MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 10 विपणन (वित्तीय) बाजार
विपणन (वित्तीय) बाजार Important Questions
विपणन (वित्तीय) बाजार वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
प्राथमिक एवं द्वितीयक बाजार –
(a) एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं
(b)एक दूसरे को सहयोग देते (संपूरक) हैं
(c) स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं
(d) एक दूसरे को नियंत्रित करते हैं।
उत्तर:
(b)एक दूसरे को सहयोग देते (संपूरक) हैं
प्रश्न 2.
भारत में कुल स्टॉक एक्सचेंज (शेयर बाजारों) की संख्या है –
(a) 20
(b) 21
(c) 24
(d) 23
उत्तर:
(d) 23
प्रश्न 3.
रेपो (Repo) है –
(a) पुनर्खरीद समझौता (विलेख)
(b) रिलायंस पेट्रोलियम
(c) रीड एंड प्रोसेस (पढ़ो और प्रक्रम करो)
(d) उपर्युक्त कुछ भी नहीं।
उत्तर:
(a) पुनर्खरीद समझौता (विलेख)
प्रश्न 4.
एन.एस.ई. (NSE) के भावी व्यापार की शुरुआत किस वर्ष में हुई –
(a) 1999
(b)2000
(c) 2001
(d) 2002
उत्तर:
(b)2000
प्रश्न 5.
राष्ट्रीय शेयर बाजार (NSE) का निपटान (उधार चुकता) चक्र है –
(a) टी+5
(b) टी+3
(c) टी+2
(d) टी+11
उत्तर:
(c) टी+2
प्रश्न 6.
तरलता का निर्माण करता है –
(a) संगठित बाजार
(b) असंगठित बाजार
(c) प्राथमिक बाजार
(d) गौण बाजारे।
उत्तर:
(d) गौण बाजारे।
प्रश्न 7.
सेबी का मुख्य कार्यालय है –
(a) दिल्ली
(b) मुंबई
(c) कोलकाता
(d) चेन्नई।
उत्तर:
(b) मुंबई
प्रश्न 8.
विश्व में सबसे पहले स्कन्ध विपणि की स्थापना हुई थी –
(a) दिल्ली
(b) लंदन
(c) अमेरिका
(d) जापान।
उत्तर:
(b) लंदन
प्रश्न 9.
भारत में असंगठित मुद्रा बाजार का अंग है –
(a) देशी बैंकर
(b) महाजन व साहूकार
(c) दोनों (a) और (b)
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) दोनों (a) और (b)
प्रश्न 10.
मुद्रा बाजार की मुख्य धुरी होती है –
(a) केन्द्रीय बैंक
(b) व्यापारिक बैंक
(c) सहकारी बैंक
(d) देशी बैंक।
उत्तर:
(a) केन्द्रीय बैंक
प्रश्न 11.
NSEI की स्थापना कब हुई –
(a) सन् 1990
(b) सन् 1991
(c) सन् 1992
(d) सन् 1994
उत्तर:
(c) सन् 1992
प्रश्न 12.
पूँजी बाजार की प्रतिभूति नहीं है –
(a) समता अंश
(b) पूर्वाधिकार अंश
(c) ऋणपत्र
(d) वाणिज्यिक बिल।
उत्तर:
(d) वाणिज्यिक बिल।
प्रश्न 13.
भारत में पहली स्कंध विपणि स्थापित हुई –
(a) 1857 में
(b) 1877 में
(c) 1887 में
(d) 1987 में।
उत्तर:
(c) 1887 में
प्रश्न 14.
राजकोष बिल मूलतः होते हैं –
(a) अल्पकालीन फंड उधार के प्रपत्र
(b) दीर्घकालीन फंड उधार के प्रपत्र
(c) पूँजी बाजार के एक प्रपत्र
(d) उपर्युक्त कुछ भी नहीं।
उत्तर:
(a) अल्पकालीन फंड उधार के प्रपत्र
प्रश्न 15.
स्कन्ध विपणियों के लिए सेबी की सेवाएँ हैं –
(a) ऐच्छिक
(b) आवश्यक
(c) अनावश्यक
(d) अनिवार्य।
उत्तर:
(d) अनिवार्य।
प्रश्न 16.
सन् 2004 में भारत में स्कन्ध विपणियों की संख्या थी –
(a) 25
(b) 21
(c) 23
(d) 24.
उत्तर:
(d) 24.
प्रश्न 17.
नवीन निर्गमित अंशों में व्यवहार करता है –
(a) गौण बाजार
(b) प्राथमिक बाजार
(c) गौण बाजार तथा प्राथमिक बाजार दोनों
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) प्राथमिक बाजार
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- NSEI की दत्त पूँजी ………….. है।
- OTCEI की दत्त पूँजी ………… है।
- OTCEI की स्थापना ………… में हुई।
- NSEI की स्थापना ………….. में हुई।
- छोटी कम्पनियों की प्रतिभूतियों में तरलता निर्माण हेतु ……… की स्थापना की गई।
- पूँजी बाजार …………. व्यवहार करना है।
- कोषागार विपत्र की अधिकतम अवधि …………. होती है।
- मुद्रा बाजार ……….. व्यवहार करता है।
- वाणिज्यिक विपत्र …………. लिखा जाता है।
- मध्यम व दीर्घ अवधि वाली प्रतिभूतियों का संबंध …………. से होता हैं।
- NSEI एक ………….. स्तर का बाजार है।
- सेबी की स्थापना ………….. में हुई थी।
- द्वितीयक बाजार को …………. भी कहते हैं।
- अंशो, ऋणपत्रों आदि में व्यवहार करने वाले बाजार को …………. कहा जाता हैं।
- सामान्यतया …………. वित्त से संबंधित बाजार को पूँजी बाजार कहा जाता है।
- माँग मुद्रा, व्यापार बिल आदि …………. के प्रमुख उपकरण होते हैं।
- तरलता का निर्माण …………. करता है।
उत्तर:
- 3 करोड़ रु
- 30 लाख रु
- 1990
- 1992
- OTCEI
- दीर्घकालीन कोष में
- वर्ष
- अल्पकालीन कोष में
- विक्रेता द्वारा
- पूँजी बाजार
- सुसंगठित
- 1992
- स्टॉक विनिमय
- पूँजी बाजार
- दीर्घकालीन
- मुद्रा बाजार
- गौण बाजार
प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए
- दीर्घकालीन वित्त व्यवस्था से संबंधित बाजार को क्या कहते हैं ?
- पूर्व निर्गमित प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय कहाँ होता है ?
- अल्पकालीन वित्त व्यवस्था हेतु किस बाजार का प्रयोग होता है ?
- विनियोजकों के हितों की रक्षा हेतु किसकी स्थापना की गई ?
- राष्ट्रीय स्तर के स्कन्ध विपणि का क्या नाम है ?
- ट्रेजरी बिल, वाणिज्यिक बिल आदि किस बाजार के प्रलेख हैं ?
- कौन सा पूँजी बाजार नई प्रतिभूतियों के निर्गमन से संबंधित होता है ?
- महाजन व साहूकार कौन-से मुद्रा बाजार के प्रमुख अंग हैं ?
- प्राथमिक पूँजी बाजार में मध्यस्थ के माध्यम से प्रतिभूति निर्गमन की विधि क्या कहलाती है ?
- किस बाजार में अल्पकालीन कोषों का क्रय-विक्रय होता है ?
- पूँजी बाजार के दो खण्ड कौन-कौन से हैं ?
- मुद्रा बाजार का नियंत्रण किस संस्था द्वारा होता है ?
- बट्टे पर निर्गमित होने वाली प्रतिभूति क्या है ?
- सेबी किस बाजार का नियमन एवं संवर्धन करता है ?
- किस पूँजी बाजार का संबंध नए निर्गमनों से होता है ?
- देश का सबसे बड़ा स्टॉक एक्सचेंज कौन-सा है ?
