MP Board Class 10th Hindi Navneet लेखक परिचय

MP Board Class 10th Hindi Navneet लेखक परिचय

1. कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ (2009, 14, 16)

जीवन परिचय देश के प्रति विशेष अनुराग रखने वाले प्रभाकर जी का जन्म सन् 1906 ई. में सहारनपुर जिले के देवबन्द नामक कस्बे में हुआ था। उनके पिता श्री रमादत्त मिश्र एक कर्मकाण्डी ब्राह्मण थे। उनके परिवार का जीविकोपार्जन पंडिताई के द्वारा होता था। अतः पारिवारिक परिस्थितियों के अनुकूल न होने के कारण इनकी प्रारम्भिक शिक्षा का प्रबन्ध घर पर ही हुआ। इसके बाद इन्होंने खुर्जा के संस्कृत विद्यालय में प्रवेश लिया।

लेकिन वे मौलाना आसफ अली के सम्पर्क में आने पर उनसे प्रभावित होकर स्वतन्त्रता संग्राम के आन्दोलन में कूद पड़े। उन्होंने अपना जीवन राष्ट्रसेवा और साहित्य सेवा हेतु समर्पित कर दिया।

आपने अपने जीवन के बहुमूल्य वर्ष जेल में बिताये,परन्तु देश के स्वतन्त्र होने के उपरान्त प्रभाकर जी ने अपना समय साहित्य-सेवा और पत्रकारिता में लगा दिया।

माँ भारती का यह वरद् पुत्र अन्तकाल तक मानव तथा साहित्य की साधना करता हुआ सन् 1995 ई. में चिरनिद्रा में लीन हो गया।

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रचनाएँ–

  • ललित निबन्ध संग्रह-बाजे पायलिया के घुघरू।
  • संस्मरण-दीप जले-शंख बजे।
  • लघु कहानी-धरती के फूल, आकाश के तारे।
  • रेखाचित्र-माटी हो गई सोना, नयी पीढ़ी नये विचार, जिन्दगी मुस्कराई।
  • अन्य रचनाएँ-क्षण बोले कण मुस्कराये, भूले बिसरे चेहरे,महके आँगन चहके द्वार।
  • पत्र-सम्पादन-विकास, नया जीवन।
  • पत्रिका-ज्ञानोदय।

भाषा-प्रभाकर जी की भाषा सरल, सुबोध एवं प्रसादयुक्त, स्वाभाविक है। आपकी भाषा भावानुकूल है। इसमें आपने यथास्थान मुहावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग किया है।

भाषा में यथास्थान तत्सम शब्दों का भी प्रयोग है। आपके साहित्य में वाक्य छोटे-छोटे तथा सरल हैं। इन्होंने जहाँ-तहाँ बड़े-बड़े वाक्यांशों का प्रयोग किया परन्तु शब्दों को कहीं भी जटिल नहीं होने दिया। इनकी भाषा शुद्ध व साहित्यिक खड़ी बोली है।

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शैली-प्रभाकर जी की शैली में काव्यात्मकता और चित्रात्मक दिखाई देती है। आपकी शैली भी तीन प्रकार की है

  1. वर्णनात्मक शैली-लेखक ने जहाँ विषयवस्तु का सटीक वर्णन किया है, वहाँ इस शैली का प्रयोग किया है। इस शैली का प्रयोग अधिकतर लघु कथाओं में किया है।
  2. नाटकीय शैली-इस शैली के प्रयोग से गद्य में सजीवता और रोचकता आ गयी है। इस शैली का प्रयोग रिपोर्ताज में किया गया है।
  3. भावात्मक और चित्रात्मक शैली-इस शैली का प्रयोग रिपोर्ताज और संस्मरण लिखते समय किया है। शब्दों के द्वारा इतना सुन्दर चित्रांकन अन्य किसी लेखक ने आज तक नहीं किया है।

साहित्य में स्थान-प्रभाकर जी यद्यपि आज हमारे मध्य नहीं हैं,लेकिन फिर भी हम उन्हें राष्ट्रसेवी, देशप्रेमी और पत्रकार के रूप में सदैव याद करते रहेंगे।
पत्रकारिता एवं रिपोर्ताज के क्षेत्र में इनका अद्वितीय स्थान है। सच्चे अर्थों में वे एक उच्चकोटि के साहित्यकार थे। उनके निधन से जो क्षति हुई है वह सदैव अविस्मरणीय रहेगी।

2. वासुदेवशरण अग्रवाल (2009, 12, 13, 18)

