MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 10 बैल की बिक्री (कहानी, सियाराम शरण गुप्त)
बैल की बिक्री अभ्यास
बोध प्रश्न
बैल की बिक्री अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
खेतों के पौधे असमय में ही क्यों मुरझा रहे थे?
उत्तर:
खेतों के पौधे समय पर वर्षा न होने के कारण असमय में ही मुरझा रहे थे।
प्रश्न 2.
महाजन का नाम क्या था?
उत्तर:
महाजन का नाम ज्वाला प्रसाद था।
प्रश्न 3.
किसान के हाथ-पैर किसे कहा गया है?
उत्तर:
बैलों को किसान के हाथ-पैर कहा गया है।
प्रश्न 4.
शिबू अपना बैल बेचने कहाँ जाता है?
उत्तर:
शिबू अपना बैल रामपुर की हाट में बेचने जाता है।
प्रश्न 5.
डाकुओं की कुल संख्या कितनी थी?
उत्तर:
डाकुओं की कुल संख्या पाँच थी।
प्रश्न 6.
मोहन रामधन के साथ कहाँ गया?
उत्तर:
मोहन रामधन के साथ ज्वाला प्रसाद महाजन के यहाँ गया था।
बैल की बिक्री लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मोहन शिबू के विषय में क्यों चिन्तित था?
उत्तर:
मोहन को शिबू के विषय में इसलिए चिन्ता थी कि वह जवान हो चुका था और उसे घर के काम-काज से कोई सरोकार न था।
प्रश्न 2.
मोहन को अपने स्वर्गीय पिता का स्मरण क्यों हुआ?
उत्तर:
जब भी शिबू के उद्दण्ड व्यवहार से मोहन दुःखी होता था, तब उसे अपने मृत पिता की याद आ जाती क्योंकि उसने भी अपने पिता को कम नहीं खिझाया था। पिता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का सबसे बड़ा साधन कदाचित् बच्चे को प्यार करना ही है।
प्रश्न 3.
शिबू द्वारा बैल का अपमान करने पर मोहन की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
मोहन को अपने पुत्र शिबू के बैल के प्रति किये व्यवहार से बहुत दुःख हुआ। उसने बैल की सार की अच्छी तरह सफाई की, बैल को पानी पिलाने ले गया, उसको नहलाया, फिर भूसा डाला, इसके बाद घर से रोटी लाकर उसके टुकड़े-टुकड़े करके खिलाया।
प्रश्न 4.
बैल को बेचने के लिए जाते हुए मोहन ने शिबू से क्या कहा?
उत्तर:
बैल को बेचने के लिए जाते हुए मोहन ने शिबू से कहा-एक बात बेटा, मेरी मानना। बैल किसी भले आदमी को देना जो उसे अच्छी तरह रखे। दो-चार रुपये कम मिलें तो ख्याल न करना।
प्रश्न 5.
शिबू ने डाकुओं का प्रतिकार किस प्रकार किया?
उत्तर:
पहले तो शिबू छाती तानकर खड़ा हो गया। बोला। मैं रुपये नहीं दूंगा। इसके बाद दूसरे डाकू के बन्दूक के कुन्दे को मारने पर उसने कुन्दे को इस तरह पकड़ लिया जिस तरह सपेरे साँप का फन पकड़ लेते हैं। अपने को आगे ठेलता हुआ वह बोला-तुम मुझे मार सकते हो, परन्तु रुपये नहीं छीन सकते। शिबू के साहस को देखकर डाकुओं से लुटे-पिटे व्यक्ति भी एक साथ आ गये, जिन्हें देखकर डाकू भाग खड़े हुए।
प्रश्न 6.
ज्वाला प्रसाद ने मोहन से क्या कहा?
उत्तरे:
ज्वाला प्रसाद ने मोहन से कहा कि वायदे बहुत हो चुके। अब हमारे रुपये अदा कर दो, नहीं तो अच्छा न होगा।
बैल की बिक्री दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
मोहन शिबू को बैल बेचने से क्यों मना करता है?
उत्तर:
बैल बेचने के बचाव में मोहन ने शिबू को डाँटते हुए कहा-“चुप रह! घर में जोड़ी न होती तो इतनी बातें बनाना न आता। बैल किसान के हाथ-पैर होते हैं। एक हाथ टूट जाने पर कोई दूसरा भी कटा नहीं डालता। मैं इसका जोड़ मिलाने की फ्रिक में हूँ, तू कहता है-बेच दो। दूर हो, जहाँ जाना हो चला जा। मैं सब कर लूँगा।” वह दोगुने प्यार से उसका ख्याल रखता है।
प्रश्न 2.
