MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 11 पौधों में परिवहन
पौधों में परिवहन NCERT प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
विसरण की दर को कौन-से कारक प्रभावित करते हैं ?
उत्तर:
विसरण की दर सांद्रता की प्रवणता, उन्हें अलग करने वाली झिल्ली की पारगम्यता, ताप तथा दाब से प्रभावित होती है।
प्रश्न 2.
पोरीन क्या है ? विसरण में ये क्या भूमिका निभाते हैं ?
उत्तर:
पोरीन एक प्रकार का प्रोटीन है जो प्लास्टिड, माइटोकॉन्ड्रिया तथा बैक्टीरिया की बाह्य झिल्ली में बड़े आकार के छिद्रों का निर्माण करती है ताकि झिल्ली में से होकर प्रोटीन के अणु गुजर सके।
प्रश्न 3.
पादपों में सक्रिय परिवहन के दौरान प्रोटीन पंप के द्वारा क्या भूमिका निभायी जाती है ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सक्रिय अवशोषण (Active absorption):
सक्रिय अवशोषण, अवशोषण की वह विधि है, जिसमें कोशिकीय या उपापचयी या श्वसन ऊर्जा का उपयोग होता है। सामान्यतः पादप कोशिकाओं में विभिन्न खनिजों की सान्द्रता बाह्य वातावरण से अधिक होती है फिर भी खनिज तत्व, लवण तथा आयन्स सान्द्रता प्रवणता के विपरीत वातावरण से कोशिका के अन्दर अवशोषित होते रहते हैं और इस क्रिया में उपापचयी ऊर्जा का उपयोग भी होता रहता है। विभिन्न प्रयोगों से अब स्पष्ट हो चुका है कि खनिज तत्वों का अवशोषण सक्रिय विधि द्वारा ही होता है।
सक्रिय अवशोषण किस प्रकार होता है इसे समझने के लिये अनेक वैज्ञानिकों ने अपने मत दिये हैं। इन मतों के अनुसार कोशिका के चारों तरफ स्थित लिपो प्रोटीन झिल्ली स्वतन्त्र आयनों के लिये अपारगम्य होती हैं। इस झिल्ली में कुछ वाहक पाये जाते हैं, जो झिल्ली के अन्दर ही गति करते रहते हैं बाह्य खनिज तत्व या लवण इन्हीं वाहकों से कोशिका की बाह्य सतह पर सम्बद्ध हो जाते हैं और ये वाहक इन्हें कोशिका की आन्तरिक सतह अर्थात जीवद्रव्य में छोड़ देते हैं यह क्रिया लगातार चलती रहती है और खनिज तत्व कोशिका के अन्दर अवशोषित होते रहते हैं। प्रोटीन पंप झिल्ली से गुजरकर पदार्थों को ले जाने के लिए ऊर्जा का उपयोग करती है।
प्रश्न 4.
शुद्ध जल का सबसे अधिक जल विभव क्यों होता है ? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जल के अणुओं में गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) पायी जाती है। तरल एवं गैसीय अवस्थाओं में जल के अणुओं की गति अनियमित तेज एवं नियंत्रित दोनों तरह की होती है। किसी भी तंत्र में जल की सांद्रता अधिक होने पर उसकी गतिज ऊर्जा या जल विभव भी अधिक होगी। इसलिए शुद्ध जल का जल विभव सबसे अधिक होगा।जल विभव को ग्रीक प्रतीक चिन्ह psi (साई) या से प्रकट किया जाता है। दाब में इसकी इकाई पास्कल (Pa) होती है।
प्रश्न 5.
निम्न के बीच अंतर स्पष्ट कीजिए
- परासरण एवं विसरण
- वाष्पोत्सर्जन एवं वाष्पीकरण
- परासरी दाब तथा परासरी विभव
- विसरण एवं अंतःशोषण
- पादपों में पानी के अवशोषण का एपोप्लास्ट एवं सिमप्लास्ट पथ
- बिन्दुस्त्राव एवं परिवहन (अभिगमन)।
उत्तर:
(1) परासरण और विसरण में अन्तर –
परासरण (Osmosis):
- परासरण की क्रिया के लिए अर्द्ध पारगम्य झिल्ली आवश्यक है।
- यह केवल तरल विलायक के अणुओं द्वारा संपन्न होती है।
- इस क्रिया में विलायक के अणुओं का स्थानान्तरण होता है।
- यह क्रिया विलेय के विभव पर आश्रित है।
- इस क्रिया की गति धीमी होती है।
विसरण (Diffusion):
- इसमें अर्द्ध पारगम्य झिल्ली की आवश्यकता नहीं है।
- विसरण की क्रिया ठोस, गैस एवं द्रव सभी के लिए लागू होती है।
- इस क्रिया में विलेय और विलायक दोनों के अणुओं का स्थानान्तरण होता है।
- यह क्रिया विलेय के विभव पर आश्रित नहीं है।
- इस क्रिया की गति तीव्र होती है।
(2) वाष्पोत्सर्जन एवं वाष्पीकरण में अन्तर –
वाष्पोत्सर्जन (Transpiration):
- वाष्पोत्सर्जन एक जैविक क्रिया है।
- वाष्पोत्सर्जन केवल सजीव पौधों में होता है।
- पानी पौधों के वायवीय भागों में विशेष कर पत्तियों की सतह से वाष्प के रूप में बाहर निकलता है।
- वाष्पोत्सर्जन क्रिया रक्षक-कोशिकाओं द्वारा नियंत्रित रहती है।
- इसमें हानि हुए पानी की पूर्ति अवशोषण द्वारा की जा सकती है।
वाष्पीकरण (Evaporation):
- वाष्पीकरण एक भौतिक क्रिया है।
- यह सजीव एवं निर्जीव दोनों में ही होती है।
- पानी पौधे की किसी भी सतह से वाष्प के रूप में बाहर निकलता है।
- वाष्पीकरण क्रिया रक्षक-कोशिकाओं द्वारा नहीं होती है।
- वाष्पीकरण क्रिया में यह सम्भव नहीं है।
(3) परासरी दाब एवं परासरी विभव में अन्तर –
परासरी दाब (Osmotic pressure):
- जब दो अलग-अलग सांद्रता वाले विलयनों को अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा अलग किया जाता है तब उस विलयन में घुलनशील विलेय के कारण एक दाब उत्पन्न होता है। जिसे परासरण दाब कहते हैं।
- परासरण दाब एक धनात्मक दाब है।
परासरी विभव (Osmotic potential):
परासरण विभव पानी की उस मात्रा के बराबर होता है जो कि विलेय के दबाव को कम कर सके। परासरी विभव का मान ऋणात्मक होता है।
(4) विसरण एवं अंतःशोषण:
विसरण (Diffusion) – उपर्युक्त बिन्दु (1) के उत्तर का अवलोकन कीजिए।
अन्तः शोषण (Imbibition):
- यह एक विशेष प्रकार का विसरण है, जिसमें शुष्क पदार्थ जल का अवशोषण कर फूल जाते हैं।
- यह रसारोहण (Ascent of sap) में सहायक है।
(5) पादपों में पानी के अवशोषण का एपोप्लास्ट और सिमप्लास्ट पथ:
एपोप्लास्ट पथ (Apoplast pathway) – कोशिका भित्ति के द्वारा बिना किसी झिल्ली को पार किए होने वाली जल की गति का पथ एपोप्लास्ट पथ कहलाता है। सिमप्लास्ट पथ (Symplast pathway) – जल की प्लास्मोडेस्मेटा (Plasmodesmata) की सहायता से होने वाले गति का पथ,सिमप्लास्ट पथ कहलाता है।
(6) बिन्दुस्त्राव एवं परिवहन:
बिन्दुस्त्राव (Guttation) –
- कई पौधों की पत्तियों के अग्रस्थ अथवा किनारों से पानी बूंदों के रूप में निकलता है। पानी की इस तरह की हानि को बिन्दुस्त्राव कहा जाता है।
- यह उन परिस्थितियों में होता है जब अवशोषण तेजी से हो रहा हो व वाष्पोत्सर्जन की गति कम हो।
- यह प्रायः रात्रि में होता है।
परिवहन (Transportation):
- पादपों के अन्दर पदार्थों का गमन परिवहन कहलाता है।
- यह दो विधियों:
- विसरण एवं
- परासरण की विधियों द्वारा होता है।
- पौधों की बाह्य वायुवीय सतहों, रन्ध्र एवं वातरन्ध्रों की सहायता से जल की अतिरिक्त मात्रा वाष्प के रूप में बाहर परिवहित होती है।
- परासरण की विधि द्वारा अर्द्ध पारगम्य झिल्लियों के सापेक्ष पदार्थों के कण एक कोशिका से दूसरी कोशिका में गमन करते हैं।
प्रश्न 6.
