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MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 7 सामाजिक समरसता
सामाजिक समरसता अभ्यास
सामाजिक समरसता अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
केवट के अनुसार “पगधूरि” का क्या प्रभाव है? (2015)
उत्तर:
केवट के अनुसार श्रीराम की पगधूरि का प्रभाव यह है कि उसके स्पर्श से शिला भी स्त्री बन जाती है।
प्रश्न 2.
केवट की जीविका का एकमात्र आधार क्या था?
उत्तर:
केवट की जीविका का एकमात्र आधार उसकी नाव थी। उस नाव में वह सवारियाँ बैठा कर गंगा पार कराता था।
प्रश्न 3.
कवि के अनुसार हमें अशिक्षित या असभ्य बताने वाले लोग कौन हैं?
उत्तर:
कवि के अनुसार हमें अशिक्षित या असभ्य बताने वाले लोग वे हैं,जो हम लोगों की सभ्यता से अनजान हैं या वे पक्षपात की भावना से ग्रसित हैं।
प्रश्न 4.
सभी देश हमारे यहाँ किस प्रयोजन से आते रहे हैं?
उत्तर:
सभी देशों के लोग भारत में शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते रहे हैं।
सामाजिक समरसता लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
केवट के किन वचनों को सुनकर प्रभु को हँसी आ गई? (2016)
उत्तर:
केवट कहता है कि हे प्रभु ! आपके चरणों की धूल का प्रभाव बहुत ही विशाल है। मेरी नाव तो लकड़ी की है जो पत्थर से बहुत कोमल है (केवट के मन में शंका है कि जिन चरणों की धूल से पत्थर की शिला स्त्री बन गई तो उसकी नाव तो नष्ट ही हो जायेगी)। अतः केवट श्रीराम के सम्मुख एक शर्त रखता है कि वह उनके पवित्र चरणों को धोकर ही उन्हें नाव पर चढ़ायेगा। प्रभु की स्वीकृति मिलने पर केवट अपने परिवार सहित श्रीराम के चरणों की वन्दना करता है,तत्पश्चात् एक कठौते में गंगाजल भरकर रामजी के चरण धोकर उस पवित्र जल का पान करता है। इस प्रकार केवट की भक्ति और उसकी प्रेम से परिपूर्ण भोली वाणी सुनकर श्रीराम (प्रभु) को हँसी आ गई।
प्रश्न 2.
प्राचीनता की खोज बढ़ने पर हम पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
अतीत की खोज होने पर हमारी उच्चता (सभ्यता) के प्रमाण मिलते जायेंगे। जहाँ-जहाँ भी लोग जायेंगे तो वे पायेंगे कि भारतवासियों के चरण वहाँ पहले पड़ चुके हैं।
प्रश्न 3.
भारत की सभ्यता के विकास को कौन लोग स्वीकार नहीं करते और क्यों?
उत्तर:
भारत की सभ्यता के विकास को वे लोग स्वीकार नहीं करते जो भारत के गौरवशाली इतिहास से अनजान हैं या जानबूझ कर पक्षपात की भावना से ग्रसित होने के कारण भारत की सभ्यता को स्वीकार नहीं करते।
प्रश्न 4.
सुरलोक में देवगण किसका वंदन कर रहे हैं? (2017)
उत्तर:
सरलोक में देवगण भारत के ऋषि.मनियों और सुशिक्षित भारतीयों का वन्दन कर रहे हैं। यहाँ के प्राचीन गौरव से देवता भी परिचित हैं। समय-समय पर भगवान यहीं पर अवतरित होते रहे हैं।
सामाजिक समरसता दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
राम को पार उतारने के लिए केवट कौन-सी शर्त रखता है और क्यों? (2010, 14)
उत्तर:
श्रीराम को जानकी और लक्ष्मण सहित गंगा पार उतारने के लिए केवट यह शर्त रखता है कि वह श्रीराम के चरणों को धोकर ही अपनी नाव पर चढ़ायेगा क्योंकि उनके चरणों की रज के स्पर्श से एक शिला भी स्त्री बन गई थी। यदि वह रज उसकी नाव को स्पर्श करेगी तो या तो मेरी नाव नष्ट हो जायेगी या दसरी स्त्री बन जायेगी। फिर वह अपने परिवार का पालन कैसे करेगा। यह भोला-सा उसका तर्क बड़ी चतुरता लिए हुए है। वह उनके चरणों का चरणामृत स्वयं पीकर और अपने परिवार को पिलाकर सबका उद्धार करना चाहता है।
प्रश्न 2.
