MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 19 धनुष की प्रत्यंचा (डॉ. देवेन्द्र दीपक)
धनुष की प्रत्यंचा अभ्यास-प्रश्न
धनुष की प्रत्यंचा लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
तूफानों से खेलने का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
तूफानों से खेलने का आशय है-निडर होकर बड़ी-से-बड़ी कठिनाइयों का सामना करते हुए जीवन-पथ पर आगे बढ़ते जाना।
प्रश्न 2.
कोई शिक्षक अपने विद्यार्थी के लिए किस प्रकार सेतु बन सकता है?
उत्तर
कोई शिक्षक अपने विद्यार्थी के लिए उसके हौसला को बढ़ाकर सेतु बन सकता है।
प्रश्न 3.
प्रत्यंचा को शक्ति के साथ खींचने से कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
प्रत्यंचा को शक्ति के साथ खींचने से कवि का आशय है-वह जितनी अधिक शक्ति से खींची जाएगी, वह उतनी ही तेजी से और शक्ति से लक्ष्य को भेदने तक तीर को फेंकती है। दूसरे शब्दों में, पूरी शक्ति और युक्ति से ही लक्ष्य की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 4.
शिष्य की प्रसन्नता और दुख का गुरु पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर
शिष्य की प्रसन्नता और दुख का गुरु पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। शिष्य को प्रसन्न देखकर गुरु प्रसन्न होता है और शिष्य को दुखी देखकर गुरु दुखी हो जाता है।
प्रश्न 5.
गुरु ने शिष्य को अंशज और बंशज क्यों कहा है?
उत्तर
गुरु ने शिष्य को अंशज और वंशज कहा है। यह इसलिए कि उसकी विशेषताएँ उसमें मिलती-जुलती हैं।
प्रश्न 6.
कवि का मन खुशी से कब झूमने लगता है?
उत्तर
कविका मन तब खुशी से झूमने लगता है, जब शिष्य अपने गुरु के पास अपने मौलिक भावों से स्वाभिमानपूर्वक जीवन-अर्थ का नयापन लेकर आता है।
धनुष की प्रत्यंचा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘शूल के बीच ही फूल खिलता है’ इसका आशय प्रस्तुत कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘शूल के बीच ही फूल खिलता है।’ इस तथ्य की सत्यता यह है कि गुरु की डाँट-फटकार और कड़े अनुशासन में रहने वाला शिष्य बहुत योग्य और महान बनता है। उसमें ऐसे-एसे गुणों की पैठ हो जाती है कि वह अपने जीवन में आने वाली बाधाओं को झुकाकर आगे बढ़ जाता है। इससे सफलता उसे चूम लेती है।
प्रश्न 2.
‘मीन को बेंधने’ में कौन-सी पौराणिक अन्तर्कया निहित है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
मीन को बेंधने में महाभारत की पौराणिक अन्तर्कथा निहित है। इसमें वह कथा निहित है, जो द्रोपदी स्वयंवर की है। उस स्वयंवर में अर्जुन नीचे रखे हुए जल में देखकर ऊपर रखी हुई और नाचती हुई मछली की आँख में तीर से निशाना लगाया था। शर्त के अनुसार द्रोपदी के साथ उनका विवाह हुआ था।
प्रश्न 3.
“में नींव बन नीचे रहूँगा।” इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘मैं नींव बन नीचे रहूँगा’। इस पंक्ति का गहरा और बड़ा अर्थ। इसमें गुरु का अपने शिष्य के प्रति आत्मीय त्याग के भाव भरे हुए हैं। गुरु सदा ही अपने शिष्य के सख और उसके विकास के लिए अपना योगदान देने से पीछे नहीं हटता है। उसका तो एकमात्र यही उद्देश्य होता है कि उसका शिष्य महान बने। वह अपने शिष्य की उन्नति और उसकी अच्छाई के लिए यह सब कुछ करने-सहने के लिए तैयार रहता है। यहाँ उसके जीवन-भवन की नींव बनने के लिए सहर्ष तैयार रहता है।
प्रश्न 4.
कवि शिष्य को कहाँ उतरने की सलाह देता है? इस कविता के माध्यम से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि शिष्य को जीवन-संग्राम में उतरने की सलाह देता है। वह उसे अपने गुरु से आशीर्वाद लेकर आँधी-तूफान आदि से टकराने-खेलने की सलाह देता है। वह उसे सभी प्रकार की बाधाओं को अपनी छाती पर झेलने की भी सलाह-उत्साह देता है।
प्रश्न 5.
‘अज्ञान की मीन को तुम बेंध डालो’
सफलता की द्रोपदी का स्वयंवर रचेगा।’
इन पंक्तियों का भावार्य लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त काव्य-पंक्तियाँ आज के हताश और भटके हुए विद्यार्थियों को प्रेरित करने के संदर्भ में हैं। द्रोपदी स्वयंवर के प्रसंग के द्वारा इन विद्यार्थियों को अपनी हताशा को त्याग कर सफलता प्राप्त करने की सीख दी गई है। इससे सफलता निश्चय ही कदम चूम लेगी। इसकी संभावना ही निश्चयात्मकता भी है। लेकिन यह तभी संभव है जब आज का यह हताश-निराश विद्यार्थी वर्ग अर्जुन की तरह पुरुषार्थी और कर्मठ हो।
प्रश्न 6.
में साधना हूँ…केतु बन जाना।’ इन पंक्तियों का भावार्य संदर्भ-प्रसंग सहित लिखिए।
उत्तर
तुम सदैव अपने प्रगति-पथ पर बढ़ते चलो, मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करता रहूँगा। इसके लिए मैं साधना बनकर तुम्हारे साथ रहूँगा और तुम सफलता बनकर आगे बढ़ते जाना। इसी प्रकार मैं तुम्हारे आँख बनकर रहूँगा, तो तुम ज्योति रूप में बढ़ते चले जाना। इसी प्रकार में तुम्हारे विजय के स्तंभ के रूप में मौजूद रहँगा, तो तुम विजय की पताका बनकर फहराते चलते चले जाना। तुम्हें आज इन बातों को बड़ी गंभीरतापूर्वक अमल करना नहीं भूलना है यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मैं तुम्हारा मानस पिता हूँ। इसे समझकर तुम आज मेरी इन बातों को हृदय से स्वीकार करके मेरी महिमा को बनाए रखना। तुमसे मेरी यही उम्मीद भी है कि तुम मेरा महत्त्व घटाओगे नहीं अपितु बढ़ाते ही जाओगे।
प्रश्न 7.
आज का विद्यार्थी उदास और अनिश्चय की स्थिति में क्यों है? प्रस्तुत कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
आज का विद्यार्थी उदास और अनिश्चय की स्थिति में है। यह इसलिए कि वह अज्ञानमय कुआँ में डूब रहा है। उसे बाहर निकालने वाला कोई योग्य अध्यापक नहीं दिखाई दे रहा है। यह निराधार होकर इधर-उधर भटक रहा है। अगर उसे आत्मीय और सहदय प्राप्त हो जाए तो उसकी उदासी और निराशा देखते-देखते दूर हो जाएगी। फिर वह सफलता के शिखर पर चढ़ता ही जाएगा।
प्रश्न 8.
‘शिष्य के लिए गुरु की महिमा’ विषय पर अपना बिचार लिखिए।
उत्तर
‘शिष्य के लिए गुरु की महिमा’ निस्संदेह है। गुरु के बिना शिष्य का कोई अस्तित्व नहीं है। गुरु के बिना शिष्य अज्ञानमय अंधकार में डूबा रहता है। वह
उसकी ज्ञानमयी किरणों के बिना बाहर निकल पाने में असमर्थ रहता है। जैसे गुरु की ज्ञानमयी किरणें शिष्य पर पड़ने लगती हैं; वैसे ही शिष्य का अज्ञानान्धकार दूर हो जाता है। फिर वह हर प्रकार से सक्षम और योग्य बनकर जीवन के विकास पथ पर बढ़ने लगता है।
प्रश्न 9.
छात्र की योग्यता के विकास की यात्रा में शिक्षक की क्या भूमिका होती है?
