MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 12 खनिज पोषण
खनिज पोषण NCERT प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
“पौधों में उत्तरजीविता के लिए उपस्थित सभी तत्वों की अनिवार्यता नहीं है।” टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
पौधों को उनके द्वारा अवशोषित सभी प्रकार के खनिज तत्वों की अनिवार्यता नहीं होती है। अनिवार्यता की कसौटी (Criteria for Essentiality)-आरनन (Arnon) नामक वैज्ञानिक ने निम्नलिखित अनिवार्यता की कसौटियाँ प्रस्तावित की हैं –
- अनिवार्य तत्वों की अनुपस्थिति से पौधों में विकार उत्पन्न हो जाते हैं तथा पौधा अपना जीवन-चक्र नियमित रूप से पूरा नहीं कर पाता।
- उत्पन्न विकार का उसी तत्व से निदान होता हों जिसकी अनुपस्थिति थी तथा समान लक्षणों वाला कोई भी तत्व यह कार्य नहीं कर पाता।
- तत्व पौधे की उपापचयी क्रियाओं में सीधे सम्बन्धित रूप से भूमिका अदा करता हो।
प्रश्न 2.
जल संवर्धन में खनिज पोषण हेतु अध्ययन में जल और पोषक लवणों की शुद्धता जरूरी क्यों है?
उत्तर:
जल संवर्धन (Hydroponics) में खनिज पोषण हेतु अध्ययन में जल और पोषक लवणों की शुद्धता जरुरी है क्योंकि शुद्ध जल एवं शुद्ध खनिजों की उपस्थिति में ही पादपों की जड़ें उन्हें अवशोषित कर संबंधित खनिजों की अनिवार्यता तथा कमी के लक्षण प्रदर्शित करती हैं। अशुद्ध पोषक लवणों के घोल से खनिज पदार्थों की अनिवार्यता का सही-सही पता नहीं चलता।
प्रश्न 3.
उदाहरण के साथ व्याख्या कीजिएवृहत् पोषक, सूक्ष्म पोषक, हितकारी पोषक, आविष तत्व तथा अनिवार्य तत्व।
उत्तर:
लघु मात्रक पोषक या सूक्ष्म पोषक तत्व-ऐसे खनिज पोषक तत्व जिनकी अल्प मात्रा ही पौधों के लिये आवश्यक होती है, उन्हें लघु मात्रक तत्व कहते हैं। उदाहरण-Zn, Cu, Mn, Fe, B, Mo एवं Cl. दीर्घ मात्रक पोषक या वृहत् पोषक तत्व-ऐसे खनिज तत्व जो कि पौधों की वृद्धि के लिए अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में आवश्यक होते हैं, उन्हें दीर्घ मात्रक पोषक तत्व कहते हैं। उदाहरण – C, H, O, N, P, S, K, Ca, Mg आदि।
आविष तत्व-किसी खनिज आयन की वह सांद्रता जो ऊतकों के शुष्क भार में 10 प्रतिशत की कमी करे, उसे आविष तत्व कहा जाता है। अलग-अलग पादपों के तत्वों की आविषता भिन्न होती है। हितकारी पोषक-उच्च श्रेणी के पादपों के लिए अनिवार्य कुछ तत्वों जैसे-सोडियम, सिलिकॉन, कोबाल्ट तथा सिलिनियम को हितकारी पोषक तत्व कहा जाता है। अनिवार्य या आवश्यक तत्व-ऐसे खनिज तत्व जो कि पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक होते हैं तथा पौधों के शरीर में पाये जाते हैं। उन्हें आवश्यक खनिज तत्व कहते हैं। उदाहरण – C,H, O,N, P. S, K, Ca, Mg आदि।
प्रश्न 4.