उत्तर:
- पूँजी बाजार
- स्कंध विपणि
- मुद्रा बाजार
- सेबी
- NSEI
- मुद्रा बाजार
- प्राथमिक
- असंगठित
- निजी स्थानन
- मुद्रा बाजार
- प्राथमिक व गौण बाजार
- केन्द्रीय बैंक
- ट्रेजरी बिल
- स्टॉक एक्सचेंज/द्वितीयक बाजार
- प्राथमिक बाजार
- मुंबई स्टॉक एक्सचेंज।
प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये
- सेबी एक सार्वमुद्रा रखने वाला निगम-निकाय है।
- भारत में 24 स्कन्ध निर्माण है।
- सेबी का मुख्यालय मुंबई में है।
- भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड को सेबी के नाम से भी जाना जाता है।
- प्रतिभूतियों के आदान-प्रदान का स्थान इलेक्ट्रॉनिक बुक प्रविष्ट ने ले लिया है।
- म्यूचुअल फंड पर सेबी का नियंत्रण नहीं होता है।
- मुद्रा बाजार दीर्घकालीन कोषों में व्यवहार करता है।
- मुद्रा बाजार में सेबी का नियंत्रण है।
- देश के औद्योगिक विकास के लिए स्वस्थ पूँजी बाजार आवश्यक है।
- प्राथमिक बाजार तथा गौण बाजार में अन्तर है।
उत्तर:
- सत्य
- सत्य
- सत्य
- सत्य
- सत्य
- असत्य
- असत्य
- असत्य
- सत्य
- सत्य।
प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –
उत्तर:
- (d)
- (e)
- (b)
- (a)
- (c)
- (f)
- (g)
- (i)
- (h)
विपणन (वित्तीय) बाजार दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
एक वित्त बाजार के क्या प्रकार्य हैं ?
उत्तर:
वित्त बाजार के प्रमुख प्रकार्य निम्नलिखित हैं
1. कीमत खोज को सुगम बनाना-किसी वस्तु की कीमत माँग और पूर्ति कारकों पर निर्भर करती है। वित्तीय बाजारों में वित्तीय संपत्तियों और प्रतिभूतियों की माँग और पूर्ति विभिन्न वित्तीय प्रतिभूतियों के मूल्य को निश्चित करने में सहायता करती है।
2. लेन-देन की लागत को कम करना-वित्तीय बाजार विभिन्न वित्तीय प्रतिभूतियों की लागत. उपलब्धता और मूल्य से संबंधित पूर्ण सूचना प्रदान करता है। इसीलिए निवेशकों और कंपनियों को इस सूचना को प्राप्त करने के लिए अधिक खर्च नहीं करना पड़ता है क्योंकि यह वित्तीय बाजारों में पहले से उपलब्ध होती है।
3. बचत राशियों को गतिशील बनाना और उन्हें अधिक उत्पादक प्रयोग में स्थानांतरित करनावित्तीय बाजार बचतकर्ताओं और निवेशकों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है। वित्तीय बाजार बचतकर्ताओं की बचत को अधिक उपयुक्त निवेश अवसरों में स्थानांतरण करता है।
4. वित्तीय संपत्तियों को तरलता प्रदान करना-वित्तीय बाजार में वित्तीय प्रतिभूतियों को आसानी से खरीदा और बेचा जा सकता है इसीलिए वित्तीय बाजार प्रतिभूतियों को नगद में परिवर्तित करने के लिए एक आधार प्रदान करता है।
प्रश्न 2.
पूँजी बाजार का क्या अर्थ होता है ? भारत के संगठित व असंगठित पूँजी बाजारों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
पूँजी बाजार का अर्थ – “पूँजी बाजार वह स्थान या प्रबंध व्यवस्था है जहाँ व्यवसाय व उद्योगों के लिए दीर्घकालीन ऋणों की व्यवस्था होती है।” –
भारत में पूँजी बाजार दो प्रकार के हैं
1. संगठित पूँजी बाजार (Formal or Organised Capital Market) – संगठित पूँजी बाजार के अन्तर्गत वित्त संबंधी कार्य पंजीबद्ध (Registered) विभिन्न वित्तीय संस्थायें करती हैं जो विभिन्न सार्वजनिक क्षेत्रों से निजी बचतों को एकत्र कर दीर्घकालीन पूँजी की व्यवस्था करती है। जैसे –
भारतीय यूनिट ट्रस्ट (UTI), जीवन बीमा निगम (LIC), भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI), वाणिज्यिक बैंक, औद्योगिक वित्त निगम (IFC), भारतीय औद्योगिक साख एवं विनियोग निगम (ICICI), भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI), राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम (NIDC), भारतीय औद्योगिक पुनर्निर्माण बैंक (IRBI), सामान्य बीमा निगम (GIC), राज्य वित्तीय संस्थाएँ (SFCs), आवासीय वित्त बैंक (RFB) आदि प्रमुख हैं। इन सभी का नियन्त्रण व नियमन भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) द्वारा किया जाता है। –
2. असंगठित या गैर संगठित बाजार (Internal or Unorganised Market) – इसे अनौपचारिक बाजार भी कहा जाता है। इनमें देशी बैंकर्स, साहूकार, महाजन आदि प्रमुख होते हैं। काले धन का बहुत बड़ा भाग गैर संगठित क्षेत्र में वित्त व्यवस्था करता है। ये उद्योग, व्यापार तथा कृषि क्षेत्रों में पूँजी का विनियोजन करते हैं। इनकी ब्याज दरें व वित्तीय नीति कभी भी एकसमान नहीं होती हैं।
इन पर विनिमय सम्बन्धी नियंत्रण भी नहीं होती है। जिसके परिणामस्वरूप ये साहूकार कभी-कभी ऊँची दर पर ऋण देकर अधिक लाभ कमाने का प्रयास करते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक इन पर नियंत्रण करने के लिये प्रयासरत् है।
प्रश्न 3.
पूंजी बाजार तथा मुद्रा बाजार के बीच अंतर करें।
उत्तर:
मुद्रा बाजार एवं पूंजी बाजार में अंतर (Distinction Between Money Market and Capital Market)
जैसा कि पूर्व में ही बताया जा चुका है कि मुद्रा बाजार व पूँजी बाजार दोनों आकार व स्वभाव के दृष्टिकोण से भिन्न-भिन्न होते हैं। प्रमुख अन्तर इस प्रकार हैं
1. मुद्रा बाजार अल्पकालीन ऋणों में लेनदेन करता है जबकि पूँजी बाजार दीर्घकालीन ऋणों में लेनदेन करता है।
2. अल्पकाल का आशय एक वर्ष तक की अवधि से है जबकि दीर्घकाल की अवधि का आशय 15 वर्ष से 25 वर्ष या उसके ऊपर की अवधि से होता है।
3. मुद्रा बाजार में केन्द्रीय बैंक, वाणिज्यिक बैंक, गैरवित्तीय संस्थायें आदि मुद्रा में लेनदेन करते हैं जबकि पूँजी बाजार का लेनदेन स्कन्ध विपणियों, म्यूचुअल फन्ड, लीजिंग कम्पनियाँ, यू.टी.आई. बीमा कम्पनियाँ, निवेशक बैंक, वित्तीय निगम आदि के माध्यम से किया जाता है। इस प्रकार दोनों की संस्थायें अलग-अलग होती हैं
4. मुद्रा बाजार बचत पत्र, विनिमय बिल, राजकोषीय बिल, जमा प्रमाण-पत्र आदि उपकरणों (Instruments) के द्वारा लेनदेन करता है जबकि पूँजी बाजार में बड़ी कम्पनियों, औद्योगिक संस्थाओं के अंश व ऋणपत्र, सरकारी एवं गैर सरकारी बाण्ड्स तथा प्रतिभूतियों जैसे उपकरणों से लेनदेन किया जाता है।
5. मुद्रा बाजार में मुद्रा की मात्रा अपेक्षाकृत कम रहती है, क्योंकि किसी बड़े कारखाने या उद्योग को प्रारम्भ करने के लिये मुद्रा बाजार से वित्त प्राप्त नहीं किया जाता। जबकि पूंजी बाजार में मुद्रा की मात्रा अपेक्षाकृत काफी अधिक रहती है।
6. मुद्रा बाजार में दिये गये ऋण के बदले ब्याज प्राप्त होता है जो पूर्व निर्धारित रहता है। पूँजी बाजार में दिये गये ऋण के बदले लाभांश प्राप्त होता है, जो लाभ के अनुसार कम या अधिक होते रहता है।
7.मुद्रा बाजार का नियंत्रण सामान्य होता है जबकि पूँजी बाजार का नियंत्रण ‘सेबी’ द्वारा किया जाता है।
प्रश्न 4.