उत्तर
छात्र की योग्यता के विकास की यात्रा में शिक्षक की भूमिका बहुत बड़ी होती है। शिक्षक छात्र के अज्ञान को दूर करके, उसे सर्व समर्थ बनाने की शिक्षा देता है। एक योग्य शिक्षक की यह योग्यता होती है कि वह अपने युग और युग की आवश्यकता का सच्चा पारखी होता है। उसका आंकलन वह अपने छात्र में करता है। उसे युग की कसौटी पर खरा उतरने के उपयुक्त और अनुकूल शिक्षा देता है। इस तरह से एक योग्य शिक्षक अपने छात्र की योग्यता का विकास कर बहुत बड़ी भूमिका को निभाता है।
धनुष की प्रत्यंचा भाषा-अध्ययन काव्य-सौन्दर्य
प्रश्न 1.
कंठ-कंठ के शब्द पुनरुक्त शब्द हैं। इस प्रकार के अन्य शब्द पाठ में से छाँटकर लिखिए।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित तद्भव शब्दों के तत्सम शब्द रूप लिखिए।
भौंह, जोत, मछली, फूल, नैन।
प्रश्न 3
‘अंधकार’ में कार तवा ‘कटोरता’ में ता प्रत्यय जुड़े हैं इसी प्रकार ‘कार’
तथा ‘ता’ जोड़कर 5-5 नए शब्द बनाइए।
उत्तर
1. कभी-कभी, तनी-तनी, जब-जब, तब-तब, गड़ी-गड़ी।
2. तुभव शब्द तत्सम शब्द ।
भाह – भौं
जोत – ज्योति
मछली – मत्स्य
पुष्प – पेश
नैन – नेत्र
3. ‘कार’ और ‘ता’ प्रत्यय से जुड़े 5-5 नए शब्द
(क) ‘कार’ प्रत्यय से जुड़े शब्दशब्द
प्रत्यय
रचना – रचनाकार
दर – दरकार
बद – बदकार
अदा – अदाकार
पेशकार – फल
(ख) ‘ता’ प्रत्यय से जुड़े नए
शब्द – प्रत्यय
अधीर – अधीरता
कोमल – कोमलता
मधुर – मधुरता
मूर्ख – मूर्खता
शिष्ट . शिष्टता।
धनुष की प्रत्यंचा योग्यता-विस्तार
1. शिक्षक की गरिमा से संबंधित अन्य कोई प्रसंग या कविता खोजकर लिखिए।
2: आप शिक्षक बनकर कौन-कौन से कार्य करना चाहेंगे लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
धनुष की प्रत्यंचा परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उदास और मलिन चेहरा होने का क्या कारण है?
उत्तर
उदास और मलिन चेहरा होने का कारण है-अज्ञानमय अंधकार में पूरी तरह से डूब जाना।
प्रश्न 2.
सेतु-निर्माण का क्या उद्देश्य है?
उत्तर
सेतु-निर्माण का उद्देश्य बहुत बड़ा है। इस पर निडर और निश्चित होकर ही अंधकार को पार कर ज्योति का द्वार खोला जा सकता है।
प्रश्न 3.
कवि ने कटोरता की विवशता की क्या विशेषता बतलायी है?
उत्तर
कवि ने कठोरता की विवशता की यह विशेषता बतलायी है कि कठोरता सीपी है, जिसमें मोती पलती-बढ़ती है।
प्रश्न 4.
झिड़कियाँ और तनी-तनी भृकुटियों के प्रतीक को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
झिड़कियाँ और तनी-तनी भृकुटियाँ शूलस्वरूप रक्षा-परिधि की प्रतीक हैं। इनके ही बीच में आशा रूपी फूल खिलते हैं।
प्रश्न 5.
कवि ने अध्यापक द्वारा अपने छात्र को जीवन-संग्राम में उतरकर विजयी होने की किन-किन विशेषताओं से उसके हौसले को बढ़ाया है?
उत्तर
कवि ने अध्यापक द्वारा अपने छात्र को जीवन-संग्राम में उतरकर विजय होने की अनेक विशेषताओं से उसके हौसले को बढ़ाया है। वे विशेषताएँ हैं-उसकी आत्मा के अंशज, वंशज, उसकी अर्जन, उसकी कविता और उसका सर्जन।
प्रश्न 6.
अध्यापक ने अपने छात्र से किस तरह अपनी अंतिम अभिलाषा व्यक्त किया है?
उत्तर
अध्यापक ने अपने छात्र से मानस पिता के रूप में अपनी अंतिम अभिलाषा ‘मेरी लाज रख लेना’ व्यक्त किया है।
प्रश्न 7.
‘प्रत्यंचा’ और ‘तीर’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर
‘प्रत्यंचा’ शिक्षक के शिक्षण और ‘तीर’ ‘ज्ञान और लगन’ के प्रतीक हैं।
धनुष की प्रत्यंचा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
“यह दुनिया एक अंधा कुआँ है? लो, में रज्जु बन लटका हूँ।” उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्य लिखिए।
उत्तर
यह दुनिया एक अंधा कुआँ है,
लो, मैं रज्जु बन लटका हूँ।”
उपर्युक्त पंक्तियों के द्वारा यह भाव व्यक्त करने का प्रयास किया गया है कि आज के छात्र का भविष्य अंधकारमय हो गया है। उसे चारों ओर अँधेरा-ही-अँधेरा दिखाई दे रहा है। इसका मुख्य कारण है कि उसमें अज्ञानता, अयोग्यता और अक्षमता है। उसे इन सबसे मुक्त कर उसमें ज्ञान, योग्यता और क्षमता लाने वाला कोई नहीं दिखाई देता है। उसे इस प्रकार अज्ञानमय अंधकार में पड़े हुए देखकर उसे प्रबोध देकर उसे योग्य और सक्षम उसका अध्यापक ही उसके लिए रस्सी का काम कर सकता है। उसके सहारे ही वह इस अंधकार से निकलकर अपने भविष्य को चमका सकता है।
प्रश्न 2.
मीन को बेंधने की पौराणिक कथा का उल्लेख जिन पंक्तियों में हुआ है उन्हें लिखिए।
उत्तर
मीन को बेंधने की पौराणिक कथा का उल्लेख निम्नलिखित पंक्तियों में हुआ है-.मैं धनुष की प्रत्यंचा हूँ अपनी पूरी शक्ति से खींचो, रखना विश्वास नहीं टूट्रॅगा, नहीं टूटूंगा चलाओ ज्ञान के तुम तीर, अज्ञान की मीन को बेंध डालो सफलता की द्रोपदी का स्वयंवर रचेगा।
प्रश्न 3.
वर्तमान में प्रस्तुत कविता की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ द्वारा विरचित कविता ‘धनुष की प्रत्यंचा’ वर्तमान युग में बहुत अधिक प्रासंगिक है। यह इसलिए कि आज अध्यापक और छात्र के संबंध परस्पर बिगड़ चुके हैं। दोनों अपनी-अपनी गरिमा से गिर चुके हैं। इसलिए दोनों के संबंध पुनः मधुर और सरस होकर गरिमा-मंडित हों, यह आज के युग की बहुत बड़ी आवश्यकता है। यह तभी संभव है, जब आज का अध्यापक अपने अध्यापन के द्वारा अपने छात्र को सही दिशा-निर्देश दें। यह इसलिए कि आज का छात्र अंधकार से ज्ञान की ज्योति प्रज्ज्वलित करने, व्यक्तित्व को मोती-सा कांतिवान बनाने, सुजनशील होकर राष्ट्रीय भाव जगाने और उदात्त चरित्र के निर्माण के लिए अपने शिक्षक के प्रेरणा पुंज से ही आलोकित हो सकता है।
प्रश्न 4.
‘नींव बने रहने का भाव किन पंक्तियों में है? चुनकर लिखिए।
उत्तर
‘नींव बने रहने का भाव निम्नलिखित पंक्तियों में है
मैं नोंव बन नीचे रहूँगा ।
लेकिन तुम सीढ़ियाँ चढ़ना
हर दिवस बढ़ना हर रात बढ़ना
आसमान छूना।
तुम रुकोगे
तो नींव में गड़ी-गड़ी
मेरी अस्थियों में दर्द होगा।
प्रश्न 5.