जीवन परिचय-डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का नाम भारतीय संस्कृति, सभ्यता तथा पुरातत्त्व के क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इन विषयों पर उनकी विचार तथा भावों की श्रृंखला गहन चिन्तन तथा उद्गार समन्वित है।

आपका जन्म सन् 1904 ई. में मेरठ जनपद के खेड़ा ग्राम में हुआ था। आपके माता-पिता का निवास स्थल लखनऊ था, वहीं रहकर आपने प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण की। काशी विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। लखनऊ विश्वविद्यालय से पी. एच. डी. की उपाधि से सम्मानित हुए।

इन्होंने संस्कृत, अंग्रेजी तथा पाली विषयों का गहन अध्ययन किया। हिन्दी काव्य का यह महारथी सन् 1966 ई.में सदा-सदा के लिए देवलोक को चला गया।

रचनाएँ-वासुदेवशरण अग्रवाल की प्रमुख कृतियाँ निम्न हैं-

  • निबन्ध संग्रह–’उर ज्योति’, ‘माता भूमि’, ‘पृथ्वी पुत्र’, ‘वेद विद्या’, ‘कला और संस्कृति’, ‘कल्पवृक्ष’,’वाग्धारा’।
  • समीक्षा—जायसी के ‘पद्मावत’ तथा कालिदास के ‘मेघदूत’ की संजीवनी व्याख्या।
  • सांस्कृतिक-‘पाणिनिकालीन भारतवर्ष’, ‘भारत की मौलिक एकता’, ‘हर्ष चरित’, ‘एक सांस्कृतिक अध्ययन’।
  • अनुवाद–’हिन्दू सभ्यता’।
  • सम्पादन–’पोद्दार अभिनन्दन ग्रन्थ’।

भाषा-डॉ. अग्रवाल ने अपनी रचना में शुद्ध एवं परिमार्जित खड़ी बोली का प्रयोग किया है।

यत्र-तत्र प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग है। जहाँ आपने गहन विचारों तथा भावनाओं की अभिव्यक्ति की है, वहाँ भाषा का रूप जटिल हो गया है। भाषा में प्रचलित अंग्रेजी व उर्दू शब्दों का प्रयोग है। अनेक देशज शब्दों का भी प्रयोग है।

शैली-डॉ. अग्रवाल ने गवेषणात्मक शैली का प्रयोग किया है। यह शैली पुरातत्त्व विभाग के अन्वेषण से सम्बन्धित है।

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विचार प्रधान शैली-विचार प्रधान शैली का प्रयोग विषयों के विश्लेषण में देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त व्याख्यात्मक तथा उद्धरण शैली का प्रयोग भी मिलता है। समग्र रूप से भाषा-शैली उन्नत तथा प्रशंसनीय है।

साहित्य में स्थान–डॉ. अग्रवाल की विचार विश्लेषण तथा अभिव्यक्ति की शैली अपूर्व तथा सरस है, आप कुशल सम्पादक तथा टीकाकार भी हैं।

शब्दों के कुशल शिल्पी और जीवन सत्य के स्पष्ट जागरूक द्रष्टा वासुदेवशरण अग्रवाल हमारे आधुनिक साहित्य के गौरव हैं।

3. हजारीप्रसाद द्विवेदी (2009, 10, 12, 15, 17)

परिचय-आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जाने-माने श्रेष्ठ समालोचक, निबन्धकार, उपन्यासकार, निष्ठावान तथा आदर्श अध्यापक थे।

डॉ. शम्भूनाथ सिंह के कथनानुसार, “आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी हिन्दी साहित्य को बड़ी देन हैं। उन्होंने हिन्दी समीक्षा की एक नई उदार और वैज्ञानिक दृष्टि दी है।”

जीवन परिचय-आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 में बलिया जिले के अन्तर्गत दुबे के छपरा नामक गाँव में हुआ। इनके पिता का नाम अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योति कली देवी था।

पिता की प्रेरणा एवं दिशा-निर्देशन के फलस्वरूप संस्कृत एवं ज्योतिष का गहन अध्ययन किया। शान्ति-निकेतन काशी विश्वविद्यालय एवं पंजाब विश्वविद्यालय जैसी विख्यात संस्थाओं में हिन्दी के विभागाध्यक्ष के पद पर प्रतिष्ठित रहे। शान्ति-निकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर और आचार्य क्षितिज मोहन के सम्पर्क के कारण साहित्य साधना में प्राण-पण से जुट गये।

लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट. की उपाधि से आपको विभूषित किया गया। सन् 1957 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया। 19 मई,सन् 1979 ई.को हिन्दी का . यह महान साहित्यकार सदा-सदा के लिए मृत्यु के रथ पर सवार हो गया।