दद्दा के दोपहर में न आने पर शिबू ने क्या किया?
उत्तर:
सबेरे ज्वाला प्रसाद के आदमी के साथ गए दद्दा दोपहर तक रोटी खाने भी नहीं आए हैं। यह जानकर शिबू झपाटे के साथ घर से निकलकर ज्वाला प्रसाद के यहाँ जा पहुँचा। वहाँ उसने पिता को मुँह सुखाए, पसीने-पसीने एक जगह बैठा देखा। ज्वाला प्रसाद द्वारा रुपये की कहने पर उसने कहा-अपनी रुपहट्टी लोगे या किसी की जान? अरे, कुछ तो दया होती! बूढ़े ने सवेरे से पानी तक नहीं पिया। तुम कम-से-कम चार दफे दूंस चुके होंगे। अपने पिता से यह कहकर कि मैं तुम्हें कसाई की गाय की तरह मरने न दूंगा और रामपुर की हाट में सोमवार को बैल बेचकर उनकी कौड़ी पाई चुका दूँगा, उनका हाथ पकड़कर झकझोरता हुआ साथ ले गया। साहूकार चुपचाप देखता रह गया, एक शब्द भी उसके मुँह से नहीं निकला।
प्रश्न 3.
शिबू द्वारा किये गये व्यवहार की ज्वाला प्रसाद पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
शिबू के व्यवहार से ज्वाला प्रसाद हतबुद्धि होकर ज्यों के त्यों बैठे रहे। उन्होंने शिबू के जैसा निर्भय आदमी न देखा था। उनके मुँह पर ही उन्हें कसाई बनाया गया। गुस्सा की अपेक्षा उन्हें डर ही अधिक मालूम हुआ।
प्रश्न 4.
बैल के बेचने का निश्चय होते ही मोहन की हालत कैसी हो गई?
उत्तर:
बैल के बेचने का निश्चय होते ही दो दिन में ही ऐसा जान पड़ने लगा-मानो मोहन बहुत दिन का बीमार हो। दिनभर वह बैल के विषय में ही सोचा करता। रात को उठकर कई बार बैल के पास जाता। रात के एकान्त में जब उसे अवसर मिलता, बैल के गले से लिपटकर प्रायः आँसू बहाने लगता।
प्रश्न 5.
बैल को बेचने के पश्चात् शिबू की मानसिक स्थिति का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
बैल बेचने के पश्चात् शिबू घर लौट रहा था। रुपये उसकी अण्ढी में थे तो भी आज उसकी चाल में बहुत तेजी नहीं थी, जो जाते समय थी। न जाने, कितनी बातें उसके भीतर आ-जा रही थीं। बैल के बिना उसे सूना-सूना मालूम हो रहा था। आज के पहले वह यह बात किसी तरह न मानता कि उसके मन में भी उस क्षुद्र प्राणी के लिए इतना प्रेम था। बार-बार उसे बैल की सूरत याद आती। उसके ध्यान में आता मानो विदा होते समय बैल भी उदास हो गया था। उसकी आँखों में आँसू छलक आये थे। बैल का विचार दूर करता तो पिता का सूखा बेहरा सामने आ जाता। बैल और पिता मानो एक ही चित्र के दो ख थे। लौट फिर कर एक के बाद दूसरा उसके सामने आ जाता था।
प्रश्न 6.
