MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 3 मीरा के पद

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MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 3 मीरा के पद (मीराबाई)

मीरा के पद पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

मीरा के पद लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘फागुन के चार दिन’ से क्या आशय है?
उत्तर-
‘फागुन के चार दिन’ से आशय बहुत कम रह जाने से है।

प्रश्न 2.
होली में अंबर कैसा हो गया है?
उत्तर-
होली में अंबर उड़ते हुए गुलाल से लाल हो गया है।

प्रश्न 3.
मीरा के प्रभु कौन हैं?
उत्तर-
मीरा के प्रभु गिरिधरनागर श्रीकृष्ण हैं।

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प्रश्न 4.
मीरा को अमोलक धन किसकी कृपा से मिला है?
उत्तर-
मीरा को अमोलक धन उसके सद्गुरु की कृपा से मिला है।

मीरा के पद दीर्घ-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
होली के आनंद में संगीत के साज कैसे बजते हैं?
उत्तर-
होली के आनंद में संगीत के साज करताल के ही समान बजते हैं। वे बिना सुर के ही बजते हैं। इस प्रकार अनहद की झंकार होने लगती है।

प्रश्न 2.
मीरा ने ‘राम रतनधन’ को अमोलक क्यों कहा है?
उत्तर-
मीरा ने ‘राम रतनधन को अमोलक कहा है। यह इसलिए कि इससे सभी प्रकार के सांसारिक बंधन समाप्त हो गए हैं। दूसरी बात यह है कि इसे न तो चोर चुरा सकता है और न यह खर्च करने पर घटती है। यह तो खर्च करने पर बढ़ता ही जाता है।

प्रश्न 3.
‘सत की नाव खेवटिया सद्गुरु’ इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
‘सत की नाव खेवटिया सद्गुरु’ पंक्ति के द्वारा कवियित्री मीराबाई ने यह भाव व्यक्त करना चाहा है कि सद्गुरु की कृपा ईश्वर के समान अद्वितीय होती है। वह सर्वसमर्थ और दया का सागर होता है।

मीरा के पद भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
फागुन, होरी, संतोख, किरपा, हरखि, जस
उत्तर-
शब्द

प्रश्न 2.
पर्यायवाची शब्द लिखिए
अंबर, जग, सागर, कमल।
उत्तर-

प्रश्न 3.
विलोम शब्द लिखिए
यश, आकाश, सुर, दिन,
उत्तर-

मीरा के पद योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
मीराबाई के अन्य पदों को खोजकर उनका कक्षा में सस्वर वाचन कीजिए।
प्रश्न 2. मीराबाई के जीवन से जुड़ी घटनाओं को खोजकर अपनी पुस्तिका में लिखिए।
प्रश्न 3. शिक्षक की सहायता से छत्तीस रागों में से कुछ प्रमुख रागों की सूची बनाइये।
उत्तर-
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

मीरा के पद परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

मीरा के पद अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (क)
अब मन से होली खेल लेना चाहिए। ऐसा कवियित्री ने क्यों कहा है?
उत्तर-
अब मन से होली खेल लेना चाहिए। ऐसा कवियित्री ने इसलिए कहा है कि शायद ऐसा अवसर फिर नहीं मिलेगा।

प्रश्न (ख)
कवियित्री की लोक-लज्जा कब दूर हो गई?
उत्तर-
कवियित्री की लोक-लज्जा तब दूर हुई, जब उसने आनंदमय रस में भीग कर अपने हृदय रूपी घड़े के पट को खोल दिया।

प्रश्न (ग)
1. कवियित्री का प्रियतम कौन है?
उत्तर-
कवियित्री का प्रियतम निर्गुण ब्रह्म श्रीकृष्ण हैं।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों में से उचित शब्द के चयन से कीजिए।

1. फागुन के दिन …………… हैं। (दो, चार)
2. होली खेलत समय बिना करताल के ………………. बज रहे हैं। (ढोल, पखावज)
3. सारा आकाश लाल हो गया है …………… से। (रंग, गुलाल)
4. कवियित्री को अमोलक उसके …………… ने उसे दी। (गुरु, प्रियतम)
5. कवियित्री के स्वामी …………. हैं। (राम, गिरिधरनागर)
उत्तर-
1. चार,
2. पखावज,
3. गुलाल,
4. गुरु,
5. गिरिधरनागर

