दीवारें वक्राकार क्यों बनाई जाती हैं?
उत्तर:
अच्छे सम्मेलन कक्षों अथवा कंसर्ट हॉलों की छत तथा मंच के पीछे की दीवारें वक्राकार इसलिए बनाई जाती हैं ताकि इनसे परावर्तन के पश्चात् ध्वनि हॉल में बैठे सभी दर्शकों तक सुस्पष्ट रूप से पहुँच सके।

MP Board Class 9th Science Chapter 12 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी तरंग की गुणधर्म लिखिए।
उत्तर:
किसी तरंग के गुणधर्म-किसी तरंग के गुणधर्म निम्न हैं –

  1. तरंग, कम्पन करते स्रोत द्वारा आवर्ती (Periodic) विक्षोभ के कारण होता है।
  2. तरंग के कारण ऊर्जा का स्थानान्तरण होता है, न कि पदार्थ का।
  3. तरंग के माध्यम के कण संचरित नहीं होते, वे अपनी मूल स्थिति में ही कम्पन करते हैं एवं अपने आस-पास के कणों में ऊर्जा का स्थानान्तरण करते हैं।
  4. तरंग की गति माध्यम की प्रकृति पर निर्भर करती है, तरंग स्रोत की गति या कम्पन पर नहीं।
  5. यदि तरंग स्रोत के चारों तरफ का माध्यम एकसमान (समांगी) है तो तरंग गति भी सभी दिशाओं में समान रहती है।

प्रश्न 2.
अनुप्रस्थ तरंग को रेखाचित्र बनाकर समझाइए।
उत्तर:
अनुप्रस्थ तरंगें:
“वे तरंगें जिनमें माध्यम के कणों की गति की दिशा तरंग संचरण की दिशा के लम्बवत् होती है, अनुप्रस्थ तरंगें कहलाती हैं।” ये तरंगें श्रृंग और गर्त के रूप में संचरण करती हैं।

किसी रस्सी का एक सिरा किसी जगह बाँध कर उसके दूसरे सिरे को हाथ से ऊपर नीचे हिलाने पर रस्सी में अनुप्रस्थ तरंगें उत्पन्न होती हैं।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 12

प्रश्न 3.
अनुप्रस्थ तथा अनुदैर्ध्य तरंगों में अन्तर लिखिए। (2019)
उत्तर:
अनुप्रस्थ एवं अनुदैर्घ्य तरंगों में अन्तर:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 13

प्रश्न 4.
ध्वनि के परावर्तन के व्यावहारिक उपयोग लिखिए। (2019)
उत्तर:
ध्वनि के परावर्तन के व्यावहारिक उपयोग-ध्वनि के परावर्तन के प्रमुख व्यावहारिक उपयोग अग्रलिखित हैं –

  1. मेगाफोन, लाउडस्पीकर, हॉर्न, तुरही तथा शहनाई जैसे वाद्ययन्त्रों द्वारा ध्वनि विस्तार में।
  2. स्टेथोस्कोप द्वारा हृदय की धड़कनों को डॉक्टर के कानों तक पहुँचाने में।
  3. बड़े हॉलों एवं सभाकक्षों में वक्राकार छठों द्वारा ध्वनि को परावर्तित करके कक्षों के प्रत्येक हिस्से में ध्वनि को प्रेषित करने में।
  4. कर्ण, तुरही जैसी श्रवण सहाय युक्तियों के कार्य करने में।

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प्रश्न 5.
ध्वनि का वेग या चाल v, आवृत्ति ν एवं तरंगदैर्घ्य 2 में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
∵ 1 कम्पन में तरंग चली दूरी = λ
ν कम्पन में तरंग द्वारा चली दूरी = νλ
चूँकि ν आवृत्ति है अत: यह 1 सेकण्ड में कम्पनी की संख्या है।
इसलिए 1 सेकण्ड में तरंग द्वारा चली गई दूरी = νλ
चूँकि 1 सेकण्ड में चली गई दूरी को वेग कहते हैं।
अतः v = νλ

प्रश्न 6.
यदि ध्वनि का वायु में वेग 340 m s-1 हो, तो
(a) 256 Hz आवृत्ति के लिए तरंगदैर्घ्य तथा
(b) 0.85 m तरंगदैर्घ्य के लिए आवृत्ति परिकलित कीजिए।
हल:
ज्ञात है:
ध्वनि का वेग = 340 m s-1
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 14
अत: अभीष्ट आवृत्ति = 400 Hz.

प्रश्न 7.
12 m x 12 m साइज के किसी पार्क के मध्य में कोई लड़की बैठी है। इस पार्क के दाहिनी ओर लगा हुआ भवन है तथा पार्क के बाँई ओर एक सड़क है। सड़क पर पटाखा फटने की ध्वनि होती है। क्या लड़की इस ध्वनि की प्रतिध्वनि सुन सकती है? अपना उत्तर स्पष्ट कीजिए।
हल:
भवन से टकराकर लड़की तक पहुँचने के लिए ध्वनि द्वारा चली कुल अतिरिक्त दूरी = 6 m + 6 m = 12 m.
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 15
चूँकि प्रतिध्वनि सुनने के लिए आवश्यक है कि मूल ध्वनि और परावर्तित ध्वनि के मध्य आवश्यक समय अन्तराल = 0.1 s हो। इसलिए प्रतिध्वनि निर्मित होने के लिए परावर्तित ध्वनि तरंग द्वारा चली गई आवश्यक न्यूनतम दूरी –
= ध्वनि वेग x समय अन्तराल
= 344 x 0.1 = 34.4 मीटर
इस प्रकरण में परावर्तित ध्वनि तरंग द्वारा चली गई कुल दूरी 12 मीटर है जो आवश्यक दूरी से बहुत कम है। अतः प्रतिध्वनि सुनाई नहीं देगी।

प्रश्न 8.
ध्वनि द्वारा उत्पन्न विक्षोभ के लिए दूरी के सन्दर्भ में दाब या घनत्व के परिवर्तनों को दर्शाने के लिए कोई वक्र खींचिए। इस वक्र पर संपीडन एवं विरलन की स्थितियाँ दर्शाइए। इस वक्र का उपयोग करके तरंगदैर्घ्य एवं आवर्तकाल की परिभाषा दीजिए।
हल:
दूरी के सन्दर्भ में दाब या घनत्व परिवर्तन दर्शाने के लिए ग्राफ:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 16
तरंगदैर्घ्य:
“दो क्रमागत सम्पीडनों अथवा दो क्रमागत विरलनों के बीच की दूरी तरंगदैर्घ्य होती है।”

आवर्तकाल:
“दो क्रमागत सम्पीडनों अथवा दो क्रमागत विरलनों के बीच की दूरी को तय करने में लगने वाला समय आवर्तकाल होता है।

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MP Board Class 9th Science Chapter 12 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ध्वनि संचरण की सचित्र व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ध्वनि के संचरण की व्याख्या-ध्वनि के संचरण के लिए वायु अच्छा माध्यम है। जब कोई कम्पायमान वस्तु आगे की ओर कम्पन करती है तो वह अपने सामने की वायु को संपीडित करती है और इस
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 17
प्रकार एक उच्च वायुदाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है। इस क्षेत्र को सम्पीडन (Compression) कहते हैं। यह सम्पीडन कम्पायमान वस्तु के आगे की ओर गति करता है। जब कम्पायमान वस्तु पीछे की ओर कम्पन करती है तो आगे की ओर एक निम्न दाब का क्षेत्र उत्पन्न होता है जिसे विरलन (Rarefaction) कहते हैं। ये संपीडन और विरलन ही तरंग बनाते हैं जो वायु (माध्यम) से होकर हमारे कानों तक पहुँचते हैं। इस प्रकार संचरण से माध्यम में दाब विभिन्नता उत्पन्न हो जाती है।

प्रश्न 2.
पराध्वनि (पराश्रव्य ध्वनि) के कोई चार अनुप्रयोग लिखिए। (2018, 19)
उत्तर:
पराध्वनि (पराश्रव्य ध्वनि) के अनुप्रयोग-पराध्वनि (पराश्रव्य ध्वनि) के प्रमुख अनुप्रयोग निम्नलिखित हैं –

  1. विषम आकार के पुर्जे, इलेक्ट्रॉनिक अवयव आदि की सफाई करने में इनका उपयोग किया जाता है।
  2. चमगादड़ इनका उपयोग रात्रि विचरण में अपने को अवरोधों से टकराने से बचाने में करता है।
  3. अन्धकार में चमगादड़ एवं पॉरपॉइस मछलियाँ अपना भोजन या शिकार की खोज करने में इन ध्वनियों का उपयोग करती है।
  4. इन ध्वनियों का उपयोग समुद्र में डूब जहाजों, चट्टानों, पनडुब्बियों का पता लगाने में किया जाता है।
  5. समुद्र की गहराई ज्ञात करने में इनका उपयोग होता है।
  6. इन तरंगों का उपयोग हृदय रोगी की जाँच के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी नामक तकनीक में किया जाता है।
  7. अल्ट्रासोनोग्राफी का उपयोग यकृत, पित्ताशय, गुर्दे, गर्भाशय आदि की जाँच में तथा गर्भकाल में भ्रूण की जाँच करने में किया जाता है।
  8. चिमनियों की सफाई करने में इनका उपयोग होता है।
  9. जासूसी के कार्यों में इनका उपयोग गुप्त संकेत भेजने में किया जाता है।
  10. भवनों, पुलों, बाँधों, मशीनों, वैज्ञानिक उपकरणों के दोषों का पता लगाने में इनका उपयोग किया जाता है।
  11. बहुमूल्य धातुओं, रत्नों, जवाहरातों के दोषों का पता लगाने में इनका उपयोग किया जाता है।

प्रश्न 3.
मानव कर्ण की संरचना एवं क्रियाविधि का सचित्र वर्णन कीजिए। (2019)
उत्तर:
मानव कर्ण की संरचना एवं क्रियाविधि-मानव कर्ण (कान) श्रवणेन्द्रिय है। इसको प्रमुखतः निम्नलिखित तीन भागों में विभाजित किया जाता है –

1. बाहरी कर्ण (External Ear):
बाहरी कर्ण को कर्ण पल्लव या पिन्ना (Ear Flap) कहते हैं जो परिवेश से ध्वनि को एकत्रित करने का कार्य करता है। एकत्रित ध्वनि श्रवण नलिका (Auditory Canal or Ear Canal) से होती हुई कर्ण पट्ट से टकराती है जिससे कर्णपट्ट (Diaphragm) कम्पन करने लगता है।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 18
2. मध्य कर्ण (Mid Ear):
मध्य कर्ण में तीन अस्थियाँ होती हैं जिन्हें मेलियस (Malleus), इन्कस (Incus) एवं स्टैप्स (Stapes) कहते हैं। ये अस्थियाँ ध्वनि कम्पनों को कई गुना बढ़ा देती है। मध्य कर्ण इन तरंगों को आन्तरिक कर्ण तक पहुँचा देता है।

3. आन्तरिक कर्ण (Internal Ear):
आन्तरिक कर्ण में कर्णावर्त (Cochlea) द्वारा दाब परिवर्तनों को विद्युत संकेतों से परिवर्तित कर दिया जाता है। ये संकेत श्रवण तन्त्रिकाओं (Auditory nerves) द्वारा मस्तिष्क को प्रेषित कर दिये जाते हैं। इस प्रकार मस्तिष्क के द्वारा ध्वनि का अनुभव होता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रकरणों को दो पृथक् आरेखों द्वारा ग्राफीय रूप में निरूपित कीजिए –
1. दो ध्वनि तरंगें जिनके आयाम समान परन्तु आवृत्तियाँ भिन्न हों।
2. दो ध्वनि तरंगें जिनकी आवृत्तियाँ समान परन्तु आयाम भिन्न हों।
3. दो ध्वनि तरंगें जिनके आयाम एवं तरंगदैर्घ्य दोनों भिन्न हों।
हल:
1. समान आयाम तथा भिन्न आवृत्ति:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 19
2. समान आवृत्ति तथा भिन्न आयाम:
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 20
3. भिन्न आयाम एवं भिन्न तरंगदैर्घ्य (आवृत्ति):
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 12 ध्वनि image 20

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 16 गरीबी, भारत के समक्ष एक आर्थिक चुनौती

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 16 गरीबी, भारत के समक्ष एक आर्थिक चुनौती

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
आय स्तर की तुलना का आधार निर्धारण होता है-
(i) निरपेक्ष गरीबी
(ii) सापेक्ष गरीबी
(iii) पूर्ण गरीबी,
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) सापेक्ष गरीबी

प्रश्न 2.
भारत में सर्वाधिक गरीबी जनसंख्या वाला राज्य है –
(i) मेघालय
(ii) असम
(iii) बिहार
(iv) मध्य प्रदेश।
उत्तर:
(iii) बिहार

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प्रश्न 3.
रोजगार गारण्टी कानून, 2005 में कम से कम कितने दिन का रोजगार उपलब्ध कराया जाता है? (2014, 16)
(i) 25 दिन
(ii) 50 दिन
(iii) 75 दिन
(iv) 100 दिन।
उत्तर:
(iv) 100 दिन।

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. एक व्यक्ति द्वारा एक वित्तीय वर्ष में प्राप्त औसत आय ……… कहलाती है।
  2. …………. गरीबी से अभिप्राय आय की असमानता से है।
  3. भारतीय अर्थशास्त्री दाण्डेकर ने सर्वप्रथम …………. का विचार दिया।(2018)
  4. मध्य प्रदेश का सबसे गरीब जिला …………. है।
  5. भारत में गरीबी मापने हेतु सापेक्ष और ………… गरीबी है।

उत्तर:

  1. प्रति व्यक्ति आय
  2. सापेक्ष
  3. गरीबी रेखा
  4. झाबुआ
  5. निरपेक्ष।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
जनसंख्या वृद्धि गरीबी को बढ़ाती है। (2016)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 2.
भारत का सबसे गरीब राज्य पंजाब है।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3.
रोजगार गारण्टी अधिनियम के अन्तर्गत 5 किलो अनाज एवं न्यूनतम 20 प्रतिशत मजदूरी दी जाती है।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 4.
भारत में शहरी क्षेत्र में 2,100 कैलोरी प्रतिदिन का पोषण प्राप्त न करने वाला व्यक्ति गरीबी रेखा के नीचे माना जाता है।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5.
2005 की रिपोर्ट के अनुसार भारत का सबसे गरीब जिला झाबुआ, मध्य प्रदेश है।
उत्तर:
असत्य

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक समस्याएँ कौन-कौन सी हैं? (2011, 14)
उत्तर:
भारत के समक्ष गरीबी, तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या, बेरोजगारी, तेजी से बढ़ती हुई कीमतें अर्थात् महँगाई की समस्या, क्षेत्रीय असन्तुलन एवं बढ़ती हुई आर्थिक असमानताएँ, बुनियादी सुविधाओं की कमी तथा खाद्यान्न असुरक्षा आदि प्रमुख समस्याएँ हैं।

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प्रश्न 2.
गरीबी रेखा से क्या आशय है? (2016, 18)
उत्तर:
भारतीय योजना आयोग के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 2100 कैलोरी निर्धारित की गयी है। कोई भी व्यक्ति जो इससे कम पा रहा है, उसे गरीबी रेखा से नीचे माना गया है।

प्रश्न 3.
भारत में सर्वाधिक गरीब जनसंख्या वाले तीन राज्यों के नाम लिखिए। (2014)
उत्तर:
भारत में बिहार, ओडिशा व सिक्किम राज्य में गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों की संख्या सबसे अधिक है।

प्रश्न 4.
गरीबी के लिए उत्तरदायी सामाजिक कारण लिखिए। (2010, 13, 16)
उत्तर:
भारत में विद्यमान सामाजिक व्यवस्थाएँ गरीबी का कारण बनी रही हैं। इसमें जन्म, मरण और शादी इत्यादि पर अनावश्यक व्यय और उनके फलस्वरूप ऋण का भार गरीबों को निरन्तर गरीब बनाये रखता है।

भारत में व्याप्त भाग्यवादी दृष्टिकोण में गरीबी को भी किस्मत का खेल’ मान लिया जाता है और उससे बाहर निकलने के लिए अधिक सक्रिय प्रयासों पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या वृद्धि किस प्रकार गरीबी बढ़ाती है? समझाइए। (2009, 13, 15)
अथवा
जनसंख्या वृद्धि किस प्रकार गरीबी को बढ़ाती है? भारत के सर्वाधिक गरीब जनसंख्या वाले तीन राज्यों के नाम लिखिए। (2008)
उत्तर:
जनसंख्या में तीव्र गति से होने वाली वृद्धि भी गरीबी की स्थिति को गम्भीर बनाने में सहायक होती है। जनसंख्या वृद्धि से गरीबों के उपभोग स्तर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाती है। इनकी आय का लगभग सम्पूर्ण भाग परिवार के पालन-पोषण पर व्यय हो जाता है और इस प्रकार बचत और निवेश के लिए इनके पास कुछ नहीं बचता। इससे पूँजी निर्माण और आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ जाती है। परिणामस्वरूप गरीबी की समस्या और उलझ जाती है। सर्वाधिक गरीब जनसंख्या वाले तीन राज्यों के नाम हैं-बिहार, उड़ीसा, सिक्किम।

प्रश्न 2.
विगत वर्षों में भारत में गरीबी की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है? लिखिए।
उत्तर:
भारत में गरीबी की स्थिति-भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली जनसंख्या में निरन्तर कमी आई है। वर्ष 1973-74 में 54.9 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे थे। वर्ष 1983 में गरीबी दर घटकर 44.8 प्रतिशत तथा 1993-94 में 36 प्रतिशत एवं 1999-2000 में देश में गरीबी की दर 26:10 प्रतिशत हो गयी। वर्ष 2007 में 19.3 प्रतिशत रह जाने का अनुमान है।
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 16 गरीबी, भारत के समक्ष एक आर्थिक चुनौती 1

भारत में लगभग 22 करोड़ लोग, गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करते हैं, लेकिन गरीबों की संख्या की तालिका को देखने से पता चलता है कि भारत में गरीबी का प्रतिशत निरन्तर घटता जा रहा है।

प्रश्न 3.
भारत में राज्यवार गरीबी की क्या स्थिति है? समझाइए। (2016)
उत्तर:
भारत में राज्यवार गरीबी :
भारत में विभिन्न राज्यों में गरीबी की व्यापकता समान नहीं है। योजना आयोग द्वारा सितम्बर 2005 को जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत का सबसे गरीब जिला डांग (गुजरात) है। दूसरे स्थान पर राजस्थान का बाँसवाड़ा जिला व तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश का झाबुआ जिला है। भिन्न-भिन्न राज्यों में गरीबी की 2011-12 की अनुमानित स्थिति को निम्न तालिका में दर्शाया गया है –

प्रमुख राज्यों में गरीबी रेखा के नीचे जनसंख्या प्रतिशत

राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश 2011-12
आन्ध्र प्रदेश 9.20
बिहार 33.7
गुजरात 16.6
हरियाणा 11.2
कर्नाटक 20.9
केरल 7.1
मध्य प्रदेश 31.7
महाराष्ट्र 17.4
ओडिशा 32.6
पंजाब 8.3
राजस्थान 14.7
तमिलनाडु 11.3
उत्तर प्रदेश 29.4
प. बंगाल 20.0
सम्पूर्ण भारत 21.9

उपर्युक्त तालिका के अनुसार भारत में बिहार, ओडिशा व मध्य प्रदेश राज्य में गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों की संख्या सबसे अधिक है।

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प्रश्न 4.
रोजगार गारण्टी कार्यक्रम, 2005 की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। (2009, 11, 12, 15, 18)
उत्तर:
रोजगार गारण्टी कार्यक्रम, 2005 की प्रमुख विशेषताएँ –

  1. यह अधिनियम केवल एक कार्यक्रम ही नहीं है, अपितु एक कानून है जिसके अन्तर्गत रोजगार हासिल करने की कानूनी गारण्टी दी गई है।
  2. इसके नियोजन तथा क्रियान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी।
  3. इसका प्रमुख उद्देश्य हर वर्ष प्रत्येक ग्रामीण एवं शहरी गरीब तथा निम्न मध्यम वर्ग के परिवार के एक वयस्क व्यक्ति को कम से कम 100 दिन रोजगार उपलब्ध कराना है।
  4. इसके अन्तर्गत माँग करने पर 15 दिन के अन्दर कार्य उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
  5. यदि निश्चित समय में काम उपलब्ध नहीं कराया जाएगा, तो सम्बन्धित व्यक्ति को बेरोजगारी भत्ता प्रदान किया जाएगा।