शिबू का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर:
शिबू किसान मोहन का लड़का था। वह उद्दण्ड स्वभाव का था। उसे घर के काम-काज से कोई सरोकार नहीं था। खाना-पीना और इधर-उधर आवारागर्दी में घूमना ही उसका काम था।
इसके अतिरिक्त वह महाजन तथा साहूकारों से घृणा करता था। वह किसी से दबता नहीं था। वह साहसी था। जब डाकुओं ने उसे पकड़ लिया तब वह उनसे भी लड़ने-मरने को आमादा हो जाता है। उसके साहस से ही डाकू भाग जाते हैं और वह लुटे हुए लोगों को स्वतन्त्र करा देता है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए-
“भीड़ में से एक आदमी निकलकर शिबू के पास आया। …………. अब लुट जाए तो मैं जिम्मेदार नहीं।”।
उत्तर:
लेखक कहता है कि डाकुओं द्वारा पकड़े हुए व्यापारियों में से एक आदमी निकलकर शिबू के पास आता है और कहता है अरे भैया तुम कौन, शिबू माते? आज तुमने इतने आदमियों को डाकुओं के चंगुल से बचा दिया, तुम धन्य हो।
शिबू ने कहा यह वही ज्वाला प्रसाद है जिसने अपने कर्ज के रुपये के लिए मेरे पिता को बन्धक बना लिया था। उस समय उसके शरीर पर धोती के अलावा और कोई वस्त्र नहीं था। डाकुओं ने रुपये-पैसे के साथ उसके कपड़े भी उतरवा कर रखवा लिये थे। उसे देखते ही उसका मुँह घृणा से भर गया था। शिबू ने बैल बेचने से मिले हुए रुपयों को अपनी अण्टी से निकालकर उसके सामने रखते हुए कहा कि यह आज एक बहुत बड़ी बात हुई कि शिबू माते अर्थात् मैं तुम्हें यहीं मिल गया। लो अपने कर्ज के रुपये चुकता कर लो। आगे तुम लुट जाओ तो मैं इसका जिम्मेदार नहीं हूँ।
बैल की बिक्री भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कीजिए
उत्तर:
- अन्तस्तल = अन्तः + स्तल (स्थल)।
- प्रेमातुर = प्रेम + आतुर।
- सज्जन = सत् + जन।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रहकीजिए
उत्तर:
- स्त्री-पुरुष = स्त्री और पुरुष।
- यथासमय = समय के अनुसार।
- क्षतिपूर्ति = क्षति की पूर्ति।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के लिए एक-एक शब्द लिखिए-
- जो किसी से भयभीत न हो।
- जिसे ज्ञान न हो।
- जिसके पास धन नहीं है।
- जो क्षय न हो।
उत्तर:
- निर्भय
- अज्ञानी
- निर्धन
- अक्षय।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार परिवर्तित कीजिए-
- बादल समय पर पानी नहीं देते थे। (विधानवाचक)
- सेठ ज्वाला प्रसाद अच्छे महाजन थे। (निषेधवाचक)
- शिबू बाबू बनकर डाकखाने में टिकट बेचेगा। (प्रश्नवाचक)
- मोहन बैल को बहुत प्यार करता है। (विस्मयादिवाचक)
उत्तर:
- बादल समय पर पानी देते थे।
- सेठ ज्वाला प्रसाद अच्छे महाजन नहीं थे।
- क्या शिबू बाबू बनकर डाकखाने में टिकट बेचेगा?
- ओहो! मोहन बैल को बहुत प्यार करता है।
प्रश्न 5.
आज्ञावाचक वाक्य किसे कहते हैं? उदाहरण देकर बताइए।
उत्तर:
आज्ञावाचक वाक्य में आज्ञा देकर कोई कार्य करवाया जाता है।
उदाहरण :
आप जाइये, और वहाँ से सामान लेकर आइये।
बैल की बिक्री महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बैल की बिक्री बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘बैल की बिक्री’ कहानी में किस समस्या को प्रमुख रूप से उठाया गया है?
(क) साहूकारों की
(ख) ऋणग्रस्त लोगों की
(ग) नौजवानों की
(घ) ऋणग्रस्त किसानों की
उत्तर:
(घ) ऋणग्रस्त किसानों की
प्रश्न 2.
‘बैल की बिक्री’ कहानी का केन्द्रीय चरित्र है- (2017)
(क) मोहन
(ख) शिबू
(ग) साहूकार
(घ) मुनीम।
उत्तर:
(ख) शिबू
प्रश्न 3.
किसान के हाथ-पैर किसे कहा गया है? (2013)
(क) गाय
(ख) भैंस
(ग) बैल
(घ) बकरी।
उत्तर:
(ग) बैल
प्रश्न 4.
मोहन ने ऋण चुकाने के लिए क्या किया?
(क) अनाज बेच दिया
(ख) घर बेच दिया
(ग) बैल बेच दिया
(घ) खेत बेच दिया।
उत्तर:
(ग) बैल बेच दिया
प्रश्न 5.
शिबू ने बैल को कहाँ बेच दिया?
