MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 4 पितृसेवा परं ज्ञानम्

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MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 4 पितृसेवा परं ज्ञानम् (कथा)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 4 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिख-(एक शब्द में उत्तर दीजिए)
(क) मदन विनोदः कस्य पुत्रः आसीत्? (मदन, विनोद किसके पुत्र थे?)
उत्तर:
हरिदत्तस्य। (हरिदत्त के)

(ख) मदनं विनोदेन स्वर्णपञ्जरस्थः शुकः कुत्र स्थापितः? (मदन विनोद ने सोने के पिंजरे में स्थित शुक को कहाँ रखा?)
उत्तर:
शयनेन कक्षे। (सोने वाले कमरे)

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(ग) त्रिविक्रमनामा द्विजः कस्य सखा आसीत्? (विक्रम नाम का ब्राह्मण किसका मित्र था?)
उत्तर:
हरिदत्तस्य (हरिदत्त का)।

(घ) देवशर्मा कुत्र तपः अकरोत्? (देवशर्मा ने कहाँ तपस्या किया?)
उत्तर:
गंगातीरे (गंगा के किनारे)।

(ङ) देवशर्मोपरि केन पुरीषोत्सर्ग कृतः? (देवशर्मा के ऊपर किसने टट्टी किया?)
उत्तर:
बलाकि (बगुली)।

प्रश्न 2.
अधोलिखित प्रश्नां एकवाक्येन उत्तरं लिखत (नीचे लिखे प्रश्नों का एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) मदनविनोद पितुः शिक्षा केन कारणेन न शृणोति? (मदनविनोद पिता की शिक्षा किस कारण से नहीं सुनता था?)
उत्तर:
मदन विनोद पितुः शिक्षा दुखश्यनेनो कारणेन न शृणोति। (मदन विनोद पिता की शिक्षा दुख के कारण नहीं सुनता था।)

(ख) मदन विनोदस्य आसक्तिः केषु आसीत्? (मदन विनोद का लगाव किसमें था?)
उत्तर:
मदनविनोदस्य आसक्तिः द्यूतमृगयवेश्यामद्यादिषु आसीत्। (मदन विनोद का लगाव जुआ खेलने, वेश्यावृत्ति और मदिरापान आदि में था।)

(ग) द्विजपत्नी देवशर्माणं किम उक्तवती? (ब्राह्मण की पत्नी ने देवशर्मा से क्या बोली?)
उत्तर:
द्विजपत्नी देवशर्माणं नाहं बलाकेव त्वत्कोपस्थानम् उक्तवती। (ब्राह्मण की पत्नी देव शर्मा से बोली, मैं तुम्हारे बालक को स्थापित नहीं की हूँ।)

(घ) देवशर्मा विस्मितः कथं सजातः? (देवशर्मा किस तरह से विस्मित हो गए?)
उत्तर:
देवशर्मा विस्मितः प्रच्छन्नपातकज्ञानादीत सञ्जातः। (देव शर्मा छुपे हुए पापी ज्ञान के कारण विस्मित हो गए।)

(ङ) देवशर्मा व्याधं कीदृशम् अपश्यत्? (देवशर्मा ने बहेलिया को किस तरह से देखा?)
उत्तर:
देवशर्मा व्याधं रक्ताक्तहस्तं यम प्रतिमं मांसविक्रयं विद्धानं अपश्यत्। (देवशर्मा ने बहेलिए को रक्तरंजित हाथ तथा मांस बेचते हुए देखा।)

प्रश्न 3.
अधोलिखित प्रश्नां उत्तराणि लिखत (निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखो)
(क) शुको देवशर्मणः पतनाय किं कारणमवोचत्? (तोते ने देवशर्मा के पतन के लिए क्या कारण बताया?)
उत्तर:
शुको देवशर्मणः पतनाय पित्रोस्ते दुःखिनोर्दुः खात्पतत्यश्रुचयो भूवि कारणमवोचत्। (तोते ने देव शर्मा के पतन का कारण बताया कि तुम्हारे पिता दुख से दुखी थे और उनके अश्रु भूमि पर गिर रहे थे।)