प्रश्न 5.
गरीबी को मापने हेतु कौन से मानदण्ड हैं? बताइए। (2008, 09, 16)
अथवा
निरपेक्ष गरीबी और सापेक्ष गरीबी में क्या अन्तर है? (2011, 12)
अथवा
गरीबी की रेखा से क्या आशय है? गरीबी को मापने हेतु कौन से मापदण्ड हैं? (2008, 09)
उत्तर:
गरीबी की माप-सामान्यतः गरीबी को मापने के लिए दो मानदण्डों का प्रयोग किया जाता है। प्रथम-निरपेक्ष गरीबी; दूसरी-सापेक्ष गरीबी।

  • निरपेक्ष गरीबी :
    निरपेक्ष निर्धनता से आशय किसी राष्ट्र की आर्थिक अवस्था को ध्यान में रखते हुए निर्धनता के माप से है। यह सामान्य जीवन की आवश्यकताएँ जुटाने के लिए संसाधनों के अभाव को इंगित करता है। अन्य शब्दों में मानव की आधारभूत आवयकताओं-खाना, कपड़ा, सामान्य निवास, स्वास्थ्य सहायता आदि की पूर्ति हेतु पर्याप्त वस्तुओं एवं सेवाओं को जुटा पाने की असमर्थता से है।
  • सापेक्ष गरीबी :
    सापेक्ष गरीबी आय की असमानताओं के आधार पर पारिभाषित की जाती है। सापेक्ष गरीबी अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक असमानता या क्षेत्रीय आर्थिक असमानताओं का बोध कराती है। इसका आकलन समय-समय पर (सामान्यतः प्रतिदर्श हर पाँच वर्ष पर) भारतवर्ष में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली जनसंख्या का राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठन (एन. एस. ओ) द्वारा करवाया जाता है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में गरीबी के लिए उत्तरदायी कारण कौन से हैं? (2008)
अथवा
भारत में निर्धनता के क्या कारण हैं? (2018)
उत्तर:
भारत में गरीबी के कारण-भारत में गरीबी के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण निम्नलिखित
(1) तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या :
इस समय जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। बढ़ती हुई जनसंख्या का अर्थ है, वस्तुओं की माँग में अपार वृद्धि होना। देश की सम्पत्ति का एक बड़ा भाग अपनी जनसंख्या के पालन में व्यय हो जाता है, जिससे विकास कार्यों को पूँजी नहीं मिल पाती है।

(2) पूँजी निर्माण का अभाव :
पूँजी निर्माण आर्थिक विकास की आधारशिला है, परन्तु पूँजी निर्माण की दर भारत में अपेक्षाकृत कम है।

(3) बेरोजगारी :
निर्धनता का एक प्रमुख कारण बेरोजगारी है। देश में बेरोजगारी की समस्या व्यापक और भीषण है। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 5 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। बेरोजगारों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है, जो निर्धनता के लिए एक उत्तरदायी कारण है।

(4) कीमत स्तर में वृद्धि :
कीमतों में वृद्धि परिणामस्वरूप मुद्रा की क्रय-शक्ति कम हो जाने के कारण वास्तविक आय कम हो जाती है जबकि भारत में आय वृद्धि की दर कीमत वृद्धि दर से कम रही है। अतः लोगों के पास उपलब्ध क्रय-शक्ति का ह्रास हुआ है।

(5) असमान वितरण :
उत्पादन के साधनों तथा आय का असमान वितरण भी निर्धनता के लिए उत्तरदायी है। सम्पत्ति का चन्द हाथों में केन्द्रीयकरण हो गया है। स्वभावतः इन्हें अपार आय प्राप्त होती है जबकि अधिकांश लोगों को गरीबी की रेखा से नीचे रहना पड़ता है।

(6) प्रति व्यक्ति निम्न आय ;
भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने से यहाँ गरीबी व्याप्त है। विश्व के विकसित देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति आय का स्तर भारत में बहुत कम है। विश्व बैंक की वर्ष 2014 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की प्रति व्यक्ति आय मात्र 5,497 डॉलर है, जबकि भारत की तुलना में प्रति व्यक्ति आय अमेरिका में 52, 947, जर्मनी में 43,919 तथा ब्राजील में 15,175 डालर है।

(7) दोषपूर्ण विकास :
रणनीति-भारत में निर्धनता तथा आय की विषमताओं के लिए विकास की दोषपूर्ण रणनीति भी बहुत सीमा तक उत्तरदायी है क्योंकि अर्थव्यवस्था के विकास का लाभ कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित हो गया है। परिणामस्वरूप निर्धन और निर्धन हो रहा है और अमीर और अधिक अमीर हो रहे हैं। शिक्षित व सुविधा सम्पन्न व्यक्तियों के पास आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध हैं, जबकि धनाभाव के कारण निर्धन व्यक्ति उच्च व तकनीक शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाते हैं। शासन द्वारा रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गये हैं लेकिन रोजगार के अवसरों में बहुत ही धीमी वृद्धि हुई है।

(8) सामाजिक कारण :
भारत में प्रचलित सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाएँ निर्धनता बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। समाज में व्याप्त जाति प्रथा, उत्तराधिकार का नियम, निरक्षरता, भाग्यवादिता तथा धार्मिक रूढ़िवादिता, लोगों को नये विचार तथा तकनीकों को अपनाने से रोकता है। सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने और झूठी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने हेतु लोग फिलूजखर्ची करते हैं और निर्धन बने रहते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में गरीबी निवारण के प्रमुख कार्यक्रमों को संक्षेप में लिखिए। (2009)
अथवा
‘स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार’ को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
अन्त्योदय अन्न योजना क्या है? स्पष्ट कीजिए। (2009, 15, 17)
अथवा
भारत में गरीबी निवारण के कौन-कौन से प्रमुख कार्यक्रम हैं? (कोई चार) (2010, 17)
अथवा
जनश्री योजना क्या है? (2018) [संकेतः जनश्री योजना शीर्षक देखें।]
उत्तर:
भारत में गरीबी निवारण के प्रमुख कार्यक्रम-गरीबी निवारण के प्रमुख कार्यक्रम निम्नलिखित
(1) प्रधानमन्त्री रोजगार योजना :
यह योजना 2 अक्टूबर, 1993 से प्रारम्भ की गई। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों तथा छोटे शहरों के 18 से 35 वर्ष के शिक्षित बेरोजगारों को स्वरोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है।

(2) ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम :
अप्रैल 1995 में यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों तथा छोटे कस्बों में परियोजनाएँ लगाने और रोजगार के अवसर उत्पन्न करने के लिए आरम्भ की गई।

(3) स्वर्ण जयन्ती ग्राम स्वरोजगार योजना (SGSY) :
यह योजना 1 अप्रैल, 1999 को आरम्भ की गई थी। इस योजना में पूर्व की अनेक स्वरोजगार तथा सम्बद्ध कार्यक्रमों की योजनाओं; जैसे IRDP, TRYSEM, DWACRA आदि का विलय कर दिया गया है। इस योजना में ग्रामीण क्षेत्र के निर्धनों को रोजगार देने के उद्देश्य से सूक्ष्म तथा लघु उद्योग की स्थापना की जाती है। इन उद्योगों में कार्य करने वाले लोगों को स्वरोजगारी कहा जाता है। इस योजना का प्रारम्भिक लक्ष्य सहायता प्राप्त परिवारों को 3 वर्ष की अवधि में गरीबी की रेखा से ऊपर उठाना था।

(4) जवाहर ग्राम समृद्धि योजना (1999) :
यह योजना भी सन् 1999 में पुरानी जवाहर रोजगार योजना को पुनर्गठित करके आरम्भ की गई थी। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण गरीबों का जीवन-स्तर सुधारना तथा उन्हें लाभप्रद रोजगार के अवसर प्रदान करना है। इसके अन्तर्गत सरकार द्वारा ग्रामीण गरीबों को ग्राम पंचायतों द्वारा शुरू किये निर्माण कार्यों अथवा परियोजना में रोजगार दिया जाता है।

(5) सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (एस. जी. आर. वाई.) :
सुनिश्चित रोजगार योजना और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना, दोनों का 25 सितम्बर, 2001 को सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना में विलय कर दिया गया। योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्यान्न सुरक्षा के साथ-साथ रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए स्थायी सामुदायिक परिसम्पत्तियों का निर्माण करना है। कार्यक्रम का उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों विशेषकर महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति व खतरनाक व्यवसायों से हटाये गये बच्चों के अभिभावकों को विशेष सुरक्षा प्रदान करना है।

(6) स्वर्ण जयन्ती शहरी रोजगार योजना :
स्वतन्त्रता के स्वर्ण जयन्ती वर्ष में केन्द्र सरकार द्वारा शहरी क्षेत्रों में निर्धनता निवारण की एक नई योजना 1 दिसम्बर, 1997 से लागू की गई। इस योजना का उद्देश्य शहरी निर्धनों को स्वरोजगार उपक्रम स्थापित करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना तथा सवेतन रोजगार सृजन हेतु उत्पादक परिसम्पत्तियों का निर्माण करना है।

(7) जनश्री योजना :
निर्धन वर्ग को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से अगस्त 2000 में इस योजना को प्रारम्भ किया गया। योजना में लाभार्थी को स्वाभाविक मृत्यु की दशा में 20,000 रुपये, दुर्घटना में मृत्यु या स्थायी विकलांगता पर 50,000 रुपये तथा आंशिक विकलांगता पर 25,000 रुपये दिये जाते हैं।

(8) अंत्योदय अन्न योजना :
यह योजना 25 दिसम्बर, 2000 को प्रारम्भ की गई। इस योजना का उद्देश्य लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत शामिल निर्धनता रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वालों को खाद्यान्न उपलब्ध कराना है। इस योजना में देश के 1.50 करोड़ निर्धन परिवारों को प्रतिमाह 35 किग्रा. अनाज विशेष रियायती कीमत पर उपलब्ध कराया जाता है।

(9) रोजगार गारण्टी अधिनियम, 2005 :
2 फरवरी, 2006 से प्रारम्भ इस योजना के अन्तर्गत देश के 200 चयनित जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रत्येक परिवार के वयस्क सदस्य को वर्ष में न्यूनतम 100 दिन अकुशल श्रम वाले रोजगार प्राप्त करने का कानूनी अधिकार है। योजना का 33 प्रतिशत लाभ महिलाओं को मिलेगा। यह योजना रोजगार के अन्य कार्यक्रमों से बिल्कुल अलग है, क्योंकि यह मात्र एक योजना नहीं, बल्कि एक कानून है जो रोजगार की वैधानिक गारण्टी प्रदान करता है। योजना के अन्तर्गत रोजगार के इच्छुक एवं पात्र व्यक्ति द्वारा पंजीकरण कराने के 15 दिन के भीतर रोजगार नहीं दिये जाने पर निर्धारित दर से बेरोजगारी भत्ता केन्द्र सरकार द्वारा दिये जाने का प्रावधान है।

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प्रश्न 3.
“भारत एक सम्पन्न देश है, किन्तु इसके निवासी निर्धन हैं।” इस कथन को समझाइए। (2008, 09)
उत्तर:
भारत एक धनी देश है, परन्तु यहाँ के निवासी निर्धन हैं –
भारत में प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की प्रचुर उपलब्धता एवं समृद्धता इस तथ्य को स्पष्ट करती है कि भारत एक धनी देश है, जबकि देश की अधिकांश जनता की निर्धनता और निम्न जीवन-स्तर की स्थिति इस बात का संकेत है कि भारतवासी निर्धन हैं। अतः इस विरोधाभास को स्पष्ट करने के लिए यह आवश्यक है कि कथन के दोनों पहलुओं-प्रथम भारत एक धनी देश है तथा द्वितीय यहाँ के निवासी निर्धन हैं-का अध्ययन करना होगा।

भारत एक धनी देश है :
प्राचीन काल से ही भारत की गणना एक धनी देश के रूप में होती रही है। प्राकृतिक एवं अन्य संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता के आधार पर इस देश को ‘सोने की चिड़िया’ कहा जाता था। भारत को धनी देश कहने के मुख्य आधार निम्नलिखित हैं –

(1) भौगोलिक स्थिति :
देश के उत्तर में स्थित हिमालय पर्वत की उच्च शृंखलाएँ उत्तरी ठण्डी हवाओं से देश की रक्षा करती हैं तथा हिन्द महासागर से चलने वाली जलवायु हवाओं को रोककर देश में वर्षा कराने से सहायक होती हैं। हिन्द महासागर पर स्थित होने के कारण भारत अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मार्गों का संगम है। वायु मार्ग की दृष्टि से भारत की स्थिति काफी लाभप्रद है। यह विश्व का सातवाँ बड़ा देश है जिसका क्षेत्र 32.87 लाख वर्ग किलोमीटर है जो विश्व के क्षेत्रफल का 2.4 प्रतिशत हैं।

(2) जलवायु :
जलवायु की विषमताओं के कारण भी भारत एक धनी देश है। ब्लैण्ड फोर्ड के शब्दों में-“सम्पूर्ण विश्व में जलवायु की इतनी अधिक विषमताएँ कहीं नहीं मिलती जितनी की भारत में। भारत में अनेक प्रकार की वनस्पति, पशु तथा खनिज सम्पत्तियाँ मिलती हैं।” मार्सडेन ने लिखा है कि “विश्व की समस्त जलवायु भारत में मिल जाती है।”

(3) जल भण्डार :
भारत में जल के विपुल स्रोत हैं। यहाँ बारहमासी बहने वाली नदियाँ हैं जिनमें अपार जल है। इस जल को रोककर फसलों की सिंचाई तथा विद्युत् उत्पादन के काम में लाया जा सकता है। इस विषय में किये गये प्रयास से भारत में सिंचाई की सुविधाओं में वृद्धि हुई है, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ा है। विद्युत् उत्पादन में वृद्धि से औद्योगीकरण में सहायता मिली है।

(4) वन सम्पदा :
भारत के प्राकृतिक साधनों में वन सम्पदा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। भारत में वनों का क्षेत्रफल लगभग 6.70 करोड़ हेक्टेअर है। जलवायु और प्राकृतिक रचना के अनुसार देश में विभिन्न प्रकार के वन पाये जाते हैं। इन वनों से हमें चीड़, देवदार, शीशम, साल, सागौन, आबनूस आदि की उपयोगी लकड़ियाँ प्राप्त होती हैं जिनका उपयोग इमारती सामान, फर्नीचर, रेलों के स्लीपर आदि बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त कई महत्त्वपूर्ण उद्योगों; जैसे-कागज या दियासलाई उद्योग आदि के लिए कच्चा माल भी हमें वनों से ही प्राप्त होता है।

(5) अपार जन-शक्ति :
जन-शक्ति की दृष्टि से भारत का विश्व में चीन के बाद दूसरा स्थान है। क्योंकि भारत में जनसंख्या 121.07 करोड़ है। यदि इस अपार जन-शक्ति को काम में लाया जाए तो देश उन्नति के सर्वोच्च शिखर पर पहुँच सकता है और राष्ट्र के भाग्य को बदल सकता है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि, “प्राकृतिक साधनों की दृष्टि से भारत एक धनी देश है, परन्तु यहाँ के निवासी निर्धन हैं।” भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक आय विकसित देशों की तुलना में बहुत कम है। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 19:3 प्रतिशत जनसंख्या निर्धनता की रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रही है। वर्तमान में 5 करोड़ व्यक्ति बेरोजगार हैं। बेरोजगारी तथा कम आय के कारण भारतीय लोगों का जीवन स्तर भी बहुत नीचा है।

भारतवासी निर्धन हैं –

1. तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या :
इस समय जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। बढ़ती हुई जनसंख्या का अर्थ है, वस्तुओं की माँग में अपार वृद्धि होना। देश की सम्पत्ति का एक बड़ा भाग अपनी जनसंख्या के पालन में व्यय हो जाता है, जिससे विकास कार्यों को पूँजी नहीं मिल पाती है।

2. पूँजी निर्माण का अभाव :
पूँजी निर्माण आर्थिक विकास की आधारशिला है, परन्तु पूँजी निर्माण की दर भारत में अपेक्षाकृत कम है।

3. बेरोजगारी :
निर्धनता का एक प्रमुख कारण बेरोजगारी है। देश में बेरोजगारी की समस्या व्यापक और भीषण है। एक अनुमान के अनुसार भारत में लगभग 5 करोड़ लोग बेरोजगार हैं। बेरोजगारों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है, जो निर्धनता के लिए एक उत्तरदायी कारण है।

4. कीमत स्तर में वृद्धि :
कीमतों में वृद्धि परिणामस्वरूप मुद्रा की क्रय-शक्ति कम हो जाने के कारण वास्तविक आय कम हो जाती है जबकि भारत में आय वृद्धि की दर कीमत वृद्धि दर से कम रही है। अतः लोगों के पास उपलब्ध क्रय-शक्ति का ह्रास हुआ है।

5. असमान वितरण :
उत्पादन के साधनों तथा आय का असमान वितरण भी निर्धनता के लिए उत्तरदायी है। सम्पत्ति का चन्द हाथों में केन्द्रीयकरण हो गया है। स्वभावतः इन्हें अपार आय प्राप्त होती है जबकि अधिकांश लोगों को गरीबी की रेखा से नीचे रहना पड़ता है।

6. प्रति व्यक्ति निम्न आय ;
भारत में प्रति व्यक्ति आय कम होने से यहाँ गरीबी व्याप्त है। विश्व के विकसित देशों की तुलना में प्रति व्यक्ति आय का स्तर भारत में बहुत कम है। विश्व बैंक की वर्ष 2014 की रिपोर्ट के अनुसार भारत की प्रति व्यक्ति आय मात्र 5,497 डॉलर है, जबकि भारत की तुलना में प्रति व्यक्ति आय अमेरिका में 52, 947, जर्मनी में 43,919 तथा ब्राजील में 15,175 डालर है।

7. दोषपूर्ण विकास :
रणनीति-भारत में निर्धनता तथा आय की विषमताओं के लिए विकास की दोषपूर्ण रणनीति भी बहुत सीमा तक उत्तरदायी है क्योंकि अर्थव्यवस्था के विकास का लाभ कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित हो गया है। परिणामस्वरूप निर्धन और निर्धन हो रहा है और अमीर और अधिक अमीर हो रहे हैं। शिक्षित व सुविधा सम्पन्न व्यक्तियों के पास आगे बढ़ने के अवसर उपलब्ध हैं, जबकि धनाभाव के कारण निर्धन व्यक्ति उच्च व तकनीक शिक्षा भी प्राप्त नहीं कर पाते हैं। शासन द्वारा रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गये हैं लेकिन रोजगार के अवसरों में बहुत ही धीमी वृद्धि हुई है।

8. सामाजिक कारण :
भारत में प्रचलित सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाएँ निर्धनता बढ़ाने के लिए जिम्मेदार हैं। समाज में व्याप्त जाति प्रथा, उत्तराधिकार का नियम, निरक्षरता, भाग्यवादिता तथा धार्मिक रूढ़िवादिता, लोगों को नये विचार तथा तकनीकों को अपनाने से रोकता है। सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने और झूठी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने हेतु लोग फिलूजखर्ची करते हैं और निर्धन बने रहते हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत किस प्रकार की अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र है?
(i) विकसित अर्थव्यवस्था
(ii) विकासशील अर्थव्यवस्था
(iii) अल्पविकसित अर्थव्यवस्था
(iv) नियन्त्रित अर्थव्यवस्था।
उत्तर:
(ii) विकासशील अर्थव्यवस्था

प्रश्न 2.
ग्रामीण भारत में निवास कर रहे एक व्यक्ति को निर्धन कहा जाएगा यदि इसका दैनिक कैलोरी उपभोग निम्नलिखित से कम है
(i) 2600 कैलोरी
(ii) 2500 कैलोरी
(iii) 2400 कैलोरी
(iv) 2800 कैलोरी।
उत्तर:
(iii) 2400 कैलोरी