प्रश्न 3.
दिए गए कथनों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए।
1. अब आ गए हैं
(क) जाड़े के दिन,
(ख) बहार के दिन,
(ग) फागुन के दिन
(घ) छुट्टी के दिन।
उत्तर-
(ग) फागुन के दिन

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2. राग बज रहे हैं
(क) पखावज,
(ख) अनहद,
(ग) झनकार
(घ) छत्तीस।
उत्तर-
(घ) छत्तीस।

3. होली के रंग में रंग गए हैं’
(क) शरीर के रोंगटे,
(ख) गुलाल,
(ग) केशर,
(घ) घर-द्वार।
उत्तर-
(क) शरीर के रोंगटे,

4. राम रूपी रत्न है
(क) मूल्यवान,
(ख) बहुमूल्य,
(ग) अमूल्य,
(घ) असाधारण।
उत्तर-
(ग) अमूल्य,

5. सत्यरूपी नाव के नाविक हैं
(क) भक्त,
(ख) ईश्वर,
(ग) सज्जन,
(घ) सद्गुरु।
उत्तर-
(घ) सद्गुरु।

प्रश्न 4.
सही जोड़ी का मिलान कीजिए।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित कथन सत्य हैं अथवा असत्य? वाक्य के आगे लिखिए
1. मीराबाई रीतिकाल की हैं।
2. मीरा श्रीकृष्ण की उपासिका थीं।
3. श्रीकृष्ण को गिरिधरनागर कहा जाता है।
4. सद्गुरु ईश्वर से छोटा है।
5. मीरा ने लोकलाज का परित्याग नहीं किया था।
उत्तर-
1. असत्य,
2. सत्य,
3. सत्य,
4. असत्य,
5. असत्य।

प्रश्न 6.
एक शब्द में उत्तर दीजिए।
1. होली कैसे खेलनी चाहिए?
2. आकाश में क्या उड़ रहा है?
3. यूँघट के पट खोल देने पर क्या समाप्त हो गए?
4. सत्य की नाव का नाविक कौन है?
5. गिरिधर नागर कौन है?
उत्तर-
1. मन से,
2. गुलाल,
3. लोकलाज,
4. सद्गुरु,
5. श्रीकृष्ण।

मीरा के पद लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न (क)
‘फागुन के दिन चार हैं। इसका क्या आशय है?
उत्तर-
‘फागुन के दिन चार है। इसका आशय है-अब बहुत कम दिन रह गए हैं।

प्रश्न (ख)
कवियित्री ने अपनी पिचकारी में क्या भर लिये हैं?
उत्तर-
कवियित्री ने अपनी पिचकारी में शील और संतोष रूपी केशर के घोल भर लिये हैं।

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प्रश्न (ग) कवियित्री भवसागर से कैसे पार हो गई?
उत्तर-
सत्य की नाव सद्गुरु के खेवे जाने पर कवियित्री भवसागर से पार हो गई।

मीरा के पद कवयित्री-परिचय

जीवन-परिचय-मीराबाई का भक्तिकाल के काव्यधारा के रचनाकारों में लोकप्रिय स्थान है। उनका जन्म राजस्थान के जोधपुर के कुड़की गाँव में सन् 1503 में हुआ था। उनके माता-पिता का निधन उनके बचपन में ही हो गया। उनका विवाह चित्तौड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ था। लेकिन एक साल बाद ही उनके पति का देहांत हो गया। इससे वे संसार से विरक्त हो गईं। फलस्वरूप वे कुल-मर्यादा को छोड़कर भक्त-जीवन को अपनाने लगीं। वे ब्रज की तीर्थ-यात्रा करती हुई वृंदावन में रूप गोस्वामी से मिलकर द्वारिका चली गयीं। वहीं पर उनकी कृष्णोपासना शुरू हुई। फिर वे विरह के पदों की रचना करने लगीं। उनका निधन सत्तर वर्ष की आयु में सन् 1573 के आस-पास हो गया।