पौधों में कम-से-कम पाँच अपर्याप्तता के लक्षण दीजिए। उसे वर्णित कीजिए और खनिजों की कमी से उसका सह-संबंध बताइए।
उत्तर:
पौधों में खनिजों की कमी अथवा अपर्याप्तता के लक्षण निम्नलिखित हैं –
(1) पौधों पर नाइट्रोजन की कमी के प्रभाव – पौधों की पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं तथा कोशिका विभाजन की कमी के कारण पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
(2) फॉस्फोरस की कमी के प्रभाव – फॉस्फोरस की न्यूनता के कारण पौधों की वृद्धि रुक जाती है और वे स्तम्भित (Stunted) रह जाते हैं। ऐन्थोसाइनिन की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक हो जाती है और बैंगनी रंग दिखाई देने लगता है। पत्तियाँ कालपूर्व (Premature) गिरने लगती हैं। पत्तियों, पर्णवन्तों तथा फलों पर ऊतकक्षयी (Necrotic) क्षेत्र बन जाते हैं। संवहन ऊतक का विकास कम होता है तथा फूल भी देर से आते हैं।
(3) सल्फर की कमी का प्रभाव – इसकी कमी में भी हरिमहीनता उत्पन्न होती है, किन्तु यह पहले वाली पत्तियों में विकसित होती है, लेकिन कभी-कभी पूरी पत्तियाँ एक साथ हरिमहीनता प्रदर्शित करती हैं।
(4) मैग्नीशियम की कमी के प्रभाव – इसकी कमी से अन्तराशिरीय हरिमहीनता उत्पन्न होने के बाद एन्थोसाइनिन का विकास होता है। अत्यधिक कमी के कारण ऊतकक्षरण पैदा हो जाता है। प्रौढ़ पत्ती में कमी के लक्षण पहले दिखते हैं।
(5) ताँबे की कमी का प्रभाव – ताँबे की कमी के कारण पौधों में कई शरीर क्रियात्मक रोग पैदा होते हैं फलदार पौधों में फल नहीं लगता और मृत्यु तक हो जाती है पौधों में CO2 का अवशोषण घट जाता है। इसकी कमी से नीबू में डाइबैक रोग, अनाजों में उद्धार (Reclamation) रोग लगता है।
(6) जिंक की कमी के प्रभाव – इसकी कमी से तने की वृद्धि लघुक्त हो जाती है, जिससे पौधा स्तम्भित (Stunted) रह जाता है। पत्तियाँ विकृत होने लगती हैं तथा अन्तराशिरीय हरिमहीनता को प्रदर्शित करती हैं। पर्वो की माप कम हो जाती है, जिसे लिटिल लीफ रोग कहते हैं। इसकी कमी से बीजों का निर्माण कम हो जाता है।
प्रश्न 5.
अगर एक पौधे में एक से ज्यादा तत्वों की कमी के लक्षण प्रकट हो रहे हैं तो प्रायोगिक तौर पर आप कैसे पता करेंगे कि अपर्याप्त खनिज कौन-सा है ?
उत्तर:
प्रत्येक खनिज तत्व अपनी कमी को पौधों में विशिष्ट लक्षण के रूप में प्रकट करता है। किसी खनिज तत्व की कमी को दूसरे खनिज तत्व देकर पूरा नहीं किया जा सकता है। अतः एक से ज्यादा तत्वों की कमी के लक्षण प्रकट होने पर उसी के अनुरूप खनिज तत्वों की आपूर्ति कर कमी दूर किया जा सकता है। (टीप-कुछ प्रमुख खनिज तत्वों की कमी एवं उसके पादपों में प्रभावों के अध्ययन हेतु उपर्युक्त प्र. क्र.4 का अवलोकन कीजिए।
प्रश्न 6.
कुछ निश्चित पौधों में अपर्याप्तता लक्षण सबसे पहले नवजात भाग में क्यों पैदा होता है जबकि कुछ अन्य में परिपक्व अंगों में प्रकट होते हैं ?
उत्तर:
पादप के भागों में अपर्याप्तता (कमी) के लक्षण तत्वों की गतिशीलता (Mobility) पर भी निर्भर करती है। ऊतकों में कमी के लक्षण पुराने ऊतकों में पहले प्रकट होते हैं। उदाहरण के लिए, नाइट्रोजन, पोटैशियम और मैग्नीशियम की कमी के लक्षण सर्वप्रथम जीर्ण (पुरानी) पत्तियों में पहले प्रकट होते हैं। पुरानी पत्तियों के जिस जैव अणुओं में ये तत्व होते हैं, टूटकर नई पत्तियों तक गतिशील हो जाते हैं। जब तत्व गतिहीन (Non-mobile) होते हैं तो वयस्क अंगों से बाहर अभिगमित नहीं होते तो अपर्याप्तता (कमी) के लक्षण नई पत्तियों में प्रकट होते हैं।
प्रश्न 7.
पौधों के द्वारा खनिजों का अवशोषण कैसे होता है ?
उत्तर:
निष्क्रिय अवशोषण (Passive Absorption):
निष्क्रिय अवशोषण, अवशोषण की वह विधि है, जिसमें कोशिकीय ऊर्जा का प्रयोग नहीं होता। इस अवशोषण में खनिज तत्व सान्द्रण प्रवणता (Concentration gradient) के अनुसार अधिक सान्द्रता से कम सान्द्रता की ओर परासरण की क्रिया के द्वारा जड़ में प्रवेश करते हैं। इस विधि के अनुसार अगर जड़ के बाह्य वातावरण में किसी तत्व की सान्द्रता अधिक हो तो खनिज तत्व पादप कोशिका से बाहर भी आ सकते हैं। खनिज तत्वों का अवशोषण मुख्यतः आयन के रूप में होता है। खनिज तत्वों के निष्क्रिय अवशोषण को स्पष्ट करने के लिए निम्नलिखित विधियाँ बताई गयी हैं –
(1) स्थूल प्रवाह – स्थूल प्रवाह मतानुसार वाष्पोत्सर्जन के प्रभाव से जड़ों में जल के स्थूल प्रवाह के साथ-साथ कुछ खनिजों के आयन भी प्रवेश कर जाते हैं। .
