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Class 8 Hindi Bhasha Bharti Chapter 22 Gita ka Marm Question Answer MP Board
भाषा भारती कक्षा 8 Solutions Chapter 22 Gita ka Marm Question Answers MP Board
भाषा भारती कक्षा 8 पाठ 22 गीता का मर्म प्रश्न उत्तर
गीता का मर्म बोध प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर
विशाल = विस्तृत, बड़ा; मर्मज्ञ ज्ञाता, जानकार; महास्य = महत्व प्रवचन = उपदेशः कटिलता कपटता, चालाकी; वाचालता = बातूनीपन; प्रयास = कोशिश, प्रयत्न; प्रपंच = पाखंड, नाटक; युक्तियुक्त = तर्कपूर्ण; धृष्टता = अशिष्टता, उइंडता; प्रकांड = महान, सर्वश्रेष्ठ; मर्म = सूक्ष्म अर्थ, रहस्य; तारतम्य = क्रम; लिप्सा = लालसा, इच्छा; मन्तव्य = विचार; पार्थ = अर्जुन का एक नाम; मध्यस्थता = बीच-बचाव; चित्त = मन; व्यापक = विशाल; शमन- नाश, शान्त; शास्त्र = पुस्तक, धर्मग्रन्थ; धर्मक्षेत्र = धर्मभूमि।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए
(क) राजा ने मंत्रियों के समक्ष कौन-सी इच्छा प्रकट की?
उत्तर
राजा ने मंत्रियों के समक्ष गीता का ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की।
(ख) राजा की घोषणा सुनकर उनके पास कौन-कौन आने लगे?
उत्तर
राजा की घोषणा सुनकर दूर-दूर से बड़े-बड़े विद्वान, पण्डित, ज्ञानीजन राजा के पास आने लगे।
(ग) गौवर्ण राजा के पास क्यों आया था?
उत्तर
गौवर्ण राजा को गीता का मर्म समझाने के लिए राजा के पास आया था।
(घ) गीता में कुल कितने श्लोक हैं ?
उत्तर
गीता में कुल सात सौ श्लोक हैं।
(ङ) राजा के मन में कौन-सी कुटिलता समाई हुई थी?
उत्तर
राजा के मन में आधा राज्य न देने का लोभ व कुटिलता समाई हुई थी।
(च) दूसरों को उपदेश देने का अधिकारी कौन हो सकता है?
उत्तर
दूसरों को उपदेश देने का अधिकारी वही है जो स्वयं उस पर आचरण करता हो।
(छ) विद्या से हममें कौन-कौन से गुण आते हैं ?
उत्तर
विद्या से हममें विनम्रता आती है और व्यक्ति शालीन बन जाता है। मन शान्त हो जाता है, चित्त एकाग्र हो जाता है और तृष्णाओं का शमन होता है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए
(क) राजा आनन्द पाल ने अपने मंत्रियों से क्या कहा और क्यों ?
उत्तर
एक बार राजा आनन्द पाल के मन में गीता का ज्ञान अर्जित करने की कामना उत्पन्न हुई, उन्होंने तत्काल अपने मंत्रियों से कहा कि वे श्रीमद्भगवद्गीता का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। अतः पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी जाये कि जो कोई भी विद्वानजन राजा को पूर्णरूप से गीता को समझा देगा, उसे राजा अपने राज्य का आधा हिस्सा प्रदान करेगा। मंत्रियों ने भी राजा के आदेशानुसार पूरे राज्य के समस्त नगरों तथा गाँवों में तथा राज्य के बाहर भी ढिंढोरा पिटवाकर यह घोषणा करवा दी कि राजा गीता का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। अत: जो कोई भी राजा को पूर्ण रूप से गीता समझा देगा, उसे राजा द्वारा आधा राज्य उपहार स्वरूप प्रदान किया जायेगा।
(ख) गौवर्ण ने राजा को गीता का मर्म समझाने के लिए क्या प्रयास किया ?
उत्तर
गौवर्ण नाम के एक प्रकाण्ड विद्वान ने जब राजा की घोषणा सुनी तो उसने राजा को गीता का मर्म समझाने की ठानी। वह राजा के पास आया और बोला कि वह उन्हें गीता समझायेगा। राजा के ना-नुकर करने पर उसने राजा से एक अवसर प्रदान करने की प्रार्थना की। राजा द्वारा अनुमति प्रदान करने के उपरांत गौवर्ण ने राजा को गीता के एक-एक शब्द, पद, अक्षर व श्लोक का अर्थ व्याख्या सहित समझाया। धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे …” से प्रारम्भ कर यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः’ तक पूरे सात सौ श्लोक राजा को लगभग कण्ठस्थ करा दिए। ‘
(ग) महायोगी विशाख ने दोनों की मध्यस्थता करते हुए क्या कहा?
