MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 1 समुच्चय Ex 1.5

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 1 समुच्चय Ex 1.5

प्रश्न 1.
मान लीजिए कि U = {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9}, A = {1, 2, 3, 4}, B = {2, 4, 6, 8, और C = {3, 4, 5, 6} तो निम्नलिखित को ज्ञात कीजिए :
(i) A’
(ii) B’
(ii) (A ∪ C)
(iv) (A ∪ B)’
(v) (A’)’
(vi) (B – C)’
हल:
(i) A’ = U – A
= {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {1, 2, 3, 4}
= {5, 6, 7, 8, 9}.
(ii) B’ = U – B
= {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {2, 4, 6, 8}
= {1, 3, 5, 7, 9}.
(iii) A ∪ C = {1, 2, 3, 4} ∪ {3, 4, 5, 6}
= {1, 2, 3, 4, 5, 6}.
(A ∪ C) = U – (A ∪ C)
= {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {1, 2, 3, 4, 5, 6}
= {7, 8, 9}.
(vi) A ∪ B = {1, 2, 3, 4} ∪ {2, 4, 6, 8}
= {1, 2, 3, 4, 6, 8}.
(A ∪ B) = U – (A ∪ B)
= {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {1, 2, 3, 4, 6, 8}
= {5, 7, 9}.
(v) (A)’ = U – A
= {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {1, 2, 3, 4}
= {5, 6, 7, 8, 9}
(A’) = U – A
= {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {5, 6, 7, 8, 9}
= {1, 2, 3, 4}.
(vi) B – C = {2, 4, 6, 8} – {3, 4, 5, 6} = {2, 8}
(B – C) = U – (B – C)
= {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {2, 8}
= {1, 3, 4, 5, 6, 7, 9}.

प्रश्न 2.
यदि U = {a, b, c, d, e, f, g, h}, तो निम्नलिखित समुच्चयों के पूरक ज्ञात कीजिए:
(i) A = {a, b, c}
(ii) B = {d, e, f, g}
(iii) C = {a, c, e, g}
(iv) D = {f, g, h, a}
हल:
(i) A’ = U – A
= {a, b, c, d, e, f, g, h} – {a, b, c}
= {d, e, f, g, h}.
(ii) B’ = U – B = {a, b, c, d, e, f, g, h} – {d, e, f, g}
= {a, b, c, h}
(iii) C = U – C
= {a, b, c, d, e, f, g, h} – {a, c, e, g} = {b, d, f, h}
(iv) D’ =U – D
= {a, b, c, d, e, f, g, h} – {f, g, h, a} = {b, c, d, e}

प्रश्न 3.
प्राकृत संख्याओं के समुच्चय को सार्वत्रिक समुच्चय मानते हुए, निम्नलिखित समुच्चयों के पूरक लिखिए :
(i) {x : x एक प्राकृत सम संख्या है।
(ii) {x : x एक प्राकृत विषम संख्या है?
(iii) {x : x संख्या 3 का एक धन गुणज है
(iv) {x : x एक अभाज्य संख्या है?
(v) {x : x, 3 और 5 से विभाजित होने वाली एक संख्या है?
(vi) {x : x एक पूर्ण वर्ग संख्या है?
(vii) {x : x एक पूर्ण घन संख्या है?
(viii){x : x + 5 = 8}
(ix) {x : 2x + 5 = 9}
(x) {x : x ≥ 7}
(vi) {x : x ϵ N और 2x + 1 > 10}
हल:
(i) {x : x एक विषम प्राकृत संख्या है}
(ii) {x : x एक सम संख्या है?
(iii) {x : x ϵ N और x संख्या 3 का धन गुणज नहीं है।
(iv) {x : x = 1 और x एक धन भाज्य संख्या है?
(v) {x : x ϵ N और x, संख्या 3 व 5 किसी से भी विभाजित नहीं होती}
(vi) {x : x ϵ N तथा x एक पूण वर्ग संख्या नहीं है}
(vii) {x : x ϵ N तथा x एक पूर्ण वर्ग घन संख्या नहीं है}
(viii) {x : x ϵ N तथा x ≠ 3}
(ix) {x : x ϵ N तथा x ≠ 2}
(x) {x : x ϵ N तथा x < 7}
(xi) {x : x ϵ N तथा x < \(\frac{9}{2}\)}

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प्रश्न 4.
यदि U = {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9}, A = {2, 4, 6, 8} और B = {2, 3, 5, 7}, तो सत्यापित कीजिए कि:
(i) (A ∪ B)’ = A’ ∩ B’
(i) (A ∩ B)’ = A’ ∪ B’
हल:
(i) A ∪ B = {2, 4, 6, 8} ∪ {2, 3, 5, 7}
= {2, 3, 4, 5, 6, 7, 8}
बायाँ पक्ष = (A ∪ B)’ = U – (A ∪ B)
{1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {2, 3, 4, 5, 6, 7, 8}
= {1, 9}
A’ = U – A
= {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {2, 4, 6, 8}
= {1, 3, 5, 7, 9}.
B’ = U – B
= {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {2, 3, 5, 7}
= {1, 4, 6, 8, 9}
दायाँ पक्ष = A’ ∩ B’
= {1, 3, 5, 7, 9} ∩ {1, 4, 6, 8, 9} = {1, 9}
अतः (A ∪ B)’ = A’ ∩ B’.
(ii) बायाँ पक्ष = (A ∩ B)’
(A ∩ B) = {2, 4, 6, 8} ∩ {2, 3, 5, 7} = {2}
(A ∩B)’ = {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9} – {2}
= {1, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9}
दायाँ .पक्ष : A’ ∪ B’ = {1, 3, 5, 7,9} ∪ {1, 4, 6, 8, 9} [(i) और (ii)]
= {1, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9}
अतः (A ∩ B)’ = A’ ∪ B.

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से प्रत्येक के लिए उपयुक्त वेन आरेख खींचिए :
(i) (A ∪ B)’
(ii) A’ ∩ B’
(iii) (A ∩ B)’
(iv) (A’ ∪ B’)
हल:
छायांकित क्षेत्र को निम्नलिखित समुच्चयों द्वारा दर्शाते हैं :
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 1 समुच्चय Ex 1.5 img-1

प्रश्न 6.
मान लीजिए कि किसी समतल में स्थित सभी त्रिभुजों का समुच्चय सार्वत्रिक समुच्चय U है। यदि A उन सभी त्रिभुजों का समुच्चय हैं जिनमें कम से कम एक कोण 60° से भिन्न है, तो A’ क्या है?
हल:
U = {x : x समतल में एक त्रिभुज है}
A = {x : x एक त्रिभुज जिसका कम से कम एक कोण 60° का न हो}
A’ = {सभी समबाहु त्रिभुजों का समुच्चय है।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित कथनों को सत्य बनाने के लिए रिक्त स्थान भरिए :
(i) A ∪ A’ = ……………
(ii) ϕ’ ∩ A = ……………..
(iii) A ∩ A’ = ………….
(iv) U’ ∩ A = …………
हल:
(i) A ∪ A’ = U
(ii) ϕ’ ∩ A = U ∩ A = A
(iii) A ∩ A’ = ϕ
(iv) U’ ∩ A = ϕ ∩ A = ϕ

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MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन विविध प्रश्नावली

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन विविध प्रश्नावली

प्रश्न 1.
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन विविध प्रश्नावली img-1
दर्शाइए कि क्यों है एक फलन है और g फलन नहीं है।
हल:
(i) दिए गए अंतराल 0 ≤ x ≤ 3 में, f(x) = x2 जो कि पूर्णतया परिभाषित है। इस प्रकार अन्तराल 3 ≤ x ≤ 10 में f(x) = 3x भी पूर्णतया परिभाषित है। x = 3, हो, तब x2 = 9, और 3x = 9.
अत f(3) = 9
इस प्रकार f एक फलन है।
(ii) अंतराल 0 ≤ x ≤ 2 में g(x) = x2 जो कि पूर्णतया परिभाषित है।
अंतराल 2 ≤ x ≤ 10 में g(x) = 3x पूर्णतया परिभाषित है।
x = 2 पर x2 = 4 और 3x = 6
x = 2 पर g(x) के दो मान हैं।
अतः संबंध g एक फलन नहीं है।

प्रश्न 2.
यदि f(x) = x2 तो \(\frac{f(1.1)-f(1)}{1.1-1}\) ज्ञात कीजिए।
हल:
f(x) = x2
∴ f(1.1) = (1.1)2 = 1.21, और f(1) = 12 = 1
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन विविध प्रश्नावली img-2

प्रश्न 3.
फलन f(x) = \(\frac{x^{2}+2 x+1}{x^{2}-8 x+12}\) का प्रान्त ज्ञात कीजिए।
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन विविध प्रश्नावली img-3
x = 2 और x = 6 पर परिभाषित नहीं है।
अतः फलन का प्रान्त संख्याओं 6 और 2 को छोड़कर शेष वास्तविक संख्याओं का समुच्चय है।

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प्रश्न 4.
f(x) = \(\sqrt{x-1}\) द्वारा परिभाषित वास्तविक फलन का प्रांत तथा परिसर ज्ञात कीजिए।
हल:
f(x) = \(\sqrt{x-1}\)
यदि x – 1 < 0 या x < 1, फलन परिभाषित नहीं है।
फलन का प्रांत = {x : x ϵ R, x ≥ 1) = [1, ∞)
(ii) मान लीजिए y = \(\sqrt{x-1}\) या y2 = x – 1 या x = 1 + y2
अतः फलन का परिसर = {y : y ϵ R, Y ≥ 0} = [0, ∞).

प्रश्न 5.
f(x) = |x – 1| द्वारा परिभाषित वास्तविक फलन का प्रांत तथा परिसर ज्ञात कीजिए।
हल:
f(x) = |x – 1|
x के सभी वास्तविक मूल्यों के लिए फलन परिभाषित है
f का प्रांत = R
f(x) = |x – 1|, f का मान जब x ϵ R, एक धनात्मक संख्या है।
अतः f का परिसर = ऋणेत्तर वास्तविक संख्याएँ।

प्रश्न 6.
मान लीजिए कि f = \(\left\{\left(x, \frac{x^{2}}{1+x^{2}}\right) : x \in R\right\}\) R से R में एक फलन है।। f का परिसर निर्धारित कीजिए।
हल:
माना f(x) = \(\frac{x^{2}}{1+x^{2}}\) या y + yx2 = x2 या x2 – x2y = y या x2 (1 – y) = y तब x2 = \(\frac{y}{1-y}\)
⇒ y ≠ 1
x की सभी वास्तविक मूल्यों के लिए y ≥ 0
f का अंश हर से सदैव कम है, y ≤ 1
∴ f का परिसर = कोई भी धन वास्तविक संख्या इस प्रकार कि 0 ≤ x ≤ 1.

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प्रश्न 7.
मान लीजिए कि f, g : R → R क्रमशः f(x) = x + 1, g(x) = 2x – 3 द्वारा परिभाषित है। f + g, f – g और \(\frac{f}{g}\) ज्ञात कीजिए।
हल:
f(x) = x + 1, g(x) = 2x -3
(f + g) = f(x) + g(x) = x + 1 + 2x – 3 = 3x – 2.
(f – g) (x) = f(x) – g(x) = (x + 1) – (2x – 3) = x + 1 – 2x + 3 = – x + 4.
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन विविध प्रश्नावली img-4

प्रश्न 8.
मान लीजिए कि f = {(1, 1), (2, 3), (0, -1), (-1, -3)} Z से Z में, f(x) = ax + b, द्वारा परिभाषित एक फलन है, जहाँ a, b कोई पूर्णांक हैं। a, b को निर्धारित कीजिए।
हल:
दिया है : f = {(1, 1). (2, 3), (0, -1), (- 1, -3)}
और f(x) = ax + b …(A)
जब x = 1, y = 1, हो तब a + b = 1 …(i)
और जब x = 2, y = 3, 2a + b = 3 …(ii)
समीकरण (i) और (ii) से,
a = 2, b = -1
a तथा b के इन मानों को समीकरण (A) में रखने पर,
f(x) = 2x – 1
जब x = 0, f(x) = -1
और जब x = – 1, f(x) = – 3
अतः f(x) = 2x – 1
तथा a = 2, b = – 1.

प्रश्न 9.
R = {(a, b) : a, b ϵ N तथा a = b2} द्वारा परिभाषित N से N में, एक संबंध R है। क्या निम्नलिखित कथन सत्य है।
(i) {a, a} ϵ R सभी a ϵ N
(ii) (a, b) ϵ R का तात्पर्य है कि (b, a) ϵ R
(ii) (a, b) ϵ R, (b, c) ϵ R का तात्पर्य है कि (a, c) ϵ R? प्रत्येक दशा में अपने उत्तर का औचित्य भी बताइए।
हल:
(i) a = a यह सत्य है जब a = 0. 0 ∉ N,
अत: यह एक संबंध नहीं है।
(ii) a = b2, और b = a2, यह a, b ϵ N, a, b के सभी मूल्यों के लिए सत्य नहीं है। अत: यह एक संबंध नहीं है।
(iii) जब a = b2, b = c2 तब a ≠ c2
∴ यह संबंध नहीं है।

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प्रश्न 10.
मान लीजिए A = {1, 2, 3, 4}, B = {1, 5, 9, 11, 15, 16} और f= {(1, 5), (2, 9), (3, 1), (4, 5), (2, 11)}, क्या निम्नलिखित कथन सत्य है ?
(i) f, A से B में एक संबंध है।
(ii) f, A से B में एक फलन है। प्रत्येक दशा में अपने उत्तर का औचित्य बताइए।
हल:
(i) दिया है: A = {1, 2, 3, 4} तथा B = {1, 5, 9, 11, 15, 16}
∴ A × B = {(1, 1), (1, 5), (1, 9), (1, 11), (1, 15), (1, 16), (2, 1), (2, 5), (2, 9), (2, 11), (2, 15), (2, 16), (3, 1), (3, 5), (3, 9), (3, 11), (3, 15), (3,16), (4, 1), (4, 5), (4, 9), (4, 11), (4, 15), (4, 16)}
अवयव , A × B का उपसमुच्चय है।
अतः यह एक संबंध है।
(ii) f में (2, 9) और (2, 11) अवयव प्रथम घटक दोनों युग्मों में 2 है।
∴ यह फलन नहीं है।

प्रश्न 11.
मान लीजिए कि f, f= {{ab, a + b); a, b ϵ Z द्वारा परिभाषित Z × Z का एक उपसमुच्चय है। क्या f, Z से Z में एक फलन है ? अपने उत्तर का औचित्य भी स्पष्ट कीजिए।
हल:
मान लीजिए a = 0, b = 1 हो, तब
ab = 0 और a + b = 0 + 1 = 1
पुनः माना a = 0, b = 2 हो, तब
ab = 0, a + b = 2
अवयव 0 के दो प्रतिबिंब 1 और 2 हैं।
अतः f एक फलन नहीं है।

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प्रश्न 12.
मान लीजिए कि A= {9, 10, 11, 12, 13} तथा f : A → N ,f(n) = n का महत्तम अभाज्य गुणक द्वारा परिभाषित है। का परिसर ज्ञात करो।
हल:
यदि n = 9 = 3 × 3 तो 3 इन गुणनखंडों में सबसे बड़ी अभाज्य संख्या है।
n = 10 = 2 × 5 तो 5 इन गुणनखंडों में सबसे बड़ी अभाज्य संख्या है।
n = 11 = 1 × 11 तो 11 इन गुणनखंडों में सबसे बड़ी अभाज्य संख्या है।
n = 12 = 22 × 3 तो 3 इन गुणनखंडों में सबसे बड़ी अभाज्य संख्या है।
n = 13 = 1 × 13 तो 13 इन गुणनखंडों में सबसे बड़ी अभाज्य संख्या है।
अतः f का परिसर = {3, 5, 11, 13}.

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MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन Ex 2.3

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन Ex 2.3

प्रश्न 1.
निम्नलिखित संबंधों में से कौन से फलन हैं ? कारण का उल्लेख कीजिए। यदि संबंध एक फलन है तो उसका परिसर निर्धारित कीजिए।
(i) {(2, 1), (5, 1), (8, 1), (11, 1), (14, 1), (17, 1)}
(ii) {(2, 1), (4, 2), (6, 3), (8, 4), (10, 5), (12, 6), (14, 7)}
(iii) {(1, 3), (1, 5), (2, 5)}
हल:
(i) माना R = {(2, 1), (5, 1), (8, 1), (11, 1), (14, 1), (17, 1)}
यह संबंध एक फलन है क्योंकि किसी भी दो क्रमित युग्म का पहला घटक बराबर नहीं है।
प्रान्त = {2, 6, 8, 11, 14, 17} तथा परिसर = {1}.
(ii) माना R = {(2, 1), (4, 2), (6, 3), (8, 4), (10, 5), (12, 6), (14, 7)}
यह एक फलन है क्योंकि किसी भी दो क्रमित युग्म का पहला घटक बराबर नहीं है।
अतः प्रांत = {2, 4, 6, 8, 10, 12, 14}, परिसर = {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7}.
(iii) यह एक फलन नहीं है क्योंकि (1, 3), (1,5) में पहला घटक समान है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वास्तविक फलनों के प्रांत तथा परिसर ज्ञात कीजिए।
(i) f(x) = – |x|
(ii) f(x) = \(\sqrt{9-x^{2}}\)
हल:
दिया है : f(x) = – |x |, f(x) ≤ 0 सभी x ⊂ R के लिए
f का प्रान्त = R
तथा f का परिसर = {y : y ϵ R, Y ≤ 0) = (-∞, 0]
(ii) (a) f(x) = \(\sqrt{9-x^{2}}\)
f(x) परिभाषित नहीं है जब 9 – x2 < 0 या x2 > 9
⇒ x > 3 और x < -3
∴ f परिभाषित है जब – 3 ≤ x ≤ 3.
f का प्रान्त = – 3 ≤ x ≤ 3, x ϵ R
अब मान लीजिए y = \(\sqrt{9-x^{2}}\) या y2 = 9 – x2
x2 = 9 – y2, x = \(\sqrt{9-x^{2}}\)
f परिभाषित है यदि 9 ≥ y2 2 0 या y2 ≤ 9
⇒ y ≤ 3, y ≠ – ve
(b) f का परिसर = y ≤ 3 और y ≥ 0
= {y : y ≤ R और 0 ≤ y ≤ 3}.

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प्रश्न 3.
एक फलन f(x) = 2x – 5 द्वारा परिभाषित है। निम्नलिखित के मान लिखिए :
(i) f(0)
(ii) f(7)
(iii) f(-3)
हल:
f(x) = 2x – 5
(i) f(o) = 2 × 0 – 5 = -5
(ii) f(7) = 14 – 5 = 9
(iii) f(-3) = 2 × (-3) – 5 = – 6 – 5 = – 11.

प्रश्न 4.
फलन ‘t’ सेल्सियस तापमान का फारेनहाइट तापमान में प्रतिचित्रण करता है, जो t(C) = \(\frac{9 C}{5}+32\) द्वारा परिभाषित है। निम्नलिखित को ज्ञात कीजिए :
(i) t (0)
(ii) t (28)
(iii) t (-10)
(iv) C का मान, जब t(C) = 212
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन Ex 2.3 img-1
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन Ex 2.3 img-2

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से प्रत्येक फलन का परिसर ज्ञात कीजिए :
(i) f(x) = 2 – 3x, x ϵ R, x > 0.
(ii) f(x) = x + 2, x एक वास्तविक संख्या है।
(iii) f(x) = x, x एक वास्तविक संख्या है।
हल:
(i) दिया है : f(x) = 2 – 3x, x ϵ R, x > 0
= y (माना)
∴ 2 – 3x = y या 2 – y = 3x या x = \(\frac{2-y}{3}\)
दिया है: x > 0 अर्थात \(\frac{2-y}{3}\) > 0 या 2 – y > 0 या y < 2
अतः f का परिसर = y < 2 या (-∞, 2)
(ii) f(x) = y = x2 + 2, x ϵ R
या x2 = y – 2
या x = \(\sqrt{y-2}\)
अर्थात y – 2 ≤ 0 या y ≥ 2
अतः f का परिसर y = {y : y ϵ R और y ≥ 2}
= [2, ∞].
(iii) f(x) = y = x या x = y
∵ x ϵ R और x = y तब y ϵ R
अतः f का परिसर = {y : y ϵ R} = R.

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MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन Ex 2.2

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन Ex 2.2

प्रश्न 1.
मान लीजिए A= {1, 2, 3, ……. 14}, R = {(x, y): 3x – y = 0, जहाँ x, Y ϵ A) द्वारा A से A का एक संबंध R लिखिए। इसके प्रांत, सहप्रांत और परिसर लिखिए।
हल:
A = {1, 2, 3, ….., 14}, R : A जबकि
(i) R = {(x, y) : 3x – y = 0 या y = 3x}
= {(1, 3), (2, 6), (3, 9), (4, 12),….}
(ii) प्रांत : संबंध R के समुच्चयों में x के अवयव = {1, 2, 3, 4}.
सहप्रांत : {1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13, 14}.
परिसर : संबंध R के समुच्चयों में y के अवयव = {3, 6, 9, 12}.

प्रश्न 2.
प्राकृत संख्याओं के समुच्चय पर R = {x, y) : y = x + 5, x संख्या 4 से कम, एक प्राकृत संख्या है, x,y ϵ N} द्वारा एक संबंध R परिभाषित कीजिए। इस संबंध को
(i) रोस्टर रूप में इसके प्रांत और परिसर लिखिए।
हल:
संबंध R, दिया गया है।
R = {(x, y) : y = x + 5, x, y ϵ N तथा x < 4}
= {(1, 6), (2, 7), (3, 8)}.
(i) प्रान्त = {1, 2, 3}.
परिसर = {6, 7, 8}.

