MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 10 विविधा

MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions पद्य Chapter 10 विविधा

विविधा अभ्यास

बोध प्रश्न

विविधा अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘झोंपड़ी में ही हमारा देश बसता है’ से क्या आशय है?
उत्तर:
इस पंक्ति का आशय यह है कि जबकि संसार के अन्य देशों ने बहुत उन्नति कर ली है, हमारे देश की अधिकांश जनता आज भी झोंपड़ों में निवास करती है।

प्रश्न 2.
कवि ने वासना को साँप क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि ने वासना को साँप इसलिए कहा है क्योंकि जैसे साँप हर किसी को डस लेता है उसी तरह वासना भी हर किसी को डस लेती है।

प्रश्न 3.
कवि को घर की यादें क्यों आ रही हैं?
उत्तर:
जेल में होने के कारण बरसात की ऋतु में कवि को अपने घर की याद आ रही है।

प्रश्न 4.
कवि घर पर किसके द्वारा संदेश भेजना चाहता हैं?
उत्तर:
कवि घर पर बरसात के बादलों द्वारा अपना संदेश भेजना चाहता है।

प्रश्न 5.
‘दीनता की उपासना’ से क्या आशय है?
उत्तर:
दया भाव दिखलाते हुए मालिक के समक्ष भोजन इत्यादि हेतु स्वाभिमान रहित चापलूसी करना।

प्रश्न 6.
स्वामी के पीछे-पीछे कौन पूँछ हिलाता है?
उत्तर:
अपने भोजन इत्यादि की लालसा में स्वामी के पीछे-पीछे श्वान (कुत्ता) पूँछ हिलाता फिरता है।

प्रश्न 7.
पिंजड़े में किसे बंद रखा जाता है?
उत्तर:
जंगल के राजा सिंह (शेर) को पकड़े जाने पर पिंजड़े के अंदर बंद रखा जाता है।

प्रश्न 8.
बँधी हुई जंजीर किसके गले में आभरण का रूप धारण करती है?
उत्तर:
स्वाभिमान रहित कायरतापूर्ण आचरण करने वाले और पराधीनता में भी प्रसन्नता का अनुभव करने वाले श्वान (कुत्ता) को गले में बाँधी जंजीर की चुभन का अनुभव नहीं होता। अपितु वह उसे आभरण (आभूषण) समझ कर प्रसन्नतापूर्वक धारण करता है।

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विविधा लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने वासना से पहले कौन-कौन से विशेषण प्रयुक्त किये हैं और क्यों?
उत्तर:
कवि ने वासना से पहले लोलुप’, ‘विषैली’ विशेषण प्रयुक्त किये हैं। उसने वासना को लोलुप और विषैली इसलिए कहा है कि क्योंकि गाँव के लोग भोले-भाले हैं। शहर के धूर्त लोग उनका शोषण करने के लिए उन्हें ललचाते हैं।

प्रश्न 2.
‘सभ्यता का भूत और संस्कृति की दुर्दशा’ के विषय में अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
आज शहरों में निवास करने वाले युवाओं पर पश्चिमी सभ्यता का भत सिर चढ़कर बोल रहा है। इस सभ्यता की चकाचौंध में वे अपनी संस्कृति और प्रतिष्ठा को भूल गए हैं। इसके वशीभूत होकर वे भोले-भाले ग्रामीण लोगों एवं बालाओं का शोषण कर रहे हैं।

प्रश्न 3.
कवि ने अपनी माँ की किन विशेषताओं की ओर संकेत किया है?
उत्तर:
कवि ने अपनी माँ की इन विशेषताओं की ओर संकेत किया-उसकी माँ बिना पढ़ी-लिखी है लेकिन उसकी गोद में मैं अपने सब कष्ट भूल जाया करता था, यद्यपि वह लिखना पढ़ना नहीं जानती फिर भी उसे मेरे सुख-दुखों की चिन्ता हमेशा सताये रहती है।

प्रश्न 4.
पिताजी की सक्रियता को कवि ने किस रूप में देखा है?
उत्तर:
पिताजी की सक्रियता को कवि ने इस रूप में देखा है-मेरे पिताजी वृद्ध हैं पर उन पर वृद्धावस्था का कोई प्रभाव नहीं है, वे इस उम्र में भी दौड़ने की, खिलखिलाने की हिम्मत रखते हैं, वे मौत से भी नहीं डरते हैं, और शेर से भी कुश्ती लड़ने को तैयार रहते हैं। उनके बोलने में बादलों जैसी कड़क है तथा काम में वे कभी भी पस्त नहीं होते हैं।

प्रश्न 5.
कवि अपने आपको अपने पिता के सामने किस रूप में रखना चाहता है?
उत्तर:
कवि अपने आपको अपने पिता के सामने इस रूप में प्रस्तुत करना चाहता है कि वह जेल में बहुत मस्त है, खूब भोजन करता है। खूब खेलता-कूदता है, खूब पढ़ता-लिखता है और खूब काम करता है। वह चरखा कातकर सूत निकालता है। वह इतना मस्त है कि उसका वजन 70 किलो हो गया है।

प्रश्न 6.
स्वाधीनता और पराधीनता में क्या अंतर है?
उत्तर:
स्वाधीनता का अर्थ है स्वतंत्रता, अर्थात् स्वयं पर स्वयं का ही शासन-अनुशासन जबकि पराधीनता अर्थात् परतंत्रता से आशय है दूसरों के अधीन होना। स्वाधीनता की स्थिति में आप पर, स्वयं का ही नियंत्रण होता है। आप किसी के गुलाम नहीं होते जबकि पराधीनता आपको दूसरों के इशारों पर नाचे जाने को विवश करती है।