(2) आयन विनिमय सिद्धान्त – आयनों के विनिमय क्रिया-विधि में कोशिका के भीतरी भाग से ऐनायनों (Anions) अथवा कैटायनों (Cations) का विनिमय बाहरी विलयन, जिसमें कि कोशिका या ऊतक उपस्थित है या डूबा हुआ है, के तुल्य आवेशित ऐनायनों अथवा कैटायनों के बीच होता है। उदाहरण के लिए पोटैशियम आयन्स (K+) का विनिमय हाइड्रोजन आयन्स (H2) के साथ हो सकता है, जिनका अधिशोषण (Adsorption) कोशिका झिल्ली की सतह पर हो गया हो।आयन विनिमय की क्रिया-विधि का वर्णन दो वादों के आधार पर किया गया है –
- सम्पर्क विनिमय वाद (Contact Exchange theory) तथा
- कार्बोनिक अम्ल विनिमय वाद (Carbonic Acid Exchange Theory)।
(3) डोनन सन्तुलन सिद्धान्त – डोनन सन्तुलन के मतानुसार कोशिका के भीतर उपस्थित कुछ स्थिर अथवा अविसरणीय (Non-diffusable) आयन विपरीत आवेश वाले आयनों से सन्तुलित होते हैं। इससे यह इंगित होता है कि झिल्ली के अन्दर की ओर स्थित ऐनायन का एक सान्द्रण उपस्थित है तो सन्तुलन को बनाए रखने के लिये कैटायन का सामान्य विनिमय के द्वारा अवशोषण हो जाता है।
प्रश्न 8.
राइजोबियम के द्वारा वातावरणीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण के लिए क्या शर्ते हैं तथा N2स्थिरीकरण में इनकी क्या भूमिका है ?
उत्तर:
राइजोबियम जीवाणु लेग्यूम (Legume) मीठा मटर, मसूर, उद्यान मटर, सेम आदि जड़ों में सहजीवी के रूप में रहते हैं। यह सहजीवन जड़ों की गाँठों में होता है। सहजीवी के रूप में वातावरणीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करते हैं। सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण-सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणु, सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकारक सायनोजीवाणु एवं सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण कवक द्वारा संपन्न होता है। क्रियाविधि – नाइट्रोजन के जैविक स्थिरीकरण हेतु निम्नलिखित एन्जाइमों एवं अन्य सामग्री की आवश्यकता पड़ती है –
- नाइट्रोजिनेज (Nitrogenase) एवं हाइड्रोजिनेज (Hydrogenase) एन्जाइम।
- लेगहीमोग्लोबिन (Leghaemoglobin) – यह O2से एन्जाइम की सुरक्षा करता है।
- एक नॉन-हीम आयरन प्रोटीन (Nonhaem iron protein)-उदाहरण-फेरीडॉक्सिन (Ferredoxin)—यह इलेक्ट्रॉन वाहक (Electron carrier) के रूप में होता है।
- हाइड्रोजन दाता पदार्थ जैसे-NADPH, FMNH2 पाइरुवेट, सुक्रोज, ग्लूकोज आदि।
- ऊर्जा की सतत् आपूर्ति हेतु ATP
- सहकारक (Co-factor) के रूप में TPP (Thymine pyrophosphate), Co – A,अकार्बनिक फॉस्फेट, Mg++ आदि।
- कोबाल्ट (Co) एवं मॉलिब्डेनम (Mo)
- नाइट्रोजन के अपचयन से निर्मित अमोनिया को स्थिर करने वाला एक यौगिक।
प्रकृति में नाइट्रोजन के जैविक स्थिरीकरण की क्रिया निम्न चरणों में पूर्ण होती हैं –
(1) आण्विक नाइट्रोजन का अपचयन
(5) विनाइट्रीकरण-यह क्लॉस्ट्रिडियम एवं थायोबेसीलसके माध्यम से होता है।
प्रश्न 9.
मूल ग्रंथिका के निर्माण हेतु कौन-कौन से चरण भागीदार हैं ?
उत्तर:
मूल ग्रंथिका निर्माण (Root Nodule formation) पोषक पौधों की जड़ तथा राइजोबियम के पारस्परिक क्रिया के कारण होता है। ग्रंथिका निर्माण के चरण निम्नलिखित हैं –
- सर्वप्रथम राइजोबियम बहुगुणित होकर जड़ों के चारों ओर एकत्र हो जाते हैं तथा उपत्वचीय और मूलरोम कोशिकाओं से जुड़ जाते हैं।
- मूल रोम मुड़ जाते हैं तथा जीवाणु मूलरोम (Root hair) पर आक्रमण करते हैं।
- एक संक्रमित सूत्र (Infected thread) पैदा हो जाते हैं जो जीवाणु को जड़ों के कॉर्टेक्स तक ले जाता है जहाँ वे ग्रंथिका निर्माण प्रारंभ करते हैं। तब जीवाणु सूत्र से मुक्त होकर कोशिकाओं में चले जाते हैं जो विशिष्ट स्थिरीकरण कोशिका के विभेदीकरण (Differentiation) का कार्य करते हैं। इस प्रकार ग्रंथिका (Nodule) का निर्माण हो जाता है और पोषक (Host) पौधों से पोषक तत्वों (Nutrient) के आदान-प्रदान के लिए स्थायी संबंध बन जाते हैं।
सोयाबीन में मूल ग्रंथिका का विकास:
A. राइजोबियम जीवाणु सुग्राही मूल रोम स्पर्श से उसके नजदीक विभाजित होता है।
B. संक्रमण के बाद मूल रोम में कुंचन प्रेरित होता है।
C. संक्रमित ( धागा) जीवाणुओं को भीतरी कॉर्टेक्स में ले जाता है। जीवाणु दंड के आकार के जीवाणु सम रचनाओं में रूपान्तरित हो जाते हैं और भीतरी कॉर्टेक्स एवं परिरंभ कोशिकाएंविभाजित होने लगती हैं। कॉर्टिकल एवं परिरंभ की कोशिकाओं का विभाजन एवं वृद्धि ग्रंथिका निर्माण की ओर ले जाती है।
D. संवहनी ऊतकों से पूर्ण एक परिपक्व ग्रंथिका मूल से अविच्छिन्न होती है।
प्रश्न 10.