रामचन्द्र जी का भाव समझकर केवट ने क्या-क्या उपक्रम किए?
उत्तर:
रामचन्द्र जी की स्वीकृति का रुख देखकर केवट ने अति प्रसन्न होकर अपनी पत्नी और बच्चों को बुला लिया और रामजी की वन्दना करके उनको चारों ओर से घेर कर वे सब बैठ गये। फिर वह छोटे से कठौते में गंगाजल भर लाया और श्रीराम के चरण-कमलों को धोकर उसे चरणामृत बना लिया। फिर उसने उस पवित्र चरणामृत को स्वयं पीया और अपने घरवालों को पिलाया। इस प्रकार उसने श्रीराम के चरणों के जल को पीकर और अपने परिवार को पिलाकर भवसागर से सबका उद्धार कर लिया। नाव पर चढ़ाने की यह शर्त रखना उसकी चतुरता थी कि वह सहज में ही संसार-सागर से पार हो गया।
प्रश्न 3.
“हमको अशिक्षित कहने वाले लोग सभ्य कैसे हो सकते हैं?” इन पंक्तियों से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘हमको अशिक्षित कहने वाले लोग सभ्य कैसे हो सकते हैं’ इस पंक्ति से कवि मैथिलीशरण गुप्त का तात्पर्य यह है कि भारतवर्ष प्राचीन काल से ही शिक्षित और सभ्य रहा है। यहाँ के ऋषि-मुनियों ने वेद-उपनिषदों का ज्ञान विश्व को दिया। सर्वप्रथम भारतवासियों ने ही विश्व को सभ्यता का पाठ पढ़ाया। विदेशों से अनेक छात्र प्राचीनकाल में भारत में शिक्षा प्राप्त करने आते थे। भारत का प्राचीन गौरव और वैभव उन्नत था। हमको अशिक्षित बताने वाले लोग हमारी सभ्यता और गौरव से अनजान हैं या पक्षपात से ग्रसित हैं। उन्हें भारत की प्राचीन सभ्यता का ज्ञान नहीं है। फिर वे लोग भारत से पहले सभ्य हो ही नहीं सकते। भारत की सभ्यता का डंका प्राचीनकाल से ही विश्व में गूंज रहा है।
प्रश्न 4.
‘महत्ता’ कविता में भारतवर्ष की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है? (2009, 14)
उत्तर:
‘महत्ता’ नामक कविता में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भारत की महत्ता का उल्लेख किया है। जो लोग हमको अतीत में असभ्य बता रहे हैं वे लोग हमारी सभ्यता से या तो अनजान हैं या पक्षपात की भावना से ग्रसित हैं। भविष्य में यदि प्राचीनता की खोज की जायेगी तो सभी जगह भारतवासियों के पदचिह्न और सभ्यता के चिह्न मिलेंगे। यहीं से पूरे विश्व ने ज्ञान प्राप्त किया। अनेक देशों के छात्र भारत में पढ़ने के लिए आते थे। हमने स्वयं पीछे रहकर भी दूसरों को आगे बढ़ाने का उपक्रम किया। यूनान जैसे देश भी हमने सभ्य कर दिये। हमने मरते हुए लोगों को भी जगाकर जीवन का मन्त्र दिया। जो लोग हमारी सभ्यता पर हँसते थे, वे हमारे आधुनिक अनुसंधान देखकर लज्जित हैं। जो लोग व्यर्थ में ही हम लोगों से विरक्त हैं वे कल हमारी प्रगति देखकर हमसे प्रेम करने लगेंगे। सभी लोग विद्या प्राप्त करने के लिए भारतवर्ष में लगातार आते रहे हैं। देवता भी स्वर्ग में भारतवासियों के उत्कर्ष को देखकर गुणगान करते रहे हैं।
सामाजिक समरसता काव्य सौन्दर्य
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिये
अनुरक्त, उत्कर्ष, अज्ञ, मरण।
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखिए
धूरि, लरिका, पायन,प्रभाउ, आयसु, बानी।
उत्तर:
प्रश्न 3.