(ख) बलाका कथं भस्मीभूता जाता? (बगुला किस तरह से भस्म हुआ?)
उत्तर:
बलाका तपस्वी क्रोधाग्निना भष्मीभूता जाता। (बगुला तपस्वी के क्रोध के कारण भस्म हुआ।)

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(ग) के जनाः निन्द्यमानाः जीवन्ति? (कौन लोग निन्दनीय जीवन जीते हैं?)
उत्तर:
स गृही मुनिः साधु स योगी स च धार्मिकः पितृशुश्रूषको नित्यं जन्तुः साधारणश्च य। (वही व्यक्ति गृहस्थ है, वही मुनि साधु योगी है, जो पिता की सेवा में नित्य लगा हुआ है, ऐसे व्यक्ति साधारण होते हुए भी श्रेष्ठ हैं।)

(घ) व्याधः स्वज्ञानस्य कारणम् किम् उत्कवान? बहेलिया ने अपने ज्ञान का क्या कारण बताया?
उत्तर:
न पूजयन्ति ये पूज्यान्मान्यान्न मानयन्ति ये। जीवन्ति निन्द्यमानास्ते मताः स्वर्ग न यान्ति च। (जो पूजा योग्य की पूजा नहीं करते, मानने योग्य को नहीं मानते, निन्द्य होकर वह इस जीवन में जीते तथा मरने पर उन्हें स्वर्ग नहीं मिलता ऐसे लोग निन्दनीय जीवन जीते हैं।)

(ङ) अस्य पाठस्य आशयः कः? (इस पाठ का क्या आशय है?)
उत्तर:
अस्य पाठस्य आशयः-पितरौ सेवा। (इस पाठ का आशय है-माता-पिता की सेवा करना)

प्रश्न 4.
अधोलिखत वाक्येषु पदपूर्ति कुरुत
(क) हरिदत्तः कुपुत्रं दृष्ट्वा दुखितः सञ्जातः।
(ख) शुकं सपत्नीकं पुत्रवत्वं परिपालय।
(ग) तपस्वी गङ्गातीरे जपार्थमुपविष्टः।
(घ) ब्राह्मण ज्ञानकारणं व्याध प्रप्रच्छ।
(ङ) नाहं बलाकेय त्वत्कोपस्थानम्
(च) क्रोधाग्निना भस्भीभूतां बलाकां भूमौ पतिताम्।

प्रश्न 5.
‘अ’ ‘ब’ स्तम्भयों यथायोग्यं मेलनम् कुरुत-
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उत्तर:
क. 5
ख. 3
ग. 1
घ. 2
ड. 4

प्रश्न 6.
अधोलिखित संधीनां विच्छेदं कुरुत
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प्रश्न 7.
अधोलिखित समासानां विग्रहं कुरुत
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प्रश्न 8.
अधोलिखिताव्ययाना वाक्येषु प्रयोगं कुरुत
(उपरि, च, तत्र, एवम, न, ऊर्ध्वम, इव, कथम्)
उपरि – वायुयानमः उपरि-उपरि उड्डयति।
च – राम-लक्ष्मणसीताश्च वनं आगच्छत्।
तत्र – तत्र वायु प्रवहति।
एवम् – सः एवम् कथाम् अकथयत्।
न – वृष्टिः न भविष्यति।
ऊर्ध्वम् – खगाः ऊर्ध्वम् उड्डयन्ति।
इव – गीता वाक्देवि इव पठति।
कथम – कथम् सः शीघ्रम संस्कृतं पठति।

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प्रश्न 9.
अधोलिखित वाक्यानि कः कम् कथयति
(क) एनं शुकं सपत्नीक पुत्रत्व परिपालय।
उत्तर:
त्रिविक्रमाः हरिदत्तं कथयति।

(ख) अस्ति पञ्चपुरं नाम नगरम्।
उतर:
शुकः मदनविनोदम् कथयति।

(ग) नाहं बलाकेव त्वत्कोपस्थानम्।
उत्तर:
नारायणस्य पनि देवशर्माणम् कथयति।

(घ) कथं सती ज्ञानवती, कथं च त्वं ज्ञानवान।
उत्तर:
देवशर्मा व्याधम् कथयति।।

(ङ) ये मान्यान न मानयन्ति ते मृताः स्वर्गं न यान्ति।
उत्तर:
व्याधाः ब्राह्मणं कथयति।

