MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 6 मेरे गाँव की सुख और शांति किसने छीन ली? (संस्मरण रामनारायण उपाध्याय)
मेरे गाँव की सुख और शांति किसने छीन ली? अभ्यास
बोध प्रश्न
मेरे गाँव की सुख और शांति किसने छीन ली? अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
गाँधी द्वारा स्थापित आश्रम का नाम लिखिए।
उत्तर:
गाँधी द्वारा ‘सेवा ग्राम’ आश्रम की स्थापना की गयी है।
प्रश्न 2.
लोक संस्कृति का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर:
लोक संस्कृति का जन्म गाँवों में हुआ।
प्रश्न 3.
लेखक ने संगीत का जन्म किससे माना है?
उत्तर:
लेखक ने संगीत का जन्म श्रम से माना है।
प्रश्न 4.
ललित कलाओं का स्वभाव कैसा होता है?
उत्तर:
ललित कलाओं का स्वभाव फूल जैसा होता है।
प्रश्न 5.
ग्रामीण समूचे गाँव को किस रूप में मानता आया है?
उत्तर :
ग्रामीण समूचे गाँव को एक परिवार मानता आया है।
मेरे गाँव की सुख और शांति किसने छीन ली? लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक समाज से किन प्रश्नों को पूछना चाहता है?
उत्तर:
लेखक समाज से ये प्रश्न पूछना चाहता है कि मेरे गाँवों की सुख और शान्ति को किसने छीन लिया। गाँवों की अन्न-धन और लक्ष्मी कहाँ चली गई?
प्रश्न 2.
लोक की जीवन्त रसधारा को किसने, कहाँ सुरक्षित रखा है?
उत्तर:
लोक की जीवन्त रसधारा को गाँवों ने अपने हृदय-में सुरक्षित रखा है।
प्रश्न 3.
अँधेरे को सुहावने प्रभात में कौन, कैसे परिवर्तित करता है?
उत्तर:
गाँव की स्त्रियाँ भोर में उठकर आटे के साथ घने अँधेरे को पीसकर सुहावने प्रभात में बदल देती थीं।
प्रश्न 4.
गाँव के समृद्ध किसान की स्थिति अब कैसी हो गई है?
उत्तर:
गाँव के समृद्ध किसान की स्थिति बढ़ती हुई महँगाई और शोषणकारी समाज व्यवस्था के चलते मज़दूर के रूप में बदल गई है।
प्रश्न 5.
श्रम से किसका जन्म होना प्रतीत होता था?
उत्तर:
श्रम से संगीत का जन्म होना प्रतीत होता था और यही संगीत लोरी बनकर श्रम को हल्का करने में योगदान देता था।
प्रश्न 6.
माटी कुम्हार की हथेली के स्पर्श से किन नवीन रूपों को धारण करती थी?
उत्तर;
माटी कुंम्हार की हथेली का स्पर्श पाकर नये-नये रूप धारण करती थी। कभी वह गागर बनती, कभी खपरैल तो कभी माटी का दीप बनकर आशा की किरण जगाया करती थी।
मेरे गाँव की सुख और शांति किसने छीन ली? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
ललित कलाओं का ग्राम्य जीवन में क्या महत्त्व था?
उत्तर:
ललित कलाओं का ग्राम्य जीवन में बड़ा महत्त्व था। ये ललित कलाएँ उनमें जीवन का रस घोलती थीं। तीज-त्यौहार, मेले-ठेले तथा चौपालों पर इनके रूप देखने को मिलते थे।
प्रश्न 2.
लोकगीत ग्रामीण जीवन में किस प्रकार रचे-बसे थे?
उत्तर:
लोकगीत ग्रामीण जीवन की रग-रग में बसे और रचे थे। ग्रामीण जनों का सम्पूर्ण जीवन इन्हीं लोकगीतों के ताने-बाने से बुना हुआ था। उनकी श्वास-प्रश्वास में ये ही गीत समाये हुए थे।
प्रश्न 3.
