MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 7 मातृभाषा

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solution Chapter 7 मातृभाषा (भारतेन्दु)

मातृभाषा अभ्यास-प्रश्न

मातृभाषा लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उन्नति का आधार कवि ने मातृभाषा को क्यों बताया है?
उत्तर
उन्नति का आधार कवि ने मातृभाषा को बताया है। यह इसलिए कि इससे ही जीवन में सभी प्रकार की उन्नति हो सकती है।

प्रश्न 2.
कवि ने किस भाषा में बातचीत करने की सलाह दी है और क्यों?
उत्तर
कवि ने हिन्दी भाषा में बातचीत करने की सलाह दी है। यह इसलिए कि यह गुण और किसी भाषा में नहीं है। .

प्रश्न 3.
भाषा में क्या-क्या समाया हुआ है?
उत्तरभाषा में धर्म, युद्ध, विद्या, कला, गीत-संगीत, काव्य आदि से संबंधित ज्ञान की बातें समाई हुई हैं।

मातृभाषा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारतेन्दु जी ने मातृभाषा को सर्वोपरि क्यों कहा है?
उत्तर
भारतेन्दु जी ने मातृभाषा हिन्दी का महत्त्वांकन किया है। उन्होंने हिन्दी का महत्त्वांकन करते हुए उसे सर्वोपरि कहा है। यह इसलिए कि यही सभी प्रकार की उन्नति का मूल है। इसमें ही सभी प्रकार का ज्ञान समाया हुआ है।

प्रश्न 2.
सफल जीवन जीने के लिए हिन्दी भाषा को कवि ने अनिवार्य क्यों बताया है?
उत्तर
सफल जीवन जीने के लिए हिन्दी भाषा को कवि ने अनिवार्य बताया है। यह इसलिए कि इससे ही धर्म, युद्ध, ज्ञान, कला, गीत-संगीत और काव्य के ज्ञान प्राप्त किए जा सकते हैं।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का भावार्य लिखिए

(क) अंग्रेजी पढ़के जदपि सब गुन होत प्रबीन।
पे निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
उत्तर
उपर्युक्त पंक्तियों के द्वारा कवि ने यह भावं प्रकट करना चाहा है कि अंग्रेजी भाषा का महत्त्व है। वह गुणों को प्रदान करती है, फिर भी अपनी भाषा अर्थात् हिन्दी भाषा के सामने वह छोटी है। वह हृदय की पीड़ा को मिटाने में असमर्थ है। भाव यह कि हमें अंग्रेजी भाषा की चमक-दमक में अपनी भाषा-बोली को नहीं भूलना चाहिए।

(ख) धर्म, जुद्ध, विया, कला, गीत, काव्य अरु ज्ञान।
सबके समझन जोग है, भाषा भांति समान।
उत्तर
उपर्युक्त पंक्तियों के द्वारा कवि ने यह भाव प्रकट करना चाहा कि हमारी हिन्दी भाषा से ही सभी प्रकार के ज्ञान संभव हैं, चाहे वह धर्म, युद्ध, कला का हो या काव्य और गीत-संगीत का हो। भाव यह है कि हिन्दी भाषा ही सभी भाषाओं से सबल, योग्य और ग्राह्य है।

प्रश्न 4.
‘बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल।’ इस पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘बिन निज भाषा ज्ञान के मिटत न हिय को सूल। इस पंक्ति में निहित भाव यह है कि हिन्दी भाषा ही सब प्रकार की हार्दिक पीड़ा को समाप्त करने में समर्थ है, अर्थात् हिन्दी भाषा ही जनसम्पर्क का बहुत बड़ा साधन है, जिससे परस्पर बातचीत करके अपने दुख-अभाव को बाँटा जा सकता है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या लिखिए

(क) पढ़े संस्कृत जतन करि पंडित भे विख्यात।
पै निज भाषा ज्ञान बिन कहि न सकत इक बात।।
उत्तर
भारतेन्दु जी कह रहे हैं कि मेरे जीवन की एकमात्र धारणा और विचार है कि जीवन की सभी प्रकार की उन्नति की जड़ तो अपनी मातृभाषा हिन्दी ही है। इसकी ही उन्नति से जीवन में सभी प्रकार की उन्नति हो सकती है अन्यथा और कोई उपाय नहीं है। इसीलिए अपनी इस मातृभाषा हिन्दी के ज्ञान और उन्नति के बिना मेरे हृदय की पीड़ा किसी भी प्रकार से दूर नहीं हो सकती है।

