MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 10 मेरे बचपन के दिन

MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 10 मेरे बचपन के दिन

मेरे बचपन के दिन अभ्यास

मेरे बचपन के दिन अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महादेवी वर्मा ने अपने बचपन में सबसे पहली कौन-सी पुस्तक पढ़ी? (2016)
उत्तर:
महादेवी वर्मा ने अपने बचपन में पहली पुस्तक पंचतन्त्र पढ़ी।

प्रश्न 2.
छात्रावास में महादेवी वर्मा की पहली साथिन कौन थी?
उत्तर:
छात्रावास में महादेवी वर्मा की पहली साथिन सुभद्रा कुमारी चौहान थीं।

प्रश्न 3.
लेखिका के भाई का नामकरण किसने किया था?
उत्तर:
लेखिका के भाई का नामकरण “जवारा” की बेगम साहिबा, जिनको वह ताई कहती थी, उन्होंने किया।

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मेरे बचपन के दिन लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पुरस्कार में मिले चाँदी के कटोरे को देखकर लेखिका को दुःख के साथ-साथ प्रसन्नता क्यों हुई?
उत्तर:
पुरस्कार में मिले चाँदी के कटोरे को देखकर लेखिका को दुःख के साथ प्रसन्नता इस कारण हुई क्योंकि उपहार में मिला चाँदी का कटोरा बापू ने ले लिया था, दुःख इस कारण हुआ क्योंकि उन्होंने कविता सुनाने के लिये नहीं कहा था। इस प्रकार लेखिका को दु:ख व प्रसन्नता की अनुभूति साथ-साथ हुई।

प्रश्न 2.
लेखिका और सहेलियाँ अपने जेब खर्च के पैसे क्यों बचाती थीं?
उत्तर:
लेखिका और उनकी सहेलियाँ अपने जेब खर्च के पैसे देश के लिए बचाती थीं और जब बापू आते थे तब वह पैसा उन्हें दे देती थीं।

प्रश्न 3.
लेखिका की ताई साहिबा उनके भाई के जन्म पर कपड़े लेकर क्यों आई थीं? (2014)
उत्तर:
लेखिका की ताई साहिबा उनके भाई के जन्म पर कपड़े इसलिए लाईं, क्योंकि छोटे बच्चों को माँ के यहाँ के कपड़े पहनाते हैं। यदि माँ न हो तो ताई या चाची छ: महीने तक बच्चे को कपड़े पहनाती हैं। इसी कारण ताई साहिबा उनके भाई के जन्म पर कपड़े लेकर आयीं थीं।

मेरे बचपन के दिन दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखिका ने अपनी माँ की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर:
लेखिका ने अपनी माँ की निम्नलिखित विशेषताओं का वर्णन किया है-
(1) आदर्श महिला-महादेवी वर्मा की माँ एक आदर्श महिला थीं। वे परिवार व बच्चों के प्रति जागरूक थीं। बच्चों की प्रत्येक गतिविधि को स्वयं देखती थीं। महादेवी वर्मा की शिक्षा में सबसे अधिक उनकी माँ का ही सहयोग था क्योंकि महादेवी को संस्कृत में रुचि थी। इस कार्य में उन्हें अपनी माँ के द्वारा सहायता मिल जाती थी।

(2) धर्मपरायण-महादेवी वर्मा की माँ धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। सुबह होते ही वे गीता पढ़ती थीं। इसके अतिरिक्त वे मीरा के भजन भी गाती थीं। इसी कारण महादेवी वर्मा को बचपन से ही काव्यमय वातावरण मिला। अपनी माँ के साथ-साथ महादेवी वर्मा भी गाते-गाते तुकबन्दी करना सीख गयी थीं। महादेवी वर्मा को आगे बढ़ने में उनकी माँ से प्रेरणा मिली।