प्रश्न 7.
शेर पिंजड़े में बंद रहते हुए भी स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा कैसे करता है?
उत्तर:
शेर जंगल का राजा कहलाता है। उसे स्वयं पर किसी और का नियंत्रण स्वीकार नहीं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता पर आँच नहीं आने देता। यदि परिस्थितिवश उसे पिंजड़े में रहने के लिए विवश होना पड़े तब भी वह श्वान की तरह अपने मालिक के पीछे-पीछे दुम घुमाने की बजाए अपनी पूँछ स्वाभिमान से खड़ी-तनी रखता है। साथ ही शेर अपने गले में कभी भी पट्टा या जंजीर भी धारण नहीं करता। इस प्रकार पिंजड़े में बंद होते हुए भी शेर अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा बखूबी करता है।

प्रश्न 8.
श्वान स्वाधीनता का मूल्य नहीं समझता है। कैसे?
उत्तर:
श्वान निजी स्वार्थ के चलते निज-गौरव को तिलांजलि देने में भी संकोच नहीं करता। एक रोटी के लिए वह अपने गले में गुलामी का प्रतीक पट्टा बाँधकर अपने मालिक के पीछे-पीछे दुम हिलाता फिरता है। गले में पट्टे से बँधी जंजीर की चुभन का भी अनुभव नहीं होता। अपितु वह तो उसे गले का आभूषण समझकर सहर्ष धारण करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि श्वान को निज गौरव एवं स्वाधीनता की तनिक भी चिंता नहीं होती।

प्रश्न 9.
श्वान को कौन-सी बात नहीं चुभती?
उत्तर:
मानसिक गुलामी का प्रतीक पट्टा एवं उससे बँधी जंजीर श्वान को खूब सुहाती है। बल्कि वह तो उसे अपना आभूषण समझकर सहर्ष धारण करके अपने मालिक के आगे-पीछे मात्र एक रोटी के लिए दुम हिलाता फिरता है। उसे गले में बँधी जंजीर की चुभन तक का अनुभव नहीं होता। वास्तव में उसे निज स्वाभिमान एवं स्वाधीनता की तनिक भी चिंता नहीं होती।

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विविधा दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“हमारी ग्रामीण संस्कृति को शहरी बुराइयाँ प्रभावित कर रही है” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हमारा देश गाँवों का देश है। यहाँ आज भी सम्पूर्ण देश की 70% जनता निवास करती है। गाँवों में रहने वाले ग्रामीण गरीब एवं अशिक्षित हैं लेकिन वे बहुत भोले-भाले हैं। शहरी धूर्त लोग अपनी लोलुप और विषैली वासनाओं से उनका शिकार करते हैं। वे गरीबों का शोषण करते हैं तथा उनकी युवा कन्याओं को वासना के जाल में फंसा लेते हैं। इस प्रकार शहरी बुराइयाँ ग्रामीण संस्कृति का शोषण कर उन पर अपना प्रभुत्व जमाने का प्रयास कर रही है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों की प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
(अ) इन्हीं के मर्म को ………………. साँप डसता है।
उत्तर:
कविवर अज्ञेय कहते हैं कि ये ग्रामीण अत्यन्त भोले-भाले एवं सीधे सच्चे हैं। नगर के धूर्त एवं मक्कार लोग इन्हें अपने भोग-विलास का शिकार बनाते रहते हैं। इन ग्रामों में बसने वाली निर्धन कन्याओं पर ये धूर्त लोग अपनी वासना भरी दृष्टि डालते हैं और फिर इनका शोषण करते हैं।

(ब) इन्हीं में लहराती ………….. भूत हँसता है।
उत्तर:
कविवर कहते हैं कि शहर के तथाकथित संभ्रान्त व्यक्ति ही इन ग्रामीण अल्हड़ बालिकाओं पर कुदृष्टि डालते हैं तथा इन्हीं को अपनी वासना का शिकार बनाते हैं साथ ही उनकी दुर्दशा पर शहरी सभ्यता का भूत ठहाके लगाता है।

(स) पाँव जो पीछे …………….. बच्चे।
उत्तर:
कविवर मिश्र कहते हैं कि स्वतन्त्रता के आन्दोलन में उसने अपने पिता की इच्छा से ही भाग लिया था लेकिन फिर भी माता-पिता के प्यार को स्मरण कर वे बेचैन हो उठते हैं और कहते हैं कि मेरी माँ मेरे बारे में रोज सोचती होगी कि मुझे जेल में बहुत कष्ट भोगने पड़ रहे होंगे। वह अपनी आँखों में आँसओं को उमड़ा रही होगी लेकिन फिर वह यह कहकर सन्तोष कर लेती थी कि मेरा पाँचवाँ पुत्र भवानी जेल में आराम से रह रहा होगा।

उस समय वह मेरे पिताजी से कह रही होगी कि तुम क्यों रो रहे हो, भवानी जेल में अच्छी तरह रहा होगा। वह तुम्हारी इच्छा जानकर और देश से अपनेपन की भावना होने के कारण ही तो जेल में गया है। उसका यह काम अच्छा है क्योंकि देश के लिए स्वयं को न्यौछावर कर देने की परम्परा तो तुम्हारी ही है। अतः उसने अच्छा किया जो वह देश की खातिर जेल चला गया। यदि वह जेल जाने से अपने पाँव पीछे खींचता तो निश्चय ही वह मेरी कोख को लजाता। जेल जाकर उसने मेरी कोख की लाज रख ली है। अतः तुम अपना दिल कमजोर मत करो। यदि तुम अपना दिल कमजोर करोगे तो दूसरे बच्चे भी रोना आरम्भ कर देंगे।

प्रश्न 3.
‘हमारा देश’ कविता के काव्य सौन्दर्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘हमारा देश’ कविता में कवि ने भारतीय ग्रामीण संस्कृति का चित्रण किया है। आज भी गाँव के अधिकांश लोग निर्धन और अशिक्षित हैं वे घास-फूस से बने झोंपड़ों में रहते हैं।

वे अपना मनोरंजन देशी वाद्य यंत्रों-ढोल, मृदंग और बाँसुरी से करते हैं। वे भोले-भाले एवं निष्पाप हैं। वे शहरी चकाचौंध से पूरी तरह बेखबर हैं। शहर के धूर्त व्यक्ति इनके मर्म को अपनी लोलुप और विषैली वासना से साँप की तरह डस लेते हैं। इतना ही नहीं ये शहरी साँप ग्रामीण अल्हड़ एवं मासूम युवा कन्याओं से अपनी वासना पूर्ति करते रहते हैं। उनकी दुर्दशा पर आधुनिक सभ्यता रूपी भूत अट्टहास किया करता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कवि ने अपनी व्यंग्य शैली द्वारा ग्रामीण संस्कृति का शहरी संस्कृति द्वारा किये जा रहे शोषण को उजागर किया है।

