MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 5 उधार का अनंत आकाश (व्यंग्य, शरद जोशी)
उधार का अनंत आकाश अभ्यास
बोध प्रश्न
उधार का अनंत आकाश अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
यह पाठ किन लोगों को लक्ष्य करके लिखा गया है?
उत्तर:
यह पाठ उधार लेने वाले तथा उधार देने वालों को लक्ष्य करके लिखा गया है।
प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार मनुष्य और पशु में क्या अन्तर है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार मनुष्य और पशु में यह अन्तर है कि मनुष्य तो उधार लेता है पर पशु नहीं।
प्रश्न 3.
लेखक ने इस पाठ में अन्वेषी’ किसे कहा है?
उत्तर:
लेखक ने इस पाठ में उधार लेने वाले को अन्वेषी कहा है।
प्रश्न 4.
मानव जाति किन दो भागों में बँटी हुई है?
उत्तर:
मानव जाति उधार लेने वाले और उधार देने वाले दो भागों में बँटी हुई है।
प्रश्न 5.
अमेरिका की खोज किसने की थी?
उत्तर:
अमेरिका की खोज ‘कोलम्बस’ ने की थी।
प्रश्न 6.
कर्ज से दबा हुआ आदमी क्या खोजता है?
उत्तर:
कर्ज से दबा हुआ आदमी निराश होकर आत्महत्या का रास्ता खोजता है।
उधार का अनंत आकाश लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक ने उधार लेने को आशावादिता का प्रमाण क्यों कहा है?
उत्तर:
लेखक ने उधार लेने को आशावादिता का प्रमाण इसलिए कहा है कि जो व्यक्ति अपने जीवन से निराश हो जाता है, वह आत्महत्या जैसे पाप को करता है लेकिन जो आशावान व्यक्ति है वह उधार ले लेकर अपने जीवन को सुखद एवं गतिशील बनाये रखता है। सम्पूर्ण संसार की उन्नति उधार पर ही टिकी हुई है।
प्रश्न 2.
व्यक्ति लाइट वेट चैम्पियन’ से कब ‘हेवीवेट चैम्पियन’ बनता है?
उत्तर:
व्यक्ति ‘लाइट वेट चैम्पियन’ से तभी ‘हेवीवेट चैम्पियन’ बनता है जब वह कर्ज को भार नहीं मानता है अपितु उससे उत्साहित होता जाता है। आज जिसने सौ रुपये कर्ज लिए हैं वहीं कल हजार रुपये कर्ज लेगा और इस प्रकार धीरे-धीरे वह ‘लाइटवेट चैम्पियन’ से ‘हैवीवेट चैम्पियन’ बन जाएगा।
प्रश्न 3.
किसी भारतीय को चाँद पर भेजने के पीछे लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
किसी भारतीय को रॉकेट में बिठाकर चाँद पर भेजने के पीछे लेखक का यह आशय है कि भारतीय लोग उधार की विद्या में बड़े पारंगत होते हैं वे वहाँ जाकर भी कुछ-न-कुछ उधार ले आएँगे।
प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार उधार लौटाने वाले परिहास के पात्र क्यों होते हैं?
उत्तर:
उधार लौटाने वाले परिहास के पात्र इसलिए होते हैं क्योंकि ऐसे लोग जीवन में कुछ भी नहीं कर पाते क्योंकि वे धारा के विरुद्ध तैरने का प्रयास करते हैं। उधार की धारा सतत् प्रवाहित रहती है और इसी से सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक जीवन के खेत हरे-भरे रहते हैं। यह एक ऐसी धारा है जो मनुष्य को जीवन्त रखती हैं। इस देश में पुनर्जन्म का सिद्धान्त चलता है अतः उधार कला विशेषज्ञों को यह नयी भूमि प्रदान करता है। उधार लेने वाला और देने वाला दोनों ही सोचते हैं कि यदि किसी कारण उधार का हिसाब इस जन्म में चुकता नहीं हुआ तो अगले जन्म में हो जाएगा अतः वे निश्चिन्त रहते हैं। इसी कारण उनमें आशावादिता का संचार रहता है और निराशा उनसे कोसों दूर रहती है।
प्रश्न 5.