जमा प्रमाण पत्र (CD) तथा सावधि/मुद्दती जमा (FD) में अंतर बताइए।
उत्तर:
तथा सावधि जमा में अंतरजमा प्रमाण पत्र
जमा प्रमाण पत्र
- ये स्वतंत्र रूप से विनिमय साध्य होते हैं।
- ये वास्तविक जमा राशि पर कटौती काटकर जाते हैं।
- ये प्रमाण पत्र 91 दिनों से 1 वर्ष की अवधि
सावधि जमा
- ये स्वतंत्र रूप से विनिमय साध्य नहीं होते हैं।
- ये वास्तव में जमा की गई राशि पर जारी किये जारी किये जाते हैं।
- ये 14 दिनों की न्यूनतम अवधि के लिए
प्रश्न 5.
SEBI के सुरक्षात्मक कार्य क्या हैं ?
उत्तर:
SEBI के सुरक्षात्मक कार्य – SEBI द्वारा ये कार्य निवेशक के हित की सुरक्षा और निवेश की सुविधा प्रदान करने के लिए निष्पादित किए जाते हैं। SEBI के सुरक्षात्मक कार्य निम्न हैं
1. यह भाव बढ़ाने व घटाने का निरीक्षण करता है। इसका अर्थ प्रतिभूतियों के बाजार मूल्य को बढ़ाने या कम करने के मुख्य उद्देश्य के साथ प्रतिभूतियों के मूल्यों में हेर – फेर करने से है।
2. SEBI कपटपूर्ण और अनुचित व्यापारिक कार्यवाहियों को प्रतिबंधित करता है।
3. SEBI निवेशकों को शिक्षित करने के लिए कई उपाय करता है ताकि वे विभिन्न कंपनियों की प्रतिभूतियों का मूल्यांकन करने के योग्य हो अधिक लाभप्रद प्रतिभूति का चयन करें।
प्रश्न 6.
प्राथमिक बाजार एवं गौण बाजार में अंतर बताइए।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार एवं गौण बाजार में अंतर –
प्रश्न 7.
भारत में कितनी स्कन्ध विपणियाँ हैं ?
उत्तर:
भारत में कुल 24 स्कन्ध विपणियाँ हैं। ये निम्नलिखित स्थानों पर है
- चेन्नई
- अहमदाबाद
- बैंगलोर
- भुवनेश्वर
- कोचीन
- कटक
- कोयम्बटूर
- दिल्ली
- गुवाहाटी
- इंदौर
- हैदराबाद
- जयपुर
- कानपुर
- मंगलौर
- कोलकाता
- लुधियाना
- मुंबई
- OTCEI
- पटना
- पुणे
- NSEI
- बड़ोदरा
- राजकोट
- सिक्किम।
प्रश्न 8.
NSEI की विशेषताओं और उद्देश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
NSEI की विशेषताएँ – NSEI की मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं
1. व्यापार की जाने वाली प्रतिभूतियाँ – NSEI प्रतिभूतियों के दो प्रखंडों के साथ लेन-देन करना है। ये इस प्रकार हैं-
- पूँजी बाजार प्रखण्ड
- मुद्रा बाजार प्रतिभूतियाँ ।
2. NSEI पर भुगतान और सुपुर्दगी लेन – देन के 15 दिनों के अंदर पूर्ण की जाती है। NSEI के उद्देश्य-
- एक उपयुक्त संप्रेषण नेटवर्क द्वारा देशभर में निवेशकों की आसान पहुँच सुनिश्चित करना।
- अंतर्राष्ट्रीय मानकों से मिलान करना।
- सभी प्रकार की प्रतिभूतियों के लिए एक राष्ट्रव्यापी व्यापारिक सुविधा की स्थापना करना।
- इलेक्ट्रॉनिक व्यापारिक पद्धति का प्रयोग करके एक उचित कुशल और पारदर्शी प्रतिभूतियों का बाजार प्रदान करना।
- छोटे निबटान का चक्र बनाना।
प्रश्न 9.
प्राथमिक पूँजी बाजार की पाँच विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
प्राथमिक पूँजी बाजार का आशय – प्राथमिक बाजार का आशय उस बाजार से है, जिसमें नवीन प्रतिभूतियों (जैसे-अंश, ऋणपत्र, बॉण्ड्स आदि) का निर्गमन किया जाता है। इसे नवीन निर्गमन बाजार भी कहा जाता है। जिस बाजार में प्रतिभूतियाँ कम्पनियों द्वारा प्रथम बार बेची जाती है। उसे प्राथमिक बाजार कहा जाता है।
विशेषताएँ-
- नवीन प्रतिभूतियाँ – प्राथमिक बाजार में नवीन प्रतिभूतियों के व्यवहार का निर्गमन होता है।
- कीमत का निर्धारण – प्रतिभूतियों की कीमत-कम्पनी के प्रबंधकों द्वारा निर्धारित की जाती है।
- प्रत्यक्ष निर्माण – प्राथमिक बाजार में कम्पनी सीधे या बिचौलिये के माध्यम से विनियोजकों को प्रतिभूतियों का निर्गमन करती है।
- स्थान – प्राथमिक बाजार के लिये कोई विशेष स्थान नहीं होता है।
- पूँजी निर्माण प्राथमिक बाजार प्रत्यक्ष रूप से पूँजी निर्माण में वृद्धि करता है, क्योंकि कोषों का प्रवाह, बचत करने वाली से विनियोगकर्ताओं को जाता है, जो यंत्र, मशीनरी, भवन आदि के लिये उनका उपयोग करते हैं।
प्रश्न 10.
पूँजी बाजार के महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूँजी बाजार राष्ट्रीय पूँजी निर्माण तथा विकास में सहायता करता है। पूँजी बाजार के महत्व को हम निम्नांकित ढंग से स्पष्ट कर सकते हैं
- पूँजी बाजार पूँजी निवेशकों एवं बचत धारियों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बचतकर्ता निधि के स्रोत व ऋणदाता होते हैं तथा निवेशक निधि के ऋणी होते हैं। इन दोनों के मध्य पूँजी बाजार एक कड़ी का कार्य करता है।
- अपनी समस्त आय खर्च न करने वाले बचतकर्ताओं के लिए विनियोग करने का सरल साधन पूँजी बाजार होता है।
- आम जनता की छोटी-छोटी बचतों के लाभकारी विनियोग के लिए पूँजी बाजार एक अच्छा क्षेत्र प्रदान करता है।
- इसी प्रकार कम दर पर अधिक समय के लिए पूँजी प्राप्त करने का एक अच्छा मार्ग पूँजी बाजार होता है।
- पूँजी बाजार में माँग व पूर्ति के मध्य सन्तुलन बनाये रखने का कार्य पूँजी बाजार अपने उपकरणों के माध्यम से करता है।
प्रश्न 11.
