MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 13 गीतादर्शनम् (पद्यम्)
MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 13 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) ईश्वरः किमर्थम् आत्मानं सृजति? (ईश्वर किसलिए आत्मा का सृजन करता है?)
उत्तर:
धर्मउत्थानाय। (धर्म के उत्थान के लिए)।
(ख) ते अधिकाराः कुत्र? (तुम्हारा अधिकार क्या है?)
उत्तर:
कर्मानिश्व। (स्वयं का कम)।
(ग) जातस्यध्रुवं किम्? (जन्म लेने वाले का क्या होता है?)
उत्तर:
मृत्युः। (मृत्यु होती है।)
(घ) अन्नात् कानि भवन्ति? (अन्न से क्या होता है?)
उत्तर:
भूतानि। (भूख मिटती है।)
(ङ) कामात् कः अभिजायते? (काम से क्या पैदा होता है?)
उत्तर:
क्रोधो। (क्रोध उत्पन्न होता है।)
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) तत्त्वदर्शिनः कथम् उपदेक्ष्यन्ति? (तत्त्वज्ञाता क्या उपदेश देते हैं?)
उत्तर:
तत्त्वदर्शिनः ज्ञानिनः ज्ञानम् उपदेयन्ति। (तत्त्वज्ञाता ज्ञान का उपदेश देते हैं।)
(ख) मनः कथं वशी भवति? (मन किस तरह वश में होता है?)
उत्तर:
मनः यतः यतः निश्चरति ततः ततः नियम्य आत्यनि एव वशम् नयेत्। (मन यहाँ-वहाँ विचरण करता है तब स्वयं द्वारा उसे वश में किया जाता है।)
(ग) त्वं कस्मिन्नर्थे न शोचितुमर्हसि? (तुम्हें किसके लिये सोच नहीं करना चाहिए?)
उत्तर:
त्वं जातस्य मृत्युः ध्रुवः मृतस्य जन्म ध्रुवं च तस्मात् अपरिहार्ये अर्धे शोचितुम् न अर्हषि।। (जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मर रहा है वह जन्मेगा अतः व्यर्थ सोच नहीं करना चाहिये।)
(घ) बुद्धिनाशात् किं भवति? (बुद्धि के नाश होने से क्या होता है?)
उत्तर:
बुद्धिनाशः बुद्धिनाशात् प्रणश्यति। (बुद्धि के नाश होने से व्यक्ति नष्ट हो जाता है।)
प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) पुरुष कथं विनश्यति? (पुरुष का विनाश कैसे होता है?)
उत्तर:
पुरुषः बुद्धिनाशात् विनश्यति। (पुरुष का विनाश बुद्धि के नाश होने पर होता है।)
(ख) तत्त्वदर्शिनः कथं उपदेक्ष्यन्ति? (तत्त्वदर्शी क्या उपदेश देते हैं?)
उत्तर:
तत्त्वदर्शिनः ज्ञानिनः ज्ञानम् उपदेक्ष्यन्ति। (तत्त्वदर्शी ज्ञान का उपदेश देते हैं।)
(ग) ईश्वरः कदा सम्भवति? (ईश्वर कब जन्म लेता है?)
उत्तर:
यदा, यदा धर्मस्य ग्लानिः अधर्मस्य अभ्युत्थानम् भवति तदा हि अहम् आत्मानम् सृजामि। (जब-जब पृथ्वी में धर्म का नाश होता है तब धर्म को बचाने के लिये और अधर्म का नाश करने के लिये ईश्वर अवतार लेता है।)
(घ) यज्ञाः कस्मात् संभवति? (यज्ञ किससे संभव है?)
उत्तर:
यज्ञ कर्मात् संभवति। (यज्ञ कर्म से संभव है।)
प्रश्न 4.
रेखाङ्कितशब्दान् आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(क) क्रोधात् सम्मोहः भवति। (क्रोध से सम्मोह होता है।)
उत्तर:
कस्मात् सम्मोहः भवति? (किससे सम्मोह होता है?)
(ख) स्मृतिविभ्रमः सम्मोहात् भवति। (स्मृति भ्रम सम्मोह से होती है।)
उत्तर:
कस्मात् स्मृतिविभ्रमः भवति? (किससे स्मृति भ्रमित होती है?)