प्रश्न 10.
अधोलिखित शब्दानां प्रकृति प्रत्ययम् च पृथक कुरुत
(क) गृहीत्वा
उत्तर:
गृह्+क्त्वा

(ख) दत्तम्
उत्तर:
दा+क्त

(ग) ज्ञानवान
उत्तर:
ज्ञान+मतुप

(घ) परित्यज्य
उत्तर:
परि+त्यज क्त्वा (ल्यप)

(ङ) निन्द्यमानाः
उत्तर:
निन्द्य+शानच्।

प्रश्न 11.
अधोलिखित शब्दानां मूलशब्दं विभक्ति वचनञ्च लिखत
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पितृसेवा परं ज्ञानम् पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

संस्कृत साहित्य में कथा (आख्यान) साहित्य की दो विधाएँ उपलब्ध हैं। पहली विधा में उपदेशात्मक नीति-कथात्मक साहित्य है जिसमें ‘पंचतंत्र’ पशु-पक्षियों के माध्यम से (प्रेरक एवं ज्ञानवर्द्धक कथाएँ) रोचक ढंग से कही गई हैं। दूसरी विधा में लोककथात्मक मनोरंजक साहित्य आता है। उपदेशात्मक नीति कथा साहित्य में ‘शुक सप्ततिः’ प्रसिद्ध ग्रंथ है। नीति-कथा में उपदेश की प्रवृत्ति तथा लोक-कथा साहित्य में मनोरंजन की वृत्ति प्रमुख रूप से होती है। शुक सप्ततिः उपदेशात्मक कथा का एक उत्तम ग्रंथ है। इस (ग्रंथ के) लेखक के विषय में अथवा इसके रचना काल में निश्चय नहीं है किंतु इस समय शुक नाम से उपलब्ध है। सन् 1400 ई. का मध्य इस कथा-ग्रंथ का रचना काल अनुमानित है। अतः उसी में से एक मातृ-पितृ भक्ति परक कथा शिक्षण के दृष्टिकोण से उपलब्ध है।

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पितृसेवा परं ज्ञानम् पाठ का हिन्दी अर्थ

1. चन्द्रपुरनाम्नि नगरे श्रेष्ठिनः हरदत्तस्य पुत्रः मदनविनोदस्तु अतीवविषयासक्तः कुपुत्रः पितुः शिक्षा न शृणोति स्म। तस्य द्यूतमृगयावेश्यामद्यादिषु अतीव आसक्तिः। कुमार्गचारिणं तं कुपुत्रं दृष्ट्वा तत्पिता हरिदत्तः सपत्नीकः अतीव दुःखितः सञ्जातः। तं हरिदत्तं कुपुत्रदुःखेन पीडितं दृष्ट्वा। तस्य सखा त्रिविक्रमनामा द्विजः स्वगृहतो नीतिनिपुणं शुकं सारिकां च गृहीत्वा तद्गृहे गत्वा प्राह-‘सखे हरिदत्त! एनं शुकं पुत्रवत्त्वं सपत्नीकं परिपालय। एतत्संरक्षणेन तव दुःखं दूरीभविष्यति।’ हरिदत्तस्तु शुकंगृहीत्वा पुत्राया समर्पयामास। मदनविनीदेन शयनमन्दिरे स्वर्णपञ्जरस्थः स्थापितः परिपोषितश्च। अथैकदा रहसि शुको मदनं प्राह-हे सखे!

