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MP Board Class 10th Sanskrit Solutions Durva Chapter 14 समयस्य सदुपयोगः (संवादः) (सङ्कलितः)
MP Board Class 10th Sanskrit Chapter 14 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत-(एक पद में उत्तर लिखिए)।
(क) देवदुर्लभं किम्? (देवताओं द्वारा दुर्लभ क्या है?)
उत्तर:
मानवशरीरम् (मनुष्य का शरीर)।
(ख) अन्येषां वस्तूनाम् अपेक्षया अधिकः महत्त्वपूर्णः कः? (अन्य वस्तुओं की अपेक्षा क्या अधिक महत्वपूर्ण है?)
उत्तर:
समयः (समय)
(ग) किं परावर्तयितुं न शक्यते? (क्या लौटाया नहीं जा सकता?)
उत्तर:
समयः (समय)
(घ) जनाः समयस्य दुरुपयोगं कतिधा कुर्वन्ति? (लोग समय का दुरुपयोग कितने प्रकार से करते हैं?)
उत्तर:
द्विधा (दो प्रकार से)
(ङ) निष्क्रियाणां भारं वोढुं का नेच्छति? (निष्क्रिय लोगों का भार कौन नहीं उठाना चाहती?)
उत्तर:
कर्मभूमिः (कर्मभूमि)
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत-(एक वाक्य में उत्तर लिखिए)
(क) मानवजीवनस्य उन्नत्यै अतिमहत्त्वपूर्णं किं भवति? (मानवजीवन की उन्नति के लिए अधिक महत्वपूर्ण क्या होता है?)
उत्तर:
मानवजीवनस्य उन्नत्यै अतिमहत्त्वपूर्ण समयः भवति।। (मानवजीवन की उन्नति के लिए अधिक महत्त्वपूर्ण समय होता है।)
(ख) के अप्रयोजनं गृहे गृहे अटन्ति? (कौन बिना कारण घर-घर भटकते हैं?)
उत्तर:
ये जनाः समयस्य दुरुपयोगं कुर्वन्ति ते अप्रयोजनं गृहे-गृहे अटन्ति। (जो लोग समय का दुरुपयोग करते हैं, वे बिना कारण घर-घर में भटकते हैं।)
(ग) प्रकृतिरपि किं शिक्षयति? (प्रकृति भी क्या सिखाती है?)
उत्तर:
प्रकृतिरपि समयस्य पालनं, कार्यपरायणताम् एव उपदिशति। (प्रकृति भी समय का पालन और कार्यपरायणता का ही उपदेश देती है।)
(घ) कीदृशाः छात्राः उच्चनागरिकाः अभवन्? (कैसे छात्र उच्चनागरिक हुए?
उत्तर:
वे छात्राः क्षणं क्षणं संयोज्य विद्याध्ययने समयस्य सदुपयोगं कृतवन्तः ते उच्चनागरिकाः अभवन्।
(जो छात्र पल-पल जोड़कर विद्याध्ययन में समय का सदुपयोग करते थे, वे उच्चनागरिक बने।)
(ङ) अस्माभिः किं कर्त्तव्यः? (हमारा क्या कर्त्तव्य है?)
उत्तर:
अस्माभिः कर्त्तव्यः यत् आलस्यं विहाय सर्वदैव समयस्य सदुपयोगः कर्त्तव्यः।
(हमें चाहिए कि आलस छोड़कर हमेशा समय का सदुपयोग करें)
प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए)।
(क) जनाः समयस्य दुरुपयोगं कथं कुर्वन्ति? (लोग समय का दुरुपयोग कैसे करते हैं?)
उत्तर:
जनाः समयस्य दुरुपयोगं द्विधा कुर्वन्ति-व्यर्थयापनेन अकार्यकरणेन वा।
(लोग दो प्रकार से समय का दुरुपयोग करते हैं-व्यर्थ में बिताने से और न करने योग्य कार्य को करने से।)
(ख) केषां जन्य निरर्थकं भवति? (किनका जन्म निरर्थक होता है?)