निम्नांकित कथनों में से कौन सही है ?
उत्तर:
गलत है तो उन्हें सही कीजिए –
- बोरॉन की अपर्याप्तता से स्थूलकाय अक्ष बनता है।
- कोशिका में उपस्थित प्रत्येक खनिज तत्व उसके लिए अनिवार्य है।
- नाइट्रोजन पोषक तत्वों के रूप में पौधों में अचल है।
- सूक्ष्म पोषकों की अनिवार्यता निश्चित करना अत्यंत ही आसान है, क्योंकि ये अत्यन्त ही सूक्ष्म मात्रा में लिए जाते हैं।
उत्तर:
- गलत (सही- बोरॉन की अपर्याप्तता से झिल्ली की क्रियाशीलता व पराग अंकुरण, कोशिका दीर्धीकरण, कोशिका विभेदन एवं कार्बोहाइट्रेट का स्थानान्तरण आदि प्रभावित होता है।)
- सही
- सही
- सही।
खनिज पोषण अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
खनिज पोषण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –
1. नाइट्रोजन चक्र में नाइट्रीकारक जीवाणु करते हैं –
(a) NH3का N2 में परिवर्तन
(b) वायुमण्डलीय N, का स्थिरीकरण
(c) NH3का NO2 में परिवर्तन
(d) अमीनो अम्ल का NH3 में परिवर्तन
उत्तर:
(c) NH3का NO2 में परिवर्तन
2. जिंक का कार्य है –
(a) क्लोरोफिल बनाना
(b) 3 I.A.A. का निर्माण
(c) स्टोमेटा बंद करना
(d) कार्बोहाइड्रेट का ऑक्सीकरण।
उत्तर:
(b) 3 I.A.A. का निर्माण
3. क्लोरोफिल की कमी या नष्ट होने के कारण उत्पन्न लक्षण कहलाता है –
(a) नेक्रोसिस
(b)क्लोरोसिस
(c) ब्रांजिंग
(d) रॉटिंग।
उत्तर:
(b)क्लोरोसिस
4. पौधे जो कि अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं, कहलाते हैं –
(a) विषमपोषी
(b) स्वयंपोषी
(c) मिक्सोट्राफ्स
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) स्वयंपोषी
5. पत्तियों, पुष्पों एवं फलों का परिपक्वता के पूर्व गिरना कहलाता है –
(a) एब्सीसन
(b) स्टटिंन्टग
(c) डाई बैक
(d) हायपरट्रॉफी।
उत्तर:
(a) एब्सीसन
6. पौधे किस तत्व को वायु से अवशोषित करते हैं –
(a) C
(b) N2
(c)P
(d) H2
उत्तर:
(a) C
7. कार्बन पौधों को किस रूप में उपलब्ध होता है –
(a) कार्बन तत्व
(b) CO2
(c) Co3
(d) अमीनो अम्ल।
उत्तर:
(b) CO
8. किस तत्व की वृहद् मात्रा पौधे के लिये आवश्यक होती है –
(a) N
(b) P
(c) Ca
(d) S.