(3) आदर्श माँ-महादेवी वर्मा को अपनी माँ के रूप में आदर्श शिक्षिका मिल गयी थी, क्योंकि महादेवी वर्मा को जब मौलवी साहब पढ़ाने के लिये आते थे वे चारपाई के नीचे छिप जाती थीं, लेकिन अपनी माँ के द्वारा लायी गयी पुस्तक ‘पंचतन्त्र’ उन्हें बहुत अच्छी लगी। उन्होंने सबसे पहले इसी पुस्तक को पढ़ा। इसके अतिरिक्त जब भी कभी कोई कविता लिखती वे अपनी माँ को अवश्य सुनाती थीं। माँ लेखिका को भाई व परिवार के अन्य सदस्यों से प्रेमपूर्ण व्यवहार करने को कहती थी। माँ को जातिगत भेदभाव तनिक भी पसन्द न था।

(4) उत्तम संस्कार-महादेवी वर्मा ने माँ के उत्तम संस्कारों के विषय में इस प्रकार कहा “जब मैं विद्यापीठ आई तब तक मेरे बचपन का वही क्रम जो आज तक चलता आ रहा है। कभी-कभी बचपन के संस्कार ऐसे होते हैं कि हम बड़े हो जाते हैं, तब तक चलते हैं।” वे अपनी माँ के सानिध्य में अधिक रहती थीं अत: माँ के संस्कारों से प्रभावित थीं।

(5) सबके प्रति अपनत्व की भावना-माँ मानवता के उच्च धरातल पर प्रतिष्ठित थीं। इसी कारण जब बेगम साहिबा उनके घर आती थीं तो उनको पूरा सम्मान देकर ताई कहकर बुलाती थीं। यहाँ तक महादेवी की माँ ने बेगम साहिबा द्वारा रखा गया उनके भाई का नाम हमेशा के लिए मनमोहन ही रखा। इस प्रकार उनकी माँ ने कभी अपने-पराये का भेद न रखा।

बेगम साहिबा के एक बेटा भी था जब राखी का त्यौहार आता था तब वे महादेवी वर्मा से इस प्रकार कहती थीं, “बहनों को राखी बाँधनी चाहिए, राखी के दिन सवेरे से पानी भी नहीं पीने देती थीं।”

निष्कर्ष में कह सकते हैं महादेवी की माँ एक ऐसी उच्च संस्कारों से सम्पन्न महिला थीं जो समाज को अपने स्नेह सम्बन्धों से एकता के सूत्र में बाँधने की इच्छुक थीं। मानव-मानव के मध्य धर्म, सम्प्रदाय एवं जातिगत दीवार खड़ी करने की घोर विरोधी थी। उनका चरित्र आधुनिक महिलाओं के लिये एक अनुकरणीय उदाहरण है।

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प्रश्न 2.
लेखिका के बचपन के दिनों के सामाजिक तथा भाषायी वातावरण का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक वातावरण-लेखिका के बचपन के दिनों में समाज का वातावरण अच्छा था। घर में तथा परिवार में आपस में प्रेम था। लोगों में आपसी सम्बन्ध सगे-सम्बन्धियों की भाँति थे। लेन-देन और व्यवहार में अपनत्व की भावना थी। निम्नलिखित उदाहरण में देखें-

“बेगम साहिबा कहती थीं ‘हमको ताई कहो !’ हम लोग उन्हें ‘ताई साहिबा’ कहते थे। उनके बच्चे हमारी माँ को चाचीजान कहते थे। हमारे जन्म दिन वहाँ मनाए जाते थे। उनके जन्मदिन हमारे यहाँ मनाए जाते थे। समाज में एक-दूसरे को अपनत्व के अतिरिक्त पूरा सम्मान दिया जाता था।” देखिये-

“हमारी माँ को दुल्हन कहती थीं। कहने लगी दुल्हन, जिनके ताई-चाची नहीं होती वो अपनी माँ के कपड़े पहनते हैं।” इस प्रकार लेखिका ने इस संस्मरण के माध्यम से सामाजिक स्थिति को स्पष्ट किया है।