उत्तर:
ये न अध्ययनं कुर्वन्ति न धर्मम् आचरन्ति न धनम् उपार्जयन्ति न वा मुक्तये प्रयासं कुर्वन्ति तेषां जन्म निरर्थकः भवति।
(जो न अध्ययन करते हैं, न धर्म पर चलते हैं, न धन कमाते हैं और न मुक्ति का प्रयास करते हैं, उनका जीवन निरर्थक होता है।)
(ग) के जनाः सर्वत्र तिरस्कृताः भवन्ति? (कौन लोग सब जगह तिरस्कृत होते हैं?)
उत्तर:
ये समयस्य दुरुपयोगं कुर्वन्ति, ते सर्वत्र तिरस्कृताः भवन्ति। (जो समय का दुरुपयोग करते हैं, वे सब जगह तिरस्कृत होते हैं।)
प्रश्न 4.
प्रदत्तशब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयत (दिए गए शब्दों से रिक्त स्थान भरिए-)
(निष्क्रियाणां, समयः, कार्य, सहयोगम्, तनयं)
(क) अन्येषां वस्तूनाम अपेक्षया अधिकः महत्त्वपूर्णः वर्तते।
उत्तर:
समयः।
(ख) कर्मभूमिः ………………. भारं वोढुम् नेच्छति।
उत्तर:
निष्क्रियाणां।
(ग) पितरौ अपि एतादृशं ………………. नाभिनन्दतः।
उत्तर:
तनयं।
(घ) ………………. वा साधयामि।
उत्तर:
कार्य।
(ङ) सर्वे एव तेषां ………………. इच्छन्ति
उत्तर:
सहयोगम्।
प्रश्न 5.
यथायोग्यं योजयत-(उचित क्रम से मिलाइए-)
उत्तर:
(क) 3
(ख) 4
(ग) 1
(घ) 5
(ङ) 2
प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
(शुद्ध वाक्यों के सामने ‘आम्’ और अशुद्ध वाक्यों के सामने ‘न’ लिखिए)
(क) अस्माभिः समयस्य सदुपयोगः कर्त्तव्यः।
(ख) परिश्रमः अस्माकं जीवनस्य उन्नत्यै भवति।
(ग) मानवशरीरं देवदुर्लभं नास्ति।
(घ) भगवान् शङ्कराचार्यः अहोरात्रं परिश्रमं कृतवान्।
(ङ) कार्यकालमतिपातयेत्।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) आम्
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) न
प्रश्न 7.
अधोलिखितशब्दानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनञ्च लिखत
(नीचे लिखे शब्दों के मूलशब्द, विभक्ति और वचन लिखिए)
उत्तर:
प्रश्न 8.
अधोलिखितपदानां सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धिनाम लिखत
(नीचे लिखे पदों के सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम लिखिए-)
उत्तर:
प्रश्न 9.
अधोलिखितपदानां समासविग्रहं कृत्वा समासनाम लिखत
(नीचे लिखे पदों के विग्रह कर समास का नाम लिखिए)
उत्तर:
प्रश्न 10.
रेखाङ्कितपदानाधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत
(रखाङ्कित पदों के आधार पर प्रश्न बनाइए-)
(क) समयः अधिकमहत्त्वपूर्णः अस्ति। (समय अधिक महत्त्वपूर्ण है।)
उत्तर:
(क) कः अधिकमहत्त्वपूर्णः अस्ति? (क्या अधिक महत्त्वपूर्ण है?)
(ख) केचिज्जनाः समयस्य दुरुपयोगं कुर्वन्ति। (कुछ लोग समय का दुरुपयोग करते हैं)
उत्तर:
कोचेज्जनाः कस्य दुरुपयोगं कुर्वन्ति? (कुछ लोग किसका दुरुपयोग करते हैं?)
(ग) पितरौ तनयं नाभिनन्दतः। (माता-पिता पुत्र से खुश नहीं होते)
उत्तर:
कौ तनयं नाभिनन्दतः? (कौन पुत्र से खुश नहीं होते?)
