MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 2 हिम्मत और जिन्दगी (निबन्ध, रामधारी सिंह दिनकर)
हिम्मत और जिन्दगी अभ्यास
बोध प्रश्न
हिम्मत और जिन्दगी अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
साहसी मनुष्य किस प्रकार सपने देखता है?
उत्तर:
साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता, वह अपने विचारों में रंगा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है।
प्रश्न 2.
लहरों में तैरने वालों को क्या मिलता है?
उत्तर:
लहरों में तैरने वालों को मोती मिलते हैं।
प्रश्न 3.
जिन्दगी में लगाने वाली पूँजी कौन-सी है?
उत्तर:
जिन्दगी में लगाने वाली पूँजी है-संकटों से सामना करना, अंगारों पर चलना और विपत्ति में कभी न घबड़ाना।
प्रश्न 4.
पानी में अमृत वाला तत्व है, उसे कौन जानता है?
उत्तर:
पानी में जो अमृत वाला तत्व है उसे वही जानता है जो धूप में खूब सूख चुका है। विपत्ति जिसने नहीं झेली है वह इस अमृत तत्व को नहीं जानता है।
हिम्मत और जिन्दगी लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
चाँदनी की ताजगी और शीतलता का आनन्द किसे है?
उत्तर:
चाँदनी की ताजगी और शीतलता का आनन्द उसको ही प्राप्त होता है जो दिन भर धूप में थककर लौटा है जिसके शरीर को अब रतनाई की जरूरत महसूस होती है।
प्रश्न 2.
‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा’ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इसका अर्थ यह है कि कुछ त्याग करने के पश्चात् ही जीवन का भोग करो।
प्रश्न 3.
विंस्टन चर्चिल ने जिन्दगी के बारे में क्या कहा है?
उत्तर:
विंस्टन चर्चिल ने जिन्दगी के बारे में कहा है कि जिन्दगी की सबसे बड़ी सिफत हिम्मत है। आदमी के सारे गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते हैं।
प्रश्न 4.
लेखक ने साहसी मनुष्य से सिंह की तुलना किस प्रकार की है?
उत्तर:
लेखक ने साहसी मनुष्य से सिंह की तुलना इस प्रकार की है कि जिस प्रकार अकेला होने पर भी मगन रहता है उसी प्रकार साहसी व्यक्ति अपने बलबूते पर ही किसी काम को करने की क्षमता रखता है, वह दूसरों पर आश्रित नहीं रहता है।
प्रश्न 5.
अर्नाल्ड बेनेट ने हिम्मत और साहस के सम्बन्ध में क्या कहा?
उत्तर:
अर्नाल्ड बेनेट ने हिम्मत और साहस के सम्बन्ध में कहा है कि हिम्मत और साहस के बल पर वीर व्यक्ति जिन्दगी की चुनौतियों का सामना करते हैं और उन पर विजय पाकर सुखी जीवन जीते हैं।
प्रश्न 6.
साहसी मनुष्य की क्या पहचान है?
उत्तर:
साहसी मनुष्य की पहली पहचान है कि वह इस बात की चिन्ता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है।
हिम्मत और जिन्दगी दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बड़ी हस्तियाँ बड़ी मुसीबतों में पलकर दुनिया पर कब्जा करती हैं? उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बड़ी हस्तियाँ बड़ी मुसीबतों में पलकर दुनिया पर कब्जा करती हैं। इस तथ्य को हम इस उदाहरण से स्पष्ट कर सकते हैं-अकबर महान सम्राट ऐसे ही नहीं बन गया था। जिस ‘समय उसकी अवस्था तेरह वर्ष की थी, उसने अपने पिता के शत्रु को रणक्षेत्र में परास्त किया था। इसका एकमात्र कारण यह था कि वह संकटों एवं विपत्तियों से घबडाता नहीं था। उसका जन्म ही संकटों से पूर्ण भू-भाग रेगिस्तान में हुआ था। वहीं से उसने संकटों से जूझने को अपना लक्ष्य बना लिया था।
प्रश्न 2.
जिन्दगी की कौन-कौन सी दो सूरतें हैं? समझाइए।
उत्तर:
जिन्दगी की दो सूरतें हैं। एक तो यह कि आदमी बड़े-से-बड़े मकसद के लिए कोशिश करे, जगमगाती हुई जीत पर पंजा डालने के लिए हाथ बढ़ाए और अगर असफलताएँ कदम-कदम पर जोश की रोशनी के साथ अंधियारी का जाल बुन रही हों, तब भी वह पीछे को पाँव न हटाए। दूसरी सूरत यह है कि उन गरीब आत्माओं का हमजोली बन जाएँ जो न तो बहुत अधिक सुख पाती हैं और न जिन्हें बहुत अधिक दुख पाने का ही संयोग है।
प्रश्न 3.