(ख) विविध कला शिक्षा अमित ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन से ले करहू भाषा मांहि प्रचार ॥
उत्तर
कवि भारतीयों को मातृ-भाषा के प्रचार एवं प्रसार हेत उद्बोधन करते हुए कहता है कि संसार में कला, शिक्षा और ज्ञान का क्षेत्र अपरिमित है। अतः, सभी
देशों से सम्पर्क अधिक-से-अधिक ग्रहण करके, उसे अपनी मातृभाषा के माध्यम से प्रचारित कीजिए। इस प्रकार सहज ही मातृ-भाषा की उन्नति हो सकेगी।

मातृभाषा भाषा-अध्ययन/काव्य-सौंदर्य

प्रश्न 1. कुछ क्षेत्र विशेष में ‘य’ का उच्चारण ‘ज’ के रूप में किया जाता है। जैसे-जतन, जोग। इसी तरह के कुछ शब्द पठित पाठ से चुर्ने तथा अर्व लिखें।
प्रश्न 2. ब्रज भाषा के अनेक शब्द जैसे-बिन, तवै, सुने आदि। ऐसे ही अन्य शब्दों की सूची पाठ के आधार पर बनाइए।
प्रश्न 3. सूल तथा देसन शब्दों में श के स्थान पर स का प्रयोग हुआ है। इसी तरह के कुछ शब्द छाँटकर उनके मानक रूप लिखिए।
उत्तर
1. शब्द – अर्थ
जदपि – फिर भी
सोग – चिन्ता
जुद्ध – लड़ाई।

2. ब्रजभाषा के अनेक शब्द : जैसे-अहै, बिनु, कौ, करि, नाहीं, लोक-रहु, माँहि, समझन आदि।
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मातृभाषा योग्यता-विस्तार

1. हिन्दी दिवस कब मनाया जाता है, क्यों मनाया जाता है? अपने शिक्षक से जानकारी प्राप्त कीजिए। एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी विषय पर आलेख तैयार कीजिए।
2. अपनी मातृभाषा के अन्य कवियों की कविताएँ संकलित कर हस्तलिखित पुस्तिका तैयार करें।
3. किसी समय विशेष में बना अंग्रेजी भाषा का प्रयोग किए केवल हिन्दी में वार्तालाप करने का खेल खेलें। अंग्रेजी के आने पर अंक काटें।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

मातृभाषा परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अपनी भाषा के ज्ञान के बिना क्या होता है?
उत्तर
अपनी भाषा के ज्ञान के बिना हृदय की पीड़ा मिटती नहीं है। वह बनी रहती है।

प्रश्न 2.
मूढ़ता का शोक कैसे मिटता है?
उत्तर
मूढ़ता का शोक परस्पर एक ही भाषा के व्यवहार और एक ही विचारधारा से मिटता है।

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प्रश्न 3.
मातृभाषा की उन्नति कैसे हो सकती है?
उत्तर
संसार में अनेक प्रकार हैं-शिक्षा, कला और ज्ञान के। इन सभी का सम्पर्क-संसार के देशों से करके अपनी मातृभाषा के माध्यम से प्रचारित करना चाहिए। इससे मातृभाषा की उन्नति हो सकती है।

मातृभाषा दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
अंग्रेजी भाषा से हिन्दी भाषा क्यों श्रेष्ठ है?
उत्तर
यद्यपि अंग्रेजी भाषा को पढ़ने से ज्ञान प्राप्त होता है। उससे ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में विस्तार होता है। उससे अनेक प्रकार के ज्ञान में प्रवीणता हासिल होती है। फिर अपनी भाषा हिन्दी के ज्ञान के बिना सब कुछ अधूरा है। यही नहीं हर प्रकार की हीनता और कमी बनी ही रहती है।

प्रश्न 2.
मातृभाषा के प्रयोग का लाभ क्या है?
उत्तर
मातृभाषा के प्रयोग का लाभ यह है कि यदि केवल अपनी ही मातृभाषा में ज्ञान और विद्या की बातें की जाएँ, तो बड़ी आसानी से वह ज्ञान और विद्या प्राप्त हो जाती है। यह और किसी दूसरी भाषाओं के प्रयोग से किसी प्रकार न तो सुलभ है और न संभव ही।