(घ) सर्वे एव तेषां सहयोगमिच्छन्ति। (सभी उनका सहयोग करना चाहते हैं।
उत्तर:
सर्वे एव केषां सहयोगमिच्छन्ति? (सभी किनका सहयोग करना चाहते हैं?)
(ङ) एकमपि क्षणं व्यर्थं न यापनीयम्। (एक भी क्षण व्यर्थ नहीं गँवाना चाहिए)
उत्तर:
(एकमपि किं व्यर्थं न यापनीयम्?) (एक भी क्या व्यर्थं नहीं गँवाना चाहिए?)
योग्यताविस्तारः –
ये महापुरुषाः समयस्य सदुपयोगं कृत्वा देशहिताय समाजहिताय धर्महिताय वा कार्याणि कृतवन्तः तेषां नामानि अन्विष्य लिखत।
जो महापुरुष समय का सदुपयोग करके देश, धर्म व समाज के हित के लिए कार्य करते थे उनके नाम ढूँढ़कर लिखो।
एवमेव मानवजीवनोपयोगिविषयोपरि संवादलेखनं कुरुत।
ऐसे ही मानव जीवन के उपयोगी विषय पर संवाद लिखो।
समयस्य सदुपयोगः पाठ का सार
प्रस्तुत पाठ में संवाद के माध्यम से समय के महत्त्व के विषय में चर्चा की गई है। आचार्य छात्रों को समय का सदुपयोग करने की शिक्षा दे रहे हैं, जिससे वे समय का महत्त्व जानकर उन्नति कर सकें।
समयस्य सदुपयोगः पाठ का अनुवाद
1. आचार्यः-छात्राः! मानवजीवनस्य उन्नत्यै अतिमहत्त्वपूर्णं किं भवति?
छात्राः-परिश्रमः, अध्ययन, परोपकारः, समयः इत्यादयः।
आचार्यः :
आम् मानवजीवनस्य उन्नत्यै विभिन्नानि महत्त्वपूर्णाङ्गानि सन्ति किन्तु तेषु समयस्य सदुपयोगः अर्थात् सत्सु कार्येषु उपयोगः महत्वपूर्णः वर्तते।
छात्राः कथम् एतत्?
आचार्यः :
समयो हि अन्येषां वस्तूनाम् अपेक्षया अधिकः महत्त्वपूर्णः अधिकश्च मूल्यवान वर्तते। अन्यानि वस्तूनि विनष्टानि पुनरपि लब्धुं शक्यते; परं समयो विनष्टो न केनापि उपायेन पुनः परावर्तयितुं शक्यन्ते यस्य आयुषो यावान् अंशः निरर्थकः गतः सः गतः एव।
शब्दार्थाः :
उन्नत्यौ-उन्नति के लिए-for progress; सत्सु-अच्छे में-in noble; विनष्टानि-नष्ट होने पर-on being wasted; लब्धुम्-प्राप्त करने योग्य-attainable; परावर्तयितुम्-लौटाने के लिए-io return, revive.
अनुवाद :
आचार्य-छात्रो! मानवजीवन की उन्नति के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण क्या होता है?
सभी छात्र-परिश्रम, अध्ययन, परोपकार, समय आदि।
आचार्य :
हाँ, मानव जीवन की उन्नति के लिए विभिन्न महत्त्वपूर्ण अङ्ग हैं, लेकिन उनमें समय का सदुपयोग अर्थात् अच्छे कार्यों में उपयोग महत्त्वपूर्ण है।
सभी छात्र-यह कैसे?
आचार्य :
समय ही अन्य वस्तुओं की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण और अधिक मूल्यवान है। अन्य सभी वस्तुएँ नष्ट होने पर फिर प्राप्त करने योग्य हो सकती हैं, परन्तु समय नष्ट होने पर किसी भी उपाय से फिर लौटाया नहीं जा सकता। जिसकी आयु का जो अंश बेकार हो गया वह गया ही!
English :
Besides labour, study and welfare of others, time is of great importance-Cannot be regained by any means on being lost like other objects.
Time once gone (wasted) is gone (wasted) for ever.
2. छात्राः-जनाः समयस्य दुरुपयोगं कथं कथं कुर्वन्ति?