जल विभव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। कौन-से कारक इसे प्रभावित करते हैं ? जल विभव, विलेय विभव तथा दाब विभव के आपसी संबंधों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जल अधिक स्वतंत्र ऊर्जा वाले क्षेत्र से कम स्वतंत्र ऊर्जा वाले क्षेत्र की ओर गमन करता है। जल की यह गति ऊर्जा के विभव (Potential) के अनुसार होती है। शुद्ध जल की स्वतंत्र ऊर्जा सबसे अधिक होती है, परन्नु विलेय डालने पर यह कम हो जाती है। शुद्ध जल के अणुओं की स्वतंत्र ऊर्जा और दूसरे किसी भी तंत्र (जैसे-चीनी के विलयन में जल के अणु) में जल के अणुओं के बीच के अंतर को जल विभव कहा जाता है।
शुद्ध जल का विभव सबसे अधिक अर्थात् शून्य (0) माना जाता है। विलेय डालने पर चूँकि जल विभव कम हो जाता है, अतः विलयन का जल विभव हमेशा शून्य से कम यानि ऋणात्मक चिन्ह (-) से दर्शाया जाता है। इस न्यूनता का कारण एक विलेय के द्रवीकरण के कारण है जिसे विलेय विभव कहा जाता है। विलेय विभव का प्रतीक ψs होता है। ψs हमेशा ऋणात्मक होता है।
जब विलेय के अणु अधिक होते हैं तो ψs अधिक ऋणात्मक होगा। वायुमंडलीय दबाव पर विलेय या घोल का जल विभव ψs = विलेय विभव ψs होता है। जब विसरण के कारण पौधे की कोशिका में जल प्रवेश करता है तब वह कोशिका को स्फीत (फुला) बना देता है तथा दाब विभव को बढ़ा देता है। दाब विभव धनात्मक होता है। दाब विभव को , से प्रकट किया जाता है। कोशिका का जल विभव, विलेय और दाब विभव दोनों से प्रभावित होता है। इन दोनों के बीच संबंध इस प्रकार होता है –
ψw = ψs + ψp
प्रश्न 7.
तब क्या होता है जब शुद्ध जल या विलयन पर पर्यावरण दाब की अपेक्षा अधिक दाब लागू किया जाता है ?
उत्तर:
यदि किसी शुद्ध जल या विलयन में पर्यावरण दाब (Atmospheric pressure) की अपेक्षा अधिक दाब लागू किया जाता है तो तब उसका जल विभव बढ़ जाता है। इसका मान एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पम्प किये गये जल के बराबर होता है। पादपों में जब जल के अणु कोशिका में प्रवेश करता है तब दाब आरोपित करता है। विसरण क्रिया के कारण कोशिका भित्ति पर दाब लगता है। यह कोशिका को स्फीत (फुला) देता है। यह क्रिया दाब विभव (Pressure potential) को बढ़ा देता है । दाब विभव सामान्यतः धनात्मक (Positive) होता है। दाब विभव को ψp से प्रकट किया जाता है।
प्रश्न 8.
- रेखांकित चित्र की सहायता से पौधों में जीवद्रव्यकुंचन की विधि का वर्णन उदाहरण देकर कीजिए।
- यदि पौधे की कोशिका को उच्च जल विभव वाले विलयन में रखा जाये तो क्या होगा?
उत्तर:
(1) जीवद्रव्यकुंचन (Plasmolysis):
जब किसी कोशिका को ऐसे घोल में रखा जाता है, जिसकी सान्द्रता कोशिका रस से ज्यादा होती है, तब कोशिका के कोशिका द्रव्य के रिक्तिका का जल परासरित होकर बाहर आने Cell Wall लगता है, जिसके कारण कोशिका का कोशिकाद्रव्य संकुचित हो जाता है। जीवद्रव्य के इसी संकुचन को जीवद्रव्यकुंचन कहते हैं।
जीवद्रव्यकुंचन एक ऐसी घटना है, जो केवल जीवित कोशिकाओं द्वारा ही प्रदर्शित की जाती है। यदि किसी जीवद्रव्यकुंचित कोशिका को आसुत जल में रखा जाये तो वह अन्तःपरासरण के कारण पूर्ववत् हो जाती है। अगर कोई कोशिका कुछ देर तक जीवद्रव्यसंकुचन की अवस्था में रहे तो उसकी मृत्यु हो जाती है।
(2) जब कोशिका को अल्पपरासरी विलयन (Hypotonic solution):
में रखा जाता है तो कोशिका में जल विसरित होता है तथा जीवद्रव्य कोशिका भित्ति के विरुद्ध दाब डालता है जिसे स्फीति दाब (Turgid pressure) कहा जाता है। कोशिका के अन्दर जल के विसरण से जीवद्रव्य का भित्ति के विरुद्ध दाब Protoplasm को दाब विभव (ψp ) भी कहते हैं। कोशिका भित्ति (Cell wall) की दृढ़ता के कारण कोशिका नहीं फटती है। यह स्फीति दाब अंततः कोशिका के विस्तार एवं फैलाव के लिए उत्तरदायी होता है।
प्रश्न 9.
पादप में जल एवं खनिज के अवशोषण में माइकोराइजलीय (कवक मूल सहजीवन) संबंध किस प्रकार सहायक होते हैं ?
उत्तर:
जब दो जीव एक साथ रहकर परस्पर इस प्रकार का जीवनयापन करते हैं, कि इससे दोनों को फायदा होता है, तब ऐसे पौधों को सहजीवी पादप (Symbiotic plants or Symbionts) तथा इस प्रकार के पोषण सम्बन्ध को सहजीवी पोषण (Symbiotic nutrition) कहते हैं। उदाहरण-कवकमूल (Mycorrhiza) आदि।
निओशिया एक आर्किड है जो वनों की ह्यूमसयुक्त मृदा में उगता है। इसका तना मोटा तथा पीला होता है जिस पर नहीं के बराबर पत्तियाँ लगी होती हैं। इनकी जड़ों में मूलरोम नहीं पाये जाते। इनकी जड़ें जब कवकों के सम्पर्क में आती हैं तो कवकमूल का निर्माण करती हैं। यह माइकोराइजा (कवकमूल) भोज्य पदार्थों को अवशोषित करती है। माइकोराइजा जड़ के साथ कवकों का सहजीवी संगठन है। ये कवक जड़ को जल एवं खनिज लवण उपलब्ध कराते हैं और बदले में जड़ें भी माइकोराइजा को शर्करा तथा नाइट्रोजन युक्त यौगिक प्रदान करते हैं।
प्रश्न 10.
पादप में जल परिवहन हेतु मूलदाब क्या भूमिका निभाता है ?