रचनाएँ-मीराबाई की रचनाएँ निम्नलिखित हैं

  1. गीत गोविंद का टीका,
  2. नरशी जी की टीका,
  3. फुटकर पद,
  4. राग-सोरठा-संग्रह,
  5. राग-गोविंद,
  6. मीरा की मल्हार,
  7. वर्षा गीत और
  8. मीरा की पदावली।

भाव-पक्ष-मीराबाई की भक्ति-भावना की विविधता है। उनकी भक्ति-भावना दोनों ही प्रकार की है- निर्गुण और सगुण। उनकी निर्गुण भक्ति-भावना निर्गुण संतों की भक्ति-भावना से प्रभावित है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मीरा ने स्वयं को अपने निर्गुण आराध्य के प्रति इतना अधिक समर्पित कर दिया है कि स्वयं उनकी कोई इच्छा नहीं रह गई। मीराबाई के भाव-पक्ष की दूसरी विशेषता है उनकी सगुण भक्ति-भावना। इसके लिए उन्होंने भक्ति के नौ सोपानों को भरपूर अपनाया है। भक्ति के नौ सोपान हैं-श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पद-सेवा, अर्चन, वंदन, दास्य, सख्य और आत्म-निवेदन।

भक्ति के प्रति मीरा का माधुर्य भाव है। वह अत्यंत सहज, स्वाभाविक और मार्मिक है। इसके लिए वे सभी प्रकार के लोक-लाज को छोड़कर नारी स्वभाव के अनुसार भक्ति-भाव प्रकट करती हैं।

कला-पक्ष-मीराबाई का कला-पक्ष विविध है। उसमें स्वाभाविकता है। उनकी पदावली भारतीय भाषाओं और बोलियों की है। उनमें राजस्थानी, गुजराती, ब्रज आदि प्रमुख हैं। मीराबाई की रस-योजना मुख्य रूप से शृंगार है। शृंगार के दोनों रूपों-संयोग और वियोग को उन्होंने पूरा-पूरा स्थान दिया है। कलापक्षीय विशेषताओं में छंद योजना का भी महत्त्व है। इसके लिए मीराबाई ने दोहा, सवैया आदि छंदों को अपनाया है। अलंकारों के प्रयोग में भी मीराबाई सावधान हैं। अनुप्रास, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि उनके प्रिय अलंकार हैं।

साहित्य में स्थान-मीराबाई का कृष्ण भक्ति काव्यधारा की कवयित्रियों में सर्वोच्च स्थान है। उनकी वेदना की फड़क अनुपम है। उनका साहित्य भक्तिकालीन रचनाधारा की एक अमूल्य धरोहर है। उनकी वेदना इतनी सजीव है कि यदि उन्हें करुणा या वेदना की सजीव प्रतिमा माना जाए, तो अनुचित नहीं होगा।

मीरा के पद  पदों के सार

मीराबाई विरचित पहला पद ‘फागुन के दिन बलिहार रे’ में सरस भावों का प्रवाह है। ये प्रवाह कवयित्री का अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के प्रति है। इसके द्वारा कवयित्री ने अपने प्रिय परमात्मा के मिलन के क्षणों को अत्यधिक प्रसन्नता के भावों के साथ व्यक्त करना चाहा है। इसके लिए उसने फागुन में खेली जाने वाली होली के रूप-दृश्य को चित्रित किया है। इसके माध्यम से कवयित्री ने दर्शाया है कि होली में जिस तरह का राग-रंग मनाया जाता है-वैसा ही राग-रंग भक्त के भीतर अपने इष्ट के प्रति अनहद नाद की झनकार, शील और संतोष की केशर और प्रेम की पिचकारी होती है।

मीराबाई विरचित दूसरे पद ‘पायो जी …… जस गायो’ में कवयित्री ने अपने सद्गुरु के दिए हुए राम-नाम को रतन-धन कहकर उसे अमूल्यवान कहा है। यह तो मानों उसके जन्म-जन्म की पूँजी है। इसे न तो चोर चुरा सकता है और न यह खर्च ही होती है। यह तो खर्च करने पर बढ़ती ही जाती है। दूसरे शब्दों में उसका अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण के प्रति है, वह कभी भी समाप्त नहीं होता है। उसका सद्गुरु तो सत की नाव का खेवनहार है। उससे वह संसार रूपी समुद्र से पार हो जाएगी।