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प्रश्न 3.
भारत में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली जनसंख्या का आंकलन किसके द्वारा किया जाता है?
(i) भारतीय रिजर्व बैंक
(ii) केन्द्रीय सांख्यिकीय संगठन
(iii) राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठन
(iv) वित्त मन्त्रालय।
उत्तर:
(iii) राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठन

प्रश्न 4.
भारत का सबसे गरीब जिला है
(i) बाँसवाड़ा
(ii) झाबुआ
(iii) डांग
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(iii) डांग

प्रश्न 5.
नवीनतम आँकड़ों के अनुसार कुल जनसंख्या का कितना भाग गरीबी रेखा के नीचे रहता है?
(i) 24 प्रतिशत
(ii) 22.5 प्रतिशत
(iii) 20.8 प्रतिशत
(iv) 21.8 प्रतिशत।
उत्तर:
(iv) 21.8 प्रतिशत।

प्रश्न 6.
‘गरीबी रेखा’ का विचार सर्वप्रथम दिया
(i) लकड़वाला
(ii) दाण्डेकर
(iii) एम. एन. राय
(iv) एम. विश्वेश्वरैया।
उत्तर:
(ii) दाण्डेकर

प्रश्न 7.
प्रधानमन्त्री रोजगार योजना प्रारम्भ हुई
(i) 2 अक्टूबर, 1993
(ii) 2 अक्टूबर 1995
(iii) 2 अक्टूबर, 1997
(iv) 2 अक्टूबर, 2000
उत्तर:
(i) 2 अक्टूबर, 1993

सत्य/ असत्य

प्रश्न 1.
अन्त्योदय अन्न योजना के अन्तर्गत 5 किग्रा. खाद्यान्न दिया जाता है। (2008)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 2.
भारतवर्ष में अर्थव्यवस्था मूलतः कृषि पर आधारित है।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 3.
भारत की भौगोलिक स्थिति विकास की दृष्टि से अनुकूल नहीं है।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 4.
पूँजी निर्माण आर्थिक विकास की आधारशिला है। (2015)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5.
भारत का सबसे गरीब राज्य पंजाब है। (2017, 18)
उत्तर:
असत्य।

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सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 16 गरीबी, भारत के समक्ष एक आर्थिक चुनौती - 1
उत्तर:

  1. →(ङ)
  2. →(घ)
  3. →(ख)
  4. →(ग)
  5. →(क)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
व्यापार चक्र की मन्दी के समय उत्पन्न बेरोजगारी क्या कहलाती है?
उत्तर:
चक्रीय बेरोजगारी

प्रश्न 2.
भारत का सबसे गरीब जिला कौन-सा है?
उत्तर:
डांग

प्रश्न 3.
ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम कब प्रारम्भ किया गया?
उत्तर:
अप्रैल 1995

प्रश्न 4.
किसी फर्म के उत्पादन के मूल्य तथा अन्य फर्मों से खरीदे गये आदानों की लागत का अन्तर कहलाता है।
उत्तर:
मूल्य वृद्धि

प्रश्न 5.
प्रकृति द्वारा मनुष्य को प्रदान किये गये वे निःशुल्क उपहार जो आर्थिक विकास में सहायक होते हैं।
उत्तर:
प्राकृतिक संसाधन।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अल्प रोजगार से आप क्या समझते हैं? (2010)
उत्तर:
अल्प रोजगार-जब व्यक्ति अपनी कार्यक्षमता के अनुसार कार्य न पाकर अपनी योग्यता एवं क्षमता से कम स्तर वाला कार्य करता है, तब अल्प रोजगार की श्रेणी में आता है।

प्रश्न 2.
योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार मध्य प्रदेश का सबसे गरीब जिला कौन-सा है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश का झाबुआ सबसे गरीब जिला है।

प्रश्न 3.
नवीनतम आँकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश की कुल जनसंख्या का कितना भाग गरीबी रेखा के नीचे रहता है?
उत्तर:
मध्य प्रदेश का 29.52 प्रतिशत भाग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहा है।

प्रश्न 4.
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में किस प्रकार की बेरोजगारी विद्यमान है?
उत्तर:
भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में अल्प रोजगार के साथ अदृश्य बेरोजगारी विद्यमान है।

प्रश्न 5.
अदृश्य बेरोजगारी से आप क्या समझते हैं? (2015)
उत्तर:
अदृश्य बेरोजगारी-कृषि क्षेत्र में पाई जाने वाली यह बेरोजगारी उस स्थिति का सूचक है जब श्रमिकों की सीमान्त उत्पादकता शून्य होती है, अर्थात् इन व्यक्तियों को कृषि क्षेत्रों से हटाकर अन्यत्र भेजे जाने पर कृषि क्षेत्र की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

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प्रश्न 6.
मुद्रा प्रसार क्या है?
उत्तर:
मुद्रा प्रसार या मुद्रा स्फीति वह अवस्था है, जिसमें मुद्रा का मूल्य गिर जाता है और कीमतें बढ़ जाती हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गरीबी से क्या आशय है? (2010)
उत्तर:
गरीबी का अर्थ-धन का अभाव निर्धनता को जन्म देता है। केवल कुछ व्यक्तियों की निम्न आर्थिक स्थिति ही गरीबी को जन्म नहीं देती है, बल्कि किसी समाज में व्यक्तियों का बहुत बड़ा भाग जब जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ रहता है, तब इस स्थिति को ‘गरीबी’ के नाम से जाना जाता है। आशय यह है कि समाज में अधिकांश व्यक्तियों को रहने, खाने और पहनने की अति आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध न हों तो इस प्रकार की स्थिति को ‘गरीबी’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 2.
गरीबी की पहचान किस प्रकार कर सकते हैं?
उत्तर:
गरीबी की पहचान तो बहुत सरल है, किन्तु इसको परिभाषित करना कठिन है। जब हम अपने आस-पास टूटे झोंपड़ों एवं झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले परिवारों, रेलवे स्टेशनों और चौराहों पर भीख माँगते भिखारियों, खेतों में काम करने वाले श्रमिकों को देखते हैं तो उनके अभावग्रस्त जीवन को देखकर गरीबी को पहचान सकते हैं। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले व्यक्ति ‘गरीबी’ की परिभाषा में आते हैं। ‘गरीबी रेखा’ से आशय नागरिकों के उस न्यूनतम आर्थिक स्तर से है, जो उसके जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक होता है।

प्रश्न 3.
अन्नपूर्णा योजना क्या है? संक्षिप्त विवरण दीजिए। (2009)
उत्तर:
अन्नपूर्णा योजना-यह योजना ग्रामीण विकास मन्त्रालय द्वारा 1 अप्रैल, 2000 से प्रारम्भ की गई है। इसके अन्तर्गत 65 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग के ऐसे असाध्य वृद्ध नागरिक आते हैं, जो राष्ट्रीय पेंशन योजना के पात्र तो हैं, उन्हें इस योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। इस योजना में प्रति व्यक्ति प्रतिमाह 10 किग्रा. खाद्यान्न निःशुल्क दिया जाता है। वर्ष 2002-03 में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम को इस योजना में मिला दिया गया।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 16 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“निर्धनता सभी बुराइयों की जड़ है।” विवेचना कीजिए।
अथवा
निर्धनता के दुश्चक्र से आप क्या समझते हैं? (2008, 11)
उत्तर:
निर्धनता के दुश्चक्र से आशय-निर्धनता का दुश्चक्र एक ऐसी वृत्ताकार प्रक्रिया है, जिसका प्रारम्भ भी निर्धनता से होता है और अन्त भी निर्धनता के रूप में होता है।

प्रो. नर्कसे (Nurkse) के शब्दों में, “निर्धनता के दुश्चक्र का आशय नक्षत्र मण्डल के समान वृत्ताकार ढंग से घूमती हुई ऐसी शक्तियों से है जो एक-दूसरे पर इस प्रकार क्रिया-प्रतिक्रिया करती हैं कि एक निर्धन देश निर्धनता की अवस्था में ही बना रहता है।”

निर्धनता के दुश्चक्र की विशेषताएँ –

  1. निर्धनता का कारण व परिणाम स्वयं निर्धनता है।
  2. निर्धनता अपने प्रारम्भिक बिन्दु से अन्तिम बिन्दु तक वृत्ताकार ढंग से क्रिया व प्रतिक्रिया करती हुई बढ़ती है।
  3. इनका प्रभाव संचयी (Cumulative) होता है अर्थात् एक स्तर पर पायी जाने वाली निर्धनता अगले स्तर पर और भी अधिक हानिकारक होने लगती है।
  4. यह एक ऐसी निरन्तर प्रक्रिया है जो सम्बन्धित घटकों को सदैव नीचे की ओर धकेलती है।

प्रो. नर्कसे का कहना है कि इस सम्बन्ध में ध्यान रखने योग्य बात यह है कि वास्तविक आय का निम्न स्तर, वस्तुओं की माँग व पूर्ति के निम्न स्तर का कारण व परिणाम दोनों हैं। वास्तविक आय के कम होने का प्रभाव, एक ओर वस्तुओं की माँग पर पड़ता है और दूसरी ओर लोगों द्वारा की जाने वाली बातों पर पड़ता है जैसा कि निम्न चित्र द्वारा स्पष्ट किया गया है –
MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 16 गरीबी, भारत के समक्ष एक आर्थिक चुनौती - 2

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MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा

MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा

MP Board Class 9th Science Chapter 14 पाठ के अन्तर्गत के प्रश्नोत्तर

प्रश्न श्रृंखला-1 # पृष्ठ संख्या 217

प्रश्न 1.
शुक्र और मंगल ग्रहों के वायुमण्डल से हमारा वायुमण्डल कैसे भिन्न है?
उत्तर:
शुक्र एवं मंगल ग्रह के वायुमण्डल में प्राणवायु ऑक्सीजन का अभाव है तथा हानिकारक कार्बन डाइ-ऑक्साइड लगभग 95% से 97% तक है। हमारे वायुमण्डल में प्राणवायु ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है तथा हानिकारक कार्बन डाइ-ऑक्साइड अत्यल्प मात्रा में।

प्रश्न 2.
वायुमण्डल एक कम्बल की तरह कैसे कार्य करता है? (2018)
उत्तर:
वायु ऊष्मा की कुचालक होती है। इसलिए वायुमण्डल पृथ्वी के औसत तापमान को लगभग नियत रखता है। यह दिन में तापमान को बढ़ने से रोकता है तथा रात के समय ऊष्मा को बाहरी अन्तरिक्ष में जाने से रोकता है। इस तरह वायुमण्डल एक कम्बल की तरह कार्य करता है।

प्रश्न 3.
वायु प्रवाह (पवन) के क्या कारण हैं?
उत्तर:
वायुमण्डल के विभिन्न क्षेत्रों में तापमान एवं दाब में होने वाले अन्तर के कारण वायु प्रवाह (पवन) होता है।

प्रश्न 4.
बादलों का निर्माण कैसे होता है? (2018)
उत्तर:
बादलों के निर्माण की प्रक्रिया-सूर्य के ताप के कारण जलाशयों (तालाब, झील, नदियाँ एवं समुद्र आदि) का जल वाष्पीकृत हो जाता है। यह जलवाष्प गर्म वायु के साथ ऊपर उठती है और फैलने के कारण ठंडी हो जाती है तथा छोटी-छोटी बूंदों के रूप में संघनित हो जाती है। जलवाष्प का यह संघनित रूप ही बादल होता है।

प्रश्न 5.
मनुष्य के तीन क्रियाकलापों को लिखिए जो वायु प्रदूषण में सहायक हैं। (2018)
उत्तर:
वायु प्रदूषण में सहायक मनुष्य के क्रियाकलाप:

  1. जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग जिससे कार्बन मोनोक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन एवं सल्फर के ऑक्साइडों का उत्सर्जन।
  2. रेफ्रिजरेटरों एवं एयरकण्डीशनरों का उपयोग जिससे हानिकारक ऐरोसॉल (क्लोरोफ्लोरोकार्बन) का रिसाव।
  3. वनों, वृक्षों का अत्यधिक कटान।

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प्रश्न श्रृंखला-2 # पृष्ठ संख्या 219

प्रश्न 1.
जीवों को जल की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर:
जीवों को जल की आवश्यकता:

  1. सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जलीय माध्यम में होती हैं।
  2. पदार्थों का संवहन जल के माध्यम से होता है। इसलिए जीवों को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
जिस गाँव/शहर/नगर में आप रहते हैं, वहाँ पर उपलब्ध शुद्ध जल का मुख्य स्रोत क्या है?
उत्तर:
उपलब्ध जल का मुख्य स्रोत जलाशय (कुएँ, तालाब, झील एवं नदियाँ)। (निर्देश-छात्र अपने गाँव/शहर/नगर के जल स्रोत का स्वयं उल्लेख करें।)

प्रश्न 3.
क्या आप किसी क्रियाकलाप के बारे में जानते हैं जो इस जल के स्रोत को प्रदूषित कर रहा है?
उत्तर:
हम अनेक क्रियाकलापों को जानते हैं जिनसे जल स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं –

  1. पशुओं एवं जानवरों को जलाशयों में नहलाना तथा कपड़े धोना।
  2. शवों, घरेलू अपशिष्टों आदि को जलाशयों में बहाना।

प्रश्न श्रृंखला-3 # पृष्ठ संख्या 222

प्रश्न 1.
मृदा (मिट्टी) का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
मृदा (मिट्टी) के निर्माण की प्रक्रिया:

  1. सूर्य की गर्मी से पत्थर गर्म होकर फैलते हैं तथा रात्रि को ठंडे होकर सिकुड़ते हैं। इसलिए पत्थर छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त हो जाते हैं।
  2. पत्थरों की दरार में जल भर जाता है जो ठंडा होने पर बर्फ बनकर फैलता है जिससे पत्थर दबाव के कारण टूटते हैं। इसके अतिरिक्त बहता हुआ जल पत्थरों से टकराकर उन्हें छोटे-छोटे टुकड़ों में परिवर्तित कर देता है।

ये पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े जल के बहाव के साथ-साथ बहते रहते हैं तथा आपस में टकरा-टकराकर मृदा में बदल जाते हैं। इसके अतिरिक्त हवाएँ भी पत्थरों को तोड़ने में सहायक होती हैं।

प्रश्न 2.
मृदा अपरदन क्या है?
उत्तर:
मृदा अपरदन:
“आँधी, तूफान, तेज हवा, तीव्र जल प्रवाह एवं बाढ़ के कारण खेत की उपजाऊ मिट्टी (मृदा) का बहकर नष्ट हो जाना मृदा अपरदन कहलाता है।”

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प्रश्न 3.
मृदा अपरदन को रोकने और कम करने के कोई तीन तरीके लिखिए। (2018)
उत्तर:
मृदा अपरदन को रोकने एवं कम करने के उपाय –

  1. वनों के काटने पर पूर्णतया प्रतिबन्ध लगाकर तथा वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करके।
  2. पहाड़ों एवं ढलवाँ स्थानों पर सीढ़ीनुमा खेती करके।
  3. खेतों की मेंढ़ बनाकर तथा उस पर विभिन्न पेड़-पौधे उगाकर।

प्रश्न श्रृंखला-4 # पृष्ठ संख्या 226

प्रश्न 1.
जल चक्र के क्रम में जल की कौन-कौन सी अवस्थाएँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
जल चक्र के क्रम में जल की निम्न अवस्थाएँ पाई जाती हैं –

  1. ठोस अवस्था (बर्फ)
  2. द्रव अवस्था (पानी)
  3. गैसीय अवस्था (जलवाष्प, बादल, कोहरा आदि)।

प्रश्न 2.
जैविक रूप से महत्वपूर्ण दो यौगिकों के नाम दीजिए जिनमें ऑक्सीजन और नाइट्रोजन दोनों पाये जाते हैं।
उत्तर:

  1. प्रोटीन्स
  2. न्यूक्लिक अम्ल।

प्रश्न 3.
मनुष्य की किन्हीं तीन गतिविधियों को पहचानें जिनसे वायु में कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है।
उत्तर:

  1. औद्योगिक इकाइयों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन।
  2. ऑटोमोबाइलों एवं घरेलू चूल्हों में प्रयुक्त जीवाश्म ईंधन का दहन।
  3. श्वसन क्रिया।

प्रश्न 4.
ग्रीन हाउस प्रभाव क्या है? (2019)
उत्तर:
ग्रीन हाउस प्रभाव (Green House Effect):
ठण्डे प्रदेशों में पौधों को ठण्ड से बचाने के लिए काँच या फाइबर ग्लास के बने पौधाघरों में रखा जाता है।

सूर्य से निकलने वाली छोटी तरंगदैर्घ्य की विकिरण काँच से होकर इसमें प्रवेश कर जाती है तथा वहाँ ये बड़ी तरंगदैर्घ्य की विकिरणों में बदल जाती है जिनको काँच बाहर आने से रोकता है। इस प्रकार पौधाघर का ताप वायुमण्डल के ताप से अधिक रहता है। इस घटना को पौधाघर प्रभाव या ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 5.
वायुमण्डल में पायी जाने वाली ऑक्सीजन के दो रूप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:

  1. ऑक्सीजन गैस (O2)
  2. ओजोन गैस (O3)।

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MP Board Class 9th Science Chapter 14 पाठान्त अभ्यास के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जीवन के लिए वायुमण्डल क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
जीवन के लिए वायुमण्डल की आवश्यकता-जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन गैस (प्राणवायु) अत्यन्त आवश्यक है। इसके बिना जीवन असम्भव है और ऑक्सीजन वायुमण्डल का ही एक घटक है। इसलिए जीवन के लिए वायुमण्डल की आवश्यकता है।

प्रश्न 2.
जीवन के लिए जल क्यों अनिवार्य है? (2019)
उत्तर:
जीवन के लिए जल की अनिवार्यता –

  1. सभी कोशिकीय प्रक्रियाएँ जलीय माध्यम में होती हैं।
  2. पदार्थों का संवहन जल के माध्यम से होता है। इसलिए जीवों को जीवित रहने के लिए जल की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 3.
जीवित प्राणी मृदा पर कैसे निर्भर हैं? क्या जल में रहने वाले जीव सम्पदा के रूप में मृदा से पूरी तरह स्वतन्त्र हैं?
उत्तर:
जीवित प्राणी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पोषक तत्व एवं खनिज मृदा से ही प्राप्त करते हैं। इसलिए जीवित प्राणी मृदा पर निर्भर करते हैं। जलीय जीव भी पूर्णरूप से सम्पदा के रूप में मृदा से स्वतन्त्र नहीं

प्रश्न 4.
आपने टेलीविजन पर और समाचार-पत्रों में मौसम सम्बन्धी रिपोर्ट को देखा होगा। क्या आप सोचते हैं कि हम मौसम के पूर्वानुमान में सक्षम हैं?
उत्तर:
हाँ ! हम मौसम के पूर्वानुमान में काफी हद तक सक्षम हैं।

प्रश्न 5.
हम जानते हैं कि बहुत-सी मानवीय गतिविधियाँ वायु, जल एवं मृदा के प्रदूषण स्तर को बढ़ा रही हैं। क्या आप सोचते हैं कि इन गतिविधियों को कुछ विशेष क्षेत्रों में सीमित कर देने से प्रदूषण के स्तर को घटाने में सहायता मिलेगी?
उत्तर:
हाँ ! प्रदूषण के स्तर का घटाने में सहायता अवश्य मिलेगी।

प्रश्न 6.
जंगल वायु, मृदा तथा जलीय स्रोत की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
जंगल प्रकाश-संश्लेषण द्वारा वायु को प्रदूषण मुक्त करते हैं। वर्षा को प्रोत्साहित करते हैं, मृदा अपरदन को रोकते हैं। इस प्रकार जंगल वायु, मृदा एवं जलस्रोतों की गुणवत्ता को सुधारने में सहायक होते हैं।

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MP Board Class 9th Science Chapter 14 परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