तुलसीदास किस भाषा के कवि हैं? उनकी भाषा के कुछ शब्द पाठ से छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
तुलसीदास मुख्यतः अवधी भाषा के कवि हैं। उनके कुछ शब्द हैं-
“एहि घाटतें थोरिक दूरि अहै कटि लौं जल,थाह देखाइहौं जू।
परसै पगधूरि तरै तरनी, घरनी घर क्या समुझाइहौं जू।”
प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में आए अलंकार छाँटकर लिखिए
- बरषै सुमन, जय-जय कहें टेरि-टेरि।
- पावन पाय पखारि कै नाव चढ़ाइहौं।
- ज्यों ज्यों प्रचुर प्राचीनता की खोज बढ़ती जायेगी।
उत्तर:
- ‘जय-जय’ और ‘टेरि-टेरि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार।
- पावन पाय पखारि’ में अनुप्रास अलंकार।
- ‘ज्यों-ज्यों में पुनरुक्तिप्रकाश और ‘प्रचुर प्राचीनता’ में अनुप्रास अलंकार।
प्रश्न 5.
प्रबन्ध काव्य से आप क्या समझते हैं? किन्हीं दो प्रबन्ध काव्यों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रबन्ध काव्य के छंद एक कथा के धागे में माला की तरह गुंथे होते हैं, अर्थात् जो रचना कथा-सूत्रों या छन्दों की तारतम्यता में अच्छी तरह निबद्ध हो उसे प्रबन्ध काव्य कहते हैं, जैसे-साकेत,रामचरितमानस।
प्रश्न 6.
नाटक और एकांकी में अन्तर बताइये।
उत्तर:
(1) नाटक-इसमें अनुकरण तत्व की प्रधानता रहती है और मानवीय जीवन के क्रियाशील कार्यों का अनुकरण होता है। इसमें कई अंक होते हैं।
(2) एकांकी-एकांकी एक अंक वाला नाटक है। यह एक ऐसी पूर्ण नाटकीय रचना है जिसमें मानव जीवन के एक पक्ष, एक चरित्र, एक समस्या और एक भाव की अभिव्यक्ति होती है।
केवट प्रसंग भाव सारांश
प्रस्तुत कविता ‘केवट प्रसंग’सन्त कवि ‘तुलसीदास’ द्वारा रचित है। यहाँ पर कवि ने केवट की अनन्य भक्ति और राम का उस पर अनुग्रह मनमोहक प्रसंग के रूप में प्रस्तुत किया है।
समाज की रचना एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में निर्धारित की गई है। किन्तु सामाजिक गतिशीलता के अन्तर्गत अनेक व्यतिक्रम आते हैं। समाज के चिन्तक और साहित्यकार अपनी अभिव्यक्ति के माध्यम से समरसता को सुरक्षित रखने का प्रयास करते हैं। भक्तिकाल के कवियों में सामाजिक समरसता का स्वर अत्यधिक रूप से मुखरित हुआ है। कविवर तुलसी ने केवट और राम के प्रसंग में इस तथ्य को संवेदना के स्तर पर प्रकट किया है। अयोध्या के राजपुत्र राम केवट से जिस आत्मीय भाव से भेंट करते हैं वह एक भावुक दृश्य है। केवट के प्रेम से वशीभूत होकर राम ने सहर्ष अपने चरण-कमल धुलवाये और केवट को प्रसन्न किया। केवट का भोलापन राम के हृदय को प्रसन्न करता है। केवट से उनका प्रेम समरसता का सन्देश प्रदान करता है।
केवट प्रसंग संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
1. नाम अजामिल से खल कोटि अपार नदी भव बूड़त काढ़े।
जो सुमिरें गिरि मेरु सिलाकन होत, अजाखुर बारिधि बाढ़े॥
तुलसी जेहि के पद पंकज तें प्रगटी तटिनी, जो हरै अघ गाढ़े।
ते प्रभु या सरिता तरिबे कहुँ माँगत नाव करारें बै ठाढ़े॥
एहि घाटतें थोरिक दूरि अहै कटि लौं जलु, थाह दिखाइहौं जू।
परसें पगधूरि तरै तरनी, घरनी घर क्या समझाइहौं जू।
तुलसी अवलम्बु न और कछू लरिका केहि भाँति जिआइहौं जू।
