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MP Board Class 6th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 7 संहतिः कार्यसाधिका
MP Board Class 6th Sanskrit Chapter 7 अभ्यासः
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) वयं नेत्राभ्यां किं कर्मः? (हम दोनों नेत्रों से क्या करते हैं?)
उत्तर:
पश्यामः (देखते हैं)
(ख) तृणानां मेलनेन किं भवति? (तिनकों के मेल से क्या होता है?)
उत्तर:
रज्जुनिर्माणं (रस्सी का निर्माण)
(ग) केन बलशाली गजः बध्यते? (बलशाली हाथी किससे बाँधा जाता है?)
उत्तर:
रज्जुना (रस्सी से)
(घ) कैः वस्त्रनिर्माणं भवति? (वस्त्र निर्माण किससे होता है?)
उत्तर:
तन्तुभिः (धागों से)
(ङ) घटः केन पूर्णः भवति? (घड़ा किससे भर जाता है?)
उत्तर:
बिन्दुना (बूंद से)
(च) का कार्यसाधिका भवति? (कार्य में सफलता देने वाली क्या होती है?)
उत्तर:
संहति (एकता)।
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) वयं कया जिघ्राम:? (हम किससे सूंघते हैं?)
उत्तर:
वयं नासिकया जिघ्रामः। (हम नाक से सूंघते हैं।)
(ख) वयं कैः अन्नचर्वणं कुर्मः? (हम किसके द्वारा अन्न को चबाते हैं?)
उत्तर:
वयं दन्तैः अन्नचर्वणं कुर्मः। (हम दाँतों से अन्न को चबाते हैं।)
(ग) केन चक्रनिर्माणं भवति? (किसके द्वारा चक्र का निर्माण होता है?)
उत्तर:
बहुनाम् अराणां सहयोगेन चक्रनिर्माणं भवति। (बहुत-सी तीलियों के सहयोग से चक्र का निर्माण होता है।)
(घ) वृक्षः कैः शोभते? (वृक्ष किससे शोभा पाता है?)
उत्तर:
पर्णैः, पुष्पैः, फलैः, शाखाभिः च वृक्षः शोभते। (पत्तों, फूलों, फलों और शाखाओं से वृक्ष शोभा पाता है।)
प्रश्न 3.
उचितं मेलयत (उचित का मिलान करो)
उत्तर:
(क) → 3
(ख) → 7
(ग) → 6
(घ) → 5
(ङ) → 2
(च) → 1
(छ) → 4
प्रश्न 4.
निम्नलिखितशब्दानां तृतीयाविभक्तेः रूपाणि लिखत (निम्नलिखित शब्दों के तृतीया विभक्ति के रूपों को लिखो)
(1)(क)-पाद, (ख)-घट, (ग)-अर।
(2) (क)-जिह्वा, (ख)-इष्टिका, (ग)-शाखा।
(3) (क)-शरीर, (ख)-चक्र, (ग)-चित्र।
उत्तर:
प्रश्न 5.
निम्नलिखितैः शब्दैः वाक्यानि रचयत (निम्नलिखित शब्दों से वाक्यों की रचना करो)
(क) हस्तेन
(ख) पादाभ्या
(ग) नासिकया
(घ) मालाभिः
(ङ) संहतिः।
उत्तर:
(क) अहम् हस्तेन कार्यम् करोमि। (मैं हाथ से कार्य करता हूँ।)
(ख) वयम् पादाभ्यां चलामः। (हम दो पैरों से चलते हैं।)
(ग) नासिकया वयं जिघ्रामः। (हम नाक से सूंघते हैं।)
(घ) मालाभिः देवताः पूज्यन्ते। (मालाओं से देवताओं की पूजा की जाती है।)
(ङ) संहतिः कार्यसाधिका भवति। (एकता से कार्य सफल होता है।)
प्रश्न 6.
उचितशब्दैः रिक्तस्थानानि पूरयत (उचित शब्दों से रिक्त स्थानों की पूर्ति करो)
(क) कार्यसाधनाय ……….. श्रेष्ठा। (भिन्नता/संहतिः)
(ख) मालायाः निर्माणं …….. भवति। (पुष्पैः/पुष्पाय)
(ग) वयं नेत्राभ्यां ……….। (शृणुमः/पश्यामः)
(घ) ………. वस्त्रनिर्माणं भवति। (बिन्दुभिः/तन्तुभिः)
(ङ) कार्याणि ……….. पूर्णानि भवन्ति। (जनेन/जनैः)
(च) सीता ……….. सह वनं गच्छति।। (जनकेन/रामेण)
(छ) रमेशः मित्रैः ……….. क्रीडति। (सः/सह)
(ज) रमा …………. सह क्रीडति। (लतया/लतायाः)
उत्तर:
(क) संहतिः
(ख) पुष्पैः
(ग) पश्यामः
(घ) तन्तुभिः
(ङ) जनौः
(च) रामेण
(छ) सह
(ज) लतया।
प्रश्न 7.