भाषायी वातावरण – समाज में यदि आपसी प्रेम भाव हो तो भाषा के कारण कहीं भी विवाद हो ही नहीं सकता। अत: किसी को भी कोई भी भाषा पढ़ने-लिखने की कोई परेशानी न थी। सभी भाषाओं को सम्मान दिया जाता था। व्यक्ति को किसी भी भाषा के बोलने की स्वतन्त्रता थी। अतः भाषा की दृष्टि से वातावरण सुखद था, आपस में कोई विवाद न था। उदाहरण देखें-

“उस समय यह देखा मैंने कि साम्प्रदायिकता नहीं थी। जो अवध की लड़कियाँ थीं, वे आपस में अवधी बोलती थीं, बुन्देलखण्डी भी आती थीं, वे बुंदेली में बोलती थीं। इसके अलावा प्रत्येक को पूर्ण अधिकार था.चाहे वह उर्दू बोले, मराठी या अन्य भाषा, सब एक-दूसरे की भाषा का सम्मान करते थे। एक-दूसरे को प्रेमपूर्वक अपनी भाषा सिखा भी देते थे। इसी कारण भाषा की दृष्टि से वातावरण अच्छा था।”

प्रश्न 3.
परिवारों में लड़कियों के साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए? (2009)
उत्तर:
“मेरे बचपन के दिन” संस्मरण के द्वारा महादेवी वर्मा ने परिवार में लड़कियों की स्थिति के बारे में स्पष्ट किया है। महादेवी वर्मा ने यह बताने का प्रयास किया है कि उनके समय में परिवार में लड़कियों की स्थिति सम्मानजनक थी। जब उनके परिवार में कोई भी कन्या दो सौ वर्ष तक न जन्मी तब परिवार वालों ने कन्या का जन्म न होना दैवीय प्रकोप समझा।

इसके पश्चात् कुल देवी की आराधना के उपरान्त जन्मी कन्या की खातिर की गयी व उसकी शिक्षा-दीक्षा का अच्छा प्रबन्ध किया। इस संस्मरण के माध्यम से लेखिका ने परिवार में लड़कियों की स्थिति को आदर्श दिखाने का प्रयत्न किया है।

(1) परिवार में सम्मान – परिवार में लड़कियों को सम्मान की दृष्टि से देखना चाहिए। लड़कियों को व लड़कों को एक समान दृष्टि से देखना चाहिए। उस समय लड़कियों को इतना सम्मान मिलता था। निम्न उदाहरण से स्पष्ट है-देखिये

“उनका एक लड़का था उसको राखी बाँधने को वे कहती थीं। बहनों को राखी बाँधनी चाहिए। राखी के दिन सवेरे से पानी भी नहीं देती थीं, राखी के दिन बहनें राखी बाँध जाएँ तब तक भाई को निराहार रहना चाहिए।” इस प्रकार बताया है कि परिवार में लड़कियों का आदर होता था।

(2) शिक्षा प्राप्त करने की स्वतन्त्रता – परिवार में लड़कियों को पढ़ने-लिखने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिये। इस संस्मरण के माध्यम से लेखिका ने बताया है कि जब उनको घर पर पढ़ना अच्छा न लगा तो उनकी शिक्षा का प्रबन्ध विद्यालय में किया गया।

लड़कियों को पढ़ाने के लिये उनकी रुचि के अनुसार पढ़ने देना चाहिये। लड़कियाँ शहर में ही नहीं अन्य शहरों में छात्रावास में भी रहकर पढ़ सकती हैं। आज से वर्षों पूर्व जब लड़कियाँ बाहर छात्रावासों में रहकर शिक्षा ग्रहण कर सकती थीं तो बदलती हुई परिस्थितियों में लड़कियों पर अंकुश नहीं लगाना चाहिये।

(3) सभा व सम्मेलनों में भाग लेने की स्वतन्त्रता-इस संस्मरण के द्वारा लेखिका ने बताया है कि लड़कियाँ उन्मुक्त होकर सभा, सोसाइटियों एवं सम्मेलनों में भाग ले सकती हैं। उस समय स्त्री-पुरुष एक साथ सम्मेलन में भाग लिया करते थे। आपस में वार्तालाप भी करते थे। इस प्रकार पर्दा-प्रथा व स्त्री-पुरुष के मेल-मिलाप की स्वतन्त्रता थी-उदाहरण देखें-