मीरा के पद  संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. फागुन के दिन चार रे, होरी खेल मना रे।
बिनि करताल पखावज बाजै, अणहद की झणकार रे।
बिनि सुर राग छतीतूं गावै, रोम-रोम रंग सार रे।
सील संतोख की केसर घोली, प्रेम प्रीति पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे।
घूघट के पट खोल दिये हैं, लोक लाज सब डार रे।
होरी खेरी पीव घर आये, सोई प्यारी प्रिय प्यार रे।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, चरण कंवल बलिहार रे॥

शब्दार्थ-अणहद अनहद। बिनि बिना। छतीसू छत्तीस। संतोख संतोष। पिचकार=पिचकारी। अंबर आकाश। डार छोड़ दिए। खेरी खेल। पीव=प्रियतम। प्यार प्यारा। कवल-कमल। बलिहार-बलिहारी।

संदर्भ-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी सामान्य’ में संकलित मीराबाई विरचित ‘मीरा के पद’ से है।

प्रसंग-इस पद में मीराबाई ने अपने प्रियतम निर्गुण ब्रह्म के साथ होली खेलने का उल्लेख करते हुए कहा है कि

व्याख्या-अब फाल्गुन के दिन आ गए हैं, ये दिन बहुत नहीं रह गए हैं। अब तो ये चार दिन हैं। इसलिए अब मन से होली खेल लेना चाहिए। अन्यथा फिर अवसर न मिलेगा। भाव यह है कि समय अनुसार ही खुशियों को प्रकट किया जा सकता है। होली खेलते समय बिना करताल के ही पखावज बाजे बजने लगते हैं। अनहद की झनकार होने लगती है। बिना सुर अर्थात् स्वर के छत्तीसों राग बज रहे हैं। शरीर के प्रत्येक रोंगटे इस होली के रंग में रंग गए हैं। शील व संतोष रूपी केशर को घोल करके मैंने प्रेम और प्रीति की पिचकारी में इन्हें भर लिया है। इस प्रकार से होली खेलने से सारा आकाश उड़ते हुए गुलाल से लाल हो गया। इसमें विविध प्रकार के प्रेममय रंगों की वृष्टि होने लगी। हृदयरूपी घड़े के पट को मैंने खोल दिया, क्योंकि इस आनंदमय रस में जब मैं भीग गई तो मुझे किसी प्रकार की लोक-लज्जा नहीं अर्थात् मैंने सभी प्रकार की लोक-लज्जा का परित्याग कर दिया था। इस होली के खेल लेने के बाद मैं अपने प्राण-प्यारे के घर आई, तब हम दोनों प्राणरूप से परस्पर प्रिय-प्रिया के रूप में पहले की तरह आनंदमग्न हो गए। मीराबाई कह रही हैं कि कमलवत् चरणों वाले गिरिधरनागर अपने प्राण-प्यारे श्रीकृष्ण के चरणों पर मैं इस तरह बलि जा रही हूँ।

कहने का भाव यह है कि जीवात्मा परमात्मा से मिलने के लिए जब प्रेमपूर्वक प्राणवत् समर्पित हो जाती है, तब उसे परमात्मा का साक्षात्कार अवश्य होता है। वह उसमें लीन होकर अत्यंत आनंद की अनुभूति करती है। फिर उसे इस संसार में आने की कोई आवश्यकता नहीं है।

विशेष-
1. भाषा-राजस्थानी शब्दों की है।
2. शैली चित्रात्मक है।
3. आध्यात्मिक चिंतनधारा है।

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सौंदर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त पद का भाव-सौंदर्य जीवात्मा का परमात्मा से प्रेमपूर्वक और प्राणवत् समर्पित होने का है। जीवात्मा का परमात्मा से मिलने का फागुनी उल्लास देखते. ही बन पा रहा है। इसके माध्यम से कवयित्री का अपने इष्टदेव श्रीकृष्ण के प्रति सोल्लास समर्पित और अनन्य होने के भाव निश्चय ही सराहनीय और हृदयस्पर्शी है।

प्रश्न 2.
मन से क्यों होली खेल लेना चाहिए?
उत्तर-
मन से होली खेल लेना चाहिए। यह इसलिए कि शायद फिर कभी यह मौका न मिले।