उत्तर
महायोगी विशाख ने दोनों की मध्यस्थता करते हुए सर्वप्रथम राजा आनन्दपाल से पूछा “राजन्, क्या आप गीता को समझे?” राजा ने कहा-“तपोनिधि ! नहीं, मैं कुछ भी नहीं समझा।” फिर उन्होंने गौवर्ण से पूछा-“श्रीमान् ! आपने राजन् को गीता अच्छी तरह से समझा दी क्या ?” गौवर्ण ने कहा-“हाँ, मुनिवर । एक-एक शब्द, पद व अक्षर की व्याख्या करके समझाया है।” महायोगी विशाख गौवर्ण से बोले-“सच तो यह है कि आपने स्वयं ही गीता का मर्म नहीं समझा अन्यथा आप आधे राज्य के लोभ के कारण इस प्रपंच में नहीं पड़ते क्योंकि गीता तो निष्काम कर्म करने की शिक्षा देती है, फल प्राप्ति की आशा से कर्म करने की नहीं । राजन् ने भी अर्थ नहीं समझा है, अन्यथा विद्वानों का मान-सम्मान करने वाले राजा का व्यवहार इस प्रकार का नहीं होता। वास्तव में दूसरे को उपदेश देने का अधिकारी वही है जो स्वयं उस पर आचरण करता हो। ज्ञान या स्वाध्याय का अर्थ हमें स्वयं को जानना है।
विद्याग्रहण करने के बाद भी जिसने स्वयं को न जाना वह उसी व्यक्ति के समान है जिसके पास नक्शा तो है पर मार्ग नहीं सूझता। ज्ञान हमें रास्ता बताता है। इससे हमारी विचार शक्ति बढ़ती है और देखने की शक्ति व्यापक हो जाती है तथा मनन करने की शक्ति में वृद्धि हो जाती है। हम किसी परिणाम पर युक्तियुक्त ढंग से पहुँचने का प्रयत्न करते हैं। विद्या से विनम्रता आती है और व्यक्ति शालीन बन जाता है। मन शान्त हो जाता है, चित्त एकाग्र हो जाता है और तृष्णाओं का शमन होता है। मात्र विषयों को जानना ही सच्चा ज्ञान नहीं है, पढ़े हुए को चरित्र में डालना ही सच्चा ज्ञान है।
(घ) अर्जुन ने इन्द्र से अपनी विद्या का उपयोग किन-किन के लिए करने को कहा था ?
उत्तर
अर्जुन ने इन्द्र से अपनी विद्या का उपयोग सत्य व न्याय की रक्षा करने, दुष्टों का दमन करने, असहायों की सहायता करने, नारी की रक्षा करने, निर्बल को सबल बनाने तथा धर्म की रक्षा करने के लिए कहा था।
(ङ) राजा आनन्दपाल के मन में किस प्रसंग को सुनकर हलचल मची और क्यों?
उत्तर
जब महायोगी विशाख के मुँह से राजा आनन्दपाल ने अर्जुन और इन्द्र से सम्बन्धित प्रसंग सुना तो उसके मन में हलचल मच गई। उन्हें लगा कि राजा के रूप में उनका कार्य जन कल्याण होना चाहिए, राज भोग की लिप्सा नहीं। उनके मन में वैराग्य भाव जाग्रत हो गया। उन्होंने अपना सम्पूर्ण राजपाट गीता का मर्म.सुनाने वाले पंडित गौवर्ण को देने की इच्छा व्यक्त की। उधर महाज्ञानी गौवर्ण सोचने लगे कि मैं तो पंडित हूँ, राज भोग अथवा आधे राज्य का लालच मेरे आत्मकल्याण के लिए उचित नहीं। उनके मन में भी विरक्ति पैदा हो गई और वे भी राज-पाट के मोह से मुक्त हो गए।
(च) इस कहानी से आज का विद्यार्थी क्या सीख ले सकता है ? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर
इस कहानी से आज का विद्यार्थी यह सीख ग्रहण कर सकता है कि उसे सच्ची, अर्थपूर्ण एवं सही शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए। साथ ही उसे यह भी स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि शिक्षा मात्र धनोपार्जन तथा यश प्राप्ति का साधन नहीं है वरन् इसका उपयोग मानव कल्याण के लिए होना चाहिए। यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि यदि विद्यार्थी अपने द्वारा अर्जित ज्ञान (शिक्षा) को अपने चरित्र में भी डाल लेता है तो वह और अधिक सार्थक हो सकता है। साथ ही इस कहानी के द्वारा विद्यार्थियों को यह भी संदेश दिया गया है कि उन्हें लोभ और लालच से सदैव बचना चाहिए।
प्रश्न 4.