उत्तर:
पौधों में जड़ों के द्वारा एक धनात्मक दाब आरोपित किया जाता है जिसे मूलदाब (Root pressure) कहा जाता है। इस दाब के कारण भूमिगत जल तने में कुछ ऊँचाई तक चढ़ पाता है।
मूल रोमों द्वारा अवशोषित जल परासरणी क्रिया (OSmotic activities) द्वारा कॉर्टिकल कोशिकाओं (Cortical cells) में पहुँचता है जिससे वे आशून (Turgid) हो जाती हैं, इस आशूनता के कारण जो दाब उत्पन्न होता है उसे मूलदाब (Root pressure) कहते हैं। इस दाब के फलस्वरूप जल जाइलम वाहिनियों (Xylem vessels) में प्रवेश कर ऊपर बढ़ता है।
प्रयोग (Experiment):
मूलदाब का प्रदर्शन-मूल दाब नापने के लिए एक शाक, जैसे-सूर्यमुखी, टमाटर या जीनिया का गमले में लगा पौधा ले लिया जाता है। गमले की मिट्टी से स्टैण्ड 4-6 सेमी ऊपर पौधे के तने को काटकर रबर नली द्वारा मैनोमीटर गमला से जोड़ दिया जाता है। मैनोमीटर में पारे का तल ज्ञात कर लेते हैं। 4-5 घण्टे बाद हम देखते हैं कि पारे का तल बढ़ जाता है जो मूल दाब को प्रदर्शित करता है।
प्रश्न 11.
पादपों में जल परिवहन हेतु वाष्पोत्सर्जन खिंचाव मंडल की व्याख्या कीजिए।वाष्पोत्सर्जन क्रिया को कौन-सा कारक प्रभावित करता है, पादपों के लिए कौन उपयोगी है ?
उत्तर:
वाष्पोत्सर्जी खिंचाव (Transpiration pull):
तेजी से वाष्पोत्सर्जन करने वाली पत्तियों से पानी वाष्प के रूप में वायुमण्डल को स्थानान्तरित होता रहता है। इस प्रकार पत्तियों के द्वारा पानी की हानि होती है। इस पानी की कमी के कारण पर्णमध्योतक (Mesophyll) की कोशिकाओं का परासरणी सान्द्रण (Osmotic concentration) बढ़ जाता है।
इस कारण पत्ती के जाइलम पर पानी की माँग के लिये तनाव पड़ना शुरू हो जाता है। पत्ती के जाइलम को पानी तने से व तने को स्वयं जड़ से पानी की पूर्ति की जाती है, इसलिए स्वाभाविक रूप से पत्ती का जाइलम पानी की माँग को तने से जड़ तक स्थानान्तरित कर देता है और इसी कारण जड़ें अधिक पानी का अवशोषण करने लगती हैं।
पानी के अणुओं पर परस्पर आकर्षण का बल तथा जाइलम वाहिनियों व पानी का आसंजी बल (Adhesive force) मिलकर भारी खिंचाव [इस तनाव की स्थिति में (वाष्पोत्सर्जन जनित)] उत्पन्न कर सकते हैं जो कि आसानी से 100 atm. का हो सकता है। इसी बल के कारण जिसे वाष्पोत्सर्जी खिंचाव (Transpiration pull) कहते हैं, पानी सरलतापूर्वक जड़ से पत्तियों तक एक अविरल धारा के रूप में पहुँचता रहता है। वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक-वाष्पोत्सर्जन को निम्नलिखित दो कारक प्रभावित करते हैं
(A) बाह्य कारक (External factors):
वे कारक हैं जो पादप शरीर से बाहर स्थित होते हैं। वाष्पोत्सर्जन को अग्रलिखित बाह्य कारक प्रभावित करते हैं –
(1) आर्द्रता – वायुमण्डलीय आर्द्रता बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन कम होता है तथा घटने से यह क्रिया बढ़ जाती है, इसलिए बरसात में कम तथा गर्मियों में यह क्रिया अधिक होती है।
(2) ताप – ताप बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन बढ़ता है, परन्तु एक सीमा के बाद जल की कमी के कारण रन्ध्र बन्द हो जाते हैं, पौधा मुरझा जाता है।
(3) वायु – तेज वायु से यह क्रिया बढ़ जाती है, परन्तु यदि वायु (Air) नम है, झील या समुद्र की ओर से आ रही तब यह क्रिया घट जाती है।
(4) प्रकाश – प्रकाश का वाष्पोत्सर्जन पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इस कारण से यह क्रिया तेज होने लगती है क्योंकि –
- प्रकाश में रन्ध्र खुल जाते हैं
- प्रकाश के कारण ताप बढ़ता है।
(5) वायुमण्डलीय दाब-इस दाब के अधिक होने पर यह क्रिया मन्द गति से होती है तथा दाब कम होने पर (पहाड़ों पर) क्रिया तेज होती है।
(B) आन्तरिक कारक (Internal factors):
पादप शरीर के वह प्रमुख आन्तरिक कारक हैं जो वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करते हैं। पत्तियों की निम्नलिखित रचनाएँ वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करती हैं
- पत्तियों की बाहरी सतह पर मोटी क्यूटिकल या मोम जमा हो जाने से वाष्पोत्सर्जन कम होगा
- रन्ध्रों के ऊपरी सतह पर रोमों के होने से वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है
- पत्तियों का छोटा होना, मुड़ी हुई होना
- पत्तियों में स्पंजी पैरेनकाइमा की कमी से वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है
- रन्ध्रों के बन्द एवं खुलने पर भी वाष्पोत्सर्जन निर्भर करता है।
प्रश्न 12.
पादप जाइलम रसारोहण के लिए जिम्मेदार कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जाइलम रस (Xylem sap) का वाष्पोत्सर्जित रूप से ऊपर चढ़ना मुख्य रूप से पानी के निम्न भौतिक गुणों पर निर्भर करता है –
- ससंजन – जल के अणुओं के बीच आपसी आकर्षण बल।
- आसंजन – जल के अणुओं का ध्रुवीय सतह की ओर आकर्षण।
- पृष्ठ तनाव – पानी के अणु का द्रव अवस्था में गैसीय अवस्था की अपेक्षा एक-दूसरे से अधिक आकर्षित होना।
पानी के अणु एक – दूसरे से अत्यन्त बलपूर्वक बँधे रहते हैं जो कि ओषजन और उद्जन के परमाणुओं में परस्पर आकर्षण के कारण सम्भव हो जाता है। इसी कारण पानी के अणुओं में प्रबल आकर्षण होता है। जिससे ये आसानी से एक-दूसरे से पृथक् नहीं किये जा सकते। इसके अलावा पानी के अणु, जाइलम वाहिनियों से भी अत्यन्त दृढ़तापूर्वक चिपके रहते हैं, इसलिए पौधों की जाइलम वाहिनियों में जल का निरन्तर प्रवाह (Continuous stream) बना रहता है।
एक मोटे अनुमान के अनुसार पानी का परस्पर आकर्षण का बल लगभग 350 atm. के बराबर होता है, जबकि ऊँचे पेड़ को पानी पहुँचाने हेतु 30 atm. के बल को अनेक वैज्ञानिकों ने पर्याप्त माना है। इस तरह पानी का आकर्षण बल अधिक ऊँचे पेड़ों में भी ‘सैप’ को ऊपर चढ़ाने के लिए आवश्यक न्यूनतम बल से बहुत ज्यादा होता है।
प्रश्न 13.
पादपों में खनिज अवशोषण के दौरान अंतःत्वचा की आवश्यक भूमिका क्या होती है ?
उत्तर:
सभी जड़ों की अंत:त्वचा (Endodermis) की प्लाज्मा झिल्ली में बहुत से स्थानान्तरण करने वाले प्रोटीन (Transport protein) धंसे रहते हैं। ये प्रोटीन विलेय के केवल कुछ कणों को ही झिल्ली के आरपार जाने देते हैं। अंत:त्वचा की कोशिकाओं में पाये जाने वाले स्थानान्तरण करने वाले प्रोटीन (Transport protein) पादप कोशिकाओं को विलेय पदार्थ के अणुओं को चयन करने योग्य बना देती है। पादप कोशिकाएँ इन प्रोटीनों के द्वारा विलेय पदार्थ के अणुओं की गुणवत्ता एवं आकार का चयन कर पाती है तथा भूमि से केवल अवशोषित करने वाले अणुओं को ही ग्रहण करती है। ये खनिज एवं आयनों की मात्रा तथा प्रकार का नियंत्रण करती है।
प्रश्न 14.