(ग) बुद्धिनाशः स्मृतिभ्रशांत् भवति। (बुद्धि का नाश स्मृतिविभ्रम से होता है।)
उत्तर:
कस्य नाशः स्मृतिभंशात भवति? (किसका नाश स्मृति विभ्रम से होता है?)
(घ) यज्ञात् भवति पर्जन्यः। (यज्ञ से पर्जन्य होता है।)
उत्तर:
यज्ञात् कः भवति? (यज्ञ से क्या होता है?)
प्रश्न 5.
श्लोकपूर्ति कुरुत
उत्तर :
(क) विद्यार्थी स्वयं करें।
(ख) अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्न संभवः।
यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुद्भवः॥
प्रश्न 6.
उचितं योजयत्-
प्रश्न 7.
उचितशब्देन रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क) यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिः भवति।
(ख) ते कर्मणि एवं अधिकारः।
(ग) जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः।
(घ) ध्यायतो विषयानुपुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
प्रश्न 8.
अधोलिखितपदाना पर्यायवाचि लिखत
(क) साधुः = सज्जनः
(ख) पर्जन्यः = जलम्
(ग) चञ्चलम् = लोलम्
(घ) यज्ञ = अध्वरः
प्रश्न 9.
अधोलिखत पदानां विलोमपदानि लिखत
(क) सङ्गः = पृथकः
(ख) मृत्युः = जन्मः
(ग) धर्मः = अधर्मः
(घ) अन्यः = विशेषः
(ङ) परित्राणः = विनाशः।
प्रश्न 10.
पञ्चमी विभक्तिः स्थाने तसिल (तः) प्रत्ययं इति योजयित्वा लिखत
यथा- ग्रामात् – ग्रामतः
(क) सङ्गात् – सङ्गतः
(ख) कामात् – कामतः
(ग) क्रोधात् – क्रोधतः
(घ) सम्मोहात् – सम्मोहतः
(ङ) स्मृतिभ्रंशात् – स्मृतिभ्रंशतः।
(च) बुद्धिनाशात् – बुद्धिनाशतः
(छ) अन्नात्। – अन्नतः।
(ज) पर्जन्यात् – पर्जन्यतः
(स) यज्ञात् – यज्ञतः।
प्रश्न 11.
सन्धिं कुरुत
(क) अभि + उत्थानम् = अभ्युत्थानम्।
(ख) सृजामि + अहम् = सृजाम्यहम्।
(ग) क्रोधः + अभिजायते = क्रोधाभिजायते।
(घ) मनः + चञ्चलं + अस्थिरम् = मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
(ङ) कर्मणि + एव + अधिकारः + ते = कर्मण्येवाधिकारस्ते।
गीतादर्शनम् पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य
विश्व के दर्शन ग्रन्थों में सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थ उपनिषद हैं। सारे उपनिषदों का सार है-श्रीमद् भगवद्गीता। यह महाभारत का एक अंश है। इसमें भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं। यह मूल उपदेश है इसलिए युद्धादि कर्तव्य में भी इसका अवश्य ही पालन करना चाहिए।
गीतादर्शनम् पाठ का हिन्दी अर्थ
1. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
शब्दार्थ :
अभ्युत्थानम्-वृद्धि-Progress; अधर्मस्य-अधर्म की-Non-religon; तदा-उस समय-That time; आत्मानम्-अपने को-Own; सृजामि-प्रकट करता है-Presentation.
हिन्दी अर्थ :
हे भारत अर्थात् अर्जुन! जब-जब धर्म का पतन होता, अधर्म की बहुलता होती है तब अधर्म से मुक्ति दिलाने हेतु मैं अपने को प्रकट करता हूँ अर्थात् अवतार लेता हूँ।
2. परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे॥
शब्दार्थ :
परित्राणाय-उद्धार के लिए-Compulsion; संस्थापन-स्थापितSetup, अर्थाय-करने-DD; सम्भवामि-प्रकट होता है-Appears.
हिन्दी अर्थ :
साधु-पुरुषों के उद्धार हेतु एवं दुष्टों का विनाश करने एवं पुनः धर्म राज्य की स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में प्रकट होता हूँ।
3. कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूमा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि
शब्दार्थ :
कर्मण्ये-कर्म में-At work; मा-नहीं-Never, not; कदाचन-कभी-Any time; सङ्ग-लिप्त होना-To involve; अस्तु-हों-are.