प्रश्न 3.
A = {1, 2, 3, 5} और B = {4, 6, 9}, A से B में एक सम्बन्ध
R = {x, y} : x और y का अंतर विषम है, x ϵ A, y ϵ B} द्वारा परिभाषित कीजिए। R को रोस्टर रूप में लिखिए।
हल:
दिया है: A = {1, 2, 3, 5} और B = {4, 6, 9}. A से B में संबंध,
R = {(x, y) : x, में अंतर विषम है, x ϵ A, y ϵ B}
= {1, 4,), (1, 6), (2, 9), (3, 4), (3, 6), (5, 4), (5, 6)}.

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प्रश्न 4.
दी हुई आकृति समुच्चय P से Q का एक संबंध दर्शाती है। इस संबंध को (i) समुच्चय निर्माण रूप में (ii) रोस्टर रूप में लिखिए। इसके प्रांत व परिसर क्या हैं ?
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 2 संबंध एवं फलन Ex 2.2 img-1
हल:
(i) समुच्चय निर्माण रूप में, R = {(x, y) : y = x – 2, x = 5, 6, 7 के लिए}
(ii) रोस्टर रूप में, R = {(5, 3), (6, 4), (7, 5)}
प्रान्त = {5, 6, 7}
और परिसर = {3, 4, 5}.

प्रश्न 5.
मान लीजिए कि A= {1, 2, 3, 4, 6) मान लीजिए कि R, A पर {(a, b) : a, b ϵ A, संख्या a संख्या b को यथावथ विभाजित करती है} द्वारा परिभाषित एक संबंध है।
(i) R को रोस्टर रूप में लिखिए।
(ii) R का प्रांत ज्ञात कीजिए।
(iii) R का परिसर ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है :
A = {1, 2, 3, 4, 6}
R = {(a, b) : a, b ϵ A, a संख्या b को विभाजित करती है}
(i) रोस्टर रूप में, R = {(1, 1), (1, 2), (1, 3), (1, 4), (1, 6), (2, 2), (2, 4), (2, 6), (3, 3), (3, 6), (4,4), (6, 6)}
(ii) R का प्रांत = {1, 2, 3, 4, 5, 6}
(iii) R का परिसर = {1, 2, 3, 4, 5, 6}.

प्रश्न 6.
R = {(x, x + 5) : x ϵ {0, 1, 2, 3, 4, 5}} द्वारा परिभाषित संबंध R के प्रांत और परिसर ज्ञात कीजिए।
हल:
R = {(x, x + 5) : x ϵ {0, 1, 2, 3, 4, 5}}
= {(0, 5), (1, 6), (2, 7), (3, 8), (4, 9), (5, 10)}
R का प्रांत = {0, 1, 2, 3, 4, 5}
R का परिसर : {5, 6, 7, 8, 9, 10}.

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प्रश्न 7.
संबंध R = {(x, x3) : x संख्या 10 से कम एक अभाज्य संख्या है} को रोस्टर रूप में लिखिए।
हल:
10 से कम अभाज्य संख्याएँ 2, 3, 5, 7
रोस्टर रूप में, R = {(x, x3) : x एक अभाज्य संख्या है जो 10 से कम है}
= {(2, 8), (3, 27), (5, 125), (7, 343)}.

प्रश्न 8.
मान लीजिए कि A = {x, y, } और B = {1, 2}, A से B के संबंधों की संख्या ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है: A = {x, y, z}, B = {1, 2}
A × B = {(x, 1), (x, 2), (y, 1), (y, 2), (z, 1), (z, 2)}
n(A × B) = 6
संबंधों की कुल संख्या = A × B के उपसमुच्चयों की संख्या
= 26 = 64.

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प्रश्न 9.
मान लीजिए कि R, Z पर, R = {(a, b) : a, b ϵ z, a – b एक पूर्णांक है}, द्वारा परिभाषित एक संबंध है। R के प्रांत व परिसर ज्ञात कीजिए।
हल:
R समुच्चय Z पर एक संबंध है तथा R = {(a, b), a ϵ Z, b ϵ Z, a – b एक पूर्णांक संख्या है।
∴ प्रांत (R) = Z
परिसर (R) = Z.

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MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण

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MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण

जीव जगत का वर्गीकरण NCERT प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
वर्गीकरण की पद्धतियों में समय के साथ आए परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1. लिनीयस:
कैरोलस लिनीयस (1707 – 1778) एक प्रमुख स्वीडिश जीव विज्ञानी थे, जिन्हें जीव विज्ञान विषय में उनके योगदान के कारण वर्गीकरण का जनक कहा जाता है। ये वर्गीकरण की द्वि – जगत वर्गीकरण पद्धति के जनकों में से एक हैं। आज भी हम इन्हीं के वर्गीकरण को आधार मानकर जीवों का आधुनिक वर्गीकरण करते हैं । इन्होंने सम्पूर्ण जीवों को दो जगत जन्तु एवं पादप में बाँटा है। जीवों के नामकरण की द्वि-नाम नामकरण पद्धति के भी जनक लिनीयस ही थे, जिसके कारण जीवों को पूरे विश्व में एक नाम मिला एवं जीव विज्ञान का अध्ययन आसान बना। इन्होंने अपनी पुस्तक ‘सिस्टेमा नेचुरी’ में 4378 जन्तुओं को वैज्ञानिक नाम दिया।

2. कृत्रिम वर्गीकरण:
कृत्रिम वर्गीकरण, वर्गीकरण की प्राचीनतम एवं अप्राकृतिक पद्धति है, जिसमें जीवों को, उनके एक या कुछ लक्षणों जैसे-आवास, बाह्य आकार, व्यवहार तथा आकृति की समानता आदि को आधार मानकर वर्गीकृत किया जाता है। वर्गीकरण की यह पद्धति 300 B.C. से सन् 1830 तक प्रचलित रही। अरस्तू, थियोफ्रास्टस तथा जॉन रे इस वर्गीकरण पद्धति के प्रमुख वैज्ञानिक थे। प्लाइनी इस पद्धति के प्रमुख समर्थक थे, जिन्होंने जन्तुओं को पहली शताब्दी में आवास के आधार पर वर्गीकृत किया।लिनीयस द्वारा पौधों के वर्गीकरण के लिए भी इस पद्धति का प्रयोग किया गया।

3. प्राकृतिक वर्गीकरण:
वह वर्गीकरण पद्धति है जिसमें जीवों के रचनात्मक आकृति, स्वभाव, व्यवहार आदि के गुणों के एक विस्तृत समूह तथा उनके बीच के प्राकृतिक सम्बन्धों को आधार मानकर जीवों का वर्गीकरण किया जाता है। इसकी शुरुआत कैरोलस लिनीयस ने की थी, लेकिन इसका प्रचलन बाद में शुरू हुआ।आधुनिक वर्गीकरण इसी पद्धति पर आधारित है । बेन्थम एवं हूकर (1862 एवं 1883) का पादप वर्गीकरण तथा हेनरी एवं यूसिन्जर का जन्तु वर्गीकरण इसी पद्धति पर आधारित है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित के बारे में आर्थिक दृष्टि से दो महत्वपूर्ण उपयोगों को लिखिए –
(1) परपोषी बैक्टीरिया
(2) आद्य बैक्टीरिया।
उत्तर:
(1) परपोषी बैक्टीरिया:

  1. नाइट्रोजन स्थिरीकरण – कुछ जीवाणु जैसे-ऐजोटोबॅक्टर तथा क्लॉस्ट्रिडियम नाइट्रोजन स्थिरीकरण द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
  2. लैक्टिक अम्ल निर्माण – लैक्टोबैसिलस लैक्टाई जीवाणु दूध के लैक्टोज को लैक्टिक अम्ल (दही) में परिवर्तित कर देते हैं।
  3. ऐसीटिक अम्ल निर्माण – ऐसीटोबैक्टर ऐसीटाई जीवाणु सिरका का निर्माण करता है।
  4. रेशे की रेटिंग – कुछ जीवाणु, जैसे – क्लॉस्ट्रिडियम ब्यूटीरियम पादप रेशों के उत्पादन में सहायता करते हैं।
  5. तम्बाकू एवं चाय उद्योग-कुछ जीवाणु, जैसे – माइकोकॉकस कॉण्डीसेन्सतम्बाकू एवं चाय की सीजनिंग करते हैं।
  6. औषधि निर्माण – कुछ जीवाणुओं जैसे – स्ट्रेप्टोमाइसिस से प्रतिजैविक औषधियाँ प्राप्त होती हैं।

(2) आद्य बैक्टीरिया:

  1. मेथैनोजेन्स (Mathanogens) – इसके अन्दर वे अवायवीय जीवाणु आते हैं, जो CO2 या फॉर्मिक अम्ल से मेथेन बनाते हैं।
  2. हैलोफाइल्स (Halophyles) – ये बहुत नमक सान्द्रता में पाये जाते हैं। मेथैनोजेन्स तथा हैलोफाइल्स अनिवार्य रूप से अवायवीय होते हैं और आर्कीबैक्टीरिया का अवायवीय समूह बनाते हैं।
  3. थर्मोएसिडोफिल्स (Thermoacidophyles) – ये ऐसे वायवीय या अवायवीय आर्कीबैक्टीरिया हैं, जो गर्म तथा गन्धक युक्त झरनों में पाये जाते हैं। वायवीय परिस्थिति में ये गन्धक को H2SO4 में लेकिन अवायवीय परिस्थिति में H2S में बदल देते हैं।

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प्रश्न 3.
डायटम की कोशिका भित्ति के क्या लक्षण हैं?
उत्तर:
डायटम में कोशिका भित्ति साबुनदानी की तरह दो अतिव्यापित कवच (Overlapping cells) बनाती है। इनकी कोशिका भित्ति सिलिका (Silica) की बनी होती है, जिस कारण ये नष्ट नहीं होते हैं। मृत डायटम अपने परिवेश में कोशिका भित्ति के अवशेष बड़ी संख्या में छोड़ जाते हैं । करोड़ों वर्षों में जमा हुए इस अवशेष को डायटमी मृदा (Diatomaceous soil) कहते हैं। डायटमी मृदा श्वेत छिद्रित रसायनग्राही तथा अग्निसह (Fire proof) होती है।

प्रश्न 4.
शैवाल पुष्पन (Algal bloom) तथा लाल तरंगें (Red tides) क्या दर्शाती हैं ?
उत्तर:
शैवाल पुष्पन (Algal bloom):
कभी-कभी कुछ हरे शैवाल जैसे – क्लोरेला, सेनडेस्मस एवं स्पाइरोगायरा आदि की जल स्रोतों में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है तथा ये आपस में गुच्छित होकर जल को हरा रंग प्रदान कर देते हैं। इस अवस्था को शैवाल पुष्पन (Algal bloom) कहा जाता है।

लाल तरंगें (Red tides):
लाल रंग की डायनोफ्लैजिलेट शैवाल, उदाहरण-डेस्मिड, स्वच्छ एवं लवणीय जल में पाये जाते हैं। कभी – कभी समुद्र में इनकी वृद्धि बहुत अधिक मात्रा में हो जाती है। जिसके कारण पानी का रंग लाल हो जाता है तथा समुद्र की लहरें भी लाल रंग की दिखाई पड़ने लगती हैं।

प्रश्न 5.
वायरस से वाइरॉइड किस प्रकार भिन्न होते हैं ?
उत्तर:
वायरस, वाइरॉइड से निम्नानुसार भिन्न होते हैं –

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प्रश्न 6.
प्रोटोजोआ के चार प्रमुख समूहों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रचलन अंगों के आधार पर प्रोटोजोआ को चार प्रमुख समूहों में बाँटा गया है –

  1. कशाभी (Zooflagellates)
  2. सार्कोडिना या अमीबीय प्रोटोजोआ (Sarcodines)
  3. स्पोरोजोआ (Sporozoa) तथा
  4. पक्ष्माभी प्रोटोजोआ (Ciliates)

1. कशाभी प्रोटोजोआ (Zooflagellata):
इस प्रकार के प्रोटोजोआ में प्रचलन हेतु एक अथवा कई कशाभिकाएँ (Flagella) पाये जाते हैं। ये प्राय: एककेन्द्रकीय (Uninucleate) लेकिन कभी-कभी बहुकेन्द्रकीय (Multinucleate) होते हैं। उदाहरण – जिआर्डिया (Giardia), ट्रिपेनोसोमा (Trypanosoma)

2. अमीबीय प्रोटोजोअन (Sarcodines):
इस प्रकार के प्रोटोजोआ में प्रचलन अंग कूटपाद (Pseudopodia) पाये जाते हैं। ये अपने कूटपादों की सहायता से सूक्ष्मजीवों का शिकार कर लेते हैं। अमीबीय प्रोटोजोआ प्रायः एककेन्द्रकीय होते हैं। उदाहरण – अमीबा एवं इसकी अन्य प्रजातियाँ।

3. स्पोरोजोआ (Sporozoa):
इस समूह के समस्त जीव अन्तः परजीवी (Endoparasite) होते हैं, तथा इनमें प्रचलन अंगों का अभाव होता है। इनमें परजीवी पोषण पाया जाता है। शरीर के चारों तरफ पेलिकल (Pellicle) का आवरण पाया जाता है। इनका जीवन-चक्र, अलैंगिक तथा लैंगिक दो चक्रों में पूर्ण होता है। उदाहरण – प्लाज्मोडियम, मोनोसिस्टिस।

4. पक्ष्माभी प्रोटोजोआ (Ciliates):
ये जलीय तथा अत्यन्त सक्रिय गति करने वाले जीवधारी हैं, क्योंकि इनके शरीर पर हजारों की संख्या में पक्ष्माभ (Cilia) पाए जाते हैं । इसके शरीर में एक ग्रसिका (Gullet) होती है जो कोशिका की सतह के बाहर की तरफ खुलती है। पक्ष्माभों की लयबद्ध गति के कारण जल से पूरित भोजन ग्रसिका (Gullet) की तरफ भेज दिया जाता है। उदाहरण – पैरामीशियम।

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प्रश्न 7.
पादप स्वपोषी है। क्या आप ऐसे कुछ पादपों को बता सकते हैं, जो आंशिक रूप से परपोषित हैं ?
उत्तर:
पादप जगत (Plantae) वे सभी जीव है, जो यूकैरियोटिक हैं तथा जिसमें क्लोरोफिल होते हैं, पादप (Plant) कहलाते हैं। ये अपना भोजन स्वतः निर्मित कर लेते हैं, अत: स्वपोषी हैं। लेकिन कुछ पादप जैसे कीटभक्षी पौधे तथा परजीवी आंशिक रूप में विषमपोषी होते हैं। ब्लैडरवर्ट तथा कलश पादप कीटभक्षी तथा अमरबेल परजीवी पौधों के उदाहरण हैं।

प्रश्न 8.
शैवालांश तथा कवकांश शब्दों से क्या पता चलता है ?
उत्तर:
शैवाल घटक को शैवालांश (Phycobiant) तथा कवक के घटकों को कवकांश (Mycobiant) कहते हैं जो क्रमशः स्वपोषी तथा परपोषी होते हैं। शैवाल, कवक (Fungi) के लिए भोजन संश्लेषित करता है और कवक, शैवाल को आश्रय देता है तथा खनिज एवं जल का अवशोषण करता है। इस प्रकार शैवाल एवं कवक का सहजीवन लाइकेन (Lichens) में पाया जाता है।

प्रश्न 9.
कवक (फंजाई )जगत के वर्गों का तुलनात्मक विवरण निम्नलिखित बिन्दुओं पर कीजिए –

  1. पोषण की विधि
  2. जनन की विधि।

उत्तर:
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प्रश्न 10.
यूग्लीनॉइड के विशिष्ट चारित्रिक लक्षण कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
यूग्लीनॉइड के लक्षण:

  • इनमें से अधिकांश स्वच्छ जल (Fresh water) में पाये जाते हैं।
  • इनमें कोशिका भित्ति के स्थान पर एक प्रोटीन से बनी लचीली झिल्ली पेलिकल (Pellicle) पायी जाती है।
  • इनमें दो कशाभ (Flagella) पाये जाते हैं, जिनमें से एक छोटा तथा दूसरा बड़ा होता है।
  • इसमें क्लोरोफिल पाया जाता है, अत: प्रकाश की उपस्थिति में ये अपना भोजन स्वयं बनाते हैं। प्रकाश की अनुपस्थिति में ये सूक्ष्मजीवधारियों का शिकार कर परपोषण करते हैं। उदाहरण – यूग्लीना (Euglena)।

प्रश्न 11.
संरचना तथा आनुवंशिक पदार्थ के संदर्भ में वायरस का संक्षिप्त विवरण दीजिए। वायरस से होने वाले चार रोगों का नाम लिखिए।
उत्तर:
विषाणु की संरचना:
विषाणु 0-00001 मिमी से 0-00035 मिमी के अति सूक्ष्मजीव हैं जिसमें जीव तथा निर्जीव दोनों के लक्षण पाये जाते हैं इसलिए इनको जीव तथा निर्जीव के बीच की कड़ी मानते हैं। यह रचनात्मक दृष्टि से तीन भागों का बना होता है –

  • प्रोटीन कैप्सिड
  • न्यूक्लिक अम्ल
  • आवरण।

इसके चारों तरफ एक खोल पायी जाती है जिसे कैप्सिड कहते हैं। यह कैप्सोमीयर नामक छोटी इकाइयों का बना होता है। एक कैप्सिड में कम से कम 12 कैप्सोमीयर पाये जाते हैं । कैप्सोमीयर मोनोमियर नामक उपइकाइयों के बने होते हैं जो एक से पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं का बना होता है। कुछ विषाणुओं में कैप्सिड के अन्दर DNA अथवा RNA न्यूक्लिक अम्लों की श्रृंखला आनुवंशिक पदार्थ के रूप में पायी जाती हैं।

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रोग:

  • यह पौधों में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं, जैसे – तम्बाकू का मोजेक रोग, केले का हरित रोग, पपीते की पत्तियों का मुड़ना।
  • ये जन्तुओं में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं। जैसे – मनुष्य में पोलियो, खसरा, जुकाम आदि।

प्रश्न 12.
अपनी कक्षा में इस शीर्षक, ‘क्या वायरस सजीव है अथवा निर्जीव’, पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
विषाणुओं को सजीव एवं निर्जीव के मध्य एक संयोजक कड़ी (Connective link) माना गया है। विषाणुओं के जैविक एवं अजैविक लक्षण इस प्रकार हैं –

(A) विषाणुओं के जैविक लक्षण:

  • विषाणुओं में गुणन पाया जाता है।
  • इसका गुणन (Multiplication) केवल जैविक कोशिकाओं में होता है।
  • ये अनिवार्य परजीवी (Obligate parasite) होते हैं।
  • ये प्रोटीन एवं नाभिकीय अम्लों के बने होते हैं।
  • इसमें DNA एवं RNA आनुवंशिक पदार्थ के रूप में पाया जाता है।
  • इनमें उच्च अनुकूलन क्षमता होती है।
  • ये उत्परिवर्तन प्रदर्शित करते हैं।

(B) विषाणुओं के अजैविक लक्षण:

  • इसका रवाकरण (Crystallization) किया जा सकता है।
  • श्वसन एवं श्वसनांगों का अभाव होता है।
  • एन्जाइम तथा प्रोटोप्लाज्म का अभाव होता है।
  • ये पोषक विशिष्टता (Host – Specificity) प्रदर्शित करते हैं।

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जीव जगत का वर्गीकरण अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

जीव जगत का वर्गीकरण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –

1. ‘जाति’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया था –
(a) जॉन रे
(b) लिनीयस
(c) अरस्तू
(d) चरक।
उत्तर:
(a) जॉन रे

2. ‘सिस्टेमा नैचुरी’ नामक पुस्तक के लेखक थे –
(a) बेन्थम
(b) हूकर
(c) लिनीयस
(d) एंग्लर।
उत्तर:
(c) लिनीयस

3. ‘स्पीशीज प्लाण्टेरम’ के लेखक हैं –
(a) लैमार्क
(b) लिनीयस
(c) थियोफ्रास्ट्स
(d) येन।
उत्तर:
(b) लिनीयस

4. पाँच – जगत वर्गीकरण किस वैज्ञानिक ने दिया –
(a) लिनीयस
(b) बेन्थम
(c) हूकर
(d) व्हिटकर।
उत्तर:
(d) व्हिटकर।

5. विषाणुओं को रवों के रूप में किस वैज्ञानिक ने प्राप्त किया
(a) स्टैन्ले
(b) गाइरर
(c) व्हिटकर
(d) वाइजरन्कि
उत्तर:
(a) स्टैन्ले

6. विषाणुओं का आनुवंशिक पदार्थ है
(a) DNA और RNA
(b) DNA या RNA
(c) गुणसूत्र
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) DNA या RNA

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7. जीव वर्गीकरण की मूल इकाई है –
(a) वर्ग
(b) जाति
(c) वंश
(d) जगत्।
उत्तर:
(b) जाति

8. जीव वर्गीकरण का सर्वोच्च संवर्ग है –
(a) वर्ग
(b) संघ
(c) वंश
(d) जाति
उत्तर:
(b) संघ

9. होमो सैपिएन्स किस जन्तु का वैज्ञानिक नाम है –
(a) मनुष्य
(b) बैल
(c) जोंक
(d) मेढक
उत्तर:
(a) मनुष्य

10. मादा घोड़े तथा नर गधे से उत्पन्न संकर जीव है –
(a) बन्दर (Monkey)
(b) चूहा (Rat)
(c) खच्चर (Mule)
(d) घोड़ा (Horse)
उत्तर:
(c) खच्चर (Mule)