जाइलम परिवहन एकदिशीय तथा फ्लोएम परिवहन द्विदिशीय होता है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
फ्लोएम में भोज्य पदार्थों का परिवहन द्विदिशीय (Bi-directional) अर्थात् ऊपर एवं नीचे की ओर होता है। आहार मुख्यतः फ्लोएम के शर्करा वाहिका ऊतक द्वारा उद्गम (Origin) से कुण्ड (Sink) की ओर परिवहनित (Transport) किया जाता है । उद्गम या स्रोत पौधे का वह हिस्सा है जहाँ आहार या भोजन संश्लेषित होता है, जैसे-पत्तियाँ। कुण्ड (Sink) वह भाग है जहाँ भोजन एकत्र होता है। लेकिन यह स्रोत और कण्ड अपनी भूमिकाएँ मौसम एवं जरूरत के अनुसार बदल भी सकते हैं।
जड़ों में एकत्र की गई शर्करा बसंत के आरंभ में आहार का स्रोत बन जाती है। इस समय पादपों पर नई कलियाँ कुण्ड का कार्य करती हैं। चूँकि स्रोत और कुण्ड का संबंध परिवर्तनशील है, अतः गति की दिशा ऊपर या नीचे की ओर अर्थात् दो तरफा हो सकती है। जाइलम में क्रिया इसके विपरीत है जहाँ परिवहन सदैव नीचे से ऊपर की ओर एक दिशा (Unidirectional) में होती है। जड़ के अन्तः त्वचा (Endodermis) में सुबेरिन का स्तर पाया जाता है जिसके कारण आयनों का सक्रिय परिवहन (Active transport) एक दिशा में हो पाता है।
प्रश्न 15.
पादपों में शर्करा के स्थानान्तरण के दाब प्रवाह परिकल्पना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मुंच परिकल्पना:
पौधों में खाद्य पदार्थों की स्थानान्तरण की सबसे अधिक मान्य परिकल्पना को मुंच ने प्रतिपादित किया था। इसके अनुसार, भोजन का परिवहन पत्तियों एवं जड़ों में परासरण दाब द्वारा होता है। इसके लिए पंक्तिबद्ध चालनी नलिकाओं का जीवद्रव्य, जीवद्रव्यक वलनों के द्वारा एक सतत् प्रणाली बनाता है, जिससे घुलित पदार्थों का संवहन एक अविरल धारा के रूप में होता है।
इस परिकल्पना के अनुसार, पत्ती में प्रकाश-संश्लेषण के फलस्वरूप इनकी कोशिकाओं में घुलित पदार्थों की सघनता बढ़ जाती है, जिससे उसके परासरण दाब में अत्यधिक वृद्धि होती है। अधिक दबाव के कारण मीजोफिल कोशिकाएँ जायलम से पानी अवशोषित करके स्फीत (Turgid) हो जाती हैं और कोशिकाओं का स्फीत दबाव (Turgid pressure) अत्यन्त बढ़ जाता है।
इस दाब के कारण भोज्य पदार्थों सहित कोशिका रस चालनी नलिकाओं में से होकर नीचे की ओर प्रवाहित होने लगता है। दूसरी ओर जड़ों की कोशिकाओं अथवा फिर संचयन अंगों में घुलन पदार्थों के उपयोग में आने के कारण इन कोशिकाओं में परासरण दाब कम हो जाता है और यहाँ स्फीत दाब भी कम हो जाता है।
एक सिरे पर अधिक दाब होने से तथा अन्तिम सिरे पर कम दाब होने के कारण स्फीत दाब प्रवणता (Turgid pressure gradient) उत्पन्न हो जाती है और घुलित पदार्थों सहित कोशिका रस की एक विरल धारा नीचे की ओर प्रवाहित होती है। अन्तिम सिरे पर परासरण दाब के कारण यह धारा जड़ों की जायलम वाहिकाओं में वितरित हो जाती है, जहाँ से जल जायलम के द्वारा पुनः पत्तियों को संवाहित हो जाती है।
प्रश्न 16.
वाष्पोत्सर्जन के दौरान रक्षक द्वार कोशिका खुलने व बंद होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर:
वाष्पोत्सर्जन की क्रियाविधि या रन्ध्रों के खुलने तथा बन्द होने की क्रियाविधि (Mechanism of opening and closing of Stomata)-द्वार (रक्षक) कोशिका (Guard cell) की भित्ति असमान मोटाई वाली होती है। जब यह कोशिका स्फीत (Turgid) होती है, तब रन्ध्र का छिद्र खुलता है व ढीली (Flacid) हो जाने पर बन्द हो जाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि द्वार कोशिकाएँ अपने आस-पास की कोशिकाओं से पानी का अवशोषण कर स्फीत हो जाती हैं।
तब इस अवस्था में इन कोशिकाओं की पतली भित्तियाँ फैलती हैं, जिसके कारण छिद्र के पास वाली मोटी भित्ति (बाहर की ओर) खिंचती है फलतः रन्ध्र खुल जाता है तथा वायु के सम्पर्क में आते ही जल जलवाप्प के रूप में विसरण द्वारा वायु में पहुँच जाता है। द्वार कोशिकाओं से जल हानि होते ही, उनकी आशूनता (Turgidity) समाप्त हो जाती है तथा वे अपनी पूर्वावस्था में आ जाती हैं और रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। इस प्रकार रन्ध्रों का खुलना एवं बन्द होना रक्षक कोशिकाओं की आशूनता पर निर्भर होता है।
जब दो जीव एक साथ रहकर परस्पर इस प्रकार का जीवनयापन करते हैं, कि इससे दोनों को फायदा होता है, तब ऐसे पौधों को सहजीवी पादप (Symbiotic plants or Symbionts) तथा इस प्रकार के पोषण सम्बन्ध को सहजीवी पोषण (Symbiotic nutrition) कहते हैं। उदाहरण-कवकमूल (Mycorrhiza) आदि।
निओशिया एक आर्किड है जो वनों की ह्यूमसयुक्त मृदा में उगता है। इसका तना मोटा तथा पीला होता है जिस पर नहीं के बराबर पत्तियाँ लगी होती हैं। इनकी जड़ों में मूलरोम नहीं पाये जाते। इनकी जड़ें जब कवकों के सम्पर्क में आती हैं तो कवकमूल का निर्माण करती हैं। यह माइकोराइजा (कवकमूल) भोज्य पदार्थों को अवशोषित करती है। माइकोराइजा जड़ के साथ कवकों का सहजीवी संगठन है। ये कवक जड़ को जल एवं खनिज लवण उपलब्ध कराते हैं और बदले में जड़ें भी माइकोराइजा को शर्करा तथा नाइट्रोजन युक्त यौगिक प्रदान करते हैं।
पौधों में परिवहन अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
पौधों में परिवहन वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –
1. वाष्पोत्सर्जन होता है –
(a) स्टोमेटा द्वारा
(b) लेन्टीसेल द्वारा
(c) क्यूटिकल द्वारा
(d) उपर्युक्त सभी के द्वारा।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी के द्वारा।
2. रन्ध्र दिन में खुलते हैं क्योंकि रक्षक कोशिकाओं की –
(a) बाह्य भित्ति पतली होती है
(b) वृक्काकार होते हैं
(c) हरित लवक होते हैं
(d) वृहत् केन्द्रक होते हैं।
उत्तर:
(a) बाह्य भित्ति पतली होती है
3. वाष्पोत्सर्जन में किसके कारण वृद्धि होती है –
(a) उच्च आर्द्रता
(b) मृदा में नमी
(c) उच्च तापक्रम