उत्तर:
(a) N
9. निम्न में से कौन-सा तत्व दीर्घमात्रक तत्व नहीं है –
(a) P
(b) K
(c) Mg
(d) Fe
उत्तर:
(d) Fe
10. सेब का ड्रॉट स्पॉट रोग (Drought spot disease of apple) किसकी कमी से होता है –
(a) B
(b) Cu
(c) Zn
(d) Mo
उत्तर:
(a) B
11. पौधों में IAA के संश्लेषण के लिये आवश्यक होता है –
(a) Cu
(b) K
(c) Zn
(d) Ca
उत्तर:
(c) Zn
12. जड़ों के द्वारा खनिजों का सक्रिय अवशोषण किस पर निर्भर करता है –
(a) 02की उपलब्धता
(b) प्रकाश
(c) तापक्रम
(d) CO2, की उपलब्धता।
उत्तर:
(a) O2 की उपलब्धता
13. जल संवर्धन (Hydroponics) नाम दिया गया –
(a) सेक्स तथा नुपस द्वारा
(b) आनन तथा हॉगलैंड द्वारा
(c) गोरिक द्वारा
(d) सेक्स द्वारा।
उत्तर:
(c) गोरिक द्वारा
14. मृदा से प्राप्त तत्व जो पौधों को उपलब्ध हो जाते हैं, कहलाते हैं –
(a) खनिज लवण
(b) सूक्ष्म लवण
(c) पोषक पदार्थ
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) खनिज लवण
15. कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन पादप के शुष्क भार का कितना प्रतिशत होता है –
(a) 10 – 15%
(b) 15 – 25%
(c) 25 – 35%
(d) 85 – 95%
उत्तर:
(d) 85 – 95%
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
- मोनोट्रोपा एक ………….. पादप है।
- ओरोबैंकी एक पूर्ण………..परजीवी पादप है जो कि, बैंगन, सरसों आदि पौधों की जड़ों पर परजीवी होता है।
- Zn, Cu, Mn, B, Mo एवं Cl………….. मात्रक तत्व हैं।
- अन्तराशिरीय हरिमहीनता ………….. तत्व की कमी से होता है।
- नाइट्रेट रिडक्टेज एन्जाइम की सक्रियता के लिये आवश्यक तत्व ………… है।
- राइजोबियम एक ………….. नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणु है।
- राइजोबियम ………….. पौधों की ग्रंथिल मूलों में पाया जाता है।
- कुछ अनिवार्य तत्व कोशिका के ………….. को बदल देते हैं।
- ………….. तत्व पौधों की कोशिकाओं की विभिन्न उपापचयी प्रक्रियाओं में भाग लेते हैं।
- ………….. क्लोरोफिल की वलय संरचना का संघटक है।
उत्तर:
- मृतोपजीवी
- मूल
- सूक्ष्म
- Mg
- Mo
- सहजीवी
- NO2
- दाल कुल के
- परासरी विभव
- अनिवार्य या आवश्यक
- Mg
प्रश्न 3.
उचित संबंध जोडिए –
उत्तर:
- (b) पूर्णस्तंभ परजीवी
- (c) आंशिक स्तंभ परजीवी
- (d) पूर्णमूल परजीवी
- (e) कीटभक्षी
- (a) सहजीवी
उत्तर:
- (d) रन्ध्रीय गति
- (e) क्लोरोफिल
- (a) नाइट्रोजन उपापचय
- (b) जल का प्रकाश रासायनिक अपघटन
- (c) अमीनो अम्ल
प्रश्न 4.
एक शब्द में उत्तर दीजिए –
- क्लोरोप्लास्ट के निर्माण हेतु आवश्यक दो खनिज तत्वों के नाम लिखिये।
- लेग्यूमिनस पौधे की मूल ग्रन्थिकाओं में पाये जाने वाले वर्णक का नाम लिखिये।
- NPK का पूरा नाम क्या है ?
- नाइट्रोज़न स्थिरीकरण को उत्प्रेरित करने वाले एन्जाइम का नाम लिखिये।
- एक ऐसे जलीय कीटभक्षी पौधे का नाम बताइये जो कि तालाब में स्वतंत्र रूप से तैरता है।
- उस प्रक्रिया का नाम लिखिये जिसके द्वारा पौधों की जड़ों को पोषक विलयन में रखकर पौधों को उगाया जाता है।
- किस तत्व की कमी से पत्तियाँ परिपक्व होने के पूर्व ही गिर जाती हैं ?
- अमरबेल के द्वारा उत्पन्न तथा पोषक पौधे के शरीर में प्रविष्ट करने वाली जड़ के समान संरचना का नाम लिखिये।
- उस एन्जाइम का नाम लिखिये जो कि डाइनाइट्रोजन अणु को अमोनिया में विघटित करता है।
- उस तत्व का नाम बताइये जो कि पादप शरीर के संरचनात्मक संघटन में भाग लेता है।
- किन्हीं दो आंशिक स्तम्भ परजीवियों के नाम लिखिये।
- CAM का पूरा नाम लिखिये।
- किसी सहजीवी N, स्थिरीकारक जीवाणु का नाम लिखिये।
- पौधे हाइड्रोजन कहाँ से प्राप्त करते हैं ?
- पौधों में ATP के निर्माण हेतु किस तत्व की आवश्यकता पड़ती है ?
उत्तर:
- Mg एवं Fe
- लेगहीमोग्लोबिन
- नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम
- नाइट्रोजिनेज
- यूटीकुलेरिया
- हाइड्रोपोनिक्स
- फॉस्फोरस (P)
- हॉस्टोरिया
- नाइट्रोजिनेज
- कार्बन
- लोरेन्थस, विस्कस
- केसुलेशियन एसिड मेटाबोलिज्म
- राइजोबियम
- जल से
- फॉस्फोरस।
खनिज पोषण अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
खनिज पोषण का अर्थ समझाइये।
उत्तर:
पौधों के लिए आवश्यक उन तत्वों को जिन्हें ये भूमि से प्राप्त करते हैं, उन्हें खनिज तत्व कहते हैं। खनिज तत्वों को पौधों द्वारा ग्रहण करने की क्रिया को खनिज पोषण कहते हैं।
प्रश्न 2.