“हम कविता सुनाते थे हरिऔध जी, अध्यक्ष होते थे, श्रीधर पाठक होते थे कभी रत्नाकर जी होते थे, कभी कोई और होता था।” इस प्रकार बताया है कि लड़कियों को कविता करने व सभाओं में जाने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

(4) जाति-पाँति के भेदभाव से मुक्त-इस संस्मरण के माध्यम से लेखिका ने बताया है कि लड़कियों को जाति-पाँति के बन्धन से मुक्त रखना चाहिए जिससे वे बाहर शिक्षा ग्रहण करने जाये तो उन्हें किसी भी प्रकार की कठिनाई न हो। ये समस्त संस्कार लड़कियों को परिवार से ही प्राप्त होते हैं। अतः परिवार में जाँति-पाँति का बन्धन नहीं होना चाहिये।

(5) भाषा की स्वतन्त्रता-परिवार में लड़कियों को उनकी इच्छानुसार भाषा बोलने का अधिकार होना चाहिए।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि परिवार के अन्तर्गत लड़के एवं लड़कियों के मध्य भेदभाव की भावना नहीं रखनी चाहिए। दोनों को समान दृष्टि से देखकर उन्नति की मंजिल की ओर कदम बढ़ाने का अवसर प्रदान करना चाहिए। तभी समाज पल्लवित-पुष्पित एवं विकास की ओर उन्मुख हो सकेगा।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
(क) हम हिन्दी ……… नहीं होता था।
(ख) उनके यहाँ भी ………… सपना खो गया है।
उत्तर:
(क) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस गद्यांश में महादेवी वर्मा ने छात्रावास के आदर्श एवं सद्भावना के वातावरण का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
जब महादेवी वर्मा छात्रावास में रह रही थीं, उस समय अध्ययन करने वाली सहयोगी छात्राओं में जाति सम्बन्धी एवं भाषा विषयक भेदभाव तनिक भी विद्यमान नहीं था। सब अपनी-अपनी भाषाओं का स्वतन्त्रतापूर्वक निसंकोच प्रयोग करते थे।

उस समय विद्यालय में हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू भाषा की भी शिक्षा प्रदान की जाती थी। प्रान्तीयता की भावना छात्राओं के मन-मानस में न थी। वार्तालाप में छात्राएँ अपनी भाषा का प्रयोग करती थीं। मेस में हम सभी एक साथ बैठकर भोजन करते थे। प्रार्थना भी सम्मिलित रूप से होती थी। सब तर्क-वितर्क से कोसों दूर थे। सब प्रेम के सूत्र में आबद्ध होकर जीवन-यापन करते थे।

(ख) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा महादेवी वर्मा ने अपने बाल्यकाल की, परिवार एवं समाज की झाँकी प्रस्तुत करके यह बताने का प्रयत्न किया है, कि उनके समय में वातावरण बहुत सौहार्द्रपूर्ण था।

व्याख्या :
महादेवी वर्मा ने इस गद्यांश में अपने भाई प्रोफेसर मनमोहन वर्मा के विश्वविद्यालय की स्थिति का वर्णन करते हुए बताया है। प्रोफेसर मनमोहन वर्मा का नाम बचपन में बेगम साहिबा ने रखा। उनका नाम सदैव वही रहा, क्योंकि हमारे मन में कोई भी जातिवाद की भावना न थी। जिस प्रकार घरों में जाति-पाँति का भेदभाव न था उसी प्रकार विद्यालयों में भी भाषागत भेदभाव न था। प्रोफेसर मनमोहन के विद्यालय में भी हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाएँ सिखाई जाती थीं जबकि हम लोग घर पर परस्पर अवधी भाषा का प्रयोग करते थे।

