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MP Board Class 10th Hindi Navneet कवि परिचय
1. सूरदास [2009, 11, 15, 17]
जीवन परिचय-महाकवि सूरदास हिन्दी की कृष्ण-भक्ति शाखा के सबसे प्रथम एवं सर्वोत्तम कवि हैं। सूरदास पहले भक्त एवं बाद में कवि हैं। भक्ति की सूरदास जैसी तन्मयता अन्य कवियों में मिलना दुर्लभ है। सूरदास ने अपने बचपन की आँखें दिल्ली के निकट सीही नामक ग्राम में सन् 1478 ई. में खोलीं। सूरदास जन्मांध थे,परन्तु उनके काव्य की सरलता एवं मधुरता को निहार कर उनके जन्मांध होने में शंका होती है। सन् 1583 ई. के लगभग,वे मृत्यु की गोद में सो गये।
रचनाएँ
- सूरसागर,
- साहित्य लहरी,
- सूर सारावली। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष-गीत परम्परा का विकास-सूरदास ने विद्यापति की गीत परम्परा को विकसित किया,उनके पद गेय हैं तथा राग-रागिनी में खरे उतरते हैं।
- बाल-वर्णन-सूर का बाल-वर्णन इतना मोहक तथा मधुर है, जिसके आधार पर उन्हें वात्सल्य रस का सम्राट माना जाता है।
- रस योजना-सूरदास का श्रृंगार वर्णन उत्कृष्ट कोटि का है। गोपियों के प्रति प्रेम, रासलीला तथा विभिन्न प्रकार की क्रीड़ाओं का सरस तथा आकर्षक वर्णन किया है। ऐसा वर्णन संयोग श्रृंगार का है। कृष्ण का मथुरा गमन करने के पश्चात् गोपियों तथा बृजवासियों का व्यथित होना विरह का वर्णन है। इसके अतिरिक्त सूर के काव्य में शान्त, अद्भुत तथा वात्सल्य रस की धारा भी प्रवाहित है।
- भक्ति पद्धति-सूरदास की भक्ति, तुलसी के समान दास भाव की न होकर सखा भाव की है। इसमें भक्त भगवान के समक्ष दास भाव से प्रार्थना न करके सखा भाव से उन्हें अपना उद्धार करने की चुनौती देता है।
- ज्ञान और भक्ति-साधारण मनुष्य ज्ञान भक्ति का अनुसरण नहीं कर सकता। अतः सूरदास ने ज्ञान की अपेक्षा भक्ति को सुगम ठहराया है।
(ब) कलापक्ष-
- भाषा-सूरदास को ब्रजभाषा का निर्माता स्वीकारा गया है। सूरदास ने जन सामान्य में प्रचलित ब्रजभाषा को अपनाया है। भाषा सरस तथा माधुर्य से आपूरित है। संस्कृत शब्दों का भी प्रयोग है,जो जनसामान्य की समझ से परे नहीं है। लोकोक्तियों तथा मुहावरों के प्रयोग से भाषा में चार चाँद लग गए हैं। भाषा मर्मस्पर्शी तथा मोहक है। प्रचलित अरबी, फारसी शब्दों के साथ गुजराती,खड़ी बोली आदि भाषा के शब्द भी प्रयुक्त हैं।
- शैली-सूरदास ने मुक्तक शैली में मर्मस्पर्शी काव्य रचना की है। शैली की दृष्टि से गीतों की पद शैली को अपनाया है।
- अलंकार योजना-सूरदास ने अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। त्रियमक, श्लेष,उपमा, रूपक,व्यतिरेक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का बड़ा ही सुन्दर तथा सटीक प्रयोग है। संक्षेप में सूर की भाषा शैली प्रवाहमयी, सजीव तथा सरस है। सूर के काव्य में भावपक्ष तथा कलापक्ष का मणिकांचन योग है।
साहित्य में स्थान—सूर गीत काव्य के अमर गायक हैं। हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा के प्रवर्तक तथा उन्नायक हैं। उनकी कुछ रचनाएँ विश्व साहित्य की धरोहर हैं।
2. मलिक मुहम्मद जायसी [2009, 14]
जीवन परिचय-मलिक मुहम्मद जायसी प्रेममार्ग के जगमगाते रत्न हैं। वे प्रेम के अमर गायक तथा पुरोधा हे। इनका जन्म संवत् 1549 अर्थात् 900 हिजरी (सन् 1492) के आस-पास हुआ था। ‘आखिरी कलाम’ नामक ग्रन्थ में कवि ने इस तथ्य को उजागर किया है। अन्य विद्वानों ने इनका जन्म जायस अथवा गाजीपुर में स्वीकारा है। बाल्यकाल में चेचक के प्रकोप से इनकी बांयी आँख तथा कान चले गये थे। इस वजह से इनका चेहरा कुरूप हो गया था। वे भोजपुर तथा गाजीपुर के नृप (राजा) के आश्रय में निवास करते थे। संवत् 1599 अर्थात् सन् 1542 के लगभग मृत्यु की गोद में सदा-सदा के लिए सो गये।
रचनाएँ-
- पद्मावत-जायसी ने पद्मावत महाकाव्य की रचना की है। इसके अन्तर्गत चित्तौड़ के राजा रत्नसेन तथा सिंहद्वीप के राजा गन्धर्व सेन की बेटी पद्मावती की प्रेम कथा उल्लेख है।
- आखिरी कलाम इसमें कयामत (प्रलय) की चर्चा है।
- अखरावट-इस काव्य ग्रन्थ में ईश्वर, जीव एवं सृष्टि के संदर्भ में उनके गहन विचारों तथा सिद्धान्तों का पुट है। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष
- प्रेम एवं अध्यात्म विवेचन—जायसी ने अपनी कविता में प्रेम एवं आत्मा के सन्दर्भ में गहन चिन्तन के माध्यम से उनके सम्बन्ध को उजागर किया है।।
- विरह वर्णन—जायसी का विरह वर्णन हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है। जायसी का विरह वर्णन प्रकृति के परिवर्तित रूपों के अनुसार बदला हुआ है। शरदकालीन ठण्डी चाँदनी यदि नायिका को जलाती है, तो अगहन की रातें बिताने में कष्ट का अनुभव होता है। बैसाख माह में चाँदनी एवं गर्मी अंगारों के समान झुलसाने वाली प्रतीत होती है।
- रहस्यवाद—जायसी का रहस्यवाद भावना प्रधान है। समस्त प्रकृति में कवि को अलौकिक सत्ता की अनुभूति होती है।
- श्रृंगार वर्णन—जायसी का श्रृंगार वर्णन उच्चकोटि का है। पद्मावती की सुन्दरता एवं लावण्य विवेचन में एक अभूतपूर्व बुद्धि कौशल का परिचय मिलता है।
- भक्ति भावना—जायसी ने ब्रह्म को निराकार स्वीकारा है तथा इस तक पहुँचने का एकमात्र साधन प्रेम है।
- प्रकृति चित्रण-शृंगार वर्णन के अन्तर्गत प्रकृति का बारहमासी विवेचन प्रशंसनीय है।
- सूफी प्रभाव-जायसी ने पद्मावत का सृजन भारतीय प्रेम परम्परा के अनुरूप किया है,लेकिन उस पर सूफी प्रभाव है।
- लोक संस्कृति चित्रण-पद्मावत काव्य में लोकजीवन तथा संस्कृति का मनभावन चित्रण किया है। कवि ने पद्मावती की सुन्दरता का अतिश्योक्तिपूर्ण चित्रण किया है।
(ब) कलापक्ष
जायसी के काव्य में भावपक्ष एवं कलापक्ष का मणिकांचन योग है।
1. भाषा-जायसी के काव्य में ग्रामीण अवधी भाषा का प्रयोग है। अवधी के दोनों पक्ष पूर्वी एवं अवधी भाषा के शब्दों का विशेष रूप से अधिकांश मात्रा में प्रयोग है। समग्र रूप में कवि जायसी की भाषा बोधगम्य एवं सरस है।
2. शैली—जायसी का पद्मावत काव्य विश्व साहित्य की धरोहर है। शैली का प्रयोग भी भारतीयता के प्रभाव से अछूता नहीं है। “जायसी का क्षेत्र सीमित है, पर उनकी प्रेम वेदना अत्यन्त गूढ़ है। निःसन्देह पद्मावत हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।”
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में, “जायसी की भाषा देशी सांचे में ढली हुई है।”
जायसी का काव्य हिन्दू परिवारों से सम्बन्धित है। इस हेतु प्रबन्ध शैली में अपने काव्य की रचना की है। हिन्दी काव्यों में एक विशिष्ट शैली का प्रयोग है। इस प्रकार दोनों शैलियों के समन्वय से एक नूतन शैली अवलोकनीय है।