रचनाएँ-आचार्य द्विवेदी जी ने साहित्य की विविध विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। उनकी रचनाएँ निम्न हैं

  1. आलोचना—सूर साहित्य’, ‘हिन्दी साहित्य की भूमिका’, ‘कबीर’, ‘सूरदास और उनका काव्य’, ‘हमारी साहित्यिक समस्याएँ’, साहित्य का साथी’, ‘साहित्य का धर्म’, ‘नख दर्पण में हिन्दी कविता’, ‘हिन्दी साहित्य’, समीक्षा साहित्य’।
  2. उपन्यास–’चारुचन्द्र लेख’, ‘अनामदास का पोथा’, ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ तथा ‘पुनर्नवा’।
  3. सम्पादन-सन्देश रासक संक्षिप्त पृथ्वीराज रासो।
  4. अनूदित रचनाएँ-प्रबन्ध कोष,प्रबन्ध-चिन्तामणि, विश्व परिचय आदि।

भाषा-द्विवेदी जी की भाषा-शैली की अपनी विशेषता है। आपने अपनी रचनाओं में प्रसंगानुकूल उपयुक्त तथा सटीक भाषा का प्रयोग किया है।

भाषा के अन्तर्गत सरल, तद्भव प्रधान तथा उर्दू संस्कृत शब्दों का प्रयोग किया है। वे अपनी बात को स्वाभाविक रूप से अभिव्यक्त करने में सक्षम थे। बोल-चाल की भाषा सरल तथा स्पष्ट है। इसी भाषा को द्विवेदी जी ने अपनी कृतियों में वरीयता प्रदान की है।

भाषा में गति तथा प्रवाह विद्यमान है। मुहावरों के प्रयोग से भाषा में सुधार आ गया है। संस्कृत के शब्दों के प्रयोग से भाषा जटिल और दुरूह हो गयी है। भाषा की चित्रोपमता तथा अलंकारिता के कारण हृदयस्पर्शी और मनोरम बन गई है।

शैली-

  1. गवेषणात्मक शैली-शोध तथा पुरातत्त्व से सम्बन्धित निबन्धों में इस शैली का प्रयोग है।
  2. आत्मपरक शैली-इस शैली का प्रयोग द्विवेदी जी ने प्रसंग के साथ-साथ स्वयं को समाहित करने के लिए किया है।
  3. सूत्रात्मक शैली–बौद्धिकता के कारण अनेक स्थान पर सूत्रात्मक शैली का प्रयोग किया है।
  4. विचारात्मक शैली-अधिकांश निबन्धों में इस शैली का प्रयोग है।
  5. वर्णनात्मक शैली-द्विवेदी जी की वर्णनात्मक शैली इतनी स्पष्ट, सरस तथा सरल है कि वह वर्णित विशेष स्थलों का मानव पटल के समक्ष चित्र सा उपस्थित कर देती है।
  6. व्यंग्यात्मक शैली-इस शैली के अन्तर्गत द्विवेदी जी ने कोरे व्यंग्य किये हैं।
  7. भावात्मक शैली-द्विवेदीजी जहाँ भावावेश में आते हैं वहाँ उनकी इस शैली की सरसता दर्शनीय है।

साहित्य में स्थान द्विवेदीयुगीन साहित्यकारों में हजारीप्रसाद द्विवेदी का शीर्ष स्थान है। ललित निबन्ध के सूत्रधार एवं प्रणेता हैं। निबन्धकार,उपन्यासकार, आलोचक के रूप में आपका योगदान अविस्मरणीय हैं। आपने अपनी पारस प्रतिभा से साहित्य के जिस क्षेत्र को भी स्पर्श किया उसे कंचन बना दिया।

4. रामवृक्ष बेनीपुरी (2011, 14, 16)

जीवन परिचय–विचारों से क्रान्तिकारी तथा राष्ट्रसेवा के साथ-साथ साहित्य सेवा में संलग्न श्री बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि हैं। रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म सन् 1902 ई. में बिहार के अन्तर्गत मुजफ्फरपुर जिले में हुआ था। राष्ट्र के प्रति अनन्य निष्ठा रखने वाले बेनीपुरी ने अध्ययन पर विराम लगाकर राष्ट्रसेवा का व्रत लिया।

उन्होंने गाँधीजी के साथ असहयोग आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। वे अनेक बार जेल गये और वहाँ की यातनाओं को भी सहन किया।