‘धनुष की प्रत्यंचा’ कविता का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
चूँकि आज छात्र अपने कर्त्तव्य से विमुख हो रहे हैं। उनमें कर्त्तव्यहीनता का तनिक बोध नहीं हो रहा है। इससे शिक्षा-जगत में एक बहुत बड़ी विडम्बना आ गई है। इसे आज एक योग्य और महान अपने दायित्व की दृष्टि से समझ सकता है। इस दृष्टि से हिन्दी के जाने-माने कवि एवं मनीषी डॉ. देवेन्द्र दीपक की ‘धनुष की प्रत्यंचा’ हिन्दी की उन विरल कविताओं में शीर्षस्थ कविता है जिसमें एक शिक्षक अपने पक्ष के औदात्य को गंभीरता से प्रस्तुत करता है। इस कविता में इस तथ्य पर प्रकाश डाला गया कि लक्ष्य का भेद धनुष की प्रत्यंचा के ऊपर निर्भर करता है। वह जितनी अधिक शक्ति से खींची जाती है वह उतनी ही तीव्रता और शक्ति के लक्ष्य भेदन तक तीर को प्रक्षेपित करती है। ठीक इसी प्रकार शिक्षक का शिक्षण उसके छात्र के लिए प्रत्यंचा के समान है। इस प्रत्यंचा को जितनी अपनी जिज्ञासा और लगन की शक्ति से शिक्षक से सीखने का प्रयास करेगा, वह उतना ही अधिक, ज्ञान के तीर से अपने जीवन की बाधाओं को बेध सकेगा।
प्रश्न 6.
इस कविता में शिक्षक ने अपने विद्यार्थी के लिए जिन-जिन रूपों को प्रस्तुत किया है, उन पंक्तियों को लिखिए
उत्तर
इस कविता में शिक्षक ने अपने विद्यार्थियों के लिए जिन-जन रूपों को प्रस्तुत किया है, वे विद्यार्थी पाठ में देखें।
धनुष की प्रत्यंचा कवि-परिचय
प्रश्न
डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के . महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-डॉ. देवेन्द्र दीपक की हिन्दी के बहुमुखी प्रतिभा के धनी रचनाकारों में गणना की जाती है। मध्य-प्रदेश के चर्चित कवियों और सम्पूर्ण हिन्दी-जगत के प्रतिष्ठित कवियों के साथ आपका नाम लिया जाता है। शिक्षा समाप्त कर आपने मध्य-प्रदेश के विभिन्न शासकीय महाविद्यालयों में समय-समय पर स्थानान्तरण के फलस्वरूप अस्थायी रूप में अध्यापन कार्य करते रहे। इसके साथ-साथ आप पत्रकारिता से भी जुड़े।
पत्रकारिता में महारत हासिल करने के उद्देश्य से अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य करते रहे। यही नहीं, आपने, कई छोटी-बड़ी स्तर की पत्रिकाओं और चर्चित पत्रों के संपादन कुशलतापूर्वक किया। बचपन से ही डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ का झुकाव हिन्दी काव्य की ओर रहा। फलस्वरूप आपकी काव्य-रचनाएँ अधिक प्रकाश में आयी. हैं। इसके साथ-ही-साथ आपकी कविताओं के अनुवाद भी कई भारतीय भाषाओं में हुए हैं। काव्य-रचना के साथ ही सम्पादन कार्य भी आप करते रहे। इस प्रकार साहित्य और पत्रकारिता इन दोनों क्षेत्र में आप योगदान देने में सक्रिय रहे।
रचनाएँ-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ की निम्नलिखित रचनाएँ हैं
काव्य-संग्रह-‘सूरज बनती किरण’, ‘बन्द कमरा’, ‘खुली कविताएँ’, ‘भूगोल राजा का, खगोल राजा का’, ‘कुण्डली चक्र पर मेरी वार्ता’, ‘मास्टर धरमदास’, ‘हम बौने नहीं दबाव’ आदि।
संपादन-‘छन्द प्रणाम’, “सार्थक एक’ आदि। संप्रति-‘साक्षात्कार’ के संपादक
महत्त्व-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ का असाधारण साहित्यिक महत्त्व है। आपने हिन्दी काव्य-क्षेत्र में आशातीत योगदान दिया है। फलस्वरूप आपकी कविताओं के अनुवाद, संस्कृत, मराठी, सिंधी, पंजाबी, अंग्रेजी, तमिल आदि भारतीय भाषाओं में हुए हैं। आपकी कविताएँ शिक्षित और सांस्कृतिक वर्ग के लिए अधिक उपयोगी और सार्थक सिद्ध हुई हैं। आगामी साहित्यिक पीढ़ी के लिए आप प्रेरणा-स्रोत बने रहेंगे, इसमें कोई संदेह नहीं है।
धनुष की प्रत्यंचा कविता का सारांश
प्रश्न
डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ द्वारा विरचित कविता ‘धनुष की प्रत्यंचा’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’-विरचित प्रस्तुत कविता ‘धनुष की प्रत्यंचा’ न केवल आधुनिक कविता है, अपितु प्रासंगिक भी है। इस कविता का सारांश इस प्रकार है
शिक्षक अपने छात्र को प्रेरित करते हुए कह रहा कि वह क्यों इस तरह होकर अपना मलिन चेहरा लिए अंधकार में डूबकर उदास खड़ा है। वह तो उसके लिए सेतु के रूप में बनकर सामने आया है। अब वह उस पर चढ़कर निडरतापूर्वक ज्योति के द्वार को खोलने के लिए इस अंधकार के उस पार उतर जाए। इसलिए लो, अपना हाथ बढ़ाओ।
शिक्षक का कहना है कि मैं तुम्हें कुंजी-अपनी सहेजी हई पूँजी के रूप में दे रहा हूँ। मेरी कठोरता पर तुम गुस्सा करते हो, लेकिन यह मेरी मजबूरी है। मैं इसे सीपी समझकर सहता हूँ और तुम्हें तो केवल मोती-सा पालना है। यह मैं अच्छी तरह से जानता और अनुभव करता हूँ कि मेरी फटकार तुम्हें शूल के समान चुभ गई है। यह मेरी रक्षा-परिधि थी, जिसमें तुम्हें फूल बनकर खिल जाना था। तुम्हारी मौलिकता और स्वाभिमान मुझे बड़ा ही अनमोल बना देते। इसलिए अब मैं तुमसे यह कह रहा हूँ कि मैं तुम्हारे लिए नींव के रूप में बना रहूँगा और तुम उस नींव की सीढ़ियों पर एक-एक कदम बढ़ाते जाना। अगर तुम रुकोगे तो नींव में गड़ी हुई मेरी हड्डियों में दर्द होने लगेगा। मैं तो यही चाहता हूँ कि तुम फूल-सा खिलो और अपनी महक को चारों ओर फैलाओ। यह मेरी बहुत बड़ी खुशी होगी। ऐसा इसलिए कि मैंने इसी खुशी के लिए सावन-सा तुम्हारे उदास मन रूपी मरुस्थल में बरसा था।
शिक्षक अपने छात्र को प्रबोध देते हुए कह रहा है-तुम यह अच्छी तरह समझ लो कि संसार एक अंधकारमय कुआँ है। मैं उसके ऊपर एक रस्सी बनकर लटक रहा हूँ। तुम निश्चित होकर अपने पात्र को भरकर अपने फूलों की बगिया को सींच डालो। मेरी आत्मा के तुम वंशज-अंशज हो। मेरी अर्जन, कविता आदि सब कुछ तुम्हीं हो। रक्षा-कवच की तरह मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। इसे लेकर तुम आँधी-तूफानों का सामना करो। तुम्हारे शत्रुओं के लिए तुम्हें मैं वज्र के समान और तुम्हारे ओठों पर फूल की तरह खिलने के लिए बनकर तैयार हो गया हूँ। इस तरह मैं तुम्हारे लिए धनुष की प्रत्यंचा हूँ।
उसे तुम अपनी पूरी शक्ति से इस विश्वास से खींचो कि यह नहीं टूटेगा। इस पर तुम अपने ज्ञान के तीर चलाते हुए अज्ञान रूपी मछली को बेंध डालो। अपनी सफलता को वैसे ही प्राप्त कर लो जैसे अर्जुन ने स्वयंवर में द्रोपदी को प्राप्त किया था। तुम्हें प्रसन्न देखकर मैं प्रसन्न होता हूँ और दुखी देखकर दुख में डूब जाता हूँ। इसलिए मैं कह रहा हूँ-मैं साधना हूँ तो तुम सिद्धि बन जाना। मैं आँख हूँ तो तुम दृष्टि बन जाना। मैं विजय स्तम्भ हूँ तो तुम विजय का पताका बन जाना। इस प्रकार अपनी हथेली पर विजय प्राप्त करके आज मेरी लाज रख लेना। यह अब तुम्हारे मानस. पिता का वचन है।