प्राथमिक व द्वितीयक बाजार अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार (Primary market) – ऐसा स्थल या व्यवस्था जहाँ से पूँजी सीधे प्रथम बार जनता द्वारा प्राप्त की जाती है उसे प्राथमिक बाजार (Primary Market) कहा जाता है। इस व्यवस्था में कम्पनियों द्वारा नये अंशों व ऋणपत्रों का निर्गमन कर जनता से सीधे पूँजी प्राप्त की जाती है। इसी प्रकार सरकार व निगमित संस्थायें अपने बॉण्ड्स एवं प्रतिभूतियों का विक्रय कर सीधे जनता से पूँजी प्राप्त कर सकती हैं। कम्पनियों की स्थापना के समय भी अंशों का निर्गमन कर जनता से जो अंशपूँजी आमन्त्रित की जाती है वह भी प्राथमिक पूँजी कहलाती है। व्यापारिक बैंकर्स द्वारा प्राप्त जमायें, म्यूचुअल फन्ड व अन्य बचत प्रमाण-पत्रों से प्राप्त पूँजी भी प्राथमिक पूँजी के रूप में मानी जाती है। संक्षिप्त में “ऐसी पूँजी जिसे प्रथम बार जनता से सीधे किसी भी माध्यम से प्राप्त किया जाता है उसे प्राथमिक पूँजी कहते हैं।”
द्वितीयक बाजार (Secondary market) – द्वितीयक बाजार के अन्तर्गत विभिन्न स्रोतों से पूँजी प्राप्त की जाती है उसका पुनः विनियोग करने की क्रिया द्वितीयक बाजार कहलाती है। सामान्यतः स्कन्ध विपणि (Stock Exchange) में व्यवहार किये जाने वाले समस्त लेनदेन द्वितीय पूँजी बाजार के अन्तर्गत आते हैं क्योंकि स्कन्ध विपणियों में अंशों व प्रतिभूतियों का ही क्रय-विक्रय होता है। दलालों द्वारा, म्यूचुअल फन्ड द्वारा, यूनिट ट्रस्ट द्वारा, सामान्य बीमा कम्पनियों व गैर बैंकिंग वित्त से सम्बन्धित समस्त कार्य द्वितीय पूँजी बाजार की श्रेणी में आता है।
प्रश्न 12.
स्टॉक एक्सचेंज (शेयर बाजार) के प्रकार्य लिखिए।
उत्तर:
स्टॉक एक्सचेंज के प्रकार्य – स्टॉक एक्सचेंज के निम्नलिखित प्रकार्य हैं-
1. दलाल-एक दलाल स्टॉक एक्सचेंज का सदस्य होता है। वह बाह्य व्यक्तियों, जो कि सदस्य नहीं होते, की ओर से प्रतिभूतियों को खरीदता और बेचता है।
2. आढ़तिया – आढ़तिया स्टॉक एक्सचेंज का सदस्य होता है। वह अपनी ओर से प्रतिभूतियों को खरीदता और बेचता है। वह एक प्रकार की प्रतिभूति में विशिष्ट होता है और वह उच्च कीमत पर प्रतिभूतियाँ बेचकर लाभ कमाता है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में उसे तरावनीवाला कहा जाता है।
3. तेजड़िया – तेजड़िया एक सटोरिया होता है जो मूल्य में वृद्धि की आशा करता है। वह उच्च कीमत पर भविष्य में प्रतिभूतियों को बेचने और उनसे लाभ कमाने के दृष्टिकोण से प्रतिभूतियों को खरीदता है। मुंबई स्टॉक एक्सचेंज में उसे तेजीवाला के नाम से जाना जाता है।
4. मंदड़िया – मंदड़िया एक सटोरिया होता है जो मूल्य में कमी की आशा करता है। वह ऐसी प्रतिभूतियों को बेचता है जो उसके पास नहीं होती स्टॉक एक्सचेंज में उसे मंडीवाला के नाम से जाना जाता है।
5.स्टैग – स्टैग भी एक सटोरिया है जो इस आशा के साथ कि आबंटन के समय मूल्यों में उछाल होगा, नई प्रतिभूतियों के लिए आवेदन करता है और वह उन्हें प्रीमियम पर बेच सकता है।
प्रश्न 13.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के क्या उद्देश्य हैं ?
उत्तर:
NSE के उद्देश्य – NSE की स्थापना के निम्नांकित उद्देश्य हैं
- सामान्य अंशों, ऋणपत्रों एवं मिश्रित (Hybrid) प्रतिभूतियों में राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार की सुविधा प्रदान करना।
- सम्पूर्ण राष्ट्र के विनियोजकों की बाजार तक पहुंच आसान करना।
- प्रतिभूतियों के व्यापार में स्वच्छता,पारदर्शिता व कुशलता लाना।
- सौदों के निपटारा की प्रक्रिया को कम करना
- अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिभूति बाजार के मानकों (Standard) का पालन करना।
प्रश्न 14.
प्राथमिक बाजार की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार की विशेषताएँ (Features of Primary Market)- प्राथमिक बाजार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. इसका संबंध नये निर्गमनों से हैं (It is related with new issues) – प्राथमिक बाजार की प्रथम विशेषता इसका नये निर्गमनों से संबंधित होना है। जब भी कोई कम्पनी नये अंश अथवा ऋणपत्र जारी करती है तो यह प्राथमिक बाजार की ही क्रिया होती है।
2. इसका कोई विशेष स्थान नहीं होता है (It has no particular place) – प्राथमिक बाजार किसी विशेष स्थान का नाम नहीं है बल्कि नये निर्गमन लाने को ही प्राथमिक बाजार की क्रिया कहा जाता है।
3. इसमें पूँजी एकत्रित करने की कई विधियाँ हैं (It has various methods of Raising Capital)प्राथमिक बाजार में पूँजी एकत्रित करने की पाँच विधियाँ होती हैं
- विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव
- विक्रय के लिए प्रस्ताव
- निजी नियोजन या विनियोग
- अधिकार निर्गम तथा
- इलेक्ट्रॉनिक आरंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव।
4. यह गौण बाजार से पहले आता है (It comes before secondary market) – प्राथमिक बाजार में व्यवहार पहले होते हैं और उसके बाद गौण बाजार की बारी आती है।
5. कीमतों का निर्धारण (Determination of prices) – प्रतिभूतियों की कीमतों का निर्धारण कंपनी के प्रबन्ध द्वारा किया जाता है।
6. निधि का प्रवाह (Flow of funds) – निधियों का प्रवाह बचतकर्ताओं से निवेशकों की ओर होता है।
प्रश्न 15.
द्वितीय बाजार की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
द्वितीय या गौण बाजार की विशेषताएँ (Fetures of Secondary Market) – गौण बाजार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. यह तरलता उत्पन्न करता है (It Creates Liquidity) – गौण बाजार की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता प्रतिभूतियों में तरलता उत्पन्न करना है। तरलता का अभिप्राय प्रतिभूतियों को अतिशीघ्र नकदी में बदलने से है। यह काम गौण बाजार द्वारा किया जाता है।
2. यह प्राथमिक बाजार के बाद आता है (It comes after Primary Market) – किसी भी नई प्रतिभूति को पहली बार गौण बाजार में नहीं बेचा जा सकता है। नई प्रतिभूतियों को पहले प्राथमिक बाजार में बेचा जाता है उसके बाद गौण बाजार की बारी आती है।
3. इसका एक विशेष स्थान होता है (It has a Particular Place) – गौण बाजार का एक विशेष स्थान होता है जिसे एक्सचेंज कहते हैं। ध्यान रहे कि यह जरूरी नहीं है कि प्रतिभूतियों के सभी क्रय-विक्रय स्टॉक एक्सचेंज के माध्यम से ही किये जाएँ । दो व्यक्ति आपस में भी इनका क्रय-विक्रय कर सकते हैं। यह भी गौण बाजार का व्यवहार ही कहलायेगा। प्रायः अधिकतर व्यवहार एक्सचेंज के माध्यम से ही होते हैं।
4. यह नये निवेश को प्रोत्साहित करता है-शेयर बाजार के अंशों व अन्य प्रतिभूतियों के भाव कम या अधिक होते रहते हैं। इस स्थिति का लाभ उठाने के उद्देश्य से अनेक नये निवेशक इस बाजार में प्रवेश करते हैं। इसे औद्योगिक क्षेत्र के विनियोग में वृद्धि होती है।
प्रश्न 16.