3. अलंकार-अलंकारों का जायसी ने स्वाभाविक प्रयोग किया है। रूपक,उपमा का प्रयोग विशेष रूप से उल्लेखनीय है। छन्द, चौपाई तथा दोहा छन्दों का प्रयोग है। साहित्य में स्थान-सूफी काव्य परम्परा के जायसी सर्वश्रेष्ठ एवं प्रशंसनीय कवि हैं। उनके विरह तथा प्रेम के स्वर आज भी काव्य रसिकों के हृदय को रससिक्त कर रहे हैं। मीरा एवं महादेवी काव्य में भी इनकी सदृश प्रेम एवं विरह की पीड़ा गुंजित है। हिन्दी साहित्य ऐसे साहित्य मनीषी के प्रति सदैव आभारी रहेगा।
3. गास्वामी तुलसादास [2009, 12, 13, 16]
जीवन परिचय-गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ कवि स्वीकारे गये हैं। उनकी रामचरितमानस की गणना विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थों में की जाती है।
तुलसीदास के जन्म के सम्बन्धों में विद्वान एक मत नहीं हैं, किन्तु तथ्यों के आधार पर इनका जन्म सम्वत् 1554 में श्रावण शुक्ल सप्तमी को राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। दीनबन्धु पाठक की सुन्दर सुशील बेटी रत्नावली से इनका विवाह संस्कार हुआ था। इनकी मृत्यु के सन्दर्भ में निम्नलिखित दोहा प्रचलित है
संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर
श्रावण शुक्ला तीज शनि, तुलसी तज्यौ शरीर॥
संवत् 1680 में इनकी मृत्यु हुई।
रचनाएँ-
- रामचरितमानस,
- रामलाल नहछू,
- वैराग्य सन्दीपनी,
- वरवै रामायण,
- पार्वती मंगल,
- जानकी मंगल,
- दोहावली,
- गीतावली,
- कवितावली,
- रामाज्ञा प्रश्न,
- विनय पत्रिका,
- कृष्ण गीतावली। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष-तुलसीदास का भावपक्ष सरस तथा प्रभावोत्पादक है। काव्य में जीवन की अनेक अनुभूतियों का अंकुर है।।
- भक्ति भावना-तुलसीदास भगवान राम के अनन्य भक्त हैं। उन्होंने ‘एक राम घनश्याम हित चातक तुलसीदास’ कहकर चातक को स्वयं की भक्ति का आदर्श माना है।
- समन्वयकारी-तुलसीदास की कविता में सगुण एवं निराकार के प्रति एक समान आस्था व्यक्त की गई है।
- रस-योजना-तुलसी के काव्य में सभी रसों का सुन्दर परिपाक है। श्रृंगार के दोनों पक्ष संयोग तथा वियोग का सुन्दर अंकन है। दशरथ मरण में करुण रस की झाँकी है। धनुष यज्ञ में वीर रस का परिपाक है। तुलसी के काव्य में नवोरसों की अविरल धारा प्रवाहित है।
- युग चित्रण-तुलसी ने अपने ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य में अपने युग के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा धार्मिक जीवन का मार्मिक एवं सफल चित्र अंकित किया है।
- प्रकृति-चित्रण-तुलसीदास जी ने अपनी रचनाओं में प्रकृति के मनोहर दृश्यों के साथ उसके भयंकर रूपों का भी आकर्षक तथा प्रभावपूर्ण चित्रण किया है।
(ब) कलापक्ष
- भाषा-तुलसीदास ने अपने काव्य में ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं का प्रयोग किया है। संस्कृत के तत्सम शब्द भी प्रयुक्त हैं। लोकोक्ति तथा मुहावरों का भी प्रयोग है। भाषा अर्थ सम्पन्न एवं प्रवाहपूर्ण है।
- अलंकार योजना-तुलसी ने अपने काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग किया है। रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, अन्योक्ति, उपमा एवं अन्वय अलंकारों का अत्यन्त ही सरस तथा स्वाभाविक प्रयोग है।
- छन्द-योजना-तुलसीदास के काव्य में चौपाई,कवित्त, सवैया दोहा आदि छन्दों का उचित प्रयोग है।
- शैली-तुलसी ने प्रबन्ध एवं मुक्तक दोनों शैलियों में काव्य रचना की है।
साहित्य में स्थान-आज सैकड़ों वर्ष बाद भी तुलसी जनता के सबसे अधिक लोकप्रिय और पथ-प्रदर्शक बने हुए हैं। समस्त विश्व उन्हें एक स्वर से महान कवि स्वीकार कर रहा है। यही तुलसी की महानता है।
4. बिहारीलाल [2010]
महाकवि बिहारी एक रस सिद्ध कवि हैं। रीतिकाल कवियों में उनका प्रमुख स्थान है।
जीवन परिचय–इनका जन्म सन् 1595 ई. में ग्वालियर के निकट बसुआ गोविन्दपुर नामक ग्राम में हुआ था। आप चतुर्वेदी ब्राह्मण थे। वे रीतिकालीन वैभव के अमर गायक हैं। नीति, शृंगार एवं भक्ति का इनके काव्य में अपूर्व समन्वय है। सन् 1663 में इनकी मृत्यु स्वीकारी गई है। इनकी ससुराल मथुरा में थी। इन्होंने अपनी युवावस्था ससुराल में ही बिताई। सन् में आप जयपुर के राजा के दरबार में चले गये। वहाँ का राजा जयसिंह अपनी छोटी रानी के प्रेम में आकण्ठ निमग्न था। बिहारी ने एक दोहा लिखकर अन्त:पुर में भेजा। उस दोहे को पढ़कर राजा की आँखें खुलीं। यहीं से बिहारी का मान बढ़ गया। जयपुर में ही बिहारी ने अपनी एकमात्र रचना ‘बिहारी सतसई’ की रचना की।
रचनाएँ–
‘बिहारी सतसई’। बिहारी ने केवल एक काव्यग्रन्थ की रचना की जो ‘बिहारी सतसई’ नाम से विख्यात हुई। इसमें 719 दोहे संगृहीत हैं। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष
- भक्ति भावना-बिहारी राधा तथा कृष्ण के अनन्य भक्त हैं। अपने ग्रन्थ ‘सतसई’ के मंगलाचरण में इसी युगल रूप की प्रार्थना की है।
- सौन्दर्य चित्रण-बिहारी सौन्दर्य के कुशल चितेरे हैं। काव्य में बाह्य एवं आन्तरिक सौन्दर्य को भव्य तथा मनोरम रूप में अंकित किया गया है।
- प्रकृति चित्रण बिहारी ने प्रकृति की छटा को निकट से निहारा है। प्रकृति को कवि ने स्वतन्त्र सत्ता के रूप में स्वीकारा है। कवि का बसन्त एवं ग्रीष्मकालीन प्रकृति वर्णन सजीव तथा मनमोहक है।
- नीति-काव्य–बिहारी ने नीति विषयक दोहों की भी रचना की है। ये दोहे मानव को प्रकाश तथा ज्ञान प्रदान करने वाले हैं।
- श्रृंगार रस का परिचय–बिहारी प्रमुख रूप से श्रृंगार रस के चितेरे हैं। काव्य में शृंगार रस का सांगोपाग वर्णन है। संयोग-श्रृंगार के साथ ही विप्रलम्भ श्रृंगार का भी मार्मिक तथा प्रभावोत्पादक चित्रण है। श्रृंगार के अतिरिक्त शान्ति एवं हास्य रस का प्रवाह भी देखा जा सकता है, परन्तु कवि का मन शृंगार में ही रमा है।
(ब) कलापक्ष
- भाषा-बिहारी के काव्य में ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है। उनकी भाषा परिमार्जित तथा व्याकरण सम्मत है। विषय के अनुरूप भाषा का परिवर्तित रूप देखा जा सकता है। उनकी भाषा में खड़ी बोली, संस्कृत, बुन्देली, अरबी-फारसी तथा अवधी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग दृष्टिगोचर होता है।
- अलंकार योजना-अलंकारों के प्रयोग के सम्बन्ध में बिहारी बहुत ही कुशल तथा सक्षम हैं। हर दोहे में कोई न कोई अलंकार आवश्यक रूप से प्रयुक्त है। श्लेष, यमक, उत्प्रेक्षा, अन्योक्ति, विरोधाभास, उपमा तथा रूपक अलंकारों का प्रसंगानुकूल बहुत ही सफल एवं सराहनीय प्रयोग अवलोकनीय है।
- छन्द योजना-बिहारी का प्रिय छन्द ‘दोहा’ है। इन दो पंक्तियों के छन्द में कवि ने भावों का अथाह सागर लहरा दिया है। यत्र-तत्र सोरठा छन्द का भी प्रयोग है।
