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MP Board Class 9th Sanskrit व्याकरण शब्द रूप
संस्कृत में तीन लिंग होते हैं-पुल्लिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग। ये लिंग सदा अर्थ के अनुसार नहीं होते अपितु पहले से ही निश्चिय हैं।
उदाहरणार्थ-
पत्नी, अर्थ में ‘भार्या’ शब्द स्त्रीलिंग है तो उसी अर्थ में ‘दार’ शब्द पुल्लिंग और ‘कलत्र’ शब्द नपुंसकलिंग है। यद्यपि तीनों का अर्थ एक ही है तो भी उनके लिंग भिन्न हैं। ऐसे ही ‘काय’ और ‘देह’ शब्द पुल्लिंग हैं किन्तु ‘शरीर’ शब्द नपुंसकलिंग है।
संस्कृत में सात विभक्तियां होती हैं। (प्रथमा से सप्तमी तक)। प्रत्येक विभक्ति में तीन वचन होने के कारण प्रत्येक शब्द के इक्कीस रूप बनते हैं। इसके अतिरिक्त एक वचन में सम्बोधन के रूप भिन्न होते हैं। तीनों वचनों में मूल शब्द से चिह्न जोड़े जाते हैं। विभक्ति चिह्रों को सुप् भी कहते हैं। जिस शब्द के आगे कोई विभक्ति चिह्न लगा रहता है उसे सुबन्त या पद कहते हैं। नीचे कुछ महत्त्वपूर्ण शब्दों के रूप दिए जाते हैं।
अकारान्त पुल्लिंग शब्द
टिप्पणी-जिन शब्दों का उच्चारण करने पर अन्त में ‘अ’ की ध्वनि आती है। वे आकारान्त शब्द कहलाते हैं।
अकारान्त पुल्लिंग शब्दों जैसे देव, नर, नृप, बालक, विद्यालय आदि के रूप राम शब्द की तरह चलते हैं।
इकारान्त पुल्लिंग शब्द
टिप्पणी-जिन शब्दों का उच्चारण करने पर अन्त में ‘इ’ की ध्वनि आती है, उन्हें इकारान्त शब्द कहते हैं। इकारान्त पुल्लिंग शब्दों, जैसे-कवि, कपि, गिरि, आदि के रूप रवि शब्द की तरह चलेंगे।
उकारान्त पुल्लिंग शब्द
टिप्पणी-जिन शब्दों के अन्त में ‘उ’ की ध्वनि आती है वे उकारान्त शब्द कहलाते हैं। उकारान्त पुल्लिंग शब्दों जैसे-साधु, शिशु आदि के रूप भानु शब्द की तरह चलते हैं।
ऋकारान्त पुल्लिंग शब्द
नकारान्त पुल्लिंग शब्द
स्त्रीलिंग शब्द
टिप्पणी-इसी प्रकार रमा, बालिका, प्रभा आदि आकारान्त स्त्रीलिंग शब्दों के रूप चलेंगे।
इलन्त स्त्रीलिंग वाच = वाणी
दिश = दिशा
ऋकारान्त मातृ (माता)
नपुंसकलिंग शब्द
इकारान्त नपुंसकलिंग
उकारान्त नपुंसकलिंग
सकारान्त नपुंसकलिंग
तकारान्त नपुंसकलिंग
सर्वनाम शब्द रूप
संख्यावाचक शब्दों के रूप
‘एक’ (केवल एकवचन में)
द्वि (दो) (द्वि शब्दों के रूप केवल द्विवचन में तीनों लिंगों में होते हैं। नंपुसकलिंग तथा स्त्रीलिंग के रूप एक से ही होते हैं।)
पञ्चन शब्द के आगे के संख्यावाचक शब्दों के रूप तीनों लिंगों में समान होते हैं।
संख्यावाचक शब्द
इनमें एक केवल एकवचन में वि द्विचन में तथा शेष अष्टादशन तक बहुवचन में होते हैं। उसके बाद की संख्याएं में आती हैं। यदि द्विवचन में आई तो उनके दूने का बोध होगा और बहुवचन में कई गुने का।
यथा-शते = दो सौ। शतानि = कई सौ।