बरु मारिए मोहि बिना पग धोएँ हौं नाथ न नाव चढ़ाइहौं जू।
शब्दार्थ :
खल = पापी,दुष्ट; कोटि = करोड़ों, अनेक; नदी भव = संसार रूपी सागर; बूड़त = डूबते हुए; मेरु = सुमेरु पर्वत; सिलाकन = पत्थर का कण; अजाखुर = बकरी के खुर के बराबर; बारिधि = समुद्र; पद पंकज = चरण-कमल; तटिनी = गंगा नदी; अघ = पाप; कटिलौं = कमर के बराबर; थाह = गहराई; परसै = स्पर्श करके; पगधूरि = पैरों की धूल; घरनी = घरवाली; अवलम्बु = और कोई सहारा; लरिका = बच्चे; बरु मारिए = चाहे मार दें।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित ‘केवट प्रसंग’ से उद्धृत हैं।।
प्रसंग :
यहाँ पर वर्णन है कि वनवास प्राप्त राम, सीता और लक्ष्मण गंगा के किनारे पर खड़े हैं और केवट से उन्हें गंगा पार उतारने के लिए नाव लाने के लिए अनुरोध कर रहे हैं। केवट अपनी एक शर्त के साथ पार उतारने के लिए वार्तालाप कर रहा है।
व्याख्या :
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस प्रभु ने अजामिल जैसे अनेक पापियों का भव सागर से उद्धार कर दिया। जिसके स्मरण (जप) करने से सुमेरु पर्वत चट्टान के एक कण के समान छोटा हो सकता है और समुद्र बकरी के खुर के समान हो सकता है। उन्हीं के चरण कमलों से गंगाजी प्रकट हुई थीं जो कठोर पापों को भी नष्ट कर देती हैं अर्थात् इसमें स्नान करने से पापी के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। वही प्रभु राम सुरसरि से पार उतरने के लिए केवट से नाव माँग रहे हैं। अर्थात् वह ब्रह्म जो सर्व समर्थ है,वह केवट से पार उतारने के लिए निहोरा कर रहा है।
केवट ने श्रीराम के सामने एक शर्त रखी कि वह उनके चरण धोकर ही नाव पर चढ़ायेगा। उसके मन में यह शंका है कि उनके चरणों में लगी धूल से जब पत्थर की शिला स्त्री बन गई तो फिर उसकी नाव तो नष्ट हो ही जायेगी,फिर वह घर जाकर अपनी घर वाली को क्या समझायेगा। इसके अलावा उसके पास और कोई सहारा (रोजी) नहीं है, वह अपने बच्चों का पालन कैसे करेगा। चाहे वे (राम और लक्ष्मण) उसे बेशक मार दें पर बिना पग धोए वह उन्हें अपनी नाव पर नहीं चढ़ायेगा। यदि उन्हें उसकी शर्त मंजूर नहीं है, तो इस घाट से थोड़ी दूर चलकर कमर तक जल है और वह उसकी थाह लेकर भी दिखा देगा। वे चाहें तो वहाँ से जल में प्रवेश करके गंगा पार जा सकते हैं।
काव्य सौन्दर्य :
- अवधी भाषा का सुन्दर समायोजन है।
- प्रभु के गुणों का वर्णन किया गया है।
- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग सुन्दर बन पड़ा है।
- तद्भव शब्दों का प्रयोग कविता में मधुरता लिये है।
2. रावरे दोषु न पायन को, पगधूरि को भूरि प्रभाउ महा है।
पाहन तें बन-बाहनु काठ को कोमल है, जलु खाइ रहा है।
पावन पाय पखारि कै नाव चढ़ाइहौं, आयसु होत कहा है।
तुलसी सुनि केवट के बर बैन हँसे प्रभु जानकी ओर हहा है।।
प्रभुरुख पाइ कै, बोलाइ बालक घरनिहि
बंदि कै चरन चहँ दिसि बैठि घेरि-घेरि।
छोटो-सो कठौता भरि आनि पानी गंगाजू को,
घोड़ पाय पीअत पुनीत बारि फेरि-फेरि।
तुलसी सराहैं ताको भागु, सानुराग सुर,
बरर्षे सुमन, जय-जय कहैं टेरि-टेरि।
बिबिध सनेह-सानी बानी असयानी सुनि,
हँसे राघौ जानकी-लखन तन हेरि-हेरि॥