‘हमें कर्ज के पानी से निकालोगे तो हम तड़पने लगेंगे’ का अर्थ बताइए।
उत्तर:
इस कथन का अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति सिर से पैर तक कर्ज में उसी तरह डूबा हुआ है जैसे मछली पानी में डूबी रहती है। मछली का पानी में डूबे रहना ही उसका सफल जीवन है। इसी प्रकार मनुष्य का भी कर्ज में डूबे रहना उसका सफल जीवन है। यदि कर्ज में डूबे मनुष्य को कर्ज से निकाला तो वह मछली के समान बिना पानी के तड़पने लगेगा। कहने का भाव यह है कि उसे तो सच्चा सुख कर्ज में डूबे रहने पर ही मिलता है।
उधार का अनंत आकाश दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
क्रेडिट फेसिलिटी’सेलेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
क्रेडिट फेसिलिटी’ से लेखक का आशय है ‘उधार की सुविधा’। कहने का भाव यह है कि हमारे देश में ‘उधार की सुविधा’ मजबूत है क्योंकि यहाँ पुनर्जन्म का सिद्धान्त चलता है। आदमी जानता है कि अगर इस जन्म में नहीं चुका सके तो अगले जन्म में चुका देंगे। मनुष्य की आत्मा स्थायी पूँजी है इसकी साख पर हम कितना भी उधार ले सकते हैं।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए।
(क) “हम सिर से पैर तक कर्ज में डूबे रहते हैं पर क्या मछली को आप पानी में डुबो सकते हैं। वही तो उसका जीवन है। हमें कर्ज के इस पानी से निकालोगे तो हम तड़पने लगेंगे। हम फिर पानी में कूदेंगे यानी कर्ज ले लेंगे।”
उत्तर:
लेखक कहता है कि जिस व्यक्ति को कर्ज लेने का चस्का लग जाता है वह उसके बिना जीवित नहीं रह सकता। कर्ज में डूबे व्यक्ति की तुलना लेखक पानी में रहने वाली मछली से करते हुए कहता है कि जिस प्रकार मछली सदैव पानी में डूबी रहती है, बिना पानी के वह जीवित ही नहीं रह सकती उसी प्रकार जिस व्यक्ति को कर्ज लेने की आदत पड़ जाती है, वह उसके बिना जीवित ही नहीं रह सकता। चाहे कोई व्यक्ति सिर से लेकर पैर तक कर्ज में डूबा हुआ क्यों न हो वह उसी में अपने जीवन की सार्थकता समझता है।
जिस प्रकार पानी के बिना मछली का जीवित रहना सम्भव नहीं है उसी प्रकार उधार लेने वाले का भी जीवन बिना उधार के सम्भव नहीं है। यदि हमने कर्जदार को कर्ज रूपी पानी से बाहर निकाल दिया तो वह उसी प्रकार तड़पने लगेगा जिस प्रकार बिना पानी के मछली तड़पती है। अत: कर्जदार के जीवन को बचाने के लिए एक ही मार्ग है कि उसे पुन: उसी जाल में फंसा दिया जाए जिससे वह निकाला गया था अर्थात् उसे पुनः कर्ज के व्यूह में फंसा दिया जाए।
(ख) “उधार की सीमा आकाश है, चाँद हैं, तारे हैं, हमें मिलेगा, मिलता रहेगा, देखो वह चाँद की ओर एक रॉकेट चला। कोई इसमें किसी भारतीय को बिठा दें।”
उत्तर:
लेखक कहता है कि उधार की कोई सीमा नहीं होती अर्थात् वह सीमा रहित होती है। उधार लेना उतना ही असीम है जितना कि आकाश। चन्द्रमा और तारे जिस प्रकार आकाश में अपनी चमक सदैव बनाये रखते हैं उसी प्रकार इस देश में उधार की चमक भी सदैव बनी रहेगी। उधार हमें पहले भी मिला था आज भी मिल रहा है और भविष्य में भी मिलता रहेगा। इस देश के लोगों की अक्ल की दाद देनी होगी कि वे प्रत्येक स्थिति और समय पर उधार लेने का सुयोग बना लेते हैं।
