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MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 18 विद्या की शोभा विनम्रता (संकलित)
विद्या की शोभा विनम्रता पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर
विद्या की शोभा विनम्रता लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
महाकवि माघ को किस बात का अभिमान था?
उत्तर
महाकवि माघ को अपनी विद्वता का अभिमान था।
प्रश्न 2.
धन और जीवन को क्षणभंगुर क्यों कहा गया है?
उत्तर
धन और जीवन क्षण भंगुर हैं क्योंकि ये दोनों कब नष्ट हो जाएंगे, कहा नहीं जा सकता।
प्रश्न 3.
उद्योगपति ने अनेक कारखाने कैसे स्थापित किए थे?
उत्तर
उद्योगपति ने अनेक कारखाने कुछ तकनीकी और प्रगतिशील विचारों के कारण स्थापित किए।
प्रश्न 4.
कर्ज लेने वाला व्यक्ति जीवन से हार क्यों जाता है?
उत्तर
कर्ज लेने वाला व्यक्ति जीवन से हार जाता है क्योंकि उसका अपना कुछ नहीं होता है।
प्रश्न 5.
भूमि-पूजन का आयोजन क्यों किया गया था?
उत्तर
भूमि-पूजन का आयोजन एक नए कारखाने के आरंभ के लिए किया गया था।
प्रश्न 6.
हम प्रकृति का मान किन-किन रूपों में कर सकते हैं?
उत्तर
हम प्रकृति का मान वृक्षारोपण और पर्यावरण संरक्षण के रूप में कर सकते हैं।
प्रश्न 7.
शास्त्रों ने किन दो को राजा माना है?
उत्तर
शास्त्रों ने यम और इन्द्र को राजा माना है।
विद्या की शोभा विनम्रता दीर्घ-उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
विद्वता की शोभा अहंकार नहीं विनम्रता है’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
विद्वता की शोभा अहंकार नहीं, विनम्रता है; क्योंकि अहंकार से विनम्रता कभी नहीं प्रकट होती है।
प्रश्न 2.
पृथ्वी और नारी को क्षमाशील क्यों कहा गया है?
उत्तर
पृथ्वी और नारी को क्षमाशील कहा गया है; क्योंकि इन दोनों को बोझ नहीं मालूम पड़ती है।
प्रश्न 3.
कवि माघ को वृद्धा के सामने लज्जित क्यों होना पड़ा?
उत्तर
कवि माघ को वृद्धा के सामने लज्जित होना पड़ा क्योंकि उसके तर्क के उत्तर उनके पास नहीं थे।
प्रश्न 4.
प्रकृति को पूजनीय रूप में देखना क्यों जरूरी है?
उत्तर
प्रकृति को पूजनीय रूप में देखने से सम्मान मिलता है।
प्रश्न 4.
प्रकृति को किसका भार अधिक लगता है और क्यों?
उत्तर
प्रकृति को उसके नियमों के विपरीत चलने वालों का भार अधिक लगता है। क्योंकि उसे यह असह्य होता है।
प्रश्न 5.
‘प्रकृति परमात्मा का ही एक रूप है’, इस कवन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘प्रकृति परमात्मा का ही एक रूप है। इस कथन का आशय यह है कि परमात्मा की तरह प्रकृति भी परोपकारी है। वह स्वयं के लिए नहीं, अपितु दूसरों के सुख और आनंद के लिए ही अपना स्वरूप धारण किए हुए है।
विद्या की शोभा विनम्रता भाषा-अनुशीलन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए
सज्जन, आरंभ, प्रसन्न, प्रश्न।
उत्तर
शब्द – विलोम शब्द
सज्जन – दुर्जन
आरंभ – अंत
प्रसन्न – अप्रसन्न
प्रश्न – उत्तर।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए
सूर्य, मनुष्य, पुष्प, पहाड़, पृथ्वी, भू, इन्द्र।
उत्तर
सूर्य – रवि, दिनकर
मनुष्य – मानव, मनुज
पहाड़ – पर्वत, शैल
पृथ्वी – भू, धरती
भू – भूमि, जमीन
इन्द्र – सुरेश, देवराज।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए
(क) प्रकृति को मान दें तो वह आपको सम्मान देगा।
(ख) गाय और बैल घास चर रही हैं।
(ग) कृपया राह बताने की कृपा करें।
(घ) पृथ्वी जड़ नहीं चैतन्य होता है।
उत्तर
(क) प्रकृति को मान दें, तो वह आपको सम्मान देगी।
(ख) गाय और बैल घास चर रहे हैं।
(ग) राह बताने की कृपा करें।
(घ) पृथ्वी जड़ नहीं चैतन्य होती है।
विद्या की शोभा विनम्रता योग्यता-विस्तार
प्रश्न 1. उज्जयिनी के कुछ प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के नाम लिखिए।
प्रश्न 2. ‘पर्यावरण प्रदूषण और हमारा दायित्व’ विषय पर कक्षा में एक परिचर्चा का अयोजन कीजिए।
प्रश्न 3. पर्यावरण दिवस पर अपनी शाला में पौधे लगाइए और बारी-बारी से उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्रा/छात्र अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।
विद्या की शोभा विनम्रता परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘विद्वता की शोभा-विनम्रता’ प्रसंग का प्रतिपाय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘विद्वता की शोभा-विनम्रता’ प्रसंग एक प्रेरक और भाववर्द्धक प्रसंग है। लेखक ने इस प्रसंग के द्वारा उज्जयिनी के महाकवि माघ के चरित्र और आचरण को चित्रित किया है। राजा भोज के साथ महाकवि माघ का राह चलते एक वृद्धा से वार्तालाप कवि की विद्वता को चुनौती देता है। वृद्धा कवि माघ के अभिमानयुक्त पांडित्य को अस्वीकृत करते हुए उन्हें विनम्र और शालीन बनने की सीख देती है। व्यक्ति की विनयशीलता, विनम्र और शालीन आचरण उसकी विशिष्ट पहचान होती है। अपने धन और ज्ञान-वैभव में भी अभिमान रहित रहने वाले लोग संसार में महान बनते हैं।
प्रश्न 2.