प्रश्न 4.
शेर स्वाभिमानी और श्वान दीनता और पराधीनता स्वभाव का होता है। इसे आप कैसे सिद्ध करेंगे?
उत्तर:
शेर जंगल का राजा कहलाता है। उसे स्वयं पर किसी और का नियंत्रण स्वीकार नहीं। प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता पर आँच नहीं आने देता। यदि परिस्थितिवश उसे पिंजड़े में रहने के लिए विवश होना पड़े तब भी वह श्वान की तरह अपने मालिक के पीछे-पीछे दुम घुमाने की बजाए अपनी पूँछ स्वाभिमान से खड़ी-तनी रखता है। साथ ही शेर अपने गले में कभी भी पट्टा या जंजीर भी धारण नहीं करता। इस प्रकार पिंजड़े में बंद होते हुए भी शेर अपने स्वाभिमान और स्वतंत्रता की रक्षा बखूबी करता है।

श्वान निजी स्वार्थ के चलते निज-गौरव को तिलांजलि देने में भी संकोच नहीं करता। एक रोटी के लिए वह अपने गले में गुलामी का प्रतीक पट्टा बाँधकर अपने मालिक के पीछे-पीछे दुम हिलाता फिरता है। गले में पट्टे से बँधी जंजीर की चुभन का भी अनुभव नहीं होता। अपितु वह तो उसे गले का आभूषण समझकर सहर्ष धारण करता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि श्वान को निज गौरव एवं स्वाधीनता की तनिक भी चिंता नहीं होती।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों की प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए-
(अ) बंधन को प्राप्त हुआ सिंह
पिंजड़े में भी
बिना पट्टा ही घूमता रहता है
उस समय उसकी पूँछ
ऊपर ही तनी रहती है
अपनी स्वतंत्रता स्वाभिमान को
कभी किसी भाँति आँच नहीं आने देता, वह
उत्तर:
‘विविधा’ के शीर्षक ‘स्वाभिमान’ के पद्यांशों के उत्तर देखें।

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विविधा काव्य-सौंदर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
सोने में सुहागा होना, कोख लजाना, आँच न आने देना, पीछे-पीछे पूँछ हिलाना।
उत्तर:
(1) सोने में सुहागा होना- (अच्छी वस्तु का और अच्छा हो जाना)।
वाक्य प्रयोग-कार मिली वह भी नई। यह तो सोने में सुहागा वाली बात हो गई।

(2) कोख लजाना-(नीचा दिखाना)
वाक्य प्रयोग-देश के गद्दार कुछ कागज़ी रुपयों के लालच में माँ भारती की कोख लजाने में संलग्न हैं।

(3) आँच न आने देना-(नुकसान न होने देना)
वाक्य प्रयोग-जो ईश्वर पर विश्वास रखते हैं, ईश्वर कभी उन पर आँच नहीं आने देते।

(4) पीछे-पीछे पूँछ हिलाना-(चापलूसी करना)
वाक्य प्रयोग-कान के कच्चे अधिकारियों के पीछे-पीछे उनके मातहत पूँछ हिलाते रहते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के तत्सम रूप लिखिएसाँप, माँ, पिता, घर, नैन।
उत्तर:
साँप = सर्प, माँ = धात्री, पिता = पितृ, घर = गृह, नैन = चक्षु।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार पहचान कर लिखिए

  1. घर कि घर में चार भाई
  2. चार भाई चार बहिनें
  3. गया है सो ठीक ही है, यह तुम्हारी लीक ही है
  4. स्वामी के पीछे-पीछे पूँछ हिलाना।

उत्तर:

  1. अनुप्रास अलंकार
  2. अनुप्रास अलंकार
  3. रूपक अलंकार
  4. अनुप्रास अलंकार।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पंक्तियों में निहित भाव सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए-
1. पराधीनता-दीनता वह श्वान को चुभती नहीं
2.शहरों की ढंकी लोलुप विषैली वासना का साँप डॅसता
3. पाँव जो पीछे हटाता, कोख को मेरी लजाता
उत्तर:
1. प्रस्तुत पंक्ति में कवि श्वान (कुत्ता) का उदहारण प्रस्तुत करते हुए कहता है कि श्वान याचना-परतंत्रता का प्रतीक है। वह एक रोटी के लिए अपने मालिक के आगे-पीछे दुम हिलाता फिरता है। उसे गले में दासता का पट्टा पहनने में भी कष्ट नहीं होता है और न ही पट्टे में बँधी जंजीर की चुभन का अनुभव ही वह कर पाता है।

2. कवि के अनुसार शहरों के रहने वाले लोग बड़े लालची हैं। इन शहरियों की सभ्यता पर पर्दा पड़ा हुआ है, उसमें बनावटीपन है। ये शहर के रहने वाले लोग अत्यन्त विषैले साँप की तरह अपनी कामनाओं के वशीभूत हैं और ग्रामीण बालाओं को अपनी कामनाओं के विष का शिकार बनाते रहते हैं। वे धोखा खा जाती हैं क्योंकि इन शहरवालों की सभ्यता हुँकी हुई है, जिनके भेद का आभास उन्हें नहीं हो पाता।

3. प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने अपनी माता द्वारा चिंतित पिता को समझाने का काल्पनिक दृश्य अंकित किया है। माँ ने पिता को दिलासा देते कहा होगा कि हमारा बेटा अपने कर्त्तव्य-पथ से पीछे हटकर भारत माँ की स्वतंत्रता के आन्दोलन में भाग न लेता अर्थात् अपने पाँव पीछे खींच लेता तो इससे मेरी कोख ही लज्जित होती। सभी मेरे लिए सोचते कि कैसी माता है कि जिसने ऐसे कुपुत्र को अपनी कोख से जन्म दिया जो अपनी मातृभूमि के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह नहीं कर सका।