लेखक के अनुसार “गोकुल के सहज-सरल गाँव” का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक की मान्यता है कि ब्रजमण्डल के गोकुल के गाँव जिस प्रकार सहज एवं सरल थे वैसे ही इस क्षेत्र के सभी गाँव सहज और सरल थे। बनावट एवं कृत्रिमता का उनमें कोई स्थान नहीं था। वहाँ के निवासी सरल एवं भोले-भाले व्यक्ति हुआ करते थे।
प्रश्न 4.
गाँब के सुसंस्कृत आदमी की पाँच विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
गाँव का आदमी निरक्षर भले हो लेकिन वह सुसंस्कृत रहा है। उसकी पाँच विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
- वह विश्वास पर बिक जाता है
- वह धर्म पर झुक जाता है
- वह थककर बैठता नहीं हैं
- झुककर नहीं चलता है और
- वह दुःख में भी मुस्कुराता रहता है।
प्रश्न 5.
गाँव के कुटीर उद्योगों पर आधुनिकता का क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
गाँव के कुटीर उद्योगों पर आधुनिकता का यह प्रभाव पड़ा है कि गाँव के कुटीर उद्योग नष्ट हो गये हैं। फ्लोर मिल खुल जाने से चक्कियों का चलना बन्द हो गया है, ट्रैक्टर एवं अन्य कृषि यन्त्रों के प्रयोग से किसानों का हल आदि चलाना बन्द हो गया है।
प्रश्न 6.
गाँव का आदमी अपने समग्र जीवन से क्या-क्या देने की क्षमता रखता है?
उत्तर:
गाँव के आदमी का समग्र जीवन एक अनपढ़ी खुली किताब जैसा है। उसका रहन-सहन, खान-पान, वस्त्राभूषण, आचार-विचार, रीति-रिवाज, गीत और कथाएँ, नृत्य संगीत आदि सभी कुछ हमें कुछ न कुछ देने की क्षमता रखते हैं।
मेरे गाँव की सुख और शांति किसने छीन ली? भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कीजिए और नाम लिखिए
उत्तर:
- रवीन्द्र = रवि + इन्द्र = दीर्घ सन्धि।
- निरक्षर = निः + अक्षर = विसर्ग सन्धि।
- संग्रहालय = संग्रह + आलय = दीर्घ सन्धि।
- सज्जन = सत् + जन = व्यंजन सन्धि।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का समास-विग्रह कीजिए
उत्तर:
- कार्य स्थल= कार्य का स्थल = तत्पुरुष समास।
- रसधारा = रस की धारा = तत्पुरुष समास।
- श्वास-प्रश्वास = श्वास और प्रश्वास = द्वन्द्व समास।
- लोक संस्कृति = लोक की संस्कृति = तत्पुरुष समास।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की सन्धि कीजिए
उत्तर:
- पर + उपकार = परोपकार।
- देव + ऋषि = देवर्षि।
- अति + आचार = अत्याचार।
- प्रति + एक = प्रत्येक।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक-एक शब्द लिखिए.
- ठेका लेने वाला।
- खेती करने वाला।
- मिट्टी के बर्तन बनाने वाला।
- पानी भरने वाली।
उत्तर:
- ठेकेदार
- खेतिहर
- कुम्हार
- पनहारिन।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को पहचान कर अर्थ के आधार पर वाक्य प्रकार का नाम लिखिए
- किसान के कंठ से गीत कहाँ लुप्त हो गये?
- गाँवों में लोक संस्कृति का जन्म हुआ।
- मेरे गाँव की शान्ति मन छीनो।
- निर्मल चाँदनी, रात को नहीं फैली थी।
- मैं चाहता हूँ कि आप एक बार गाँव अवश्य जायें।
उत्तर:
- प्रश्नवाचक
- स्वीकारात्मक
- आदेशात्मक
- निषेधात्मक
- आदेशात्मक।
मेरे गाँव की सुख और शान्ति किसने छीन ली? महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
मेरे गाँव की सुख और शांति किसने छीन ली? बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘मेरे गाँव की सुख और शान्ति किसने छीन ली?’ निबन्ध के लेखक हैं-
(क) रामनारायण उपाध्याय
(ख) सरदार पूर्णसिंह
(ग) बालकृष्ण भट्ट
(घ) अज्ञेय।
उत्तर:
(क) रामनारायण उपाध्याय
प्रश्न 2.
