MP Board Class 9th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 4 वैद्यराज जीवक (वैज्ञानिक निबन्ध, घनश्याम ओझा)
वैद्यराज जीवक अभ्यास
बोध प्रश्न
प्रश्न 1.
जीवक किस शास्त्र के विद्वान थे?
उत्तर:
जीवक आयुर्वेदिक चिकित्साशास्त्र के विद्वान थे।
प्रश्न 2.
जीवक के मन में किनके दर्शन की इच्छा थी?
उत्तर:
जीवक के मन में बौद्ध धर्म के प्रवर्तक महात्मा बुद्ध के दर्शन की इच्छा थी।
प्रश्न 3.
राजकुमार अभय के प्रति जीवक ने अपनी कृतज्ञता कैसे व्यक्त की?
उत्तर:
अयोध्या नगरी में एक सेठ की बीमार पत्नी के सफल इलाज के फलस्वरूप सेठ द्वारा जीवक को सहस्र स्वर्ण मुद्राएँ दी गयीं। राजगृह पहुँचकर जीवक ने अपने प्रतिपालक राजकुमार अभय को सेठ द्वारा दी गयी सारी स्वर्ण मुद्राएँ देकर कृतज्ञता ज्ञापित की।
प्रश्न 4.
अवंती नरेश से तेज चलने वाला हाथी माँगने के पीछे जीवक का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
अवन्ती नरेश पीलिया रोग से पीड़ित थे और इस रोग का इलाज गाय के घी के सेवन से ही हो सकता था पर अवन्ती नरेश को घी से उल्टी आती थी। बिना घी के सेवन के उपचार नहीं हो सकता था। जीवक इसी समस्या से उलझे हुए थे तभी उन्होंने अवन्ती नरेश से तेज चलने वाला हाथी माँगा। हाथी मिल जाने पर जीवक ने घी के साथ राजा को औषधि देने का ऐसा समय बताया जबकि वे हाथी पर सवार होकर अवन्ती राज्य की सीमा पार कर चुके होते। यदि दवाई का अनुकूल प्रभाव उनकी उपस्थिति में न होता तो उन्हें दण्ड का भागी होना पड़ता। इसी भय से उन्होंने राजा से तेज गति से चलने वाला हाथी माँगा।।
प्रश्न 5.
जीवक के खाली हाथ लौटने पर भी आचार्य ने उन्हें परीक्षा में उत्तीर्ण क्यों कहा?
उत्तर:
तक्षशिला के आचार्य ने जीवक की परीक्षा लेने के लिए यह प्रश्न दिया था कि वत्स संसार में ऐसी किसी वनस्पति को खोजो जिसमें औषधीय गुण न हो। जीवक ने अनेक दिनों तक अथक परिश्रम किया पर उसे एक भी वनस्पति ऐसी न मिली जिसमें औषधीय गुण न हों। यद्यपि जीवक अपने आचार्य के प्रश्न का उत्तर नहीं ढूँढ़ सका था। पर फिर भी आचार्य ने उसे परीक्षा में उत्तीर्ण कह दिया। क्योंकि आचार्य जी जानते थे कि मेरे द्वारा प्रस्तुत किया गया प्रश्न वास्तव में गलत था।
प्रश्न 6.
जीवक ने कौन-सा संकल्प लिया था?
उत्तर:
जीवक ने यह संकल्प लिया था कि वे कठिन परिश्रम और तप से योग्यता हासिल करेंगे तथा कभी भी किसी पर आश्रित बनकर नहीं रहेंगे और अपनी सामर्थ्य के अनुसार सबकी सहायता करेंगे।
प्रश्न 7.
सम्राट बिम्बसार के पुत्र ने ‘जीवक’ नाम क्यों दिया?
उत्तर:
महाराज बिम्बसार के पुत्र राजकुमार ‘अभय’ को यह नवजात शिशु एक मिट्टी के ढेर पर पड़ा हुआ मिला था। इतनी विषम परिस्थिति में भी वह जीवित था इसलिए उसका नाम ‘जीवक’ रख दिया गया।
प्रश्न 8.