17 सितम्बर, सन् 1968 ई.को ये मृत्यु के रथ पर सवार हो गये।

रचनाएँ-पैरों में पंख बाँधकर (यात्रा साहित्य), माटी की मूरतें (रेखाचित्र), जंजीर और दीवारें (संस्मरण), गेहूँ बनाम गुलाब (निबन्ध)।

भाषा-इनकी भाषा प्रवाहपूर्ण, सरस तथा ओजमयी है। संस्कृत, उर्दू तथा अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग भाषा में किया है। भाषा शुद्ध साहित्यिक हिन्दी है।

शैली-बेनीपुरी जी की शैली सरल, सरस तथा हृदयस्पर्शी है। शैली कहीं-कहीं विश्लेषणात्मक तो कहीं अन्वय व्याख्यात्मक रूप भी लिए हुए है। शैली में लालित्य का भी समन्वय है। वाक्य दीर्घ न होकर लघु हैं, जिससे भाषा में चार चाँद लग गये हैं। बेनीपुरी जी के निबन्धों में जीवन के प्रति अगाध निष्ठा व आशा के स्वर मुखरित हैं। शब्द शिल्पी रामवृक्ष बेनीपुरी की शैली का चमत्कार एवं प्रभाव उनकी कृतियों में विद्यमान है।

साहित्य में स्थान-बेनीपुरी जी हिन्दी साहित्य की अपूर्व निधि हैं। उनके साहित्य में आदर्श कल्पना एवं गहन चिन्तन का समन्वय है। सम्पादक के रूप में भी आपका विशिष्ट योगदान है।

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आपकी शैली काव्यात्मक तथा मनभावन है। प्रसाद तथा माधुर्य गुण से सम्पन्न हैं। आप ऐसे साहित्यकार थे जिनके कण्ठ में कोमल तथा माधुर्य पूर्ण स्वर,मस्तिष्क में अपूर्व कल्पना शक्ति तथा हृदय में भावना का समुद्र हिलोरें ले रहा था। उनकी कविताएँ नेत्रों के समक्ष चित्र प्रस्तुत करने में सक्षम हैं।

5. श्रीलाल शुक्ल (2010, 11, 15)

जीवन परिचय-हिन्दी साहित्य के दैदीप्यमान व्यंग्य साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल का जन्म 31 दिसम्बर,सन् 1925 को लखनऊ के समीप अतरौली नामक गाँव में हुआ था।

इनकी शिक्षा लखनऊ एवं इलाहाबाद में हुई थी। सन् 1950 में इनको (आई. ए. एस) प्रशासनिक सेवा के लिये चुन लिया। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश में इन्होंने उत्तरदायित्वपूर्ण पदों पर भी कार्य किया व अपने कर्तव्यों का उचित पालन भी किया। आप एक उच्चकोटि के व्यंग्यकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। आज भी वे साहित्य सृजन कर हिन्दी साहित्य की सेवा कर रहे

रचनाएँ—आपकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं

  • सूनी घाटी का सूरज,
  • अज्ञातवास,
  • मकान,
  • अंगद का पाँव तथा
  • आदमी का जहर।

भाषा-श्रीलाल शुक्ल जी की भाषा सरल, सहज व सजीव है। भाषा में शुक्लजी ने यथा-स्थान मुहावरे लोकोक्तियों का प्रयोग किया है। उन्होंने अपनी भाषा में साधारण बोल-चाल के अतिरिक्त उर्दू एवं अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया है। उनकी भाषा में व्यंग्य का अनोखा पुट है। वह शब्दों में चार चाँद लगा देता है।

शैली-शुक्लजी ने अपने साहित्य में भाषा की भाँति अनेक प्रकार की शैली का चयन किया है।

  1. वर्णनात्मक शैली-शुक्लजी ने वर्णन शैली का प्रयोग छोटे-छोटे प्रसंगों में किया है। वाक्य छोटे व संयत व सहज हैं।
  2. भावात्मक शैली इस प्रकार की शैली में शुक्लजी ने कोमल पदावली का प्रयोग किया है।
  3. व्यंग्यात्मक शैली-शुक्लजी ने अपने साहित्य में व्यंग्यात्मक शैली का खुलकर प्रयोग किया है। उन्होंने व्यंग्य शैली का प्रयोग करके राजनीति, शिक्षा,गाँव,समाज और घर जहाँ भी अन्याय व अत्याचार दिखायी दिया उसी पर तीखा प्रहार करके समाज में फैली विसंगतियों को दूर करने का प्रयास किया है। उनकी रचनाओं में शिक्षाप्रद प्रेरक प्रसंग भी हैं।
  4. संवाद शैली-श्रीलाल शुक्लजी की रचनाओं में संवाद शैली का प्रयोग है। उनके संवाद सरल और सहज होते हैं। संवादों में स्वाभाविक शैली का प्रयोग है।
  5. विवरणात्मक शैली-इस प्रकार की शैली में घटनाओं व तथ्यों का वर्णन होता है। इस प्रकार की शैली की भाषा प्रवाहयुक्त होती है।