गाँधीजी ने गाँवों को आदर्श मानकर किस गाँव की स्थापना की?
(क) सेवाग्राम
(ख) रामपुर
(ग) शान्ति निकेतन
(घ) साबरमती आश्रम।
उत्तर:
(क) सेवाग्राम
प्रश्न 3.
लोकगीतों के स्वर गलों से लुप्त होकर कहाँ कैद किये गये हैं?
(क) पुस्तकों में
(ख) कैसिटों में
(ग) संग्रहालयों में
(घ) कहीं नहीं।
उत्तर:
(ख) कैसिटों में
प्रश्न 4.
मिट्टी को नवीन आकृति प्रदान करता है
(क) मनुष्य
(ख) बढ़ई
(ग) रंगरेज
(घ) कुम्हार।
उत्तर:
(घ) कुम्हार।
प्रश्न 5.
लोक संस्कृति का जन्म हुआ (2016)
(क) शहरों में
(ख) गाँवों में
(ग) कस्बों में
(घ) विद्यालयों में।
उत्तर:
(ख) गाँवों में
रिक्त स्थानों की पूर्ति
- रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ………….. की स्थापना की।
- ……….. में लोकसंस्कृति का जन्म हुआ। (2013)
- पहले गाँव का किसान …………. माना जाता था।
- गाँव का आदमी निरक्षर भले हो, लेकिन ………… रहा है।
- आज गाँव में बेरोजगारी है, गाँव में नीरसता है, गाँव . हैं।
उत्तर:
- शान्ति निकेतन
- ग्रामों
- समृद्ध
- सुसंस्कृत
- गरीब।
सत्य/असत्य
- गाँव का आदमी निरक्षर भले ही हो लेकिन सुसंस्कृत होता है।
- गाँव में रहने के लिए साधारण नागरिक ही नहीं कवियों का मन भी ललचाया था।
- गाँधीजी द्वारा स्थापित आश्रम का नाम ‘सेवाग्राम’ है। (2009)
- आज गाँव में मजदूर प्रसन्नता से गाता गुनगुनाता मिलेगा।
- गाँव वालों का जीवन एक बिना पढ़ी खुली पुस्तक की तरह सामने बिछा है।
उत्तर:
- सत्य
- सत्य
- सत्य
- असत्य
- सत्य।
सही जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
1. → (ख)
2. → (घ)
3. → (ङ)
4. → (क)
5. → (ग)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- लोक संस्कृति का जन्म कहाँ हुआ? (2014, 18)
- ‘मेरे गाँव की सुख और शान्ति किसने छीन ली?’ के लेखक कौन हैं?
- ललित कलाओं का स्वभाव कैसा होता है? (2017)
- कहाँ के सरल और सहज गाँव धीरे-धीरे नष्ट होते जा रहे हैं?
- अमराई में अब किसकी कूक नहीं गूंजती है?