धनुष की प्रत्यंचा संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
पद्यांश की सप्रसंग व्याख्या, काव्य-सौन्दर्य व विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर
1. इधर क्यों खड़े हो उदास
क्यों महिलन हो गया चेहरा
अंधकार में,
भटकन में,
डूबे हो कंठ-कंठ।
लो, मैं तुम्हारे हेतु सेतु बना हूँ।
इस सेतु पर पाँव रखकर
निर्भीक और निर्द्वन्द्व होकर
उतर जाना तुम पार
क्योंकि तुम्हें खोलना है
ज्योति का वह द्वार।
शब्दार्थ-मलिन-उदास, मुरझा गया। कंठ-कंठ-पूरी तरह । हेतु-लिए। सेतु-पुल । पाँव-पैर। निर्भीक-निडर। ज्योति-प्रकाश।
प्रसंग-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती-हिन्दी सामान्य’ में संकलित तथा डॉ. देवेन्द्र दीपक-विरचित कविता ‘धनुष की प्रत्यंचा’ शीर्षक से है। इसमें कवि ने एक सुयोग्य शिक्षक द्वारा आज के अंधकार में डूबे छात्र को ज्ञान की ज्योति जलाकर चरित्र-निर्माण करने के लिए किस प्रकार प्रेरित किया गया है, यह चित्रित करने का प्रयास किया है। इस विषय में कवि का यह कहना है कि
व्याख्या-शिक्षक अपने छात्र को प्रेरित करते हुए कह रहा है-तुम इस तरह क्यों मुरझाए और निराश होकर खड़े हुए दिखाई दे रहे हो। तुम्हारा चेहरा उदास और मलिन होकर दिखाई दे रहा है, तुम्हें देखने से ऐसा लगता है कि तुम अंधकार में काफी भटकने के बाद पूरी तरह से डूब चुके हो। फलस्वरूप तुम्हें कहीं से कोई सहारा और आशा की एक किरण नहीं दिखाई दे रही है, लेकिन ऐसी बात नहीं है। अब मैं तुम्हारे लिए पुल बनकर तुम्हारे सामने आया हूँ। अब तुम किसी प्रकार से डरो नहीं और उदास-निराश भी न होवो! इस पुल पर आकर तुम अब खड़े हो जाओ। इससे तुम किसी प्रकार के भय और रुकावट के इस अंधकार से उस पार उतर जाओगे, जहाँ से तुम्हें प्रकाश के किरण द्वार को सबके लिए खोल देना है।
विशेष-
- भाषा सरल और सपाट है।
- कथन में ओज और प्रभाव है।
- ‘कंठ-कंठ’ में पुररुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- मुक्तक छंद है।
- यह अंश प्रेरणादायक रूप में है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश की काव्य-योजना विशिष्ट भावों को व्यक्त करने वाले शब्दों से युक्त है। मुक्तक छंद की स्वच्छन्दता को उपदेशात्मक शैली के द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास है। इसे आकर्षक बनाने के लिए लक्षणा शब्द-शक्ति और पुररुक्ति प्रकाश एवं रूपक अलंकार के मिले-जुले प्रयोग सटीक और उपयुक्त रूप में हैं। वीर रस के प्रवाह से प्रतीकात्मक योजना सुन्दर बन गयी है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश की भाव-योजना सहज और बोधगम्य है। भावों की प्रस्तुति स्वाभाविक है। आत्मीयता, संवेदनशीलता और उदारता जैसी भावगत विशेषताओं को एक साथ लाकर उन्हें हृदय-स्पर्शी बनाने का प्रयास निश्चय ही सराहनीय है। कथन की यथार्थता को विश्वसनीयता के द्वारा सामने लाने की युक्ति बड़ी ही उपयुक्त सिद्ध हुई है।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) उदास खड़े होने से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में किस ओर संकेत है?
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर
(i) उदास खड़े रहने से कवि का अभिप्राय है-हर प्रकार की आशा-विश्वास को तिलांजलि देना। दूसरे शब्दों में हार जाना-थक जाना।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में आज के शिक्षक और छात्र की ओर संकेत है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव यह है कि आज का छात्र अज्ञानग्रस्त है। उसे कोई योग्य शिक्षक ही अपेक्षित ज्ञान के द्वारा सुयोग्य बना सकता है।
2. और लो, बढ़ाओ हाथ
तुम्हें देता हूँ कुंजी जिसे
पूंजी समझ मैंने सहेजा है!
मेरी कठोरता पर
कभी-कभी तुम गुसियाते हो,
मन-ही-मन कुछ कह-सुन जाते हो
लेकिन मैं कठोर हूँ
यह मेरी एक विवशता है
मेरी कठोरता
सीपी की कठोरता है
जो कुछ भी सहना है
मुझको ही सहना है
तुम्हें तो बस मोती सा पलना है।
शब्दार्थ-सहेजा-सँभाला। गुसियाते-गुस्सा करते अर्थात् क्रोध करते। विवशता-मजबूरी। पलना-बढ़ना। बस-केवल ।
प्रसंग-पूर्ववत् ! इसमें कवि ने शिक्षक द्वारा अपने असहाय छात्र को साहस देने का उल्लेख किया है। शिक्षक अपने छात्र को उत्साहित करते हुए कह रहा है
व्याख्या-तुम मेरी ओर आओ! मैं तुम्हें अज्ञानमय अंधकार से बाहर निकालने के लिए तुम्हारे पास खड़ा हूँ। अब तुम अपने हाथ मेरी ओर बढ़ाओ। मैंने बहुत समय से अपने अनुभव की जो पूंजी सँभालकर रखी है, उसे तुम्हें अंधकार के बंद कमरे से बाहर निकल आने के लिए कुंजी के रूप में दे रहा हूँ। उसे लेकर अब बंद अंधेरे कमरे को खोलकर बाहर आ जाओ। मैंने तुम्हें पहले कई कठोरतामयी हिदायतें दी थीं, उनका तुमने अमल करने के बजाय मुझ पर गुस्सा ही किया। यही नहीं तुमने मन-ही-मन मेरा विरोध किया। उसके लिए कुछ भुनभुनाया और बुदबुदाया भी। फिर भी मैं तुम्हें अपनी कठोर हिदायतें देता रहा। यह इसलिए कि यह मेरी आदत है। यह भी कि मेरी लाचारी है। मेरी कठोर हिदायतें क्या हैं? इस पर तनिक विचार करोगे तो यह जरूर समझ जाओगे कि मेरी कठोर हिदायतें सीपी की तरह कठोर हैं, जिसके अंदर मोती पलती-बढ़ती रहती है। इस प्रकार मैं सीपी की कठोरता को सहना और उसे बरकरार रखना मेरी लाचारी है। मेरी तो यही कोशिश रही है कि तुम मेरी कठोरता की सीपी के अंदर मोती की तरह पलते-बढ़ते रहो।
विशेष-
- योग्य अध्यापक के उच्च और उदार दृष्टिकोण का उल्लेख है।
- सत्यता में कठोरता होती है, जो पूरी तरह से कल्याणकारी सिद्ध होती है, इसे बतलाने का प्रयास किया गया है।
- कभी-कभी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है तो ‘मोती-सा’ में उपमा अलंकार है।
- शैली उपदेशात्मक है।
- मुक्तक छंद है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश मुक्तक छन्द में पिरोकर वीर रस में प्रवाहित है, जिसे पुनरुक्ति प्रकाश (कभी-कभी) और उपमा अलंकार (मोती-पलना है) से प्रभा मंडित किया गया है। ‘विवशता-कठोरता, गुसियाते हो-सुन जाते हो और सहना है-पलना है शब्दों की तुकान्लता बड़ा आकर्षक और लयात्मक है। इससे इस पद्यांश की प्रभावमयता और निरख रही है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश की भावधारा बड़ी स्पष्ट और निश्छल है। उनमें बिना लागलपेट की सच्ची विशेषता है, तो अपनापन और उदारता की सरसता भी है। कल्याण को प्रदान करने वाली कठोरता की स्पष्टोक्ति को सहजतापूर्वक अपनाने के लिए सीपी के अंदर पलने वाली मोती की तरह बतलाने की शैली मन को छू लेती है।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कुंजी से तात्पर्य क्या है?