साहित्य में स्थान-श्रीलाल शुक्ल जी एक उच्चकोटि के व्यंग्य निबन्धकार हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में रहस्यात्मक एवं रोमांचक कथाओं के द्वारा साहित्य जगत में ख्याति प्राप्त की। उनके कई प्रसिद्ध उपन्यास हैं लेकिन ‘राग दरबारी’ उनका विशेष व्यंग्यपूर्ण आंचलिक उपन्यास है। इस उपन्यास पर उन्हें साहित्य अकादमी से पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया। उन्होंने समाज की विसंगतियों पर प्रहार करके उन्हें दूर करने का सफल प्रयास किया है।

6. प्रेमचन्द (2009, 13, 17)

जीवन परिचय-प्रेमचन्द सच्चे अर्थों में हिन्दी उपन्यासों के जन्मदाता तथा मौलिक एवं सर्वश्रेष्ठ कहानीकार भी हैं।

इसी कारण वे जनता के मध्य उपन्यास सम्राट के रूप में विख्यात हैं।

प्रेमचन्द का जन्म सन् 1880 में बनारस के निकट लमही नामक ग्राम में हुआ। एण्ट्रेन्स की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात् एक स्कूल में आठ रुपये मासिक पर अध्यापक नियुक्त हुए। इसके बाद व्यक्तिगत रूप से बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। सौभाग्यवश आप स्कूलों के डिप्टी इंस्पेक्टर पद पर प्रतिष्ठित हुए।

गाँधीजी के असहयोग आन्दोलन में आपने सक्रिय भाग लिया। इसके बाद नौकरी से त्याग-पत्र देकर आप जीवन-पर्यन्त साहित्य साधना में संलग्न रहे। सन् 1936 ई. में आप सदा के लिए मृत्यु की गोद में सो गये।

रचनाएँ-प्रेमचन्द ने हिन्दी गद्य की विविध विधाओं पर अपनी लेखनी के द्वारा हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। प्रेमचन्द उपन्यास सम्राट के नाम से विख्यात थे। इनकी कहानियाँ भी पाठकों को मन्त्रमुग्ध कर देती हैं। इनकी कृतियाँ निम्न प्रकार हैं

  1. कहानियाँ-‘मानसरोवर’ तथा ‘गुप्तधन’ में आपकी तीन सौ से अधिक कहानियाँ संकलित हैं। पूस की रात, कफन, ईदगाह, पंचपरमेश्वर, परीक्षा, बूढ़ी काकी, बड़े घर की बेटी, सुजान भगत आदि प्रेमचन्द की प्रसिद्ध कहानियाँ हैं।
  2. उपन्यास-वरदान, प्रतिज्ञा, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, गबन, कर्मभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गोदान और मंगलसूत्र (अपूर्ण)।
  3. नाटक-कर्बला, संग्रमा और प्रेम की वेदी।
  4. निबन्ध संग्रह-स्वराज्य के फायदे,कुछ विचार, साहित्य का उद्देश्य।
  5. जीवनियाँ-महात्मा शेखसाथी, दुर्गादास,कलम-तलवार और त्याग।

भाषा-इन्होंने संस्कृत, अरबी एवं फारसी के प्रभाव से मुक्त भाषा का प्रयोग किया, जिससे जनसाधारण भाषा को समझ सकें। आपने हिन्दी,उर्दू का मिश्रण करके हिन्दुस्तानी भाषा का साहित्य में प्रयोग किया जो कि जनसामान्य की भाषा थी। . हिन्दी साहित्य में भारतेन्दु जी के समान प्रेमचन्द ने ही ऐसी भाषा का प्रयोग किया जो

आज भी आदर्श रूप में प्रतिष्ठित हैं। प्रेमचन्द ने प्रारम्भ में उर्दू में साहित्य सृजन किया, बाद में हिन्दी में लेखन कार्य प्रारम्भ किया। शैली-उनकी भाषा-शैली सरस,प्रवाहमय तथा सरल है जिसे हिन्दू, मुसलमान शिक्षित, अशिक्षित भली प्रकार पढ़ तथा लिख सकते हैं। मुहावरों तथा कहावतों के प्रयोग से भाषा में चार चाँद लग गये हैं।

