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MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 8 गुरुगोविन्दसिंहः
MP Board Class 7th Sanskrit Chapter 8 अभ्यासः
Class 7 Sanskrit Chapter 8 MP Board प्रश्न 1.
एक शब्द में उत्तर लिखो
(क) सिक्खानाम् दशमः गुरुः कः आसीत्? [सिक्खों के दसवें गुरु कौन थे?]
उत्तर:
गुरुगोविन्दसिंहः
(ख) सिक्खधर्मप्रवर्तकः कः आसीत्? [सिख धर्म के प्रवर्तक कौन थे?]
उत्तर:
गुरुनानकः
(ग) गुरुगोविन्दसिंहस्य मातुः नाम किम्? [गुरुगोविन्दसिंह की माता का नाम क्या था?]
उत्तर:
गुजरी
(घ) गुरुगोविन्दसिंहस्य मुक्तिः कुत्र अभवत्? [गुरुगोविन्दसिंह की मुक्ति कहाँ हुई थी?]
उत्तर:
नान्देड़ प्रान्ते
(ङ) ईश्वरीयदीक्षा का? [ईश्वरीय दीक्षा क्या थी?]
उत्तर:
खालसा।
MP Board Class 7 Sanskrit Chapter 8 प्रश्न 2.
एक वाक्य में उत्तर लिखो
(क) सिक्खानां पञ्च बाह्यचिह्नानि कानि? [सिक्खों के पाँच बाहरी चिह्न कौन-कौन से हैं?]
उत्तर:
सिक्खानां पञ्च बाह्य चिह्नानि-केशबन्धनं, कङ्कतिका अस्थापनं, कङ्कणधारणं, कट्यां वस्त्रधारणं, सर्वदा खड्गंधारणम् इति।
[सिक्खों के पाँच बाहरी चिह्न हैं-केशबन्धन (पगड़ी), कंघी रखना, कड़ा धारण करना, कमर में फेंटा बांधना, सदा तलवार धारण करते रहना।]
(ख) गुरुगोविन्दस्य जननं कदा अभवत्? [गुरुगोविन्द का जन्म कब हुआ थ?]
उत्तर:
गुरुगोविन्दस्य जननं १६६६ तमे वर्षे कार्तिक शुक्ल सप्तम्यां पटना नगरे अभवत्। [गुरुगोविन्द का जन्म सन् १६६६ ई. में कार्तिक महीने की शुक्लपक्ष की सप्तमी को पटना नगर में हुआ था।
(ग) कुत्र धर्माः विकासं प्राप्ताः? [धर्मों ने कहाँ पर विकास प्राप्त किया है?]
उत्तर:
भारते बहवः धर्माः विकास प्राप्ताः। [भारत में बहुत से धर्मों ने विकास प्राप्त किया है।]
(घ) विदेशीयाः कीदृशाः आसन्? [विदेशी कैसे थे?]
उत्तर:
विदेशीयाः भारतीय संस्कृतेः विनाशकाः आसन्। [विदेशी भारतीय संस्कृति का विनाश करने वाले थे।]
(ङ) आचार्येण केषां कथा श्राविताः? [आचार्य ने किनकी कथा सुनाई?]
उत्तर:
आचार्येण गुरुगोविन्दसिंहस्य कथा श्राविताः। [आचार्य ने गुरुगोविन्दसिंह की कथा सुनाई।]
MP Board Class 7th Sanskrit Chapter 8 प्रश्न 3.
कोष्ठक के शब्दों का प्रयोग करके खाली स्थानों को भरो (गुरुजी, आत्मविश्वासेन, खड्गं, भगवतः)
(क) एकमेव …………. ज्योतिः सर्वेषु ज्वलति।
(ख) गुरुगोविन्दसिंहः …………. कार्यं कृतवान्।
(ग) वाहे …………. की फतह।
(घ) ………… गृहीत्वा युद्धं कुरू।
उत्तर:
(क) भगवतः
(ख) आत्मविश्वासेन
(ग) गुरुजी
(घ) खड्गं।
Class 7th Sanskrit Chapter 8 Guru Gobind Singh प्रश्न 4.
सम्बोधन लिखो(गुरु, आर्य, महोदय, अनुज)
उत्तर:
पुल्लिग :
गुरो!, आर्य! महोदय!, अनुज!
स्त्रीलिंग :
आर्ये!, महोदये!, अनुजे!
Sanskrit Class 7 Chapter 8 प्रश्न 5.
उचित का मेल करो
उत्तर:
(क) → (5)
(ख) → (4)
(ग) → (2)
(घ) → (1)
(ङ) → (3)
Class 7 Sanskrit Chapter 8 प्रश्न 6.
