MP Board Class 12th Special Hindi काव्य-बोध छन्द
छन्द दो प्रकार के होते हैं :
- मात्रिक छन्द,
- वर्णिक छन्द।
(1) मात्रिक छन्द-पहले प्रकार के छन्द में मात्राएँ गिनी जाती हैं जिन्हें मात्रिक छन्द कहते हैं। इसमें इस प्रकार की मात्राएँ होती हैं
लघु मात्रा – ।
गुरु मात्रा – ऽ
लघु मात्रा को गिनते समय 1 और गुरु मात्रा को 2 माना जाता है। अब लघु और दीर्घ किसे कहेंगे। वह समझ लें।
“सानुस्वारश्च दीर्घश्च विसर्गी च गुरुर्भवेत्, वर्ण: संयोग पूर्वाश्च पादान्त गोऽपि वा।”
तात्पर्य यह कि बिना मात्रा या छोटी (ह्रस्व) मात्रा के अक्षर को लघु मानेंगे तथा अनुस्वार वाले, विसर्ग वाले, दीर्घ मात्रा वाले, संयुक्त अक्षर के पहले का अक्षर तथा कभी-कभी अन्तिम चरण का अन्तिम अभार ‘गुरु’ ऽ मात्रा वाला कहलाता है।
जैसे-
।।। ऽ।। ऽ।
कमल यह 3 मात्रा मानेंगे। चंचल यह 4 मात्रा होगी। दुःख यह भी विसर्ग के कारण
ऽऽऽ
दो अक्षर होने पर 3 मात्रा गिनेंगे। सम्पत्ति = छ: मात्रा होंगी, क्योंकि स पर मात्रा नहीं है फिर भी आगे संयुक्त अभार होने से सऽ गुरु माना जायेगा।
(2) वर्णिक छन्द-वर्णिक छन्द में मात्रा तो वैसे ही गिनते हैं, किन्तु इसमें गण होते हैं। इसे आप इस सूत्र से याद रख सकते हैं :
- ‘यमाताराजभानसलगा।
- प्रत्येक गण तीन अक्षर होता है।
- यगण (यमाता) ।ऽऽ
- मगण (मातारा) ऽऽऽ
- तगण (ताराज) ऽऽ।
- रगण (राजभा) ऽ।ऽ
- जगण (जभान) ।ऽ।
- भगण (भानस) ऽ।।
- नगण (नसल)।।।
- सगण (सलगा)।।ऽ
और अन्त में ल= लघु के लिए एवं गा (गुरु के लिए) प्रयुक्त है।
1. कवित्त [2009, 16]
इसके अनेक रूप हैं। कवित्त या मनहरण के प्रत्येक चरण में इकत्तीस वर्ण होते हैं,सोलह और पन्द्रह वर्गों पर विराम होता है। चरण के अन्त में गुरु रहता है।
उदाहरण-
झहरि-झहरि झीनी बूंद हैं परति मानो,
घहरि-घहरि घटा घेरी है गगन में।
आनि कयौं स्याम मोसों चलौ झूलिबे को आज,
फूलि न समानी भई, ऐसी हौं मगन में।
चाहति उद्योई उठि गयी सो निगोड़ी नींद,
सोय गए भाग मेरे जागि वा जगन में।
ऑखि खोल देखौ तौ न घन हैं न घनस्याम,
वेई छाई बूंदें मेरे आँसू है दृगन में।
2. सवैया [2009]
सवैया गण छन्द है। बाइस से लेकर छब्बीस वर्षों तक के वृत्त सवैया कहलाते हैं। इस छन्द के मुख्य भेद मदिरा, चकोर,मत्तगयंद,अरसात, किरीट, दुर्मिल, सुन्दरी, मुक्तहरा आदि 7-8 प्रकार के होते हैं।
यहाँ दुर्मिल सवैया का उदाहरण दिया जा रहा है, जिसके प्रत्येक चरण में आठ सगण होते हैं। इसका दूसरा नाम ‘चन्द्रकला’ भी है।
उदाहरण-
पुर से निकसी रघुवीर-वधू धरि-धीर दये मग में डग द्वै।
झलकी भरि भाल कनी जल की, पुट सूखि गये मधुराधर द्वै।
फिर बूझति हैं चलनौ अब केतकि पर्णकुटी करिहौ कित है।
तिय की लखि आतुरता पिय की अँखियाँ अति चारु चली जल च्वै॥
(1) मत्तगयंद सवैया [2010, 12]
इसके प्रत्येक चरण में सात भगण और दो गुरु होते हैं।
उदाहरण-
या लकुटी अरु कमरिया पर राज तिहुँपुर को तज डारौं।
आठहुँ सिद्धि नवौं निधि को सुख नन्द की गाय चराइ विसारौं।
रसखान कबौं इन आँखिन सौं ब्रज के वन बाग तड़ाग निहारौं।
कौटिक हूँ कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर बारौं।।
(2) दुर्मिल सवैया दुर्मिल सवैया के हर चरण में आठ सगण पाये जाते हैं। वर्ण संख्या 24 मानी गयी है। इसका दूसरा नाम चन्द्रकला भी है।
उदाहरण-
इसके अनुरूप कहैं किसको, वह कौन सुदेश समुन्नत है।
समझे सुरलोक समान इसे, उनका अनुमान असंगत है।
कवि कोविद वृन्द बखान रहे, सबका अनुभूत यही मत है।
उपमान विहीन रचा विधि ने, बस भारत के सम भारत है।
3. छप्पय [2009]
छप्पय छन्द रोला और उल्लाला छन्दों के मिलने से बनता है। प्रथम चार चरण रोला छन्द के और शेष दो चरण उल्लाला छन्द के होते हैं। इस प्रकार,प्रथम चार चरणों में 24-24 मात्रायें होती हैं और 11-13 पर यति होती है। अन्तिम दोनों चरणों में 28-28 मात्रायें होती हैं और 15-13 पर यति होती है।
उदाहरण-
(1) सर्वभूत हित महामन्त्र का सबल प्रचारक।
सदय हृदय से एक-एक जन का उपकारक।
सत्यभाव से विश्व-बन्धुता का अनुरागी।
सकल सिद्धि सर्वस्व सर्वगत सच्चा त्यागी।
उसकी विचारधारा धरा के धर्मों में है वही। उल्लाला
सब सार्वभौम सिद्धान्त का आदि प्रवर्तक है वही॥
(2) नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है,
सूर्य-चन्द्र युग-मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
नदियाँ प्रेम-प्रवाह, फूल तारे मण्डप है,
बन्दीजन खग-वृन्दृ शेष फन सिंहासन है।
करते अभिषेक पयोद हैं, बलिहारी इस देश की,
हे मातृभूमि ! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की।
(3) निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है,
शीतल मन्द सुगन्ध पवन हर लेता श्रम है।
षट ऋतुओं का विविध दृश्ययुत अद्भुत क्रम है,
हरियाली का फर्श नहीं मखमल से कम है।
शुचि सुधा सींचता रात में, तुझ पर चन्द्रप्रकाश,
हे मातृभूमि दिन में परणि करता तम का नाश।