आचार्यः :
जनाः द्विधा समयस्य दुरुपयोगं कुर्वन्ति-व्यर्थयापनेन अकार्यकरणेन च। अनेके जनाः कार्यसम्पादने समर्था अपि निरर्थकं समयं यापयन्ति। इतो भ्रमन्ति ततो भ्रमन्ति अप्रयोजनं गृहे गृहे अटन्ति। न ते स्वार्थाय एव किञ्चित् कार्यं कुर्वन्ति न वा परार्थाय एव । देवदुर्लभमिदं मानवशरीरं लब्ध्वापि ये न अध्ययनं कुर्वन्ति न धर्मम् आचरन्ति न धनम् उपार्जयन्ति न वा मुक्तये प्रयासं कुर्वन्ति तेषां जन्म निरर्थकं भवति तथा इयं कर्मभूमिः एतादृशानां निष्क्रियाणां भारं वोढुं नेच्छति।।
छात्राः-आचार्य! ये जनाः जीवने समयस्य सदुपयोगं न कुर्वन्ति ते को क्षतिम् अनुभवन्ति?
शब्दार्थाः :
द्विधा-दो प्रकार से-in two ways; यापनेन-बिताने से-by spending; अटन्ति-घूमते हैं-wander; परार्थाय-दूसरे के लिए-for others; उपार्जयन्ति-कमाते हैं-earn; वोढुम्-ढोने के लिए-to bear; क्षतिम्-नुकसान-harm.
अनुवाद :
सभी छात्र-लोग समय का दुरुपयोग कैसे-कैसे करते हैं?
आचार्यः :
लोग दो प्रकार से समय का दुरुपयोग करते हैं-व्यर्थ में बिताने से और न करने योग्य कार्य करने से। बहुत से लोग कार्य करने में समर्थ होते हुए भी बेकार में समय बिताते हैं। इधर घूमते हैं, उधर घूमते हैं, बिना किसी कारण घर-घर घूमते (भटकते) हैं। न तो वे अपने लिए ही कुछ करते हैं और न ही दूसरों के लिए। देवताओं द्वारा भी दुर्लभ इस मानव शरीर को प्राप्त करके भी ये सब न अध्ययन करते हैं, न धर्म का आचरण करते हैं, न धन कमाते हैं और न ही मुक्ति के लिए प्रयास करते हैं। उनका जन्म निरर्थक होता है और यह कर्मभूमि ऐसे लोगों का भार ढोने की इच्छा नहीं करती।
सभी छात्र-आचार्य! जो लोग जीवन में समय का सदुपयोग नहीं करते उन्हें क्या नुकसान होते हैं?
English :
Some people wander from place to place aimlessly. Some waste time in useless pursuits-do nothing fruitful for self or others-useless birth-mother earth doesn’t desire to bear their burden such people suffer a lot.
3. आचार्यः-ईदृशान् जनान् केऽपि न रोचयन्ति न वा कश्चित् आश्रयमेव दातुमिच्छति। स यत्रैव गच्छति ततः एव बहिष्क्रियते सर्वत्र च तिरस्कृतो भवति। किमधिंक पितरौ अपि एतादृशं तनयं नाभिनन्दतः का पुनरन्येषां बन्धुबान्धवानां वार्ता।
छात्राः-आचार्य! ये जनाः जीवने समयस्य सदुपयोगं कुर्वन्ति तेषां जीवनं कथं भवति?
आचार्यः :
ये जनाः कदापि समयस्य दुरुपयोगं न कुर्वन्ति सदैव कार्यसंलग्नाः तिष्ठन्ति न च परिश्रमात् आत्मानं गोपयन्ति तेषां सुखेन दुर्वाहो भवति। ते यत्रैव गच्छन्ति तत्रैव सादरं रक्ष्यन्ते गृहे बहिश्च सर्वत्रैव समानरूपेण अभिनन्द्यन्ते। सर्वे एवं तेषां सहयोगमिच्छन्ति। तादृशाः एव च कर्मवीराः जनाः समाजे सर्वत्र समाद्रियन्ते श्रेष्ठपदं च लभन्ते।
छात्राः-आचार्य! समयस्य सदुपयोगः जनाः काम् उन्नतिं प्राप्नुवन्ति?