साहित्य में स्थान-बिहारी एक उच्चकोटि के रचनाकार थे। वे बहुज्ञ एवं प्रतिभा सम्पन्न थे। उन्होंने गागर में सागर भर दिया है। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उनकी उक्ति-वैचित्र्य को देखकर विद्वान दंग रह जाते थे। उनके काव्य में लोक-ज्ञान की छाप विद्यमान है। भाषा में ध्वन्यात्मकता है। उनकी अनुभूति गहन है। अभिव्यक्ति बेजोड़ है।
5. जयशंकर प्रसाद [2009, 15]
जीवन परिचय-जयशंकर प्रसाद बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। वे महान् कवि हैं,सफल उपन्यासकार एवं नाटककार हैं। छायावादी काव्य के आधार स्तम्भ हैं। रचनाकार के रूप में उनका व्यक्तित्व बेजोड़ है। आपने मानव जीवन की यथार्थ झाँकी प्रस्तुत की है। जीवन को भौतिकता की शिला से ऊपर उठाकर आध्यात्मिकता के गौरव शिखर पर आरूढ़ किया है।
वाराणसी के जाने-माने सुँघनी साहू परिवार में सन् 1889 ई.(वि.स. 1946) में जयशंकर प्रसाद ने अपनी शैशवावस्था की आँखें खोलीं। बाल्यकाल में सिर से माता-पिता का साया उठ गया। घर पर मन-चिन्तन एवं स्वाध्याय से विभिन्न भाषाओं का ज्ञान अर्जित किया। सन् 1937 ई.में वह 48 साल की अल्पायु में ही काल के गाल में समा गये।
रचनाएँ
- कामायनी (महाकाव्य),
- लहर,
- करुणालय,
- आँसू,
- झरना,
- महाराणा का महत्त्व,
- लहर,
- प्रेम पथिक,
- कानन कुसुम। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष–प्रसाद जी छायावाद के प्रतिनिधि कवि तथा प्रमुख स्तम्भ हैं। इनके काव्य के भावपक्ष की विशेषताएँ निम्नवत् हैं :
- समरसता का संदेश प्रसाद ने अपने महाकाव्य ‘कामायनी’ में समरसता का सन्देश दिया है। जैसे-जैसे मानव,जगत एवं जीवन के अखण्ड रूप से परिचित होने लगेगा,वैसे ही मनु की तरह विषमता समाप्त होने लगेगी तथा समरसता का संचार प्रारम्भ होगा।
- छायावाद के जनक-हिन्दी काव्य में छायावाद का शुभारम्भ करने का श्रेय प्रसाद को ही जाता है। उनकी कविता में छायावाद की सम्पूर्ण विशेषताएँ तथा चरमोत्कर्ष विद्यमान है।
- प्रेम-वेदना की मर्मस्पर्शी झाँकी प्रसाद के काव्य में प्रेम एवं वेदना के मार्मिक चित्र अंकित किये गये हैं। प्रिय के विरह में जिन्दगी की वाटिका नष्ट हो चुकी है। कलियाँ बिखर गई हैं तथा पराग चारों ओर फैल रहा है। अनुराग-सरोज शुष्क हो रहा है।
- दार्शनिकता का पुट–प्रसाद के काव्य में दार्शनिकता का पुट भी देखा जा सकता है। प्रसाद मूलतः एक दार्शनिक कवि हैं। काव्य में आनन्दवाद की बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति है। दार्शनिकता की वजह से काव्य में रहस्यात्मकता का स्वाभाविक ही सामंजस्य हो गया है।
- प्रकृति चित्रण-प्रसाद जी ने अपने काव्य में प्रकृति के मृदु एवं कर्कश (कठोर) दोनों रूपों का जीवन्त वर्णन प्रस्तुत किया है।
- राष्ट्रीय भावों का चित्रण प्रसाद जी ने राष्ट्र के प्रति भी अपने कर्त्तव्य का निर्वाह किया है। वे प्रेम की मदिरा का पान करके भी राष्ट्र के प्रति उदासीन नहीं हुए हैं।
(ब) कलापक्ष
- भाषा-प्रसाद जी की भाषा परिमार्जित,व्याकरण सम्मत,संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली है। भाषा में माधुर्य,ओज एवं प्रसाद गुण कूट-कूट कर भरा हुआ है। भाषा भावानुकूल एवं सरस है। शब्द-चयन अनूठा है। लाक्षणिकता उनकी कविता का श्रृंगार है।
- अलंकार योजना प्रसाद का काव्य अनेक प्रकार के प्राचीन एवं नवीन अलंकारों से मंडित है। सभी अलंकार भाव प्रकाशन में सहयोगी हैं। परम्परागत अलंकारों के अलावा प्रसाद जी ने ‘विशेषण विपर्यय’ तथा ‘मानवीकरण’ नामक पाश्चात्य अलंकारों का भी अपने काव्य में सफल प्रयोग किया है।
- छन्द योजना–प्रसाद जी ने नवीन छन्दों को अपने काव्य में स्थान दिया है। ये उनकी कल्पना की उर्वरता तथा मौलिकता का प्रमाण हैं। आँसू में अपनाये गये छन्द को ‘ऑस’ छन्द के नाम से सम्बोधित करते हैं। नाद तथा तान में इनके छन्दों की तुलना संस्कृत में ‘मेघदूत’ से की जा सकती है।
साहित्य में स्थान प्रसाद जी का आधुनिक हिन्दी साहित्य में प्रमुख स्थान है। उनकी कविता में नई अभिव्यंजना शैली का मादक बसन्त अपनी शोभा बिखेर रहा है। यत्र-तत्र संगीत का मधुर नाद उल्लास की हिलोरें उत्पन्न कर रहा है। लय-तान युक्त कोमलकान्त पदावली में पीड़ा की वंशी निनादित है। समस्त प्राणियों के प्रति स्नेह एवं करुणा व्यक्त करने का आह्वान है। एक कवि, नाटककार, उपन्यासकार तथा कहानीकार के रूप में वे सदैव स्मरण किये जाते रहेंगे।
6. भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
जीवन परिचय-आधुनिक युग के प्रणेता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी में सन् 1850 में हुआ था। इनके पिता गोपालचन्द्र गिरिधरदास’ थे। वह भी एक सफल कवि थे। पारिवारिक दायित्व के फलस्वरूप इनकी शिक्षा-दीक्षा विधिवत् नहीं हो सकी। स्वाध्याय अध्ययन के माध्यम से अनेक विषयों का ज्ञान ग्रहण किया। आपको कविता करने का चाव बचपन से ही था। उन्होंने पाँच वर्ष की अल्पायु में ही एक कविता की रचना की। इनके सिर पर सरस्वती एवं लक्ष्मी दोनों का वरदान था। सन् 1885 में लगभग 35 वर्ष की अल्पायु में मृत्यु को प्राप्त हो गये।
रचनाएँ-
- भारत दर्शन,
- दान लीला,
- विजय पताका,
- भारत वीर,
- प्रेम माधुरी,
- बकरी विलाप,
- प्रेमाशास्त्र वर्णन,
- विजयिनी,
- कृष्ण चरित्र,
- प्रेम सरोवर,
- प्रेम मलिका,
- बन्दर सभा,
- भारत दुर्दशा,
- नीलदेवी,
- प्रेमयोगिनी,
- सती प्रताप,
- अंधेर नगरी,
- सत्य हरिश्चन्द्र, आदि। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष
- भक्ति प्रधान काव्य-भारतेन्दु कृष्ण के अनन्य भक्त थे। उनमें भक्ति के पदों तथा भक्ति का अथाह सागर लहरा रहा है।
- राष्ट्र भक्ति का संचार–भारत दुर्दशा में देश की दुर्दशा का ज्वलन्त विवेचन है। भारत के पूर्व गौरव का निम्न पंक्तियों में स्वर मुखरित है :
“भारत हे जगत विस्तार भारतभय कंपित संसार।” - सामाजिक समस्या प्रधान-भारतेन्दु का हिन्दी साहित्य में पदार्पण करने का युग, नवीन एवं पुरातन का संगम था। विदेशी शासकों के अत्याचार से जन सामान्य त्राहि-त्राहि कर रहा था। समाज की अत्यन्त दयनीय दशा थी। अपने साहित्य के माध्यम से आपने जागृति का संदेश दिया।
- वर्णन की परिधि-भारतेन्दु जी ने नीति एवं श्रृंगार के सन्दर्भ में प्राचीन ढंग से कविता की रचना में राजनीति, समाज सुधार, राष्ट्र भक्ति आदि पर भी कविता की रचना की। उनके काव्य में विषयानुकूल तथा प्रेरणादायी क्षमता है।
- श्रृंगार प्रधान-शृंगार के संयोग एवं वियोग का मर्मस्पर्शी चित्रण है।
- प्रकृति चित्रण-प्रकृति का मानवीकरण सफलता से किया गया है।
(ब) कलापक्ष
- भाषा-भारतेन्दु जी ने गद्य एवं पद्य दोनों विधाओं की अभूतपूर्व प्रगति की। उन्होंने खड़ी बोली में गद्य एवं पद्य की रचना खड़ी बोली एवं ब्रजभाषा में की है। अप्रचलित शब्दों के प्रयोग करते समय शब्दों के स्थान पर युगानुरूप परिवर्तन किया। भाषा में अंग्रेजी एवं उर्दू दोनों भाषाओं का प्रयोग अवलोकनीय है। मुहावरों तथा कहावतों के प्रयोग से भाषा में चार चाँद लगाये गये हैं। भाषा की सरसता एवं सुषमा देखिए “पगन में छाले पड़े लाघने को लाले पड़े।”