(ii) कठोरता को विवशता क्यों कहा गया है?
(iii) ‘मुझको ही सहना है’ का क्या भाव है?
उत्तर
(i) कुंजी से तात्पर्य है लम्बा अनुभव। ऐसे अनुभव जो किसी प्रकार के संकट से मुक्ति दिला सके।
(ii) कठोरता को विवशता कहा गया है। यह इसलिए कि कल्याणकारी स्वरूप कठोरता से होने वाले कल्याण के लिए कठोरता को नहीं त्यागते हैं। उसके लिए वे विवश हो जाते हैं।
(iii) ‘मुझको ही सहना है’ का भाव है-उदारशील व्यक्ति सभी प्रकार के कष्टों-बाधाओं को सहकर परोपकार करते चलते हैं। दूसरों के कष्टों-अभावों को सहना वे अपनी मजबूरी मान लेते हैं।
3. मैं जानता हूँ, अनुमानता हूँ
मेरी उक्तियाँ झिडकियाँ
तनी-तनी भृकुटियाँ
कभी-कभी तुम्हें शूल-सी लगी हैं।
मुझे शूल तो
बनना ही था,
क्योंकि मेरी रक्षा-परिधि में
तुम्हें फूल बन
खिलना ही था।
शब्दार्थ-उक्तियाँ-कहावतें। अनुमानता-अनुमान करता हूँ। झिड़कियाँ-फटकार। भृकुटियाँ-आँखें दिखाना, क्रोध करना।शूल-काँटा, भाला। रक्षा परिधि-रक्षा की सीमा।
प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने एक योगय शिक्षक के अपने छात्र के प्रति आत्मकथन की स्पष्टता का उल्लेख किया है। शिक्षक का अपने छात्र के प्रति स्पष्ट रूप से कहना है
व्याख्या-मैं यह भलीभाँति जानता हूँ। यही नहीं, मैं यह अनुमान भी करता हूँ कि मैं जब कभी तुम्हें फटकारता और डाँटता हूँ। इसी प्रकार मैं जब कभी तुम्हें अपनी आँखें दिखाता हूँ तो तुम्हें उनसे बड़ी पीड़ा होती है। वे तुम्हें कभी-कभी शूल की तरह चुभो गयी होंगी, तो इसमें कोई शक नहीं है। लेकिन यह सब कुछ मैंने मजबूरी में किया है। मुझे तुम्हारे लिए शूल बनना भी मेरी एक ऐसी ही मजबूरी थी। यह मेरी रक्षा-परिधि थी। इसी में तुम्हें एक आकर्षित और सुगन्धित फूल खिलाना था।
विशेष-
- भाषा में ओज और प्रवाह है।
- तुकांत शब्दावली है।
- शैली उपेदशात्मक है।
- वीर रस का संचार है।
- ‘तनी-तनी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’
(ii) उपर्युक्त पद्यांश वीर रस से प्रवाहित और मुक्तक छंद से परिपुष्ट है। इसे तुकान्त शब्दावली की लयात्मकता और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार (कभी-कभी) व उपमा अलंकार (शूल-सी लगी है) से चमत्कृत किया गया है। प्रतीकात्मक शैली के प्रयोग के यह पद्यांश रोचक बन गया है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश की भाव-योजना स्पष्ट कथन पर आधारित है। उमसें सहजता, स्वाभाविकता और स्पष्टता की बहती हुई त्रिवेणी से अभिप्राय है ऊँचे तरंगे उठ रही हैं। इस प्रकार इस पद्यांश का भाव-सौन्दर्य मन को बार-बार छू रहा है, जो कवि की अद्भुत सफलता को प्रकट कर उसकी सार्थकता को सिद्ध कर रहा है।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) झिड़कियाँ और फिर तनी-तनी भृकुटियाँ के प्रयोग की क्या विशेषता है?
(ii) ‘रक्षा-परिधि’ से क्या तात्पर्य है?
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर
(i) झिड़कियाँ और फिर तनी-तनी भृकुटियाँ के प्रयोग की बड़ी विशेषता है। झिड़कियाँ अर्थात् फटकार का जब-जब कोई खास असर न होने पर तनी-तनी भृकुटियों के द्वारा असर डालने का विशेष प्रयास किया जाता है।
(ii) ‘रक्षा-परिधि’ से तात्पर्य है-कल्याणकारी योजना या सोच-विचार।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है-कल्याणार्थ कठोरता मूलतः फलदायिनी होती है।
4. जब-जब तुम
मौलिकता की साँस हिय में भरकर
उठाकर शीश आते,
किन्तु छंद के नये अर्थ बतलाते
तब-तब मैं खुशी से
गोल हो जाता
अपने में बड़ा
अनमोल हो जाता।
शब्दार्थ-हिय-हृदय। शीश-सिर। गोल-गद्गद् । अनमोल-अमूल्य।
प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि एक महान अध्यापक के अपने छात्र के प्रति व्यक्त किए भावों का उल्लेख किया है। अध्यापक अपने छात्र का हौसला बुलंद करते हुए कह रहा है
व्याख्या-मैं जब कभी तुम्हारी मौलिकता को देखता हूँ, तो प्रसन्न हो उठता हूँ। उस समय मुझे और अधिक प्रसन्नता होती थी, जब तुम अपने मौलिक विचार को हृदय से तौलकर मेरे सामने स्वाभिमानपूर्वक सिर उठाकर रखते थे। उससे भी मुझे बढ़कर प्रसन्नता तब होती थी, जब तुम छंदमय अपने भावों को मेरे सामने रखकर उसके अभिप्राय को स्पष्ट करते थे। उस समय की मेरी खुशी सभी खुशियों से ऊपर होती थी। इस प्रकार मैं बाग-बाग होकर अपने आप में बड़प्पन और अनमोल होने का अनुभव करने लगता था।
विशेष-
- भाषा सुस्पष्ट है।
- शैली प्रतीकात्मक है।
- मुक्तक छंद है।
- ‘जब-जब’ और ‘तब-तब’ मैं पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- यह अंश उत्साहवर्द्धक है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’
कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश की भाषा-सरल और सहज शब्दों की है। शैली-विधान लाक्षणिक है। लक्षणा शब्द-शक्ति से भावों के अर्थ को खोलने का प्रयास किया गया है। अलंकार-योजना की सटीकता और उपयुक्तता से यह आकर्षक बन गया है। मुक्तक छंद को वीर रस से गतिशील बनाने की सफलता सहज रूप में मान्य है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य तेज और ओज रूप में है। मौलिकता की नवीनता और अनूठापन इसकी एक खास विशेषता दिखाई दे रही है। चूँकि भाव असाधारण और प्रभावशाली हैं, इसलिए वे अपनी इस रोचकता में सुन्दरता की झलक स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत कर रहे हैं।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(क) ‘मौलिकता की साँस हिय में भरकर’ से क्या अभिप्राय है?