(क) मित्र को
(ख) साहूकार को
(ग) पड़ोसी को
(घ) रामपुर की हाट में
उत्तर:
(घ) रामपुर की हाट में
प्रश्न 6.
महाजन का नाम था (2016)
(क) अम्बिका प्रसाद
(ख) शिबू
(ग) मोहन
(घ) ज्वाला प्रसाद
उत्तर:
(घ) ज्वाला प्रसाद
रिक्त स्थानों की पूर्ति
- ‘बैल की बिक्री’ कहानी में लेखक ने ………… किसानों की समस्या को उठाया है।
- मेरे जीते जी इन रुपयों को ………….. के सिवा अन्य कोई नहीं ले सकता।
- ‘बैल की बिक्री’ एक ………….. कहानी है।
- महाजन का नाम …………. था। (2009)
- बादल चाहे जैसी शत्रुता रखें मगर खेती के लिए उनसे ………… वस्तु नहीं है।
उत्तर:
- ऋणग्रस्त
- महाजन
- मनोवैज्ञानिक
- ज्वालाप्रसाद
- प्यारी
सत्य/असत्य
- महाजन का नाम ज्वालाप्रसाद था। (2013)
- मोहन रामधन के साथ डाकू से मिलने गया। (2009)
- शिबू मोहन का लड़का है। (2018)
- शिबू डाकुओं को देखकर भाग गया क्योंकि वे संख्या में दो सौ के लगभग थे।
- सेठ ज्वालाप्रसाद उन्हीं महाजनों में से थे। विधाता के वर से उनका धन अक्षय था।
उत्तर:
- सत्य
- असत्य
- सत्य
- असत्य
- सत्य
सही जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
1. → (ङ)
2. → (ग)
3. → (घ)
4. → (क)
5. → (ख)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- ‘बैल की विक्री’ कहानी में लेखक ने किसानों की किस समस्या का चित्रण किया है?
- शिबू बैल बेचने कहाँ गया था?
- मोहन किसका कर्जदार है?
- किसान के हाथ-पैर किसको कहा गया है?
- ‘बैल की बिक्री’ कहानी के लेखक कौन हैं?
उत्तर:
- ऋणग्रस्तता
- रामपुर की हाट में
- ज्वालाप्रसाद
- बैल को
- सियाराम शरण गुप्त।
बैल की बिक्री पाठ सारांश
‘बैल की बिक्री’ कहानी के लेखक सियारामशरण गुप्त हैं। प्रस्तुत कहानी ग्रामीण जीवन तथा कृषकों की विभिन्न समस्याओं पर आधारित है। इस कहानी के माध्यम से गुप्त जी ने किसानों पर साहूकारों के द्वारा जो अत्याचार होते हैं उनका वर्णन किया है।
इस कहानी का प्रमुख पात्र मोहन एक ऋणग्रस्त किसान है। शिबू उसका इकलौता और निकम्मा लाडला बेटा है। मोहन ने ज्वालाप्रसाद नामक महाजन से कर्ज लिया है। यह परिवार एक बैलगाड़ी के सहारे से अपने परिवार का भरण-पोषण करता है लेकिन एक दिन बैलों की जोड़ी में से एक बैल की मृत्यु हो जाती है।
एक दिन साहूकार के द्वारा जब शिबू के पिता को बन्दी बना लिया गया तब शिबू को क्रोध आया और उसने सेठ ज्वालाप्रसाद का कर्ज चुकाने के लिए अपना बैल हाट में ले जाकर बेच दिया।
जब शिबू बैल बेचकर लौट रहा था तो रास्ते में उसे डाकू मिले वह डाकुओं का डटकर मुकाबला करता है और डाकू भाग जाते हैं। वहीं पर सेठ ज्वालाप्रसाद को शिबू उन्हें बैल की बिक्री के रुपये दे देता है और कहता है कि मैंने अपना कर्जा चुका दिया है। अब चाहे तुम लुट जाओ इसके जिम्मेदार तुम स्वयं ही होगे।
शिबू जब बैल को बेचने जा रहा था तब उसके पिता को बहुत दुःख हुआ क्योंकि बैल के प्रति उनके हृदय में ममता थी और उससे अलग होने की वेदना भी। शिबू का चरित्र भी लेखक ने मर्मस्पर्शी ढंग से प्रस्तुत किया है। पिता के प्रति होने वाले अत्याचार को देख शिबू ने सेठ ज्वालाप्रसाद को मुँहतोड़ जवाब दिया। अपने पिता को उसके चंगुल से छुड़ा लाया। यह एक मनोवैज्ञानिक कहानी है। परिस्थितियों के अनुरूप ही शिबू के व्यवहार में परिवर्तन हुआ है।