MP Board Class 9th Science Chapter 14 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी का वायुमण्डल जिन विकिरणों द्वारा गर्म होता है वह मुख्यत: है –
(a) सूर्य से आने वाला विकिरण
(b) पृथ्वी से वापस होने वाला विकिरण
(c) जल से बाहर विकिरण
(d) पृथ्वी तथा जल में विकिरण
उत्तर:
(d) पृथ्वी तथा जल में विकिरण

प्रश्न 2.
यदि पृथ्वी के चारों ओर वायुमण्डल नहीं होता तो पृथ्वी का तापमान –
(a) बढ़ता
(b) घटता
(c) दिन के समय बढ़ता तथा रात के समय घटता
(d) अप्रभावित रहता
उत्तर:
(c) दिन के समय बढ़ता तथा रात के समय घटता

प्रश्न 3.
यदि पर्यावरण में उपस्थित सभी ऑक्सीजन ओजोन में परिवर्तित हो जाये, तो क्या होगा?
(a) हम अधिक सुरक्षित होंगे
(b) यह विषाक्त हो जायेगी तथा जीवों को नष्ट करेगी
(c) ओजोन स्थिर नहीं है अतः आविषालु हो जाएगी
(d) यह हानिकारक सूर्य विकिरणों को पृथ्वी पर पहुँचने में मदद करेगी तथा कई प्रकार के जीवों को नष्ट कर देगी।
उत्तर:
(b) यह विषाक्त हो जायेगी तथा जीवों को नष्ट करेगी

प्रश्न 4.
निम्न कारकों में से कौन-सा एक कारक प्रकृति में मृदा बनावट में पहल नहीं करता?
(a) सूर्य
(b) जल
(c) पवन
(d) पॉलिथीन के थैले
उत्तर:
(d) पॉलिथीन के थैले

प्रश्न 5.
वायुमण्डल में मिलने वाली ऑक्सीजन के दो रूप कौन से हैं?
(a) जल तथा ओजोन
(b) जल तथा ऑक्सीजन
(c) ओजोन तथा ऑक्सीजन
(d) जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड
उत्तर:
(c) ओजोन तथा ऑक्सीजन

प्रश्न 6.
जीवाणु द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया निम्नलिखित में से किसकी उपस्थिति में नहीं होती है?
(a) हाइड्रोजन का आण्विक रूप
(b) ऑक्सीजन का तत्व रूप
(c) जल
(d) नाइट्रोजन का तत्व रूप
उत्तर:
(b) ऑक्सीजन का तत्व रूप

प्रश्न 7.
वर्षा प्रतिमान किस पर निर्भर करता है?
(a) भूमिगत जल स्तर
(b) किसी क्षेत्र में जलाशयों की संख्या
(c) किसी क्षेत्र की मानव समष्टि का घनत्व प्रतिमान
(d) किसी क्षेत्र का प्रमुख मौसम
उत्तर:
(b) किसी क्षेत्र में जलाशयों की संख्या

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प्रश्न 8.
उर्वरक और पीड़कनाशी की अधिक मात्रा के उपयोग की सलाह नहीं दी जाती क्योंकि –
(a) वे पारि हितैषी हैं
(b) कुछ समय बाद खेत को बंजर कर देते हैं
(c) वे मृदा के लाभदायक अवयवों पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं
(d) वे मृदा की उर्वरकता को नष्ट कर देते हैं
उत्तर:
(a) वे पारि हितैषी हैं

प्रश्न 9.
वायु में उपस्थित नाइट्रोजन के अणु निम्नलिखित के कारण नाइट्रेट अथवा नाइदाइट में परिवर्तित हो जाते हैं –
(a) मृदा में पाये जाने वाले नाइट्रोजन स्थिरकारी जीवाणुओं की जैविक प्रक्रिया द्वारा
(b) मृदा में पाई जाने वाले कार्बन स्थिरकारी कारक की जैविक प्रक्रिया द्वारा
(c) नाइट्रोजन यौगिक बनाने वाले किसी उद्योग के द्वारा
(d) उन पौधों के द्वारा जिन्हें खेत में अनाज फसलों के लिए उगाया जाता है
उत्तर:
(a) मृदा में पाये जाने वाले नाइट्रोजन स्थिरकारी जीवाणुओं की जैविक प्रक्रिया द्वारा

प्रश्न 10.
प्रकृति में चल रहे जल चक्र में निम्नलिखित में से कौन-सी एक क्रिया सम्मिलित नहीं है?
(a) वाष्पन
(b) वाष्पोत्सर्जन
(c) अवक्षेपण
(d) प्रकाश-संश्लेषण
उत्तर:
(d) प्रकाश-संश्लेषण

प्रश्न 11.
‘जल प्रदूषण’ शब्द की परिभाषा कई प्रकार से दी जा सकती है। निम्नलिखित में से किस कथन में उचित परिभाषा नहीं है?
(a) जलाशयों में अवांछित पदार्थों का मिलाया जाना
(b) जलाशयों से वांछनीय पदार्थों का निकाला जाना
(c) जलाशयों के दाब में परिवर्तन
(d) जलाशयों के ताप में परिवर्तन
उत्तर:
(c) जलाशयों के दाब में परिवर्तन

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन-सी ग्रीन हाउस गैस नहीं है? (2019)
(a) मीथेन
(b) कार्बन डाइऑक्साइड
(c) कार्बन मोनोक्साइड
(d) अमोनिया
उत्तर:
(d) अमोनिया

प्रश्न 13.
कार्बन चक्र में कौन-सा चरण सम्मिलित नहीं है?
(a) प्रकाश-संश्लेषण
(b) वाष्पोत्सर्जन
(c) श्वसन
(d) जीवाश्म ईंधन को जलाना
उत्तर:
(b) वाष्पोत्सर्जन

प्रश्न 14.
ओजोन छिद्र का अर्थ है –
(a) ओजोन पर्त में एक बड़े आकार का छिद्र
(b) ओजोन पर्त का पतला होना
(c) ओजोन पर्त में छितरे हुए छोटे छिद्र
(d) ओजोन पर्त में ओजोन का मोटा होना।
उत्तर:
(b) ओजोन पर्त का पतला होना

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प्रश्न 15.
ओजोन पर्त का ह्रास हो रहा है क्योंकि –
(a) मोटरगाड़ियों का अत्यधिक उपयोग
(b) औद्योगिक इकाइयों का अत्यधिक निर्माण
(c) मनुष्य निर्मित यौगिकों जिनमें क्लोरीन और फ्लोरीन दोनों शामिल हैं, का अत्यधिक उपयोग होना
(d) वनों की अत्यधिक कटाई।
उत्तर:
(c) मनुष्य निर्मित यौगिकों जिनमें क्लोरीन और फ्लोरीन दोनों शामिल हैं, का अत्यधिक उपयोग होना

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में से पर्यावरण की कौन-सी समस्या हाल ही में उत्पन्न हुई है?
(a) ओजोन पर्त का ह्रास
(b) ग्रीन हाउस का प्रभाव
(c) वैश्विक ऊष्मन
(d) ये सभी
उत्तर:
(d) ये सभी

प्रश्न 17.
जब हम साँस लेते समय वायु अन्दर लेते हैं तो ऑक्सीजन के साथ नाइट्रोजन भी अन्दर जाती है। इस नाइट्रोजन का क्या होता है?
(a) यह ऑक्सीजन के साथ कोशिकाओं में भ्रमण करती है
(b) यह साँस छोड़ते समय कार्बन डाइऑक्साइड के साथ बाहर आ जाती है
(c) यह केवल नासिका कोशिकाओं द्वारा अवशोषित हो जाती है
(d) कोशिकाओं में नाइट्रोजन का सान्द्रण पहले ही इतना अधिक है कि यह अवशोषित नहीं हो पाती।
उत्तर:
(b) यह साँस छोड़ते समय कार्बन डाइऑक्साइड के साथ बाहर आ जाती है

प्रश्न 18.
उपरि मृदा में निम्नलिखित में से विद्यमान होता है –
(a) केवल ह्यूमस तथा सजीव
(b) केवल ह्यूमस तथा मृदा कणिकाएँ
(c) ह्यूमस सजीव तथा पादप
(d) ह्यूमस सजीव तथा मृदा कणिकाएँ
उत्तर:
(d) ह्यूमस सजीव तथा मृदा कणिकाएँ

प्रश्न 19.
सही क्रम का चयन कीजिए –
(a) वायुमण्डल में CO2 → अपघटक → जन्तुओं में जैव कार्बन → पादपों में जैव कार्बन
(b) वायुमण्डल में CO2 → पादपों में जैव कार्बन → जन्तुओं में जैव कार्बन → मृदा में अकार्बनिक कार्बन
(c) जल में अकार्बनिक कार्बोनेट → पादपों में जैव कार्बन → जन्तुओं में जैव कार्बन → अपमार्जक
(d) जन्तुओं में जैव कार्बन → अपघटक → वायुमण्डल में CO2 → पादपों में जैव कार्बन
उत्तर:
(b) वायुमण्डल में CO2 → पादपों में जैव कार्बन → जन्तुओं में जैव कार्बन → मृदा में अकार्बनिक कार्बन

प्रश्न 20.
मृदा में खनिज का मुख्य स्रोत कौन-सा है?
(a) जनक शैल जिससे मृदा बनती है
(b) पादप
(c) जन्तु
(d) जीवाणु
उत्तर:
(a) जनक शैल जिससे मृदा बनती है

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प्रश्न 21.
पृथ्वी के कुल धरातल का कितना भाग जल से ढका है?
(a) 75%
(b) 60%
(c) 85%
(d) 50%
उत्तर:
(a) 75%

प्रश्न 22.
जैवमण्डल के जैविक घटक का निर्माण किसके द्वारा नहीं होता है?
(a) उत्पादक
(b) उपभोक्ता
(c) अपघटक
(d) वायु
उत्तर:
(d) वायु

प्रश्न 23.
वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि से क्या नहीं होगा?
(a) पर्यावरण में अधिक ऊष्मा को रोका जा सकता है
(b) पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की वृद्धि
(c) वैश्विक ऊष्मन
(d) मरुस्थली पादपों की प्रचुरता
उत्तर:
(d) मरुस्थली पादपों की प्रचुरता

प्रश्न 24.
ऑक्सीजन मुख्यतः किसके द्वारा वायुमण्डल में वापस आती है?
(a) जीवाश्म ईंधन के जलने से
(b) श्वसन से
(c) प्रकाश-संश्लेषण से
(d) कवक से।
उत्तर:
(c) प्रकाश-संश्लेषण से

प्रश्न 25.
ठंडे मौसम में कम दृश्यता का कारण –
(a) जीवाश्म ईंधन का निर्माण
(b) बिना दहन हुए कार्बन कण या वायु में निलम्बित हाइड्रोकार्बन
(c) पर्याप्त विद्युत आपूर्ति में कमी
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) बिना दहन हुए कार्बन कण या वायु में निलम्बित हाइड्रोकार्बन

प्रश्न 26.
बंजर शैल पर लाइकेन की वृद्धि के बाद किसकी वृद्धि होती है?
(a) मॉस
(b) फर्न
(c) जिम्नोस्पर्म
(d) शैवाल
उत्तर:
(a) मॉस

प्रश्न 27.
जलीय पर्यावरण में विशेष तापक्रम परिवर्तन प्रभावित कर सकता है –
(a) जन्तुओं में प्रजनन
(b) जलीय पौधों में अधिक वृद्धि
(c) जन्तुओं में पाचन की प्रक्रिया
(d) पोषकों की उपलब्धता
उत्तर:
(a) जन्तुओं में प्रजनन

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प्रश्न 28.
मृदा अपरदन इसके द्वारा रोका जा सकता है –
(a) वनों का विकास करके
(b) वनों की कटाई
(c) उर्वरकों का अत्यधिक उपयोग
(d) जन्तुओं द्वारा अति चारण
उत्तर:
(a) वनों का विकास करके

प्रश्न 29.
वनस्पति रहित मृदा पर जब वर्षा होती है तो क्या होता है?
(a) वर्षा का जल मृदा के भीतर भली-भाँति रिस जाता है
(b) वर्षा का जल मृदा की सतह को हानि पहुँचाता है
(c) वर्षा का जल मृदा की उर्वरकता को बढ़ाता है
(d) वर्षा का जल मृदा में कोई परिवर्तन नहीं करता है
उत्तर:
(b) वर्षा का जल मृदा की सतह को हानि पहुँचाता है

प्रश्न 30.
ऑक्सीजन निम्नलिखित में से किसके लिए हानिकारक है?
(a) फर्न
(b) नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु
(c) चारा
(d) आम का वृक्ष।
उत्तर:
(b) नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु

प्रश्न 31.
वायु प्रदूषक है –
(a) गैसीय अपशिष्ट
(b) वाहित मल
(c) कृषि अपशिष्ट
(d) शोर
उत्तर:
(a) गैसीय अपशिष्ट

प्रश्न 32.
जल प्रदूषक है –
(a) गैसीय अपशिष्ट
(b) रेडियोधर्मी विकिरण
(c) वाहित मल
(d) शोर
उत्तर:
(c) वाहित मल

प्रश्न 33.
नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले जीवाणु का नाम है –
(a) स्यूडोमोनास
(b) नाइट्रोसोमोनास
(c) राइजोबियम
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(c) राइजोबियम

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रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. पृथ्वी के चारों ओर गैसीय आवरण …………… कहलाता है।
2. पृथ्वी पर जो भाग जल से ढका है वह ………… कहलाता है।
3. समस्त जीवों से मिलकर बने तन्त्र को …………… कहते हैं।
4. अजैविक एवं जैविक घटकों को …………… कहते हैं। (2019)
अथवा
जैविक एवं अजैविक घटक मिलकर …………… बनाते हैं। (2019)
5. प्रदूषकों का वायु में मिलना ………….. प्रदूषण कहलाता है।
6. प्रदूषकों का जल में मिलना …………… प्रदूषण कहलाता है।
7. कीटनाशकों से ………… प्रदूषण फैलता है।
8. शोर से ……….. प्रदूषण होता है।
9. ध्वनि मापन की इकाई ……………. है।
10. CFC का पूरा नाम ………. है। (2019)
11. जीवाश्म ईंधन …………… है। (2019)
उत्तर:

  1. वायुमण्डल
  2. जलमण्डल
  3. जैव तन्त्र
  4. पारिस्थितिक तन्त्र
  5. वायु
  6. जल
  7. मृदा
  8. ध्वनि
  9. डेसीबल
  10. क्लोरोफ्लोरोकार्बन
  11. L.P.G. एवं कोयला।

सही जोड़ी बनाना
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा image 1
उत्तर:

  1. → (iii)
  2. → (iv)
  3. → (v)
  4. → (i)
  5. → (ii)
  6. → (vii)
  7. → (vi)

सत्य/असत्य कथन

1. खनिज ईंधन के जलने से प्रदूषण नहीं फैलता।
2. 60 डेसीबल से ऊपर की ध्वनि ध्वनि-प्रदूषण पैदा करती है।
3. प्रदूषित जल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।
4. क्लोरोफ्लोरोकार्बन ओजोन परत में छेद कर रहे हैं।
5. ताप पारितन्त्र का अजैव घटक है।
6. जैवमण्डल की क्रियात्मक इकाई पारितन्त्र है।
7. वायुमण्डल में नाइट्रोजन 28% होती है।
उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य
  6. असत्य
  7. असत्य।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
ऐरोसॉल का रासायनिक नाम क्या है?
उत्तर:
क्लोरोफ्लोरोकार्बन।

प्रश्न 2.
क्लोरोफ्लोरोकार्बन का रासायनिक सूत्र क्या है?
उत्तर:
CCl2F2.

प्रश्न 3.
सम्पूर्ण विश्व में मनुष्य के क्रियाकलापों से वातावरण का तापमान बढ़ने की घटना क्या कहलाती है?
उत्तर:
ग्लोबल वार्मिंग।

प्रश्न 4.
ध्वनि की इकाई क्या है?
उत्तर:
डेसीबल।

प्रश्न 5.
नाइट्रोजन चक्र में नाइट्रोजन स्थिरीकरण में भाग लेने वाले जीवाणु का नाम लिखिए।
उत्तर:
ऐजोटोबैक्टर एवं राइजोबियम।

प्रश्न 6.
नाइट्रोजन चक्र में अमोनीकरण में भाग लेने वाले जीवाणु का नाम लिखिए।
उत्तर:
नाइट्रोसोमोनास।

प्रश्न 7.
नाइट्रोजन चक्र में नाइट्रीकारक बैक्टीरिया का नाम लिखिए।
उत्तर:
नाइट्रोबैक्टर।

प्रश्न 8.
नाइट्रोजन चक्र में विनाइट्रीकारक जीवाणु का नाम लिखिए। (2019)
उत्तर:
स्यूडोमोनास।

प्रश्न 9.
किस वैज्ञानिक ने सर्वप्रथम ‘पारितन्त्र’ शब्द का प्रयोग किया?
उत्तर:
टेन्सले।

प्रश्न 10.
ऐरोसॉल वायुमण्डल की किस परत का क्षरण करने के लिए उत्तरदायी है?
उत्तर:
ओजोन परत का।

प्रश्न 11.
शुष्क बर्फ किसे कहते हैं? (2019)
उत्तर:
ठोस कार्बन डाइऑक्साइड।

प्रश्न 12.
ओजोन का रासायनिक सूत्र लिखिए। (2019)
उत्तर:
O3.