- शैली-भारतेन्दु जी के काव्य में विभिन्न शैलियों का प्रयोग है। समाज सुधार में वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है। शृंगार के पदों में रीतिकालीन शैली अपनायी है। काव्य में राष्ट्र प्रेम-उद्बोधनात्मक शैली का प्रयोग है। छन्द,कवित्त,रोला,सवैया,गजल, छप्पय, गीत, कवित्त, कुण्डलियाँ तथा दोहा आदि छन्दों का सफल प्रयोग है।
- अलंकार-उपमा, सन्देह, उत्प्रेक्षा तथा रूपक आदि अलंकारों की छटा विद्यमान है। साहित्य में स्थान-भारतेन्दु जी ने अपनी प्रतिभा एवं बुद्धिकौशल के माध्यम से भाषा को परिमार्जित एवं सर्वथा नूतन कलेवर प्रदान किया है। वे आधुनिक काल के जन्मदाता तथा जानेमाने साहित्यकार हैं।
7. सुभद्राकुमारी चौहान [2012, 16, 18]
जीवन परिचय–श्रीमती सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म सन् 1904 में प्रयाग की निहालपुर नामक बस्ती में नाग पंचमी वाले दिन हुआ। आपके पिता का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह था,जो अत्यन्त साहित्य-प्रेमी थे। सुभद्रा जी ने बाल्यकाल से ही कविता रचना प्रारम्भ कर दी थी। आपकी पढ़ाई प्रयाग के क्रास्थवेस्ट नामक स्कूल में हुई। आपके पति का नाम लक्ष्मणसिंह था, जो मध्य प्रदेश में ‘खण्डवा’ के निवासी थे। आपने भारत के स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया तथा अनेक बार जेल में रहीं। आपका निधन सन् 1948 को एक मोटर दुर्घटना में हुआ।
रचनाएँ-
- नक्षत्र,
- झाँसी की रानी,
- चित्रधारा,
- सीधे सादे चित्र,
- उन्मादिनी। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष-
सुभद्राकुमारी चौहान का काव्य देश-प्रेम तथा राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत है।
वे वीर रस की कवयित्री हैं। उनकी देश-प्रेम से सम्बन्धित कविताओं में वीर रस की निर्झरिणी प्रवाहित है। सूर की तरह आपने भी वात्सल्य-रस का मार्मिक तथा हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। शौर्य,तेज एवं वीरता का आपके काव्य में संगम देखने को मिलता है। दाम्पत्य जीवन का भी साकार चित्रण है। साहस तथा बलिदान की भावना भी मुखरित है। राष्ट्रीय जागरण का अलख भी ध्वनित है। सात्विक अनुभूतियों का सफल चित्रण भी द्रष्टव्य है। पारिवारिक जीवन के माधुर्य भाव का भी अंकन है।
(ब) कलापक्ष-
आपकी भाषा शुद्ध खड़ी बोली है। ओज उनकी भाषा का प्रधान गुण है। संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग भी देखने को मिलता है। भाषा में कोमलता, सरसता एवं सजीवता है।
आपकी शैली ओज तथा प्रवाह के गुण से सम्पन्न है। ये नारियों को सतीत्व एवं बलिदान की प्रेरणा देने वाली है। राष्ट्रीय भावनाओं का जागरण,जीवन की अनुभूतियों का सफल अंकन तथा जीवन की नैसर्गिक अभिव्यक्ति आपकी कविता के विशेष गुण हैं। निराशा को कविता में कोई स्थान नहीं है। सर्वत्र आशा का नाद मुखरित है।
रचनाएँ सरस हैं तथा मनोवैज्ञानिक धरातल पर प्रतिपादित हैं। हास्य, करुण, रौद्र तथा शृंगार रस का सफल चित्रण देखते ही बनता है। कविता के सौन्दर्य को निखारने के लिए दृष्टान्त, उल्लेख,उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग दर्शनीय है।
साहित्य में स्थान-आप साहित्य के क्षेत्र में नारी जाति के गौरव का प्रतिनिधित्व करने वाली हैं। आपकी देश-प्रेम की कविताएँ नौजवानों को साहस तथा बलिदान की प्रेरणा देने वाली हैं। आप राष्ट्रीय कवयित्री के गौरव से गौरवान्वित हैं। आपकी कविताओं को पढ़कर आनन्द की अनुभूति होती है। प्रकृति के उद्दीपन रूप का चित्रण मनोहारी है। भावुकता, वात्सल्य तथा ओजगुण से ओत-प्रोत आपकी कविताएँ साहित्य जगत को अनुपम भेंट हैं। वे साहित्य-निधि को भरने में अपूर्व योगदान देने वाली हैं।
8. रामधारीसिंह ‘दिनकर’ [2009, 13]
जीवन परिचय श्री रामधारीसिंह ‘दिनकर’ जन-जागरण की काव्यधारा को प्रखर करने वाले हैं। उनकी कविताओं में योद्धा की गहन ललकार है। अनल का प्रखर ताप है। सूर्य-सा प्रचण्ड तेज है। देश-प्रेम की भावना के स्वर गुंजित हैं।
श्री रामधारीसिंह ‘दिनकर’ का जन्म बिहार राज्य के मुंगेर जनपद के अन्तर्गत सिमरिया घाट गाँव में सन् 1908 ई. में हुआ था। इनके पिता एक साधारण किसान थे। ‘उर्वशी’ काव्य ग्रन्थ पर उन्हें पुरस्कार मिला। सन् 1952 में राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए। सन् 1954 ई.में राष्ट्रपति ने ‘पद्म भूषण’ की उपाधि प्रदान की। 24 अप्रैल,सन् 1974 ई. में मद्रास में ये काल के गाल में समा गये।
रचनाएँ-
‘दिनकर’ जी की काव्य रचनाएँ निम्नवत् हैं-
- परशुराम की प्रतीक्षा,
- संचायिता,
- बापू,
- रेणुका,
- रसवन्ती,
- दिल्ली,
- हुँकार,
- सोमधेनी,
- धूप और धुआँ,
- इतिहास के आँसू,
- चक्रवाल,
- द्वन्द्वगीत,
- नीम के पत्ते,
- सीपी और शंख,
- नील कुसुम,
- रश्मिरथी,
- कुरुक्षेत्र आदि।
काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष-आधुनिक हिन्दी के कविता क्षेत्र में ‘दिनकर’ जी का गौरवपूर्ण स्थान है। कविता में छायावादी काव्य के मादक पुष्प विकसित हैं, वहीं प्रेम की गूंज है तथा राष्ट्रीय भावना के प्रखर स्वर भी गुंजित हैं।
- प्रगतिवादी स्वर-‘दिनकर’ के काव्य में प्रगतिवादी विचारधारा के स्वर तीव्र रूप में मुखरित हैं। समाज में व्याप्त विषमता के प्रति तीव्र आक्रोश है। ‘हुंकार’ तथा ‘रेणुका’ में मानवतावादी अनुगूंज है। वे जन-जीवन से जुड़े हैं।
- प्रेम एवं सौन्दर्य-कवि ने प्रेम तथा सौन्दर्य के भी मादक चित्र उतारे हैं। ‘रेणुका’ नामक काव्य रचना इसका प्रबल प्रमाण है। ‘रसवन्ती’ में कवि, अनुराग में तिरोहित हैं। कवि का प्रेम के प्रति लगाव है। यौवन के प्रति ललक है।
- देश-प्रेम-कवि ने अपनी कविता में देश-प्रेम के स्वर गुंजित किये हैं। भारत के स्वर्णिम अतीत का गुणगान किया है। वर्तमान की दुर्दशा पर अश्रु प्रवाहित किये हैं। साथ ही विप्लव का आह्वान भी है।
- श्रृंगार वर्णन-विप्लव तथा विद्रोह की ज्वाला बरसाने वाला कवि ‘रसवन्ती’ में आकर रस से ओत-प्रोत हो गया। ‘उर्वशी’ काव्य कृति में श्रृंगार रस का पूर्ण परिपाक हुआ है।
- प्रकृति चित्रण-कवि ‘दिनकर’ ने प्रकृति सुन्दरी के अनेक सौन्दर्यपूर्ण चित्र अंकित किये हैं।
- रस योजना–’दिनकर’ के काव्य में विविध रसों का पूर्ण परिपाक देखा जा सकता है। ‘कुरुक्षेत्र’ में वीर रस की जीवन्त झाँकी मिलती है। ‘रसवन्ती’ काव्य कृति श्रृंगार रस से प्रवाहित है।
(ब) कलापक्ष