उत्तर:
- ग्रामों में
- पण्डित रामनारायण उपाध्याय
- फूल की तरह
- गोकुल के
- कोयल।
मेरे गाँव की सुख और शान्ति किसने छीन ली? पाठ सारांश
इस संस्मरण में पं.रामनारायण उपाध्याय जी ने भारत के गाँव की संस्कृति का अवलोकन किया है लेकिन निबन्धकार भारत के गाँव के वर्तमान को लेकर व्यथित हैं। उसका प्रमुख कारण है कि गाँव अपनी पहचान को नष्ट करते जा रहे हैं। गाँव की पहचान के साथ-साथ भारतमाता की पहचान भी धुंधली पड़ती जा रही है।
गाँधीजी और रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत के गाँवों को ही आदर्श मानकर सेवाग्राम और शान्ति निकेतन की स्थापना की। हमारे देश के गाँवों की प्राकृतिक छटा अलौकिक व दर्शनीय थी लेकिन अब वही गाँव आधुनिकता के दबाव के कारण इस अनुपम सुख से पृथक् होते जा रहे हैं।
अब न तो कहीं लोकगीतों की मधुर ध्वनि सुनाई देती है न ही ढोलक की थाप। ये लोकगीत मानव जीवन का अभिन्न अंग थे तथा मानव को भरपूर स्फूर्ति प्रदान करते थे। अब इन गीतों के समाप्त होने के कारण मानव की संवेदना भी समाप्त हो गयी है।
जिस भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था वही भारतवासी जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, आर्थिक रूप से विपन्न हैं। आत्मनिर्भर गाँव अब छिन्न-भिन्न हो गये हैं। मजदूर व शिल्पकार रोजी-रोटी की तलाश में गाँव से पलायन कर शहर की ओर भाग रहे हैं।
पूर्व में गाँव के लोग अनपढ़ होते थे लेकिन उनमें परस्पर स्नेह. आस्था. विश्वास और परिश्रम की भावना कूट-कूटकर भरी हुई थी। वे श्रम और संघर्ष करके भी प्रसन्नतापूर्वक जीवन बिताते थे क्योंकि वे आत्मनिर्भर थे। आज भी इतिहास इस बात का प्रमाण है कि भारत के गाँव खुशहाल थे लेकिन आज गाँव में नीरसता,निर्धनता और अशान्ति है। निबन्धकार का इस निबन्ध को लिखने का उद्देश्य है कि लोकचेतना जाग्रत हो।
मेरे गाँव की सुख और शान्ति किसने छीन ली? संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) जिन गाँवों ने हिन्दी साहित्य को ‘हीरो’ और ‘गोबर’ जैसे पात्र दिये, जिन गाँवों के लिए गाँधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शहरों की समस्त सुविधाओं को त्यागकर ‘शान्ति निकेतन’ और ‘सेवाग्राम’ को अपना कार्यस्थल बनाया, जिन गाँवों में रहने के लिए साधारण नागरिक ही नहीं कवियों का मन भी ललचाया था, वे ही गाँव आज अशान्ति के घर हुए जा रहे हैं और जैसे किसी भी आँख से आँसू गिरे, ऐसे गाँवों के आँचल से एक-एक घर टूटते ही चले जा रहे हैं।
कठिन शब्दार्थ :
कार्यस्थल = कामकाज करने का स्थान। आँचल = परिवेश, वातावरण।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘मेरे गाँव की सुख और शान्ति किसने छीन ली’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक श्री रामनारायण उपाध्याय हैं।
प्रसंग :
इसमें लेखक की चिन्ता यह है कि पहले तो गाँव सुख शान्ति के भण्डार हुआ करते थे और सभी लोग गाँवों की ओर देखा करते थे; पर आज तो वे समस्याओं के घर बनते चले जा रहे हैं।
व्याख्या :
लेखक श्री रामनारायण उपाध्याय कहते हैं कि जिन गाँवों ने प्रेमचन्द के प्रसिद्ध उपन्यास, ‘गोदान’ में ‘होरी’ और ‘गोबर’ का चित्रण किया है तथा जिन गाँवों में गाँधी और टैगोर को शहरों की सभी सुख-सुविधाएँ त्याग कर ‘सेवा ग्राम’ और ‘शान्ति निकेतन’ भाया तथा इन्हीं को इन लोगों ने अपनी कर्म भूमि बनाया। इन गाँवों के प्रति साधारण नागरिक ही नहीं अपितु पन्त जैसे महान् कवियों का मन भी ललचाया करता था, वे ही गाँव आज सुख शान्ति से रहित होकर अशान्ति के घर क्यों बनते जा रहे हैं? जिस प्रकार किसी आँख से आँसू टप-टप गिरते जाते हैं, उसी प्रकार गाँव के आँचल के एक-एक घर टूटते जा रहे हैं।