प्रश्न 13.
ग्रीन हाउस प्रभाव उत्पन्न करने वाली प्रमुख गैस का नाम लिखिए। (2019)
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड।

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MP Board Class 9th Science Chapter 14 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ओजोन परत क्या है? इसके क्या लाभ हैं? (2019)
उत्तर:
ओजोन परत:
“हमारे वायुमण्डल में समुद्र की सतह से 32 से 80 किमी की दूरी तक ओजोन गैस की एक मोटी परत पाई जाती है जिसे ओजोन परत कहते हैं।

ओजोन परत का लाभ:
ओजोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक पराबैंगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकती है।

प्रश्न 2.
वैश्विक ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) से क्या समझते हो? (2019)
उत्तर:
वैश्विक ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग):
मनुष्यों के क्रियाकलापों के फलस्वरूप ग्रीन हाउस प्रभाव से सम्पूर्ण पृथ्वी का तापमान बढ़कर सामान्य तापमान से अधिक हो रहा है। इस घटना को वैश्विक ऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) कहते हैं।”

प्रश्न 3.
नदियाँ खनिजों को भूमि से लेकर समुद्री जल तक ले जाती हैं। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जल एक अच्छा विलायक है इसलिए अनेक खनिजों को घोलने में सक्षम होता है। जब नदियों का जल पहाड़ों से प्रवाहित होता है तो अपने रास्ते में पड़ने वाली मृदा से अनेक खनिजों को घोलकर समुद्र तक ले जाता है।

प्रश्न 4.
जल के प्रदूषित हो जाने पर जल में रहने वाले जीव का जीवन कैसे प्रभावित होता है?
उत्तर:
पीड़कनाशी, उर्वरक, घरेलू एवं औद्योगिक कचरा एवं अन्य विषैले पदार्थ जल में घुलकर उसे विषैला और प्रदूषित कर देते हैं। इसके साथ ही जल में घुली ऑक्सीजन की मात्रा भी कम कर देते हैं। इससे जलीय जीवों का जीवन दूभर हो जाता है और अधिकतर जीव मर जाते हैं।

प्रश्न 5.
यदि गर्मियों में आप झील के निकट जाएँ तो आप गर्मी से राहत महसूस करेंगे, क्यों?
उत्तर:
चूँकि जलाशयों (झील) के निकट की वायु उसके जल के वाष्पीकरण के कारण ठंडी हो जायेगी। इसलिए उसके निकट जाने पर गर्मी में राहत महसूस होगी।

प्रश्न 6.
तटीय क्षेत्रों में, दिन में पवन धाराएँ समुद्र से भूमि की ओर, लेकिन रात में भूमि से समुद्र की ओर चलती हैं। कारण बताइए।
उत्तर:
दिन के समय भूमि के ऊपर की हवा जल्दी गर्म होने से हल्की होकर ऊपर उठ जाती है और नीचे दाब कम हो जाता है। इससे समुद्र के ऊपर की हवा भूमि की ओर प्रवाहित होती है। रात्रि के समय भूमि की हवा जल्दी ठंडी होती है और समुद्र के ऊपर की हवा अपेक्षाकृत गर्म रहती है और ऊपर उठती है तथा नीचे दाब कम हो जाता है। इसलिए भूमि से समुद्र की ओर पवन धाराएँ चलती हैं।

प्रश्न 7.
नीचे कुछ जीव दिए गए हैं –
(a) लाइकेन
(b) मॉस
(c) आम का वृक्ष
(d) कैक्टस।
उपर्युक्त में से पत्थर पर कौन उग सकता है और मृदा निर्माण में भी सहायता करता है? मृदा बनाने की इसकी क्रिया पद्धति पर लेख लिखिए।
उत्तर:
(a) लाइकेन एवं
(b) मॉस ऐसे पौधे हैं जो पत्थर पर उग सकते हैं तथा ऐसे रासायनिक पदार्थों का स्रावण करते हैं जो पत्थर को तोड़कर छोटे-छोटे कणों में बदल देते हैं। यही कण मृदा का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 8.
मृदा का निर्माण जैव तथा अजैव दोनों प्रकार के कारक करते हैं। अजैव तथा जैव के रूप में वर्गीकरण करते हुए कारकों के नाम की सूची बनाइए।
उत्तर:
मृदा निर्माण के जैव कारक-लाइकेन, मॉस एवं वृक्ष। मृदा निर्माण के अजैव कारक-सूर्य, जल एवं पवन।

प्रश्न 9.
सभी जीव मूलरूप से C, N, S, P, H तथा O से बने होते हैं। ये तत्व जीवों में किस प्रकार प्रवेश करते हैं? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पेड़-पौधे अपनी जड़ों के माध्यम से जल एवं लवण अवशोषित करते हैं तथा प्रकाश-संश्लेषण द्वारा भोजन बनाते हैं। जन्तु पेड़-पौधों से भोजन ग्रहण करते हैं। इस तरह ये सभी तत्व सभी जीवों में प्रवेश करते हैं।

प्रश्न 10.
ऑक्सीजन, नाइट्रोजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों का प्रतिशत वायुमण्डल में सदैव एक जैसा क्यों रहता है?
उत्तर:
इन गैसों का वायुमण्डल में सदैव एक जैसा प्रतिशत बना रहता है क्योंकि इन गैसों के चक्रों में आपस में संगतता बनी रहती है।

प्रश्न 11.
चन्द्रमा के तापक्रम में बहुत सर्द और बहुत गर्म तापमान की विविधताएँ पाई जाती हैं। उदाहरण के लिए-190°C से 110°C तक, हालांकि सूर्य से इसकी दूरी पृथ्वी के ही बराबर है। ऐसा क्यों होता है ?
उत्तर:
चन्द्रमा पर वायु एवं जल का अभाव होता है जो तापक्रम नियन्त्रण में सहायक हो सकते थे इसलिए जब यह सूर्य की ओर आता है तो तापक्रम 110°C तक पहुँच जाता है और उससे दूर होने पर -190°C तक गिर जाता है।

प्रश्न 12.
समुद्र तट के निकट लोग पतंग उड़ाना क्यों पसन्द करते हैं?
उत्तर:
समुद्र के पास दिन में पवन का निर्माण होता है जो पतंग उड़ाने के लिए आवश्यक है इसलिए लोग समुद्र के किनारे पतंग उड़ाना पसन्द करते हैं।

प्रश्न 13.
मथुरा रिफाइनरी ताजमहल के लिए क्यों एक समस्या बनी हुई है?
उत्तर:
मथुरा रिफाइनरी विषाक्त गैसें जैसे सल्फर डाइ-ऑक्साइड आदि छोड़ती है जो वर्षा के जल से मिलकर एसिड (अम्ल) बनाती है और अम्ल वर्षा (एसिड रेन) करने का कारण बनती है जो ताजमहल के संगमरमर का क्षरण करती है।

प्रश्न 14.
दिल्ली में लाइकेन क्यों नहीं मिलते हैं जबकि मनाली या दार्जिलिंग में आमतौर पर उगते हैं?
उत्तर:
लाइकेन एक जैव संकेतक है तथा SO2 आदि प्रदूषकों के लिए अति संवेदनशील होता है। दिल्ली में स्वचालित वाहनों की अत्यधिक संख्या एवं औद्योगिक संस्थानों के कारण यहाँ की वायु अति प्रदूषित होती है जबकि मनाली एवं दार्जिलिंग प्रायः प्रदूषण रहित हैं इसलिए लाइकेन दिल्ली में नहीं पाया जाता जबकि मनाली एवं दार्जिलिंग में खूब उगता है।

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प्रश्न 15.
जल संरक्षण की क्यों आवश्यकता है जबकि भूखण्डों को विशाल समुद्र घेरे हुए है?
उत्तर:
लवणयुक्त समुद्री जल मनुष्य और पादपों के लिए प्रत्यक्ष रूप से लाभदायक नहीं होता तथा लवण विहीन जल के संसाधन सीमित हैं तथा माँग अधिक। इसलिए माँग की आपूर्ति हेतु जल संरक्षण की आवश्यकता है।

प्रश्न 16.
लाइकेन वनस्पतिहीन चट्टानों पर सबसे पहले आने वाले जीव कहलाते हैं। ये मृदा बनाने में किस प्रकार सहायक होते हैं?
उत्तर:
लाइकेन चट्टानों पर उगने वाले सबसे पहले जीव हैं। लाइकेन रासायनिक पदार्थ छोड़ते हैं जो पत्थरों को छोटे-छोटे कणों में बदलकर मृदा का निर्माण करते हैं। उसके बाद में मॉस जैसे छोटे-छोटे पौधे उगते हैं जो पत्थरों को तोड़ने में सक्षम होते हैं। इस तरह से चट्टानों को मृदा में बदल देते हैं।

प्रश्न 17.
उर्वरक मृदा में ह्यूमस बड़ी मात्रा में होती है, क्यों?
उत्तर:
उर्वरक मृदा में अनेक प्रकार के जीव मौजूद होते हैं जो मृत कार्बनिक पदार्थों को विघटित करके ह्यूमस बना देते हैं। ह्यूमस खनिज प्रदान करती है, जल का अवशोषण करती है और मृदा को छिदिल बनाकर उर्वरक मृदा बना देती है।

प्रश्न 18.
पहाड़ों पर सोपानी कृषि (Step farming) आमतौर पर क्यों पाई जाती है?
उत्तर:
ढलान पर जलधारा द्वारा मृदा अपरदन होता है। उसे रोकने के लिए पहाड़ों पर सोपानी कृषि आमतौर पर पाई जाती है।

प्रश्न 19.
जड़ों में पायी जाने वाली मूल ग्रन्थिकाएँ पौधों के लिए क्यों लाभदायक होती हैं?
उत्तर:
जड़ों में पायी जाने वाली मूल ग्रन्थिकाओं में नाइट्रोजन स्थिरकारी जीवाणु राइजोबियम होते हैं जो वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को नाइट्रोजन के लवणों में बदल देते हैं जिससे मृदा की उर्वरकता बढ़ जाती है।

प्रश्न 20.
“धूल एक प्रदूषक है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
वायु में उपस्थित धूल निलम्बित कणों के रूप में एलर्जी या दूसरे श्वसन रोग पैदा करती है। पौधों की पत्तियों पर एकत्रित होकर उसके रन्ध्रों को बन्द कर पादप वृद्धि में व्यवधान डालती है। इसलिए यह एक प्रदूषक है।

प्रश्न 21.
मृदा के बनने में सूर्य की भूमिका की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सूर्य शैलों को गरम करता है और इस प्रकार दिन में ये फैलती हैं तथा रात्रि में ठण्ड पड़ने पर सिकुड़ती हैं। परिणामस्वरूप शैल टूट जाते हैं और छोटे-छोटे कणों में विभक्त होकर मृदा का निर्माण करते हैं।

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प्रश्न 22.
कार्बन डाइऑक्साइड पौधों के लिए आवश्यक है। हम इसे प्रदूषक क्यों मानते हैं?
उत्तर:
कार्बन डाइऑक्साइड पौधों के लिए प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा भोजन बनाने में सहयोग प्रदान करती है इसलिए पौधों के लिए अति आवश्यक है। लेकिन अधिक मात्रा में इसका सान्द्रण वायु प्रदूषण पैदा करता है इसलिए हम इसे प्रदूषक मानते हैं।

प्रश्न 23.
ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक ऊष्मीकरण) के प्रमुख कारण लिखिए। (2019)
उत्तर:
वैश्विकऊष्मीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) के प्रमुख कारण-विभिन्न निम्न मानवीय क्रियाकलापों के कारण वायुमण्डल का तापमान निरन्तर बढ़ता जा रहा है –

  1. शहरीकरण एवं औद्योगीकरण के कारण वृक्षों का अत्यधिक कटान।
  2. जीवाश्म ईंधन का अत्यधिक उपयोग।

प्रश्न 24.
अम्ल वर्षा क्या है? (2019)
उत्तर:
अम्ल वर्षा-“जीवाश्म ईंधन के जलने से वायुमण्डल में विभिन्न प्रकार की अम्लीय गैसें; जैसे-कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड वायुमण्डल में एकत्रित होते हैं जो जलवाष्प से मिलकर अम्ल बनाकर वर्षा के साथ बरसते हैं। इस वर्षा को अम्ल वर्षा कहते हैं।”

MP Board Class 9th Science Chapter 14  लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वायु प्रदूषण के कारण लिखिए।
अथवा
वायु प्रदूषण के मानव निर्मित स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण के कारण अथवा वायु प्रदूषकों के मानव निर्मित स्रोत –

  1. घर, कल-कारखानों एवं वाहनों में ईंधन के दहन से उत्पन्न प्रदूषक गैसें वायुमण्डल में मिल जाती हैं।
  2. रेफ्रिजरेटरों एवं एयर कण्डीशनरों में प्रयुक्त क्लोरोफ्लोरोकार्बन (ऐरोसॉल) रिसाव के कारण वायुमण्डल में मिल जाती है।
  3. कृषि रसायनों (कीटनाशक, फंगसनाशक, खरपतवारनाशक, पीड़कनाशक) के छिड़काव के कारण उनसे निकले गैसीय रसायन वायुमण्डल में मिल जाते हैं।
  4. वनों की कटाई, बढ़ती जनसंख्या, शहरीकरण एवं खनन आदि के कारण भी वायु प्रदूषक वायुमण्डल में मिलकर उसे प्रदूषित करते हैं।

प्रश्न 2.
वायु प्रदूषण के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण के प्रभाव-मानव जीवन पर विभिन्न वायु प्रदूषकों के निम्न प्रभाव पड़ते हैं –

1. नाइट्रोजन ऑक्साइड के प्रभाव:
फेफड़ों के ऊतकों में सूजन आना, न्यूमोनिया होना, ऑक्सीजन परिवहन क्षमता में कमी होना, फेफड़ों का कैंसर होना, आँखों में जलन होना एवं प्रतिरोधक क्षमता में कमी होना।

2. सल्फर डाइ:
ऑक्साइड के प्रभाव-कफ, खाँसी, सिरदर्द एवं आँखों में जलन होना।

3. कार्बन मोनो:
ऑक्साइड के प्रभाव-सिरदर्द एवं उल्टी होना, साँस लेने में कठिनाई होना, उल्टी आना, ऑक्सीजन की परिवहन क्षमता में कमी, पेशीय कमजोरी होना।

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प्रश्न 3.
वायु प्रदूषण के नियन्त्रण के उपाय लिखिए।
उत्तर:
वायु प्रदूषण के नियन्त्रण के उपाय –

  1. उद्योगों एवं कल-कारखानों को आवासीय क्षेत्रों से दूर स्थापित करना चाहिए।
  2. कारखानों की चिमनियों को काफी ऊँचा बनाना चाहिए।
  3. वाहनों के धुआँ निकलने वाले पाइप (साइलेंसर) के मुँह पर फिल्टर लगाना चाहिए।
  4. धूम्रपान से बचना चाहिए।
  5. प्रदूषण रहित ईंधन का उपयोग करना चाहिए तथा सस्ते ईंधन से बचना चाहिए।

प्रश्न 4.
जल प्रदूषण के प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
जल प्रदूषण के प्रभाव:
जीवों पर जल प्रदूषण के निम्न प्रभाव पड़ते हैं –

1. मानव पर प्रभाव:
प्रदूषित जल से मानव में विभिन्न घातक बीमारियाँ; जैसे हैजा, टायफाइड, डायरिया, पेचिश, पीलिया एवं हेपेटाइटिस आदि हो जाती हैं। जल प्रदूषण मानव अंगों; जैसे-मस्तिष्क, यकृत, फेफड़े एवं वृक्क आदि पर घातक प्रभाव डालते हैं।

2. प्राणियों पर प्रभाव:
प्रदूषित जल के कारण प्राणियों के अण्डे, लार्वा आदि नष्ट हो जाते हैं। प्राणियों का जीवन खतरे में आ जाता है। प्रदूषित जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, फलस्वरूप मछलियाँ आदि जलीय जीवों की मृत्यु हो जाती है।

3. वनस्पति पर प्रभाव:
प्रकाश-संश्लेषण की दर में कमी आ जाती है। पेस्टीसाइड एवं कीटनाशकों के कारण नील-हरित शैवाल मर जाते हैं। जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है।

प्रश्न 5.
जल प्रदूषण के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जल प्रदूषण के कारण:

  1. घरेलू अपशिष्ट एवं वाहित मल का जलस्रोतों में मिलना।
  2. औद्योगिक जलीय अवशिष्टों का जलस्रोतों में मिलना।
  3. अपमार्जक एवं साबुन युक्त (नहाने एवं कपड़े धोने के कारण प्रदूषित) जल का जलाशयों में मिलना।
  4. कृषि रसायनों (उर्वरक, खरपतवारनाशी, कीटनाशी, फंगसनाशी, पीड़कनाशी आदि) का वर्षा जल के साथ बहकर जलस्रोतों में मिलना।
  5. रेडियोधर्मी पदार्थों का जलस्रोतों में मिलना।

प्रश्न 6.
जल प्रदूषण के नियन्त्रण (रोकने) के उपाय लिखिए। (2019)
उत्तर:
जल प्रदूषण के नियन्त्रण के उपाय:

  1. वाहित मल को जल में प्रवाहित करने से पहले उसे उपचारित कर लेना चाहिए।
  2. औद्योगिक अपशिष्टों को जलाशयों में मिलाने से पहले उपचारित करके हानिरहित बना लेना चाहिए।
  3. ठोस अपशिष्टों को जलाशयों में नहीं फेंकना चाहिए।
  4. जैविक अपशिष्टों को जलाशयों में नहीं फेंकना चाहिए।
  5. जलाशयों में जानवरों के नहाने एवं कपड़े धोने पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।

प्रश्न 7.
ध्वनि प्रदूषण किसे कहते हैं? इसके क्या प्रभाव पड़ते हैं?
उत्तर:
ध्वनि प्रदूषण:
“विभिन्न प्रकार की अवांछित तीव्र ध्वनियों द्वारा पर्यावरण में उत्पन्न अशान्ति, ध्वनि प्रदूषण कहलाती है।”

ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव:

  1. श्रव्य क्षमता कम हो जाती है तथा व्यक्ति बहरा तक हो जाता है।
  2. सिरदर्द होने लगता है तथा चिड़चिड़ापन आ जाता है।
  3. इससे दौरे पड़ने लगते हैं।
  4. गर्भस्थ शिशु पर कुप्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 8.
ध्वनि प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय बताइए।
उत्तर:
ध्वनि प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय:

  1. उद्योग व कारखानों को शहर से दूर स्थापित करना चाहिए।
  2. वाहनों में गुणवत्ता वाले ईंधन का उपयोग करना चाहिए।
  3. वाहनों एवं जनरेटरों में साइलेंसर का उपयोग करना चाहिए।
  4. कारखानों के कलपुर्जी का उचित रख-रखाव करना चाहिए।
  5. रेडियो, टेलीविजन आदि को धीमी आवाज में बजाना चाहिए।
  6. लाउडस्पीकर एवं डीजे आदि पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।

प्रश्न 9.
मृदा प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा प्रदूषण के स्त्रोत:

1. औद्योगिक कार्य:
उद्योगों से निकले त्याज्यों को मृदा में मिला दिया जाता है।

2. शहरी अपशिष्ट:
शहर से निकलने वाला घरेलू एवं व्यावसायिक अपशिष्ट, सूखा, कीचड़, कूड़ा-करकट, ईंधन अवशेष, गले, कागज, पॉलीथीन की थैलियाँ, फल-सब्जियों के छिलके आदि मृदा में डाल दिए जाते हैं।

3. कृषि कार्य:
कृषि कार्य में प्रयुक्त उर्वरक, कीटनाशक, फंगीनाशक, खरपतवार नाशक, पीड़कनाशक आदि रासायनिक पदार्थ मृदा की उर्वरक शक्ति को नष्ट करते हैं तथा उसे विषैला एवं प्रदूषित करते हैं।

4. मृदा अवसाद:
आँधी, तूफान, तेज हवा एवं बाढ़ के कारण खेत की उपजाऊ मिट्टी (मृदा) अपरदन द्वारा नष्ट हो जाती है तथा गन्दगी भरे दलदली पदार्थ मृदा में एकत्रित हो जाते हैं।

प्रश्न 10.
मृदा प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों पर प्रकाश डालिए। (2019)
उत्तर:
मृदा प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव:

  1. ठोस अपशिष्ट (कूड़ा-करकट) में मच्छर एवं मक्खियाँ पनपती हैं जो रोगवाहक होते हैं।
  2. उद्योगों से निकला अपशिष्ट मृदा की उर्वरक शक्ति को क्षीण करता है तथा उसकी अम्लीयता एवं क्षारीयता के सन्तुलन को बिगाड़ देता है। इससे फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
  3. अम्ल वर्षा से पृथ्वी की उर्वरा शक्ति क्षीण होती है तथा फसल उत्पादन प्रभावित होता है।
  4. मृदा अपरदन से मिट्टी में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है।
  5. रासायनिक उर्वरकों, कृषि रसायन (जैसे-कीटनाशक, पीड़कनाशक, फंगीनाशक एवं खरपतवारनाशक) खाद्य श्रृंखला के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और स्वास्थ्य को हानि पहुंचाते हैं।
  6. वाहित मल और कचरा, पर्यावरण को बदबूदार बनाता है।

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प्रश्न 11.
मृदा प्रदूषण रोकने के उपाय लिखिए।
उत्तर:
मृदा प्रदूषण रोकने के उपाय:

  1. कार्बनिक खाद का उपयोग करके।
  2. फसल चक्रण का उपयोग करके।
  3. वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करके तथा वृक्षों को अत्यधिक कटान को प्रतिबन्धित करके।
  4. ढलानों पर सीढ़ीदार आकार बनाकर।
  5. कृषि रसायनों (उर्वरक एवं अन्य) का कम से कम उपयोग करके।

प्रश्न 12.
नाइट्रोजन चक्र में जीवों की भूमिका क्या है?
उत्तर:
नाइट्रोजन चक्र में जीवों की भूमिका अथवा जीवों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण के प्रमुख चरण (Biotic Role in Nitrogen Cycle or Nitrogen Fixation by Organism):
“नाइट्रोजन चक्र में जीवों की भूमिका अथवा जीनों द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण को विभिन्न चरणों में निम्नांकित तालिका से समझ सकते हैं –
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प्रश्न 13.
प्रकृति में ऑक्सीजन चक्र समझाइए।
अथवा
ऑक्सीजन चक्र का रेखीय चित्र बनाकर वर्णन कीजिए। (2019)
उत्तर:
प्रकृति में ऑक्सीजन चक्र (Oxygen Cycle in Nature):
श्वसन हेतु वायुमण्डलीय ऑक्सीजन का उपयोग स्थलीय जन्तुओं द्वारा तथा जल में घुली हुई ऑक्सीजन का उपयोग जलीय जन्तु द्वारा किया जाता है तथा कोशिकीय श्वसन के फलस्वरूप कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल बनता है। जल एवं कार्बन डाइऑक्साइड हरे पेड़-पौधों द्वारा ग्रहण की जाती है तथा प्रकाश-संश्लेषण द्वारा ऑक्सीजन मुक्त होती है जो वायुमण्डल में चली जाती है। मृत जीवों के अपघटन से भी ऑक्सीजन मुक्त होती है। इस प्रकार ऑक्सीजन चक्र चलता रहता है।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा image 3