“फूलों की छाँह के नीचे खेलने वालों के लिए जिन्दगी के असली मजे नहीं हैं” उदाहरण द्वारा इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर:
जिन्दगी के असली मजे उनके लिए नहीं है जो फूलों की छाँह के नीचे खेलते और सोते हैं बल्कि फूलों की छाँह के नीचे अगर जीवन का स्वाद छिपा है तो वह भी उन्हीं के लिए जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं जिनका कंठ सूखा हुआ है, होंठ फटे हुए हैं और सारा बदन पसीने से तर है।
प्रश्न 4.
जिन्दगी को सही ढंग से जीने के लिए लेखक द्वारा दिए गए सुझावों पर अपना मत व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
जिन्दगी को सही ढंग से जीने के लिए लेखक ने जो सुझाव दिए हैं, वे वास्तव में सत्य एवं सार्थक हैं। जीवन का असली मजा मनुष्य को तभी मिलता है जब वह संकटों से होकर गुजरता है। बिना कष्ट पाये आनन्द भोगना जीवन को विनाश की ओर ले जाना है। मनुष्य को अपने पुरुषार्थ पर भरोसा रखना चाहिए। पुरुषार्थी व्यक्ति जीवन में सब कुछ प्राप्त कर लेता है उसके लिए संसार में कोई चीज असम्भव नहीं है।
प्रश्न 5.
सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिए
(अ) पानी में जो …………….. पड़ा ही नहीं।
उत्तर:
लेखक कहता है कि इस संसार में जिन्दगी का सच्चा आनन्द वही व्यक्ति उठा सकता है जो फूलों की छाँह में न सोकर काँटों की सेज पर सोता है। फूलों की छाँह के नीचे खेलने और सोने वाले जीवन का सच्चा आनन्द नहीं जानते हैं। अगर फूलों की छाँह के नीचे जीवन का स्वाद छिपा हुआ है, तो वह उन्हीं लोगों के लिए है जो रेगिस्तान की भीषण गर्मी को झेलकर आ रहे हैं, जिनका गला प्यास के लिए सूखा हुआ है, होंठ फटे हुए हैं और पूरा शरीर पसीने से लथपथ है। पानी के अन्दर जो अमृत तत्व छिपा है उसे वही व्यक्ति जानता है जो धूप में अच्छी तरह से सूख चुका है, वह नहीं जिसने अपने जीवन में कभी भी रेगिस्तान की तपन एवं गर्मी को नहीं झेला है।
(ब) झुण्ड में चलना …………… मग्न रहता है।
उत्तर:
लेखक कहता है कि साहसी व्यक्ति अपने आप पर भरोसा रखता है वह किसी अन्य पर आश्रित नहीं रहता है। कभी-कभी वह ऐसी-ऐसी कल्पनाएँ कर लिया करता है जिनका संसार के जीवन में कोई अर्थ नहीं हुआ करता है। साहसी व्यक्ति दूसरे पर भरोसा नहीं करता वह अपने पर ही भरोसा रखता है। झुण्ड में चलना और झुण्ड में चरना (खाना) भैंस या पेड़ का स्वभाव होता है। शेर तो अकेले चलने में ही आनन्द लेता है।
हिम्मत और जिन्दगी भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग अलग कीजिए।
उत्तर:
सुनयन = सु; अन्याय = अ; पराधीन = पर; अहिंसा = अ: विदेश = वि; प्रगति = प्र: विराग = वि।
प्रश्न 2.