आचार्य द्वारा जीवक को विदा करते समय कौन-सी सीख दी गई थी? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
जीवक को जब कोई भी वनस्पति औषधीय गुणों से हीन नहीं दिखाई दी तथा सभी में उन्हें सजीवता के दर्शन हुए तो इस बात से प्रसन्न होकर तक्षशिला के आचार्य ने उसे उसकी अन्तिम परीक्षा में उत्तीर्ण कर दिया तथा उसे आशीर्वाद दिया। जीवक को विदाई देते समय आचार्य ने उन्हें शिक्षा दी कि तुम्हें ऋग्वेद में जो रोग एवं उनके उपचार बताए हैं, उन्हें तुम्हें आगे बढ़ाना है। भारद्वाज, अत्रेय, धन्वंतरि, चरक एवं सुश्रुत आदि आचार्यों ने इस कार्य को आगे बढ़ाया है। इन सभी ने वनस्पतियों में भी प्राणियों के समान जीवन माना है। अत: इसी कार्य को तुम्हें और आगे बढ़ाना है। यह कहकर आचार्य चुप हो गये। यह उपदेश सुनकर जीवक बहुत प्रसन्न हुआ।
प्रश्न 9.
जीवक द्वारा किन-किन रोगियों की चिकित्सा की गयी? विवरण दीजिए।
उल्लर:
अपने आचार्य से दीक्षा प्राप्त करके तथा उनसे विदा लेकर जीवक राजगृह लौट आये। राजगृह वापस आने के बाद जीवक ने दो असाध्य रोगियों को शल्य क्रिया द्वारा स्वस्थ बनाया। उन्होंने एक युवक के पेट की शल्य क्रिया करके उसकी उलझी हुई आँतों की गाँठे खोलकर तथा पुनः सिलाई करके औषधि का लेप लगाया। दूसरी शल्य क्रिया एक सेठ के मस्तिष्क की करके उसे नया जीवन प्रदान किया था।
अयोध्या नगरी में सात वर्षों से सिर की पीड़ा से तड़प रही नगर सेठ की पत्नी का बिना शल्य क्रिया के ही उपचार कर दिया था। इसी भाँति उन्होंने अवंती नरेश चंदप्रद्योत के पीलिया रोग का इलाज किया था।
प्रश्न 10.
जीवक को ऐसा क्यों लगा कि वे भगवान बुद्ध के कृपापात्र बन गये हैं?
उत्तर:
आयुर्वेद का पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर जीवक वैद्य बहुत सन्तुष्ट थे पर वे उस युग के महान् धर्म प्रवर्तक भगवान बुद्ध के दर्शन करना चाहते थे। संयोग से उन्हें भगवान बुद्ध की चिकित्सा का अवसर प्राप्त हो गया। भगवान बुद्ध के पाँव में धारदार पत्थर से चोट लग गई थी। इससे पाँव से खून बहने लगा था। जीवक ने औषधियों का लेप करके पैर पर पट्टी बाँध दी। लेकिन पट्टी के एक निश्चित सीमा के बाद खोलने का उन्हें ध्यान नहीं रहा। इससे वे बड़े दुःखी हुए।
इधर भगवान बुद्ध ने जीवक के मन की बात जानकर स्वयं पट्टी खोल दी थी। भगवान बुद्ध से सुबह भेंट होने पर भगवान ने जीवक को स्वयं ही बताया कि “जीवक जब तुम मेरी पट्टी खोलने के लिए चिंतित हो रहे थे, तभी मैंने उस पट्टी को खोल दिया था।” जीवक ने आश्चर्य से भगवान बुद्ध की ओर देखा और वे उनके चरणों में नतमस्तक हो गये। उन्हें यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि भगवान बुद्ध ने उनके मन को अपने मन से जोड़ लिया है, वे उनके कृपापात्र बन चुके हैं।
प्रश्न 11.
सेठ के मस्तिष्क की शल्य क्रिया करने के पूर्व जीवक ने क्या शर्त रखी?
उत्तर:
सेठ के मस्तिष्क की शल्य क्रिया करने से पूर्व जीवक ने एक शर्त रखी थी कि तुम्हें इक्कीस महीने तक बिस्तर पर लेटना होगा। सात महीने दाईं तरफ, सात महीने बाईं तरफ और सात महीने सीधे।
पर सेठ सात महीने के स्थान पर सात दिन भी एक तरफ नहीं लेट पाया तो जीवक ने सात, सात दिन में ही उसे करवटें बदलवा कर स्वस्थ कर दिया था। उन्होंने सेठ से कहा कि मैं आपको केवल इक्कीस दिन ही विश्राम देना चाहता था लेकिन आपके धैर्य की कमी को देखकर मैंने इक्कीस दिनों को इक्कीस महीने बताया था।