शब्दार्थ :
रावरे = स्वामी; दोषु = दोष; पायन = चरणों का; पगधूरि = चरण रज; भूरि = बहुत; बन-बाहनु = नाव;जलु खाइ रहा है = जल ने खा लिया है; पखारि = धोकर; आयसु = आज्ञा; बर बैन = श्रेष्ठ वचन; प्रभुरुख = प्रभु की स्वीकृति; घरनिहि = पत्नी; कठौता = पानी भरने का लकड़ी का बर्तन; पुनीत = पवित्र; सराहैं = प्रशंसा करते हैं; सानुराग = प्रसन्नता से; सुर = देवता; टेरि-टेरि = बुला बुलाकर; बिबिध = अनेक प्रकार की; असयानी = भोली; राघौ = राम जी; हेरि-हेरि = देख-देख कर।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
यहाँ पर केवट अपनी बात पर अडिग रहते हुए विनती करता है कि मेरी नाव लकड़ी की है जो पाहन से बहुत कोमल है। प्रभु की स्वीकृति पा उसने उनके चरणों के पवित्र जल से अपने परिवार का उद्धार कर लिया।
व्याख्या :
केवट कहता है कि हे स्वामी ! आपके चरणों का दोष नहीं है.पर आपके चरणों की धूल का प्रभाव बहुत बड़ा है। मेरी नाव तो लकड़ी की है जो चट्टान से बहुत कोमल है और जल में निरन्तर चलने के कारण जल में उसकी लकड़ी गल गई है। मैं आपके पवित्र चरणों को धोकर ही नाव पर चढ़ाऊँगा, आपकी क्या आज्ञा है, मुझे बताएँ। तुलसीदास जी कहते हैं कि केवट के श्रेष्ठ गूढ़ भरे वचनों को सुनकर प्रभु जानकी की ओर देखकर मुस्कराए।
प्रभु की स्वीकृति पाकर केवट ने अपनी पत्नी और बालकों को बुला लिया। श्रीराम के चरणों की वन्दना की और चारों तरफ से उन्हें घेर कर बैठ गये। छोटे से कठौते (पानी भरने का लकड़ी का कटोरा जैसा बर्तन) में गंगाजल भरकर राम जी के चरण धोकर उस पवित्र जल को अपने पूरे परिवार के साथ पिया। तुलसी कहते हैं कि देवता भी प्रसन्न होकर केवट के भाग्य की सराहना करने लगे। देवता पुष्पों की वर्षा करने लगे और बार-बार जय-जयकार करने लगे। केवट की प्रेम से भरी हुई भोली वाणी सुनकर श्रीराम जानकी और लक्ष्मण की ओर देखकर हँसने लगे।
काव्य सौन्दर्य :
- अवधी भाषा का सुन्दर प्रयोग है।
- तद्भव शब्दों के प्रयोग से कविता में मधुरता आ गई है।
- अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
महत्ता भाव सारांश
प्रस्तुत कविता ‘महत्ता’ राष्ट्रकवि ‘मैथिलीशरण गुप्त’ द्वारा लिखित है। इस देश-भक्ति से ओतप्रोत कविता में कवि ने भारतीयों के ओज, परोपकारिता एवं सभ्यता का वर्णन किया है।
आधुनिक युग में मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में सामाजिक समरसता के प्रसंग सर्वाधिक हैं। वे हमारे अतीत को अपनी कविता में स्पष्ट करते हैं कि हमारा अतीत पारस्परिक सद्भाव से ओतप्रोत था। भारतीय मृत्यु में भी अमरता के दर्शन करते हैं। भारतीय सदा से ही शिक्षित और सभ्य रहे हैं। यद्यपि महाभारत का समर हुआ फिर भी हम लोग विकसित हुए और यूनान जैसे देशों को भी हमने सभ्यता का पाठ पढ़ाया। अन्य देश हमारी सभ्यता और प्रगति को देखकर अचम्भित हैं। भारत देवताओं के स्वर्ग से भी अधिक उन्नतिशील है।
महत्ता संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
(1) जो पूर्व में हमको अशिक्षित या असभ्य बता रहे
वे लोग या तो अज्ञ हैं या पक्षपात जता रहे।
यदि हम अशिक्षित थे, कहें तो सभ्य वे कैसे हए?