11. वर्गीकरण की मुख्य इकाई है –
(a) जाति
(b) वंश
(c) (a) एवं (b) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) जाति

12. द्वि – नाम नामकरण पद्धति को किसने प्रस्तावित किया था –
(a) डार्विन
(b) कैरोलस लिनीयस
(c) ह्यूगो डी वीज
(d) मेण्डल।
उत्तर:
(b) कैरोलस लिनीयस

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13. ‘जेनेरा प्लाण्टेरम’ के लेखक हैं –
(a) बेन्थम एवं हूकर
(b) लिनीयस
(c) एंग्लर
(d) प्रांटल।
उत्तर:
(a) बेन्थम एवं हूकर

14. नग्नबीज किसमें पाए जाते हैं –
(a) शैवाल
(b) टेरिडोफाइटा
(c) जिम्नोस्पर्म
(d) एंजियोस्पर्म
उत्तर:
(c) जिम्नोस्पर्म

15. सबसे प्राचीनतम जीवित संवहनी पादप है –
(a) लाल शैवाल
(b) फर्न
(c) भूरी शैवाल
(d) लाइकेन्स।
उत्तर:
(b) फर्न

16. प्लाज्मिड जीवाणु में होते हैं –
(a) अतिरिक्त गुणसूत्र
(b) अतिरिक्त नाभिक
(c) अतिरिक्त मेटाबोलाइट
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(a) अतिरिक्त गुणसूत्र

17. लिनीयस द्वारा प्रतिपादित वर्गीकरण कृत्रिम था क्योंकि –
(a) यह विकासीय रीतियों पर आधारित था
(b) उसमें पुष्पीय तथा अल्प आकारिकीय लक्षणों में समानताएँ और विभिन्नताओं को विचार में लिया गया था
(c) यह शरीर क्रियात्मक लक्षणों पर आधारित था
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) उसमें पुष्पीय तथा अल्प आकारिकीय लक्षणों में समानताएँ और विभिन्नताओं को विचार में लिया गया था

18. जातिवृत्तीय वर्गीकरण है –
(a) विकास की दशाओं के अनुसार
(b) पुष्पीय समानता के आधार पर
(c) सभी आकारिकीय लक्षणों के आधार पर वर्गीकरण
(d) बढ़ती जटिलता के अनुसार वर्गीकरण।
उत्तर:
(a) विकास की दशाओं के अनुसार

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19. वर्गीकरण विज्ञान के सर्वप्रथम महान् वनस्पतिज्ञ कौन थे –
(a) जे.डी. हूकर
(b) एंग्लर
(c) लिनीयस
(d) अरस्तू।
उत्तर:
(c) लिनीयस

20. वंश ऐसा समूह है, जिसमें परस्पर सम्बन्धित होती है –
(a) कुल
(b) जाति
(c) गण
(d) जेनेरा।
उत्तर:
(b) जाति

21. कृत्रिम प्रणाली द्वारा वर्गीकरण का आधार है –
(a) एक या दो या कुछ लक्षण
(b) जितने सम्भव हो उतने अधिक लक्षण
(c) जातिवृत्तिक लक्षण
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) एक या दो या कुछ लक्षण

22. वर्गीकरण का उद्देश्य है –
(a) जीवों को संग्रहीत करना
(b) जीवों को पहचानना
(c) जीवों को खोजना
(d) जीवों को खोजना, पहचानना, नामकरण करना तथा समूहों में बाँटना
उत्तर:
(d) जीवों को खोजना, पहचानना, नामकरण करना तथा समूहों में बाँटना

23. द्वि-नाम पद्धति का अभिप्राय प्राणियों के नाम को दो शब्दों में लिखना है, वे हैं –
(a) प्रकार व जाति
(b) गण व कुल
(c) प्रकार व विभिन्नताएँ
(d) कुल एवं प्रकार।
उत्तर:
(a) प्रकार व जाति

24. गोल जीवाणु है –
(a) बैसीलस
(b) कोकाई
(c) स्पाइरिलम
(d) कोमा।
उत्तर:
(b) कोकाई

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25. लेग्यूमिनस पौधे की जड़ की गाँठ में पाया जाने वाला N, स्थिरीकारक जीवाणु है –
(a) एजोटोबैक्टर
(b) नाइट्रोबैक्टर
(c) लैक्टोबैसिलस
(d) राइजोबियम।
उत्तर:
(d) राइजोबियम।

26. जीवाणु कोशिका की भित्ति का एक प्रमुख बहुलक है –
(a) पेप्टाइडोग्लाइकेन
(b) सेल्युलोज
(c) काइटिन
(d) जाइलॉन।
उत्तर:
(b) सेल्युलोज

27. लौह जीवाणुओं का एक उदाहरण है –
(a) वैगिएटोआ
(b) जियोबैसिलस
(c) थायोबैसिलस
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) जियोबैसिलस

28. अकार्बनिक पदार्थों के ऑक्सीकरण से ऊर्जा प्राप्त करने वाले जीवाणु कहलाते हैं –
(a) कीमोलिथोट्रॉफ
(b) फोटोलिथोट्रॉफ
(c) फोटोऑर्गेनोट्रॉफ.
(d) कीमोऑर्गेनोट्रॉफ।
उत्तर:
(a) कीमोलिथोट्रॉफ

29. माइकोप्लाज्मा के लिए कौन-सा कथन सत्य है –
(a) कोशिका भित्ति की उपस्थिति
(b) केन्द्रक की उपस्थिति
(c) कोशिका भित्ति की अनुपस्थिति
(d) निश्चित आकार।
उत्तर:
(c) कोशिका भित्ति की अनुपस्थिति

30. नॉस्टॉक है, एक –
(a) नील-हरित जीवाणु
(b) माला समान जीवाणु
(c) जीवाणुभोजी
(d) परजीवी।
उत्तर:
(a) नील-हरित जीवाणु

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. वर्गीकरण विज्ञान के जनक …………. हैं।
  2. द्विनाम पद्धति ……………. ने लागू की।
  3. वंश ऐसा समूह है जिसमें …………… परस्पर संबंधित होते हैं।
  4. किसी जाति के विकासात्मक इतिहास को …………. कहते हैं।
  5. शैवाल व कवक दोनों पौधे सहजीवी के रूप में ………… में साथ होते हैं।
  6. ………. जीव में जीवित व अजीवित के गुण पाये जाते हैं।
  7. पाँच जगत वर्गीकरण के प्रणेता ………… थे।
  8. जीव जगत में सही स्थिति जानने के अध्ययन को ………… कहते हैं।
  9. सदियों से पूर्ण जीवधारियों की रचना का ज्ञान …………… से मिलता है।
  10. पक्षी व सरीसृप के बीच की कड़ी का नाम ………….. है। …………
  11. ………. को आयुर्वेद का जनक कहा जाता है।
  12.  ………. ने सबसे पहले प्राकृतिक वर्गीकरण पद्धति को प्रस्तुत किया था तथा स्पीशीज शब्द का प्रतिपादन किया था।
  13. जीवों के वर्गीकरण का सबसे पहले व्यवस्थित प्रयास …….. एवं …… ने किया।
  14. ………… सबसे बड़ी जन्तु कोशिका है।
  15. मनुष्य का वैज्ञानिक नाम ……….. है।
  16. जीवाणुभोजी की केन्द्रक में ……….होता है।
  17. लेग्यूमिनोसी कुल के पौधे कृषि के लिए लाभदायक होते हैं, क्योंकि उनमें ………. होता है।
  18. दुग्ध उत्पादन के किण्वन के लिए …………… उत्तरदायी होता है।
  19. जीवाणु की कोशिका भित्ति…………… से बनी होती है।
  20.  …………….द्वारा जीवाणु लैंगिक प्रजनन करते हैं।
  21. मिथेनोजन जीवाणु …………. जीवाणु है।
  22. निमोनिया रोग …………. द्वारा उत्पन्न होता है।

उत्तर:

  1. कैरोलस लिनीयस
  2. कैरोलस लिनीयस
  3. जाति
  4. जातिवृत्ति
  5. लाइकेन
  6. वाइरस
  7. व्हिटकर
  8. वर्गिकी
  9. जीवाश्म
  10. आर्कियोप्टेरिक्स
  11. चरक
  12. जॉन रे
  13. हिपोक्रेट्स एवं अरस्तू
  14. ऑस्ट्रिच का अंडा
  15. होमो सेपियन्स-लिनास
  16. D.N.A.
  17. राइजोबियम (सहजीवी) जीवाणु
  18. लैक्टोबैसिलस एवं एस. लेक्टीस
  19. म्यूको-कॉम्प्लेक्स
  20. आनुवंशिक इकाइयों के स्थानांतरण
  21. अवायवीय
  22. जीवाणु।

प्रश्न 3.
MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण - 4
उत्तर:

  1. (d) चरक
  2. (c) हीकल
  3. (e) आर.एच. व्हिटकर
  4. (b) जॉन रे
  5. (f) कैरोलस लिनीयस।
  6. (a) कोपलैण्ड

MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण - 5

उत्तर:

  1. (e) छड़ाकार जीवाणु।
  2. (c) सर्पिलाकार जीवाणु
  3. (b) साधारण गोल जीवाणु
  4. (a) गोल माला के समान जीवाणु
  5. (d) प्रोकैरियॉटिक एककोशिकीय

प्रश्न 4.
एक शब्द में उत्तर दीजिए –

  1. कौन-से जीव में जीवित व अजीवित दोनों के गुण पाए जाते हैं?
  2. पाँच जगत वर्गीकरण के प्रणेता कौन थे?
  3. जीवधारियों के जीव जगत में सही स्थिति जानने के अध्ययन की शाखा का नाम लिखिए।
  4. सदियों पूर्व जीवधारियों की रचना का ज्ञान कैसे होता है ?
  5. उस प्राचीनतम जीवाश्म का नाम लिखिए जो पक्षी एवं सरीसृप के बीच की कड़ी माना जाता है।
  6. न्यूक्लियोप्रोटीन के बने अतिसूक्ष्म जीव जिन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा देख सकते हैं, कहलाता है।
  7. प्राचीनतम जीवित जीवाश्म किसे कहते हैं?
  8. कभी-कभी जीवाणुओं के कोशिका द्रव्य में मुख्य DNA तंतु के अलावा कुछ स्वतंत्र छोटी आनुवंशिक इकाइयाँ मिलती हैं, क्या कहलाती है?
  9. जो जीवाणु H2S या 5 से ऊर्जा प्राप्त करते हैं उन्हें कौन-सा जीवाणु कहते हैं?
  10. जब प्लाज्मिड मुख्य आनुवंशिक इकाई से संयुक्त अवस्था में पाये जाते हैं, इन्हें क्या कहते हैं?

उत्तर:

  1. विषाणु
  2. व्हिटकर
  3. वर्गिकी
  4. जीवाश्म से
  5. आर्कियोप्टेरिक्स
  6. विषाणु
  7. आर्कीबैक्टीरिया
  8. प्लाज्मिड
  9. गंधक
  10. एपीसोम्स।

प्रश्न 5.
सत्य / असत्य बताइए –

  1. लोरेन्थस एवं विस्कस आंशिक परजीवी हैं।
  2. वर्गीकरण में प्रयुक्त संवर्गों में सबसे उच्च संवर्ग संघ है।
  3. जीवों के विभिन्न समूहों को उनके गुणों तथा विकास के आधार पर एक निश्चित श्रृंखला में व्यवस्थित करना पदानुक्रम कहलाता है।
  4. थियोफ्रास्टस ने वंश तथा कुल शब्दों का सर्वप्रथम प्रयोग किया।
  5. भारतवर्ष में जीवों के वर्गीकरण का प्रमाण वेद और उपनिषद् में भी मिलता है।
  6. पौधे को सूखाकर, दबाकर, कागज के शीटों पर वर्गीकरण की किसी मान्य पद्धति के अनुसार क्रमबद्ध कर भविष्य के लिए संरक्षित करने की संग्रह विधि हर्बेरियम कहलाती है।
  7. अचार, जेली में अधिक नमक व शक्कर इनके पदार्थों को सड़ाता है।
  8. विकसित जीव कोशिका विभाजन द्वारा शरीर में वृद्धि करते हैं जबकि एककोशिकीय जीव इसके द्वारा संख्या में वृद्धि करते हैं।
  9. विषाणु जीवित व मृत दोनों कोशिकाओं में वृद्धि कर सकते हैं।
  10. मोनेरियन कोशिका में एक सुसंगठित केन्द्रक नहीं होता है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. सत्य
  6. सत्य
  7. असत्य
  8. सत्य
  9. असत्य
  10. सत्य।

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जीव जगत का वर्गीकरण अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य में एक जीवाणुविक बीमारी का नाम बताइए।
उत्तर:
टायफाइड मनुष्य की एक जीवाणुविक बीमारी है, जो साल्मोनेला टाइफी नामक जीवाणु के संक्रमण से होती है।

प्रश्न 2.
किन्हीं दो नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणुओं के नाम दीजिये।
उत्तर;
दो नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणुओं के नाम हैं –

  • एजोटोबैक्टर
  • क्लॉस्ट्रिडियम।

प्रश्न 3.
सायनोबैक्टीरिया क्या हैं ?
उत्तर:
सायनोबैक्टीरिया एककोशिकीय या बहुकोशिकीय, तन्तुवत् ग्राम निगेटिव रंगीन जीवाणु हैं, जिनमें हरितलवक ए, फाइकोबिलिन्स प्रोटीन तथा कैरोटीनॉइड वर्णक पाये जाते हैं। इनकी कोशिकाएँ प्रोकैरियॉटिक होती हैं तथा उनके चारों तरफ एक आवरण पाया जाता है। ये गन्धहीन वातावरण में पाये जाते हैं तथा इन्हें सायनोफेज विषाणु नष्ट कर देते हैं। उदाहरण- नॉस्टॉक, ऐनाबिना, रिवुलेरिया।

प्रश्न 4.
सल्फर जीवाणु किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जो जीवाणु गंधक तत्व या H2S से ऊर्जा प्राप्त करते हैं, उन्हें सल्फर जीवाणु कहते हैं। थायोबैसिलस डिनाइट्रीफिकेन्स सल्फर को सल्फ्यूरिक अम्ल में ऑक्सीकृत कर देते हैं तथा इस प्रक्रिया में उत्पन्न ऊर्जा को उपयोग में लाते हैं। ये जीवाणु अत्यधिक अम्लता को भी सह लेते हैं।
2S + 8H2O + 3CO2 → 2H2SO4 + 3(CH2O) + 3H2O + ऊर्जा

प्रश्न 5.
प्लाज्मिड्स तथा एपिसोम्स क्या हैं ?
उत्तर:
कभी – कभी जीवाणुओं के कोशिकाद्रव्य में मुख्य DNA तन्तु के अलावा कुछ स्वतंत्र छोटी आनुवंशिक इकाइयाँ (DNA) भी पायी जाती हैं, इन्हें प्लास्पिड कहते हैं। जब ये प्लाज्मिड मुख्य आनुवंशिक इकाई से संयुक्त अवस्था में पाये जाते हैं तब इन्हें एपिसोम कहते हैं। ये इकाइयाँ आनुवंशिक संवहन तथा आनुवंशिक पुनर्योजन में भाग लेते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित के एक-एक उदाहरण लिखिए –

  1. ग्राम पॉजिटिव जीवाणु
  2. ग्राम निगेटिव जीवाणु
  3. सल्फर जीवाणु
  4. लौह जीवाणु
  5. नाइट्रीफाइंग जीवाणु
  6. मनुष्य की आँत के जीवाणु
  7. एक तन्तु रूपी सायनोजीवाणु
  8. एक माइकोप्लाज्मा
  9. दूध का दही जमाने वाला जीवाणु
  10. एक ऐण्टिबायोटिक बनाने वाला जीवाणु।

उत्तर:

  1. उदाहरण – पाश्चुरेला
  2. उदाहरण – ईश्चिरीचिया
  3. उदाहरण – थायोबैसिलस
  4. उदाहरण – फेरोबैसिलस्
  5. उदाहरण – नाइट्रोसोमोनास
  6. उदाहरण – ईश्चिरीचिया कोलाई
  7. उदाहरण – नॉस्टॉक
  8. उदाहरण – ऐकोलीप्लाज्मा
  9. उदाहरण – लैक्टोबैसिलस
  10. उदाहरण – स्ट्रेप्टोमाइसेज।

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प्रश्न 7.
कवक किस गुण में मानव से समानता रखता है ?
उत्तर:
कवक मानव के समान विषमपोषी होती है तथा भोज्य पदार्थों का संग्रहण ग्लाइकोजन के रूप में करते हैं।

प्रश्न 8.
सहजीवी पौधों से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
सहजीवी पौधे – जब दो पौधे परस्पर लाभ के लिए एक – दूसरे पर आश्रित होते हुए साथ – साथ रहते हैं, तो ऐसे पौधों को सहजीवी पौधे कहते हैं। उदाहरण – लाइकेन, जिसमें शैवाल तथा कवक सहजीवी के रूप में रहते हैं। शैवाल हरे होने के कारण प्रकाश – संश्लेषण द्वारा भोजन निर्माण करते हैं तथा उसका कुछ अंश कवक को देते हैं, जबकि कवक खनिज लवण व जल को अवशोषित कर शैवाल को देते हैं।

प्रश्न 9.
L.S.D. का पूरा नाम बताइए। इसे किस कवक से प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर:
L.S.D. का पूरा नाम लाइसर्जिक ऐसिड डाइएथिल ऐमाइड है। यह एक विभ्रम पैदा करने वाला पदार्थ है, जिसे क्लेविसेप्स परपूरिया नामक कवक से प्राप्त किया जाता है।

प्रश्न 10.
कवक के किस वंश से पेनिसिलिन नामक प्रतिजैविक प्राप्त होता है.?
उत्तर:
पेनिसिलियम नामक वंश के कवक पेनिसिलियम नोटेटम तथा पेनिसिलियम क्रायसोजिनम आदि जातियों से पेनिसिलिन नामक प्रतिजैविक पदार्थ प्राप्त होता है।

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प्रश्न 11.
लाइकेन के घटक किस समूह के होते हैं ?
उत्तर:
लाइकेन एक सहजीवी पादप हैं, जिसमें एक कवक तथा एक शैवाल जीव पाया जाता है। कवक ऐस्कोमाइसीटीज़ या बेसिडियोमाइसीटीज़ वर्ग का तथा शैवाल सदस्य क्लोरोफाइटा (हरा शैवाल) या साइनोफाइटा (नीला-हरा शैवाल) वर्ग का हो सकता है।

प्रश्न 12.
कवक जगत की कोशिका भित्ति की विशेषता बताइए।
उत्तर:
कवक जगत की कोशिका भित्ति का प्रमुख घटक सेल्युलोज के स्थान पर एक नाइट्रोजन युक्त पॉलिसैकेराइड काइटिन होता है।

प्रश्न 13.
मृदा निर्माण में लाइकेन का किस प्रकार उपयोग किया जाता है ?
उत्तर:
लाइकेन चट्टानों, लकड़ी के लट्ठे एवं मरुद्भिद अनुक्रम में भी आसानी से उगते हैं जहाँ अन्य जीवन असंभव है, वहाँ ये आसानी से उगते हैं, क्योंकि ये पतले जीव हैं इस प्रकार ये यहाँ उगकर दूसरे जीवों के उगने के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करती हैं। अत: जहाँ पहले लाइकेन्स उगते हैं, वहाँ बाद में मॉस तथा अन्य पौधे उगने लगते हैं। इस प्रकार इसका उपयोग मृदा निर्माण में होता है।

प्रश्न 14.
शैवालीय कवक किस वर्ग के कवकों को कहा जाता है?
उत्तर:
फायकोमाइसीटीज़ वर्ग के कवक सदस्यों को शैवालीय कवक (Algal fungi) कहा जाता है।

प्रश्न 15.
मोल्ड (Mould) किन कवकों को कहा जाता है ?
उत्तर:
फायकोमाइसीटीज़ तथा ऐस्कोमाइसीटीज़ के सदस्य मोल्ड (Mould) कहलाते हैं।

जीव जगत का वर्गीकरण लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पाँच ऐसे कवकों के नाम बताइए, जिनसे प्रतिजैविक औषधियाँ प्राप्त होती हैं।
उत्तर:
पाँच ऐसे कवकों के नाम, जिनसे प्रतिजैविक औषधियाँ प्राप्त होती हैं, निम्नलिखित हैं –
MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण - 6

प्रश्न 2.
एक प्रारूपिक जीवाणु कोशिका का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण - 7

प्रश्न 3.
पदार्थों के चक्रीकरण में मोनेरा-जगत की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हमारे शरीर में अनेक प्रकार के कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थ पाये जाते हैं और जब हम मरते हैं तो मोनेरा जगत के जीव हमारे शरीर के रसायनों का अपघटन करके इन्हें फिर से प्रकृति में मुक्त कर देते हैं, जिन्हें पौधे पुन: ग्रहण करके विविध रसायनों का संश्लेषण करते हैं। पौधों से इन रसायनों को हम ग्रहण करते हैं और फिर से इन रसायनों को मोनेरा जीवों द्वारा अपघटित करके प्रकृति में मिला दिया जाता है। इस प्रकार मोनेरा जगत के जीव पदार्थों के चक्रीकरण में मुख्य भूमिका अदा करते हैं।

प्रश्न 4.
मनुष्य के कोई पाँच रोगजनक जीवाणुओं एवं उनसे होने वाले रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मनुष्य के रोगजनक जीवाणु