मुद्रा बाजार प्रपत्रों की विशेषतायें लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा बाजार प्रपत्रों की सामान्य विशेषताएँ (General Feature of Money Instruments)मुद्रा बाजार में व्यवहार किये जाने वाले प्रपत्रों की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- अल्पकालीन (Short-term) – ये अल्पकाल के लिए जारी किये जाते हैं। इनकी अवधि कम-सेकम दिन और अधिकतम 364 दिन होती है।
- अधिक सुरक्षा (High Safety)-इनको जारी करने वाली संस्थाएँ वित्तीय दृष्टि से मजबूत होती हैं। अतः इनमें अधिक सुरक्षा रहती हैं।
- अधिक तरलता (High Liquidity) – इन प्रपत्रों में अतिशीघ्र नकदी में बदलने का गुण होता है।
- अधिक राशि (Large Amount)-ये प्रपत्रक अधिक राशि के होते हैं।
- कम निवेशक (Lower Investos)-इनमें निवेश करने वाली संस्थाओं व व्यक्तियों की संख्या सीमित होती है।
प्रश्न 17.
राजकोषीय बाजार प्रपत्रों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
राजकोषीय प्रपत्र की विशेषताएँ (Features of Treasury Bills) – राजकोषीय प्रपत्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- यह एक अल्पकालीन प्रपत्र है।
- इसे केन्द्रीय सरकार अपनी अल्पकालीन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जारी रहती है।
- इसका निर्गमन केन्द्रीय सरकार की ओर से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है।
- यह एक वर्ष से कम अवधि में परिपक्व होने वाला प्रपत्र है।
- इसे शून्य कूपन बंधक पत्र के नाम से भी जाना जाता है।
- इसे अंकित मूल्य से कम मूल्य पर जारी किया जाता है और इसका भुगतान अंकित मूल्य पर होता है।
- यह प्रपत्र एक वचन के स्वरूप में जारी किया जाता है।
- इसमें उच्च तरलता पायी जाती है।
- इसमें अदायगी का जोखिम नगण्य होता है।
प्रश्न 18.
माँग मुद्रा/अल्प सूचना ऋण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
माँग मुद्रा की विशेषताएँ (Features of Call Money) – माँग मुद्रा की मुख्य विशेषताएँ . निम्नलिखित हैं
- यह एक लघुकालिक माँग पर पुनः भुगतान वित्त है।
- इसकी परिपक्वता अवधि एक दिन से 15 दिन तक की होती है।
- यह अंतःबैंक अंतरण के लिए प्रयोग में लायी जाती है अर्थात् इसका प्रयोग बैंकों द्वारा किया जाता है। निम्न कारण से बैंक इसका प्रयोग करते हैं-
- वैधानिक तरलता अनुपात बनाये रखना।
- आवश्यकता से अधिक नकदी को अल्पकाल निवेश के लिए रखना।
- माँग मुद्रा का व्यवहार प्रायः टेलीफोन पर ही होता है, कागजी कार्यवाही बाद में पूरी की जाती है।
- माँग मुद्रा पर चुकाए जाने वाले ब्याज को शीघ्रावधि दर कहते हैं। यह दर बहुत ही चंचल (अस्थिर) होती है। यह दिन-प्रतिदिन और कभी-कभी घंटों के अनुसार बदलती है।
प्रश्न 19.
मुद्रा बाजार की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
मुद्रा बाजार की विशेषताएँ (Features of Money Market) – मुद्रा बाजार की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1.वित्तीय बाजार का मुख्य अंग (Important Component of Financial Market) – मुद्रा बाजार वित्तीय बाजार का एक मुख्य अंग है। इसके माध्यम से व्यापारियों, उद्योगपतियों तथा सरकार की अल्पकालीन वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है।
2. अत्यधिक तरलता (More Liquidity) – मुद्रा बाजार की एक महत्वपूर्ण विशेषता इसमें अत्यधिक तरलता का पाया जाना है।
3. कम व्यवहार लागत (Low Transaction Cost) – मुद्रा बाजार में किये जाने वाले व्यवहारों के लिए प्रायः दलालों की आवश्यकता नहीं होती। इसलिए यहाँ किये जाने वाले क्रय-विक्रय पर कम खर्चे सहन करने पड़ते हैं।
4. अल्पकालीन वित्तीय संपत्तियाँ (Short-term Financial Assets) – इस बाजार में व्यवहार की जाने वाली संपत्तियों की अवधि अधिकतम एक वर्ष होती है। वित्तीय संपत्तियों का अर्थ वित्तीय प्रलेखों (Financial Instruments) से है।
5. वित्तीय बाजार के दो स्वरूप (Two Forms)
– इस बाजार के दो स्वरूप हैं –
- संगठित तथा
- असंगठित।
संगठित मुद्रा बाजार में रिजर्व बैंक, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक, निजी क्षेत्र के बैंक तथा सहकारी बैंकों को सम्मिलित किया जाता है। असंगठित मुद्रा बाजार के अंतर्गत साहूकार (Moneylender), देशी बैंक (Indigenous Banks), चिट फंड (Chit Fund), निधियाँ (Nidhis) आदि को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 20.
सेबी (SEBI) के कोई चार सुरक्षात्मक कार्य बताइये।
उत्तर:
SEBI के चार सुरक्षात्मक कार्य निम्नलिखित हैं –
- सेबी निवेशकों को शिक्षित करने के लिए कदम उठाती है।
- यह भीतरी कार्य पर रोक लगाती है।
- यह बाजार में उचित कार्यों एवं आचार संहिता को बढ़ावा देती है।
- यह बाजार में नई प्रतिभूतियाँ जारी करने जा रही है कंपनियों के कपटपूर्ण व्यवहारों पर रोक लगाती है।
प्रश्न 21.
सेबी (SEBI) के कोई चार नियामक कार्य लिखिए।
उत्तर:
SEBI के चार नियामक कार्य (Regulatory functions) निम्नलिखित हैं
- SEBI दलालों एवं उप दलालों तथा प्रतिभूति बाजार से किसी भी रूप में जुड़े बिचौलियों का पंजीकरण करती है।
- यह सामूहिक निवेश योजनाओं तथा म्युचुअल फंडों का पंजीकरण करती है।
- यह धोखेबाजी एवं अनुचित व्यापारों की रोकथाम करती है।
- यह अधिनियम के उद्देश्यों से बाहर किये जाने वाली गतिविधियों पर अधि-शुल्क या कोई अन्य प्रभार लगाती है।
प्रश्न 22.
वित्तीय बाजार के कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वित्तीय बाजार के कार्य-देश की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में वित्तीय बाजार का मुख्य स्थान है। इरके मुख्य कार्य निम्न हैं
1. मूल्य खोज में सहायक-किसी भी वस्तु या सेवा का मूल्य माँग व पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होता है। वित्तीय बाजार में वित्तीय संपत्तियों और प्रतिभूतियों की माँग और पूर्ति विभिन्न प्रतिभूतियों के मूल्य को निश्चित करता है।
2. लेन-देन की लागतों को कम करना वित्तीय बाजार विभिन्न प्रतिभूतियों की लागत उपलब्धता और मूल्य से संबंधित पूर्ण सूचना प्रदान करता है। इसीलिए निवेशक और कंपनी को इन सूचनाओं को प्राप्त करने के लिए अधिक खर्च नहीं करना पड़ता अर्थात् वित्तीय बाजार लेन-देनों की लागत को कम करता है।
3. बचतों को गति प्रदान करना एवं अत्यधिक उत्पादकीय प्रयोगों की ओर ले जाना-वित्तीय बाजार बचतकर्ताओं को विभिन्न विनियोग विकल्प प्रदान कर लोगों की बचतों को गति प्रदान करता है।
4.वित्तीय संपत्तियों को तरलता प्रदान करता है-वित्तीय बाजारों में प्रतिभूतियों को सरलता से खरीदा और बेचा जा सकता है। यहाँ प्रत्येक प्रतिभूति के क्रेता व विक्रेता हर समय उपलब्ध होते हैं। इसलिए वित्तीय बाजार वित्तीय संपत्तियों को तरलता प्रदान करता है क्योंकि निवेशक जब चाहे निवेश को रोकड़ में बदल सकते हैं तथा जब चाहे अपने रोकड़ को प्रतिभूतियों में निवेश कर सकते हैं।
प्रश्न 23.