‘प्रकृति परमात्मा का स्वरूप’ प्रसंग का प्रतिपाय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘प्रकृति परमात्मा का स्वरूप’ प्रसंग में प्रकृति के महत्त्व को सामने लाने का प्रयास किया गया है। इस प्रसंग के द्वारा प्रकृति को ईश्वर का ही दूसरा स्वरूप कहा गया है। मनुष्य सृष्टि का ही एक अंश है और जब मनुष्य सृष्टि के जड़-चेतन से अपनी तादात्म्य स्थापित कर लेता है तब उसका जीवन सार्थक होता है। यदि मानव अहंकार या घमंड में चूर होकर अपने ज्ञान को ही सर्वश्रेष्ठ मानकर व्यवहार करने लगता है तो वह अपना ही अहित करता है। विद्या तो विनयशीलता से ही सुशोभित होती है। मानव-जीवन प्रकृति प्रदत्त निःशुल्क वरदानों से ही सुखी और संपन्न है। अतः इनके प्रति आदर भाव मानव मात्र का सहज और स्वाभाविक कर्तव्य है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित कथनों के लिए दिए गए विकल्पों में से सही विकल्पों के चयन कीजिए
1. महाकवि माप थे
1. नालंदा के
2. उज्जयिनी के
3. पाटिलपुत्र के
4. कपिलवस्तु के।
उत्तर
(2) उज्जयिनी के
2. महाकवि माय समयकालीन थे
1. राजा भोज के
2. राजा विक्रमादित्य के
3. सम्राट अशोक के
4. राजा नल के।
उत्तर
(1) राजा भोज के
3. माय को अभिमान था
1. विनम्रता का
2. घन का
3. सौदर्य का
4. पाण्डित्य का।
उत्तर
(4) पाण्डित्य को
4. अतिथि होते हैं
1. चार
2. दो
3. तीन
4. पाँच।
उत्तर
(2) दो
5. हारने वाले लोग होते हैं
1. तीन तरह के
2. दो तरह के
3. चार तरह के
4. सात तरह के।
उत्तर
(2) दो तरह के
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों में से उचित शब्दों के चयन से कीजिए। .
1. माघ को अपने पाण्डित्य का बड़ा ……………….. था। (अभिमान, ध्यान)
2. माघ ……………….. के साथ वन-विहार से लौट रहे थे। (मंत्री, राजा भोज)
3. शास्त्रों ने तो यम और इन्द्र को ही……………….. माना है। (शासक, राजा)
4. माष ने कहा, “माँ! हम ……………….. गए। (जान, हार)
5. विद्वता की शोभा अहंकार नहीं ……………….. है। (विनम्रता, पाण्डित्य)
उत्तर
1. अभिमान
2. राजा भोज
3. राजा
4. हार
5. विनम्रता।
प्रश्न 4.
सही जोड़ी का मिलान कीजिए
क्रोध – राम नरेश त्रिपार्टी
उर्वशी – रमानाथ अवस्थी
प्रवासी के गीत – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
आग और पराग – रामचन्द्र शुक्ल
मिलन और स्वप्न – नरेन्द्र शर्मा।
उत्तर
क्रोध- रामचन्द्र शुक्ल
उर्वशी – रामधारी सिंह ‘दिनकर’
प्रवासी के गीत – नरेंद्र शर्मा
आग और पराग – रामनाथ अवस्थी
मिलन और स्वप्न – राम नरेश त्रिपाठी।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्य सत्य हैं या असत्य? वाक्य के आगे लिखिए।
1. माघ को अपने पाण्डित्य का बड़ा अभिमान था।
2. यात्री तो सूर्य और चन्द्रमा दो ही हैं।
3. पृथ्वी जड़ है, चैतन्य नहीं।
4. भूमि-पूजन एक कर्मकांड है।
5. प्रकृति परमात्मा का ही एक रूप है।
उत्तर
- सत्य
- सत्य
- असत्य
- असत्य
- सत्य।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित कथनों का उत्तर एक शब्द में दीजिए।
1. किसको छेड़ने का किसी को साहस न होता?