जीवाणु – मानव रोग

  • कॉरिनेबैक्टीरियम डिफ्थेरी – डिफ्थीरिया
  • विब्रियो कॉलेरी – कॉलेरा
  • माइकोबैक्टीरियमलैप्री – कुष्ठ रोग
  • क्लॉस्ट्रिडियम टिटैनी – टिटेनस
  • साल्मोनेला टाइफी – टायफाइड।

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प्रश्न 5.
पादपों के कोई पाँच रोगजनक जीवाणुओं एवं उनसे होने वाले रोगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
जीवाणु – पादप रोग

  • जैन्थोमोनास साइट्री – नीबू का कैंकर
  • जैन्थोमोनास ओराइजी – ब्लाइट ऑफ राइस
  • जैन्थोमोनास फैसीओलाई – बीन ब्लाइट
  • स्यूडोमोनास सोलेनेसीरम – आलू का शिथिल रोग
  • स्ट्रेप्टोमाइसिस स्कैबीज – पोटैटो स्कैब।

प्रश्न 6.
प्रतिजैविक पदार्थ क्या हैं? कोई चार प्रतिजैविकों तथा उनके स्रोतों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रतिजैविक सूक्ष्म जीवों से प्राप्त ऐसे रसायन हैं जो कुछ हानिकारक सूक्ष्मजीवों को नष्ट कर देते हैं। इनका उपयोग दवा के रूप में किया जाता है जिससे हमें कई रोगों से सुरक्षा प्राप्त होती है। कुछ जीवाणुओं से प्राप्त कुछ प्रमुख प्रतिजैविक नीचे दिये गये हैं –

MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 2 जीव जगत का वर्गीकरण - 8

प्रश्न 7.
जीवाणु की हानिकारक क्रियाओं का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
जीवाणुओं की हानिकारक क्रियाएँ निम्नानुसार हैं –

  1. जीवाणु और रोग – जीवाणु हमारे एवं हमारे लिए उपयोगी दूसरे जन्तुओं तथा पादपों में रोग पैदा करते हैं।
  2. पेनिसिलीन पर प्रभाव – ये पेनिसिलीन की उपयोगिता को नष्ट कर देते हैं।
  3. नलों के पाइप का सड़ना – सल्फर जीवाणुओं द्वारा पैदा की गयी सल्फ्यूरिक ऐसिड से जमीन के नीचे के नल के पाइप सड़ जाते हैं।
  4. भोजन विषाक्तता-कुछ जीवाणु, जैसे – क्लॉस्ट्रिडियम भोजन को विषाक्त कर देते हैं।
  5. भूमि की उर्वरता घटाना – विनाइट्रीकारी जीवाणु भूमि की उर्वरा शक्ति को घटा देते हैं।

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MP Board Class 11th Special Hindi गद्य साहित्य : विविध विधाएँ

MP Board Class 11th Special Hindi गद्य साहित्य : विविध विधाएँ

1. निबन्ध

निबन्ध गद्य रचना का एक प्रधान भेद है। गद्य साहित्य का सबसे परिष्कृत और प्रौढ़ रूप निबन्ध में ही उभरता है।

परिभाषा-निबन्ध वह रचना है जिसमें किसी गहन विषय पर विस्तार और पाण्डित्यपूर्ण विचार किया जाता है। वास्तव में, निबन्ध शब्द का अर्थ है-बन्धन। यह बन्धन विविध विचारों का होता है, जो एक-दूसरे से गुंथे होते हैं और किसी विषय की व्याख्या करते हैं।

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आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है, तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।”

जयनाथ नलिन के शब्दों में, “निबन्ध स्वाधीन चिन्तन और निश्छल अनुभूतियों का सरस, सजीव और मर्यादित गद्यात्मक प्रकाशन है।”

भाषा की पूर्ण शक्ति भी निबन्धों में ही दिखाई पड़ती है। साहित्य के अन्य विविध क्षेत्रों के विषय में गहन जानकारी भी निबन्धों द्वारा ही प्राप्त होती है। निबन्ध ही मनुष्य के मस्तिष्क का सारा ज्ञानकोश उभारकर रख देते हैं। वह गद्य साहित्य का ऐसा अंग है जो अपने में अत्यधिक पूर्ण और उपयोगी है। निबन्ध साहित्य की एक ऐसी रचना है जो पाठक के मन में आनन्द और अनुभूति उत्पन्न करने में साहित्य की अन्य विधाओं से अधिक सक्षम है।

  • निबन्ध के तत्त्व

निबन्ध को समझने और उसका रसास्वादन करने के लिए निम्नलिखित तीन बातों पर ध्यान देना आवश्यक है

  1. निबन्ध की विषय-वस्तु,
  2. विषय-वस्तु को प्रस्तुत करने का उद्देश्य,
  3. निबन्ध की शैली।

निबन्ध के लिए स्वीकृत विषयों की कोई सीमा नहीं है। अभिव्यक्त विषय में किसी भाव, दृश्य आदि का चित्रण है अथवा किसी घटना मात्र का वर्णन है, किसी मनोविकार आदि का निरूपण विश्लेषण हुआ है या किसी प्रसंग का भावात्मक विवरण है।

इसके पश्चात् उद्देश्य की ओर. ध्यान देना चाहिए। लेखक कभी कुछ तथ्यों, दृश्यों या क्रिया-कलापों का विवरण देकर पाठक का ज्ञानवर्द्धन करना चाहता है तो कभी किसी दृश्य या अतीत की स्मृति को भावात्मक शैली से रमाना चाहता है; कभी वह पाठकों को कुछ प्रेरणा देना चाहता है तो कभी किसी सीख या निष्कर्ष तक ले चलना उसका उद्देश्य होता है। इस प्रकार विषय-वस्तु और उद्देश्य निबन्ध के दो ऐसे तत्त्व हैं जिनसे निबन्ध को समझने में सहायता मिलती है।

निबन्ध में लेखक का दृष्टिकोण सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। वस्तुतः इसी आधार भूमि पर अवस्थित होकर निबन्ध के विवरणों का सर्वेक्षण किया जाता है। अतः निबन्ध में जो मूल्य, तथ्य, आवेश-संवेग, स्मृतियाँ अथवा पूर्वाग्रह आते हैं वे इसी पर आश्रित होते हैं, इसी के द्वारा उन्हें जाना जा सकता है। रामचन्द्र शुक्ल ने जिन संस्मरणों का संकेत अपने विचार प्रधान निबन्धों में किया है वे उनके विषय सम्बन्धी दृष्टिकोण को ही सचित करते हैं। निबन्ध में आत्मपरकता का समावेश इसी के द्वारा होता है।

निबन्धकार का कौशल उसकी अभिव्यंजना शैली में निहित होता है। निबन्ध को समझने और सराहने के लिए मुख्य रूप से यह देखना होगा कि विषय-वस्तु को अभिप्रेत उद्देश्य के लिए किस ढंग से प्रस्तुत किया गया है। किसी भी विषय के सम्बन्ध में अनेक छोटे-बड़े विवरण हो सकते हैं। लेखक अपने उद्देश्य के लिए उनमें से आवश्यक का चयन कर लेता है। अत: निबन्ध के अर्थबोध के लिए चयन और नियोजन को ध्यान रखना आवश्यक है।

भाषा के विविध स्तर भी मूल आशय का प्रतिपादन करने में सहायक होते हैं। भाषा की प्रांजलता और समृद्धि केवल शब्द चयन पर ही निर्भर नहीं है। विचारों को सुस्पष्ट वाक्यों और स्वाभाविक शैली में उपस्थित करना और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके लिए मुहावरों,लोकोक्तियों आदि का समीचीन प्रयोग निबन्ध को अर्थवत्ता प्रदान करता है। निबन्ध में गृहीत बिम्बों, उदाहरणों एवं सन्दर्भो को भी प्रतिपाद्य विषय से सम्बद्ध करके देखना चाहिए।

  • निबन्धों के भेद [2008]

विद्वानों ने प्रमुख रूप से निबन्धों को चार कोटियों में विभाजित किया है, जो निम्न प्रकार हैं
(1) भावात्मक,
(2) विचारात्मक,
(3) वर्णनात्मक,
(4) विवरणात्मक।

(1) भावात्मक निबन्ध-उसे कहते हैं जो किसी विषय का भावना प्रधान चित्र प्रस्तुत करते हैं तथा उसमें विषय की गम्भीर विवेचना नहीं की जाती। इनमें कल्पना का स्थान महत्त्वपूर्ण होता है। निबन्धकार के हृदय से भाव स्वतः कल्पना का रंगीन आवरण ओढ़े अबाध गति से निःसृत होते हैं। विषय के चित्र की रेखाएँ उभरती चलती हैं और निबन्ध की समाप्ति पर एक आकर्षक एवं मार्मिक चित्र उपस्थित हो जाता है। इसमें गहन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति होती है।

(2) विचारात्मक निबन्ध-इनमें भावों की अपेक्षा विचारों की प्रधानता रहती है। उनका सम्बन्ध हदय से न होकर मस्तिष्क से होता है। उनमें विषय की व्याख्या, विवेचन और विश्लेषण सभी कुछ बुद्धि-प्रसूत रहता है। स्वाभाविक है कि ऐसे निबन्धों में विचारों की गहनता होती है। विचारात्मक निबन्धों का क्षेत्र जीवन की प्रत्येक समस्या से सम्बन्धित होता है। विचारात्मक निबन्धों में भी भावों का अस्तित्व होता है किन्तु प्रधानता विचारों की रहती है। विचारात्मक निबन्ध मस्तिष्क-प्रधान होते हैं जबकि भावात्मक निबन्ध हदय-प्रधान होते हैं।

(3) वर्णनात्मक निबन्ध-ये भावात्मक निबन्धों से बहुत कुछ मिलते-जुलते हैं। इसमें विषय का वर्णन आकर्षक ढंग से किया जाता है। किसी भी ऐतिहासिक स्थान, किसी भी कलाकृति, किसी भी प्रकृति के उपादान या वस्तु विशेष को लेकर निबन्धकार सुन्दर भाषा में उसका वर्णन करता है। भारत की सांस्कृतिक एकता इसका उदाहरण है।

(4) विवरणात्मक निबन्ध-इन निबन्धों में किसी वस्तु, घटना या स्थान आदि का विवरण उपस्थित किया जाता है। उदाहरण के लिए, हम किसी यात्रा या नौका विहार को या किसी मेले, उत्सव को लें। उसका विवरण निबन्धकार इतने आकर्षक ढंग से देता चलेगा और अन्त तक वह अपने प्रभाव की छाप हमारे हृदय पर छोड़ देगा। इनमें सारा ध्यान निबन्धकार का प्रमुख विषय पर होता है।

  • निबन्ध रचना की शैली के प्रकार

निबन्धों की विषय-वस्तु को सजाने के तरीके का नाम शैली है। शैली से आशय है भाषागत शैली, जिसमें भाषा के बाह्य और आन्तरिक रूपों का समावेश होता है। प्रायः निबन्ध में निम्नांकित शैली रूपों का ही अधिक प्रयोग होता है

  1. व्यास शैली-इसमें भाव व विचार का विस्तार अत्यन्त सरल और रोचक ढंग से किया जाता है। सरलता, स्पष्टता और स्वाभाविकता इस शैली की विशेषताएँ हैं। कथात्मक (विवरणात्मक) और वर्णनात्मक निबन्ध इसी शैली में लिखे जाते हैं। इसे प्रसाद शैली भी कहते हैं।
  2. समास शैली-समास का अर्थ है-संक्षिप्त। कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक कहना इस शैली की विशेषता है। इस शैली का उपयोग विचारात्मक निबन्धों में अधिक होता है।
  3. विवेचना शैली-इसमें लेखक तर्क-वितर्क, प्रमाण, पुष्टि, व्याख्या एवं निर्णय आदि का सहारा लेते हुए विषय का प्रतिपादन करता है। गहन अध्ययन, मनन और चिन्तन के आधार पर लेखक अपनी बात समझाता है। इसमें कभी-कभी क्लिष्टता आ जाती है। विचारात्मक निबन्ध इसी शैली में आते हैं। शुक्लजी के निबन्ध इस शैली के श्रेष्ठ उदाहरण हैं।
  4. व्यंग्य शैली-इसमें व्यंग्य-विनोद के माध्यम से महत्त्वपूर्ण तत्त्वों का उदघाटन किया जाता है। इसमें कभी-कभी मनोरंजन, कभी तीखी चुभन और कभी गुदगुदी-सी होती है।
  5. आवेश शैली-इसमें लेखक भावावेश में विचारों की अभिव्यक्ति करता है। भाव प्रवाह अनुकूल भाषा और शब्द नियोजन के माध्यम से निबन्ध अपने आप आगे बढ़ता है। इसी को धारा शैली या प्रवाह शैली भी कहते हैं।
  6. संलाप शैली-संलाप शैली का अर्थ है-वार्तालाप । इसमें भावनाओं और विचारों की अभिव्यक्ति संवादों के माध्यम से होती है।
  7. प्रलापशैली-कभी-कभी लेखक आन्तरिक आवेश के कारण भावों पर नियन्त्रण न रख सकने के कारण आवेश की सी मानसिक स्थिति से गुजरता हुआ लिखता है। इसमें भावाभिव्यक्ति अस्त-व्यस्त हो जाती है।
    कभी-कभी विषय के प्रतिपादन की दृष्टि से व्याख्या की दो शैलियों का उपयोग होता है।
  8. निगमन शैली-इसमें पहले विचारों को सूत्र रूप में रखकर फिर उसकी विस्तृत व्याख्या करके समझाया जाता है जिसमें उदाहरणों का भी उपयोग होता है।
  9. आगमन शैली-इसमें विचारों को पहले विस्तारपूर्वक व्याख्या करके बाद में उसका सारांश सूत्र या सिद्धान्त रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
  • निबन्ध का विकास

हिन्दी निबन्ध साहित्य का विकास आधुनिक काल की देन है। इसके विकास क्रमाको निम्नवत् चार युगों में विभाजित किया जा सकता है

  1. भारतेन्दु युग,
  2. द्विवेदी युग,
  3. शुक्ल युग एवं
  4. शुक्लोत्तर युग (वर्तमान युग)।

प्रारम्भ में पत्र सम्पादक स्वयं निबन्ध लिखने की कला में प्रवीण थे। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द ने निबन्ध लिखने का कार्य भी बड़े ही कौशल से किया है। भारतेन्दु युग में अनेक गद्य रूपों का विकास हुआ है।

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(1) भारतेन्दु युग-भारतेन्दु युग हिन्दी गद्य का शैशवकाल है। भारतेन्दु आधुनिक काल के जन्मदाता हैं उनके युग को भारतेन्दु युग के नाम से सम्बोधित किया जाता है। भारतेन्दु युग को ऐसी मजबूत नींव के समान माना जाता है, जिस पर आगे चलकर क्रमशः एक-एक मंजिल बनती चली गई थी।

  • विशेषताएँ
  1. निबन्धों के कलेवर में पत्रकारिता का युग समाविष्ट है।
  2. सड़ी-गली मान्यताओं एवं रूढ़ियों का प्रबल विरोध है।
  3. निबन्धकारों के मस्त एवं मनमौजी व्यक्तित्व की निबन्धों में छाप है।
  4. निबन्धों में राजनैतिक चेतना, समाज सुधार की आकांक्षा के फलस्वरूप यत्र-तत्र भाषा में शिथिलता अवलोकनीय है।
  5. शैली सरस, हदयस्पर्शी एवं मनभावन है।
  6. हास्य व्यंग्य के छोटे निबन्ध की दुरूहता को कुछ कम कर देते हैं। चुभते हुए व्यंग्य एवं विनोदप्रियता के दर्शन होते हैं।
  7. भाषा, भाव एवं शैली में नवीनता का समावेश है। संस्कृत तद्भव एवं तत्सम शब्दों की भरमार है।
  8. निबन्धकार अंधानुकरण के घोर विरोधी थे।
  9. साहित्यिक रूपों की विवेचना इसी युग में प्रारम्भ हुई।
  10. पाश्चात्य शैली के अध्ययन के माध्यम से नए आदर्श अवलोकनीय हैं।
  • प्रमुख निबन्धकार

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट, बालमुकुन्द गुप्त एवं बद्रीनारायण चौधरी आदि प्रमुख निबन्धकार हुए।
निष्कर्ष-भारतेन्दु युग हिन्दी साहित्य का प्रवेश द्वार है। इस युग को हम ‘सन्धि युग’ भी कह सकते हैं।

(2) द्विवेदी युग (सन् 1900 से 1920 तक)-
भारतेन्दु युग के पश्चात् आधुनिक काल का द्वितीय चरण द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है। सरस्वती पत्रिका का सम्पादन करके द्विवेदी जी ने हिन्दी गद्य को उन्नत एवं व्यवस्थित किया। हिन्दी साहित्य सम्मेलन, काशी नागरी प्रचारिणी सभा का गद्य साहित्य के विकास में विशेष योगदान है। द्विवेदी जी के कुशल निर्देशन में न जाने कितने कलाकार साहित्य जगत में उजागर हुए जिनकी सफल कीर्ति आज भी फैली है। द्विवेदी युग तैयारी का युग था जिसमें आधुनिक साहित्य-शैली का निर्माण हो रहा था।

  • प्रमुख निबन्धकार [2008]

महावीर प्रसाद द्विवेदी, पद्मसिंह शर्मा, सरदार पूर्णसिंह, बालमुकुन्द गुप्त, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी इस युग के प्रमुख निबन्धकार हैं।

  • विशेषताएँ [2008]
  1. भाषा को व्यवस्थित एवं सुगठित किया गया। भाषा में अभिव्यंजना शक्ति का भी पर्याप्त विकास हुआ।
  2. जीवनोपयोगी विषयों पर निबन्ध लिखे गये हैं।
  3. निबन्धों में गम्भीरता का समावेश है।
  4. साहित्य समालोचना, संस्कृति इतिहास एवं विभिन्न विषयों पर सफल निबन्ध लिखे गये हैं।
  5. निबन्धों में यत्र-तत्र दुरूहता का समावेश है।
  6. निबन्धों की भाषा प्रांजल एवं परिमार्जित है। विभक्तियों का उचित प्रयोग है।
  7. हिन्दी में समालोचना शैली का सूत्रपात भी इस युग में हुआ।
  8. सरल तथा प्रचलित शब्दावली में कहीं-कहीं करारा व्यंग्य है।

निष्कर्ष-द्विवेदी जैसा साहित्य का प्रहरी निरन्तर हिन्दी भाषा एवं साहित्य को परिष्कार कर, उसे आदर्श की ओर उन्मुख करने में दत्त-चित्त रहा। गद्य साहित्य सर्वांगीण तथा बहुमुखी बन गया।

(3) शुक्ल युग (सन् 1920 से 1945 तक)-
द्विवेदी युग के बाद आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का नाम हिन्दी निबन्धकारों में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन्होंने हिन्दी को महत्त्वपूर्ण मौलिक कृतियाँ दी, इसी हेतु इस युग को शुक्ल युग के नाम से जाना जाता है।

  • प्रमुख निबन्धकार

श्यामसुन्दर दास, गुलाबराय, वियोगी हरि, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, जयशंकर प्रसाद, रायकृष्ण दास, सियाराम शरण गुप्त, डॉ. रघुवीर सिंह।
विशेषताएँ

  1. भाषा शक्ति सम्पन्न एवं कलात्मक बनी।
  2. विविध प्रकार के साहित्य की रचना हुई।
  3. भाषा भावों की अनुगामिनी है।
  4. भारतीय एवं पाश्चात्य समीक्षा का तर्कसंगत समन्वय है।
  5. समसामयिक समस्याओं का निरूपण है।
  6. नाटक के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद का अपूर्व योगदान है।
  7. प्रेमचन्द्र ने कहानी एवं उपन्यास के क्षेत्र में व्यावहारिक एवं सरल शैली का प्रयोग किया है।
  8. मार्क्सवाद के प्रभाव के फलस्वरूप जनवादी चेतना पर आधारित निबन्ध लिखे गए हैं।
  9. स्वतंत्रता संग्राम एवं राष्ट्रीय स्वाभिमान से जुड़े मनोभावों को निबन्धों के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है।
  10. छायावाद के संदर्भ में तर्कपूर्ण विवेचना है।
  11. निबन्धों की शैली परिमार्जित एवं विषयों के अनुरूप है।
  12. यत्र-तत्र गाँधीवाद का प्रभाव भी अवलोकनीय है।
  13. द्विवेदी युगीन व्यास प्रधान शैली के स्थान पर समास प्रधान शैली का प्रचलन हुआ।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि शुक्ल जी ने सरल एवं मिश्रित गद्य का ऐसा स्वरूप उपस्थित किया जो जन साधारण की भाषा का रूप था।

(4) शुक्लोत्तर युग (सन् 1945 से आज तक)-
शुक्ल युग के पश्चात् का युग शुक्लोत्तर युग के नाम से सम्बोधित किया जाता है। इसे वर्तमान युग’ भी कहा जाता है।

  • प्रमुख निबन्धकार

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, बाबू गुलाबराय, डॉ. रामविलास शर्मा, डॉ. नगेन्द्र, नन्ददुलारे वाजपेयी, रामवृक्ष बेनीपुरी, हरिशंकर परसाई,शान्तिप्रिय द्विवेदी, वासुदेवशरण अग्रवाल,रामधारीसिंह ‘दिनकर’, शिवदान सिंह चौहान, महादेवी वर्मा, भगवतशरण उपाध्याय, विजयमोहन शर्मा,धर्मवीर भारती, प्रभाकर माचवे आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।