शब्दार्थाः :
ईदृशान्-ऐसे-such; तनयम्-पुत्र को-son; गोपयन्ति-छिपाते हैं-hide; दुर्वाहो-ढोने में कठिन-difficulty in bearing; तादृशाः-वैसे-such.
अनुवाद :
आचार्य-ऐसे लोग किसी को भी अच्छे नहीं लगते और न कोई आश्रय ही देना चाहता है। वह जहाँ भी जाता है वहीं से निकाला जाता है और सब जगह उसका तिरस्कार होता है। अधिक क्या, माता-पिता भी ऐसे पुत्र से खुश नहीं होते, तो फिर अन्य बन्धु-बान्धवों की क्या बात।
सभी छात्र-आचार्य! जो लोग जीवन में समय का सदुपयोग करते हैं, उनका जीवन कैसा होता है?
आचार्य :
जो लोग कभी समय का दुरुपयोग नहीं करते, सदा ही कार्य में लगे रहते हैं और परिश्रम से जी नहीं चुराते उनका सुख ढोने में कठिन (बहुत ज्यादा) होता है। वे जहाँ भी जाते हैं, वहीं उनकी आदरपूर्वक रक्षा होती है। घर में और बाहर सब ओर समान रूप से अभिन्नदन होता है। सभी उनका सहयोग करना चाहते हैं। और वैसे ही कर्मवीर लोग समाज में सब जगह आदर पाते हैं और श्रेष्ठपद प्राप्त करते हैं।
सभी छात्र-आचार्य! समय के सदुपयोग से लोग कौन-सी उन्नति प्राप्त करते हैं?
English :
Nobody likes or lodges them-insulted everywhere. Others utilise time-busy themselves, in laborious deeds-never shirk work-get respect everywhere-greeted equally–held in high position-such people make progress.
4. आचार्यः :
शृण्वन्तु-अद्यावधि ये ये महापुरुषाः जगति प्रसिद्धाः अभवन् तेषां जीवनचरित्रस्य अध्ययनेन ज्ञायते यत् ते बाल्यकालादेव अहोरात्रं कर्मपरायणा आसन् एकमपि क्षणं निरर्थकं नहि नीतवन्तः। “कार्यं वा साधेयम् देहं वा पातेयम्” इत्येव तेषां लक्ष्यं बभूव। एतस्मात् एव कारणात् अद्यापि गृहे गृहे तेषां गौरवगाथा गीयते आदर्शपुरषाश्च मन्यन्ते। यदि भगवान् शङ्कराचार्यः अहोरात्रं परिश्रमं न अकरिष्यत् समस्तेऽपि भारते दिवानिशं न अभ्रमिष्यत्, स्थले स्थले विरोधिनां सिद्धान्तंन अखण्डयिष्यत् तर्हि पुनः भारते वैदिकधर्मस्य प्रचारः न अभविष्यत्। गान्धिसुभाषचन्द्र-चन्द्रशेखरादयः भारतीयाः कठिनपरिश्रमेण समयस्य सदुपयोगं कृत्वा गौराङ्गजनान् देशात् बहिः कृतवन्तः स्वराजं च प्राप्तवन्तः तथा च ये छात्राः क्षणं क्षणं संयोज्य विद्याध्ययने समयस्य सदुपयोगं कृतवन्तः ते एव विद्वान्सः उच्चनागरिकाः, अधिकारिणः वा अभवन्।
छात्राः-आचार्य! प्रकृतिरपि किं समयस्य पालनं शिक्षयति?
शब्दार्थाः :
अद्यावधि-आज तक-uptil today; पातेयम्-गिराना-make to fall (die); दिवानिशम-दिन रात-day and night; अखण्डयिष्यत्-खण्डन न किया होता-abrogated; गौराङ्ग-गोरे लोग, अंग्रेज-Englishmen.