चाहे चन्द्रमा की ओर जाने वाला रॉकेट ही क्यों न हो। आप उस रॉकेट में भारतीय व्यक्ति को बिठा दीजिए। वह वहाँ से भी कुछ-न-कुछ उधार लेकर ही आयेगा। यह संसार कितना सुखमय है कि यहाँ उधार का कोई टोटा नहीं है। यह आकाश कितना असीम फैला हुआ है इसी के समान हमें उधार देने वालों की कोई कमी नहीं है। बस हमारे मन में केवल यह भावना होनी चाहिए कि हमें अभी थोड़ा-सा कर्ज चाहिए। इस अनोखे वचन के बोलते ही आपकी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी।
प्रश्न 3.
‘उधार का अनन्त आकाश’ में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक ने इस पाठ के माध्यम से उधार लेने तथा न लौटाने की वृत्ति पर करारे प्रहार किये हैं। इसके द्वारा वे कहना चाहते हैं कि जैसे आकाश का अन्त नहीं होता है वैसे ही उधार लेने की कोई सीमा नहीं होती है।
उधार लेना और उसे न लौटाना दोनों ही कला हैं। जो उधार लेता है, वह निरन्तर प्रयास, धीरज और व्यवहार कुशलता के सहारे उसे न लौटाने में भी सिद्द हो जाता है। लेखक व्यंग्यात्मक लहजे में लिखते हैं कि उधार लेना आशावादी दृष्टि का परिचायक है और उधार न लेना निराशा का प्रतीक है। लेखक इस पाठ में निहित व्यंग्य को व्यक्त करते हुए आगे कहते हैं कि उधार लेने वाला शोधकर्ता होता है। वह उधार लेने के लिए नये-नये उपाय खोजता है। विकास के मार्ग पर अग्रसर होने के लिए नये-नये मार्ग खोजने से ही काम चलेगा। लेखक व्यंग्य की उच्चता को स्पर्श करता हुआ कहता है, कि इस देश में उधार की अपार सम्भावना है।
प्रश्न 4.
“ओह! यह सृष्टि कितनी सुखमय है, पर आकाश कितना असीम फैला है और फिलहाल हमें थोड़ा-सा कर्जचाहिए।” इस पंक्ति की सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
लेखक कहता है कि उधार की कोई सीमा नहीं होती अर्थात् वह सीमा रहित होती है। उधार लेना उतना ही असीम है जितना कि आकाश। चन्द्रमा और तारे जिस प्रकार आकाश में अपनी चमक सदैव बनाये रखते हैं उसी प्रकार इस देश में उधार की चमक भी सदैव बनी रहेगी। उधार हमें पहले भी मिला था आज भी मिल रहा है और भविष्य में भी मिलता रहेगा। इस देश के लोगों की अक्ल की दाद देनी होगी कि वे प्रत्येक स्थिति और समय पर उधार लेने का सुयोग बना लेते हैं। चाहे चन्द्रमा की ओर जाने वाला रॉकेट ही क्यों न हो। आप उस रॉकेट में भारतीय व्यक्ति को बिठा दीजिए। वह वहाँ से भी कुछ-न-कुछ उधार लेकर ही आयेगा। यह संसार कितना सुखमय है कि यहाँ उधार का कोई टोटा नहीं है। यह आकाश कितना असीम फैला हुआ है इसी के समान हमें उधार देने वालों की कोई कमी नहीं है। बस हमारे मन में केवल यह भावना होनी चाहिए कि हमें अभी थोड़ा-सा कर्ज चाहिए। इस अनोखे वचन के बोलते ही आपकी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी।
उधार का अनंत आकाश भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
पाठ में बड़ी-छोटी, सुख-दुःख शब्द आये हैं, आप भी ऐसे पाँच शब्द सोचकर लिखो जिनमें किसी शब्द का विलोम शब्द शामिल हो।
उत्तर:
- आशा – निराशा
- हानि – लाभ
- जीवन – मृत्यु
- जय – पराजय
- सुपुत्र – कुपुत्र।
प्रश्न 2.