इस प्रकार भाषा प्रयोग के लिए किसी पर कोई भी रोक-टोक न थी। परिवार और समाज में एक-दूसरे के प्रति सद्भावना और अत्यधिक स्नेह था। सभी आपस में एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे। परन्तु आज समाज में परिवारों एवं समाज में जातिगत एवं भाषागत भेद-भाव और आपसी मनमुटाव को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि वे सब बातें स्वप्नवत् थीं। जिस प्रकार स्वप्न नींद खुलने के बाद टूट जाता है उसी प्रकार पिछली बातें स्वप्नवत् ही प्रतीत होती हैं, क्योंकि पूर्व जैसी स्थिति आज न तो परिवार में दिखायी देती है न ही विद्यालयों में।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव पल्लवन कीजिए
(क) बचपन की स्मृतियों में एक विचित्र-सा आकर्षण होता है। (2010)
(ख) परिस्थितियाँ सदैव एक सी नहीं रहती हैं।
उत्तर:
(क) उपर्युक्त कथन में महादेवी वर्मा ने अपनी बाल्यावस्था से जुड़ी समस्त बातों को याद करते हुए कहा है कि बचपन की यादों में एक अनोखा सा सम्मोहन होता है, क्योंकि जब मानव अपनी बचपन की बातें याद करता है तो वे सभी बातें अद्भुत-सी प्रतीत होती हैं। बड़े होने के उपरान्त भी व्यक्ति को उन बातों से बहुत लगाव-सा होता है।

जब व्यक्ति अपने बचपन की यादों में खो जाता है, तब वह बड़ा होने पर बचपन की उन अनुभूतियों को स्मरण करके प्रसन्नता का अनुभव करता है, क्योंकि बचपन की सभी यादें क्रमशः हमारे मस्तिष्क पर चित्रपट की रीलों की भाँति एक-एक करके दृष्टिगोचर होने लगती हैं तथा हम उन यादों में खोकर एक अनिर्वचनीय सुख का अनुभव करते हैं।

(ख) महादेवी वर्मा ने इस कथन के द्वारा यह बताने का प्रयत्न किया है कि व्यक्ति के जीवन में परिस्थितियाँ हमेशा एक-सी नहीं रहती हैं। जिस प्रकार राह-चलते समय उतार-चढ़ाव होता है। सुख व दुःख तथा रात और दिन क्रम से आते हैं। उसी प्रकार जीवन में हर क्षण बदलाव होता रहता है। कभी-भी संसार में कोई भी वस्तु एक समान नहीं रहती। परिवर्तन जीवन का शाश्वत नियम है। परिवर्तन के अनुसार परिस्थितियाँ भी परिवर्तित होती हैं। इस सन्दर्भ में लेखक का निम्न कथन देखिए-
“चलाचल ओ राही तू राह न कर कुछ मग की परवाह।
विश्व के कण-कण में तू खेलता रहता है परिवर्तन ॥”

प्रश्न 6.
“शायद वह सपना सत्य हो जाता तो भारत की कथा कुछ और होती।” कथन के आधार पर भारत की वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
आज से लगभग सौ वर्ष पूर्व भारत की सामाजिक परिस्थिति पूर्णरूप से भिन्न थी। समाज में आपस में प्रेम पूर्ण सम्बन्ध होते थे। इस कारण आपसी मनमुटाव नहीं होता था। लोग दूसरों के प्रति त्याग और सद्भाव की भावना रखते थे। लेकिन आज का मानव प्रत्येक सम्बन्ध को स्वार्थ की दृष्टि से देखता है। यदि व्यक्ति का स्वार्थ निहित है, तो वह उसके लिये कोई भी कार्य करना चाहेगा अन्यथा वह उसे देखकर अनजान बन जायेगा।

आज के समाज में इस बदलाव के कारण साम्प्रदायिक झगड़े होते रहते हैं। परिवारों में भी विवाद उत्पन्न होते रहते हैं। परिणामस्वरूप पारिवारिक विघटन हो गया है। पत्नी एवं पति व बच्चों की भी आपस में नहीं पटती है। पति-पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद हो जाते हैं। बच्चे वृद्ध होने पर माता-पिता को सम्मान नहीं देते हैं। वे उनके साथ अशोभनीय व्यवहार करते हैं।