अनुवाद :
आचार्यः-सुनो-आज तक जो महापुरुष, जगत में प्रसिद्ध हुए हैं, उनके जीवन चरित्र के अध्ययन से पता चलता है कि ये बचपन से ही दिन-रात कर्मपरायण थे, एक भी क्षण बेकार नहीं जाने दिया। “या कार्य सिद्ध करो या शरीर का पतन” यही उनका लक्ष्य था। इसी कारण से आज भी घर-घर में उनकी गौरवगाथा गाई जाती है और वे आदर्श पुरुष माने जाते हैं। यदि भगवान् शङ्कराचार्य दिन-रात परिश्रम न करते, पूरे भारत में दिन-रात न घूमते, जगह-जगह पर विरोधी सिद्धान्तों का खण्डन न करते, तो भारत में फिर से वैदिक धर्म का प्रचार नहीं होता। गाँधी, सुभाषचन्द्र, चन्द्रशेखर आदि भारतीयों ने कठिन परिश्रम से समय का सदुपयोग करके अंग्रेजों को देश से बाहर किया और स्वराज्य प्राप्त किया। और जिन छात्रों ने क्षण-क्षण जोड़कर विद्याध्ययन में समय का सदुपयोग किया, वे ही विद्वान, उच्च नागरिक और अधिकारी हुए।
छात्रः-आचार्य! क्या प्रकृति भी समय का पालन करना सिखाती है?
English :
World renowned noble persons never wasted a single second-believed in ‘do or die’-are known as ideals. Shankaracharya preached Vedic religion by abrogating opposing principles,-Subhash, Gandhi, Chandrashekhar made the Britishers Quit India and obtained self rule–such people became good citizens who utilised every second of time.
5. आचार्यः-आम् ‘प्रकृतिरपि समयस्य पालनं, कार्यपरायणताम् एव उपदिशति निरन्तरम्’। प्रकृतौ यावन्तः पदार्थाः सृष्टाः सन्ति ते सर्वेऽपि अहोरात्रं कार्यसंलग्ना एव दृश्यन्ते। सूर्य-चन्द्राभ्याम् आरभ्य कीट-पतङ्ग-पिपीलिका-पर्यन्तं सर्वेऽपि स्व स्व व्यापारे व्यापृताः विलोक्यन्ते। अतः प्रकृत्या अपि इयमेव शिक्षा दीयते यत् नहि केनापि समयस्य अनुपयोगः कर्त्तव्यः इति।
अतः अस्माभिः आलस्यं विहाय सर्वदैव समयस्य सदुपयोगः कर्त्तव्यः न तु कदाचित् एकमपि क्षणं व्यर्थं यापनीयम्। यथोक्तम् –
“न कार्यकालमतिपातयेत्”।
शब्दार्थाः :
पिपीलिका-चींटी-ant; व्यापृताः-व्यस्त-busy; आपनीयम्-बिताना चाहिए-should be spent, अतिपातयेत-नष्ट करें-waste.
अनुवाद :
सभी छात्र-आचार्य! प्रकृति भी क्या समय के पालन की शिक्षा देती है?
आचार्य :
हाँ, ‘प्रकृति भी समय के पालन और कार्यपरायणता का सदा ही उपदेश देती रहती है।” प्रकृति में जितने भी पदार्थ बने हैं, वे सभी दिन-रात कार्य में लगे हुए दिखाई देते हैं। सूर्य-चन्द्रमा से लेकर कीड़े-पतंगे चींटी तक सभी अपने-अपने काम में व्यस्त दिखाई देते हैं। इसलिए प्रकृति से यही शिक्षा मिलती है कि किसी के द्वारा भी समय का अनुपयोग नहीं करना चाहिए।
अतः हमें भी आलस छोड़कर सदैव समय का सदुपयोग करना चाहिए, न कि कभी एक भी क्षण व्यर्थ में बिताना चाहिए। जैसे कि कहा है
काम का समय नष्ट नहीं करना चाहिए।
English :
Nature also gives lessons of honouring time and devotion to duty-All objects of nature are-always engaged inward no object of nature teaches misuse of time. Never waste time meant for work.