(d) धीमा वायु वेग।
उत्तर:
(c) उच्च तापक्रम
4. वाष्पोत्सर्जन की दर का मापन होता है –
(a) फोटोमीटर द्वारा
(b) पोरोमीटर द्वारा
(c) पोटोमीटर द्वारा
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) पोटोमीटर द्वारा
5. जब तापक्रम में वृद्धि होती है तो वाष्पोत्सर्जन की दर –
(a) बढ़ती है
(b) घटती है
(c) वाष्पोत्सर्जन रुकता है
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) घटती है
6. स्टोमेटा बंद होता है, जलाभाव के कारण यह स्थिति उत्पन्न होती है –
(a) साइटोकाइनिन बनने से
(b) ऑक्सिन बनने से
(c) इथाइलीन बनने से
(d) एब्सिसिक एसिड बनने से।
उत्तर:
(b) ऑक्सिन बनने से
7. निम्नलिखित में से कौन-सा कारण है वाष्पोत्सर्जन की दर कम होने का –
(a) वायु प्रवाह
(b) तापक्रम में वृद्धि
(c) प्रकाश की तीव्रता कम होना
(d) पौधों का जल अवशोषण।
उत्तर:
(c) प्रकाश की तीव्रता कम होना
8. निम्न में से किस प्रकार का स्टोमेटा केवल पत्तियों की निचली सतह पर पाया जाता है –
(a) एपिल टाइप
(b) पोटैटो टाइप
(c) ओट टाइप
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) पोटैटो टाइप
9. निम्न में से किस प्रकारकास्टोमेटा केवल पत्तियों की दोनों सतहों पर समान रूप से पाया जाता है –
(a) एपिल टाइप
(b) पोटैटो टाइप
(c) ओट टाइप
(d) वाटर लिली टाइप।
उत्तर:
(c) ओट टाइप
10. संकन (Sunken) स्टोमेटा की उपस्थिति किस प्रकार के पौधों का लक्षण है –
(a) मरुद्भिद्
(b) जलोद्भिद्
(c) समोद्भिद्
(d) बीजाणोद्भिद्
उत्तर:
(c) समोद्भिद्
11. एक पूर्णतः स्फीत कोशिका का स्फीत दाब बराबर होता है –
(a) परासरण दाब
(b) अंत:शोषण दाब
(c) विसरण दाब
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) परासरण दाब
12. पौधों की कोशिकाओं में जल विभव धनात्मक होता है –
(a) वाष्पोत्सर्जन में
(b) निम्न वाष्पोत्सर्जन में
(c) उच्च अवशोषण में
(d) बिन्दुस्राव में।
उत्तर:
(c) उच्च अवशोषण में
13. निम्न में से कौन ब्लैकमेन का सीमाकारक है –
(a)CO2
(b) प्रकाश
(c) (a) और (b) दोनों
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
14. वाष्पोत्सर्जन की दर किस पर निर्भर करती है –
(a) तापक्रम
(b) वाष्पदाब
(c) ऋणात्मक TP
(d) DPD
उत्तर:
(c) ऋणात्मक TP
15. क्या होगा जब किसी पादप कोशा को नमक के सान्द्र विलयन में रखा जाय –
(a) जीवद्रव्यकुंचन
(b) स्फीति
(c) कुंचन
(d) जीवद्रव्य विकुंचन।
उत्तर:
(a) जीवद्रव्यकुंचन
16. मूलदाब का कारण है –
(a) निष्क्रिय अवशोषण
(b) सक्रिय अवशोषण
(c) वाष्पोत्सर्जन की वृद्धि
(d) प्रकाश संश्लेषण की दर में वृद्धि।
उत्तर:
(b) सक्रिय अवशोषण
17. पोटोमीटर का उपयोग किसके मापन के लिए किया जाता है –
(a) अवशोषण दर
(b) प्रकाश संश्लेषण दर
(c) पौधे के वायवीय भागों से जल की हानि
(d) फोटोट्रॉपिज्म।
उत्तर:
(c) पौधे के वायवीय भागों से जल की हानि
18. बिन्दु स्रावण में जल का स्राव होता है –
(a) स्टोमेटा से
(b) जलरन्ध्र से
(c) घाव से
(d) लेन्टीसेल से।
उत्तर:
(b) जलरन्ध्र से
19. द्वार कोशाओं की कौन-सी भित्ति मोटी होती है –
(a) बाह्य
(b) आंतरिक
(c) पाश्र्वीय
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(b) आंतरिक
20. जब एक कोशिका साम्यावस्था में होती है तो –
(a) DPD=0
(b) DPD=TP
(c) OP=TP
(d) DPD=OP
उत्तर:
(b) DPD=TP
21. किसी पादप कोशा को शुद्ध जल में रखने पर क्या होगा –
(a) स्फीति
(b) श्लथ
(c) जीवद्रव्यकुंचन
(d) अपारगम्य।
उत्तर:
(a) स्फीति
22. कोशिका जीवद्रव्यकुंचन का आरम्भ करने के लिए नमक का घोल होना चाहिए –
(a) समपरासरी
(b) अतिपरासरी
(c) अल्पपरासरी
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) अतिपरासरी
23. परासरण का तात्पर्य –
(a) घुलित कणों का विसरण उच्च सान्द्रता से निम्न सान्द्रता की दिशा में
(b) घुलित कणों का विसरण निम्न सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की दिशा में
(c) जल का विसरण उच्च सान्द्रता से निम्न सान्द्रता की दिशा में
(d) जल का विसरण निम्न सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की दिशा में।
उत्तर:
(d) जल का विसरण निम्न सान्द्रता से उच्च सान्द्रता की दिशा में।
24. बिन्दु स्रावण किसके कारण होता है –
(a) वाष्पोत्सर्जन
(b) परासरण
(c) मूलदाब
(d) परासरण दाब।
उत्तर:
(c) मूलदाब
25. एक कोशिका से दूसरी कोशिका में जल के प्रवाह की दिशा एवं जल के स्थानांतरण की दर किस पर निर्भर होती है –
(a) WP
(b) TP
(c) DPD
(d) प्रारंभिक जीवद्रव्यकुंचन।
उत्तर:
(c) DPD
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
- DPD = OP ………………….
- जलरन्ध्रों के नीचे उपस्थित गुहा को …………….. कहते हैं।
- पर्ण सिरे पर उपस्थित छिद्रों के द्वारा बूंदों के रूप में जलहानि को …………….. कहते हैं।
- परासरण क्रिया में विलायक का विसरण …………….. द्वारा होता है।
- एक पूर्ण स्फीति कोशिका का DPD हमेशा …………….. होता है।
- किसी विलयन का DPD उसकी सान्द्रता के …………….. होता है।
- वाष्पोत्सर्जन की दर मापक यंत्र को ……………. कहते हैं।
- जल एवं खनिज लवणों का अभिगमन …………….. द्वारा होता है।
- …………….. एक प्रकार का प्रोटीन है जो प्लाज्मिड तथा बैक्टीरिया की बाह्य झिल्ली में बड़े आकार के छिद्रों का निर्माण करती है।
- …………….. एक प्रकार का विसरण है।
उत्तर:
- TP
- एपीथेम
- बिन्दुस्रावण
- अर्धपारगम्य झिल्ली
- शून्य
- समानुपाती
- पोटोमीटर
- जाइलम
- पोरीन
- अंतः शोषण।
प्रश्न 3.
उचित संबंध जोड़िए –
उत्तर:
- (b) स्टोमेटा
- (c) हायडेथोड
- (d) चोटग्रस्त भाग
- (e) एपीथेम
- (a) अर्धपारगम्य झिल्ली
उत्तर:
- (d) टीफेन हेल्स
- (e) रेनर
- (a) प्रीस्टले
- (b) मैल्पीघी
- (c) गोडलेवस्की
पौधों में परिवहन अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जड़ें भूमि से किस जल को अवशोषित करती हैं ?