यदि आज भी 100 वर्ष पूर्व की सामाजिक स्थिति होती तो आज शायद जो समाज की व्यवस्था है, उस प्रकार की व्यवस्था कदापि न होती। पिछली सभी बातें स्वप्नवत् प्रतीत होती हैं। जिस प्रकार की आज की सामाजिक परिस्थितियाँ हैं, उन्हीं के कारण आजकल लूटपाट, हत्याएँ एवं चोरी-डकैती व अन्याय अत्याचार होते हैं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि आज की सामाजिक परिस्थितियाँ इतनी घणित एवं अशोभनीय हो गयी हैं कि हमारा मस्तक लज्जा से झुक जाता है। आज देश के उत्थान के लिए पुरानी प्रगतिशील मान्यताओं का अपनापन परम आवश्यक है। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में-
“परिवर्तन ही उन्नति है, तो अब क्यों बढ़ते जाते हैं।
किन्तु मुझे तो सीधे सच्चे पूर्ण भाव ही भाते हैं।।”

मेरे बचपन के दिन भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिएअनंत, निरपराधी, दण्ड, शांति।
उत्तर:
अनंत – अन्त, निरपराधी – अपराधी, दण्ड – पुरस्कार, शांति – अशांति।

प्रश्न 2.
निम्न शब्दों के सामने दिए गए विकल्पों में से सही विकल्प लिखिए
(अ) निराहारी – (निर + आहार + ई) (निरा + हारी) (निराह + आरी)
(आ) अप्रसन्नता – (अप्र + सन्नता) (अ + प्रसन्नता) (अ + प्रसन्न + ता)
(इ) अपनापन – (अप + नापन) (अपन + आपन) (अपना + पन)
(ई) किनारीदार – (कि + नारी + दार) (किनारी + दार) (किना + रीदार)
उत्तर:
(अ) (निर + आहार + ई)
(आ) (अ + प्रसन्न + ता)
(इ) (अपना + पन)
(ई) (किनारी + दार)।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम, तद्भव तथा विदेशी शब्द पहचानकर लिखिए
दर्जे, मेज, जेब, छात्रावास, मित्र, हॉस्टल, प्रथम, कटोरा, भवन, खर्च, खीर, द्वंद, कपड़े, सपना।
उत्तर:
तत्सम शब्द – छात्रावास, मित्र, प्रथम, भवन।
तद्भव शब्द – खीर, सपना, द्वंद, कपड़े।
विदेशी शब्द – दर्जे, मेज, जेब, हॉस्टल, कटोरा, खर्च।

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्द युग्मों में से पूर्ण पुनरुक्त, अपूर्ण पुनरुक्त, प्रतिध्वन्यात्मक शब्द और भिन्नार्थक शब्द छाँटकर लिखिए-
पहले-पहल, रोने-धोने, सुन-सुन, प्रचार-प्रसार, जहाँ-तहाँ, कुछ-कुछ, कपड़े-वपड़े, इकड़े-तिकड़े, बार-बार, मिली-जुली, ताई-चाची।
उत्तर:

  1. पूर्ण पुनरुक्त शब्द-सुन-सुन, कुछ-कुछ, बार-बार।
  2. अपूर्ण पुनरुक्त शब्द-पहले-पहल, प्रचार-प्रसार, जहाँ-तहाँ, मिली-जुली।
  3. प्रतिध्वन्यात्मक शब्द-रोने-धोने, कपड़े-वपड़े, इकड़े-तिकड़े।
  4. भिन्नार्थक शब्द-ताई-चाची।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के बीच योजक चिह्न (-) का प्रयोग किस स्थिति को स्पष्ट करता है-
कुल-देवी, दुर्गा-पूजा, जेब-खर्च, कवि-सम्मेलन।
उत्तर:

  1. कुल-देवी-कुल की देवी-सम्बन्धकारक योजक चिह्न
  2. दुर्गा-पूजा-दुर्गा की पूजा-सम्बन्धकारक योजक चिह्न
  3. जेब-खर्च-जेब का खर्च-सम्बन्धकारक योजक चिह्न
  4. कवि-सम्मेलन-कवियों का सम्मेलन-सम्बन्धकारक योजक चिह्न।