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हमारा देश संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

इन्हीं तृण-फूल छप्पर से
ढके ढुलमुल गँवारू
झोंपड़ों में ही हमारा देश
बसता है। ॥1॥

कठिन शब्दार्थ :
तृण = घास-फूस; ढुलमुल = बेडौल; गँवारू = गाँव के रहने वाले, असभ्य।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के विविधा पाठ के अन्तर्गत ‘हमारा देश’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि स. ही. वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ है।

प्रसंग :
इस अंश में कवि ने ग्रामीण एवं निर्धन गाँवों की दशा का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कविवर अज्ञेय भारतीय ग्रामीण जीवन की दरिद्रता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि आज भी हमारे देश का अधिकांश भाग घास-फूस के छप्परों वाली झोंपड़ियों में निवास करता है। वे आज भी अशिक्षित एवं असभ्य हैं। इन्हीं में हमारा देश बसता है।

विशेष :

  1. भारत के गाँवों की आज भी जो दुर्दशा है, उसका वर्णन किया है।
  2. ढले ढुलमुल में अनुप्रास अलंकार।
  3. भाषा भावानुकूल खड़ी बोली है।।

इन्हीं के ढोल-मादल बाँसुरी के
उमगते सुर में
हमारी साधना का रस
बरसता है। ॥2॥

कठिन शब्दार्थ :
मादल = मृदंग; उमगते = उमंग और उत्साह भरने वाले; सुर = स्वर।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि ने यहाँ बताया है कि इन ग्रामीण लोगों के मनोरंजन के साधन आज भी वही पुराने वाद्य यंत्र हैं।

व्याख्या :
कविवर अज्ञेय कहते हैं कि इन ग्रामीण जनों के मनोरंजन के साधन आज भी वही पुराने वाद्य यंत्र-ढोल, मृदंग एवं बाँसुरी हैं। इनके उमंग और उत्साह से पूर्ण स्वर आज भी इस बात का प्रमाण दे रहे हैं कि निर्धन भारतीय अभावों में भी किस उमंग से जीवन जीता है। इन बाजों से आनन्द के रस की वर्षा होती है।

विशेष :

  1. भारतीय ग्रामीण जीवन की उमंग दशा का वर्णन किया है।
  2. भाषा भावानुकूल खड़ी बोली है।
  3. अभावों में भी भारतीय ग्रामीणों में गजब का उत्साह देखा जाता है।

इन्हीं के मर्म को अनजान
शहरों की ढंकी लोलुप विषैली
वासना का साँप
इंसता है। ॥3॥

कठिन शब्दार्थ :
मर्म = हृदय; लोलुप = लालची; विषैली = जहरयुक्त।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अंश में कवि ने स्पष्ट किया है कि शहर के धूर्त एवं मक्कार लोग इन गरीब ग्रामीणों का किस प्रकार शोषण करते हैं।

व्याख्या :
कविवर अज्ञेय कहते हैं कि ये ग्रामीण अत्यन्त भोले-भाले एवं सीधे सच्चे हैं। नगर के धूर्त एवं मक्कार लोग इन्हें अपने भोग-विलास का शिकार बनाते रहते हैं। इन ग्रामों में बसने वाली निर्धन कन्याओं पर ये धूर्त लोग अपनी वासना भरी . दृष्टि डालते हैं और फिर इनका शोषण करते हैं।

विशेष :

  1. यहाँ कवि ने ग्रामीणों की दयनीय दशा का वर्णन किया है।
  2. वासना का साँप में रूपक अलंकार।
  3. भाषा भावानुकूल है।

इन्हीं में लहराती अल्हड़
अयानी संस्कृति की दुर्दशा पर
सभ्यता का भूत
हँसता है। ॥4॥

कठिन शब्दार्थ :
अल्हड़ = मदमस्त जवानी; अयानी = अज्ञानी; भोली-भाली; सभ्यता का भूत = शहर के तथाकथित सुसंस्कृत नागरिक।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अंश में शहरी जीवन के उन सफेदपोशों पर कवि ने व्यंग्य कसा है जो अपनी वासना की हवस गाँव की निर्धन एवं भोली-भाली कन्याओं से जुटाते हैं।

व्याख्या :
कविवर कहते हैं कि शहर के तथाकथित संभ्रान्त व्यक्ति ही इन ग्रामीण अल्हड़ बालिकाओं पर कुदृष्टि डालते हैं तथा इन्हीं को अपनी वासना का शिकार बनाते हैं साथ ही उनकी दुर्दशा पर शहरी सभ्यता का भूत ठहाके लगाता है।

विशेष :

  1. ‘सभ्यता का भूत’ से अभिप्राय पश्चिमी भौतिकवादी सभ्यता से है।
  2. ‘सभ्यता का भूत’ लाक्षणिक प्रयोग है।
  3. भाषा भावानुकूल है।

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घर की याद संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

आज पानी गिर रहा है,
बहुत पानी गिर रहा है, 
रात भर गिरता रहा है, 
प्राण मन घिरता रहा है, 
बहुत पानी गिर रहा है, 
घर नज़र में तिर रहा है, 
घर कि मुझसे दूर है जो, 
घर खुशी का पूर है जो, 
घर कि घर में चार भाई, 
मायके में बहिन आई, 
बहिन आई बाप के घर,
हाय रे परिताप के घर! ॥1॥

कठिन शब्दार्थ :
तिर रहा है= ऊपर तैर रहा है; पुर = पूरा; परिताप = कष्ट, दुःख।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘विविधा’ पाठ के अन्तर्गत ‘घर की याद’ शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता पं. भवानी प्रसाद मिश्र हैं।

प्रसंग :
इस अंश में कवि ने अपने जेल प्रवास में घर से अलग रहने की पीड़ा को बड़े ही प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया है।