क्रम स्थापित करो
(क) गुरुगोविन्दसिंहः हिन्दूशक्ति सङ्घटितवान्।
(ख) गुरुगोविन्दस्य मृत्युः १७०८ तमे वर्षे अभवत्।
(ग) माता गुजरी पिता तेगबहादुरः च आस्ताम्।
(घ) गुरु नानकः सिक्खधर्मप्रवर्तकः आसीत्।
(ङ) गुरुगोविन्दस्य जननम् कार्तिकशुक्लसप्तम्याम् अभवत्।
उत्तर:
(घ) गुरु नानकः सिक्खधर्मप्रवर्तकः आसीत्।
(ङ) गुरुगोविन्दस्य जननम् कार्तिकशुक्लसप्तम्याम् अभवत्।
(ग) माता गुजरी पिता तेगबहादुरः च आस्ताम्।
(क) गुरुगोविन्दसिंहः हिन्दूशक्ति सङ्घटितवान्।
(ख) गुरुगोविन्दस्य मृत्युः १७०८ तमे वर्षे अभवत्।
गुरुगोविन्दसिंहः हिन्दी अनुवाद
छात्रा: :
आचार्य! नमस्कार। शिक्षकः-उपविशन्तु सर्वे।
कुलदीपः :
आर्य! पूर्व धर्मसंरक्षकाणां वीरपुरुषाणां विवेकानन्द, शिवाजी, महाराणाप्रतापः इत्यादीना विषये श्रुतम्, किन्तु गुरुगोविन्दसिंहस्य विषये न जानामि।
प्रतापः :
महोदय! वय गुरुगोविन्दसिंहस्य चरिः नातुमिच्छामः।
विनीता :
श्रीमान्! तस्य चरित्रस्य किं वैशिष्ट्यम्। – शिक्षकः-गुरुगोविन्दसिंहस्य शौर्य, धैर्य, त्यागः, दूरदृष्टिः, सेवाभावनादिकं विशिष्टम् आसीत्। सः आबाल्यात् जनानां शक्तिं जागरयितुम् आत्मविश्वासेन कार्यं कृतवान्। समाजं संस्कर्तुम्, अखण्डतां स्थापयितुं धर्मे निष्ठा वर्धयितुं अहर्निशं प्रयत्नं कृतवान्। एषः सिक्खानां धर्मगुरुः आसीत्।
अनुवाद :
छात्र-आचार्य जी! नमस्कार। शिक्षक-सभी बैठ जायें।
कलदीप :
आर्य! प्राचीनकाल के धर्म की रक्षा करने वाले वीर पुरुषों में विवेकानन्द, शिवाजी, महाराणा प्रताप इत्यादि के विषय में तो सुना है, परन्तु गुरुगोविन्दसिंह के विषय में नहीं जानता हूँ।
प्रताप :
महोदय! हम गुरुगोविन्दसिंह के चरित्र को जानना चाहते हैं।
विनीता :
श्रीमन्! उनके चरित्र की क्या विशेषता है?
शिक्षक :
गुरु गोविन्दसिंह में शूरवीरता, धैर्य, त्याग, दूरदृष्टि और सेवाभावना आदि विशेषता थी। उन्होंने बचपन से ही मनुष्यों में शक्ति जागृत करने के लिए आत्मविश्वास से कार्य किया। समाज को संस्कारित करने के लिए, अखण्डता (एकता) स्थापित करने के लिए, धर्म के प्रति निष्ठा बढ़ाने के लिए दिन और रात उन्होंने प्रयत्न किया। ये सिक्खों के धर्मगुरु थे।
प्रतापः :
सिक्खाः नाम के?
शिक्षकः :
सिक्खधर्मानुयायिनः सिक्खाः। यथा जैनधर्म तथा सिक्खधर्मः। भारते बहवः धर्माः विकासं प्राप्ताः। अतः सर्वे धर्माः समानाः।
कुलदीपः :
किं गुरुगोविन्दसिंहः सिक्खधर्मस्य प्रवर्तकः?
शिक्षकः :
गुरुनानकः एव सिक्खधर्मस्य प्रवर्तकः। सः एव तेषां प्रथमः गुरुः आसीत्। गुरुगोविन्दसिंहः तु दशमः अन्तिमश्च गुरुः आसीत्।
विनीता :
गुरुगोविन्दस्य जननं कदा अभवत्।
शिक्षकः :
१६६६ तमे वर्षे कार्तिक-शुक्ल-सप्तम्यां तस्य जननम् पटनानगरे अभवत्। गुजरी तस्य माता, महात्यागी समाजसेवकः गुरुतेगबहादुरः तस्य पिता आस्ताम्। पिता इव गुरुगोविन्दः अपि समाजसेवानिरतः आसीत्।
अनुवाद :
प्रताप-सिक्ख कौन होते हैं? शिक्षक-सिक्ख धर्म के अनुयायी सिक्ख होते हैं। जैसे जैन धर्म होता है, वैसे ही सिक्ख धर्म होता है। भारतवर्ष में बहुत से धर्मों ने विकास प्राप्त किया। इसलिए सभी धर्म समान हैं। कुलदीप-क्या गुरुगोविन्दसिंह सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे?