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प्रश्न 3.
संस्कृत और हिन्दी भाषा में क्या अंतर है?
उत्तर
संस्कृत और हिंदी भाषा में बड़ा अंतर है। संस्कृत भाषा हिंदी भाषा की तुलना में कठिन है। इसलिए उसे समझना या उसका ज्ञान प्राप्त करना आसान नहीं है। बहुत प्रयत्न करके ही कोई उसमें पंडित हो सकता है। इसकी तरह हिंदी भाषा नहीं है। उसे समझना या उसका ज्ञान प्राप्त करना बड़ा ही आसान है। उसमें आसानी से कोई भी पंडित हो सकती है। इस प्रकार अंग्रेजी भाषा में अपने अनुभव (ज्ञान) को नहीं कहा जा सकता है, जबकि हिन्दी में इसे वही आसानी से कहा-सुना जा सकता है।

प्रश्न 4.
‘मातृभाषा’ कविता का प्रतिपाय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र-विरचित प्रस्तुत कविता ‘मातृभाषा’ में मातृभाषा की उन्नति और उसके महत्त्व को बड़े ही सरल और स्पष्ट शब्दों में बतलाया गया है। कविवर भारतेन्दु जी का यह मानना है कि मातृभाषा को छोड़कर किसी और भाषा में कितना ही प्रवीण हो जाए, किन्तु मातृभाषा के ज्ञान के अभाव में उसके ज्ञान का क्षेत्र बिल्कुल अधूरा ही माना जाएगा। किसी के लिए भी धर्म, युद्ध, ज्ञान, कला और काव्य के क्षेत्र में ज्ञानार्जन तभी संभव है, जब उसे अपनी मातृभाषा का ज्ञान हो। देश के सुव्यवस्थित संचालन, समुन्नत करने में मातृभाषा का सर्वोच्च स्थान है। इस प्रकार कवि ने दूसरी भाषाओं का सम्मान करते हुए मातृभाषा को ही उन्नति के शिखर पर पहुँचाने वाला सबसे बड़ा माध्यम बताया है।

मातृभाषा कवि-परिचय

प्रश्न
कविवर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-युग-प्रवर्तक बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी के एक सम्पन्न परिवार में सन् 1850 में हुआ था। उनके पिता बाबू गोपालचन्द (उपनाम गिरिधर दास) भी ब्रजभाषा के विख्यात कवि थे। छोटी अवस्था में ही बाबू भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने बंगला, हिन्दी, संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त कर लिया था। पाँच वर्ष की आयु में ही उन्होंने एक दोहा लिखकर सबको चौंका दिया था। पिता की मृत्यु के बाद उन्होंने अपनी लाखों की सम्पत्ति साहित्य-सेवा में लगा दी। उनकी मृत्यु सन् 1885 में हुई।

रचनाएँ-भारतेन्दु जी की निम्नलिखित रचनाएँ हैं

1. कविता संग्रह-‘प्रेम माधुरी’, ‘प्रेम फुलवारी’, ‘प्रेम-मालिका’, ‘प्रेम-प्रलाप’ आदि।