अनु, परि, सु, कु उपसर्ग शब्दों को जोड़कर दो-दो नए शब्द बनाइए।
उत्तर:
अनु – अनुकम्पा, अनुचर।
परि – परिक्रमा, परिवेश।
सु – सुपुत्र, सुकृति।
कु – कुपुत्र, कुपात्र।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्द छाँटकर लिखिए
फूल, छाँह, जिन्दगी, खौफ, निर्भय, उपदेश, रेल, टेबिल, रोशनी, पाँव, पंख, कब्जा, मकसद।
उत्तर:
तत्सम – निर्भय, उपदेश।
तद्भव – फूल, पंख।
देशज – छाँह, पाँव।
विदेशी – जिन्दगी, खौफ, रेल, टेबिल, रोशनी कब्जा, मकसद।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिए
आँसू, पूरब, मोर, सपना, धीरज।
उत्तर:
आँसू = अश्रु; पूरब = पूर्व; मोर = मयूर; सपना = स्वप्न; धीरज = धैर्य।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:
शब्द | विलोम |
आदान | प्रदान |
उर्वरा | बंजर |
प्रवृत्ति | निवृत्ति |
कृतज्ञ | कृतघ्न |
कृत्रिम | प्राकृत, अकृत्रिम |
संक्षेप | विस्तृत |
रक्षक | भक्षक। |
हिम्मत और जिन्दगी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) जिन्दगी के असली मजे उनके लिए नहीं हैं जो फूलों की छाँह के नीचे खेलते और सोते हैं। बल्कि फूलों की छाँह के नीचे अगर जीवन का स्वाद छिपा है तो वह भी उन्हीं के लिए है जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं, जिनका कंठ सूखा हुआ, होंठ फटे हुए और सारा बदन पसीने से तर है। पानी में जो अमृत तत्व है, उसे वह जानता है जो धूप में खूब सूख चुका है, वह नहीं जो रेगिस्तान में कभी पड़ा नहीं है।
कठिन शब्दार्थ :
तर = गीला; छाँह = छाया; कंठ= गला।
सन्दर्भ :
यह गद्यांश ‘हिम्मत और जिन्दगी’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्रीरामधारीसिंह ‘दिनकर’ हैं।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने बताया है कि जीवन का असली मजा विपत्तियों एवं संकटों को झेलने के बाद ही मिलता है। आनन्द का जीवन जीना कोई जीवन नहीं है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि इस संसार में जिन्दगी का सच्चा आनन्द वही व्यक्ति उठा सकता है जो फूलों की छाँह में न सोकर काँटों की सेज पर सोता है। फूलों की छाँह के नीचे खेलने और सोने वाले जीवन का सच्चा आनन्द नहीं जानते हैं। अगर फूलों की छाँह के नीचे जीवन का स्वाद छिपा हुआ है, तो वह उन्हीं लोगों के लिए है जो रेगिस्तान की भीषण गर्मी को झेलकर आ रहे हैं, जिनका गला प्यास के लिए सूखा हुआ है, होंठ फटे हुए हैं और पूरा शरीर पसीने से लथपथ है। पानी के अन्दर जो अमृत तत्व छिपा है उसे वही व्यक्ति जानता है जो धूप में अच्छी तरह से सूख चुका है, वह नहीं जिसने अपने जीवन में कभी भी रेगिस्तान की तपन एवं गर्मी को नहीं झेला है।
विशेष :
- भाषा सहज एवं सरल है।
- शैली वर्णनात्मक है।
(2) सुख देने वाली चीजें पहले भी थीं और अब भी हैं। फर्क यह है कि जो सुखों का मूल्य पहले चुकाते हैं और उनके मजे.बाद में लेते हैं, उन्हें स्वाद अधिक मिलता है। जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है, उनके लिए आराम ही मौत है।
कठिन शब्दार्थ :
मूल्य = कीमत; मौत = मृत्यु।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक यह बताना चाहता है कि सच्चा आनन्द उन्हीं लोगों को मिलता है जो उसे पाने से पहले संकटों से जूझते हैं।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि इस संसार में सुख देने वाली चीजें तो पहले भी थीं और अब भी हैं। परन्तु इसमें फर्क यह है कि जो व्यक्ति सुख का आनन्द उठाने से पहले उसकी प्राप्ति में जितना अधिक संघर्ष करते हैं या विपत्तियाँ झेलते हैं, उन्हें उतना ही आनन्द प्राप्त होता है। इसके विपरीत जिन व्यक्तियों को जीवन में आराम बिना संघर्ष किये मिल जाता है उन्हें मौत भी उसी आराम से प्राप्त होती है। अत: जीवन में सच्चा आनन्द तभी मिल सकता है जब हम संघर्ष करें।
विशेष :
- संघर्ष के पश्चात् मिलने वाला आनन्द ही सच्चा आनन्द है।
- भाषा सरल एवं प्रवाहात्मक।
(3) भोजन का असली स्वाद उसी को मिलता है, जो कुछ दिन बिना खाए भी रह सकता है। तेन त्यक्तेन भुंजीथा, जीवन का भोग त्याग के साथ करो, यह केवल परमार्थ का ही उपदेश नहीं है क्योंकि संयम से भोग करने पर जीवन से जो आनन्द प्राप्त होता है, वह निरा भोगी बनकर भोगने से नहीं मिल पाता।