नीचे नाक से सम्बन्धित कुछ मुहावरे दिए गए हैं, इनके अर्थ समझकर प्रत्येक मुहावरे से वाक्य बनाइए।
उत्तर:
- नाकों चने चबाना-नदी पर पुल बाँधने पर इंजीनियरों को नाकों चने चबाने पड़े।
- नाक में दम करना-आज नौकर ने मालिक की नाक में दम कर दिया है।
- नाक रखना-हमें हर हाल में अपनी नाक रखनी चाहिए।
- नाक ऊँची करना-हमें हमेशा ऐसे काम करने चाहिए जिससे हमारी नाक ऊँची हो।
- नाक नीची करना-हमें कभी भी ऐसे काम नहीं करने चाहिए जिससे हमारी नाक नीची हो।
- नाक-भौं एक करना-अधिक काम आ पड़ने पर रमेश ने अपनी नाक-भौं एक कर ली है।
- नाक चढ़ाना-सतीश से जब भी कोई काम करने कहो वह हमेशा नाक चढ़ा लिया करता है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी मानक रूप लिखिए।
उत्तर:
सिर्फ = केवल; कर्ज = ऋण; इंकार = अस्वीकार; शरीफ = सज्जन; शराफत = सज्जनता; खुद = स्वयं।
प्रश्न 4.
‘सूझ-बुझ’ ‘एक-दूसरे’ जैसे शब्द युग्मों में योजक चिन्ह का प्रयोग हुआ है। इस पाठ से योजक चिन्ह वाले अन्य शब्द युग्म ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर:
धीरे-धीरे; बड़ी-छोटी; छोटे-मोटे; जीवन-शक्ति; लेन-देन; लेता-देता।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग और प्रत्यय अलग करके लिखिए-
राष्ट्रीय, आशावादिता, व्यर्थता, परिहास, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, परिस्थिति, परिपूर्ण।
उत्तर:
राष्ट्रीय = य
आशावादिता = ता, (प्रत्यय)
व्यर्थता = ता
परिहास = परि (उपसर्ग)
सामाजिक = इक
आर्थिक = इक
राजनैतिक = इक
परिस्थिति = परि उपसर्ग
परिपूर्ण = परि (उपसर्ग)।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:
शब्द | विलोम |
जीवन | मरण |
आशा | निराशा |
प्रसिद्ध | गुमनाम, अप्रसिद्ध |
आकाश | पाताल |
सफल | असफल |
पुरानी | नई। |
प्रश्न 7.