पत्रिकाएँ-‘कवि वचन सुधा’ तथा ‘हरिश्चन्द्र मैगजीन।

नाटक-‘भारत-दुर्दशा’, ‘वैदिकी हिंसा-हिंसा न भवति’, ‘नीलदेवी’, ‘अंधेर नगरी’ आदि।

साहित्यिक महत्त्व-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने सच्चे युग-चेत्ता कवि की मते जहाँ जन-जीवन के मर्म को परखा और काव्य-वाणी प्रदान की, वहाँ उसके उद्धार और कल्याण के लिए मार्ग-दर्शन भी दिया। हिन्दी-भाषा के प्रचार और काव्य में समन्वयवादी दृष्टि से उनके महत्त्व को कभी नहीं भुलाया जा सकता। युग और जीवन की आन्तरिक स्थिति के अनुरूप आपने जहाँ कविता के भावपक्ष को विस्तृत किया और उसमें जन-जीवन की ध्वनि को गुंजित किया। वहाँ कलापक्ष की दृष्टि से भी अनेक नूतन प्रयोग कर विविध काव्य-रूपों को गति प्रदान की। निःसन्देह वह सच्चे समाज और राष्ट्र के प्रतिनिधि कवि थे। उनकी वाणी में देश की वाणी गूंजती थी। वह हदय से सच्चे भक्त, स्वभाव से रसिक और साधना की दृष्टि से सफल, सजग एवं युग-प्रतिष्ठापक कवि-कलाकार थे। हिन्दी-साहित्य की प्रत्येक विधा को छूकर आपने उसे जीवन-शक्ति दी। अतः, उसके इतिहास में आपका नाम सदैव अविस्मरणीय रहेगा।

मातृभाषा संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

पदों की सप्रसंग व्याख्या, काव्य-सौंदर्य एवं विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।।

शब्दार्थ-निज-अपनी। हिय-हृदय। सूल-पीड़ा।

प्रसंग-प्रस्तुत अंश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती-हिंदी सामान्य’ संकलित तथा महाकवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा लिखित कविता ‘मातृभाषा की उन्नाते पर

व्याख्यान’ शीर्षक से है। इसमें भारतेन्दु जी ने हिन्दी भाषा-साहित्य के प्रति अपनी अपार श्रद्धा-आस्था को व्यक्त किया है।

व्याख्या-भारतेन्दु जी कह रहे हैं कि मेरे जीवन की एकमात्र धारणा और विचार है कि जीवन की सभी प्रकार की उन्नति की जड़ तो अपनी मातृभाषा हिन्दी ही है। इसकी ही उन्नति से जीवन में सभी प्रकार की उन्नति हो सकती है अन्यथा और कोई उपाय नहीं है। इसीलिए अपनी इस मातृभाषा हिन्दी के ज्ञान और उन्नति के बिना मेरे हृदय की पीड़ा किसी भी प्रकार से दूर नहीं हो सकती है।

विशेष-

  1. भाषा ब्रजभाषा है।
  2. राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति सच्चा प्रेम व्यक्त हुआ है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद के काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य ब्रजभाषा की शब्दावली से पुष्ट दोहा छंद में है। भावात्मक शैली के प्रयोग से काव्य की सुन्दरता और बढ़ गई है।
(ii) प्रस्तुत पद में हिन्दी भाषा को अपनी भाषा कहकर एक विशेष प्रकार से अपनापन का भाव व्यक्त किया है। इस भाव में सहजता और सरलता दोनों ही है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद में किसका उल्लेख हुआ है?
(ii) प्रस्तुत पद का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद में हिन्दी भाषा के महत्त्व का उल्लेख हुआ है।
(ii) प्रस्तुत पद का मुख्य भाव है-हिन्दी भाषा की प्राण-प्रतिष्ठा करना।

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2. पढ़े संस्कृत जतन करि पंडित भे, विख्यात।
पै निजभाषा ज्ञान बिन कहि न सकत एक बात ॥

शब्दार्थ-जतन-प्रयल, कोशिश। विख्यात-प्रसिद्ध। निजभाषा-अपनी भाषा। बिन-बिना।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें भारतेन्दु जी ने अपनी भाषा के महत्त्व को बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या-संस्कृत को पूरे प्रयत्न करके पढ़ने पर कोई प्रसिद्ध पंडित तो हो सकता है, लेकिन अपनी भाषा हिन्दी के ज्ञान के बिना अपने हृदय की एक भी बात नहीं कही जा सकती है। दूसरे शब्दों में संस्कृत तो पढ़नी चाहिए लेकिन हिन्दी के प्रति लगाव उससे अधिक होना चाहिए, कम नहीं।