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विशेषताएँ

  1. इस युग के समस्त निबन्धों में चिन्तन के साथ-साथ गहराई का पुट है।
  2. भाषा शैली प्रौढ़ एवं प्रांजल है।
  3. भाषा व्यावहारिक है।
  4. निबन्धों में यत्र-तत्र व्यंग्य का पुट भी अवलोकनीय है।
  5. ‘खरगोश के सींग’ नामक निबन्ध जिसके लेखक प्रभाकर माचवे हैं,व्यंग्य का सजीव उदाहरण है।
  6. हरिशंकर परसाई एवं के. वी. सक्सेना ने भी व्यंग्यात्मक लेख लिखे हैं।
  7. निबन्धों में प्रगतिवादी विचारधारा भी परिलक्षित है।
  8. महादेवी वर्मा के संस्मरणात्मक निबन्ध भी बहुत ही सरस एवं सराहनीय हैं।
  9. जनेन्द्र कुमार ने गाँधीवादी विचारधारा को अपने निबन्धों में अभिव्यक्त किया है।
  10. सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरातल पर आधारित निबन्धों की रचना भी की गयी है।

प्रमुख निबन्धकार एवं उनकी रचनाएँ

भारतेन्दु युग
द्विवेदी युग

2. कहानी

संसार के सभी लिखित-अलिखित साहित्य में कहानी सबसे प्राचीनतम रूप है। कहानी पढ़ने या सुनने की प्रवृत्ति केवल बच्चों में ही नहीं, वयस्कों में भी होती है। आज के व्यस्त जीवन में कहानी की लोकप्रियता का कारण है उसका छोटा होना।

परिभाषा-“कहानी वास्तविक जीवन की ऐसी काल्पनिक कथा है जो छोटी होते हए भी स्वतः पूर्ण और सुसंगठित होती है।”
“कहानी में मानव जीवन की किसी एक घटना अथवा व्यक्तित्व के किसी एक पक्ष का मनोरम चित्रण रहता है। उसका उद्देश्य केवल एक भी प्रभाव को उत्पन्न करना होता है।”
डॉ. श्यामसुन्दर दास के शब्दों में, “आख्यायिका एक निश्चित लक्ष्य के प्रभाव को लेकर नाटकीय आख्यान है।”

“कहानी ऐसी रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंग या किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उनका कथा-विन्यास सभी उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं।

“कहानी ऐसा रमणीक उद्यान नहीं है जिसमें भाँति-भाँति के फूल, बेलबूटे सजे हों, बल्कि वह एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य और सौन्दर्य अपने समुचित रूप में दृष्टिगोचर होता है।”

कहानी के तत्त्च [2008]

  1. कथावस्तु,
  2. चरित्र-चित्रण अथवा पात्र,
  3. कथोपकथन या संवाद,
  4. देशकाल व परिस्थिति,
  5. उद्देश्य,
  6. शैली और शिल्प।

(1) कथावस्तु-कहानी में कथावस्तु या कथानक कहानी का मुख्य ढाँचा होता है। विषय की दृष्टि से कहानी में सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक आदि में से किसी भी प्रकार का कथानक अपनाया जा सकता है। किन्तु यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि कहानी में जीवन की बाह्य घटनाओं की ही अभिव्यक्ति नहीं होती, मानव हृदय का भी उद्घाटन होता है। उदाहरण के लिए ‘संवदिया’ कहानी में घटनाओं का वर्णन कम, पर बड़ी बहू और संवदिया के मन का रहस्योद्घाटन करने की सफल चेष्टा की गयी है।

मानव जीवन के सुख-दुःख दोनों पक्षों की चर्चा के लिए कहानीकार के केवल घटनाओं का आयोजन ही नहीं करता, वह व्यक्ति के हृदय और मन की भावना और अन्तर्द्वन्द्व को पर्याप्त प्रमुखता देता है। कहानी की घटनाएँ अनायास ही घटित नहीं होती, कथा का विकास धीरे-धीरे होता है। इस कथा विकास की निम्नलिखित चार स्थितियाँ होती हैं

(अ) आरम्भ-कहानी के शीर्षक और प्रारम्भ में कथासूत्रों से अवगत करा दिया जाता है। कहानी आरम्भ करने के लिए अनेक विधियाँ हो सकती हैं-किसी पात्र के परिचय से, पात्रों के पारस्परिक वार्तालाप से अथवा वातावरण विशेष के चित्रण से। यदि कथा के आरम्भ में ही पाठक के मन में कौतूहल अथवा जिज्ञासा उत्पन्न हो जाय तो ‘आरम्भ’ सफल कहा जायेगा।

(आ) आरोह-सामान्य जानकारी के बाद आरोह की अथवा विकास की ओर ध्यान दिया जाता है। कथावस्तु के प्रवाह की दृष्टि से यह स्थिति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यह कहानी का मध्य भाग होता है।

(इ) चरम स्थिति-कथानक के जिस स्थल द्वारा पाठक के मन में कौतूहल अपनी पराकाष्ठा पर पहुँच जाय, उसे चरम स्थिति कहते हैं। इसमें पाठक उत्सुकता, आशा और आशंका के बीच उलझता हुआ कथानक के अन्तिम मोड़ के लिए लालायित हो उठता है।

(ई) अवरोह-अवरोह अथवा अन्त सबसे महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि कहानी का मूल उद्देश्य या भाव यहीं प्रतिफलित होता है। इस ओर उचित ध्यान न देने पर कहानी शिथिल हो जाती है और अपूर्ण प्रतीत होती है। कहानी के अवरोह में संक्षिप्तता और मार्मिकता पर विशेष बल रहता है।

(2) चरित्र-चित्रण एवं पात्र-योजना-कथा का विकास पात्रों द्वारा ही होता है। चरित्र-चित्रण के लिए अनेक प्रणालियाँ अपनायी जाती हैं, लेखक के द्वारा पात्र का प्रत्यक्ष वर्णन करके या पात्र के क्रिया-कलापों द्वारा। कभी-कभी कथोपकथन के माध्यम से भी पात्रों के व्यक्तित्व का उद्घाटन किया जाता है। पात्रों की परस्पर तुलना, प्रासंगिक घटनाओं के माध्यम से चरित्र की व्यंजना, अन्तर्द्वन्द्व की अवतरणा आदि चरित्र-चित्रण की प्रचलित शैलियाँ हैं। पात्रों के व्यक्तित्व की संक्षिप्त, स्पष्ट और संकेतात्मक अभिव्यक्ति कहानी का गुण है।

(3) कथोपकथन अथवा संवाद-कथा-सौन्दर्य की संवृद्धि में और पात्रों के निरूपण के लिए कथोपकथन का निश्चित योग है। संवाद रहित कहानियाँ अथवा. कम संवाद वाली कहानियों में उपयुक्त प्रभाव उत्पन्न नहीं हो पाता। संवादों में रोचकता, सजीवता और स्वाभाविकता का होना आवश्यक है। संवादों की गरिमा के लिए उन्हें पात्र, वातावरण, स्थान और समय के अनुकूल रखा जाता है। संवादों में पात्र के मानसिक अन्तर्द्वन्द्व अथवा अन्य मनोभावों को प्रकट करने की शक्ति होनी चाहिए और यह भी आवश्यक है कि वे संक्षिप्त हों क्योंकि बड़े-बड़े संवाद प्रापः बोझिल और कृत्रिम प्रतीत होने लगते हैं।

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(4) देशकाल और परिस्थिति, वातावरण-कहानी का कथानक और उसके पात्र किसी न किसी देश और काल से जुड़े रहते हैं। प्रभाव वृद्धि के लिए आवश्यक है कि कहानी का अपना एक वातावरण भी हो। वातावरण के उपयुक्त चित्रण से कथात्मक रचनाओं में रस निष्पत्ति और मनोवैज्ञानिक प्रभाव की सृष्टि में विशेष सुविधा रहती है। कहानीकार घटनाओं, प्रकृति सौन्दर्य एवं पात्रों से सम्बद्ध स्थानों आदि का युगानुरूप चित्रण करते हैं। कुछ लेखक कहानी का आरम्भ ही वातावरण के चित्रण से करते हैं। जैसे “उसने कहा था” कहानी के प्रारम्भ में ही अमृतसर के बाजार का, वहाँ के वातावरण का बड़ा ही सजीव चित्रण है।

(5) उद्देश्य-आधुनिक कहानी का उद्देश्य केवल मनोरंजन ही नहीं। वह हमें कोई सन्देश भी देती है। उसमें कुछ उद्देश्य भी निहित रहता है। कहानी के उद्देश्य से हमारा तात्पर्य कहानीकार के दृष्टिकोण से है। कहानी में जीवन की मार्मिक अनुभूतियों की सहज व्याख्या बड़े ही उद्देश्यपूर्ण ढंग से प्रस्तुत की जाती है। प्रगतिवादी, सुधारवादी आदि विभिन्न कहानियाँ विभिन्न उद्देश्यों के परिणामस्वरूप लिखी जाती हैं। कहानी में उद्देश्य को उपदेश रूप से प्रस्तुत नहीं किया जाता। प्रत्यक्ष स्थापना न करके उसका संकेत भर दिया जाता है।

(6) शैली और शिल्प-शैली से तात्पर्य लेखक द्वारा कथा वर्णन के लिए अपनायी गयी विशिष्ट पद्धति है। कहानी लेखन की अनेक शैलियाँ हो सकती हैं–लेखक अपनी सुविधा अनुसार वर्णनात्मक, आत्मकथात्मक, संवादात्मक, पत्रात्मक और डायरी शैली अपना सकता है। कला की दृष्टि से कहानी के सौन्दर्य का विधान शैली के माध्यम से ही होता है। शैली सौष्ठव के लिए लेखक अलंकार, लोकोक्ति, प्रतीक आदि उपकरणों की सहायता लेता है। कभी-कभी ग्रामीण पात्रों के लिए या तुतलाते बच्चों के लिए, आंचलिकता में सजीवता लाने के लिए वह उन्हीं की बोली का उपयोग भी करता है। यदि भाषा भाव के अनुसार न हो तो उपयुक्त प्रभाव का संचार नहीं हो पाता। इसी प्रकार हास्य, व्यंग्य, चित्रोपमता, प्रकृति के मानवीकरण से कहानी के सौन्दर्य में वृद्धि होती है।

कहानी के विविध रूप [2008]
विभिन्न तत्त्वों की प्रधानता की दृष्टि से कहानी के चार प्रमुख भेद किये जा सकते हैं-

  1. घटना प्रधान कहानी,
  2. चरित्र प्रधान कहानी,
  3. वातावरण प्रधान कहानी,
  4. भाव प्रधान कहानी।

(1) घटना प्रधान कहानी-इसमें क्रमशः अनेक घटनाओं को एक सूत्र में पिरोते हुए कथानक का विकास किया जाता है।
(2) चरित्र प्रधान कहानी-इसमें लेखक का ध्यान पात्रों के चरित्र-निरूपण की ओर ही अधिक रहता है। इसमें मनोविज्ञान की पृष्ठभूमि में चरित्र की विभिन्न सूक्ष्मताओं का उद्घाटन लेखक या पात्र स्वयं करता है। कभी-कभी दूसरे पात्रों के माध्यम से भी मुख्य पात्र की चरित्रगत विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं।
(3) वातावरण प्रधान कहानी-इन कहानियों में वातावरण पर अधिक ध्यान दिया जाता है। विशेषतः ऐतिहासिक कहानियों में वातावरण को विशेष रूप से चित्रित किया जाता है क्योंकि यहाँ किसी युग विशेष का, उसकी संस्कृति, सभ्यता आदि का आभास वर्णन और संवाद द्वारा करना होता है।
(4) भाव प्रधान कहानी-इन कहानियों में एक भाव या विचार के आधार पर कथानक का विकास किया जाता है। इस कोटि में गद्य काव्य से मिलती-जुलती लघु कथाएँ, प्रेम कहानियाँ और प्रतीक कथाएँ आती हैं। ये प्रायः दृष्टांत के रूप में होती हैं और इनका अध्ययन जीवन के लिए प्रेरणादायक होता है। इस तरह कहानियाँ विचारों को प्रबुद्ध करती हैं और चिरकाल तक हृदय पर अमिट छाप छोड़ती हैं। इन कथाओं को लिखने में चित्र शैली को अपनाया जाता है।

  • हिन्दी कहानी का विकासक्रम

कहानी का अभ्युदय भारतेन्दु युग में हुआ। इसके विकास को निम्न प्रकार चार युगों में विभक्त कर सकते हैं

  1. प्रारम्भिक प्रयोगकाल – (सन् 1900 से 1910)
  2. विकास काल (पूर्वार्द्ध) – (सन् 1910 से 1936)
  3. विकास काल (उत्तरार्द्ध) – (सन् 1936 से 1947)
  4. स्वातन्त्रोतर काल – (सन् 1947 से अब तक)

1. प्रारम्भिक काल इस युग की कहानियों में कथावस्तु, देशकाल, उद्देश्य आदि तत्त्वों का समावेश है। कहानी के शिल्प विधान को भी महत्व दिया गया है।
प्रमुख कहानीकार – कहानियाँ [2008]

  1. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल – ग्यारह वर्ष का समय
  2. गिरिजा दत्त बाजपेयी – पंडित और पंडिताइन
  3. श्री किशोरीलाल गोस्वामी – इन्दुमती
  4. माधव राव सप्रे – टोकरी भर मिट्टी
  5. बंग महिला – दुलाई वाली

2. विकास काल (पूर्वाद्ध) इस युग में हिन्दी कहानी के क्षेत्र में एक नवीन युग का शुभारम्भ हुआ। चरित्र-चित्रण एवं कथा संगठन पर विशेष ध्यान केन्द्रित किया गया है। कहानी के कलेवर में आदर्श एवं यथार्थ के समन्वय के साथ ही इतिहास एवं कल्पना के समन्वय का प्रशंसनीय प्रयास है।

कहानियाँ
प्रमुख कहानीकार

  1. पं. चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ – उसने कहा था, बुद्ध का कांटा, सुखमय जीवन।
  2. जयशंकर प्रसाद – गुण्डा, पुरस्कार, आकाशदीप।
  3. भगवती प्रसाद बाजपेयी – सूखी लगड़ी, मिठाई वाला।
  4. प्रेमचन्द – बड़े घर की बेटी, पंच परमेश्वर, पूस की रात, कफन, शतरंज के खिलाड़ी।
  5. विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक’ – चित्रशाला, रक्षाबन्धन, ताई।

अन्य कहानीकार-सियाराम शरण गुप्त, विनोद शंकर व्यास, निराला, वृन्दावनलाल शर्मा, चण्डीप्रसाद हृदयेश, सुदर्शन।

3. विकास काल (उत्तराद्ध)

इस काल की कहानियों के कलेवर में प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्रायड की मनोविज्ञान विषयक मान्यताओं एवं धारणाओं का विशेष प्रभाव परिलक्षित है। हास्य एवं व्यंग्य के छींटे कहानी को एक नया रूप प्रदान करते हैं। इस युग की कहानियों का विवरण निम्नवत् है

  1. अज्ञेय – कोठरी की बात, रोज, अमर वल्लरी।
  2. भगवती चरण वर्मा – दो बाँके, प्रायश्चित।
  3. जैनेन्द्र कुमार – पाजेब, अपना-अपना भाग्य।
  4. इलाचन्द्र जोशी – दीवाली, छाया, आहुति।
  5. यशपाल – दुःख, पराया सुख, परदा।

अन्य कहानीकार- महादेवी वर्मा, अमृतराय, विष्णु प्रभाकर, धर्मवीर भारती, अमृतलाल नागर, रांगेय राघव, उपेन्द्रनाथ अश्क’, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार।

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4. स्वातंत्रोत्तर काल कहानी के क्षेत्र में अल्पजीवी आन्दोलन के फलस्वरूप सचेतन कहानी,समानान्तर कहानी, अकहानी एवं नयी कहानी आदि नामों से अस्तित्व में आयीं।

  1. राजेन्द्र यादव – छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक।
  2. मोहन राकेश – एक और जिन्दगी, सौदा।
  3. फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ – लाल पान की बेगम, संवदिया, ठेस।
  4. कमलेश्वर – खोई हुई दिशाएँ, साँप।
  5. मन्नू भण्डारी – यही है जिन्दगी, सजा।

अन्य कहानीकार-निर्मल वर्मा, हरिशंकर परसाई, भीष्म साहनी, श्रीकान्त वर्मा, शिवानी, कृष्णा सोबती, उषा प्रियंवदा आदि।

आज की कहानियों में कलात्मकता अवलोकनीय है। भाषा-भाव का सुन्दर समन्वय है। प्रेम तथा साहस का मनभावन सामंजस्य है।

3. एकांकी

यह गद्य की प्रमुख विधा है। विद्वानों के मत में इसकी परिभाषा अवलोकनीय है।

परिभाषा-डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “एकांकी में हमें जीवन का क्रमबद्ध विवेचन मिलकर उसके एक पहल, एक महत्त्वपूर्ण घटना, एक विशेष परिस्थिति अथवा एक उद्दीप्त क्षण का चित्रण मिलेगा। अत: उसके लिए एकता अनिवार्य है।”

एकांकी नाटक का एक प्रकार है। एकांकी और नाटक में वही अन्तर है जो कहानी और उपन्यास में होता है। एकांकी में जीवन का खण्ड-दृश्य अंकित किया जाता है जो अपने में पूर्ण होता है।

एकांकीकार अपनी रचना द्वारा एक ही उद्देश्य को व्यक्त करता है। विचार की अभिव्यक्ति, कथावस्तु, पात्र, संवाद आदि के माध्यम से होती है और एक विशेष उद्देश्य की अभिव्यक्ति करते हुए केवल एक ही प्रभाव की सृष्टि की जाती है।

  • एकांकी के तत्त्व

एकांकी के छः तत्त्व होते हैं

  1. कथावस्तु,
  2. पात्र,
  3. संवाद,
  4. वातावरण,
  5. भाषा-शैली,
  6. अभिनेयता।

(1) कथावस्तु-कथा और कथावस्तु में अन्तर होता है। केवल क्रमबद्ध कथा लिखने से उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो सकती। लेखक के मन में सर्वप्रथम कोई भाव आता है जिससे कथा बनती है। कभी-कभी किसी कथा से ही भाव स्फर्त होता है। एकांकीकार कथा के क्रम में आवश्यक परिवर्तन करता है, एक घटना को दूसरी घटना या क्रिया से जोड़ता है, अन्तर्द्वन्द्व की सृष्टि करता है, किसी पात्र का चमत्कारपूर्ण ढंग से प्रवेश कराता है। नयी-नयी नाटकीय परिस्थितियों की योजना करता है। यही रचनात्मक तन्त्र कथावस्तु है।

एकांकी की कथावस्तु को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-

  1. प्रारम्भ,
  2. विकास,
  3. चर्मोत्कर्ष।

सामान्यतः पात्रों का परिचय, उनके पारस्परिक सम्बन्धों के निर्देश प्रारम्भ में होते हैं। विकास या कार्य-व्यापार से संघर्ष आरम्भ होता है। संघर्ष दो विरोधी स्थितियों, सिद्धान्तों, आदर्शों आदि में होता है। एकांकी देखते या पढ़ते समय कथानक के विकास के उपरान्त दर्शक के मन में एक स्थिति ऐसी आती है, जब उसका कौतूहल चरम बिन्दु तक पहुँच जाता है। इस स्थिति को चर्मोत्कर्ष की स्थिति कहते हैं। एकांकी में जब कौतूहल चरम सीमा पर पहुँच जाये तब उसे समाप्त हो जाना चाहिए।

(2) पात्र-एकांकी में पात्रों की संख्या जितनी सीमित होती है, परिस्थिति का रंग उतना ही उभरकर सामने आता है। एकांकी का प्रमुख पात्र नाटक के प्रारम्भ से अन्त तक प्राणवन्त बनाता है। एकांकी की मूल भावना को उद्दीप्त करने के लिए एक दो गौण पात्रों की भी योजना की जाती है। गौण पात्रों के चयन में यह ध्यान रखा जाता है कि उनके चरित्र में विशेषता हो। नाटक में नायक और उसके सहायक पात्रों का चरित्र-चित्रण मूलत: घटनाओं के माध्यम से किया जाता है। किन्तु एकांकी में पात्रों का चरित्र नाटकीय परिस्थितियों और भीतर-बाहर के संघर्षों के सहारे चलता है। एकांकी में चरित्र के किसी एक पहलू का ही चित्र प्रस्तुत किया जाता है।

(3) संवाद-संवाद के माध्यम से ही एकांकी प्रस्तुत होता है। संवाद से कथावस्तु में गतिशीलता आती है और पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं का उद्घाटन होता है। एक पात्र जो कुछ कहता है, वह अर्थपूर्ण होता है। इस तरह कथा आगे बढ़ती और दर्शकों या पाठकों के मन में जिज्ञासा पैदा करती है। एकांकी का विस्तार बहुत कम होता है, इसलिए थोड़े शब्दों में अधिक
भाव की अभिव्यक्ति की चेष्टा रहती है।।

(4) वातावरण-कहा जाता है कि जिस एकांकी में देश-काल और वातावरण की अन्विति पूर्ण रूप से पायी जाती है, वही एकांकी सर्वाधिक सफल माना जाता है। देश की अन्विति का अर्थ है सम्पूर्ण घटना एक ही स्थान पर घटित हो और उसमें दृश्य परिवर्तन कम से कम हों।

(5) भाषा-शैली-सभी विधाओं की भाषा-शैली अलग-अलग होती है। एकांकी की भाषा-शैली में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि भाषा का प्रयोग पात्र की शिक्षा, संस्कृति, वातावरण, परिस्थिति के अनुरूप होना चाहिए। यदि पात्र का सांस्कृतिक स्तर ऊँचा है तो उसकी