प्रश्न 14.
पदार्थों के चक्रण में अपघटकों की भूमिका संक्षेप में बताइए।
अथवा
जीवमण्डल में अपघटकों की अनुपस्थिति के क्या परिणाम हो सकते हैं?
अथवा
पारितन्त्र में अपघटकों की भूमिका समझाइए।
उत्तर:
पदार्थों के चक्रण में अपघटकों की भूमिका (Role of Decomposers in Cycling of Materials):
अपघटक जीवाणु, कवक तथा फंगस आदि सूक्ष्मजीव होते हैं जो मृत पेड़-पौधों (उत्पादकों) एवं मृत जन्तुओं (उपभोक्ताओं) का अपघटन करते हैं। वे उन जीवों में उपस्थित जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल अकार्बनिक पदार्थों में बदल देते हैं। इन सरल अकार्बनिक पदार्थों का पुन: उपयोग उत्पादकों द्वारा कर लिया जाता है तथा जटिल कार्बनिक पदार्थों में रूपान्तरित कर दिया जाता है।
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा image 4
इन जटिल कार्बनिक पदार्थों का उपयोग पुनः उपभोक्ताओं द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कर लिया जाता है। यदि जीवमण्डल में अपघटक अनुपस्थित जड़ों द्वारा हो जाएँ तो पदार्थों के चक्रण की सभी प्रक्रियाएँ बन्द हो जाएँगी और मृत पेड़-पौधों और जन्तुओं की भरमार से पर्यावरण असन्तुलित हो जाने से भयंकर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। इस प्रकार के पदार्थों के चक्रण में अपघटकों की महत्वपूर्ण भूमिका है।

प्रश्न 15.
प्रकृति में जल-चक्र को सचित्र समझाइए।
अथवा
जलीय चक्र किसे कहते हैं ? इसके चरण एवं प्रकृति में जलीय चक्र को चित्र द्वारा समझाइए।
उत्तर:
प्रकृति में जल-चक्र (Water Cycle or Hydrological Cycles in Nature):
पौधे जड़ों द्वारा मृदा से जल ग्रहण करते हैं तथा जन्तु भोजन के साथ। पौधों से जल वाष्पोत्सर्जन की क्रिया द्वारा जलवाष्प के रूप में तथा जन्तुओं में पसीने के द्वारा जलवाष्प के रूप में वायुमण्डल में चला जाता है। जन्तु मूत्र विसर्जन में भी जल त्यागते हैं जो मृदा में मिल जाता है। तालाबों, झीलों, नदियों और समुद्रों का जल वाष्पन द्वारा वायुमण्डल में पहुँचता है। वायुमण्डल में बादल बनते हैं जो निम्न ताप पर वर्षा या हिम के रूप में बरसते हैं। इस प्रकार जल पृथ्वी पर वापस आ जाता है।

प्रश्न 16.
उपरिमृदा की हानि को हम कैसे रोक सकते हैं?
उत्तर:
उपरिमृदा की हानि को रोकने के उपाय:
उपरिमृदा की हानि को रोकने के लिए हम निम्न उपाय करेंगे –

  1. अधिकाधिक वानस्पतिक वृद्धि करके अर्थात् वृक्षारोपण द्वारा।
  2. वृक्षों के कटान पर प्रतिबन्ध लगाकर।
  3. पशुचारण एवं वनस्पति काटने पर प्रतिबन्ध लगाकर।
  4. ढलानों पर सोपानी कृषि (सीढ़ीदार कृषि) करके।

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प्रश्न 17.
एक तालाब में मछलियाँ बड़ी संख्या में मरी पाई गईं। क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर:
एक तालाब में बड़ी संख्या में मछलियाँ मरी पाई गईं। इसके मुख्य कारण निम्न हैं –

  1. जलाशयों में अनैच्छिक विषैले पदार्थों का मिलना। ये पदार्थ औद्योगिक अपशिष्ट, वाहित मल, पीड़कनाशक आदि हो सकते हैं।
  2. जलाशयों में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा में कमी आना जिससे श्वसन बाधित होना।
  3. जलाशयों में पोषक तत्वों की कमी होना।
  4. जलाशय के तापमान में परिवर्तन होना अर्थात् ऊष्मीय प्रदूषण।
  5. प्रदूषकों के कारण क्लोमों का अवरुद्ध होना।

प्रश्न 18.
“मृदा जल से बनती है” यदि आप इस कथन से सहमत हैं तो कारण बताइए।
उत्तर:
मृदा जल से बनती है क्योंकि जल पत्थरों से निम्न प्रकार मृदा बनाने में सहायक होता है –

  1. दीर्घकाल तक पत्थरों की घिसाई करता है।
  2. पत्थरों को एक-दूसरे से टकराने एवं रगड़ने में सहायता करता है।
  3. पत्थरों की विदरिकाओं (झिर्रियों) में जल भर जाता है जो जमने के कारण फैलता है तो पत्थरों को तोड़कर टुकड़े-टुकड़े करता है।
  4. जल के बहाव के साथ पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़े आपस में टकराते, रगड़ते और घिसते हैं।

प्रश्न 19.
जीवाश्म ईंधन किस प्रकार वायु प्रदूषण फैलाता है?
उत्तर:
जीवाश्म ईंधन से वायु प्रदूषण का फैलना:
जब जीवाश्म ईंधन स्वचालित वाहनों, औद्योगिक इकाइयों, भट्टियों तथा चूल्हों में जलता है तो कार्बन डाइ-ऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, लैड के ऑक्साइड, नाइट्रोजन के ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड आदि बनते हैं जो वायुमण्डल में प्रवेश करके उसे प्रदूषित करते हैं। इसके अतिरिक्त अधजले कार्बन के कण एवं धुआँ भी वायुमण्डल में प्रवेश करता है। ये सभी अवांछित एवं विषैले होते हैं। इस प्रकार जीवाश्म ईंधन वायु प्रदूषण फैलाता है। इसके अतिरिक्त निलम्बित कणों की उपस्थिति के कारण दृश्यता कम हो जाती है।

प्रश्न 20.
मोटर कार जिसके शीशे पूरी तरह से बन्द किए हुए हैं, धूप में पार्क कर दी जाती है। कार के अन्दर का तापक्रम तेजी से बढ़ता है। समझाइए, क्यों?
उत्तर:
सूर्य के प्रकाश की अवरक्त विकिरण काँच से प्रवेश कर जाती है तथा कार के अन्दर का तापमान बढ़ा देती है क्योंकि काँच सूर्य से आने वाली कम तरंगदैर्घ्य वाली अवरक्त किरणों के लिए पारगम्य है, जबकि कार के अन्दर से बाहर आने वाली अवरक्त किरणों जिनकी तरंगदैर्घ्य अपेक्षाकृत अधिक होती है के लिए पारगम्य नहीं होता। इस प्रकार कार के शीशे सूर्य से आने वाली ऊष्मीय विवरण को अन्दर तो जाने देते हैं लेकिन अन्दर की ऊष्मीय विकिरण को बाहर नहीं आने देते इसलिए कार के अन्दर का तापक्रम तेजी से बढ़ता है।

MP Board Class 9th Science Chapter 14  दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जल प्रदूषण के क्या कारण हैं? आप जल प्रदूषण को कम करने में किस प्रकार योगदान कर सकते हैं?
उत्तर:
जल प्रदूषण के कारण:

  1. घरेलू अपशिष्ट एवं वाहित मल का जलस्रोतों में मिलना।
  2. औद्योगिक जलीय अवशिष्टों का जलस्रोतों में मिलना।
  3. अपमार्जक एवं साबुन युक्त (नहाने एवं कपड़े धोने के कारण प्रदूषित) जल का जलाशयों में मिलना।
  4. कृषि रसायनों (उर्वरक, खरपतवारनाशी, कीटनाशी, फंगसनाशी, पीड़कनाशी आदि) का वर्षा जल के साथ बहकर जलस्रोतों में मिलना।
  5. रेडियोधर्मी पदार्थों का जलस्रोतों में मिलना।

जल प्रदूषण के नियन्त्रण के उपाय:

  1. वाहित मल को जल में प्रवाहित करने से पहले उसे उपचारित कर लेना चाहिए।
  2. औद्योगिक अपशिष्टों को जलाशयों में मिलाने से पहले उपचारित करके हानिरहित बना लेना चाहिए।
  3. ठोस अपशिष्टों को जलाशयों में नहीं फेंकना चाहिए।
  4. जैविक अपशिष्टों को जलाशयों में नहीं फेंकना चाहिए।
  5. जलाशयों में जानवरों के नहाने एवं कपड़े धोने पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।

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प्रश्न 2.
प्रकृति में नाइट्रोजन चक्र को चित्र की सहायता से समझाइए।
अथवा
नाइट्रोजन चक्र कैसे पूरा होता है? समझाइए।
उत्तर:
नाइट्रोजन चक्र के विभिन्न चरण (Different Steps of Nitrogen Cycle):
नाइट्रोजन चक्र निम्नांकित चरणों में पूर्ण होता है –

1. नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (Nitrogen Fixation):
इसमें वायुमण्डलीय नाइट्रोजन को उपयुक्त सरल नाइट्रोजन लवणों में बदला जाता है जिनका उपयोग पौधे कर सकें। यह प्रक्रिया कई प्रकार से होती है –
MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा image 5
(i) तड़ित द्वारा (By Thundering):
वायुमण्डल की नाइट्रोजन वायु को ऑक्सीजन से तड़ित की उपस्थिति में क्रिया करके नाइट्रोजन के ऑक्साइड बनाती है। ये ऑक्साइड वर्षा के जल में घुलकर नाइट्रिक अम्ल बनाते हैं जो मृदा से क्रिया करके नाइट्रेट बनाते हैं।

(ii) सहजीवी जीवाणुओं द्वारा (By Symbiotic Bacteria):
द्वि-दलीय पौधों की जड़ में कुछ गाँठें होती हैं जिनमें उपस्थित जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके नाइट्रेट में बदल देते हैं।

(iii) कृत्रिम विधि द्वारा (ByArtificial Method):
कृत्रिम रूप से वायुमण्डल की नाइट्रोजन को हैबर विधि से अमोनिया में फिर अमोनिया लवण में बदला जाता है जो उर्वरक के रूप में पौधों को उपलब्ध कराया जाता है।

2. जन्तु एवं पौधों में नाइट्रोजन का प्रोटीन के रूप में संग्रहण (Storage of Nitrogen in Animals and Plants in the Form of Protein):
पौधों में यह नाइट्रोजन जटिल कार्बनिक पदार्थों (प्रोटीनों) में बदल जाता है। पेड़-पौधों को शाकाहारी जन्तु खाते हैं। शाकाहारी जन्तुओं को माँसाहारी जन्तु खाते हैं। इस प्रकार प्रोटीन के रूप में नाइट्रोजन पौधों और जन्तुओं में उपस्थित होती है।

3. अमोनीकरण (Ammonification):
मृत पेड़-पौधों एवं जन्तुओं के मल-मूत्र के अपघटन द्वारा प्रोटीन यूरिया तथा यूरिक अम्ल अमोनिया में परिवर्तित होता है। यह प्रक्रिया नाइट्रोसोमोनास जीवाणुओं द्वारा होती है।

4. नाइट्रीकरण (Nitrification):
नाइट्रोबैक्टर द्वारा अमोनिया को नाइट्रेट में बदला जाता है जिसका कुछ भाग पौधों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।

5. विनाइट्रीकरण (Denitrification):
शेष नाइट्रेट को स्यूडोमोनास जीवाणुओं द्वारा नाइट्रोजन से मुक्त कर दिया जाता है जो वायुमण्डल को वापस मिल जाता है। इस प्रकार नाइट्रोजन चक्र पूर्ण होता है।

प्रश्न 3.
जीवमण्डल में कार्बन चक्र (कार्बन डाइऑक्साइड चक्र) किस प्रकार है ? विवरण रेखाचित्र सहित दीजिए।
अथवा
प्रकृति में कार्बन डाइऑक्साइड चक्र को चित्र की सहायता से समझाइए।
अथवा
कार्बन चक्र को समझाइए।
उत्तर:
जीवमण्डल में कार्बन-चक्र अथवा कार्बन डाइऑक्साइड चक्र (Carbon Cycle or Carbon Dioxide Cycle in Biosphere):

  1. वायुमण्डल की कार्बन डाइऑक्साइड का कुछ भाग जल में घुल जाता है जिसका उपयोग जलीय पौधे एवं वायुमण्डल की शेष CO2 का उपयोग स्थलीय पौधे प्रकाश-संश्लेषण में करते हैं। इस प्रकार CO2 के रूप में उपस्थित कार्बन भोजन के रूप में पौधों में एकत्रित हो जाता है।
  2. पौधों से यह कार्बन शाकाहारी जन्तुओं और फिर उनसे माँसाहारी जन्तुओं में भोजन के रूप में पहुँचता है।
  3. पौधों एवं जन्तुओं के श्वसन से तथा मृतजीवों (पौधे एवं जन्तुओं) के अपघटन से CO2 बनती है जो वायुमण्डल में वापस चली जाती है।
  4. पौधों से कोयला बनता है तथा पौधों और जन्तुओं से पृथ्वी के गर्त में पेट्रोलियम बनता है।
  5. कोयले के जलने तथा पेट्रोलियम के दहन से पुन: CO2 बनती है जो वायुमण्डल में चली जाती है।

MP Board Class 9th Science Solutions Chapter 14 प्राकृतिक सम्पदा image 6
इस प्रकार जीवमण्डल में कार्बन चक्र अथवा कार्बन डाइ-ऑक्साइड चक्र पूर्ण होता है।

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MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 पाठान्त अभ्यास

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर स्वामित्व होता है –
(i) निजी नियन्त्रण
(ii) सरकारी नियन्त्रण
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) निजी नियन्त्रण

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प्रश्न 2.
सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाने के लिए किस शासक ने नहरें प्रमुखता से बनवायी? (2015)
(i) मोहम्मद तुगलक
(ii) अकबर
(iii) शाहजहाँ
(iv) हुमायूँ।
उत्तर:
(i) मोहम्मद तुगलक

प्रश्न 3.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी (2014)
(i) मुद्रा आधारित
(ii) आत्मनिर्भर
(iii) आयात पर निर्भर,
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) आत्मनिर्भर

प्रश्न 4.
2001 में भारत में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत था
(i) 21.4
(ii) 32.8
(iii) 65.1
(iv) 72.2
उत्तर:
(iv) 72.2

प्रश्न 5.
भारत में भूमि सुधार कब प्रारम्भ किया गया?
(i) स्वतन्त्रता के पश्चात्
(ii) अंग्रेजों के आगमन से पूर्व
(iii) वैदिक काल में
(iv) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) स्वतन्त्रता के पश्चात्

रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. …………. एक प्रणाली है जिसके द्वारा मनुष्य जीविकोपार्जन करता है।
  2. आजकल वर्षभर में प्रमुख रूप से ………… फसलें ली जाती है।
  3. अंग्रेजों के आगमन से पूर्व कृषि का उद्देश्य ………… था।
  4. …………. ने जमींदारी प्रथा चलाई। (2016)

उत्तर:

  1. अर्थव्यवस्था
  2. तीन फसलें
  3. जीवन निर्वाह
  4. लॉर्ड कार्नवालिस।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
फसलों के उचित बिक्री मूल्य हेतु सरकार न्यूनतम मूल्य निर्धारण करती है।
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 2.
अंग्रेजों के आगमन के बाद गाँव आत्मनिर्भर हो गए। (2018)
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3.
अनार्थिक खेतों को मिलाकर चकबन्दी के द्वारा आर्थिक खेत बनाए।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान बढ़ता जा रहा है।
उत्तर:
असत्य

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था से क्या आशय है?
उत्तर:
अर्थव्यवस्था से आशय आर्थिक संसाधनों के स्वामित्व से है। इसमें वह सम्पूर्ण क्षेत्र सम्मिलित किया जाता है जहाँ उसकी आर्थिक गतिविधियाँ संचालित होती हैं।

प्रश्न 2.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत के गाँव किस प्रकार के थे?
उत्तर:
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत के गाँव आत्मनिर्भर, समृद्ध एवं खुशहाल थे।

प्रश्न 3.
गाँवों की आत्मनिर्भरता से क्या आशय है? (2011)
उत्तर:
आत्मनिर्भरता से आशय यह है कि ग्रामवासी अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति अपने गाँव में ही पूर्ण कर सकें।

प्रश्न 4.
प्राचीन समय में गाँव की कार्यशील जनसंख्या के प्रमुख अंग कौनसे थे ?
उत्तर:
प्राचीन समय में गाँव की कार्यशील जनसंख्या या समुदाय के तीन प्रमुख अंग थे-कृषक, दस्तकार तथा ग्राम अधिकारी।

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MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीय ग्रामीण कार्यशील समुदाय की संरचना बताइए।
उत्तर:
प्राचीन समय में गाँव की कार्यशील जनसंख्या या समुदाय के तीन प्रमुख अंग थे-कृषक, दस्तकार तथा ग्राम अधिकारी।
(1) कृषक:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग कृषक होता है। प्राचीन समय में प्रत्येक कृषक का गाँव में अपना घर तथा भूमि में हिस्सा होता था। वे साधन सम्पन्न होते थे। खेती का उद्देश्य प्रायः जीवन निर्वाह होता था।

(2) दस्तकार :
गाँव में बढ़ई, लुहार, कुम्हार, कारीगर, मोची, जुलाहे आदि सभी प्रकार के दस्तकार पाये जाते थे। ये ग्रामीण समुदाय की विभिन्न आवश्यकताओं को गाँव में ही पूरा कर देते थे। उनके कार्यों का पारिश्रमिक अनाज या वस्तु के रूप में दिया जाता था।

(3) ग्राम अधिकारी:
ग्राम अधिकारी मुख्यत: तीन प्रकार के होते थे –

  • मुखिया गाँव का प्रमुख अधिकारी होता था। यह किसानों से लगान की वसूली कर शासक को देने के लिए उत्तरदायी था।
  • मालगुजारी का रिकार्ड रखने वाला।
  • कोटवार जो आपराधिक एवं अन्य महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ शासक को प्रदान करता था।

प्रश्न 2.
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् कृषि भूमि का हस्तान्तरण क्यों होने लगा? (2009, 12, 13)
उत्तर:
अंग्रेजों ने लगभग 200 वर्षों तक हमारे देश पर शासन किया। उन्होंने भारत एवं भारतीयों का हर प्रकार से शोषण किया। उन्होंने ऐसी नीतियाँ अपनाई जिसके कारण खुशहाल भारत गरीबी और भुखमरी से जूझने लगा। कृषि एवं उद्योग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। कृषकों में निर्धनता व्याप्त होने के कारण कृषक ऋण लेकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने लगे। किन्तु किन्हीं कारणोंवश ऋणों को वापस न कर पाने के कारण वे ऋणों के बोझ तले दबने लगे। समय पर ऋण चुका नहीं पाने के कारण साहूकार व महाजन ऋण के बदले उनकी जमीन पर कब्जा करने लगे। इस प्रकार कृषि भूमि का हस्तान्तरण कृषकों से साहूकारों एवं महाजनों को होने लगा। परिणामस्वरूप कृषक भूमिहीन एवं बेघर होने लगे। अतः स्पष्ट है कि अंग्रेजों ने जो जमींदारी प्रथा चलाई, उसका कृषि एवं कृषकों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 3.
प्राचीन भारत में वस्तु विनिमय प्रणाली क्यों प्रचलित थी?
(2008, 09, 12)
उत्तर:
प्राचीन भारत में मनुष्य की आवश्यकताएँ सीमित होती थीं। परन्तु वह अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति, स्वयं नहीं कर सकता था। उसे अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य व्यक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता था। उस समय मुद्रा का चलन नहीं था। सभी ग्रामीण दस्तकारों तथा महाजनों से अपनी-अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त कर लेते थे और बदले में अनाज या फिर अन्य वस्तुएँ देते थे। इसी कारण इस प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा गया। पण्डित, वैद्य, नाई, धोबी सभी व्यक्तियों की सेवाओं का भुगतान अनाज या अन्य वस्तुओं के रूप में किया जाता था। अन्य शब्दों में “वस्तु विनिमय प्रणाली, विनिमय की वह प्रणाली होती थी जिसमें वस्तु के बदले वस्तु या सेवा का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता था। इसमें मुद्रा का प्रयोग नहीं किया जाता था।”