खनिज पोषक तत्व किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पौधों के लिये आवश्यक उन तत्वों को जिन्हें ये भूमि से प्राप्त करते हैं, उन्हें खनिज पोषक तत्व कहते हैं।
प्रश्न 3.
खनिज लवणों के चार सामान्य महत्व बताइये।
उत्तर:
खनिज लवणों के महत्व निम्नलिखित हैं –
- पौधों का पोषण-बहुत से खनिज; जैसे-नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, सल्फर, प्रोटीन की संरचना में भाग लेते हैं।
- उत्प्रेरक का कार्य-बहुत से खनिज; जैसे-बोरान, आयरन, कॉपर और मैंगनीज, उपापचयी क्रियाओं (Metabolic activities) को उत्प्रेरित करते हैं।
- शरीर निर्माण कैल्सियम, मैग्नीशियम, पेक्टेट के रूप में कोशिका भित्ति (Cell wall) का निर्माण करते हैं।
- सन्तुलन कार्य-कैल्सियम, मैग्नीशियम आदि तत्व दूसरे तत्वों से उत्पन्न विषैले प्रभाव (Toxic effect) को आयन सन्तुलन द्वारा समाप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 4.
सक्रिय तथा निष्क्रिय अवशोषण में तीन अन्तर बताइए।
उत्तर:
सक्रिय तथा निष्क्रिय अवशोषण में अन्तर –
सक्रिय अवशोषण (Active absorption):
- इस अवशोषण में कोशिकीय ऊर्जा का उप – योग होता है।
- यह अवशोषण सान्द्रता प्रवणता के विपरीत भी हो सकता है।
- इस अवशोषण पर वातावरण में O2 की सान्द्रता का प्रभाव पड़ता है।
निष्क्रिय अवशोषण (Passive absorption):
- इस अवशोषण में कोशिकीय ऊर्जा का उपयोग नहीं होता है।
- यह सान्द्रता प्रवणता के अनुसार ही होता है।
- इस अवशोषण पर O2 की सान्द्रता का प्रभाव नहीं पड़ता।
खनिज पोषण लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पौधों में पोटैशियम की आवश्यकता एवं इसकी कमी से होने वाले प्रभाव का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
पोटैशियम (Potassium):
यह किसी भी उपापचयी रूप में महत्वपूर्ण पदार्थों के संगठन में भाग न लेने के कारण अन्य तत्वों से भिन्न है। इसके बावजूद भी पौधों को इसकी आवश्यकता अधिक मात्रा में पड़ती है। रन्ध्रों की गति (Stomatal movement), श्वसन, फोटोसिन्थेसिस, क्लोरोफिल एवं प्रोटीन संश्लेषण में इसकी क्रियाशीलता अधिक होती है। यह अनेक एन्जाइमों के लिये सहएन्जाइम (Coenzyme) व प्रेरक (Activator) का कार्य करता है। इसकी कमी से स्तम्भित वृद्धि (Stunted growth) होती है।
पत्तियाँ कर्बुरित हरिमहीनता (Mottled chlorosis) का प्रदर्शन करती हैं। इनके किनारों एवं अग्र भाग पर ऊतकक्षयी (Necrotic areas) बनने लगते हैं। प्रौढ़ पत्तियों में कमी के चिह्न पहले उभरते हैं। इसी कमी से पौधों में खूपता (Bushy nature) उत्पन्न होती है एवं शीर्षस्थ प्रभाविता (Apical dominance) कम हो जाती है। कुछ खाद्यान्नों पौधों में इसकी कमी से पुष्पवृन्त कमजोर हो जाते हैं एवं जड़ों की संवेदनशीलता जड़-क्षरण (Root rotting) करने वाले जीवधारियों के लिये बढ़ जाती हैं।
खनिज पोषण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
हाइड्रोपोनिक्स क्या है ? इसके उपयोग लिखिये।
उत्तर:
मृदाहीन पादप वृद्धि या हाइड्रोपोनिक्स (Soilless growth or hydroponics)-कैलीफोर्निया के प्रोफेसर डब्ल्यू. एफ. गैरिक (W.F Gariak) ने मृदाहीन खेती या पादप वृद्धि का आविष्कार किया जिसे हाइड्रोपोनिक्स कहते हैं। इस विधि में पौधों को पानी में उगाया जाता है। पानी के अन्दर पौधों के लिये आवश्यक सभी पदार्थ घोल दिये जाते हैं और इसमें एक नली के द्वारा वायु को पहुँचाया जाता है, जिससे जड़ को पर्याप्त मात्रा में वायु भी मिल सके। अब पानी में नवजात पौधे को लगा दिया जाता है।
उपयोग:
- इस प्रकार लगाये गये पौधे मिट्टी में उगाये गये पौधों की अपेक्षा अधिक स्वस्थ और तीव्र प्रजनन दर वाले होते हैं।
- जिन स्थानों पर बागवानी के लिये भूमि उपलब्ध नहीं होती वहाँ यह विधि वरदान सिद्ध हो रही है।
- बड़े-बड़े नगरों की बहुमंजिली इमारतों पर जहाँ प्रकाश पहुँच सकता है इस विधि से बड़े पैमाने पर सब्जियाँ व फल उगाये चित्र-विलयन संवर्धन में पादप वृद्धि जा सकते हैं।
- इस प्रकार उगाये गये पौधों की वृद्धि और फलों के पकने में कम समय लगता है। गैरिक ने स्वयं सन् – 1929 में इस विधि से बड़े पैमाने पर टमाटर की फसल को उगाया था।
प्रश्न 2.