- भाषा-‘दिनकर’ जी की भाषा परिमार्जित, शुद्ध खड़ी बोली है। आंचलिक तथा विदेशी शब्दों का भी प्रयोग किया है। मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा जीवन्त हो उठी है। ओज के साथ प्रसाद गुण भी भाषा में विद्यमान है। संस्कृत पदावली का भी प्रयोग है। कोमल भावों का जहाँ प्रकाशन हुआ है,वहाँ भाषा कोमलकान्त पदावली से सुसज्जित है।
- अलंकार योजना-‘दिनकर’ जी का अलंकारों के प्रति विशेष झुकाव नहीं है। भावों तथा विचारों के पल्लवन हेतु उनके काव्य में अलंकारों का स्वतः ही आगमन निश्चय ही सराहनीय है। उत्प्रेक्षा, दृष्टान्त, उपमा तथा रूपक अलंकारों का कवि ने सफल प्रयोग किया है।
शैली-‘दिनकर’ जी के काव्य में गीति-नाट्य प्रबन्धक एवं मुक्तक शैलियों का बहुत ही सफल तथा काव्योचित प्रयोग है। शैली ओज,प्रसाद तथा माधुर्य गुण से ओत-प्रोत है।।
साहित्य में स्थान–’दिनकर’ आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रमुख कवि हैं। उनकी कविता में महर्षि दयानन्द की सी निडरता, भगतसिंह-सा बलिदान,गाँधीजी की सी निष्ठा एवं कबीर की सी सुधार भावना एवं स्वच्छन्दता विद्यमान है। वे आधुनिक हिन्दी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि हैं।
9. कबीरदास [2009, 10]
जीवन परिचय कबीर का हिन्दी के निर्गुणमार्गी सन्त कवियों में शीर्षस्थ स्थान है। वे सारग्राही महात्मा थे। पढ़े-लिखे न होने पर भी बहुश्रुत थे। कबीर उन महापुरुषों में से थे,जो युग में परिवर्तन कर देते हैं। युग के प्रवाह को बदल देते हैं। उन्होंने अन्धकार में भटकते हुए मानवों को तर्क तथा उपदेश के माध्यम से जाग्रत किया। महात्मा कबीरदास हिन्दी के भक्तिकाल की निर्गुणोपासक ज्ञानाश्रयी शाखा के सर्वश्रेष्ठ और प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। कबीर ने उच्चवर्गीय हिन्दू-मुसलमानों के धार्मिक तथा सामाजिक आडम्बरों का विरोध कर एक ऐसे लोकधर्म की स्थापना करने का प्रयल किया था जिसे साधारण जनता अपना कर सुखी जीवन व्यतीत कर सकती थी। जुलाहा जाति के नीमा तथा नीरू दम्पत्ति ने इन्हें पाला-पोसा। आयु बढ़ने पर कबीर ने भी जुलाहे का व्यवसाय अपनाया। अधिकांश विद्वानों की धारणानुसार कबीर का जन्म सन् 1398 ई. में वाराणसी में हुआ था तथा सम्भवतः सन् 1518 ई. में मृत्यु की गोद में सदा-सदा के लिए सो गये।
रचनाएँ-
कबीर अशिक्षित थे। उन्होंने स्वयं किसी भी काव्य ग्रन्थ का सृजन नहीं किया। शिष्यों ने ही उनके उपदेशों तथा दर्शन का आकलन किया। वह संकलन ‘बीजक’ के रूप में जाना जाता है।
- साखी,
- सबद,
- रमैनी। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष
कबीर का भावपक्ष अनेक विशेषताओं से मंडित है।
- विलक्षण व्यक्तित्व-कबीर का व्यक्तित्व विलक्षण था। यथार्थ में वे स्वभाव से सन्त थे। उनके समाज सुधार की अनूठी लगन थी। कवि बनना उनकी लाचारी थी।
- धार्मिक भावना-सूफियों के प्रेमवाद का कबीर पर गहरा प्रभाव है। उनका ब्रह्म-वर्णन सौन्दर्यमय है। कबीर ने गौतम बुद्ध के समान ही विश्वव्यापी दुःख का कारण तृष्णा को ठहराया है। उन्होंने चित्त शुद्धि,सहज मन निरोध तथा आत्म-निग्रह पर विशेष बल दिया है। तीर्थाटन तथा मूर्ति पूजा का विरोध किया है।
- रहस्यवाद-कबीर निर्गुण एवं निराकार ब्रह्म के उपासक हैं तथा ब्रह्म की अनुभूति ही उनके रहस्यवाद का मुख्य आधार है। रहस्यवाद के अन्तर्गत प्रेम की धारा पूर्णरूप से प्रवाहित है। कबीर के रहस्यवाद का क्षेत्र व्यापक है।
- समाज सुधार की भावना कबीर के काव्य में समाज सुधार की भावना प्रमुख रूप से मुखरित है। उन्होंने धार्मिक पाखण्डों का विरोध किया। समाज में बन्धुत्व के भाव विकसित किये। बाहरी आडम्बर,तीर्थ,स्नानादि को व्यर्थ माना है। हिन्दू तथा मुसलमानों के आडम्बरपूर्ण व्यवहार का विरोध किया है। सरल जीवन, सत्यता तथा स्पष्ट व्यवहार की कबीर के काव्य में सर्वत्र गूंज है। उन्होंने समाजगत दोषों का उन्मूलन किया। रूढ़ियों में बँधे हुए समाज को मुक्त किया।
- समन्वयवादी दृष्टिकोण-कबीर का काव्य समन्वयवादी भावना से ओत-प्रोत है। उसमें भारतीय अद्वैतवाद तथा इस्लाम का एकेश्वरवाद की गूंज है। हठयोगियों का साधनात्मक रहस्यवाद एवं सूफियों का भावात्मक रहस्यवाद कबीर के काव्य में समान रूप से मुखरित है।
- भक्ति-भावना कबीर की भक्ति में सन्यासियों की सी भक्ति दृष्टिगोचर होती है। जो गृह त्यागकर निकम्मे बन जाते हैं, वे सहजमार्गी हैं।
(ब) कलापक्ष-
- भाषा-कबीर शिक्षित नहीं थे। उन्होंने भ्रमण तथा सत्संग के माध्यम से ज्ञान अर्जन किया था। इसी वजह से उनके काव्य की भाषा में अरबी, फारसी,खड़ी बोली,ब्रज,पूर्वी,अवधी,राजस्थानी तथा पंजाबी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग देखा जा सकता है। उनकी भाषा अपरिमार्जित है। शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा भी है। उनकी भाषा में गिरि कानन का सौन्दर्य है। उपवन जैसी काट-छाँट नहीं और न बनाव सिंगार है। भाषा में ओज है,जो सीधे वार करने में सक्षम है।
- शैली-कबीर ने मुक्तक काव्य शैली को अपनाया है। पदों में लम्बे काव्य रूपक प्रयुक्त हैं।
- अलंकार-कबीर के काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक रूप में प्रयोग हुआ है। उपमा,रूपक,उत्प्रेक्षा एवं स्वभावोक्ति अलंकारों के प्रयोग से उनकी अभिव्यक्ति कलात्मक रूप में परिवर्तित हो गई है।
साहित्य में स्थान-कबीर ने अशिक्षित होते हुए भी जनता पर जितना गहरा प्रभाव डाला है.उतना अनेक बड़े-बड़े विद्वान भी नहीं डाल सके हैं। साधारण जनता में लोकप्रियता की दृष्टि से तुलसी के बाद कबीर का दूसरा स्थान माना जा सकता है।
10. रामनरेश त्रिपाठी [2017]
जीवन-परिचय–पं.रामनरेश त्रिपाठी का जन्म सन् 1889 ई.को जौनपुर जिले के कोइरीपुर नामक ग्राम में हुआ था। आपके पिता पंडित रामदत्त त्रिपाठी धार्मिक एवं कर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। इनकी स्कूली शिक्षा नवीं कक्षा तक ही चल सकी। इन्होंने स्वाध्याय से ज्ञानार्जन किया। जीवन के प्रारम्भिक काल से ही ये हिन्दी की सेवा करने लगे थे। उन्होंने साहित्य सेवा को ही जीवन का लक्ष्य बनाया। त्रिपाठी जी का काव्य आदर्शवाद की ओर उन्मुख है। छायावादी काव्य के सौन्दर्य की सूक्ष्म झलक भी यत्र-तत्र कविता में विद्यमान हैं देश-प्रेम आपके काव्य का मूल आधार है। ग्राम्य-गीतों का संकलन आपके श्रम तथा निष्ठा का प्रतीक है। मानव प्रेम के आप पक्षधर हैं। प्रकृति चित्रण के कुशल चितेरे हैं। त्रिपाठी जी ने लोकगीतों का संग्रह किया था।
रचनाएँ–
त्रिपाठी जी प्रतिभासम्पन्न साहित्यकार थे। उन्होंने काव्य,नाटक,कहानी, निबन्ध और आलोचना सम्बन्धी अनेक कृतियाँ लिखीं। इनकी रचनाएँ निम्नांकित हैं
- खण्डकाव्य-‘पथिक’,’मिलन’, ‘स्वप्न’।
- कविताओं का संग्रह-मानसी’।
- सम्पादित–’कविता कौमुदी’ (छ: भाग), ग्राम गीतों का संग्रह’। काव्यगत विशेषताएँ.