पित्रोस्ते दुःखिनोर्दुःखात्पतत्यश्रुचयो भुवि।
तेन पापेन ते वत्स पतनं देवशर्मवत्॥2॥

शब्दार्थ :
श्रेष्ठिनः-सम्पन्न व्यापारी का-Talented Businessman or Rich Businessman; मदनविनोदस्तु-मदन और विनोद–Madan and Vinod ; विषयासक्तः-विषयों में आसक्त-Strongly attached in bad habit; न शृणोत स्म-नहीं सुनते थे-did not listen; दृष्ट्वा -देखकर-to see , to look; तत्पिता-उसके पिता-his father; हरिदत्तं-हरिदत्त को-to Hari datt; स्वगृहतो-अपने घर में-in his oun house. नीतिनिपुणं-नीति में निपुणं-talented in policy; मद्गृहे-उस घर में-In its house. एतत्संरक्षणेन-इसके संरक्षण से –By his patronage; समर्पयामास-समर्पित किया-dedicated; शयनमन्दिर-शयन मन्दिर में-in sleeping room. स्वर्णपञ्जरथः-सोने के पिंजरे-cage of gold;अथैकदा-इस प्रकार एक दिन-inthis type one day;रहसि-अकेले में-inalone; पित्तोश्ते-तुम्हारे पिता-your father; भुवि-संसार में-inworld; देवशर्मवत्-देव शर्मा के सामन-like Dev Sharma.

हिन्दी अर्थ :
चन्द्रपुर नामक नगर में हरिदत्त का पुत्र मदन विनोद अत्यधिक विषयासक्त होने के कारण कुपुत्रों (की भांति) पिता की शिक्षा को नहीं सुनता था। उसमें जुआ, मृगया, वेश्यागमन आदि में विशेष आसक्ति थी। कुपुत्र के कुमार्ग गामी होने को देखकर उसका पिता हरिदत्त पत्नी सहित बहुत दुखी रहता था। उस हरिदत्त को कुपुत्र की कुआदतों से दुखी देखकर उसका मित्र त्रिविक्रम नामक ब्राह्मण अपने घर से नीति निपुण तोता-मैना लेकर हरिदत्त के घर जाकर बोला-‘हे मित्र हरिदत्त! इस तोते का सपत्नीक पुत्रवत पालन करो। इसका संरक्षण करने से तुम्हारा दुःख दूर होगा। हरिदत्त ने तोते को लेकर अपने पुत्र को दे दिया। तोता मदन विनोद के शयनकक्ष में स्वर्ण निर्मित पिंजरे में रहता एवं पोषित होता हुआ तोता एक दिन अकेले में उससे बोला-हे मित्र!

तुम्हारे पिता के कष्ट में होने के कारण उनका आँसू भूमि पर गिर गया। हे वत्स! उस पाप से तुम्हारा भी पतन देवशर्मा के समान होगा।

2. स प्राह-‘कथमेतत?’
शुक आह-अस्ति पञ्चपुरं नाम नगरम्। तत्र सत्यशर्मा ब्राह्मणः। तद्भार्या धर्मशीलानाम्नी। पुत्रस्तु देवशर्मा। स च अधीतविद्यः पितृप्रच्छन्नवृत्या देशान्तरं गत्वा भागीरथीतीरे तपः कृतवान्।

एकदा स तपस्वी गङ्गातीरे जपार्थमुपविष्टः। तस्मिन्काले कयाचित् बलाकया उड्डीयमानया तदङ्गोपरि पुरीषोत्सर्गः कृतः। स च तपस्वी क्रोधाकुलितनेत्रः यावदूर्ध्वं पश्यति तावत्तत्क्रोधग्निना भस्मीभूतां बालकं भूमौ पतितां दृष्ट्वा (बलाकां दग्ध्वा) नारायणद्विजगृहे भिक्षार्थ ययौ। स्वभर्तृशुश्रूषापरया तत्पत्न्या कोपाभिविष्टो निर्भर्त्सतः सत्पक्षिहायमुक्तश्च –

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‘नाहं बलाकेव त्वत्कोपस्थानम्।’-
स च प्रच्छन्नपातकज्ञानादीतो विस्मितश्च, प्रेषितश्च तया धर्मव्याधपार्वे वाराणसी नगरी ययौ। तत्र रक्ताक्तहस्तं यमप्रतिभं मांसविक्रयं विद्धानं तं दृष्टवा दृशामन्तः स्थितः। व्याधेन स्वागतप्रश्नपूर्वकं स्वगृहं नीत्वा निजपितरी सभक्तिकं भोजयित्वा पश्चातस्य भोजनं दत्तम्। तदनन्तरं स च व्याधं ज्ञानकारणं पप्रच्छ-‘कथं सती ज्ञानवती, कथं च त्वं ज्ञानवान्।’