एक प्रयोग द्वारा पौधों में खनिज तत्वों की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
खनिज तत्वों की आवश्यकता को विलयन संवर्धन प्रयोग के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है। विलयन संवर्धन हेतु एक सामान्य पोषक विलयन की आवश्यकता होती है। सामान्यतः सैक के विलयन को संवर्धन के रूप में प्रयोग किया जाता है। इस विलयन के प्रमुख घटक इस प्रकार हैं –
सैंक का संवर्धन घोल (Sach’s Culture Solution):
जिस किसी भी खनिज तत्व की उपयोगिता का हमें अध्ययन करना होता है, उस पोषक विलयन में उस तत्व को नहीं मिलाते। इस न्यूनकृत पोषक विलयन (Deficient nutrient solution) में वृद्धि कर रहे पौधों की फिर सामान्य पोषक विलयन में वृद्धि कर रहे पौधों के साथ तुलना करते हैं और यह नोट करते हैं कि तत्व विशेष की कमी से पौधे में किस प्रकार के लक्षण आते हैं । इन लक्षणों को न्यूनकृत लक्षण (Deficiency symptom) कहते हैं।
प्रयोग:
पौधे में विभिन्न तत्वों की कमी से पैदा हुए लक्षणों को देखने के लिये कई चौड़े मुँह की बोतलें लेते हैं। इन बोतलों में एक-एक छिद्र वाली कॉर्क लगी होती है। अब इन बोतलों में से एक में सामान्य मृदाहीन संवर्धन विलयन तथा शेष में ऐसे न्यूनकृत पोषक विलयन लेते हैं, जिनकी कमी से उत्पन्न लक्षणों का हमें अध्ययन करना है। इन सभी बोतलों का नामकरण (Label) कर देते हैं, जिससे इन्हें पहचाना जा सके कि किस बोतल में किस तत्व की कमी रखी गयी है। अब एक ही प्रकार, माप और उम्र के नवोद्भिद (Seedling) लेते हैं और कॉर्क के छिद्र से बोतल में लगा देते हैं।
इन सभी बोतलों को काले कागज या कपड़े से लपेट देते हैं और खुले प्रकाश में रख देते हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक प्रयोग बोतलों में ऐस्पीरेटर द्वारा नली से समय-समय पर वातन (Aeration) देते रहते हैं, जिससे कि जड़ों की सुचारु रूप से वृद्धि हो सके। लगभग पन्द्रह दिन पश्चात् प्रत्येक बोतल के विलयन को बदलते रहते हैं। पौधों में उत्पन्न विकारों को नोट करते हैं और विभिन्न तत्वों की कमी से किस पौधे में क्या विकार आते हैं, इसे ज्ञात करते हैं। शीर्षस्थ पत्तियाँ अच्छी तरह भोजन नहीं बना सकतीं, किन्तु नीचे से आपूर्ति किये जाने के कारण वे कुछ समय तक ठीक दिखती हैं।
प्रश्न 3.