भाषा शिष्ट और शैली परिष्कृत होगी। यदि उसका वातावरण दूषित है, सांस्कृतिक परिवेश भी उच्च स्तर का नहीं है तो भाषा में निखार और शैली में परिष्कार दिखायी नहीं देगा। इसलिए एकांकीकार अशिक्षित या अर्द्ध-शिक्षित पात्रों के मुँह से प्रायः भाषा का अनगढ़ रूपाचा स्थानीय बोली का रूप ही प्रस्तुत करता है।

(6) अभिनेयता-एकांकी वस्तुतः अभिनीत करने के लिए लिखा जाता है। रंगमंच पर अभिनय करने के लिए एकांकीकार को रंगमंच की विशेषताओं की जानकारी अवश्य होनी चाहिए। एकांकी के सफल अभिनय के लिए उपयुक्त मंचसज्जा और कुशल अभिनेताओं का होना अनिवार्य है। इन सबके अतिरिक्त ध्वनि और प्रकाश का संयोजन भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। यथा अवसर वाद्य-यन्त्र और संगीत का समायोजन होना चाहिए।

प्रकार-एकांकी कई प्रकार के होते हैं। विषय की दृष्टि से ऐतिहासिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पौराणिक-ये भेद किये जा सकते हैं।
शैली की दृष्टि से एकांकी को कई श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-

  1. स्वप्नरूप,
  2. प्रहसन,
  3. काव्य-एकांकी,
  4. रेडियो रूपक,
  5. ध्वनि-रूपक,
  6. वृत्त रूपक।
  • एकांकी का विकासक्रम

एकांकी का विकास आधुनिक युग में माना गया है। पश्चिमी देशों से प्रभावित होकर हमारे राष्ट्र में भी एकांकी का पल्लवन एवं विकास हुआ।

  • हिन्दी का प्रथम एकांकी

कुछ मनीषियों ने जयशंकर प्रसाद द्वारा लिखित ‘एक घुट’ को हिन्दी का प्रथम एकांकी ठहराया है। इसकी रचना लगभग सन् 1930 में हुई थी।

प्रसाद के बाद एकांकी के क्षेत्र में डॉ. रामकुमार वर्मा का पदार्पण हुआ। ‘बादल की मृत्यु नामक एकांकी, ‘एक बूंट’ ‘नामक एकांकी के समकक्ष माना जाता है।
कतिपय विद्वान भुवनेश्वर प्रसाद का सन् 1935 में कारवाँ’ नामक एकांकी संग्रह प्रकाशित हुआ। इस पर पाश्चात्य तकनीक का प्रभाव परिलक्षित है। शिल्प की दृष्टि से कुछ आलोचक इसे भी हिन्दी के प्रथम एकांकी की श्रेणी में रखते हैं।

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विगत अनेक सालों से हिन्दी का एकांकी कलेवर अपने युग के अनुरूप परिवर्तित होता रहा है। साठ-पैंसठ वर्षों में एकांकीकारों ने पारिवारिक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक, धार्मिक तथा व्यक्तिगत समस्याओं को यथार्थ के धरातल पर अंकित किया है। रेडियो रूपक के रूप में भी एकांकी को अनेक नवीन दिशा प्राप्त हुई है।

  • प्रमुख एकांकीकार

एकांकीकार – प्रसिद्ध एकांकी

  1. उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ – अधिकार का रक्षक, सूखी डाली, पापी।
  2. डॉ. रामकुमार वर्मा – रेशमी टाई, पृथ्वीराज की आँखें, दीपदान, चारुमित्रा।
  3. उदयशंकर भट्ट – नये मेहमान, नकली और असली।
  4. सेठ गोविन्द दास – केरल का सुदामा।
  5. भगवती चरण वर्मा – सबसे बड़ा आदमी, दो कलाकार।
  6. विष्णु प्रभाकर – वापसी, हब्बा के बाद।
  7. जगदीश चन्द्र माथुर – रीढ़ की हड्डी, भोर का तारा।
  8. भुवनेश्वर प्रसाद – ऊसर, कारवाँ।।

अन्य एकांकीकार-लक्ष्मीनारायण मिश्र, वृन्दावनलाल वर्मा, विनोद रस्तोगी, गिरिजा कुमार माथुर, धर्मवीर भारती, लक्ष्मीनारायण लाल, हरिकृष्ण प्रेमी।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के एक अंक वाले नाटक ‘अंधेर नगरी’, ‘भारत दुर्दशा’ इनको आधुनिक प्रकार का एकांकी नहीं माना जा सकता। एकांकी आधुनिक युग की ही उपज है।

4. आलोचना

आलोचना भी गद्य की एक सशक्त विधा है। इसे समालोचना, समीक्षा, विवेचना, मीमांसा और अनुशीलन भी कहा जाता है। समालोचना में किसी विषय के गम्भीर अध्ययनपूर्ण विवेचना का भाव होता है। आलोचना सामान्य विवेचन का ही संकेत करती है। अत: हम कह सकते हैं कि किसी विषय की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर उस पर विचार-विमर्श करना, उसको स्पष्ट करना, उसके गुण-दोषों की विवेचना कर उन पर अपना मंतव्य प्रकट करना आलोचना कहलाती है।

आलोचना साहित्य की किसी भी विधा की, की जा सकती है।

आलोचना के प्रकार-आलोचना के दो भेद किये जाते हैं-
(1) सैद्धान्तिक,
(2) प्रयोगात्मक। सैद्धान्तिक समीक्षा में अनेक सिद्धान्तों पर प्रकाश डाला जाता है। प्रयोगात्मक समीक्षा पश्चिम की देन है। रचनाओं की पूर्ण विवेचना के साथ ही साहित्य सम्बन्धी धारणाओं के निर्माण का प्रयास पाश्चात्य साहित्य में ही अधिक दिखाई देता है। हिन्दी में भी यह प्रभाव अब स्पष्टतः दिखाई देने लगा है।

5. पत्र

पत्र-साहित्य भी गद्य की एक सशक्त विधा है। उर्दू में ‘गुबारे खातिर’ (आजाद का पत्र संग्रह) और रूसी भाषा में ‘टालस्टॉय की डायरी’ स्थायी साहित्य की निधि हैं। पत्र के द्वारा आत्म-प्रदर्शन, विचारों की अभिव्यक्ति को अच्छी दिशा प्राप्त होती है। हिन्दी में द्विवेदी पत्रावली, द्विवेदी युग के साहित्यकारों के पत्र, पिता के पत्र पुत्री के नाम आदि रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। इस विधा के प्रवर्तन में बैजनाथ सिंह, विनोद, बनारसीदास चतुर्वेदी , जवाहरलाल नेहरू आदि का योगदान महत्त्वपूर्ण है।

6. रिपोर्ताज

यह गद्य की एक नई विधा है। द्वितीय महायुद्ध के समय इस विधा का प्रचलन हुआ।
रिपोर्ताज शब्द का विकास रिपोर्ट शब्द से स्वीकारा गया है। रिपोर्ट का आशय है घटना का यथार्थ अंकन। युद्ध की विभीषिका का अनुभव कराने के लिए युद्ध का जो आँखों देखा हाल लिखा जाता था उसे रिपोर्ताज नाम दिया गया। इसमें घटना, दृश्य या वस्तु का चित्रण होता है। उसकी भाषा अत्यन्त ही सजीव और रोचक होती है। आँखों देखी कानों सुनी घटनाओं पर ही रिपोर्ताज लिखी जाती है। इस विधा का शुभारम्भ शिवदान सिंह चौहान की लक्ष्मीपुरा’ से हुआ। साहित्य के इस क्षेत्र में रांगेय राघव, वेद राही, प्रभाकर माचवे, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, अमृतराय, उपेन्द्रनाथ अश्क आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

7. रेखाचित्र

इसे अंग्रेजी में स्कैच कहा जाता है। चित्रकार जिस प्रकार अपनी तूलिका से चित्र बनाता है उसी प्रकार लेखक अपने शब्दों के रंगों के द्वारा ऐसे चित्र उपस्थित करता है जिससे वर्णन योग्य वस्तु की आकृति का चित्र हमारी आँखों के सामने घूमने लगे। चित्रकार की सफलता उसके रेखांकन तथा रंगों के तालमेल पर निर्भर करती है, जबकि रेखाचित्र के लेखक की उसके शब्दों को गूंथने की कला पर। रेखाचित्र का लेखक अपने शब्दों से ऐसा चित्र बनाता है जो हमारे मानस पटल पर उभरकर मूर्त रूप धारण कर लेता है। इस विधा के प्रमुख लेखक हैं श्रीराम शर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी, रामवृक्ष बेनीपुरी, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, निराला तथा महादेवी वर्मा।

8. संस्मरण

संस्मरण आत्मकथा के ही क्षेत्र से निकली हुई विधा है, किन्तु आत्मकथा और संस्मरण में गहरा अन्तर होता है। आत्मकथा का प्रमुख पात्र लेखक स्वयं होता है, किन्तु संस्मरण के अन्तर्गत लेखक जो कुछ देखता है, अनुभव करता है, उसे भावात्मक प्रणाली के द्वारा प्रकट करता है। ऐसे लेखन में सम्पूर्ण जीवन का चित्र न होकर किसी एक या एकाधिकार घटनाओं का रोचक वर्णन रहता है। स्मृति पटल पर आने वाले का अंकन करते हुए वह खुद ही अंकित हो जाता है। संस्मरण का क्षेत्र अन्तर्जगत न होकर बहिर्जगत का होता है। संस्मरण लेखकों में पद्मसिंह शर्मा ‘कमलेश’, महादेवी वर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी, रामवृक्ष बेनीपुरी तथा शान्तिप्रिय द्विवेदी, देवेन्द्र सत्यार्थी आदि प्रमुख हैं। हिन्दी में आदर्श संस्मरण की रचना छायावादोत्तर युग में हुई।

9. जीवनी या आत्मकथा

जीवन चरित्र और आत्मकथा के रूप परस्पर भिन्न होते हैं। आत्मकथा स्वयं लिखी जाती है, जीवनी कोई दूसरा लिखता है। हिन्दी में जीवन चरित्र के लेखक अनेक हैं। आत्मकथाओं में गाँधीजी के ‘सत्य के प्रयोग’, नेहरूजी की ‘मेरी कहानी’ तथा राजेन्द्र प्रसाद बाबू की आत्मकथा’ प्रसिद्ध हैं।

10. डायरी

अपने जीवन के दैनिक प्रसंगों को या किसी प्रसंग विशेष को डायरी के रूप में लिखा जाता है। इनमें जीवन की यथार्थ घटनाओं का वर्णन संक्षेप में रहता है। व्यंजना, व्यंग्य और वर्णन डायरी
की विशेषताएँ हैं।

नित्यप्रति के जीवन की कुछ विशिष्ट घटनाओं के सुख-दुःखात्मक रूपों की मार्मिक स्थितियों को लेखक अपनी प्रतिक्रिया के साथ कलात्मक ढंग से प्रस्तुत करता है तो डायरी साहित्य की रचना होती है। इसमें तिथि, स्थान आदि का सत्य उल्लेख होता है। इसका आकार लघु अथवा विशद दोनों प्रकार का हो सकता है। धीरेन्द्र वर्मा, प्रभाकर माचवे, घनश्याम दास बिड़ला, सुन्दरलाल त्रिपाठी हिन्दी के श्रेष्ठ डायरी लेखक हैं।

11. इण्टरव्यू (साक्षात्कार)

इण्टरव्यू वह रचना है जिसमें लेखक किसी व्यक्ति विशेष से साक्षात्कार करके उसके सम्बन्ध में कतिपय जानकारियों को तथा उसके सम्बन्ध में अपनी क्रिया-प्रतिक्रियाओं को अपनी पूर्व धारणाओं, आस्थाओं और रुचियों से रंजित कर सरस एवं भावपूर्ण शैली में व्यक्त करता है। यह एक प्रकार से संस्मरण का ही रूप है।

12. उपन्यास

उपन्यास में कल्पना का पूरा संयम और व्यायाम रहता है। उपन्यासकार विश्वामित्र की सी सृष्टि बनाता है, किन्तु ब्रह्मा की सृष्टि के नियमों में भी बँधा रहता है। उपन्यास में सुख-दुःख, प्रेम, ईर्ष्या-द्वेष, आशा, अभिलाषा, महत्त्वाकांक्षा, चरित्रों के उत्थान-पतन आदि जीवन के सभी दृश्यों का समावेश रहता है। उपन्यास में नाटक की अपेक्षा अधिक स्वतन्त्रता है, किन्तु नाटक के मूर्त साधनों के अभाव में उपन्यासकार इस कमी को शब्दचित्रों द्वारा पूरा करता है। उपन्यासकार को जीवन का सजीव चित्र अंकित करना पड़ता है। उपन्यास एक प्रकार का जेबी थियेटर बन जाता है। उसके लिए घर से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं। घर, वन, उपवन सब कहीं उसका आनन्द लिया जा सकता है किन्तु इस आनन्द दान के लिए उपन्यासकार को शुद्ध चित्रों का सहारा लेना पड़ता है। डॉ. श्यामसुन्दर दास ने उपन्यास को मानव के वास्तविक जीवन की काल्पनिक कथा कहा है।

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उपन्यास जीवन का चित्र है, प्रतिबिम्ब नहीं। प्रतिबिम्ब कभी-कभी पूरा नहीं होता। उपन्यासकार जीवन के निकट-से-निकट आता है, किन्तु उसे जीवन में से बहुत कुछ छोड़ना पड़ता है और अपनी तरफ से जोड़ना भी पड़ता है। उपन्यास में व्यक्ति की अधिक प्रधानता होती है। वह सत्य का आदर करता हुआ भी अपने आदर्शों की पूर्ति करने तथा कथा को अधिक रोचक तथा प्रभावशाली बनाने के लिए कल्पना से काम लेता है। उसमें सत्य को सुन्दर और रोचक रूप में देखने की प्रवृत्ति रहती है। उपन्यास एक ओर इतिहास या जीवनी की तरह वास्तविकता का अनुकरण करता है। दूसरी ओर उसमें काव्य का कल्पना का-सा पुट, भावों का परिपोषण और शैली का सौन्दर्य रहता है। एक ओर उसमें दार्शनिक-सी जीवन मीमांसा और तथ्य उद्घाटन की प्रवृत्ति रहती है तो दूसरी ओर समाचार-पत्रों की-सी कौतूहल वृत्ति और वाचालता भी रहती है।

  • उपन्यास के तत्त्व

कथावस्तु, पात्र और चरित्र-चित्रण, कथोपकथन, वातावरण, विचार और उद्देश्य, रस और भाव तथा शैली।

(1) कथानक-यह उपन्यास का मूल तत्व है। कथानक कार्यकारण श्रृंखला में बँधा हुआ होना चाहिए। उसका उचित विन्यास हो ताकि वह पाठकों की रुचि के अनुकूल हो सके। अच्छे कथानक में मौलिकता, कौशल, सम्भवता, सुसंगठितता और रोचकता की आवश्यकता है।

(2) पात्र और चरित्र-चित्रण-उपन्यास का विषय मनुष्य है। अत: चरित्र-चित्रण उपन्यास का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। चरित्र के द्वारा मनुष्य के व्यक्तित्व को प्रकाश में लाया जाता है। यह व्यक्तित्व दो प्रकार का होता है-बाहरी और आन्तरिक। बाहरी व्यक्तित्व में मनुष्य का आकार-प्रकार, वेश-भूषा, आचार-विचार, रहन-सहन, चाल-ढाल, बातचीत के विशेष ढंग और कार्यकलाप आ जाते हैं। आन्तरिक व्यक्तित्व में बाहरी परिस्थितियों के प्रति संवेदनशीलता, उसके राग-विराग, महत्त्वाकांक्षाएँ, अन्धविश्वास, पक्षपात, मानसिक संघर्ष, दया, करुणा, उदारता आदि मानवीय गुण तथा नृशंसता, क्रूरता, अनुदारता आदि सभी दुर्गुणों का चित्रण रहता है।

(3) विचार और उद्देश्य-उपन्यास कहानी मात्र नहीं है, उसमें पात्रों के भाव और विचार भी रहते हैं। पात्रों के विचार लेखक के विचारों की प्रतिध्वनि होते हैं। लेखक का जीवन के प्रति एक विशेष दृष्टिकोण होता है। उसी दृष्टिकोण से वह जीवन की व्याख्या करता है। उसमें जीवन तथ्य सूक्ति रूप में बिखरे रह सकते हैं, किन्तु उपन्यासकार को उपदेशक नहीं बन जाना चाहिए। उपन्यासकार के विचार, परोक्ष रूप से व्यंजित होने चाहिए जिससे उपन्यास की स्वाभाविकता में किसी प्रकार की बाधा न पड़े।

(4) भाव या रस-हमारे विचार जीवन के प्रति रागात्मक या विरागात्मक दृष्टिकोण के ही फल-फूल होते हैं। उपन्यासों में भी महाकाव्य का-सा शृंगार, वीर, हास्य, करुण रस का समावेश होना चाहिए।

(5) शैली-उपन्यास की शैली का प्रमुख गुण है प्रसाद, ओज और माधुर्य का भी विषयानुकूल समावेश उसमें होना चाहिए। भाषा मुहावरेदार हो। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि का चमत्कार शैली को उचित मात्रा में आकर्षक बनाता है।

13. नाटक

नाटक के मुख्य तत्त्व हैं-कथावस्तु, नायक और रस। वैसे तो नाटक के भी वे ही तत्व होते हैं जो कहानी, उपन्यास आदि के होते हैं, किन्तु नाटकों में रस की प्रधानता होती है। नाटक काव्य की वह विधा है जिसमें लोक-परलोक की घटित-अपघटित घटनाओं का दृश्य दिखाने का आयोजन किया जाता है। इस कार्य के लिए अभिनय की सहायता ली जाती है। शास्त्रीय परिभाषा में नाटक को रूपक कहा जाता है। सफल नाटक का रूप और आकार, दृश्यों और अंकों का उपयुक्त विभाजन, रस का साधारणीकरण, क्रिया व्यापार, प्रवेग तथा प्रवाह, अनुभावों और सात्विक भावों का निदर्शन, संवादों की कसावट, नृत्य और गीत, भाव, भाषा और साहित्यिक अलंकरण, वर्जित दृश्यों का अप्रदर्शन, सुरुचिपूर्ण प्रदर्शन, आलेखन, अलंकरण तथा परिधान
और प्रकाश की व्यवस्था आवश्यक होती है।

14. लोक साहित्य

लोक साहित्य अंचल विशेष में रचा गया साहित्य है। यह अंचल विशेष वह भूखंड होता है, जो एक सांस्कृतिक इकाई के रूप में विकसित होकर, अपनी बोली और जीवन-पद्धति को अपनी लोकपरक चेतना में ढालता है। इस साहित्य में प्रकृति सम्बन्धी उक्तियों की अधिकता है। इसके अन्तर्गत लोकगीत, लोककथाओं, लोकोक्तियों और कहावतों को शामिल किया जा सकता है। लोक साहित्य हमारी परम्पराओं और मूल्यवान धरोहरों को अपनी विषय वस्तु में समेटे है।

प्रश्नोत्तर

  • लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निबन्ध किसे कहते हैं? बाबू गुलाबराय के अनुसार निबन्ध की परिभाषा
अथवा [2009]
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने निबन्ध की क्या परिभाषा दी है?
उल्लेख कीजिए तथा निबन्ध के प्रमुख भेद बताइए।
अथवा [2011]
निबन्ध की परिभाषा एवं निबन्ध के प्रकारों का वर्णन कीजिए। [2017]
अथवा
निबन्ध के कितने भेद होते हैं? नाम लिखिए। [2008, 15]
अथवा
निबन्ध के प्रमुख भेद कौन-से हैं? नाम सहित लिखें। भावात्मक निबन्ध किसे कहते हैं?
उदाहरणस्वरूप एक भावात्मक निबंध का नाम लेखक के नाम सहित लिखिए। [2012]
उत्तर-
निबन्ध हिन्दी साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा है। अंग्रेजी में निबन्ध को ऐसे’ (Essay) कहते हैं। निबन्ध का अर्थ है-“विधिवत् कसा हुआ अथवा बँधा हुआ।”

परिभाषा-बाबू गुलाबराय के अनुसार, “निबन्ध गद्य रचना को कहते हैं जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छन्दता, सौष्ठव और सजीवता व आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो।” . परिभाषा-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार, “यदि गद्य कवियों या लेखकों की कसौटी है, तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।”

निबन्ध के भेद-निबन्ध-लेखक के व्यक्तित्व के अनुसार निबन्ध रचना के अनेक प्रकार हो सकते हैं। सुविधा की दृष्टि से मोटे तौर पर इसे चार भागों में विभाजित किया जा सकता

(1) वर्णनात्मक-यह निबन्ध का प्रमुख प्रकार है। निबन्ध किसी दर्शनीय स्थल, मेले, तीर्थस्थान तथा प्राकृतिक दृश्य से सम्बन्धित होते हैं। इनमें भाषा में सरसता, सजीवता तथा चित्रात्मकता होती है।
(2) विवरणात्मक निबन्ध-इन निबन्धों में यात्रा, युद्ध घटनाओं, आत्मकथा अथवा काल्पनिक घटनाक्रम का विवरण दिया जाता है। मन की माँग में भी ये निबन्ध लिखे जाते हैं।
(3) विचारात्मक निबन्ध-इस निबन्ध में किसी विषय पर सुव्यवस्थित प्रस्तुति होती है। इनमें तर्क, चिन्तन की प्रधानता होती है। बुद्धि तत्व भी प्रदान होता है। शुक्ल जी का ‘कविता क्या है’ इसी प्रकार का निबन्ध है।
(4) भावात्मक निबन्ध-ये निबन्ध भाव, काव्यतत्व, कल्पनाप्रधान होते हैं। कभी-कभी लेखक इतना भावुक हो जाता है कि वह मूल विषय से भी भटक जाता है। सरदार पूर्णसिंह का ‘सच्ची वीरता’ श्रेष्ठ भावात्मक निबन्ध है।