उत्तर:
जड़ें भूमि से केशिकत्व जल (Capillary water) का अवशोषण करती हैं।
प्रश्न 2.
जड़ का कौन-सा भाग जल अवशोषण में भाग लेता है ?
उत्तर:
जड़ में उपस्थित मूल रोम भाग (Root hair zone) से जल का अवशोषण होता है।
प्रश्न 3.
बिन्दुस्रावण किसे कहते हैं ?
उत्तर:
बिन्दुस्रावण (Guttation):
कई पौधों की पत्तियों के अग्रस्थ भागों अथवा किनारों से पानी बूंदों के रूप में जल रन्ध्रों (Hydrothodes) से स्रावित होता है। पानी की बूँदों के रूप में हानि या स्राव को बिन्दुस्रावण कहते हैं।
प्रश्न 4.
अर्द्धपारगम्य झिल्ली किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वह झिल्ली जिसके द्वारा विलायक के अणु आर-पार आ जा सकते हैं, किन्तु विलेय के अणु आरपार नहीं जा पाते। अर्द्धपारगम्य झिल्ली कहलाती है। उदाहरण-अण्डों की झिल्ली।
प्रश्न 5.
जल का स्थानान्तरण पौधे के किस ऊतक के द्वारा होता है ?
उत्तर:
पौधों में जल एवं खनिज लवणों का स्थानान्तरण जाइलम के द्वारा होता है।
प्रश्न 6.
वाष्पोत्सर्जन खिंचाव क्या है ?
उत्तर:
पौधे के वायवीय भागों द्वारा लगातार वाष्पोत्सर्जन द्वारा जल हानि के कारण जल के लिए उत्पन्न हुए खिंचाव को ही वाष्पोत्सर्जन खिंचाव (Transpiration pull) कहते हैं।
प्रश्न 7.
म्लानि का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
म्लानि (Wilting):
पौधे के मुलायम भागों जैसे पत्ती एवं शिशु शाखा में वाष्पोत्सर्जन के कारण आशूनता (Turgidity) में हुई कमी है, जिसके कारण पत्तियाँ एवं शाखाएँ मुरझाकर झुक जाती हैं।
प्रश्न 8.
परासरण दाब क्या है ?
उत्तर:
यह वह अधिकतम दाब है, जो कि किसी परासरण तंत्र में विलायक के प्रवेश के कारण उत्पन्न होता है। वह दाब जो कि किसी परासरणीय रूप से सक्रिय तंत्र में परासरण क्रिया को रोकने के लिये लगाया जाता है उसे ही परासरण दाब कहते हैं।
प्रश्न 9.
प्रतिवाष्पोत्सर्जक क्या है ?
उत्तर:
ऐसे पदार्थ जो कि गैसीय आदान-प्रदान को बिना प्रभावित किये ही वाष्पोत्सर्जन की दर को कम कर देते हैं उन्हें ही प्रतिवाष्पोत्सर्जक कहते हैं। उदाहरण–फेनिल मरक्यूरिक ऐसीटेट।
प्रश्न 10.
D. P.D. क्या है ?
उत्तर:
एक निश्चित ताप एवं दाब पर किसी विलयन (Solution) एवं उसके शुद्ध विलायक के विसरण दाब में अंतर को ही विसरण दाब में न्यूनता या चूषण दाब (Diffusion Pressure Deficit, D.P.D. or Suction pressure, S.P.) कहते हैं। सांद्रता के बढ़ने से D.PD. का मान भी बढ़ जाता है। इसी प्रकार सांद्रता कम होने पर उस विलयन के D.P.D. का मान भी कम हो जाता है। अत: किसी विलयन का D.P.D. उस विलयन की सांद्रता के समानुपाती होता है। D.P.D. शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मेयर (Meyer, 1938) ने किया था।
प्रश्न 11.
रसारोहण क्या है ?
उत्तर:
रसारोहण वह क्रिया है, जिसमें जाइलम वाहिनियों के द्वारा जड़ द्वारा अवशोषित जल व खनिज पदार्थों को गुरुत्वाकर्षण के विपरीत पौधों में ऊँचाई तक पहुँचाया जाता है।
पौधों में परिवहन लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
परासरण दाब, स्फीत दाब, चूषण दाब या विसरण दाब न्यूनता में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
उत्तर:
परासरण दाब (O.P.), स्फीत दाब (T.P.), चूषण दाब (S.P. या D.P.D.) में सम्बन्ध-इन सम्बन्धों पर विचार करते समय 0.P. व T.P. के आपसी सम्बन्धों पर भी पुनर्विचार करना उपयुक्त होगा। हमें यह बराबर ख्याल रखना चाहिए कि O.P. व T.P. एक-दूसरे से पूर्णत: अलग-अलग दाब हैं। O.P. वह अधिकतम दाब है, जो कि कोशिका में उत्पन्न हो सकता है, जबकि वह D.P.M. से घिरी हो। T.P. वह वास्तविक दबाव है, जो कोशिका भित्ति पर पड़ता है।
T.P. हमेशा O.P. से कम होता है। विशेष परिस्थितियों में यह 0.P. के बराबर हो सकता है पूर्ण आशून अवस्था (Fully turgid condition), मगर इसका मान O.P. से अधिक नहीं होगा। जब तक कोई कोशिका पूर्ण रूप में स्फीत नहीं हो जाती, वह पानी का चूषण कर सकती है, जिसे हम S.P. के नाम से जानते हैं। इस प्रकार स्फीत कोशिका (Turgid cell) व ढीली कोशिका (Flaccid cell) में S.P का मान निम्नांकित समीकरणों के अनुसार होगा।
सामान्य अवस्था में S.P. = 0.P. – T.P.
स्फीत अवस्था में T.P. =O.P; S.P. =Zero
ढीली अवस्था में O.P = S.P; T.P. =Zero.
प्रश्न 2.
परासरण क्या है ? परासरण क्रिया का पौधों के लिए क्या महत्व है ?