(ख) ‘उठाकर शीश आते’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ग) ‘खुशी से गोल हो जाता’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(क) ‘मौलिकता की साँस हिय में भरकर’ से अभिप्राय है–उन्मुक्त भावों के साथ प्रस्तुत होना।
(ख) ‘उठाकर शीश आते’ एक मुहावरा है, जिसका अर्थ है-स्वाभिमानपूर्वक
अपने आपको प्रस्तुत करने का साहस करना।
(ग) ‘खुशी से गोल हो जाता’ का अर्थ है-फूले न समाना। दूसरे शब्दों में दूसरों की उन्नति देखकर अपने-आपको भूल जाना।
5. मैं नींव बन नीचे रहूँगा
लेकिन तुम सीढ़ियाँ चढ़ना
हर दिवस बढ़ना हर रात बढ़ना आसमान छूना।
तुम रुकोगे तो नींव में गड़ी-गड़ी
मेरी अस्थियों में दर्द होगा।
शब्दार्थ-नींव-बुनियाद। दिवस-दिन। अस्थियाँ-हड्डियाँ। दर्द-कष्ट, पीड़ा।
प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने महान अध्यापक की उदारता-त्यागशीलता को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। महान् अध्यापक अपने छात्र को उन्नति के शिखर पर चढ़ाने के लिए उत्साहित करते हुए कह रहा है
व्याख्या-मैं तुम्हारी हरेक प्रकार की उन्नति के लिए बुनियाद बनने के लिए तैयार हूँ। मेरी इस बुनियाद पर तुम अपनी उन्नति की एक-से-एक बढ़कर सीढ़ियों पर लगातार चढ़ते जाना। इससे मुझे अपार प्रसन्नता और सुख की अनुभूति होगी। इसके लिए मेरी यही तुमसे हार्दिक इच्छा व्यक्त कर रहा हूँ कि तुम हरेक दिन और रात बिना किसी रोक-टोक के उन्नति के शिखर पर चढ़कर आसमान को छूते चलो। किसी भी अवस्था में न रुको और न पीछे हटो। अगर तुम किसी प्रकार से रुक जाओगे या पीछे हटने लगोगे तो मुझे भारी दुख होगा। मेरी उम्मीदों पर पानी फिर जाएगा। फलस्वरूप उस बुनियाद में पड़ी और गड़ी हुईं मेरी हड्डियाँ में बहुत बड़ी पीड़ा होने लगेगी। शायद ऐसी पीड़ा होगी, जिससे वे छटपटाने लगेंगी।
विशेष-
- मुक्तक छन्द है।
- ‘आसमान छूना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
- ‘गड़ी-गड़ी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- भावात्मक शैली है।
- वीर रस और करुण रस का मिश्रित प्रवाह है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’
कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य सरस और आत्मीय भावों पर आधारित है। ‘नींव बनना, आसमान छूना’ जैसे मुहावरों और तत्सम तद्भव शब्द के मेलजोल क्रो-पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार से चमत्कृत-मंडित किया गया है। प्रतीकात्मक शैली और मुक्तक छंद के प्रयोग से यह पद्यांश और रोचक हो गया है। . (iii) उपर्युक्त पद्यांश में अध्यापक की उदारता, सहनशीलता, आत्मीयता, सरसता और त्यागशीलता जैसे अत्युच्च भावों की प्रस्तुति अपने आप में अनूठी हे। छात्र को उन्नति के शिखर पर चढ़ते जाते हुए देखने की तमन्ना और उसके रुक जाने से दुखी होने की भावना एक सुयोग्य अध्यापक में ही संभव है। इसे दर्शाने में कवि का प्रयास सचमुच में सराहनीय है।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) ‘नींव बनने से क्या अभिप्राय है?
(ii) ‘नींच में गडी-गड़ी अस्थियों’ का मुख्यार्थ बताइए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) ‘नींव बनने’ से अभिप्राय है-परोपकारार्थ त्याग-समर्पण कर देना।
(ii) ‘नींव में गड़ी-गड़ी अस्थियों’ का मुख्यार्थ-परोपकारार्थ अपना सब कुछ न्यौछावर कर देने का एकमात्र जीवन लक्ष्य प्रस्तुत करना।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है-आधुनिक स्वार्थवाद के घोर अंधकार से बाहर निकालकर एक सुयोग्य अध्यापक का अपने छात्र के भविष्य को चमकाने की प्रेरणा देना।
6. तुम खिलो, महको
गंधदान का यज्ञ रचाओ इसीलिए,
तुम्हारी स्वच्छंदता को छंदा था मैंने।
तुम मरुस्थल थे।
मैं तुम्हारे हित बरसा बन सावन
आज तुम कितने भावन!
शब्दार्थ-खिलो-फूल जाओ, विकसित हो जाओ। महको-सुगंध फैलाओ। गंधदान-सुगंध को प्रदान करना। छंदा था-छंदबद्ध किया था। हित के लिए (भलाई के लिए)। भावन-मन को भाने (अच्छे लगने) वाले।
प्रसंग-पूर्ववत्। इसमें कवि ने एक महान अध्यापक के द्वारा अपने छात्र को परोपकारी होने का सदुपदेश देने का उल्लेख किया है। अध्यापक का अपने छात्र को परोपकार करने की सीख देते हुए यह कहना है
व्याख्या-तुम अपने जीवन-पथ पर लगातार बढ़ते अपने सद्गुणों को बिखेरते चलो। उनसे लोगों को आकर्षित और मोहित करते हुए आगे बढ़ते चलो। संभव हो
सके तो अपने उज्ज्वल गुणों से लोगों को यथाशक्ति सुख-सुविधाएँ पहुँचाते चलो। . तुम्हारे प्रति इस प्रकार आशावान होकर मैंने तुम्हारे स्वतंत्र विकास के लिए अनेक भावों को संजोया था। मैंने इसीलिए तुम्हारी जिज्ञासारूपी मरुस्थल के लिए अपने . सद्भावों और सशिक्षाओं रूपी सावन की बरसात की थी। उससे तुम कितने खिल उठे हो, यह मैं अनुभव कर रहा हूँ।
विशेष-
- अध्यापक की सद्भावना का छात्र पर पड़े हुए प्रभावों का उल्लेख है।
- शैली उपदेशमयी है।
- ‘तुम मरुस्थल थे’ में रूप अलंकार है।
- वीर रस का प्रवाह है।
- मुक्तक छन्द है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’
कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-स्वरूप सरल किन्तु प्रेरक भाषा-शैली से तैयार है उपदेशात्मक शैली और वीर रस से संचारित मुक्तक छंद की धारा भावों को तेजी से बढ़ा रही है। बिम्ब और प्रतीक अभिधा शक्ति के द्वारा प्रस्तुत रूपक अलंकार के चमत्कार से इस पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य चमक उठा है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य बड़ा ही सहज, सरल और सपाट है। भावों में जहाँ आत्मीयता है, वहीं उनसे रोचकता और सरसता भी है। कुल मिलाकर उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य मनमोहक और हृदयस्पर्शी है।।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) ‘गंधदान का यज्ञ कराओ’ कहने का क्या तात्पर्य है?
(ii) ‘तुम मरुस्थल थे
मैं तुम्हारे हित बरसा बन सावन।’
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
(iii) ‘आज तुम कितने भावन’ का भावार्थ लिखिए।
उत्तर
(i) “गंधदान का यज्ञ कराओ’ कहने का तात्पर्य है-अपने दिव्य और उच्च गुणों के द्वारा परोपकार की सरस धारा निरन्तर प्रवाहित करते रहना।
(ii) ‘तुम मरुस्थल थे,
तुम्हारे हित बरसा
बन सावन।
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव यह है कि दीन-दुखी हृदय को सही रूप में पहचान कर उनके दुखों और अभावों को अपनी शक्ति सम्पन्नता से दूर करने का प्रयास करते रहना चाहिए। उनकी संतुष्टि से सुख-आनंद का वातावरण तैयार होता है।
(iii) ‘आज तुम कितने भावन’ का भावार्थ है-दुःखी और संतप्त हृदय में जब सुख-आनंद का प्रवाह होने लगता है, तब एक अपूर्व सौन्दर्य का वातावरण फैलकर मन को मोह लेता है।
7. यह दुनिया एक अंधा कुआँ है
लो, मैं रज्जु बन लटका हूँ
निश्चित होकर तुम अपने-अपने
पात्र भर लो अपनी फुल-बगिया का
सिंचन कर लो।
शब्दार्थ-रज्जू-रस्सी। पात्र-बर्तन, घड़ा। बगिया-बाग। सिंचन-सिंचाई।
प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने एक महान अध्यापक के द्वारा अपने अज्ञानी और भटके हुए छात्र के प्रति कथन को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इस विषय में अध्यापक का कहना है
व्याख्या-यह सारा संसार एक अंधकारमय कुआँ है। उसमें तुम पड़े हुए छटपटा रहे हो। अब तुम्हें इसमें और पड़े रहकर छटपटाने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारा इससे बाहर निकलने का समय आ गया है। इसके लिए रस्सी के समान इसमें लटक रहा हूँ। अब तुम बिल्कुल ही निडर हो जाओ। फिर अपनी आवश्यकतानुसार इसमें से अपने घड़े में पानी भर लो। इस तरह अब तुम अपनी स्वतंत्रता रूपी फूलों के बाग की सिंचाई करके अपने जीवन को धन्य कर लो।
विशेष-
- भाषा सरल और सुबोध है।
- दुनिया को एक अंध कुआँ के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसलिए इसमें रूपक अलंकार है।
- तुकान्त शब्दावली है।
- लय और संगीत की ध्वनि आकर्षक रूप में है।
- मुक्तक छंद है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ ।
कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-स्वरूप आकर्षक और मोहक है। दुनिया को अंधा कुआँ के रूप में प्रस्तुत किया गया है फिर उससे ज्ञान की रस्सी से अपेक्षित जल प्राप्त करके अपने मन रूपी बागों में इच्छामयी फूलों को खिलाने की रूपक-योजना निश्चय ही ऊँची है और सराहनीय भी है।।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश की भाव-विधान अद्भुत और प्रेरक रूप में है। तुकान्त शब्दावली असंस्कृत भावयोजना से यह पद्यांश सुन्दर और भाववर्द्धक बन गया है।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) ‘अंध कुआँ’ से क्या तात्पर्य है?