भाषा शैली का एक उदाहरण देखिए
“अँधेरा हो चला था। बाजी बिछी हुई थी। दोनों बादशाह अपने सिंहासनों पर बैठे हुए मानो इन दोनों वीरों की मृत्यु पर रो रहे थे।”

“अनुराग स्फूर्ति का भण्डार है।”
साहित्य में स्थान प्रेमचन्द अपने युग के लोकप्रिय उपन्यासकार हैं। उनकी लोकप्रियता का कारण यह है कि उन्होंने जनसामान्य की आशा, आकांक्षाओं तथा यथार्थता का सजीव चित्रण किया है।
वे उपन्यास सम्राट के रूप में प्रसिद्ध हैं। ग्रामीण जीवन के कुशल शिल्पी हैं।

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उनके पथ का अनुसरण करते हुए समकालीन उपन्यासकार भी अपने उपन्यासों में आदर्श के सुनहरे चित्र उभारने लगे।

वास्तव में प्रेमचन्द एक उच्चकोटि के श्रेष्ठ साहित्यकार थे। उनकी कहानियाँ कला के चिरन्तन पृष्ठों पर इस कहानी सम्राट की अक्षय कीर्ति को अंकित कर रही हैं। उनकी मृत्यु पर कविन्द्र रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था—“तुझे एक रत्न मिला था, वही तूने खो दिया।”

7. पं. रामनारायण उपाध्याय (2018)

जीवन परिचय-लोक संस्कृति पुरुष पण्डित रामनारायण उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के खण्डवा जिले के कालमुखी नामक ग्राम में 20 मई,सन् 1918 को हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती दर्गा देवी तथा पिता का नाम श्री सिद्धनाथ उपाध्याय था। गाँव के किसान परिवेश में रचे बसे उपाध्याय जी के व्यक्तित्व में भावुकता,सहृदयता एवं कर्मठता के स्पष्ट दर्शन होते हैं। उपाध्याय जी के व्यक्तित्व में गाँव और गाँव की संस्कृति साकार हो उठी है। रामनारायण उपाध्याय ‘राष्ट्रभाषा परिषद, भोपाल’ तथा मध्य प्रदेश आदिवासी लोककला परिषद, भोपाल के संस्थापकों में से हैं। आप जीवनपर्यन्त कई संस्थाओं से जुड़कर कार्य करते रहे। 20 जून, सन् 2001 ई. को आप इस संसार से सदैव के लिए विदा हो गए।

कृतियाँ-रामनारायण उपाध्याय अपने आंचलिक परिवेश में रम कर साहित्य सृजन करते हैं। इनकी रचनाओं में लोक कल्याण का भाव तथा प्राकृतिक सहजता का सर्वत्र समावेश रहा है ! उपाध्याय जी ने निमाडी लोक साहित्य का शोधपरक अध्ययन कर विस्तृत लेखन कार्य किया है। आपने निमाड़ी लोक साहित्य के विविध रूपों की खोज कर लोक साहित्य का संकलन किया है। इसके अतिरिक्त आपने व्यंग्य,ललित निबन्ध, संस्मरण, रिपोर्ताज आदि की रचना की है।

भाषा-शैली–श्री रामनारायण उपाध्याय की भाषा एवं शैली में सुबोधता एवं सरसता का भाव सर्वत्र विद्यमान है।

भाषा-लोक भाषाओं के मर्मज्ञ पण्डित रामनारायण उपाध्याय की साहित्यिक भाषा शुद्ध खड़ी बोली है। आपकी भाषा भाव-विचार के अनुकूल परिवर्तित होती रहती है। भाषा में प्रवाह एवं प्रभावशीलता के गुण सर्वत्र विद्यमान हैं। आवश्यकता के अनुसार उर्दू, अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी आपने किया है। उक्तियों,मुहावरों का वे सटीक प्रयोग करते हैं। भाषा में बनावटीपन या क्लिष्टता नहीं मिलती है।

शैली-श्री रामनारायण उपाध्याय की शैली विविध रूपिणी है। प्रमुख शैली रूप इस प्रकार हैं