बैल की बिक्री संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) कई साल से फसल बिगड़ रही थी। बादल समय पर पानी नहीं देते थे। खेती के पौधे अकाल वृद्ध होकर असमय में ही मुरझा रहे थे, परन्तु महाजनों की फसल का हाल ऐसा न था। बादल ज्यों-ज्यों अपना हाथ खींचते, उनकी खेती में त्यों-त्यों नये अंकुर निकलते थे। सेठ ज्वाला प्रसाद उन्हीं महाजनों में से थे। विधाता के वर से उनका धन अक्षय था। जिस किसान के पास पहुँच जाता, जीवन-भर उसका साथ न छोड़ता। अपने स्वामी की तिजोरी में निरन्तर जाकर भी दरिद्र की झोंपड़ी की माया उससे छोड़ी न जाती थी।
कठिन शब्दार्थ :
अकाल = बिना समय आये। वृद्ध = बूढ़ा, यहाँ नष्ट। विधाता = ईश्वर। वर = आशीर्वाद। अक्षय = कभी नष्ट न होने वाला।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘बैल की बिक्री’ कहानी से लिया गया है। इसके लेखक श्री सियारामशरण गुप्त हैं।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि सूदखोर लोगों का धन जिसे एक बार चंगुल में ले लेता है उसका उस सरलता से पीछा नहीं छूटता है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि अनेक वर्षों से फसल बिगड़ रही थी। उसका कारण यह था कि समय पर वर्षा नहीं हो रही थी। खेती के पौधे वर्षा के न होने के कारण असमय ही सूख रहे थे लेकिन दूसरी ओर महाजनों (सूदखोरों) की फसल ऐसी नहीं थी। कहने का भाव यह है कि जैसे-जैसे वर्षा कम होती थी, फसल खराब होती थी, गरीब किसान अपना खर्च चलाने के लिए ऋणदाताओं के द्वार जाता था और उनसे ब्याज पर अधिक धन उधार लेता था।
इस प्रकार सूखा पड़ने पर महाजनों की फसल और अधिक हरी-भरी होती थी। बादल जैसे-जैसे अपना हाथ खींचते अर्थात् वर्षा कम होती थी, वैसे ही वैसे सूदखोरों की खेती में नये-नये अंकुर निकल आते थे। सेठ ज्वाला प्रसाद भी इसी वर्ग के महाजन थे। ईश्वर की उन पर ऐसी कृपा थी कि उनका धन कभी भी नष्ट नहीं होता था। उनका कर्ज का धन जिस किसान के पास भी पहुँच जाता, वह जीवन भर उस किसान का साथ नहीं छोड़ता था। वह तो उनकी तिजोरी में जाकर सुरक्षित हो जाता और वह कर्जदाताओं का कभी भी साथ नहीं छोड़ता था।
विशेष :
- कर्ज का धन कर्जदाताओं को उन्नति देता है, जबकि किसानों का वह खून पीता था।
- भाषा भावानुकूल।
(2) उस दिन मोहन ने सार की सफाई और अच्छी तरह की। बैल को पानी पिलाने ले गया तो सोचा इसे नहला हूँ। उजड्ड लड़के ने बैल का जो अपमान किया था, उसे वह उसके अन्तस्तल तक धो देना चाहता था। नहला चुकने पर अपने अंगोछे से पानी अंगोछा, बाँधने की रस्सी को भी पानी से धोना न भूला। सार में बाँधकर भूसा डाला। तब भी मन की ग्लानि दूर न हई, तो भीतर जाकर रोटी ले आया और टुकड़े-टुकड़े करके उसे खिलाने लगा। वह कहा करता था कि जानवर अपनी बात समझा नहीं सकते, परन्तु बहुत-सी बातें आदमियों से अधिक समझते हैं। इसलिए वह अनुभव कर रहा था कि बैल उसके प्रेम को अच्छी तरह हृदयंगम कर रहा है।
कठिन शब्दार्थ :
सार = पशुओं का चारा खिलाने की नौद। उजड्ड = असभ्य। अंतस्तल = हृदय तक। अंगोछा = पौंछा। ग्लानि = मन का पछतावा। हृदयंगम = हृदय में धारण कर लेना।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