पाठे आगतान् तृतीयाविभक्तेः शब्दान् लिखत (पाठ में आये हुए तृतीया विभक्ति के शब्दों को लिखो)
उत्तर:
(1) शरीरेण, (2) मेलनेन, (3) सहयोगेन, (4) नेत्राभ्याम्, (5) कर्णाभ्याम्, (6) नासिकया, (7) जिह्वया, (8) पादाभ्याम्, (9) हस्ताभ्याम्, (10) दन्तैः, (11) मुखेन, (12) रज्जु ना, (13) तेन, (14) घटेन, (15) पुष्पैः, (16) मालाभिः, (17) जनैः, (18) एकेन, (19) जनेन, (20) बहुभिः, (21) क्रीडकैः, (22) विभिन्नैः, (23) मुद्रितपत्रैः, (24) पर्णैः, (25) पुष्पैः, (26) फलैः, (27) शाखाभिः, (28) तन्तुभिः, (29) पञ्चभिः, (30) अङ्गुलीभिः, (31) एकया, (32) इष्टिकया, (33) बिन्दुना, (34) निपातेन, (35) तृणैः, (36) आपन्नेः।
प्रश्न 8.
एकतया जनाः कानि-कानि कार्याणि कुर्वन्ति, चिन्तयित्वा पञ्च वाक्यानि लिखत। (एकता से मनुष्य कौन-कौन से कार्य करते हैं, विचार करके पाँच वाक्य लिखो।)
उत्तर:
- एकतया जनाः देशस्य रक्षां कुर्वन्ति।
(एकता से मनुष्य देश की रक्षा करते हैं।) - एकतया जनाः सबलाः भवन्ति।
(एकता से लोग बलशाली बनते हैं।) - एकतया विपत्तिकाले अपि सफलताम् आनुवन्ति।
(एकता से विपत्तिकाल में भी सफलता प्राप्त करते हैं।) - एकतया कठिन कार्याणि अपि तैः क्रियन्ते।
(एकता से कठिन कार्य भी उनके द्वारा किये जाते हैं।) - एकतया राष्ट्रस्य विघटनम् अपि न कर्तुम् शक्यते।
(एकता से राष्ट्र का विघटन भी नहीं किया जा सकता।)
योग्यताविस्तारः
अधोलिखितान् श्लोकान् कण्ठस्थं कुरुत, तृतीयाविभक्तेः शब्दान् चिनुत।
(नीचे लिखे श्लोकों को कण्ठस्थ करो। तृतीया विभक्ति के शब्दों को चुनो।)
उत्तर:
(1) पाठ्य पुस्तक के इन श्लोकों को सावधानीपूर्वक बार-बार पढ़िये। शुद्ध वाचन करके कण्ठस्थ करने का प्रयास कीजिए।
(2) तृतीया विभक्ति के शब्द
- दाने, कङ्कणेन, स्नानेन, चन्दनेन, मानेन, भोजनेन, ज्ञानेन, मुण्डनेन।
- चतुर्भिः, ताडनैः, त्यागेन, शीलेन, गुणेन।
- पञ्चभिः।
संहतिः कार्यसाधिका हिन्दी अनुवाद :
शरीरेण एकताबोधः भवति। शरीरे विभिन्नानि अङ्गानि भवन्ति। अङ्गानां मेलनेन शरीरनिर्माणं भवति। अङ्गानां सहयोगेन एव शरीरं सर्वाणि कार्याणि करोति।
वयं नेत्राभ्यां पश्यामः। कर्णाभ्यां शृणुमः। नासिकया जिघ्रामः। जिह्वया स्वादयामः। पादाभ्यां चलामः। हस्ताभ्यां कार्यं कुर्मः। दन्तैः अन्नचर्वणं कुर्मः। मुखेन खादामः, पिबामः वदामः च। एवम् अङ्गानां सहयोगेन एव शरीरेण सर्वाः क्रियाः भवन्ति।
अल्पानाम् अपि वस्तूनां सहयोगेन वयं दीर्घाणि कार्याणि कुर्मः। तृणानां मेलनेन रज्जुनिर्माणं भवति। रज्जुना शय्यानिर्माणं भवति। तेन एव कूपात् घटेन जलं प्राप्नुमः। रज्जुना बलशाली गजः अपि बध्यते। पुष्पैः मालायाः निर्माणं भवति। मालाभिश्च देवानां पूजनं वयं कुर्मः। महत् कार्याणि बहुभिः जनैः एव पूर्णानि भवन्ति, न तु एकेन जनेन।
अनुवाद :