प्रश्न 2.
निबन्ध का स्वरूप स्पष्ट करते हुए हिन्दी निबन्ध के विकास पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए। [2013]
उत्तर-
स्वरूप-किसी विषय को व्यवस्थित ढंग से क्रमबद्ध रूप में सुगठित भाषा में प्रस्तुत करने वाली गद्य रचना निबन्ध कहलाती है। निबन्ध किसी भी विषय पर लिखा जा सकता है। इसमें लेखक का व्यक्तित्व प्रतिबिम्बित होता है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल मानते हैं कि “यदि गद्य काव्य की कसौटी है तो निबन्ध गद्य की कसौटी है।”

विकाश-हिन्दी निबन्ध का विकास आधुनिक काल में इस प्रकार हुआ है-

  1. भारतेन्दु युग-भारतेन्दु युग से ही हिन्दी निबन्ध लेखन प्रारम्भ हुआ। इस युग में धर्म, समाज, राजनीति, शिक्षा, प्रकृति आदि सभी विषयों पर निबन्ध लिखे गये। बालकृष्ण भट्ट, प्रतापनारायण मिश्र, बालमुकुंद गुप्त आदि श्रेष्ठ निबन्धकार हुए।
  2. द्विवेदी युग-द्विवेदी युग में विषय तथा भाषा के परिमार्जन का उल्लेखनीय कार्य हुआ। महावीर प्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के द्वारा लेखकों का मार्गदर्शन किया। श्यामसुन्दर दास, सरदार पूर्णसिंह, माधव प्रसाद मिश्र आदि इस युग के प्रमुख निबन्धकार हैं।
  3. शुक्ल युग-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी निबन्ध को चरम उत्कर्ष पर पहुँचाने का सराहनीय कार्य किया । विषय तथा भाषा-शैली की प्रौढ़ता उस युग के निबन्धों में देखी जा सकती है। बाबू गुलाब राय, वियोगी हरि, वासुदेव शरण अग्रवाल आदि इस युग के निबन्धकार
  4. शुक्लोत्तर युग-इस युग में इस विधा को व्यापक रूप प्राप्त हुआ है। मनोविज्ञान, विज्ञान, राजनीति, समीक्षा आदि विषयों पर निबन्ध लिखे गये हैं। हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामविलास शर्मा, विद्यानिवास मिश्र आदि इस युग के प्रमुख मिबन्धकार हैं।

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प्रश्न 3.
भारतेन्दु युग के निबन्ध की किन्हीं चार विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-

  1. निबन्धों के कलेवर में पत्रकारिता का पुट समाविष्ट है।
  2. सड़ी-गली मान्यताओं एवं रूढ़ियों का प्रबल विरोध है।
  3. शैली सरस, हदयस्पर्शी एवं मनभावन है।
  4. निबन्धकार अंधानुकरण के घोर विरोधी थे।

प्रश्न 4.
भारतेन्दु युग के प्रमुख चार निबन्धकारों के नामों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-

  1. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,
  2. प्रताप नारायण मिश्र,
  3. बाल मुकुन्द गुप्त,
  4. बद्रीनारायण चौधरी।

प्रश्न 5.
द्विवेदी युग का सामान्य परिचय दीजिए।
उत्तर-
भारतेन्दु युग के पश्चात् आधुनिक काल का द्वितीय चरण द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है। द्विवेदी जी के कुशल निर्देशन में न जाने कितने कलाकार साहित्य जगत् में उजागर हुए जिनकी सफल कीर्ति आज भी फैली है।

प्रश्न 6.
द्विवेदी युग के निबन्धों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-

  1. निबन्धों में गम्भीरता का समावेश है।
  2. निबन्धों की भाषा प्रांजल एवं परिमार्जित है।
  3. हिन्दी में समालोचना शैली का सूत्रपात भी इसी युग में हुआ।
  4. सरल एवं प्रचलित शब्दावली में कहीं-कहीं करारा व्यंग्य है।

प्रश्न 7.
शुक्ल युग के निबन्धों की किन्हीं पाँच विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-

  1. भाषा शक्ति सम्पन्न एवं कलात्मक बनी।
  2. भारतीय एवं पाश्चात्य समीक्षा का तर्कसंगत समन्वय है।
  3. छायावाद के संदर्भ में तर्कपूर्ण विवेचना है।
  4. निबन्धों की शैली परिमार्जित एवं विषयों के अनुरूप है।
  5. यत्र-तत्र गाँधीवाद का प्रभाव भी अवलोकनीय है।

प्रश्न 8.
शुक्लोत्तर युग का सामान्य परिचय एवं प्रमुख निबन्धकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
सामान्य परिचय-शुक्ल युग के पश्चात् का युग शुक्लोत्तर युग के नाम से जाना जाता है। इसे ‘वर्तमान युग’ भी कहा जाता है।
प्रमुख निबन्धकार-आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, बाबू गुलाबराय, डॉ. मगेन्द्र, रामधारी सिंह ‘दिनकर’, शिवदानसिंह चौहान, महादेवी वर्मा, धर्मवीर भारती, भगवतशरण उपाध्याय, प्रभाकर माचवे आदि।

प्रश्न 9.
कहानी की परिभाषा देते हुए उसके तत्त्व बताइए। (2008, 10)
अथवा
कहानी के तत्त्व लिखते हुए। किन्हीं दो कहानीकारों के नाम एवं उनकी एक-एक रचना लिखिए। [2013]
उत्तर-
परिभाषा-कहानी वास्तविक जीवन की ऐसी काल्पनिक कथा है जो छोटी होते हुए भी स्वतः पूर्ण और सुसंगठित होती है। कहानी के छः तत्त्व स्वीकार किये गये हैं जो निम्न प्रकार हैं
(1) कथानक-कथानक कहानी का मूल आधार होता है। कहानी की कथावस्तु ऐतिहासिक, पौराणिक, राजनीतिक, पारिवारिक, मनोवैज्ञानिक, काल्पनिक हो सकती है। कथानक में भी तीन चरण होते हैं-आरम्भ, मध्य और अन्त । कथानक का आरम्भ आकर्षक होना चाहिए जिसमें जिज्ञासा का भाव होना चाहिए और उसका अन्त प्रभावी होना चाहिए।

(2) पात्र और चरित्र-चित्रण-कहानी पात्रों के चरित्र-चित्रण के आधार पर ही आगे बढ़ती है। जब हमारे चरित्र इतने सजीव और आकर्षक होते हैं कि पाठक स्वयं को उनके स्थान पर समझ लेता है तो पाठक को कहानी में आनन्द आता है। जब कहानीकार इस तरह की सहानुभूति उपस्थित कर देता है, तो उसे अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त होती है। कहानी में पात्रों की संख्या सीमित होनी चाहिए।

(3) कथोपकथन या संवाद-पात्र अपने संवादों के माध्यम से कहानी को गति प्रदान करते हैं। संवादों के माध्यम से पात्र जीवन्त होते हैं। कहानी में कथोपकथन पात्रों के अनुकूल, संक्षिप्त, सरल और कौतूहलपूर्ण होने चाहिए।

(4) देशकाल या वातावरण-कहानी में देशकाल या वातावरण जीवंतता लाता है। वेश-भूषा, रीति-रिवाज, बिचार एवं भाषा-शैली युग के अनुरूप होनी चाहिए। ऐतिहासिक कहानियों, ग्रामीण परिवेश की कहानियों या विदेशी कहानियों में वातावरण का विशेष ध्यान रखा जाता है।

(5) भाषा-शैली-कहानी में भाषा-शैली का विशेष महत्त्व है। सहज एवं सुगठित भाषा वातावरण को चित्रित करने में सहयोगी होती है। कहानी में उस भाषा का प्रयोग होना चाहिए जो जनजीवन के निकट हो। भाषा देशकाल एवं वातावरण के अनुकूल होनी चाहिए। कहानी में चार प्रकार की शैलियाँ प्रचलित हैं-

  • ऐतिहासिक शैली,
  • आत्म चरित्र शैली,
  • डायरी शैली,
  • पत्रात्मक शैली।

(6) उद्देश्य-वैसे तो कथा साहित्य का उद्देश्य मनोरंजन माना जाता है, किन्तु मनोरंजन ही साहित्य की सार्थकता को नष्ट कर देता है। कहानी में ऐसी मूल संवेदना होती है जिसका अनुभव करके पाठक उसके बारे में सोचता है। उद्देश्य कहानी का प्राणतत्त्व है।

दो कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द (कफन) एवं जयशंकर प्रसाद (आकाशदीप) हैं।

प्रश्न 10.
कहानी में कथावस्तु का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
कहानी में कथावस्तु या कथानक मुख्य ढाँचा होता है। विषय की दृष्टि से कहानी में सांस्कृतिक, धार्मिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक आदि में से किसी भी प्रकार का कथानक अपनाया जा सकता है, किन्तु यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि कहानी में जीवन की बाहरी घटना का प्रकाशन न होकर मानव हृदय का भी उद्घाटन होता है।

प्रश्न 11.
एकांकी की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
परिभाषा-डॉ. नगेन्द्र के अनुसार, “एकांकी में हमें जीवन का क्रमबद्ध विवेचन मिलकर उसके एक पहलू, एक महत्त्वपूर्ण घटना, एक विशेष परिस्थिति अथवा एक उद्दीप्त क्षण का चित्रण मिलेगा। अतः उसके लिए एकता अनिवार्य है।”

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प्रश्न 12.
रेखाचित्र से क्या आशय है?
उत्तर-
इसे अंग्रेजी में स्कैच कहा जाता है। चित्रकार जिस प्रकार अपनी तूलिका से चित्र बनाता है उसी प्रकार लेखक अपने शब्दों के रंगों के द्वारा ऐसे चित्र उपस्थित करता है जिससे वर्णन योग्य वस्तु की आकृति का चित्र हमारी आँखों के सामने घूमने लगे।

प्रश्न 13.
संस्मरण की परिभाषा दीजिए। दो प्रमुख रचनाकारों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर-
संस्मरण आत्मकथा के क्षेत्र से निकली हुई विधा है, किन्तु आत्मकथा एवं संस्मरण में गहरा अन्तर होता है। आत्मकथा का प्रमुख पात्र लेखक स्वयं होता है, किन्तु संस्मरण के अंतर्गत लेखक जो कुछ भी देखता है उसे भावात्मक प्रणाली के द्वारा व्यक्त करता है। इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण जीवन का चित्र न होकर किसी एक या एकाधिक घटनाओं का रोचक वर्णन रहता है। महादेवी वर्मा, रामवृक्ष बेनीपुरी प्रमुख रचनाकार हैं।

प्रश्न 14.
रेखाचित्र एवं संस्मरण में अन्तर बताइए। [2010, 16]
उत्तर-
रेखाचित्र एवं संस्मरण निकट होते हुए भी दो अलग-अलग गद्य रूप हैं। रेखाचित्र में किसी व्यक्ति, वस्तु या घटना का कलात्मक प्रस्तुतीकरण किया जाता है जबकि संस्मरण में किसी महान व्यक्ति के प्रत्यक्ष संसर्ग को यथार्थ के सहारे अंकित किया जाता है।

श्रीराम शर्मा, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ आदि प्रमुख रेखाचित्रकार हैं तथा पद्म सिंह शर्मा, रामवृक्ष बेनीपुरी, महादेवी वर्मा, बनारसीदास चतुर्वेदी आदि प्रमुख संस्मरण लेखक हैं।

प्रश्न 15.
उपन्यास की परिभाषा देते हुए उपन्यास के तत्त्वों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
उपन्यास जीवन का चित्र है, प्रतिबिम्ब नहीं । कथा मात्र को उपन्यास नहीं माना जा सकता है। उपन्यास लेखन की एक विशिष्ट शैली होती है। उपन्यास के प्रमुख तत्त्व इस प्रकार हैं-

  • कथानक,
  • पात्र एवं चरित्र-चित्रण,
  • उद्देश्य,
  • शैली,
  • भाव या रस।

प्रश्न 16.
जीवनी और आत्मकथा में क्या अन्तर है? तीन जीवनी लेखकों के नाम लिखिए।
अथवा [2008]
आत्मकथा और जीवनी में अन्तर समझाते हुए किन्हीं दो आत्मकथाकारों के नाम लिखिए।
अथवा [2009, 14]
नीवनी और आत्मकथा में अंतर लिखते हुए एक-एक रचना एवं रचनाकारों के नाम लिखिए। [2017]
उत्तर-
‘जीवनी’ तथा ‘आत्मकथा’ गद्य की प्रमुख विधाएँ हैं। किसी व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति के जीवनवृत्त को रोचक साहित्यिक ढंग से प्रस्तुत किया जाए तो वह जीवनी कहलायेगी एवं जब लेखक अपने जीवनवृत को स्वयं ही प्रस्तुत करे तब वह आत्मकथा मानी जाएगी।

जीवनी में विवरण एवं तथ्यों पर ध्यान रहता है, जबकि आत्मकथा में अनुभूति की गहराई अधिक होती है।

हिन्दी के जीवनी लेखकों में डॉ. रामविलास शर्मा, (निराला की साहित्य साधना),अमृतराय (कलम का सिपाही) तथा विष्णु प्रभाकर (आवारा मसीहा) के नाम प्रमुख हैं। आत्मकथा लेखकों में वियोगी हरि ( मेरा जीवन प्रवाह), गुलाबराय ( मेरी असफलताएँ) तथा हरिवंश राय ‘बच्चन’ (क्या भूलूँ क्या याद करूँ) प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 17.
नाटक एवं एकांकी में अन्तर बताते हुए प्रमुख लेखकों के नाम लिखिए। [2009]
उत्तर-
नाटक एवं एकांकी दोनों का सम्बन्ध रंगमंच से है किन्तु दोनों में पर्याप्त अन्तर है

  1. नाटक का आकार विस्तृत होता है। उसमें कई अंक तथा अंकों के दृश्य होते हैं जबकि एकांकी का आकार छोटा होता है तथा इसमें मात्र एक अंक होता है।
  2. नाटक की तीन या इससे भी अधिक घण्टे की समय सीमा होती है जबकि एकांकी आधा घण्टे की समयावधि में समाप्त हो जाता है।
  3. नाटक में अधिक पात्र तथा विस्तृत मंच सज्जा होती है जबकि एकांकी में सीमित पात्र तथा सीमित मंच सज्जा होती है। वस्तुतः नाटक का लघु रूप एकांकी है। प्रमुख लेखकों में जयशंकर प्रसाद, हरिकृष्ण प्रेमी, राजकुमार वर्मा, उदयशंकर भट्ट, उपेन्द्रनाथ अश्क, मोहन राकेश, विष्णु प्रभाकर, धर्मवीर भारती आदि हैं।

प्रश्न 18.
कहानी और नाटक में कोई चार अन्तर लिखिए। (2015)
उत्तर-
कहानी और नाटक में चार अन्तर इस प्रकार हैं-
(1) कहानी श्रव्य साहित्य है जबकि नाटक दृश्य साहित्य के अन्तर्गत आता है।
(2) कहानी को पाठक पढ़कर आनन्द लेता है जबकि नाटक अभिनय के द्वारा प्रस्तुत होता है। (3) कहानी का आकार छोटा होता है जबकि नाटक बड़े होते हैं। (4) कहानी किसी शैली में लिखी जा सकती है जबकि नाटक में संवाद शैली का प्रयोग होता है।

प्रश्न 19.
रिपोर्ताज किसे कहते हैं? कोई दो विशेषताएँ लिखिए। (2015)
उत्तर-
रिपोर्ताज में किसी आँखों देखी घटना, स्थिति, प्रकृति आदि का सरस, स्वाभाविक, वास्तविक एवं रोचक वर्णन किया जाता है। रिपोर्ताज की दो विशेषताएँ इस प्रकार हैं (1) रिपोर्ताज में किसी आँखों देखी घटना, स्थिति आदि का वर्णन होता है। (2) यह वर्णन सत्य होता है, इसमें कल्पना का प्रयोग नहीं किया जाता है।

प्रश्न 20.
गद्य की विधाओं में से आपको कौन-सी विधा अच्छी लगती है और क्यों? [2008]
उत्तर-
हिन्दी साहित्य की विविध विधाएँ समृद्धशाली हैं-नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी, आलोचना, निबन्ध, जीवनी, आत्मकथा, यात्रावृत्त, गद्य काव्य, संस्मरण, रेखाचित्र, रिपोर्ताज, डायरी तथा रेडियो रूपक आदि।

मुझे इन विधाओं में से कहानी अच्छी लगती है। यह गद्य विधा जीवन के किसी एक संक्षिप्त प्रसंग को उद्देश्य सहित प्रस्तुत करती है। लेखक कल्पना के सहारे उसे पाठकों के समक्ष रखता है। कहानी में आदर्श और यथार्थ का सुन्दर समन्वय होता है। इसमें कम-से-कम घटनाओं और प्रसंगों के माध्यम से अधिक-से-अधिक प्रभाव की सृष्टि करता है। कहानी में मानवीय संवेदनाओं को बड़ी ही बारीकी से उजागर किया जाता है। मानवीय मूल्यों को स्थापित करना कहानीकार का मूल उद्देश्य होता है। यद्यपि साहित्य की सभी विधाएँ सौद्देश्य होती हैं तथापि कहानी अल्प समय में पाठकों को उसके उद्देश्य से अवगत करा देती है। जीवन की किसी घटना या चरित्र का रोचक एवं प्रभावशाली चित्रण होता है। कहानी में चरित्र अत्यन्त ही सजीव और आकर्षक होते हैं। पाठक चरित्रों के माध्यम से उद्देश्य को समझने में तत्पर रहता है। पात्रों की सहानुभूति पाठकों को प्राप्त होती है।

कहानी का शुभारम्भ आकर्षक तथा जिज्ञासापूर्ण होता है। जिसमें विषय की विषयवस्तु समायी रहती है। ऐतिहासिक कहानी में वातावरण या घटनाओं का महत्त्व होता है। ऐतिहासिक कहानी हमें अतीत के गौरव का स्मरण कराती है जिससे देशभक्ति की भावना जाग्रत होती है। बालक के कोमल मन पर कहानी अपना अमिट प्रभाव छोड़ती है। पाठक कहानी के उद्देश्य के विषय में सोचने को विवश होता है।

प्रश्न 21.
उपन्यास और कहानी में अन्तर स्पष्ट कीजिए। [2011, 16]
उत्तर-
(1) उपन्यास का आकार बड़ा होता है जबकि कहानी छोटे आकार की होती है।
(2) उपन्यास में समस्त जीवन का अंकन होता है जबकि कहानी में जीवन का खण्ड चित्रण होता है।
(3) उपन्यास की अपेक्षा कहानी में पात्र कम होते हैं।
(4) उपन्यास में कई कथाएँ जुड़ जाती हैं जबकि कहानी में एक ही कथा होती है।

प्रश्न 22.
लोक साहित्य किसे कहते हैं? लोकगीत अथवा लोककथा का परिचय दीजिए। [2012, 14]
उत्तर-
लोक भाषा के माध्यम से जनसामान्य की अनुभूति को प्रस्तुत करने वाला साहित्य लोक साहित्य कहलाता है।

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लोकगीत-सामान्य समाज की अनुभूति को उन्हीं की भाषा में गेय रूप में व्यक्त करने वाला साहित्य लोकगीत कहलाता है। इसमें जीवन के यथार्थ का अनुभव भरा होता है।

लोकगाथा-जनसाधारण के अनुभवों पर आधारित वे कथाएँ जो जनभाषा में होती हैं वे लोकगाथा कही जाती हैं। ये समाज के मनोरंजन का श्रेष्ठ माध्यम होती हैं।

  • अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एकांकी में संवाद का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
संवाद से कथावस्तु में गतिशीलता आती है और पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं का उद्घाटन होता है।

प्रश्न 2. एकांकी कितने प्रकार की होती है?
उत्तर-
एकांकी निम्न प्रकार की होती है-

  1. स्वप्नरूप,
  2. प्रहसन,
  3. काव्य एकांकी,
  4. रेडियो रूपक,
  5. ध्वनि रूपक,
  6. वृत्त रूपक।

प्रश्न 3.
आलोचना के कितने भेद किये जा सकते हैं?
उत्तर-
आलोचना के प्रमुख दो भेद हैं
(1) सैद्धान्तिक आलोचना,
(2) प्रयोगात्मक आलोचना।

प्रश्न 4.
पत्र विधा के प्रमुख लेखकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
बैजनाथ सिंह, विनोद, बनारसीदास चतुर्वेदी, जवाहरलाल नेहरू आदि।

सम्पूर्ण अध्याय पर आधारित महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

  • बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. आधुनिक काल की सबसे लोकप्रिय विधा है
(i) कहानी, (ii) निबन्ध, (iii) उपन्यास,

2. भारतेन्दुयुगीन निबन्धों की विशेषता नहीं है [2012]
(i) हास्य व्यंग्य, (ii) समाज सुधार, (iii) मनमौजीपन, (iv) ज्ञान-विज्ञान युक्त विषय।

3. लेखक के स्वयं के जीवन-वृत्त को प्रस्तुत करने वाली रचना कहलाती है
(i) संस्मरण, (ii) उपन्यास, (iii) रेखाचित्र, (iv) आत्मकथा।