व्याख्या :
कविवर मिश्र कहते हैं कि आज पानी बरस रहा है अर्थात् सावन-भादों का समय है। पानी पूरी रात बरसता रहा है। ऐसे में घर की यादें मेरे प्राण एवं मन को घेर रही हैं।

एक ओर पानी बादलों से बरस रहा है तो दूसरी ओर कवि की आँखों में अपने घर की यादें उभर रही हैं। आज उसे लग रहा है कि उसका घर उससे दूर है। वही उसके लिए प्रसन्नता का भरपूर खजाना है।

इसका घर भरा-पूरा है। उसके घर में चार भाई हैं और एक बहिन है। बहिन अभी-अभी ससुराल से अपने मायके में आई है। बहिन तो पिता के घर आ गई किन्तु मेरा तो यह दुर्भाग्य है कि मैं तो अपने घर से बहुत दूर हूँ। मुझे इससे बड़ा कष्ट हो रहा है क्योंकि मैं उन सबके साथ नहीं हूँ।

विशेष :

  1. जेल प्रवास में वर्षा ऋतु के समय अपने घर की याद कवि को बहुत कष्ट दे रही है।
  2. अनुप्रास की छटा।
  3. भाषा सहज, सरल एवं व्यंजनात्मक है।

घर कि घर में सब जुड़े हैं,
सब कि इतने कब जुड़े हैं,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें
आज गीता पाठ करके,
दंड दो सौ साठ करके,
खूब मुगदर हिला-हिला कर,
मूठ उनकी मिला कर,
जब कि नीचे आए होंगे,
नैन जल से छाए होंगे,
हाय, पानी गिर रहा है।
घर नजर में तिर रहा है। ॥2॥

कठिन शब्दार्थ :
दंड = दंड बैठक लगाना, कसरता करना; मुगदर = व्यायाम के लिए प्रयोग की जाने वाली एक भारी युक्ति।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
जेल प्रवास में जब कवि को अपने घर की याद आती है तो वह भावुक हो उठता है, इसी का वर्णन है।

व्याख्या :
कविवर मिश्र कहते हैं कि आज मेरे घर में सब भाई-बहिन इकट्ठे हुए हैं। मेरे चार भाई हैं और चार ही बहिनें हैं। सभी भाई एक-दूसरे की बाहों के समान हैं और बहिनें प्रेम की साकार मूर्ति हैं। लेकिन मुझे दुःख है कि इस अवसर पर मैं उनके साथ नहीं हूँ।

मेरे वे चारों भाई गीता का पाठ करके, दो सौ साठ दंड बैठक लगाकर तथा खूब मुगदर हिला-हिलाकर एवं उनकी मूठे आपस में मिलाकर जब वे नीचे उतर कर आए होंगे तब मुझको अपने साथ न पाकर उनके नेत्रों में भी आँसू छा गये होंगे। हाय! बरसात का पानी गिर रहा है और मेरा घर मेरी नजरों में तैर रहा है।

विशेष :

  1. कवि स्वयं को वहाँ न पाकर दु:ख का अनुभव कर रहा है।
  2. भाइयों की दिनचर्या का वर्णन हुआ है।
  3. भाषा भावानुकूल है।

पाँचवाँ मैं हूँ अभागा,
जिसे सोने पर सुहागा,
और माँ बिन-पढ़ी मेरी,
दुःख में वह गढ़ी मेरी,
माँ कि जिसकी गोद में सिर,
रख लिया तो दु:ख नहीं फिर
माँ कि जिसकी स्नेह-धारा,
का यहाँ तक भी पसारा,
उसे लिखना नहीं आता,
जो कि उसका पत्र पाता। ॥3॥

कठिन शब्दार्थ :
सोने पर सुहागा = मुहावरा है, जिसका अर्थ है और अधिक प्रिय तथा गुणवान; दुःख में गढ़ी = दुःख में डूबी हुई; पसारा = फैलाव।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि अपने भाई-बहिनों का वर्णन करने के पश्चात् इस अंश में अपनी बिना पढ़ी लिखी माँ का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या :
कविवर मिश्र कहते हैं कि मैं अभागा पाँचवाँ भाई हूँ लेकिन परिवार में मेरी चाहना वैसी ही है जैसे कि सोने में सुहागे की होती है। मेरी माँ बिना पढ़ी-लिखी है। मेरे जेल में जाने के कारण वह नित्य प्रति दुःख में डूबी रहती है। मेरी माँ की गोद सुखों का खजाना थी। जब भी मैं उसकी गोद में अपना सिर रख लेता था तब मेरे सब दुःख नष्ट हो जाया करते थे। मेरी माँ की स्नेह की धारा मुझे जेल जीवन में भी सम्बल दे रही है। वह पढ़ी-लिखी नहीं है इसी कारण उसका मेरे जेल के पते पर कोई पत्र नहीं आता है। कवि को इस बात का दुःख है कि अशिक्षित माँ मेरे प्रति जो भावनाएँ रखती है वे मेरे पास खत के माध्यम से नहीं आ पाती हैं। यदि वे शिक्षित होती तो निश्चय ही अपना पत्र भेजा करती।

विशेष :

  1. कवि का माँ से बहुत प्रेम है।
  2. कवि को इस बात का दुःख है कि उसकी माँ बिना पढ़ी-लिखी है अत: वह उसके जेल के पते पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने वाला पत्र भी नहीं भेज सकती है।
  3. भाषा भावानुकूल।

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पिताजी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
जो अभी भी दौड़ जाएँ,
जो अभी भी खिलखिलाएँ,
मौत के आगे न हिचकें,
शेर के आगे न बिचके,
बोल में बादल गरजता,
काम में झंझा लरजता,
चार भाई चार बहिनें,
भुजा भाई प्यार बहिनें,
खेलते या खड़े होंगे,
नजर उनको पड़े होंगे। ॥4॥

कठिन शब्दार्थ :
व्यापा = सताया; झंझा = तेज हवा; बिचके = डरते।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्। प्रसंग-कवि इस अंश में अपने पिताजी के बारे में बताता है।