मेरे बचपन के दिन पाठ का सारांश

महादेवी वर्मा संस्मरण एवं रेखाचित्रों की सुप्रसिद्ध लेखिका हैं। प्रस्तुत “मेरे बचपन के दिन” नामक संस्मरण में उन्होंने जो पारिवारिक, शैक्षिक एवं सामाजिक सम्बन्धों के हृदयस्पर्शी एवं भावपूर्ण चित्र उकेरे हैं, वे मर्मस्पर्शी हैं।

संस्मरण में धर्मों एवं भाषा बोली की समरसता का अत्यन्त ही भावपूर्ण अंकन है। संस्मरण में पूज्य बाबू द्वारा लेखिका को दिये गये पुरस्कार स्वरूप मिले चाँदी के कटोरे को बाप के माँग लेने का अत्यन्त ही हृदयस्पर्शी चित्रण है।

संस्मरण में सुभद्रा कुमारी चौहान तथा जेबुन्निसा एवं जवारा नबाव के परिवार के साथ सम्बन्धों का उल्लेख है। अध्ययन करते समय लेखिका जिन लड़कियों के सम्पर्क में आयी, उनका भी विवरण है। स्वतन्त्रता आन्दोलन की भी चर्चा है।

मेरे बचपन के दिन कठिन शब्दार्थ

बचपन = बाल्यावस्था। विचित्र = अनोखा। आकर्षण = लगाव। उत्पन्न = पैदा। अवश्य = जरूर। वश = सामर्थ्य। उपरान्त = बाद में। साथिन = सहेली, सहयोगी। तलाशी = ढूँढ़ना। मित्रता = दोस्ती। बेचैनी = व्याकुलता। पुरस्कार = इनाम, उपहार। हमेशा = सदैव। प्रसन्नता = खुशी। अवकाश = छुट्टी। विवाद = तर्क। इकड़े-तिकड़े = इधर-उधर। मुहर्रम = मुसलमानों का त्यौहार । दुल्हन = वधू। लोकर-लोकर = मराठी मूलशब्द अर्थात् जल्दी-जल्दी। नेग = मांगलिक अवसरों पर सगे-सम्बन्धियों को उपहार देने की रस्म। निराहार = बिना भोजन के।

मेरे बचपन के दिन संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. हमारी कुल-देवी दुर्गा थीं। मैं उत्पन्न हुई तो मेरी बड़ी खातिर हुई। परिवार में बाबा फारसी और उर्द जानते थे। पिता ने अंग्रेजी पढ़ी थी। हिन्दी का कोई वातावरण नहीं था।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘मेरे बचपन के दिन’ नामक पाठ से अवतरित है। इसकी लेखिका महादेवी वर्मा हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में महादेवी ने अपने जन्म तथा परिवार के बारे में बताया है।

व्याख्या :
महादेवी वर्मा का जन्म दुर्गा जी की आराधना के बाद हुआ था। उनके जन्म से दो सौ वर्ष पूर्व तक उनके घर में कोई भी कन्या न थी। इसी कारण जब महादेवी वर्मा का जन्म हुआ सबसे पहले कुल देवी दुर्गाजी का पूजा-पाठ किया गया। उसके पश्चात् महादेवी को बहुत लाड़-प्यार से रखा गया। महादेवी वर्मा ने अपने बाबा के विषय में लिखा है। उनके बाबा को फारसी और उर्दू भाषा का ज्ञान था। इसके अतिरिक्त उनके पिताजी को केवल अंग्रेजी भाषा आती थी। इस प्रकार महादेवी वर्मा के परिवार में हिन्दी भाषा का कोई भी वातावरण नहीं था।

विशेष :

  1. भाषा सरल व सुबोध है, शैली विचारात्मक है।
  2. महादेवी वर्मा ने लड़कियों के महत्त्व को दर्शाने का प्रयत्न किया है।
  3. भाषा में प्रचलित शब्दों का व उर्दू शब्दों का प्रयोग है, जैसे-खातिर।”
  4. कुलदेवी में सामासिक पद है।