  1. व्यंग्यात्मक शैली-उपाध्याय जी ने व्यंग्य रचनाओं में इस शैली का प्रयोग किया है। विविध प्रकार के संदर्भो को इंगित करते हुए अपने करारे प्रहार करने में यह शैली सफल सिद्ध हुई है। आपकी अन्य रचनाओं में भी यत्र-तत्र यह शैली देखी जा सकती है।
  2. संस्मरण शैली-संस्मरण साहित्य के लेखन में इस शैली का प्रयोग पण्डित रामनारायण उपाध्याय करते हैं। आपकी यह शैली सहृदयता, भावात्मकता तथा सरसता से पूर्ण है। आपके संस्मरणों में आत्मीयता और सत्य का सुन्दर समन्वय हुआ है।
  3. वर्णनात्मक शैली-किसी वस्तु,व्यक्ति या घटना को प्रस्तुत करते समय उपाध्याय जी वर्णनात्मक शैली का प्रयोग करते हैं। इसमें सरल भाषा तथा छोटे-छोटे वाक्यों को अपनाया गया
  4. भावात्मक शैली–पण्डित रामनारायण उपाध्याय,सहृदय,सरल एवं सरस साहित्य के रचनाकार हैं। उनके लेखन में भावात्मक शैली का पर्याप्त प्रयोग हुआ है। ललित निबन्धों के साथ-साथ संस्मरण, रिपोर्ताज, रूपक आदि में इस शैली की प्रभावशीलता अवलोकनीय है।

इसके अतिरिक्त गवेषणात्मक विचारात्मक विवेचनात्मक आदि शैली रूपों का प्रयोग उपाध्याय जी ने किया है। उनके लेखन में सम्प्रेषण की अनूठी क्षमता है।

साहित्य में स्थान-सादा जीवन उच्च विचार की प्रतिमूर्ति रहे श्री रामनारायण उपाध्याय ने लोक जीवन तथा लोक संस्कृति के लिए जो कार्य किया है वह सराहनीय है। आप अन्वेषक के साथ नवीन विधाओं के रचनाकार के रूप में विशेष स्थान रखते हैं।

महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहु-विकल्पीय प्रश्न

1. कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर ने लिखे हैं-
(i) निबन्ध
(ii) नाटक
(iii) उपन्यास
(iv) ऐतिहासिक घटनाक्रम।
उत्तर-
(i) निबन्ध

2. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल ने अध्यक्ष पद बड़ी निष्ठा और लगन से निभाया-
(i) हिन्दी विभाग का
(ii) भूगोल विभाग का
(iii) भारतीय पुरातत्त्व विभाग का
(iv) मनोविज्ञान विभाग का।
उत्तर-
(iii) भारतीय पुरातत्त्व विभाग का

3. हजारीप्रसाद द्विवेदी को अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए मिला
(i) भारत रत्न
(ii) साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं पद्म भूषण
(iii) ज्ञानपीठ पुरस्कार
(iv) भारत भूषण।
उत्तर-
(ii) साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं पद्म भूषण

4. रामवृक्ष बेनीपुरी के जीवन का महत्त्वपूर्ण समय जेल यात्राओं में बीता
(i) 1930 से 1942 तक
(ii) 1925 से 1928 तक
(ii) 1940 से 1943 तक
(iv) 1920 से 1925 तक।
उत्तर-
(i) 1930 से 1942 तक

5. व्यंग्यकार एवं कथाकार श्रीलाल शुक्ल की रचना है
(i) भारत की मौलिक एकता
(ii) अंगद का पाँव
(iii) कुटज
(iv) चिता के फूल।
उत्तर-
(ii) अंगद का पाँव

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6. पं. रामनारायण उपाध्याय का जन्म हुआ
(i) 27 नवम्बर,1929
(ii) 20 मई,1918
(iii)2 अगस्त,1919
(iv) 19 मार्च,1908।
उत्तर-
(ii) 20 मई,1918

7. सेठ गोविन्ददास का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) जबलपुर
(ii) भोपाल
(iii) ग्वालियर
(iv) इन्दौर।
उत्तर-
(i) जबलपुर

8. हरिकृष्ण प्रेमी ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत किसके साथ की ?
(i) प्रेमचन्द
(i) मैथिलीशरण गुप्त
(iii) महादेवी वर्मा
(iv) माखनलाल चतुर्वेदी।
उत्तर-
(iv) माखनलाल चतुर्वेदी।

9. प्रेमचन्द का वास्तविक नाम था
(i) रासबिहारी
(ii) बाबूलाल
(iii) धनपतराय
(iv) अजायबराय।
उत्तर-
(iii) धनपतराय

10. सियारामशरण गुप्त के प्रेरणा स्रोत थे
(i) मैथिलीशरण गुप्त
(ii) जयशंकर प्रसाद
(iii) भारतेन्दु हरिश्चन्द्र
(iv) माखनलाल चतुर्वेदी।
उत्तर-
(i) मैथिलीशरण गुप्त