कठिन शब्दार्थ :
त्येन त्यक्तेन भुंजीथा = त्याग के पश्चात् ही भोग किया जाना चाहिए; परमार्थ = परकल्याण का; संयम = इन्द्रियों को अपने वश में रखना।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक ने बताया है कि हमारे ऋषि मुनियों ने त्याग एवं परमार्थ का महत्त्व जाना है तभी उन्होंने इनको अपनाने की बात कही है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि भोजन का असली स्वाद उसी व्यक्ति को मिलता है जो कुछ दिन तक भूखा रहता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने इसीलिए कहा है कि जीवन का भोग त्याग के साथ करो। ऋषि-मुनियों का यह उपदेश केवल परोपकार की भावना के लिए नहीं है बल्कि संयम के पश्चात् भोग करने पर जो आनन्द प्राप्त होता है वह मात्र भोगी बनकर भोगने से नहीं मिल सकता।
विशेष :
- किसी ने कहा है कि जल निष्फल था यदि तृषा न होती।
- भाषा सरल एवं प्रवाहमयी है।
(4) बड़ी चीजें बड़े संकटों में विकास पाती हैं, बड़ी हस्तियाँ बड़ी मुसीबतों में पलकर दुनिया पर कब्जा करती हैं। अकबर ने तेरह साल की उम्र में अपने पिता के दुश्मन को परास्त कर दिया था जिसका एकमात्र कारण यह था कि अकबर का जन्म रेगिस्तान में हुआ था और वह भी उस समय जब उसके पिता के पास एक कस्तूरी को छोड़कर और कोई दौलत नहीं थी।
कठिन शब्दार्थ :
विकास = तरक्की; परास्त = हरा दिया; कस्तूरी = हिरन की नाभि में पायी जाने वाली एक विशेष प्रकार की सुगन्धित बूटी।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक यह बताना चाहता है कि बड़ी चीजों या बड़े व्यक्तियों का निर्माण बड़े संकटों से जूझने के बाद ही होता है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि संसार में वह व्यक्ति बड़ा या महान् हो सकता है जो जीवन में बड़े-से-बड़े संकटों को झेलता है। अकबर महान् ऐसे ही नहीं बन गया था, उसने जीवन में अनेकानेक मुसीबतें झेली थीं। जिस समय अकबर की अवस्था केवल तेरह वर्ष की थी उस समय भी उसने अपने पिता के दुश्मन अर्थात् हुमायूँ के दुश्मन शेरशाह को परास्त किया था। इस सफलता के मूल में एक कारण यही था कि अकबर का जन्म रेगिस्तान में हुआ था जहाँ संकट ही संकट थे। इन्हीं संकटों में पलकर वह बहादुर सैनिक और सम्राट बन सका। उस समय उसके पिता के पास कोई विशेष धन-दौलत भी न थीं मात्र एक कस्तूरी थी। कहने का अर्थ यह है कि संकटों में पलने वाला व्यक्ति ही आगे महान् बनता है।
विशेष :
- भाषा सरल एवं भावानुकूल है।
- शैली वर्णनात्मक।
(5) साहसी मनुष्य उन सपनों में भी रस लेता है जिन सपनों का कोई व्यावहारिक अर्थ नहीं है। साहसी मनुष्य सपने उधार नहीं लेता, वह अपने विचारों में रंगा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है। झुण्ड में चलना और झुण्ड में चरना, यह भैंस या भेड़ का काम है। सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मगन रहता है।
कठिन शब्दार्थ :
सपनों में रस लेना = जीवन में महत्त्वाकांक्षा रखना; व्यावहारिक अर्थ नहीं = व्यावहारिक जीवन में जिनका कोई अर्थ नहीं होता; सपने उधार नहीं लेता = दूसरों के बलबूते पर वह कोई काम नहीं करता है; अपनी ही किताब पढ़ता है = अपने लक्ष्य में पूरी तरह लगा रहता है।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक.ने इस अंश में साहसी व्यक्ति की इच्छा शक्ति एवं लगनशीलता के बारे में बताया है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि साहसी व्यक्ति अपने आप पर भरोसा रखता है वह किसी अन्य पर आश्रित नहीं रहता है। कभी-कभी वह ऐसी-ऐसी कल्पनाएँ कर लिया करता है जिनका संसार के जीवन में कोई अर्थ नहीं हुआ करता है। साहसी व्यक्ति दूसरे पर भरोसा नहीं करता वह अपने पर ही भरोसा रखता है। झुण्ड में चलना और झुण्ड में चरना (खाना) भैंस या पेड़ का स्वभाव होता है। शेर तो अकेले चलने में ही आनन्द लेता है।
विशेष :
(i) लेखक का मानना है कि-
कर बहियाँ बल आपनी, छाँड़ विरानी आस।
जाके आँगन है नदी सो कत मरत प्यास॥
(ii) इस भाव का भी इसमें उल्लेख है-
लीक पकड़ तीनों चले कायर क्रूर कपूत।
लीक छोड़ तीनों चलें शायर शूर सपूत॥
(iii) भाषा शैली लाक्षणिक।