(ii) ‘रज्जु बनना’ किसका प्रतीक है?
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर
(i) ‘अंध कुआँ’ से तात्पर्य है-‘गहरा और अत्यधिक स्वार्थ’।
(ii) ‘रज्जु बनना’ सहायक होने का प्रतीक है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है-योग्य और समर्थ व्यक्ति ही मुसीबतों से निकालकर सुखमय जीवन प्रदान करता है।
8.मेरी आत्मा के अंशज हो तुम,
मेरी आत्मा के वंशज हो तुम,
मेरी अर्जन हो तुम,
मेरी कविता हो तुम
मेरा सर्जन हो तुम,
रक्षा, कवच की भांति,
मेरा आशीष तुम्हारे साथ।
जाओ, जाकर आँधी से टकराओ,
तूफानों से खेलो,
सबको अपनी छाती पर झेलो
जिनकी पसलियों में
मैं वज्र बनकर मिल गया हूँ,
अधरों पर तुम्हारे
फूल बनकर खिल गया हूँ।
शब्दार्थ-अंशज-अंश से उत्पन्न। वंशज-वंश से जन्म लेने वाले । अर्जन-प्राप्ति । सर्जन-निर्माण। आशीष-आशीर्वाद। अधरों-ओठों।
प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने एक महान अध्यापक के द्वारा अपने छात्र का हौसला बढ़ाने के लिए उसे सब कुछ अपना मानने का उल्लेख किया। इस विषय में अध्यापक का कहना है
व्याख्या-मेरी आत्मा के अंश से ही तुम उत्पन्न हो और मेरे ही वंश में जन्म लेने वाले हो; अर्थात् तुममें मेरे गुण-संस्कार वर्तमान हैं। उन्हें केवल तुम्हें प्रकट कर देना है। इस प्रकार तुम मेरे अर्जन हो, सर्जन हो। यही तुम मेरी कविता हो और इस प्रकार के मौलिक व्यक्तित्व के निर्माण स्वरूप हो। यही कारण है कि मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ एक रक्षा-कवच की तरह मौजूद है। इसलिए अब मैं तुम्हें यही आदेश दे रहा हूँ कि तुम इन सब बातों को अपने हृदय की गहराइयों में उतार लो। फिर अपने सामने वाली हर एक प्रकार की कठिनाइयों रूपी आँधियों से टकरा जाओ। उन्हें तुम समाप्त कर दो। सामने वाले एक-से-एक जानलेवा संकट रूपी तूफानों को तुम खेल-ही-खेल मसल डालो। इस प्रकार तुम उन सबको अपनी अपार शक्ति से झेलते हुए आगे बढ़ते जाओ, जिनकी पसलियों में बज्र बनकर समा गया हूँ। इस प्रकार तुम्हारे अंदर शक्ति का संचार करके मैं तुम्हारे ओठों पर फूल की तरह सुन्दरता बिखेर रहा हूँ।
विशेष-
- भाषा की शब्दावली असाधारण है।
- लक्षणा शब्द-शक्ति है।
- ‘मेरी’ और ‘तुम’ शब्दों की पुनरावृत्ति होने से पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- वीर रस का प्रवाह है।
- लय-संगीत की सुन्दर योजना है।
- प्रतीकात्मक और उपदेशात्मक शैली है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’
कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-स्वरूप पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार से अलंकृत-मंडित है। वीर रस के संचार और मुक्तक छंद के द्वारा उसे मुक्त रूप से प्रस्तुत करने का कवि-प्रयास आकर्षक है। भाषा की शब्दावली को तुकान्त रूप देकर लक्षणा शब्द-शक्ति से मजबूत और प्रभावशाली बनाने की शैली भी मन को अपनी ओर खींच लेती है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश की भावधारा सहज रूप में प्रवाहित होकर विशेष अर्थ को प्रकट कर रही है। सम्पूर्ण पद्यांश आत्मीय भावों पर आधारित होकर कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरक स्वरूप बन गया है। ‘जाओ, जाकर आँधी से टकराओ, तूफानों से खेलो’ और सबको अपनी छाती पर झेलो जैसें भाव साधारण रूप में होकर असाधारण अर्थ को व्यक्त कर रहे हैं।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव लिखिए।
(ii) ‘मेरा-मेरी’ के साथ ‘तुम’ की पुनरावृत्ति से कौन-से भाव व्यक्त हो रहे हैं?
(iii) ‘फूल बनकर खिल गया हूँ’ का तात्पर्य क्या है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है-आत्मीय भावों के द्वारा सोए हुए पुरुषार्थ को जगाना।
(ii) ‘मेरा-मेरी’ के साथ ‘तुम’ की पुनरावृत्ति से आत्मीय भाव व्यक्त हो रहे हैं।
(iii) ‘फूल बनकर खिल गया हूँ’ का तात्पर्य है-अत्यधिक प्रसन्नता से झूम उठना ।
9. मैं धनुष की प्रत्यंचा हूँ
अपनी पूरी शक्ति से खींचो,
रखना विश्वास नहीं टूटूंगा,
नहीं टूटूंगा चलाओ ज्ञान के तुम तीर
अज्ञान की मीन को बेध डालो
सफलता की द्रोपदी का स्वयंवर रचेगा।
शब्दार्थ-धनुष-धनुष की डोरी। मीन-मछली।
प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने एक सुयोग्य अध्यापक का अपने छात्र के प्रति आत्मीयतापूर्ण कथन को प्रस्तुत किया है। इस विषय में अध्यापक का कहना है
व्याख्या-मैं तुम्हारे लिए धनुष की प्रत्यंचा हूँ। अर्थात तुम मेरा आधार (सहयोग) लेकर अपने कर्मक्षेत्र में आगे बढ़ो। अपनी पूरी शक्ति से बढ़ो। इसके लिए तुम मेरी प्रत्यंचा (मेरा सहयोग) जितना चाहो, प्राप्त कर सकते हो। ऐसा करते समय तुम पूरी तरह से इस बात के लिए विश्वस्त रहना कि यह मेरी प्रत्यंचा (अर्थात् मेरी सहयोग शक्ति नहीं टूटेगी। इस पर तुम निश्चिंत होकर अपने ज्ञान-शक्ति की तीर चलाते चलो। इससे अज्ञानमयी मछली का बेधन कर अर्जुन की तरह सफलतापूर्वक द्रोपदी को स्वयंवर में वरण कर लोगे।
विशेष-
- भाषा में ओज, प्रभाव और आकर्षण है।
- शैली उपदेशात्मक है।
- प्रतीक शब्दावली है।
- मुक्तक छंद है।
- पौराणिक कथा को प्रेरक रूप में प्रस्तुत किया गया है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’
कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश की काव्य-योजना में रूपक अलंकार की प्रधानता है। पौराणिक कथा-प्रसंग को सजीवता प्रदान करने के लिए कवि ने लक्षणा शब्द-शक्ति के बल-प्रयोग से कथन को आकर्षक बना दिया है। वीर रस की तीव्रता से भाव-अभिप्राय तुरन्त स्पष्ट हो रहे हैं। इस प्रकार यह पद्यांश अपने काव्य-सौन्दर्य से हृदय को छू लेता है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-विधान प्रतीकात्मक है। महाभारत पुराण की घटना पर आधारित प्रस्तुत कथन स्वाभाविक रूप से आकर्षक है। इससे प्रस्तुत हुई भावधारा और अधिक तेज हो गयी है। इस कथन का प्रभाव इस दृष्टि से और अधिक बड़ा हो गया है कि इसमें कल्पना की उड़ान नहीं है, यथार्थ का ही सपाट धरातल है।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश का प्रतिपाद्य लिखिए।
(ii) ‘धनुष की प्रत्यंचा’ रूपक को स्पष्ट कीजिए।