शिक्षक :
गुरुनानक ही सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। वे ही उनके सबसे पहले गुरु थे। गुरु गोविन्दसिंह तो दशवें और अन्तिम गुरु थे।
विनीता :
गुरुगोविन्द का जन्म कब हुआ?
शिक्षक :
सन् १६६६ ई. के वर्ष में कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी (२२ दिसम्बर, १६६६ ई.) को उनका जन्म पटना नगर में हुआ था। गूजरी उनकी माता थीं तथा महान त्यागी, समाज सेवक गुरु तेगबहादुर उनके पिता थे। पिता की भाँति ही गुरुगोविन्द भी समाजसेवा में लगे रहने वाले थे।
कुलदीपः :
समाजसेवार्थ गुरुगोविन्दः किं कृतवान्?
शिक्षकः :
तस्मिन् समये भारतीयसंस्कृतेः विनाशकस्य क्रूरस्य मुगलशासकस्य औरङ्गजेबस्य शासनमासीत्। तादृशस्थितौ दुष्टशक्तिं निग्रहितुं प्रजासु धर्मजागरणं कृतवान्। पीड्यमान जनानां सङ्घटनं रचितवान्। सामान्यजनानां विचारेषु परिवर्तनमानीतवान् आत्मविश्वासंचजनयितुं प्रोत्साहदत्तवान्। देशहिताय आत्मरक्षणाय च खड्गं धरन्तु इति आदिष्टवान्।
प्रतापः :
अधुना अपि सिक्खाः खड्गं धरन्ति वा?
शिक्षकः :
‘खालसा’ दीक्षा स्वीकृत्य न केवलं खड्गम् अपितु पञ्च बाह्यचिह्नानि धर्तुं गुरुगोविन्दः आदिष्टवान्। तानि च केशबन्धनं कङ्कतिका-स्थापनं, कङ्कणधारणं, कट्यां वस्त्रधारणं, सर्वदा खड्गं धारणमिति। एतानि चिह्नानि समर्पणं, परिशुद्धता, दैवभक्तिः, शीलं, शौर्यम्, इत्येतान् भवान् स्मारयन्ति।
अनुवाद :
कुलदीप :
समाज की सेवा के लिए गुरुगोविन्द ने क्या किया?
शिक्षक :
उस समय भारतीय संस्कृति का विनाश करने वाले मुगल शासक औरंगजेब का शासन था। उस अवस्था में दुष्ट शक्ति को नियंत्रित करने के लिए (दबाने के लिए) प्रजा में धर्म का जागरण किया। पीड़ित किये जाते लोगों का संगठन बनाया। साधारण लोगों के विचारों में बदलाव लाया गया। आत्मविश्वास पैदा करने के लिए प्रोत्साहन भी दिया। देशहित के लिए तथा आत्मरक्षा के लिए तलवार धारण करें, ऐसा आदेश दिया।
प्रताप :
आज भी सिक्ख तलवार धारण करते हैं क्या?
शिक्षक :
“खालसा” दीक्षा को स्वीकार करके न केवल तलवार ही वरन् पाँच बाहरी (पहचान) चिह्न धारण करने के लिए गुरुगोविन्दसिंह ने आदेश दिया और वे केशबन्धन (पगड़ी), कंघी लगाये रहना, कड़ा धारण करना, कमर में वस्त्र (फेंटा) धारण करना और सदा तलवार धारण किये रहना इत्यादि थे। ये चिह्न समर्पण, पवित्रता, दैवभक्ति, शीलता, शूरवीरता इत्यादि भावों की याद दिलाते रहते हैं।
कलदीपः :
‘खालसा’ दीक्षा नाम किम्?
शिक्षकः :
‘खालसा’ नाम ईश्वरीयदीक्षा। ईश्वरस्य निश्चल-आराधने एव तीर्थयात्रा, दानं, दया, तपः, संयमनञ्च अस्तीति यः भावयति यस्य हृदये पूर्णज्योतिषः प्रकाशोऽस्ति सः एव खालसा भवति।
विनीता :
पुनरपि कथं समाज प्रेरितवान्?
शिक्षकः :
गुरुगोविन्दसिंहः वीररसे सहजकविः आसीत्। तस्य चण्डीचरितम्’ इति काव्ये ‘स्वयं वीरगतिं प्राप्नुयाम्’ इति प्रेरणावाक्यैः समाज प्रेरितवान्। ‘विचित्रनाटकम्’ इति पुस्तके स्ववीरगाथां सूचितवान्।
अनुवाद :
कुलदीप-‘खालसा’ दीक्षा किसका नाम है?