2. किस पर आदमी आया-जाया करते हैं?
3. सूर्य और चन्द्रमा क्या हैं?
4. धन और यौवन क्या हैं?
5. विद्वता की शोभा क्या है?
उत्तर
- माघ को
- रास्ता पर
- यात्री
- अतिथि
- विनम्रता।
विद्या की शोभा विनम्रता लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
वृद्धा ने माघ को समझाते हुए क्या कहा?
उत्तर
वृद्धा ने माघ को समझाते हुए कहा-“महापंडित, मैं जानती हूँ कि आप माघ हैं, आप महाविद्वान हैं, पर विद्वता की शोभा अहंकार नहीं, विनम्रता है।
प्रश्न 2.
पृथ्वी ने स्वयं क्या कहा है?
उत्तर
पृथ्वी ने स्वयं कहा है कि मुझे पहाड़, तालाब नदियाँ, समुद्र आदि का बोझ नहीं मालूम पड़ता, किंतु जब मेरे ऊपर परद्रोही यानी मेरे नियमों के विपरीत चलने वाला पैर होता है तो मुझे उसका भार अत्यधिक मालूम पड़ता है। भूमिपूजन मात्र एक कर्मकांड नहीं यह सतत चलते रहना चाहिए।
प्रश्न 3.
पर्यावरण और प्रदूषण को सही रूप में समझने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर
पर्यावरण और प्रदूषण को सही रूप में समझने के लिए आवश्यक है कि हम पहले प्रकृति को पूजनीय रूप में देखें।
विद्या की शोभा विनम्रता प्रसंग का सारांश
उज्जयिनी के महाकवि माघ को अपनी विद्वता का बड़ा अभिमान था। एक बार राजा भोज के साथ कहीं जा रहे थे तो एक वृद्धा ने उनकी विद्वता को चुनीती देते हुए कई प्रकार से उन्हें संशय में डाल दिया। अंत में उन्होंने विनयपूर्वक कहा, “माँ हम हार गए! वृद्धा ने कहा, “महानुभाव! संसार में कर्ज लेने वाला या अपना चरित्रबल खो देने वाला ही पराजित होता है। मैं जानती हूँ कि आप माघ हैं और महाविद्वान हैं, लेकिन विद्वता की शोभा अहंकार नहीं विनम्रता है। इसे सुनकर माय लज्जित होकर आगे चल दिए।
संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
महानुभाव! संसार में जो किसी से कर्ज़ लेता है या अपना चरित्र खो देता है, बस हारने वाले दो कोटि के लोग होते हैं।
शब्दार्व-कोटि-श्रेणी।
संदर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी सामान्य’ 10वीं में संकलित ‘विद्या की शोभा विनम्रता’ से है।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने एक वृद्धा के माध्यम से संसार के दो निम्नकोटि के लोगों के बारे में बतलाने का प्रयास किया है। इसके लिए लेखक ने एक
प्रसंग का उल्लेख करते हुए कहा कि
व्याख्या-एक बार महापंडित माघ राजा भोज के साथ कहीं जा रहे थे। उन्होंने एक बुढ़िया को देखकर पूछा कि यह रास्ता कहाँ जाता है? उस बुढ़िया ने उनसे उनका परिचय पूछा। उन्होंने अपना जो कुछ परिचय दिया, उस बुढ़िया ने अपनी तर्क बुद्धि से गलत सिद्ध कर दिया। फिर उसने उन्हें समझाया-महाशय! जो व्यक्ति इस संसार में दूसरे से जो कुछ लेता है या अपने चरित्र-बल को बचा नहीं पाता है, ये दोनों ही जीवन में हार का मुँह देखते हैं।
विशेष-1.
उपर्युक्त गद्यांश प्रेरक और ज्ञानवर्द्धक है।
अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
संसार में हारने वाले कौन होते हैं?
उत्तर
संसार में हारने वाले दो ही होते हैं
- कर्ज लेने वाले या
- अपना चरित्र-बल खोने वाले!
विषय-वस्त पर आधारित प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
उपर्युक्त गयांश का भाव लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त गद्यांश में लेखक ने दूसरों पर निर्भर न होकर चरित्र बल बनाए रखने की सीख दी है।
विद्या की शोभा विनम्रता प्रकृतिक परमात्मा का स्वरूप
विद्या की शोभा विनम्रता प्रसंग का सारांश
उज्जयिनी के महाकवि माघ को अपनी विद्वता का बड़ा अभिमान था। एक बार राजा भोज के साथ कहीं जा रहे थे तो एक वृद्धा ने उनकी विद्वता को चुनीती देते हुए नास्तिकता प्रकट की। उसके दादा ने उसे समझाया कि धरती का निरादर करके वह प्रसन्न नहीं रह सकता। भूमि-पूजन केवल एक कर्मकांड नहीं। इसे हमेशा चलते रहना चाहिए। पर्यावरण और प्रदूषण को सही रूप में समझने के लिए पहले प्रकृति को पूजनीय रूप में देखना पड़ेगा।