वह धन-धान्य से सम्पन्न था तथा अन्य क्षेत्र में अन्न का व्यापार करता था।
ऊपर लिखे रेखांकित शब्द देखने में मिलते-जुलते लगते हैं पर उनके अर्थ भिन्न हैं। नीचे इस तरह कुछ समरूपी शब्द दिए गए हैं, वाक्य बनाकर उनके अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ओर – हिमालय उत्तर दिशा की ओर स्थित है।
और – राम और श्याम गंगा नहाने गये हैं।
अंश – इस पाठ के एक अंश में यह कहा गया है।
अंस – बैल के अंस बड़े पुष्ट होते हैं।
भवन – राजा का भवन संगमरमर का बना हुआ था।
भुवन – भगवान तीनों भुवनों के मालिक हैं।
में – दिन में धूप तेज पड़ती है।
मैं – मैं और गोपाल सिनेमा जा रहे हैं।
सकल – भगवान ने पृथ्वी पर सकल पदार्थ बनाये हैं।
शक्ल – उसकी शक्ल राम से मिलती-जुलती है।
उधार का अनन्त आकाश संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) मानव जाति दो भागों में बँटी है वे जो उधार देते हैं और वे जो उधार लेते हैं। मनुष्य और मनुष्य के बीच सारी बड़ी-छोटी खाइयाँ उधार के छोटे-मोटे पुलों से बँधी हैं। जब ये पुल टूट जाएँगे, आदमी अकेला हो जाएगा।
कठिन शब्दार्थ :
खाइयाँ = दूरियाँ; पुल = माध्यम।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘उधार का अनन्त आकाश’ पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्री शरद जोशी हैं।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने बताया है कि संसार के सभी मनुष्य दो वर्गों में बँटे हुए हैं-एक उधार लेने वाला और दूसरा उधार देने वाला।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि सम्पूर्ण मानव जाति दो वर्गों में विभक्त है। एक वर्ग वह है जो उधार देता है और दूसरा वर्ग वह है जो उधार लेता है। मनुष्यों का आपसी व्यवहार उधार के इन्हीं छोटे-मोटे पुलों से जुड़ा हुआ है और जब ये उधार रूपी पुल टूट जाएँगे तो मनुष्य दुनिया में अकेला ही रह जाएगा।
विशेष :
- उधार लेना-देना मानव की बुनियादी समस्या है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(2) हम सिर से पैर तक कर्ज में डूबे रहते हैं पर क्या मछली को आप पानी में डूबी कह सकते हैं? वही तो उसका जीवन है। हमें कर्ज के इस पानी से निकालो तो हम तड़पने लगेंगे। हम फिर पानी में कूदेंगे यानी कर्ज ले लेंगे।
कठिन शब्दार्थ :
कर्ज = उधार।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक का मानना है कि जिन्हें कर्ज लेने की आदत पड़ जाती है, उसके बिना उनके जीवन की कल्पना ही नहीं हो सकती।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि जिस व्यक्ति को कर्ज लेने का चस्का लग जाता है वह उसके बिना जीवित नहीं रह सकता। कर्ज में डूबे व्यक्ति की तुलना लेखक पानी में रहने वाली मछली से करते हुए कहता है कि जिस प्रकार मछली सदैव पानी में डूबी रहती है, बिना पानी के वह जीवित ही नहीं रह सकती उसी प्रकार जिस व्यक्ति को कर्ज लेने की आदत पड़ जाती है, वह उसके बिना जीवित ही नहीं रह सकता। चाहे कोई व्यक्ति सिर से लेकर पैर तक कर्ज में डूबा हुआ क्यों न हो वह उसी में अपने जीवन की सार्थकता समझता है।