प्रश्न 4.
जनसंख्या का गाँव से शहरों की ओर पलायन क्यों होने लगा? समझाइए। (2008, 09, 13)
अथवा
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् जनसंख्या का गाँव से शहरों की ओर पलायन क्यों होने लगा? समझाइए। (2009)
उत्तर:
प्राचीन समय में सीमित आवश्यकताओं व यातायात व संचार के साधनों के अभाव में ग्रामीण जनसंख्या गाँवों में ही निवास करती थी, वह समृद्ध और खुशहाल थी। वह अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति गाँव में ही कर लेती थी। परन्तु अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् खुशहाल व समृद्ध ग्रामीण जनता गरीबी व भुखमरी से जूझने लगी। ग्रामीण बेरोजगार हो गये। कृषक ऋणों के बोझ तले दब गये, उनकी भूमि उनसे छिन गयी। वे भूमिहीन और बेघर हो गये। भूमि की उत्पादकता कम हो गयी। अंग्रेजों द्वारा चलाई गई जमींदारी प्रथा से कृषि एवं कृषकों पर बुरा असर पड़ा। इन सभी बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण जनता शहरों की ओर पलायन करने लगी। 1951 में कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत 82.7 था जो वर्ष 2011 में 68.84 प्रतिशत रह गया। जबकि शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 1951 में 17:3 था जो सन् 2011 में बढ़कर 31.16 हो गया।

आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि बुनियादी सुविधाओं के अभाव में ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन करने लगी है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ बताइए। (2009, 16)
अथवा
अंग्रेजों के आगमन से पूर्व भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की कोई पाँच विशेषताएँ लिखिए। (2017)
उत्तर:
प्राचीन काल में देश की अधिकांश जनसंख्या गाँवों में रहती थी। वस्तुतः गाँव ही अर्थव्यवस्था की प्रमुख इकाई होते थे। उस समय गाँव आत्मनिर्भर, समृद्ध एवं खुशहाल थे। प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था आज के गाँवों से बहुत भिन्न थी। इसकी विशेषताओं को निम्न प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं –
(1) कार्यशील समुदाय की संरचना :
प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में गाँव की कार्यशील जनसंख्या के प्रमुख तीन प्रकार होते थे-कृषक, दस्तकार तथा ग्राम अधिकारी।

(2) आत्मनिर्भरता :
प्राचीन समय में गाँव आत्मनिर्भर एवं स्वावलम्बी हुआ करते थे। ग्रामवासी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति गाँव में ही कर लेते थे। क्योंकि उस समय ग्रामीण जनता की आवश्यकताएँ सीमित होती थीं और यातायात और संचार के साधनों का अभाव होता था।

(3) वस्तु विनिमय प्रणाली :
प्राचीन अर्थव्यवस्था में वस्तु विनिमय प्रणाली का प्रचलन था। सभी ग्रामवासी दस्तकारों व महाजनों से अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ प्राप्त करते थे। इसके बदले उन्हें अनाज और वस्तुएँ दी जाती थीं। पण्डित, वैद्य, नाई, धोबी सभी की सेवाओं का पारिश्रमिक उस समय में अनाज या वस्तुओं के रूप में किया जाता था।

(4)श्रम की गतिहीनता :
प्राचीन अर्थव्यवस्था में परिवहन के साधनों के अभाव के कारण श्रम गतिहीन होता था। परिवहन के साधनों के अतिरिक्त जाति प्रथा, भाषा एवं खान-पान की कठिनाई आदि का प्रभाव भी श्रम की गतिहीनता पर पड़ता था। फलस्वरूप ग्रामवासी अपने गाँव में ही रहना अधिक पसन्द करते थे।

(5) सरल श्रम विभाजन :
उस काल में ग्रामवासियों में आर्थिक क्रियाएँ बँटी हुई थीं। कार्य का बँटवारा दो आधार पर किया जाता था –

  • वंशानुगत या परम्परा के आधार पर; जैसे-कृषि एवं पशुपालन व्यवसाय।
  • जातिगत परम्परा के आधार पर; जैसे-लुहार, सुनार, बढ़ई, मोची, नाई, धोबी आदि।

(6) बाह्य दुनिया से सम्पर्क का अभाव :
प्राचीन समय में हर गाँव अपने आप में सम्पूर्ण इकाई था। जहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति कर लेता था। बाहरी दुनिया से उसका किसी प्रकार का सम्पर्क नहीं रहता था।

(7) राज्य के प्रति उदासीनता :
ग्रामवासियों का मुख्य उद्देश्य जीवन निर्वाह करना होता था। उनका राज्य की गतिविधियों की ओर कोई विशेष रुझान नहीं होता था।

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प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था में क्या परिवर्तन हुए एवं विकास हेतु शासन ने क्या प्रयास किए? लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था में निम्न परिवर्तन हुए
(1) उपलब्ध भूमि के आधार पर समुदाय की संरचना :
वर्तमान में कृषकों को उनके पास उपलब्ध भूमि के स्वामित्व के आधार पर निम्न भागों में बाँट सकते हैं –

  • बड़े कृषक
  • मंझोले कृषक
  • छोटे कृषक तथा
  • भूमिहीन कृषक।

(2) बहुविध फसलें :
फसलें तीन प्रकार की होती हैं-रबी, खरीफ एवं जायद। रबी जाड़ों की फसल, खरीफ वर्षाकाल की फसल और जायद गर्मी की फसल होती है। वर्तमान में परम्परागत फसलों के अतिरिक्त कुछ नगदी फसलों का प्रचलन भी हो गया है, जैसे-फूलों की खेती, तिलहन की खेती आदि।

(3) जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन :
गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, बुनियादी सुविधाओं की कमी आदि अनेक कारणों से ग्रामीण जनता शहरों की ओर पलायन कर रही है। 1951 में कुल जनसंख्या में ग्रामीण जनसंख्या का प्रतिशत 82.7 प्रतिशत था जो वर्ष 2011 में 68.84 प्रतिशत रह गया है। जबकि शहरी जनसंख्या का प्रतिशत 1951 में 17:3 था जो 2011 में बढ़कर 31.16 हो गया। आँकड़ों से स्पष्ट होता है कि ग्रामीण जनसंख्या का शहरों की ओर पलायन होने लगा है।

(4) मौद्रिक प्रणाली का प्रादुर्भाव :
गाँवों में प्राचीन समय में प्रचलित वस्तु विनिमय प्रणाली अब लुप्त हो गयी है। वर्तमान में सभी जगह मुद्रा का प्रयोग होने लगा है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी विनिमय की क्रय-विक्रय की मौद्रिक प्रणाली पूरी तरह लागू हो गयी है।

(5) अपर्याप्त संचार एवं आवागमन सुविधाएँ :
आज प्रत्येक गाँव को संचार एवं परिवहन के साधनों के माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है, परन्तु सड़कें कच्ची होने के कारण वर्षा के समय बहुत से गाँवों का अपने आस-पास के क्षेत्रों में सम्पर्क टूट जाता है। वर्षा के समय ट्रक, बस, रेल, ट्रैक्टर, जीप, मोटर साइकिल व साइकिल का प्रयोग होता है। वर्तमान में अधिकांश गाँव टेलीफोन एवं दूरदर्शन के माध्यम से भी जुड़ गये हैं।

(6) सहायक एवं कुटीर उद्योगों का विकास :
स्वतन्त्रता के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ एवं उन्नत बनाने के उद्देश्य से कुटीर एवं लघु उद्योगों के विकास पर अत्यधिक ध्यान दिया गया है। कृषक और ग्रामवासी अपने खाली वक्त में इन उद्योगों के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि कर पा रहे हैं।

(7) तकनीकी उन्नति :
गाँवों में किसानों ने पुरानी तकनीक को छोड़कर नई को अपनाना शुरू कर दिया है। अब सिंचाई के लिए रहट की जगह पम्प का, हल की जगह हैरो व बैलगाड़ी की जगह ट्रक एवं ट्रैक्टर-ट्राली का प्रयोग किया जाने लगा है। किसान बड़ी मशीनों का प्रयोग भी करने लगे हैं। किसानों द्वारा थ्रेशर का प्रयोग करना अब आम बात हो गयी है।

(8) शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार-आधुनिक ग्रामवासी शिक्षा एवं स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होते जा रहे हैं। गाँव में प्राथमिक, पूर्व माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक सरकारी स्कूल खुल गये हैं। लड़कों के साथ लड़कियाँ भी स्कूल व कॉलेजों में पढ़ने लगी हैं। गाँवों में चिकित्सा की भी पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हो गई हैं।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास हेतु शासन के प्रयास
सरकार द्वारा किये गये प्रयासों की विवेचना निम्न प्रकार है –
(1) भूमि सुधार :

  • सरकार ने जमींदारी प्रथा का उन्मूलन एवं चकबन्दी करके अनार्थिक जोतों को लाभप्रद बनाया है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि बहाल करने और उसके हस्तान्तरण पर रोक लगाने के लिए सरकारी बंजर भूमि, भूदान से प्राप्त भूमि, निर्धारित अधिकतम सीमा से प्राप्त भूमि आदि का वितरण किया गया है।
  • सरकार द्वारा फसल बीमा योजना शुरू की गयी है।
  • गाँवों में वित्त आपूर्ति हेतु ग्रामीण बैंकों तथा सरकारी बैंकों की स्थापना की गयी है।
  • फसलों की उचित बिक्री हेतु सरकार द्वारा न्यूनतम मूल्य का निर्धारण किया गया है। साथ ही फसलों के विपणन एवं भण्डारण की सुविधा भी मुहैया करवायी है।
  • केन्द्र सरकार की प्रधानमन्त्री सड़क योजना के माध्यम से प्राचीन इलाकों को बारहमासी सड़कों से जोड़ने का लक्ष्य रखा है।

(2) आवास स्वच्छता एवं स्वास्थ्य :

  • स्वास्थ्यप्रद आवास व्यवस्था हेतु सरकार ने इन्दिरा आवास योजना चलाई है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता हेतु केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम चलाया गया है।
  • गाँवों में परिवार कल्याण केन्द्र एवं आँगनबाड़ी आदि के माध्यम से खान-पान, स्वास्थ्य शिक्षा सम्बन्धी जागरूकता का प्रचार-प्रसार किया जा रहा है।
  • स्कूलों में सफाई, पेयजल एवं शिक्षण की बुनियादी आवश्यकताओं पर भी ध्यान दिया जा रहा है।

(3) कुटीर एवं लघु उद्योग :

  • अखिल भारतीय हस्त करघा उद्योग बोर्ड, भारतीय कुटीर उद्योग, खादी ग्रामोद्योग आदि संस्थाओं द्वारा उद्योगों की समस्याओं को सुलझाने का प्रयास करना।
  • कुटीर व लघु उद्योगों को वित्तीय सहायता प्रदान करने हेतु लघु उद्योग विकास बैंक की स्थापना करना।
  • विपणन में सहायता प्रदान करने वाले सरकारी विभागों द्वारा इनके उत्पादों की खरीद सुनिश्चित की जाती है। इसके अतिरिक्त देश-विदेश में मेले, प्रदर्शनी व हाट आदि का भी अयोजन किया जाता है।
  • उद्योगों को तकनीकी सहायता प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण केन्द्र स्थापित किये गये हैं।
  • इन उद्योगों को संरक्षण प्रदान करके बड़े उद्योगों से इनकी प्रतिस्पर्धा को समाप्त किया गया है।

उपर्युक्त सरकारी प्रयासों द्वारा गाँवों के विकास का प्रयास किया जा रहा है। हमें राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के आदर्शों को आधार बनाते हुए ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाना है।

प्रश्न 3.
कुटीर एवं लघु उद्योग भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उन्नत बनाने में किस प्रकार सहायक हैं? समझाइए। (2015)
उत्तर:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को उन्नत बनाने में कुटीर एवं लघु उद्योगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। गाँधीजी के अनुसार, “भारत का मोक्ष उसके कुटीर उद्योग-धन्धों में निहित है।” कुटीर और लघु उद्योग भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास की आधारशिला है।

ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सन्दर्भ में लघु व कुटीर उद्योगों का औचित्य –
(1) आर्थिक विकास :
प्रत्येक गाँव में स्थानीय कच्चे माल की उपलब्धता के आधार पर छोटे-छोटे घरेलू उद्योग विकसित किये जा सकते हैं। जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि हुई है और कृषक व ग्रामवासी अपने खाली समय में इन उद्योगों के माध्यम से अपनी आय में वृद्धि कर सकते हैं। आय में वृद्धि होने से उनका जीवन-स्तर भी ऊँचा हो जाएगा।

(2) रोजगार :
गाँधीजी के अनुसार ग्रामोद्योग का अत्यधिक विकास कर हम राष्ट्र की महान् सेवा कर सकते हैं। केवल कुटीर एवं लघु उद्योग ही कम पूँजी के साथ अधिक श्रमिकों को रोजगार प्रदान कर सकते हैं। प्रच्छन्न बेरोजगारी और मौसमी बेरोजगारी के समाधान में लघु एवं कुटीर उद्योगों का विशेष महत्त्व है। इन उद्योगों को श्रमिकों के घरों पर ही बहुत कम पूँजी लगाकर खोला जा सकता है और आवश्यकतानुसार बन्द भी किया जा सकता है; जैसे-दियासलाई, मधुमक्खी पालन, साबुन निर्माण आदि। इस प्रकार स्पष्ट है कि लघु व कुटीर उद्योग बड़े उद्योगों की अपेक्षा ग्रामवासियों की बेरोजगारी दूर करने में सहायक होते हैं।

(3) आय वितरण :
कुटीर एवं लघु उद्योगों का स्वामित्व अधिक से अधिक लोगों के हाथ में होता है, जिससे आय का वितरण समान होता है। इन उद्योगों में श्रमिकों का शोषण भी नहीं होता है। आज देश में धनी और निर्धन के बीच एक बहुत बड़ी खाई है जो वृहत् उद्योगों के बढ़ने के साथ बढ़ती जा रही है।

(4) भारतीय ग्रामीण व्यवस्था के अनुरूप :
भारत कृषि प्रधान राष्ट्र है यहाँ की लगभग 68% जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है, परन्तु कृषकों को वर्षपर्यन्त कार्य नहीं मिल पाता है। इस दृष्टि से भी लघु व कुटीर उद्योग अत्यन्त उपयोगी हैं।

(5) कृषि पर जनसंख्या का भार कम करना :
भारत में कृषि पर जनसंख्या का भार निरन्तर बढ़ता जा रहा है। प्रतिवर्ष लगभग 30 लाख व्यक्ति खेती पर आश्रित होने के लिए बढ़ जाते हैं। जिससे कृषि का विभाजन और अपखण्डन होता है। इस समस्या के समाधान की दृष्टि से लघु व कुटीर उद्योग बहुत उपयोगी हैं।

(6) कलात्मक वस्तुओं का निर्माण :
भारत की परम्परागत कलात्मक वस्तुओं के निर्माण में कुटीर व लघु उद्योगों का विशेष महत्त्व है। इन वस्तुओं के निर्यात से विदेशी मुद्रा की प्राप्ति भी होती है।

(7) तकनीकी ज्ञान की कम आवश्यकता :
पूँजी की भाँति भारत में तकनीकी ज्ञान का अभाव है। लघु उद्योगों व कुटीर उद्योगों को तकनीकी ज्ञान की बहुत कम आवश्यकता पड़ती है। इस दृष्टि से लघु व कुटीर ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं।

(8) शीघ्र उत्पादक उद्योग :
लघु व कुटीर उद्योग शीघ्र उत्पादक उद्योग होते हैं अर्थात् इन उद्योगों में विनियोग करने और उत्पादन प्रारम्भ होने में अधिक समय नहीं लगता है।

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि कुटीर व लघु उद्योगों का ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान है। सरकार ने भी इन क्षेत्रों में इन्हें विकसित करने के अनेक प्रयास किये हैं।

प्रश्न 4.
प्राचीन एवं आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए। (2009, 14, 16)
उत्तर:
प्राचीन एवं आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था का तुलनात्मक अध्ययन

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास - 1

इस प्रकार स्पष्ट होता है कि वर्तमान में गाँव व ग्रामीणों का पहले से अधिक विकास हुआ। ये पहले की अपेक्षा अधिक जागरूक हो गये हैं। वे अपना और अपने परिवार के कल्याण के बारे में सोचते हैं। वे शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य, स्वच्छता, राजनीति के बारे में जानने समझने लगे हैं।

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प्रश्न 5.
एक आदर्श ग्राम की विशेषताएँ क्या-क्या होती हैं ? लिखिए। (2008, 14, 15, 17)
अथवा
एक आदर्श ग्राम की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। (कोई पाँच) (2010, 18)
उत्तर:
देश को अग्रणी बनाने के लिये ग्राम सुधार आवश्यक है। यदि ऐसा हो जाए तो भारत एक समृद्ध, सम्पन्न एवं खुशहाल देश बन सकता है। हमें अपने गाँवों को आदर्श बनाने के प्रयास करने होंगे। एक आदर्श ग्राम की अग्रलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए –

  • उन्नत कृषि व्यवस्था :
    कृषि के विकास हेतु चकबन्दी, सामूहिक कृषि का प्रयोग, उपज में वृद्धि हेतु जैविक तथा रासायनिक उर्वरक, कृषि के लिये उन्नत बीजों का प्रयोग एवं सिंचाई की आधुनिक सुविधाओं का प्रयोग किया जाना चाहिए। उपज के भण्डारण हेतु उपयुक्त व्यवस्था एवं सहकारिता एवं शासकीय सहायता से उपज की बिक्री की व्यवस्था होनी चाहिए।
  • आवासीय सुविधाएँ :
    गाँवों में आवास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। मकान साफ-सुथरे होने चाहिए। साथ ही घर में स्नानगृह, शौचालय आदि की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। जानवरों के लिये अलग बाड़ा एवं गोबर से बायोगैस बनाने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
  • पेयजल व्यवस्था :
    ग्रामवासियों के लिये स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था की जानी चाहिए। इसके लिये कुएँ, तालाब, बाबड़ी आदि का जीर्णोद्वार होना चाहिए। ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि उसमें कचरा आदि न जा पाये। ग्रामवासियों को भू-जल संवर्द्धन का महत्त्व समझाना चाहिए।
  • शिक्षा का व्यवस्था :
    गाँव में प्रत्येक बच्चे को प्राथमिक शिक्षा देने का प्रयास करना चाहिए। बालिका शिक्षा के प्रति विशेष जागरूकता अपनानी चाहिए। गाँवों में परम्परागत शिक्षा के साथ-साथ प्रौढ़ । शिक्षा की व्यवस्था भी होनी चाहिए।
  • स्वास्थ्य सुविधाएँ :
    प्रत्येक गाँव में प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र व अनुभवी चिकित्सक की व्यवस्था होनी चाहिए। चिकित्सा केन्द्र में आवश्यकतानुसार दवाइयों का प्रबन्ध होना चाहिए जिससे ग्रामवासियों को कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़े। साथ ही शासन की विभिन्न स्वास्थ्य सम्बन्धी योजनाओं का लाभ ग्रामवासी प्राप्त कर सकें।
  • परिवार व संचार सुविधाएँ :
    गाँवों में परिवहन व संचार साधनों की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। परिवहन व्यवस्था हेतु पक्की सड़कें होनी चाहिए जो आस-पास के कस्बों और गाँवों को जिला मुख्यालय से जोड़े। टेलीफोन, डाकघर तथा इण्टरनेट की सुविधा भी उपलब्ध होनी चाहिए।
  • ऊर्जा एवं पर्यावरण जागरूकता :
    गाँवों में बिजली की व्यवस्था होनी चाहिए। सम्भव हो तो वैकल्पिक ऊर्जा का प्रयोग की समय-समय पर करना चाहिए। ग्रामवासियों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करनी चाहिए। वृक्षों के उपयोग व वृक्षारोपण के प्रति ग्रामीणों को सक्रिय रहना चाहिए जिससे गाँवों में हरियाली व्याप्त हो सके।
  • औद्योगिक विकास :
    गाँवों में कृषि पर आधारित उद्योगों का विकास होना चाहिए, जैसे-डेयरी उद्योग, कुक्कुट उद्योग आदि। गाँवों में ऐसे उद्योगों का विकास होने से ग्रामवासियों को उन्हीं के गाँव में रोजगार प्राप्त हो सकता है। जिससे उनकी आय में वृद्धि हो सकती है।
  • वित्तीय सुविधाएँ :
    गाँवों में वित्तीय सुविधाओं के लिये ग्रामीण बैंक व सहकारी बैंक आदि की सुविधा होनी चाहिए। गाँवों में स्वसहायता बचत समूहों के निर्माण के प्रति ग्रामीणों में जागरूकता पैदा करके उनकी बचत की आदत में वृद्धि करायी जा सकती है।
  • प्रशासनिक व्यवस्था :
    गाँवों में पंचायत व्यवस्था होनी चाहिए। ग्राम पंचायत के सदस्यों व सरपंच को गाँव के विकास के प्रति जागरूक होना चाहिए। जिससे गाँवों में स्वच्छता, पेयजल व्यवस्था, स्वास्थ्य व सुरक्षा सम्बन्धी व्यवस्थाएँ ग्रामवासियों को प्राप्त हो सकें। ग्राम पंचायत में प्रशासकीय पारदर्शिता बढ़ानी चाहिए।