उत्तर:
परासरण (Osmosis):
जब दो विभिन्न सान्द्रता वाले घोलों को एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली द्वारा अलग कर दिया जाता है, तो कम सान्द्रता वाले घोल से पानी या अन्य घोलक अधिक सान्द्रता वाले घोल की ओर झिल्ली से होकर विसरण करने लगते हैं, यह क्रिया ही परासरण कहलाती है। अतः परासरण वह क्रिया है, जिसमें जल या दूसरे विलायकों के अणु अधिक सान्द्रता (स्वयं की सान्द्रता) से कम सान्द्रता की ओर विसरण करते हैं।
यह क्रिया तब तक होती रहती है जब तक कि दोनों तरफ के विलयन समान सान्द्रता के न हो जायें। जब किसी शरीर या कोशिका में परासरण के समय जल या किसी दूसरे विलायक के अणु बाहर से शरीर या कोशिका में आते हैं तो इस परासरण को अन्तःपरासरण (Endo – osmosis), लेकिन जब यही क्रिया विपरीत होती है, तो उसे बाह्य परासरण (Exo – osmosis) कहते हैं।
परासरण का महत्व (Importance of Osmosis):
- मूल रोम (Root hairs) भूमि से पानी का अवशोषण (Absorption of water) परासरण क्रिया द्वारा करते हैं।
- मूल रोमों के एक कोशिका से दूसरी कोशिका (Cell to cell) में पानी का जाना इसी क्रिया पर निर्भर है।
- परासरण के कारण पानी के अवशोषण से कोशिकाएँ स्फीत (turgid) हो जाती हैं। स्फीति के कारण ही पौधों की पत्तियाँ व तने सीधे खड़े रह पाते हैं।
- पौधों के अंगों द्वारा प्रदर्शित विभिन्न गतियाँ; जैसे-रन्ध्रों का खुलना और बन्द होना (Opening and closing of stomata), बीजों के विकिरण (Dispersal) के लिए फलों का फटना, फर्न की बीजाणुधानी (Sporangia) का फटना आदि क्रियाएँ परासरण पर आश्रित हैं।
पौधों में परिवहन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
रसारोहण क्या है ? इससे सम्बन्धित डिक्सन तथा जॉली के मत को समझाइये।
उत्तर:
जल ससंजन एवं वाष्पोत्सर्जी खिंचाव-वाद (Cohesion of water and transpiration pull theory)-यह वाद डिक्सन एवं जॉली ने सन् 1914 में प्रस्तुत किया था। यह वाद आज भी अधिक मान्य है। इनके बाद में निम्नलिखित सिद्धान्त महत्व के हैं –
1. जल के अणुओं की ससंजनी शक्ति (Cohesive force of water):
जल के अणु एक-दूसरे से अत्यन्त बलपूर्वक बँधे रहते हैं, जो कि ओषजन (ऑक्सीजन) और उद्जन (हाइड्रोजन) के परमाणुओं में परस्पर आकर्षण के कारण सम्भव हो जाता है।
इसी कारण जल के अणुओं में प्रबल आकर्षण होता है। जिससे ये आसानी से एक-दूसरे से पृथक् नहीं किये जा सकते। इसके अलावा जल के अणु, जाइलम वाहिनियों से भी अत्यन्त दृढ़तापूर्वक चिपके रहते हैं, इसीलिए पौधों की जाइलम वाहिनियों में जल का निरन्तर प्रवाह (Continuous stream) बना रहता है।
एक मोटे अनुमान के अनुसार जल का परस्पर आकर्षण का बल लगभग 350 atm. के बराबर होता है, जबकि ऊँचे पेड़ को जल पहुँचाने हेतु 30 atm. के बल को अनेक वैज्ञानिकों ने पर्याप्त माना है। इस तरह जल का आकर्षण बल अधिक ऊँचे पेड़ों में भी ‘सैप’ को ऊपर चढ़ाने के लिए आवश्यक न्यूनतम बल से बहुत ज्यादा होता है।
2. वाष्पोत्सर्जी खिंचाव (Transpiration pull):
तेजी से वाष्पोत्सर्जन करने वाली पत्तियों से जल वाष्प के रूप में वायुमण्डल को स्थानान्तरित होता रहता है। इस प्रकार पत्तियों के द्वारा जल की हानि होती है। इस जल की कमी के कारण पर्णमध्योतक (Mesophyll) की कोशिकाओं का परासरणी सान्द्रण (Osmotic concentration) बढ़ जाता है। इस कारण पत्ती के जाइलम पर जल की माँग के लिये तनाव पड़ना शुरू हो जाता है।
पत्ती के जाइलम को जल तने से व तने को स्वयं जड़ से जल की पूर्ति की जाती है। इसलिए स्वाभाविक रूप से पत्ती का जाइलम जल की माँग को तने से जड़ तक स्थानान्तरित कर देता है और इसी कारण जड़ें अधिक जल का अवशोषण करने लगती हैं। जल के अणुओं पर परस्पर आकर्षण का बल तथा जाइलम वाहिनियों व जल का आसंजी बल (Adhesive force) मिलकर भारी खिंचाव [इस तनाव की स्थिति में (वाष्पोत्सर्जन जनित)] उत्पन्न कर सकते हैं, जो कि आसानी से 100 atm. का हो सकता है।
इसी बल के कारण जिसे वाष्पोत्सर्जी खिंचाव (Transpiration pull) कहते हैं, जल सरलतापूर्वक जड़ से पत्तियों तक एक अविरल धारा के रूप में पहुँचता रहता है। एक अनुमान के अनुसार 10 से 30 atm. का बल ऊँचे वृक्षों के जल के आरोहण हेतु पर्याप्त होता है। इसलिए डिक्सन एवं जॉली का यह मत अधिक मान्य है।
प्रश्न 2.
वाष्पोत्सर्जन के महत्व को लिखते हुए स्पष्ट कीजिए कि वाष्पोत्सर्जन एक आवश्यक दुर्गुण है। वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारकों का भी वर्णन कीजिये।
अथव
वाष्पोत्सर्जन पौधों में होने वाला एक आवश्यक दुर्गुण है”, इस कथन को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वाष्पोत्सर्जन का महत्व:
- वाष्पोत्सर्जन के कारण पौधों में जल का आरोहण (Ascent of sap) और अवशोषण होता है।
- जल के साथ खनिज लवणों का भी अवशोषण तथा आरोहण होता है।
- इसके कारण पौधों के तापक्रम का नियमन होता है।
- इसके कारण पौधों के कुछ हानिकारक पदार्थों का उत्सर्जन होता है।
वाष्पोत्सर्जी खिंचाव (Transpiration pull):
तेजी से वाष्पोत्सर्जन करने वाली पत्तियों से पानी वाष्प के रूप में वायुमण्डल को स्थानान्तरित होता रहता है। इस प्रकार पत्तियों के द्वारा पानी की हानि होती है। इस पानी की कमी के कारण पर्णमध्योतक (Mesophyll) की कोशिकाओं का परासरणी सान्द्रण (Osmotic concentration) बढ़ जाता है।
इस कारण पत्ती के जाइलम पर पानी की माँग के लिये तनाव पड़ना शुरू हो जाता है। पत्ती के जाइलम को पानी तने से व तने को स्वयं जड़ से पानी की पूर्ति की जाती है, इसलिए स्वाभाविक रूप से पत्ती का जाइलम पानी की माँग को तने से जड़ तक स्थानान्तरित कर देता है और इसी कारण जड़ें अधिक पानी का अवशोषण करने लगती हैं।
पानी के अणुओं पर परस्पर आकर्षण का बल तथा जाइलम वाहिनियों व पानी का आसंजी बल (Adhesive force) मिलकर भारी खिंचाव [इस तनाव की स्थिति में (वाष्पोत्सर्जन जनित)] उत्पन्न कर सकते हैं जो कि आसानी से 100 atm. का हो सकता है। इसी बल के कारण जिसे वाष्पोत्सर्जी खिंचाव (Transpiration pull) कहते हैं, पानी सरलतापूर्वक जड़ से पत्तियों तक एक अविरल धारा के रूप में पहुँचता रहता है। वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करने वाले कारक-वाष्पोत्सर्जन को निम्नलिखित दो कारक प्रभावित करते हैं
(A) बाह्य कारक (External factors):
वे कारक हैं जो पादप शरीर से बाहर स्थित होते हैं। वाष्पोत्सर्जन को अग्रलिखित बाह्य कारक प्रभावित करते हैं –
(1) आर्द्रता – वायुमण्डलीय आर्द्रता बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन कम होता है तथा घटने से यह क्रिया बढ़ जाती है, इसलिए बरसात में कम तथा गर्मियों में यह क्रिया अधिक होती है।
(2) ताप – ताप बढ़ने से वाष्पोत्सर्जन बढ़ता है, परन्तु एक सीमा के बाद जल की कमी के कारण रन्ध्र बन्द हो जाते हैं, पौधा मुरझा जाता है।
(3) वायु – तेज वायु से यह क्रिया बढ़ जाती है, परन्तु यदि वायु (Air) नम है, झील या समुद्र की ओर से आ रही तब यह क्रिया घट जाती है।
(4) प्रकाश – प्रकाश का वाष्पोत्सर्जन पर अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इस कारण से यह क्रिया तेज होने लगती है क्योंकि –
- प्रकाश में रन्ध्र खुल जाते हैं
- प्रकाश के कारण ताप बढ़ता है।
(5) वायुमण्डलीय दाब-इस दाब के अधिक होने पर यह क्रिया मन्द गति से होती है तथा दाब कम होने पर (पहाड़ों पर) क्रिया तेज होती है।
(B) आन्तरिक कारक (Internal factors):
पादप शरीर के वह प्रमुख आन्तरिक कारक हैं जो वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करते हैं। पत्तियों की निम्नलिखित रचनाएँ वाष्पोत्सर्जन को प्रभावित करती हैं –
- पत्तियों की बाहरी सतह पर मोटी क्यूटिकल या मोम जमा हो जाने से वाष्पोत्सर्जन कम होगा
- रन्ध्रों के ऊपरी सतह पर रोमों के होने से वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है
- पत्तियों का छोटा होना, मुड़ी हुई होना
- पत्तियों में स्पंजी पैरेनकाइमा की कमी से वाष्पोत्सर्जन की दर कम हो जाती है
- रन्ध्रों के बन्द एवं खुलने पर भी वाष्पोत्सर्जन निर्भर करता है।
प्रश्न 3.