(अ) भावापक्ष (भाव तथा विचार) -रामनरेश त्रिपाठी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। देशभक्ति, माधुर्य, ग्राम्य जीवन, त्याग, बलिदान,प्रकृति, मानवता आदि आपके काव्य-विषय रहे हैं। उन्होंने आदर्शवादी काव्य की रचना करके देश को उत्थान की ओर प्रेरित किया है। वे रचनात्मक विचारधारा के पोषक कवि थे।
(ब) कलापक्ष (भाषा तथा शैली) -रामनरेश त्रिपाठी की भाषा शुद्ध, साहित्यिक खड़ी बोली है। इसमें व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियों का अभाव ही है। इनकी भाषा विषयानुरूप बदलती रहती है। संस्कृत की तत्सम शब्दावली का पर्याप्त प्रयोग किया है। आपकी शैली में माधुर्य एवं प्रवाह का अद्भुत संयोग है। वर्णनात्मकता एवं उपदेशात्मकता आपकी शैली की विशेषताएँ हैं। अलंकारों,प्रतीकों का स्वाभाविक प्रयोग आपके काव्य की प्रमुख विशेषता है।
साहित्य में स्थान-भ्रमण तथा स्वाध्याय में संलग्न रहने वाले रामनरेश त्रिपाठी आधुनिक हिन्दी कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। इन्होंने देश प्रेम, संस्कृति, भारतीयता, ग्राम जीवन पर दुर्लभ साहित्य उपलब्ध कराया है। हिन्दी साहित्य को सम्पन्न बनाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। राष्ट्रीयता के पोषक साहित्यकार के रूप में उन्हें चिरकाल तक स्मरण किया जायेगा।
11. महादेवी वर्मा [2009, 11, 14]
जीवन परिचय-मीरा की सुमधुर वेदना को छायावादी काव्य में व्यक्त करने वाली कवयित्री महादेवी वर्मा काव्य जगत में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनका जन्म सन् 1907 में हुआ था। इनके पिताजी का नाम गोविन्दाचार्य था,जो प्रधानाचार्य पद पर प्रतिष्ठित थे। इनकी माता काव्य में विशेष रुचि रखती थीं। महादेवी पर इनका अत्यधिक प्रभाव पड़ा। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर में हुई। सन् 1933 में इन्होंने संस्कृत में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की।
इनका दाम्पत्य जीवन सुखद नहीं रहा। उत्तर प्रदेश सरकार ने आपको विधान परिषद का सदस्य बनाया। 11 सितम्बर,1987 को काव्य जगत् की अमर गायिका इस नश्वर जगत से विदा लेते हुए सदैव के लिए अमर हो गईं।
रचनाएँ-
- कविता संग्रह-नीरजा,दीपशिखा, यामा, नीहार,रश्मि आदि।
- रेखाचित्र-पथ के साथी, अतीत के चलचित्र।
- नारी साहित्य-श्रृंखला की कड़ियाँ।
- आलोचना-हिन्दी का विवेचनात्मक गद्य।
काव्यगत विशेषताएँ-
(अ) भावपक्ष इसके अन्तर्गत छायावादी काव्य की समस्त विशेषताएँ उल्लेखनीय हैं।
- प्रकृति-वर्णन-प्रकृति के माध्यम से अपनी रहस्यवादी भावनाओं को व्यक्त किया है। अलंकार के रूप में प्रकृति वर्णन किया है। मानवीकरण, रूपक, उत्प्रेक्षा, अनुप्रास, रूपकातिश्योक्ति आदि अलंकार प्रयोग किये हैं। रस योजना-काव्य में शृंगार,करुण एवं शान्त रसों की मन्दाकिनी प्रवाहित है।
- रहस्यवादी भावनाएँ-रहस्यवाद में आध्यात्मिकता एवं वेदना का समन्वय है।
(ब) कलापक्ष
- भाषा-महादेवी के काव्य में खड़ी बोली का प्रयोग है। भाषा में संस्कृत शब्दों का आधिक्य है। भाषा सरस एवं कोमल-संस्कृत शब्दों के प्रयोग होने पर भी भाषा दुरूह न होकर सरस एवं कोमल है। इनके अलावा भाषा प्रवाह,मधुर एवं परिष्कृत है।
- शैली-वेदना एवं माधुर्य-काव्य में मीरा सदृश वेदना के स्वर मुखरित हैं। ससीम की असीम के प्रति विरह भावना हृदयस्पर्शी है।
- गीतात्मकता-महादेवी जी ने अपनी कविताओं को गीत शैली में रचा है। गीत मधुर, कर्णप्रिय एवं मनोहर हैं।
- अलंकार योजना-उत्प्रेक्षा,मानवीकरण एवं सांगरूपक अलंकारों का विशेष रूप से प्रयोग है। साहित्य में स्थान-वेदना एवं करुणा का राग अलापने वाली महादेवी वर्मा विश्वस्तरीय महान् कवयित्री हैं। इन्होंने भाषा को माधुर्य एवं लाक्षणिकता प्रदान की। छायावादी एवं रहस्यवाद का अद्भुत समन्वय प्रशंसनीय है।
12. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’
जीवन परिचय-प्रयोगवाद के क्षेत्र में ‘अज्ञेय’ को प्रतिनिधि कवि स्वीकारा गया है। इन्होंने अपनी बचपन की आँखें देवरिया जिले के अन्तर्गत कसिया नामक जिले में सन 1911 में खोलीं। इनके पिता हीरानन्द शास्त्री पुरातत्त्व विभाग में एक उच्च अधिकारी के रूप में प्रतिष्ठित थे; अतः उन्हें विभिन्न स्थान देखने तथा निवास करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बी. एस-सी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् क्रान्तिकारी आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण उनकी अध्ययन व्यवस्था पर विराम लग गया। आपने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया जिनमें दिनमान, सैनिक, विशाल भारत आदि का नाम उल्लेखनीय है। आकाशवाणी में भी कुछ समय तक कार्यभार संभाला। 4 अप्रैल, 1987 को हिन्दी प्रयोगवादी पुरोधा सदा-सदा के लिए मौत के आगोश में समा गया।
रचनाएँ-
रचना क्षेत्र में अज्ञेय’ जी का क्षेत्र बहु आयामी है। आपने कविता, गद्य, निबन्ध, कहानी,संस्करण तथा उपन्यास भी लिखे हैं।
- कविता-संग्रह-सागर मुद्रा,अरी ओ करुणा प्रभामय,हरी घास पर क्षण भर, इन्द्रधनुष रौंदे हुए ये, भग्नदूत, आँगन के पार द्वार आदि।
- निबन्ध-आत्मनेपद।
- उपन्यास-अपने-अपने अजनबी, नदी के द्वीप,शेखर की जीवनी। काव्यगत विशेषताएँ
(अ) भावपक्ष-प्रेम एवं सौन्दर्य का मर्मस्पर्शी चिन्तन-अज्ञेय जी ने अपनी कविता में प्रेम एवं सौन्दर्य, मनुष्य के प्रति लगाव को मानव की सहज प्रवृत्ति के अन्तर्गत स्वीकारा है। यदि प्रेमानुभूति अपूर्ण रहती है तो उसका मन दुःखी तथा उदास हो जाता है।
- रहस्यवादी अनुभूतियाँ-संसार में परिवर्तन के सदृश जैसे संहार, कोलाहल,प्रेम एवं घृणा विराट सत्ता का उपहार ही है। कवि उस विराट के प्रति एकाकार होने का भाव मन-मानस में सँजोए हुए है।
- रस योजना-अज्ञेय जी की कविता में श्रृंगार के दोनों पक्षों-संयोग तथा वियोग का मनोरम तथा सजीव चित्रण है। वीर, करुण तथा रौद्ररस प्रयोग तो किया है,लेकिन उसमें नीरसता न होकर सरसता का पुट है।