व्याख्या :
कविवर मिश्र कहते हैं कि यद्यपि मेरे पिताजी वृद्ध हैं पर उनके ऊपर वृद्धावस्था का कोई भी प्रभाव दृष्टिगोचर नहीं होता है। यदि कोई उनसे आज भी कह दे तो वे बिना सोचे-समझे दौड़ लगा देंगे और जब कोई खुशी का वातावरण होता है तो वे बालकों की तरह आज भी खिल-खिलाकर हँसने लग जाते हैं। मेरे पिताजी इतने साहसी हैं कि वे मृत्यु के आगे भी डरते नहीं हैं और यदि उनके सामने शेर भी आ जाए तो वे उससे भयभीत न होकर उससे द्वन्द्व युद्ध करने को तैयार हो जाते हैं। जब भी वे बोलते हैं तो उनकी बोली में बादलों जैसी गुरु गम्भीरता देखने को मिलती है। उनके काम करने में आँधियाँ भी लज्जित होती हैं। कहने का भाव यह है कि जैसे आँधियों का वेग तीव्र होता है वैसे ही तीव्र वेग से वे किसी भी कार्य को सम्पन्न कर डालते हैं। उनमें आलस्य का कहीं कोई नामोनिशान नहीं है।

मेरे घर में चार भाई है और चार बहिनें हैं। भाइयों में परस्पर इतनी समझ एवं प्यार है कि सभी भाई एक-दूसरे को अपनी भुजा मानते हैं और बहिनों से उन्हें असीमित प्यार मिलता है। चाहे तो वे खेल रहे हों या फिर खड़े हों, वे एक-दूसरे को मन से चाहते हैं।

विशेष :

  1. कवि ने अपने पिता के स्वभाव एवं व्यवहार का वर्णन किया है।
  2. चारों भाइयों एवं बहिनों में परस्पर बहुत प्यार था।
  3. भाषा भावानुकूल।

पिताजी जिनको बुढ़ापा,
एक क्षण भी नहीं व्यापा,
रो पड़े होंगे बराबर,
पाँचवें का नाम लेकर,
पिताजी ने कहा होगा,
हाय, कितना सहा होगा,
पिताजी कहते रहे हैं,
प्यार में बहते रहे हैं,
आज उनके स्वर्ण बेटे,
लगे होंगे उन्हें हेटे,
क्योंकि मैं उन पर सुहागा
बँधा बैठा हूँ अभागा। ॥5॥

कठिन शब्दार्थ :
स्वर्ण = सोने जैसे; हेटे = तुच्छ।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अंश में कवि ने अपने पिता की भावनाओं का वर्णन किया है।

व्याख्या :
कविवर मिश्र कहते हैं कि यद्यपि मेरे पिताजी वृद्ध हैं पर उन पर वृद्धावस्था की कोई छाप नहीं है। जब घर में चारों भाइयों को उन्होंने देखा होगा और मुझ पाँचवें अभागे को नहीं देखा होगा तो वे मेरा नाम लेकर रोने लग गये होंगे। पिताजी अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए कह रहे होंगे कि मेरे पाँचवें पुत्र ने जेल प्रवास में कितने कष्ट सहे होंगे। पिताजी निश्चय ही मेरी याद करते रहे होंगे और मेरे प्रति जो उनका प्यार है, उसमें वे बहते रहे होंगे।

ऐसा लगता है कि संभवतः आज उनके स्वर्ण जैसे खरे पुत्र तुच्छ जान पड़ रहे होंगे। क्योंकि मैं पाँचवाँ भाई होने के नाते सब भाइयों में सुहागे की तरह प्रिय था पर समय के कुप्रभाव से आज मैं उन सबके मध्य न होकर यहाँ जेल की दीवारों के बीच बैठा हुआ हूँ।

विशेष :

  1. कवि अपने पिता की लगनशीलता, बहादुरी एवं अपने प्रति मोह का वर्णन कर रहे हैं।
  2. कवि को इस बात का दुःख है कि इन सुखद क्षणों में वह अपने परिवार के साथ नहीं है।
  3. भाषा भावानुकूल है।
  4. स्वर्ण-बेटे में रूपक अलंकार।

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और माँ ने कहा होगा,
दुःख कितना बहा होगा,
आँख में किस लिए पानी
वहाँ अच्छा है भवानी
वह तुम्हारा मन समझकर,
और अपनापन समझकर,
गया है सो ठीक ही है,
यह तुम्हारी लीक ही है,
पाँव जो पीछे हटाता,
कोख को मेरी लजाता,
इस तरह होओ न कच्चे,
रो पड़ेंगे और बच्चे। ॥6॥

कठिन शब्दार्थ :
लीक = प्रतिज्ञा, पद्धति; कोख = गोद; कच्चे = कमजोर।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत अंश में कवि सोचता है कि जेल चले आने से उसके माता-पिता बहुत दु:खी होंगे।

व्याख्या :
कविवर मिश्र कहते हैं कि स्वतन्त्रता के आन्दोलन में उसने अपने पिता की इच्छा से ही भाग लिया था लेकिन फिर भी माता-पिता के प्यार को स्मरण कर वे बेचैन हो उठते हैं और कहते हैं कि मेरी माँ मेरे बारे में रोज सोचती होगी कि मुझे जेल में बहुत कष्ट भोगने पड़ रहे होंगे। वह अपनी आँखों में आँसओं को उमड़ा रही होगी लेकिन फिर वह यह कहकर सन्तोष कर लेती थी कि मेरा पाँचवाँ पुत्र भवानी जेल में आराम से रह रहा होगा।

उस समय वह मेरे पिताजी से कह रही होगी कि तुम क्यों रो रहे हो, भवानी जेल में अच्छी तरह रहा होगा। वह तुम्हारी इच्छा जानकर और देश से अपनेपन की भावना होने के कारण ही तो जेल में गया है। उसका यह काम अच्छा है क्योंकि देश के लिए स्वयं को न्यौछावर कर देने की परम्परा तो तुम्हारी ही है। अतः उसने अच्छा किया जो वह देश की खातिर जेल चला गया। यदि वह जेल जाने से अपने पाँव पीछे खींचता तो निश्चय ही वह मेरी कोख को लजाता। जेल जाकर उसने मेरी कोख की लाज रख ली है। अतः तुम अपना दिल कमजोर मत करो। यदि तुम अपना दिल कमजोर करोगे तो दूसरे बच्चे भी रोना आरम्भ कर देंगे।