वाष्पोत्सर्जन क्या है ? यह कितने प्रकार का होता है ?
अथवा
वाष्पोत्सर्जन के तीन प्रकार लिखिये।
उत्तर:
वाष्पोत्सर्जन-पौधे के वायवीय भागों के द्वारा जल का जल वाष्प के रूप में हानि होना वाष्पोत्सर्जन कहलाता है।
वाष्पोत्सर्जन के प्रकार (Types of transpiration)-पौधों में तीन प्रकार से वाष्पोत्सर्जन की क्रिया होती है –
(1) रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Stomatal transpiration):
यह वाष्पोत्सर्जन की मुख्य विधि है। पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जित जल का लगभग 90% भाग इस क्रिया के द्वारा ही बाहर निकलता है। पत्तियों तथा कुछ रूपान्तरित तनों की सतह पर असंख्य छोटे-छोटे विशिष्ट छिद्र पाये जाते हैं, जो चारों तरफ से दो विशिष्ट कोशिकाओं के द्वारा घिरे रहते हैं, इन छिद्रों को रन्ध्र (Stomata) कहते हैं, जब ये रन्ध्र खुले होते हैं, तो पौधों के शरीर का पानी वाष्प के रूप में बाहर निकलता है, इस तरह के पानी के ह्रास को रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।
(2) उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन (Cuticular transpiration):
पौधों की पत्तियाँ तथा वायवीय भाग क्यूटिकल (Cuticle) द्वारा ढंका रहता है। इसी क्यूटिकल द्वारा पानी थोड़ी मात्रा में वाष्पीकरण द्वारा बाहर उड़ जाता है। इस प्रकार के वाष्पोत्सर्जन को उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।
(3) वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन (Lenticular transpiration):
पौधों के तनों व शाखाओं पर छाल (Bark) पायी जाती है, जिनमें छोटे-छोटे रन्ध्र उपस्थित होते हैं, इन रन्ध्रों को वातरन्ध्र (Lenticels) कहते हैं। इन रन्ध्रों द्वारा कुछ पानी वाष्प बनकर बाहर निकल जाता है। इस प्रकार पानी की हानि को वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।
प्रश्न 4.
पौधों में जल अवशोषण के मार्ग को सचित्र समझाइए।
उत्तर:
जब जल का अवशोषण जल की सक्रियता के कारण होता है, तब इसे सक्रिय अवशोषण कहते हैं। इस अवशोषण में कोशि कीय ऊर्जा का भी उपयोग होता है। पौधों में जल अव – शोषण की क्रिया मूल रोमों द्वारा होती है। ये मूल रोम मिट्टी के सम्पर्क में रहते हैं तथा परासरण क्रिया से केशिका जल (Capillary water) का अवशोषण करते हैं।
प्रत्येक मूल रोम में एक रिक्तिका (Vacuole) होती है, जो कोशिका रस (Cell sap) से भरी रहती है। इस रस की सान्द्रता केशिका जल की सान्द्रता से अधिक होती है, जिससे भूमि जल परासरित होकर मूल रोमों में आ जाता है। सान्द्रता प्रवणता के कारण यह परासरित होता रहता है और एण्डोडर्मिस की मार्ग कोशिकाओं से होता हुआ पेरिसाइकिल कोशिकाओं तथा वहाँ से जायलम कोशिकाओं में चला जाता है। जायलम से यह रसारोहण के द्वारा पौधों के विविध भागों तक पहुँचता है।
प्रश्न 5.
रन्धों के खुलने और बन्द होने के स्टार्च ⇌ शर्करा परिवर्तनवाद का वर्णन कीजिए।
अथवा
रन्ध्रों के खुलने व बन्द होने की प्रक्रिया में रक्षक कोशिकाओं में जो रासायनिक परिवर्तन होते हैं, उनका विवरण दीजिये।
उत्तर:
स्टार्च ⇌ शर्करा परिवर्तनवाद (Starch ⇌ Sugar Hypothesis):
इस वाद के अनुसार, जब द्वार कोशिकाओं में शर्करा की मात्रा अधिक होती है, तब इसकी सान्द्रता (परासरणी दाब)बढ़ जाती है, जिसके कारण आस-पास की कोशिकाओं का जल इसमें आ जाता है और स्फीत दशा में आ जाती है। इसके विपरीत जब द्वार कोशिकाओं की शर्करा स्टार्च में बदल जाती है, तब जल में स्टार्च अविलेय होने के कारण द्वार कोशिकाओं की सान्द्रता (परासरणी दाब) घट जाती है, फलतः इनका जल बाहर निकल जाता है और ये श्लथ (flacid) दशा में आ जाती हैं।
जब द्वार कोशिकाएँ स्फीत दशा में आती हैं तब स्टोमेटा खुल जाते हैं, लेकिन जब ये श्लथ अवस्था में आती हैं तो स्टोमेटा बन्द हो जाते हैं। इस वाद को सायर तथा स्टीवर्ड ने अपने-अपने ढंग से व्यक्त किया है।
सायर (1926), स्कार्थ (1932) व स्माल (1942) के अनुसार उच्च pH (क्षारीय माध्यम) स्टोमेटा को खोल देता है, जबकि निम्न pH (अम्लीय माध्यम) स्टोमेटा को बन्द कर देता है। इनके अनुसार प्रकाश की उपस्थिति में श्वसन के दौरान बनी द्वार कोशिकाओं की CO2 का उपयोग प्रकाश-संश्लेषण में कर लिया जाता है फलतः Co2 की सान्द्रता बढ़ने नहीं पाती, जिससे pH अधिक रहता है।
रात्रि के समय श्वसन के दौरान बनी CO2 का उपयोग प्रकाश-संश्लेषण में नहीं होता जिसके कारण रक्षक कोशिकाओं में CO2 की सान्द्रता बढ़ती है, जो pH को कम कर देती है। उच्च pH स्टार्च को शर्करा में बदल देता है, जिससे द्वार कोशिकाओं का O.P. बढ़ता है और कोशिका स्फीत दशा में आ जाती है तथा स्टोमेटा खुल जाते हैं। इसके विपरीत pH के कम होने पर विपरीत क्रिया होती है और स्टोमेटा बन्द हो जाते हैं।
वास्तव में जिस समय pH अधिक होता है उस समय फॉस्फोरीलेन प्रकोण्व अकार्बनिक फॉस्फोरस (ip) की उपस्थिति में उत्प्रेरित होकर स्टार्च का जलीय अपघटन कर देता है और वह शर्करा बना देता है। यह प्रकीण्व रक्षक कोशिकाओं के क्लोरोप्लास्ट में पाया जाता है। जब pH का मान कम हो जाता है तब शर्करा स्टार्च में बदल जाती है।
स्टीवर्ड (1964) ने सायर से मिलता-जुलता वाद प्रस्तुत किया लेकिन इनके अनुसार जब तक सायर के अनुसार बना G.1.P. ग्लूकोज, 6 फॉस्फेट में और फिर ग्लूकोज व अकार्बनिक फॉस्फोरस में नहीं टूटता तब तक स्टोमेटा नहीं खुलता –
रन्ध्रों का बन्द होना जो कि कम pH पर निर्भर करता है, में निम्नांकित क्रियाएँ होती हैं और रन्ध्र स्टार्च के बनने पर बन्द हो जाते हैं।