2. हम पढ़ते हिन्दी थे। उर्दू भी हमको पढ़ाई जाती थी, परन्तु आपस में हम अपनी भाषा में ही बोलती थीं। वह बहुत बड़ी बात थी। हम एक मेस में खाना खाते थे, एक प्रार्थना में खड़े होते थे, कोई विवाद नहीं होता था। (2010)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस गद्यांश में महादेवी वर्मा ने छात्रावास के आदर्श एवं सद्भावना के वातावरण का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
जब महादेवी वर्मा छात्रावास में रह रही थीं, उस समय अध्ययन करने वाली सहयोगी छात्राओं में जाति सम्बन्धी एवं भाषा विषयक भेदभाव तनिक भी विद्यमान नहीं था। सब अपनी-अपनी भाषाओं का स्वतन्त्रतापूर्वक निसंकोच प्रयोग करते थे।

उस समय विद्यालय में हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू भाषा की भी शिक्षा प्रदान की जाती थी। प्रान्तीयता की भावना छात्राओं के मन-मानस में न थी। वार्तालाप में छात्राएँ अपनी भाषा का प्रयोग करती थीं। मेस में हम सभी एक साथ बैठकर भोजन करते थे। प्रार्थना भी सम्मिलित रूप से होती थी। सब तर्क-वितर्क से कोसों दूर थे। सब प्रेम के सूत्र में आबद्ध होकर जीवन-यापन करते थे।

विशेष :

  1. छात्रावास के आदर्श वातावरण का चित्रण है।
  2. शैली सरल व सुबोध है।
  3. एकता की भावना का प्रतिपादन है।

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3. उनके यहाँ भी हिन्दी चलाई जाती थी, उर्दू भी चलती थी। यों, अपने घर में वे अवधी बोलती थीं। वातावरण ऐसा था उस समय कि हम लोग बहुत निकट थे। आज की स्थिति देखकर लगता है, जैसे वह सपना ही था। आज वह सपना खो गया है।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश के द्वारा महादेवी वर्मा ने अपने बाल्यकाल की, परिवार एवं समाज की झाँकी प्रस्तुत करके यह बताने का प्रयत्न किया है, कि उनके समय में वातावरण बहुत सौहार्द्रपूर्ण था।

व्याख्या :
महादेवी वर्मा ने इस गद्यांश में अपने भाई प्रोफेसर मनमोहन वर्मा के विश्वविद्यालय की स्थिति का वर्णन करते हुए बताया है। प्रोफेसर मनमोहन वर्मा का नाम बचपन में बेगम साहिबा ने रखा। उनका नाम सदैव वही रहा, क्योंकि हमारे मन में कोई भी जातिवाद की भावना न थी। जिस प्रकार घरों में जाति-पाँति का भेदभाव न था उसी प्रकार विद्यालयों में भी भाषागत भेदभाव न था। प्रोफेसर मनमोहन के विद्यालय में भी हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाएँ सिखाई जाती थीं जबकि हम लोग घर पर परस्पर अवधी भाषा का प्रयोग करते थे।

इस प्रकार भाषा प्रयोग के लिए किसी पर कोई भी रोक-टोक न थी। परिवार और समाज में एक-दूसरे के प्रति सद्भावना और अत्यधिक स्नेह था। सभी आपस में एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े हुए थे। परन्तु आज समाज में परिवारों एवं समाज में जातिगत एवं भाषागत भेद-भाव और आपसी मनमुटाव को देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे कि वे सब बातें स्वप्नवत् थीं। जिस प्रकार स्वप्न नींद खुलने के बाद टूट जाता है उसी प्रकार पिछली बातें स्वप्नवत् ही प्रतीत होती हैं, क्योंकि पूर्व जैसी स्थिति आज न तो परिवार में दिखायी देती है न ही विद्यालयों में।

विशेष :

  1. महादेवी वर्मा ने अपने समय के वातावरण की तुलना आज के समाज से की है।
  2. भाषा-शैली गंभीर एवं चिंतन प्रधान है।

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