किन्हीं पाँच स्थूलपोषक तत्वों (लघुमात्रक) के नाम एवं पौधों पर इनके प्रभावों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
स्थूल पोषक (लघुमात्रक) तत्व-पौधों में निम्नलिखित तत्व (लघुमात्रक) होते हैं-Mn, Cu, Zn, Mo, CI आदि।
(1) मैंगनीज:
इस तत्व का मुख्य कार्य श्वसन तथा नाइट्रोजन उपापचय (Nitrogen metabolism) की अभिक्रियाओं में भाग लेने वाले प्रकिण्वों के सक्रिय कारक के रूप में होता है। नाइट्रोजन उपापचय में नाइट्राइट रिडक्टेज (Nitrite reductase) और हाइड्रॉक्सिल-ऐमीन रिडक्टेज आदि प्रकीण्वों में मैंगनीज सक्रिय कारक के रूप में काम करता है। इसके अतिरिक्त मैंगनीज क्लोरोफिल संश्लेषण में एवं प्रकाश-संश्लेषण में जल के फोटोलिसिस (Photolysis) में सक्रिय रूप से भाग लेता है।
मैंगनीज की कमी के फलस्वरूप पत्तियों पर पीले धब्बे तथा अन्तराशिरीय क्षेत्र में ऊतकक्षयी धब्बे बनने लगते हैं। इसकी कमी से हरितलवक में से पर्णहरिम तथा स्टार्च के कण समाप्त होने लगते हैं। हरितलवक रिक्तिका मुँह एवं कणिका (Granule) के समान होने लगते हैं और धीरे-धीरे बिल्कुल समाप्त हो जाते हैं।
(2) ताँबा (Copper):
पौधे इसे द्विसंयोजक रूप में अवशोषित करते हैं। ताँबा विलेय रूप में अत्यन्त कम मात्रा में उपस्थित होता है। यह पौधे के लिए अत्यन्त सूक्ष्म मात्रा में आवश्यक होता है, अधिक मात्रा में यह विषैला (Toxic) होता है। पौधों में यह तत्व ऑक्सीकरण तथा अनॉक्सीकरण अभिक्रियाओं में उत्प्रेरक का कार्य करता है, क्योंकि यह प्रकीण्व की रचना में उपस्थित होता है। यह ऐस्कॉर्बिक अम्ल तथा पॉली फीनॉल ऑक्सीडेज का महत्वपूर्ण भाग होता है।
कॉपर प्लास्टोसाइनीन (Plastocynine) का, जो प्रकाश-संश्लेषण के प्रकाश कर्म में इलेक्ट्रॉन अभिगमन (Electron transport) में कार्य करता है, का भाग होता है। इस तत्व की कमी के कारण कुछ शरीर क्रियात्मक रोग (Physiological disease) जैसे-सिट्रस का डाइबैक (Dieback of citrus) तथा लेग्यूमिनोसी और अनाजों (Cereals) में उद्धार (Reclamation) रोग उत्पन्न होते हैं।
(3) जिंक (Zinc):
सामान्य रूप से यह तत्व मृदा में बहुत कम मात्रा में होता है और पौधे इन्हें द्विसंयोजक (Bivalents) के रूप में अवशोषित करते हैं। यह अनेक प्रकीण्वों जैसे कार्बोनिक ऐनहाइड्रेज, कार्बोक्सी पेप्टाइडेजेस (Carboxy peptidases), लैक्टिक, ऐल्कोहॉल, ग्लूटेमिक डीहाइड्रोजिनेजेस आदि का सक्रिय कारक है। यह तत्व ऑक्सिडेज जैसे कि इन्डोल-3-ऐसीटिक अम्ल (Indole-3-acetic acid) के जैव संश्लेषण के लिये अत्यन्त आवश्यक है। जिंक को प्रोटीन संश्लेषण से भी सम्बन्धित माना जाता है।
इसकी कमी के कारण तने की वृद्धि लघुकृत (Reduced) हो जाती है, साथ ही कायिक वृद्धि भी रुक जाती है, जिससे कि पौधे स्तम्भित (Stunted) वृद्धि प्रदर्शित करते हैं । पत्तियाँ विकृत (Distorted) होने लगती हैं साथ ही अन्तराशिरीय हरिमहीनता (Interveinal chlorosis) प्रदर्शित करती हैं । पर्वो की माप कम हो जाती है जिसे कि ‘लिटिल लीफ’ (Little leaf) रोग कहते हैं। जिंक की न्यूनता से बीजों के निर्माण में बाधा पड़ती है और फलों के वृक्षों में विकृतीकरण होने लगता है।
(4) मॉलिब्डेनम (Molybdenum):
इस तत्व की आवश्यकता ऐजोटोबैक्टर (Azotobacter) तथा राइजोबियम (Rhizobium) द्वारा भूमि में नाइट्रोजन के स्थिरीकरण में होती है। अर्थात् नाइट्रोजन उपापचय में इस तत्व की मुख्य भूमिका होती है। यह तत्व विकर नाइट्रेट रिडक्टेज (Nitrate reductase) का सक्रिय कारक है। यह तत्व ऐस्कॉर्बिक अम्ल की सान्द्रता को बनाये रखने में भी आवश्यक माना गया है।
इस तत्व की कमी के परिणामस्वरूप नीचे की पत्तियों में हरिमहीनता आती है तथा कुर्बरण (Mottling) के लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं। बाद में यह कुर्बरण क्षेत्र ऊतकक्षयी होकर सूखने लगता है। मॉलिब्डेनम की कमी से पुष्पन का संदमन (Inhibition) होता है। गोभी (Cauliflower) का ‘व्हिपटेल रोग’ (Whiptail disease) इसी तत्व की कमी के कारण होता है।
(5) क्लोरीन (Chlorine):
क्लोरीन, क्लोराइड आयनों के रूप में अवशोषित किया जाता है। वैज्ञानिकों के मतानुसार प्रकाश-संश्लेषण में जल से फोटो-ऑक्सीकृत क्लोरोफिल (Photo-oxidised chlorophyll) तथा इलेक्ट्रॉनों के स्थानान्तरण में क्लोराइड आयनों की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त यह आयनों के सन्तुलन को भी अनुरक्षित (Maintained) रखती है। इस की कमी से प्रकाश-संश्लेषण व वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।