शब्दार्थ :
कथमेतत्-यह कैसे-How titis; धर्मशीलानाम्नी-धर्म शीला नाम की-Name of Dharmsheela; पितृपृच्छत्तवृत्या-पिता के द्वारा बताये गए, मार्ग पर-obey by father’s way; देशान्तरं-दूसरे देश को-to other country. भागीरथीतीरे-गंगा के किनारे-Bank ofGanga;जापार्शमुपविष्टः-जप करने के लिए बैठा-reading meettering of prayers; तस्मिन्काले-उसी समय-that time; उड्डीयमानथा-उठते हुए-flies; तदङ्गोपरि-उसके ऊपर-on thepartofhis body;पुरीषोत्सर्गः-उसके ऊपर मल (टट्टी)-onhis body;क्रोधाकुलित-क्रोध पूर,-forcefull; यावदूर्ध्वं-जब ऊपर-when on; पश्यति-देखता है-looks, sees; क्रोधाग्निना-क्रोध की अग्नि में-in the fire of angry.

भस्मीभूतां-जल गया-burnt; सत्पक्षिहायमुक्तश्च-निर्दोष पक्षी को मारने वाला-innocent birdkiller; ज्ञानावदीतो-ज्ञान से डरा हुआ-afraid of knowledge; विस्मित्-आश्चर्य चकित-wonderfull; प्रेषितश्च-भेजा-send; रक्ताक्तहस्तं-जिसके हाथ रक्त से रंगे हुए हों वह-red handed; यमप्रतिभं-यमराज के समान भयंकर-Horrible like Yamraj;ब्याधेन-बेहलिया ने-Hunter; दृशामन्तः स्थितः-गांव के कुछ दूर में स्थिति-few far of village in situated; स्वागतप्रश्नपूर्वक-स्वागत प्रश्न पूर्वक-wellcomed with question/ happyness: स्वगृह-अपने घर को-his own house; सभक्तिक-भक्ति पूर्वक-full of worship; तदनन्तरं-उसके बाद-often that; ज्ञानकारणं-ज्ञान का कारण-reasonof knowledge; पप्रच्छ-पूछा-asked.

हिन्दी अर्थ :
तब वह बोला-वह कैसे?
तोता बोला-पञ्चपुर नामक एक नगर था। वहाँ सत्य शर्मा नामक ब्राह्मण था। धर्मशीला नाम की उसकी पत्नी थी। उसका पुत्र देवशर्मा था। वह सभी विद्याओं में पारंगत होकर पिता के द्वारा निर्दिष्ट मार्ग पर चलते हुए देशान्तर जाकर गंगा के तट पर तप करने लगा।

एक बार वह तपस्वी गंगा के तट पर तप के उद्देश्य से बैठा था। उसी समय कोई बगुली ऊपर से उड़ती हुई उसके ऊपर विष्ठा कर दी। तब वह तपस्वी क्रोध में ज्यों ही ऊपर की ओर देखा, उसकी क्रोधाग्नि से वह बगुली भस्म होकर भूमि पर आ गिरी। बगुली को जला देखकर वह नारायण नामक ब्राह्मण के घर भिक्षा के उद्देश्य से गया। अपने पति की सेवा में परायण नारायण की पत्नी ने निरीह पक्षी के हत्यारे उस ब्राह्मण की भर्त्सना करते हुए कहा-बगुली के समान मैं तुम्हारे कोप का स्थान नहीं हूँ।

और इस पाप कृत्य के परिणाम से भयभीत वह ब्राह्मण उस द्वारा भेजा गया वाराणसी में धर्म व्याध नामक बहेलिए के पास गया। वहाँ उसने रक्त से सने हुए दोनों हाथों से मांस बेचते हुए यम के सदृश भयंकर रूप वाले उस व्याध को देखा और कुछ दूर खड़ा हो गया। व्याध ने स्वागत करते हुए आने का कारण पूछते हुए उसे अपने घर ले जाकर आदरपूर्वक अपने माता-पिता को भोजन कराने के पश्चात् भोजन कराया इसके बाद उसने ब्याध के ज्ञानी होने का कारण पूछा साथ ही उस सती स्त्री ज्ञानवती के विषय में पूछा, और तुम केसे ज्ञानवान हुए? यह भी बताने को कहा।