4. ‘भोलासम का जीव’ किस विधा की रचना है?
(i) संस्मरण, (ii) व्यंग्य, (iii) जीवनी, (iv) आत्मकथा।

5. खड़ी बोली गद्य का प्रारम्भ किस युग से माना जाता है?
(i) भारतेन्दु युग, (ii) द्विवेदी युग, (iii) शुक्ल युग, (iv) प्रगतिवादी युग।

6. ‘रेखाचित्रों की सिद्ध लेखिका हैं [2008]
(i) मालती जोशी, (ii) शिवानी, (ii) महादेवी वर्मा, (iv) महाश्वेता देवी।

7. पाठक को झकझोरने तथा सोचने के लिए बाध्य करने वाली विधा है- [2008]
(i) हास्य, (ii) व्यंग्य, (iii) नाटक, (iv) एकांकी।

8. ‘पूस की रात’ कहानी के लेखक हैं
(i) यशपाल, (ii) भगवतीचरण वर्मा, (ii) प्रेमचन्द, (iv) अमृतलाल नागर।
उत्तर-
1. (i), 2. (iv), 3. (iv), 4. (ii), 5. (i), 6. (ii), 7.(ii), 8. (iii)।

  • रिक्त स्थान पूर्ति

1. ‘भोर का तारा’ प्रसिद्ध ………….. है। [2009]
2. ……. नाटक सम्राट कहलाते हैं।
3. ‘इन्दुमती’ कहानी के लेखक ………… हैं।
4. कहानी के तत्वों की संख्या ………..” मानी जाती है। [2009]
5. ‘असफलता दिखाती है नयी राह, ……….. विधा की रचना है।
6. ‘सवा सेर गेहूँ’ के लेखक ………..” हैं।
7. उपन्यास शब्द का शाब्दिक अर्थ ………….[2012]
8. परीक्षा नामक निबन्ध …………. ने लिखा है।
9. ‘कवि वचन सुधा’ पत्रिका के सम्पादक का नाम …………. है।
उत्तर-
1. एकांकी,
2. जयशंकर प्रसाद,
3. किशोरीलाल गोस्वामी, 4. छ:,
5. आत्मकथा,
6. प्रेमचन्द,
7. समीप रखना,
8. प्रतापनारायण मिश्र,
9. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।

  • सत्य/असत्य

1. हजारीप्रसाद द्विवेदी ‘द्विवेदी युग’ के लेखक हैं। [2009, 10]
2. विद्यानिवास मिश्र ललित निबन्धकार हैं।
3. प्रेमचन्द ने मात्र नगरीय जीवन पर कहानियाँ लिखी हैं।
4. ‘मैला आँचल’ आंचलिक उपन्यास है।
5. आत्मकथा लेखक स्वयं लिखता है। [2009]
6. ‘उसने कहा था’ कहानी के लेखक प्रेमचन्द हैं।
7. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल एक कवि थे। [2009]
उत्तर-
1. असत्य,
2. सत्य,
3. असत्य,
4. सत्य,
5. सत्य,
6. असत्य,
7. असत्य।

  • जोड़ी मिलाइए

I.
1. गद्य का प्रथम उत्थान काल [2008] – (क) महादेवी वर्मा
2. रेखाचित्र [2010] – (ख) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
3. ‘सत्य के प्रयोग’ आत्मकथा के लेखक हैं [2009] – (ग) मुंशी प्रेमचन्द
4. उपन्यास सम्राट [2008] – (घ) महात्मा गाँधी
5. आत्मकथा [2012] – (ङ) मेरे बचपन के दिन
6. संस्मरण [2013] – (च) हरिवंश राय बच्चन’
उत्तर-
1. → (ख),
2.→ (क),
3.→ (घ),
4.→ (ग),
5.→ (च),
6.→
(ङ)।

II.
1. ‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रथम सम्पादक [2009] – (क) सरदार पूर्णसिंह
2. द्विवेदी युग के प्रसिद्ध निबन्धकार हैं [2008] – (ख) महावीर प्रसाद द्विवेदी
3. व्यंग्य – (ग) मोहन राकेश
4. ‘एक और जिन्दगी’ [2009] – (घ) हरिशंकर परसाई
उत्तर-
1. → (ख),
2. → (क),
3.→ (घ),
4. → (ग)।

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  • एक शब्द/वाक्य में उत्तर

1. खड़ी बोली हिन्दी गद्य का प्रारम्भ किस काल में हुआ?
2. उत्साह किस प्रकार का निबन्ध है?
3. ‘गोदान’ के लेखक कौन हैं?
4. ‘कोणार्क’ के लेखक का नाम बताइए।
5. गद्य में रचित किसी विशिष्ट व्यक्ति का साक्षात्कार किस विधा में आता है?
6. हिन्दी की प्रथम कहानी कौन-सी मानी गई है? [2009]
7. एक अंक वाली नाट्य कृति क्या कहलाती है?
8. ‘कर्त्तव्य और सत्यता’ नामक निबन्ध के लेखक कौन हैं?
9. ‘आकाशदीप’ कहानी किसने लिखी है?
10. कहानी (गद्य विधा) के कितने तत्व होते हैं? [2015]
उत्तर-
1. ‘आधुनिक काल’,
2. मनोविकार सम्बन्धी,
3. प्रेमचन्द,
4. गिरिजाकुमार माथुर,
5. भेंटवार्ता,
6. इन्दुमती,
7. एकांकी,
8. श्यामसुन्दर दास,
9. जयशंकर प्रसाद,
10. छः।

MP Board Class 11th Hindi Solutions

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3

MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3

प्रश्न 1.
गुणोत्तर श्रेणी \(\frac{5}{2}, \frac{5}{4}, \frac{5}{8} \dots\) का 20वाँ तथा nवाँ पद ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद, a = \(\frac{5}{2}\)
दूसरा पद = \(\frac{5}{4}\), सार्व अनुपात = \(\frac{1}{2}\)
n वाँ पद = \(a r^{n-1}=\frac{5}{2}\left(\frac{1}{2}\right)^{n-1}\) = \(\frac{5}{2^{n}}\).
n = 20 रखने पर,
20 वाँ पद = \(\frac{5}{2^{20}}\)

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प्रश्न 2.
उस गुणोत्तर श्रेणी का 12वाँ पद ज्ञात कीजिए, जिसका 8वाँ पद 192 तथा सार्व अनुपात 2 है।
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद = a
सार्व अनुपात = 2
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-1

प्रश्न 3.
किसी गुणोत्तर श्रेणी का 5वाँ, 8वाँ तथा 11 वाँ पद क्रमशः p, q तथा s हैं, तो दिखाइए कि q2 = ps.
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद = a
सार्व तथा अनुपात =r
5वाँ पद = ar5 – 1 = ar4 = p
8वाँ पद = ar8 – 1 = ar7 = q
11वाँ पद = ar11 – 1= ar10 = s
बायाँ पक्ष = q2 = (ar7)2 = a2 . r14
दायाँ पक्ष = ps = ar4 ar10= a2 . r14
अतः q2 = ps.

प्रश्न 4.
किसी गुणोत्तर श्रेणी का चौथा पद उसके दूसरे पद का वर्ग है तथा प्रथम पद – 3 है, तो 7 वाँ पद ज्ञात कीजिए।
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद, a = – 3
तथा सार्व-अनुपात = r
चौथा पद = ar4 – 1 = ar3 = – 3r3
दूसरा पद = ar = – 3r
दिया है : चौथा पद = (दूसरे पद)2
⇒ – 3r3 = (-3r)2 = 9r2
r= – 3
7वाँ पद = \(a r^{7-1}=a r^{6}=(-3)(-3)^{6}\)
= (- 3)7 = – 2187.

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प्रश्न 5.
अनुक्रमों का कौन सा पद :
(a) 2, 2\(\sqrt{2}\), 4, … ; 128 है ?
(b) \(\sqrt{3}\), 3, 3, …. ; 729 है ?
(c) \(\frac{1}{3}, \frac{1}{9}, \frac{1}{27}\), ….; 19683 है?
हल:
(a) गुणोत्तर श्रेणी का पहला व दूसरा पद क्रमशः 2 और 2\(\sqrt{2}\)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-2
∴ \(\frac{n-1}{2}\) = 6, n – 1 = 12 या n = 13.
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-3
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-4

प्रश्न 6.
x के किस मान के लिए संख्याएँ –\(\frac{2}{7}\), x, – \(\frac{7}{2}\) गुणोत्तर श्रेणी में हैं ?
हल:
संख्याएँ a, b और c गुणोत्तर श्रेणी में है यदि b2 = ac
∴ –\(\frac{2}{7}\), x, – \(\frac{7}{2}\) गुणोत्तर श्रेणी में हैं
\(x^{2}=\left(-\frac{2}{7}\right)\left(-\frac{7}{2}\right)\) = 1
x = ± 1.

प्रश्न 7 से 10 तक प्रत्येक गुणोत्तर श्रेणी का योगफल निर्दिष्ट पदों तक ज्ञात कीजिए।
प्रश्न 7.
0.15, 0.015, 0.0015,…..20 पदों तक।
हल:
गुणोत्तर श्रेणी 0.15, 0.015, 0.0015
पहला पद, a = 0.15
सार्व अनुपात, r = \(\frac{0.015}{0.15}\) = 0.1
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-5

प्रश्न 8.
\(\sqrt{7}, \sqrt{21}, 3 \sqrt{7}\),…..n पदों तक।
हल:
गुणोत्तर श्रेणी \(\sqrt{7}, \sqrt{21}, 3 \sqrt{7}\), …….
पहला पद, a = \(\sqrt{7}\) , सार्व अनुपात, r = \(\frac{\sqrt{21}}{\sqrt{7}}=\sqrt{3}\)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-6

प्रश्न 9.
1, – a, a2, – a3,…. पदों तक (यदि a ≠ – 1).
हल:
गुणोत्तर श्रेणी 1, – a, a, 2, – a3,…..
पहला पद, a = 1, सार्व अनुपात, r = \(\frac{-a}{1}\) = – a
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-7

प्रश्न 10.
x3, x5, x7, …..n पदों तक (यदि x ≠ ± 1).
हल:
गुणोत्तर श्रेणी x3, x5, x7, …..
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-8

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प्रश्न 11.
मान ज्ञात कीजिए \(\sum_{k=1}^{11}\left(2+3^{k}\right)\).
हल:
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-9

प्रश्न 12.
एक गुणोत्तर श्रेणी के तीन पदों का योगफल \(\frac{39}{10}\) है तथा उनका गुणनफल 1 है। सार्व अनुपात तथा पदों को ज्ञात कीजिए।
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी के तीन पद \(\frac{a}{r}\), a तथा ar हैं।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-10

प्रश्न 13.
गुणोत्तर श्रेणी 3,32, 33,… के कितने पद आवश्यक हैं ताकि उनका योगफल 120 हो जाए।
हल:
मान लो गुणोत्तर श्रेणी के कुल पद = n
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-11
या 3(3n – 1) = 120 × 2 = 240
3 से भाग देने पर
3n – 1 = \(\frac{240}{3}\) = 80
या 3n = 80 + 1 = 81 = 34
अत:
n = 4.

प्रश्न 14.
किसी गुणोत्तर श्रेणी के प्रथम तीन पदों का योगफल 16 है तथा अगले 3 पदों का योग 128 है तो गुणोत्तरं श्रेणी का प्रथम पद, सार्व अनुपात तथा n पदों का योगफल ज्ञात कीजिए।
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी a, ar, ar2,…. है।
पहला पद = a, सार्व अनुपात = r
तीन पदों का योगफल = \(\frac{a\left(1-r^{3}\right)}{1-r}\) = 16 …(1)
चौथा पद = a × rn – 1 = ar4 – 1 = ar3
अगले तीन पदों का योगफल = \(\frac{a r^{3}\left(1-r^{3}\right)}{1-r}\) = 128
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-12

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प्रश्न 15.
एक गुणोत्तर श्रेणी का प्रथम पद a = 729 तथा 7वाँ पद 64 है, तो S7 ज्ञात कीजिए।
हल:
गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद, a = 729
मान लीजिए सार्व अनुपात = r
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-13

प्रश्न 16.
एक गुणोत्तर श्रेणी को ज्ञात कीजिए, जिसके प्रथम दो पदों का योगफल – 4 है तथा 5 वाँ पद तृतीय पद का 4 गुना है।
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद = a
सार्व अनुपात = r
पहले दो पदों का योग = a + ar = – 4 ……(1)
5 वाँ पद = ar4, तीसरा पद = ar2
5 वाँ पद = 4 × तीसरा पद
ar4 = 4 × ar2
∴ r2 = 4 या r = ± 2
समी (1) में r = 2 रखने पर
a (1 + 2) = – 4
∴ a = – latex]\frac{4}{3}[/latex]
∴ गुणोत्तर श्रेणी – 5, 3…. है
और जब r = – 2, ∴ a (1 – 2) = – 4, या a = 4
गुणोत्तर श्रेणी है: 4, – 8, 16, – 32,….

प्रश्न 17.
यदि किसी गुणोत्तर का 4वाँ, 10वाँ तथा 16वाँ पद क्रमशः x, y तथा z हैं, तो सिद्ध कीजिए कि x, y, z गुणोत्तर श्रेणी में हैं।
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद = a,
सार्व अनुपात =r
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-14

प्रश्न 18.
अनुक्रम 8, 88, 888, …. के n पदों का योग ज्ञात कीजिए।
हल:
मान लीजिए S = 8 + 88 + 888 + … पदों तक
= 8 [1 + 11 + 111 + … n पदों तक]
= \(\frac{8}{9}\)[9 + 99 + 999 +…. पदों तक]
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-15

प्रश्न 19.
अनुक्रम 2, 4, 8, 16, 32, तथा 128, 32, 8, 2, \(\frac{1}{2}\) के संगत पदों के गुणनफल से बने अनुक्रम का योगफल ज्ञात कीजिए।
हल:
अनुक्रम 2, 4, 8, 16, 32 तथा 128, 32, 8, 2,\(\frac{1}{2}\) के संगत पदों के गुणनफल 2 × 128, 4 × 32, 8 × 8, 16 × 2, 32 × \(\frac{1}{2}\) या 256, 128, 64, 32, 16.
गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद, a = 256
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-16

प्रश्न 20.
दिखाइए कि अनुक्रम a, ar, ar2,… arn – 1 तथा A, AR, Ar2,…. ARn – 1 के संगत पदों के गुणनफल से बना अनुक्रम गुणोत्तर श्रेणी होती है तथा सार्व अनुपात ज्ञात कीजिए। .
हल:
%अनुक्रम a, ar, ar2,….arn – 1 तथा A, AR, AR2,… ARn – 1 के संगत पदों के गुणनफल से बना अनुक्रम
या aA, arAR, ar2. AR2, ….
या aA, aArR, aAr2 R2, ….
स्पष्ट है कि यह पद गुणोत्तर श्रेणी में है।
इसका पहला पद = aA
सार्व अनुपात = \(\frac{a A r R}{a A}\) = rR.

प्रश्न 21.
ऐसे चार पद ज्ञात कीजिए जो गुणोत्तर श्रेणी में हो, जिसका तीसरा पद प्रथम पद से 9 अधिक हो, तथा दूसरा पद चौथे पद से 18 अधिक हो।
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी a, ar, ar2, ar3,… है
तीसरा पद = ar2, प्रथम पद = a
∴ ar2 – a = 9 …(1)
दूसरा पद = ar, चौथा पद = ar3
ar – ar3 = 18 …(2)
समी (1) को (2) से भाग देने पर,
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-17

प्रश्न 22.
यदि किसी गुणोत्तर श्रेणी का p वाँ, q वाँ तथा वा पद क्रमशः a, b, तथा c हो, तो सिद्ध कीजिए कि \(a^{q-r} \cdot b^{r-p}-c^{p-q}\) = 1.
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद A और सार्व अनुपात R है
p वाँ पद = ARp – 1 = a ….(1)
q वाँ पद = ARq – 1 = b ….(2)
r वाँ पद = ARr – 1 = c …..(3)
समी. (1) की q – 7, समी (2) की r – p, समी (3) की p – q घात का प्रयोग करने पर,
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-18

प्रश्न 23.
यदि किसी गुणोत्तर श्रेणी का प्रथम तथा nवाँ पद a तथा b हैं, एवं P, n पदों का गुणनफल हो, तो सिद्ध कीजिए कि P2 = (ab)n.
हल:
मान लो गुणोत्तर श्रेणी का सार्व अनुपात है।
पहला पद = a, n वाँ पद = ar n – 1 = b
P = n पदों का गुणनफल
= a. ar. ar2. ar3 ….arn – 1
= a n. r 1 + 2 + 3 +…+ (n – 1) = \(a^{n} r^{\frac{n(n-1)}{2}}\)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-19

प्रश्न 24.
दिखाइए कि एक गुणोत्तर श्रेणी के प्रथम n पदों का योगफल तथा (n + 1) वें पद से (2n)वें पद तक के पदों के योगफल का अनुपात में है।
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी का पहला पद a और सार्व अनुपात = \(\frac{1}{r^{n}}\) हों, तब
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-20

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प्रश्न 25.
यदि a, b, c तथा d गुणोत्तर श्रेणी में हैं तो दिखाइए कि \(\left(a^{2}+b^{2}+c^{2}\right)\left(b^{2}+c^{2}+d^{2}\right)=(a b+b c+c d)^{2}\).
हल:
मान लीजिए गुणोत्तर श्रेणी का सार्व अनुपात 7 है।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-21

प्रश्न 26.
ऐसी दो संख्याएँ ज्ञात कीजिए जिनको 3 और 81 के बीच रखने पर प्राप्त अनुक्रम एक गुणोत्तर श्रेणी बन जाए।
हल:
मान लीजिए G1, G2 ऐसी दो संख्याएँ हैं जिससे 3, G1, G2, 81 गुणोत्तर श्रेणी बनाते हैं।
यह कुल चार पद हैं। यदि r सार्व अनुपात हो तो
∴ 81 = 3.r4 – 1 = 3 . r3
⇒ r=3
G1 = 3r = 3 . 3 = 9
G2 = 3r2 = 3.32 = 27
अतः संख्याएँ 9 और 27 हैं।

प्रश्न 27.
n का मान ज्ञात कीजिए ताकि \(\frac{a^{n+1}+b^{n+1}}{a^{n}+b^{n}}\), a तथा b के बीच गुणोत्तर माध्य हो।
हल:
a और b के बीच गुणोत्तर माध्य = \(\sqrt{a b}\)
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-22
या \(\left(\frac{a}{b}\right)^{n+\frac{1}{2}}\) = 1 = \(\left(\frac{a}{b}\right)^{0}\)
⇒ n+ \(\frac{1}{2}\) = 0 या n = – \(\frac{1}{2}\).

प्रश्न 28.
दो संख्याओं का योगफल उनके गुणोत्तर माध्य का 6 गुना है तो दिखाइए कि संख्याएँ (3 + 2\(\sqrt{2}\)) : (3 – 2\(\sqrt{2}\)) के अनुपात में हैं। .
हल:
मान लीजिए संख्याएँ a और b हों, तब
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-23
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-24

प्रश्न 29.
यदि A तथा G दो धनात्मक संख्याओं के बीच क्रमशः समांतर तथा गुणोत्तर माध्य हों, तो सिद्ध करो कि संख्याएँ \(\mathbf{A} \neq \sqrt{(A+G)(A-G)}\) हैं।
हल:
मान लीजिए संख्याएँ a और b हैं।
MP Board Class 11th Maths Solutions Chapter 9 अनुक्रम तथा श्रेणी Ex 9.3 img-25

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प्रश्न 30.
किसी कल्चर में बैक्टीरिया की संख्या प्रत्येक घण्टे के पश्चात् दुगुनी हो जाती है। यदि प्रारंभ में उसमें 30 बैक्टीरिया उपस्थित थे, तो बैक्टीरिया की संख्या दूसरे, चौथे तथा nवें घण्टों बाद क्या होगी ?
हल:
प्रारम्भ में बैक्टीरिया की संख्या a = 30
प्रत्येक घण्टे बाद बैक्टीरिया की संख्या दुगुनी हो जाती है
∴ सार्व अनुपात = 2.
दूसरे घण्टे बाद बैक्टीरिया संख्या = ar2 = 30 × 22 = 120
चौथे घण्टे बाद बैक्टीरिया संख्या = ar4 = 30 × 24 = 480
n वें घण्टे बाद बैक्टीरिया संख्या = arn = 30 × 2n.

प्रश्न 31.
500 रुपए धनराशि 10% वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज पर 10 वर्षों बाद क्या हो जाएगी, ज्ञात कीजिए ?
हल:
माना A मिश्रधन, P मूलधन, r% प्रतिवर्ष ब्याज की दर तथा n वर्ष का समय हो, तो
A = \(P\left(1+\frac{r}{100}\right)^{n}\)
दिया है: P = 500, r = 10%, n = 10 वर्ष
A = 500 \(\left(1+\frac{10}{100}\right)\)
= 500 × (1.1)10.

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प्रश्न 32.
यदि किसी द्विघात समीकरण के मूलों के समांतर माध्य एवं गुणोत्तर माध्य क्रमशः 8 तथा 5 हैं, तो द्विघातीय समीकरण ज्ञात कीजिए।
हल:
मान लीजिए द्विघात समीकरण के मूल α और β हों, तब
\(\frac{\alpha+\beta}{2}\) = 8 ∴ α + β = 16
तथा \(\sqrt{\alpha \beta}\) = 5 ∴ αβ = 25
∴ द्विघातीय समीकरण.
x 2 – (α + β) x + αβ = 0
⇒ x 2 – 16x + 25 = 0..

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