विशेष :
- लेखक को गाँवों की वर्तमान दशा से हार्दिक दुःख होता है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(2) जिन गाँवों में लोक-संस्कृति का जन्म हुआ, जिसने लोक की जीवन्त रसधारा को, अपने हृदय में सुरक्षित रखा, वे ही गाँव आज टूटते जा रहे हैं, गाँव की वह पुरानी पीढ़ी भी समाप्त होती जा रही है जिसका सम्पूर्ण जीवन श्वास-प्रश्वास की तरह गीतों के ताने-बाने पर आधारित था। अब तो वे गोकुल से सहज-सरल गाँव नष्ट होते जा रहे हैं, जहाँ स्त्रियाँ भोर में उठकर आटे के साथ घने अँधेरे को भी पीसकर सुहावने प्रभात में बदल देती थीं। जहाँ चक्की के हर फेरे के साथ गीत की नई पंक्तियाँ उठती थीं। लगता था जैसे श्रम में से संगीत का जन्म हो रहा हो और संगीत लोरी बनकर श्रम को हल्का करने में अपना योगदान दे रहा हो।
कठिन शब्दार्थ :
लोकसंसार। जीवन्त रसधारा = ऐसी धारा जो जीवन प्रदान करती हो। श्वास-प्रश्वास = साँस लेना और छोड़ना। लोक-संस्कृति = गाँव की संस्कृति।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक का मानना है कि लोक संस्कृति का जन्म गाँवों से ही हुआ था और आज वह टूटती जा रही है।
व्याख्या :
लेखक श्री रामनारायण उपाध्याय कहते हैं कि जिन गाँवों में लोक-संस्कृति का जन्म हुआ था और जिसने वहाँ के जन-जीवन में एक जीवन्त जीवन प्रवाहित किया था, वे ही गाँव आज टूटते और बिखरते जा रहे हैं। गाँव की वह पुरानी पीढ़ी आज नाश के कगार पर है जिसका सारा जीवन श्वास-प्रश्वास की तरह लोक गीतों के ताने-बाने पर टिका हुआ था। गोकुल के सहज एवं सरल गाँव जहाँ स्त्रियाँ प्रात:काल की बेला में उठकर घर की चक्की पर बैठकर लोकगीत गाते-गाते रात्रि के घने अँधेरे को पीसकर सुहावने प्रात:काल में बदल देती थीं, आज वे गाँव भी नष्ट होते जा रहे हैं। उस समय गाँव की स्त्रियाँ चक्की चलाते वक्त गीत की नई-नई पंक्तियाँ गाकर वातावरण को मधुर बना दिया करती थीं। उस समय ऐसा लगता था मानो श्रम में से संगीत का जन्म हो रहा हो और संगीत लोरी बनकर श्रम को हल्का कर दिया करता था।
विशेष :
- पहले गाँवों में स्त्रियाँ चक्की चलाते समय, पानी भरते समय लोकगीत गाया करती थीं।।
- भाषा सहज, सरल में भावानुकूल है।
(3) पहले जो आदमी गाँव का समृद्ध किसान माना जाता था, वही अब बढ़ती महँगाई और शोषणकारी समाज व्यवस्था के चलते अपनी जमीन से हाथ धोकर खेतिहर मजदूर में बदलता जा रहा है और सचमुच जो मजदूर था वह जमीन पर से किसान का आधिपत्य कम हो जाने से शहरों में मजदूरी करता नजर आता है।
कठिन शब्दार्थ-समृद्ध = सम्पन्न, खाता-पीता। शोषणकारी = सताने वाला, अनुचित लाभ लेने वाला। खेतिहर = मजदूरी पर खेत में काम करने वाला। आधिपत्य = अधिकार।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक यह बताना चाहता है कि गाँव के लोग पलायन कर शहरों की ओर भाग रहे हैं।
व्याख्या :
लेखक रामनारायण उपाध्याय कहते हैं कि पहले जो गाँव का सम्पन्न किसान माना जाता था वह बढ़ती महँगाई के कारण तथा शोषण करने वाली सामाजिक व्यवस्था के कारण अपनी जमीन से हाथ धोकर खेत में काम करने वाला मजदूर बनता जा रहा है और जो वास्तव में मजदूर था वह जमीन पर से किसान का अधिकार समाप्त हो जाने पर शहर में मजदूरी करता दिखाई देता है।
विशेष :
- बढ़ती महँगाई और शोषणकारी सामाजिक व्यवस्था ने किसानों को मजदूर बना डाला है।
- भाषा सहज एवं सरल है।