विशेष-

  1. ब्रजभाषा की शब्दावली है।
  2. यह अंश हिन्दी को महत्त्व देने वाला है।
  3. भाव रोचक है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(i) उपर्युक्त पद दोहा छंद में है और ब्रजभाषा की शब्दावली से पुष्ट हुआ है। संपूर्ण कथन अभिधाशक्ति में होने के कारण सहज रूप में है। भावात्मक शैली से यह अंश रोचक बन गया है।
(ii) उपर्युक्त पद की भाव-योजना सरल और सपाट है। भावों को बेझिझक प्रस्तुत किया गया है। इससे कहने का अभिप्राय अपने आप स्पष्ट हो जाता है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त अंश का मुख्य भाव क्या है?
(ii) उपर्युक्त अंश में किस ओर संकेत किया गया है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त अंश का मुख्य भाव हिन्दी का महत्त्वांकन करना है।
(ii) उपर्युक्त अंश में संस्कृत से बढ़कर हिन्दी के प्रति ध्यान देने की ओर संकेत किया गया है।

3. अंगरेजी पढ़िके जदपि, सब गुन होत प्रवीन।
पै निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

शब्दार्थ-प्रवीन-गुणवान, पण्डित । निज-अपनी। हीन-मूर्ख।

प्रसंग-प्रस्तुत अंश महाकवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा लिखित ‘मातृभाषा की उन्नति पर व्याख्यान’ शीर्षक से है। इसमें भारतेन्दु जी ने हिन्दी-भाषा साहित्य के प्रति अपनी अपार श्रद्धा-आस्था को व्यक्त किया है।

व्याख्या-अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीयों के प्रति यहाँ कवि अपनी उदासीनता व्यक्त करता हुआ, मातृ-भाषा के महत्त्व की ओर संकेत करता हुआ कह रहा है कि यद्यपि यह ठीक है कि आज अनेक भारतीय अंग्रेजी-भाषा को पढ़कर ब्रिटिश साम्राज्य में बड़े गुणवान तथा पण्डित बन रहे हैं, तो भी भारत में रहने पर अपनी मातृभाषा के ज्ञान के अभाव में वे पण्डित और चतुर होने पर भी मूर्ख-के-मूर्ख ही बने रहते हैं क्योंकि दैनिक व्यवहार में मातृ-भाषा से ही काम लेना पड़ता है।

विशेष-

  1. भाषा ब्रजभाषा है।
  2. राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रति सच्चा प्रेम व्यक्त हुआ है।
  3. दोहा छंद।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद ब्रजभाषा की शब्दावली और दोहा छंद में प्रस्तुत होकर भावात्मक शैली के द्वारा सहज रूप में है। शब्द-चयन बहुत सरल है। इसमें गति है तो प्रवाह भी है।
(ii) उपर्युक्त पद की भाव-योजना प्रभावशाली है। अंग्रेजी भाषा का विरोध चतुराई के साथ करते हुए अपनी भाषा हिन्दी के महत्त्व को स्वीकारने का सुझाव है। इस सुझाव को अप्रत्यक्ष रूप से देने की कुशलता सचमुच प्रशंसनीय है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद में किसको किससे श्रेष्ठ कहा गया है?
(ii) निजभाषा से कवि का आशय किससे है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा को अंग्रेजी भाषा से श्रेष्ठ कहा गया है।
(ii) निजभाषा से कवि का आशय हिन्दी भाषा से है।

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4. इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग।
तब बनत है सबने सों, मिटत मूढ़ता सोग।

शब्दार्च-इक-एक। मति-बुद्धि। मूढ़ता-मूखता।

प्रसंग-पूर्ववत।

व्याख्या-भारतेन्दु जी भाषा आदि के एकीकरण के सुपरिणाम की ओर संकेत करते हुए कह रहे हैं कि यदि घर में सभी एक ही भाषा का व्यवहार करें और एक ही विचारधारा के पोषक हों तो परस्पर फूट और दूरी नहीं हो सकती है। किसी में किसी प्रकार के भेदभाव अथवा तनाव उत्पन्न नहीं हो सकते। फिर तो मुर्खता का उपचार तो बड़ी ही आसानी से हो सकता है। इसलिए भाषा (हिन्दी भाषा) की एकता का परित्याग किसी भी दशा में नहीं छोड़ना चाहिए।