शेयर बाजार की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
शेयर बाजार की विशेषताएँ – शेयर बाजार की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –
1.संगठित बाजार – शेयर बाजार एक संगठित बाजार होता है। इसके संगठित होने का अभिप्राय यह है कि प्रत्येक शेयर बाजार की एक प्रबंध समिति होती है जिसको प्रबंधक एवं नियंत्रण संबंधी सभी अधिकार प्राप्त होते हैं।
2. केवल अधिकृत सदस्यों द्वारा व्यवहार – शेयर बाजार में निवेशकों के लिए प्रतिभूतियों का क्रयविक्रय केवल अधिकृत सदस्यों के माध्यम से ही किया जा सकता है। शेयर बाजार एक विशेष बाजार-स्थान होता है जहाँ केवल अधिकृत सदस्य ही जा सकते हैं। लोगों की प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय करने के लिए इनकी सहायता लेनी पड़ती है।
3.नियमों एवं उपनियमों का पालन करना आवश्यक – शेयर बाजार में किए जाने वाले समस्त लेन देनों के लिए उसके द्वारा निर्धारित नियमों व उपनियमों का पालन करना आवश्यक होता है।
4. गौण बाजार – शेयर बाजार को द्वितीयक या गौण भी कहा जाता है क्योंकि यहाँ उन प्रतिभूतियों का क्रय-विक्रय किया जाता है जो पहले से निर्गमित की गई हो।
5. विभिन्न संस्थाओं द्वारा निर्गमित प्रतिभूतियों में व्यवहार- शेयर बाजार में प्रायः उन संस्थाओं की प्रतिभूतियों में ही व्यवहार होता है जो वहाँ पर सूचीबद्ध होती है। एक संस्था कुछ विशेष शर्तों का पालन करके अपनी प्रतिभूति को एक शेयर बाजार पर सूचीबद्ध करवा सकती है।
प्रश्न 24.
प्राथमिक पूँजी बाजार का अर्थ एवं इसमें प्रतिभूतियों के निर्गमन की क्या विधियाँ हैं ?
उत्तर:
प्राथमिक पूँजी बाजार का अर्थ – ऐसा स्थल या व्यवस्था जहाँ से पूँजी सीधे प्रथम बार जनता द्वारा प्राप्त की जाती है उसे प्राथमिक बाजार कहा जाता है।
प्रतिभूतियों के निर्गमन की विधियाँ
1. प्रविवरण – इस विधि में निजी क्षेत्र एवं सार्वजनिक क्षेत्र अपनी वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु प्रविवरण जारी करता है। यह एक प्रकार का जनसाधारण को प्रस्ताव होता है कि वे कंपनी व संस्थाओं की प्रतिभूतियों अर्थात् अंशों व ऋण पत्रों के लिए अभिदान करें।
2. बिक्री प्रस्तावना – इस विधि के अंतर्गत साधारण जनता को नई प्रतिभूतियाँ प्रस्तावित की जाती हैं परंतु प्रत्यक्ष रूप से कंपनी द्वारा नहीं, बल्कि बिचौलियों द्वारा जो कंपनी से प्रतिभूतियों का सारा समूह खरीदता है। इसीलिए प्रतिभूतियों की बिक्री दो चरणों में होती है-पहला चरण जब कंपनी अंकित मूल्य पर बिचौलिए को प्रतिभूतियाँ निर्गमित करती है और दूसरा चरण जब लाभ कमाने के लिए बिचौलिए साधारण जनता को उच्च कीमत पर प्रतिभूतियाँ निर्गमित करते हैं।
3. अधिकार निर्गमन – यह विद्यमान शेयरधारकों को नए अंशों का निर्गमन है। इसे अधिकार निर्गमन कहा जाता है। क्योंकि यह अंशधारकों का पूर्व क्रय अधिकार होता है कि कंपनी को बाह्य व्यक्तियों को निर्गमन करने से पहले नए अंश इन्हें प्रस्तावित करने चाहिए। प्रत्येक अंशधारक को उसके द्वारा धारित मौजूदा शेयरों के अनुपात में अतिरिक्त शेयर खरीदने का अधिकार होता है।
4. इलेक्ट्रॉनिक – प्राथमिक सार्वजनिक प्रस्ताव-इस विधि के अंतर्गत कंपनियां अपनी प्रतिभूतियों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा जारी करती है। इस माध्यम से प्रतिभूति जारी करने वाली कंपनी एक शेयर बाजार से समझौता करती है। शेयर बाजार में काम करने वाले सेबी द्वारा अधिकृत किसी दलाल को ऑन लाइन प्रार्थना पत्र प्राप्त करने के लिए नियुक्त किया जाता है। इसकी सूचना कंपनी को भेजता है।
5.स्वत्व निर्गमन – इस विधि का प्रयोग वह पुरानी कंपनी करती है जिसने पहले अंश निर्गमित कर रखे हों। जब कोई पुरानी कंपनी नए अंश निर्गमित करती है तो नए अंश बेचने के लिए पहले पुराने अंशधारियों को आमंत्रित करना होता है। इस निर्गमन को स्वत्व निर्गमन कहते हैं।
प्रश्न 25.
अंश विपणि पर सौदा करने की विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिभूतियों के क्रय एवं विक्रय की कार्यविधि इस प्रकार है
(1) दलाल का चुनाव-कोई भी व्यक्ति जो प्रतिभूतियाँ खरीदना अथवा बेचना चाहता है, उसे एक दलाल को चुनना होता है जो स्टॉक एक्सचेंज का सदस्य होता है। प्रतिभूतियाँ केवल दलालों के माध्यम से क्रय-विक्रय किया जाता है। ये दलाल व्यक्ति, साझेदारी फर्मे अथवा निगमित संस्थाएँ व कंपनियाँ हो सकती हैं। पहले दलाल स्वयं स्टॉक एक्सचेंज के स्वामी या प्रबंधक होते थे जिससे दलाल व ग्राहकों के बीच टकराव होता रहता था। लेकिन अब स्टॉक एक्सचेंज में सदस्यों के स्वामित्व अधिकारों को सौदा करने के अधिकारों से पृथक कर दिया गया है।
(2) डिपॉजिटरी के पास डीमेट खाता खोलना-आजकल प्रतिभूतियों में होने वाले सभी व्यवहार ऑनलाइन होते हैं। इसे संभव बनाने के लिए एक डीमेट खाते का खोला जाना ज़रूरी है। डीमेट खाता डिपॉजिटरी सेवा के एक पक्षकार डिपॉजिटरी पार्टिसिपेंट के माध्यम से खोला जाता है। इस समय भारत में डिपॉजिटरी संस्थान दो हैं, जो निम्नलिखित हैं
- National Securities Depository Limited (NSDL)
- Central Depository services Limited (CDSL)
(3) आदेश देना-दलाल का चयन करने के बाद व्यक्ति उसे प्रतिभूतियों के क्रय अथवा विक्रय के लिए आदेश दे सकता है। आदेश देने से पहले वह अपने मित्रों (दलाल) से सलाह कर सकता है। दलाल को व्यक्तिगत रूप से या टेलीफोन, ई-मेल इत्यादि के माध्यम से भी आदेश दिया जा सकता है। आदेश देते समय विनियोगकर्ता क्रय या विक्रय की जाने वाली प्रतिभूतियों का विस्तृत विवरण देता है तथा बताता है कि सौदा किस मूल्य तक किया जाना है। साथ में प्रतिभूतियों के मूल्य तथा संख्या का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए। उदाहरण के लिए, “रिलायंस के 100 समता अंश ₹ 250 पर खरीदो।”
(4) आदेश पूरा करना-आदेश प्राप्त करने के पश्चात् दलाल उसे अपनी डायरी में नोट कर लेगा जहाँ से यह आदेश पुस्तिका में हस्तांतरित किया जाएगा। इसके तुरंत बाद दलाल निवेशक के पास सूचना भेजने के लिए प्रसंविदा नोट तैयार करता है। प्रसंविदा नोट में क्रय-विक्रय की गई प्रतिभूतियों का नाम, संख्या व मूल्य लिखा जाता है। यह दलाल द्वारा हस्तांतरित किया जाता है तथा ग्राहक के पास सौदे के प्रमाण के रूप में रहता है।
(5) निबटारा-दलालों द्वारा अपने ग्राहकों की तरफ से किए जाने वाले सौदों का यह अंतिम चरण है। निपटारे की विधि सौदों की प्रकृति पर निर्भर करती है। निबटारा दो प्रकार के हो सकते हैं-
- मौके पर निबटारा
- अग्रिम निबटारा।
प्रश्न 26.