विशेष :

  1. कवि ने माता-पिता के स्वभाव का अत्यन्त मनोवैज्ञानिक एवं मार्मिक वर्णन किया है।
  2. कवि की माँ तथा पिता में देश प्रेम की भावना कूट-कूटकर भरी है तभी तो उसे अपनी कोख पर गर्व है।
  3. भाषा भावानुकूल।।

और कहना मस्त हूँ मैं,
कातने में व्यस्त हूँ मैं,
वजन सत्तर सेर मेरा,
और भोजन ढेर मेरा,
कूदता हूँ खेलता हूँ,
दुःख डट कर ठेलता हूँ,
और कहना मस्त हूँ मैं,
यो न कहना अस्त हूँ मैं,
कहाँ, मैं रोता कहाँ हूँ,
धीर मैं खोता कहाँ हूँ,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लेना वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें ॥7॥

कठिन शब्दार्थ :
कातने = चरखा पर रुई कातने में; ढेर = बहुत; अस्त = समाप्त; धीर = धैर्य; पावन = पवित्र।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि यहाँ अपनी जीवन-लीला का वर्णन करते हुए माता-पिता को निश्चिंत रहने की बात कहता है।

व्याख्या :
कविवर मिश्र कहते हैं कि हे सावन! तुम मेरे घर जाकर मेरे माता-पिता से कहना कि मैं यहाँ जेल की चहारदीवारी में मस्त रहता हूँ तथा मैं चरखे पर रुई कातने में व्यस्त रहता हूँ। मैं इस समय हष्ट-पुष्ट हूँ, मेरा वजन सत्तर किलो है तथा मैं ढेर सारा भोजन करता हूँ।

मैं यहाँ और लोगों के साथ कूदता हूँ, खेलता हूँ और यदि कभी कोई मुसीबत आ जाती है तो उसका डटकर सामना करता हूँ। हे बादल! तुम मेरे माता-पिता तथा परिवारीजनों से कहना कि मैं यहाँ जेल में मस्त हूँ और मुझे किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं है। मैं न तो यहाँ मुसीबतों को देखकर रोता हूँ और न अपना धैर्य खोता हूँ।

हे सजीले एवं हरे-भरे सावन! तुम मेरे लिए पुण्यवान एवं पावन हो। तुम चाहे कितना बरस लेना पर मेरे परिवारीजनों से ऐसी कोई बात मत कहना जिससे कि वे दुखी हों और नेत्रों में आँसू भर लाएँ। वे मुझ पाँचवें पुत्र के लिए कोई दुःख न करें।

विशेष :

  1. कवि सजीले सावन से अपनी कुशल क्षेम अपने परिवारीजनों को भेज रहा है।
  2. अनुप्रास की छटा।
  3. भाषा भावानुकूल।

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मैं मजे में हूँ सही है, 
घर नहीं हूँ बस यही है, 
किन्तु यह बस बड़ा बस है, 
इसी बस से सब विरस है, 
किन्तु उनसे यह न कहना, 
उन्हें देते धीर रहना, 
उन्हें कहना लिख रहा हूँ, 
उन्हें कहना पढ़ रहा हूँ, 
काम करता हूँ कि कहना, 
नाम करता हूँ कि कहना, 
चाहते हैं लोग कहना,
मत करो कुछ शोक कहना। ॥8॥

कठिन शब्दार्थ :
विरस = रसहीन, शुष्क; धीर = धैर्य; नाम करता हूँ = आप लोगों की मान-मर्यादा को ऊँचा उठा रहा हूँ; शोक = दुःख।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
कवि बादल के माध्यम से अपने परिवारीजनों को अपनी कुशलता भेजा रहा है।

व्याख्या :
कविवर मिश्र बादलों से कहते हैं कि हे बादलो! तुम मेरे घर जाकर मेरे घरवालों को बताना कि मैं जेल में जरूर हूँ पर मैं मजे में हूँ और ठीक-ठाक हूँ। अन्तर बस इतना ही है कि आज मैं घर पर आप लोगों के साथ नहीं हैं। वास्तव में यह मेरी मजबूरी है और इसी मजबूरी के वशीभूत होकर लोग अपने जीवन को रसहीन बनाया करते हैं।

हे बादल! तुम मेरे परिवारीजनों से कहना कि वे मेरी चिन्ता न करें और साथ ही उन्हें धैर्य धारण कराये रखना। उनसे तुम कहना कि मैं पत्र के द्वारा अपने समाचार उनको लिखकर भेज रहा हूँ और तुम उनसे यह भी कहना कि वह भवानी खाली समय होने पर वहाँ किताबें भी पढ़ा करता है।

उनसे तुम कहना कि मैं खाली नहीं बैठा रहता। वहाँ रहकर भी मैं कुछ-न-कुछ काम करता रहता हूँ। यहाँ रहकर भी मैं अपने कुल एवं वंश की मर्यादा को बनाये रखता हूँ। इस प्रकार जेल में रहकर भी मैं आप लोगों का नाम रोशन किया करता हूँ। इतना ही नहीं मेरे अच्छे कामों के कारण यहाँ के लोग मुझे बहुत चाहते हैं। तुम उनसे यह बात जरूर कहना कि वे मेरे कारण कोई दुःख अनुभव न करें।

विशेष :

  1. कवि ने जेल जीवन की कार्य शैली का वर्णन किया है।
  2. जेल में रहते हुए भी कवि को अपने कुल की मर्यादा का ध्यान बना हुआ है।
  3. भाषा भावानुकूल।

हाय रे, ऐसा न कहना,
है कि जो वैसा न कहना,
कह न देना जागता हूँ,
आदमी से भागता हूँ,
कह न देना मौन हूँ मैं,
खुद न समझू कौन हूँ मैं,
देखना कुछ बक न देना,
उन्हें कोई शक न देना,
हे सजीले हरे सावन,
हे कि मेरे पुण्य पावन,
तुम बरस लो वे न बरसें,
पाँचवें को वे न तरसें। ॥9॥