शरीर से एकता का बोध होता है। शरीर में अनेक अङ्ग होते हैं। अङ्गों के मेल से शरीर का निर्माण होता है। अङ्गों के सहयोग से ही शरीर सभी कार्यों को करता है।
हम दो नेत्रों से देखते हैं। दो कानों से सुनते हैं। नाक से सूंघते हैं। जीभ से स्वाद लेते हैं (चखते हैं)। दो पैरों से चलते हैं। दो हाथों से कार्य करते हैं। दाँतों से अन्न को चबाते हैं। मुख से खाते हैं, पीते हैं और बोलते हैं। इस प्रकार अङ्गों के सहयोग से ही शरीर के द्वारा सभी क्रियाएँ होती हैं।
थोड़ी-सी भी वस्तुओं के सहयोग से हम बड़े कार्यों को कर लेते हैं। तिनकों के मेल से रस्सी का निर्माण होता है। रस्सी से शय्या (चारपाई) का निर्माण होता है। उसके द्वारा ही कुएँ से घड़े के द्वारा जल प्राप्त करते हैं। रस्सी से बलशाली हाथी भी बाँध लिया जाता है। फूलों से माला का निर्माण होता है और मालाओं से देवताओं की पूजा करते हैं। बड़े-बड़े कार्य बहुत-से लोगों के द्वारा ही पूरे किए जाते हैं, न कि एक आदमी के द्वारा।
बहुभिः क्रीडकैः एव क्रीडनं भवति। विभिन्नै: मुदितपत्रैः पुस्तकनिर्माणं भवति। पर्णैः, पुष्पैः, फलैः,शाखाभिः च वृक्षः शोभते। तन्तुभिः वस्त्रनिर्माणं भवति। पञ्चभिः अङ्गुलीभिः मुष्टिः भवति। बहूनाम् अराणां सहयोगेन चक्रनिर्माणं भवति। एकया एकया इष्टिकया गृहनिर्माणं भवति। एकेन एकेन बिन्दुना घटः पूर्णः भवति। तदा वयं जलं पिबामः। उक्तश्च-
“जलबिन्दुनिपातेन क्रमशः पूर्यते घटः”
अतः संहतिः एव कार्यसाधिका भवति। अनेकातायाम् एकता अस्माकं भारतदेशस्य गौरवसूत्रम् अपि अस्ति। उक्तम्
अल्पानामपि वस्तूनां संहतिः कार्यसाधिका।
तृणैर्गुणत्वमापन्नैर्बध्यन्ते मत्तदन्तिनः॥
अनुवाद :
बहुत से खिलौनों से खेल होता है। लिखे हुए विभिन्न पृष्ठों से पुस्तक का निर्माण होता है। पत्तों, फूलों, फलों, और शाखाओं से वृक्ष शोभा पाता है। धागों से वस्त्र (कपड़ा)
का निर्माण होता है। पाँच अँगुलियों से मुट्ठी बनती है। बहुत-सी तीलियों के सहयोग से चक्र का निर्माण होता है। एक-एक ईंट से घर का निर्माण होता है। एक-एक बूंद से घड़ा भर जाता है। तब हम जल पीते हैं।
कहा भी गया है-
“क्रमश: जल की बूंदों के गिरने से घड़ा भर जाता है।”
इसलिए एकता ही कार्य को सिद्ध कराने वाली होती है। अनेकता में एकता हमारे भारत देश का गौरवसूत्र (धागा) भी है।
कहा गया है-
“छोटी सी वस्तुओं की संहति (एकता) कार्य में सफलता प्राप्त कराती है। घास से रस्सी बना लेने पर (घास-फूस को कई गुना करके रस्सी बना लेने से) मतवाले हाथियों को भी बाँध लिया जाता है।”
संहतिः कार्यसाधिका शब्दार्थाः
कर्णाभ्यां = कानों से। क्रीडकैः = खिलाड़ियों से। संहति = एकता। कार्यसाधिका = कार्य को सिद्ध करने वाली। रज्जुना = रस्सी के द्वारा। घटः = घड़ा। इष्टिकया = ईंट से। जिह्वया = जीभ से। गजः = हाथी। मुदितपत्रैः = लिखित पन्नों द्वारा (पृष्ठों द्वारा)। अराणाम् = तीलियों के। मुष्टिः = मुट्ठी।