3. तेन व्याधेनोक्तम्
निजान्वयप्रणीतं यः सम्यग्धर्म निषेवते।
उत्तमाधममध्येषु विकारेषु पराङ्मुखः॥3॥
स गृही स मुनिः साधुः स योगी स च धार्मिकः।।
पितृशुश्रूषको नित्यं जन्तुः साधरणश्च यः॥4॥

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अहं सापि च एवं ज्ञानिनौ त्वं च निजपतिरौ परित्यज्य भ्रमन्मादृशां न सम्भाषणार्हः। परमतिथिं मत्वा जल्पितः। एवमुक्तः स ब्राह्मणो विनयपरं व्याधं पप्रच्छ। तेनोक्तम् –

न पूजयन्ति ये पूज्यान्मान्यान्न मानयन्ति ये।
जीवन्ति निन्द्यमानास्ते मृताः स्वर्गं न यान्ति च ॥5॥
व्याधेन बोधितस्तेन स ययौ गृहमात्मनः।
अभवत्कीर्तिमाल्लोके परतः कीर्तिभाजनम ॥6॥

तस्माद्वणिग्धर्मं स्वकुलोद्भवं स्मर पित्रोश्च विनयपरो भव।

एवमुक्ताः स मदनः विनयपरः सदाचारी च, अभवत् पितरौ नमस्कृत्य तदनुज्ञातो भार्याञ्चापृच्छय प्रवहणधिरूढवान् गाते देशान्तरम्।

शब्दार्थ :
निजान्वयप्रणीतम्-कुल द्वारा किया हुआ-it was done by family; पराङ्मुख-विमुख-separate; पितृशुश्रूषक-पिता की सेवा में लीन-serve in father; सम्भाषणहिः- संवादयोग्य-able of conversation; निजपतिरो-अपने माता पिता-his own parents; परित्यज्य-छोड़कर-leave; तेनोक्तम्-उसने कहा-he said; न पूजयन्ति-जो नहीं पूजते-who not worshipped; ये पूज्यान्मान्यान्न-जो पूजे जाने योग्य है-who is able to worshiped; ग्रहमात्मनः-अपने घर में-his won house.

हिन्दी अर्थ :
तब व्याध ने कहा-अपने कुलोचार का श्रद्धापूर्वक पालन करते हुए उत्तम, अधम, मध्यम आदि विकार से रहित होकर कार्य करना चाहिए। (जो ऐसा करता है) वही गृही है, वही मुनि है, वही सच्चा साधु है, वही सच्चा योगी व धार्मिक है जो माता-पिता की सेवा में नित्यप्रति लगा रहता है। वह व्यक्ति साधारण होने पर भी श्रेष्ट
है।

इस प्रकार मैं और वह स्त्री ज्ञानवती ज्ञानी हैं। तुम अपने माता-पिता को त्यागकर भ्रमित होकर कुछ भी कहने के योग्य नहीं हो-इस प्रकार वह परम अतिथि जानकर उस ब्राह्मण से विनयपूर्वक कहा ऐसा कहा.

जो पूजनीय व्यक्ति की पूजा नहीं करते, जो मानने योगय को नहीं मानते, ऐसे लोग निन्द्य होकर जीवन जीते हैं और मरने पर स्वर्गगामी नहीं होते। व्याध द्वारा बोधि पूर्ण शिक्षा पाकर वह देवशर्मा अपने घर गया और इस लोक में कीर्तिमान होकर अपना जीवन-यापन करने लगा। इसलिए तुम बनिए का धर्म अपने कुल के अनुसार स्मरण करके माता-पिता के प्रति विनम्र हो। यह सुनकर मदन विनोद विनय युक्त हो सदाचार का अनुसरण करने लगा। वह माता-पिता को नमस्कर करके उनकी आज्ञा ले, अपनी धर्मपत्नी से पूछ वाहन पर सवार होकर दूसरे देश को गमन किया।

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