शिक्षक :
‘खालसा’ ईश्वरीय दीक्षा का नाम है। ईश्वर की निश्चल आराधना में ही तीर्थयात्रा, दान, दया, तप और संयम के जो भाव पैदा होते हैं (तथा) जिसके हृदय में पूर्ण ज्योति का प्रकाश होता है, वही खालसा होता है।
विनीता :
फिर भी समाज को किस तरह प्रेरणा दी?
शिक्षक :
गुरुगोविन्द सिंह वीररस के सहज कवि थे। उनके ‘चण्डीचरित’ नामक काव्य में अपने आप वीरगति को’ प्राप्त करें’ ऐसे प्रेरणापरक वाक्यों से समाज को प्रेरित किया। ‘विचित्र नाटकम्’ नामक पुस्तक उनकी वीरता की गाथा को सूचित करती है।
प्रताप: :
गुरुगोविन्दस्य अन्यवैशिष्ट्यानि कानि?
शिक्षकः :
कबीर: गुरुनानक: सूरदासादयः भक्ताः आसन्। गुरुगोविन्दस्तु वीरभक्तः आसीत्। सः हिन्दूशक्ति सङ्घटितवान्। सर्वे समानाः एकमेव भगवतः ज्योतिः सर्वेषु ज्वलति इति तस्य अचलः विश्वासः आसीत्। सज्जनानां संरक्षाणाय, दुष्टानां विनाशाय ‘खड्गं गृहीत्वा युद्धं कुरु’ ‘खड्गस्यजयोऽस्तु’ इति निनादं कुर्वन् बहूनि युद्धानि कृतवान्। १६८९ वर्षस्य एप्रिल मासतः मृत्युपर्यन्यतं शत्रून् भायितवान् तेषां हृदयेषु कम्प नं जनितवान्। हिन्दूधर्मञ्च संरक्षितवान्।
अनुवाद :
प्रताप :
गुरुगोविन्द की दूसरी विशेषताएँ क्या
शिक्षक :
कबीर, गुरुनानक, सूरदास आदि के भक्त थे। गुरुगोविन्द तो वीर (और) भक्त थे। उन्होंने हिन्दुओं की शक्ति का संगठन किया। ‘सभी में समान रूप से एक ही भगवान की ज्योति जलती है’ ऐसा उनका पक्का विश्वास था। सज्जनों की रक्षा के लिए और दुष्टों के विनाश के लिए “तलवार ग्रहण करके युद्ध करो”, “तलवार की विजय हो”, ऐसी घोषणा (युद्ध ध्वनि) करते हुए बहुत से युद्ध किए। सन् १६८९ के वर्ष के अप्रैल महीने से अपनी मृत्यु पर्यन्त (तक) शत्रुओं को भयभीत कर दिया, उनके हृदय में कम्पन पैदा कर दिया और हिन्दू धर्म की रक्षा की।
विनीता :
तस्य मुक्तिः कदा अभवत्।
शिक्षकः :
गुरुगोविन्दसिंहस्य ४२ तमे वयसि १७०८ तमे वर्षे अक्टोबर सप्तमे दिनाङ्के महाराष्ट्रस्य ‘नान्देड़’ प्रान्ते गुरुगोविन्दः मुक्तिं प्राप्तवान्।
तस्य उद्घोषं स्मरामः।
‘वाहे गुरुजी का खालसा-वाहे गुरुजी की फते’
(खालसा ईश्वरीयः भवनि-ईश्वरस्य विजयः निश्चित:)
अनुवाद :
विनीत :
की मुक्ति कब हुई?
शिक्षक :
गुरुगोविन्द के बयालीस वर्ष की आयु में सन् १७०८ के वर्ष में अक्टूबर के महीने की सातवीं दिनांक को महाराष्ट्र के ‘नान्देड़’ प्रान्त में गुरुगोविन्द ने मुक्ति प्राप्त की।
उनके उपदेश को याद करते हैं’-
वाहे गुरुजी का खालसा-वाहे गुरुजी की फते’ (जब खालसा ईश्वरीय हो जाता है, तब ईश्वर की विजय निश्चित है।)
गुरुगोविन्दसिंहः शब्दार्थाः
आबाल्यात् = बचपन से। आत्मविश्वासेन = आत्मविश्वास से। वर्धितुम् = बढ़ाने के लिए। विनाशाय = विनाश के लिए। मृत्युपर्यन्तम् = मृत्यु तक। संरक्षितवान् = संरक्षण किया। कङ्कतिका-स्थापन = कंघी लगाये रहना। भायितवान् = भयभीत कर दिया।