विशेष-

  1. भाषा ब्रजभाषा है।
  2. भाव हृदयस्पर्शी है।
  3. “मिटत मूढ़ता’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. दोहा छंद है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद भाषा और शैली की दृष्टि से आकर्षक है। ब्रजभाषा की शब्दावली दोहा छंद में प्रस्तुत होकर अनुप्रास अलंकार (मिटत मूढ़ता) से चमत्कृत और मोहक बन गई है।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव सरल और स्पष्ट है। एकता के सूत्रों को सहजतापूर्वक प्रस्तुत करने का कवि का प्रयास सार्थक और सफल है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद में किस तथ्य को महत्त्व दिया गया है?
(ii) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा को किस रूप में देखा गया है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में एक ही भाव और एक ही भाषा के प्रयोग को महत्त्व दिया गया है।
(ii) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा को एकता लाने वाली भाषा के रूप में देखा गया

5. और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात।
निज भाषा में कीजिए जो विद्या की बात।

शब्दार्थ-प्रगट-प्रकट। लखात-दिखाई पड़ता है।

प्रसंग-पूर्ववत्।

व्याख्या-परिवार में एक ही मातृभाषा के प्रयोग के लाभ पर दृष्टिपात करता हुआ कवि कह रहा है कि यदि एक ही अपनी मातृभाषा में ज्ञान और विद्या की बातें की जाएँ, तो सहज ही वह ज्ञान तथा विद्या ग्राह्य हो जाती है, अन्य या विविध भाषाओं के प्रयोग में यह सम्भव नहीं है।

विशेष

  1. भाषा प्रभावशाली है।
  2. हिन्दी भाषा का महत्त्व प्रतिपादित करने का सफल प्रयास किया गया है।
  3. भावात्मक शैली है।
  4. दोहा छंद है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य लिखिए।
(ii) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य बताइए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद दोहा छंद में है। ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली है। भावात्मक शैली से अभिधा शब्द के द्वारा कथन को प्रभावशाली बनाने का प्रयास सराहनीय है।
(ii) प्रस्तुत पद की भाव-योजना सरल और सपाट है। हिन्दी भाषा के लाभ और उसके समुचित उपयोग के कथन को स्वाभाविक रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह अंश सार्थक रूप में सिद्ध हुआ है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद का भाव स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद में किसको किससे क्या कहा गया है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद का भाव सरल और सुस्पष्ट है। इससे हिन्दी भाषा के लाभ को बतलाया गया है।
(ii) प्रस्तुत पद में हिन्दी भाषा को अंग्रेजी और अन्य भाषाओं से श्रेष्ठ और लाभदायक कहा गया है।

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6. तेहि सुनि पावें लाभ सब, बात सुने जो कोय।
यह गुन भाषा और महँ, कबहुँ नाहीं होय॥

शब्दार्च-कोय-कोई। नाहीं-नहीं। होय-हो सकता है।

प्रसंग-पूर्ववत्।

व्याख्या-मातृ-भाषा के व्यापक प्रभाव की व्यंजना करता हुआ कवि कहता है कि मातृभाषा में ज्ञान और विद्या का प्रचार अधिक होता है, इस लाभ को सुनकर सभी स्वीकार करेंगे। निदान, मातृभाषा के अतिरिक्त यह गुण किसी और भाषा में कभी नहीं हो सकता है।

विशेष-

  1. ‘महँ कबहूँ नाहीं’ में ‘ह’ वर्ण की क्रमशः आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार है।
  2. भाषा ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली से पुष्ट है।
  3. हिन्दी भाषा के प्रति बड़ी आत्मीयता दिखाई गई है।
  4. दोहा छंद है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद के काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ii) उपर्युक्त पद के भाक्-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद का काव्य-सौंदर्य सरल और सहज ब्रजभाषा को भावात्मक शैली से पुष्ट हुआ दिखाई दे रहा है। दोहा छंद में अनप्रास अलंकार के चमत्कार को लाने का कवि-प्रयास काबिलेतारीफ है।
(ii) उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य अपनी सरलता और प्रवाहमयता’के फलस्वरूप आकर्षक कहा जा सकता है। यह इसलिए भी कि इसके लिए शब्द-प्रयोग भी अधिक सहज रूप में आया हुआ है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद में मातृभाषा की क्या विशेषता बतलाई गई है?
(ii) उपर्युक्त पद में मातृभाषा के प्रति कवि की भावना कैसी है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में मातृभाषा की व्यापकता, ज्ञान प्रदायिनी और विद्या प्रचारिणी जैसी विशेषताएं बतलाई गई हैं।
(ii) उपर्युक्त पद में मातृभाषा के प्रति कवि की भावना अपनत्व और अपनापन की है।