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के कोई पाँच रक्षात्मक कार्य बताइए।
उत्तर:
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड के रक्षात्मक कार्य
(1) प्रतिभूति बाजार से संबंधित धोखा-धड़ी तथा अनुचित व्यवहारों (उदाहरण के लिए निवेशकों को धोखा देने के लिए मिथ्या विवरण जारी करना) को रोकना।
(2) आंतरिक व्यापार पर रोक लगाना। कंपनी में कुछ व्यक्ति (जैसे-संचालक तथा प्रवर्तक) ऐसे होते हैं जो कंपनी से निकटतम रूप से जुड़े होते हैं एवं जिन्हें कंपनी की आंतरिक स्थिति का पता होता है। अपनी इस स्थिति का लाभ उठाकर कंपनी की प्रतिभूतियों में क्रय-विक्रय करते हैं और भारी मात्रा में लाभ कमाते हैं।
(3) प्रतिभूति बाजार से संबंधित आचार संहिता लागू करना।
(4) SEBI निवेशकों को शिक्षित करने के लिए कई उपाय करता है ताकि वे विभिन्न कंपनियों की प्रतिभूतियों का मूल्यांकन करने योग्य हों और अधिक लाभप्रद प्रतिभूति का चयन करें।
(5) प्रतिभूतियों में आंतरिक ट्रेडिंग को रोकना (आंतरिक ट्रेडिंग का आशय कंपनी की गुप्त जानकारी रखने वाले व्यक्तियों द्वारा गुप्त सूचनाओं का लाभ उठाने के लिए प्रतिभूतियों का कम क्रय-विक्रय करना है
प्रश्न 27.
विभिन्न द्रव्य बाजार प्रपत्रों की व्याख्या कीजिए
उत्तर:
द्रव्य बाजार के प्रमुख प्रपत्र निम्नलिखित हैं
1. खजाना बिल – खजाना बिलों (Treasury Bill) को रिजर्व बैंक द्वारा भारत सरकार की ओर से अल्प अवधि की देयता के रूप में निर्गमित किया जा सकता है। इन्हें बैंक एवं जनसाधारण में बेचा जा सकता है। इसकी अवधि एक वर्ष से अधिक नहीं हो सकती। इसका निर्गमन RBI के द्वारा सरकार की ओर से किया जाता है। सामान्यतः इसकी अवधि 14 दिन, 91 दिन, 182 दिन एवं 364 दिन की होती है।
2. वाणिज्यिक पत्र – वाणिज्यिक पेपर एक गैर-जमानती प्रतिज्ञा पत्र है जिसे निगम एक निश्चित अवधि, जो 12 महीने तक की होती है, के लिए जारी करता है। क्योंकि ये गैर-जमानती होते हैं अत: इसे केवल उच्च साख फर्मों के द्वारा ही निर्गमित किया जाता है। यह अल्पकालीन असुरक्षित प्रतिज्ञा पत्र होते हैं। इससे प्रायः कार्यशील पूँजी के लिए ही राशि प्राप्त की जाती है।
3. माँग मुद्रा – अधिकांश बैंकों के दिन-प्रतिदिन के आधिक्य कोषों का मुद्रा के रूप में व्यापार होता है। ऋण प्राप्तकर्ता वे बैंक होते हैं जिनके पास नगद की अस्थायी कमी होती है। इसका कारण संचय की आवश्यकता एवं कोषों की आकस्मिक माँग है।
4. जमा प्रमाण पत्र – यह सावधि जमा है जिसे गौण बाजार में बेचा जा सकता है। केवल एक बैंक ही जमा प्रमाण पत्र जारी कर सकता है। यह एक वाहक पत्र या आगाम दस्तावेज होता है। यह भी एक विनिमय साध्य विलेख है और आसानी से हस्तांतरित किया जा सकता है।
5. वाणिज्यिक बिल – वाणिज्यिक बिल एक व्यावसायिक फर्म द्वारा दूसरी फर्म पर लिखा जाने वाला बिल होता है। ये उधार क्रय और विक्रय में प्रयोग किये जाने वाले सामान्य उपकरण होते हैं इनकी परिपक्वता अवधि छोटी होती है सामान्यतया 90 दिन और परिपक्वता अवधि से पहले इन्हें बैंक में भुनाया जा सकता है।
प्रश्न 28.
प्राथमिक बाजार में फ्लोटेशन (अस्थिर पूँजी) की क्या विधियाँ हैं ?
उत्तर:
प्राथमिक बाजार में अस्थिर पूँजी की निम्नलिखित विधियाँ हैं
1. प्रविवरण पत्रों के माध्यम से सार्वजनिक निर्गमन-इस विधि के अंतर्गत कंपनी, साधारण जनता को सूचित और आकर्षित करने के लिए प्रविवरण जारी करती है। प्रविवरण में कंपनी उस उद्देश्य के बारे में विवरण देती है जिसके लिए कोष प्राप्त किये जाते हैं, कंपनी के पिछले वित्तीय निष्पादन,कंपनी की पृष्ठभूमि और भावी प्रत्याशाओं के बारे में भी विवरण प्रदान करती है।
2. बिक्री की प्रस्तावना – इस विधि के अंतर्गत साधारण जनता को नई प्रतिभूतियाँ प्रस्तावित की जाती हैं परंतु प्रत्यक्ष रूप से कंपनी द्वारा नहीं बल्कि बिचौलिए द्वारा जो कंपनी से प्रतिभूतियों का सारा समूह खरीदता है, इसीलिए प्रतिभूतियों की बिक्री दो चरणों में होती है-पहला चरण जब कंपनी अंकित मूल्य पर बिचौलिए को प्रतिभूतियाँ निर्गमित करती है और दूसरा – चरण जब लाभ कमाने के लिए बिचौलिए साधारण जनता को उच्च कीमत पर प्रतिभूतियाँ निर्गमित करते हैं।
3. निजी व्यवस्था – इस विधि के अंतर्गत कंपनी द्वारा बिचौलिए को एक निश्चित कीमत पर प्रतिभूतियाँ बेची जाती हैं और दूसरे चिरण में बिचौलिए इन प्रतिभूतियों को साधारण जनता को नहीं बेचते अपितु उच्च कीमत पर चुने हुए ग्राहकों को बेचते हैं। निर्गमित करने वाली कंपनी, अपने उद्देश्यों, भावी संभावनाओं के बारे में विवरण देने के लिए प्रविवरण निर्गमित करती है ताकि प्रसिद्ध ग्राहक बिचौलिए से प्रतिभूति क्रय करने को प्राथमिकता दें।
4. अधिकार निर्गमन – यह विद्यमान शेयरधारकों को नए अंशों का निर्गमन है। इसे अधिकार निर्गमन कहा जाता है। क्योंकि यह अंशधारियों का पूर्वक्रय अधिकार होता है कि कंपनी को बाह्य व्यक्तियों को निर्गमन करने से पहले नए अंश इन्हें प्रस्तावित करने चाहिए। प्रत्येक अंशधारक को उसके द्वारा धारित मौजूदा शेयरों के अनुपात में अतिरिक्त शेयर खरीदने का अधिकार होता है कि कंपनी को बाह्य व्यक्तियों को निर्गमन करने से पहले नए अंश इन्हें प्रस्तावित करने चाहिए।
5. ईप्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्तावना – यह स्टॉक एक्सचेंज/शेयर बाजार की प्रतिभूतियों को आनॅलाइन पद्धति द्वारा निर्गमित करने की नई विधि है। इसमें कंपनी को आवेदनों को स्वीकार करने और ऑर्डर देने के प्रयोजन के लिए पंजीकृत दलालों को नियुक्त करना पड़ता है।
प्रश्न 29.