रिक्त स्थानों की पूर्ति

1. रामनारायण उपाध्याय का जन्म जिला खण्डवा के …………………… नामक ग्राम में हुआ था।
2. सेठ गोविन्ददास ने बारह वर्ष की अवस्था में तिलिस्मी उपन्यास …………………… की रचना की।
3. सियारामशरण गुप्त के कहानी संग्रह का नाम …………………… है।
4. सुप्रसिद्ध नाटककार हरिकृष्ण प्रेमी के पौराणिक नाटक का नाम है ……………………
5. श्रीलाल शुक्ल का जन्म लखनऊ के पास …………………… नामक ग्राम में हुआ।
6. कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ …………………… लेखन में सिद्धहस्त थे।
7. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल भारतीय पुरातत्त्व विभाग के …………………… पद पर रहे।
8. हजारीप्रसाद द्विवेदी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से …………………… की उच्च शिक्षा प्राप्त की।
9. रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म एक …………………… परिवार में हुआ था।
10. कहानी सम्राट …………………… को कहा जाता है। [2018]
उत्तर-
1. कालमुखी,
2. चम्पावती,
3. मानुषी,
4. पाताल विजय,
5. अतरौली,
6. रिपोर्ताज,
7. अध्यक्ष,
8. ज्योतिष एवं संस्कृत,
9. साधारण किसान,
10. मुंशी प्रेमचंद।

सत्य/असत्य

1. कन्हैयालाल मिश्र ने ‘त्यागभूमि’ में पत्रकार के रूप में अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत की।
2. हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के एक गाँव में हुआ।
3. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ इण्डोलॉजी में प्रोफेसर नियुक्त हुए।
4. सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण रामवृक्ष बेनीपुरी को स्कूली शिक्षा अधूरी रह गई।
5. श्रीलाल शुक्ल द्वारा लिखित ‘अज्ञातवास’ धारावाहिक दूरदर्शन पर बहुत लोकप्रिय हुआ।
6. पं. रामनारायण उपाध्याय ‘राष्ट्रभाषा परिषद-भोपाल’ के संस्थापक सदस्य रहे।
7. सेठ गोविन्ददास का जन्म एक निर्धन परिवार में हुआ था।
8. हरिकृष्ण प्रेमी एक सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थे।
9. प्रेमचन्द ने ‘माधुरी’ नामक मासिक पत्रिका का सम्पादन किया।
10. सियारामशरण गुप्त अपने अन्तिम दिनों में दिल्ली में रहे।
उत्तर-
1. असत्य,
2. असत्य,
3. सत्य,
4. सत्य,
5. असत्य,
6. सत्य,
7. असत्य,
8. असत्य,
9. सत्य,
10. सत्य।

सही जोड़ी मिलाइए

‘अ’ – ‘आ’
1. श्रीलाल शुक्ल की रचना – (क) कुंकुम-कलश
2. पण्डित रामशरण उपाध्याय द्वारा लिखित रचना – (ख) रक्षाबन्धन
3. सेठ गोविन्ददास द्वारा लिखित नाटक – (ग) प्रेम की वेदी
4. हरिकृष्ण प्रेमी का नाटक – (घ) सीमाएँ टूटती हैं
5. प्रेमचन्द द्वारा लिखित नाटक – (ङ) कर्त्तव्य
उत्तर-
1. →(घ),
2. → (क),
3. → (ङ),
4. → (ख),
5. → (ग)।

एक शब्द/वाक्य में उत्तर

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1. कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ किस नेता के भाषण से प्रभावित होकर स्वतन्त्रता आन्दोलन ___में कूद पड़े ?
2. सियारामशरण गुप्त के बड़े भाई कौन थे ?
3. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म किस सन् में हुआ ?।
4. आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के पिता का क्या नाम था ?
5. रामवृक्ष बेनीपुरी ने ‘विशारद’ की परीक्षा कहाँ से उत्तीर्ण की ?
6. श्रीलाल शुक्ल सन् 1950 में कौन-सी सरकारी सेवा के लिए चुने गये ?
7. रामनारायण उपाध्याय ने अपनी पत्नी शकुन्तला देवी की स्मृति में किस न्यास की स्थापना की ?
8. सेठ गोविन्ददास ने सन् 1919 में कौन-सा नाटक लिखा ?
9. हरिकृष्ण प्रेमी की प्रथम रचना कौन-सी है ?।
10. प्रेमचन्द द्वारा लिखित एक उपन्यास का नाम लिखिए।
उत्तर-
1. मौलाना आसिफ अली,
2. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त,
3. सन् 1904 में,
4. अनमोल दुबे,
5. हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयोग,
6. भारतीय प्रशासनिक सेवा,
7. लोक-संस्कृति,
8. विश्वप्रेम,
9. स्वर्ण विधान,
10. निर्मला।

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