कठिन शब्दार्थ :
बक न देना = ऊल-जलूल कोई बात मत कह देना; शक = सन्देह; सजीले = सजे-सजाए, (सुन्दर लगने वाले)।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
इस अंश में कवि अपने जेल में जीवन की कार्य प्रणाली का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या :
कविवर मिश्र बादलों से कहते हैं कि हे बादल! मेरे बारे में तुम ऐसी-वैसी अर्थात् उल्टी-सीधी बातें मत कह देना। तुम यह मत कह देना कि मैं रात-रात भर जागता हूँ और जेल में दूसरे मनुष्यों से भयभीत रहता हूँ। तुम मेरे बारे में कुछ उल्टा-सीधा मत कह देना। तुम ऐसी बात भी मत कहना जिससे उन्हें मेरे बारे में कुछ शक हो जाए।
हे सजीले सावन के बादल! तुम मेरे लिए पुण्यवान एवं पवित्र हो। तुम जमकर बरस लेना पर ऐसी कोई बात उन्हें मत बताना जिससे वे आँखों में आँसू भर लाएँ और मुझ पाँचवें पुत्र के लिए वे तरस जाएँ।

विशेष :

  1. कवि बादलों से परिवारीजनों को सुखद समाचार ही भेजना चाहता है।
  2. भाषा भावानुकूल।

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स्वाभिमान संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

जीवन सामग्री हेतू दीनता की उपासना
कभी नहीं करता सिंह!
जब कि
स्वामी के पीछे-पीछे पूँछ हिलाता
श्वान फिरता है एक रोटी के लिए।
सिंह के गले में पट्ट बँध नहीं सकता
किसी कारण वश
बन्धन को प्राप्त हुआ सिंह
पिजंड़े में भी
बिना पट्टा ही घूमता रहता है।

कठिन शब्दार्थ :
दीनता = दया भाव, उपासना = पूजा, श्वान = कुत्ता।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘विविधा के शीर्षक ‘स्वाभिमान’ से अवतरित हैं। इन पंक्तियों के रचयिता ‘आचार्य विद्यासागर’ हैं।

प्रसंग :
शेर और कुत्ते के स्वभावों के मध्य तुलना का रोचक वर्णन है।

व्याख्या :
कवि के अनुसार जीवन में स्वाभिमान का भाव होना अत्यन्त आवश्यक है और स्वयं के स्वाभिमान के मूल्य को शेर के स्वभाव से सरलता से समझा जा सकता है। कवि के अनुसार जंगल का राजा स्वाभिमान शेर अपने भोजन के लिए कभी भी किसी के आगे दया भाव नहीं दिखलाता है जबकि दूसरी ओर कुत्ता एक रोटी की प्राप्ति की प्रबल इच्छा लिये अपने मालिक के आगे-पीछे पूँछ हिलाता फिरता है।

यदि किसी कारण से शेर को बन्धन युक्त करके उसे पिंजरे में डाल भी दिया जाये तब भी उसके गले में कोई भी कुत्तों वाली पट्टा नहीं बाँध सकता। दूसरे के बंधन में होते हुए भी शेर विपरीत परिस्थितियों में भी अपने स्वाभिमान से कोई समझौता नहीं करता और पिजड़े में भी निर्भीक होकर बिना गले में पट्टा धारण किये दहाड़ते हुए इधर-से-उधर घूमता रहता है।

विशेष :

  1. स्वाभिमान का मूल्य कवि ने समझाया है।
  2. भाषा सरल व सहज है।
  3. भावानुकूल शब्दों का चयन किया गया है।
  4. स्वाभिमान के रूप में शेर का प्रतीकात्मक उदाहरण एकदम सटीक किया गया है।

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उस समय उसकी पूँछ
ऊपर उठी तनी रहती है
अपनी स्वतंत्रता-स्वाभिमान को
कभी किसी भांति
आँच अपने नहीं देता वह!
और श्वान
स्वतंत्रता का मूल्य नहीं समझता,
पराधीनता-दीनता वह
श्वान के गले चुभती नहीं कभी,
श्वान के गले में जंजीर भी
आभरण का रूप धारण करती है।

कठिन शब्दार्थ :
स्वतंत्रता = आजादी, स्वाभिमान =स्वयं पर गर्व का अनुभव होना, आँच आना= संकट आना, पराधीनता = दूसरों के आधीन होना, आभरण = आभूषण, गहना।

सन्दर्भ-प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
कवि स्वाभिमान एवं स्वतंत्रता के मूल्य को रेखांकित करते हुए कहते हैं तो पिंजड़े में बंद होते हुए भी बंधनयुक्त शेर की पूँछ कुत्ते की पूँछ के विपरीत सदैव ऊपर की ओर उठी-तनी रहती है। अर्थात् प्रतिकूल परिस्थितियों में भी शेर कभी भी अपनी आज़ादी और स्वयं पर गर्व का अनुभव होने की भावना पर संकट नहीं आने देता और दूसरी ओर कुत्ता मानो उसे स्वतंत्रता की कीमत की समझ ही न हो, अपने गले में दासता की जंजीर को किसी आभूषण की तरह पहने अपने मालिक के पीछे-पीछे दुम हिलाता एवं खींसे-निपोरता फिरता है। वह पराधीनता एवं दीनता के भाव में बहकर स्वयं के स्वाभिमान तक की चिंता नहीं करता और उसे अपने गले में पड़ी भारी जंजीर की चुभन का भी भान नहीं होता है।

विशेष :

  1. कवि ने शेर और कुत्ते के प्रतीकात्मक उदाहरणों से स्वतंत्रता-पराधीनता के सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किये हैं।
  2. भाषा सरल, सहज, सपाठ व सुग्राह्य है।
  3. शब्दों का चयन निहित भाव के अनुकूल है।
  4. आँच आने नहीं देता के माध्यम से भाषा अलंकारिक हो गई है।

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