किसने, किससे कहा?
(क)”मुझे गीता का ज्ञान प्राप्त करना है।”
उत्तर
राजा आनन्दपाल ने अपने मंत्रियों से कहा।
(ख)”राजन आप लोभवश ऐसा कह रहे हैं।”
उत्तर
गौवर्ण ने राजा आनन्दपाल से कहा।
(ग) “आप अपने दिए हुए वचन से पीछे हट रहे हैं।”
उत्तर
गौवर्ण ने राजा आनन्दपाल से कहा।
(घ) “धृष्टता क्षमा करें देव। विजय, यश और राज्य भोगने के लिए मैंने धनुर्विद्या प्राप्त नहीं की है।”
उत्तर
अर्जुन ने इन्द्र से कहा।
(ङ) “आप दोनों ही गीता के मर्म को भली-भाँति समझ गए हैं।”
उत्तर
महायोगी विशाख ने राजा आनन्दपाल एवं गौवर्ण दोनों से कहा।
गीता का मर्म भाषा-अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए और उन्हें अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
मर्मज्ञ, ढिंढोरा, महात्म्य, प्रकाण्ड, धनुर्विद्या, स्वाध्याय, तृष्णा ।
उत्तर
विद्यार्थी उपर्युक्त शब्दों को ठीक-ठीक पढ़कर उनका | शुद्ध उच्चारण करने का अभ्यास करें।
वाक्य प्रयोग-
- आर्यभट्ट ज्योतिष विद्या के भी मर्मज्ञ थे।
- राजा ने अपने राज्य में यह ढिंढोरा पिटवा दिया कि पूर्णमासी को एक विशाल दंगल का आयोजन होगा।
- हिन्दू धर्म में गौ-दान का बहुत महात्म्य बताया गया है।
- कालिदास संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान थे।
- अर्जुन धनुर्विद्या में सर्वाधिक निपुण योद्धा थे।
- विद्यार्थी को स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए।
- मनुष्य को कभी भी पराये धन एवं वैभव की तृष्णा नहीं करनी चाहिए।
प्रश्न 2.
‘वाचाल’शब्द में ता’ प्रत्यय लगाकर नया शब्द ‘वाचालता’ और ‘सत्य’ में ‘अ’ उपसर्ग लगाकर ‘असत्य’
नया शब्द बना है। इसी प्रकार ‘ता’ प्रत्यय और ‘अ’ उपसर्ग लगाकर चार-चार शब्द लिखिए
उत्तर
‘ता’ प्रत्यय से बने शब्द – ‘अ’ उपसर्ग से बने शब्द
(1) आतुर + ता = आतुरता – (1) अ + नाथ = अनाथ
(2) कामुक + ता = कामुकता – (2) अ + धर्म = अधर्म
(3) दृढ़ + ता = दृढ़ता – (3) अ+ ज्ञात = अज्ञात
(4) महान + ता = महानता – (4) अ+ ज्ञानी = अज्ञानी
प्रश्न 3
निम्नलिखित सामासिक पदों का समास विग्रह करते हुए उनमें निहित समास पहचानकर लिखिए
महापण्डित, मान-सम्मान, यथोचित, लोभवश, महाराज, देवलोक, तपोनिधि।
उत्तर
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कीजिए और सन्धि का प्रकार भी लिखिए
सम्मान, स्वागत, उत्थान, निराश, परोपकार।।
उत्तर
प्रश्न 5.
निम्नलिखित वर्ग पहेली में से राजा, इन्द्र, नारी और धनुष के तीन-तीन पर्यायवाची शब्द खोजकर लिखिए
उत्तर
प्रश्न 6.
उदाहरण के अनुसार ‘नहीं’,’मत’ और ‘न’ का – प्रयोग हुए निषेधवाचक वाक्य (दो-दो) लिखिए।
उत्तर
(क) ‘नहीं’ का प्रयोग
उदाहरण- मेरी समझ में कुछ नहीं आया।
- उसने मुझसे कुछ नहीं कहा।
- वह मेरे लिए उपहार नहीं लाया।
(ख) ‘मत’ का प्रयोग
उदाहरण-कक्षा में शोर मत करो।
- वहाँ मत बैठो।
- सड़क के बीचों-बीच मत चलो।
(ग) ‘न’ का प्रयोग
उदाहरण-आप इधर न बैठे।
- आप इधर न थूकें।
- कृपया मुझे अनावश्यक सलाह न दें।
प्रश्न 7.