जिस प्रकार पानी के बिना मछली का जीवित रहना सम्भव नहीं है उसी प्रकार उधार लेने वाले का भी जीवन बिना उधार के सम्भव नहीं है। यदि हमने कर्जदार को कर्ज रूपी पानी से बाहर निकाल दिया तो वह उसी प्रकार तड़पने लगेगा जिस प्रकार बिना पानी के मछली तड़पती है। अत: कर्जदार के जीवन को बचाने के लिए एक ही मार्ग है कि उसे पुन: उसी जाल में फंसा दिया जाए जिससे वह निकाला गया था अर्थात् उसे पुनः कर्ज के व्यूह में फंसा दिया जाए।
विशेष :
- लेखक का मानना है कि कर्ज लेना भी जीवन-यापन का एक अनोखा ढंग है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(3) उधार ही वह धारा है जो सतत् चली आ रही है और हमारे सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक जीवन के खेत उससे लहलहा रहे हैं। यह जीवनधारा है। इस देश में उधार के लिए सबसे अच्छी परिस्थितियाँ हैं। क्योंकि यहाँ पुनर्जन्म के सिद्धान्त पर विश्वास है। आदमी जानता है कि अगर इस जन्म में नहीं चुका सके तो अगले जन्म में चुका देंगे। ऐसी ‘क्रेडिट फेसिलिटी’ किस धर्म में मिली होगी? आत्मा स्थायी पूँजी है जो अमर है। इसकी साख पर हम कोई भी सौदा कर सकते हैं। शरीर एक बटुआ है जो सिक्के लेता-देता रहता है। महत्त्व बटुए का नहीं, उस लेन-देन की प्रथा का है। प्रथा बनी रही तो बटुए तो नये आते रहेंगे।
कठिन शब्दार्थ :
सतत् = निरन्तर; पुनर्जन्म का सिद्धान्त = मरने के पश्चात् आदमी पुनः जन्म लेता है; क्रेडिट फेसिलिटी (अंग्रेजी का शब्द है-Credit facility) = उधार की सुविधा; साख = क्रेडिट, भरोसा।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक इस अंश में यह बताना चाहता है कि उधार की धारा अनन्त काल से चली आ रही है, पुनर्जन्म के सिद्धान्त के कारण यह इस देश में खूब पनप रही है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि उधार लेने की आदत जिस व्यक्ति को पड़ जाती है, वह निरन्तर उधार लेता चला जाता है। ऐसे व्यक्ति चाहे सामाजिक क्षेत्र के हों, चाहे आर्थिक क्षेत्र (उद्योग-धन्धे वाले) और चाहे राजनैतिक दलों से सम्बन्धित हों, वे सब इस उधार रूपी कृषि को उगाते रहते हैं। उनके जीवन की यह धारा सतत् रूप से प्रवाहित होती रहती है। कहने का भाव यह है कि जिसे एक बार उधार लेने का चस्का लग जाता है वह सदैव उसी में गोते लगाता रहता है। हमारे देश में उधार लेने वालों की एक विशाल संख्या है। इस देश का पुनर्जन्म का सिद्धान्त भी उधार की इस भावना को अच्छी तरह पुष्पित करता है। क्योंकि उधार लेने वाला व्यक्ति जानता है कि यदि किसी कारण हम इस जन्म में उधार चुका सके तो कोई बात नहीं अगले जन्म में उधार चुका देंगे। इस प्रकार की उधारी की सुविधा किसी अन्य धर्म में नहीं है। उधार लेने वाले व्यक्ति की आत्मा अमर है और वह ऋण लेने को सौदेबाजी के लिए एक स्थायी पूँजी का कार्य करती है। आत्मा रूपी स्थायी पूँजी के बल पर उधार लेने वाले किसी भी प्रकार का सौदा कर सकते हैं।
व्यंग्यात्मक शैली में लेखक कहता है कि यह शरीर आत्मा रूपी सिक्के का बटुआ है। इस शरीर रूपी बटुए से सिक्कों का आदान-प्रदान होता रहता है। असली बात यह है कि बटुए का कोई मूल्य नहीं है, मूल्य तो लेन-देन की उस प्रथा का है जो इस देश में निरन्तर बनी हुई है। ये बटुए रूपी शरीर तो नित्य आते-जाते रहते हैं अर्थात् मानव विभिन्न शरीरों को समय-समय, पर धारण करता रहता है। अत: उधार की इस पद्धति को हमें सदैव बनाये रखना चाहिए।