वे आप ऐसे भी नहीं थे, आज हम जैसे हुए। (2013)
शब्दार्थ :
पर्व में = पहले; अज्ञ = अनजान; पक्षपात = दूसरे का पक्ष लेना।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘महत्ता’ नामक शीर्षक से उद्धृत हैं। इसके रचयिता राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हैं।
प्रसंग :
यहाँ पर कवि भारत के प्राचीन गौरव का बखान करते हुए आज भी भारत को उच्च स्थान पर सुशोभित कर रहा है।
व्याख्या :
जो लोग (देश) प्राचीन काल से ही भारत को असभ्य और अशिक्षित बता रहे हैं वे या तो हमारी सभ्यता से अवगत नहीं हैं या फिर पक्षपात से ग्रसित होने के कारण ऐसा कर रहे हैं। यदि हम अशिक्षित थे तो वे फिर कैसे सभ्य हो सकते हैं क्योंकि भारत से ही विविध प्रकार के ज्ञान अन्य देशों में पहुँचे। हम जितने सभ्य और ज्ञानी आज हैं वे लोग स्वयं पहले उतने सभ्य और जानकार नहीं थे।
काव्य सौन्दर्य :
- भारत के प्राचीन गौरव का प्रभावशाली वर्णन किया है।
- अनुप्रास अलंकार है।
(2) ज्यों-ज्यों प्रचुर प्राचीनता की खोज बढ़ती जायगी,
त्यों-त्यों हमारी उच्चता पर ओप चढ़ती जायगी,
जिस ओर देखेंगे हमारे चिह्न दर्शक पायेंगे,
हमको गया बतलायेंगे, जब जो जहाँ तक जायेंगे।
शब्दार्थ :
प्रचुर = अधिक; प्राचीनता = अतीत; ओप = चमक; दर्शक = देखने वाले।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
कवि ने इन पंक्तियों में व्यक्त किया है कि ज्यों-ज्यों प्राचीनता की खोज होगी त्यों-त्यों भारत की महानता का पता लगता जायेगा।
व्याख्या :
जैसे-जैसे प्राचीनता की खोज होती जायेगी वैसे-वैसे हमारी उच्चता (श्रेष्ठता) के प्रमाण मिलते जायेंगे। जहाँ भी वे लोग देखेंगे भारतीयों के पद-चिह्न वहीं पर पायेंगे और संसार के सामने यह घोषणा करेंगे कि भारतीय वहाँ तक जा चुके हैं।
काव्य सौन्दर्य :
- भारत के प्राचीन गौरव का सुन्दर वर्णन है।
- अनुप्रास और पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार की छटा दर्शनीय है।
(3) पाये हमीं से प्रथम सबने अखिल उपदेश हैं,
हमने उजड़कर भी बसाए दूसरे बहुदेश हैं,
यद्यपि महाभारत-समर था मरण भारत के लिए,
यूनान जैसे देश फिर भी सभ्य हमने कर दिये।।
शब्दार्थ :
अखिल = सम्पूर्ण; समर = युद्ध । सन्दर्भ-पूर्ववत्। प्रसंग-उक्त पंक्तियों में कवि ने भारत को परोपकारी और धैर्यवान बताया है।
व्याख्या :
सभी देशों ने भारत के ऋषि-मुनियों के सदुपदेश प्राचीन काल से ही सुने हैं। भारतीयों ने अपनी परवाह न कर परोपकार किए हैं और उजड़े हुए देशों को पुनः बसाया है। यद्यपि महाभारत का युद्ध एक प्रकार से भारत का सर्वनाश था, परन्तु फिर भी हम पुनः स्थापित हुए और सभ्यता और प्रगति का पथ प्राप्त किया। यूनान जैसे देशों की सभ्यता भी भारत की ही देन है। भारत ने यूनान को सभ्य बनाने में अपना योगदान दिया।
काव्य सौन्दर्य :