भारत में पूंजी बाजार के सुधार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में पूंजी बाजार में सुधार-भारत में पूंजी बाजार में निम्नलिखित सुधार किए गये हैं
(i) पूँजी बाजार में निगमों के स्कन्ध, अंश व ऋणपत्रों (Stock, Share and Debentures) तथा सरकारी बॉण्ड, प्रतिभूतियों आदि में लेनदेन करता है।
(ii) पूँजी बाजार में कार्य करने वाले व्यक्तियों, व्यापारिक बैंक, वाणिज्यिक बैंक, बीमा कम्पनियाँ, विभिन्न औद्योगिक बैंक, औद्योगिक वित्त निगम, यूनिट ट्रस्ट, निवेश ट्रस्ट लीजिंग वित्त, भवन समितियाँ आदि प्रमुख होते हैं।
(iii) कुछ संस्थाएं ऐसी हैं जो प्रत्यक्षतः ऋण प्रदान नहीं करते हैं किन्तु ऋण प्रदान करने में महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करती हैं। जिनमें अंशों व ऋणपत्रों के अभिगोपक (Underwriter) महत्वपूर्ण होते हैं। इन अभिगोपकों को ‘हामीदार’ (Underwriter) भी कहा जाता है।
(iv) सम्पूर्ण पूँजी का लेनदेन या क्रय – विक्रय स्कन्ध विपणि (Stock Exchange) के माध्यम से किया जाता है इसलिये इन बाजारों को स्कन्ध बाजार भी कहा जाता है। स्कन्ध बाजार में अंश, ऋणपत्र, बॉण्ड्स, प्रतिभूतियाँ आदि का लेनदेन होता है।
(v) स्कन्ध विपणि में नई एवं पुरानी सभी प्रकार की प्रतिभूतियों का क्रय – विक्रय होता है।
(vi) पूँजी बाजार में लेनदेन सामान्यतः दलालों के माध्यम से ही किया जाता है क्योंकि पूँजी बाजार के स्वभाव से ये अच्छी तरह परिचित रहते हैं।
इस प्रकार पूँजी बाजार में स्कन्ध विपणि के माध्यम से नई पूँजी प्राप्त करने के लिये विभिन्न उपाय किये जाते हैं । पूँजी बाजार के द्वारा दीर्घकालीन व मध्यकालीन वित्त (पूँजी) की व्यवस्था की जाती है वर्तमान में पूँजी प्राप्त करने के लिये अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यवस्था प्रारम्भ हो चुकी है।
प्रश्न 30.
सेबी (SEBI) के प्रकार्यों एवं उददेश्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सेबी के कार्य (Functions of ‘SEBI’) सेबी के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
- प्रतिभूति बाजार (Security market) में विनियोजकों के हितों की रक्षा करना तथा प्रतिभूति बाजार को उचित ढंग से विकसित कर उसे नियमित करना।
- स्कन्ध विपणि तथा अन्य प्रतिभूति बाजार के व्यवसाय का नियमन करना।
- स्कन्ध दलाल (Stock brokers), अंश हस्तान्तरण एजेण्ट (Share transfer agent), प्रन्यासी (Trustees), मर्चेण्ट बैंकर्स, अभिगोपक पोर्टफोलियो मैनेजर, सब-ब्रोकर्स आदि के कार्यों को देखना, उनका पंजीयन करना व उसका नियमन करना।
- म्यूचुअल फन्ड सहित समस्त सामूहिक निवेश की योजना को विधिवार पंजीकृत कर उसका नियमन करना।
- स्वयं नियमित संगठनों का नियमन व नियन्त्रण करना। . 6. प्रतिभूतियों का अनियमित व अनुचित व्यापार व्यवहार पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगाना।
- प्रतिभूति से सम्बन्धित व्यक्तियों के लिये आवश्यक प्रशिक्षण की व्यवस्था करना।
- निवेशकों के लिये आवश्यक शिक्षा की व्यवस्था करना।
- प्रतिभूतियों के अन्दरुनी व्यापार पर रोक लगाना।।
- प्रतिभूति बाजार से सम्बन्धित आवश्यक शोध करना।
प्रश्न 31.
प्राथमिक बाजार एवं द्वितीयक बाजार में अंतर बताइए।
उत्तर:
प्राथमिक बाजार एवं द्वितीयक बाजार में अंतर –
प्रश्न 32.
पूँजी बाजार के महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
पूँजी बाजार राष्ट्रीय पूँजी निर्माण तथा विकास में सहायक करता है । पूँजी बाजार के महत्व को हम निम्नांकित ढंग से स्पष्ट कर सकते हैं
- पूँजी बाजार पूँजी निवेशकों एवं बचत धारियों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बचतकर्ता निधि के स्रोत व ऋणदाता होते हैं तथा निवेशक निधि के ऋणी होते हैं । इन दोनों के मध्य पूँजी बाजार एक कड़ी का कार्य करता है।
- अपनी समस्त आय खर्च न करने वाले बचतकर्ताओं के लिए विनियोग करने का सरल साधन पूँजी बाजार होता है।
- आम जनता की छोटी-छोटी बचतों के लाभकारी विनियोग के लिए पूँजी बाजार एक अच्छा क्षेत्र प्रदान करता है।
- इसी प्रकार कम दर पर अधिक समय के लिए पूँजी प्राप्त करने का एक अच्छा मार्ग पूँजी बाजार होता है।
- पूँजी बाजार में माँग व पूर्ति के मध्य सन्तुलन बनाये रखने का कार्य पूँजी बाजार अपने उपकरणों के माध्यम से करता है।
प्रश्न 33.
पूँजी बाजार और मुद्रा बाजार में निम्नलिखित आधारों पर अंतर्भेद कीजिए
- प्रतिभागी
- व्यापारिक साख
- प्रतिभूतियों की व्यापारिक अवधि
- अपेक्षित प्रतिफल
- सुरक्षा।
उत्तर:
पूँजी बाजार और मुद्रा बाजार में अंतर –
प्रश्न 34.
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया (NSEI) तथा ओवर दि काउंटर एक्सचेंज ऑफ इंडिया (OTCET) में निम्नलिखित आधारों पर अंतर्भेद कीजिए
- स्थापना वर्ष
- चुकता पूँजी
- व्यापारित प्रतिभूतियाँ
- निपटान की अवधि
- उद्देश्य।
उत्तर:
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इंडिया तथा ओवर दि काउंटर एक्सचेंज ऑफ इंडिया में अंतर –