प्रश्न 3.
लोकलाज का परित्याग करने के लिए कवयित्री ने क्या किया?
उत्तर-
लोकलाज का परित्याग करने के लिए कवयित्री ने अपने हृदयरूपी घड़े के पट को खोल दिया।

शिल्प-सौंदर्य

प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त पद का शिल्प-सौंदर्य मिश्रित शब्दों से परिपुष्ट है। संयोग शृंगार से भरा हुआ यह पद चित्रमयी शैली से अधिक रोचक बन गया है। अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, स्वभावोक्ति, रूपक आदि अलंकारों से अलंकृत होने के कारण इस पद का प्रभाव बहुत बड़ा है। बिंब और प्रतीक यथास्थान हैं, जो भावों के अनुसार हैं। इस पद की छंद योजना सरल और सहज रूप में होने से अधिक बोधपूर्ण है।।

प्रश्न 2.
‘उड़त गुलाल, लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे। उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर बताइए कि कवयित्री ने किसका चित्रण किया है?
उत्तर-
‘उड़त गुलाल, लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे।’
उपर्युक्त पंक्तियों के आधार पर कवयित्री ने होली खेलने के वातावरण का चित्रण किया है।

प्रश्न 3.
होरी खेरी पीव घर आवे, सोई प्यारी प्रिय प्यार रे।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, चरण कँवल बलिहार रे॥
उपर्युक्त पंक्तियों में अलंकारों को लिखिए।
उत्तर-

  1. होरी खेरी, प्यारी प्रिय प्यार, गिरधर नागर-अनुप्रास अलंकार
  2. चरण कँवल-रूपक अलंकार।

विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त पद में कवियित्री मीराबाई ने अपने अनन्य आराध्य देव श्रीकृष्ण के प्रति सोल्लासपूर्वक अपनी भक्ति-भावना प्रकट की है। उन्होंने अपने सर्वप्रिय परमात्मा श्रीकृष्ण के मिलन के क्षणों को परम प्रसन्न क्षणों के रूप में चित्रित किया है। इसे उन्होंने फागुन में खेली जाने वाली होली के रूप में व्यक्त किया है। इस प्रकार होली के राग-रंग की तरह उन्होंने अपनी भक्ति-भावना को भी अनहद नाद की झनकार शील और संतोष की केशर और प्रेम की पिचकारी के माध्यम से प्रकट किया है। इस तरह पूरा पद आध्यात्मिक भावों से लबालब भरा हुआ है।

प्रश्न 2.
होली कब खेली जाती है?
उत्तर-
होली फागुन के माह में खेली जाती है।

प्रश्न 3.
होली खेलने के बाद क्या हुआ?
उत्तर-
होली खेलने के बाद कवयित्री अपने प्राण प्यारे के घर आई। फिर दोनों आनंदमग्न हो गए।

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2. पायो जी मैं तो राम रतन धन पायो।
वस्तु अमोलक दी मेरे सद्गुरु, करि किरपा अपनायो।
जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सबे खोवायौ।
खरचे नहिं कोई चोर न लवे, दिन-दिन बढ़त सवायौ।
सत की नाव खेवटिया सद्गुरु, भव सागर तरि आयो।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, हरखि-हरखि जस गायौ।।

शब्दार्थ-रतन रत्न। अमोलक-अमूल्य या बहुमूल्य। खोवायो खो दिया। सत=सत्य। खेवटिया खेने वाला। भव-सागर संसार सागर। तरि तर जावे या पार हो जावे। हरखि-हरखि प्रसन्न-प्रसन्न होकर। जस यश।

संदर्भ-पूर्ववत्।

प्रसंग-इस पद में मीराबाई ने राम की प्राप्ति को एक अनमोल रत्न के रूप में प्राप्त होने के प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहा है कि