हिन्दी अर्थ :
हे अर्जुन! तुम्हारा केवल कर्म करने का अधिकार है, उसके फल को प्राप्त करने का अधिकार तुम्हारा नहीं हैं। तुम कर्म के फल की इच्छा वाले मत बनो और न ही अकर्मण्यता की ओर से प्रवृत्त हो।
4. जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्धवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ।।
शब्दार्थ :
ज्ञातस्य-उत्पन्न होना-Rising: ध्रुवो-अटल-Fix; तस्माद-इसलिए-So; अपरिहार्येऽर्थे-अचानक-Suddenly.
हिन्दी अर्थ :
हे अर्जुन! इस संसार में प्राणी का जन्म निश्चित है और मृत्यु भी शाश्वत है। अतः न टाले जाने योग्य कारण के लिए तुम्हें शोक करना उचित नहीं है।
5. अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसंभवः।
यज्ञाभ्दवति पर्जन्यो यज्ञः कर्म समुभ्दवः॥
शब्दार्थ :
सम्भव-सम्भव होती है-possibles; पर्जन्यः-वर्षा-Rain; यज्ञः-यज्ञ का सम्पन्न होना-Finished worship; कर्म-नियत कर्त्तव्य से-with good manner; समुद्धवः-उत्पन्न होता है-grows.
हिन्दी अर्थ :
सारे प्राणी अन्न पर निर्भर हैं। यह अन्न वर्षा से उत्पन्न होता है। वर्षा यज्ञादि कर्म से होती है। यज्ञ नियत कर्मों से होता है।
6. ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।
सङ्गात्संजायते कामः कामाक्रोधोऽभिजायते॥
शब्दार्थ :
ध्यायतः-चिन्तन करते हुए-meditating; विषयान-इन्द्रिय को-Tosenses; तेषु-उन इन्द्रिय-विषयों में-These senses subject; उपजायते-विकसित होती है-Increase, Develop; सगात्-अशक्ति से-Not interest; अभिजायते-प्रकट होता है-Rising.
हिन्दी अर्थ :
इन्द्रियों के विषय में (निरंतर) सोचने से मनुष्य की उसमें आसक्ति उत्पन्न हो जाती है। इसी आसक्ति को कामोद्वेग उत्पन्न होता है और काम से क्रोध प्रकट होता है।
7. क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
शब्दार्थ :
भवति-होता है-Happens; सम्मोह-पूर्ण मोह-full love; बुद्धि-नाशः-बुद्धि का विनाश-The mind is kill; प्रणश्यति-पतन होता है-Ruins.
हिन्दी अर्थ :
क्रोध से अविवेक उपजता है, अविवेक के उपजने से स्मरण-शक्ति नष्ट हो जाती है। जब स्मरण-शक्ति विभ्रमित हो जाती है तो बुद्धि का नाश होता है। बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य नष्ट हो जाता है।
8. तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।
शब्दार्थ :
विद्धि-जानने का प्रयास करा-Try to know; प्रणिपातेन-गुरु के पास जाकर-Go to near of teacher; परिप्रश्नेन-विनीत जिज्ञासा से-For kindly desire; सेवया-सेवा के द्वारा-Throw seves; ज्ञानिन-स्वरूप सिद्ध-Proved face.
हिन्दी अर्थ :
तुम तत्त्व वेत्ता गुरु के समीप जा उन्हें दण्डवत प्रणाम कर विनीत भाव से, सेवाभाव से युक्त होकर सत्य का ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करो। वही तत्त्व वेत्ता गुरु ही तुम्हें सत्य (ज्ञान) का बोध कराएँगे क्योंकि उन्होंने ही सत्य का साक्षात्कार किया है।
9. यतो यतो निश्चरति मनश्चञ्चलमस्थिरम्।
ततस्ततो नियम्यैतदात्मन्येव वशं नयेत्॥
शब्दार्थ :
निश्चलति-विचलित होती है-Disturbing; नियम्य-वश में करके-In under; एतत्-इस-This; एव-निश्चय ही-certainly.
हिन्दी अर्थ :
चंचल मन अपनी अथिरता के कारण जहाँ-जहाँ भी विचरण करता हो, मनुष्य का कर्तव्य है कि वह उसे खींचकर अर्थात् उसे नियंत्रित कर अपने वश में लाए।