(iii) द्रोपदी के स्वयंवर के प्रतीक को लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा सहयोग प्रदान करने की निरंतरता और उसके प्रति महत्त्वाकांक्षा का उद्घाटन किया गया है। प्रेरणा जगाने के मूल भाव के द्वारा इसे प्रस्तुत किया गया है।
(ii) ‘धनुष की प्रत्यंचा’ रूपकार्थ प्रस्तुत है, जिसका मूल और सांकेतिक दोनों ही अर्थ है-पूर्ण रूप से सहयोग प्रदान करना। धनुष की प्रत्यंचा से बाण को छोड़कर लक्ष्य साधने का प्रयास सफलता को प्रदान करता है। सहयोग से भी लक्ष्य की प्राप्ति आसान हो जाती है।
(iii) द्रोपदी का स्वयंवर प्रतियोगिता और सर्वाधिक एवं सर्बोच्च पुरुषार्थ प्रदर्शित करने का प्रतीक है।
10. तुम्हें खुश देख लेता हूँ
मेरा मन झूम उठता है।
तुम्हें गमगीन जब देखू
मेरा मन सूख जाता है।
शब्दार्थ-गमगीन-उदास। सूख जाता है-दुखी हो जाता है।
प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने एक उदार और सुयोग्य अध्यापक के अपने छात्र के प्रति व्यक्त की गई अत्यधिक आत्मीयता का उल्लेख किया है। इस विषय में अध्यापक का कहना है
व्याख्या-मेरी भावना तुमसे अटूट रूप से जुड़ी हुई है। इसलिए मैं तुम्हारे हर सुख-दुख में हरदम जुड़ा हुआ हूँ। यही कारण है कि जब मैं तुम्हें सुखी और आनंदित देखता हूँ, तब मैं गद्गद् हो उठता हूँ। इसके विपरीत जब मैं तुम्हें उदास और चिन्तित देखता हूँ, तब मैं दुखी होने लगता हूँ। कहने का भाव यह कि तुम खुश हो तो मैं खुश हूँ और तुम दुखी तो मैं भी दुखी।
विशेष-
- सम्पूर्ण कथन सुस्पष्ट है।
- शैली आत्मीय है।
- उर्द शब्दों की प्रधानता है।
- ‘मेरा मन’ में अनुप्रास अलंकार है।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’ ।
कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’ ।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य-विधान बिल्कुल सरल और सामान्य है। उर्दू शब्दों के द्वारा अनुप्रास अलंकार के चमत्कार को तुकान्त शब्द-योजना से प्रभावशाली बनाने का प्रयास उल्लेखनीय है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश की भावधारा सरल तो है, लेकिन सपाट है। बिना किसी लाग-लपेट के कथन को प्रस्तुत करने का ढंग अनोखा है। इससे कथ्य का तथ्य बड़ी आसानी से स्पष्ट हो रहा है।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव लिखिए।
(ii) ‘झूम उठना’ और ‘सूख जाना’ किस प्रकार के शब्द-प्रयोग हैं? स्पष्ट कीजिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश में आत्मीयता पूर्ण भावों का उल्लेख हुआ है, जो परस्पर कटुता और दूरी को समाप्त कर निकटता और अभेद को उत्पन्न करने के लिए अपेक्षित हैं।
(ii) ‘झूम उठना’ और ‘सूख जाना’ परस्पर विपरीतार्थ शब्द-प्रयोग हैं। खुशी के साथ गम के प्रतीक ये शब्द हमारे जीवन की सच्चाई को व्यक्त करते हैं।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश से हमें परस्पर मेल-मिलाप की शिक्षा मिलती है। परस्पर सहयोग और सहानुभूति रखना ही जीवन की महानता है, यह भी शिक्षा मिलती है।
11. मैं साधना हूँ
तुम सिद्धि बन जाना,
मैं नयन हूँ
तुम दृष्टि बन जाना,
विजय का स्तम्भ हूँ मैं
तुम विजय का केतु बन जाना,
हथेली पर तुम विजय कर
‘आज’ रख लेना,
मानस पिता हूँ मेरी
लाज रख लेना।
मेरी लाज रख लेना।
शब्दार्थ-साधना-तपस्या। सिद्धि-फल । नयन-आँख । स्तंभ-खंभा। केतु-पताका, झंडा। मानस-मन से उत्पन्न।
प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने एक महान, सुयोग्य और उदार शिक्षक का अपने छात्र के प्रति दी गई प्रेरणादायक बातों का उल्लेख किया है। अध्यापक का अपने छात्र से कहना है
व्याख्या-तुम सदैव अपने प्रगति-पथ पर बढ़ते चलो, मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करता रहूँगा। इसके लिए मैं साधना बनकर तुम्हारे साथ रहूँगा और तुम सफलता बनकर आगे बढ़ते जाना। इसी प्रकार मैं तुम्हारे आँख बनकर रहूँगा, तो तुम ज्योति रूप में बढ़ते चले जाना। इसी प्रकार में तुम्हारे विजय के स्तंभ के रूप में मौजूद रहँगा, तो तुम विजय की पताका बनकर फहराते चलते चले जाना। तुम्हें आज इन बातों को बड़ी गंभीरतापूर्वक अमल करना नहीं भूलना है यह मैं इसलिए कह रहा हूँ कि मैं तुम्हारा मानस पिता हूँ। इसे समझकर तुम आज मेरी इन बातों को हृदय से स्वीकार करके मेरी महिमा को बनाए रखना। तुमसे मेरी यही उम्मीद भी है कि तुम मेरा महत्त्व घटाओगे नहीं अपितु बढ़ाते ही जाओगे।
विशेष-
- मुक्तक छंद है।
- वीर रस का प्रवाह है।
- ‘विजय की स्तंभ होना’ और ‘लाज रख लेना’ मुहावरों के साथ प्रयोग है।
- शैली आत्मीय और भावपूर्ण है।
- भाषा के शब्द अत्यन्त सरल हैं।
1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) कवि-डॉ. देवेन्द्र ‘दीपक’
कविता-‘धनुष की प्रत्यंचा’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश की काव्य-योजना सरल और नपे-तुले शब्दों पर आधारित है। परस्पर अर्थों की समानता की शब्द-योजना से भावों की स्पष्टता दिखाई दे रही है। मुक्तक छन्द के इस प्रवाह में लय-संगीत की मधुरता बहुत मोहक है। बिम्बों-प्रतीकों की प्रस्तुति प्रशंसनीय है।
(iii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-विधान सहज और अपेक्षित रूप में है। पथ-प्रदर्शक की प्रेरणा और उसकी अपेक्षाएँ मर्यादित और सीमाबद्ध हैं। इसके माध्यम से उपदेशात्मक लक्ष्य को रखने का कवि-प्रयास निश्चय ही काबिलेतारीफ है।
2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
(i) उपर्युक्त. पद्यांश का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में किन भावों को महत्त्व दिया गया है और क्यों?
(iii) ‘लाज रखने का मुख्यार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश के द्वारा अध्यापक की सद्भावनाओं को दर्शाने का प्रयास किया गया है। इसे अत्यधिक उपयोगी और अपेक्षित रूप में भी लाने का एक प्रयास प्रस्तुत हुआ है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में आत्मीयतापूर्ण भावों को महत्त्व दिया गया है। यह इसलिए यह आज समाज में नहीं है। इसके बिना समाज का रूप बिगड़ रहा है। इसलिए उसकी आज सख्त जरूरत है।
(iii) ‘लाज रखने’ का मुख्यार्थ मर्यादा-महत्त्व को बचा लेना। आज अध्यापक की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। उसे उसका अपना ही कोई छात्र बचा सकता है।