- प्रकृति-चित्रण-प्रकृति के प्रति अज्ञेय जी का विशेष लगाव है। उन्होंने आसमान, बादल, समुद्र, लहरें, तारागण, नक्षत्र एवं चाँदनी आदि का वर्णन अपनी कविता में किया है। मानव कल्याण की महत्ता—इनकी कविता में मानव कल्याण की भावना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वही मनुष्य आदर्श एवं महान है,जो सच्चे मन से मानव कल्याण में रत है।
(ब) कलापक्ष
- भाषा-अज्ञेय ने अपने काव्य में भाषा का भावों के अनुरूप प्रयोग किया है। इसके लिए उन्होंने तत्सम प्रधान व संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली का प्रयोग किया है। इन्होंने अपनी भाषा में कहीं भी कठिन शब्दावली का प्रयोग नहीं किया है। यथास्थान इन्होंने अंग्रेजी व फारसी शब्दों का भी प्रयोग किया है।
- शैली-प्रयोगवादी धारा के प्रतिनिधि कवि होने के कारण इन्होंने अपने काव्य को नवीन शैली व नये बिम्बों और उपमानों से सजाया-सँवारा है।
उन्होंने प्राचीन रूढ़ियुक्त शैली का कहीं भी प्रयोग न करके भावों के अनुरूप शैली का प्रयोग करके कविता को नये साँचे में ढाला है। - अलंकार-अलंकार ही काव्य का प्राण है तथा आत्मा है। इस तथ्य को स्वीकार करते हुए इन्होंने अपने काव्य में उपमा, रूपक, श्लेष एवं मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग कर अपने काव्य को अलंकृत किया है।
- छन्द-अज्ञेय जी ने नये प्रयोग और नये आयाम काव्य जगत को प्रदान किये। इसी कारण इन्होंने छन्दों के बन्धन को स्वीकार नहीं किया है। उन्होंने मुक्त छन्द का प्रयोग किया है। ध्वनियों का पर्याप्त ज्ञान होने के कारण अनेक गीतों की रचना की है।
साहित्य में स्थान-अज्ञेय हिन्दी साहित्य के नक्षत्र के सदृश हैं। इन्होंने काव्य गद्य, निबन्ध, उपन्यास आदि की प्रस्तुति नवीन ढंग से करके हिन्दी साहित्य में अद्वितीय स्थान प्राप्त किया। इन्होंने ‘तारसप्तक’ का प्रकाशन करके प्रयोगवादी काव्य में चार चाँद लगा दिये।
13. नागार्जुन
जीवन परिचय-नागार्जुन का जन्म दरभंगा जिले के सतलखा ग्राम में सन् 1911 में हुआ था। आपका नाम श्री वैद्यनाथ मिश्र था। प्रारम्भ में आप ‘यात्री’ नाम से लिखा करते थे। बाद में बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर महात्मा बुद्ध के प्रसिद्ध शिष्य के नाम पर अपना नाम ‘नागार्जुन’ रख लिया।
नागार्जुन का जीवन अभावों से ग्रस्त रहा था। इन अभावों ने ही आप में शोषण के प्रति विद्रोह की भावना भर दी। व्यक्तिगत दुःख ने ही आपको मानव-मात्र के दुःख को समझने की क्षमता प्रदान की। नागार्जुन की आरम्भिक शिक्षा संस्कृत पाठशाला में हुई। देश-विदेश घूमते हुए वे श्रीलंका जा पहुँचे। वहाँ आप संस्कृत के आचार्य बन गए। स्वाध्याय से ही आपने कई भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया। आप सन् 1941 में भारत लौट आए। नागार्जुन ने कई बार जेल-यात्रा की। स्वतन्त्र भारत में ही आपको अपनी विद्रोही प्रवृत्ति के कारण जेल जाना पड़ा। आप में शोषण के प्रति विद्रोह का भाव विद्यमान था। वे अपनी अनुभूति को निःसंकोच अभिव्यक्ति देते थे।
रचनाएँ-
नागार्जुन की रचनाओं में विविधता है। उनमें जीवन की कठोर, यथार्थ तथा स्निग्ध कल्पना का अद्भुत समन्वय हुआ है। आपकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं
- काव्य संग्रह–’युगाधार’, ‘प्यासी-पथराई आँखें’, ‘सतरंगे पंखों वाली’, ‘खून और शोले’ तथा ‘प्रेत का बयान’ आदि आपके काव्य-संग्रह हैं। इनमें वर्ग-संघर्ष, शोषण, विद्रोह के अतिरिक्त प्रेम, सौन्दर्य एवं प्रकृति का प्रभावी अंकन हुआ है।
- भस्मांकुर-यह एक खण्डकाव्य है, जिसमें भस्मासुर और शिव की पौराणिक कथा को नवीन सन्दर्भ में प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है।
- ‘रतिनाथ की चाची’, ‘बलचनमा’, ‘नई पौध’, ‘बाबा बटेसरनाथ’, ‘दुखमोचन’, वरुण के बेटे’ आपके प्रसिद्ध उपन्यास हैं। इनमें आंचलिक प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
इस प्रकार नागार्जुन ने काव्य तथा गद्य दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ साहित्य का सृजन किया है।
काव्यगत विशेषताएँ-
(अ) भावपक्ष (भाव तथा विचार)-विविध विषयक काव्य रचना करने वाले नागार्जुन की दृष्टि यथार्थवादी रही है। आपने शोषितों के प्रति सहानुभूति एवं शोषण के प्रति विद्रोह का स्वर व्यक्त किया है। यायावरी स्वभाव वाले नागार्जुन के काव्य में प्रकृति साकार हो उठी है। सहजता नागार्जुन के काव्य की प्रमुख विशेषता है। स्वाधीन भारत के कसमसाते भारतीय जनजीवन की वेदना को आपने कविता के माध्यम से उजागार किया है। प्रेम-सौन्दर्य,राष्ट्रीयता आदि के पुट ने आपके काव्य को बहुआयामी बना दिया है। समसामयिक गतिविधियों, भ्रष्टाचार, उत्पीड़न,नेताओं की स्वार्थपरता आदि पर आपने करारे प्रहार किए हैं।
(आ) कलापक्ष (भाषा तथा शैली)-नागार्जुन ने सामान्य बोलचाल की खड़ी बोली में पूर्ण साहित्यिकता का संचार कर दिखाया है। सरलता, सुबोधता, स्पष्टता एवं मार्मिकता आपकी भाषा की प्रमुख विशेषताएँ हैं। नागार्जुन के काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। आपने छन्दबद्ध एवं छन्द मुक्त दोनों प्रकार के काव्य की रचना की है। आपके काव्य के कलापक्ष में सरलता,स्पष्टता के साथ सरसता का अद्भुत संयोग है।
साहित्य में स्थान-जनसामान्य की आशाओं, आकांक्षाओं को वाणी प्रदान करने वाले नागार्जुन के काव्य में नवचेतना का भाव भरा है। बिना किसी भय, द्वन्द्व, संकोच से अपनी बात को दमदारी से रखने वाले नागार्जुन का आधुनिक हिन्दी कवियों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। अपनी सपाट बयानी के लिए वे निरन्तर याद किए जायेंगे।
महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
1. सूर के पदों की भाषा है [2013, 17]
(i) ब्रज
(ii) अवधी
(iii) हिन्दी
(iv) बुन्देलखण्डी।
उत्तर-
(i) ब्रज
2. मलिक मुहम्मद जायसी द्वारा लिखित है
(i) पद्मावत
(ii) कामायनी
(iii) कवितावली
(iv) मृग और तृष्णा।
उत्तर-
(i) पद्मावत
3. तुलसीदास का अति लोकप्रिय ग्रन्थ है
(i) पार्वती मंगल
(ii) रामचरितमानस
(iii) प्रतिध्वनि
(iv) आकाशद्वीप।
उत्तर-
(ii) रामचरितमानस
4. ‘सतसैया’ किस कवि की रचना है?