अर्थ के आधार पर निम्नलिखित वाक्यों के भेद – उनके सामने लिखिए
उत्तर
गीता का मर्म परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या
(1) “सच तो यह है कि आपने स्वयं ही गीता का मर्म नहीं समझा अन्यथा आप आधे राज्य के लोभ के कारण इस प्रपंच में नहीं पड़ते क्योंकि गीता तो निष्काम कर्म करने की शिक्षा देती है, फल प्राप्ति की आशा से कर्म करने की नहीं। राजन् ने भी अर्थ नहीं समझा है, अन्यथा विद्वानों का मान-सम्मान करने वाले राजा का व्यवहार इस प्रकार का नहीं होता। वास्तव में दूसरे को उपदेश देने का अधिकारी वही है जो स्वयं उस पर आचरण करता हो। ज्ञान या स्वाध्याय का अर्थ हमें स्वयं को जानना है। विद्याग्रहण करने के बाद भी जिसने स्वयं को न जाना वह उसी व्यक्ति के समान है जिसके पास नक्शा तो है पर’मार्ग नहीं सूझता। ज्ञान हमें रास्ता बताता है। इससे हमारी विचार शक्ति बढ़ती है और देखने की शक्ति व्यापक हो जाती है तथा मनन करने की शक्ति में वृद्धि हो जाती है। हम किसी परिणाम पर युक्तियुक्त ढंग से पहुँचने का प्रयत्न करते हैं। विद्या से विनम्रता आती है और व्यक्ति शालीन बन जाता है। मन शान्त हो जाता है, चित्त एकाग्न हो जाता है और तृष्णाओं का शमन होता है। मात्र विषयों को जानना ही सच्चा ज्ञान नहीं है, पढ़े हुए को चरित्र में डालना ही सच्चा ज्ञान है।”
शब्दार्थ-मर्म = अर्थ, सार; प्रपंच = पाखंड, नाटक; निष्काम = बिना स्वार्थ; व्यापक = दीर्घ; युक्तियुक्त = तर्कपूर्ण; शालीन = सभ्य; तृष्णा = इच्छा; शमन शांत ।
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक भाषा-भारती’ के पाठ ‘ गीता का मम’ से अवतरित है।
प्रसंग-इस गद्यांश में गीता के गूढ़ रहस्य को बहुत ही । सरल शब्दों में समझाया गया है।
व्याख्या-महायोगी विशाख गौवर्ण को सम्बोधित करते हुए – कहते हैं कि गीता के विद्वान होने के बाद भी गौवर्ण गीता-सार को स्वयं ही नहीं समझ पाये। आधा राज्य प्राप्त करने के स्वार्थ के चलते उन्होंने राजा को गीता समझाने की ठानी थी, जबकि गीता तो निस्वार्थ भाव से कर्म करने की सीख देती है। दूसरी ओर राजा, जो ज्ञानी लोगों का सदैव आदर-सत्कार करता था, वह भी । मीता के ज्ञान को किंचित मात्र भी ग्रहण नहीं कर सका। वास्तवमें, वही व्यक्ति दूसरों को सीख प्रदान कर सकता है, जो स्वयं उस सीख पर अमल करता हो। ज्ञान प्राप्ति का प्रमुख उद्देश्य व्यक्ति के लिए स्वयं को जानना होना चाहिए। ज्ञान हमें हमारे ।
गंतव्य तक का रास्ता सुझाता है। ज्ञान से हमारी विचार शक्ति, दृष्टिकोण एवं मनन करने की शक्ति बढ़ती है। यह ज्ञान ही है कि. । जिसके चलते हम किसी समस्या के समाधान हेतु तर्कपूर्ण ढंग से सोच पाते हैं। विद्या व्यक्ति के अन्दर समस्त उच्च मानवीय गुणों; यथा-विनम्रता, शालीनता इत्यादि को समाहित करती है और उसके मन को शान्त एवं चित्त को एकाग्र कर उसकी समस्त इच्छाओं को शान्त करती है। वास्तव में, ज्ञान का सही अर्थ विभिन्न विषयों का अध्ययन करना ही नहीं है अपितु अर्जित ज्ञान को चरित्र में ढालकर जीवन को उच्चता की ओर ले जाना है।
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