प्रश्न 6.
किसी गाँव को आत्मनिर्भर व विकासशील बनाने के लिये क्या-क्या प्रयास करने की आवश्यकता होती है? लिखिए। (2009)
उत्तर:
किसी गाँव को आत्मनिर्भर व विकासशील बनाने के लिये निम्नलिखित प्रयासों की आवश्यकता होती है –

  • सिंचाई के साधनों का विकास :
    गाँवों में कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिये सिंचाई के साधनों पर ध्यान देना आवश्यक है। इसके लिये नहरों, कुओं, तालाबों एवं नलकूपों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं जन जागृति के प्रयास :
    ग्रामीणों को जैविक खाद बनाने की विधि व उसके महत्त्व से परिचित कराने हेतु प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जाने चाहिए तथा गाँवों में स्वच्छता बनाये रखने के लिये जन जागृति के प्रयास किये जाने चाहिए।
  • भण्डार गृहों की स्थापना :
    गाँवों में कृषि उत्पादन को सुरक्षित रखने के लिये भण्डार गृहों की स्थापना की जाए जिससे उनकी फसल खराब न हो पाये।
  • पशुओं की दशा में सुधार :
    गाँवों में पशुओं के महत्त्व को देखते हुए उनकी हीन दशा सुधारने के लिये अच्छे व पौष्टिक चारे, पेयजल, चिकित्सा एवं नस्ल सुधारने हेतु पर्याप्त प्रयास करने चाहिए।
  • कृषि आधारित उद्योगों का विकास :
    कृषि आश्रित लघु उद्योगों; जैसे-डेयरी उद्योग, मुर्गी पालन उद्योग आदि के विकास पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इससे रोजगार के अवसरों में भी वृद्धि होगी।
  • अनावश्यक व्यय को रोकना :
    न्यूनतम आय होने पर भी ग्रामवासी पारिवारिक व सामाजिक कार्यक्रमों पर अधिक खर्च करते हैं। उदाहरणार्थ-विवाह कार्यों पर बीस हजार से दस लाख की राशि, शोक कार्यों पर दस से चालीस हजार की राशि व त्यौहारों पर 500 से 2000 की राशि खर्च कर दी जाती है। अतः व्यर्थ के व्ययों को रोकने के प्रयास किये जाने चाहिए तथा ग्राम पंचायत में इसकी चर्चा की जानी चाहिए।
  • बचत की प्रवृत्ति को बढ़ावा :
    गाँवों में स्वसहायता बचत समूहों के निर्माण के प्रयास किये जा सकते हैं। जिससे ग्रामवासियों में बचत की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिले।
  • शिक्षा का प्रसार :
    ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार एवं प्रचार की आवश्यकता है। जिससे किसानों को रूढ़िवादिता, अन्धविश्वासों के विचारों से उबारा जा सके। आकाशवाणी और टेलीविजन इस क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समाजवादी अर्थव्यस्था में संसाधनों पर कैसा नियन्त्रण होता है?
(i) निजी नियन्त्रण
(ii) सरकारी नियन्त्रण
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) सरकारी नियन्त्रण

प्रश्न 2.
मिश्रित अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर किस प्रकार का नियन्त्रण पाया जाता है?
(i) निजी नियन्त्रण
(ii) सरकारी नियन्त्रण
(iii) (i) और (ii) दोनों
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) निजी नियन्त्रण

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प्रश्न 3.
भारतीय अर्थव्यवस्था है
(i) पूँजीवादी
(ii) समाजवादी
(iii) मिश्रित
(iv) साम्यवादी।
उत्तर:
(iii) मिश्रित

प्रश्न 4.
अकबर के शासन काल में सही ढंग से भू-मापन किसने कराया? (2009)
(i) मोहम्मद तुगलक
(ii) टोडरमल
(iii) तानसेन
(iv) शाहजहाँ।
उत्तर:
(ii) टोडरमल

प्रश्न 5.
बड़े कृषक किसे कहते हैं?
(i) जिसके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है
(ii) जिसके पास 2 हेक्टेयर से भी कम भूमि है
(iii) जिसके पास 20 हेक्टेयर से अधिक भूमि है
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(i) जिसके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है

प्रश्न 6.
छोटे कृषकों की श्रेणी में वे कृषक आते हैं
(i) जिनके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है
(ii) जिनके पास 2 हेक्टेअर से भी कम भूमि है
(iii) जिनके पास 20 हेक्टेअर से अधिक भूमि है
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ii) जिनके पास 2 हेक्टेअर से भी कम भूमि है

प्रश्न 7.
जमींदारी प्रथा के जन्मदाता कौन थे?
(i) लॉर्ड कार्नवालिस
(ii) लॉर्ड कर्जन
(iii) लॉर्ड माण्टबेटन
(iv) लॉर्ड लेनिन।
उत्तर:
(i) लॉर्ड कार्नवालिस

प्रश्न 8.
सर्वप्रथम बंगाल में जमींदारी प्रथा किस वर्ष में प्रारम्भ की गई?
(i) 1870
(ii) 1875
(iii) 1793
(iv) 17451
उत्तर:
(iii) 1793

रिक्त स्थान की पूर्ति

  1. समाजवादी अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर ……… नियन्त्रण होता है।
  2. वस्तुओं का, वस्तुओं के बदले में लेन-देन …………. कहलाता है।
  3. छोटे कृषक वे होते हैं जिनके पास ………… से भी कम भूमि है।

उत्तर:

  1. सरकार का
  2. वस्तु विनियम
  3. 2 हेक्टेअर।

सत्य/असत्य

प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था आयात पर निर्भर थी। (2010)
उत्तर:
असत्य

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प्रश्न 2.
अकबर के शासनकाल में टोडरमल ने सही ढंग से भू मापन कराया।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 3.
मझोले कृषक वे होते हैं जिनके पास 5 हेक्टेअर से अधिक भूमि होती है।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 4.
प्राचीन ग्रामीण अर्थव्यवस्था में वस्तु विनियम प्रणाली प्रचलित थी। (2009)
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5.
भारत में आज गाँवों की संख्या 6,00,000 है। (2011)
उत्तर:
सत्य

सही जोड़ी मिलाइए

MP Board Class 9th Social Science Solutions Chapter 15 ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास - 2

उत्तर:

  1. → (ङ)
  2. → (घ)
  3. → (क)
  4. → (ग)
  5. → (ख)

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

प्रश्न 1.
अंग्रेजों के आगमन के पूर्व भारत के गाँव किस प्रकार के थे?
उत्तर:
आत्मनिर्भर

प्रश्न 2.
ग्रामीण अर्थव्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग। (2012)
उत्तर:
कृषक

प्रश्न 3.
जिनके पास 2 से लेकर 10 हेक्टेअर भूमि है। (2012)
उत्तर:
बड़े कृषक

प्रश्न 4.
वस्तुओं का, वस्तुओं के बदले लेन-देन की प्रणाली। (2009, 10)
उत्तर:
वस्तु विनियम प्रणाली

प्रश्न 5.
अर्थव्यवस्था में संसाधनों पर निजी नियन्त्रण कहलाता है। (2011)
उत्तर:
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था

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प्रश्न 6.
सिंचाई सुविधाएँ बढ़ाने के लिये किस शासक ने नहरें प्रमुखता से बनाई? (2008)
उत्तर:
मोहम्मद तुगलक

प्रश्न 7.
ग्रामीण क्षेत्रों के विकास हेतु किस उद्योग का अत्यधिक महत्त्व है? (2013)
उत्तर:
कुटीर एवं लघु उद्योग।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की होती है :

  1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
  2. समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा
  3. मिश्रित अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 2.
एक गाँव की अर्थव्यवस्था से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक गाँव की अर्थव्यवस्था में वहाँ पर स्थित खेत, दुकानें और अन्य सभी प्रतिष्ठान जहाँ व्यक्ति काम करते हैं, शामिल किये जाते हैं। इस प्रकार अर्थव्यवस्था जीविकोपार्जन का क्षेत्र होता है।

प्रश्न 3.
भारत कैसा देश है और यहाँ का मुख्य व्यवसाय क्या है?
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहाँ का मुख्य व्यवसाय कृषि है।

प्रश्न 4.
वैदिक काल में अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्या था?
उत्तर:
वैदिक काल में अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था। पशुपालन, आखेट और दस्तकारी का भी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान था।

प्रश्न 5.
गुणवत्ता की दृष्टि से कहाँ की मलमल विश्व प्रसिद्ध है?
उत्तर:
गुणवत्ता की दृष्टि से ढाका की मलमल विश्व प्रसिद्ध है। अतः वस्त्र निर्माण का इस युग में विशेष विकास हुआ।

प्रश्न 6.
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है?
उत्तर:
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास को तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं –

  1. अंग्रेजों के आगमन के पूर्व ग्रामीण अर्थव्यवस्था
  2. अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था तथा
  3. स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 7.
प्राचीन समय में ग्रामीण समुदाय के कार्यों का पारिश्रमिक किस रूप में दिया जाता था?
उत्तर:
प्राचीन समय में गाँव में बढ़ई, लुहार, कुम्हार, कारीगर, मोची, जुलाहे आदि का पारिश्रमिक अनाज या वस्तु के रूप में दिया जाता था।

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प्रश्न 8.
ग्राम अधिकारी के रूप में मुखिया का क्या कार्य होता था?
उत्तर:
मुखिया गाँव का प्रमुख अधिकारी होता था। इसका कार्य किसानों से लगान की वसूली कर शासक को देना था।

प्रश्न 9.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते थे?
उत्तर:
वस्तु विनिमय प्रणाली, विनिमय की वह प्रणाली होती थी जिसमें वस्तु के बदले वस्तु या सेवा का प्रत्यक्ष आदान-प्रदान होता था। इसमें मुद्रा का प्रयोग नहीं किया जाता था।

प्रश्न 10.
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् भारत के गाँवों की क्या दशा थी?
उत्तर:
अंग्रेजों ने भारत और भारतीयों का हर प्रकार से शोषण किया। उन्होंने ऐसी नीतियाँ अपनाईं जिसके कारण खुशहाल भारत गरीबी और भुखमरी से जूझने लगा। कृषि और उद्योग पर भी बुरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 11.
ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन क्यों कर रही है?
उत्तर:
गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण जनसंख्या शहरों की ओर पलायन कर रही है।

प्रश्न 12.
न्यूनतम मूल्य का निर्धारण कौन करता है?
उत्तर:
न्यूनतम मूल्य का निर्धारण सरकार द्वारा फसलों की उचित बिक्री मूल्य हेतु किया जाता है।

प्रश्न 13.
आदर्श ग्राम कैसा होना चाहिए?
उत्तर:
एक आदर्श ग्राम में कृषि विकसित होनी चाहिए, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं आवास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। इसके साथ ग्राम में स्वच्छता के प्रति जागरूकता एवं उपलब्ध संसाधनों का सम्पूर्ण प्रयोग होना चाहिए।

प्रश्न 14.
चकबन्दी से क्या आशय है?
उत्तर:
चकबन्दी वह प्रक्रिया है जिसमें किसान की छितरी छोटी-छोटी जोतों के बदले उसी किस्म की उतने ही आकार के एक या दो भूखण्ड दे दिये जाते हैं। यह ऐच्छिक और अनिवार्य दोनों होती है।

प्रश्न 15.
भूमि सुधार क्या है?
उत्तर:
भूमि सुधार किसी संगठन या भूमि व्यवस्था की संस्थागत व्यवस्था में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन से है। भूमि स्वामित्व एवं भूमि जोत में होने वाला सुधार भूमि सुधार के अन्तर्गत आता है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था से क्या आशय है ? यह कितने प्रकार की हो सकती है?
अथवा
अर्थव्यवस्था का आशय स्पष्ट कीजिए। (2008, 09)
उत्तर:
अर्थव्यवस्था एक प्रणाली है जिसके द्वारा मनुष्य जीविकोपार्जन करता है तथा अर्थव्यवस्था एक क्षेत्र विशेष में विद्यमान उत्पादन इकाइयों से बनती है। दूसरे शब्दों से हम कह सकते हैं कि अर्थव्यवस्था का अर्थ एक देश के उन सभी खेतों, कारखानों, दुकानों, खदानों, बैंकों, सड़कों, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, अस्तपाल आदि से है जो लोगों को रोजगार देते हैं एवं वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं तथा जिनका प्रयोग वहाँ की जनता द्वारा किया जाता है। अर्थव्यवस्था तीन प्रकार की हो सकती है-

  1. पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
  2. समाजवादी अर्थव्यवस्था तथा
  3. मिश्रित अर्थव्यवस्था।

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प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् आधुनिक ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या का 64.84 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करती है तथा शहरी क्षेत्रों से केवल 31.16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इसी प्रकार आज गाँवों की संख्या 6,38,588 है जबकि शहरों की संख्या मात्र 5,161 ही है। आज भी भारत गाँवों का देश है। यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। देश की दो-तिहाई जनसंख्या अपनी आजीविका के लिये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर है।

परन्तु देश के सकल उत्पाद में कृषि का योगदान केवल 26 प्रतिशत है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से हुआ है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही है। गाँवों का स्वरूप बदलने लगा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे। जिसमें से प्रमुख परिवर्तन मौद्रिक प्रणाली का प्रार्दुभाव, सहायक एवं कुटीर उद्योगों का विकास, तकनीकी उन्नति, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, संचार एवं आवागमन की पर्याप्त सुविधाएँ आदि हैं।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद ग्रामीण समुदाय की संरचना में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर:
ग्रामीण समुदाय की संरचना-स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् कृषकों को उनके पास उपलब्ध भूमि के स्वामित्व के आधार पर चार भागों में बाँटा जा सकता है –

  • बड़े कृषक :
    बड़े कृषकों के अन्तर्गत वह कृषक आते हैं जिनके पास 2 हेक्टेअर से लेकर 10 हेक्टेअर तक भूमि है।
  • मॅझोले कृषक :
    मँझोले कृषक वह होते हैं जिनके पास 2 हेक्टेअर या उससे कुछ अधिक भूमि होती है।
  • छोटे कृषक :
    छोटे कृषक वह कहलाते हैं जिनके पास मात्रं 2 हेक्टेअर से भी कम भूमि होती है।
  • भूमिहीन कृषक :
    भूमिहीन कृषकों के पास अपनी कोई भूमि नहीं होती है। वह बँटाई पर भूमि लेकर खेती करते हैं या फिर दूसरों के खेतों में मजदूरी करते हैं।

प्रश्न 4.
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
अथवा
अंग्रेजों के आगमन के पश्चात् भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ लिखिए। (2008, 18)
उत्तर:
भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ

  • दस्तकारी एवं हस्तकला का पतन :
    अंग्रेजों की नीतियों के फलस्वरूप गाँवों में दस्तकारी व हस्तकला का पतन होने लगा। गाँव के दस्तकार बेरोजगार हो गये। गाँवों की समृद्धि और खुशहाली समाप्त हो गयी।
  • आत्मनिर्भरता की समाप्ति :
    कृषि के व्यापारीकरण के परिणामस्वरूप उपज को गाँवों के बाहर ले जाकर बेचा जाने लगा तथा गाँव की आवश्यकताओं की पूर्ति का सामान भी बाहर से आने लगा। इस प्रकार गाँवों की आत्मनिर्भरता स्वयं ही समाप्त हो गयी।
  • कृषि भूमि का हस्तान्तरण :
    निर्धनता के फलस्वरूप कृषक, महाजनों व साहूकारों से ऋण लेने लगे; पर ऋण की वापसी न कर पाने से महाजनों व साहूकारों ने उनकी जमीन पर कब्जा कर लिया। इस प्रकार कृषि भूमि का हस्तान्तरण साहूकारों व महाजनों को होने लगा। फलस्वरूप कृषक भूमिहीन हो गये।
  • कृषि का पिछड़ापन :
    अंग्रेजों द्वारा शुरू की गयी जमींदारी प्रथा का कृषि व कृषकों पर बहुत बुरा असर पड़ा। कृषक निर्धन एवं ऋणग्रस्त होते गये। शासन और जमींदारों ने भूमि की उत्पादकता और सुधार की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जिससे भूमि की उत्पादकता कम होती गई। परिणामस्वरूप किसानों का शोषण किया जाने लगा।

प्रश्न 5.
किसी ग्राम का आर्थिक अध्ययन करते समय हमें किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर:
आर्थिक अध्ययन से तात्पर्य है कि एक क्षेत्र विशेष में उपलब्ध संसाधन, वहाँ की जनसंख्या, आजीविका के साधन, आर्थिक स्थिति, परिवहन व संचार के साधन, वानिकी, उद्यानिकी, हाट-बाजार, वित्त, सामाजिक एवं सामुदायिक स्थितियों का अध्ययन करना। किसी गाँव के आर्थिक अध्ययन के लिए सबसे पहले अध्ययन का उद्देश्य निर्धारित करना होता है। तत्पश्चात् अध्ययन का क्षेत्र सुनिश्चित कर अध्ययन की योजना बनायी जाती है। किसी भी अध्ययन के लिये आवश्यक सांख्यिकी आँकड़ों की भी आवश्यकता पड़ती है। इसके लिये सामान्यतः तालिका और प्रश्नावली का निर्माण किया जाता है।

उस गाँव का अध्ययन करके, उस गाँव में उपलब्ध संसाधनों व सुविधाओं को ध्यान में रखकर, उस गाँव की असुविधाओं व समस्याओं के समाधान के लिये ग्रामवासियों का सहयोग लेना श्रेयस्कर होता है।

MP Board Class 9th Social Science Chapter 15 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् ग्रामीण अर्थव्यवस्था की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार वर्तमान में भारत की कुल जनसंख्या का 64.84 प्रतिशत भाग गाँवों में निवास करती है तथा शहरी क्षेत्रों से केवल 31.16 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है। इसी प्रकार आज गाँवों की संख्या 6,38,588 है जबकि शहरों की संख्या मात्र 5,161 ही है। आज भी भारत गाँवों का देश है। यहाँ की अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान है। देश की दो-तिहाई जनसंख्या अपनी आजीविका के लिये प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर है। परन्तु देश के सकल उत्पाद में कृषि का योगदान केवल 26 प्रतिशत है। पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा देश का आर्थिक विकास तीव्र गति से हुआ है। साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही है। गाँवों का स्वरूप बदलने लगा है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में अनेक परिवर्तन दृष्टिगोचर होने लगे। जिसमें से प्रमुख परिवर्तन मौद्रिक प्रणाली का प्रार्दुभाव, सहायक एवं कुटीर उद्योगों का विकास, तकनीकी उन्नति, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, संचार एवं आवागमन की पर्याप्त सुविधाएँ आदि हैं।

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