- भारत की दूरदर्शिता और परोपकारिता का वर्णन सटीक है।
- मानवीकरण का प्रयोग भारत के लिए किया गया है।
4. हमने बिगड़कर भी बनाये जन्म के बिगड़े हुए,
मरते हुए भी हैं जगाये मृतक-तुल्य पड़े हुए।
गिरते हुए भी दूसरों को हम चढ़ाते ही रहे,
घटते हुए भी दूसरों को हम बढ़ाते ही रहे।
शब्दार्थ :
मृतक-तुल्य = मरे हुए के समान।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
यहाँ कवि बता रहा है कि हमने गिरते हुए भी दूसरों को उठाया। सब लोगों को हमने ज्ञान दिया।
व्याख्या :
कवि कहता है कि भारतवासियों ने बिगड़े हुए लोगों को सुधारा है। हमने स्वयं की हालत न देखकर मृत समान लोगों को जाग्रत कर जीने का सुख प्रदान किया है। गिरते हुओं को हम ऊपर चढ़ाते रहे हैं और स्वयं पीछे रहकर दूसरों को आगे बढ़ाते रहते हैं।
काव्य सौन्दर्य :
- विरोधाभास अनूठा है।
- दूसरों का भला करने की भावना बलवती है।
(5) कल जो हमारी सभ्यता पर थे हँसे अज्ञान से,
वे आज लज्जित हो रहे हैं अधिक अनुसन्धान से।
जो आज प्रेमी हैं हमारे भक्त कल होंगे वही,
जो आज व्यर्थ विरक्त हैं अनुरक्त कल होंगे वही॥ (2012, 16)
शब्दार्थ :
अज्ञान = जानकारी न होना; अनुसंधान = खोज।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
यहाँ कवि ने भारतवासियों की उदारता का वर्णन किया है।
व्याख्या :
अतीत में जो लोग हमारी सभ्यता पर हँसते थे, वे ही लोग आज हमारे अनुसन्धानों (खोजों) को देखकर लज्जित हो रहे हैं। जो देश आज हमारे मित्र हैं, वे भविष्य में हमारी प्रगति को देखकर हमारे भक्त बन जायेंगे। आज जो लोग हमें व्यर्थ का समझकर विरक्त हैं.वे भविष्य में हमसे प्रेम करने लगेंगे।
काव्य सौन्दर्य :
- भारत की महानता का वर्णन किया गया है।
- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग सुन्दर है।
- विरोधाभास-विरक्त और अनुरक्त में है।
(6) सब देश विद्या-प्राप्ति को सतत यहाँ आते रहे,
सुरलोक में भी गीत ऐसे देवगण गाते रहे”
हैं धन्य भारतवर्षवासी, धन्य भारतवर्ष है,
सुरलोक से भी सर्वथा उसका अधिक उत्कर्ष है।”
शब्दार्थ :
सतत = लगातार; सुरलोक = देवलोक, स्वर्ग; सर्वथा = हमेशा।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
उक्त पंक्तियों में कवि ने भारत की महानता के कारण भारतवासियों को और भारत को धन्य कहा है।
व्याख्या :
सभी देशों के लोग विद्या प्राप्त करने हेतु सदा भारत में आते रहे हैं। स्वर्ग में भी देवता भारत के लोगों के गुणगान गाते रहते हैं। भारतवासी और भारतवर्ष दोनों ही अपनी विद्या और उत्सर्ग के लिए धन्य हैं। भारत का अभ्युदय स्वर्ग से भी अधिक है। कहने का तात्पर्य है कि भारतवर्ष स्वर्ग से भी अधिक उन्नतिशील है।
काव्य सौन्दर्य :
- भारत की समता स्वर्ग से करके कवि ने भारत के उत्कर्ष को उजागर किया है।
- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।