शिबू द्वारा बैल का अपमान किये जाने पर मोहन बहुत दुःखी होता है और अपने पुत्र की करनी का प्रायश्चित करते हुए बैल को नहलाता, धुलाता और उसकी सेवा करता है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि जब शिबू ने बैल का अपमान किया तो मोहन को इससे बड़ा दुःख हुआ। अतः उस दिन मोहन ने बैल के चारे खाने के स्थानकी अच्छी तरह सफाई की। बैल को पानी पिलाने वह स्वयं लेया। वहाँ जाकर उसने बैल को नहला भी दिया। अपने उजड्ड पुत्र शिबू के बैल के साथ किये गये अपमान को वह उसके हृदय तक से धो देना चाहता था। बैल को नहला चुकने के बाद अपने अंगोछे से उसके शरीर को पौंछा, बाँधने की रस्सी को भी पानी से खूब धोया। सार में बाँधकर भूसा डाला। इतना करने पर भी उसके मन की ग्लानि दूर नहीं हुई तो वह घर के भीतर जाकर रोटी ले आया और टुकड़े-टुकड़े करके उसे खिलाने लगा। मोहन कहा करता था कि पशु अपनी बात मनुष्य को समझा तो नहीं सकते पर वे बहुत-सी बातें मनुष्यों से अधिक समझते हैं। अतः मोहन यह अनुभव कर रहा था कि बैल उसके प्रेम को अच्छी तरह अपने हृदय में धारण कर रहा है।
विशेष :
- मोहन बैलों के साथ घुल-मिलकर रहता था, खेती आदि करता था। अत: वह बैलों के स्वभाव को जानता था, तभी तो वह उस बैल का मान-सम्मान कर रहा था।
- भाषा भावानुकूल।
(3) भीड़ में एक आदमी निकलकर शिबू के पास आया। बोला-कौन है, शिब माते? तुमने आज इतने आदमियों को…………।
शिबू ने कहा-ज्वाला प्रसाद है। शरीर पर धोती के सिवा कोई वस्त्र नहीं। डाकुओं ने रुपये-पैसे के साथ उसके कपड़े भी उतरवा कर रखवा लिये थे। उसे देखते ही उसका मुँह घृणा से विकृत हो उठा। अण्टी से रुपये निकालकर उसने कहा-बड़ी बात, शिबू माते तुम्हें आज यहीं मिल गये। लो, अपने रुपये चुकते कर लो। अब लुट जाएँ तो मैं जिम्मेदार नहीं।
कठिन शब्दार्थ :
विकृत = विकार युक्त, खराब। घृणा = नफरत।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
जब डाकुओं के चंगुल में से सभी व्यापारियों की शिबू अपने साहस से छुड़ा लेता है तो उन्हीं में से एक ज्वाला प्रसाद (जो शिबू के पिता का कर्जदाता था) गिड़गिड़ाते हुए शिबू की तारीफ करता है, तो शिबू उसको फटकार लगाते हुए कर्ज के रुपये दे देता है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि डाकुओं द्वारा पकड़े हुए व्यापारियों में से एक आदमी निकलकर शिबू के पास आता है और कहता है अरे भैया तुम कौन, शिबू माते? आज तुमने इतने आदमियों को डाकुओं के चंगुल से बचा दिया, तुम धन्य हो।
शिबू ने कहा यह वही ज्वाला प्रसाद है जिसने अपने कर्ज के रुपये के लिए मेरे पिता को बन्धक बना लिया था। उस समय उसके शरीर पर धोती के अलावा और कोई वस्त्र नहीं था। डाकुओं ने रुपये-पैसे के साथ उसके कपड़े भी उतरवा कर रखवा लिये थे। उसे देखते ही उसका मुँह घृणा से भर गया था। शिबू ने बैल बेचने से मिले हुए रुपयों को अपनी अण्टी से निकालकर उसके सामने रखते हुए कहा कि यह आज एक बहुत बड़ी बात हुई कि शिबू माते अर्थात् मैं तुम्हें यहीं मिल गया। लो अपने कर्ज के रुपये चुकता कर लो। आगे तुम लुट जाओ तो मैं इसका जिम्मेदार नहीं हूँ।
विशेष :
- शिबू के साहस की प्रशंसा ज्वाला प्रसाद भी करता है।
- भाषा भावानुकूल।