विशेष :
- लेखक का मत है कि भारत देश में उधार के व्यवसाय के लिए परिस्थितियाँ बहुत अनुकूल हैं।
- भाषा सहज एवं सरल है।
- व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
(4) आज जिसने सौ रुपए कर्ज लिया है, वह कल हजार रुपए लेगा। कर्ज आदमी को उत्साहित करता है। वह भार नहीं है। वह तो गैस का बड़ा गुब्बारा है; जो हमें भूमि से आकाश की सैर कराता है। गुब्बारा कितना ही बड़ा हो, भार नहीं होता।
कठिन शब्दार्थ :
उत्साहित = उत्साह बढ़ाता है; भूमि = पृथ्वी।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक का मत है कि जिस व्यक्ति को उधार लेने का चस्का लग जाता है, वह उससे विमुख नहीं होता है।
व्याख्या :
लेखन का कथन है कि जब व्यक्ति में कर्ज लेने की आदत पड़ जाती है तो वह फिर उससे अपना नाता नहीं तोड़ता है बल्कि वह इस प्रक्रिया को आगे-ही-आगे बढ़ाता रहता है। प्रारम्भ में वह कम उधार लेता है फिर धीरे-धीरे उसकी यह हवस बढ़ती जाती है सौ से हजार, हजार से लाख और इसी प्रकार यह परिधि बढ़ती जाती है। उधार के धन को वह बोझ नहीं मानता है। उधार लेना बड़े आकार वाले गुब्बारे के समान होता है जिसमें गैस भरी रहती है। उस गैस भरे गुब्बारे रूपी कर्जदार को आकाश की सैर करने को छोड़ दिया जाता है। वह गुब्बारा बड़े-से-बड़ा तो हो सकता है पर उसमें भार नहीं होता है।
विशेष :
- उधार का चस्का जब एक बार लग जाता है तब वह समाप्त नहीं होता है अपितु दिन-दूना बढ़ता जाता है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(5) उधार की सीमा आकाश है, चाँद हैतारे हैं, हमें मिलेगा, मिलता रहेगा। देखो, वह चाँद की ओर एक रॉकेट चला। इसमें कोई किसी भारतीय को बिठा दे। वे कुछ लेकर आएँगे; ओह! यह सृष्टि कितनी सुखमय है। यह आकाश कितना असीम फैला है और फिलहाल हमें थोड़ा-सा कर्ज चाहिए।
कठिन शब्दार्थ :
फिलहाल = अभी, इसी समय; सृष्टि = प्रकृति; असीम = अनन्त।
सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि उधार की कोई सीमा नहीं होती अर्थात् वह सीमा रहित होती है। उधार लेना उतना ही असीम है जितना कि आकाश। चन्द्रमा और तारे जिस प्रकार आकाश में अपनी चमक सदैव बनाये रखते हैं उसी प्रकार इस देश में उधार की चमक भी सदैव बनी रहेगी। उधार हमें पहले भी मिला था आज भी मिल रहा है और भविष्य में भी मिलता रहेगा। इस देश के लोगों की अक्ल की दाद देनी होगी कि वे प्रत्येक स्थिति और समय पर उधार लेने का सुयोग बना लेते हैं। चाहे चन्द्रमा की ओर जाने वाला रॉकेट ही क्यों न हो। आप उस रॉकेट में भारतीय व्यक्ति को बिठा दीजिए। वह वहाँ से भी कुछ-न-कुछ उधार लेकर ही आयेगा। यह संसार कितना सुखमय है कि यहाँ उधार का कोई टोटा नहीं है। यह आकाश कितना असीम फैला हुआ है इसी के समान हमें उधार देने वालों की कोई कमी नहीं है। बस हमारे मन में केवल यह भावना होनी चाहिए कि हमें अभी थोड़ा-सा कर्ज चाहिए। इस अनोखे वचन के बोलते ही आपकी सभी समस्याएँ हल हो जाएँगी।
विशेष :
- लेखक व्यंग्य करता है कि उधार से बढ़िया पूँजी कोई नहीं है क्योंकि इसे लौटाने की कोई चिन्ता नहीं रहती है।
- भाषा सहज एवं सरल है।