(i) जयशंकर प्रसाद
(ii) गिरधर
(iii) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(iv) बिहारी।
उत्तर-
(iv) बिहारी।
5. कवि गिरिधर की गणना की जाती है [2010].
(i) वात्सल्य रस के कवि
(ii) युगान्तरकारी कवि
(iii) हास्य गीत के कवि
(iv) नीति काव्य के रचयिता।
उत्तर-
(iv) नीति काव्य के रचयिता।
6. रामनरेश त्रिपाठी का जन्म स्थान है
(i) कोइरीपुर (उ.प्र)
(ii) सोरों (उ.प्र)
(iii) बिलासपुर (म.प्र)
(iv) शाजापुर (म.प्र)।
उत्तर-
(i) कोइरीपुर (उ.प्र)
7. नरेश मेहता का जन्म प्रदेश है
(i) उत्तर प्रदेश
(ii) मध्य प्रदेश
(iii) हिमाचल प्रदेश
(iv) आन्ध्र प्रदेश।
उत्तर-
(ii) मध्य प्रदेश
8. हरिवंशराय बच्चन’ की रचना है
(i) मधुप्याला
(ii) प्रेम-पथिक
(iii) मधुशाला
(iv) प्रेम-माधुरी।
उत्तर-
(iii) मधुशाला
9. त्रिलोचन के जन्म का वर्ष है
(i) सन् 1911
(ii) सन् 1907
(ii) सन् 1913
(iv) सन् 1917.
उत्तर-
(iv) सन् 1917.
10. अभिमन्यु अनंत निवासी हैं
(i) वियतनाम
(ii) नेपाल
(iii) मॉरीशस
(iv) सूरीनाम।
उत्तर-
(iii) मॉरीशस
11. मैथिलीशरण गुप्त की रचना है [2010]
(i) सुमन
(ii) पंचवटी
(ii) समर्पण
(iv) मंजूषा।।
उत्तर-
(ii) पंचवटी
12. सुभद्राकुमारी चौहान मूलत: कवयित्री हैं [2010]
(i) भक्ति रस
(ii) वीर रस
(iii) श्रृंगार रस
(iv) हास्य रस।
उत्तर-
(ii) वीर रस
13. आधुनिक मीरा के नाम से प्रसिद्ध हैं [2014, 17]
(i) महादेवी वर्मा,
(ii) उषा प्रियंवदा,
(iii) सुभद्रा कुमारी चौहान,
(iv) रजनी पनिकर।
उत्तर-
(i) महादेवी वर्मा,
14. जायसी किस काव्यधारा के कवि हैं? [2018]
(i) रामभक्ति मार्गी,
(ii) कृष्णभक्ति मार्गी,
(iii) ज्ञान मार्गी,
(iv) प्रेम मार्गी।
उत्तर-
(ii) कृष्णभक्ति मार्गी,
15. ‘षड-ऋतु वर्णन में प्रसिद्ध कवि का नाम है
(i) गिरिधर,
(ii) रहीम,
(iii) पद्माकर,
(iv) नागार्जुन।
उत्तर-
(iii) पद्माकर,
रिक्त स्थानों की पूर्ति
1. बिहारी की रचना …………………………. “है। [2010]
2. रीतिसिद्ध परम्परा के कवि …………………………. हैं। [2018]
3. रामधारीसिंह दिनकर को ‘उर्वशी’ रचना के लिए …………………………. पुरस्कार मिला।
4. कबीर भक्तिकालीन निर्गुण धारा की …………………………. शाखा के कवि माने जाते हैं।
5. रामनरेश त्रिपाठी की प्रारम्भिक शिक्षा-दीक्षा …………………………. में ही हुई।
6. हरिनारायण व्यास का जन्म सन् …………………………. में हुआ था।
7. जयशंकर प्रसाद की रचना …………………………. है। [2010]
8. गिरिधर द्वारा प्रयुक्त छन्द ………………………….” है। [2013, 17]
9. गिरिधर की अधिकतर कुण्डलियाँ …………………………. भाषा में रचित हैं।
10. महादेवी वर्मा ‘आधुनिक युग की …………………………. के नाम से प्रसिद्ध हैं।
11. ‘अज्ञेय’ का जन्म पंजाब के …………………………. नगर में हुआ।
12. अंधेर नगरी ………………………….” का प्रसिद्ध नाटक है। [2011]
13. विरह और वेदना की कवयित्री …………………………. हैं। [2012]
14. हरिवंशराय बच्चन की प्रसिद्ध कृति …………………………. है। [2012]
15. मलिक मुहम्मद जायसी की रचना …………………………. है। [2015]
उत्तर-
1. बिहारी सतसई,
2. बिहारी,
3. ज्ञानपीठ,
4. ज्ञानाश्रयी,
5. जौनपुर,
6. 1923 ई.,
7. कामायनी,
8. कुण्डलियाँ,
9. अवधी,
10. मीरा,
11. करतारपुर,
12. भारतेन्दु,
13. महादेवी वर्मा,
14. मधुशाला,
15. पद्मावत।
सत्य/असत्य
1. डॉ. हरिवंश राय बच्चन का जन्म बनारस में हुआ था।
2. जायसी की भाषा ठेठ अवधी है। [2010]
3. महादेवी वर्मा की प्रारम्भिक शिक्षा इन्दौर और उच्च शिक्षा प्रयाग में हुई।
4. अज्ञेय का पूरा नाम सर्वेश्वर हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय है।
5. ‘ताप के तापे हुए दिन’ कविता संग्रह के लिए त्रिलोचन जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
6. तुलसी ने लोकमंगलकारी काव्य की रचना की है।
7. पद्माकर रीतिकाल के प्रमुख कवि हैं। [2010]
8. बिहारी रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि हैं।
9. जयशंकर प्रसाद जी का बचपन दुःखों में व्यतीत हुआ।
10. नरेश मेहता नई कविता के कवि हैं।
11. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ राष्ट्रीय भावना के ओजस्वी कवि हैं। [2010]
12. ‘सूरसागर’ की रचना सूरदास ने की है। [2014]
13. ‘लोकायतन’ के रचयिता सूरदास हैं। [2017]
14. ‘विनयपत्रिका’ तुलसीदास की रचना है। [2018]
उत्तर-
1. असत्य,
2. सत्य,
3. सत्य,
4. असत्य,
5. असत्य,
6. असत्य,
7. असत्य,
8. सत्य,
9. सत्य,
10. सत्य,
11 सत्य,
12. सत्य,
13. असत्य,
14. सत्य।।
सही जोड़ी मिलाइए
I. ‘अ’ – ‘ब’
1. सूरदास – (अ) प्रेम पथिक
2. हरिनारायण व्यास – (ब) बादल को घिरते देखा है
3. जयशंकर प्रसाद – (स) साहित्य लहरी
4. नागार्जुन – (द) वीरों का कैसा हो वसन्त?
5. सुभद्राकुमारी चौहान – (इ) सोये हुए बच्चे से
उत्तर-
1. → (स),
2. → (इ),
3. → (अ),
4. → (ब),
5. → (द)।
II. ‘अ’ – ‘ब’
1. यामा – (अ) पद्माकर
2. ऋतु वर्णन – (ब) नरेश मेहता
3. पथ की पहचान – (स) त्रिलोचन
4. चरैवेति जनगरबा – (द) महादेवी वर्मा
5. चाँदनी चमकती है, गंगा बहती जाती है – (इ) हरिवंशराय बच्चन
उत्तर-
1. → (द),
2. → (अ),
3. → (इ),
4. → (ब),
5. → (स)।
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
1. सूरदास ने किस भाषा में काव्य की रचना की है?
2. जायसी की भक्ति किस प्रकार की है?
3. बिहारी के काव्य की भाषा कौन-सी है?
4. प्रारम्भ में नागार्जुन किस नाम से लिखा करते थे?
5. रामधारीसिंह ने अपना उपनाम ‘दिनकर’ किसके आधार पर रखा?
6. कबीर की मृत्यु कहाँ हुई?
7. रामनरेश त्रिपाठी के पिता का क्या नाम था?
8. हरिवंशराय बच्चन को राज्यसभा का सदस्य कब बनाया गया?
9. महाप्रस्थान किसकी रचना है?
10. अभिमन्यु अनन्त ने किस पत्रिका का सम्पादन किया?
उत्तर-
1. ब्रजभाषा,
2. प्रेममार्गी निर्गुण भक्ति,
3. ब्रजभाषा,
4. यात्री,
5. अपने पिता के नाम के आधार पर,
6. मगहर,
7. पं. रामदत्त त्रिपाठी,
8. सन् 1966,
9. नरेश मेहता,
10. ‘बसन्त’ पत्रिका।