व्याख्या-मुझे राम रूपी रत्न का धन मिल गया है। यह बहुमूल्य वस्तु हमारे गुरु ने कृपा करके मुझे दी है जिसे मैंने तन-मन से ग्रहण कर लिया है। यह वह संपत्ति है जिसके लिए मैं जन्म-जन्मांतरों से लालायित थी और वह अब मुझे मिल गई है। इस पूँजी को प्राप्त कर लेने पर संसार की सभी वस्तुएँ-सांसारिक बंधन-नष्ट हो गए हैं। यह ऐसी पूँजी है जो खर्च करने पर कम नहीं होती और जिसे चोर नहीं चुरा सकता, बल्कि प्रतिदिन सवाई होती रहती है। मेरी सत्य की नाव है, जिसका खेने वाला (नाविक) सद्गुरु है, इसीलिए मैं इस भवसागर से पार हो गई हूँ। मीरा कहती है कि मेरे स्वामी तो गिरधरनागर हैं, जिनका मैं हर्ष-हर्ष करके यश गाती हूँ।

विशेष-
1. इस पद की भाषा ब्रजभाषा है। ‘म्हारे’ प्रयोग केवल राजस्थानी का है।
2. भावात्मक शैली है।
3. रूपक अलंकार है।

सौंदर्य-बोध पर आधारित प्रश्नोत्तर

(क) भाव-सौंदर्य

प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
उपर्युक्त पद की भाव-योजना प्रेरक रूप में है। सदगुरु को बेजोड़ उपकारी के रूप में प्रस्तुत करके उसके व्यक्तित्व और प्रभाव को ईश्वर के समकक्ष लाने का प्रयास किया गया है। इससे कवियित्री के द्वारा गुरु-मन किए जाने की सच्चरित्रता प्रकट हो रही है। इसके साथ ही कवियित्री द्वारा अपने स्वामी श्रीकृष्ण के प्रति सहर्ष समर्पण के भाव अधिक मोहक और आकर्षक हैं।

प्रश्न 2.
कवियित्री को किससे क्या मिला है?
उत्तर-
कवियित्री को उसके सद्गुरु से रामरूपी अमूल्य रत्न-धन मिला है।

प्रश्न 3.
सद्गुरु का स्वरूप कैसा है?
उत्तर-
सद्गुरु का स्वरूप भवसागर से पार लगाने वाला ईश्वर के समान है।

(ख) शिल्प-सौंदर्य

प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
उपर्युक्त पद का शिल्प-सौंदर्य भाव, भाषा-शैली, बिम्ब, प्रतीक, योजना आदि विधानों से मंडित है। पूरे पद की भाषा ब्रजभाषा की प्रधानता लिये हुए है। इससे प्रस्तुत हुई शब्द-योजना सरल, सहज और प्रवाहमयी हो गयी है। तुकान्त शब्दावली से लय और संगीत का सुंदर मेल हुआ है। भावात्मक शैली और भक्ति रस का संचार इस पद को और अधिक रोचक बना रहे हैं।

प्रश्न 2.
‘जनम-जनम की पूँजी पाई, जग में सवै खवायो।’ उपर्युक्त पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार छाँटिए।
उत्तर-
‘जनम-जनम’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार।

विषय-वस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उपर्युक्त पद का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त पद में कवियित्री ने राम-नाम की महिमा का गायन किया है। सद्गुरु की कृपा से राम रूपी रत्न प्राप्त हुआ है। अब इसे व्यर्थ में नहीं खोया जा सकता है। इसे चोर नहीं चुरा सकते हैं। यह खर्च नहीं होता है बल्कि और बढ़ता जाता है अर्थात् कृष्ण के प्रति किया जाने वाला प्रेम कभी समाप्त नहीं होता। पद में सद्गुरु की महिमा का भी उल्लेख किया गया है।

प्रश्न 2.
उपर्युक्त पद में किसका यशगान किया गया है और क्यों?
उत्तर-
उपर्युक्त पद में कवियित्री मीराबाई द्वारा श्रीकृष्ण का यशगान किया गया है। यह इसलिए कि श्रीकृष्ण उसके इष्टदेव हैं।

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प्रश्न 3.
रामरूपी रत्न-धन की क्या विशेषताएँ हैं?
उत्तर-
रामरूपी रत्न-धन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं

  1. इसको प्राप्त कर लेने पर संसार के सभी प्रकार के बंधन समाप्त हो गए
  2. यह खर्च करने पर घटता नहीं, अपितु बढ़ता ही है। 3. इसे चोर नहीं चुरा सकता है।

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