7. विविध कला शिक्षा, अमित, ज्ञान अनेक प्रकार।
सब देसन सौं ले करहु, भाषा माँहि प्रचार ॥

शब्दार्च-विविध-अपार, अपरिमित। माहि-माध्यम से। देशन-देशों में।

प्रसंग-पूर्ववत्। इसमें भारतेन्दु जी ने मातृभाषा हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार का उद्बोधन किया है।

व्याख्या-कवि भारतीयों को मातृ-भाषा के प्रचार एवं प्रसार हेत उद्बोधन करते हुए कहता है कि संसार में कला, शिक्षा और ज्ञान का क्षेत्र अपरिमित है। अतः, सभी
देशों से सम्पर्क अधिक-से-अधिक ग्रहण करके, उसे अपनी मातृभाषा के माध्यम से प्रचारित कीजिए। इस प्रकार सहज ही मातृ-भाषा की उन्नति हो सकेगी।

विशेष-

  1. भाव हृदयस्पर्शी है।।
  2. सम्पूर्ण अंश प्रेरणादायक है।
  3. ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली है।
  4. शैली सरस और सरल है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद का काव्य-सौंदर्य लिखिए।
(ii) प्रस्तुत पद का भाव-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद में स्वभावोक्ति अलंकार को ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली से चमत्कृत करने का प्रयास अनूठा है। दोहा छंद और बोधगम्यता से यह पद सुन्दर बन गया है।
(ii) प्रस्तुत पद की भावधारा सरल है, लेकिन उसमें प्रवाह और गति है। इससे यह पद हृदयस्पर्शी बन गया है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पद में मातृभाषा के लिए भारतीयों को क्या सझाव दिया गया है?
(ii) प्रस्तुत पद का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर-
(i) प्रस्तुत पद में मातृभाषा के लिए भारतीयों को सभी देशों से सम्पर्क करके प्रचार-प्रसार करने के सुझाव दिए गए हैं।
(ii) प्रस्तुत पद का मुख्य भाव मातृभाषा के विकास के लिए सुझाव देना है।

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8. धर्म, जुद्ध, विद्या, कला, गीत, काव्य अरू
सबके समझन जोग है, भाषा माँहि समा।

शब्दार्थ-अरु-और । जुद्ध-युद्ध । समझन-समझने। जोग-योग्य।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने हिन्दी भाषा को अद्भुत और सबसे श्रेष्ठ बतलाने का प्रयास करते हुए कहा है कि

व्याख्या-धर्म, युद्ध, विद्या, कला, गीत-संगीत, काव्य आदि सभी के लिए समझने योग्य हैं। लेकिन यह तभी संभव है, जब अपनी भाषा हिन्दी में हो। दूसरी बात यह भी है कि हमारी हिन्दी भाषा में धर्म, युद्ध, विद्या, कला, गीत-संगीत, कविता आदि उच्च संस्कारों को प्रदान करने वाले सभी आधार और साधन मौजूद हैं।

विशेष-

  1. भाषा ब्रजभाषा की सरल शब्दावली से प्रस्तुत हुई है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. अभिधा शब्द-शक्ति है।

1. पद पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पद के भाव-सौंदर्य को लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा की सम्पन्नता को आकर्षक बनाने के लिए काव्य-स्वरूप के अपेक्षित सौंदर्य-विधान को प्रयुक्त किया गया है। फलस्वरूप इस पद में प्रयुक्त हुआ अनुप्रास अलंकार (सबके समझन) ब्रजभाषा की प्रचलित शब्दावली के द्वारा आकर्षक रूप में है।
(ii) उपर्युक्त पद की भाव-योजना रोचक और हृदयस्पर्शी रूप में है। हिन्दी भाषा की विविधता का बयान बड़ी ही विश्वसनीयता के साथ प्रकट किया गया है।

2. पद पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा की किस विशेषता पर प्रकाश डाला गया है?
(ii) उपर्युक्त पद का मुख्य भाव लिखिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद में हिन्दी भाषा की विविधता पर प्रकाश डाला गया है।
(ii) उपर्युक्त पद का मुख्य भाव है-हिन्दी भाषा को प्रेरक रूप में प्रस्तुत करना।

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